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भी मिट रही हैं। यह भी इस दिशा में एक बहुत बड़ी सफलता है, शुभ भविष्य की सूचना है।
अभी भादरा में लगातार चार दिन तक सार्वजनिक व्याख्यान हुए। सुनकर वहां के एक एडवोकेट आए और बोले-'मैं दूर से आपके बारे में सुनता बहुत था, पर सोचता यही था कि वृत्तियां संकीर्ण हैं। लेकिन दो समय व्याख्यान सुनने से मेरी सारी भ्रांतियां खत्म हो गई हैं।' स्वयं बदलो : जग बदलेगा
वैसे एक-दो दिन में न तो भ्रांतियां पैदा ही हो सकती हैं और न मिट ही सकती हैं। भावुकता में जो बात बनती है, उसके परिणाम में ठोसता नहीं होती। ठोस परिणाम ठोस कार्य का ही आ सकता है। मुझे प्रसन्नता है कि आज ठोस परिवर्तन आ रहा है। पर यह परिवर्तन मात्र जनता के विचारों में आया है, ऐसी बात नहीं है। हमारे विचारों व बोलने की शैली में भी परिवर्तन आया है। यह सुनिश्चित सिद्धांत है कि जो स्वयं नहीं बदलता, वह दुनिया को भी नहीं बदल सकता। कवि ने कितना सुंदर कहा है
तुम आओ डग एक तो हम आएं डग अट्ठ।
तुम हमसे करड़े रहो तो हम भी करड़े लट्ठ।। मैं अनुभव करता हूं कि जब तक हमारी ओर से उदारता नहीं आई, तब तक जनता भी अनुदार बनी रही, पर जैसे ही हमारा दृष्टिकोण बदला, विचारधारा उदार बनी, जनता हमसे घुलमिल गई। उसने अपना दिल दे दिया।
श्रद्धा बढ़ रही है
ऐसा कहा जाता है कि आजकल धर्म के प्रति श्रद्धा की कमी है, पर मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं। मुझे तो लगता है कि लोगों की श्रद्धा बढ़ रही है। यह सच है कि रूढ़ क्रिया के प्रति भावना कम हो रही है। एक चिंतक व्यक्ति रूढ़ कैसे हो सकता है? पीपल पूजने की बात वह कैसे मान लेगा? इस वैज्ञानिक युग में प्रयोग के बिना विश्वास टिक नहीं सकता। इसी लिए तो रूद, जर्जरित और सड़ी-गली परंपराओं के प्रति लोगों का आकर्षण घटता जा रहा है, लेकिन जहां भी वास्तविकता है, वैज्ञानिकता है, वहां लोगों की आस्था गहरी हो रही है। धर्म और व्यवहार
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