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६ : धर्म और व्यवहार*
आज नोहर में व्यापारी-सम्मेलन का आयोजन है। व्यापारियों को उद्बोधित करने के लिए यह कार्यक्रम बना है। सम्मेलन हो या प्रवचन, मूल बात यह है कि लोगों में नैतिकता के प्रति अभिरुचि जाग्रत हो। इसी उद्देश्य से विभिन्न कार्यक्रम रखे जाते हैं। धर्म सूर्य है
जिस जैन-धर्म में मैं दीक्षित हूं, वह आज प्रायः व्यापारियों तक सीमित रह गया है। हालांकि धर्म किसी वर्गविशेष तक सीमित रहे, यह बात अच्छी नहीं है, हितकर नहीं है, धर्म की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं है। मैंने कल ही प्रवचन में कहा था कि धर्म दीप और चिराग नहीं है, बल्ब भी नहीं है। वह है सूर्य। जैसे सूर्य बिना किसी भेद-भाव के सारे संसार को आलोक बांटता है, उसी प्रकार धर्म भी प्राणिमात्र को जीवन का आलोक बांटता है।
__ पर दुर्भाग्य से आज धर्म संप्रदायों की संकीर्ण सीमाओं में सिमटकर रह गया है। हालांकि मैं ऐसा मानता हूं कि हर एक संप्रदाय का प्रारंभ किसी शुभ उद्देश्य से होता है, तथापि कालांतर में वह उद्देश्य प्रायः गौण हो जाता है, खो जाता है और सांप्रदायिकता शेष रह जाती है, संप्रदाय की चारदीवारी को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न प्रमुख हो जाता है। इसकी एक परिणति यह होती है कि एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय के व्यापक सिद्धांत स्वीकार करने में भी संकोच महसूस करने लगता है। बहुत-से लोगों की मानसिकता तो ऐसी बन जाती है कि वे अपने संप्रदाय की सीमा से बाहर आकर कुछ सुनना-समझना भी पसंद नहीं करते। कुछ सीमा से बाहर आते भी हैं तो उदासीन भाव से सुनते हैं, ग्रहणशील मानस से नहीं।
*व्यापारी-सम्मेलन में पदत्त प्रवचन।
.३०.
आगे की सुधि लेइ
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