Book Title: Chandappahasami Chariyam
Author(s): Jasadevsuri, Rupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Siri Jasadevasūri Viraiyam Siri Candappahasāmi-Cariyam L. D. Series : 122 General Editor Jitendra B. Shah Edited by : Pt. Rupendra Kumar Pagariya भारतीय विधामति L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY, AHMEDABAD - 9 37. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Siri Jasadevasūri Viraiyam Siri Candappahasāmi-Cariyam L. D. Series : 122 General Editor Jitendra B. Shah Edited by : Pt. Rupendra Kumar Pagariya ( 9) L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY, AHMEDABAD-9 TL Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L. D. Series : 122 Siri Candappahasāmi-Cariyam Editor Pt. Rupendra Kumar Pagariya Published By L. D. Institute of Indology AHMEDABAD First Edition : November, 1999 ISBN 81-85857-03-2 Price : Rs. 250/ Typesetting Mac Graphic Printer Chandrika Printery Ahmedabad. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरि-जसदेवसूरि-विरइयं सिरि-चंदप्पहसामि-चरियं अमान - मटाना : सम्पादक : स्पेन्द्रकुमार पगारिया प्रकाशक : लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद-९ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Foreword It is a great pleasure to publish a new work in the series of the Tirthankara biographies. The biography of the eighth Tirthankara of the Jain religion, namely Candraprabhsvāmi, is the subject of this volume. Its narrative covers some 6400 verses in Prakrit. Its language and narrative style are simple and lucid. Sanskrit and Apabhramśa verses also have been introduced at several places. The author of the work is the learned Jasdevasüri (V. S. 1178 / A. D. 1122). His descriptions involve many contemporary social and religious situations. This book, as a result, can also be useful to those who are interested in cultural and comparative studies. Only one palmleaf manuscript of this work is available, in the Jesalmer Jnanabhandara. Pt. Rupendra Kumar Pagariya of this Institute has edited the work on the basis of this single manuscript, and has prefixed an extensive introduction to it. The Institute is deeply indebted to him for his scholarly efforts in editing, spreading as it did over several years. This work, hopefully, will be useful to the students of medieval marrative literature and culture. 2-11-99, Ahmedabad. Jitendra Shah Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना प्रति परिचय ___ चंदप्पह-सामि-चरियं की एक ही ताडपत्रीय प्रति उपलब्ध हुई है । जैसलमेरु दुर्गस्थ जैन ताडपत्रीय ग्रन्थ भण्डार सूचिपत्र में इसका क्रमांक २५२ है । इसमें १७८ पत्र है । इन की माप ९.३१ x २१" है । ग्रंथ की स्थिति और लिपि सुन्दर है । प्रति के अन्त में लिपिकार ने “संवत १२१७ चैत्र वदि ९ बुधौ इतना ही लिखा है । मैंने इसी प्रति से प्रस्तुत चरित्र का सम्पादन किया है । ग्रन्थ परिचय आज तक अप्रकाशित चरित ग्रन्थों में यह एक महत्वपूर्ण चरित काव्य है । इसके कर्ता विद्वान् आचार्य जसदेव सूरि है । इन्होंने आशावल्लीपुरी के श्रीधवलभण्डसालिक श्रेष्ठी द्वारा निर्मित पार्श्वस्वामि जिन भवन में रहकर इस ग्रन्थ का आरंभ किया था और विक्रम सं. ११७८ पौषकृष्णा तेरस के दिन सिद्धराज जयसिंह के राज्यकाल में अणहिल्लवाड पत्तन में श्री चतुर्विंशति जिन आयतन से परिवृत श्री वीरनाथ जिन भवन में रहकर श्री वीरसूरि के आशिर्वाद से इस चरित ग्रन्थ को पूरा किया । इस ग्रन्थ का ग्रन्थ परिमाण ६४०० है । यह ग्रन्थ सम्पूर्ण पद्यमय और दस अवसरों में विभक्त है । इसकी भाषा महाराष्ट्रीय प्राकृत है । बीच बीच में संस्कृत श्लोक भी उद्धृत है । पद्य में अधिक रूप से आर्या छन्द का प्रयोग किया है। कहीं कहीं वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडित, भुंजगप्रयात, स्रग्धरा, अनुष्टुप, गीतिका, गाहा आदि छंद का भी प्रयोग किया है । बीच बीच में अपभ्रंश के दोहे भी दिये हैं। भगवान का जन्मवर्णन अपभ्रंश भाषा में किया है। इसकी भाषा आलंकारिक और समासबद्ध शब्दों की प्रचुरता से निबद्ध है । सुभाषितों एवं मुहावरों से परिपूर्ण होने से यह काव्य ग्रन्थ अधिक रोचक बना है । दान, शील, तप, भावना, सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, आराधक, विराधक, सम्यक्त्व के पांच अतिचार, श्रावक के पंचाणुव्रत, रात्री भोजन, जीवादि नौ तत्त्व, लोक स्वरूप, आठ कर्म और उनकी प्रकृतियाँ, जैन सम्मत भूगोल, खगोल का विषद वर्णन कर आचार्यश्री ने इस ग्रन्थ की उपादेयता बढ़ा दी है । छ हजार श्लोक प्रमाण इस लघु चरित्र काव्य में समस्त जैन धर्म के सिद्धान्तों का सुचारुरूप से निरूपण किया है । चंद्रप्रभ चरित्र एक महाकाव्य है । साहित्यकार के अभिप्रेत महाकाव्य की कसौटी पर यह खरा उतरता है। आठ सर्गों से अधिक सर्गबद्ध रचना को महाकाव्य कहते हैं। चन्द्रप्रभ चरित भी दस अवसरों में विभक्त है। महाकाव्य में देव या धीरोदातत्त्व आदि गुणों से विभूषित कुलीन क्षत्रिय एक नायक होता है । चन्द्रप्रभ स्वामी भी धीरोदात्त महान् पराक्रमी तीर्थंकर इस चरित के नायक है । इसमें श्रृंगार, वीर और शान्त इन तीनों में से एक रस प्रधान और अन्य रस गौण होते हैं । इस काव्य में भी यही हुआ है । इस चरित की कथा एक ख्याति प्राप्त महापुरुष की है । इस में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की चर्चा की गई है । इस काव्य का आरंभ नमस्कार से हुआ है । कवि ने एक सर्ग में एक ही छंद का प्रयोग किया है अन्त में अन्य छंदों का और कहीं कहीं अन्यान्य छंदों का भी प्रयोग हुआ है । कवि ग्रन्थारम्भ में सज्जन प्रशंसा और दुर्जन की निन्दा करते हुए अपने काव्य को तटस्थ भाव से निरीक्षण करने की सलाह देते हैं । इस ग्रन्थ का मुख्य विषय है राजा, रानी, पुरोहित, कुमार, अमात्य, सेनापति, देश, ग्राम, पुर, सरोवर, समुद्र, सरित्, उद्यान, पर्वत, अटवी, मन्त्रणा, दूत, प्रयाण, मृगया, अश्व, गज, ऋतु, सूर्य, चन्द्र, आश्रम, युद्ध, विवाह, वियोग, सुरत, स्वयंवर, पुष्पावचय, जलक्रीडा आदि है । कवि ने प्रसंगानुसार इनका सुन्दर एवं रोचक ढंग से वर्णन कर अपनी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काव्यत्व शक्ति का पूर्णपरिचय दिया है । प्रस्तुत चन्द्रप्रभ चरित्र का नामकरण इस के मुख्य नायक क्षत्रिय कुलोत्पन्न भ. चन्द्रप्रभ के नाम से हुआ ग्रन्थारंभ में कवि ने प्रथम और द्वितीय पद्य में भ. ऋषभ देव का स्मरण किया है । चौथे और पांचवें पद्य में संसार को शान्तिप्रदाता भ. शान्तिनाथ का, छठे पद्य में विघ्नहर पार्श्वप्रभु का, एवं सातवें पद्य में लोक प्रदीप वर्तमान जैन शासन नायक वर्द्धमान का और आठवें तथा नौवें पद्य में समस्त कमेरूपी शत्रुओं का हनन करने वाले शेष तीर्थंकरों को स्मरण किया है । इसके पश्चात् कवि अपने महान् उपकारी शासन प्रभावक आचार्य विजयसिंह सरि को स्मरण कर सप्तभव निबद्ध ऐसे चन्द्रप्रभ चरित रचना की इच्छा प्रकट करते हैं । साथ में यह भी कहते हैं कि मुझे प्राकृत में चरित रचने की प्रेरणा आ. विजयसिंह सूरि से मिली क्योंकि उन्होंने प्रबन्ध महाकाव्य की संस्कृत में रचना की थी। किन्तु मैं मन्दमति हूँ अतः प्राकृत में दसपर्वयुक्त चन्द्रप्रभ चरित की रचना करता हूँ। नौ रस युक्त चन्द्रप्रभ चरित का मुख्य रस शान्त है । जो प्रायः सभी सर्गों में प्रवाहित है । इन सर्गों में वैराग्य के कारणों के मिलने पर संसार की असारता, यौवन की चंचलता, शरीर और विषयों की निःसारता, जीवन की अनित्यता, मुनि दर्शन, उनका उपदेश, प्रवज्या, तपस्या और मोक्ष प्राप्ति का उपाय वर्णित है । शान्त रस के साथ श्रृंगार रस का भी आचार्यश्री ने भावमय शब्दों में वर्णन किया है । दिग्विजय से लौटा हुआ अजितसेन जब उत्सव पूर्वक नगर में प्रवेश करता है, उस समय उसे देखने के लिये विविध आभूषणों और वस्त्रों से सजी युवतियाँ अटारी में खड़ी वार्तालाप कर रही थी और कुमार को आकर्षित करने के लिए विविध चेष्टाएँ कर रही थी, उनका वर्णन हैं । साथ ही वसन्त ऋतु, वसन्तोत्सव में उद्यानविहार, जलक्रीडा, युवतियों का रासगान, सायंकाल, चन्द्रोदय, रतिक्रीडा आदि के सुन्दर वर्णन से कवि ने अपने काव्य को श्रृंगारमय बना दिया है । वीररस के वर्णन में भी कवि ने अपनी काव्यशक्ति का अच्छा परिचय दिया है । नगर में हाहाकार मचाने वाले उन्मत्त हाथी को पद्मनाभ द्वारा वश में करना , हाथी को अपना बताकर अपमानजनक व्यवहार करने वाले उन्मत्त राजा पृथ्विपाल के साथ वीरतापूर्वक लड़कर उसे दण्डित करना, अपने पूर्ववैरि असुर चंडरुचि के साथ युद्ध कर उसे वश में करना आदि वीरता के वर्णन वीररस, तथा युद्ध भूमि में मांस और रक्तासव के सेवन से उन्मत्त बनी हुई डाकनियों का कटे हुए सिर की माला पहन कर नत्य करने का वर्णन, रौद्र रस को प्रकट करता है । आकाश मार्ग से उतरते हुए चारणमुनि के देह के दिव्य प्रकाश से राजा अजितंजय का एवं राजसभा का आश्चर्य चकित होना, सिंहरथा कन्या का सिंह पर आरूढ हो मुनि का दर्शन करना आदि के वर्णन में हम अद्भूतरस का पान कर सकते हैं । पति पत्नी के वियोग, माता पिता के पुत्र वियोग एवं वान के निर्वाण के समय उनके वियोग के वर्णन में कवि ने अपने काव्य को करुणरसमय बना दिया है । इस प्रकार विविध रसों से युक्त काव्य को कवि ने रसमय तो बना ही दिया है साथ में उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेषोपमा, रूपक, दृष्टान्त, व्यतिरेक आदि अलंकारों से भी अपने काव्य को अलंकृत किया है । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरित्रनायक चन्द्रप्रभ प्रथमभव (प्रथमपर्व पृ. २) धातकीखण्ड द्वीप के मंगलावती विजय में रत्नसंचया नाम की नगरी थी । वहां कनकप्रभ नामका पराक्रमी राजा राज्य करता था। उसकी रूपगुण से सुसपन्ना सुवर्णमाला नाम की रानी थी और समस्त कलाओं में कुशल पद्मनाभ नामका पुत्र था । एक दिन राजा कनकप्रभ अपने अन्तःपुर के गवाक्ष में बैठा हुआ नगर की शोभा देख रहा था । देखते देखते उसकी दृष्टि एक अर्ध शुष्क तालाब पर पड़ी । उस तालाब में कीचड़ बहुत था और पानी कम । उसमें एक वृद्ध बैल फंसा हुआ अपने जीवन की अन्तिम सासें ले रहा था । वेदना से कराहते हए वद्ध बैल को देखकर राजा सोचने लगा - जब यह बैल युवा था तब अपने उन्मत्त यौवन से अन्य प्राणियों को तथा मनष्यों को डराता था। अब वृद्ध होने पर तालाब से भी बाहर नहीं निकल सकता । प्रत्येक प्राणी की भी यह अवस्था होती है। जब यह यौवन को पार कर वृद्धावस्था में प्रवेश करता है तो उसकी सारी अवस्थाएँ क्षीण हो जाती है । गात्र शीथिल हो जाते हैं। वह सब तरह से अपने आपको असमर्थ पाता है। संसार के सभी पदार्थ नश्वर है । उन में स्थिरत्व की क्या आशा की जा सकती है ? संसार में केवल धर्म ही शाश्वत तत्त्व है । इस के आचरण से ही व्यक्ति शाश्वत सुख को प्राप्त करता है । इस प्रकार संसार की असारता का विचार करते करते उसे वैराग्य हो गया। उसने अपने पुत्र पद्मनाभ को राज्यगद्दी पर स्थापित कर आचार्य श्रीधर के समीप दीक्षा धारण की और अपने जीवन को सार्थक किया (गा.३२-१०८) (द्वितीय पर्व पृ. ५) पिता के दीक्षित होने पर महाराजा पद्मनाभ न्यायपूर्वक राज्य का संचालन करने लगा। उनके राज्यकाल में प्रजा अत्यन्त सुखी थी । कालान्तर में रानी सोमप्रभा के साथ विषय सुख का अनुभव करते हुए उसे एक सुन्दर पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । इसका नाम सुवर्णनाभ रखा । बाल्यकाल में सुवर्णनाभ ने अनेक विद्याओं में कुशलता प्राप्त की । युवावस्था में अनेक राजकुमारियों के साथ उसका विवाह हुआ । राजा ने उसे युवराज पद पर अधिष्ठित किया । एक दिन राजा अपने सभासदों के साथ सभा मण्डप में बैठा हुआ अपने सामन्तों से वार्तालाप कर रहा था। इतने में उद्यानपालक ने राजसभा में प्रवेश कर राजा को प्रणाम किया और बोला- देव ! सुगन्धिपवन नाम के उद्यान में श्रीधर नाम के प्रसिद्ध आचार्य अपनी शिष्य मण्डली के साथ पधारे हैं । उनके आगमन से उद्यान का सारा वातावरण अत्यन्त प्रसन्न हो उठा है । उद्यान स्थित अनेक प्राणी अपने वैरभाव का त्याग कर उनकी उपासना कर रहें हैं । ऐसे मुनिवर के दर्शन करने से एवं उनका उपदेश सुनने से हमारा जीवन अवश्य सफल होगा। उद्यानपालक की बात सुनकर राजा परिवार के साथ उद्यान में पहुंचा। मुनि को विधिपूर्वक वन्दन और उनके गुणों की प्रशंसा कर उनके समीप बैठ गया । मुनि ने संसार की असारता बताते हुए धर्म का स्वरूप समझाया । मुनि का उपदेश सुन राजाने अत्यन्त हर्ष प्रकट करते हुए पूछा - भगवन् ! मैं अपने पूर्व भव का वृत्तान्त आप से सुनना चाहता हूँ । कृपया आप मेरे पूर्व जन्म का वृतान्त कहिए । राजा के आग्रह से आचार्य ने कहा - 'यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो तुम ध्यानपूर्वक अपने अतीत भव Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को सुनो । (गा.-२०४-) इस अवसर्पिणी काल के चतुर्थ आरे में आगामी भव में सुप्रसिद्ध आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के नाम से तुम्हारा जन्म होगा । अब मैं तुम्हारे पूर्वभवों का वर्णन करता हूँ। __पश्चिम विदेह की सौगन्धिका विजय में श्रीपुर नामका रमणीय नगर था। वहां श्रीषेण नामका राजा राज्य करता था। उसकी रूप शील गुण सम्पन्ना श्रीकंता नामकी रानी थी। रानी के साथ सुखपूर्वक निवास करते हुए राजा का बहुतसा काल व्यतीत हुआ । ___ एक दिन रानी गवाक्ष में बैठी हुई नगर निरीक्षण कर रही थी । सहसा उसकी दृष्टि अपने पुत्र के साथ आनन्दपूर्वक खेलती हुई एक सेठानी पर पड़ी । बालक की विविध प्रकार की बालक्रीडा देख वह अपने आप को धिक्कारने लगी । मैं इतने बड़े साम्राज्य की साम्राज्ञी होते हुए भी मेरी गोद पुत्र से शून्य है । पुत्रविहीन स्त्री का जीवन निरर्थक है। इस प्रकार पश्चाताप करती हुई महारानी महल से नीचे उतरी और शयनकक्ष में अन्यमनस्क हो विलाप करने लगी । महाराजा को जब इस बात का पता चला तो वह रानी के पास पहुंचा और रानी को आश्वासन देते हुए पत्र प्राप्ति का उपाय सोचने लगा। उपाय सोचते सोचते उसे विचार आया - हमें किसी तत्त्वज्ञानी मुनि से पूछना चाहिए कि हमारे भाग्य में पुत्र है या नहीं? एक दिन अपनी रानी के साथ उद्यान में क्रीडा करते हुए राजा ने सहसा आकाश से नीचे उतरते हुए एक चारण मुनि को देखा । राजा और रानी मुनि को देख बड़े हर्षित हुए । वे मुनि के पास गये और वन्दन कर मुनि की उपासना करने लगे । उपदेश के अन्त में राजा ने मुनि से पूछा - भगवन् ! हमें पुत्र की प्राप्ति होगी ? मनिवर ने कहा - नरेन्द्र ! तम्हारे भाग्य में वर्तमान में पत्र की प्राप्ति नहीं है किन्त कालान्तर में अवश्य होगी । इसका कारण मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम ध्यान से सुनो। तुम्हारी यह जो अग्रमहिषी है वह पूर्वभव में इसी नगर के श्रेष्ठी देवांगद की पत्नी श्रीदेवी की कुक्षी से सुनन्दा नामकी कन्या के रूप में जन्मी थी । युवावस्था में वह अत्यन्त रूपवती थी। उसे अपने रूप और यौवन का बड़ा अभिमान था । एक दिन उसने रूप सम्पन्न गर्भवती तरुणी को देखा । गर्भ के कारण देदीप्यमान मुख फीका पड गया था । निरोग होते हुए भी दीर्घकालीन रुग्णा सी लगती थी । गर्भभार के कारण गति में मन्दता थी और शरीर शीथिल था । उसकी यह अवस्था देख उसे विचार आया - गर्भ के धारण करने से स्त्री का यौवन नष्ट हो जाता है । सौंदर्य फीका पड़ जाता है । बालक के जन्म लेने पर उसके लालन पालन में वह अपने सुखोपभोग को भी पूरा नहीं भोग सकती । अतः मैं कभी भी गर्भवती नहीं बनूंगी । उसने यह निदान किया। श्रावक धर्म का पालन करती हुई और निदान का प्रायश्चित किये बिना ही वह मरी और सौधर्म देवलोक में जन्मी ! वहाँ देवभव को पूर्ण कर उसने दुर्योधन राजा के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया । युवावस्था में इसका तुम्हारे साथ विवाह हुआ । पूर्व जन्म के निदान के कारण इसे वर्तमान में पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही है । किन्तु पूर्वजन्मकृत निदान कर्म के क्षीण होने पर यह एक सुन्दर पुत्र को जन्म देगी । ___गुरु के ये वचन सुनकर राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुए वे घर आकर जिनभक्ति करने लगे । एक दिन राजा श्रीकान्ता रानी के साथ नन्दीश्वरद्वीप के भव्य जिनालय में पहुँचा । वहाँ विधिपूर्वक भगवान को स्नान कराया और उनकी भक्तिपूर्वक पूजा की । श्रद्धा से जिनपूजन करने के कारण रानी गर्भवती हुई । इसने एक सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । राजा ने पुत्र का जन्मोत्सव किया । बालक का नाम श्रीधर्म रखा । जब श्रीधर्म Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आठ वर्ष का हुआ तब कला सीखने के लिए उसे कलाचार्य के पास भेजा। उसने बुद्धि कौशल्य से अल्पकाल में ही कलाओं में निपुणता प्राप्त कर ली । युवावस्था में रूप गुण से सम्पन्न प्रभावती नामकी राजकुमारी के आ। राजा ने उसे यवराज पद पर अधिष्ठित किया। कालान्तर में रानी प्रभावती ने श्रीकान्त नामक एक सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । एक दिन राजा श्रीधर्म को अपने साम्राज्य को विस्तृत करने का विचार आया । अपने सामन्तों मंत्रियों से विचार विमर्शकर विशाल सेना के साथ वह विजययात्रा के लिए निकल पड़ा। अपने बाहुबल से और विशाल सेना के सहयोग से उसने आसपास के समस्त देशों को जीत लिया और वापस राजधानी की ओर लौटा । मार्ग में एक ग्राम के बाहर एक मुनिवर ध्यान कर रहे थे। मुनि की शान्त मुद्रा और तपोतेज को देख कर वह बड़ा प्रभावित हुआ । विनयपूर्वक नमस्कार कर वह मुनि के समीप बैठ गया । ध्यान समाप्ति के पश्चात् मुनि ने शुभाशीर्वाद के साथ धर्मोपदेश दिया । मुनि का उपदेश सुनकर उसने अपार हर्ष व्यक्त करते हुए पूछा - भगवन् ! आप यौवनकाल में ही संसार का परित्याग कर साधु क्यों बने ? मैं आपके वैराग्य का कारण जानना चाहता हूं । राजा की विशेष जिज्ञासा देखकर मुनि ने अपने वैराग्य कारण सुनाते हुए कहा - राजन् ! इसी विदेह क्षेत्र में विशालपुरी नाम की नगरी है। वहां जय नाम का राजा राज्य करता है । उसकी जयश्री नाम की रानी है । राजा रानी पर अत्यन्न आसक्त था । राजा चौबीसों घण्टों महल में ही पड़ा रहता था। रानी के प्रति अत्यधिक आसक्ति और राज्य के प्रति अनासक्ति देखकर प्रजा एवं सामन्तग लगे । सामन्तों ने राजा को बहुत समझाया पर वह नहीं माना । अन्त में क्रुद्ध सामन्तों ने राजा को नगर से निकाल दिया । राजा रानी को लेकर वन में चला गया और रानी के साथ वन में आश्रम बनाकर रहने लगा । राजा जंगल के कन्दमूल खाकर अपने जीवन का निर्वाह करने लगा। रानी गर्भवती हुई । पास में ही एक सिंहगुफा थी । उस सिंह गुफा के आसपास कन्द, फल, फल आदि विशाल मात्रा में मिलते थे । राजा रानी को लेकर सिंह गुफा में पहुँचा । रानी को सिंहगुफा में छोड़कर वह कन्द, वनफल लाने के लिए बन में चला गया । उस समय सद्यप्रसूता सिंहनी अपने नवजात बच्चों को गुफा में छोड़कर शिकार के लिए चली गई थी। रानी को प्रसव पीडा हुई । उस समय सिंहनी गर्जारव करती हुई गिरि गुफा में आ रही थी। सिंहनी के गर्जारव से भयभीत रानी ने दो बालकों को जन्म दिया । उनमें एक शिशु पुत्र था तो दूसरा शिशु पुत्री । सिंहनी को आते देख रानी पुत्र को गोद में ले भाग निकली । पुत्री गुफा में ही रह गई । उसे पुत्री का ध्यान ही न रहा । उधर केरल नामका राजा शिकार के लिए वन में भटक रहा था। रानी भागने के श्रम से और भय से एक वृक्ष के नीचे सद्यप्रसूत बाल के साथ विश्रामकर रही थी। केरल नरेश की दृष्टि रानी और बालक पर पड़ी। रानी को वही छोड़कर वह बालक को घर ले आया और अपनी रानी से बोला - इस बालक को वन देवता ने हमें दिया है । अतः इसे अपना ही पुत्र मानकर पालन करो । पुत्र विहीन रानी को पुत्र देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई । उसने बालक का जन्मोत्सव किया और बालक का नाम वनराज रखा । वनराज समस्त कलाओ में कुशल हुआ। एक दिन केरल नरेश वनराज के साथ उसी वन में पहुंचा जहां उसे वनराज की प्राप्ति हुई थी । उसी वन में एक वृक्ष के नीचे एक केवलज्ञानी मुनि परिषद के बीच धर्मोपदेश सुना रहे थे। उसी परिषद में वनराज Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के असली पिता राजा जय और माता जयश्री उपस्थित थी । केरल राजा वनराज के साथ मुनि के समीप पहुँचा और धर्मोपदेश सुनने लगा । इतने में सिंह पर बैठी हुई अत्यन्त रूपवती एक कन्या ने परिषद् में प्रवेश किया। सिंह के कन्धे से नीचे उतर कर उसने विनयपूर्वक मुनि को प्रणाम किया और उनका उपदेश सुनने लगी । सिंहवाहनी दिव्य स्वरूपा कन्या को देखकर सभी आश्चर्य से दिग्मूढ थे । राजा जय उस दिव्य कन्या को सस्नेह अनिमेष दृष्टि से देखने लगा । उपदेश समाप्ति के बाद राजा जय ने विनयपूर्वक केवली से पूछा - भगवन् ! अकस्मात् ही मेरी रानी की गोद में रहे हुए पुत्र का किसने अपहरण किया और वह पुत्र इस समय कहाँ और किस अवस्था में है ? एवं अपने दिव्य रूप से देवों को भी आश्चर्य चकित करने वाली तथा निर्भीक होकर सिंह पर आरूढ होकर आनेवाली यह कन्या कौन है ? तथा जिसे देखकर मेरा शरीर रोमांचित और हृदय आनन्दित हो रहा है ऐसा यह बालक कौन है ? मुनिवर ने कहा - राजन् ! तुम्हारे पुत्र का केरल राजा ने अपहरण किया था और उसे अपने घर ले जाकर उसका नाम वनराज रखा । जिस बालक और बालिका को देखकर तुम्हारे मन में आनन्द हो रहा है ये ही तुम्हारे पुत्र और पुत्री है । जब रानी जयश्री सिंह के भय से गुफा से भाग रही थी उस समय उसे अपनी दूसरी सन्तान पुत्री का स्मरण ही नहीं रहा । वह उसे वही छोड़ अपने नवजात शिशु को लेकर भागी । मार्ग में प्रसव पीडा से पीडित वह एक वृक्ष के नीचे मूर्छित हो कर गिर पड़ी । बालक रुदन करता हुआ उसी के पास में पड़ा था। उधर केरल नरेश की दृष्टि रुदन करते हुए बालक पर पड़ी। उसने उसे उपनी गोद में उठा लिया । मूर्छित रानी को वही छोड़ वह अपने नगर लौट आया । बालक को वह अपनी रानी के पास ले आया और बोला- देवी ! वनदेवता ने हमें यह बालक दिया है। तुम इसे अपना ही पुत्र समझ कर इस का पालन करो । सुन्दर नवजात बालक को देख वह बड़ी प्रसन्न हुई और उसका लालन पालन करने लगी। इधर सिंहनी बालिका को अपना ही बालक मान कर अन्य बच्चों के साथ उसे भी दूध पिलाने लगी । यह सिंहरथा कन्या अन्य सिंह शावकों के साथ वन में ही बडी होने लगी। एक बार आकाश मार्ग से जाते हुए चण्डवेग नामक खेचर की दृष्टि इस कन्या पर पड़ी। उसके दिव्यरूप से आकर्षित होकर वह नीचे उतरा और कन्या को उठाकर अपने साथ ले जाने लगा। उस समय अमरचूल देव द्वारा नियुक्त रक्षक देवोने चण्डवेग के साथ युद्ध किया और उसे चंडवेग के चंगुल से मुक्त किया । हे राजन् ! देव द्वारा रक्षित यह कन्या तुम्हारी ही पुत्री है । मुनिवर से यह घटना सुनकर तथा अपने खोये हुए पुत्र-पुत्री को पुनः पाकर राजा जय और राणी जयश्री का हृदय आनन्द से पुलकित हो उठा । सिंहरथा कन्या ने तथा वनराज ने अपने असली माता-पिता को प्रणाम किया। केरल राजा भी यह वृत्तान्त सुन बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने राजा जय और राणी जयश्री को तथा कन्या को अपने घर आनेका अत्यन्त आग्रह किया । केरलराजा सभी को आग्रह पूर्वक अपने घर ले आया। कुछ दिन वहां रहकर, वनराज अपने माता पिता बहन और केरल राज को साथ में ले कर ससैन्य अपने नगर विशाला लौट आया । वहां शत्रु सामन्तों के साथ युद्ध कर उन्हें पराजित किया और अपने खोये हुए साम्राज्य को पुनः प्राप्त किया । केरल राजा ने अपनी पुत्री का विवाह वनराज के साथ कर दिया और समस्त राज्य को वनराज को सौपकर वह दीक्षित हो गया । राजा जय ने भी अपने साम्राज्य का उत्तराधिकारी वनराज को नियुक्त कर रानी जयश्री के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की। वनराज अपने विशाल साम्राज्य का न्याय नीति पूर्वक पालन करने लगा । कालान्तर में उसे हरि नामक पुत्र हुआ । पुत्र के युवा होने पर उसे समस्त राज्य का भार सौपकर वह भी दीक्षित हो गया । हे राजन ! मैं Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वही वनराज हूं। ___मुनि का उपदेश सुन श्रीधर्म धर्माभिमुख हुआ । वह अपने नगर लौट आया । राज्य का संचालन करते हुए उसे श्रीकान्त नामक पुत्र हुआ । युवावस्था में अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर अधिष्ठित कर वह भी दीक्षित हो गया । दीक्षा ग्रहण कर श्रीधर्म ने कठोर तप किया और अन्त में समाधि पूर्वक मरकर प्रथम देवलोक में श्रीहर नामक महर्धिक देव बना । (गा. - ४५७) (तृतीय पर्व पृ. १९) धातकी खण्ड द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में रमणीय विजय में शुभा नामकी सुन्दर नगरी थी। वहां अजितंजय नामका राजा राज्य करता था । रूप गुण से सम्पन्ना अजिया नामकी उसकी रानी थी । एक दिन रानी अपनी कोमल शय्या पर सुख पूर्वक सो रही थी। रात्री में उसने चौदह महास्वप्न देखे । जागने पर वह राजा अजितंजय के पास पहुँची । रानी ने स्वप्न की बात कही और उनका फल पूछा । राजा ने अपनी बुद्धि के अनुसार स्वप्न के अर्थ को जान कर कहा - देवी ! तुम महान् पराक्रमी चक्रवर्ती को जन्म दोगी। उसी रात्रि में सौधर्मकल्पवासी श्रीधरदेव के जीव ने स्वर्ग से च्युत हो कर महारानी अजिया के उदर में प्रवेश किया । रानी गर्भवती हुई । गर्भकाल के पूर्ण होने पर उसने एक सुन्दर पुत्र रत्न को जन्म दिया। राजा ने बड़े उत्सव के साथ उसका जन्मोत्सव किया और बालक का नाम अजितसेन रखा । अजितसेन अल्पकाल ही में कलाओं में निपुण बन गया । युवावस्था में राजा ने उसे युवराज पद पर अधिष्ठित किया । युवराज अजितसेन अपने समृद्ध मित्र मण्डली के साथ राज्यसुख का अनुभव करने लगा। __ एक दिन राजा युवराज अजितसेन के साथ राज्यसभा में बैठा हुआ था कि अचानक अजितसेन का किसी पूर्व जन्म के वेरी चण्डरुचि असुर ने उसका अपहरण किया । अचानक युवराज का अपहरण देख राजा सामन्त एवं नगरजन घबरा गये । राजा ने एवं नगरजनों ने युवराज की बड़ी खोज की किन्तु युवराज नहीं मिला । राजा निराश था । रानी पुत्रवियोग में दुखी थी । प्रजाजनों ने अपनी अश्रुधारा से सारे नगर को भीगो दिया था किन्तु युवराज का कहीं भी पता नहीं लगा। एक बार ज्ञानी चारणमुनि का नगर के उद्यान में आगमन हुआ । राजा रानी और नगर जन मुनि दर्शनार्थ उद्यान में गये । मुनि ने विशाल परिषद में संसार की असारता और धर्म की उपयोगिता बताई । उपदेश के अन्त में राजा ने विनयपूर्वक चारण मुनि से पूछा – भगवन् ! मेरे युवा पुत्र का किसने अपहरण किया और वह इस समय कहाँ और किस अवस्था में है ? मुनि ने कहा - राजन् ! तुम्हारा पुत्र इस समय बड़े सुख में है । चडरुचि नामक पूर्व वैरी असुर ने इसका अपहरण किया है । युवराज अतिजसेन ने चडरुचि के साथ युद्ध कर उसे पराजित किया है। कुमार के पराक्रम से प्रसन्न हो चण्डरुचि असुर उसका अनन्य मित्र बन गया है । राजन् ! चण्डरुचि की सहायता से एवं अपने पराक्रम से वह छखण्ड पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती बनेगा । उसके पश्चात् ही वह यहां आकर आप लोगों से मिलेगा । चारण मुनि की बात सुनकर राजा का शोक दूर हो गया और प्रसन्न होकर गुरु को वन्दन कर राजमहल में लौट आया । इधर अपहृत युवराज का चण्डरुचि असुर के साथ भयानक युद्ध हुआ । युद्ध में चण्डरुचि हार गया और वह युवराज का प्रगाढ मित्र बन गया । युवराज अजितसेन ने चण्डरुचि से पूछा - मित्र ! अकारण ही मेरा अपहरण कर तूने मुझ से युद्ध क्यों किया ? उत्तर में चण्डरुचि ने कहा - 'मित्रवर ! आज से तृतीय भव Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में श्रीपुर नाम के नगर में श्रीधर्म नाम का राजा था। उसके शशि और शूर नाम के दो सेवक थे । एक बार शशि ने महाधन नामके सेठ के घर चोरी की और चुराया हुआ माल शूर के घर रख दिया। शशि पकड़ा गया। राजा ने उसका सर्वस्व अपहरण कर उसे अपने देश से निष्कासित किया । निष्कासित शशि एक तापस आश्रम में पहुँचा । वहाँ तापसी दीक्षा ग्रहण कर तप करने लगा । अकाम तप से वह मरकर चंडरुचि नामक असुर देव बना । शूर मरकर अजितसेन के रूप में युवराज बना । हे युवराज ! मैं वही चण्डरुचि हूँ | आपको देखकर मुझे पूर्वभव का वैर याद आया । इसी कारण आपका अपहरण कर आप को मार डालने की बुद्धि से आपके साथ मैने युद्ध किया। हे मित्रवर ! मेरे इस दुस्साहस के लिए आप क्षमा करें। ऐसा कह चण्डरूचि देव अजितसेन को अरिंजय नामक नगर में छोडकर स्वस्थान चला गया। अजितसेन अचानक ही अपने आपको विशाल नगर में पाकर आश्चर्य चकित हुआ । अपने समीपस्थ व्यक्ति से उसने पूछा - यह नगर कौनसा है ? उसने कहा- यह अरिंजय नाम का नगर है । यहाँ का राजा जयधर्म है । इसकी रानी का नाम जयश्री और राजकुमारी का नाम शशिप्रभा है । शशिप्रभा अत्यन्त सुन्दर राजकन्या है । उसके रूप से मोहित होकर महेन्द्र नाम के राजा ने उसे पाने के लिए जयधर्म पर आक्रमण कर दिया है और सारे नगर को अपनी सेना से घेर लिया है । राजा जयधर्म भी नगर का द्वार बन्द कर राजमहल में छुप कर बैठ गया है । अजितसेन ने जब यह बात सुनी तो उसने जयधर्म राजा की सहायता करने का निश्चय किया । अकेला ही वह महेन्द्र राजा की छावनी में घुसा और शत्रु सेना का संहार करता हुआ महेन्द्र नरेश के पास पहुँच गया । उसके साथ युद्ध कर उसने उसे मार डाला और महेन्द्रराजा की सम्पत्ति और सेना को अपने अधिकार में कर लिया। नगर के द्वार खुल गये | जयधर्म राजा ने एवं नगरजनो ने कुमार का बड़ा सन्मान किया। कुमार ने सारी सम्पत्ति राजा को लौटा दी और उसे पुनः राज्य गद्दी पर बिठा दिया । राजकुमार अजितसेन कुछ समय तक वही रहा । आसपास के छोटे बडे राज्य को जीतकर उसने जयधर्म राजा की राज्य सीमा विस्तत की। ___ एक बार शशिप्रभा को पाने के लिए रविपुर नगर के खेचर चक्रवर्ती धरणीध्वज ने जयधर्म पर आक्रमण कर दिया । शक्तिशाली अजितसेन ने खेचर चक्रवर्ती के साथ युद्ध कर उसे भी पराजित कर दिया । इस महान् पराक्रम से प्रसन्न होकर राजा जयधर्म ने अपनी पुत्री शशिप्रभा का अजितसेन कुमार के साथ विवाह कर दिया । ये दोनो सुख पूर्वक जयधर्म की राजधानी में रहने लगे। कुछ समयतक श्वसुरगृह में रहने के पश्चात् एक दिन उसने श्वसुर से कहा - राजन् ! मेरे वियोग में माता पिता की क्या अवस्था हो रही होगी यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। कृपया मुझे स्वदेश लौटने की आज्ञा दें । स्वसुर ने जमाई को रोकने का बहुत प्रयत्न किया । अन्ततः जमाई की स्वदेश लौटने की उत्कट इच्छा के आधीन होकर उसे जाने की आज्ञा दे दी । अजितसेन ने रानी शशिप्रभा तथा विशाल चतुरंगी सेना में आरूढ होकर अपने नगर के लिए प्रस्थान किया। अति तीव्र गति से गमन करता हुआ वह सुन्दरपुर पहुंचा। वहां ऋतुकुलभावन नामके उद्यान में ठहरा । वहाँ सतिवन वृक्ष के निचे ध्यानस्थ मुनिवर को देखा । विनय पूर्वक वन्दन कर वह उनके समीप बैठ गया । ध्यान समाप्ति के बाद धर्मलाभ का आशिर्वाद देते हुए मुनि ने धर्मोपदेश दिया। अपने धर्मोपदेश में मुनि ने जीव का विकास क्रम समझाते हुए क्रोध, मान, माया और लोभ के दुष्परिणाम को बताने वाले दत्त और मूलदेव की कथा कही । (गा. ८३४-१०२७ ) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दत्त और मूलदेव उज्जैनी नगरी में विक्रमशूर नाम का राजा राज्य करता था। उस का मूलदेव नाम का मित्र था । वह बडा चतुर था। वह अविवाहित था। राजा ने उसे विवाह करने का आग्रह किया तो उसने का के चरित्र पर विश्वास नहीं है । साथ ही विवाहित पुरुष स्त्रियों का गुलाम बन जाता है । उसकी स्वतंत्रता छीन जाती है । उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है । इस पर राजा ने कहा - स्त्रियों के बारे में ऐसा मत कहो । क्योंकि त्रि वर्ग की सिद्धि स्त्रियों से ही होती है । स्त्री सौख्य का घर है । श्रेष्ठ कीर्ति का कारण है और वंशवृद्धि की आधारशिला है । समस्त आश्रम की बीजभूत है । महिला के बिना पुत्र नहीं मिलता और पुत्र के बिना व्यक्ति का उद्धार नहीं होता । इस प्रकार बहुत समझाने पर मूलदेव विवाह के लिए राजी हुआ। उसने राजा से कहा - राजन् ! यदि आपका आग्रह ही है तो मैं किसी जन्मान्ध कन्या के साथ ही विवाह करूंगा। राजा ने खोज कर एक रूपवती जन्मान्ध कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया। दोनों सुखपूर्वक रहने लगे । अपनी पत्नी जन्मान्ध होते हुए भी वह उस पर विश्वास नहीं करता था । जब वह राज सेवा के लिए बाहर जाता तो उसके परे अंग का निरीक्षण करता था और वापस घर लौटने पर उसके अंग प्रत्यंग को बड़ी सूक्ष्मता से देखता था कि कही मेरी गैरहाजरी में इसने अन्य पुरुष के साथ रमण तो नहीं किया ? एक बार जन्मान्ध कन्या की सखी ने दत्त नामक श्रेष्ठी के रूप गुण की प्रशंसा की । दत्त शेठ की प्रशंसा सुन वह उस पर आसक्त हो गई । वह दत्त के विरह में व्याकुल रहने लगी । एक दिन सखी से दत्त श्रेष्ठी से मिलने की इच्छा व्यक्त की। अवसर पा कर सखी दत्त श्रेष्ठी के घर पहुंची और जन्मान्ध स्त्री के रूप गुण की प्रशंसा कर उसे मिलने का आग्रह करने लगी । स्त्री को जन्मान्ध जान कर उसने उसको अपमानित कर उसे घर से निकाल दिया । जन्मान्ध स्त्री दत्त श्रेष्ठी के विरह में अत्यन्त व्याकुल रहने लगी । वह किसी भी तरह से सेठ से मिलने के लिये अत्यन्त उत्कंठित थी। बार बार सेठ को आग्रह करने पर भी सेठ ने जन्मान्ध स्त्री की बात पर ध्यान नहीं दिया । जन्मान्ध स्त्री ने सेठ के विरह में खान पान भी छोड़ दिया । अपनी स्त्री को क्षीण देहा देखकर मूलदेव ने उसे पूछा - प्रिये ! क्या कारण है कि तुम सदैव दुखी रहती हो और तुम्हारा शरीर भी अत्यन्त क्षीण होता जा रहा है ? उसने कहा - प्राणनाथ ! मैं अपने दःख को व्य नहीं कर सकती । मेरे लिए तो सारा संसार ही अन्धकारमय है । आपके स्नेह को तो मैं जान सकती हूँ किन्तु आपके रूप को देख नहीं सकती । मूलदेव ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा – प्रिये ! मैं शीघ्र ही तुम्हारे दुःख को दूर कर दूंगा। ___ मूलदेव ने विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना की और देवी को प्रसन्न कर अपनी पत्नी के लिए आंखे मांगी। देवी ने प्रसन्न हो कर जन्मान्ध स्त्री को चक्ष प्रदान किये । देवी के वरदान से जन्मान्ध स्त्री अपने पति को एवं संसार को देखने लगी। ___ एक दिन उसे पुनः दत्तश्रेष्ठी याद आया । सखी के द्वारा उसने दत्तश्रेष्ठी को अपने घर बुलाया और उसके साथ भोग विलास कर अपनी इच्छा पूर्ण की । दत्तश्रेष्ठी के चले जाने के बाद मूलदेव घर पहुंचा तो उसने अपनी स्त्री के वस्त्र अस्तव्यस्त देखे । उसने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो उसे लगा कि इसने अवश्य पर पुरुष के साथ भोग किया है । अपनी स्त्री के चरित्र से वह अत्यन्त दुखी हुआ। अपने घर की बात न अन्य को कह सकता था न मन में रख सकता था। इस द्विधाभरी स्थिति में वह रात के समय घर से निकला और राजा की हाथी शाला में पहुंचा । वहां उसने विक्रमशूर राजा की रानी चेला के साथ रतिक्रीडा करते हुए Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० महावत को देखा । कुछ समय वहां ठहरकर वह दूसरे स्थानों का निरीक्षण करता हुआ एक शिवालय में पहुंचा । वहां कपालसिंह नामक अवधूत को शिवजी की पूजा करते हुए देखा । शिवजी की पूजा समाप्ति के बाद जब वह शिवालय से निकला तो मूलदेव भी उसके पीछे पीछे चल दिया । अवधूत एक कुंभकार के घर गया । कुंभकार ने पहले से ही सुरा मांस की व्यवस्था कर रखी थी । अवधूत ने सुरा मांस का सेवन कर मंत्र शक्ति से अपनी भुजा से एक सुन्दर युवति को निकाली । उसके साथ यथेच्छ भोग भोगकर उसे अपने भुजा में समाविष्ट कर दी। अवधूत अपनी झोली दण्ड कमण्डल ले कर वहां से निकल गया । मूलदेव ने छुपकर अवधूत की लीला देखी । वहां से वह घर आया । दूसरे दिन वह राजा के पास पहुंचा और विनय पूर्वक बोला - राजन् ! आपने मेरे पर बड़ी कृपा कर के एक सुन्दर स्त्री के साथ मेरा विवाह करवाया, लेकिन एक दिन भी मेरे घर आप नहीं आये। कृपा करके भोजन के लिए मेरे घर पधार कर मेरे घर को पवित्र करें | राजा ने उसका आमंत्रण स्वीकार किया । वह वहां से निकला और अवधूत के पास पहुंचा । अवधूत से घर पधार ने का आग्रह किया । अवधूत ने उसकी बात मान ली । इसके पश्चात् वह महावत के पास पहुंचा और उसे भी भोजन समारम्भ में आने का आग्रह किया। महावत ने मूलदेव का आमंत्रण स्वीकार किया। मूलदेव ने घर आकर भोजन की सुन्दर व्यवस्था की। उसने दो आसन और तीन थाल तैयार किये। एक राजा के लिए दूसरा जोगी के लिए और तीसरा महावत के लिए । राजा निर्धारित समय पर भोजन के लिए उपस्थित हुआ। मूलदेव ने राजा का सत्कार कर उसे योग्य आसन पर बिठाया ! इतने में कपालसिंह योगी और महावत दोनों आये । मूलदेव ने उन्हें भी उचित सन्मान के साथ निर्धारित आसन पर बिठाया । मूलदेव के कहने पर प्रत्येक आसन के सामने दो दो थाल रख दिये। उस में विविध प्रकार के भोजन परोसे गये । राजा ने मूलदेव से पूछा - मूलदेव ! हम तीन है किन्तु आपने छ थालों में भोजन क्यों परोसा ? मूलदेव ने कहा - राजन् ! यदि अपनी प्रेमिका के साथ भोजन किया जाय तो बड़ा आनंद होगा । आप भी अपनी प्राणप्रिया को बुलाएं । राजा ने चिल्लाना देवी को बुलाया और अपने बगल में उसे बिठाया । मूलदेव ने भी अपनी पत्नी जन्मान्धी को बुलाकर उसे भी अपने पास बिठाया । सिंहकापालिक से कहा - योगीराज ! आप भी अपनी प्रियतमा को बुलाएं । मूलदेव के आग्रह पर उसने भी अपने भुजदण्ड से एक युवा स्त्री को निकाली और उसे अपने पास बिठाई। राजा बडा आश्चर्यचकित था। उसने मलदेव से कहा - राजन ! यदि अपराध की क्षमा करें तो मैं अन्य भी आश्चर्य आपको बताऊंगा । राजा ने उसके अपराध की क्षमा की और अन्य आश्चर्य बताने को कहा । मूलदेव ने चिल्लाना देवी से प्रार्थना की कि देवी ! आप अपने प्रियतम के साथ ही भोजन करें । चिल्लना ने अपने प्रियतम महावत को बुलाया और उसे अपने पास बिठाया । उसके पश्चात् अपनी पत्नी जन्मान्धी को कहा - प्रिये ! तुम भी अपने प्रियतम को बुलाओ। उस ने दत्तश्रेष्ठी को बुलाया और अपने पास बिठाया । राजा यह सब देख विचार में पड़ गया । मूलदेव ने कहा – राजन् ! यह सब रागान्ध का प्रभाव है । रागान्ध व्यक्ति कर्तव्याकर्तव्य को भूल जाता है । राग ही पाप का मूल है और संसार को बढाने वाला है। आपका चिल्लना पर राग है और चिल्लना का महावत पर । मेरा जन्मान्धी पर राग है तो जन्मान्धी को दत्त पर । राजा को रागासक्ति के दुष्परिणाम दृष्टि गोचर हुए । उसने महावत, योगी और दत्त श्रेष्ठी को उचित दण्ड दे कर उन्हें देश से निष्कासित किया । ___ आचार्य के मुख से राग के दुष्पपरिणाम सुनकर अजितसेन को भी वैराग्य हो गया । उसने आचार्यश्री से दीक्षा लेने की इच्छा प्रगट की । आचार्यश्रीने कहा - राजन् ! अभी तुम्हारे भोगावली कर्म उदय में है । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम छ खण्ड पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती बनोगें । उसे के बाद अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर स्थापित कर दीक्षा ग्रहण कर मृत्यु के बाद वैजयन्त नामक अनुत्तर विमान में देव बनोगे । वहां से चवकर भरतखण्ड में आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के नाम से जन्म ग्रहण करोगे। आचार्य के मुख से ये वचन सुन कर वह बड़ा प्रसन्न हुआ । गुरु को वन्दन कर अपनी विशाल सेना के साथ अपने नगर पहुँचा । नगर जनों ने उत्सव पूर्वक राजा अजितसेन का प्रवेश करवाया। राजा अपने माता पिता से मिला । पुत्र को पा कर माता पिता तथा नगर जन अत्यन्त प्रसन्न हुए । (तृतीय पर्व गाथा - १०४२) (चतुर्थपर्व) राजा अजितसेन अपने पराक्रम से छः खण्ड पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती बना । उसने नौ निधि चौदह रत्न आदि समस्त चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त की । उसे अजितंजय नामक पराक्रमी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । एक बार स्वयंप्रभ नाम के तीर्थंकर भगवान नगर में पधारे। समवसरण की रचना हुई । तीर्थंकर का आगमन सुन अजितसेन चक्रवर्ती उनके समीप पहुंचा । वंदन कर उनके समवसरण में बैठ गया। देव, मनुष्य और तिर्यंच की विशाल उपस्थिति में भगवान ने धर्मोपदेश दिया उपदेश समाप्ति के बाद चक्रवर्ती अजितसेन ने प्रश्न किया - भगवन् ! जीव अत्यन्त दुःख के कारणभूत क्लिष्ट कर्म का कैसे उपार्जन करता ? भगवान् ने कहा राजन् ! मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, अशुभयोग और कषाय इन पांच कारणों से जीव दुःख के कारण भूत अशुभ कर्मों का उपार्जन करता है। भगवान ने पांचों कारणों का विशद रूप से वर्णन करते हुए प्रत्येक कारण पर एक एक उदाहरण दिये । सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का स्वरूप समझाते हुए भगवान ने सोमा की कथा कही । सोमाकथा - ११ श्रीपुर नामका सुन्दर नगर था । वहाँ नन्दन श्रेष्ठी की पत्नी जिनमती की कूंख से उत्पन्न श्रीमती नामकी सुन्दर कन्या थी । उसकी ब्राह्मण पुरोहित की पुत्री सोमा से अत्यन्त मैत्री थी। दोनों में प्रगाढ स्नेह था । श्रीमती जिनधर्म को मानने वाली थी और सोमा ब्राह्मण धर्म में विश्वास रखती थी । श्रीमती के निरन्तर सहवास से सोमा ने भी जैन धर्म स्वीकार किया। सोमा की धर्मश्रद्धा को विशेष दृढ करने के लिए श्रीमती ने झुंटण वणिक की तथा गोब्बर वणिक की कथा कही । (गाथा. - ११६७ - १२१२) इन कथाओं के श्रवण से सोमा की धर्मभावना अत्यन्त दृष्ठ हो गई। एक दिन अवसर पाकर श्रीमती तथा सोमा प्रवर्तिनी शीललक्ष्मी नाम की साध्वी के पास पहुंची । साध्वी ने सोमा को जैन धर्म का तत्त्वज्ञान समझाया। साथ ही श्रावक के पंचाणुव्रत एवं रात्री भोजन त्याग के उपदेश के साथ ही पंचाणुव्रत एवं रात्री भोजन पर एक एक कथा कही । साध्वी के उपदेश से उसने श्राविका के बारहव्रतों को स्वीकार किया । (गा. - १५१८) सोमा ने शुद्ध भाव से श्राविकाचार का पालन किया और अन्त में स्वर्ग में गई । अजितंजय राजा सोमा के कथानक से बड़ा प्रभावित हुआ। तीर्थंकर भगवान ने पुनः कहा राजन् ! तुम्हारा पुत्र श्रीधर्म के भव में निरतिचार संयम की आराधना कर सौधर्म देवलोक में श्रीधर नामक महर्द्धिक देव बना । वहां से देवभव का आयुष्य पूर्णकर अजितसेन चक्रवर्ती ने तुम्हारे घर पुत्र रूपमें जन्म लिया । तीर्थंकर भगवान का उपदेश सुन अरिंजय राजा ने अपने चक्रवर्ती पुत्र को राज्य सौपकर तीर्थंकर भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की और शुद्ध संयम की आराधना कर अन्त में उत्तमगति प्राप्त की । (गा. - १५५०) 1 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पांचवां पर्व पृ.५९) पिता अरिंजय राजा के दीक्षित होने पर अजितसेन पिता के विरह में अत्यन्त व्याकुल रहने लगा। मंत्री मण्डल के समझाने पर भी उसका शोक कम नहीं हुआ । वसन्त का समय आया । उद्यानपाल ने वसन्तश्री का वर्णन करते हुए राजा को उद्यान में पधारने का निमंत्रण दिया। राजा अजितसेन अपनी प्रिय रानी के साथ उद्यान में पहुँचा । वहां वनश्री को देखकर राजा बहुत प्रभावित हुआ । वहाँ नाटक मण्डली ने नाटक प्रारंभ किया। राजा अपने परिवार के साथ नाटक देखने लगा । नाटक अत्यन्त प्रभावशालि था । राजा नाटक को देखकर नर्तक नर्तकियों पर बड़ा प्रसन्न हुआ। उन्हें इच्छित धन प्रदान कर विदा किया । नाटक समाप्ति के बाद राजा अपनी रानियों के साथ उद्यान में घूमने लगा। घूमते घूमते कोलाहल करते हुए स्त्रियों के समूह पर उसकी दृष्टि पडी । वह वहां पहुंचा । उसने देखा - एक सुन्दर युवति मूछित अवस्था में जमीन पर पड़ी हुई थी थी। कछ स्त्रियां मच्छित यवति की मर्छा को दर करने के लिए विविध प्रयत्न कर रही थी। शीतलजल सिंचन से उसकी मूर्छा दूर हुई । राजा ने पूछा - यह सुन्दर युवती कौन है ? और यहां कैसे आई ? एक प्रहरी ने कहा - राजन् ! यह सिंहराजा की पुत्री है । इसका नाम -हीमती देवी है । यह आपके गुणों से आकर्षित हो यहां आप से विवाह करने की इच्छा से आई है । इसका मन वैराग्य रंग से रंजित है । फिर भी आपकी आज्ञा में रहने की इसकी उत्कट इच्छा है। यह चर्चा हो रही थी कि इतने में एक शीला पर विराजमान प्रखर तेजस्वी मुनि को -हीमती देवी ने देखा । वह उनके पास गई और वन्दन कर उनके समीप बैठ गई । मुनि ने उपदेश दिया। -हीमतीदेवी पहले से ही वैराग्य रंग से रंजित थी । मुनि ने उपदेश में कहा - भरतराजा चक्रवर्ती होते हुए भी अनासक्त भाव से रहने के कारण उन्होंने गृहस्थ अवस्था में ही केवलज्ञान प्राप्त किया । -हीमती देवी ने कहा - भगवन् ! मैं केवली भरत चक्रवर्ती का चरित्र सुनना चाहती हूं । मुनि ने कहा - सुनो । (गा. १७९१-२२५९) भरत चक्रवर्ती की कथा कहने बाद मुनिवर ने कहा - देवी ! तुम पूर्व जन्म में एक उच्च कोटि के चारित्रवान मुनि थी । एक व्यभिचारी ब्राह्मण पुत्र की रक्षा के लिए तुमने माया युक्त झूठ बोला । संयमी जीवन में झूठ बोलने के कारण तुमने स्त्री वेद का बन्धन किया । उत्कृष्ट चारित्र के कारण तुम मर कर सत्रह सागरोपम आयुवाले महाशुक्र देवलोक में देव रूप में उत्पन्न हुई । वहां का आयुष्य पूर्ण कर तुमने -हीमती देवी के रूप में जन्म लिया । पूर्व जन्म के अभ्यास के कारण तुम्हारा मन सदैव वैराग्यमय रहता है । मुनि से पूर्व जन्म का वृतान्त सुन इसे मूर्छा आगई । इसके स्वस्थ होने पर हम इसे आपके पास ले आये हैं । राजा ने -हीमती का वृत्तान्त सुना और उसके साथ विवाह कर उसे अपनी पट्टरानी बनाया। पूर्व अभ्यास के -हीमति देवी राजा को सदैव वैराग्य की ही बाते सुनाती हुई संसार की असारता समझाती थी । पिपासा से व्याकुल अंगारमर्दक की कथा सुनाकर उसने राजा की भोगासक्ति कम की (गा. २२६० - २३६९) इस प्रकार निरन्तर धर्मोपदेश सुनाती हुई एक दिन -हीमती देवी ने गुणप्रभ सूरि के बीज नामक उद्यान में पधारने का वृतान्त सुना । अजितसेन चक्रवर्ती और -हीमति देवी आचार्य के समीप उद्यान में पहुंची । आचार्यश्री ने अपनी गम्भीर वाणी में संसार की असारता और जिन धर्म का सार समझाया । आचार्य के उपदेश से राजा बहुत प्रभावित हुआ और विनय पूर्वक बोला - भगवन् ! मैं अपने पुत्र को राज्यगद्दी पर स्थापित कर आपके पास मुनि दीक्षा लेना चाहता हूँ । मुनि ने राजा की बात का अनुमोदन किया और शुभकार्य में विलम्ब न करने को कहा । राजा घर आया और शुभ मुहूर्त में अपने पुत्र जितशत्रु को राज्यगद्दी पर स्थापित कर तीन हजार Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ राजाओं एवं -हीमती आदि अनेक सणियों के साथ दीक्षा ग्रहण की । -हीमती देवी ने उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष में गई । मुनि अजितसेन ने निरतिचार संयम की आराधना कर अच्युत कल्प में महर्द्धिक देव भव प्राप्त किया । (गा. २६२९ तक) (छठाँ पर्व पृ. १०१) ___ अच्युत कल्प से चवकर अजितसेन मुनि के जीव ने रलसंचय नाम के नगर के राजा कनकप्रभ की रानी सुवर्णमाला के उदर से तुमने जन्म लिया और तुम्हारा नाम पद्मनाभ रखा है । राजन् ! तुम वही पद्मनाभ हो। हे राजन् ! मैने तुम्हारे पूर्व भव की बात कही। अब मैं तुम्हारे आगामी भव का कथन करूंगा। उसे तुम ध्यान पूर्वक सुनो। राजा ने कहा -- भगवन् ! आपने जो मेरा पूर्व भव बताया वह यथार्थ ही है । किन्तु अबोध जन के विश्वास के लिए आप ऐसा प्रमाण उपस्थित करें जिससे लोग आप की बात पर विश्वास करने लगे । आचार्य ने कहा - राजन् ! तुम ठीक कह रहे हो । आज से दसवें दिन एक हाथी अपने यूथ से भ्रष्ट होकर तुम्हारे नगर में प्रवेश करेगा । उसके बाद की घटना तुम स्वयं ही जान जाओगे । मुनि के मुख से यह बात सुन राजा और नगरजन नगर में लौट आये । ठीक दसवें दिन एक मदान्ध हाथी ने अपने यूथ से बिछुडकर नगर में प्रवेश किया । उन्मत्त अवस्था में हाथी ने सारे नगर में उपद्रव मचाया । उसने अनेक नगरजनों को घायल किया। नगरजनों के अनेक प्रयत्नों के बावजूद भी वह हाथी किसी के वश में नहीं आया । राजा पद्मनाभ को जब इस बात का पता लगा तो वह बड़ी वीरता से हाथी के सामने गया और उस पर चढ़कर उसके मर्मस्थानों पर प्रहार कर उसे अपने वश में कर लिया । अब राजा उस हाथी पर बैठ कर बड़े गर्व के साथ नगर में भ्रमण करने लगा । एक दिन राजा उसी हाथी पर आरूढ हो कर श्रीधर मुनि के पास उद्यान में पहुंचा और मुनिवर की सच्ची भविष्यवाणी के लिए वह उनकी प्रशंसा करने लगा । श्रीधर मुनि ने राजा से कहा - राजन् ! यह हाथी पूर्व भव में महापुर का राजा धरणिकेतू था । वह बड़ा निष्ठुर प्रजा शोषक, लंपट, ठग, और चोर था । उसने वसन्धर नाम के श्रेष्ठी को उसका सर्वस्व हरण कर उसे भिखारी के वेश में नगर से निकाल दिया था। वह वहां से निकला और धरणिकेतू राजा के शत्रु धरण से जा मिला । धरण की सहायता से वसुंधर श्रेष्ठी ने धरणिकेतू पर आक्रमण कर दिया और उसे पराजित कर उसे मार डाला । धरणकेतू मरकर नरक में गया । नारकी के दुःखों को भोगकर वहां से मरकर वह हाथी के रूप में यहां जन्मा है । युवा होने पर यह हथनियों का स्वामी बना । हथनियों के साथ क्रीडा करते देख बनचरों ने इस का नाम वनकेलि रखा । एक दिन अन्य यूथपति हाथी ने इसे मार कर जंगल से भगा दिया । वहां से भागकर यह तुम्हारे नगर में आया है । तुमने उसे कुशलता पूर्वक अपने वश में कर लिया । मुनि के मुख से हाथी का वृत्तान्त सुन राजा को वैराग्य हुआ । उसने श्रावक के व्रत ग्रहण किये और वह अपने नगर लौट आया । (गा.२९०२) ___ एक दिन पृथ्वीपाल नाम के राजा ने दूत के साथ पद्मनाभ राजा को सन्देश भिजवाया कि वनकेलि नाम का हाथी मेरे राज्य से भागकर आपके यहां आया है । यह हाथी रत्न हमारे राज्य का है अतः आप उसे लौटा दे। यदि आप नहीं लौटाएंगे तो हम आप से युद्ध कर उसे छीन लेंगे । दूत पद्मनाभ के पास पहुंचा । उसने अपने राजा का सन्देश कह सुनाया । पद्नाभ ने पृथ्विपाल के सन्देश को तिरस्कृत करते हुए कहा - यह हाथी अब हमारा ही है । इसे हम किसी भी मूल्य पर वापस नहीं करेंगे । इसके लिए हमे भले ही युद्ध करना पड़े। तिरस्कृत दूत पृथ्विपाल के पास पहुंचा और उसने पद्मनाभ का प्रत्युत्तर कह सुनाया। क्रुद्ध पृथ्विपाल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ हाथी को लेने के लिए अपनी विशाल सेना के साथ निकल पड़ा । पद्मनाभ को भी जब इस बात का पता लगा तो वह भी अपनी विशाल सेना के साथ निकल पड़ा। मार्ग में दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। पद्मनाभ के एक सुभट ने युद्ध में पृथ्विपाल का सिर काट दिया । कटे हुए सिर को ले कर वह अपने राजा पद्मनाभ के पास पहुंचा । पृथ्विपाल के कटे सिर को देखकर पद्मनाभ को वैराग्य हुआ । वह अपने पुत्र स्वर्णनाभ को राजगद्दी पर अधिष्ठित कर बड़े उत्सव के साथ दीन दुखियों को दान देता हुआ श्रीधर मुनि के पास पहुँचा और सर्व सावद्य का त्याग कर साधु हो गया। अपने गुरु के समीप रह कर उसने आगम का अध्ययन किया । पश्चात् लघुसिंह निष्क्रीडित जैसी कठोर तपस्या की । तप तथा बीस स्थानों की सम्यग् आराधना कर तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया । अन्तिम समय में संलेखना पूर्वक देह का त्याग कर बैजयन्त नामक अनुत्तर विमान में तेतीस सागरोपमवाला महर्द्धिक देव बना । (गा. ३५३३) (सातवां पर्व पृ. १३६) तीर्थंकर भव भरतक्षेत्र के पूर्वदेश में चन्द्रपुरी नामकी समृद्ध नगरी थी । चन्द्र जैसे सौम्य मुखवाली अनेक तरुणियां उसमें निवास करती थी अतः यह नगरी चन्द्रानना के नाम से प्रसिद्ध हुई । वहां पराक्रमी महासेन नाम का राजा राज्य करता था। उसकी अत्यन्त रूपवती शीलगुण से संपन्ना लक्ष्मणा नाम की महारानी थी। पद्ममुनि का जीव वैजयन्त विमान से चवकर चैत्रमास की कृष्णा पंचमी के दिन अनुराधा नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग होने पर शुभवेला में महारानी लक्ष्मणा के उदर में अवतरित हुआ। भगवान के चवनकाल के छः महिने शेष थे तब से इन्द्र ने धनदेव को आदेश देकर प्रतिदिन आठ करोड स्वर्ण की वर्षा करवाई । भगवान के गर्भ में आते ही सुखशय्या पर सोई हुई महारानी ने हाथी, वृषभ, केशरिसिंह, महालक्ष्मी, पुष्पमाला, चन्द्र, सूर्य, महाध्वज, पूर्णकुंभ, महासरोवर, क्षीरसागर, विमान, निधूर्म अग्नि और रत्नराशि ये चौदह महास्वप्न देखे । स्वप्न देखकर महारानी जागृत हुई । वह अपने पति के पास गई और उसने अपने स्वप्न का वृतान्त सुनाया । स्वप्न सुनकर महासेन राजा ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा – देवी ! तुम त्रिलोकपूज्य महाप्रभावशाली पुत्र रत्न को जन्म दोगी । दूसरे दिन राजा ने स्वप्नपाठकों को बुलाया और महारानी के स्वप्नों का फल पूछा । स्वप्नपाठकों ने अपने शास्त्रों के अनुसार स्वप्नों का फल बताते हुए कहा - राजन् ! महारानी त्रिलोक पूज्य तीर्थंकर भगवान को जन्म देगी । महाराजा और महारानी स्वप्न का फल सुनकर प्रसन्न हुए । राजा ने स्वप्न पाठकों को बड़ा दान देकर उन्हें बिदा किया। आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का गर्भ में अवतरण हुआ। उस अवसर पर इन्द्र का आसन चलायमान हुआ । इन्द्र ने अवधिज्ञान से भगवान का चवण जानकर वह भगवानकी माता के पास पहुँचा । माता को वन्दन कर माता और जिन भगवान की स्तुति की। साथ में आये हुए देवों को योग्य सूचन देकर माता और जिन भगवान की रक्षा का आदेश दिया। भगवान के आगमन से सर्वत्र शान्ति का वातावरण फैल गया । राज्य की समृद्धि बढने लगी। नौ मास साढ़े सात रात्रि दिवस के बीतने पर पौष महिने की कृष्णा बारस के दिन अनुराधा नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग आने पर माता ने सुख पूर्वक पुत्र को जन्म दिया। उस अवसर पर छप्पन दिग्कुमारिकाएँ जिनजननी के प्रसव के समय उपस्थित हुई और जिनमाता की परिचर्या करने लगी । आसन के चलायमान होने पर चौसठ इन्द्र भी अपने अपने विमान में बैठकर विशाल देव परिवार के साथ भगवान के समीप पहुंचे। उन्होंने जिनमाता और बाल प्रभु को वन्दन कर उनकी स्तुति की । उसके पश्चात् Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इन्द्र ने भगवान की प्रतिकृति को रानी के पास रखा । भगवान को गोद में लेकर वे मेरु पर्वत पर गये । वहां उनको विधिपूर्वक नहला कर बड़े उत्साह से भगवान का जन्मोत्सव किया । जन्मोत्सव के पूर्ण होने पर इन्द्र भगवान को लेकर उनकी माता के पास आया और भगवानकी प्रतिकृति को हटाकर उनको माता के पास रख दिया । बालक की रक्षा के लिए कुछ देवों को भगवान की सेवा में रखकर इन्द्र और देवगण अपने अपने स्थान पर चले गये। इधर भगवान का जन्म हुआ जान कर महासेन राजा ने भी बड़ा उत्सव किया । प्रजाजनों ने भी उत्सव मनाया । बन्दियों को कैद खाने से मुक्त किया । याचकों को यथेच्छ दान देकर उन्हें संतुष्ट किया। जब भगवान माता के उदर में थे तब माता को चन्द्रपान का दोहद उत्पन्न हुआ था अतः बालक नाम चन्द्र रखा । चंद्रप्रभ बालक चन्द्र जैसा ही सौम्य और चित्ताकर्षक था । इन्द्र ने भगवान के अंगूठे में अमृत भर दिया । चन्द्रप्रभ अंगठे का पान करते हए बीज के चन्द्र की तरह बढने लगे। अपने बाल मित्रों एवं देवों के साथ क्रीडा करते हुए व सब के अत्यन्त प्रिय हो गये । उनको बालसुलभ चेष्टा एवं क्रीडा देख कर सब लोग बड़े प्रसन्न होते थे। (आठवां पर्व पृ. १५१) __मृगलांछन से सुशोभित भगवान क्रमशः युवावस्था में आये । महासेन राजा ने उचित समय जान कर अनेक सुन्दर राजकन्याओं के साथ उनका उत्सव पूर्वक विवाह किया। भगवान अनासक्त भाव से रानियों के साथ भोग भोगते हुए अपना समय व्यतीत करने लगे । राजा महासेन ने योग्य समय पर चन्द्रप्रभ को युवराज पद पर अधिष्ठित किया । चन्द्रप्रभ को एक पुत्र हुआ। उसका नाम चन्द्र रखा । महासेन राजा ने अब अपनी वृद्धावस्था देख चन्द्रप्रभ को राज्य का सारा भार सौप दिया और राज्यभार से निवृत्त हो वे दीक्षित हो गए । __चन्द्रप्रभ के राज्यकाल में प्रजा अत्यन्त सुखी थी। दुर्भिक्ष, अकालमृत्यु, स्वचक्र परचक्र भय, महामारी जैसे जीवन को अन्त करने वाले भयानक रोगों से प्रजा मुक्त थी । विरोधि राजा भी चन्द्रप्रभ के सेवक बन गये। एक बार चन्द्रप्रभ राजसभा में अपने सामन्तों एवं मंत्री मण्डल के साथ बिराजमान थे। एक वृद्ध जिसका सारा शरीर जर्जरित था । लाठी टेकता हुआ राजसभा में आया और भगवान को वन्दन कर बोला - भगवन् ! एक नैमित्तिक ने मेरा मृत्युकाल अत्यन्त निकट बताया है । आप तो मृत्युंजयी हो । मुझे महाभयकारी मृत्यु से बचाईए । आप समर्थ पुरुष हो । आपके सिवा मेरी कोई भी रक्षा नहीं कर सकता। आप तो यम के भी स्वामी है । असंख्य देव आप की सेवा करते हैं तो मेरा रक्षण भी आप ही करें और मझे मत्य के भयसे मुक्त करें । भगवान ने वृद्ध से कहा - हे वृद्ध ! संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति पैदा नहीं हुआ है जो मृत्यु से व्यक्ति की रक्षा कर सके । जो जन्म लेता है वह अवश्य ही मरता है । हम शुभ कार्य करके ही मृत्यु के दुःख को दूर सकते हैं। ऐसा सुनकर वृद्ध पुरुष अचानक ही अदृश्य हो गया। भगवान ने अवधिज्ञान से जाना कि यह देव मेरा पूर्वभव का मित्र है । मुझे उद्बोधन करने के लिए ही यह वृद्ध के रूप में मेरे पास आया है । भगवान को वैराग्य हुआ । उन्होंने दीक्षा लेने का निश्चय किया । भगवान का दीक्षा भाव जान कर नौ लोकान्तिक देव उनके पास उपस्थित हुए। उन्होंने भगवान को उद्बोधन किया और कहा - सर्व प्राणियों के हित के लिए आप तीर्थ प्रवर्तन करें । देव भगवान को उद्बोधित कर अपने स्थान पर चले गये । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ इन्द्रों के आसन चलायमान हुए । इन्द्रों ने अवधिज्ञान से भगवान का दीक्षा समय जान कर वे भगवान के पास उपस्थित हुए। भ. चन्द्रप्रभ ने अपने विशाल साम्राज्य का भार अपने पुत्र चन्द्र को सौप दिया। भगवान ने वार्षिक दान दिया। भगवान सूर्योदय से भोजन के समय तक प्रतिदिन एक क्रोड आठ लाख सुवर्ण का दान देते रहे । एक वर्ष के अन्त में भगवान ने तीनसों अठासी क्रोड और अस्सीलाख स्वर्ण का दान दिया । उसके पश्चात् देवों ने मणहर नाम की रत्न जटित शिबिका तैयार की । वस्त्रालंकारों से सुसज्जित भगवान उसमें विराजमान हुए । इन्द्रों और मनुष्यों ने शिबिका उठाई । जयघोष के साथ शिबिका सहस्त्राम्र उद्यान में पहुंची । भगवान समस्त वस्त्रालंकार का त्याग कर अशोक वृक्ष के नीचे आये । इन्द्र ने वस्त्रालंकार रहित भगवान के देह पर देवदूष्य रखा । पौषकृष्ण त्रयोदशी के दिन अनुराधा नक्षत्र में चन्द्र के योग में दिवस के पीछले प्रहर में भगवान ने चार मुट्ठी में सम्पूर्ण केश लुंचन कर सम्पूर्ण विरति का व्रत ग्रहण किया । उस दिन भगवान को दो दिन का उपवास था । भावों की उत्कृष्टता के कारण भगवान को चतुर्थज्ञान मनःपर्यव उत्पन्न हुआ। भगवान के साथ एक हजार व्यक्तियों ने दीक्षा ली । दीक्षा ग्रहण कर भगवान ने वहां से विहार कर दिया । (नौवां पर्व पृ. १६६) दूसरे दिन भगवान नलिनीपुर पधारे । वहां सोमदत्त राजा के घर परमान्न से पारणा किया। भगवान का पारणा होते ही वहाँ पांच दिव्य प्रकट हुए । आकाश में देव दुंदुभियां बजने लगी । रत्नों की वृष्टि हुई । पुष्प बरसाये गये । चारों और हर्ष का वातावरण छा गया । भगवान ने अन्यत्र विहार कर दिया । तीन महिने तक छद्मस्थ अवस्था में कठोर तप एवं संयम की उत्कष्ट भाव से आराधना करते हुए आप चन्द्रानना नगरी के बाहर सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहां फाल्गन वदि सप्तमी के दिन अनराधा नक्षत्र में ध्यान की परमोच्च स्थिति में चार घनघाती कर्मों का क्षय कर भगवान ने केवलज्ञान और केवल दर्शन प्राप्त किया। देवेन्द्रों, देवों आदि ने भगवान का केवलज्ञान उत्सव किया । दिव्य देव दुर्दुभियों से आकाश गुंज उठा । पांच वर्ण के पुष्पों की वर्षा हुई । देवों के आगमन से सारि दिशाएँ प्रकाशमान हुई । देवों ने समवसरण की रचना की । चतुर्निकाय देवों मनुष्यों एवं तिर्यंच की विशाल उपस्थिति में भगवान दिव्य सिंहासन पर विराजे । मेघगर्जना की तरह दिव्यध्वनि से भगवान ने उपदेश प्रारंभ किया । अगार धर्म और अनगार धर्म की व्याख्या करते हुए भगवान ने संसार के स्वरूप को उदाहरण के द्वारा समझाते हुए अस्खलितप्रतापप्रसरनामक नृप का रूपक सुनाया। आपने कहा - __ अलोक क्षेत्र के मध्य भाग में भवचक्र नामक शाश्वत नगर है। वहां कर्म परिणाम को बताने वाला अस्खलित प्रतापप्रसर नामका राजा राज्य करता है। अनादि भवसन्तति नाम की उसकी मुख्य पट्टराणी है । उसके ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय ये आठ पुत्र है । अकाम निर्जरा नामकी उसकी प्रिय पुत्री है । इत्यादि... रूपक द्वारा उन्होंने कर्म की महत्ता और उसके दुष्परिणामों को सुन्दर ढंग से सभासदों के समक्ष रखा । भगवान का उपदेश सुन कईयों ने मिथ्यात्व का त्याग कर सम्यक्त्व ग्रहण किया क के व्रत ग्रहण किये और कईयों ने सर्व सावध का परित्याग कर अनगारत्व स्वीकार किया । दत्त आदि ९३ महापुरुषों ने जिन दीक्षा ग्रहण कर गणधर पद प्राप्त किया। भगवान के उपदेश की समाप्ति के बाद दत्त गणधर ने उपदेश दिया । हजारों भव्यों को प्रतिबोधित कर भगवान ने चतुर्विध संघ के साथ विहार किया और ग्राम नगर आदि को पावन करते हुए आप समुद्र के पश्चिम किनारे पहुँचे । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ (दसवां पर्व पृ. १८२) वहां के लोग मांस मछली का आहार करते थे। भगवान कई दिनों तक वहां रुक कर उन्होंने अपनी देशना से उन्हें अहिंसक बना दिया। बाद में चन्द्रप्रभ भगवान की देदीप्यमान प्रभा से प्रकाशित वह स्थल चन्द्रहास तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । देवों ने वहां विशाल जिनालय बनाया और उसमें भगवान की रत्नजडित श्रेष्ठ प्रतिमा की स्थापना की । वहां के लोग तीनों समय भगवान की भक्ति पूर्वक पूजा करने लगे और भगवान के दर्शन कर अपने आप को कृतार्थ समझने लगे । वहां से विहारकर भगवान शत्रुजय पर्वत पर पधारे । वहां अनेक जिन प्रतिमाओं से युक्त भगवान ऋषभ का उच्च शिखर युक्त अत्यन्त सुन्दर एवं गरुड मण्डप से सुशोभित विशाल मन्दिर था। वहां लोगों के मन में आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली पुण्डरीक गणधर की प्रतिमा थी। उनकी निरन्तर सेवा करनेवाला कवडी जक्ष का पास ही में अलग मन्दिर था। भगवान के आगमन पर वहां देवों ने समवसरण की रचना की । देव और मनुष्यों की सभा में भगवान ने धर्मोपदेश दिया । देशना के अन्त में गणधर ने भगवान से पूछा - भगवन् । ऋषभ भगवान के समीप पुण्डरीक गणधर की दिव्य प्रतिमा है । भगवन् ! ये पुण्डरीक गणधर कौन थे ? भगवान ने कहा - दत्त ! दत्तचित्त से सुनो ! भगवान ऋषभ के पुत्र भरत थे ! उनका पुत्र ऋषभसेन जिसका दूसरा नाम पुण्डरीक भी था। ये भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर थे । भगवान ऋषभ ने पुण्डरीक गणधर को लोगों को प्रतिबोधित करने के लिए उन्हें शत्रुजय पर्वत पर भेजा । यही पर केवलज्ञान प्राप्त कर पांच करोड मुनियों के साथ मोक्ष में गये । भरतचक्रवर्ती ने इस स्थल पर उनकी स्मृति में उनकी प्रतिमा बनाकर उनकी स्थापना की थी। इसी कारण शत्रुजय पर्वत पुण्डरिकगिरि के नाम से प्रसिद्ध हुआ । पवित्रपर्वत होने से विमलगिरि के नाम से भी यह प्रसिद्ध हुआ । कुछ समय तक वहां रुक कर भगवान अपना निर्वाण काल समीप जान सम्मेद शैल शिखर पर्वत पर पधारे । वहाँ भाद्रपद कृष्णा सप्तमी के दिन एक हजार मुनियों के साथ मासिक संलेखना पूर्वक शैलेशी अवस्था को प्राप्त करते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए । देवों इन्द्रों और मनुष्यों ने भगवान का निर्वाण महोत्सव किया । चन्द्रप्रभ स्वामी का परिवार गणधर केवलज्ञानी १०००० मनःपर्यवज्ञानी ८००० अवधिज्ञानी ८००० वैक्रियलब्धिधारी १४००० चतुर्दश पूर्वी २००० चर्चावादी ७६०० साधु २५०००० साध्वी ३८०००० श्रावक २५०००० श्राविका ४९१००० प्रथम शिष्य दत्त प्रथम शिष्या सुमना ९३ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रमा यक्ष माता लक्ष्मणा पिता महासेन नगरी चन्द्रपुरी वंश इक्ष्वाकु गोत्र काश्यप चिह्न वर्ण श्वेत शरीर की उंचाई १५० धनुष जयदेव शासनदेवी जालामालिनी कुमारकाल २.५ लाख पूर्व राज्यकाल २४ पूर्वांग अधिक ६.५ लाख पूर्व छद्मस्थकाल ३ मास कुल दीक्षा पर्याय २४ पूर्वांग कम १ लाख पूर्व आयुष्य १० लाख पूर्व च्यवन तिथि चैत्र वदी पंचमी चवन स्थल वेजयंत विमान जन्म पौष वदी बारस ज्ञानोत्पत्ति फागुनवदी सातम निर्वाण श्रावण कृष्णा सप्तमी निर्वाणस्थल सम्मेत शिखर अन्तरमान ९०० कोटिसागर ग्रन्थकार परिचय चन्द्रप्रभ चरित के कर्ता आचार्य जसदेव सूरि भारतीय साहित्य के बहुश्रुत विद्वान थे। उन्होंने इस चरित नायक चन्द्रप्रभ के जीवन चरित्र के साथ साथ कथा एवं उपकथाओं के माध्यम से जैन सिद्धान्तों को एवं जैनाचार को सुन्दर एवं सरल पद्धति से समझाया है । सोमा एवं अस्खलितप्रतापप्रसर नृप कथा का आध्यात्मिक रूपक इसका आदर्श उदाहरण है । ऐसा महत्त्व पूर्ण चरित काव्य रचकर आचार्यश्री ने प्राकृत साहित्य की अनुपम सेवा की है । ऐसे महान् साहित्यकार का जीवन वृतान्त सम्पूर्ण रूप से हमें नहीं मिलता परन्तु इस ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा के साथ साथ अपना भी अल्प परिचय दिया है । वह इस प्रकार है - वर्तमान चौविसवें तीर्थंकर के तीर्थ में चन्द्रकुल में उपकेशपुर से निकला हुआ उपकेश गच्छ है । इस उपकेश गच्छ में विष्णु की तरह महान प्रतापी श्री देवगुप्त सूरि हुए। उन्होंने शिष्यजन हितार्थ सिद्धान्त कर्मग्रन्थ की एवं नवपद तथा नवतत्त्व प्रकरण की रचना कर अपनी विशिष्ट बुद्धि कौशल्य का परिचय दिया है । मैने इसी प्रकरण ग्रन्थ पर वृत्ति की रचना की। उनके विद्वान् शिष्य आचार्य कक्क सूरि है । उन्होंने चिइवंदण Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मीमांसा (चैत्यवन्दन मीमांसा) नामक ग्रन्थ और उस पर दो वृत्तियों की रचना की । उनके अन्तेवासी शिष्य आचार्य सिद्धसूरि है । उनके शिष्य श्रीदेवगुप्तसूरी है । इनका दीक्षा समय का नाम धनदेव था । उपाध्याय पद के मिलने पर जसदेव उपाध्याय के नाम से ये प्रसिद्ध हुए । इसी उपाध्याय काल में आशावल्लीपुर के श्री धवलश्रेष्ठी भण्डसालि के द्वारा निर्मित जिनमंदिर में रहकर इस चरित ग्रन्थ का आरंभ किया और संवत ११७८ में पौष वदी तेरस के दिन श्री सिद्धराज जयसिंह के राज्यकाल में अणहिल्लपुर के चतुर्विंशति जिनप्रतिमा से परिवृत श्री वीरजिन मन्दिर में रहकर आचार्य सिद्धसुरि के सानिध्य में इस ग्रन्थ को पूरा किया । इस ग्रन्थ का श्लोक परिमाण ६४०० है । श्रीचन्द्रप्रभ-चरित और उसका मूल स्त्रोत - ____ तीर्थंकर के जीवन पर प्रकाश डालनेवाले प्राचीनतम ग्रन्थ जैनागम है । भगवान चन्द्रप्रभ विषयक सम्पूर्ण जीवन चरित्र जैनागमों में उपब्ध नहीं होता किन्तु अल्प मात्रा में ही उल्लेख मिलता है। वर्तमान में उपलब्ध जैन आगम अंग, उपांग छेद, मूल एवं प्रकीर्णक इन पांच विभागों में उपलब्ध है । अंगसूत्र आचारांग, सूत्रकृतांग ऋषिभाषित जैसे प्राचीन आगमों में चन्द्रप्रभ का कही भी नामोल्लेख नहीं हुआ नांग के दसवें स्थान में चन्दप्रभ अर्हत् दस लाख पूर्व का पूर्णायु भोग कर सिद्ध यावत् मुक्त हुए ” ऐसा उल्लेख मात्र है । चतुर्थ अंग सूत्र समवाय के तिरानवे वे समवाय में "अरहन्त चन्द्रप्रभ के तिरानवे गण और गणधरों का उल्लेख हुआ है । चौवीसवे समवाय में देवाधिदेव चौवीस की नामावली में ८ वें चन्द्रप्रभ देवाधिदेव का नाम है । इसी आगम के डेढसोवें समवाय में अरहन्त चन्द्रप्रभ डेढसो धनुष उंचे थे। ऐसा वर्णन है । समवायांग के १५७ वे सूत्र में जो संग्रहणी गाथा है उन में चन्द्रप्रभ विषयक निम्न उल्लेख है। भगवान चन्द्रप्रभ आठवें तीर्थंकर थे। उनके पिता का नाम महसेन और माता का नाम लक्ष्मणा था । पर्वभव का नाम दीर्घबाह था। जयन्ती नाम की शिबिका में बैठकर चद्राणणा नगरी के बाहर सहस्त्राम्रवन उद्यान में एक हजार पुरुषों के साथ षष्ठ तप करके दीक्षा ग्रहण की । दूसरे दिन सोमदत्त के घर भगवान ने क्षीरान्न से पारणा किया । इनके प्रथम शिष्य दत्त एवं प्रथम शिष्या वारुणि थी। अपने शरीर से बारह गुणा उंचे नागवृक्ष के नीचे ध्यान की परमोत्कृष्ट अवस्थामें उन्होंने केवलज्ञान दर्शन प्राप्त किया । आवश्यक सूत्र में चतुर्विंशति जिन स्तवन में चंदप्पह जिन का नामोल्लेख है । आगम ग्रन्थों मे केवल ये ही उल्लेख मिलते हैं । आगम पर लिखी गई नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी एवं टीका में चंद्रप्रभ विषयक उल्लेख अत्यल्प है । आचार्य भद्रबाहु द्वारा निर्मित आवश्यक नियुक्ति में एवं उन पर आ. हरिभद्र सूरि ने एवं मलयगिरि ने अपनी टीका में सभी तीर्थंकरों के साथ भ. चंद्रप्रभ विषयक जो विवरण प्राप्त है वह समयावांग सूत्र १५७ के अनुसार ही है । ___आगमेतर साहित्य में भ. चन्द्रप्रभ विषयक सामग्री प्रचुरमात्रा में मिलती हैं । दसवीं सदी से लेकर १८ वीं सदी तक में भ. चन्द्रप्रभ पर अनेक विद्वानों ने संस्कृत, प्राकृत भाषाओं में एवं वीसवीं सदी में हिन्दी गुजराती भाषा में चरित ग्रन्थ लिखे हुए मिलते हैं। १. चउप्पन्न महापुरिस चरियं, कर्ता – शिलांकाचार्य रचना स. ९२५ (प्रकाशित) २. कहावली कर्ता भद्रेश्वर सूरि, रचना काल १० वी सदी का उत्तरार्ध (अप्रकाशित) ३. चउपन्न महापुरिष चरित्र, कर्ता - आम्रदेवसूरि, रचना समय १२ वी सदि (अप्रकाशित) ४. तिलोयपण्णति – भाषा प्राकृत, रचना समय छठी शताब्दी का मध्य भाग (प्रकाशित) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ & ५. उत्तर पुराण (गुणभद) भाषा संस्कृत र. वि.सं. नवमी दसवी सदी ६. पुराणसार संग्रह ७. हरिवंश पुराण (भाषा संस्कृत क. जिनसेन रचना सं ७८४) ८. चन्द्रप्रभ चरितम्, कर्ता आचार्य वीरनन्दी । रचनाकाल ग्यारहवी सदी का पूर्वार्द्ध, भाषा संस्कृत (प्रकाशित) ९. चन्द्रप्रभ चरितं. कर्ता नं.ग. आ. चन्द्रप्रभ सूरि । रचना काल ई. तेरहवी सदी, भाषा प्राकृत, (अप्रकाशित) १०. चन्द्रप्रभ चरित, बृ.ग. आ. हरिभद्र सूरि, रचना सं. १२ वी सदी का मध्यभाग, भा. प्राकृत (अप्रकाशित) १०. चन्द्रप्रभ चरितम्, कर्ता धर्मचन्द्र के शिष्य श्री दामोदर कवि ११. चन्द्रप्रभ चरित्र, नागेन्द्रगच्छीय आ. देवसूरि, रचना समय सं. १२६४, भाषा संस्कृत तथा प्राकृत, (प्रकाशित) १२. चन्द्रप्रभ चरित्र, कर्ता आ. यशःकीर्ति, रचना समय १६०८ भाषा संस्कृत १३. चन्द्रप्रभ चरित, अज्ञात कर्तृक इस पर जिनेश्वरसूरि ने विषमपद वृत्ति की रचना की । रचना सं. ११ वी सदी १४. चन्द्रप्रभ चरित्र, आ. शुभचन्द्र १५. चन्द्रप्रभ पुराण, कर्ता आगासदेव १५. चन्द्रप्रभ चरित, कर्ता जिनवर्धन सूरि (१४वी सदी) १६. त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र, कर्ता आ. हेमचन्द्रसूरि, भा. संस्कृत र. सं. १२ वी सदी (प्रकाशित) १७. लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, भा. संस्कृत (कर्ता मेघविजय उपाध्याय, र. सं. १७०९,) १८. हिन्दी और गुजराती भाषा में भी चरित्र लिखे गये हैं । इस प्रकार श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा के उद्भट विद्वान आचार्यों ने भ. चन्द्रप्रभ के चरित्र लिखकर साहित्य जगत की अपूर्व सेवा की है और भ. चन्द्रप्रभ के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा व्यक्त की है । उपरोक्त चन्द्रप्रभ चरित्रों में कुछ ने भ. चन्द्रप्रभ के तीन भवों का और कुछ ने सात भवों का वर्णन किया है । आचार्य वीरनन्दी आ. जसदेव सूरि तथा आ. हरिभद्रसूरि ने चन्द्रप्रभ के सात भवों का वर्णन किया है । आ. वीरनन्दी आ. जसदेव एवं वृ.ग. हरिभद्र सूरि द्वारा रचित चन्द्रप्रभ चरित के वर्णन में बहुत साम्य द्रष्टि गोचर होता है । कारण तीनों कवि के मुख्य चरित नायक एक ही है । परम्परा और धारणा का एक ही स्त्रोत होने से इन में साम्य होना कोई आश्चर्य नहीं है । इन चरित ग्रन्थों में कथा नायकों के नाम नगरी, तिथि आदि के विषय में विषमता पाई जाती है । उपकथाएं भी अलग अलग है । फिर भी सभी के उद्देश एक ही है । श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य जसदेव सूरि एवं बृहद् गच्छीय ,आ. हरिभद्र सूरि द्वारा रचित चन्द्रप्रभ चरित में दी गई सोमा की कथा और कर्मपरिणति राजा की कथा के वर्णन में काफी समानता दष्टिगोचर होती इस ग्रन्थ की एक ही प्रति मिली है अतः सम्पादन में क्षति रहता स्वाभाविक है । साथ ही प्रुफ में असावधानी के कारण भूले भी रह गई है । पाठकगण क्षमा करेंगे और भूल के लिए ध्यानाकर्षित करेंगे, ऐसी प्रार्थना स्पेन्द्रकुमार पगारिया Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम मंगलाचरण, पीढिकाबन्ध पृ. १ प्रथम पर्व पृ. २ धातकी खण्ड द्वीप, मंगलावती विजय, रत्न संचय नगर, राजा कनकप्रभ, रानी सुवर्णमाला, पुत्र पद्मनाभ, कनकप्रभ का वृद्ध बैल को देखना और वैराग्य, संसार की असारता, पद्मनाभ का राज्याभिषेक, श्रीधरमुनि के समीप कनकप्रभ की दीक्षा, २१ द्वितीयपर्व पृ. ५ पद्मनाभ का राज्य संचालन, स्वर्णनाभ नामक पुत्र की प्राप्ति, सुगन्धिपवन उद्यान में श्रीधर मुनि का आगमन, द्वारपाल और राजा की मुनि प्रशंसा, राजा का मुनि दर्शन, मुनि का धर्मोपदेश, मुनि द्वारा राजा के अतीत और अनागत भव का कथन । पद्मनाभ का पूर्व भव, (श्रीसेन कथा गा. २०७) पुष्करवर द्वीप के पश्चिम विदेह में सुगन्धि विजय का श्रीपुर नगर, श्रीषेण राजा, श्रीकान्ता राणी, रानी का पुत्र प्राप्ति के लिए शोकाकुल होना, पुत्र प्राप्ति विषयक राजा का मुनि से प्रश्न, मुनि द्वारा समाधान, पुत्र प्राप्ति, पुत्र का श्रीधर्म नामकरण, श्रीधर्म कुमार का प्रभावती राज कन्या से विवाह, प्रभावती देवी से श्रीकान्त नामक पुत्र का जन्म, श्रीकान्त का श्रीकान्ता नाम की कन्या से विवाह, श्रीधर्म का राज्यारोहन, श्रीषेण की श्रीप्रभ मुनि के समीप दीक्षा, श्रीधर्म की पितृ वियोग में राज्य की उपेक्षा, श्रीधर्म की विजय यात्रा, विजय यात्रा से वापसी के समय मार्ग में मुनि दर्शन, मुनि को यौवन काल में दीक्षा ग्रहण विषयक प्रश्न, मुनि द्वारा दीक्षा का कारण वृत्तान्त का कथन, मुनि का दीक्षा पूर्व का वृतान्त - विदेह क्षेत्र की विशाला नगरी, वहां का राजा जय, जय की रानी जयश्री, राजा की रानी के प्रति आसक्ति, राज्य की उपेक्षा, सामन्तों द्वारा राजा का निष्कासन, राजा का रानी के साथ वन में निवास, रानी द्वारा सिंहगुफा में पुत्र पुत्री प्रसव, सिंहनी की गर्जना से भयभीत रानी का पुत्र को लेकर भागना, पुत्री को सिंह गुफा में छोड़ना, सिंहनी द्वारा मानव कन्या को दूध पिलाकर बड़ा करना, केरल राजा द्वारा पुत्र का अपहरण, पश्चात् उसे रानी को सौपना, बालक नाम वनराज रखना । उसी वन में मुनि का उपदेश, मुनि की सेवा में केरलराज वनराज, जय और उसकी रानी जयश्री का आगमन, सिंहपर आरूढ हो कन्या का मुनि की सेवा में आगमन, मुनि द्वारा जय को पुत्र वनराज, पुत्री सिंहरथा का परिचय कराना, सभी का स्नेह मिलन, वनराज द्वारा खोये हुए राज्य की प्राप्ति । वनराज की हरिनामक पुत्र प्राप्ति के पश्चात् दीक्षा । हे श्रीधर्म ! 'में वही वनराज हूं। मेरा दीक्षा का कारण भी यही हैं ऐसा मुनि का कथन, श्रीधर का श्रीपुर की ओर प्रयाण, लंबे समय तक राज्य करने के बाद श्रीप्रभ मुनि के समीप दीक्षा, मृत्यु के बाद सौधर्मकल्प में देवत्व की प्राप्ति (गा. ४५९ तक) तृतीय पर्व (पृ. १९) श्रीधर मुनि का देवलोक से च्युत होकर शुभानगरी के राजा अजितंजय की रानी अजिया के उदर से जन्म, बालक का अजितसेन नामकरण, अजितसेन का युवराजपद, अजितसेन का चण्डरुचि असुर द्वारा अपहरण, पुत्र के अपहरण से राजा अजितंजय की शोकातुरता, तपोभूषण मुनि का आकाश मार्ग से आगमन, चारणमुनि Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के दिव्य तेज से राजा का आश्चर्य चकित होना, राजा का अपने पुत्र विषयक प्रत्युत्तर में मुनि का कथन... राजन् ! चण्डरूचि असुर द्वारा अपहृत तुम्हारा पुत्र चक्रवर्ती बनकर तुम्हारे पास लौट आयेगा, राजा को आश्वस्थ कर मुनि का आकाश मार्ग से प्रस्थान, अपहृत अजितसेन का पूर्व वैरी चण्डरुचि के साथ भयानक युद्ध, पराजित चण्डरुचि के साथ अजितसेन की प्रगाढ मित्रता, अकारण अपहरण का कारण पूछने पर चण्डरुचि द्वारा अपने पूर्वजन्म के शशि और शूर के भव में घटी हुई घटना का कथन, (शशि-शूर कथा गा. ६०४-६०९) अजितसेन का अरिंजय नगरी में प्रवेश, अजितसेन का महेन्द्र राजा के साथ युद्ध, युद्ध में महेन्द्र राजा की मृत्यु, अरिंजय नगर के राजा जयधर्म द्वारा अजितसेन का सम्मान, जयधर्म की पुत्री शशिप्रभा की अजितसेन के प्रति आसक्ति, शशिप्रभा के साथ अजितसेन का विवाह, रविपुर के खेचर राजा धरणिध्वज का शशीप्रभा के अद्वितीय रूप से आकर्षित हो अरिंजय नगरी पर आक्रमण, अजित सेन का हिरण्यनाभ देव की सहायता से धरणिध्वज के साथ युद्ध, पराजित धरणिध्वज का रणक्षेत्र से पलायन, अजितसेन का अपनी नगरी की ओर प्रयाण, ऋतुकुल नामक उद्यान में उतरना और वहां विराजित आचार्य श्री से उपदेश श्रवण, उपदेश में मनुष्य जन्म की दुर्लभता और क्रोधादि चार कषाय एवं राग द्वेष के दुष्परिणाम, विषयक विवेचन में दत्त और मूलदेव की कथा का कहना, (दत्त और मूलदेव गा. ८३४ -- १०२७) उपदेश श्रवण से अजितसेन को वैराग्य और दीक्षा ग्रहण की प्रार्थना । चक्रवर्ती पद की प्राप्ति के पश्चात् ही तुम दीक्षा ग्रहण करोगे ऐसी आचार्य की भविष्यवाणी । अजितसेन का सम्यक्त्व ग्रहण, माता पिता का मिलन, चतुर्थ पर्व पृ. ४०-- ___अजितसेन का आनन्दमय जीवन, आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति, चौदह रत्न, नैसर्प आदि नौ निधियों की प्राप्ति, छ खण्ड पर विजय, स्वयंप्रभ तीर्थंकर का आगमन, समोवसरण, अजितसेन का तीर्थंकर दर्शन, चक्रवर्ती द्वारा जिनस्तुति, उपदेश श्रवण, जीवस्वरूप, कर्मबन्ध के हेतु विषयक भगवान से चक्रवर्ती के प्रश्न, भगवान का विस्तार से उत्तर, धर्म विवेक पर सोमा की कथा (गा. ११४८ से ) सोमा कथान्तर्गत धर्मपरीक्षा पर झुटनवणिक की कथा ११६७ - १२०८) अपनी कार्य सिद्धि में लोकनिंदा की उपेक्षा करने वाले गोब्बरवणिक की कथा (१२१२१२६८) के कथन के पश्चात् दया धर्म, दान के ४ प्रकार, पांच ज्ञान और उनके भेद प्रभेद, शील धर्म, साधु सावकाचार, रात्री भोजन परिहार . तप के बारह भेद , बारह भावनाएं आदि का विषद विवेचन, सोमा का जैन धर्म ग्रहण, प्राणातिपात आदि पंचानुव्रत एवं रात्री भोजन पर एक एक लघु दृष्टान्त (१२८६-१४९१) इन दृष्टान्तों से सोमा की धर्मश्रद्धा में अभिवृद्धि, निरतिचार व्रताराधना से सोमा की स्वर्ग प्राप्ति, धर्मोपदेश से प्रभावित अजितंजय राजा का सम्यक्त्व ग्रहण और दीक्षा । पांचवां पर्व (पृ. ५९) ___ चक्रवर्ती अजितसेन की ऋद्धि और उसका विलास, वसन्त ऋतु, उद्यान श्री, वसन्तोत्सव, राजा का उद्यान विहार, रास, नृत्य, नाटक, मल्ल युद्ध, कथक, मंख आदि द्वारा जनमन रंजन, उद्यान में -हीमती देवी का मिलन, -हीमती से अजितसेन का विवाह, उद्यान स्थित एक मुनिवर से धर्मश्रवण, अनासक्ति पर भरत चक्रवर्ती का उदाहरण (गा. १७९१-२२५६) - हीमती देवी का पूर्वजन्म वृतान्त श्रवण (२२५८-२३००) -हीमती की मूर्छा, जाति स्मरण और वैराग्य, -हीमती का अजितसेन चक्री को उपदेश, बीज नामक उद्यान में गुणप्रभ सूरि का आगमन, - हीमती और अजितसेन चक्री का उपदेश श्रवण, उत्सव पूर्वक -हीमती और अजितसेन की दीक्षा, -हीमती Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्ति , अजितसेन मुनि की संयम आराधना, मृत्यु के बाद अच्युतकल्प नामक देव विमान में उत्पत्ति । षष्ठ पर्व (पृ. १०१) अच्युतकल्प से चवकर अजितसेन का जीव रत्नसंचयपुर में कनकप्रभ राजा की रानी सुवर्णमाला के उदर से हे राजन् ! तुम्हारा पद्मनाभ के नाम से जन्म हुआ, इस कथन को प्रमाण से सिद्ध करने का पद्मनाभ का श्रीधर मुनि से अनुरोध, मुनिराज ने कहा - आज से दसवें दिन एक उन्मत्त हाथी तुम्हारे नगर में प्रवेश करेगा और तुम उसे अपने वश में करोगे। श्रीधर मुनि की भविष्यवाणी के अनुसार यूथ प्रष्ट हाथी का नगर प्रवेश, पद्मनाभ द्वारा उसका दमन, हाथी का नाम वणकेली, वनकेली पर आरूढ होकर राजा का श्रीधर आचार्य के दर्शनार्थगमन । आचार्य द्वारा हाथी का पूर्व जन्म धरणकेतु का वृत्तान्त (२६९८-२८७०) धरणकेतु की नरक में उत्पत्ति, नारकी और नरक के दुःख वर्णन, पद्मनाभ द्वारा श्रावक व्रत ग्रहण, पृथ्विपाल राजा का दूत द्वारा सन्देश, हाथी पर अपने अधिकार का दावा करने वाले पृथ्विपाल राजा का तिरस्कार, तिरस्कृत पृथ्विपाल का पद्मनाभ के साथ युद्ध के लिए प्रयाण, पद्मनाभ का अपने मंत्रि मण्डल के साथ विचार विमर्श के पश्चात् युद्ध के लिए प्रयाण, मार्ग में आनेवाले जिनमन्दिर के निर्माता का इतिहास श्रवण, राजा का मार्ग में आनेवाले जिनमन्दिर की पूजा भक्ति, पृथ्विपाल राजा के साथ पद्मनाभ का मार्ग में ही भयानक युद्ध, पद्मनाभ के एक सेवक द्वारा पृथ्विपाल का रणांगण में ही सिर काटना। कटे हुए पृथ्विपाल के सिर को देखकर पद्मनाभ को वैराग्य, स्वर्णनाभ को राज्य गद्दी पर अधिष्ठित कर श्रीधर मुनि के समीप दीक्षा ग्रहण, कठोरतप एवं वीस स्थानकों की आराधना कर तीर्थंकर गोत्र की प्राप्ति, अन्त में संलेखना पूर्वक मर कर वैजयन्त नामक अनुत्तर विमान में उत्पत्ति । सप्तम पर्व (पृ. १३६) __ भरत क्षेत्र, चन्द्रानना नगरी, महासेन राजा, लक्ष्मणा देवी, वैजयन्त विमान से पद्मनाभ देव का चवन, महाराणी लक्ष्मणा के उदर में अवतरण, रानी का चौदह स्वप्न दर्शन, माता का दोहद, ५६ दिग्कुमारियों का आगमन, दिग्कमारियों की परिचर्या, ६४ इन्द्रों द्वारा मेरु पर्वत पर जन्मोत्सव, पत्र जन्म के बाद महासेन राजा द्वारा जन्मोत्सव, चन्द्रप्रभ नामकरण, बाल्यक्रीडा युवावस्था, अष्टमपर्व पृ. १५१ चन्द्रप्रभ का विवाह, राज्यारोहन चन्द्र नामक पुत्र प्राप्ति, जरा जीर्ण वृद्ध के रूप में धर्मरुचि नामक देव का आगमन और उसके द्वारा उद्बोधन, वृद्ध के उद्बोधन से चन्द्रप्रभ को वैराग्य, नौ लोकान्तिक देवों द्वारा उद्बोधन, दीक्षा की तैयारी, वार्षिक दान, इन्द्रों मनुष्यों द्वारा दीक्षा महोत्सव, एक हजार राजाओं के साथ मनोरमा शिबिका में बैठकर दो उपवास के साथ भगवान का सहस्त्रांब उद्यान में आगमन, दीक्षा ग्रहण, मनःपर्यव ज्ञानोप्तत्ति, दीक्षा के पश्चात् इन्द्रों देवों का नन्दीश्वर में अष्टान्हिक महोत्सव, नवम पर्व (पृ. १६६) नलिनीपुर (पद्मसंड) की और भगवान का विहार, सोमदत्त के घर क्षीरान्न से पारणा, पांच दिव्य का प्रगटीकरण, तीन महिने की छद्मस्थ अवस्था में कठोर संयम की साधना के बाद भ. का सहस्त्राम्ब उद्यान Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ में आगमन. नागरुक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति, देवों द्वारा केवलज्ञान उत्सव, समवसरण में भगवान का उपदेश. उपदेश में अस्खलितप्रतापप्रसर कर्म परिणाम राजा का आध्यात्मिक रूपक कथा द्वारा सभा को उदबोधन. कर्मपरिणाम राजा की कथा (५४२०-५७९७) दसमपर्व पृ. १८२ भगवान के उपदेश से अनेकों द्वारा व्रत ग्रहण, भगवान की विभूति का वर्णन, विहार के बाद पश्चिम समुद्र तट पर भगवान का आगमन, समवसरण की रचना, चन्द्रप्रभास तीर्थ की स्थापना, शत्रुजय पर्वत पर भगवान का आगमन, धर्म देशना, गणधर के पूछने पर पुण्डरीक गणधर का वृतान्त कथन, (५८७०-५८९३) शत्रुजय पर्वत की महिमा, भगवान का संमेतशैल शिखर पर आगमन, निर्वाण, देवों द्वारा निर्वाणोत्सव, ग्रन्थ समाप्ति, ग्रन्थकार प्रशस्ति पृ. १९३) सुभाषितपद्यानुक्रम पृ. १९४ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो - सिरिजसदेव सूरि - विरइयं चंदप्पह जिणिंद - चरियं मंगल जस्सारुणचरण - नहप्पहाणुरत्ता नमंतअमरपहू । अंतो अमंतनीहरियभत्तिराग व्व दीसंति ॥ १ ॥ सो जयजयप्पवरो, वरकंचणकमलकन्नियागोरो । गोरयणअंकिओरू, रिसहजिणो जिणियकम्मरिऊ ॥ २ ॥ (जुयलं ) ससि-किरण- विमल - देहप्पहाए ओहाडियाओ जन्नियड़े । रयणीए वि रयणपईवपंतियाओ न रेहंति ॥ ३ ॥ तं पणमह पणयसुरासुरिंदअइरुंदविहियजम्ममहं । मह मंदरम्मि सियकिरणलक्खणं लक्खणा तणयं ॥ ४ ॥ (जुयलं ) असिवोवसमो जाओ, जयस्स गब्भागए वि जम्मि लहुं । संतिजिणिदो संतिं, करेउ सो सयलसंघस्स ॥ ५ ॥ जन्नाम पईवम्मि वि, मणभवणगए जणस्स जाइरयं । दुरियगणो तिमिरभरो व्व हरउ पासो स मह विग्धं ॥ ६ ॥ कलिकालमारुएण वि, जस्स न विज्झाइ सासणपईवो । सो वड्ढमाणतित्थस्स नायगो जयइ जिणवीरो ॥ ७ ॥ इयरनरावि हु, आणाइ जाण निक्कंदिऊण कम्मरिऊ । पत्ता सासयठाणं, ते वंदे सेसजिणयंदे ॥ ८ ॥ खयरिंदपणयपाया, गोविंदपसायणी सुराणंदा । कयणंतनमोक्कारा, सिरि व्व वाणी सया जयउ ॥ ९ ॥ जाण पसाएण जडो वि किंपि जाओ बुहोहमज्झे हं । गणणिज्जपए तेसिं, गुरूण पाए पणिवयामि ॥ १० ॥ इय सयलनमोक्कारप्पहावपडिहणियविग्घसंघाओ । सिरिचंदप्पह- जिणवर - चरियमहं संपवक्खामि ॥ ११ ॥ एयं च दुक्करं जइ वि मज्झ पडिहाइ मंदबुद्धिस्स । दिट्ठेण पहेण तहा, वि संचरंतस्स किं विसमं ॥ १२ ॥ जओ १ जह विजयसिंहसूरिरइयपबंधम्मि दिट्ठमेयं मे । सत्तभवप्पडिबद्धं, तहेव गाहाहिं वोच्छमहं ॥ १३ ॥ सव्वं पुण एयं चिय, जम्हा सव्वन्नुगोयरं चरियं । चंदप्पहस्स कत्थ व, कत्थ व मइदुब्बलो अहयं ॥ १४ ॥ एवं च मए जलही, भुयाहिं तरिउं इमो समाढत्तो । एएण पंडियाणं, उवहासपयं भविस्समहं ।। १५ ।। जइ वा आहारवसेण गुणाण पयरिसो सो य एत्थ ससिनाहो । ता तप्पहावओ च्चिय, होहामि न सूरिहसणिज्जो ॥ १६ ॥ एत्थ य सुयणपसंसा, निक्कज्ज च्चिय जओ सपयईए । अपसंसिओ वि गुणगहणवावडो दोसविमुहो वा ॥ १७ दुज्जणजणो य पायं, पसंसिओ वि हु न मुंचए पयई । निद्दोसे वि हु कव्वे, जो कहवुप्पायए दोसं ॥ १८ ॥ ता किं इमाए चिंताए मज्झ पारद्धविग्घभूयाए । जो जस्स सहावो तं, समाणऊ इत्थ किमत्तं ॥ १९ ॥ नियगुणविक्खाय च्चिय, महाकई तेसिमह सलाहाए । किं होज्ज भुवणपायडजसाण मइहीणरईयाए ॥ २० ॥ पत्थुयमेव भणिज्जइ, अओ इमं विजयसिंहसूरीहिं । रइयं सक्कयभासाइ सग्गबंधेण मह कव्वं ॥ २१ ॥ अहयं पुणऽप्पसत्ती, पाइयभासाए तेण विरइस्सं । दसपव्वरइय अत्थाहिगारगाहाहिं पाएण ।। २२ ।। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तत्थ य पढमे पव्वे, रन्नो कणगप्पहस्स जह जायं । वेरग्गं निययसुयस्स रज्जदाणं च पव्वज्जा ॥ २३ ॥ बीए तत्तणयस्सेव पउमनाहस्स पुव्वभवसुणणं । सिरिहरमुणिंदपासे, सिरिधम्मो तत्थ पढमभवे ॥ २४ ॥ जह जाओ जह से रज्जसंपया जह वयं च देवत्तं । तइयम्मि य तइयभवे, जह जाओ अजियसेणो सो ।। २५ ।। जुवरायत्तम्मि ठिओ, य जह हिओ पिउसहाए मज्झाओ । हणिऊण महिंदनिवं, धरणिद्धयखयरनाहं च ।। २६ ।। परिणइ ससिप्पहं दिव्वकन्नयं नियपुरिं च जह एइ । तुरियम्मि य अजियंजय तप्पिउणो जह वयग्गहणं ॥ २७ पंचमए जियसेणस्स चेव जह अच्चुयम्मि उप्पत्ती । छट्ठम्मि वेजयंते, उप्पाओ पउमनाहस्स ॥ २८ ॥ सत्तमए चंदप्पहजिणस्स गब्भागमो य जम्ममहो । अट्ठमए रज्जं तित्थकरण - उच्छाहणा दिक्खा ॥ २९ ॥ नवमम्मि केवलं देसणा य दसमम्मि जह य मोक्खगमो । तह सपबंधं सव्वं, पव्वे पव्वे भणिस्सामो ॥ ३० ॥ ( पढमो पव्वो) २ इइ चंदप्पहचरिए, पढमे पव्वम्मि पीढियाबंधो । भणिओ एत्तो उड्ढं, कहासरीराणुगं वोच्छं ।। ३१ ।। अत्थि पमाणंगुल-दिट्ठमाणचउलक्ख - जोयणपमाणो । धायइसंडो दीवो, मणुस्सखेत्तस्स मज्झम्मि ॥ ३२ ॥ सनइ-ससेल-सकाणण-सपुर-सपासाय- सघर - पायारो । बहुरूव- रूवयालीकलिओ मज्झिल्लवलओ व्व ॥ ३३ माणुस्सखेत्तमहिमहिलियाए जो सहइ अंतरा थक्को । लवणोयहि-कालोयाण वलयसंठाणकलियाण ॥ ३४ ॥ (जुयलं) भरहाइ- सत्त-खेत्ताइं जाई सिट्ठाई जंबुदीवम्मि । दो दो ताइं जहियं, पुव्वावरओ विरायंति ॥ ३५ ॥ तत्थ य महाविदेहेसु दोसु दो चेव गिरिवरा मेरू । एगो पुव्वविभागे, पच्छिमभागम्मि अवरो य ॥ ३६ ॥ जो सो पुव्वविभागे, तस्सेव य पुव्वदेसभागम्मि । सुपसिद्धमंगलावइविजयं रमणीयतरमत्थि ॥ ३७ ॥ जं च सुवेयड्ढं पि हु, न चलइ कइयावि निययठाणाओ । विविहावयाहिकलियं पि नेय दीसंति दुक्खियणं ॥ ३८ ॥ गुरुकविबुहसंजुत्तं, सुमित्तरायं सुकन्नयं सुविसं । सुहरिं सुमेसमिहुणं, गयणं व विराय सययं ॥ ३९ ॥ अवि य संपुन्नचंदवयणा, सुतारनयणा पओहरपहाणा । जं नहलच्छी चुंबइ, नरलोयपईस्स वयणं व ॥ ४० ॥ तत्थत्थि ठाणठाणप्पहाणगुरुरयणसंचयसुसोहं । नामेण रयणसंचयनयरं नयराइ पडिबिंबं ॥ ४१ ॥ पंचधणुस्सय परिमाणमाणवुम्माणविरइयगिहाई । सुकयाहियाण सोहंति जम्मि सग्गद्धसग्गे व्व ॥ ४२ ।। जत्थ य जिणम्मि भत्ती सच्चे सत्ती जसम्मि अणुरत्ती । सद्धम्मकम्मतत्ती, सुसीललाभम्मि अक्खिती ॥ ४३ ॥ परउवयारपवित्ती, परलोयाबाहजीवियावित्ती । एसा सहावओ च्चिय, लोयस्स गुणाण संपत्ती ॥ ४४ ॥ (जुयलं) किंच जम्मि य बहेडय च्चिय कसाइणो करिवर च्चिय पमत्ता । अइरागिणो कुसुंभा, न उणो तव्वासिणो लोया ।। ४५ ।। सालम्मि अलियसद्दो, दोसासंगो दिणक्खए जत्थ । कव्वम्मि वंकभणिई, जणम्मि न उ पयइभद्दम्मि ॥ ४६ ॥ तम्मि गुरुवइरिवारणवियारणप्पवणतरुणनहरच्छो । कणगप्पहो त्ति नामेण नरवई आसि विक्खाओ || ४७ || Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो जो य थिरयाए विजियमेरू, सोमत्तगुणेण परभवियचंदो । रूवेण कुसुमसरमाणखंडणो तेयसा सूरो ॥ ४८ ॥ जस्स भयं परलोयाओ चेव तुच्छत्तणं च दोसेसु । वसणं सत्थत्थवियारणम्मि अइगहणरूवम्म ॥ ४९ ॥ पीडा परोऽवयारस्स दंसणे तह जसम्मि अइलोभो । निरवेक्खत्तं नियइंदियत्थविसए न अन्नत्थ ॥ ५० ॥ (जुयलं ) जस्स य - सहइ रणे अरिकरिकुंभदलणसंलग्गमोत्तिओ खग्गो । दढमुट्ठिपीडणुव्वमियधारजलबिंदुकलिओ व्व ॥ ५१ ॥ सोहग्गगुणविसाला पसत्थभाला निसग्गसोमाला । विज्झवियदोसजाला, सुवन्नमाला पिया तस्स ।। ५२ ।। सयलंतेउरसारा, पणइजणोवहयदुक्खवित्थारा । जा सयलतिहुयणम्मि वि, अच्चब्भुयसीलगुणभारा ।। ५३ ।। सकलंकरायपासं, निसासु दिवसेसु समहुयं पउमं । जा जाइ पयइचवला, सा जीए सिरी वि हीणुवमा ॥ ५४ ॥ ती सह तस्स जियलोयपवरपंचप्पयारविसयसुहं । बुहयणपसंसणिज्जं, धम्माइतिवग्गअक्खलियं ॥ ५५ ॥ अणुहवमाणस्स सुहंसुण जा केत्तिओ गओ कालो । ता पवरलक्खणधरो, धराइ आणंदजणओ य ॥ ५६ ॥ पुत्तो स पउमनाभो, ताणं जाओ न नाममेत्तेण । किंतु गुणेहिं वि नरयंतकारओ पउमनाभो जो ॥ ५७ ॥ (विसेस ) तहा हि धरणिप्पसिद्धनंदयसुदंसणो लच्छिविहियआवासो । जो अच्चब्भुयसच्चरिओ, रिउअसुरभयावहो दूरं ॥ ५८ ॥ ३ किंच विज्जाओ नईओ व अंबुरासिममला गुणाण मालाओ । सयलकलाओ व चंदं, जं वुड्ढकए अणुगयाओ ॥ ५९ आरूढपोढजोव्वणभरो वि लीलावईण लीलासु । न रमइ मइमंतमणेसु जणिय गुरुविम्हओ जो य ॥ ६० ॥ सोराया तेण सुएण उचियसुयजलहिपारपत्तेण । सहिओ गमेइ कालं, सेवंतो रज्जसिरिमउलं ॥ ६१ ॥ अन्नम्म दिणे नियपुरवरस्स देवउलहट्टघरसोहं । अवलोइउमारूढो, राया पासायउवरितलं ॥ ६२ ॥ पेच्छंतो पवरसुवन्नरयणरयणाइ अहियरमणीयं । पुरसोहं वित्थारइ, दससु वि आसासु जा चक्खुं ॥ ६३ ॥ एगम्मि पल्लले ताव तस्स दिट्ठी गया विसालम्मि । पासम्मि पंकबहुले, मज्झे निप्पंकजलकलिए ॥ ६४ ॥ (जुयलं) पाऊण जलं तत्थुत्तरंतमह नियइ चउपयं बहुयं । तम्मज्झवत्तिमेगं, जरग्गवं खीणदेहबलं ॥ ६५ ॥ घणचिक्खल्लक्खुत्तं, अतरंतं पायमुक्खिविउमेत्थ । कंपंतसव्वगत्तं, मरणभयत्तं विगयसत्तं ॥ ६६ ॥ (जुयलं ) तं पासिउं नरिंदो, वेरग्गविसुद्धिबुद्धिमणुपत्तो । पारद्धो चिंतेउं, संसारसरूवमइविसमं ॥ ६७ ॥ पेच्छह जहेस गोणो, तरुणत्ते निययढेक्कियरवेण । तासंतो गोनिवहं, सुसमत्थं गरुयदप्पं पि ॥ ६८ ॥ सिंगग्गदारियगिरी, एत्ताहे कं अवत्थमणुपत्तो | अहवा भवेऽणवट्ठियरूवे सव्वं पि खणखइयं ॥ ६९ ॥ (जुयलं) तहा हि पडुपवणपहयदेवउलसिहरसंठियधयं चलचलाई | जीवाण जीयजोव्वणबलाई तह संपयाओ य ।। ७० ।। Jain Educagon International Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तिव्वज्झवसाणेण वि, हियए संघट्टहेउणा जस्स । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ॥ ७१ ॥ जल-जलण-सत्थ-विस-भयवालाइनिमित्तमेत्तओ जस्स । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७२ जस्स बलं आहाराओ चेव तत्तो वि कह वि गहियाओ । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७३ ।। दाह-जर-सास-सूलाइवेयणाहिं च जस्स तिव्वाहिं । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ॥ ७४ !। तेउल्लेसाइपराघायाओ जस्स विविहरूवाओ । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ॥ ७५ ॥ तयविसभुयंगमाई, फासेण वि जस्स विसमरूवेण । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ॥ ७६ ।। आणा-पाणनिरोहे, सकए अहवा परक्कए जस्स । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ॥ ७७ ॥ इय विविहोवक्कम-मज्झवत्तिणो जीवियस्स न थिरत्तं । अइभुक्खियनरमुहगयसरसफलस्सेव संसारे ॥ ७८ ॥ जणलोयणूसवकरं, धम्माइनरत्थसाहणसमत्थं । जं तारुण्णं तं पि हु, पहिपहियसमागमसमाणं ॥ ७९ ॥ जओरमणीयरमणिजणमणहरं पि विगरालरक्खसी एव । आगंतूण गसिज्जइ, जराए कयविविहरूवाए ॥ ८० ॥ तीए विणा वि जलोदर-भगंदरप्पमहवाहिसंघाया। रिखोलयंति अहवा, कुसीलवेयालबाल व्व ।। ८१ ।। सव्वावहारकारी, उयाहु कत्तो वि मच्चुदडवडओ । पडिऊण हरइ जीवाण जोव्वणं जीविएण समं ॥ ८२ ।। इय विविहोवद्दववियुयस्स तारुन्नयस्स विभवम्मि । खणदिट्ठनट्ठसंझब्भरायसममेव रम्मत्तं ॥ ८३ ।। न गणइ जेणऽवयारीण विविहपहरणविहत्थहत्थाण । पउरं वि बलं बलगव्वगव्विओ नियमणे पुरिसो ॥ ८४ ॥ जेण य समं च विसमं च कज्जमेयं इमं पि न धरेइ । चित्ते सहस च्चिय संपयट्टए भीमसेणो व्व ॥ ८५ ॥ तं पि बलं पाणीणं, वायाइक्खोहविहुरदेहाण । झ त्ति पणस्सइ कत्थ वि, पवणाहयसुहुमरेणु व्व ॥ ८६ ।। (विसेसयं) जओ भणियं - लंघण-पवण-समत्थो, पुल्वि होऊण संपयं कीस । हत्थग्गधरियदंडो, हिंडसि कंपंतगत्तो य ॥ ८७ ॥ किंनामओ तुहेसो, वयंस ! वाही कहेसु मह पुरओ । सो भणइ मित्त ! जइ अस्थि कोउयं सुण तदुवउत्तो ॥ ८८ ।। जेण जीवंति सत्ताई, निरोहम्मि अणंतए । तेण मे भज्जए अंग, जायं सरणओ भयं ॥ ८९ ॥ अहवा - जेट्ठासाढेसु मासेसु, जो सुहो वाइ मारुओ । तेण मे भज्जए अंगं, जायं सरणओ भयं ॥ ९० ॥ इय बलमवि देहीणं, जोइज्जंतं विवेयदिट्ठीए । पडिहाइ बुहाणाखंडलस्स कोदंड-खंडं व ॥ ९१ ॥ जाण पसत्ता सत्ता, केइ वि किवणत्तणेण ताव इहं । तासि चिय निहुणक्खणणवावडा ठंति सयकालं ॥ ९२ । न सुहं सुयंति भंजंति कदुसणं फट्ट-तुट्ट-वत्थाई । परिहंति वसंति य जुन्नखोल्लडे गरुयवयभीया ॥ ९३ ।। पुत्ताइकुडुंबस्स वि, दंसिंति न किंपि केवलं बिंति । नो विढवामो किंचि वि, न य अम्हं अत्थि किंपि धणं ।। ९४ ॥ एवं करिताण वि ताण तक्करा जाणिऊण ता कह वि । अन्नायचियत्तेहिं हरंति अहवा वि नरवइणो ॥ ९५ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो पावित्तु मिसं किंचि वि, बला वि गिण्हंति गोत्तिया लिंति । अन्ने य विसइणो जूय-मज्ज-वेसासु फेडुति ।। ९६ एगेसिं पुण पावोदएण दझंति जलियजलणेण । पेच्छंताण वि अहवा, सलिलेण बला वि निज्जति ॥ ९७ ।। एवं परमत्थेणं, चिंतिज्जंताओ संपयाओ वि । एयमावयाण पायं, विज्जुलया चंचलाओ य ॥ ९८ ॥ अन्नं पि किंपि तं नत्थि वत्थु जं किर हवेज्ज संसारे । थिरयाइ जुयं एगंतसुहयरं मोत्तुमिह धम्मं ।। ९९ ॥ ता धम्माराहणमेव जुत्तमेत्थं विवेगकलियाण । अम्हारिसाण न उणो, विसयामिसलंपडत्तं ति ॥ १०० ॥ एवं विचिंतिऊणं, नियपुत्तं ठाविऊण रज्जम्मि । सिरिपउमनाहनामं, अकलंकं बीय चंदं व ॥ १०१ ॥ जिणभवणेसु करावियगुरुपूओ सिरिहरस्स मुणिवइणो । केवलिणो ससमीवम्मि लेइ दिक्खं समियपावो ॥ १०२ एवं जहा भो ! कणगप्पहेणं, वेरग्गमग्गावडिएण झ त्ति । रज्जं विमोत्तूण वयं पवन्नं, तहावरेणावि पवज्जियव्वं ॥ १०३ सेयाई कज्जाई जओ हवंति, पारण विग्घेहिं उवढुयाई । सामग्गियं तो मणुयत्तमाई, खणं पि लटुं न पमाइयव्वं ।। १०४ सेयं च कज्जं तमिहप्पसिद्धं, जं देवलच्छीए हवेज्ज हेऊ। जत्ताइ सुद्धाए जसस्सिरीए समाणसत्तस्स य मोक्खमलं ।। १०५ एवं विवेयकलिया, विचिंतिऊणं करेंति जे धम्मं । निम्मलजसदेवनरिंदवंदियं ते पयमुवेति ॥ १०६ ॥ इइ चंदप्पहचरिए, जसदेवंकयम्मि पढमपव्वम्मि । जं उद्दिठं भणियम्मि तम्मि पव्वं समत्तमिणं ॥ १०७ ॥ एत्तो बीयं भणिमो, तम्मि उ सिरिपउमनाहनरवइणो । सिरिहरमुर्णिदपासे, पुव्वभवायन्नणं होही ॥ १०८ ॥ (बीओ पव्वो) सिरिचंदप्पहदेहस्स चंदकरनिम्मलाओ दित्तीओ । चिरकाललग्गघणपावतिमिरपडलं मह हरंतु ॥ १०९ ॥ अह पउमनाहराया, रज्जसिरीए अलंकिओ सहइ । अहियपयावो तरणि व्व दिव्वसरयागमसिरीए । ११० ॥ सकलत्ताओ वि नरमणहराओ लक्खजुयाओ वि गुणेहिं । लोयविलक्खणरूवाओ निम्मयाओ वि सुपसन्ना ॥ १११ वाणीओ जस्स वयणे, गिहे य कंताओ कतिकलियाओ। विविहालंकारविराइयाओ जणजणियहरिसाओ ॥ ११२ ।। (जुयल) अवि यगुणवच्छल्लेणं चिय, जो अवकासं न देइ दोसाण । न य ते गुणे वि पोसइ, पडिवत्ती जेसु न गुरूण ॥ ११३ नियरूवा हरियरई, मईए नावइ सरस्सई बीया । अहिलसणीया लच्छि व्व ललियवररायहंसगई ॥ ११४ ॥ निज्जियसयलवरोहा, अविहियपरपुरिसदिट्ठिविच्छोहा। सोमप्पहाभिहाणा, देवी अइवल्लहा तस्स ।। ११५ ॥ (जुयल) तीए समं विलसंतस्स जाइ जा केत्तिओ वि से कालो । धम्मत्थ-कामबाहारहियस्स सुरस्स व सुहेण ॥ ११६ ॥ तावन्नया कयाई, सुवन्ननाभो सुओ समुप्पन्नो । सोमप्पहाए देवीए चेव वरलक्खणुप्फुन्नो ।। ११७ ॥ देहोवचएण तहा, कलाकलावेण लोयसारेण । वड्डंतो स कमेणं, संपत्तो जोव्वणं कुमरो ॥ ११८ ॥ मद्दवपरो वि नय-विणयलंकिओ सुप्पसिद्धसीलो वि । नीसेसलोयविक्खायपरमहेलाए आसत्तो ॥ ११९ ॥ सगुणो वि जो न मुत्ताहारो रमणीयपुन्ननिलओ वि । नो सत्थंभो विससंगओ वि नो होइ स भुयंगो ॥ १२० ।। (जुयल) परिणाविओ य पिउणा, पवराओ गरुयराय-दुहियाओ । सयलगुणाण निहाणं, च ठाविओ जोवरज्जम्मि ॥ १२१ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं अन्नम्मि दिणे अत्थाणवत्तिणो नरवइस्स पासम्मि । आगंतूणुज्जाणाओ हरिस-रोमंच-कंचुइओ ॥ १२२ ॥ पभणइ पणामपुव्वं वणपालो देव ! वड्ढ-दिट्ठीए । तुम्हुज्जाणे जम्हा सुगंधिपवणाभिहाणम्मि ॥ १२३ ॥ बहुमुणिजणपरिवारो, वारियनीसेसपाणिपडिघाओ । घाइक्खयउग्घाडियकेवलनाणुल्लसंतसिरी ॥ १२४ ॥ सिरिहरपसिद्धनामो वि दूरपरिचत्तसिरिहरसमूहो । देविंदपणयपाओ वि विहियअसुरिंदसंथवणो ॥ १२५ ॥ संजमिओ वि न बद्धो, भवपासेहिं कसायरूवेहिं । निक्कामो वि हु तह कामदायगो पणयलोयस्स ॥ १२६ ॥ तवतेएणं अच्चुक्कडेण मुत्तीए सोमयाए य । जो चंडरस्सितुहिणयरकिरणरासी इवुप्पण्णो ॥ १२७ ॥ सो अज्ज मुत्तिमंतो, धम्मो व्व समागओ मुणिवरिंदो । दुरियकरिकेसरी विविहसाहुनिवहेण परियरिओ ॥ १२८ ॥ (कुलयं) अवि यजो रयणदीवदेसु व्व णंतगुणरयण-आलओ वि फुडं । अच्चब्भुयमेयं जं, न होइ भवजलहि-मज्झम्मि || १२९ किं च - जस्सागमणम्मि वणं, पि चलिरसाहं नमंतसिहरग्गं । हरिसभरनिब्भरं नच्चइ व्व तह कुणइ व पणामं ॥ १३० ॥ जस्स य घणकुसुमामोयमिलियमहुमत्तमहुयररवेण । गुणसंथवं करेइ व्व मंजरीजालपुलइल्लं ॥ १३१ ।। अपरं च - जम्मि समोसरिए मणिवइम्मि सव्वोउयहितं जायं । फल-फुल्ल-मंजरी-पल्लवेहिं समकालरमणिज्जं ॥ १३२ ।। तहा हिहरिसेण मुयंताओ, सअंसुबिंदूसु पत्तनेत्तेहिं । मंजरिमिसेण पुलयं व जत्थ दंसंति सहयारा ॥ १३३ ॥ रमणीपण्हिपहार, विणा वि दट्टुं सफुल्लदलरिद्धिं । पवणपहल्लिरपल्लवकरहिं नच्चइ व कंकेल्ली || १३४ ॥ कामिणिमहुकुललयमंतरेण बउलो निए वि नियकुसुमे । भणइ व मुणिमलिरणियच्छलेण एसो तुह पसाउ ॥ १३५ तिलओ वि वीयरागो व्व वीयरागप्पलोइओ जाओ । इत्थीकडक्खअनिरिक्खिओ वि जो पुप्फफलइल्लो ॥ १३६ चंपयतरू वि वायंदोलणनिवडंतकुसुमनिवहेण । साहाबाहाहिं पसारियाहिं अग्धं व से दिति ।। १३७ ।। छप्पयरवच्छलेणं, गायंतीए व मुणिं वणसिरीए । दरदीसंता दसणावल्लि व्व कुंदावली सहइ ॥ १३८ ॥ पाउसरिउं व जगजीवबंधवं सयलसंपयामूलं । तं मुणिनाहं दठूण पुप्फिया कुडयरुक्खा वि ॥ १३९ ॥ अम्ह वियासो सुइसंगमेण मुणिणो परो य नत्थि सुई । इय चिंतिउं व मल्ली उ फुल्लिया जस्स मेलावे ॥ १४० कामारिं पिव तं चावलोइऊणं भएण मयणो व्व । वायाहयबाणतरू वि मुयइ बाणावलिं सहसा ॥ १४१ ॥ तत्थुज्जाणे अन्नं च देव ! जे संति केइ तिरियगणा । अन्नोन्नबद्धवेरा वि ते वि जाया पसंतप्पा ॥ १४२ ॥ जओभक्खनिमित्तं चलिओ, सप्पो वइरेण उंदुरस्सुवरि । मुणिदंसणेण थक्को, अभओ इयरो वि कुणइ चुणिं ॥ १४३ आयवकिलंतगत्तं, पलोइऊणं अहिं तहा मोरो । निययकलावेण करेइ तस्स छायं अइदयालू ॥ १४४ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो नउलो वि पुव्ववेरं, मोत्तुं मिक्तत्तमुवगओ संतो । कीलइ भुयगेण समं, मुणिपासे जणियपसमेण ।। १४५ ॥ दप्पेणं जुज्झंता, वणमहिसा जुज्झमुज्झिउं सहसा । जाया पसंतचित्ता, मुणिसम्मुहपेक्खणक्खित्ता ।। १४६ ।। इय एवमाइयं तप्पभावमायन्निऊण राया वि । चिंतेइ पेच्छ मुणिणो, माहप्पमउव्वरूवं ति ॥ १४७ ॥ अहवा किमउव्वममोहविमलचारित्तसत्तिजुत्ताण । घणघायकम्मखयजायविविहगुरुलद्धिमंताण ॥ १४८ ॥ . मंतोसहि-मणिमाहप्पविजियसंपत्तजयसलाहाण । सममोक्ख-सोक्खभव-दुक्ख-समसत्तु-मित्ताण ॥ १४९ ॥ समभावपयरिसावूरियाण संसारतीरपत्ताण । अक्खयनाणाण महारिसीण जीवंतमुत्तीण ॥ १५० ॥ ताण किर जाण नीसेसकम्मि कम्मक्खए वि सामत्थं । पत्तेयमत्थि जइ कम्मसंकमो परकए होज्जा ॥ १५१ ॥ भणियं चक्षपकश्रेणिमुपगतः, स समर्थः सर्वकर्मिणां कर्म । क्षपयितुमेको यदि कर्मसंक्रमः स्यात् परकृतस्य ।। १५२ ॥ परकृतकर्मणि यस्मान्नाक्रामति संक्रमो विभागो वा । तस्मात् सत्त्वानां कर्म यस्य यत् तेन तद्वद्यम् ॥ १५३ ॥ ता ते च्चिय वरविन्नाण-नाणजुत्ते तरू अहं मन्ने । दठूण जे मुणिंदस्स गुणगणं पुप्फिया फलिया ।। १५४ ॥ अहह गुणाणं माहप्पमेत्थ अमणिंदिया वि जं तरुणो । अबुहे वि बोहयंता, गुणविण्णुत्तं वहंति व्व ॥ १५५ ॥ पच्चक्खे वि हु दिट्टे, ता मुणिमाहप्पसंभवम्मि फले । कह संदेहमहन्ना, करिन्ति जिणदिट्ठसिवमग्गे ॥ १५६ इय चिंतिऊण तत्थेव संठिओ भत्तिनिब्भरो राया । अनलियगुणसंथवणं, मुणिस्स काउं समाढत्तो ॥ १५७ ॥ तुज्झ नमो मुणिसामिय ! अमियासणनाहपणयपयकमल ! । कमलोवभोगसंभविसुहविमुहमहाजियाणंग ! ॥ १५८ हा जियअणंगसंगय ! कह तं हुँतो भवोयही पडिओ । जइ न इमं मुणिवसभं, पावंतो जाणवत्तं व ॥ १५९ ।। वत्तव्वयं पि सोउं, इमस्स पावं ति पुनवंतनरा । किं पुण दंसण-वंदण-नमंसणा देसणा सुणणा ॥ १६० ॥ ता तं धन्नो सुहपुन्नभायणं जेण मुणिवरागमणं । विन्नायं इय चिंतिय, पुणो पुणो नमसु तं चेव ॥ १६१।। इय उठ्ठिय आसणओ, गंतूण य सम्मुहं मुणिंदस्स । सत्तट्ठपयाई तओ, करेइ पंचंगपणिवायं ॥ १६२ ॥ पुणरवि सुहासणत्थो, राया पडिहारमेवमाइसइ । आणवसु नयरलोयं, मह वयणेणं तुमं एवं ॥ १६३ ॥ सिरिहरमुणिंदवंदणकज्जेण सुगंधिपवणउज्जाणे । गच्छिहइ नरिंदो गुरुविभूइसंभूसिओ अज्ज ॥ १६४ ॥ नियनियसमिद्धिसहिओ, ता एउ जणो वि तत्थ इच्चेवं । आणं पडिच्छिऊणं सिरेण नीहरइ पडिहारो ॥ १६५ ॥ काउं रायाएसं, रन्नो जाणावई पुणो एसो । चउरंग-बलसमेओ, निवो वि जयवारणारूढो ॥ १६६ ॥ अंतेउर-पुर-जण-परियणेण अणुगम्ममाणमग्गो य । महइड्ढिसमुदएणं, संपत्तो मुणिवरासन्ने ॥ १६७ ॥ पंचविहाभिगमेणं, पविसित्तो उग्गहे मुणिवरस्स । तिपयाहिणं करेत्ता, तिक्खुत्तो पणमई तत्तो ॥ १६८ ॥ गुणसंथवे पयट्टो य दिव्ववाणीए मुणिवरिंदस्स । भत्तिभरनिब्भरो भालवट्ठरइयंजलीबंधो ॥ १६९ ॥ होउ नमो तुज्झ महामुणिंद ! निंदा-थुईसु समचित्त ! । समचित्तत्तेणं चिय, निज्जियगुरुरागदोसबल ! || १७० ।। सबलत्तमुक्कचारित्तरित्तकयसयलकम्मभंडार ! । निज्जियमयणमहाभड !, मोहमहासेलदढकुलिस ! ।। १७१ ॥ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं कुलिस- -झस - कलस - कमलाइलक्खणंकिय ! पसत्थकर-चरण ! । चरणकरणोवसेवापहाणमुणिवंदियच्चलण ! ॥ १७२ चलणारविंदजुयले, महुयरलीलाइ तुज्झ जे लग्गा । सुय-मयरंदममंदं, लहिउं होहिंति ते सुहिणो || १७३ | सुहिणो ते सुकयत्थजीविया ते सुलद्धजम्मफला । जे तुह वयणे अविसंकमाणसा सिव- पहे लग्गा ।। १७४ इय थोऊण मुणिंद, सेसे वि कमेण वंदिउं साहू | पुणरवि विहियपणामो उवविट्ठो सिरिहरसयासे ।। १७५ ।। मुणिणा वि धम्मलाभं, दाउं तो देसणा समाढत्ता । गंभीर - महुर - निग्घोस - विजिय-जलवाह - सद्देण ॥ १७६ ॥ भो भो नरिंदमाई, लोयालोयाण मोत्तुमालावं । खणमित्तसावहाणा होउं निसुणेह मह वयणं ॥ १७७ ॥ इह खलु अणाइजीवो, अणाइजीवस्स एस संसारो । जीवेण सहेव अणाइकम्मसंजोगसंपण्णो ॥ १७८ ॥ दुक्खसरूवो दुक्खप्फलो य दुक्खाणुबंध-जणगो य । एयस्स उ वोच्छित्ती, हविज्ज सुविसुद्धधम्माओ ॥ १७९ सो पुण विसुद्धधम्मो, होज्जा पावक्खयाओ बहुयाओ । सो वि तहा भव्वत्ताइभावओ पागपत्ताओ ॥ १८० ॥ चउसरणगमणदुक्कडगरिहा सुकडाणुमोयणा चेव । परिपागहेउणो तस्स हुंति एए उ नायव्वा ॥ १८९ ॥ चउसरणगमो य इमो, अरहंता चेव मज्झ सरणं ति । सिद्धा य तहा साहू, केवलिपन्नत्तधम्मो य ॥ १८२ ॥ सारीर - माणसाणेयदुक्खतवियाण एत्थ संसारे । एए चउरो मोत्तुं न अत्थि अन्नं परित्ताणं ॥ १८३ ॥ एएसिं चि पुरओ, एत्थन्नत्थ य भवम्मि जं रइयं । मिच्छत्ताई पावं, तं निंदे तं च गरिहामि ॥ १८४ ॥ अरहंताण विजं सुकडं जाणामि तं च अणुमोए । इच्चाइप्पडिवत्ती, हेऊ तह भव्वयापाए ॥ १८५ ॥ ता एत्थं चिय जत्तं, करेह पावक्खयस्स मूलम्मि । जत्तो तुम्हाण परंपराए होज्जा भवुच्छेओ || १८६ ॥ जं पुण नाहियवाई एमाइ पभणंति वाइणो केवि । नत्थेत्थ को वि जीवो, न य परलोओ न कम्म ति ॥ १८७ तं पुणमिच्छा भणियं, वियाणियव्वं न तेण चित्तभमो । कायव्वो तुम्हेहिं विवेय - विन्नाय - तत्तेहिं ॥ १८८ ॥ जओ ८ पयईए भासुरो दिणयरो व्व कम्मेहिं मोहभूलेहिं । भामिज्जइ जीवोऽणूरूवसगतुरगेहि व जयम्मि ॥ १८९ ॥ एवं च जहेव रवी, उदयावत्थाए दीसए बालो । मज्झण्हे मज्झत्थो, वि चंडरस्सी दुरालोओ ॥ १९० ॥ तह परिगलियपयावो, वियालवेलाए अत्थमणुपत्तो । विविहावत्थो दीसइ, पुणो वि बीयाइदिवसेसु ॥ १९१ ॥ तह चेव इमो जीवो, चउगइगमणस्सरूवसंसारे । कइया वि होइ देवो, कया वि मणुयत्तणं लहइ ।। १९२ ॥ कइया वि होइ तिरिओ, कइया वि पुणो वि नारओ होइ । सुहिओ दुहिओ उत्तिममज्झिमहीणत्तमणुपत्तो ॥ १९३ अह व जह रंगमज्झे, नडो परावत्तए विविहरूवे । दव्वाकंखाणुगओ, अवगणियसदुक्खसंताणो ॥ १९४ ॥ संसाररंगवत्ती, तहेव जीवो वि कम्मसंबद्धो । चुलसीइजोणिलक्खेसु कुणइ नाणापरावत्ते || १९५ ।। जीवस्स य कम्मस्स य, संबंधो कंचणोवलाणं व । तह चेव विओगो वि हु, अणाइजोगे वि सिद्धोति ॥ १९६ तहा हि अग्गिए धमिज्जते, धाउबले सिद्ध-तंत - जुत्तीए । होइ सुवन्नं भिन्नं, जहेह भिन्नो य तक्किट्टो ॥ १९७ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो तह चेव नाणदंसण-चरित्तसुद्धीए जीवकणयस्स । भिन्नो च्चिय कम्ममलो, जायइ सिद्धत्तसिद्धाए । १९८ ॥ इच्चाइ पभणिऊणं, ठियम्मि मुणिनायगे तओ राया । पभणइ पहट्ठचित्तो, जुत्तं तुम्हेहिं जं भणियं ॥ १९९ ॥ जओ - जं तुम्ह सउम्मेसम्मि नाणचक्खुम्मि वत्थु न प्फुरियं । तं गयणयलसरोजं व, नाह ! मह भाइ बुद्धीए ॥ २०० ॥ तुम्हेहिं भणंतेहिं वि, पहाणतत्तं जहट्ठियं जो हु । न करेइ गुणादाणं, न दोसहाणं स मूढमई ॥ २०१ ।। तुम्हारिसा महापहु दुलहा भुवणत्तए निरालोए । पुन्नेहिं इंति सूर व्व भव्वकमलावबोहत्थं ॥ २०२ ॥ ता काऊण पसायं, सचराचरतिजगबंधव मुणिंद ! उचिए कइ वि निवेएह मह अईए भवग्गहणे ॥ २०३ ॥ एवं नरिदेण सपुट्ठमेत्तो, पच्चक्खनीसेसपयत्थसत्थो । सहाए सव्वाए सुहं जणंतो, सपुव्वजम्मे कहिउं पयट्टो ॥ २०४ (सिरिसेणकहा) अवसप्पिणी चउत्थारयम्मि भरहम्मि रिसहनाहाओ । जो अट्ठमतित्थयरो, होही चंदप्पहो नाम || २०५ ॥ गयणपलोइरनिवडंतअसणिपडलं व महिहरसिराइं । पुव्वभवकित्तणं तस्स हरउ तुम्हाण दुरियाई ॥ २०६ ॥ ठाणे ठाणे जो सहइ मंडिओ कणयपुक्खरसएहिं । सो पुक्खरवरदीवो, जहत्थनामोत्थि विक्खाओ ॥ २०७ ।। कालोयजलहिमवगूहिऊण वलयागिईए जो थक्को । तह चेव जं च तद्दुगुणमाणपोक्खरवरसमुद्दो । २०८ ॥ जस्स य सोलस-सोलस-जोयण लक्खा उ वित्थरपमाणं । पुव्वावरदाहिण-उत्तरेण सव्वासु वि दिसासु ॥ २०९ तस्स बहुमज्झभागे, वलयं व समत्थि माणुसनगो य । नहयलविलग्गसिहरो, दुयद्धकयदीववित्थारो ।। २१० ।। पुक्खरवरदीवड्ढस्स जो य मउडो व्व परिहिओ भाइ । देदिप्पमाणबहुविहरयणचिंचइयसिहरेहिं ॥ २११ ।। सो पुण अड्ढाइयदीवजलहिजुयलप्पमाणखेत्तस्स । माणुस्सयस्स सीमा, देवारन्नं तओ परओ ॥ २१२ ॥ तम्मज्झे उण धायइसंडे इव दोन्नि दोन्नि भरहाइं । सत्त वि खेत्ताई अओ, दो हुंति महाविदेहाई ॥ २१३ ॥ तेसु बहुमज्झभागे, निए निएगेगमेरुरम्मगिरी । एगो पुव्वविदेहे, अवरविदेहम्मि अवरो य ॥ २१४ ॥ जो सो पुव्वविदेहे, सो पुव्वो चेव भन्नए मेरू । ते पुव्वावरभेएण तं विदेहं पुणो वि दुहा ॥ २१५ ॥ एवं अवरदिसा वि, नवरं पुव्वस्स जमवरविदेहं । तत्थत्थि सुप्पसिद्धं, सुगंधिनामेण वरविजयं ।। २१६ ॥ देवउलतुंगसिहरग्गलग्गधयवडमिसेण जं च सया । रम्मत्तविजियसुरलोयजयपडाय व्व उन्भेइ ॥ २१७ ।। तत्थत्थि सिरिपुरं पुरगुणेहिं महियं महिड्ढिसंजुत्तं । जुत्ताजुत्तविवेयप्पहाणजणजणियआवासं ॥ २१८ ॥ तं परिवालइ राया, सिरिसेणो जो सुसीयलकरहिं । परिपूरियलोयासो, ससि व्व संजणियपव्वभरो ॥ २१९ ॥ जोण्ह व्व तस्स संजणियसयलजणनयनमाणसाणंदा । उल्लासिय कुमुयभरा, कुलगयणुज्जोयसंजणणी ॥ २२० ।। निम्मलसीलालंकारलंकिया कयविवेइजणतोसा । सिरिकंता आसि पिया, सिरि व्व कंता सुगुणवंता ।। २२१ ॥ तीए सह कमलदलदीहलोयणाए सुहाए सेवंतो । इंदाणीए इंदो व्व नरवई गमइ जा कालं ॥ २२२ ॥ तावनदिणे अवरण्हसमयसमुचियविहिं करेऊण । अंतेउरमायाओ, दटुं तं दुक्खियं देविं ॥ २२३ ।। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं निस्सद्दं रुयमाणि, वामकवोले निलीणपाणि च । पुच्छइ पुणो पुणो संभमेण संकंततद्दुक्खो ॥ २२४ ॥ पुन्निमससिबिंबं पिव, दिणयरकिरणप्पहावपहयपहं । उव्वहसि मुहं मह कहसु देवि ! सहस च्चिय किमेवं ॥ २२५ चंडासिदंडखंडियअरिमुंडपयंडबाहुदंडे वि । मइ सन्निहिए को तुह, पराभवं सामिणि ! करेइही || २२६ ।। सत्तंगमिणं रज्जं तुह चेव इओ वि परिभवो जइ ते । तत्थ न दोसो बहुसत्तिखंडओ खंडणीओ मे ॥ २२७ ॥ चित्तं तुह सहियणमाणसेसु संकंतमेव सुद्धेसु । तत्तो वि देवि ! कह पणयभंगसंभावणं कुणिमो ॥ २२८ ॥ दासीपयम्मि जाओ सवत्तिओ ताओ तुज्झ आणाए । चिट्ठति सयाकालं, ता भण किं कारणो सोओ ? || २२९ परिपुच्छिया वि एवं जाव न सा उत्तरं नरवइस्स । लज्जाइ ओणयमुही, करेइ तो से सही भणइ || २३० || देव ! तए जं भणियं, तहेव तं सव्वमेत्थ किंतु इमा । दइवाइत्ते कज्जम्मि सामिणी कुणइ अणुबंधं ॥ २३१ || तं पुण तुज्झेव परं, जइ सज्झं पउरविक्कमधणस्स । पुण्णोदयनियइसहावभावसंजोगसब्भावे ॥ २३२ ॥ अज्ज मए सह पच्छिमदिणम्मि देवी पुरस्स वरलच्छीं । अवलोइउमारूढा, नियपासायग्गसिहरम्मि || २३३ || नाणाविहपुरवइयरमवलोयंतीए कस्सइ वणिस्स । दट्ठूण बालए नियगिहम्मि कीलंतए झत्ति ।। २३४ || अद्धव्वयाए नियमाउयाए विविहाहिं चारुभणिईहिं । ण्हावण - भोयण - मंडणमाई कज्जे निजुज्जति ॥ २३५ ॥ मं भणिउ पारद्धा, हला हला पेच्छ पुन्नवंतीए । एईए इभे बाले, कीलते विविहकीलाहिं ॥ २३६ || तह एसा वि इमाणं, जणणी परमं पमोयमावन्ना । पेच्छसु जह परिकम्माई नियसुयाणं करावेइ ॥ २३७ ॥ ता सहि ! मन्ने हं मह, अहण्णियाए समान अवरित्थी । भूया भविस्सइ वा, अत्थि व इह जीवलोयम्मि || २३८ जा नहसिरि व्व रवि- इंदुरस्सिसंसग्गनिहयतमनियरा । तणयप्पवाहउवहणियनिययनीसेसदुहभारा ।। २३९ ।। तक्कीलणेण ललिएण मुद्धहासेण मम्मणगिराए । न लहामि सुहं कइय वि, पभोयभरनिब्भरमणा हं ॥ २४० ॥ रज्जं जरो व ता मे, विभवो वि पराभवो व्व पडिहाइ । सोहग्गं दोहग्गं व पुत्तपरिवज्जियाइ सहि ! || २४१ || सव्वसुहमूलभूयं, एक्कं मोत्तूण अज्जउत्तस्स । सपसायदंसणं मह, अवरं सुहहेउ नो किंचि ॥ २४२ ॥ एवं निवेइऊणं, पासाओवरितलाओ ओयरिडं । सोयहरं आगंतुं, सेज्जाइ दुहद्दिया पडिया ॥ २४३ ॥ १० या य म सामिण ! पसीय मह सुणसु एक्क विण्णत्तिं । मुंचसु सोयं भणिउं निवं उवायं विचिंतेमो ॥ २४४ एवं पडियाण पुणो, न होइ थेवा वि कज्जसंसिद्धी । इय भणिया वि न बुद्धा, मुद्धा ता किं करेमि ति ॥ २४५ इय तं सहीमुहाओ, सुणिउं देवीए संतियं दुक्खं । अद्दाए पडिबिंबं व झत्ति निवइम्मि संकतं ॥ २४६ ।। ता सोय-भयावूरिज्जमाणहियओ निरुद्धगलसरणी । खलिरक्खरेहिं राया, देविं भणिउं समादत्तो || २४७ ।। मा मा मयंकमुहि ! होहि दुक्खवसवत्तिणी हढेण जओ । जिणिऊण दइवमेयं, कज्जं साहेमि तुह झत्ति ॥ २४८ जओ - ताव च्चिय दइवं कज्जसिद्धिविग्घं जणेइ नो जाव । सप्पुरिसा तुलियसदेहजीविया आरुहंति तयं ॥ २४९ ॥ जेसिं इला वि किल गोपयं व तियसा वि हुति दास व्व । अंजलिजलं व जलही, गंडोवलओ व्व सुरसेलो || २५० Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिसेणकहा तेसिमसज्झं किं होज्ज सुयणु ! एगंतविक्कमधणाण । नियतेयलहूकयचंडकिरणकरनियरपसराण ॥ २५१ ॥ तो भणइ पई देवी, सामिय ! मइ जइ करेसि कारुन्नं । तो नियसरीरपीडं, वज्जिन्तो जयसु कज्जम्मि ॥ २५२ तो भणइ नरवई देवि ! तुज्झ आणावडिच्छिओ अहयं । जह भणसि तह करिस्सामि कीस तं कुणसि भयमेयं ? ॥ २५३ दठूण साइसयनाणसंपयं किंपि मुणिवरं पच्छा । तं पुच्छिऊण नाऊण संतईविग्घहेउं ते ॥ २५४ ॥ तप्पडिघायणहेउम्मि उचियकज्जम्मि उज्जमं काहं । मा होसु उस्सुया तं, इंदीवरपत्तसमनयणे ! ॥ २५५ (जुयल) इच्चाइकोमलगिराहिं देवमभिनंदिउं हरियदुक्खं । आलिंगिऊण तम्मंदिराउ निवई गओ तुट्ठो ॥ २५६ ॥ अन्नम्मि दिणे उज्जाणमागओ सो समं सपणईहिं । नाउं तं कयसोहं, उद्दामवसंतलच्छीए || २५७ ।। हरिसल्लसंतसललियगीयगणे नज्जमाणतरुणियणे । वज्जंतपडह-मद्दलफडपायपयट्टपेक्खणए ।। २५८ ॥ तत्थच्छन्तो सुइरं, रममाणो विविहरूवकीलाहिं । अंबरयलाओ पासइ, मुणिवरमेगं अवयरंतं ॥ २५९ ।। तिव्वतवजलणनिद्दड्ढकम्मवणमसमओहिनाणधणं । धण-कणयपमुहसंपयविवज्जियं निज्जियकसायं ॥ २६० ॥ दठूण भत्तिभरनिब्भरो निवो पणमई तयं सहसा । सह संगयसयलजणेण सहरिसं हरिससोयसमं ॥ २६१ ।। समणगुणभासमाणं, माणविहीणं पि माणजुत्ततणुं । नामेण अणंतमणंतसत्तजणियाभयपयाणं ॥ २६२ ।। दाऊण धम्मलाभं, मुणी वि रन्नो सपरियणस्स तहिं । सुद्धसिलाइ निविट्ठो, तमालतरुनियडदेसम्मि ॥ २६३ ॥ एत्तरम्मि राया, भणइ मुणिं उचियभूमियाइ ठिओ । अम्हारिसाण पुण्णोदएण तुब्भे इह उवेह ।। २६४ ।। अन्नत्थ वि गंतूणं, दूरे वि जओ जगुत्तमगुणाण । तुम्हाण पायजुयलं, अम्हेहिं वंदणिज्जं ति ।। २६५ ॥ ता अम्हाण वि किर पुव्वसुकयसंभारसंभवो कोइ । अत्थि मुणीसरपहुपायपंकयं जेहिं तुह दिह्र ।। २६६ ॥ पावं विहुणेइ मई जणेइ निहणेइ दुरियदंदोलिं । दलइ अलच्छि मेलवइ वंछियं दंसणं तुम्ह ॥ २६७ ।। पुच्छामि अओ मह कइय नाह ! होही चरित्तपरिणामो । संसार-जलहिमेयं, जेण तरिस्सामि लीलाए ॥ २६८ ॥ तच्चित्तगयं भावं, विया.णऊणं मुणी वि निद्दिसइ । रज्जधुरधरणजोग्गो, पुत्तो तुह जाव संभविही ॥ २६९ ॥ पुत्तस्स य उप्पत्ती, तुह नत्थि नरिंद ! संपयं चेव । तदसंभवम्मि हेडं, जइ पुच्छसि सुणसु तं पि तओ ॥ २७० एसा तुहग्गमहिसी, एत्थेव पुरम्मि आसि नरनाह ! । देवंगयस्स वणिणो, सिरीए भज्जाए पियपुत्ती ॥ २७१ ॥ नामेण सुणंदा रूव-वि गयगुणजणियजणमणाणंदा । वस॒ती सा नवजोव्वणम्मि अन्नम्मि दियहम्मि ।। २७२ ।। पेच्छइ तारुन्नभरे, गब्भभरोवहयदेहलायन्नं । तप्पीडाए परिपीडियं च अइदीणमेगित्थिं ।। २७३ ।। तं दह्र नियजोव्वणमयमत्ता कुणइ एरिस नियाणं । जम्मंतरे वि मा हं, पढमवए एरिसी होज्जं ॥ २७४ ।। जेण वराई एसा, जुवजणमणनयणहारितारुण्णं । पत्ता वि पेच्छ गब्भेण पाविया केरिसमवत्थं ॥ २७५ ।। नीरोगा वि हु रोगाउर व्व कयमंदमंदसंचारा । वररूवा वि हु दुईसण व्व बीभच्छमुत्ती य ॥ २७६ ।। एवं च कयनियाणाइ तीए न य चिंतियं जिणमयम्मि । थेवं पि इमं विहियं, गुरु-दुक्खनिमित्तयमुवेइ ॥ २७७ एत्तो च्चिय परिहरिओ, नियाणबंधो जिणागमण्णूहिं । गंधो वि कालकूडस्स किं न पाणीण पाणहरो ? || २७८ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तत्तो य अणालोइयअपडिक्कंता तयज्झवसिया उ । सुद्धं सावगधम्मं, पालिय कालंतरम्मि मया ॥ २७९ ॥ देवित्तेणुववण्णा, सोहम्मे तत्थ देवभवजोग्गं । अणुहविय सुहं तत्तो, चुया य दुज्जोहणनिवस्स ।। २८० ।। सुभगाए देवीए जाया दुहियत्तणेण सिरिकता । जा तुह नियजीयाओ, वि वल्लहा अग्गमहिसि त्ति ।। २८१ ।। एसा य तन्नियाणाणुभावअन्तरियपुत्तजणणसुहा । न लहइ नरवर ! नवजोव्वणम्मि अंगुब्भवुप्पत्तिं ॥ २८२ ॥ दियहेसु केत्तिएसु वि गएसु उवसंतसयलतद्दोसा । संपाउणिही तणयं, भवणभरुद्धरणधोरेयं ॥ २८३ ।। धीरे धराभरं धरिय तम्मि पुत्तम्मि रायकयकिच्चो । अक्खयसोक्खं मोक्खं, जाहिसि तं पत्तजिणदिक्खो ।। २८४ सोऊण वयणमेयं, मुणिस्स निवई पमोयमावन्नो । निययावासं वच्चइ, चारणसमणं पणमिऊण ।। २८५ ॥ निययाभिप्पेयपयं पत्तो साहू वि कहिय नरवइणो । देवीए पुव्वभवं, संखेवेणं समियपावो ॥ २८६ ।। राया वि गमइ कालं, पालंतोऽणुव्वयाइगिहिधम्मं । जिणपूयामुणिसुस्सूसणाइवावारहयविग्घो ॥ २८७ ॥ अन्नम्मि दिणे नंदीसरस्स पव्वम्मि आगए रम्मे । देवीए समं राया, पत्तो जिणनाहभवणम्मि ॥ २८८ ॥ कयउववासो जिणवरपडिमाणाढत्तयम्मि ण्हवणम्मि । तदधो भागे होउं पहाओ ण्हाया य सा देवी ।। २८९ ।। तत्तो परमपमोयं, उव्वहमाणो गओ निययगेहं । नियकज्जसिद्धिसंभावणाए संजायरोमंचो ॥ २९० ॥ अह अन्नया य केसु वि दिणेसु सुहसुमिणसूइओ गब्भो । संभूओ देवीए तीए कयगुरुमणाणंदो ॥ २९१ ।। तस्सणुभावेण इमा, सुंदरदेहा वि अहियलायण्णा । जाया पुन्निमरयणि व्व उदयअंतरियससिबिंबा ॥ २९२ ।। अहवा अंबुधरालि व्व मज्झ विलसंतगूढरविबिंबा । भूमि व्व कप्पतरुबीयलंकिया मज्झभागम्मि ।। २९३ ।। तओ य - सविहविहुग्गमरिद्धिं जलनिहिवेल व्व वीइनिवहेहिं । सा कहइ गब्भवुड्डिं, पइदिवसोवचियअंगेहिं ।। २९४ ।। राया य निययसिरिपहरिसाण उचियट्ठमंगलं तीए । सकुलक्कमेण कारवइ नट्टगेयाइ सोहिल्लं ॥ २९५ ॥ जाए पसूइ दिवसे सुवार-तिहि-रिक्ख-जोग-करणम्मि । उच्चसुहग्गहदिट्ठम्मि पवरलग्गम्मि लग्गम्मि ।। २९६ सुहहोराए धम्मं दय व्व कप्पडुमंकुरमिलणं व्व । नाणसिरी इव चारित्तमुत्तमं जणइ सा पुत्तं ।। २९७ ।। (जुयलं) उवसंतरयं गयणं, दिसा पसन्ना य सुरहिवायवहो । दिणयरकरा अचंडा, संजाया तम्मि दियहम्मि ।। २९८ ॥ वद्धाविज्जसि सुयसंभवेण सोउं जणस्स भणइ निवो । मोत्तुमिह मं सुयं मम, दइयं च परं जणो लेउ ।। २९९ पहय-पडु-पडहपाडाणुसारवज्जंतमद्दलुद्दामं । नच्चंतवरविलासिणिपीणथणुल्लसिरहारलयं ।। ३०० ।। गिज्जंतविविहमंडलगेयज्झुणिजणियजणमणाणंदं । दिज्जंतपउरदाणाणंदियबहुभट्ट-चट्टजणं ।। ३०१ ॥ उम्मुक्कसुंककरदंडचड्डणं मुक्कगुत्तिवंदं च । रुद्धभडभंडणं जणियमंडलं हट्टसोहाहिं ॥ ३०२ ॥ कारावियं महंतं, महापमोएण राइणा तत्तो । वद्धावणयं सुयजम्मपिसुणयं सयललोयस्स ॥ ३०३ ।। (कुलक) अवि य - बहुललियविलासेहिं, बहुनडविडभडविसिट्ठहासेहिं । ववहियबहुदेसागयजणकयगुरुदाणमाणेहि ॥ ३०४ ।। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिसेणकहा १३ पहरिसमउव्वरइ निम्मिओ व्व सविलाससोक्खमइओ व्व । सो मासो तस्स नराहिवस्स लीलाइ वोलीणो ।। ३०५ ।। (जुयलं) देवगुरुगरुयसम्माणपुव्वयं तयणुलोयपच्चक्खं । सिरिधम्मो त्ति नरिंदो, नाम से कुणइ सुहदिवसे ।। ३०६ ॥ लालिज्जतो पंचहिं धाईहिं विविहलालणाहिं सो । वड्ढंतो य कमेणं, संजाओ अट्ठ वारिसिओ ॥ ३०७ ।। जो य - मित्तोदयपत्तपिहुप्पहावअक्खंडसयलकलनिलओ । वंकत्तमंतरेण वि, पावियसंपुण्णसुहदेहो ॥ ३०८ ॥ निच्चमुदिओदओ नो तमेण कइया वि खंडियपभावो । दूरं कलंकमुक्को, रेहइ अप्पुव्वचंदो व्व ॥ ३०९ ॥ (जुयलं) कय चूलोवणयाई, सुहगुरुसंसग्गिसंगहियविज्जो । सो सव्वविण्णुगुणिगव्वखव्वयं कुणइ अन्नेसिं || ३१० ॥ समईयबालभावो, सो थेवदिणेहिं जोव्वणं पत्तो । सोहइ महिं व दटुं, सग्गोइन्नो सुरकुमारो ।। ३११ ॥ परिणाविओ य पिउणा, पभावई नाम रायवरकन्न । तरगुणपेरियमणसा, अहिसित्तो जोवरज्जे य ॥ ३१२ ।। कालंतरेण तस्स वि, पभावई गब्भसंभवो पुत्तो । सिरिकतो नामेणं, जाओ नीसेसगुणजुत्तो ॥ ३१३ ॥ सिरिकता कंतकवोलभत्तिसविचित्तपत्तवल्लीण । लिहणे अक्खित्तमणो, सयं च कालं गमइ राया ।। ३१४ ।। अन्नदिणे नियगिहवरगवक्खमज्झे सुहासणासीणो । पेच्छइ सघरे कंतं, पसाययंतं वणिजुवाणं ॥ ३१५ ॥ नाणाविहचाडुसएहिं तह य वयणेहिं नेहसारेहिं । पायप्पणामकरजोडणाइचिट्ठाविसेसेहिं ।। ३१६ ॥ एवं पि जा न तूसइ, सा सुमुही ताव एस अप्पाणं । अह निंदिउं पयट्टो, विलक्खओ गरुयसद्देण ।। ३१७ ॥ हा हा !! हय म्ह इह अंगणाए कज्जेण मुक्कअहिमाणो । दीणत्तं अवलंबिय, परिहरिय विसिट्ठइट्ठपहं ।। ३१८ परिचइडं धीरत्तं, सुहब्भमाओ वयामु दुक्खपहं । किच्चाकिच्चविभायं, अमुणंता गहगहीय व्व ॥ ३१९ ।। ता धी धी मं धी धी, इमं च धी धी मई तह ममेयं । जो सप्पिओ हमेवं, सुनिप्पिहाए वि एयाए ॥ ३२० ।। तह एयाए च्चिय चाडुकम्मकरणम्मि जीए विनिउत्तो । ताए मईए कज्जं न मज्झ नो महिलियाए वा ॥ ३२१ ॥ किंच - भोगेहिंतो सोक्खं, भवम्मि इत्थीण ते य आयत्ता । ताओ य जइ नराणं, न व से कत्तोच्चयं सोक्खं ॥ ३२२ ॥ ता मूढ च्चिय अम्हे, संसारे जे करेमु सुहबुद्धिं । तीए पिसाइया इव, छलिया मन्ना वि मोय इमा ।। ३२३ ।। अन्नं पि अत्थि सोक्खं, अपरायत्तं सुहाणुबंधिं च । परिचत्तकामभोगा, वि जम्मि निरया महामुणिणो ॥ ३२४ ॥ तहाहि - नेवऽत्थि चक्कवट्टीण तं सुहं नेव देवराईण । जं सुहमिहेव साहूण लोयवावाररहियाण ।। ३२५ ।। । ता तम्मि चेव जुत्तो, जत्तो सत्ताण बुद्धिमन्ताण । एवं भणमाणो च्चिय, समुट्ठिउं ताउ ठाणाउ ॥ ३२६ ॥ जा नीहरइ गिहाओ, ता खलिओ तीए धाविउं एसो । वत्थंचलम्मि धरिउं, तो भणइ इमो वि तस्समुहं ।। ३२७ भद्दे ! भोगेसु वि णिप्पिहाण वलणं न मुणिवरमणाण । जइ पर जलहिजलाइ, वलंति नियठाणचलियाई ॥ ३२८ जह कट्ठलेठ्ठपाहाणमाइदव्वेसु कणयकयबुद्धी । धत्तूरयजणियभमेण भमइ लोगो पणट्ठप्पा ॥ ३२९ ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं पयईए असारम्मि वि, कलत्तपुत्ताइवत्थुनिवहम्मि । सारत्तं तह कप्पइ, रागविगप्पेण एस जणो ।। ३३० ॥ सो पुण मज्झ पणट्ठो जहट्ठियं वत्थु-चिंतयंतस्स । उल्लसियविवेयपईवनिहयमोहंधयारस्स || ३३१ ।। ता मुंच ममं माणिणि !, विरत्तचित्तं भवाओ एत्ताहे । अंतग्गयबंधणरहियमहव को मं धरिउमीसो ॥ ३३२ ।। एवं निरवेक्खगिराहिं भणिय तं गुरुसमीवमह गंतुं । अरहंतकहियदिक्खं, गिण्हइ एसो विसुद्धप्पा ॥ ३३३ ।। तं अच्चब्भुयचरियं, राया दठूण विम्हिओ भणइ । भो भो अउव्वमेयस्स सत्तसारत्तणं किंपि ॥ ३३४ ॥ जो नियसंपयमेयं, समं विलासेहिं तह नियपियाए । एक्कपए च्चिय मोत्तुं, वयं पवन्नो महाघोरं || ३३५ ।। अहव परिच्छेयपहाणचित्तवित्तीण पंडियनराण । जुत्तं चिय एवं लहुयकम्मया सुद्धबुद्धीण ॥ ३३६ ।। एवं पसंसिऊणं, निवो वि संजायचरणपरिणामो । निययाभिप्पायं कहिय मंतिसामंतमाईणं ।। ३३७ ।। सव्वपसत्थे दिवसे, सिरिधम्मं नियपयम्मि ठविऊण । आभासियसयलजणो, कारविय जिणिंदपूओ य ॥ ३३८ सिरिधम्म संठविउं, सोयभरत्तं तहेव सिरिकंतं । दिक्खं गओ महप्पा, पासम्मि सिरिप्पहमुणिस्स ॥ ३३९ ।। चरिऊण तवं घोरं, कमेण संपत्तकेवलन्नाणो । निट्ठवियसेसकम्मो, अक्खयपरमप्पयं पत्तो ।। ३४० ।। एवमिहऽन्ने वि नरा, लहुकम्माणो निमित्तमुवलभिउं । जं किंचि विरत्तमणा, चरिऊण वयं वयंति सिवं ।। ३४१ ।। ता भो भव्वा तुब्भे वि एत्थ जं किंचि पाविउं झ त्ति । वेरग्गस्स निमित्तं, होह चरित्तम्मि सुपउत्ता ॥ ३४२ ।। एवं सुणित्तु मुणिणो अणुसट्ठिमित्थं, जंपित्तु भालविणिवेसियहत्थजुम्मा । सव्वा सभा पणमिऊण पुणो भणाइ, साहेहि अग्गचरियं सिरिधम्मरण्णो ॥ ३४३ ।। (सिरिधम्मनिवो) ताहे कहेइ साहू, सिरिधम्मो पिइविओयदुक्खत्तो । न करेइ रज्जचिन्तं, न य देहठिई न कीलाओ ॥ ३४४ ॥ तो कहकहमवि मंतीहिं बोहिओ केत्तिएहि वि दीणेहिं । मंदीकयमण्णुभरो, रज्जठिई काउमाढत्तो ॥ ३४५ ॥ देहट्ठिइमाईयं, च सव्वमुचियं जमित्थ करणिज्जं । मंतीहिं पेरिओ तो, पुणो वि दिसविजयजत्ताए ॥ ३४६ ॥ नियमूलबलं काउं तलम्मि बाहिं धरित्तु सिबिरादि । मज्झे सामंतबलं, चलिओ राया दिसिजयत्थं ॥ ३४७ ।। पवणुल्लासियकरिकुंभलग्गसिंदूररेणुरत्ताओ । जाणियनाहमुवितं, दिसाओ रागं व दंसेंति ॥ ३४८ ।। अक्कमिऊणं सत्तू, सढे हढेणं पसायओ नमिरे । लुद्धे धणेण दुट्टे, दंडेण स साहए पुहइं ॥ ३४९ ॥ कइहिं वि दिणेहिं एवं धरणिं वसवत्तिणिं करेऊण | चलिओ सदेसहुत्तं, गामागरनगरमझेण ॥ ३५० ॥ अह अन्नया समावणिदेसे आवासियम्मि सेण्णम्मि । गामुवकंठोववणे, मुणिमेगं पासइ नरिंदो ॥ ३५१ ॥ गंतूण तस्समीवं, भत्तिभरोणयसिरो पणमिऊण । पुच्छइ तं भो मुणिवर ! वयगहणे तुज्झ को हेतु ? ॥ ३५२ ।। दटुं पसंतमुत्तिं, नरनाहं तो सगग्गरगिराए । जंपइ जई नरीसर ! मह चरियं सुणसु सच्चरियं ॥ ३५३ ॥ अत्थि इहेव विदेहे, पुरी विसाला विसालगुणकलिया । तत्थ जओ नरनाहो, तब्भज्जा जयसिरी नाम ।। ३५४ ।। तीए समं भोगपसत्तमाणसो रज्जकज्जविमुहो य । नियगोत्तिएहिं भेइयमंतिअमच्चाइलोएहिं ।। ३५५ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिधम्मनिवो निव्वासिओ सरज्जाओ सव्वमुद्दालिऊण रज्जसिरिं । पडिसिद्धअन्नदेसट्ठिई वि कंतारमाविसइ ॥ ३५६ ।। (जुयल) पाविय तवोवणं किं पि तत्थ जायाए परिगओ राया । तीय च्चिय आणियवणफलाइकयपाणवित्ती य ॥ ३५७ ॥ अच्छंतो कइयाइ वि, देवीए कुणइ गब्भसंभूई । सुस्सुमिणावेइयपवरपुत्तउप्पत्तिसंजणणिं ॥ ३५८ ॥ देवी पुण पुव्वं पिव, नरिंदकज्जम्मि उज्जमसणाहा । अगणंती गब्भदुहं, सोमालसरीरपीडं च ।। ३५९ ॥ फल-फुल्ल-मूलकंदाइआणणत्थं वणम्मि दूरे वि । वच्चइ ताव स बाहुल्लयाए नियडे तमलहंती ॥ ३६० ।। एवं वेलामासे वि एगदियहम्मि गिरिनिउंजम्मि । जाव गया ता पेच्छइ, नवजाए सीहसिसुनिवहे || ३६१ ॥ तन्नियडे नाणाविहफलपरियरियं तहेव कयलिवणं । सिंही उ कत्थ व गया, वणम्मि भक्खाइ कज्जेणं ॥ ३६२ ॥ एत्थंतरम्मि भयभीयमाणसाए झड त्ति से जुयलं । सुयदारियाण गम्भाओ निवडियं फुरफुरेमाणं ॥ ३६३ ।। तत्तो भएण एसा, नियवक्कलउत्तरिज्जदेसेण । पुत्तं गहिऊण गया, सुया य न य लक्खिया तीए ॥ ३६४ ॥ गयबंधणत्थमेत्थ य, वणम्मि एत्तो य केरलो नाम । राया समागओ आसि तस्स पुरिसेहिं सा दिट्ठा ॥ ३६५ संतट्ठवणमिगी इव, पलायमाणा इमेहिं तो गहिउं । नीया रायसयासे, भणिया रन्ना य ते पुरिसा ॥ ३६६ ।। मुंचह एयं गहिउं, वक्कलबद्धं इमीए जं किंचि । तो तेहिं वि सा भणिया, जाहि तुमं मोत्तुमेयं ति ।। ३६७ ।। तत्तो मोत्तूण गया, एसा तव्विरहदुक्खभयघत्था । केरलनिवो य ससुओ, सिरिकरनियनयरमणुपत्तो ॥ ३६८ ।। सिरिदेवीए समप्पइ, तं तणयं भणइ एस तुह पुत्तो । वणदेवयाए दिण्णो, कहियव्वं कस्स वि न चेवं ।। ३६९ वद्धावणयं तत्तो, कारावइ सो महाविभूईए । जाणावइ य जणम्मी, देवी पच्छन्नगब्भा सि || ३७० ॥ वोलीणम्मि य मासे, तो वणराओ त्ति कुणइ से नामं । वुड्ढि गओ कमेणं, देहेण कलाकलावेण ॥ ३७१ ।। जोव्वणभरम्मि च ठिओ, अच्चब्भुयरूवविमललायण्णो । नय-विणयसीलसुविसुद्धबुद्धिगुणपयरिसं पत्तो ॥ ३७२ अह अन्नया स केरलराएण समं तमेव जाइ वणं । करिबंधणकज्जेणं, पेच्छइ य तहिं भमंतो य ॥ ३७३ ।। उप्पण्णविमलकेवलबलावलोइयसमग्गतइलोक्कं । सुरअसुरखेयराहिवमणुस्सनिवेहेहिं कयपूयं ॥ ३७४ ।। धम्मं सदेवमणुयासुराए परिसाए वागरेमाणं । सव्वण्णुमेगमुणिवरमणंततवतेयदिप्पंतं ।। ३७५ ।। तं दठूण स केरलराएण समं मुणीसरं कुमरो । तिविहेण पणमिऊणं, उवविट्ठो धम्मसुणणत्थं ॥ ३७६ ॥ एत्थंतरम्मि तावसजणस्स मज्झम्मि सो जयनरिंदं । जयसिरिदेवीए जुयं, पासइ साणंददिट्ठीओ ।। ३७७ ॥ बाहजलभरियनयणो, पहरिसपूरिज्जमाणहियओ य । जाओ तहेव ते य वि, तं दर्छ तारिसा जाया ।। ३७८ ॥ अन्नं च तत्थ सुपसंतमुत्तिअवलोयणेण वरमुणिणो । तिरिया वि चत्तवेरा, सुगंति धम्मं विसुद्धप्पा ॥ ३७९ ।। तेस् य खणंतरेणं, नाणाविहतिरियनिवहपरियरिया । ओयरिऊणं सीहक्खंधाओ सकन्नया। नया एगा ।। ३८० ॥ नवजोव्वणमारूढा, देवाण वि चित्तखोभसंजणणी । अइसाइरूवलायन्नपुन्नसोहग्गगुणकलिया ।। ३८१ ।। पविसित्तु सभामज्झे, दाऊण पयाहिणाओ तिक्खुत्तो । अभिवंदिउं मुणिंदं, उवविट्ठा उचियदेसम्मि ।। ३८२ ॥ दठूण तं कुमारं, पमोयवसगा मणम्मि कुणमाणी । नाणाविहे विगप्पे, कुमरेण तहेव सा दिट्ठा ॥ ३८३ ।। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एत्थ खणे पत्थावं, लहिउं राया जओ भणइ साहुं । विणओ णओ निवेसिय सीसम्मि वरंजलीबंधं ॥ ३८४ ।। भयवं ! तइया पुत्तो मह देवीए कराओ केण हढो । कत्थ व अच्छइ संपइ, सुहं व दुक्खं व किं पत्तो ? ॥ ३८५ ।। का वा एसा इत्थी, माणुसिरूवा वि निययरूवेण । अमरासुररमणीण वि, मणम्मि वेलक्खयं जणइ ।। ३८६ ।। इत्थीभावसुलब्भं, किह वा भयमुज्झिऊण अइभीमे । सीहम्मि समारूढा, समागया वंदणत्थं वो ॥ ३८७ ।। को वा एस कुमारो, दिट्ठो वि जणेइ अम्ह आणंदं । एवं पुट्ठो साहु, भणइ निवं सुणसु नरनाह ! || ३८८ ॥ जो सो जयसिरिदेवीहत्थाओ सुओ हियो तया तुज्झ । वणरायदेवनामो, स एस कुमरो महाराय ! ॥ ३८९ ॥ केरलनरिंद-सिरिदेविपुत्तओ जणवएसु सुपसिद्धो । गयबंधणागएणं, केरलरन्न च्चिय गहीओ ।। ३९० ।। जाउ इमा परितुट्ठा, इत्थी एसा वि तुज्झ धूय त्ति । जयसिरिउयरुप्पन्ना, सीहरहा सुरकयभिहाणा ॥ ३९१ ।। सिंहीभयाओ जइया, तुह देवी पुत्तयं पसुया य । तइय च्चिय तग्गब्भाओ निवडिया पढमयं एसा ॥ ३९२ ॥ हरिदइयागुरुभयसंभमेणउब्भंतमाणसाए य । न य लक्खिया य देवीए निययगब्भाओ वि पडंती || ३९३ ॥ तत्थेव ठिया पडिया, देवी य पहाविया सुयं गहिउं । भवियव्वयानिओएण तत्थ पत्ता य सा सीही ॥ ३९४ ।। नियजायगबुद्धीए, तीए गहिऊण ससिसु मज्झम्मि । धरिया नियथणदुद्धं च पाइया निययपोए व्व ॥ ३९५ ॥ एवं च दंसणप्फंसणेण सिंहेसु चेव कयपीई । वुड्ढिं पत्ता तद्दुद्धपाणसंजायदेहबला ।। ३९६ ॥ आऊरियलायण्णा, चडिया तारुन्नए उदग्गम्मि । बाला बालमयारीविदेण जुया हरिम्मि गया ।। ३९७ ।। नियलीलाए गच्छंतएण रमणीयगयणमग्गेण । दिटठा य अन्नया चंडवेगनामेण खयरेण ।। तं बालं अवलोइय, तत्थेव ठिओ इमो तयासाए । परिचत्तदारघररिद्धिपरियणो रन्नदेसम्मि ।। ३९९ ॥ तीए अक्खित्तमणो, सीहगुहाए पसुत्तयं दर्छ । ता मज्झरत्तसमए, तं अवहरिऊण सो चलिओ ॥ ४०० ॥ गुहबहिदेसठिएण य, केण वि मोत्तूण घोरहुंकारं । रे रे जासि कहिं घेत्तुमेयमिय भणिय सो खलिओ ॥ ४०१ ॥ रुद्धा सव्वत्तो वि हु, दिसाओ सव्वाओ जेण देवेहिं । सोहम्मवासिदेवस्स अमरचूलस्स आणाए । ४०२ ॥ एसा तस्स उ भज्जा, जा ताओ नियाओ अक्खए चविउं । उप्पण्णा जयरायस्स पुत्तिया जयसिरिपियाए ॥ ४०३ सीहरह त्ति सुरेहिं, कयाभिहाणाइ कूरसत्ताण । मज्झे संवसमाणा, रक्खिज्जइ चरिमदेह त्ति ॥ ४०४ ।। ता एईए पायप्पणामकरणम्मि चेव अहिगारो । तुम्हारिसाण भो चंडवेग ! न उ अन्नकम्मम्मि ॥ ४०५ ।। नियभाउएण सद्धिं, उग्गतवं चरिय पाविही सिद्धिं । तत्थेव मुंच ता नियसेज्जाइ पवित्तमुत्तिमिमं ॥ ४०६ ॥ निद्दाखयं न वच्चइ, जाव इमीए तओ य सो खयरो । तव्वयणं काऊणं, निययट्ठाणम्मि संपत्तो ।। ४०७ ॥ देवेहिं इमा य पवित्तभक्खभोज्जेहिं पवरवत्थेहिं । साराभरणेहिं तहा, लालिज्जंती सुहेणेव ॥ ४०८ ।। कुसला सव्वकलासु वि, संजणिया जणणि-जणयरहिया वि । सहवासित्तेणेवं, तिरियाण वि वल्लहा जाया ॥ ४०९ इय सुणिऊण कुमारो, सीसम्मि कयंजली भणइ साहू । भयवं ! सिरिजयराया, जणओ जणणी जयसिरी य ॥ ४१० सीहरहा वि य भइणी, जेट्ठा मह आह मुणिवरो एवं । ता उठ्ठिऊण जणयं, जणणिं भइणिं च वंदेइ ॥ ४११ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिधम्मनिवो सीहरहा वि समुट्ठिय जणणिं जणयाण पडइ पाएसु । आणंदबाहजलभरियलोयणा तेऽवगृहति ।। ४१२ ॥ पुत्तं पुत्तिं च तहा, भणंति तह सोयगग्गरगिराए । धन्नो सि तुमं पुत्तय ! जो गहिओ केरलनिवेण ॥ ४१३ ।। सुहलालणाहिं तइया, सिरिदेवीए य लालिओ तह य । पडिवज्जिऊण पुत्तो त्ति गाहिओ तह कलाओ य ॥ ४१४ पुत्ति ! तुमं पि सपुण्णोदएण सीहीए वयणपडिया वि । संपत्ता न विणासं, तीए च्चिय पाविया वुड्ढि ।। ४१५ स च्चिय माया जाया, सुरेहिं तं रक्खिया सभवणे व्व । भीमारण्णे वि ठिया, सुहेण पत्ता य तारुण्णं ॥ ४१६ एमाइ सुणंतीए, तीए आवरणखयउवसमेणं । जायं जाईसरणं, तेणं नाओ य पुव्वभवो ॥ ४१७ ।। करतलकयंजलिउडा, तो भणइ मुणीसरं जहा नाह ! । जह भणियं तुब्भेहि, तहेव तं सव्वमविगप्पं ।। ४१८ ॥ अहवा केवलदिट्ठी, न चलइ कइया वि जइ वि हु चलेज्ज । नियठाणाओ मेरू, जलही व चएज्ज मज्जायं ।। ४१९ एत्तो च्चिय केवलनाणिदिट्ठभावेसु के वि जे मूढा । संदेह विवज्जासे, करंति ते वंचिया वरया ॥ ४२० ।। एत्थंतरम्मि केरलरायं आपुच्छिऊण कुमरो वि । मन्नाविऊण देवे, आभासिय सिंहमाई य ॥ ४२१ ॥ जणणि जणय भइणि भणइ समुठेह वंदह मुणिदं । मुंचह वणवासमिम, आगच्छह सिरिकरपुरम्मि ॥ ४२२ ।। (जुयल) तव्वयणेण तओ ते, समुट्ठिऊणं महामुणिं नमिउं । सिरिकेरलनाएणं, सह सिरिकरपुरमणुप्पत्तो ॥ ४२३ ।। वणरायकुमारेणं, तत्थ पवेसो महाविभूईए । कारविओ जणयाईण गरुयवद्धावणं तह य ॥ ४२४ ॥ केरलनरिंदमापुच्छिऊण अन्नम्मि सुहदिणे तत्तो । तस्स बलेण समेओ, विसालनयरीए संचरिओ ।। ४२५ ॥ अणवरयपयाणेहिं, संपत्तो तत्थ अरिबलेण समं । जाओ य दारुणरणो, सत्तुबलं बहु उवद्दविउं || ४२६ ।। नीसारिऊण य तओ, नयरीओ रिउबलं समग्गं पि । संठाविऊण पियरं, रज्जे चयमाणिउं तं च ।। ४२७ ।। सव्वजगसूरसिरिसूरराइणो नियसहोयरिं देइ । तेण य विच्छड्डेणं, पहाणलग्गम्मि परिणीया ॥ ४२८ ॥ केरलनिवस्स आणं, अणुवत्तितो सयं पुण कुमारो । सामंताइसमेओ, समागओ सिरिकरपुरम्मि || ४२९ ॥ तत्थ य धरणीनामं, नियसामंतस्स संतियं कण्णं । केरलरन्ना परणाविओ य दिन्नं च नियरज्जं ॥ ४३० ।। विजियंतरारिसेण्णो, रायमवि य तहाविहाण सूरीण | पासम्मि लेइ दिक्खं, तो सिक्खइ दुविहसिक्खं च ॥ ४३१ वणरायस्स वि जाओ, रज्जं नीईए पालयंतस्स । हरिणामा वरपुत्तो, धरणी देवीए सुहजुत्तो ॥ ४३२ ॥ नियजणणि-जणयभत्तो, गुणाणुरत्तो उदत्तवरसत्तो । निम्मलकलापसत्तो, कमेण अह जोव्वणं पत्तो ॥ ४३३ ।। इओ य - सीहरहाइ वि सह सूरराइणा निययकंतकंतेण । सोक्खं अणुहवमाणीए अट्ठ जाया कमेण सुया ॥ ४३४ ।। अट्ठण्ह सुयाणुवरिं, जाया पुत्ती य मइसिरी नाम । हरिणो साइ विइन्ना, नियभाइसुयस्स रइरूवा ॥ ४३५ ।। वीवाहिया य तेणं, महाविभूईए सोहणे दिवसे । अन्नम्मि दिणे वणरायदेवरन्ना वि नियरज्जं ॥ ४३६ ॥ संकामिऊण पुत्ते, हरिम्मि नियभइणिभइणिनाहेहिं । सह सुव्वयगुरुपासे, पव्वज्जा रायपडिवन्ना ।। ४३७ ।। जो सो वणरायनिवो, सो अहयं संपयं वयपवन्नो । दोण्ह भवाण सरूवं, दिळं जेणेगजम्मे वि ॥ ४३८ ।। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तहा हि - जयरन्ना किर जाओ, जयसिरिदेवीए जायमेत्तो य । केरलरन्ना गहिओ, सिरिदेवीए य पुत्तो त्ति ॥ ४३९ ।। जा य किर मज्झ भइणी, सा पुण जाया वि निययजणणीए । न य जाणिया मणुस्सी वि पालिया सीहिणीए वणे ।। ४४० ता चिंतिउं पि तीरइ, न चेव कम्माण जो कडुविवागो। सो वि इह अणुभविज्जइ, भवम्मि भीमम्मि जंतूहिं ।। ४४१ वोसिरिऊण पुरीसं व जाइअं वा न खाइ नहरत्था । न य गंधबुद्धसत्ता, विसं परं वा मुणंति हरी ॥ ४४२ ॥ ता तं न अत्थि संभवइ जं न देहीण कम्मुणा एत्थ । पोयाण व वाएणं, हियमहियं वा भवसमुद्दे ॥ ४४३ ॥ ता जयसु तह नराहिव ! कम्मदुमुम्मूलणं जहा होइ । दुक्कम्महेउगइआगईओ जेणं न हुंति भवे ॥ ४४४ ॥ सिरिधम्मदेवराया, तं सोउं जायसुद्धबुद्धिधणो । नमिऊण मुणिं सेणाइ सह गओ सिरिपुरं तयणु ॥ ४४५ ॥ जम्मि दिणम्मि स पत्तो, राया कारुण्णेण जगस्स वि भाया। नियपट्टणि कयहट्टसुसोहे, सग्गपुरि व्व जणियजणमोहे ॥ ४४६ तम्मि दियहम्मि आबद्धवरतोरणा, जायगिहपंतिनच्चंतबहुघोरणा।। जाणदारेसु दीसंति कुंभावली, वयणकयसोहसुहपत्तपुप्फावली ॥ ४४७ ।। नाणाविलासरसभाववियक्खणाओ, नच्चंति चारुकरणेहिं विलासिणीओ। मंचाइमंचउवरिल्लयभूमियासु, नं आगयाओ तिदिवाओ सुरंगणाओ ॥ ४४८ ।। इच्चाइविभूईए, सिरिपुरनयरस्स सोहमिक्खंता । सघरसहट्टसदेउलसमढसपायारसपुरस्स ।। ४४९ ।। दाविज्जतो अंगुलिसएहिं अनलियगुणेहिं थुव्वंतो । मज्झं मज्झेण पुरस्स आगओ निययधवलहरं ॥ ४५० ॥ तत्थ य पुरवुड्ढाहिं, अणलियवयणाहिं दिन्नआसीसो । सिरिपुरमहिलाहिं तहा, कयबहुविहमंगलायारो ॥ ४५१ ।। मोत्तियपवालमाणिक्करयणरयणाए रइयसत्थियए । उवविट्ठो अत्थाणम्मि आसणे कणयसीहजुए ॥ ४५२ ।। तत्थ य - संभासिऊण कयदाणमाणसक्कारमाइववहारं । रायन्नगणं संपेसिऊण लग्गो सकज्जेसु ।। ४५३ ॥ अह विविहविलासुल्लाससंसग्गसारं, चिरमणुहविऊणं रज्जमिंदो व्व फारं । सरयसमयरम्मं तारिसं तं विलासं, लहुवलयमुवित्तिं पेच्छिउं मेघमालं ॥ ४५४ ॥ कयविसयविरागो, दिन्न अत्थत्थिचागो, विमलमइपहाणो अन्नया सावहाणो । वियरिय सिरिकते रायलच्छि सपुत्ते, सिरिपभमुणिपासे लेइ साहुव्वयं से ॥ ४५५ ॥ काऊण दुक्कतरं तवसंजमं च, आउक्खयम्मि अविराहिय धम्ममग्गो । मोत्तूण देहमिणमो पढमम्मि कप्पे, जाओ दुसागरठिई हरितुल्लदेवो ॥ ४५६ ॥ नामेण जो सिरिहरो त्ति सुरंगणाणं, नाणाविहाण ललिएसु अइप्पसत्तो । सोक्खेण सारजसदेवभवोच्चिएण, कालं गमेइ जिणभत्तिपरायणो सो ।। ४५७ ।। इय चंदप्पहचरिए, जसदेवंकम्मि बीयपव्वम्मि । उक्खित्तअत्थनिव्वाहणाए सव्वं परिसमत्तं ॥ ४५८ ॥ संपइ तइयावसरो, तम्मि य सिरिहरसुरो जहा चविउं । उप्पण्णो जियसेणो, तहेव साहेमि तच्चरियं ।। ४५९ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिधम्मनिवो १९ (तइओ पव्वो -) जो इह दळूण कसायतावसंतावियं जयं सयलं । वयणामयवुट्ठीए, दइयाइ निवावणत्थं च ॥ ४६० ॥ अमयमयपुनमुत्ती, अवयरिओ वेजयंतमुज्झित्ता । सो दोसुदयं हणिऊण कुणइ सुदिणे अउव्वससी ॥ ४६१ ।। धायइसंडे दीवे, पुश्विल्लमहाविदेहखेत्तम्मि । बहुमज्झदेसभाए, जो मेरुमहागिरी रम्मो ॥ ४६२ ।। तयविक्खाए विजयाई जाइं सोलस हवंति पुव्वाए । सोलस अवरदिसाए, वरपुरिनइ-सेलकलियाई ॥ ४६३ ।। सीयासीओयाणं, अठ्ठट्ठ उ ताई उत्तरदिसाए । अट्ठट्ठ दाहिणाए, जम्माए जाइं अट्ठट्ठ ॥ ४६४ ॥ ताणं पुव्विल्ले अट्ठयम्मि रमणिज्जनाम विजयम्मि । अत्थि पुरी वित्थिन्ना, सुभाभिहाणेण वित्थिण्णा ॥ ४६५ ता कुसुमअन्नपवरंसुयाइवत्थूहि लोयचित्ताई । आणंदइ तह य सुरूवनारिवरवेसभासाहिं ।। ४६६ ।। अजियजयाभिहाणो, राया तत्थासि जेण गरुययरे । अवराजिए वि जिणिऊण वेरिणो नाम सच्चरियं ॥ ४६७ ।। सव्वंतेउरवज्जा, गुरुयणकयचारुचरणपरिवज्जा । बंधुयणकज्जसज्जा, अजिया नामेण से भज्जा ॥ ४६८ ।। लायन्नरूवजोव्वणसोहग्गकलाकलावमाईहिं । सुरनारीहिं वि अजियाए जीए गुणसंगयं नाम ॥ १० ॥ ४६९ ॥ तीए सह तस्स पीई, निरंतरं सोक्खमणुहवंतस्स । नरवइणो लीलाए, कोई कालो वइक्कतो ॥ ४७० ॥ अन्नम्मि दिने रयणीए चरिमजामम्मि सुहपसुत्ता सा । गयवसहमाइसुमिणे, चोद्दस दतॄण पडिबुद्धा ॥ ४७१ ।। उठेऊण पहट्ठा, गंतूणं भत्तुणो सयासम्मि । साहेइ जहादिठे, सुमिणे सव्वे वि सुविसिढे ॥ ४७२ ।। तो सो वि हट्ठतुट्ठो, विमरिसिउं भणइ देवि ! तुह पुत्तो । चक्की जिणेसरो वा, होही बहु पुन्नपन्भारो ॥ ४७३ सोऊण इमं वयणं, पहरिसवसउल्लसंतरोमंचा । देवी वि भणइ मह नाह ! तुह पभावेण होउ इमं ॥ ४७४ ॥ एवं पडिच्छियं में, जं तुज्झ मुहाओ निग्गयं सामि ! । इय तब्भणियं बहुमन्निऊण सट्ठाणमणुपत्ता ।। ४७५ ।। सोहम्मकप्पवासी, इओ य सिरिहरसुरो सुरिंदसमो । अणुहविऊणं तब्भवसुहाई सुरसुंदरीहिं समं ॥ ४७६ ॥ नियआउयक्खयम्मी, तत्तो चविऊण तीए रयणीए । अजियादेवी उयरे, उदिण्णपुण्णो समुप्पण्णो ।। ४७७ (जुयल) जाओ नियसमएणं, कयं च से नाममजियसेणो त्ति । महईए विभूईए, वद्धावणयाइ कारविउं ॥ ४७८ ॥ जाएण तेण अहियप्पयावजुत्तेण दिव्वरूवेण । तह सोहिओ नरिंदो, जह दिवसो दिवसनाहेण ॥ ४७९ ॥ जणणीजणाणुरायं, पयडंती जगनमंसणिज्जा य । जाया पभायसंझ व्व तेण पुत्तेण रविण व्व ॥ ४८० ।। अच्चब्भुयगुणरिद्धीए कंतिमत्ताए देहलच्छीए । अणुवमकलाकलावेण तह य सियपक्खचंदो व्व ॥ ४८१ ।। वुड्ढि गओ कुमारो, उज्जलजसकिरणभरियदिसविवरो। अरिरायपक्खपंकयवणलच्छिविणासपरिहत्थो॥ ४८२ (जुयल) सव्वगुणसमुदयं पासिऊण पिउणा अईवतुट्टेण । अण्णदिणम्मि कुमारो, जुवरायपयम्मि अहिसित्तो ॥ ४८३ ।। सो तं पयमारूढो, सोहइ अहियप्पयावसोहाए । सरए निरब्भदेसे, समुग्गओ अंसुमालि व्व || ४८४ ॥ अह कइया वि नरिंदो, नमंतसामंतमउडकोडीहिं । मसिणीकयपयवीढो, अत्थाणसहाइ उवविट्ठो ॥ ४८५ ॥ जावच्छइ ताव तहिं, समागओ अजियसेण जुवराओ । पिउणो पणामपुव्वं, उवविट्ठो उचियठाणम्मि ॥ ४८६ ।। Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं विविहंगरक्ख - सामंत - मंति-भड - चडगराइलोएण । आभरणवत्थलंकरियवारविलयाण निवहेण ॥ ४८७ ॥ परिवारिया विरायंति तत्थ ते दो वि रायजुवराया । नियदेव - देविसहिया, सक्कजयंत व्व समवेया ॥ ४८८ || अवि य २० नियनियउरत्थलट्ठियमुत्ताहारेसु पत्तपडिबिंबा । दंसंति व नेहकथं, परोप्परं हिययसंवासं ॥ ४८९ ॥ देसागयविविहोवायणाणि मंडलियरायपहियाणि । चिट्ठेति पलोअंता, पिइ - पुत्ता तत्थ अत्था ॥ ४९० ॥ एत्थंतरम्मि सहसा, अत्थाणत्थं जणं समग्गं पि । अवहरियमणं मीलियनयणमकम्हा करेमाणो ॥ ४९१ ।। गुरुतरसम्मोहमहंधयारजणणाओ सव्वओ चेव । भुवणं पओससमउ व्व को वि असुरो समागंतुं ॥ ४९२ ॥ अवहरिऊण कुमारं, हारुज्जलकिरणरुइरवच्छयलं । नियपुन्नसंचयच्छाइयं च कत्थ वि गओ ज्झ त्ति ॥ ४९३ (विसेसयं) तक्खणमेवोवहए मोहतमे नरवई सभं दद्धं । पुत्तविहूणं सव्वं, सभाजणं भणिउमादत्तो ॥ ४९४ ॥ भो भो ! किमेवमच्चब्भुयं इमं जायमेत्थ अत्थाणे । अत्थाणे च्चिय अवहारकारणं मज्झ जायस्स ।। ४९५ ।। भो भो सामंता अंगरक्खगा मंतिणो अमच्चजणे । पेच्छंताण वि अम्हाण कत्थ पुत्तो महं नीओ ? || ४९६ ।। रे रे पाइक्का लहु कहेह पुत्तं जओ विणा तेण । रविण व्व मज्झ भुवणं, तमसावरियं व पडिहाई ॥ ४९७ || गरुयपरक्कमसारा वि होइऊणं नरेसरा तुब्भे । मह तणए हीरंते, कहण्णु अपरक्कम व्व ठिया || ४९८ ।। नियबुद्धिविहवनिज्जियसुरगुरुणो मंतिणो कहं तुम्ह । सा बुद्धी पम्हुट्ठा, हीरंते मज्झ तणयम्मि ॥ ४९९ ॥ अहह महामोहविमोहियाण तुम्हम्ह पेच्छमाणाणं । सव्वाण वि मज्झगओ, पुत्तो केणावि कह हरिओ || ५०० || अहवा जायमिमं चिय, निदरिसणं पयडमेव मज्झ सुओ। जह अवहरिओ केण वि, जमो वि जीवं तहा हरइ ।। ५०१ अह जाणिउं जणाओ, अजिया वि सुयावहारवुत्तंता । सोएण तक्खणं चिय, विजिया वि मणुम्मणा जाया ।। ५०२ आगंतूणय रन्नो, सयासमेसा वि गरुयदुक्खत्ता । वियलंतअंसुसलिलोहसित्तथणवट्ठपावरणा || ५०३ ।। तह कह वि करुणसद्देण पलविउं तत्थ गाढमाढत्ता । तह तप्पलावसुणणेण तेण तिरिया वि दुक्खविया ॥ ५०४ बिउणयरुद्दीविय सोयपसरविवसीकओ नरिंदो वि । तं विलवंतिं दठ्ठे, अहिययरं विलविउं लग्गो ।। ५०५ ।। हा हा पिओ म्हि तुह आसि वच्छ ! ता मं विमोत्तु कत्थ गओ । उइए वि सहसकिरणम्मि सोयतिमिरं पवित्थरिडं || ५०६ वरमुवरि मज्झ पुत्तय ! पडउ गिरी जेण तक्खण च्चेया । वच्चामि चुण्णियंगो, दुहसयवीसारणं मरणं ॥ ५०७ मा पुण एसा अच्चंतदुस्सहा नरयजायणातुल्ला । जीवंतसल्लमिव तुह विओयवज्जासणी पडिया ।। ५०८ || ऊ तमेव मे वच्छ ! लच्छिकित्तीण तह य सोक्खाण । तइ वच्चंते तं पढममेव सव्वं गयं जाण ।। ५०९ ॥ ता एहि एहि मह देहि दंसणं सदयमाणसो होउं । सिग्घं पसीय पुत्तय ! जणणिं पि उविक्ख मा एवं ॥ ५१० कइया तयंगरूवं, विउले नयणुप्पले विसालं च । वच्छयलं बाहुजुयं च नयरपरिहोवमं अम्हे ॥ ५११ । अमियरससंदिमहुरयरभासियं ईसिहसियरमणीयं । जियवियसियारविंदं तुह मुहयंदं च पेच्छामो ॥ ५१२ || (जुयलं ) तं किंचि वि पुणदिणं सा रयणी का वि उग्गयसुरिक्खा । किं होही दच्छामो, जत्थ सुयं पुन्नजोए ।। ५१३ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेन निवो नियमायरं च सुपवित्तदंसणं पुत्त ! परिहरित्तु तुमं । मुच्छावियलं कत्थ व गओ सि गुरूवच्छलसुवच्छ ! ॥ ५१४ तुज्झावहारएण व सोएण कयत्थियं इमं जाय ! ता नेहि कयत्थत्तं, नियदंसणदाणओ सिग्धं ॥ ५१५ ॥ पयईए अहियधीरत्तधीजुओ वि हु नरीसरो एवं । सुयनेहेणं तव्विरहदूमिओ जाइ पुण मुच्छं ॥ ५१६ ॥ पुण लद्धचेयणो कह वि होइ मुच्छाए वियलिओ पुण वि । पडणुट्ठणे करितो, बीहावइ सयलसहलोयं ॥ ५१७ एत्थंतरम्मि पुण्णोदएण आगरिसिउ व्व तस्सेव । नरवइणो आयासेण आगओ चारणमुणिंदो ॥ ५१८ ॥ अह गयणयलाओ तमुत्तरंतमवलोयए नरवरिंदो । पजलंतं पिव उज्जलपसरियनियदेहतेएण ।। ५१९ ।। नरवइणो मोहतमं व हरिउकामो किमेस गयणाओ । पजलंतो नियतेएण अंसुमाली समोअरइ ।। ५२० ॥ कुमारावहारपिसुणियपुन्नविणासाण किंच अम्हाणं । संहरणत्थमकम्हा, नहाउ सोयामणी पडइ ॥ ५२१ ॥ विप्फुरिय विप्फुलिंगं, सक्केण उयाहु पेसियं कुलिसं । तक्खणभवजगजगडणसोयदइच्चं विणासेउं ॥ ५२२ ॥ किं वा हु कोइ देवो, अइतेयस्सी भवंतरसिणेहा । सुयविरहविहुरपडियं, नरवइमासासिउमुवेइ ॥ ५२३ ॥ एवं जणेहिं स मुणी, ऊहिज्जंतो नरिंदपासम्मि । आगंतूणुवविट्ठो, महासणे नरवइविइण्णे ।। ५२४ ॥ मणयं पणट्ठसोएण राइणा पणमिओ य भत्तीए । मुणिणा वि धम्मलाभो, से दिण्णो उब्भियकरेण ॥ ५२५ ।। तत्तो वत्थेण पमज्जिऊण सुद्धे महीयले राया । उवविसिऊण सविणयं, एवं भणिऊं समाढत्तो ॥ ५२६ ॥ जलवरिसणं व संतावियाण, दिव्वोसहं व रोगीण । मह निहिलहणं व महादरिद्ददुक्खडेयनराण ॥ ५२७ ।। तुह आगमणं मुणिवर ! अम्हाण सुपुत्तविरहतत्ताण । संजायं जम्मंतरसमुवज्जियपुन्नजोएण ।। ५२८ ।। अहवा विणा तवेणं, स एस नासो असेसकम्माणं । जाओ रिउक्खओ वा, विणा वि गरुयं रणारंभं ॥ ५२९ ॥ किसिकम्ममंतरेण वि, समग्गधन्नाण अहव निप्फत्ती । जं तुम्ह दंसणमिणं पहु ! जायमदिट्ठकारणयं ॥ ५३० ।। सक्काओ वि गरुययरं, मए पयं पत्तमज्ज मुणिनाह ! | पुन्नेहिं समहिओ तह जाओ भुयणत्तयाओ अहं || ५३१ जं मह अणुग्गहेच्छाए आगओ परुवयारबद्धरई । तं पुहु अहन्नयाणं, मणोरहाणं पि नो विसओ ॥ ५३२ ।। तं एवं भणमाणं, आह मुणी नरवरस्स अंगाओ । अमयमयवयणरयणाइ उद्धरंतो व्व सो य विसं ॥ ५३३ ॥ भो भो नरिंद ! सुयविरहदुक्खियं पासिऊण तं एत्थ । ओहिन्नाणेण समागओम्हि तवभूसणो नामं ॥ ५३४ ॥ जेणिह निसग्गओ च्चिय, जिणसासणभाविओ जणो होइ । पायं गुणाणुरागी, परदुक्खे दुक्खिओ तह य ॥ ५३५ संसारसरूवविउस्स चरिमदेहस्स निम्मलसुयस्स । नीसेसपयत्थजहट्ठियावबोहस्स तुह राय ! ॥ ५३६ ।। अणुसट्ठी दिज्जंता, पडिहासइ मज्झ दीवएणेव । सपरप्पयाससंजणयतरणिबिंबस्स पायडणा ॥ ५३७ ॥ इह अप्पियपियसंगमवियोगजं सरिसमेव जीवाण । भवसायरम्मि दुक्खं महंबुरासिम्मि सलिलं व ॥ ५३८ ॥ तत्थ य अणोरपारे, उब्बुड्डनिबुड्डणं कुणंताण । अच्छीनिमेसउम्मेसमेत्तयं जइ सुहं किंपि || ५३९ ।। जइ य च्चिय तेण सुएण संगमो कम्मजोगओ तुज्झ । संजाओ तइय च्चिय, विओगहेऊ तओ जाओ ॥ ५४० एत्थं च दूरगमणेण किमिव कज्जं जओ सदेहे वि । संजोगविओगा खलु, खणे खणे अणुहविज्जंति ॥ ५४१ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं अच्छरियं च इमम्मि व, जं तं सि विवेगिओ वि सोएण । एवं खिज्जसि तिमिरेण मुज्झई न हु पईवकरो ॥ ५४२ किंच - मा वच्च तुमं खेयं, अकुसलसंकाइ निययपुत्तम्मि । दियहेहिं केच्चिरेहिं वि, मिलिही सो तुह सुहनिहाणं ॥ ५४३ अवि य गुरुसंपयाए लंकरिओ सयललोयआणंदं । कुणमाणो मा णेही, इहागओ चक्कवट्टिसिरिं ॥ ५४४ ॥ ता जइ वि गरुयअसुरेण चंडरुइणा सपुव्ववेरेण । संपइ अवहरिओ तह वि तस्स सव्वं सुहं होही ।। ५४५ ॥ इय मुणिऊण नरीसर ! सोयपिसायस्स देसु अवयासं । मणयम्मि मा तुमं जेण धीरिमाठाणमिह तुब्भे ।। ५४६ इय भणिओ राया अमयकुंडबुडं व सं वि मण्णंतो । संतुट्ठो अभिवंदिय, मुणिंदमणुमन्नइ गमत्थं ॥ ५४७ ।। सो वि मुणिंदो तत्तो, सुमुट्ठियं नियपहाइ गयणयलं । निज्जियरवितेयाए, उज्जोयंतो गओ तुरियं ।। ५४८ ॥ नरनाहो तप्पभिई, मुणिवयणविणिच्छयं विहेऊण । जाओ निराउलमणो, समुज्जओ रज्जकज्जेसु ॥ ५४९ ।। इओ य -- असुरेण तेण सो पुव्ववेरिणा अवहिओ वरकुमारो । बहुयं भमाडिऊणं, गयणयले रोसवसगेण ॥ ५५० ॥ मुक्को अगाहसलिले, महासमुद्दे व्व सरवरे तरसा । अइकरपवरजलयरभीमम्मि मणोरमाभिक्खे ॥ ५५१ ॥ तत्तो कुग्गाहसए हढेण निरसित्तु तस्स तीरम्मि । पत्तो भवंबुहिस्स व, सद्दिट्ठी तहिं अक्खलिओ ॥ ५५२ ।। निब्भयचित्तो तप्परिसराओ दूरे पलोयए अडविं । फरुसाभिहाणमेसो, न नामओ किंतु गुणओ वि ॥ ५५३ ।। खरनहरनहरपहरणविभिन्नकरिकुंभमुक्कमुत्ताण । धरइ समूहं जाव हु, तमालतरुअंधयारहरं ॥ ५५४ ॥ नावइ हरिणंकेणं, उच्छंगकुरंगरक्खकज्जेण । मियवइरिभएण उवायणीकयं बहलजोण्हभरं ।। ५५५ ।। (जुयलं) भरभमिरविवाहाउलमिगनयणा तह विसालवंसा य । सवराहिओदया जा य सहइ परिणयणवेइ व्व । ५५६ ।। संगरधर व्व तह खग्गिभीसणा भीमकुंभियुद्धा य । भूधरविचित्तकडओहसंकडा वग्गिरहरी य ।। ५५७ ॥ सरनियरमज्झदीसंतपुंडरीया पभूयवणकलिया । अन्नं च सजलदेसावणि व्व जा कत्थइ पएसे ।। ५५८ ।। तं पेच्छंतो अडई भयावहं संपयट्ट दिसमोहो । वच्चइ मइंदगुरुगयपयाणुसारेण अभयमणो ॥ ५५९ ॥ (कुलय) वच्चंतो दठूणं, सिंहं संजायकोउओ अहियं । तस्स अइगुरूपरक्कमपरिक्खणत्थं धरियपुच्छं । ५६० ॥ खरनहरपहरजज्जरियमहियलं भामिऊण खणमेक्कं । मेल्हइ भउज्झियमणो, मणोगयं पयडिउं सत्तं ।। ५६१ ।। (जुयल) अइकोउगेण कत्थ वि, उवरिं पि हु पासिऊण च उवायं । परिभावेऊण तहा, सरहं सिंहाउ अहियबलं ॥ ५६२ उक्खिविऊणं सो नियकरहिं पाएसु दोसु तं कुणइ । भुयथंभुत्तंभियतोरणं व खणमेत्तमइबलिओ ॥ ५६३ ।। (जुयल) अन्नत्थ करिवरं पासिऊण गयसिक्खसत्थनिम्माओ । नाणाविहकीलाहिं, कोलावित्ता वसीकाउं ॥ ५६४ ॥ एरावणं व सुरसेन्नसामिओ आरुहित्तु लीलाए । वच्चइ वणम्मि वणयरलोएण सविम्हियं दिवो ॥ ५६५ ।। (जुयलं) एवं विचित्तचित्तय-वराह-वग्घाइकूरसत्तेहिं । अखलियसत्तो कोउहलाई विविहाई जणयन्तो ।। ५६६ ॥ तग्गरुयपरक्कमदंसणुत्थभयवसविसंठुलमणेहिं । वणयरगणेहिं पणमिज्जमाणपयपंकओ जाव ॥ ५६७ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेननिवो वच्च धरणिं सो कित्तियं पि ता अग्गओ गिरिं गरुयं । पासइ सुराण सुरलोयचडणसोवाणमग्गं च ॥ ५६८ ( विसेस ) अह तं सो आरूढो, उच्चयरपरक्कमो कमजुएण । अक्कंततदुव्वसिरो, अगम्ममियराण पुरिसाण ॥ ५६९ ।। एत्थंतरम्मि पासइ, सकालिमाए विलिंपर्यंतं व । तं सेलमेगपुरिसं, ससलिलजलवाहकसिणतणुं ॥ ५७० || विगरालरूवकक्कसकायं जमरायभीमदंडं व । भामितं निययकरेण दंडयं भीरुभयजणयं ॥ ५७१ ॥ देहम्मि अमायतं, मुत्तं पिव मच्छरं वमंतमिमं । उज्जलजलंतजलणुक्कडेण वयणेण दाहकरं ॥ ५७२ ॥ मुहकुहरपयडदाढाविलग्गनीहरियथूलगुरुरसणं । अंजणगिरिं व सकरीरकंदरालोलअयगरयं ॥ ५७३ ।। पडिसद्दभरियनीसेससेलविवरं रएण समुवितं । सम्मुहसमीवदेसं, तज्जंतं फरुसवयणेहिं ॥ ५७४ ॥ किं कोइ निययबलगव्वगव्विओ तं सि अहव विज्जाए । दप्पेणं अप्पाणं, सप्पाणमईव मन्नेसि ।। ५७५ ।। जं मह भूमिं अक्कमिउमागओ सुरवराण वि अगम्मं । अवियाणंतो गरुयं, परक्कमं मज्झ दुस्सझं ॥ ५७६ ॥ देवो व दाणवो वा, न मज्झ आणं विलंघिऊण जओ । आगच्छइ कोइ इहं, मज्झ भुयादंडकयरक्खे || ५७७ निज्झरझरंतजलसंगसीयपवणे इमम्मि सेलम्मि । दिणयरकिरणा वि न जं, तवंति तं मज्झ माहप्पं ॥ ५७८ ॥ ता केण विप्पलद्धो, विरुद्धमेवं च कारिओ केण । अप्पवहाए सयण्णो, न किंचि कज्जं अणुट्ठेइ ॥ ५७९ ॥ अहमेत्थ सुरो नणु संवसामि रमणीयतुंगसेलम्मि । ता किह किमिकीडसमो, समागओ कहसु तं एत्थ ? ॥ ५८० अहवा न याणिउ च्चिय, तुमए मुद्धेण अहमिह वसंतो। संतो वियाणमाणा, असमिक्खियकारिणो न जओ ।। ५८१ जइ मुद्धयाइ सच्चं, ता वलसु इमाओ चेव ठाणाओ । पहरंति न मज्झ करा, अयाणुए दीण-दुहिए वा ॥ ५८२ एवं निसामिऊणं सगव्ववयणाई तस्स देवस्स । गुरुकोवफुरफुरंतोट्ठसंपुडो भालकयभिउडी ॥ ५८३ ॥ भणिउं तयं पवत्तो, रायकुमारो अहो सुर ! तए किं । कइया वि न सुयमेवं, वसुंधरा धीरभोज्ज त्ति ॥ ५८४ ॥ ता जइ पराभवो तुज्झ एत्थ अस्थि हु समत्थया का वि । ता होसु सम्मुहो मह रणम्मि किं बहुपलत्तेण ॥ ५८५ गलगज्जियाओ एयाओ तुज्झ पुण मज्झ नत्थि किं पि भयं । भीरु च्चिय केइ परं, इमेण जह भेसिया तुमए ॥ ५८६ ता मंच झत्ति घायं, मज्झ तुमं जेण तुज्झ पडिघायं । अहमवि मुयामि पढमं, पहरामि न कस्स वि अहं तु ।। ५८७ इय पभणंतम्मि नरेसरस्स पुत्ते झड त्ति देवेण । मुक्को आयसदंडो, भीमो जमरायदंडो व्व ॥ ५८८ ॥ तं वंचिऊण एसो विनिययभुयपंजरंतरक्खित्तं । काऊण तं सुरं जाव चंपए निययसत्तीए ।। ५८९ ॥ इमिणा वि ताव कुमरो, नियबाहुबलेण झ त्ति अक्कंतो । एवं परुप्परं ते, देवदइच्च व्व अबिभट्टा ॥ ५९० ॥ (जुयलं ) नाणाविहकरणेहिं, बंधपयारेहिं चित्तरूवेहिं । वज्जोवघायतुल्लेहिं विविहमुट्ठिप्पहारेहिं ॥। ५९१ ।। तह चरणपहारेहिं, कमजायजयं पयंडसत्तीण । दोण्हं वि ताण जायं, रणमंगेणं चिरं कालं ॥ ५९२ ॥ तो सो सुरेण गयणे, करेहिं अप्फालणत्थमुक्खित्तो । अप्पाणं मोयाविय, गहिओ इमिणा उ सो चेव ॥ ५९३ ॥ पक्खित्तो य नहम्मी, तत्तो सो दिव्वकुंडलाहरणो । वरमउडदित्तसीसो, देवंसुयरुइरकयवेसो ॥ ५९४ ।। वरकडयतुडियमंडियभुयदंडो हारभूसियसुवच्छो । कुमरस्स पुरो ठाऊण भणिउमेवं समाढत्तो ॥ ५९५ ॥ २३ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं भो भो जुवराय ! सुरो, सुरलोयाओ हिरन्ननामो हं । आसि गओ सुरसेलं, सासयजिणपडिमनमणत्थं ॥ ५९६ ॥ तत्तो चलिएण मए, दिट्ठी एसो महागिरी रम्मो । कीलानिमित्तमेत्थं, अवइण्णेणं खणद्वेणं ॥ ५९७ ॥ अवलोइओ तुमं तो, तुज्झ च्चिय साहसं परिक्खेउं । वेडव्वियरूवधरेण जुद्धमेयं समाढत्तं ॥ ५९८ ॥ दिट्ठे च तुज्झ निम्मायपोरुसं तेण मज्झ अक्खित्तं । चित्तं सुपुरिस ! ता किं भणामि दासो म्हि ते तो ।। ५९९ भिच्चावयवेण अओ, कज्जं जं किंचि साहियव्वं ति । तत्थाएसं दिज्जह, सुमरणमेत्तोवओगेण ॥ ६०० ॥ यं तु मं भणियं सक्कुणोमि जह किं पि वरसु वरमिट्ठे । तुम्हारिसाण जम्हा न होइ सिद्धी परायता ॥ ६०१ जइ वेवं तह वि पयत्तसज्झकज्जम्मि कम्मि वि ममं पि । वावारिज्जसु असहाययाण सिद्धी जओ नत्थि ॥ ६०२ अन्नं च तुज्झ परभवसंबंधो वि हु मए समं को वि । अत्थि सुण तं पि एत्तो भवाओ तइए भवम्मि तुमं ॥ ६०३ ॥ सिरिपुरनयरस्सामी, सुगंधिविजयम्मि आसि विक्खाओ । सिरिधम्मनिवो तुह चेव करिसया सूरससिनामा ॥ ६०४ तत्थेव य वत्तव्वा, महाधणा ताण अन्नदियहम्मि । ससिणा खत्तं दाऊं, रयणीए सूरगेहम्मि ॥ ६०५ ॥ घरसारं सव्वं पि हु, अवहरिउं जाणियं च तं तुमए । तो निग्गहिऊण तयं, सूरस्स समप्पियं रित्थं ॥ ६०६ मरिऊण ससी विभवे, कइवि भमित्ता अणंतरभवम्मि । बालतवाई किंचि वि काउं असुरेसु उववण्णो || ६०७ नामेण चंदरूई, पुव्वभवुप्पन्नवेरिभावेण । सो पिउसहाए मज्झाओ तुज्झ अवहारओ जाओ || ६०८ ॥ जो पुण सूरो सो तइरित्थसंजोयणे तुहं मेत्तो । संजाओ सो य अहं, समुवज्जियपुव्वभवपुन्नो || ६०९ ॥ जाओ हिरन्ननामो, देवो मित्तत्तवइरिभावे य । न परो हेऊ मोत्तणुवयारउवयारकरणाई || ६१० ।। ता खमसु मज्झ सव्वं, जेणं तेणावि जं तुमं एवं । खलियारिओ महायस खमाधणा चेव सप्पुरिसा ॥ ६११ ॥ इय सो भणिऊण सुरो, तक्खणमदंसणं समावन्नो । कुमरो वि हु अत्ताणं, पेच्छइ जणसंकुले देसे ॥ ६१२ ॥ तो चिंतिउं पवत्तो, किमेवमच्चभूयं अणुहवामि । कत्थ व एसो देसो, कत्थ व तं सुन्नरन्नं ति ॥ ६१३ ॥ अहवा सुरस सत्ती, अचिन्तरूवा इमा अहं जीए। निम्माणुसाडवीओ, ओयारिय एत्थ मुक्को ति ॥ ६१४ ॥ न य तेण मज्झ किंचि वि, भणियं एमेव आणिओ अहवा । अभणंत च्चिय सुयणा, परोवयारे पयट्टंति ॥ ६१५ एवं चिंतितो च्चिय, पेच्छइ भयवसविसंठुलं लोयं । पुव्वावरदाहिणउत्तरासु धावंतमासासु ॥ ६१६ ॥ ताणं मज्झे एक्को, पुट्ठो तत्तो नरो कुमारेण । भो ! कीस इमो लोओ, पलायए कस्स व भएण ? || ६१७ || सो भइ तुमं किं अंबराओ पडिओ सि अइपसिद्धं पि । जं न मुणसि वत्तमिमं.. ..... ।। ६१८ ॥ एस महायस ! देसो, अरिंजओ नाम एत्थ अत्थि पुरं । विउलं ति सुप्पसिद्धं, जयधम्मो नरवई तत्थ ।। ६१९ ॥ सयलंतेउरसारा, तस्स पिया जयसिरि त्ति नामेण । ताण सुया संजाया, ससिप्पहा नाम विक्खाया ॥ ६२० || ती य निययअणुवमरूवेण विणिज्जिय व्व देवीओ । लोए लज्जाइ न पायडंति पाएण अप्पाणं ।। ६२१ ।। तियसा वि तीए दंसणअक्खित्तमण व्व सव्वह च्चेव । वीसरिऊण निमेसे, अणिमिसनयणत्तणं पत्ता ।। ६२२ ॥ नियरूवविणिज्जियतिहुयणाए किं तीए वन्निमो अहवा । ससिरुइरा जीए तणुं तरइ व लायन्नजलहिम्मि || ६२३ २४ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ अजियसेननिवो तीएऽणुरत्तहियओ, जयधम्मनरेसरं भणावेइ । राया महिंदनामो, जह मज्झ सुयं इमं देहि ।। ६२४ ॥ सो य न से देइ जओ, तस्स पुरो थेवजीविओ सिट्ठो । नेमित्तिएण एसो, कहिया एसा उ चक्किपिया ॥ ६२५ जयधम्मस्सुवरि तओ, सो रुट्ठो निययसेन्नपरियरिओ। आगच्छइ हारावइ, रणम्मि सयलं बलं तस्स ॥ ६२६ अपहुप्पंतो जयधम्मनरवई तस्स तयणु नियनयरे । पविसित्तु ठिओ रोहगसज्जं तं कारवेऊण ॥ ६२७ ॥ सीमालनिवे इयरोवगाहिऊणं सपक्खमणवेक्खो । तस्स पुरं वेढेऊण तो ठिओ पउरकडएण ॥ ६२८ ॥ परचक्काओ लोओ, संकेतो अत्तणा विणासमिमो । सरणं अपेच्छमाणो, पलाइउं एवमारद्धो ॥ ६२९ ॥ तं सोउं परउवयारकरणवावडमणो त्ति रायसुओ। हिट्ठमणो विउलपुरस्स सम्मुहो चेव संचलिओ ॥ ६३० ॥ वेगेणं गच्छंतो, पेच्छइ परचक्कवेढियं तं सो । जलनिहितरलतरंगक्कंतं वेलाउलपुरं व ॥ ६३१ ॥ बहुकरडिघडासंघट्टसंकडे वरतुरंगरुद्धपहे । रहपहकरपरिरक्खियपरपुरिसपवेससंचारे ॥ ६३२ ॥ बहुविहपहरणपरिकरियपाणिवीरेहिं भीरुभयजणए । निब्भयमणो कुमारो, तओ पविट्ठो तहिं कडए ॥ ६३३ ॥ दीसंतो संकाउलमणेहिं सेणाभडेहिं भयरहिओ । भीमुक्कपहेहिं निसिज्जमाणओ वयणमेत्तेण ॥ ६३४ ।। ता जाइ जा निवावासदारमरिकरिघडा निरुद्धपहं । न लहइ तओ पवेसं, गइंदविंदस्स मज्झम्मि ॥ ६३५ ।। सो हक्किऊण करिणो, तम्मज्झेणेव जाव संचलिओ । तो पयरक्खिनरेहिं, सकक्कसं भणिउमारद्धो ।। ६३६ ॥ भो भो । किं निव्विण्णो, देहाओ अहव जीवियव्वाओ । निस्संको जेण महिंदरायआणं विलंघेसि ॥ ६३७ ॥ काऊण अगण्णसुई, वच्चसि पुरओ य सुणिय ताण इमं । पज्जलियकोवजलणो, पहाविओ एक्कभडसमुहं ॥ ६३८ रे रे ! सरपूरियभत्थएण सममेव मुयसु कोदंडं । अन्नह गओ सि जमरायमंदिरं मज्झ हत्थेण ॥ ६३९ ॥ एमाइ पयंपंतो, हढेण उद्दालिऊण कोयंडं । तोणीरजुयं सव्वेसि तेसि पेक्खंतयाणं पि ॥ ६४० ।। रे रे ! नियपहुणा सह, रक्खह नियजीवियं जइ समत्थि । सामत्थमत्थि तुम्हाण किं पि एवं पुण भणंतो ॥ ६४१ गिरितुंगगयघडामक्कचक्कदुग्गम्मि कडयजलहिम्मि । पडुपवणतरलतरतुरयलोलकल्लोलकलियम्मि ॥ ६४२ ॥ दीसंतो मंदरगिरिवरो व्व पउरेहिं परिभमंतो सो । मुंचंतो य निरंतरसरवुठिं पलयजलउ व्व ॥ ६४३ ॥ को एस हणह बाहासु लेह अहवा गयस्स हत्थेण । पाडावह पोढपहारपडिहयं किं विलंबेह ॥ ६४४ ॥ तरलतरतरयखरखरसएहिं खंदाविऊण वीसासं । गिण्हह इमस्स इमाइ कडयवयणाडं जंपते ॥ ६४५ ।। बाणावलिं खिवंते, विसग्गिजालावलिं विमुच्चंते । दुप्पेच्छसेन्नसुहडे, विमुहे गरुडो व्व कुणमाणो । ६४६ ॥ मयवसविसंतुले गयवरे वि अइगरुयसिंहनाएहिं । मोयाविंतो मयपसरमसरिसं पंचवयणो व्व ॥ ६४७ ॥ अक्खलियगई तावेस आगओ जा महिंदराओ त्ति । कोवपरव्वसदिट्ठी, महिंदराओ वि तं दलृ ॥ ६४८ ॥ निब्भच्छंतो पहरणसयाइं जा गिण्हिऊण पहरेइ । ता एस एकबाणेण हिययमेयस्स ताडेइ ।। ६४९ ॥ तेण य महिंदराओ, मम्माभिहओ जमालयं नीओ । अवितहनिमित्तदिळं, वयणं किं अन्नहा होइ ।। ६५० ॥ सुरकयजयजयसबस्स तक्खण च्चेय किन्नराईहिं । मुक्का कुमरस्सोवरि, नहाओ सुरतरुकुसुमवुट्ठी ॥ ६५१ ।। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं पायारोवरि परिसक्किरहिं विम्हियमणेहिं दठूण । तस्स वीरोचियचरियं, कहियं जयधम्मरायस्स ॥ ६५२ ।। वद्धाविज्जसि नरवर ! केण व कत्तो वि एक्कवीरेण । आगंतूण तुह रिऊ, महिंदराओ खयं नीओ ॥ ६५३ ॥ तुह पुन्नेहिं व आगरिसिएण एगागिणा वि हरिणेव । गयजूहं व बलं से, सयलं वि कयं हयप्पहयं ॥ ६५४ ।। तं सोऊण नरिंदो, तुट्ठो तुट्ठिप्पयाणमेयाण । दाऊण पओलीओ, उग्घाडावित्तु सव्वाओ ।। ६५५ ।। सव्वबलेण समेओ, समागओ तस्स चेव पासम्मि । कयउचियप्पडिवत्ती, एवं भणिउं समाढत्तो ॥ ६५६ ॥ चरिएहिं चिय सिट्ठो, तं मह सप्पुरिस उत्तिमनरो त्ति । तुम्हाणमकारणबंधवाण किं वन्नणं करिमो ।। ६५७ ॥ विअलक्खनगरवासी, वंदाओ विमोइओ जणो तुमए । नियजीवियनिरवेक्खं, अम्हुवयारं करितेण ।। ६५८ ॥ इय एवमाइ काऊण तस्स अणलियगुणोहसंथवणं । घेत्तूण करेणारोविऊण नियए गइंदम्मि ।। ६५९ ॥ महईए विभूईए, पवेसिओ पुरवरस्स मज्झम्मि । ठाणट्ठाणपयट्टियपहाणबहुहट्टसोहम्मि ।। ६६० ॥ अभिनंदिज्जंतो वुड्ढनारिआसीससंपयाणेण । अच्चिज्जंतो वरपुरपुरंधिनयणुप्पलदलेहिं ॥ ६६१ ॥ अब्भुयगुणत्थुइहिं, थुणिज्जमाणो पढिज्जमाणो य । इच्छहियलद्धपरिओसदाणसंतुट्ठभट्टेहिं ॥ ६६२ ॥ संपत्तो निवभवणं, पवेसिओ तत्थ मंगलसएहिं । जणयंतो आणंद, समग्गलोयस्स इंदो व्व ॥ ६६३ ॥ सयमेव राइणा दावियम्मि सीहासणम्मि उवविट्ठो । चरणप्पणामपुव्वं, जयधम्मनिवस्स विणयपरो ॥ ६६४ ॥ धरिऊण तत्थ खणमेत्तमेक्कमह ण्हाणमंडवं नीओ । रण्णा सहप्पणा पहाविओ य परिहाविओ वत्थे ॥ ६६५ ॥ नाणालंकारेहिं, महग्घमोल्लेहिं तह अलंकरिओ । अहियं विरायमाणो, दीसइ सो कप्परुक्खो व्व ।। ६६६ ॥ अह भोयणावसाणे, सुहसेज्जाए ठिओ सपणएणं । भणिओ रन्ना सुपरिस ! निसुणसु मह एक्कविन्नत्तिं ॥ ६६७ अहमज्ज पुण्णवंताणमहियपुण्णो गुणीण महियगुणो । सुपवित्ताणं सुपवित्तयाए अहिययरमिह ठाणं ॥ ६६८ ॥ जाओ तुब्भागमणे मणोरहाण वि अगोयरगयम्मि । केवलउज्जलचिरकालचरियसच्चरियजणियम्मि ॥ ६६९ ॥ किंच - नासिंतो नीसेस, रिउतिमिरभरं खणद्धमत्तेण । जणयंतो अम्हच्चयजणमणचक्कोहआणंदं ॥ ६७० ।। अम्हे न याणिमो च्चिय, चिरुवज्जियविउलपुन्नभाराओ। कत्तो य मज्झ इह तं, समागओ सहसकिरणो व्व ॥ ६७१ मज्झ असत्तीए इमा, पडिवक्खरसायलम्मि निवडती । तुम्हे च्चिय उद्धरिया, रज्जसिरी ता तुहेव इमा ॥ ६७२ एत्तो अहं तु आएसकारओ तुज्झ चेव पाइक्को । होहामि निययविक्कमविढत्तमुव जनिवलच्छि ॥ ६७३ ॥ सुणिऊण नरिंदगिरं, एवं कुमरो वि लज्जिओ अहियं । पभणइ सावट्ठभं, देव ! न जुत्तं तए भणियं ॥ ६७४ जओ - जइ अणुचरेण किंचि वि, साहिज्जइ तुज्झ कज्जमइगरुयं । सो किं तस्स पहावो, अहं पि तुह अणुचरो चेव ।। ६७५ ता मा एत्थत्थे कुण, वियप्पमेसा तुहेव रायसिरी । उवभुंजसु तं पत्तं, मइ पाइक्कम्मि पासठिए ॥ ६७६ ॥ एवं परोप्परं ते, सज्जणभणईहिं पणयसाराहिं । तत्थ ठिया चिरकालं, तो कुमरो रायभणिएण ॥ ६७७ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेननिवो विरइयपवरुल्लोए, विचित्तवरचित्तकम्मरमणिज्जे । बहुभूमिगाहिं कलिए, कालागुरुधूवधूवियए ॥ ६७८ ॥ मणिकोट्टिमविरइयविविहरयणरयणाइसारसत्थियए । वरपासायम्मि गओ, समग्गसुहहेउभूयम्मि ॥ ६७९ ॥ चिट्ठतेणं तत्थ य, बुद्धीए परक्कमेण य कमेण । बहुए वसीकरेऊण, राइणो गाहिया सेवं ।। ६८० ।। तप्पभिई सिरिजयधम्मराइणो रज्जमुवगयं वुड्ढि । सामंतमंतिकोट्ठारकोसरट्ठाइलच्छीए ॥ ६८१ ॥ सह जयसिरीए नियपिययमाइ अन्नम्म वासरे राया । सुहसेज्जाए निसण्णो, वीसंभकहाहिं एगंते ॥ ६८२ ।। जावच्छइ ता तुरियं, ससिप्पहाए सही समागंतुं । नमिऊण दोण्ह वि पए, रविप्पभा कुणइ विन्नत्तिं ॥ ६८३ ॥ तणयाइ तुज्झ नरवर !, महिंदरायक्खयंकरो कुमरो । जप्पभिई सच्चविओ, तप्पभिई तम्मि अणुरत्ता ॥ ६८४ ॥ तं अलहंती निसुणसु, जं सावत्थंतरं समणुपत्ता । देहट्ठिई पि न कुणइ, न मुणइ पासट्ठिय सहीओ ॥ ६८५ परिसुन्नखिन्नचित्तत्तणेण जइ भाइ को वि किं पि तयं । नो देइ उत्तरं तह वि केवलं मुयइ हुंकारं ॥ ६८६ ॥ परिवारसमणीयम्मि अन्नपाणम्मि पऊरविहिणा वि । न कुणइ अभिलासं नेय गंधमल्लाइ अभिलसइ ॥ ६८७ हिमदड्ढसरोरुहपरिमिलाणदेहाए तीए वच्छयले । किं च पडंत च्चिय अंसुबिंदुया जं उवेंति खयं ॥ ६८८ ॥ तेणुवमिज्जइ अच्चंतदारुणो अंतरंगपरितावो । न हु पयइत्थसुवन्नेसु संति जलबिंदुणा लग्गा ॥ ६८९ ॥ अवि य अंतो जलंतविरहग्गिधूमसरिसुण्हदीहसासेहिं । वयणम्मि पउमसंकावडिया अलिणो वि दज्झति ।। ६९० ॥ रयणीसु ससी वि ससन्निहिं किरणेहिं जणइ से मुच्छं । हरिया मुहेण एयाइ मह सिरी जायरोसो व्व ॥ ६९९ ॥ संतावहरा नवपल्लवेहिं जा तीए कीरइ सहीहिं । सेज्जा सा दवजालावलि व्व अहियं दहइ अंगं ।। ६९२ || कुणउ व चंदणपंको, भुयंगसंसंगदूसिओ दाहं । अच्छेरमिणं जं दक्खिणो वि पवणो न तीए सुहो ।। ६९३ ।। अइकोविओ व्व मन्ने, मयणो रइरूवहरणवेरेण । एयाए अन्नहा कहणु कुणइ वामत्तणं एवं ॥ ६९४ ॥ तहा हि २७ धरइ धिरं हसइ वि लज्जए य हिययम्मि पिययमे धरिए । अलियवियप्पविणडिया, उट्ठित्ता सम्मुही जाइ ॥ ६९५ मुणमुणइ किंपि अव्वत्तमक्खरं जोइणि व्व झाणगया । इय कुणइ विविहचेट्ठा, कामपिसाएण आविद्धा ॥ ६९६ ता जावज्जवि पावइ, दसममवत्थं न कामदेवस्स । ता चिंतसु पडियारं, किंचि वि दुहियाए दुहियाए || ६९७ इय तीए जंपिउं निसुणिऊण गुरुहरिसनिब्भरो राया । भणइ पियं देवि कओ, सुयाइ ठाणम्मि अणुराओ ॥ ६९८ अन्नं च मन्ने कयग्घयादोसमेव निन्नासिउं सुया मज्झ । कुमरे कयाणुराया, जाया परकज्जकुसलम्मि ॥ ६९९ ॥ रूवं विजियजगत्तयमुज्जलगुणमालिया कलासीलं । अणुरूववरेणिमिणा, कयत्थमेयं मह सुयाए । ७०० ॥ वच्च तुमं निययसहिं, गंतूण रविप्पहे ! भणसु एवं । तुज्झ पिया सिग्धं चिय, तं दाही अजियसेणस्स || ७०१ मा होसु ऊसुया तं, सिज्झइ कज्जं समत्थमवि एत्थ । जं परिवाडीए थिरत्तरत्तणेण न उ दूरमाणाण ॥ ७०२ ॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं 1 सव्वं पि सुंदरं चिय, होही ता कुणसु मा विसायं तं । इय सिक्खविऊण सहिं, पेसइ तीसे समीवम्मि ॥ ७०३ सयमन्नदिणे उ निवो, पुच्छइ गणयं जहा मह सुयाए । को वारिज्जयदिवसो, कुमरेण समं कहसु एवं ॥ ७०४ गणिऊण तेण सिट्ठे, पुढो पुढो चरणपरिणयणदिवसे । गहिउं ते पूइत्ता, विसज्जिए तयणु जोइसियं ॥ ७०५ | पत्ते वरणयदिवसे, कुमरं आहविय भणइ नरनाहो । तं साहावियकरुणानिहाणमहयं किवाठाणं ॥ ७०६ ॥ सव्वजगवच्छलाणं, तुम्हारिसाण तह भवे जम्मो । अम्हारिसाण पुन्नोदएण जह कप्परुक्खाण ॥ ७०७ ॥ ता कस्स गुणा तुम्हारिसाण न मणोगया सुहं दिंति । कुणइ च्चिय सरयससी, सगुणेहिं जणमणाणंदं ॥ ७०८ || एत्तो च्चिय विन्नत्तिं, करेमि नियकज्जउज्जओ तुज्झ । गुणगणमणिरयणायरससिप्पहा अस्थि मज्झ सुया || ७०९ सा तुझ कए चिट्ठइ, कुणमाणा बहुमणोरहे इहि । एवं च भणइ दासिं पि कुणह मं तस्स कुमरस्स ॥ ७१० मह पिउणो जेण इमं, रज्जं वच्चंतयं व पायालं । उद्धरियं भूमितलं, व विण्हुणा चारुचरिण ।। ७११ ॥ इमिणा अज्झवसाएण बालिया रत्तिदियहममुणंती । न जिमइ न पियइ न सुयइ मईविवज्जासमणुपत्ता ।। ७१२ ।। काऊण दयं ता तीए उवरि वरणयमिसेण अज्ज तुमं । पडिगाहसु आसाए जेण पाणे धरइ एसा || ७१३ ।। इय भणिऊण समक्खं, समग्गलोयस्स कन्नयादाणे । जो कोई विही तं कुणइ उचियकयकुमरसक्का II ७१४ उब्भिन्नबहलपुलयंकुरच्छलेणं तु अजियसेणो वि । उत्तरमकरितो वि हु, अणुमन्नइ पत्थुयं कज्जं ॥ ७१५ ॥ पयणसरपहरजज्जरमणेण कइया विवाहमहदिवसो । होहि त्ति परिगणंतो, दइया संगूसुओ ठाइ ॥ ७१६ ॥ कइया वि फुल्लतंबोल- वत्थ- आभरण-पेसणरयाण । कइया वि चित्तवट्टियविलिहियरुवाइ खित्ताण ॥ ७१७ नियनियअवत्थसंसूयणत्थगाहाइ पेसणपराण । कइय वि कइयावि विचित्तभक्खदाणाइनिरयाण ।। ७१८ ।। वच्चंति जाव कइय वि, दिणाणि संवड्ढियाणुरायाणि । विविहविणोयसएहिं, परोप्परं ताण दोन्हं पि ॥ ७१९ ॥ ताजं जायं एत्थंतरम्मि तं सुणह होउमुवउत्ता । भो भो एत्थेव भवे, पुण्णा पुण्णफलसरूवं ॥ ७२० ।। अत्थि गिरी सुपसिद्धो, विजयद्दो नाम खेयरावासो । नियसिहरसिहुत्तंभियसमीववरजोइसविमाणो ॥ ७२१ ॥ जो य कओ वित्थररुद्धदिसविभागो विसालभूवीढो । विजयद्धसीमकज्जेण तुंगसालो व्व एक्कदिसो || ७२२ || जयस्स कलहोयमयस्स सहइ आसासु फुरियकरनियरो । ससिकिरणनिम्मलो कंचुओ व्व नहसप्पपरिचत्तो ।। ७२३ दक्खिणओ रमणीयं, तत्थ पुरं अस्थि रविपुरं नाम । रुप्पमयदप्पणम्मि व, पडियं सुरलोयपडिबिंबं ॥ ७२४ ॥ खयरचक्काहिवई, पालइ धरणिट्ठओ तयं जेण । अमरिंदेणेव कया, हयपक्खा खयरभूमिधरा ॥ ७२५ ।। अन्नम्म दिने सो नियसहाइ मज्झट्ठिओ नियइ एगं । समणब्भूयं सावगमणुव्वयाई गुणविसिद्धं ॥ ७२६ || तं दट्ठूण सयं चिय अब्भुट्ठाणाइ कुणइ पडिवत्तिं । उचियम्मि मह मईओ, गुरुया ण परं पलोइंति ॥ ७२७ तयणंतरं विसज्जियविज्जाहरबंधुमतिमाइजणो । गुरुविट्ठरोवविट्ठेण तेण उच्चरिय आसीसो ॥ ७२८ ॥ अरूवं किंचि वि सप्पहासवयणेण नरवरो भणिओ । खयरिंद ! मज्झ किर जोगिणो वि तुह उवरि गुरुनेहो || ७२९ नामं पितुज्झ गिण्हइ, जो कोइ वि खयररायसुइसुहयं । जाणामि तस्स सरिसो, न बंधवो को वि मह अन्नो || ७३० २८ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेननिवो तुह कल्लाणविहीणम्मि चेव तह मह मई सया फुरइ । जो मंगुलं तु जंपइ, हासेण वि सो न पडिहाइ ॥ ७३१ किंतु न मुणामि हेडं, इमस्स मइगरुयपक्खवायस्स । मोत्तूण मोहरायस्स विलसियं सव्वजणपयडं ॥ ७३२ ॥ ता तइ असरिसगुरुपक्खवायजोगेण जं सुयं वयणं । पासे सुहम्ममुणिणो, तेणुत्तम्मइ व मे हिययं ॥ ७३३ ॥ अत्थि अरिंजयदेसे, सामी विउलाभिहाणनयरस्स । नामेणं जयधम्मो, अप्पडिहयसासणो राया ॥ ७३४ ॥ जाया जयसिरिभज्जाइ तस्स धूया ससिप्पहा नाम । मयतरललोयणा वि हु, जा नेय विसंठुलं भमइ ।। ७३५ ॥ तरुणजणहिययसायरससहरमुत्तीकलंकिया न उणो । तं किर जो परिणेही, सो चक्की होहिही विजए ।। ७३६ ॥ तस्सेव सयासाओ, तुज्झ वहो तेण तस्स पडियारो । जो कोइ होइ जुत्तो, तं चिंतसु खयरनरनाह ! ॥ ७३७ ॥ इय निसुणिऊण दारुणवयणं हिययम्मि गाढसंखुद्धो । सज्झसवसपसरियसेयबिंदुसंदोहदंतुरिओ ॥ ७३८ ॥ धरणिद्धयखयरिंदो वि पयइगंभीरयाइ पयडिंतो । इंदं पिव अप्पाणं, काऊणायारसंवरणं ॥ ७३९ ॥ देस जई भणइ तयं, गुणवच्छल ! मा मणं पि मणखेयं । एत्थत्थे कुणसु तुमं, कस्स वि जोग्गो न जेणा हं ॥ ७४० भुवणत्तए वि समरंगणम्मि मह नत्थि कोइ पडिमल्लो। तह देवयाओ रक्खंकरीओ मह संति बहुयाओ ॥ ७४१ इय भणिऊणं ओणयसिरेण खयराहिवेण विणयाओ । अणुमन्निओ गओ निययमेस ठाणं पहट्ठमणो ।। ७४२ धरणिद्धयखयरवई वि निययचित्तम्मि निच्छिउं कज्जं । तं दिवसं गमिऊणं, बीयदिणे सेन्नसंजुत्तो ॥ ७४३ ।। रणिरमणिकिंकिणीजालकलियनाणाविमाणपिहियनहो । जयधम्मरायनयरं, रुंधइ संजणियपुरखोहो ॥ ७४४ ।। उद्धवनामं दूयं, संपेसइ तयणु दूयपयकुसलं । पयडिय नियाभिसंधी, जयधम्मनिवस्स पासम्मि ।। ७४५ ।। गंतूण य भणइ इमो, खेयरचक्की तुम भणावेइ । जह अत्थि तुज्झ कन्ना, ससिप्पहा नाम विक्खाया ॥ ७४६ ॥ सा य किर विमललायन्नरूवसोहग्गविजियतइलोक्का । दिण्णा तुमए देसियनरस्स निसुयं मए एवं ॥ ७४७ ॥ एयं च न जुत्तं चिय, तुह सरयससंकनिम्मलजसस्स । नियकुलगयणयलदिवायरस्स काउं अइविरुद्धं ॥ ७४८ ॥ एयम्मि कीरमाणे, जम्हा तुह होहिई गुरुअकित्ती । पुहईयले समग्गे वि रायचक्कस्स मज्झम्मि ॥ ७४९ ॥ गिहजामाउयकरणम्मि जइ वि धूयाइ नेहओ बुद्धी । दीसइ केसिंचि तहावि ते वि जाइं परिक्खंति ॥ ७५० ।। अपरिक्खियजाइ-कुलस्स जं तु कण्णाइ वियरणं लोए । तं गरुयं चिय मन्ने, कलंकठाणं सुपुरिसाण ॥ ७५१ ॥ ता अज्ज वि पुव्वकयाई संति ताई पि तुज्झ पुन्नाई । अन्ना य जाइएणं, जेहिं न कन्ना तुहुव्बूढा ॥ ७५२ ॥ न हि जोग्गा हंसवहू बयस्स न य कोइला वि कायस्स । न य कंठीरवरमणी होइ सियालस्स कइयावि ।। ७५३ एवं तुज्झ वि धूया, कप्पडियविदेसियस्स न हु उचिया । एसा ता अम्हं चिय, दिज्जउ अणुरूवसंबंधा ॥ ७५४ जइ देसि न देसि च्चिय, तह वि इमा होहिई मह च्चेव । ता भो अतिही रुयओ हसओ वि हु सो वरं हसओ ॥ ७५५ इय निसुणिऊण वयणं, दूयस्स नराहिवो भणइ एवं । बुद्धिजुओ वि पहू तुह, लोयायारम्मि नो कुसलो ॥ ७५६ न हु अण्णस्स विइण्णा, कण्णा अवरस्स दिज्जइ कयावि । सुकुलुग्गयनारीणं, एक्को च्चिय होइ जेण पई ॥ ७५७ कुलजो व अकुलजो वा, ता होउ इमो मह उ जा दिण्णा । निययसुया किर एयस्स सा अदिन्ना न होइ त्ति ॥ ७५८ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० सिरिचंदप्पहजिणचरियं जओ भणियं - सकृज्जल्पन्ति राजानः, सकृज्जल्पन्ति धार्मिकाः । सकृत् कन्याः प्रदीयन्ते, त्रिण्येतानि सकृत् सकृत् ॥ ७५९ ॥ जइ पुण को वि हढेणं, घेत्तुं इच्छइ इमं तओ सिग्छ । एउ कीस विलंबइ, इय भणिय विसज्जिओ दूओ ॥ ७६० सयमवि कहिओ रन्ना, कुत्तंतो एस अजियसेणस्स । विणओणएण तेण वि, निवस्स पुरओ भणियमेवं ॥ ७६१ तुह ताय ! आउलत्तं, जुत्तं कज्जे इमम्मि नो काउं । अरिमरथएक्कसूले, मइ पाइक्कम्मि संतम्मि ॥ ७६२ ॥ सुत्थो होऊण तुमं, किंच निरिक्खसु रिउं जममुहम्मि । पेसिज्जंतं सिग्घं मए त्ति धीरविय ससुरं सो ।। ७६३ ॥ सुमरइ हिरन्नदेवं, सो वि समागम्म तक्खण च्चेव । पुरओ होउं पभणइ, एस अहं किंकरो तुज्झ ॥ ७६४ ॥ ओहिण्णाणेण वियाणिउं च धरणिद्धयेण खयरेण । समरं सह तुज्झ मए समाणिओ रहवरो एस ॥ ७६५ ॥ तवणत्थगारुडत्थाइदिव्वसत्थेहिं पूरियं एयं । मइ सारहिम्मि सन्ते, आरुहिउं जिणसु रिउसेन्नं ॥ ७६६ ॥ इय भणिए तुट्ठमणो, दीसंतो विम्हिएहिं लोएहिं । आरुहिउं तत्थ रहे, सुरं च काऊण सारहियं ॥ ७६७ ॥ उप्पइओ गयणयलं, ससंदणो चेव देवसत्तीए । मोत्तुमणो सरविसरं, सम्मुहमहसत्तुसेन्नस्स ॥ ७६८ ॥ तं दतॄणं रविमंडलं व निम्मलनहे दुरालोयं । बहुलज्जा विवसमणा, खयरगणा मिलिउमेगस्थ ॥ ७६९ ॥ सर-सत्ति-कुंत-कुंती-किवाण-चक्काइपहरणविहत्था। समयं चिय पहरेउं, आढत्ता खुहियचित्ता वि ॥ ७७० (जुयल) एत्थंतरम्मि सव्वे अखुहियचित्तेण अजियसेणेण । अक्खित्तमई समुवागया वि ते एक्कहेलाए ॥ ७७१ ।। उवणीया संकोयं, अलक्खमोक्खेहिं बाणलक्खेहिं । दिप्पंतकिरणविसरेहिं कुमुयनियर व्व दिणवइणा ॥ ७७२ (जुयल) तं इयरपहरणाणं, असज्झमवलोइऊण सयराहं । नियसेन्नं च असरणं, पलोइऊणं हणिज्जतं ॥ ७७३ ॥ धरणिद्धयखयरिंदो, कोवेण तओ विवक्खमोहत्थं । मुंचइ तामससत्थं, कुणमाणो लोयमसमत्थं ॥ ७७४ ॥ कुमरो वि तिमिरनियरप्पसरतिरोहियसमग्गदिसविवरं । दठूण तयं गिण्हइ, तवणत्थं तस्स हणणत्थं ॥ ७७५ ॥ तस्स बलेणं ओसारियम्मि तिमिरम्मि तक्खण च्चेव । धरणिद्धओ विमुंचइ, भुयंगसत्थं महाविसमं ॥ ७७६ ॥ तं पि य गरुडत्थेणं, उवहणइ इमो तओ पुणो वेरी । पजलंतमग्गिसत्थं, विमुंचई कुमरदहणत्थं ॥ ७७७ ॥ तत्तो य अजियसेणो, विज्झवणत्थं इमस्स मेहत्थं । पक्खिइ तयणु इयरो, दुब्भेयं मुयइ गिरिसत्थं ॥ ७७८ ॥ मुसुमूरइ तं पि लहुं, कुमरो सुररायपहरणत्थेणं । आलससत्थं मुक्कं, तो गरुयं खयरराएण ॥ ७७९ ।। तं पि हु उज्जमसत्थेण हणइ कुमरो महापयंडेण । खयरवई जलणसत्थं, पलाविउं मुयइ तो कुमरं ॥ ७८० ।। तं पि हु आगच्छंतं, दठूण पयंडपवणसत्थेण । खंडाखंडिं काऊण खिवइ कुमरो दिसं दिव्वं ॥ ७८१ ॥ इय जं जं खयरवई, मुंचइ तं तं सुराणुभावेण । तप्पडिकूलत्थेणं, कुमरो उवहणइ सव्वं पि ॥ ७८२ ।। धरणिद्धओ तओ सो, पहरणपडिहणणनायगुरुकोवो । उग्गीरिऊण खग्गं, पहाविओ कुमरहणणत्थं ॥ ७८३ ।। तेण वि इंतो वच्छत्थलम्मि घेत्तुं अमोहसत्तीए । पाहुणओ कीणासस्स पेसिओ वेयणाविहुरो ॥ ७८४ ॥ निहयम्मि तम्मि सेन्नं, अणायगं उठ्ठिऊण निययगिरिं । सव्वं पि गयं सह पक्खिएहिं सत्थं व लहिऊण ।। ७८५ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयधम्मनिवो कुमरो वि अजियसेणो, अलंकिओ जयसिरीए दिव्वाए । देवं विसज्जिऊणं, हिरन्ननामं सठाणम्मि ॥ ७८६ ॥ आसासिऊण खयरे, अवसेसे गाहिऊण नियसेवं । खयरिंदविमाणगओ, दीसंतो पुरजणेण तओ ॥ ७८७ ॥ जयधम्मनरिंदेण य, पहरिसपूरिज्जमाणहियएण । अभिनंदिज्जतो गुरुसिणेहसाराए दिट्ठीए ॥ ७८८ ॥ उदयं लहिउं हरिऊण रिउतमं दुगुणदूसहपयावो । विउलपुरस्स नहस्स व, सो सूरो मज्झमवयरइ ॥ ७८९ ।। अह अन्नदिणेसु पसत्थलग्गवेलाए सुहमुहुत्तम्मि । नीसेसमिलियपरियणकारवियासेसकायब्लो ।। ७९० ॥ जयधम्मो गरुयमहूसवेण कारवइ निययधूयाए । पाणिग्गहणं सिरिअजियसेणकुमरेण हट्टेण ॥ ७९१ ॥ तत्तो य अजियसेणो ससिप्पहाए ससि व्व जोण्हाए । रेहइ कुंदुज्जलकित्तिकिरणभरभरियभुवणयलो ।। ७९२ ।। तीए समं तत्थ पसत्थभोगसंभोगजोगदुल्ललिओ । कइवयदिणाणि गमिउं, अन्नदिणे भणइ नियससुरं ॥ ७९३ ॥ तुम्हाणुमईए अहं, गंतुं इच्छामि नियपिउसमीवं । चिरकालविओगुब्भवदुहग्गिविज्झावणकएण ॥ ७९४ ।। जम्हा जयावहरिओ, अहयं नियपिउसहाइ मज्झाओ । नामेण चंडरुइणा, असुरेणं पुव्ववेरेण ।। ७९५ ।। तप्पभिई चिय जाया, कावि अवत्था पिऊण मह विरहे । जाणामि तं न नरनाह ! जेण भमिओ हमेक्कल्लो ॥ ७९६ कत्थ वि सुहेण कत्थ वि दुहेण कत्थ वि य पोरुसवसेण । ता जाव तुज्झ पासे, संपत्तो रायलच्छि पि ।। ७९७ ता देसु ममाएसं, गंतूणं जेण नियपिउजणस्स । दंसणसुहेण सुहयामि निययमुम्माहियं हिययं ।। ७९८ ॥ इय भणिए भाविविओगदुक्खदूमियमणो महाराओ । पडिभणइ किमित्थत्थे, काहामि तुहुत्तरं अहयं ॥ ७९९ ।। जओ - जाहि त्ति फरुसवयणं, तुरियमुवेहि त्ति आणदाणं च । एत्थेव चिट्ठ पिउकुसलवत्तमाणिस्समहमेव ॥ ८०० ।। एयम्मि पत्थुयस्स तुह विरहहेउ त्ति ता इमं चेव । जुत्तं तुमए सद्धिं, जमागमिस्सामि अहयं पि ।। ८०१ ॥ एवं च कीरमाणे, सेवावित्ती न लंघिया होइ । न य होइ विरहसहणं, अओ इमं चेव कायव्वं ।। ८०२ ।। इय भणिए नरनाहेण तयणु पडिभणइ अजियसेणो वि । हा ताय ! तुहाएसं, पडिच्छमाणे वि मइ निच्च ।। ८०३ किं भणसि सेवगो हं, जं पुण भणियं विओगसहणं नो । संजोगविओगाणं, तत्थ न निययं अवत्थाणं ॥ ८०४ ता पालसु तं रज्जं, एत्थेव ठिओ अहं तु गंतूण । तुज्झाएसेण पिऊण दंसणं देव ! काहामि ॥ ८०५ ।। तो मुक्को नरवइणा, समयं सामंत-मंतिमाईहिं । चउरंगबलसमेओ, विभूसिओ गुरुविभूईए ॥ ८०६ ॥ सह निययपियाए ससिप्पहाए पिउदिन्नगरुयविहवाए । सुपसत्थम्मि मुहुत्ते, चलिओ अह अन्नदियहम्मि ॥ ८०७ धरणिद्धयखयरवहे, वसीकया जे य खेयरा केइ । ताणं दिव्वविमाणे, आरूढो तेहिं सहिओ य ।। ८०८ ॥ अइतुरियं वच्चन्तो, पत्तो सुंदरपुरस्स सो बाहिं । उउकुलभावण नाम, उज्जाणं, मणयतरुरम्मं ।। ८०९ ।। तत्थ य हिंतालतमालतालसज्जज्जुणाइतरुनियरं । ओइण्णो दट्टुं कोउएण सह खयरविंदेण ।। ८१० ।। अवलोयन्तो नाणाविहाण उज्जाणतरुवराण सिरिं । सत्तच्छयछायाए, अह पेच्छइ मुणिवरं एगं ॥ ८११ ॥ झाणम्मि निच्चलमणं, सुपसन्नं चत्तसयलवावारं । तं दठूण कुमारो, समागओ वंदणकएण ।। ८१२ ।। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जाया झाणसमत्ती, मुणिणो एत्थंतरम्मि तो तेण । अभिवंदिओ मुणिंदो, सुहासणत्थो सविणएण ॥ ८१३ ॥ मुणिणा विदुक्खकुलसेलदलणकुलिसेण धम्मलाभेण । आनंदिओ सहरिसं, अवलोइय जाव पासाई ॥ ८१४ ॥ ता पेच्छइ केवि मुणी, सज्झायपरे परे य झाणगए । गयसंगे संगोवंगसुत्तअत्थेसु अभिउते ॥ ८१५ ॥ जुत्ताजुत्तवियारे, अइकुसले सलहणिज्जजम्मे य । जम्मजरमरणविरहियसिवपयपयवीसमालग्गे || ८१६ ।। ता वंदिऊण सव्वे, पुणो वि तस्सेव मुणिवरिंदस्स । पासम्मि सपरिवारो, उवविट्ठो वंदिऊण मुणिं ॥ ८१७ || तेणावि समाढत्ता, परूवणा धम्मकम्मविसयम्मि । आसीसादाणेणं, अभिनंदिय तं सुरिंदसुयं ॥ ८१८ ॥ भो भो नरिंद ! लद्धूण माणुसत्तं भवम्मि अइदुलहं । बुद्धिमया कायव्वं, तह जह सिवसाहगं होइ ।। ८१९ || रागो दोसो मोहो, एए एत्थाय दूसणा दोसा । एयाण अइप्पसरो, विवेइणा रक्खियव्वो त्ति ॥ ८२० || वसवत्तिणो य तेसिं, जे किर कत्तो सुहं भवे तेसिं । इह परभवम्मि य तहा, दूरे च्चिय मोक्खसंपत्ती ॥ ८२१ ॥ एयाण निग्गहेणं तु होइ जीवाण कुसलपरिणामो । तत्तो परा विसुद्धी, तओ य निव्वाणसुहसिद्धी || ८२२ ।। एएसिं पुण मज्झे, विसमो रागो जिणेहिं पन्नत्तो । सव्वेसि पि खविज्जइ, जो पच्छा खवगसेढीए || ८२३ || जओ भणियं ३२ - अणमिच्छ मीससम्मं, अट्ठ नपुंसित्थिवेयछक्कं च । पुमवेयं च खवेई, कोहाईए य संजलणे ॥ ८२४ ॥ कोहो माणो य इमे, दो वि हु दोसो त्ति किर विणिद्दिट्ठा। माया लोभो य पुणो, रागो अंते य लोभखओ ॥ ८२५ ॥ तत्थ वि किट्टीकरणेण तक्खओ ताओ बायरा पढमं । पच्छा सुहुमा सुहुमा, तत्तो वि हु सुहुमतरगत्ति ।। ८२६ जा बायराओ गुणठाणगं तु अणियट्टिबायरं ताव । सुहुमाओ वेयमाणे, सुहुमसरागं ति निद्दिट्ठे ॥ ८२७ ॥ तथा चोक्तम् - लोभाणू वेयंतो, जो खलु उवसामगो व खवगो वा । सो सुहुमसंपराओ, अहखाया ऊणओ किंचि ॥ ८२८ ॥ एम्मि उ खवियम्मी, दोसो मोहो य पढमखविय त्ति । एय खए च्चिय जत्तो, ता कायव्वो विवेईहिं ।। ८२९ एसो य थूलबहलाकारेणं दुक्खहेउ भावेण । लोयम्मि वि अइपयडो, किं पुण लोगुत्तरे धम्मे || ८३० ॥ तहाि अभिसंगलक्खणो खलु, रागो सोय पुण इत्थिमाईसु । सुइदिठ्ठिभोगजम्मब्भेएण तिहा वि अइविसमो ॥ ८३१ जम्हा जीवा इमेण घत्था, एत्थेव भवे विडंबणाठाणं । हुंति विवेईण जहा, दत्ताई मूलदेवस्स ॥ ८३२ || एत्थंतरम्मि भणियं, कयंजलिउडेण अजियसेणेण । के दत्ताई को वा वि मूलदेवो भण मुणिंद ! || ८३३ || (दत्त-मूलदेवकहाणयं -) मुणिणा भणियं सुण नरवरिंद ! एगग्गमाणसो होउं । अत्थि इह जंबुदीवो, असेसदीवोदही मज्झे ॥ ८३४ ॥ तत्थेय भरहखेत्तं सुपसिद्धं मेरुदाहिणे पासे । तत्थ विणीया नयरी, राया तत्थासि उसहो त्ति ॥ ८३५ ॥ - Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दत्त-मूलदेवकहाणयं सो य भरहम्मि वासे, पढमो राया जिणेसरो पढमो । ओसप्पिणीए जाओ, तइए अरए बहुगयम्मि ॥ ८३६ ॥ तस्स य दो भज्जाओ, नामेण सुमंगला सुनंदा य । भरहो बंभी जुयलं, सुमंगलाए तहिं जायं ॥ ८३७ ।। अउणापन्नं जुयले, पुत्ताण सुमंगला पुणो जणइ । देवी पुणो सुनंदा, बाहुबली सुंदरी जुयलं ॥ ८३८ ॥ कालंतरे भयवया, लोयन्तियदेवबोहिएण तहिं । संवच्छरियं दाणं, दाउं अब्भुज्झएण लहुं ।। ८३९ ॥ सव्वेसि जेट्ठपुत्तो, भरहो रज्जम्मि ठाविओ बीओ । बाहुबली तक्खसिलाए नायगो सो य संठविओ ॥ ८४० अन्नेसिं कुरुमाईण भूमिखंडाई जाई दिन्नाई । ताणं चिय नामेहि, ते विक्खाया तओ देसा ।। ८४१ ॥ जो सुय अवंतिसेणो, पुत्तो दिन्नो य तस्स जो देसो । सोऽवंतीनामेणं, सुपसिद्धो अत्थि भरहम्मि ॥ ८४२ ।। उज्जेणी तत्थ पुरी, धणकणयसमिद्धलोयपरिकलिया । अमरावइ व्व रम्मा, विबुहमणाणंदसंजणणी ॥ ८४३ ॥ तीए अच्चब्भुयचारुचरियसंपत्तिपत्तवरकित्ती । नियभुयविक्कमअक्कंतसत्तुसामंतसंघाओ ।। ८४४ ॥ राया विक्कमसूरो, तस्स य कुसलो कलासु सव्वासु । नामेण मूलदेवो, मित्तं पत्तं सिणेहस्स ।। ८४५ ॥ सो य अहिगयसमपासंडनीइसत्थो वियड्ढवग्गं पि । वंचंतो चउरे वि हु, पयारयंतो बहुपयारं ॥ ८४६ ।। दमयंतो दक्खे वि हु, धुत्तंतो धुत्तजूययारे वि । परिपिंडइ अइबहुयं, अनन्नसममत्तणो लच्छि ॥ ८४७ ॥ महिलाणं चरिएसुं, अवीससंतो उ मूलओ चेव । निच्छइ विवाहमेसो, कयाइ पुट्ठो तओ रन्ना ।। ८४८ ॥ कीस तुमं नो परिणेसि सो वि पडिभणइ नत्थि मे देव ! । महिलाहिं किं पि कज्ज, जहिच्छियं संचरंतस्स ।। ८४९ एयाणं वसवत्ती, जो किर न हु तस्स नियय इच्छाए । संकमणमासणं भोयणं च अन्नं च जं किंचि ।। ८५० ॥ जं देव ! दुराराहाओ एत्थ दुट्ठासयाओ नारीओ । चवलसहावा खणरागिणीओ नीयाणुगाओ य ॥ ८५१ ॥ परपुरिसमणुसरंतीण को व एयाण रक्खणं काउं । सक्कइ सुबुद्धिमंतो वि सव्व सामत्थकलिओ वि ॥ ८५२ ॥ सुइसत्थेसु वि सुव्वइ, किल अद्धमिमाओ नरसरीरस्स । एया णु दुट्ठयाए, पुरिसस्स वएइ दुट्ठत्तं ।। ८५३ ।। जओ - जइ वि न करेइ पावं, अइधम्मपरो य चिट्ठइ सया वि । तह वि हु कलत्तपावे ण लिप्पई चिंतिई रिसिणो ॥ ८५४ ता अहयमदारपरिग्गहो वि नरनाह ! एय मह जम्मं । एमेव क्खवइस्सं, वढ्तो निययइच्छाए । ८५५ ॥ तो भणइ नरवरिंदो, मा मा भण मूलदेव ! एवं ति । जम्हा तिवग्गसिद्धी, आयत्ता एत्थ रमणीए || ८५६ ॥ सोक्खस्स य आययणं, कित्तीए कारणं च पवराए । तह वंससंतईए, एयाओ मूलभूयाओ ।। ८५७ ॥ किंच गिहत्थत्तमिमं, सयलासमबीयभूयमुवइठं । एयाओ विणा एवं, न होइ गिहिणी गिहं जम्हा ।। ८५८ ।। पुत्तविहीणो पुरिसो, पियराण रिणाओ मुच्चए नेय । पुन्नामाओ नरगाओ तायए तह य किर पुत्तो ॥ ८५९ ॥ तावस्सं कायव्वो, पुरिसेणं दारसंगहो एत्थ । न य अइसंकावंतेण कह वि लोयम्मि होयव्वं ॥ ८६० ॥ जओ - आसंकिज्जिहि मोहा उ वाहगं जो अजायमवि नियमा । सो सव्वव्ववहारेसु संसयप्पा खयं जाइ || ८६१ ।। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एमाइ बहुवियप्पं, जा वुत्तो राइणा कहकहं पि । ता पडिवज्जिय वयणं, रन्नो पडिभणइ एवं सो ।। ८६२ ।। देव ! जइ मज्झ उवरिं, करुणा सयमेव ता गवेसेउं । परिणावउ मं कन्नं, देवो जच्चंधयं किं पि ।। ८६३ ॥ अन्निसिऊणं कस्स वि, कन्नं जच्चंधयं तओ रन्ना । परिणाविओ सजुत्तं, रूवाइगुणेहिं सेसेहिं ॥ ८६४ ।। तीए समं कमेणं, पोढा वारूढजोव्वणभराए । लोयणवज्जं नीसेससुंदरावयवसोहाए ॥ ८६५ ।। भुंजतो रइसोक्खं, मन्नंतो सारदारववहारं । वोलेइ कं पि कालं, कयसम्माणो नरिंदेण ।। ८६६ ॥ (जुयलं) पइदियहं च जया जाइ राइसेवाइकज्जओ बाहिं । उड्ड काऊण तयं, तया पलोएइ तीए तणुं ॥ ८६७ ॥ नीसेसावयवेहिं वि, अजायपरपुरिससंगदोसेहिं । तह इंगियआयाराइएहिं अविगाररूवेहिं ।। ८६८ ॥ गिहमागओ वि एसो, पुणो वि सव्वं पि पासई तीए । उड्ढं धरिऊण तहेव जंति दियहाइ से एवं ॥ ८६९ ।। अह अन्नया कयाइ वि, पोढत्तमुवागए निदाहम्मि । पवणसुहमभिलसंती, नियभवणस्सुवरिमं भूमिं ॥ ८७० ॥ माइगिहसंतियाए चेडीए चवलियाभिहाणाए । सहिया आरुहिऊणं, जा चिट्ठइ तत्थ जच्चंधा ॥ ८७१ ।। तो तेण पएसेणं, रायउलं पट्ठियस्स सेट्ठिस्स । कयरमणीमणमोहणउब्भडसिंगारवेसस्स ॥ ८७२ ।। दत्तस्स रूवजोव्वणलच्छीए वन्नणं करेमाणी । सुणिऊण चवलियं सा, भणइ तहिं जायअणुराया ॥ ८७३ ।। को एस हला तुमए, वन्निज्जइ केरिसो य मे कहसु । तीए भणियं सामिणि ! एसो खलु सव्ववणियाणं ।। ८७४ उज्जेणिनयरिवत्थव्वगाण सामी इहच्चनरवइणो । पवरपसायट्ठाणं, दत्तो नामेण वरसेट्ठी ॥ ८७५ ।। रूवेण कामदेवो, देवकमारो व्व जोव्वणगणेणं । ईसरिएणं धणउ व्व विमललायण्णजलजलही ।। ८७६ ।। एवं सोऊण इमा, जच्चंधा तम्मि गाढमणुरत्ता । जंपइ एवं चवलो, जणणीगिहसंतिया तं मे ॥ ८७७ ॥ ता तुह न गोवणिज्जं, किंचि वि एत्तो भणामि तुह पुरओ । जइ मह रहस्सभेयं, न कुणसि तं चवलभावेण ॥ ८७८ तो चवलियाए भन्नइ, सामिणि ! किं एवमाइससि मज्झं । तुह जीविएण जीवामि तेण निस्संकमाइससु ॥ ८७९ जच्चंधा भणइ तओ, जइ एवं सुणसु अवहिया होउं । जइया ते मह पुरओ, सलाहिओ वाणिओ दत्तो ।। ८८० तइय च्चिय अणुराएण मज्झ हियए पयं निवेसेउं । ठियमयलबुद्धिणा ता, तह कुण जह होइ तस्संगो ॥ ८८१ अन्नह पुण पच्चासं, पियसहि ! मह मुंच जीवियव्वे वि । मयणसरविहुरदेहाण अहव भण कित्तियं एयं ॥ ८८२ इय भणिऊण तयं पट्ठवेइ मुत्तावलीण वरजुयलं । बहुमोल्लाणि य वत्थाणि अप्पिउं तस्स पासम्मि ॥ ८८३ अह सा वि तस्स भवणं, गंतूणं अत्तणो परिचियस्स । कस्सइ नरस्स दारेण गेहमज्झम्मि पविसित्ता ॥ ८८४ ॥ विन्नवइ दत्तसेटिंठ पुरिसोत्तम ! देसु मज्झ खणमेक्कं । एगंतं जेणाहं, किं पि रहस्सं तुह कहेमि ।। ८८५ ।। (विसेसयं) तो तेण तीए दिन्नो, एगंतो सा वि जंपइ पहट्ठा । सुपुरिस ! सुण विन्नत्तिं, एक्कं काऊण सुपसायं ॥ ८८६ अम्हाण सामिणीए, जइ य च्चिय राउलम्मि वच्चंतो । नरवइपहेण निसुओ, वन्निज्जतो तुमम्हेहिं ॥ ८८७ ॥ नियभवणोवरिभूमिगयाइ तप्पभिइ चेव सा जाया । मयणसरपहरविहुरा, न लहइ सोक्खं कहिं पि ठिया । ८८८ ता काऊण पसायं, अइगरुयं तत्थ गमणकरणेण । सुंदर ! अणुग्गहिज्जउ, सा तुमए साणुकंपेण ॥ ८८९ ॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दत्त - मूलदेवकहाण वीमंसिऊण तीसे, वयणं तो भणइ दत्तओ एवं । किं तुमए च्चिय दिट्ठो, अहयं तीए न दिट्ठोत्ति ॥ ८९० तीए भणियं सा भो, जच्चंधा मह मुहाओ सोऊण । तुह गुणवन्नणयं तइ, अणुरागपरव्वसा जाया ।। ८९१ ।। तो भइ दत्तओ तं, आ पावे ! कत्थ आगया एत्थ । निस्सर मह गेहाओ, ओसर दिट्ठिप्पहाओ लहुं ॥। ८९२ जच्चधा उ वियारसि, मं एवं तुह पयारणाठाणं । जाओ अहमुज्जेणीए गरुयनयरीए मज्झम्मि ॥ ८९३ ॥ एवं भणिऊण बहु, एसा निव्वासिया नियगिहाओ । पत्ता तीय सयासं, साहइ से सयलवुत्तंतं ॥ ८९४ ॥ ता तव्विह वयणायणणेण संजायगरुयउव्वेया । सेज्जाइ निर्वाडिऊणं, ठिया महागरुयदुक्खत्ता ।। ८९५ ।। अह केत्तियाए वेलाए मूलदेवो समागओ तत्थ । तं दद्धं तयवत्थं, पुच्छइ किं पिययमे ! दुक्खं ॥ ८९६ || ता जंपियमेयाए, मह दुक्खं अज्जउत्त ! तं किं पि । जं कहिउं पि न तीरइ, संकासं नरयदुक्खस्स ।। ८९७ || जओ बाला हं जाव पुरा, ताव न हरिसो न वा विसाओ मे । आसि इह कोइ संपइ, पुण जाया तुम्ह पयजोग्गा ।। ८९८ तो जइ मुहारविंदं, तुज्झ वि पेक्खामि नाह ! नाहमिह । ता किं मज्झ अहण्णाइ जीविएणावि कज्जं ति ।। ८९९ ता मरियव्वमवस्सं, मए त्ति इय जाणिऊण निब्बंधं । तीसे एसो पभणइ, सुंदरि ! मा ऊसुया होसु ॥ ९०० ॥ तुह अभिमयं हुं चिय, जह होही तह पिए ! करिस्सामि । संबोहिउं तमेवं, तो चिंतइ मूलदेवो वि ॥ ९०९ ॥ सच्चं भणइ वराई, जएमि ता लोयणत्थमेईए । आराहिऊण कामवि, देविं इय चिंतिऊणेसो ॥ ९०२ ॥ अन्नम्मि दिणे वच्चइ, आययणं विझवासिदेवीए । तदुचियपूयं काउं, विन्नत्तिं कुणइ तो एवं ॥ ९०३ ॥ जइ मज्झ वंछियत्थं, तं पूरसि देवि ! ता अहमिमाओ । ठाणाओ वच्चिस्सं, नियगेहं अन्नहा न उणो ।। ९०४ सन्निहियपाडिहेरा, तं सुव्वसि इय भणित्तु तत्थ ठिओ । पाडिच्चरणेण इमो, अह देवी तं तहा दठ्ठे ॥ ९०५ ॥ तन्निच्छयमवगच्छिय, भत्तिं च अचालणिज्जसब्भावं । तुट्ठा भणइ महासत्त ! सिज्झिही इच्छियं तुज्झ ॥ ९०६ गच्छ तुमं सट्ठाणं, किंतु तए तीए सह समाढविउं । जूयक्कीलं पासयदाओ तीए कहेयव्वो ॥ ९०७ ॥ सा तेण अभिनिवेसेण थद्वदिट्ठी कहिस्सई जुगवं । दायं तुह तह वियसियकुवलयदललोयणा होही ॥ ९०८ ॥ इय विझवासिणीए, निसम्म वयणं दढं पहट्ठमणो । नमिऊण मूलदेवो, देविं नियगेहमणुपत्तो ॥ ९०९ ॥ जह आइट्ठे देवीए कुणइ सव्वं पि तं तह च्चेय । जायं च देविवयणं, तहेव कयजणचमक्कारं ॥ ९९० ॥ तो तीए सह भोए, उदाररूवे स भुंजइ पहट्ठो । रायकुलाइसु जंतो, पुव्विं व परिक्खई तं च ॥ ९११ ॥ पुव्वाणुरागवसओ, अन्नदिणे चवलियं पुणो एसा । दत्तगिहं पर पेसइ, सा वि भणइ दत्तमेगंते ॥ ९९२ ॥ भद्दमुह ! तुज्झ विरहे, बाहिज्जइ बलवयाणुरागेण । सा अम्ह सामिणी न य, खणं पि कत्थ वि लहइ रई || ९१३ तो वह सयासम्म पेसिया तीए अज्ज सुहय ! अहं । ता कुणसु दयं पसिऊण तीए मरणं तुमं रक्ख ॥। ९१४ कुविऊण तओ दत्तो, तं पभणइ पाविए पयारेसि । जच्चंधाए तुमं मं, ता ओसर दिठ्ठिमग्गाओ ।। ९१५ ।। तीए भणियं मा नाह ! कुप्प तं पंडिओ त्ति काऊण । जच्चंधा सा भणिया, मए त्ति ता सुणसु भावत्थं ॥ ९१६ ३५ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं नियसुंदरे विणिज्जियजयं पि जातं न पेच्छइ वराई । कमलदललोयणा वि हु, सा परमत्थेण जच्चंधा ।। ९१७ ।। पत्तियसि जं न मझं, एत्थत्थे सामि ! कंपि नियपुरिसं । पच्चइयं ता पेससु, जो तं गंतुं पलोएइ ।। ९१८ ।। तो अन्ननिव्विसेसं, मुहरयनामं नियाणुचरमेसो ! तीए च्चिय सह पेसइ, तव्वयणस्सावसाणम्मि ॥ ९१९ ।। एसो वि तत्थ गंतुं, सव्वावयवाणुगामिणिं तीसे । दळूणं स्वसिरिं, जाणिय तस्सुवरि रागं च ॥ ९२० ॥ आगंतूणं साहइ, तो दत्तो मयणबाणहयहियओ । कह कह वि गमइ दियह, चवलागमणं नियच्छंतो ॥ ९२१ ।। एत्थंतरम्मि दुट्ठाए चेट्ठियं तीए दठुमतरतो । रोसेण व अत्थायलसिहरंतरिओ रवी जाओ ॥ ९२२ ।। लज्जाइ व तिमिरपडावगुंठिएसु य दिसावहुमुहेसु । दटुं व तीए चरियं, उम्मीलियतारए नढे ।। ९२३ ।। रन्नो वियारवेलासेवाइ गयम्मि मूलदेवम्मि । दत्तो पओससमए, मयणेण व मुहरएण जुओ ।। ९२४ ॥ उक्कंठाइ व चवलाए चालिओ कसिणकंबलावरणो । कयवेढयसंकेयं, जच्चंधं कामए गंतु ॥ ९ः । ९२५ ॥ खणमेत्ताओ गयम्मि य, सट्ठाणं तम्मि राउलाहिंतो । आगम्म मूलदेवो, तहेव तं जोयए जाव ।। ९२६ ।। परपुरिससंगदूसियअंगं तं ताव पासिउं हियए । परिभावइ नूणमिमा, अज्ज विणट्ठ त्ति पडिहाइ || ९२७ ।। अहवा सयावि अहयं, जाणामि च्चिय इमाण दुट्ठत्तं । एत्तो च्चिय परिणयणे, वि आयरो नो मए विहिओ ।। ९२८ जं पि इमं जंपिज्जइ, पुरिसविसेसा सईओ असईओ । नारीओ हुंति तं पि हु, न होइ एगंतियं किंचि ॥ ९२९ ।। नीसेस धुत्तचूडामणि त्ति अहयं जयम्मि विक्खाओ । ता जइ मज्झ वि गेहे, एवं तो धुत्तयाए अलं ॥ ९३० ।। इय चिंतितो य इमो, न भुजई नेय रमइ न य सुयइ । केवलमंतो खेयानलेण हिययम्मि डझंतो ।। ९३१ ॥ सरयसमयम्मि पंको व्व पइदिणं सोसमेइ तावेण । चिन्तइ य मह गिह च्चिय, एवं अन्नत्थ वि उयाहु ॥ ९३२ इय चिंतिऊण पइविवणि पइगिहं पइपहं पइनिवाणं । दटुं महिलाविलसियमलक्खियं भमइ सो धुत्तो ।। ९३३ तो विहरंतो पेच्छइ, कत्थइ नरनाह हत्थिणो मिठं । दढपोढदेहबंध, भोगपयं पउरदव्ववयं ॥ ९३४ ।।। तो चिंतइ होयव्वं, इमिणा मह ईसरस्स घरिणीए । कीयवि वभिचारगयाए नूण तो एस एरिसओ ॥ ९३५ ॥ इय चिंतिऊण सुवणच्छलेण पावरियकंबलो तत्थ । पडिऊण जाव अच्छइ, ता जायं जामिणीमज्झं ॥ ९३६ ।। एयम्मि य समयम्मी, विक्कमसूरस्स राइणो देवी । पाणेहितो वि पिया, चेल्ला समुवागया तत्थ ॥ ९३७ ।। अणुचरियाए बहुविहभोयणपडिपुन्नभोयणकराए । संगहिय सीयजलकरवयाए अणुगम्ममाणपहा ॥ ९३८।। (जुयलं) आगयमेत्तं च तयं, दुगुणीकाऊण करिवरत्तमिमो । अच्छोडिय अच्छोडिय, तीए सरोसं भणइ एवं ।। ९३९ ।। आ पावे ! कीस तुमं, एत्तियवेलाए आगया एत्थ । किं जाणसि न हु एवं, खिज्जिहइ पडिक्खमाणो सो ॥ ९४० सा वि तयमणुणयंती, जंपइ मा कारणं विणा कुप्प । जम्हा अम्हागमणं, छलं विणा वल्लह ! न होइ ।। ९४१ ता उवविस भुंज तुमं, इय भणिउं तस्स अग्गओ धरिउं । तं भोयणपडिपुन्नं, भायणमिह भोयए तं च ॥ ९४२ कयभोयणेण पच्छा, तंबोलपयाणपुव्वमणुहविउं । सुरयसुहं तेण समं, खणमेक्कं तो गया सगिहं ।। ९४३ ।। एयं च सव्वमवि तेण तत्थ दठूण मूलदेवण । तच्चिट्ठियं मणायं, परिचत्तो चित्तसंखोहो ।। ९४४ ।। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दत्त - मूलदेवकहाण परिभावियं च जइ एरिसाणि नरवइघरेसु वि इमाणि । चरियाई विविहरक्खाविहाणरक्खिज्जमाणाण ।। ९४५ ।। तो अन्न संतिसुं भवणेसुं चोज्जमइमहंतमिणं । बाहिंगयाओ पुणरवि, जमिति सट्ठाणमबलाओ || ९४६ || होउ इमं तह वि अहं, अन्नत्थ वि कोउयं पलोएमि । एयाणमिह विचिंतिय, समुट्ठिओ ताओ ठाणाओ || ९४७ नियगेहमइगओ रयणिसेसमइवाहिउं पहायम्मि । कयपाहाइयकिच्चो, नीहरिओ निययगेहाओ ।। ९४८ ॥ पासइ परिब्भमंतो, एगं अवधूयवेसरूवेण । भिक्खाए परियडतं, वट्टंतमुदारतारुणे ।। ९४९ ।। लायन्नगुणनिवासं, कुलभवणं मंततंतसिद्धीण । खरहरयमहव्वइयं, वियडजडामउडकयसोहं ।। ९५० ॥ वयपभवेण जसेण व, उद्भूलणभूइरेणुणा धवलं । मुहकमलमडुयरेहिं व, नवमुहरोमेहिं राहिल्लं ।। ९५१ ।। नियकित्ती इव कुमुदुज्जलाए कलियं तु मुंडमालाए । ऊरुजुओवरि आबद्धघंटियाराव भरियदिसं ॥ ९५२ ॥ चरणनिवेसियनेउररवेण धम्मियजणं व सद्दितं । वामक्खंधारोवियखट्टंगविरायमाणं च ।। ९५३ ।। दट्ठूण मूलदेवो, तस्सणुरागेण जाइ अणुलग्गो । सो उण जणम्मि इंदियअलोलुयत्तेण अक्खलिओ ।। ९५४ ।। गेहाई पंच अडिउं, जहोवलद्धं गहाय भिक्खं च । गंतूण सिवतलायं, हरसिद्धी देवया पुरओ ।। ९५५ ।। तिगुणं तं पक्खालिय, जल-थल - नहयरजियाण दाउं च । एक्केक्कं तब्भागं, उव्वरियं भक्खर सयं च ॥ ९५६ तो आयमणं काउं, कयसंज्झोवासणो य संझाए । अत्थायलसिहरगए, रविम्मि खीणम्मि दिणसेसे || ९५७ ॥ तमनिवहबहलिएसु य, पहसानीसेसदिसविभागेसु । दिठि विणिक्खिवंतो, इओ तओ भमिउमाढत्तो ॥ ९५८ ॥ तद्दिट्ठिवायमसरिसमवलोईऊण मूलदेवो वि । दूरट्ठिओ पच्छन्नं, अलक्खिओ तमणुगच्छेइ ।। ९५९ ।। तो अब्भत्थियसूरस्स गणवइस्सत्थि पुव्वदिसभाए । गिहमेगं कुंभारस्स अन्नगेहाण दूर गयं ॥ ९६० ।। सो तत्थ पविसिऊणं इओ तओ जोइऊण पासाइं । पुव्वं संकेइयकुंभयारओ गहिय सुरभरियं ।। ९६१ ।। कायमयकूवयदुगं, थालीपट्टाइ तह य बहुमंसं । खट्टंगं मोत्तूणं, कंथापावरियसयलतणू ।। ९६२ ।। नीहरिऊणं तत्तो, ठाणाओ समागओ नियमढम्मि । जत्थेगागी निच्चं, निवसइ सो निययइच्छाए || ९६३ ।। तप्पायारंतो सव्वओ वि अवलोइउं मढपओलिं । ढक्केऊण पविट्ठो, मढस्स वरपट्टसालाए ।। ९६४ ।। लिहिऊण तत्थ मंडलमासणबंधं थिरं च काऊण । निच्चलसमाहिलग्गो, खणमेक्कं अच्छिऊण तहिं ।। ९६५ ।। अंगुट्ठमेत्तमेक्कं रमणि नीहारिऊण हिययाओ । कुणइ कमंडलुसलिलेण सिंचिउं जोव्वणारूढं ।। ९६६ ।। अवि य पुलिंदुमंडलेण व, निज्जिय अंबुरुहसोहपसरेण । वयणेण विरायंति, देवाण वि विहियचोज्जेण ॥ ९६७ ॥ उल्लसिरवयणससिकंतिवियसिए कुवलएं इव धरतिं । लच्छीए वासभवणे, नयणे तरुणयणमणहरणे ।। ९६८ ।। नासावंसं रुइरं, जोव्वणतरुपल्लवं व तह अहरं । वहमाणि तह रेहाहिं कंबुतुल्लं व वरकंठं ।। ९६९ ।। अंगुलिदलाण करपंकयाण निम्फत्तिविसलयाहिं व । अइकोमलाहिं उब्भासमाणियं बाहुलइयाहिं ॥ ९७० ॥ मरगयमणिमालालंकिएहिं रक्खाहिं वेढिएहिं च । मयरद्धयनिहिकुंभेहिं तुंगसिहणेहिं पासंति ।। ९७१ ।। ३७ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं रमणालवालउग्गयरोमलयामणहरेण मज्झेण । तिवलीतरंगपरिसंगएण अहियं विरायंति ।। ९७२ ॥ वियडं नियंबबिंबं, वम्महजूयारजूयफलयं व । अक्खक्खिवणसमत्थं, उव्वहमाणिं अइससोहं ।। ९७३ ।। मयणभवणस्स सरणा वंदणमालाए खंभजुयलं व । करिकरदंडसरिच्छं, धरमाणिं रम्ममूरुजुयं ॥ ९७४ ।। लायन्नसरसियाए, रत्तुप्पलसच्छहेहिं चरणेहिं । अरुणंगुलिदलनहमणिकेसररुइरेहिं रेहति ।। ९७५ ।। इय एरिसवररूवं, तं विहिउं मज्जमंसमाणीयं । जं पुव्वं तं भुंजइ, तीए समं गरुयपणएण ॥ ९७६ ॥ रइसोक्खं अणुहवइ य, खट्टगं कुंभयारगेहम्मि । मह वीसरियं ति भणित्तु उठ्ठिओ झ त्ति तट्ठाणा ॥ ९७७ ॥ निग्गच्छंतो भणइ य, जाव अहं एमि ताव तत्थेव । सुयणु ! तए ठायव्वं, इय भणिउं जाइ तुरियपओ ।। ९७८ मह संझं काउमणे, तम्मि गए सिवतलायसंमुहम्मि । इयराइ वि पुव्वं चिय, उप्पाइय कह वि वीसंभं ॥ ९७९ ।। तस्स सयासाओ वरा, तयत्थसंसाहणी महाविज्जा । जा संगहिया तीसे, पहावओ सा वि तह चेव ॥ ९८० ।। आलिहिय मंडलाओ ग्गिलित्तु अंगुट्ठमाणवरपुरिसं । सिंचित्तु कमंडलुपाणिएण से कुणइ तरुणत्तं ।। ९८१ ।। अणुरूवरूवलायन्नपुन्ननीसेसअवयवधरेणं । तो तेण समं सयगुणपीइपरा रमइ सा तत्थ ॥ ९८२ ।। रमिऊण सइच्छाए, आगमणे तस्स समयमवगम्म । लहुयं काऊण इमं पुरिसं निग्गिलइ सहस त्ति ॥ ९८३ ।। आगंतूणं इयरो वि झ त्ति तह चेव लहुयरं काउं । तीए सरीरं निग्गिलिय अंतरे पविसइ मढस्स । ९८४ ॥ एवं च मूलदेवो, सव्वं तव्वइयरं पलोएइ । पायारसंधिसंठियपिप्पलतरुसिहरमारूढो ॥ ९८५ ।। तो विम्हिओ मणेणं, उत्तरिऊणं च पिप्पलाओ तओ । निययगिहं गंतूणं, रयणीसेसं अइगमेइ ॥ ९८६ ॥ आयारिंगियमाईहिं जाणिउं चवलियं नियपियाए । बीयं च तओ पुच्छइ, साहइ सव्वं पि सा भीया ॥ ९८७ ।। अह जायम्मि पभाए, विक्कमसूरस्स राइणो पुरओ । गंतूण भणइ देवेण ताव अम्हे कया गिहिणो ।। ९८८ ॥ ता अम्ह उवरि गरुयं, देवो काउं पसायमेत्ताहे । भुंजउ अम्हाण गिहे, पडिवन्नं कह वि तं रन्ना ॥ ९८९ ।। तो उट्ठिऊण वुच्चइ पासम्मि महव्वइस्स तं पि तहा । भोयणकारवणत्थं, निमंतई निययगेहम्मि ॥ ९९० ।। तो भोयणस्स समए, समागओ तग्गिहं नरवरिंदो । विन्नवइ मूलदेवो, पयओ होऊण तं च तहिं ॥ ९९१ ।। देवस्स पायपंकयजुयलप्फंसेण तह महा जइणो । मह गेहं होउ पवित्तमेयमिय नाह बुद्धीए ॥ ९९२ ।। तुब्भे निमंतिया भोयणत्थमन्नो कवालसिहनामो । एगो य महव्वइओ निमंतिओ तुह पसाएण ॥ ९९३ ।। तस्स य भोयणठाणं, ववहियमेवप्पकप्पियं देव ! । एएण अप्पसाओ, कायव्वो तन्न मज्झुवरि ।। ९९४ ।। इय वोत्तूण नरिंद, भोयणसालाए नेइ हट्ठमणो । तत्थ य रन्नो जोग्गं, जह ठवियं आसणं पवरं ।। ९९५ ॥ तह अन्नाइ वि दो आसणाई थालाई तिन्नि य कमेण । वरकणयमयाइं दवावियाई तह अत्तणो चेवं ॥ ९९६ !! तिन्नेव आसणाई, तहेव भुंजइ ठिईए जइणो वि । रन्नो दिट्ठिनिवाए, कयाइं थालाई कलियाई ॥ ९९७ ।। तइंसियासणवरे, उवविसिउं नरवई तओ भणइ । भो मूलदेव ! एवं, मह नियडे किंतु कयमेयं ॥ ९९८ ।। आसणदुगमन्नं पि हु, तह थालाईणि भोयणवराई । तो भणइ मूलदेवो, सुण देव ! इहत्थि विन्नत्ती ।। ९९९ ।। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दत्त-मूलदेवकहाणयं पाणप्पियाए रहियं, केरिसयं भोयणं भवइ तम्हा । जा का वि वल्लहा तुह, आहविय तमित्थ ठावेसु ॥ १००० ।। अह सो वि चिल्लदेविं, हक्कारित्ता निवेसई तत्थ । जच्चंधं नियआसणसविहम्मि य मूलदेवो वि ॥ १००१ ॥ कावालियं च तत्तो, होऊण कयंजली भणइ एसो । भयवं ! तुज्झ वि एक्कल्लयस्स न हु भोयणं जुत्तं ।। १००२ ता निय हियया ओकड्ढियाए नियडे नियासणस्सेव । उववेसियाए उवभुंज निययदइयाए सह तुट्ठो ॥ १००३ ॥ तो मह एस रहस्सं, जाणइ इय चिंतिऊण तं भणइ । तं भणसि तं करेमी, हसिऊण तहेव कुणइ तयं ।। १००४ तो कावालियभज्ज पि भणइ सीसे कयंजली एसो । भयवइ ! तुम पि नियहिययवल्लह इह निवेसेसु || १००५ तेण समं तो भुंजसु, पियमाणुसविरहियाण अमणाण । सुरसं पि भोयणं जेण देइ सायं न परिभुत्तं ॥ १००६ ॥ तो तीय वि मज्झ रहस्समेस मुणइ त्ति कलियहिययाओ। उग्गिलिओ सो पुरिसो, ठविओ नियआसणासत्तो ।। १००७ अवलोइऊण तं सव्वमेव राया उ विम्हयक्खित्तो । परिभणइ मूलदेवं, किमेवमच्चब्भुयं कहसु ॥ १००८ ॥ विन्नवइ मूलदेवो, तओ निवं देव ! देसि जइ अभयं । तो विन्नवेमि देवेण एत्थ नो रूसियव्वं ति ।। १००९ ।। तो रन्नाणुन्नाओ, चेल्लादेवि पि जंपए एवं । देवि ! तए वि हु नियदइयविरहियाए न भोत्तव्वं ॥ १०१० ।। हक्कारिज्जउ ता निययवल्लहो बटरओ त्ति नामेण । हत्थिवओ नरनाहस्स हत्थिणो निव्विसंकाए ॥ १०११ ॥ भणइ तओ नरनाहो, एयं किं मूलदेव ! सो आह । उग्घाडिऊण अंगं, देवो अवलोयउ इमीए ।। १०१२ ।। तो तव्वयणं जा कुणइ नरवई ताव तीए पुट्ठीए । पासइ बिउणियकरनाडियाए घाए फुडसरूवे ॥ १०१३ ।। तो जच्चंधं आलवइ सुयणु ! आहविय दत्तयं वणियं । तेण समं पाणपिएण भोयणं कुण सइच्छाए ॥ १०१४ ॥ पुणरवि पासे होऊण मूलदेवो पयंपइ नरिंदं । देव ! पसाओ एसो, तुम्ह च्चिय जेण निसुणेह ।। १०१५ ॥ एयारिसाइं एयाण चेट्ठियाई वियाणमाणो वि । अहयं परिणयणपरम्मुहो वि परिणाविओ तुमए ॥ १०१६ ॥ अंगीकया मए सा, देवादेसेण चेव जच्चंधा । एवंविहं परिण, तीय वि देवो पलोएउ ॥ १०१७ ॥ ता एवंविहपावाण देव ! को वा करेउ वीसासं । दुग्गिज्झाणमणायारवासवलहीण जाणतो ॥ १०१८ ।। न हु देवस्स समाणो, अन्नो राया न यावि मह तुल्लो ! अवरो धुत्तो न परो, जई य तुल्लो कवालिस्स ।। १०१९ एए वि वंचयंती, ण एत्थ एयाण दुट्ठसीलाण । का गणणा इयरनरे, सुहीण दीणेसु किर होज्ज ॥ १०२० ।। एवं सोउं राया, हत्थिवयं ताव निग्गहावेइ । सव्वस्स दंडियं दत्तयं पि कारवइ अइरुट्ठो ।। १०२१ ।। जओ - नियदेसाओ कावालियं च निव्विसयमेव आणवइ । इय ते विडंबणं मूलदेवओ रायसंपत्ता ॥ १०२२ ।। ता जो जच्चंधाए, उवरिं दत्तस्स सो हु सुइराओ । जच्चंधाइ वि एवं, दिट्ठीराओ उ पवरस्स ।। १०२३ ॥ जम्हा स रायमहिलं, पलोइउं तयणु तीए अणुरत्तो । एवं निवजुवईय वि, तस्सोवरि रागपडिबंधो ।। १०२४ ।। कावालियस्स पुण हिययवत्तिणीए कयाइ नारीए । जो रागो सो संभोगमेत्तओ होइ नायव्वो ।। १०२५ ॥ दिव्ववहूय वि एवं, सहिययधिरियम्मि दिव्वपुरिसम्मि । अहवा तिहावि एक्केक्कए विरागोऽवगंतव्वो ।। १०२६ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एवं च मूलदेवेण दत्तयाई विडंबिया कह णु । जं परिपुट्ठे तुमए, तं कहियं तुज्झ नरनाह ! || १०२७ ।। एवं तिहावि अइरुदविवागरूवो, रागो मए नरवरिंद ! निवेइओ ते । एयस्स जे न हु गया वसवत्तिभावं, तेसिं सुहाई सयलाई अणिट्ठियाई || १०२८ || इय सोउमजियसेणो, भणइ मुणिदं जहट्ठियं साहु । कहियं रागसरूवं, तुमए अम्हं परिगयं च ।। १०२९ ।। ता एय जिणणदक्खं, नियदिक्खं देसु अम्ह पसिऊण । वयगहणमंतरेणं, न पारिमो जेण जेउमिमं || १०३० || तो मुणिणा संलत्तं, होसि न अज्ज वि तुमं वयग्गहणे । जोग्गो होयव्वं चक्कवट्टिणा जेण किर तुमए । १०३१ ता होसु निच्चलमणो, जिणुत्ततत्तत्थसद्दहाणम्मि । तिविहं तिविहेण परिच्चयित्तु मिच्छत्तसब्भावं ॥ १०३२ ॥ पडिवज्जसु जिणनाहं, देवत्तेणं गुरू य मुणिवसभे । तो तुज्झ वयग्गहणं, पि होहिई पच्छिमवयम्मि || १०३३ || ४० भणिए मुणिवणा, सिक्खं गहिऊण भत्तिभरकलिओ । अभिवंदिऊण मुणिवरमह चलिओ नियपुरीहुत्तं ॥ १०३४ संपत्तो स कमेणं, महिंदरायस्स सह नरिंदेहिं । विज्जाहरवंदेण य, समन्निओ नियपुरीए बहिं ।। १०३५ ।। तं सोउं सकलत्तमुक्खयरिडं पत्तं पुरीए बहिं, लच्छीए महईए भूसियतणुं संजायरोमुग्गमो । निग्गंतूण पियासमं पुरजणेणंतेउरेणं तहा, संतोसप्पसरंतबाहसलिलो घेत्तुं पविट्ठो पुरिं ।। १०३६ ।। तत्थागओ य जणयाइ जणे जणित्ता, आणंदबिंदुकरनिम्मलसोममुत्ती । मायाइदोसरहिओ नियमाउयाए, काउं पणाममसमं स जणेइ तो ॥ १०३७ || तुट्ठो तस्स समागमम्मि समयं बंधूहिं राया तओ, दाविंतो अभयप्पयाण मणहं मोतीओ मोयाविउं । आणंदूसवमुत्तमं नियपुरे तं कारवेई लहुं, जं दट्ठूण जणस्स निम्मलयरा धम्मे मई जायए || १०३८ || तयणु गुरुपमोया बंधहेऊम्मि धम्मे, जणियजणथिरत्तो पत्तसम्मत्तवित्तो । गमइ अजियसेणो तत्थ संसुद्धचित्तो, गुरुसिरिमणुपतो कालमिंदो व्व सग्गे ॥ १०३९ ।। इय वसणं पि हु पुन्नग्गलाण मुणिऊण संपयामूलं । उज्जमह जणा सुकए, वरजसदेवत्तहेउम्मि || १०४० || इह चंदप्पहचरिए, तइए पव्वम्मि जो समुक्खित्तो। अत्थो जसदेवंके, स एस सव्वो परिसमत्तो ॥ १०४१ || एत्तो अजियंजयनरवइस्स जायं जहा वयग्गहणं । तह भो चउत्थपव्वे, कहिज्जमाणं निसामेह || १०४२ ॥ (चउत्थो पव्वो - ) जोगिगणाणं आणंदरूवमप्पाणगं व अप्पाणं । कुणमाणं निययतणुप्पहाए चंदप्पहं नमह ।। १०४३ || अह पुव्वजम्मकयसुकयकम्मुणा तस्स अजियसेणस्स । मणचिंतियसंपज्जंतसयलसंसारसोक्खस्स || १०४४ ।। कइया विनिययदेसे, समुट्ठिए कंटए समुद्धरिउं । कयसावहाणहिययस्स रज्जकज्जेसु सत्तस्स ।। १०४५ ।। कइया वि दीणदुक्खियजणाणुकंपाए सयलभुवणं पि । कुणमाणस्स कयत्थं, मेहस्स व मेहवुट्ठीहिं ।। १०४६ ।। कइयावि बुद्धिलीणं, सव्वं पि जगं वहति जे हियए । तेहिं सुमंतीहिं समं, मंतणयं मंतयंतस्स ।। १०४७ ॥ कइयावि तुरयगयवाहणाइचिंता वट्टमाणस्स । कइयावि लोयकज्जाई साहमाणस्स विविहारं ॥। १०४८ ॥ कइयावि निययदइयाकवोलपालीसु पत्तवल्लीओ । विरयंतस्स सलीलं, कत्थूरियमाइदव्वेहिं ॥ १०४९ || Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियंजयनरवड ४१ इच्चाइ विणोएहि, दिणे गमंतस्स अन्नदियहम्मि । आउहसालाए दिव्वचक्करयणं समुप्पन्नं ॥ १०५० ।। (कुलयं) अवलोइऊण जं किरणजालनिम्महियतिमिरनिउरुंबं । मन्नइ लोओ सेवासमागयं तरणिबिंबं व ॥ १०५१ ।। वग्गंतसत्तुवग्गस्स खग्गमुग्गं भयं उवजिणितं । निययज्जुइउज्जोइयदिसविवरं तह य संजायं ॥ १०५२ ॥ नियकालिमाइ जियसयलजलयमवलोइऊण जं च जणो । भणइ कयंतो एयच्छलेण सेवेइ चक्कहरं ।। १०५३ ।। जायं च तस्स छत्तं, सुपवित्तं चंदकिरणसच्छायं । सेवागयाए लच्छीए संतियं वासपउमं व ॥ १०५४ ।। सिंधुजलतरणमाइसु, किरियासुवओगिचम्मरयणं पि । तं संजायं पुन्नेहिं तस्स जं जणइ जणचोज्जं ॥ १०५५ ।। जं च धराइ पसारियमणप्पमंडलमुदारजोइं च । चक्कहरमहिमनिज्जियनहं व संकुडियमिह पत्तं ॥ १०५६ ।। पुव्वभवोवज्जियपुन्नपुंजवुड्ढीए दंडरयणं पि । तं से जायं जं खलइ न खलु गुरुपव्वएसुं पि ।। १०५७ ॥ सहइ करजालरंजियनहविवरं जं च सुरवइकराओ । चक्किभयकंपमाणाउ निवडिओ वज्जदंडो व्व ॥ १०५८ ।। रविकरअगोयरस्स वि, गुहाइ तिमिरस्स नासणनिमित्तं । सेवं पवेसिया ससिकल व्व से कागिणी जाया ।। १०५९ जइ होज्ज विज्जुपुंजो, कथमवि सोमो थिरप्पयासो य । घणमेहतिमिरहरणं, तो तेणुवमिज्ज तस्स मणिरयणं ।। १०६० (गीतिका) जस्स छलेणं गरुयत्तनिज्जियो सुरगिरि व्व सेवमिओ । तं करिवररयणं तस्स जायमच्चब्भुयसरूवं ।। १०६१ ।। जस्स मिसेणं मुत्तो, व मारुओ सेवए सविहवत्ती । जियमणवेगं उत्तमहयरयणं तस्स तं मिलियं ॥ १०६२ ।। सोढुमसक्को गुरुवइरिवीरवारेण विक्कमो जस्स । नियतेयविजियभाणू, स तस्स सेणावई आसि || १०६३ ॥ देवासुरनरकुग्गहउवद्दवावहरणम्मि सुसमत्थो । सोहइ से पच्चक्खो, पुरोहिओ पुन्नरासि व्व ॥ १०६४ ।। तक्खण संचिंतियसुरविमाणघडणे वि जस्स सामत्थं । से अच्चब्भुयकम्मो, जाओ सो वड्ढई रयणं ।। १०६५ ।। जो लोयनीइनलिणीसरोवरं चित्तभित्तिलिहिए य । आयव्वए धरेई, सया वि न य मुज्झइ कहिं पि ॥ १०६६ ।। सो बुद्धिविहवनिज्जियबिहप्फई सइ विइन्ननियचित्तो। चक्किगिहविविहकज्जेसु संगओ गिहवई तस्स ।। १०६७ (जुयलं) इत्थीरयणं पुण पुव्वमेव भणियं ससिप्पहा तस्स । एवं इमाई चोद्दस वि चारुरयणाई सिद्धाइं ।। १०६८ ।। एक्केक्कयं च रयणं, जक्खसहस्सेण परिवुडं तस्स । दो य सहस्सा जक्खाण अंगरक्खोवउत्ता से || १०६९ ।। रयणाणि व नव निहीउ, सुकम्मसंभारपेसिया पयडा । सन्निहियदिव्वदेवा, उवट्ठिया सिरिहरे तस्स ।। १०७० ।। ते य इमे - नेसप्पे पंडुयए, पिंगलए सव्वरयणनामे य ! काले य महाकाले, माणवगे पउमसंखे य ॥ १०७१ ॥ नेसप्पाओ सयणासणोवहाणाइ देहसुहहेऊ । संपज्जइ से सव्वं, महिड्ढिरम्मुज्जलविसालं ॥ १०७२ ।। सालि-जव-वीहि-तिल-चणय-मुग्ग-मासायसी-तुयरिमाई । धन्नं से संजायइ, सयलं पि हु पंडुयनिहीओ ॥ १०७३ मणि-मउड-कडय-कुंडलकेउरसुतारहारमाईणि । वरभूसणाणि अइमणहराणि से पिंगलो देइ ।। १०७४ ।। रयणाण पंचवन्नाण किरणजालेण चित्तरूवेण । आबद्धइंदधणुहाण सव्वरयणाउ उप्पत्ती ।। १०७५ ।। रुक्ख-लय-गम्मग-गुच्छाइसंभवं चित्तहारिरसगंध । सव्वोउयफलफुल्लाइ देइ कालो निही तस्स ।। १०७६ ।। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं रमणिज्जरयणतवणिज्जरुप्पतउतंबलोहमइयाणिं । गिहिरच्छाणं विविहाण महाकालाओ से जम्मो ॥ १०७७ ।। सर-सत्ति-सेल्लयावल्ल-भल्ल-मुग्गर-मुसुंढिमाईणि । सत्थाणि से पयच्छइ, रिउदप्पहराणि माणवगो ॥ १०७८ पउमनिही उण नाणाविहाणि वत्थाणि चित्तहारीणि । पूरइ से पडिपट्टउलरयणकंबलयमाईणि || १०७९ ।। सोइंदियसोक्खकरं, मणोहरं, तस्स जं च आउज्जं । तं संपज्जइ सयलं पि संखनिहिणो घणतयाई ॥ १०८० ॥ एमाइसमिद्धिसमागमे वि जाओ न से अहंकारो । अहवा वि य रुट्ठो, मणम्मि गव्वो कहिं वसउ ॥ १०८१ ॥ तयणु अणूसुगहियएण तेण सिरिवीयरागचरणाण । काऊण गंधधूवाणुलेवणाईहिं वरपूयं । १०८२ ।। महईए संपयाए, सबंधवेणं निहीण रयणेण । पारद्धा परमपमोयसंगएणं महामहिमा ।। १०८३ ॥ (जुयल) तीए अवसाणम्मि य, सव्वपहाणे दिणे नियगुरूहिं । रज्जाहिसेयविहिणा, ठविओ सो चक्कवट्टिपए ।। १०८४ ॥ भूमंडलं न केवलमूससियं तयभिसेयसलिलेण । हरिसभरनिब्भरं माणसं पि नियपणइवग्गस्स ॥ १०८५ ।। सुपसत्तो सवियासो, मणोहरो निम्मलंबरत्तेण । जाओ न केवलं पुरवहूण निवहो दिसाणं पि ॥ १०८६ ।। न परं गंधायड्ढियभमरोलिमणोहरेहिं कुसुमेहिं । परिपूरिया मही पत्थिवेहिं दिव्वेहिं वि निकामं ॥ १०८७ ।। न परं मित्ताण घराई सययमूसवनिविट्ठचित्ताण । उग्गयकेउसयाई, सत्तूण वि भाविवसणाण ।। १०८८ ॥ वारंगणाण गीयाइएहिं कयविबुहवग्गतोसेहिं । न परं वसुहा सुरवत्तिणी वि रम्मा सुरवहूण || १०८९ ।। नरवइघरंगणे मंगलाइं गायंति गायणा न परं । तुंबुरुमाई वि नहंगणम्मि कलकोइलालावा ॥ १०९० ॥ नरवइपहेसु पंसू न परं समिओ नरेहिं सलिलेण ! गंधोदयवुट्ठीए, तियसेहि वि तयणुरत्तेहिं ॥ १०९१ ।। सीहासणं न केवलमक्कंतं धरणिपावियपइटें । तेण गुरुविक्कमेणं, नीसेसं वइरिचक्कं पि || १०९२ ।। गुरुयणकयाहिसेओ, सो चक्किसिरीए सहइ अहिययरं । रविकरकयसंसंगो, दिणनाहमणि व्व कंतीए ।। १०९३ ।। तह तेण पुन्ननिहिणा, सुएण अजियंजओ वि संजाओ । राईण पुन्नवंताण मउडमाणिक्कसोहधरो ।। १०९४ ॥ अन्नं च पुत्तरयणेण तेण सो पाविओ कयत्थत्तं । गरुयप्पयावकलिओ, दिणनाहो वासरेणं व ॥ १०९५ ।। अह अन्नया य भवणेक्कबंधवो मोहतिमिरदिवसयरो । पयनहससिजोण्हाण्हवियनमिरसुररायसिरमउडो ॥ १०९६ पत्तो सयपहो नाम जिणवरो भवियलोयनिवहस्स । नासंतो नीसेस, मिच्छत्तणंतभवजणयं ॥ १०९७ ।। (जुयल) पुव्वुत्तरदिसभाए, सुरेहिं रइयं च से समोसरणं । सीहासणे निविट्ठो, पुव्वाभिमुहो जिणो तत्थ ॥ १०९८ ।। सोऊण समोसरियं, जिणवसभं चक्कवट्टिणा सहिओ । अजियंजयनरनाहो, नीहरिओ वंदणट्ठाए ॥ १०९९ ।। भत्तिभरनिब्भरंगो, संपत्तो समवसरणभूमीए । मोत्तूण मउडमाई, वंदइ तिपयाहिणा पुव्वं ॥ ११०० ।। तो जिणवरिंदमवलोइऊण सुपसंतरूवसुहकति । हरिसुल्लसंतपुलओ, सपुत्तओ थोउमाढत्तो ॥ ११०१ ॥ जय जयबंधव परमरूव सभभावनिच्चलावास । वासवनयपयपंकय ! कयतिहयणसोह ! जयनाह ! ॥ ११०२ ।। जय निव्वियार ! निम्मम ! नीरवाय ! कलंकमुक्क ! गुणनिलय । नीराय रोगजरजम्ममरणपेरंतसंपत्त ! ।। ११०३ ॥ जय जम्मसमयसम्मिलियसयलसुरनाहमेरुकयन्हवण ! जय गब्भम्मि वि आइमतिनाणलच्छीए कुलभवण ! ।। ११०४ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियंजयनरव जय चारित्ताणंतरमणपज्जवनाणलाभचउनाण ! । जय घाइकम्मनिम्महणलद्धवरकेवलन्नाण ! ।। ११०५ ।। जय भवभीममहाडइ निवडिय भविओहपरमसत्थाह ! ! जय सुप्पभाव ! भवभाविभावपरिहारसंतुट्ठ ! ॥ ११०६ जय दड्ढ रज्जुसंठाण धरियवेयणिय-नामगोयाऊ । भवियावबोहकज्जेण नाह ! कारुण्णजोगाओ ।। ११०७ ।। जय निहणियमयणमहल्लमल्लनिस्सल्लसुकयकल्लाण ! । जय जिणनाह ! सयंपहा, सिवप्पहं देसु मे अणहं ॥ ११०८ तुह देव ! को समत्थो, अणंतगुणरयणरोहणगिरिस्स । काउं गुणसंथवणं, भत्तीए तहा वि मह पसिय ॥ ११०९ ।। इय भूरिभत्तिउल्लसियबहलरोमंचकंचुयच्छाओ । थोउं जिणेसरं सह सुएण सट्ठाणमुवविट्ठो ॥ १११० ।। पत्थावं लहिऊणं, सीसे आबद्धअंजलीबंधो । अजियंजयनरनाहो, पुच्छइ जिणनाहमभिउत्तो ।। ११११ ।। भयवं ! कहमेस जिओ, सरूवओ विमलफलिहरूवो वि । गुरुदुक्खहेउ भूयं, संचिणइ किलिट्ठ कम्मचयं ॥ १११२ सो भणइ जिणवरिंदो, जोयणनीहारिणीए वाणीए । सुण अजियंजयनरवरा, जं पुढं उत्तरं तस्स || १११३ ।। जीवस्स कम्मबंधणहेउ सिद्धा हवंति खलु पंच । मिच्छत्तमविरई तह, पमायजोगा कसाया य ।। १११४ ।। तेसु य मिच्छत्तमिणं, जमसद्दहणं खु तत्थभावाणं । विवरीयसद्दहाणं, अहवा संसीइ करणं च ।। १११५ ।। तत्था य इत्थ भावा, विन्नेया जे जहट्ठिया हुंति । देवगुरुधम्ममग्गा, तत्ताणि य तप्पसिद्धाणि ॥ १११६ ।। तेसिं असद्दहाणं, नाहियवाइत्तणेण जं कुणइ । जीवो तेण निबंधइ, अणंतदुहकारणं कम्मं ।। १११७ ।। जो वि अदेवाइसु देवबुद्धिमाई करेइ धम्मी वि । विवरीयसद्दहाणे, सो वि हु उवचिणइ कम्माइं ॥ १११८ ।। जओ - भक्खमभक्खं पेयमपेयं किच्चं अकिच्चमेवेह । मन्नतो दिसमूढो व्व जाइ अन्नत्थ अन्नमणो ॥ १११९ ॥ संसयकरणो वेवन्ननिययवित्ती अओ इओ विसया । जीवस्स कम्मबंधो, जायइ घणदुक्खसंजणणो || ११२० ।। जो उण सम्मत्तधरो, असंसओ अविवरीयसद्दहणो । सो उण कम्मपबंधं, विच्छिदइ थेवकालेण ॥ ११२१ ।। पाणाइवायमाईण सव्वदोसाण कुगइमूलाण । जं जीवो न नियत्तिं, करेइ एसा अविरईओ ॥ ११२२ ।। एईए मज्जमहुमंसऽणंतपंचुंबराइपरिभोगे । अनिवारियनियइच्छा, चिणिति अइतिव्वकम्माइं ॥ ११२३ ।। जइ वि न सव्वपवित्ती, संभवइ तहा वि तयनिवित्तीए । जीवाण कम्मबंधो, बहुओ थोवो उ विरईए ।। ११२४ ।। अट्ठविहो सत्तविहो, य छव्विहो एगभेयओ तह य । बंधो जीवस्स भवे, जम्हा गुणठाणगवसेण ॥ ११२५ ॥ जम्मि य अंतमुहुत्ते, आउं बंधेज्ज परभवपउग्गं । अट्ठविहो तत्थ भवे, बंधो जीवस्स सव्वस्स ॥ ११२६ ॥ सत्तविहो उण बंधो, सेसे कालम्मि आउरहियस्स । छव्विहबंधो उण सुहुमसंपरायम्मि चडियस्स ।। ११२७ ॥ सो उण दुसमयठिइओ, नेओ ठिइ जणगकारणाभावा । अणुभागट्ठिइबंधा, कसायहेऊ सया जम्हा ॥ ११२८ ।। जो पुण करेइ विरई, पावट्ठाणाण सव्वओ चेव । विसएसु अगिद्धप्पा, तस्स न तप्पच्चओ बंधो ॥ ११२९ ।। मज्जासत्तो विसएसु मुच्छिओ जं कसायवसवत्ती । निद्दाविगहाभिरओ, अकुसलकम्मेसु अभिरमइ ॥ ११३० ।। सद्धम्मकम्मसिढिलो, जीवो सो उण भणिज्जइ पमाओ । एयस्स वि आयत्तो, बंधइ घणचिक्कणं कम्मं ।। ११३१ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जओ निहणइ मई पसन्नं, अकुसलमुद्दीवर मणपवित्तिं । उल्लासइ मोहतमं, अहह पमाओ महापावो ।। ११३२ ।। जो उण पमायपसरं, भंजित्ता विरियजोगओ जीवो। सद्दिट्ठिनाण- चरणो, न तस्स तक्कारणो बंधो || १९३३ || जोगा यतिन्नि दुप्पणिहियाओ मणवयणकायरूवाओ । कमस्सासवहेऊ, हवंति अइसकिलिट्ठस्स ॥। ११३४ ।। जो चिंतेइ मणेणं, जंपइ वायाए कुणइ कायेण । पावट्ठाणपवित्तिं, तस्स हु दुप्पणिहिया जोगा ।। ११३५ ।। एए चउत्थगा कम्मबंधहेऊ हवंति नायव्वा । एए वि जो निरुंभइ, सो मुच्चर कम्मबंधेण | ११३६ ।। कोहाई उकसाया, जे इह मणसुद्धिहरणगरुयबला । ते पंचमगा हेऊ, गुरुकम्मोवज्जणम्मि जओ | ११३७ || वल्लि व चित्तसुद्धिं, कोहो अग्गि व्व दहइ जीवाण । माणो विसद्दुमो इव, विवागकडुयप्फलो बाढं ।। ११३८ अइकूरकम्मसिसुसंजणणी जणणि व्व होइ माया वि । लोहो सव्वगुणाणं, विणासओ दोसजणगो य । १९३९ ।। एत्तो च्चिय को हाईभावमला चित्तसंकिलेसस्स । हेऊ हुंति जियाणं, अणंतसंसारसंजणगा ।। ११४० ।। उवसममद्दवअज्जवसंतोसपरायणा कसायरिऊ । जे निग्गिण्हंति पुणो, तेसिं विहडंति कम्मचया ॥। ११४१ ।। एवं एए पंच वि, कहिया तुह राय ! कम्मबंधम्मि । हेऊ संखेवेणं, अणंतदुक्खोहमूलम्मि ।। ११४२ ॥ ओघेण वि एयाणं, सरूवमवगम्म केइ लहुकम्मा ! सुविवेगसंगईए, सोम व्व कुणंति परिहारं ।। ११४३ ।। अन्ने उण गुरुकम्मा, सोमागुरुणो व्व दिट्ठगुरुदोसा । पच्चक्खं एयाणं, परिहारे अभिमुहा होंति ।। ११४४ || गुरुतरकम्मा पुण केइ दूरभव्वा अभव्वगा अहवा । अणुहवमाणा वि दुहं, इमाण न कुणंति परिहारं ।। ११४५ ।। एत्थंतरम्मि सीसे, कयंजली नरवरो भणइ भयवं । का सोमा के य गुरु, इमाए दिट्ठेतिया जे उ ।। ११४६ ।। तो दसणकिरणनासियतमाए वाणीए जोयणगमाए । भणइ जिणो सुणसु नरिंद ! कोउयं अत्थि जइ तुज्झ ।। ११४७ (सोमाकहा - ) सिरिचंदप्पहजिणचरियं जंबुद्दीवे दीवे, भारहवासम्भि सुप्पसिद्धम्मि । वरपुरगुणोववेयं, अत्थि पुरं सिरिपुरं नाम ॥। ११४८ ॥ नंदणनामो सेट्ठी, तत्थासि पभूयरिद्धिसंपत्तो । जिणवयणभावियमई, सुसावओ साहुपयभत्तो || ११४९ ।। तस् य जिणमइनामेण भारिया ताण सिरिमई धूया । पिइ माइसंगईए, निरया बाला वि जिणधम्मे ।। ११५० ।। तसे उ सही सोमा, समरूत्रवया पुरोहियस्स सुया । सइ संगईए ताणं, जाया दोण्हं पि घणपीई ।। ११५१ ।। नवरं कुक्कमागयमाहणधम्मम्मि सा समासत्ता । सेट्ठिसुया जिणधम्मे, एवं वच्चंति ताण दिणा ।। ११५२ ।। अन्नम्म दिणे ताओ, वीसंभकहासु वट्टमाणासु । धम्मवियारं काउं, पारद्धा पवरपीइजुया ।। ११५३ ।। तो सिरिमईए भणिया, सोमा भद्दे ! न एत्थ जिणधम्मं । मोत्तूण अत्थि धम्मो, सिवसुहसंसाहगो अन्नो ।। ११५४ दंसणनाणचरित्ताइं जेण मोक्खस्स हेउणो हुंति । ताइं पुण सम्मसद्देण लंछियाई इहेव जओ ।। ११५५ ।। जह इह जीवाजीवा, भणिया बंधो य पुन्नपावं च । आसवसंवरनिज्जरमोक्खा तह नत्थि अन्नत्थ ।। ११५६ ।। जह वा सम्मद्दंसणबलेण सद्दहियसयलसत्तत्थ । सण्णाणनायसच्चरणवित्थरा चरियचारित्ता ।। ११५७ ।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियंजयनरवइ मिच्छत्ताविरइकसायजोगमाईण भग्गसंपसरा । गुरुकम्मबंधहेऊ ण जंति मोक्खं सया सोक्खं ।। ११५८ ।। न तहा अन्नत्थ अओ धम्मो जिणदेसिओ च्चिय मओ मे । कारण सुद्धीओ वि हु, तं पि हु निसुणेसु उवउत्ता ॥ ११५९ रागो दोसो मोहो, एए अलियत्तकारणं दोसा । जस्स उ न इमे को तस्स अलियभणणम्मि भण हेऊ ।। ११६० ॥ जियरागदोसमोहा, जिणिदयंदा अओ उ तब्भणिओ । धम्मो कारणसुद्धो, विन्नेओ सुद्धबुद्धीहिं ॥ ११६१ || इय सिरिमईए वयणं, सोउं सोमाए परिणयं चित्ते । अहवा सविवेयाणं, निमित्तेमेत्तं परो होइ ।। ११६२ ।। तो भणियं सोमाए, सहि ! सव्वं जं तए इमं भणियं । मज्झवि सम्मयमेयं, धम्मसरूवं समग्गं पि ॥। ११६३ ॥ मज्झवि अरहं देवो, तदंसणवत्तिणो गुरु साहू । जीवाइ तप्परूवियवत्थूसु य तत्तपरिणामो ।। ११६४ ।। अन्नं पि धम्मकिच्चं, संपइ जं मज्झ उवसमइ जोग्गं । तं भणसु जेण तप्पडिवत्तीए सुसाविया होमि ॥। ११६५ तो तप्परिक्खणत्थं, सिरिमइए तीए सम्मुहं भणियं । सहि ! सुणसु ताव एक्कं अक्खाणं एत्थ अत्थम्मि | ११६६ (झुंटणवणिककहा -) ४५ एत्थेव भरहवासे, अंगइया नाम अत्थि वरनयरी । अमरावइ व्व कयविबुहचित्ततोसा समिद्धीए | ११६७ ॥ तत्थासि धणो सेट्ठी, वेसमणो इव धणेण विक्खाओ । भज्जा य धणसिरी से, सो भुंजइ तीए सह भोए ।। ११६८ सामिपुरं नामेणं, इओ य विक्खायरिद्धिवित्थारं । अत्थि पहाणं पट्टणमहेसि संखो तहिं सेट्ठी ।। ११६९ ॥ अंगइयाए पत्तो, वणिज्जकज्जेण अन्नया संखो । भवियव्वयावसेणं, धणसेट्ठिगिहे समायाओ ॥ ११७० ॥ धणसेट्ठिणा समाणं, जाया पीई इम्मस अइबहुया । तीए थिरत्तनिमित्तं, संखेण धणो इमं भणिओ ॥ ११७१ || अणुकूलदेव्ववसओ, जइ तुह पुत्तो सुया य मह होही । ता अन्नोन्नं ताणं, परिणयणं कारिपव्वं ति ।। ११७२ ।। जेसा तुम सह जाया पीई न तुट्टई अम्ह । पुत्ताइसंतई विय वयसिया लहइ वित्थारं ॥ ११७३ || तो भइ धणो कस्स व, न बहुमयं तुज्झ वयणमेयं ति । को वा घयउण्णेहिं, सक्करसंगं न अहिलस | ११७४ एवं च संखवयणे, पडिवण्णे अन्नया य से जाओ। पुत्तो संखस्स उ पुत्तिया य पत्ताइं तारुण्णं ।। ११७५ ।। तो सुत्थेदि, ताण विवाहो महाविभूईए । काराविआ धणेणं, संखेण य तुट्ठचित्तेणं ॥ ११७६ ।। दो पि हु अन्नोन्नं, पीईए उदारभोगसत्ताण । वच्चंतेसु दिणेसुं, लोयंतरिओ धणो जाओ ॥ ११७७ || तप्पुत्तस्स पुन्नक्खण विहवक्खएण संपत्ते । भज्जाए भन्नइ इमं ससुरगिहे मग्ग झुंटणयं ॥ ११७८ ॥ सो हु उरब्भविसेसो, सुणहागारो जणस्स हसणिज्जो । रोमेहिं तस्स जायइ, कंबलरयणं महामोल्लं ।। ११७९ ।। पिउगेहे निवसंती बालभावे मए वि रोमाई । से कत्तिउमब्भसियाई नाह ! ता मा विलंबे ॥ ११८० ॥ वच्चसु ससुरसमीवं, मग्गसु आणेसु मज्झ पासम्मि । तं झ त्ति जेण उन्नं, से छहि मासेहिं कत्तेमि ॥ ११८१ ॥ लद्धो य सो तए खलु, उच्छंगगओ सयावि धरियव्वो । आणेयव्वो हियए, निवेसियो अप्पमत्तेण ॥ ११८२ ॥ वच्छयलधरियमेयं, दट्ट्डुं मुक्खो जणो तुमं हसिही । न स गणियव्वो तुमए, गुरुलाभुप्पायणमणेण ॥। ११८३ ।। इवं च आणिए नाह ! तम्मि से कत्तिएहिं रोमेहिं । कंबलरयणं होही, तं होही लक्खमुल्लं जं ॥ ११८४ | Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जइ पुण जणहासाओ, पमायओ वा नियाओ देहाओ । तं दूरे पि य मुंचसि, सो मरिही सो न संदेहो ॥ ११८५ न मयम्मि तम्मि लाभो, तुह होही न वि य ससुरमाईण । ता जत्तेणं पिययम ! इमो तए रक्खियव्वी त्ति ॥ ११८६ एवं भणिए सव्वं, अब्भुवगंतुं पियाए सो वयणं । पत्तो ससुरसयासं, स मग्गिओ तेण लद्धो य ॥ ११८७ ।। नवरं ससुरेणं सालयाइलोएण तह य सिक्खविओ । सव्वं तहेव पडिवज्जिऊण चलियो सपुरहुत्तं ।। ११८८ ।। आगच्छंतो स कमेण परिचियापरिचिएहिं लोएहिं । पुच्छिज्जइ किं एयं, उरणयं वहसि हिययकयं ।। ११८९ ।। सो भणइ ससुरगेहं, गओ अहं तत्थ एस संपत्तो । गुरुबहुमाणेण अओ, वहिज्जए एव धम्मो त्ति ॥ ११९० ॥ तो लोएण हसिज्जइ, ससुरगिहे सुंदरो तए लाभो । लद्धो इमेण होही, तुब्भं दारिद्दवोच्छेओ ॥ ११९१ ।। तो एसो लज्जतो, वि ताण सिक्खं मणम्मि धारितो । ससुराईणं तं मुयइ नेव पत्तो य नियनयरं ।। ११९२ ।। चिंतइ य एस एत्तियभूमि संपाविओ मए ताव । उरणओ लोएणं, हसिज्जमाणो ण वि पगामं ॥ ११९३ ।। इण्हि थोवं चिय गेहअंतरं ता इमम्मि उज्जाणे । नयरासन्ने धरिउं, एयं वच्चामि नियभवणं ।। ११९४ ।। एत्थ जओ मह बहवे, मित्ताई पुव्वपरिचिया लोया । हसियव्वो तेहिं अहं, समीवधरियम्मि एयम्मि ।। ११९५ ।। इय चिंतिऊण धरियं, तं आरामे गओ सयं गेहं । दिट्ठो य समहिलाए, पुट्ठो य तहिं स झुंटणओ || ११९६ भणियं इमेण मुक्को, नयरासन्नम्मि चेव उज्जाणे । तो भणइ इमा हा हा, हयास एसो मओ होही ॥ ११९७ ।। इय महिलाए भणिए, वलिऊण गओ स तम्मि उज्जाणे । तग्गहणऊसुयमणो, ता जाव तयं पलोएड् ।। ११९८ ।। जइ अत्थिणा वि इमिणा, मुक्को तुममेगगो इमम्मि वणे । मह किं तुमए त्ति विचिंतिऊण जीवेण परिचत्तं ॥ ११९९ दठूणं तयवत्थं, पच्छायावानलेण दज्झतो । बहु सोइउं पवत्तो, किं चत्तो जणुवहासभया ॥ १२०० ।। हा जइ न विमुंचतो, अहमेयं ता महंतलाभस्स । भायणमवस्स हुतो, अभग्गवंतो परमहं हि ।। १२०१ ।। । एमाइ झूरिऊणं, काई वि रोमाई तस्स घेत्तूण । महिलाए अप्पियाई, तीए परिकम्मियाई च।। १२०२ ।। जाओ अप्पो लाभो, समीहियत्थो उ नेय संपन्नो । अविसयविसयाए खलु, लज्जाए इमो परीणामो ॥ १२०३ ॥ एत्थुवणयं पि निसुणसु, झुंटणगसमो हविज्ज इह धम्मो । पुव्वावराविरुद्धो, निदंसिओ जिणवरिंदेहिं ॥ १२०४ ।। वणियसमा तप्पडिवज्जगा य तेसु य कुतित्थियाइहिं । उवहसिया के वि परिच्चयंति पडिवज्जिङ पि इमं ।। १२०५ भज्जाससुराईहि य सिक्खवियो वाणिओ जहा निउणं । तह गुरुयणोवएसो, धम्म पडिवज्जिउमणाण ॥ १२०६ ।। ताण हि एक्करयाणं, अवगणिऊणं गुरूण उवएसं । अबुहजणेणुवहसिया, मुयंति जे पत्तमवि धम्मं ॥ १२०७ ॥ झुंटणवणिओ व्व इहं, हवंति ते दुक्खभाइणो जीवा । नरयाइकुगइपडिया, पयंडपावप्फलोवहया ।। १२०८ ।। जे ऊण निच्छियसार, गहियं पाणच्चए वि न चयंति । धम्ममिणं ते भद्दे ! सुगइसुहाराहया हुंति ॥ १२०९ ॥ ता झुटणवणिओवमसत्ताण न एस होइ दायव्वो । तेसिं चेव हियट्ठा, निद्धाहारो व्व जरियाण ॥ १२१० ॥ एवं सुणिऊणत्थं, दिळंतो सिरिमई तओ आह । को सो गोव्वरवणिओ, जो दिळंतीकओ तुमए ॥ १२११ ।। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोब्बरवणिककहा (गोब्बरवणिककहा --) पडिभणइ इमा निसुणसु, सयज्झिए अत्थि कोउयं जइ ते । एत्थेव अत्थि पयडा, वीसपुरी नाम वरनयरी ।। १२१२ बोहित्थवाणियो तत्थ आसि दत्तो त्ति नाम विक्खाओ । दुत्थियजणोवयारी, महिड्ढिओ बुद्धिसंपत्तो ॥ १२१३ ॥ कालंतरे तहाविहकम्मोदयओ इमस्स संजाओ । विहवक्खओ सिरीए, अहवा चवलत्तणं पयडं ।। १२१४ ।। जओ भणियं - चंचलवित्ती एह वढमई परियाणिय लच्छि । कोथुहकिरणकरंवियइ थिरकण्ह वि न वच्छि ॥ १२१५ ॥ खीरोयजलविणिग्गमसमए च्चिय सिक्खियं हयासाए । चवलत्तणं सिरीए, तरलतरंगुग्गमाओ व्व ।। १२१६ ॥ अवि य - कमलवणभमरसंलग्गनालकंटयपविद्धचरण व्व । अखलियपयविन्नासं, कत्थइ न हु कुणइ पेच्छ सिरी ।। १२१७ एत्तो च्चिय अच्चब्भुयलच्छिभरालंकिया वि सप्फारा । न कुणंति कह वि गव्वं, जाणंता तीए चवलत्तं ।। १२१८ दत्तस्स य अन्नदिणे, दारिद्दोवद्दुयस्स गाढयरं । चित्ते जायं एवं, निव्वहि एवं कहिं इण्हि ।। १२१९ ।। तो सुमरइ पिउवयणं, जं भणियं तेण मरणसमयम्मि । जइ तुह पुत्तय ! कह वि हु, दारिदं होज्ज देव्ववसा ॥ १२२० ता एसा गिहमज्झे, जा चिट्ठइ लोहबद्धमंजूसा । तीसे मज्झे ठविया, करंडिया अत्थि तंवमई ॥ १२२१ ॥ तत्थ ट्ठिय पत्तं वाइऊण जं किं पि तत्थ निद्दिठें । तमणुढेज्जसु तुरियं, दारिदं जेण जाइ खयं ।। १२२२ ।। तो मंजूसं उग्घाडिऊण ताओ करंडियाओ लहुं । गहिऊण पत्तयं तं, परिभाविउमेस आढत्तो ।। १२२३ ॥ लिहियं च तत्थ जह गोमयो त्ति नामेण अत्थि वरदीवो। तत्थत्थि रयणतिणचारिणीओ गावीओ उवविसिया ।। १२२४ उवविट्ठाओ तत्थ य, मुंचंति सया वि गोमयं ताओ । घेत्तूण सोह सुक्को, पक्खिप्पिइ जलणमज्झम्मि ॥ १२२५ तस्संजोगेण तओ, रयणाणि हवंति दिव्वरूवाणि । एयं च तत्थ लिहियं, दऔं सो चिंतइ मणम्मि ।। १२२६ ।। अत्थोवज्जणमत्थेहिं चेव संपज्जइ त्ति जणपयडं । ते य न मज्झमियाणिं, तो कहमेयं पि संभविही ॥ १२२७ ।। हुं नायमुवाएणं, केण वि रायाणमेव जाएमि । दाया न जेण मोत्तुं, नरिंदमन्नो जणो पायं ।। १२२८ ।। तहा हि - का दाणसत्ती परतक्कुयाणं, दुजाय कायस्थकिराडयाणं । विज्जा वि दाही भण किं व एत्थं, जो मच्चुकामाओ वि घेत्तुकामो ॥ १२२९ ।। इय चिंतिऊण एसो, जहिं जहिं पासई जणं मिलियं । अत्थि मइ न उ विहवो, तहिं तहिं भासई एवं ॥ १२३० एवं च तिय-चउप्पह-चच्चर-रायप्पहाइठाणेसु । झक्खंतो सो लोएण गहगहीओ त्ति परिकलियो । १२३१ ।। अन्नम्मि दिणे रन्ना, नियभवणगवक्खवत्तिणा निसुओ । एवं पयंपमाणो, भणिओ सद्दाविऊण तओ ॥ १२३२ ।। भो दत्तसेट्ठि ! जेत्तिय धणेण कज्जं तुहत्थि तावइयं । गहिऊण मह सयासा, साहसु नियहिययअभिरुइयं ।। १२३३ एवं जओ पयंपसि, तं अत्थि मई न अत्थि मह विभवो । तो देमि तुज्झ तमहं, जेत्तियमेत्तेण तुह कज्जं ॥ १२३४ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तो वणिएणं भणियं, नरिंद ! जइ अत्थि एवमणुकंपा । मह उवरि तुम्ह ता मे, दावह दोणारलक्खं ति ॥ १२३५ तो आइट्ठो रन्ना, अव्वाहेऊण निययसिरिघरिओ । दीणारलक्खमेयस्स देहि दिन्नं च तेण तयं ॥ १२३६ ।। गहियं इमेण कारावियं च अइगरुयपवहणं तयणु । उक्कुरुडियाण कयवरमाणाविय तं भरावेइ ।। १२३७ ॥ जं मग्गियविहवेणं, वसीकरेऊण तह य निज्जामे । गोमयदीवपहन्न, पसत्थदियहे तओ चलिओ ॥ १२३८ ॥ लोओ य हणइ जह सोहणं खु भंडं गहाय चलियो सि । एएण तुज्झ लाभो, कोडिगुणो सेट्ठि! संभविही ।। १२३९ उवहासेण वि एवं, जणस्स सोऊण सुंदरं वयणं । बंधित्तु सउणगंठिं, संचलियो जलहिमग्गेण ॥ १२४० ॥ पत्तो कमेण गोमयदीवं तं विक्खिरावई तत्थ । सव्वं पि कयवर पवहणाओ कम्मारएहिंतो ॥ १२४१ ।। तो उवहसंति निज्जामगाइया तस्स चेट्ठियं दऔं । इयरो वि अवगणतो, उवहासं ताण तत्थ ठिओ ॥ १२४२ जावागयाओ तव्वासिणीयो गावीओ चरियचारीओ । उवविट्ठाओ तहियं, ओगालेउं पवत्ताओ ॥ १२४३ ॥ रयणीए अवसाणे, उठ्ठित्ता गोमयाइ उज्झित्ता । पुणरवि चारिनिमित्तं, कत्थ वि अन्नत्थ ताओ गया ॥ १२४४ दत्तो वि एगगोणीए गोमयं गिहिऊण एगते । गंतण खिवइ जलणे, दडढम्मि य नियइ रयणाई ।। १२४५ ।। संजायपच्चओ तो, ताणं गावीण गोमयं गहिउं । नियपवहणं भरावइ, कारवई अन्नवहणे य ।। १२४६ ।। ते वि हु कमेण एवं, भराविउं जाइ निययनयरम्मि । पासइ गंतूण निवं, पुट्ठो य तओ नरिंदेण ॥ १२४७ ।। आणीयं किं पि तए, भंडं सो आह गोब्बरो देव ! । रन्ना य गहग्गहियो त्ति कलिय भणिओ तओ एवं ॥ १२४८ उस्सुकं तुह भंडं, तेण वि वुत्तं महापसाओ त्ति । लोओ वि हसइ विविहं, न स-चित्ते कुणइ तं किं पि ।। १२४९ महया विच्छड्डेणं, पवेसियं पवहणं च तुट्टेणं । गंतूणं गिहं पज्जालिओ य सो गोमओ सव्वो ।। १२५० ।। घेत्तूणं रयणाई, थालं भरिऊण नरवइस्स पुरो । काऊण ढोयणीयं, सेसे वि हु के वि विक्कणइ ।। १२५१ ॥ तो रन्नो रिणदाणं करेइ पुव्वं व चायभोएहिं । संपावई य पूयं, जणाओ सो ताए रिद्धीए ॥ १२५२ ॥ एवं च तेण विविहप्पयारहासो जणस्स न हु गणिओ । निच्छयसारेण पहाणकज्जदिन्नेक्कचित्तेण ॥ १२५३ ॥ अन्नो वि हु सविवेओ, तहेव कज्जम्मि निच्चलो होउं । मुक्खजणस्सुवहासं, निवारणं वा न हु गणेइ ॥ १२५४ ता लट्ठ चिय भणियं, झुंटणवणिओवमा न सव्वे वि । गोब्बरवाणियगसमा वि हुंति केई गुरुविवेया ।। १२५५ एयस्स वि दिटुंतस्स उवणओ सहि ! निसम्मउ इयाणि । पत्तयलिहियसरिच्छं, वयणं इह जिणवरिंदाणं ।। १२५६ तप्पडिवत्तिपवन्नो, जो जीवो दत्तवाणियसमो सो । लोओवहासतुल्लं, कुतित्थिजणनिंदणं नेयं ॥ १२५७ ।। उवएसो जणयस्स उ, गुरुवएसो वियाणियव्वो त्ति । जा पुण तहा पवित्ती, धम्माणुट्ठाणसेवा सा ॥ १२५८ ॥ गोमयदीवे गमणं तु जाण जइजणउवासए गमणं । कयवरविक्खिरणं पुण, जईण वसहिप्पयाणाइ ॥ १२५९ ॥ गावीण तहिं दंसणमवगंतव्वं च धम्मियजणस्स । अवलोयणं च रयणाण होइ नाणाइलाभसमं ॥ १२६० ॥ नियपट्टणे गमो पुण, सावगधम्मो गिहत्थभावुचियो । राया य तत्थ जो पुण, सो कुसलो कम्मपरिणामो ।। १२६१ दीणारलक्खलाभो, जो तत्तो सो उ लक्खलाभो त्ति । तत्तो जमुत्तरोत्तरगुणरिद्धिसमुब्भवो सव्वो ।। १२६२ ।। निवपूयपुव्वमूलप्पणं च सविसेसमूलगुणरक्खा । से सिट्ठिउत्तरोत्तरगुणलाभसमो मुणेयव्वो ।। १२६३ ॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाकहा ४९ एवं च मम वि होही. गोब्बरवणिओवमाइ जइ कह वि । उचियत्तं सहि ! धम्मे, ता तं दिज्जाहि अवियप्पं ॥ १२६४ तो तव्वयणायन्नणपहिट्ठचित्ताए सिरिमईए तहिं । भन्नइ गुरुहिं देओ धम्मो सहि ! एरिस जियाण ।। १२६५ ॥ दत्तोवमाण वि इमो, जइ देओ सहि ! न परहियरएहिं । अप्पंभरित्तमणुचियमेसिंतो ईसराणं व ॥ १२६६ ।। इय भणिऊणं नीया, पडिस्सयं साहुणीण तो दिट्ठा । मुत्त व्व सीललच्छी, पवित्तिणी आसणसुहत्था ।। १२६७ तं दह्णं विहिणा, पउत्तविणयाए सिरिमईए समं । सोमा वि पडइ पाएसु भत्तिउल्लसियरोमंचा ॥ १२६८ ।। दिन्नो य धम्मलाभो, पवत्तिणीए इमाण तो पुढें । सिरिमइ ! का एसा अणन्नबालिया धम्ममुत्ति व्व ॥ १२६९ ।। तो पुव्ववन्निओ से, वुत्तंतो सिरिमईए नीसेसो । कहिओ पवत्तिणीए, सा तं आलवइ सविसेसं ॥ १२७० ।। धन्ना सि तुमं भद्दे !, जीसे सयमेव एरिसी इच्छा । धम्मप्पवित्तिविसए, संजाया गुरुविवेयाओ ।। १२७१ ।। ता इण्हि एगचित्ता होउं सुण साविए ! मम सयासे । जह होइ इमो धम्मो, जत्तिय भेया य एयस्स ।। १२७२ ॥ धम्मो दयाए जायइ, सा वि य खंतिप्पहाणयाए उ । जम्हा कोवग्घत्था, जीवा न मुणंति हियमहियं ॥ १२७३ ॥ वेयंति न अप्पाणं, न परं न गणंति उत्तम अहमं । नो धम्ममहम्मं वा, जाणंति न सत्तु-मित्तं च ।। १२७४ ।। नवरं तप्परिणामेण चेव तिव्वेण अभिनिविट्ठमणा । अप्पपरोभयघायं, काउं धम्म पणासिंति ॥ तम्हा पसमजलेणं, धम्मतरुपवुढिमिच्छमाणेहिं । विज्झवियव्वो थेवो वि कोहदहणो दयादहणो || १२७६ ।। जीवदयापरिणामो, तस्सोवसमे य जायइ विसुद्धो । तेण उ असच्चपरिहारमाइवयसंभवो होइ ।। १२७७ ॥ पाणाइवायवज्जणरूवस्स वयस्स जेण सेसाई । अलियविवज्जणमाई, वयाई वइसरिसरूवाई ।। १२७८ ।। धम्मो जीवदयाए जायइ ता सुयणु ! सच्चमिह भणियं । भेया इमस्स दाणं, सीलं तव-भावणाओ य ॥ १२७९ ।। दाणं च चउवियप्पं, संखेवेणं भणंति मुणिवसभा । नाणाऽभयआहारोवहीण दाणप्पभेयाओ ॥ १२८० ॥ नाणं पंचपयारं, तत्थ उ मइनाणमाइमं भणियं । सुय-ओही-मणपज्जव-केवलनाणाई सेसाई ।। १२८१ ।। अत्थुग्गह-ईहावाय-धारणाभेयओ मई चउहा । अत्थोग्गह-वंजणओग्गहो य इह उग्गहो दुविहो || १२८२ ॥ मण छट्ठाणं पंचिंदियाण अत्थुग्गहो य छब्भेओ । मण-नयणे वज्जित्ता, बीओ उण चउविहो होइ ।। १२८३ ।। ईहाइयाणि तिन्नि उ, पत्तेयं हुंति छव्वियप्पाणि । सुयनिस्सियमइनाणं, अट्ठावीसइविहं एवं ॥ १२८४ ॥ बत्तीसविहं तु इम, उप्पत्तियमाइबुद्धिपरियरियं । तव्विह खओवसमजा, जमणिस्समई चउब्भेया ॥ १२८५ ।। बहुबहुविहाइभेएहिं सेयरे हुंति गुणियमखिलमिणं । तिन्नि सया चुलसीया, भेयाणं एत्थ परिमाणं ॥ १२८६ ॥ सुयनाणं पुण दुविहं, अंगाणंगप्पविट्ठभेएण । अंगपविठं बारस, आयाराईणि अंगाणि ॥ १२८७ ।। जमणंगपविठं तं तु दुविहमावस्सयं च इयरं च । आवस्सयं च भेयं, सामाइयमाइ नायव्वं ॥ १२८८ ॥ आवस्सयवइरित्तं, इयरं तं पि य वियाण दुविहं ति । उक्कालियकालियभेयकलियमुक्कालियं तत्थ ।। १२८९ ॥ दसवेयालियमाई, कालियमवि उत्तरज्झयणमाइ । दुविहं पि य बहुभेयं, नंदीसुत्ताइओ नेयं ।। १२९० ॥ ओहिन्नाणं पि दुहा, भवपच्चइयं खओवसमियं च । पढम सुरनेरइयाणमवरमिह मणुय-तिरियाणं ॥ १२९१ ।। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं मणुयाणं तिरियाणं च जं तयावरणखयउवसमेण । तं गुणपगरिसपत्तस्स लद्धिरूवं वियाणाहि ।। १२९२ ॥ मिच्छत्तकलुसियमिणं, नाणत्तिययं पि होइ अन्नाणं । जह मज्जदूसियं, पंचगव्वमवि होइ अपवित्तं ॥ १२९३ ।। मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं । माणुसखेत्तनिबद्धं, गुणपच्चइयं चरित्तवओ ।। १२९४ ॥ रिजुमइविउलमईभेयभिन्नमेयं पि भन्नई दुविहं । नवरं इमम्मि संभवइ नेय मिच्छत्तपरिणामो ॥ १२९५ ।। तीयाणागयसंपइ असेसपरिणामपरिणए दव्वे । लोयालोयगए वि हु, अणंतगुणपज्जवे जत्तो ।। १२९६ ।। सा मइमुवओगेणं, मुणंति सययं पि सम्मरूवेणं । तमणंतमपडिवायं, केवलनाणं अणन्नसमं ॥ १२९७ ॥ एवं एयं नाणं, पंचवियप्पं पि बिंति दुविगप्पं । संखेवभणिइ कुसला, पच्चक्ख-परोक्खभेएहिं ॥ १२९८ ।। तत्थोहिन्नाणाई, तियगं पच्चक्खमेव परिकहियं । मइ-सुयनाणे य पुणो, परोक्खमिह जीववेक्खाए ॥ १२९९ ॥ ओहिन्नाणेण जओ, अइंदियाई पि रूविदव्वाइं । जाणंति ओहिनाणी, पच्चक्खं तेसु उवउत्ता ॥ १३०० ॥ मणपरिणामपरिणए, दव्वे मणपज्जवं पि एमेव । घाइचउक्कखउत्थं, केवलनाणं पि नियविसए ॥ १३०१ ।। केवलनाणं इह जिणवरेसु मणपज्जवं सुसाहूसु । अन्नत्थ ओहिनाणं, मई सुयं चेव छउमत्थे ॥ १३०२ ॥ सयनाणं वज्जित्ता, अण्णतरं दाणमत्थि न इमाण । सव्वाण वि नाणाणं. वन्नेमो तेण तं तस्स ।। १३०३ ।। सिद्धंत-तक्कलक्खण-साहिच्चाईपहाणगंथाण । पढणाइउज्जुयाणं, जो अप्पइ पोत्थयाईणि ।। १३०४ ।। आलावगमाई वा, वियरइ वक्खाणमहव पभणेइ । सुयनाणदाणमणहं, पयट्टियं तेण इह होइ ।। १३०५ ॥ किंच - रागोरगविसगारुडमंतो दोसानलस्स सलिलोहो । अन्नाणतमपईवो, सन्नाणुल्लाससंजणओ ॥ १३०६ ॥ जो अत्थओ जिणिंदेहिं गणहराईहिं सुत्तओ भणिओ । अंगोवंगपइन्नयमाई सो सुद्धसिद्धंतो ॥ १३०७ ॥ तस्सावोच्छेयकए लिहावई पोत्थयाइं जो धन्नो । तेसिं च रक्खणट्ठा, वेंटणयाई पयच्छेइ ।। १३०८ ॥ तप्पडिबद्धे पयरणमाइम्मि व तह पयट्टई जो य । सिद्धते बहुमाणं, उव्वहमाणो अणन्नसमं ।। १३०९ ।। कारइ य जोगवहणं, सामायारिं च सिक्खवइ सव्वं । साहेज्जम्मि य वट्टइ, जोगुव्वहणं करितेसु ॥ १३१० ॥ आहारमाइणा तह, कुणइ उवटुंभमेत्थ निरयाण । सुयनाणदाणमणहं, तेणावि पयट्टियं होइ ॥ १३११ ॥ जो वा नाहियवाइयमाई एयस्स कुणइ उवहासं । एयप्परूवगाणं, च जिणवराईण निण्हवणं ॥ १३१२ ।। सइ सामत्थे तित्थप्पभावणाकज्जउज्जओ होउं । अब्भसियतक्कमाहप्पदलियपरवाइगुरुगव्वो ॥ १३१३ ।। धम्मम्मि थिरीकरणत्थमेव वयणम्मि तस्स मसिकुच्चं । जो देइ तेण वि इमं, पयट्टियं होइ सुयदाणं ॥ १३१४ ।। इय कित्तियं व भन्नइ, जह जह वुड्ढी इमस्स संभवइ । भवियाण मणे तह तह, पयट्टमाणो सुयं देइ ।। १३१५ एवं सुयदाणविही, एसो भणिओ समासओ किंचि । संभवइ जहा दाणं, भवेसु अणंतरमिमस्स ॥ १३१६ ।। सेसाण वि नाणाणं, परंपराए निमित्तभावेण । जणयंतो उवयारं, तद्दाणे होइ हु पयट्टो ॥ १३१७ ॥ नाणस्स दाणमेवं, परूवियं अभयदाणमेत्ताहे । वोच्छामि जहा दिज्जइ, जेहिं जेसिं च पाणीणं ॥ १३१८ ।। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाकहा ५१ जीवत्थित्तमईए, अणुकंपाभावओ दुहियसत्ते । भवनिव्वेयाओ तहा, संवेयाओ उवसमाओ ।। १३१९ ॥ एएहिं निमित्तेहिं, चरिमे खलु पोग्गलाण परियट्टे । भव्वाणं जीवाणं, खउवसमो मोहणिज्जस्स || १३२० ॥ भव्वत्ते परिपाकं, पत्ते लद्धे य कह वि सम्मत्ते । जायम्मि सुद्धबोहे, होइ मई अभयदाणम्मि ॥ १३२१ ॥ संपन्नाइ मईए, एवं धम्मत्थिएहिं सत्तेहिं । सुपसत्थमभयदाणं, दिज्जइ जहसत्ति जीवाणं ।। १३२२ ।। जओ भणियं - जो पुच्छेज्जेकेक्कं किं इच्छसि जीवियं च पुहई वा । जीवियमिच्छेज्ज नरो, मयस्स पुहईए किं कज्जं ।। १३२३ तो मरणभीरुयाणं, जीवाणं जीयमिच्छमाणाणं । जो देइ अभयदाणं, एयं भणियं महादाणं ॥ १३२४ ।। अन्नं च - दुक्कालोवहयाणं, दारिद्दोवट्ठयाण दीणाण । रोगेहिं विहुरियाणं, पक्खित्ताणं च गोत्तीसु ॥ १३२५ ॥ अच्चुग्गदुक्खजणणीहिं विविहकरुणप्पलावहेऊहिं । घत्थाण तह य बहुयावयाहिं महुकंडराहिं च ॥ १३२६ ॥ म भीसिदाणपुव्वं, जं कीरइ किं पि इह परित्ताणं । अनुकंपाभरनिब्भरमणेहिं उवयारनिरवेक्खं ।। १३२७ ।। धम्मे य जिणुदिढे, जणिज्जए जो य ताण परिणामो । तेणावि अभयदाणं, पयट्टियं होइ सुमहत्थं ॥ १३२८ ॥ तस-थावराण जीवाण जो य रक्खाइउज्जओ संतो । करइ करावेइ वयं, जिणप्पणीयं महासत्तो ॥ १३२९ ॥ समभावभावियप्पा, पडिहइ मणमाइदंडमाहप्पो । तेणा वि अभयदाणं, पयट्टियं होइ सुमहत्थं ॥ १३३० ।। इय भणियमभयदाणं एत्तो आहार-उवहिदाणाई । वोच्छं कमपत्ताई, दिज्जति जहा य जेसिं च ।। १३३१ ।। तत्थाहारो असणाइभेयओ चउविहो विनिद्दिट्ठो । धम्मोवग्गहहेऊ, उवही उण वत्थमाईओ ॥ १३३२ ॥ असणं ओयणमाई, पाणं सोवीरगाइ आहारो । खाइमरूवो दक्खाइ साइमो सुंठिमाईओ ।। १३३३ ।। वत्थं पत्तं कंबलपाउंछणयाइचित्तरूवो य । ओहियओवग्गहिओ, उवही उ दुहा मुणेयव्वो :! १३३४ ॥ एसो उ धम्मकज्जुज्जयाण सज्झायझाणनिरयाण । उवयारमुवजणितो, फासुयएसणियरूवो उ ।। १३३५ ।। आहारो उवही वा, मन्नतेहिं कयत्थमप्पाणं । देओ भत्तिभरनिब्भरेहिं सक्कारकमसहिओ ॥ १३३६ ।। आगंतुजंतुरहिओ, तज्जोणियसत्तविप्पमुक्को य । सयमेव उ निज्जीवो, आहारो फासुओ एस ॥ १३३७ ।। उग्गमउप्पायणएसणाण दोसेहिं वज्जिओ जो य । सो एसनियाहारो, उवही चेवंविहो नेओ ।। १३३८ ॥ अकओ अकारिओ अणणुमोइओ एस उग्गमे सुद्धो । आहाकम्माईहिं, सोलसदोसेहिं परिचत्तो ॥ १३३९ ॥ मंत-निमित्त-तिगिच्छा दूयत्तणवयणपेसणाईहिं । जो होइ विणा लद्धो, एसो उप्पायणासुद्धो ॥ १३४० ।। संकिय-मक्खियमाई दोसेहिं दसहिं वज्जिओ जो य । सो एसणाविसुद्धो, निद्दिट्ठो मुणिवरिंदेहिं ।। १३४१ ॥ पाणाइवायमाईवएसु निरयाण सुद्धदिट्ठीणं । सज्झायझाणतवसंजमेसु निच्चं सुलग्गाण ॥ १३४२ ॥ माऊसुपडिबद्धाण पंचसमिईसु तिसु य गुत्तीसु । समभावभावियाणं, संसारविरत्तचित्ताण || १३४३ । धम्मोवळंभकए, आयाणुग्गहपराए बुद्धीए । साहूण निज्जरट्ठा, दायव्वं सव्वमेयं ति ॥ १३४४ ।। Jain Educatiền International Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं कालोवयोगि संतं,सुविसुद्धं सावएण साहूण । आहारोवहिदाणं, जह देयं भत्तिसत्तीहिं ॥ १३४५ ।। तह साहू वि हु साहूण दिज्ज परओ य गिण्हिउं सुद्धं । धम्मत्थी आहाराइ निन्निया णेण चित्तेण ॥ १३४६ ।। एगारसियं पडिमं, पडिवन्नो जो गिही वि साहु व्व । परियडइ निरीहप्पा, भिक्खं अविसन्नसुहचित्तो ॥ १३४७ ।। तस्स वि जो देइ घरागयस्स आहारमाइ गेहत्थो । सुविसुद्धं तेणावि हु, पयट्टियं होइ दाणमिणं ।। १३४८ ।। एवं चउव्विहमिणं, दाणं संखेवओ समक्खायं । एयस्स फलं मोक्खो, पुप्फ पुण सुरनरवरत्ते ।। १३४९ ॥ जओ भणियं - जिणधम्मफलं मोक्खो, सासयसोक्खो जिणेहिं पन्नत्तो । नरसुरसुहाई अणुसंगियाइं इह किसिपलालं व ॥ १३५० निच्छयनयमयमेयं, भणियं ववहारओ उ अन्नं पि । साहिज्जइ किं पि जओ, भणियं गंथंतरे चेवं ॥ १३५१ ।। नाणी उ नाणदाणेण निब्भओ होइ अभयदाणेण । आहारोवहिदाणेण भोगपरिभोगय होइ ।। १३५२ ।। एत्तो उ सीलधम्मं, भणामि सो विय दुहा विनिद्दिट्ठो । सव्वे देसे य तहा, अहवाऽगिहिधम्मगिहिधम्मा ॥ १३५३ जो सव्वसीलधम्मो, सो हु जईणं वियाणियव्वो त्ति । पंचमहव्वयमाई, सतरसविहसंजमसरूवो ॥ १३५४ ।। तहा हि - पाणाइवायविरमणमाईणि वयाणि पंच जाणाहि । पंचेंदियनिग्गहणाई तह य चउहा कसाय जओ ॥ १३५५ ॥ दंडत्तयविणिवित्तीओ तिन्नि एवं जईण संवरणं । सत्तरस पावदाराण होइ सीलं जिणाभिहियं ॥ १३५६ ।। अहवा पुढवाईणं, पंचण्डं थावराण परिरक्खा । बेइंदियाइपंचिंदियंततसकायरक्खा य ॥ १३५७ ॥ अज्जीवसंजमो तह, बहुपडिपेहापमज्जपरिठवणे । मणवयणकायरक्खा, य संजमो सीलरूवो त्ति ।। १३५८ ॥ इमिणा पालिज्जतेण पावबंधो निवारिओ होइ । दुविहेण वि ता एत्थं, जइयव्वं सुद्धबुद्धीहिं ।। १३५९ ॥ अहिणवबंधनिरोहे, तवेण सोसइ चिरंतणं कम्मं । सासयसोक्खो मोक्खो, तओ णु से खीणकम्मस्स ।। १३६० ।। जं पुण देसे सोलं, तं गिहिधम्मो तओ य नायव्वो । पंचाणुव्वयमाई, बारसविहवयपालणा रूवो ॥ १३६१ ।। भणियं च - पंच य अणुव्वयाई, गुणव्वयाइं च हुंति तिन्नेव । सिक्खावयाई चउरो, गिहिधम्मो बारसविहो उ ॥ १३६२ ।। थूलगपाणइवायस्स विरमणं थूलअलियवयणस्स । थूलादिन्नादाणस्स तह य परदारपरिहरणं ।। १३६३ ॥ थूलपरिग्गहविरई, एयाई अणुव्वयाई पंचेव । दिसिवयमाईणि गुणव्वयाणि पुण हुंति तिन्नेव ॥ १३६४ ।। भोगुवभोगवयरूवमेव राईए भत्तपरिहरणं । सामाइयाइयाई, चउरो सिक्खावयाई तु ॥ १३६५ ।। इय सव्वदेसभेयं, सीलं संखेवओ दुहा वुत्तं । इण्हि पुण तवधम्मं, वोच्छमहं नाममेत्तेण ।। १३६६ ।। बज्झन्भंतरभेयं, तवं च दुविहं जिणेहिं पन्नत्तं । एक्केक्कं छब्भेयं, वियाणियव्वं कमेणेवं ॥ १३६७ ।। अणसणमूणोयरिया, वित्तिसंखेवणं रसच्चाओ । कायकिलसो संलीणया व बज्झो तवो होइ ॥ १३६८ ।। पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य, अभितरओ तवो नेयो ।। १३६९ ।। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाकहा एत्तो भावणधम्मं, भणामि ताओ दुवालस च्चेय । कम्मखयट्ठा जाओ, हवंति भाविज्जमाणाओ ॥ १३७० ।। पढमा अणिच्चरूवा, बीया अस्सरणभावणा तइया । संसारभावणा वि य, होइ चउत्थी उ एगत्तं ॥ १३७१ ।। अन्नत्तभावणा पंचमी उ छट्ठी उ होइ असुइत्तं । सत्तमियासवचिंता, संवरचिंता य अट्ठमिया ।। १३७२ ।। निस्सरणभावणा उण, नवमी लोगस्स भावचिंता य । दसमी एक्कारसमी, बोहीए दुल्लहत्तं तु ॥ १३७३ ।। जिणवरभणियत्थाणं, जा पुण सुपरूविय त्ति चिंता य । एसा दुवालसी मुणिवरेहिं सुहभावणा भणिया ॥ १३७४ एवं संखेवेणं, भावणधम्मो वि साहिओ तुज्झ । एएणं कहिएणं, कहिओ धम्मो चउविहो वि ॥ १३७५ ॥ एवं च सुयणु ! परिभाविऊण, जइ तुज्झ किं पि अभिरुइयं । धम्माणुट्ठाणं ता, गहिउं भावेण पालेसु ॥ १३७६ इय सोऊण पवत्तिणिवयणं उल्लसियसुद्धपरिणामा । कम्मखओवसमेणं, सोमा विणएण भणइ इमं ॥ १३७७ ।। जारिसओ जइ भेओ, धम्मो भयवइ ! परूविओ तुमए । सो तुज्झ पसाएणं, अभिरुइओ निवियप्पो मे ।। १३७८ ता काऊण महंत, अणुग्गहं देसु पंचणुव्वइयं । सम्मत्तमूलसावगधम्ममवत्थोचियं मज्झ ॥ १३७९ ।। तो तव्वयणायण्णणपहट्ठचित्ता पवत्तिणी झ त्ति । सम्मत्तजुयाणुव्वयगहणं कारवइ तं विहिणा || १३८० ।। इयरी वि अप्पमत्ता, पडिच्छिउं पालई विसुद्धमणा ! जा कित्तिए वि दिवसे, ता जं जायं तयं सुणह || १३८१ संजायं तीसे गुरुयणस्स अप्पत्तियं अइमहंतं । भणइ य स कीस धम्मो, पडिवन्नो सियवडाण तए ।। १३८२ ।। अम्हं कुलक्कमेणं. समागओ माहणाण वरधम्मो । ता तम्मि थिरा होउं, मुंच इमं कवडधम्म ति ।। १३८३ ॥ तो चिंतियं इमाए, उत्तरदाणं गुरुसु न हु जुत्तं । आराहणिज्जलोए, जओ न पडिकूलणा जुत्ता ॥ १३८४ ।। अन्नं च गुरुयणं पि हु, जइ नेमि पवत्तिणीए पासम्मि । ता मा कयाइ होज्जा, तस्स वि तइंसणे बोही ।। १३८५ ता अवसरोचियं चिय, सदुत्तरं किं पि देमि एयाण । इय चिंतिऊण भणियं, मुयामि धम्मं अहं एयं ।। १३८६ ।। किंतु जहिं पडिवन्नो, जाण सयासम्मि ताण पच्चक्खं । तुन्भेहिं सक्खिएहिं, चयामि ता एह तत्थेव ॥ १३८७ ।। एवं भणिए तीए, पडिवन्नं से गुरूहिं तं वयणं । तत्तो गुरुयणसहिया, संचलिया साहुणिसमीवं ॥ १३८८ ॥ एत्थंतरे य एक्कम्मि मंदिरे वइससं अइमहंतं । हिंसा अणिवित्तीए, संजायं कुलविणासयरं ।। १३८९ ।। मिलिओ पभूयलोगो, परोप्परं भणइ एस किं रोलो । संजाओ एत्थ गिहे, ता अन्नो कहइ अन्नेसिं ॥ १३९० ।। भो भो वाणियगघरं, एयं महिला य आसि अइ दुट्ठा । पंचत्तगए घरसामियम्मि भिच्चम्मि अणुलग्गा ॥ १३९१ तीसे य आसि पुत्तो, संकाए तस्स तीए निव्विग्घो । होइ न रइसुहलाभो, तेण समं सो तओ भणिओ ॥ १३९२ जइ वावायसि कह वि ह मज्झ सयं तो तए समं एत्थ । रइसोक्खमविग्घेणं, संपज्जइ अन्नहा नेय तो तेण इमा भणिया, जइ एवं तो मए समं एसो । पेसिज्जउ किं पि मिसं, काऊण कहिं पि गामम्मि ।। १३९४ मग्गम्मि जेण कत्थ वि, सुन्ने लहिऊण किं पि से छिदं । काहामि पाणघायं, एवं काऊण संकेयं ।। १३९५ ।। गामंतरम्मि चलिओ, एसो जणणीए निययपुत्तो वि । तेण समं पट्ठविओ, काऊण मिसंतरं किं पि || १३९६ ।। उवलहिउं वुत्तंतं, कत्तो वि हु सो अभिन्नमुहराओ । संचलिओ तेण समं, कत्थ वि लहिऊण पत्थावं ॥ १३९७ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं पिट्ठम्मि होइऊणं, छुरियं आकड्ढिऊण कुक्खीए । भिच्चो तह कह वि हओ, जह चत्तो झ त्ति पाणेहिं ।। १३९८ वलियो सगिहाभिमुहं, अंबाए पलोइओ स एगागी । इंतो कयं च चित्ते, नूणं से मारिओ भिच्चो ॥ १३९९ ॥ अन्नह कहमागमणं, इमस्स एगागिणो त्ति चिंतित्ता । कोवेण धमधर्मिता, ताव ठिया जाविमो पत्तो || १४०० ।। तो सो सुहापणगओ, वीसत्थो मंदिरस्स मज्झम्मि । सिलमेगं पक्खिविउं, सिरम्मि तीए हओ गाढं ॥ १४०१ ।। तं तप्पहारविहुरं, स दसविहपाणाण दूरमोसरियं । दटुं तब्भज्जाए, निहया असिएण तज्जणणी ।। १४०२ ।। निच्छिन्नमत्थया तेण सा वि पंचत्तमुवगया खिप्पं । तद्दुहियाए य तओ, दटुं असमंजसं एयं ।। १४०३ ।। वेरगमव वगयाए, पोक्करियं हा ! किमेवमिह पावं । संजायं अम्ह घरे, मिलिओ लोओ य अइबहुओ ॥ १४०४ जाओ य गरुयरोलो, लोएण इमा वि पुच्छिया एवं । नियमाउघाइणी किं, तए वि वावाइया न इमा ॥ १४०५ ।। तीए भणियं मझं, परिहारो अत्थि पाणिघायस्स । अनियत्ताण इमाओ, एवमणत्थो हु जीवाणं ॥ १४०६ ।। रोलम्मि तम्मि सोमा वि संजुया गुरुयणेण नियएण । उब्भीहोउं निसुणइ, तं सव्वं वइयरं ताण ॥ १४०७ ॥ पत्थावो त्ति मुणित्ता, तो एसा निययगुरुयणं भणइ । मह वि इमो च्चिय नियमो, ता किं मुंचामि अहमेयं ।। १४०८ तो बिंति गुरू तीसे, मा मुंचसु पुत्ति ! अत्तणो नियमं । पच्चक्खं दिट्ठफलं, अणत्थपडिघायणसमत्थं ।। १४०९ अन्नो वि वणियतणओ, वच्चंतो तेहिं रायमग्गेण । सच्चविओ सच्चविवज्जणाइ जणजणियगुरुखिसो ।। १४१० तहा हि - सो वाणियओ पुट्विं, दव्वोवज्जणनिमित्तमहजलहिं । लंघित्ता आसि गओ, परतीरं पवहणारूढो ॥ १४११ ॥ इंतस्स तस्स भग्गं, तं पवहणमुवद्दओ य धणनिवहो । भिच्चेण समं लहिउं, फलगं दीवंतरं पत्तो ॥ १४१२ ।। भवियव्वयावसेणं, गहिओ रोगेहि तम्मि दीवम्मि । भिच्चेण तेण पडियग्गिओ य गुरुआयरेण इमो ।। १४१३ ।। पडिवन्ना नियदुहिया, भिच्चस्स जहा अहं गिहं पत्तो । दाहामि निययकन्नं, तुहेत्थ पक्खी इमे सक्खी ।। १४१४ दीवम्मि तम्मि जम्हा जीवगनामा भवंति जे पक्खी । ते माणुसभासाए, हुति अभेया सचेयन्ना ॥ १४१५ ।। पउणो जाओ कालेण आगओ निययगेहमेसो य । वाणियगो तो भणियो, भिच्चेणं देहि मे कन्नं ॥ १४१६ ।। तो तेण निययमहिलाए साहिओ सो समग्गवुत्तंतो । महिला वि भणइ सामिय ! कह णु सुयं देमि भिच्चस्स ।। १४१७ मज्झ सुयाए ईसरसुया वि वरया उविंति किंतु अहं । जो अणुरूवो रूवाइएहिं तं घेत्तुमिच्छामि ॥ १४१८ ।। ता किंकरस्स कहमवि, न देमि नियकन्नयं ति एइए । जाणित्तु निच्छयं सो, तम्मि विलोट्टो न देइ सुयं ।। १४१९ भणइ य न मए तुझं, पडिवन्ना नियसुया तओ एसो । कुविओ गंतुं साहइ, रन्नो पुरओ सवुत्तत्तं ॥ १४२० ।। रन्ना वि तओ पुट्ठो, इह कज्जे अत्थि को वि तुह सक्खी । सो आह देव ! पक्खी, ते कत्थ तओ इमो भणइ ।। १४२१ दीवंतरम्मि नरनाह ! किंतु आणामि तुम्ह आणाए । एत्थेव तओ जंपइ, राया आणाहि लहु गंतुं ॥ १४२२ ॥ तुह कज्जं जेण अहं, सिग्धं साहेमि तो इमो गंतुं । दीवम्मि तम्मि पक्खी, आणइ ते रायपासम्मि ।। १४२३ ।। तो विम्हिओ नरिंदो, साहइ सह पेक्खिऊण ते पक्खी । पुच्छइ हंदि ! इमे ते, तो भणइ इमो वि एवमिणं ॥ १४२४ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाकहा किंतु पसिऊण देवो, अम्हाणं कारवेउ एगंतं । सयलं जेण इमे खलु, पयडंति मणागयं भावं ॥ १४२५ ॥ तो तव्वयणे रन्ना, अणुट्ठिए उठ्ठियम्मि सयलजणे । पुढेंहिं तेहिं दिन्नं, सक्खिज्जं जह तहा सुणह ।। १४२६ रियभक्खे उवणीए, किमिणो छाणम्मि दंसियो उल्ले । एरिसकम्मेहिं जिया, एरिसकम्मा हु जायंति ॥ १४२७ ।। जे खलु असच्चभासी, ते एरिसकम्मकारिणो जीवा । एयारिसकिमिरूवा, हुंति उवाएण सिट्ठमिणं । १४२८ ।। तो रन्ना वाणियगो, भणिओ सद्दाविऊण वयणमिणं । भो भो असच्चपिर ! न देसि किं नियसुयमिमस्स ।। १४२९ पडिवज्जिऊण पुट्विं, एत्ताहे भणसि नो मए दिन्ना । रंको त्ति इमं परिभवसि कीस धणगव्विओ होउं ? ॥ १४३० तो सो रन्नो पासम्मि भणइ अलियं पयंपई देव । । एसो भियगो जम्हा, न को वि सक्खी इह समत्थी ॥ १४३१ रन्ना जीवगपक्खी, तो तस्स पयंसिया तओ खुहिओ । एसो रन्ना निद्धाडिओ य ससहाए धिक्करिउं ।। १४३२ निदिज्जंतो लोएण तयणु बहुएण रायमग्गम्मि । दिट्ठो सोमाइ सगुरुयणाइ तव्वइयरन्नूए ।। १४३३ ।। भणियं गुरुजणसमूहं च मज्झ अलिए वि अत्थि परिहारो। ता किं मुयामि एयं, बिंति गुरू धरसु अपमत्ता ॥ १४३४ ॥ अलियपयंपणदोसा, धिक्कारहओ जओ बला वि इमो । दाविज्जिही नरिंदेण कन्नयं तस्स भियगस्स ।। १४३५ ।। ता परिवालसु अक्खयमिमं पि बीयं वयं तुमं पुत्ति!। जस्स पसाएण जिया, वडंति न हु एरिसे वसणे ॥ १४३६ एत्यंतरम्मि दिट्ठो, अन्नो वि हु हत्थपायपलिछिन्नो । नियमाइगाइ खंडियथणखंडो गरुयरोसेण ॥ १४३७ ।। एगो पुरिसो तत्थ वि, जणस्स बोलम्मि अइमहंतम्मि । निसुणइ सोमा तह गुरुयणेण लोयाओ वत्तमिमं ॥ १४३८ एसो रंडाउत्तो, न्हाणुल्लो कह वि अन्नदियहम्मि । वच्चंतो जणसंवाहसंकडे हट्टमग्गम्मि ॥ १४३९ ।। तं वाइ पेल्लिऊण, तिलाण रासीए उवरि पक्खित्तो । उल्लत्तणेण अंगस्स तेहिं लग्गेहिं उठ्ठित्ता ।। १४४० ।। नियगेहमणुप्पत्तो, दिट्ठो जणणीए तीए लाभेण । पक्खोडिऊण गहिया, तिला समग्गा वि तद्देहा ॥ १४४१ ॥ तुसरहिए ते काऊं, बंधिय मोरिंडए य से देइ । भणइ य अन्ने चेवं, आणिज्जसु देमि जेणेवं ॥ १४४२ ॥ तो माउपेरणाए, एस पलक्को तिलाण हरणम्मि । अंगोहलीमिसेणं, जलेण तीमित्तु नियदेहं ॥ १४४३ ॥ जणसंवाहे पविसिय, तिलाण रासीए उवरि पडिऊणं । तिलसामिअमुणिओ लोट्टणीए गहिउं तिले बहुए ॥ १४४४ गंतुं दंसइ माऊए सा वि गिणिहत्तु ते तहेव पुणो । मोरिंडे काउं देइ निययपुत्तस्स मोहेण ॥ १४४५ ॥ वच्चंतेसु दिणेसुं, एसो वत्थादिचोरियाए वि । लग्गो गहिओ तो दंडवासिएहिं स लोत्तो य ॥ १४४६ ॥ तो तेहिंतो मोयावणत्थमेत्थागयं इमं जणणिं । दह्ण इमो रोसेण धमधमेंतो भणंतो य ॥ १४४७ ।। आ पावे ! कीस अहं, तुमए पुव्वं पि वारिओ न इमं । दुक्कम्ममायरंतो त्ति खंडई थणजुयमिमीए ॥ १४४८ ।। एयस्स वि पाय-करा, पलिछिन्ना दंडवासियाणाए । मायंगेहिं ता मुयह चोरियं मुणिय इइ वसणं ॥ १४४९ ॥ तो भणियं सोमाए, इमं पि तइयं वयं महं अत्थि । जइ तुम्ह न पडिहासइ, मुयामि तो बिंति ते य गुरू ।। १४५० अच्छउ वच्छे ! मुंचसु, मा तुममेयं पहाणतरनियमं । एएणं मुक्केणं, दुहाण खाणी जणा हुंति ।। १४५१ ।। तो आसासियहियया, कइ वि पए जाव वच्चइ तहेव । ता पेच्छइ जं अन्नं, अच्छरियं तं निसामेह ।। १४५२ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एगा माहणमहिला, घोडगवाले विडम्मि अणुलग्गा । पावा मोहोवहया, भत्तारं माउिं निययं ।। १४५३ ।। खंडोहंडिं काउं, पक्खिविडं कयवरस्स पिडियाए । तं उज्झिउं अणज्जा, सीसे आरोविऊण तयं ॥ १४५४ ॥ नगरबहिं संचलिया, कुद्धाए नगरदेवयाए तओ । मत्थयथंभियपिडिया, नीहरमाणी कया अंधा || १४५५ || नगरं चिय पविसंती, सज्जक्खा डिंभवंद्रपरियरिया । पिडिओयलंतवसरुहिर भरियथणवट्ठजुयला य ।। १४५६ ।। बीभच्छघोररूवा, खिंसिज्जती जणेण रोयंती । गुरुयणसमन्नियाए, सोमाए पलोइया कह वि ।। १४५७ ।। दट्ठूण तयं तारिसरूवं अइकरुणदीणसद्देण । विलवंतिं लोयाओ, वियाणिउं वइयरं च ।। १४५८ ॥ पभणइ गुरुयणसमुहं, परपुरिसनिवित्तिरूवमेयं मे । अत्थि चउत्थं पि वयं, तत्थ वि को मज्झ आएसो ? || १४५९ तो तग्गुरुणो पइमारियाइ तं वइयरं सुणिय घोरं । देरग्गगया जंपंति पुत्ति ! मा मुंच एवं पि ॥ १४६० ॥ धणासि तुमं जीए, अचिंतचिंतामणीसरिच्छाई । वयरयणाई इमाई, दोगच्चहराई लाई || १४६१ ।। अणिवत्तीए इम्मस उ, वच्छे ! तं पेच्छ दुक्खरिछोली । एईए जहा जाया, दुक्कम्माओ इहभवे वि ।। १४६२ || ता सव्वत्तममेयं, चिट्ठउ तर अक्खयं सया कालं । परपुरिसनिवित्तिवयं, पडिहायं अम्ह चित्तस्स || १४६३ | एवं च पंचमवए वि तीए थिरकरणमिच्छमाणीए । पुरओ वच्चंतीए, सच्चविओ वाणिओ एगो ।। १४६४ || अत्थोवज्जणकज्जेण गरुयलोभाभिभूयचेयन्नो । जो तरिऊण समुद्दे, संपत्तो आसि परतीरं ।। १४६५ ।। विहवोवज्जणतुट्ठस्स तस्स इंतस्स जलहिमज्झम्मि । भवियव्वयानिओएण जाणवत्तं कह विफुट्ट | १४६६ || तत्तो य फलयखंडं, लहिऊण कहं चि उयहिमुत्तिन्नो । मच्छाहारुप्पइयाकुट्ठमहावाहिपरिभूओ || १४६७ || कालंतरेण पत्तो, सट्ठाणं दव्वलोलुयत्तेण । मिलिओ धुत्ताण तहाविहाण तो पुच्छई ते उ || १४६८ ॥ किह मज्झ अत्थसिद्धी, होही ते वि हु भांति भो सुणसु । जइ नियसुएण वियरसि बलिं तओ लहसि निसिरयणं ।। १४६९ पडिसुणिउं तव्वयणं, अण्णदिणे सो निहाणलाभत्थी । नीसेसं सामगिंग काउं तद्देसमणुपत्तो ॥ १४७० ॥ सहिओ नियपुत्तेणं, अबुद्धबोहेण किन्हपक्खस्स । चाउद्दसिरयणीए, समहियदोजाममेत्ताए || १४७१ ।। तं चैव निययतणयं बलिमुवकप्पिय निहाणरक्खाण । वंतरसुराण लग्गो, तो गहिउं सो वरनिहाणं || १४७२ || पेच्छइ न किंपि तत्थ य, केहिं वि धुत्तेहिं गहियपुव्वम्मि । तो मूढमणो एसो, विलक्खओ गेहमणुपत्तो ।। १४७३ चिंतइ उव्विग्गमणो, न यावि पुत्तो न यावि निहिलाभो । दोण्ह वि चुक्को एवं, धणनासो पुत्तनासो य ॥। १४७४ एत्थंतरम्मि रमणी, तस्स असूयाइ ताव इ पलीणा । धी धी इमं धणत्थी, जो एवं हणइ पुत्तं ति ।। १४७५ ।। तक्कोवेण व सूरो विउट्ठियो झत्ति पावकम्ममिमं । तमबलहयनियबालं, विग्गोवेमि त्ति बुद्धी || १४७६ ।। निहिदेसमणुपपत्तेण कह वि लोएण तं तयं दद्धं । अन्नन्नं पुच्छंतेण जाणियं पावचरियं से || १४७७ ॥ उच्छलिओ जणवाओ, हा हा पावेण किह णु नियपुत्तो । धुत्तपवंचियचित्तेण विहलनिहिलोभओ निहओ || १४७८ मुणिओ य नरिंदेणं, रुट्ठेण य दंडवासिओ भणिओ । विग्गोविउण एवं पुराओ निव्वसह लहु त्ति ।। १४७९ तो नरवर आणाए, नरगावेउं पुरस्स मज्झम्मि । आढत्तो भामेउं, उद्दालियसव्वगिहसारो || १४८० || ५६ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमाकहा ५७ तप्पावुग्घोसणसुणण मिलियबहुजणविइन्नधिक्कारं । तं दटुं तयवत्थं, सोमा तो आह निययगुरू ।। १४८१ ॥ इच्छापरिमाणवयं जमत्थि तं किं चएमि एत्ताहे । बिंति गुरू मा वच्छे ! चयाहि एयं जओ सुणसु ॥ १४८२ ।। इच्छाअणियत्तीए, जीवा एवंविहाण दुक्खाण । हुति जए भायणमेत्थ पुत्ति ! ता पालसु इमं पि ॥ १४८३ ।। एवं जपंताई, संवेगगयाई ताई सव्वाइं । पत्ताई साहुणीणं, वसहिट्ठाणस्स नियडम्मि ॥ १४८४ ॥ एत्थंतरम्मि अन्नं पि वइससंतं पलोइयं तेहिं । सहस त्ति राइभत्ते, वि ताण जाया जह दुगुंछा || १४८५ ।। तहा हि - एगो को वि हु पुरिसो, पडिस्सयासन्नवत्तिगेहम्मि । राईए भुंजतो, मंडयवाइंगणफलाइं ॥ १४८६ ॥ तेहिं समं चिय अद्दिट्ठविच्छियं पक्खिवित्तु वयणम्मि । भोत्तु लग्गो जा ताव तेण तालुम्मि सो विद्धो ॥ १४८७ सो उ अली वंतरजाइओ त्ति तो तस्स विसमविसवेगा । उस्सूणनयणवयणो, दारुणवसणं इमो पत्तो ॥ १४८८ तेगिच्छगपरियरिओ, पउत्तविविहोसहीबलविहाणो । उव्विल्लंतो अंगाई विवहभंगीहि पीडाए || १४८९ ॥ अव्वत्तक्खरभणिरो, दीणो अइविरसमारसंतो य । दिट्ठो सव्वेहिं वि ते य गरुयपावप्फलोवहओ ॥ १४९० ॥ तं दटुं तयवत्थं, नाउं तव्वइयरं च सयलं पि । निसिभत्तवए वि कया, सोमाए तहेव गुरुपुच्छा ॥ १४९१ ।। तत्थ वि पुव्वं पिव दिट्ठदोसविलिएहिं वारणा विहिया । तो सोमा बेइ गुरु, सविसेसं लद्धपत्थावा ॥ १४९२ एयारिसा दुरंता, एए पाणाइवायमाईया । कहिया दोसा गुरुणीए मज्झ चत्ता इमे तेण ॥ १४९३ ॥ तुब्भे पुण भणह इमं, जह अम्ह न कज्जमेव एएहिं । नियमेहिं वेयविहियाणुट्ठाणं जेण नियधम्मो ॥ १४९४ ।। ता जइ सच्चं चिय तुम्ह नत्थि एएसु कह वि पडिहासो । मुंचामि ता किमेएहिं एह गुरुणीए पासम्मि ।। १४९५ गुरुणो भणंति अम्हं, अप्पडिहासो इमेसु आसि पुरा । न उणो इन्हिं पच्चक्खदिट्ठपडिवक्खदोसाण ॥ १४९६ भद्दे ! मा मुंचेज्जसु, अओ इमे तं कयावि वरनियमे । दंसेसु निययगुरुणिं, जीए दिन्ना य तुह एए ।॥ १४९७ ।। जेण तयं जंगमतित्थभूयमभिवंदिऊण धुयपावा । वच्चामो नियगेहं, विढत्तसुपवित्तजम्मफला || १४९८ ।। उवदंसियं इमाणं, पडिस्सयं साहुणीण तीए तओ । ते वि पविट्ठा तं पवरभत्तिउल्लसियरोमंचा ।। १४९९ ।। दिट्ठाओ तत्थ वररयणनिम्मियाओ जिणिंदपडिमाओ । काओ वि तेहिं निम्मलमऊहमुसुमूरियतमाओ ।। १५०० काओ वि दिप्पंतपसंडिपिंडपरिघडियरूइररूवाओ । पसरिया झाणहुयासणजालावलिवलइयाओ व्व ॥ १५०१ ।। अन्नाओ रुप्पमइयाओ सरयससिकिरणविमलदेहाओ । सुविसुद्धसुक्कलेसापसरं व पयासयंतीओ ॥ १५०२ ।। एमाइविविहरूवाओ लोयलोयणमणोहरतणूओ। सुपवित्तविवित्तविचित्तचित्तदेवालयठियाओ ॥ १५०३ ॥ दटुं तिपयाहिणपुव्वमणहपुप्फाइ पूयमभिरइउं । सोमा तासिं चिइवंदणाइ अह कुणइ भत्तीए ॥ १५०४ ।। सोमा गुरू वि वरकमलमउलसरिसं निडालवट्ठम्मि । काउं अंजलिपुडयं, पडिमाण कुणंति पडिवायं ॥ १५०५ पच्छा उविंति गणिणी, समीवमह तत्थ वंदिउं तं च । भत्तीए कहइ तीसे, सोमा एए गुरु मज्झ ॥ १५०६ ।। तो ताण धम्मसम्मुहमणाण सविसेसधम्मजणणत्थं । उचियं आलावाईपडिवत्तिं कुणइ सा वि लहुं ॥ १५०७ ।। Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तइंसणसंभासणाइजणियगुरुहरिसनिब्भरमणा य । तीसे महत्तराए, सुणंति ते देसणं पवरं ॥ १५०८ ॥ पत्थावं लहिऊणं, पुच्छंति य को सुहस्स इह हेऊ । पभणइ गणिणी धम्मो, को सो ? ते पुण वि पुच्छंति ॥ १५०९ सा आह जीवरक्खा, का सा ? ते बिंति भणइ गणिणी वि । मण-वयण-कायजोगेहिं वज्जणं जीवघायस्स ॥ १५१० अन्ना वि ताण पुच्छा, महत्तराए य उत्तरं जं च । पन्हुत्तरक्कमेणं, कहिज्जमाणं तयं सुणह ।। १५११ ।। किं सोक्खं आरोग्गं, को नेहो जो मणस्स सब्भावो । किं भन्नइ पंडिच्चं, सव्वत्थ वि जं परिच्छेओ ।। १५१२ किं विसमं कज्जगई, किं लठं जं जणो गुणग्गाही । किं सुहगेज्झं सुयणो, किं दुग्गेझं खलो लोओ ॥ १५१३ किं दुक्खं परतंतत्तमेव, किं पीइछेयणं कोहो । किं विणयहाणिजणणं, थड्ढत्तं सेलथंभो व्व ।। १५१४ ॥ को मित्तयाइ सत्त, माया किं सव्वनासणं लोभो । किं मरणं सोक्खंतं किं दारिदं असंतोसो ॥ १५१५ ।। एमाइपसिणवागरणकरणमिच्छत्तमोहहरणेण । जायाइं ताई सुस्सावयाई सव्वाइं समकालं ॥ १५१६ ॥ सह सेससाहुणीहिं, महत्तरं वंदिऊण तो काउं । सोमाइ खामणं ते, गया य सममेव गेहम्मि || १५१७ ।। तप्पभिई अन्नो वि हु, न को वि से धम्मविग्घमायरइ । इय निरइयारधम्मं, पालइ सा गुरुयणेण समं ॥ १५१८ कालंतरेण सुहधम्मपरायणाण, लोओवयारनिरयाण गुणुत्तमाण । पाणे चइत्तु विहिणा ससमाहिपुव्वं, जाओ सुरालयगमो सयलाण ताण । १५१९ ॥ इय मग्गगामिभावाओ मंगलाई हवंति जीवाण । गुणठाणगपरिणामे, परिणामसुहावहफलाई ॥ १५२० ।। एवं सिरिअजियंजयनरिंद ! जं पुच्छियं तए सोमा । का एसा के व गुरू, तं कहियं तुज्झ सपसंगं ॥ १५२१ ।। केवलमेसो कहिओ, पंचण्हं कम्मबंधहेऊण । जो परिहारो सोमाइयाण देसेण सो नेओ ॥ १५२२ ।। जे अइलहुकम्माणो, जं किंचि निमित्तमित्तमिह पप्प । नीसेससंगचाय, करंति उच्छलियसुहविरिया ॥ १५२३ ॥ पुन्नाणुबंधिपुन्नोदयेण, जम्मंतरे समालीढा । तेसिं मिच्छत्ताई, पयपंचयसव्वपरिहारो ॥ १५२४ ।। (जुयल) तम्मि य वियाणियव्वो, दिलैंतो तुज्झ चेव अंगरुहो । सिरिधम्मभवे जेणं, पलोइडं सरयमेहालिं ॥ १५२५ ॥ उल्लसियउग्गवेरग्गभावणाजणियचरणसद्धेण । मोत्तूण रायलच्छि, पडिवन्ना सव्वओ विरई ॥ १५२६ ॥ (जुयल) परिवालिऊण तं निरइयारमाराहिऊण विहिमरणं । सोहम्मे उववन्नो, सिरिहरनामा महिड्ढिसुरो ॥ १५२७ ।। आउक्खयम्मि चविउं, तत्तो तुह चेव एस वरपुत्तो । संजाओऽजियसेणो, त्ति चक्कवट्टित्तमणुपत्तो ॥ १५२८ ॥ अजियंजयनरनाहो, सुणिउमिमं जायसुद्धपरिणामो । भणइ जिणं कहमेयाण जायए सव्वपरिहारो || १५२९ ।। तो साहइ तित्थयरो, जो खलु सम्मत्तनाणचरणाणि । समगं चिय आराहइ, परिहारो तस्स सव्वेसि ॥ १५३० ।। सम्मत्ताई आराहणा य जायइ सुसाहुदिक्खाए । मिच्छत्ताईचाओ, तत्थेव जओ समग्गो त्ति ॥ १५३१ ।। तहा हि - सब्भूयत्थगणाण सद्दहणओ सम्मत्तमावेइयं । हेयादेयपयत्थसत्थविसए नाणं पयासावहं ॥ चारित्तं च समग्गपावपडलोवग्घायसंपायगं । कम्माभावकरं तिगं पि मिलियं एव न एक्केक्कयं ।। १५३२ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेनचक्कवट्टी मोत्तूणं जिणसासणं न य तिगस्सऽन्नत्थ मेलावओ । सामग्गी सयलत्थसाहणकरी सव्वत्थ जं दुल्लहा || मिच्छत्ताइ निवारणम्मि सययं एयम्मि वीरा तिगे । एत्तो चेव कसायसत्तुजइणो हुंतऽप्पम्मत्ता जई ॥ १५३३ ॥ तो संलत्तं रन्ना, जइ एवं ता पयच्छ पव्वज्जं । मज्झ वि जेण इमाणं, संजायइ सव्वपरिहारो || १५३४ ॥ मा पडिबंधं वियरसु, देवाणुपिय त्ति आह तित्थयरो । अणुजाणावइ चक्कि, अजियंजयनरवरो तयणु ॥ १५३५ तेण वि भणियं आगच्छ ताव गेहम्मि जाव जेण अहं । निक्खमणमहामहिम, तुज्झ करावेमि भत्तीए ॥ १५३६ ।। भणइ इमो वि हु सेयाई पुर किर हुंति विग्घबहुलाई । ता पत्थुयम्मि कज्जे, मा कालविलंबमायरसु ।। १५३७ ।। चक्कहरो वि हु जंपइ, कालविलंबो न को वि तुह होही । केवलमिणं ससोभं, जह होइ तहा करावेमि ॥ १५३८ इय भणिऊणं अभिवंदिऊण तित्थेसरं तिजगनाहं । अजियजयनरनाहो, नीओ गेहम्मि पुत्तेण ॥ १५३९ ॥ कारवइ तयणु अट्ठाहियाओ अइवित्थरेण जिणभवणे । दावेइ महादाणं, दिणाणि जा अट्ठ संतुट्ठो ॥ १५४० घोसावइ य तियचउक्कचच्चराईसु जस्स जेणेत्थ । कज्जं सो तं गिन्हउ, अजियंजयरायनिक्खमणे ॥ १५४१ ।। संघस्स य सम्माणं, कारविउं नरसहस्सवहणिज्जे । सिबियारयणे आरोविऊण अइगुरुविभूईए ॥ १५४२ ।। नीओ जिणस्स पासं, सिबियारयणाओ ओयरेऊण । तिपयाहिणं च दाउं, जिणस्स तो भणइ भत्तीए ।। १५४३ ।। जिणनाह विवहसारीरमाणसाणेयदुक्खगहिरम्मि । पडियं भवंधकूवम्मि दीणकरुणाई विलवंतं ॥ १५४४ ॥ मं उत्तारसु तं नियदिक्खा हत्थावलंबदाणेण । सहियं इमेहिं धम्मत्थिएहिं बहुनरवरिंदेहिं ॥ १५४५ ॥ इय भणिऊणं सयमेव पंचमुट्ठीहिं उक्खणिय केसे । पडिओ जिणस्स चरणेसु तेण अह दिक्खिओ विहिणा ॥ १५४६ ।। अन्ने वि नरवरिंदा, विहिणा तेणेव तत्थ निक्खंता । चरणम्मि निप्पकंपा, जाया सव्वे वि मेरु व्व ॥ १५४७ ।। एवं सो अजियंजओ नरवई तित्थकरस्संतिए । घेत्तुं दिक्खमसंखसोक्खजणयं सिक्खं च अब्भासिउं ॥ सुत्ताहिज्जणकप्पतेप्पविसयं जाओ तहा संजमी । धम्मे सज्जसदेवसोक्खजणगे अन्ने विलग्गा जहा ।। १५४८ ।। इइ चंदप्पहचरिए, जसदेवंके चउत्थपव्वम्मि । जं उक्खित्तं कहियम्मि तम्मि एयं परिसमत्तं ॥ १५४९ ।। एत्तो उ अजियसेणस्स चक्कवट्टिस्स पंचमे पव्वे । अच्चुयकप्पुप्पत्तिं, कहिज्जमाणी निसामेह ।। १५५० ।। (पंचमो पव्वो) तं नमह जस्स देहज्जुईए धवलोकयम्मि दिसिवलए । लक्खिज्जइ भुवणं खीरजलहिमज्झा इवुत्तिन्नं ॥ १५५१ ।। अजियंजयनरवईणा, जिणनाहसयंपहस्स पामूले । गहिए वयम्मि चक्की, नियगेहं जाइ गुरुसोओ ॥ १५५२ ॥ मंतीहिं तओ भणिओ, नरवर ! जाणंतओ वि कीस तुमं । वियरसि मणभवणम्मी, सोयपिसायस्स अवयासं ।। १५५३ धन्नो खलु तुज्झ पिया, जो सासयसोक्खमोक्खकयलक्खो । चइडं भवं पवन्नो, दिक्खं जिणणयमूलम्मि ॥ १५५४ एमाइवयणरयणाई पवरमंतीहिं हरियसोयभरो । लग्गो कमेण सयलाइरज्जकज्जाइं चिंतेउं ।। १५५५ ।। अवि य - सासंते जम्मि मही, जिणनयणचओरसीयकिरणम्मि । गिम्हदिणेसु वि न जणइ, जणस्स तावं रविकरोहो ॥ १५५६ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० सिरिचंदप्पहजिणचरियं नीइनिउणेण जेणं, धरणी हयदुन्नया हरियदोसा । अन्नविरत्ता भुत्ता, सइत्तपत्त व्व सगुणेहिं ।। १५५७ ।। वड्ढियललि उवयारं, जो उन्नयपिहुपओहरसुगोत्तं । तरुणिं व धरं भुंजइ, थिरत्तगुणलद्धसक्कारं ॥ १५५८ ।। चक्किसिरिमणुहवंतस्स तस्स अह अन्नया समणुपत्तो । महुसमओ समयपिगाण जत्थ वित्थरइ महुररवो ।। १५५९ हयपउमं गयपत्तं कुवायबलनिच्चकंपियजणं च । निज्जिणिउं सिसिररिउं, महुराया महुरमुल्लसिओ ।। १५६० ।। नवपल्लवकरचरणो, ईसिसमुल्लसियमउलवरदसणो । मंजरिचूडाकलिओ, कीलइ बालो व्व जो भवणे ॥ १५६१ किं च - जणयंतो जणहरिसं, दावितो विरहिणीण बहुदुक्खं । सिक्खाविंतो कलकलयलं च कलयंठकंठीयो ॥ १५६२ ॥ उल्लासिंतो मलयानिलेण सहयारमंजरीजालं । फुल्लाविंतो नवमालियाओ सह मल्लियाहिं तहा ॥ १५६३ ॥ जो वहइ दक्खिणदिसाकामिणिमणिकुंडलं तरणिबिंबं । मलयानिलपेल्लियमिव, उत्तरनहपंगणे पडियं ॥ १५६४ (विसेसय) जो य गुरुपरिमलुप्पीलपयडपसरंतदाणकयसोहो । सहयारमंजरीजालदंतमुसलेहिं रमणीओ ॥ १५६५ ॥ गयवइवित्थारियविरहपावओ वारणो ब्व अइपोढो । अक्खलियो भुवणवणम्मि भमइ भसलालिकयहरिसो ॥ १५६६ ॥ (जुयलं) अवरं च - सुहपुव्वकालमूलो, कुणइ सुहं मणु जणस्स सरओ वि । एमेव य पुण एसो, पेच्छह महुणो गुणसमिद्धिं ।। १५६७ विरहिणिहरिणीकयगरुयविद्दवो लसियकेसरकलावो । किंसुयनहग्गरुइरो, महुमासो सहइ सीहो व्व ॥ १५६८ ।। हिययहरपत्तवल्लीपसाहणं पवरमेस धारिंतो । तरुणिथणाणं रइहरथंभाण य लहइ उवमाणं ।। १५६९ ।। जो न वि मुंचइ माणं, भंजइ तह सुरहिबंधुणो आणं । तस्स वहत्थं व महू, संधइ तरुधणुसुकुसुमपाणगयं ।। १५७० (गीतिका) मंजरिनियरपसाहियसहयारगिहेसु भमइ महुलच्छी । अरुणप्पवालचरणा, महुयररवतुलियनेउरा रावा ।। १५७१ (गीतिका) अन्नं च - कलियविमलंबरं ता, ससहरजोण्हाए एत्थ बहलाए । रयणीसु गयणलच्छी, चंदणचच्चं व अणुहवइ ॥ १५७२ ।। माणिणिमणभवणेसुं, माणरए मलयमारुएण वहरिए । महुनिहियपल्लवकरो, महुयररवमंगलेहिं पविसइ मयणो ॥ १५७३ (खंधो) पेच्छह वसंतसत्तिं, जो कुसुमपरायचुन्नमेत्तेण । मोहंतो भुवणमिमं, करइ कामस्स वसवत्तिं ॥ १५७४ ।। कलकलयलेण कोइलकुलाई जणयंति विरहिसंतावं । परपुट्ठमलिणरूवाण अहव भण केत्तियं एयं ॥ १५७५ ।। हिंडइ चूयवणेसुं, लुटतो पहियहिययसाराई । कलयंठकुलमिसेणं, चरडगणो मयणभिल्लस्स ।। १५७६ ॥ वल्लहसरीरफासो, मयराइरसो सुगंधिणो पवणा । लडहकडक्खा कामिणिजणस्स तह पंचमस्स झुणी ।। १५७७ ।। पंच वि इमे पयत्था, महुसमए पयरिसं परं पत्ता । सयलिंदियसुहहेऊ, होति विलासीण पुण्णेहिं ॥ १५७८ ।। एवंविहे वसंते, पावासुयलोयसोसियवसंते । मुहमुइयमहुयरीबहलरावमुहरीकयदियंते ।। १५७९ ॥ फुल्लियअसोयचंपयकुरवइतिलयाइरुक्खरमणीए । माणिणिमाणुम्महणे, मयरद्धयनिद्धबंधुम्मि ।। १५८० ॥ सो अजियसेणचक्की, चक्कंकुसकमलसंखमाइहिं । वरलक्खणेहिं लक्खियदेहो पविसित्तु वासहरं ॥ १५८१ ।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेनचक्कवट्टी अंके निवेसिऊणं, हरि व्व लच्छि मणोभिमणदइयं । वीसत्थो जंपइ पणयसारवयेणेहिं हट्ठमणो ।। १५८२ (चक्कलयं) पेच्छ पिए एस महू, उववणलच्छीए सणकएण । परहुयरवच्छलेणं, सिणिद्धमेत्तो व्व मं भणइ ॥ १५८३ ।। सीमंतिणि व्व वरतिलयपत्तसविसेससोहमणुपत्ता । नयणुज्जाणस्स सिरी, अणवज्जो जुज्जए दटुं ॥ १५८४ ।। ता गंतूण उववणे, मलयानिलनच्चमाणसाहिगणे । वम्महसिणिद्धबंधुं, माणामो संपयं सुणसु ॥ १५८५ ॥ तत्थ तुमं पि किसोयरि ! गया वसंतोचिएण वेसेण । कुण नयणमहं वणदेवयाण पच्छन्नरूवाण ।। १५८६ ॥ किंचि तुह केसपासस्स सोहमसमं पलोइय सिहंडी । लज्जाए नियकलावम्मि तत्थ मोत्तूण नट्टविहिं ॥ १५८७ ॥ वच्चेज्जन्नत्थ अओ, सकेसपासं नियंबबिंबस्स । चुंबणसीलं चीणंसुएण पिहियं करेज्जासु ॥ १५८८ ॥ जेणम्ह नयणमणहारि तस्स नट्टे पलोयमाणाणं । होज्जा न अंतरायं, मयच्छि ! अच्छिन्नवंछाण ।। १५८९ ।। (विसेसयं) अन्नं च तुज्झ वाणिं, महुरत्तं सिक्खिउं व अइनिहुयं । कोइलकुलं सुणेही चूयं कुरगासनीसदं ॥ १५९० ।। तुह निसुणंती तह हंसगमणि ! मणिनेउराण झंकारं । मुहुपाणपरा किर लज्जिय व्व रणिही न भमराली ॥ १५९१ अवि य तुह मेहलारावसुणणसंजायसोक्खसंभारो । सारसगणो वि मंताविट्ठो व्व न मुंचिही पासं ॥ १५९२ ।। नयणप्पहाहिं तह कुवलयच्छि ! तुह पेच्छिरीए तरुलच्छी । धणभूमिउ ते लहिस्संति नीलनलिणोवहारसिरिं ।। १५९३ तुह सुमुहि ! चरणपरिताडणाइ होहिंति दो य समतुल्ला । कंकेल्ली नवकुसुमो, अहं च रोमं च कंचुइओ ।। १५९४ दटुं च तुमं सुंदरि ! निसग्गमंथरगईए हिंडती । वणदीवियासु हंसीकुलं पि सीलत्तणमुवेही ।। १५९५ ॥ वारं वारं करताडिओ वि विदुमसमम्मि तुह अहरे । लग्गंतो भमरजुवा, असोयनवपल्लवतिसाए ॥ १५९६ ॥ कस्स न काही सुंदरि ! वणम्मि वयणं पयट्टहासरयं । अमुणियवत्थुपवित्तीए अहव भण को न हसणिज्जो। १५९७ (जुयलं) पेरंतजायतरुजालरुद्धचंचंतरविकरेसुं पि । मुद्धच्छि ! वणंतलयाहरेसु अइगुविलरूवेसु ॥ १५९८ ॥ मन्ने मुहिंदुनिम्मलकंतीए पडिहणिज्जमाणो ते । बहलो वि अंधयारो, थेवं पि न अम्ह परिभविही ॥ १५९९ ।। (जुयल) अवरं च वयणससहरमणहरलायन्नजोण्हमुद्धमणो । वरतणुबओरनियरो, वि तुज्झ पासं न मुंचिहइ ॥ १६०० ।। चरणाण उप्पलेसुं, नियंबबिंबस्स दीहियापुलिणो । हत्थाण पल्लवेसुं, बाहूण मुणालदंडेसु ॥ १६०१ ॥ वयणस्स पंकएसुं, भूभंगाणं तरंगभंगेसु । गंडाण चंपएसुं, दसणाण विइइल्लमउलेसु ।। १६०२ ।। कयलीसु ऊरुयाणं, लयासु देहस्स अलिसु मयणाण । वरकुसुमगोच्छएसुं, थणाण बिंबेसु अहरस्स ।। १६०३ ।। हरिणीसु पेच्छियाणं, विलासु दोलासु सवणपालीणं । केययतरुम्मि नासाए मोरबरिहेसु चिहुराण ॥ १६०४ ॥ इय एवमाइसु निसग्गसुरहिणा मारुएण वयणस्स । पेसलयंती मलयानिलस्स सोरब्भसंपत्तिं ॥ १६०५ ॥ विहरसु विभिन्नवत्थूसु तेण सारिच्छदसणम्मि तुमं । सुहमहियमणुहवंती, सह सुयणु ! मए उववणम्मि ॥ १६०६ (कुलयं) खणमेत्तमेवमाभासिऊण महुरवयणरयणाए । एगंतठियो राया, नियदेविं गरुयराएण ।। १६०७ ॥ आघोसणं करावइ, चउक्कतियचच्चराइठाणेसु । उज्जाणगमणकज्जं, उद्दिसिय जणस्स नयरम्मि ।। १६०८ ।। (जुयलं) करडयडगलंतमए, पडिगयगलगज्जियस्स संकाए । जणयंतो कोवभरेण निब्भरे तयणु दिसकरिणो ।। १६०९ ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं पसरंतपढमपाउसपओहरुद्दामसद्दबुद्धीए । उक्कंठाभरनिब्भरमणेयमोरे मुहरयंतो ॥ १६१० ॥ पायालविवरपरिपूरणेण संजणियसंभमाण तहा । उल्लासिंतो वियडं, फणाकडप्पं भुयंगाण || १६११ ।। ढालिंतो टंके गिरिवराण गयणंगणं च पूरंतो । उज्जाणगमणसंसी, समुट्ठिओ दुंदुभिनिनाओ ॥ १६१२ ।। (कलावयं) सुललियतमालयाणणसुसोहतिलयाहिं पयडमयणाहिं । अंतेउरियाहिं समं, मणमालाविन्भमधराहिं ॥ १६१३ ॥ कलकोइलरवरम्मं, महुसंगमजणियविब्भमसुसोहं । रमणं व काणणसिरिं, तो दटुं नरवई चलिओ ।। १६१४ ।। (जुयल) सामंतमंतिमंडलसेणाईवइसेट्ठिमाइलोया य । सह रन्ना नीहरिउं, लग्गा नियनियविभूईए ॥ १६१५ ॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणमणुसरंतस्स पउरकामिणिजणस्स जे तइया । निब्भररसा विलासा, जाया अह के वि ते भणिमो ।। १६१६ एगा जंपइ महिला, हला हला कत्थ तं सि संचलिया। रणझणियनेउरारवआयडिढयहंससंघाया ।। १६१७ ॥ इयरा भासइ मुद्धे ! वसंतसिरिदसणूसुओ राया । उज्जाणं जाइ जओ, अहं पि तत्थेव संचलिया ॥ १६१८ ॥ अन्ना य भणइ हसिरी, सहि ! अन्नपहेण जाहि जइ तुरिया । उत्तुंगथणहरेणं, पेल्लाविल्लि तु मा कुणसु ।। १६१९ दठूण तरुणपुरिसं, किंचि वि मयरद्धयं व पच्चक्खं । सज्झसवसदरल्हसियं, संठवइ नियंसणं अन्ना ।। १६२० कलकणिरकंचिदामोवसोहिणा गुरुनियंबबिंबेण । तरुणजणमक्खिवंती, वच्चइ अवरा उ वरतरुणी ।। १६२१ ।। पियबाहुनिविट्ठकरा, अवरा मइरावएण घुम्मंती । पंचमगेयज्झुणिमणुगुणंतिया जाइ लीलाए ॥ १६२२ ।। पररमणिपलोयणखित्तचित्तमन्ना उ पिययमं नच्चा । अच्चासन्नट्ठियविडविखंधअंतट्ठिया होउं ।। १६२३ ॥ अवलोइयतच्चरिया, पयडीहोऊण गरुयकोवेण । मन्नाविते वि पिए, पडिवयणमदितिया जाइ । १६२४ ।। (जुयलं) अन्न पुण खंभनिहिएक्कथणलग्गए, पियभुयादडि घोलंति नियहत्थए । तुंबवीणाविणोयस्स जणमोहणं, धरइ लीलाए सोहं वयंती वणं ॥ १६२५ ॥ अन्नठाणम्मि अन्नेण अन्नयरिया, भणइ किं वयणि पई दिन्नकत्थूरिया । कमलभंतीए जं अलिउलं लग्गए, तुह मुहं मुद्धि ! तेणेव मंडिज्जए ।। १६२६ ।। किंच कंठम्मि जो तुज्झ हारो इमो, सो वि भारो व्व पडिहाइ मे उत्तमो । गमणसमसेयबिंदूहिं संपाइए, तस्स कज्जम्मि थणउवरि तरलच्छिए ।। १६२७ ।। अवरं च भणमि सुंदरि !, सवणंतविलग्गनयणजुयमेव । नीलुप्पललच्छि धरइ तुज्झ अवयंससि किमेए ।। १६२८ जावयरसो किमेसो, निहिओ रत्तुप्पलोवमपएसु । न हु पयइसुंदरे को वि कुणइ किर कारिमं सोहं ॥ १६२९ ॥ अन्नो य चच्चरीकोउएण पुरओ पियाए संचलिओ । गुरुथणहरपिहुलनियंबभारमंदयरगमणाए ॥ १६३० ।। कन्नुप्पलेण पहओ, तीए वलिऊण भणइ तं सुयणु ! । कोमलबाहुलया ते, न पीडिया ताडणसमेण ।। १६३१ ।। (जुयल) अवरो य गोत्तखलणेण सावराहं कले वि अप्पाणं । रुट्ठाए पियाए पसायणत्थमेवं पयंपेइ ।। १६३२ ॥ खमसु ममेक्कवराह, पुणो वि नाहं पिए ! इमं काहं । जं एकसि अन्नाणा, खलिए तश्विरमणं दंडो ॥ १६३३ ॥ इय चाडुवयणकुसलेहिं वल्लहेहिं विणोययंतीओ। अगणियमग्गसमाओ, इयराओ पहम्मि वच्चंति ।। १६३४ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेनचक्कवट्टी एक्को उण मंदगई, दइयं उप्पाडिऊण बाहूहिं । तप्फाससुहविसज्जिय अद्धाणसमो लहुं वयइ ॥ १६३५ ॥ मंदपरिसक्किरि भणइ कोइ पुण पणइणिं जइ तुमं मे । आरुहसि मुद्धि ! खंधे, सुहेण ता वच्चसि वणम्मि || १६३६ चडिऊण तओ खंधे, पियस्स गव्वुद्धरा इमा जाइ । सोहग्गोवरिमंजरि इय जणवायं अणुसरंती ॥ १६३७ ।। सुललियगई न हंसा, मंथरगइणो न गयवई किंतु । सुनियंबो पयइगुरू, अलसगईसुं गुरू तासिं ॥ १६३८ ।। इय विविहविणोएहिं, जा वच्चइ केत्तियं पि भूभागं । नयरजणो ता पेच्छइ, पुरओ उज्जाणमइरम्मं ।। १६३९ ॥ सहयार-अंब-अंबिलिय-करुण-जंबीर-बिज्जऊरीहिं । खजूर-सज्ज-अज्जुण-पोप्फलिणी-नालिएरीहिं ।। १६४० नारंग-महुय-राइणि-टिंबरुय-कयंब-नीव-कडहेहिं । निंबउयनिम्ब-दाडिमिनिसरलसुरदारूनिचुलेहिं ।। १६४१ पुन्नाग-नाग-चंपय-करंज-कुरवय-असोय-बउलेहिं । मंदार-सिरीस-कवित्थ-असणतिणरायतिणिसेहिं ।। १६४२ कप्पूर-चंदणागरु-लवंग-कक्कोल-तगर-एलाहिं । जाईफल-हरियंदण-संताणय-पारियाएहि ॥ १६४३ ॥ अंकोल्ल-पिल्ल-सल्लड-कंपेल्लकसेल्लसेलपीलहिं । अक्खोड-तिलय-वायम-जंब-कोसंबखयरे पिप्पल-पलास-उंबर-वड-काउंबरि-पिलिक्ख-कुडएहिं । करमंदि-फणिस-पिप्पलि-कंबीरिय-मिरिय-कडुयाहिं ।। १६४५ हरडइ-वहेडयामलिय-पाणकुवली-तमाल-तालाहिं । अंजण-सोहिंजण-कंचणार-कणियार-सागेहिं ।। १६४६ ।। एमाइ विविहरुक्खेहिं पवणहल्लंतसाहबाहूहिं । आगमणत्थं सन्नं व कुणइ जं लोयनिवहस्स ॥ १६४७ ।। किंच - कुंद-मुचकुंद-वेइल्ल-पारत्तिया, जूहिया-जाइ-कणईरि-सयवत्तिया । दमण-जासुयण-अइमुत्त-नेमालिया, केयई-कुज्ज-कणियार-कोरिंटिया ॥ १६४८ ।। एवमाईण विडवीण जे पुप्फया, तत्थ दीसंति वन्नड्ढगंधड्ढया । तत्थ लग्गति जे भमरसंघायया, ताण सद्देण जं गायई सव्वया ॥ १६४९ ।। अवि य - सारस-हंस-बलाया-कारंडव-कुंच-चक्कवायाण । बप्पीहयाडिकोइल-सिहंडिचरणाउहचिडाण ॥ १६५० ॥ अन्नाण वि सुयसालहियमाइविहगाण विविहरूवाण । कोलाहलच्छलेणं, जं आहवइ व्व पहियगणं ।। १६५१ ॥ अन्नं च - वाउपेल्लंतसाहुलियकयतंडवा, जत्थ दीसंति दक्खाण वरमंडवा । सामलत्तेण कायं पि नीसंकया, मुद्धसिहिनिवहुनटुं कराविंतिया ॥ १६५२ ।। नागवल्लीओ अन्नत्थ घणपत्तया, छइयनहविवरनन्नीलवरपट्टया । जाण छायासु कोलंति नरमिहुणया, पवरसुहबुद्धिआ बद्धआवाणया ।। १६५३ ।। जं च उम्मिल्लपुप्फेहिं नयणेहिं वा, पवणहल्लंतपल्लविहिं हत्थेहिं वा । नाइ जोएइ तं समुहर्मितं जणं, हरिसभरनिब्भरं नच्चई तक्खणं ।। १६५४ ॥ तत्थ सव्वत्तुए पत्तु उज्जाणए, सयलवणदेवयावाससम्माणए । गुरुविभूईए राया सअंतेउरो, मंतिसामंतमाईजणाणं पुरो ॥ १६५५ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं नियनियभज्जाहिं समं, उज्जाणे तत्थ नायरजणा वि । अनिरुद्धरहप्पसरे, विसंति मयरद्धयगिहे व्व ।। १६५६ ।। सीयलसिणिद्धतरुछाहिया, वि तो वीसमंति खणमेक्कं । रविकिरणुम्हाहियमग्गखेयसेयावहरणत्थं ॥ १६५७ ।। एत्थंतरम्मि - अच्चब्भुयवणसोहं, पेच्छंता विम्हएण ते लोया । सीसे धुणंति सहसा, वम्महसरपहरविहुर व्व ॥ १६५८ ॥ दह्णुज्जाणसिरिं, सव्वोउयपुप्फफलगुणसमिद्धं । विम्हयविम्हरियनिम्मेसदिट्ठिया नाइ ते देवा ॥ १६५९ ॥ नवपल्लवगहणत्थं, काओ वि तो उट्ठियाओ रमणीओ । पुफोच्चयकज्जेणं, अवराओऽपराओ फलहेऊ ॥ १६६० एक्काइ लया निहियं, करकमलं पल्लवस्स बुद्धीए । मुद्धत्तणेण अवरा, गिण्हंती होइ हसणिज्जा ॥ १६६१ ।। निययकरेणं नियपल्लवेण गहिओ असोयसाहाओ। नवपल्लवो पियाए कण्णम्मि कओ य अव कोवायंपिरनयणच्छलेण नं सो य पल्लवे जणइ । सो च्चिय सवत्तिमहिलाण दिट्ठिमग्गागओ चोज ॥ १६६३ ।। (जुयल) एक्काइ सिरं रवितावहारिनवपल्लवुत्थयं सहइ । रइरूवहरणपरिकुवियकामधणुपहररुहिरलित्तं व ।। १६६४ ॥ (गीइया) अन्ना पियहत्थुच्चिणियगुत्थसिरिरइयरम्मवेइल्लमुंडमालाए । आबद्धरुद्धपट्ट व्व सहइ मज्झे सवत्तीणं !। १६६५ (गाहो) वल्लहसहत्थगुत्थोच्छोल्लियवेइल्लफुल्लवरहारो । एक्काए कीरमाणो, कंठे अन्नाए अवहरिओ ।। १६६६ ।। भणियं च किं तुम चिय, एक्का जोग्गा इमाण वत्थूण । अम्हे विमस्स करकिसलयम्मि लग्गाओ चिट्ठामो ॥ १६६७ (जुयल) कुणइ पियनामियलयामंजरिमवरा य उच्चिणेमाणी । कोवुग्गसेयकणोहमंजरिल्लं सवत्तिदेहलयं ॥ १६६८ । (गीइया) अन्नाहिं तिलयकुसुमेहिं विविहमाभरणमुवरयंतीहिं । तिलउ त्ति से पसिद्धी, चिरप्परूढा वि हारविया ॥ १६६९ ॥ कणयच्छविम्मि देहे, चंपगमाला न सोहइ इमीए । इय थणवढे अन्नाइ बउलमालं पिओ ठवइ ॥ १६७० ॥ अन्नाए पुण रमणो, असोयकुसुमाइं कन्नपूरकए । उच्चिणिय भणइ हसिरो, गिण्ह पिए तुममिमाई तओ ॥ १६७१ ॥ रे धिट्ठ ! जीए रत्तो, तुम असोयत्तणेण सोहेसि । तीए रत्तासोयं, देयं उचिओवयाराए ॥ १६७२ ॥ मह पुण एएण विणा, वि कन्नपूरो गुणेहिं तुह जाओ। इय भणइ का वि दइयं, तसाइया तस्स विलिएण ।। १६७३ (विसेसयं) पुप्फोच्चयसमसेयावहारकज्जेण वयणकमलस्स | पल्लवमयम्मि हत्थयलचालिए तालियंटम्मि || १६७४ ।। भमरीण गंधलुद्धाण तरुणदिट्ठीण रूवखित्ताण । मुहसम्मुहागयाणं दोण्ह वि सहि ! कुणसि किं विग्धं ॥ १६७५ इय भणिया निहससयज्झियाइ हसिऊण का वि पडिभणइ । इंदियलोला अन्नेवि विग्घसयभायणं हुंति ।। १६७६ (विसेसयं) गुरुवयणाई व परिणइसुहाई सरसाइं वन्नसाराइं । सहयाराइतरूणं अवराओ फलाइं गिण्हंति ॥ १६७७ ॥ अन्नाओ नियपओहरपमाणए पासिऊण हसिरीओ । मालूरफले गहिउं कंदुयकीलाओ कुव्वंति ।। १६७८ ।। एक्काइ भणइ भत्ता, सुंदरि ! जंबीर-पुंजमाइतरु । फलभारो नमियसिरा तुम व एए पणिवयंति ।। १६७९ ॥ फलपत्तरिद्धिनमिरे सच्छाहे सउणसेविए तुंगे । किंच पिए ! सप्पुरिस व्व पेच्छ एए महारुक्खे ॥ १६८० ॥ अन्नं च अन्नविडवीण असमपल्लवपसूणरिद्धीए । तुट्ठो व्व असोओ सुहफलेहिं रहिओ वि हु असोओ ।। १६८१ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेनचक्कवडी अवि य -- तरुणीचरणाहयदाविएहिं कयकिच्चयं पवालेहिं । मन्नतो व्व असोओ, त्ति एस सिद्धो फलं विणा वि तरू ॥ १६८२ (गीतिका) अवरं च - उच्चिणियफुल्लपल्लवफलं पि तरुणीजणेण पेच्छ वणं । तक्करफंसुल्लासियसुहं च अहियं वहइ सोहं ।। १६८३ लयतालमुच्छणाणुगयगेयमक्खित्तजुवजणसमूहं । गायंति मुहुरसरमेत्थ किन्नरीओ व्व अन्नाओ ॥ १६८४ ।। नच्चंति विविहभंगीहिं तरुणमणमोहणीओ काओ वि । करणंगहाररुइरं सुरंगणाउ व्व दिट्ठिसुहं ।। १६८५ ।। अन्ना वि पिययमवाइज्जमाणडक्कारयाणसारेण । खंभारंभनिभोरु रत्तप्पलरत्तकरचरणा ।। १६८६ ॥ उवेल्लमाणभुयजुयलरणिरमणिवलयतालरमणिज्जं । तह कह वि कुणइ देव्वं रंभ व्व सविब्भमं नर्से ।। १६८७ ।। उज्जाणकोउयागयदेवाण वि जह धुणावए सीसं । तज्जणियविम्हएण व, अणिमिसनयणत्तपत्ताण ।। १६८८ (विसेययं) तह माहविदक्खामंडवाइठाणेसु पउरलोयस्स । पुरओ पत्तयकोउयपलोयणक्खित्तचित्तस्स ।! १६८९ ।। पटुवायकुसलवाइयहुडुक्कमद्दलपयट्टवियनढें । वारंगणाहिं कत्थ वि, पारद्धं देवपेक्खणयं ।। १६९० ॥ छलिय व्व जच्चेणं नच्चइ तह कह वि कामिणी तत्थ । होडुक्कियं पि जंपेइ डक्कियं तं जह जणोहो ॥ १६९१ अवरं च - सुनिम्मला रत्तनहावलीओ, कुम्मुन्नयं हीओ वरंगुलीओ। सुरूवलच्छीजुयजंघियाओ, हत्थीसहत्थोवमऊरुयाओ ।। १६९२ सिलायलोदारनियंबिणीओ, विसालसोणित्थलमालिणीओ । गंभीरनाहिद्दहकुंडियाओ, सुसन्हरोमावलिमंडियाओ ।। १६९३ मुट्ठीपरिगिज्झवरोयरीओ, सुरेहरेहत्तयरेहिरीओ। उत्तुंगपीणत्थणवट्ठियाओ, पहाणकंबूवमकंठियाओ ।। १६९४ ।। बालप्पवालाहरउट्ठियाओ, कवोललायन्नअहिट्ठियाओ। विसिट्ठनासामुहमंडणाओ, सुकन्नपालीमणनंदणाओ। १६९५ वोसट्ठइंदीवरलोयणाओ, पहाण भूरेहपसाहणाओ। भालोवविट्ठालयपंतियाओ, सुकेसपासेहिं सहतियाओ ॥ १६९६ अन्नत्थ अन्ना उण चच्चरीओ, गायंति कन्नाण सुहंकरीओ। विचित्तपुप्फाभरणंकियाओ, पचक्ख मन्ने वणदेवयाओ ॥ १६९७ (कुलक) किंच - तरुसाहाबद्धं दोलएसु दोलतियाओ बालाओ । कत्थइ दीसंतसुरंगण व्व नहमुप्पयंतीओ ॥ १६९८ ॥ अवरोप्परखंधनिहत्तबाहु सह पिययमेण दोलाए । दोलंती हरगोरीण का वि लीलं विडंबेइ ॥ १६९९ ।। इय एवमाइबहुविहकीलारसनिब्भरं जणं राया । पेच्छंतो संपत्तो संतेउरपरिजणो तत्थ ।। १७०० ।। दठूणं तं जणो वि हु, समागयं सयलजणमणाणंदं । लउडारसतालारसमारंभइ विविहनट्टजुयं ॥ १७०१ ॥ कीलागिरिसिहरोवरि निवेसिए दिव्वफलिहमणिघडिए । सीहासणे निविट्ठो आयासगओ सुरिंदो व्व ॥ १७०२ ।। पटुपाडकुसलखेलयखेली लोएण तत्थ कत्थ वि य । लउडारसमारद्धं पेच्छइ संतेउरो राया ।। १७०३ ।। (जुयल) वत्थालंकाराई खेलयखेलीहिं जे कया तत्थ । लउडारसखेल्लणए तिहुयणमवि विम्हियं तेहिं ॥ १७०४ ॥ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तहा हि - सुरसिद्धखयरवंतरनागकुमाराइणो तहिं पत्ता । जे केइ कोउएणं ते सव्वे विम्हिया जाया ।। १७०५ ॥ अवि य - पडिसद्दरुद्धनहविवरपडहकरडामुइंगमाईण । आउज्जाणं सद्दो उच्छलिओ विविहपाडेहिं ॥ १७०६ ॥ लउडारससद्देणं संचलिओ तह कहं चि तत्थ वणे । जह तप्पेक्खयलोया संजाया चित्तलिहिय व्व । १७०७ ।। अन्नं च अंतरा अंतराओ पेक्खणयसद्दसम्मिस्सो । लउडारासो पडिहाइ सवणविवराण अमयं व ॥ १७०८ ॥ किंच - पडिवि पाडरमणीय पवरवायहिं आउज्जई । पाउसजलहरगहिर सरिण जणविरइय चोज्जइं ॥ १७०९ ।। लउडारासु य तयणुसारि तिंव किंवइ खेल्लहिं । जिंव लोयहं अन्नत्थ कहि वि मण नयण न डोल्लहिं ॥ १७१० एवं तालारासं पि बिंति नरवइगुणत्थुइपहाणं । आबद्धमंडलीया कत्थ वि रमणीओ कहिंचि नरा ॥ १७११ ।। सह नरवइणा एयम्मि अंतरे जे समागया कोई । नडनट्टजल्लमल्ला वेलंबगकहगलंखाई ॥ १७१२ ।। आरूढपोढगव्वा नियनियविन्नाणपयरिसगुणेण । ते उठ्ठिऊण सव्वे नरनाहं विन्नविति इमं ।। १७१३ ।। कीरउ देव ! पसाओ अम्हाण वि अवसरप्पयाणेण । नियविन्नाणं किंचि वि, दंसेमो जेण अम्हे वि ॥ १७१४ ।। तो नरवइणा दिट्ठीसन्नामेत्तेण ते अणुन्नाया । नियनियविन्नाणाई आढत्ता से पयंसेउं ।। १७१५ ॥ तहा हि - चक्कि व्व भरहसारा तरु व्व बहुपत्तपरियरपहाणा । अभिनयमाणा वरनाडयाई नच्चंति तत्थ नडा || १७१६ ।। थरहरियकड़ियडाबद्धरणिरघग्घरियजणियजणतोसा । सच्चवियविविहकरणा, कुणंति अन्ने उ नट्टविहिं ।। १७१७ ।। अवि य - वाइत्तगीयसंगयनट्टविहोणेण नट्टयजणस्स । तह रंजिओ नरिंदो, जह से अवणेइ दालिदं ॥ १७१८ ॥ अन्नत्थ वरत्ताखेलियाओ, तहिं चक्कई उल्लालंतियाओ। दक्खत्तगुणिण पुणु लिंतियाओ, गोलेहिं तहेव रमंतियाओ ॥ १७१९ छुरियाओ तह य गुणवंतियाओ, गोलयछुरियापयडंतियाओ। तिगजोगिण जणु रंजंतियाओ, नच्चंति वरत्तासंठियाओ ॥ १७२० बाहूरुयकरचरणाइ अंग अन्नोन्नगहणविरइयविचित्त । बहुबंधामल्ला वि रायपुरओ नियविन्नाणाई पयडंति ॥ १७२१ (गाहो) निज्जुद्धजुद्धकुसला, अन्ने अन्नोन्नमंगसंधीओ । टालंति संठवंति य, पुणो वि करकरणयाइसया ॥ १७२२ ॥ अवरे छुरियाओ गुणवंतिया वि बंधे कुणंति तह कह वि । जह तव्वसेण छुरिया जुया वि लोलंति भूमीए ॥ १७२३ ।। मुट्ठियमल्ला उ परे, परोप्परं मुट्ठिपहरणपसत्ता । बंधंति मुट्ठिपहरे करणविसेसेहिं उल्ललिउं ॥ १७२४ ।। केइ पुण विहियपडिमुहकारिमकयदंतवालनहनियरा । दंसेंति पेरणाई, बहूणि जणजणिय चोज्जाइं ॥ १७२५ ।। विविहाओ वयणचिट्ठाओ तह य संजणियगरुहासाओ । रमणिज्जाओ कुणंता, विदूसगत्तं पयंसंति ॥ १७२६ ।। कहगा कहति विविहा, कहाओ तह कह वि हावभावेहिं । जह अक्खित्ता ताओ लोयालिहिय व्व निसुणंति ॥ १७२७ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेनचक्कवट्टी अवि य - वज्जिर मद्दलियारणझणंतकंसालियारवमिसेण । केई दूरगयाण वि, जणाण कुव्वंति आहवणं ॥ १७२८ ॥ तयणंतरमाढत्तं, तरंतरारुइरठाणयपबंधा । गायंता गायणए, कवंति पुव्विल्लचरियाई ।। १७२९ ॥ (जुयलं ) लक्खा उण चडिवि महंतवंसि बहुपव्वरम्मि रायवसि । तत्थ ट्ठिय किरण विचित्त दिति, कुंभारचक्कु जिम्व पुणु फिरंति ॥ १७३० ।। दंसहि विचित्त तह इंदयाल रूवविलसिय जिम्व अपभूयकाल । नाणाविहमणिमोत्तियपवाल, कड्ढहिं मुहाओ तह अग्गिजाल || १७३१ ।। भुंजहि वत्थंचलि धाणियाओ, तडयडसद्देण फुट्टंतियाओ । तक्खणआरोवियभूयगुलिय, दंसहिं सुपत्त लहुफुल्लफलिय ।। १७३२ ।। माइ सयलविन्नाणनाण पेक्खइ नरिंदु विस्सुयनडाण । परमत्थवियारि न ताइं किंचि, परजणेहिं मोहु जणदिट्ठि वंचि ।। १७३३ ।। तहा मंखा विचित्तफलए, जणजणियविचित्तचित्तसंखोहे । दंसंति रायपुरओ, नच्चंते विविहभंगीहिं ॥ १७३४ ॥ हेसारखं कुणंता, पवगा तुरय व्व ओफलंति नहे । सीह व्व सीहनायं मुंचंता दिति फालाओ || १७३५ ।। पूरंता वणविवराई मत्तकारिणो व्व गज्जियरवेण । धावंति रएण वलंति तक्खणं रंगभूमीए || १७३६ ।। (जुयलं) एमाइ बहुविहाई, सव्वाण वि ताण कोउयसयाइं । पेच्छंतो नरनाहो, तुट्ठो धणओ व्व पच्चक्खो ॥ १७३७ || इच्छा अहियं तेसिं, दाणं दाऊण धणकणयमाइ । हरिसभरनिब्भरे ते, विसज्जिए नियनिट्ठाणे ॥ १७३८ || (जुयलं) तट्ठाणाओ नरिंदो वि उट्ठियो सयललोयपरियरिओ । ओयरिडं कीलापव्वयाओ लीलाइ भमइ वणे || १७३९ कत्थइ बालासोए, पलोइडं कोउएण नरनाहो । अंतेउरियाणं रणझणंतमणिनेउररवेहिं ।। १७४० ॥ ६७ पण्हिपहारेहिं हणाविऊण तक्खणसमुग्गयपसूणे । आरूढजोव्वणे इव, करावए जणियजणचोज्जे || १७४१ ॥ (जुयलं) अन्नत्थ बालविर विरहं गायाविऊण तरुणीओ । पुप्फग्गमणमिसेणं दंसेई जायरोमंचे || १७४२ ।। कत्थइ दूरठियाण वि, रमणीण कडक्खपाणनिवहेहिं । ताडाविऊण तिलए तिलपव्ववणस्स कुणइ कुसुमेहिं ॥ १७४३ (गीतिका) रामामइरागंडूससेयसंजणियपसवपब्भारा । बउला वि राइणा तह, कराविया जह अहियसोहा ।। १७४४ ॥ कत्थइ नरिंदकारियरमणीरमणिज्ज अंगसंसंगं । संपाविऊण संजायसोक्खभारा कुरबया वि ।। १७४५ ॥ दंसंति तक्खणुट्ठियपसूणभरनिब्भरेहिं संतुट्ठा | साहाहत्थेहिं पसारिएहिं अग्घं व महिवइणो || १७४६ || इच्चाइविणोएहिं, वणलच्छिमतुच्छियं जणेमाणो । अन्नाहिं वि कीलाहिं, विचित्तरूवाहिं रममाणो || १७४७ ।। चउसट्ठिसहस्सेहिं अंतेउरियाण सुरवहुसमाण । सह सहरिसं सुराणं, वहु व्व सव्वोउउज्जाणे ।। १७४८ ॥ खणमेत्तं जा अच्छइ, उच्छलिओ ताव नाइ दूरम्मि । रमणीण कलयलो सवर्णाविवरमाहोडयंतो व्व ॥ १७४९ ॥ तो निसुणिऊण तं सो, दयावरो अजियसेणनरनाहो । किं किं किमेयमिइ संकमाणहियओ तओ वलिओ ।। १७५० ॥ I ७ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं मणिरयणकणयभूसणझणज्झणारावरम्मगमणाहिं । सह निययपिययमाहि, झड त्ति पत्तो तमुद्देसं ।। १७५१ ॥ परसुनिकिंतं चंपयलयं व, नववल्लरिं व पवणहयं । भूमीए निवडियं तो, पेच्छइ रुइरं वरं नारिं ।। १७५२ ॥ धरणीलुलंतकरचिहुरपासमवलोइऊण मुच्छाए । वियलतणुं तणुयंगिं राया वि हु सोयमावन्नो ।। १७५३ ।। कारवइ तयणु सिसिरोवयारममलेण मलयजरसेण । वीयावेइ य मंदं लहुमणहरतालियंटेण ॥ १७५४ ।। लद्धाए चेयणाए, परिवारंतीए पुच्छइ नरिंदो । का एसा किं व इमीए होज्ज मुच्छानिमित्तं ति ? ।। १७५५ ।। तो भणइ सोविदल्लो, तीसे नरनाह ! सुव्वउ इमीए । वुत्तंतो एस पिया, दुहिया निवरायसिंहस्स ।। १७५६ ।। हिरिमइनामेण जणम्मि विस्सुया सुस्सुया सुसीलड्ढा । तुमए च्चिय परिणेउं, नियगेहिणिसद्दमुवणीया ॥ १७५७ ।। पुव्वकयसुकयवसओ, पयईए खीणमोहभावेण । अकसाया सुहचित्ता, अगव्विरी उवसमपहाणा ॥ १७५८ ।। जियरागदोसमोहेहिं जमिह चरणं जिणेहिं पन्नत्तं । तस्सायरणे ऊसुयमणा य विसएसु अविवासा ॥ १७५९ ।। कुप्पइ न सावराहे वि परियणे मन्नए य दासीओ। नियआओ अप्पणो च्चिय समाणवित्तीए सव्वाओ ।। १७६० ।। भणइ य तावेत्थ भवे, जाया हं चक्कवट्टिणो जाया । अहमवि अन्नम्मि पुणो, अहेसि अन्नन्नपरिणामा ।। १७६१ ॥ जम्हा एसो जीवो, नडो व्व नियकम्मसुत्तहारेण । विविहावत्थाणुगओ, भामिज्जइ भवमहारंगे ॥ १७६२ ।। तहा हि - कइया वि चक्कवट्टित्तणेण कइया वि रंकभावेण । कइया वि सामिभावेण दासभावेण कइया वि ॥ १७६३ ।। तिरियत्तणेण कइय वि, कइय वि बहुदुक्खनारयत्तेण । मणुयत्तणेण कइय वि, कइय वि पुण देवभावेण ॥ १७६४ ॥ कइया वि नरत्तेणं, कइया वि नपुंसगस्स रूवेण । कइया वि इत्थिभावेण रूविभावेण कइया वि ।। १७६५ ।। कइया वि विरूवित्तेण सोक्खजुत्तत्तणेण कइया वि । कइया वि दुक्खियत्तेण मुक्खभावेण कइया वि ।। १७६६ ।। कइय वि पंडिच्चेणं, कइय वि चउवेयबंभणत्तेण । कइय वि चंडालत्तेण खत्तियत्तेण कइया वि ॥ १७६७ ।। एमाइ विविहवत्था, नेवत्थच्छायछाइयसरीरो । भामिज्जइ एस जिओ कालमणतं सकम्मेहिं ।। १७६८ ।। एत्तो च्चिय परिणामी, जीवो दिट्ठो जिणिंदचंदेहिं । जुज्जति जओ वत्थाउ नेगरूवम्मि वत्थुम्मि ॥ १७६९ ।। अवि य - जो किरपहुत्तगत्तेण कढिणभणिईहिं परियणं भणिउं । करावइ निययआणं, आणाईसरियमयमत्तो ।। १७७० ॥ सो आभिओगियत्तं, मलिणप्पा चिक्कणं चिणेऊण । सव्वस्स पेसभावेण हीणयं लहइ परजम्मे ॥ १७७१ ॥ इय एवमाइ वयणाई जंपमाणी सया वि हु दमिती । इय इंदियाई अज्जं, इहागया तुम्ह वयणेण ।। १७७२ ।। जइ वि हु विरागभावे, वट्टइ जइ वि हु रसो न कीलाए । तुम्हाण तह वि आणा, अलंघणीय त्ति मन्ती ।। १७७३ ।। इहई च मुणिं एगं, फासुयदेसे सिलायलनिविटें । नाउं सहिवयणाओ अभिवंदणत्थं गया तस्स ।। १७७४ ।। समसीलयाइ जम्हा, पाएण जणस्स नायइ जणम्मि । बहुमाणो न हु विउसाण मुक्खलोयम्मि पडिबंधो । १७७५ ।। अभिवंदिऊण भत्तीए तं च परिवारपरिगया एसा । धरणीयलविणिविट्ठा, मुणिवयणं सोउमाढत्ता ॥ १७७६ ॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया भणियं तवस्सिा धम्मलाभपव्वं सुसाविए ! तं सि । किं खिज्जसि अणवरयं तवोगुणसमुज्जया होउं ।। १७७७ ॥ जो इंदियाइं न तर, निग्गहिरं न य मणं निवारेउं । तस्स तवे अहिगारो, दिट्ठो तन्निग्गहट्ठाए ।। १७७८ ।। जिब्भिंदियस्स वसगा जम्हा सेसिंदिया पयडमेयं । तन्निग्गहेण तम्हा, सेसाण वि निग्गहो होइ ।। १७७९ ।। जिब्भिंदिउ नायगु वसि करहु, जसु आयत्तई अन्नई । जं मूलि विणट्ठइ तरुवरह, अवसई सुक्कहिं पन्नई ।। १७८० जस्स उ वट्टेति वसे, नियकरणाइं न उप्पहे जंति । तस्स तणुरागदोसस्स होज्ज कज्जं किमु तवेण ? ॥ १७८१ ॥ भणियं च - रागद्वेषौ यदि स्यातां, तपसा किं प्रयोजनम् । तावेव यदि न स्यातां, तपसा किं प्रयोजनम् || १७८२ ।। ता भद्दे ! णभवणे विवेगदीवम्मि विप्फुरंतम्मि । नस्संते मोहतमे भववेरग्गम्मि विलसंते ॥ १७८३ ॥ खर्णादिट्ठनट्ठरूवे वत्थुसहावम्मि अवगए तह य । संसारकारणम्मी, कत्थ वि तुह नत्थि पडिबंधो ॥ १७८४ (जुयलं ) दव्वे खेत्ते काले भावे भवउयम्मि पडिबंधो । जेसिं जियाण तेसिं गरुओ खलु पावपडिबंधो ॥। १७८५ ॥ जे पुण असंगहियया, तेसिं तम्मज्झगाण वि न होइ । थेवो वि कम्मबंधो, जलसंसग्गो व्व पउमाण ॥ १७८६ ॥ एत्तो च्चिय भरहनरेसरेण गिहिणा वि केवलं पत्तं । न य तेण तवं पि कयं, तइया मोत्तूण सुहझाणं ॥ १७८७ ॥ ता सुझाणपबंधस्स साहगे मणनिरुंभणे चेव । जइयव्वं मोक्खभिकंखुएण तइ तं च अत्थि त्ति ॥ १७८८ ॥ एत्थंतरम्मि वरवलयभूसियाओ भूयाओ उक्खिविउं । वरकमलमउलसरिसं, अंजलिपुडयं सिरे काउं ॥ १७८९ ।। हिरिमइदेवी जंप, मुणिनाह ! कहेसु मज्झ ताव इमं । को एस भरहराया, गिही वि जो केवलं पत्तो ? ॥ १७९० ॥ (भरहउदाहरणं -) ६९ भइ मुणी उवउत्ता, सुण भद्दे ! अत्थि कोउयं जइ ते । जंबुद्दीवे दीवे, भारहखेत्तम्मि सुपसिद्धे ॥ १७९१ ।। एयाए च्चिय ओसप्पिणीए तइयारयस्स अवसेसे । आसि पुरा सत्तमकुलगरस्स नाभिस्स वरपुत्तो || १७९२ ।। सिरिरिसहदेवनामो, मरुदेवीकुच्छिसंभवो भयवं । पढमो तित्थयराणं जयट्ठिए पढमजगदंसी || १७९३ ।। जुयलत्तेणुववन्ना, तस्सासि सुमंगला पवरभज्जा । अन्नायतालफलचुन्नियस्स भयणी सुनंद त्ति ॥ १७९४ ॥ ताहि समं वरभोए समणुभवंतस्स तस्स कालेण । देवी सुमंगला जणइ जुयलयं भरहबंभीण ॥ १७९५ ॥ देवीए सुनंदाए, बाहुबली सुंदरी य जुयलमिणं । उप्पन्नं कयपुन्नं, केत्तियकाले पुणो वि गए || १७९६ ।। अउणापन्नं जुयले, पुत्ताण सुमंगला कमेणेव । पसवइ देवकुमारोवमाण अइरूववंताण ।। १७९७ ।। भयवं पि रिसहनाहो, अप्परिवडिएण नाणतियगेण । कंतिमइपयरिसेण य, तक्कालनराण अब्महिओ ।। १७९८ ।। कुलगरकालपट्टा नीईओ जाओ आसि लोयाण । ताओ तेऽइक्कमिउं अहियकसाएहि संलग्गा ।। १७९९ ।। अब्भहियगुणं दद्धं भयवंतं तस्स ते य साहिति । सो भणइ कुणइ दंड, राया नीईणइक्कमणे || १८०० ॥ ते बिंति होउ अम्हं पि कोइ राया स आह जइ एवं जाएह कुलगरं, तो गंतुं मग्गंति ते वि इमं ॥ १८०१ ॥ विभणिया उभो भे रायो होउ कुणह अभिसेयं । तो तव्वयणाओ ते, गया महापउमसरमेगं ।। १८०२ ।। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तूण तत्थ पउमिणिदलपुडएहिं जलं गहेऊण । जायंति ताव एत्थंतरम्मि सक्कासणं चलियं ॥ १८०३ ॥ दिन्नुवओगो सक्को, तो आगंतूण कुणइ अभिसेयं । सिरिउसभसामिणो देइ रज्जउचिए तहाभरणे ।। १८०४ ॥ मिहुणगनरा वि घेत्तूण नलिणिपत्तेहिं पाणियं पवरं । एत्थंतरम्मि पत्ता, समीवदेसम्मि उसभस्स ।। १८०५ ।। पवरविलेतणवत्थालंकारधरं तमागया दट्ठं । सुइरं विचिंतिऊण पाएसु कुणंति अभिसेयं || १८०६ ।। एयं च वइयरं ताण देवराओ पलोइऊण सयं । चिंतइ अहो विणिया, पुरिसा एए मइपहाणा ॥। १८०७ || तो पभणइ वेसमणं विणियनयरिं इहं विणिम्मवसु । बारसजोयणदीहं, नवजोयणवित्थरपमाणं ।। १८०८ ।। तो आणासमणंतरमेव इमो दिव्वभवणपायारं । धणकणयाइसमिद्धं, निवेसई तं महानयरिं ॥ १८०९ ॥ आसा हत्थिप्पभिई चउप्पर तह य संगहइ भयवं । सह उग्गभोगराइन्नखत्तिएहिं सरज्जत्थं ॥। १८१० ।। एवं पवड्ढमाणिड्ढिसंगयं रज्जमणुहवंतस्स । अईयो कालो सग्गम्मि हरीसरस्स व पभूओ ।। १८११ ।। अह अन्नया गएसुं, तेयासीसंखपुव्वलक्खेसु । संवच्छरेण होही, दिक्खा मज्झं ति कलिऊण ।। १८१२ ।। भरहस्स जेट्ठपुत्तस्स विणियनयरीए देइ सामित्तं । बाहुबलिस्स य वियरइ, तक्खसिलं नाम वरनयरिं ।। १८१३ ॥ सेसाणं पुत्ताणं, दाऊण पिहं पिहं पवरदेसे । सयलकलानीईओ, सिप्पाणि जणस्स दंसेउं ॥ १८१४ ॥ सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउमुहमहापहपहेसु । दारेसु पुरवराणं, रच्छामुहमज्झयारेसु ।। १८१५ ।। वरवरियं घोसाविय, अहिच्छियं दाविऊण बहुरित्थं । वत्थालंकाराइ य, पुन्नं संवच्छरं जाव ॥ १८१६ ।। लोयंतियदेवेहिं सारस्सयमाइएहिं आगंतुं । तित्थपवित्तिनिमित्तं, भणिओ भणियं च सिद्धते ।। १८१७ ।। सारस्सयमाइच्चा, वन्ही गरुया य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ।। १८१८ ।। एए देवनिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरिंदं तु । सव्वजगज्जीवहियं, भयवं तित्थं पवत्तेहिं ।। १८१९ ।। सुर असुरदेवदाणवनरिंदपरिवंदियक्कमो भयवं । चेत्तबहुलट्ठमीए सो अवरहम्मि निक्खंतो ।। १८२० ।। चउहिं सहस्सेहिं समं, निवईण सयंगहीयलिंगेहिं । छट्ठेणं भत्तेणं सिद्धत्थवणम्मि उज्जाणे || १८२१ ॥ भणियं च - चउरो साहस्सीओ लोयं काऊण अप्पणा चेव । जं एस जहा काही, तं तह अम्हे वि काहामो || १८२२ ।। नो देइ कंचि तेसिं, उवएसं नेय सिक्खवइ किंचि । न लहंति य ते कत्थ वि, किंचि वि भिक्खाइ लोयाओ || १८२३ जाणंति जओ लोया, तइया अज्ज वि न किं पि भिक्खाइ । तो पढमाइपरीसहपराजिया ते मिलेऊण || १८२४ ॥ कच्छमहाकच्छाणं, सम्मुहमेवं भणति विणण । तुब्भे च्चिय गिहिभावे, वि अम्ह आसी विसिट्ठयरा ।। १८२५ ।। गुरुथाणीया जं भयवया वि सामंतपयपयाणेण । तुब्भे चिय अम्हाणं पयंसिया पुव्वकालम्मि || १८२६ ।। ता इण्हिमनाहाणं, सामित्तं कुह कहह अम्हेहिं । केत्तियकालं एवं, खुहापिवासा उ सोढव्वा ।। १८२७ ॥ ते बिंति न याणामो, अम्हे वि इमं जओ पुरा भयवं । न हु किंचि वि परिपुट्ठो लग्गा एमेव एय पहे || १८२८ ॥ वोसट्ठचत्तदेहो, संपइ पुट्ठो वि कहइ नो किंपि । एस महप्पा अम्हं, ता इहि सुणह जं जुत्तं ॥ १८२९ ।। ७० . Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया भरसरस्स लज्जाए ताव जुत्तं न गेहगमणं ति । आहारमंतरेण य, न तीरए अच्छिउं एत्थ ॥ १८३० ॥ ता वणवासो अम्हं, उचिओ तत्थेव सडियपत्ताइं । परिभुंजिऊण उववासिया वि सत्तीए चिट्ठम्ह || १८३१ || भयवं तं चिय निच्चं, ज्झायंता सव्वसम्मएणेवं । परिआलोएऊणं, वणमज्झे तावसा जाया || १८३२ ।। गंगाई दक्खिकू रम्मेसु काणणगणेसु । वक्कलचीवरधारी, संवुत्ता बंभयारी तो ।। १८३३ ।। कच्छमहाकच्छाणं, पुत्ता नमिविनमिणो वि तत्थ ठिया । पिइअणुरागेणं ते भणिया एवं नियपिऊहिं ॥। १८३४ ।। पुत्ता इयाणिमम्हेहिं दारुणं वर्णानिवासजं दुक्खं । अंगीकयं अओ भे सगिहाई चेव गच्छेह ॥। १८३५ ।। अहवा भयवंतं चिय सेवंता ठाह जेण स दयाए । वंछियफलं पयच्छइ, तुम्हं सुहजीवियाहेउं ॥ १८३६ || इय भणिया आएसं, पडिच्छिऊणं पिऊण सामिस्स । पासम्मि समल्लिणा विणएणं पज्जुवासन्ता || १८३७ || धरणिंदो अन्नदिणे, समागओ वंदणानिमित्तं से । तहिं वि सामी रज्जंसदाणकज्जेण विन्नविओ || १८३८ ॥ तो भणिया धरणिदेण ते हु भो भो जिणेसरो एस। नीसेसचत्तसंगो, तो मग्गह मा इयं तत्तो ।। १८३९ ।। केवलमहमेव करेमि पत्थणं तुम्हं फलवइमिन्हिं । गरुयाण चलणसेवा, मा एसो निप्फलो होउ || १८४० ।। इय भणिऊणं पन्नत्तिरोहिणीमाइयाओ विज्जाओ । दिन्नाओ पढियसिद्धाओ ताण सव्वत्थ फलयाओ || १८४१ ।। वृत्ताय पुण वि एवं वच्चह वेयड्ढनगवरं तुब्भे । दाहिणउत्तरसेढीसु तत्थ ठावेह नयराई ।। १८४२ ।। उवलोहिऊण य जणं, तेसु य वासेह सपरवग्गस्स । विज्जाहरचक्कित्तं तुम्हं संपज्जए जेण || १८४३ ।। नयराणं नामाई रहनेउरचक्कवालपभिईणि । दिज्जह दाहिणसेढीए नयरसंखा य पन्नासं ।। १८४४ ॥ उत्तरसेढीए पुणो, सठि ठावेह पवरनयराई । नामाणि गयणवल्लहमाईणि उ ताण देज्जाह ।। १८४५ ॥ इय भणिउं धरणिंदो, सट्ठाणं जाइ पणमिऊण जिणं । ते वि य लद्धपसाया वंदित्तु जिणं च धरणं च ॥ १८४६ ॥ पुफ्फयविमाणरयणं नियइच्छाए विउव्विउं रुइरं । कच्छमहाकच्छाणं पासम्मि गया तयारूढा || १८४७ ।। पभणंति य एसम्हं, संजाओ भगवओ पसाओ त्ति । बहुभत्तीए तुट्ठो धरणिंदो जेण अम्हाणं || १८४८ ॥ तो ताण पणमिऊणं विणीयनयरिं गया य भरहस्स । सव्वं पणामपुव्वं, कहति हरिसेण हयहियया ।। १८४९ ।। तो सयणपरिजणाई, गहिऊणं मोक्कलाविऊणं च । भरहनरिंदाओ नमी विनमी य गया उ वेयड्ढं ।। १८५० ।। तत्थ य पुव्वुद्दिट्ठ, सव्वं काऊण सामिभावेण । दाहिणसेढीए नमी विनमी बीयाइ विहरति ॥ १८५१ ॥ भयवं पि अचलचित्तो, अखलियसत्तो परीसहभडेहिं । उवसग्गाण अभीओ, हिंडइ महिमंडलं एगो ।। १८५२ ।। कन्ना धणरयणाई, पयत्थसत्थेण विविहरूवेण । लोएण निमंतिज्जइ, भिक्खाइ गिहेसु पविसंतो ॥ १८५३ || न य किं पि सो पडिच्छइ, गच्छइ मोणेण चेव अन्नत्थ । संवच्छरं अणसिओ विहरंतो अन्नया भयवं ॥ १८५४ || कुरुजणवयम्मि हत्थिणपुरम्मि पत्तो छुहाइ सुसियतणू । राया य बाहुबलिणो, पुत्तो सोमप्पभो तत्थ ॥ १८५५ ।। सेज्जसो जुवराया, तस्स सुओ तेण सुमिणए दिट्ठो । रयणीए चरिमजामे, मेरुगिरी सामलो अहियं ॥ १८५६ ॥ तो अहिसितो सो अमयभरियकलसेहिं सामयं चइउं । तत्ततवणिज्जपुंजो व्व अहियसोहाधरो जाओ || १८५७ ॥ ७१ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तीय च्चिय वेलाए, सुबुद्धिणो नयरसेट्ठिणो सुमिणे । दिनुं रस्सिसहस्सं, रविणो ठाणाओ संचलियं ।। १८५८ ।। सेज्जंसेणं उप्पाडिऊण सट्ठाणठावियं अहियं । तं संपन्नं तेएण दिप्पमाणं व वररयणं ॥ १८५९ ।। सोमप्पभेण रन्ना, वि दिव्वपुरिसो महारिउबलेण । सह जुज्झंतो दिट्ठो महप्पमाणो वि जिप्पंतो ।। १८६० ॥ सेज्जंसदिन्नसाहिज्जजणियगुरुयरपरक्कमो सुमिणे । निज्जिणिय सत्तुसेन्नो जयप्पयासो लहुं जाओ ॥ १८६१ ।। रायसभाए मिलिया नियनियसुमिणे कहंति सव्वे वि । न वियाणंति विसेसेण किंपि सुमिणप्फलं होही ।। १८६२ नवरं राया जंपइ, होही कुमरस्स किं पि कल्लाणं । परिभाविऊण एवं, सव्वे वि समुट्ठिया तत्तो ।। १८६३ ।। नियनियठाणाइं गया, कुमरो वि तओ नियस्स भवणस्स । ओलोयणोवविट्ठो, पेच्छइ सामिं पविसमाणं ॥ १८६४ चिंतइ य कत्थ दिळं एरिसरूवं मए पुरा आसि । पिउणो पियामहस्सा, इण्हि पेच्छामि जारिसयं ।। १८६५ ॥ एवं चितंतेण, पुव्वभवे वइरसेण तित्थयरो । जो दिट्ठो संभरिओ, सो खलु तित्थयरलिंगेण ॥ १८६६ ।। उसभो य तस्स पुत्तो, तम्मि भवे वइरनाहवरचक्की । आसी सेयंसो सारही य तस्सेव अइभत्तो ।। १८६७ ॥ तम्मि जिणिंदसयासे, पडिवज्जतम्मि अन्नया दिक्खं । परिचत्तसयलसंगो, संजाओ सो वि पव्वइओ ॥ १८६८ ॥ निसुयं च तत्थ तेणं, एसो भरहम्मि वइरनाहमुणी । तित्थयराणं पढमो, होही तो एस तं मुणइ ।। १८६९ ।। एत्थंतरम्मि एगो, पुरिसो तस्सेवआगवो घेत्तुं । इक्खुरसभरियकलसं, तं चिय घेत्तूण बेइ जिणं ॥ १८७० ॥ कप्पइ जिणिंद ! एसो तो भयवं संपसारए पाणी । सो तत्थ तेण खित्तो, गलइ न बिंदू वि से तत्तो ।। १८७१ भयवं अछिद्दपाणी जम्हा तह अइसओ य से एवं । उवरिं सिहा पवड्ढइ, छड्डिज्जइ नेय बिंदू वि ।। १८७२ ।। संवच्छरस्स अंते, तं जायं पारणं जिणिंदस्स । दीसइ आहारंतो, नीहारंतो य नेय जिणो ।। १८७३ ।। भणियं च - आहारा नीहारा अद्देसा मंसचक्खुणो सययं । नीसासो य सुगंधो, जम्मप्पभिई गुणा एए ।। १८७४ ।। भत्तिभरनिब्भरेण य पायाविंतेण जिणवरं तत्थ । सेज्जसेणं अप्पा निरुवमसोक्खम्मि संठविओ ॥ १८७५ ।। भणियं च - भवणं धणेण भुवणं जसेण भयवं रसेण पडहत्थो । अप्पा निरूवमसोक्खेण पत्तदाणं महग्घवियं ।। १८७६ ।। जायाइं पंच दिव्वाणि तत्थ जणजणियगरुय चोज्जाइं । जिणपारणभत्तीए तुठेहिं कयाइं देवेहिं ।। १८७७ ।। तहा हि - गंधुदयकुसुमवुट्ठी गिहंगणे निवडिया से वसुहारा । वरदुंदुही उ पहया, कओ य चेलंचलुक्खेवो ॥ १८७८ ।। जयजयरवसम्मिस्सं सुरेहिं घुटुं अहो महादाणं । उक्कुट्ठिकलयलरवं, हरिसविसेसा करतेहिं ।। १८७९ ।। संवच्छरं समहियं, चीवरधारी य आसि जिणनाहो । तत्तो परेण जाया, अचेलया जिणवरिंदस्स ।। १८८० ।। नाणेहिं चउहिं जुत्तो, य आरियाणारिएसु खेत्तेसु । वाससहस्सं मोणेण विहरीओ निरुवसग्गं च ।। १८८१ ।। पत्तो य पुरिमतालं, नयरं तत्थत्थि सगडमुहनामं । उज्जाणं अइरम्मं, ईसाणदिसाइ नयरस्स ।। १८८२ ।। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया ७३ हेट्ठा नग्गोहदुमस्स तत्थ अह अट्ठमेण भत्तेण । फग्गुणबहुलेक्कारसिदिणस्स पुव्वन्हसमयम्मि ।। १८८३ ।। सवणुत्तराहिं सद्धिं, चंदस्स उवागयम्मि जोगम्मि । पवज्जादिवसाओ, वाससहस्से अइक्कते ॥ १८८४ ॥ भुवणेक्कबंधुणो जिणवरस्स निद्दड्ढघाइकम्मस्स । अक्खयमउलमणतं, उप्पन्नं केवलं नाणं ।। १८८५ ॥ तो देवदाणविंदा, पत्ता चलियासणा सपरिसागा । केवलमहिमनिमित्तं, चउदेवनिकायपरियरिया ॥ १८८६ ॥ परिवालइ रज्जसिरिं, इओ य भरहो विणीयनयरीए । तस्स वि आउहसालाए चक्करयणं तया जायं ।। १८८७ ।। एत्थंतरम्मि - वद्धाविओ सहरिसं, केवलनाणुप्पयाइ सामिस्स । भरहनरिंदो केण वि, निउत्तपुरिसेण आगंतुं ॥ १८८८ ।। चक्कुप्पत्तिनिवेयणकज्जेण समागओ तहन्नो वि । आउहसालाहिंतो, पुरिसो नरनाहपासम्मि ।। १८८९ ॥ तो चिंतइ भरहनिवो दोण्ह वि पूयारिहाण समकालं । संजाओ पत्थावो ता जुत्तं संपयं किं मे ।। १८९० ।। तायस्स पूयणं किं पढमं किं वा वि चक्करयणस्स । अहवा धी धी चिंता एसा मोहेण मह जाया ॥ १८९१ ।। जओतेलुक्कस्स वि पुज्जो कत्थ व ताओ कहिं व चक्कमिणं । कत्थ व मेरूगिरीसो कहिं च सिद्धत्थधन्नकणो ।। १८९२ किंच - तायम्मि पूइए चक्कपूइयं पूयणारिहो ताओ । इहलोइयं तु चक्कं, परलोयसुहावहो ताओ ॥ १८९३ ।। इय चिंतिऊण जिणवरकेवलमहिमापसाहणट्ठाए । परिवारस्सादेसं, देइ सयं भणइ मरुदेवी ।। १८९४ ।। भणियाइया तुमं खलु, अंब ! महं पुव्वमेरिसं वयणं । जह मम पुत्तो भमडइ सुसाणमाईसु एगागी ॥ १८९५ ।। नग्गुग्घाडो तंबोलपाण-भोयणविवज्जिओ दुक्खी । तं पुण रज्जसिरीए, अलंकिओ विलससि पराए । १८९६ ।। ता एहि अज्ज पेच्छसु, नियसुयरिद्धिं वियाणसे जेण । तीए पुरो मह रिद्धी, कोडिसयंसेण वि न तुल्ला ॥ १८९७ इय भणिऊण हत्थिक्खंधे आरोविऊण तं चलिओ । परिवारेणं पगुणीकयम्मि जाणाइए सयले ॥ १८९८ ॥ एत्थंतरम्मि वच्चइ, जाव समोसरणदेसआसन्ने । भरहनरिंदो पेच्छइ, ता गयणं सुरगणाइन्नं ॥ १८९९ ।। संछाइयं समंता, विमाणनिवहेण पंचवन्नेण । सोहइ जं इन्ताणं, जंताण य देवदेवीणं ॥ १९०० ।। अयसीवणं व कुसुमिय सिद्धत्थवणं व चंपगवणं व । बंधूयवणं व तहा, वियसियसयवत्तयवणं व ॥ १९०१ ।। अवरं च - दिव्वविमाणेहितो, वियसियसमुहेण ओयरंतेण । माणससरं व हंसाइपक्खिनिवहेण जं सहइ ॥ १९०२ ॥ जत्थ य पवणपहल्लन्तधयवडाडोयछइयगयणाई । दिव्वविमाणाई हरंति जइ वि सूरस्स करपसरं ! १९०३ ।। तह वि हु नाणाविहरयणकिरणनिऊरंबदलियतिमिराई । मणयं पि मच्चलोयस्स दिव्वसोहं न नासंति ॥ १९०४ ।। दुंदुहिदिव्वनिनायापूरियभुवणंतरा जहिं च सुरा । जिणसेवाइ निमित्तं भवियाण कुणंति वाहवणं ॥ १९०५ ।। पुरओ पायारतियं, च विविहमणिकिरणराइराहिल्लं । कलहोयकणयरयणाण पासई नेय विन्नवियं ॥ १९०६ ॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय एवमाइ सव्वं पलोइडं भणइ भरहनरनाहो । पुणरवि मरुदेवि पेच्छ अंब ! नियपुत्तवररिद्धिं ।। १९०७ ।। एत्थंतरम्मि तीए, ससलिलजलवाहगज्जिगंभीरो । धम्मकहानिग्घोसो, निसुओ सिरिउसभनाहस्स ।। १९०८ ॥ तं से निसुणंतीए हरिसवसुब्भिन्नबहलपुलयाए । भिन्नं च मोहपडलं नट्ठा नीलीय नयणाणं ॥ १९०९ ।। सा य किर तीए जाया दूसुयसुयविरहनिच्चरुण्णेण । दिट्ठीसु तया जइया, पडिवन्नो जिणवरो दिक्खं ।। १९१० ।। पासंतीए पच्छा, छत्ताइच्छत्तरयणमाईयं । रिद्धिं जणस्स रुइरं बाहजलुप्फुल्लनयणाए । १९११ ।। वयणविसेसाईयं, पाविय सुहझाणपयरिसमउव्वं । खाइयसम्मत्तचरित्तजुत्तभावंतरं पत्ता ।। १९१२ ॥ आरुहिय खवगसेढिं उप्पाडिय नाणमक्खयमणंतं । सेलसिं पडिवज्जिय, सासयसोक्खं गया मोक्खं ॥ १९१३ ।। एसा य आसि निच्चं, वणस्सईकाइएसु किर पुट्विं । बेइंदियत्तमेत्तं पि जेण पत्तं न कइया वि ॥ १९१४ ।। एक्काइ च्चिय हेलाइ संपयं पाविऊण मणुयत्तं । संजाया जिणमाया, पत्ता य सुहेण निव्वाणं ॥ १९१५ ॥ इय अच्छरियब्भूया, एसा अवसप्पिणीए एयाए । जंबुद्दीवगभरहे, पढमो सिद्धो त्ति कलिऊण ।। १९१६ ॥ देवेहिं कया महिमा, तीए देहं च भत्तिकलिएहिं । पक्खित्तं खीरसमुद्दसलिलमज्झम्मि नेऊण ॥ १९१७ ॥ केवलमहिमाअवलोयणेण तायस्स अज्जियाए य । दीहरविओयदुक्खेण हरिससोए अणुहवंतो ॥ १९१८ ।। भरहेसरो वि रायालंकारे मउडछत्तखग्गाई । मोत्तूणालोए च्चिय विसइ समोसरणभूमीए ।। १९१९ ।। तिपयाहिणिऊण जिणं केवलमहिमं करित्तु भत्तीए । वंदित्ता उवविट्ठो निययट्ठाणम्मि उवउत्तो ॥ १९२० ।। भयवं पि कहइ धम्मं सदेव मणुयासुराए परिसाए । सव्वजियाणं नियनियभासापरिणामिवाणीए ।। १९२१ ।। एत्थंतरम्मि पुत्तो, भरहनरिंदस्स उसभसेणो त्ति । संवेगभावियप्पा सुणिउं धम्मं जिणसयासे ॥ १९२२ ॥ पुव्विल्लभवोवज्जियगणहरसन्नामगोत्तकम्मंसो। पडिबुद्धो पव्वइओ, जाओ सो पढमगणहारी ।। १९२३ ।। बंभी य पढमअज्जा जाओ सुस्सावगो सयं भरहो । दिक्खं गिण्हंती सुंदरी य धरिया नरिंदेण ।। १९२४ ॥ इत्थीरयणं होही मह एसा दिव्वरूवलायण्णा । इय बुद्धीए सा वि हु जाया सुस्साविया तत्थ ।। १९२५ ॥ एवं च चउवियप्पो संघो परमेसरस्स संपन्नो । कच्छमहाकच्छाई जे य पुरा तावसा आसि ॥ १९२६ ।। कच्छसुकच्छे परिवज्जिऊण ते वि हु जिणस्स पासम्मि । आगंतूण सहरिसा दठूण जिणस्स परिसं च ॥ १९२७ ।। भवणवइवाणमंतरजोत्सवेमाणियाइदेवेहिं । देवीहि व संकिन्नं पव्वइया ते वि लहुकम्मा ॥ १९२८ ।। तहा - पंच य पत्तसयाई भरहस्स य सत्त नत्तयसयाई । सयराहं पव्वइया तम्मि कमारा समोसरणे ॥ १९२९ ।। दठूण कीरमाणिं महिमं देवेहिं खत्तिओ मिरिई । सम्मत्तलद्धबुद्धी धम्मं सोऊण पव्वइओ ॥ १९३० ।। सो य किर जायमेत्तो मरीइजालं विमुक्कवंतो त्ति । तेण मरीइ त्ति कयं अम्मा-पीऊहिं से नामं ।। १९३१ ।। पुणरवि वंदित्तु जिणं भरहनरिंदो गओ नियट्ठाणं । तत्थ वि आउहसालाए चक्करयणस्स कारवइ ।। १९३२ ।। अट्ठाहियामहूसवमणहं तस्सावसाणदिवसे य । पुव्वाभिमुहं चक्कं, चलियं राया वि तयभिमुहो ॥ १९३३ ।। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया तस्सेवऽणुमग्गेणं संचलिओ सबलवाहणो तं च । गंतूण जोयणं ठियमिय जायं जोयणपमाणं ।। १९३४ || वच्चतोय कमेणं, पुव्वदिसा नरवरे असेसे वि । निय आणं गाहिंतो, ताव गओ जाव पुव्वुदही ॥। १९३५ ॥ तत्थ रहेणं पविस, ताव जलं जाव चक्कनाहिसमं । तो तत्थ रहं धरिडं, अट्ठमभत्तोसिओ होउं ॥ १९३६ ॥ आरोविऊण कोदंडदंडमायड्ढिऊण कन्नंतं । नियनामंकं बाणं विसज्जई तह जहा पडइ ॥ १९३७ ॥ तूण दुवालसजोयणाई सिरिमागहाहिवसुरस्स । तित्थम्मि सुप्पसत्थे, वित्थिन्नत्थाणभूमी || १९३८ || (जुयलं ) तं दठ्ठे सो कुविओ अप्पत्थियपत्थए क एस त्ति । जंपतो जा पेच्छइ, नामं तो झ त्ति उवसंतो ॥। १९३९ ।। जाणइ य जहुपन्नो, पढमो इह भरहचक्कवट्टि त्ति । हार-सर-मउड- - कुंडल - कडगे - चूडामणि च तहा || १९४० ॥ घेत्तूण समावाओ भइ य तुह संतिओ अहं एत्थ । पुव्विल्लदिसावालो, आएसं दिज्ज कज्जम्मि || १९४१ || ता तस्स करेई, भरहो अट्ठाहियामहामहिमं । एवं एएण कमेण दाहिणाए वि हु दिसाए || १९४२ ।। वरदामनामतित्थं तत्थ वि वत्थव्वगो सुरो देइ । दिव्वे उरत्थगेवेज्जगे पवरसोणिसुत्तं च ।। १९४३ ।। अवराए वि पहासं, वणमालं देइ तत्थ तस्स पहू । मुत्ताजालं व तहा, पच्छा तो वयइ सिंधुनई || १९४४ ।। ओयवइ सिंधुदेवि कुंभट्ठसहस्समहरयणचित्तं । सा वि पयच्छइ तुट्ठा तो चक्की जाई वेयड्ढं ।। १९४५ ।। वेयड्ढगिरिकुमारं देवं तत्थ वि वसीकरेऊण । तत्तो तिमिसगुहाए, कयमालं साहई जक्खं ।। १९४६ ।। सो विहु संतुट्ठमणो आभरणं देइ तिलगचोद्दसगं । इत्थीरयणस्सुचियं, नाणाविहरयणचिंचइयं । १९४७ ।। तो ओयवे गंतूण दाहिणं सिंधुनिक्खुडंतस्स । सेणावई सुसेणो, तिमिसगुहाए य जाइ सयं । १९४८ ।। उघाडावेऊणं मणिरयणेणं करित्तु उज्जोयं । पविसइ उभओ पासं कागिणिरयणेण लिहमाणो ।। १९४९ ।। गुणपन्नास मंडलाणि, उज्जोयकारणे चेव । विक्खंभायामेहिं, पंचधणुस्सयपमाणाई || १९५० ।। उम्मग्गनिमुग्गाओ, नईओ तह संकमेण उत्तरिडं । तिमिसगुहाओ तओ सो, उत्तरदारेण नीहरिओ ।। १९५१ ।। सह बलवाहणसमुदाएणं तयणंतरं च संलग्गं । जुद्धं समं चिलाएहिं जाइ रणरहसपुलएहिं ।। १९५२ ॥ संगमे ते विजिया, मेघकुमारे सरंति कुलदेवे । ते वरिसिउं पवत्ता, निरंतरं ताण वयणेहिं ।। १९५३ ॥ भरहो वि चम्मरयणे, खंधावारं निवेसिऊणुवरिं । छत्तरयणेण छायइ जलस्स संरक्खणट्ठाए ।। १९५४ ।। उज्जोक मज्झे, छत्तस्स वरत्थदेसभागम्मि | मणिरयणं च ठवेई, सुहेण एवं ठिए लोए ।। १९५५ ।। जो पुव्वन्हे वुप्पर, साली सो भुंजए वरण्हम्मि । एवं भोयणसुत्थं, पि तत्थ जायं सुहेणेव ।। १९५६ ॥ सत्त अहोरत्ताइं, निरंतरं वरिसिऊण देवा वि । अचयंता अवयरिउं, मणयं पि हु चक्कवट्टिस्स || १९५७ ॥ तह चक्किआभिओगियसुरेहिं निद्धाडिया चिलायाण । पभणंति सम्मुहमिणं, आणं एयस्स भो कुह ॥ १९५८ ।। एसो हु चक्कवट्टी अच्चग्गलपुन्नपयरिसपहाणो । भरहेसराभिहाणो जाओ इह भरहखेत्तम्मि ।। १९५९ ।। ते तव्वयणेण तओ, आणानिद्देसवत्तिणो जाया । भरहस्स तेण य पुणो, संवरिया छत्तचम्ममणी ॥। १९६० ॥ पडीहूओ लोओ, तप्पभिई अंडसंभवं भुवणं । बंभंडपुराणम्मी, पइट्ठियं लोयसत्थम्मि || १९६१ ।। ७५ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं चुल्लहिमवन्तगिरिवत्तिसुरवरं साहई तओ गंतुं । तत्थ य बावत्तरि जोयणाई उड्ढे सरं मोत्तुं ।। १९६२ ।। कूडम्मि उसभनामे नियनाम लिहइ हरिसिओ संतो । तत्तो सुसेणसेणावई च पेसेइ साहेडं ॥ १९६३ ।। सिंधुनइनिक्खुडं उत्तरिल्लयं जाइ सयमवि स गंगं । गंगादेविं तहियं, साहइ नियपुन्नविरिएणं ॥ १९६४ ।। वरिससहस्सं तीए सद्धिं भोगे य भुंजइ विसिढे । वेयड्ढे नमिविनमीण साहणट्ठा तओ जाइ ॥ १९६५ ।। तेहिं य सह संगामो, रणरहसुल्लसियबहलपुलएहिं । सो जाओ जणइ निसामिओ वि जो भीरुसंखोभं ॥ १९६६ ।। तहा हि - तुरया तुरयाण रहा रहाण हत्थीण हत्थिणो तह य । अभिट्ठा समकालं, पाइक्काणं च पाइक्का ।। १९६७ ।। विज्जाबलगव्वियखयरखित्ते गुरूपव्वयम्मि कोइ भडो । मोग्गरमुसुंढिघाएहिं चुन्नए निययविरिएण ।। १९६८ ।। उम्मूलिऊण रुक्खं, धावइ जा को वि कस्स वि वहत्थं । अग्गेयबाणखिवणेण ताव तं जालई अन्नो ।। १९६९ ।। अग्गेयसत्थनियरं, रिउदाहकएण मुयइ जा कोइ । अवरो वारुणसत्थेहिं हरइ ता तस्स माहप्पं ।। १९७० ।। उरगऽत्थेणं च परो, जा इयरं नागपासबंधेहिं । बंधइ तो से वि हु गारुडसत्थेण तं हणइ ।। १९७१ ।। इय अवरोप्परनियसत्तिनिहयसुसमत्थसत्थमाहप्पा । जुज्झंति सुहडसंघा नियनियपहुकज्जमिणो ॥ १९७२ ॥ अन्नं च - जुज्झताणं ताणं, विज्जाहरचक्कवट्टिसेण्णाणं । दोण्ह वि जुद्धं जायं, जारिसयं सुणसु तं इन्हिं ।। १९७३ ॥ कत्थइ परोप्परं तिक्खखग्गपहरणछणच्छणब्भिडणा । उठेंतसिहिसिहाजालभरियगयणंगणाभोगं ॥ १९७४ ।। कत्थइ मारिय नरमंसलुद्धगिद्धोहपक्खपवणेण । आसासियमुच्छावसविसंतुलुटुंतभडनिवहं ।। १९७५ ॥ कत्थइ करिवरदसणग्गभिन्नसुहडोहवच्छबीभच्छं । कत्थइ पयंडकोदंडमुक्कबाणोघपिहियनहं ।। १९७६ ।। कत्थइ धणुगुणटंकारसद्दभरिएसु सयलकुहरेसु । पडिसद्दावूरियभुवणगब्भसंभंतजणनिवहं ।। १९७७ ।। कत्थ वि दीसंतपडतसेल्लवावल्लभल्लझसमूलं । पहरणपहारपरिहरियपाणपडमाणपाणिगणं ।। १९७८ ।। कत्थ वि नररुहिरासायतुट्ठकिलिकिलियघोरवेयालं । वेयालमुक्कफेक्कारभीसणं कत्थ वि पएसे ।। १९७९ ।। कत्थ वि पढंतबंदियणबहलवित्थरियजयजयरवेण । पूरिज्जमाणनीसेसदिसदिसाविवरनिउरबं ॥ १९८० ।। (कुलयं) अवि य - मयमत्तमहामयगलजलहरगलगज्जिमुहलियदियंतो । सुहडसयमुक्कसरनियरनिबिडनिवडंतजलधारो ।। १९८१ ।। वरतुरयखरखुरुक्खयरयदुद्दिणरुद्धसूरकरपसरो । दीसंतफुरंतविकोसखग्गविज्जुच्छडाडोवो ॥ १९८२ ।। अवरोप्परहक्कारंतसुहडहक्कासिहंडिरवमुहलो । सज्जीकयबहुविहपंचवन्नरेहंतवणुनियरो ।। १९८३ ।। घणमंडलग्गधारा निवायफुटुंतसोणियारत्त, नरसिरकंदलमंडियमहीओ। रणपाउससरंभो, संभूओ चक्किखयराण ।। १९८४ । उग्गाहो (कुलयं) आयण्णायड्ढियधणुविमुक्कबाणाण सणसणारावो । जत्थामिसत्थिनिवडंतपक्खिपक्खाण व विहाइ ।। १९८५ ।। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया जत्थ परोप्परभिट्टंतखग्गउट्ठतसिहिकणुग्घाया । खज्जोया इव विलसंति बहलरयकंपिए सूरे || १९८६ ।। जत्थ य सव्वलकुंतासिधेणुचक्कासिसत्तिसरहत्था । धावंति कयंतभड व्व मारणट्ठाइ भडनिवहा || १९८७ || संता कट्टता नज्जति सरे न जत्थ य मुयन्ता । भिंदंति तह य सुहडा, परहिययं कामदेव व्व ॥ १९८८ ॥ तत्थेरिसम्मि अइदारुणम्मि जुज्झम्मि वट्टमाणम्मि । नित्थामाई दोण्ह वि जायाइं बलाई काले || १९८९ ।। (कुलयं) तो नमिविनमी सयमेव दो वि भरहेसरेण सह लग्गा । आइच्चजससमेएण गरूयविज्जाबलुम्मत्ता । १९९० ॥ तत्थ वि बहूणि दिवसाणि जाव संगामसागरे पडिया । न लहंति कह वि पारं, तावऽन्नदिणम्मि भरण || १९९१ ।। भरावूरियमाणसेण जालाकलावदुप्पेच्छे । गहियम्मि चक्करयणे, तेसिं दोन्हं वि हणणत्थं ॥। १९९२ ।। आगंतूपासु निवडिया भरहनरवरिंदस्स । आणं अप्पडिहयसासणस्स सम्मं पउिच्छंति || १९९३ || बारससंवच्छरिएण तेण अइदारुणेण जुज्झेण । ते निज्जिया समाणा, कोसलियाई च ढोइति । १९९४ || तहा हि ७७ I विमी इत्थीरयणं, गहाय समुवट्ठिओ नरिंदस्स । रयणाणि विविहरूवाणि देइ नमिखयरनाहो वि ।। १९९५ ।। भरसरो उ चक्की, उचियं काऊण ताण सम्माणं । ठविऊण खयरचक्कित्तणे य ते दो वि सेणिदुगे || १९९६ ।। खंडप्पवायनामं, जाइ गुहं तयणु तत्थ देवो य । सिरिनट्टमालनामो, वसीकओ नियपभावेण । १९९७ ।। तीए च्चिय नीहरिओ, गंगाकूलम्मि तयणु नवनिहिणो । नेसप्पाईआ बिंति सहरिसं तस्स पुन्नेहिं ॥ १९९८ ॥ नवजोयणवित्थिन्ना, बारसजोयणपमाण आयामा । जोयणअट्ठयउच्चा पक्कट्ठपइट्ठिया सव्वे ।। १९९९ ॥ वेरुलियमणिकवाडा, कणयमया विविहरयणपडिपुन्ना। मंजूसासंठाणा, हियइच्छियवत्थुसंजणया || २००० || पलि ओवमट्ठिईया निहिसरिनामा य तेसु खलु देवा । तेसिं ते आवासा, सुक्किलया अहियसत्तेया ॥ २००१ ॥ तत्थ ठिओ भरहनिवो सेणावइणो पयच्छई आणं । दाहिणगंगानिक्खुडपसाहणट्ठाए नट्ठरिऊ ।। २००२ ।। तागंतूण इमो वि हु, भरहनरिंदस्स गाहिउं आणं । सव्वत्थ वि अक्खलियं, संपत्तो पुण वि सट्ठाणं || २००३ || एएण कमेणेवं, वाससहस्सेहिं सट्ठिसंखेहिं । भरहो भरहक्खेत्तं जिणिऊण विणीयमणुपत्तो । २००४ || बारसवासाणि तहिं, जाओ रज्जाभिसेयगरुयमहो । तस्सऽवसाणे य तओ, विसज्जिया राइणो सव्वे ॥ २००५ ॥ नियनियठाणेस गया, राया वि सरेइ तो निययवग्गं । दंसिज्जंति निएल्ला कमेण लहुगरुयगरुययरा || २००६ || एवं परिवाडीए, पसिया सुंदरी तओ दिट्ठा। सा पंडुच्चायमुही दुब्बललायन्नझीणतणू || २००७ ।। साय किर जम्मि दिवसे, वयगहणकज्जउज्जमा वि भरहेण । धरिया तप्पभिदं चिय, आयंबिलतवरया जाया || २००८ तो सुसियतं दठ्ठे, रुट्ठो कोडुबिए भणइ एवं । किं मज्झ गिहे वेज्जा, न संति अह भोयणं नत्थि । २००९ ।। जेणेयारिसरुवा, जाया एसा तओ य ते बिन्ति । देव ! इमा निययतणुं सोसइ आयंबिलेहिं सया || २०१० || तो पेम्बंधो सो जाओ तीय उवरि भणिया य । सा तेण सुयणु ! जइ ते रुच्चइ तो चिट्ठसु सुहेण || २०११ || भोगसुहमणुहवंती, मए समं अह न तो तुमं गंतुं । तायस्स पायमूले, अणवज्जं लेसु पव्वज्जं ॥। २०१२ ।। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं पाएसु निवडिऊणं, ताहे मोयाविऊण अत्ताणं । भरहनरिंदाउ इमा, पव्वइया जिणसयासम्मि ।। २०१३ ।। भरहो वि रज्जलच्छि, अणुहवमाणो अहन्न दियहम्मि । चिंतइ न मज्झ भाउयवग्गो आणं पडिच्छेइ ॥ २०१४ ।। तो तेसिं आणागाहणत्थमहमुज्जमं लहु करेमि । इय चिंतिऊण मंतीण कहइ निययं अभिप्पायं ।। २०१५ ॥ तो तेहिं दिट्ठमेवं मंतणयं दूयवयणओ देव ! । सव्वे वि निययबंधू, मग्गावसु ताव रज्जाई ।। २०१६ ।। तो जइ रज्जाइं समप्पिहंति तो लट्ठयं अह न एवं । तो आणं गाहिज्जह, इय भणिए पेसई दूए ।। २०१७ ।। तेहिं वि ते गंतूणं, भणिया जह अप्पिणेह रज्जाई । भरहस्स संतिया अहव हविय पालेह रज्जाई ।। २०१८ ॥ तो ते भणंति गंतुं भणाहि भरहस्स एरिसं वयणं । तुम्ह वि अम्ह वि ताएण ताव दिन्नाई रज्जाई ॥ २०१९ ॥ तो एउ ताव ताओ, तं पुच्छित्ता भणिस्सई जं सो । तं काहामो अम्हे, होसु थिरो ताव कइवि दिणे ।। २०२० ।। इय भणिऊणं दूए, विसज्जिऊणं च भरहपासम्मि । सयमवि चलिया ते तायपायमूलम्मि अविसन्ना ॥ २०२१ ।। तइया य विहरमाणो, भयवं अट्ठावयम्मि सेलम्मि । सिरि उसभनाहसामी, समागओ तियसकयपूओ ।। २०२२ ।। ते तत्थ समोसरियं नाऊण जिणं समागया सव्वे । अभिवंदिऊण भत्तीए जिणवरं भणिउमाढत्ता ॥ २०२३ ॥ तुब्भेहिं पसायणं, जाई विइन्नाई ताय ! रज्जाई । अम्हाण ताई भरहो संपइ उद्दालइ हढेण ॥ २०२४ ।। ता ताय ! किं करेमो जुज्झेमो अहव तस्स अप्पेमो । रज्जाई ताई आइससु इन्हि जं अम्ह करणिज्जं ।। २०२५ ।। तयणु नियत्तियकामो, भोगेहिंतो जिणो भणइ एए । भो भो ! किंपागफलोवमेहिं किं तुम्ह कामेहिं ।। २०२६ ।। जओसल्लं कामा विसं कामा, कामा आसी विसोवमा । कामे य पत्थेमाणा अकामा जंति दोग्गई ।। २०२७ ।। केयारिसं च सोक्खं, कामेहिंतो हविज्ज जीवाण । चवलत्तणेण जे विज्जुविलसियाई विसेसंति ।। २०२८ ।। अन्नं च सद्दरसरूवगंधफासाण संगमे सोक्खं । जं जायइ जीवाणं, परव्वसं तं समग्गं पि ॥ २०२९ ॥ जह य च्चिय संबंधो, तेसिं सव्वाण होज्ज अणुकलो । तइया वि देहविहुरत्तणाइणा होज्ज दुहहेऊ ।। २०३० ।। तो ते भणामि पुत्ता, जइ सव्वं चिय सुहत्थिणो होउं । इच्छह रज्जं तो मुयह एय उवरिम्मि पडिबंधं ॥ २०३१ ।। जओदुक्खं चिय रज्जाओ, जं पत्ता पाणिणो न कस्सावि । निययस्स वि वीसासं, उवेंति जं भोयणाईसुं । २०३२ ।। तहा हि - न सुहं सुयंति न सुहं भमंति न सुहं रमंति कइया वि । न सुहं पिबंति न सुहं जेमंति परेसु कयसंका ।। २०३३ ।। जं चिय अपरायत्तं, जं चिय साहावियं सयाभावि । ता तम्मि चेव सोक्खे, जइयव्वं इह बुहेहिं सया ।। २०३४ ॥ मोत्तूण मुत्तिसुहं, जं पुण अन्नं न अत्थि एरिसयं । ता एय साहण च्चिय अपमाओ होइ कायव्वो ।। २०३५ ॥ संसारियाई सोक्खाई जाई ताई खु तत्तचिंताए । दुक्खसरूवाई दुहफलाई दुक्खाणुबंधीणि ॥ २०३६ ॥ एयारिसेसु वि इमेसु तह वि तित्ती न अस्थि जीवाणं ! । एत्थ वि निसुणह इंगालदाहगस्सेव दिद्रुतं ।। २०३७ ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया ७९ एगम्मि पंतगामे, निवसइ इंगालदाहगो एगो । सो इंगाले दहिउं, विक्किणई जीवए एवं ।। २०३८ ।। अह अन्नया कयाई, दारुणरूवो समागओ गिम्हो । रविकरउम्हाभिहया जम्मि जणा दुक्खिया हुंति ॥ २०३९ ।। उन्हुन्हसूरकिरणेहिं उवरि हेट्ठा य तत्तरेणूहिं । पयइ व्व जोयभुवणं कोट्ठपुडे पक्खिवेऊण । २०४० ।। जम्मि य मुत्ताहारो, मलयजपंको सुसीयलं सलिलं । जलसित्ततालियंटयपवणो धारागिहजलाई ।। २०४१ ।। कप्परधलिसंवलियबहलचंदणरसोहसंसित्ता । कयलीहरेस कंकेल्लिपल्लवाणं च सत्थरया ॥ २०४२ ।। वत्थाई सुहुमनिप्पंकधोयपडवासवासियसियाई । जायाइं वल्लहाई जणस्स गिम्हुम्हतवियस्स ।। २०४३ ।। (विसेसयं) पप्फुल्लमल्लियामोयमत्तरुणरुणियचंचरीयाण । सुहिमिहुणयाई न मुयंति, जत्थ सेवं उववणाणं ॥ २०४४ ।। एयारिसम्मि गिम्हे. अन्नदिणे पाणियस्स करवतिं । भरिऊण इमो इंगालदाहगो निग्गओ बाहिं ।। २०४५ ॥ गंतूणेक्कम्मि वणे, तरुणो ओलंबिऊण साहाए । करवत्तियं सयं सो, लग्गो कट्ठाई कुट्टेउं ।। २०४६ ।। जालइ य तओ जलणं, दहिऊणं ताई कुणइ इंगाले । एत्थंतरम्मि एगो, समागमो मक्कडो तत्थ ॥ २०४७ ।। सो चवलयाइ चडिऊण तम्मि रुक्खम्मि फोडिऊणं च । करवत्तियं तयं रेडिऊण सव्वं जलं तत्तो ।। २०४८ ।। झंपं दाऊण गओ, अन्नम्मि तरुम्मि सो वि किर पुरिसो। अच्चंततण्हाभिहओ, जलंतजलणप्पभावेण ॥ २०४९ ॥ उवरिं च दुसहरविकरपयावउद्दीविओरुतिसपसरो । तट्ठाणाओ अह उठ्ठिऊण जा जाइ तं रुक्खं ।। २०५० ।। ता फालियं नियच्छइ, तं खलु करवत्तियं जलविहीणं । भुल्लो तिसाइ पडिओ, तस्सेव तरुस्स छायाए । २०५१ ।। करवत्तियनिवडियसलिलसित्तउल्लोल्लमट्टियपएसे । अन्नत्थ अचायतो, गंतुं अच्चंतदाहेण ।। २०५२ ।। अइगाढसमकिलंतो, नीसह देहो ठिओ स तत्थेव । जलसित्तसिसिरभूमीसंफासासासियसरीरो । २०५३ ।। आगंतूण पियासि व, झड त्ति निद्दाए नोल्लियदुहोहो । सुमिणम्मि नियइ नाणाजलासए विमलजलभरिए ।। २०५४ ।। तो पाउं संलग्गो, ताव जलं जाव निट्ठियं ताण । अन्नत्थ वि तो भमिओ तिसावणयणाविहियचित्तो ।। २०५५ ॥ कत्थ वि नईण कत्थ वि सराण कत्थ वि य वाविकूवाण । कत्थ वि निज्झरणाणं सोसंतो सलिलसंघाए । २०५६ ॥ न य तन्हावोच्छेयं पत्तो पत्तो य कूवमेगं सो । जिन्नं रन्ने अइथोवपाणियं दुप्पवेसं च ॥ २०५७ ।। तणमूलियं गहेऊण तयणु उवरिल्लवत्थपेरंते । तं बंधिऊण पक्खिवइ (.........) सलिलबिंदूहि || २०५८ ॥ .........॥ २०५९ ॥ ...........।। २०६० ॥ ............................................ तस्स ता कहणु ।। २०६१ ।। .................... अवणेयव्वा एत्थं च उवणयं तुम्ह साहेमो । २०६२ ।। इंगालदाहगसमा नायव्वा एत्थ भवगया जीवा। जा तस्स सलिलतन्हा विसयपिवासा उ सा तेसिं ।। २०६३ ॥ अच्चंतुम्हाभिभवो, जो सो संसारदुक्खसंबंधो । सीयलपुहईफासो, जो सो सुहलेससंजोगो । २०६४ ।। जा निद्दा सा उण मोहपरिणई सुमिणयं अईयभवा । जे गुरुजलासया ते, उ दिव्वदेविड्ढिसंसग्गा ॥ २०६५ ।। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० सिरिचंदप्पहजिणचरियं जो रन्नजिन्नकूवो, सो मणुयभवो तहिं च तुच्छजलं । जं तं तब्भवियमसारविसयसोक्खं मुणेयव्वं ॥ २०६६ ॥ तणपूलिया य जा सा, विसयसुहत्थं उवायपडिवत्ती । जीहाए बिंदुलिहणा, जा उण सा विसयसुहसेवा ।। २०६७ ।। एवं च ठिए भद्दा ! जा तुम्ह न आगया वरविमाणे । सव्वट्ठसिद्धिनामे तित्ती तित्तीसअयरेहिं ।। २०६८ ।। अच्चंतमणुत्तराण वि, सद्दाईयाण देवभवियाण । उवरिं सा कह एही, तुच्छेसु मणुस्सभोगेसु ।। २०६९ ।। इय भणिऊण पुणरवि, वेयालियनाम पवरमज्झयणं । सामी तन्निस्साए परूवई तं च सूयगडे ॥ २०७० ॥ संबुज्झह किन्न बुज्झहा, संबोही खलु पेच्छ दुल्लहा । नो हू वणमंति राइओ, नो सुलहं पुणरावि जीवियं ।। २०७१ ॥ वित्तं पसवो य नायओ, तं बाले सरणं ति मन्नई । एए मम एसु वी अहं, नो ताणं सरणं ति विज्जई ।। २०७२ ।। इच्चाई वित्तेहिं, अट्ठाणउईहिं भासियं एयं । तिहिं उद्देसेहिं फुडं, वेयालियं छंदबंधेणं ।। २०७३ ॥ एएसिं वित्ताणं, कोई पढमेण चेव संबुद्धो । बीएण कोइ तइएण कोइ कोई चउत्थेण ॥ २०७४ ॥ एवं च जाव सव्वे, अट्ठाणउई वि ते वरकुमारा । अट्ठाणउईवित्तेहिं, संबुद्धा तह य पव्वइया । २०७५ ।। संगोवियाणि रज्जाणि तयणु पव्वज्जमब्भुवगमेसुं । तेसु भरहेण दूओ, उ पेसिओ बाहुबलिणो वि ।। २०७६ ।। अत्थाणे उवविट्ठस्स बाहुबलिणो समिच्च सो पासं । भणइ भरहस्स आणं, पडिच्छ अप्पेसु वा रज्जं ॥ २०७७ ॥ तं वयणं सोऊणं, नाऊणं भाउए य पव्वइए । जंपेइ आसुरुत्तो, बाहुबली दूयसंमुहमिणं ॥ २०७८ ॥ जइ नाम बालया ते, तुह पहुणा कह वि गाहिया दिक्ख । वीवाहिऊण तो किं, मम पि तं गाहिउं ममह ।। २०७९ ।। नाहं असमत्थो जुज्झियव्वए नेय एरिसगिराण । बीहेमि अहं ता भो, गंतूण कहेसु नियपहुणो ॥ २०८० ॥ अन्ने च्चिय ते पक्खी, जे किर करतालियाहिं नासंति । भेरिरवजज्जरसुई, देउलपारेवया अम्हे ।। २०८१ ।। ता एसु तुरियपयमेव गिन्ह रज्जं मदीयमेत्ताहे । बाणासणिसेणिसिरीए सोहियं समररूवमिणं ॥ २०८२ ॥ अवि य - वज्जंतवीरमद्दलहुडुक्कपडुकरडिपाडरमणीयं । कंसालतालतिलिमाइ विविहआउज्जरवमुहलं ॥ २०८३ ।। वज्जंतबुक्कटंबक्कसद्दबहिरिय नहंगणाभोगं । बहुविहपढंतमागहजयकारियगरुयसामंतं ।। २०८४ ।। उदंडपुंडरीयप्पहावपडिहणियसूरकरपसरं । चउरंगसेन्नसंखुद्धसत्तुसीमंतिणीनिवहं ॥ २०८५ ॥ वावल्लभल्लसेल्लाइपयडपहरणपयंडभडनिवहं । उच्छलियवीररसरायदाणतूसंतबंदियणं ॥ २०८६ ॥ सुहडकरखग्गखंडियपडिभडरुहिरोहविहियअभिसेयं । जयलच्छिनिलयमंगीकरेसु गुरुसमररज्जमिणं ॥ २०८७ ॥ (कुलयं) किं च न जइ संगामं, कुणसि तुमं सह मए तया होही । किं भरहखेत्तमज्झे, मइ अजिए निज्जियं तुमए ।। २०८८ ।। इय भणिऊणं दूओ, विसज्जिओ सो वि सामिणो गंतुं । साहइ सव्वं कुविओ, तो भरहो भणइ सेणाणिं ।। २०८९ ।। ताडावसु झ त्ति तुमं, पयाणभेरिं तहा करावेसु । सव्वं पि गमणसज्जं, सामगि सयलसेन्नस्स ॥ २०९० ।। पेच्छामि जेण गंतूण तस्स अइगरूयदप्पमाहप्पं । रणरहसुम्माहमहंतसत्तिसंभावणासारं ।। २०९१ ।। आएसाणंतरमेव तेण संपाडियम्मि सव्वम्मि । सुपसत्थम्मि मुहुत्ते, सयं तओ भरहनरनाहो । २०९२ ।। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया हाओ कयबलिकम्मो, सियवत्थाहरणसोहियसरीरो । सियगयरयणारूढो सियचमरविइज्जमाणो य || २०९३ || धरियधवलायवत्तो, मागहजणघुट्ठजयजयारावो । मंगलगीयपगाइरसन्निहियविलासिणीसत्थो । २०९४ ।। अणुगम्ममाणमग्गो, हयगयरहजोहसयसहस्सेहिं । वज्जिरविविहाउज्जो, विणीयनयरीओ नीहरिओ ।। २०९५ ।। (चक्कलयं) अह तुरयखरखुरुक्खयखोणिरयच्छाइया दस दिसाओ । दंसंति तम्मि चलियम्मि एगरूवं व सव्वजगं || २०९६ || अन्नं च खरखुरुक्खयरयरेणू नहयलाओ निवडंता । भाविभडक्खयउप्पायपसुवरिसं व दंसिंति ॥ २०९७ ॥ उट्ठति तह य हरखुरखम्मतारयकणा महियलाओ । मयगलदाणजलेणं, सिच्चंता उवसमं पत्ता ॥। २०९८ ।। तहा भग्गे दिप्पिसरे रहसयचक्खुक्खयाइ धूलीए । सेणाजणा विसन्ने, न तस्स निवुन्नए मुणए || २०९९ ।। मयगलगंडयलझरंतदाणसंसित्तमहियलाभोगे । कडयम्मि तस्स चलिए, सरंति नवपाउस लोया ।। २१०० ॥ संभिट्टपक्कपाइक्कचक्कचक्काइपहरणपहारा । सिबिरम्मि तस्स ऊसुयभडाण समणं पडिखलति ॥ २१०१ ॥ इय कित्तियं च भन्नइ, चलिओ चउरंगिणीए सेणाए । भरहनरिंदो इंदो व्व सहइ पडिवक्खउवरिम्मि ।। २१०२ ।। वच्चंतो स कमेणं, अणवरयपयाणएहिं संपत्तो । अखलियपयावपसरो, संधिं जा निययदेसस्स ।। २१०३ || बाहुबली विवियाणिय वावसियसयासओ तया गमणं । नीहरिडं नियनयरीओ देससंधीए संपत्तो ॥ २१०४ ॥ दोह वि अग्गाणीयाण लग्गमाओहणं तओ तत्थ । भाणइ दूयमुहेणं, बाहुबली तयणु भरहनिवं ।। २१०५ ॥ तं च अहं च दुवे विहु, वट्टामो रज्जकखुया दूरं । ता किं इमिणा लोएण निरवराहेण निहएण || २१०६ || जुज्झता दोह वि, अम्हाणं जो जिणस्सई को वि । तस्सेव होउ रज्जं, तो भरहो भणइ होउ इमं ।। २१०७ ॥ तयतरं च दूओ, तं बाहुबलिस्स कहइ गंतूण । सो तुट्ठमणो भरहस्स अंतियं आगओ भणइ || २१०८ ।। तुम्हे अम्हं भाउ ! उत्तमजुज्झेण जुज्झिउं जुत्तं । एवं होउ त्ति तओ, पडिवन्ने भरहनाहेण ।। २१०९ ।। बाहुबली हट्ठमणा दिट्ठिजुज्झेण जिणइ तं झत्ति । वायाजुज्झं भरहो ता काउं तत्थ आढत्तो ।। २११० ।। तमिवि बाहुबली तं निज्जिणइ पयंपई तओ भरहो । न हु एरिसजुज्झेहिं, जायइ जयहारिमज्जाया ।। २१११ ।। तो बाहुजुज्झमसमं काहामो जयपराजयववत्था । निव्वडइ जओ तुरियं, बाहुबली चिंतए तयणु ॥ २११२ ।। अच्चंतरज्जकंखी मह भाया एस तेण देइ मणं । हीणयरम्मि वि जुज्झे, उत्तमजुज्झं पमोत्तूण || २११३ ॥ ता बाहूहिं वि जुज्झं करेमि इमिणा समं अहं इण्हि । अन्नह असमत्थं चिय मं गणिही एस दुट्टप्पा || २११४ ।। इय चिंतिऊण लग्गो, बाहाहिं तहिं पि निज्जिओ भरहो । मुट्ठीहिं पहरमाणो, तत्थ वि हेलाए विजिओ सो || २११५ दंड घेत्तूण तओ, पहाविओ रोसफुरफुरंतोट्ठो । तत्थ वि विजिओ अहवा, भग्गपइन्नाण कत्थ जओ ? || २११६ || भणियं च - पढमं दिट्ठीजुज्झं वायाजुज्झं तेहव बाहाहिं । मुट्ठीहि य दंडेहिं य, सव्वत्थ वि जिप्पए भरहो || २११७ || तो सो विलक्खचित्तो, चिंतइ चक्की भवामि किं नाहं । सव्वत्थ वि जेण अहं, हारेमि इमस्स अंगेण || २११८ ॥ ८१ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं ता देवयाए एवं, विचिंतमाणस्स तस्स हत्थम्मि । दुपेच्छं रविबिंबं व चक्करयणं समुवणीयं ॥ २११९ ।। गहिएण तेण एसो, पहाविओ बाहुबलिवहट्ठाए । दिट्ठो य तेण भरहो, गहिएणं चक्करयणेणं ।। २१२० ।। तो चिंतिउं पयट्टो, सगव्वमेसो इमं समं चेव । चुरेमि चक्करयणेण अहव जुत्तं न मे एयं ।। २१२१ ।। जओतुच्छस्स रज्जोसोक्खस्स कारणे नियपइन्नमइगरुयं । जो भंजइ सो जसजीविएण मुक्को कहं जियइ ॥ २१२२ ।। ता मयमारणमहयं करेमि कहमेत्थ जेण सप्पुरिसा । दीणम्मि मुक्कलज्जे, भग्गपइन्ने न पहरंति ॥ २१२३ ॥ मह भाउएहिं सोहणमणुट्ठियं जे जिणस्स पामूले । पढम चिय पव्वइया, चइउं सावज्जरज्जाइं ।। २१२४ ।। ता अहमवि ताणं चिय, मग्गं अंगीकरेमि अइगरुयं । तुच्छरइसोक्खकज्जे, न उणो जं कुणइ गुरुभाया ॥ २१२५ ॥ जम्हा सो च्चिय गरुओ सो च्चिय धीरो पयावसंपन्नो । जस्समणो निरवज्जम्मि संजमे उज्जमं कुणइ ।। २१२६ ॥ इय चिंतिऊण भाउस्स सम्मुहं भणइ एवमविसंकं । धिद्धी तुह पुरिसत्तं, उत्तममग्गप्पहीणस्स ।। २१२७ ॥ उत्तमजुज्झं पडिवज्जिऊण न हु तम्मि जस्स निव्वाहो । किं तस्स होज्ज सुचरियमहम्मजुज्झं पयट्टस्स ।। २१२८ ॥ ता पज्जत्तं भोगेहिं मज्झ गिण्हाहि रज्जमेयं तं । सिरिउसभनाहचरियं, अहं तु मग्गं अणुसरिस्सं ।। २१२९ ।। इय भणिऊणं मोत्तण दंडयं पंचमुट्ठियं लोयं । लोयाण जणियचोज्जं. काउं तत्थेव निक्खंतो ।। २१३० ॥ भरहेण तस्स पुत्तो, सोमजसो तयणु ठाविओ रज्जे । बाहुबली वि हु एवं, चिंतइ पडिवज्जिउं दिक्खं ॥ २१३१ ।। तायसमीवे मह लहुयभाउणो जायअइसइयनाणा । ते कहमहमणइसओ पेच्छिस्सं गरुययारूढो ।। २१३२ ।। चिट्ठामि ता इहेव य, उप्पज्जइ जाव केवलं नाणं । इय चिंतिऊण पडिमं तत्थेव ठिओ महासत्तो ।। २१३३ ॥ माणमहागिरिसिहरग्गसंठिओ जिणवरेण दिट्ठो वि । पडिबोहिओ न एसो, अप्पत्थावो त्ति कलिऊण ।। २१३४ ।। एवं उवेक्खिओ सो, जिणेण संवच्छरं ठिओ तत्थ । काउस्सग्गेणं खाणुओ व्व वल्लीहिं उच्छइओ ।। २१३५ ।। वम्मियविणिग्गएहिं, भुयंगमेहिं च वेढियहि जुओ । तह वि न चलियसत्तो, काउस्सग्गाओ संचलिओ ।। २१३६ ।। भयवं बंभिं तह सुंदरिं च पट्ठवइ वच्छरे पुन्ने ! । तप्पडिबोहनिमित्तं, सिक्खविउं किं पि भणियव्वं ॥ २१३७ ॥ पट्ठवियाओ न पुट्विं, जेण न दिट्ठा इमस्स पडिवत्ती । सम्मं तव्वयणम्मी, दव्वाईणं अभावाओ ॥ २१३८ ।। दव्वं खेत्तं कालं भवं च भावं च जं समासज्ज । कम्मोदयमाईया, हवंति भणियं च सत्थे वि ॥ २१३९ ।। उदयक्खयक्खओवसमोवसमा जं च कम्मुणो भणिया। दव्वं खेत्तं कालं भवं च भावं च संपप्प ॥ २१४० ।। तो बंभि-सुंदरीहिं, मग्गंतीहिं तहिं अरन्नम्मि । दिट्ठो महल्लकुव्वो वल्लितणुच्छाइयतणू सो ॥ २१४१ ॥ अभिवंदिऊण भणिओ भाउय ! नो हत्थिखंधचडियाण । केवलनाणं जायइ, ता अवयर हत्थिखंधाओ ॥ २१४२ ।। इय भणिऊण गयाओ, ताओ सो वि य विचिंतई किमहं । चिट्ठामि हत्थिखंधे, इमाओ जं बिंति मं एवं ।। २१४३ ।। किंच इमाओ तायस्स वयणमभिगिज्झ मं भणंति इमं । न य अन्नहा भणिज्जा ताओ ता होज्जं किं एयं ॥ २१४४ ।। इय चिंतितेण तओ, माणो हत्थि त्ति हुं मए नायं । अन्नस्स संभवो उण, कत्तो मइ एरिसावत्थे ।। २१४५ ।। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया अहह मह निव्विवेयत्तमेत्थ जं गुणगुरूण भाऊण । संके पणामकरणे वि अत्तणो किं पि लहुयत्तं ॥ २१४६ ॥ विणओ गुणाण मूलं, विणओ गरुयत्तणं पयासेइ । मयवसवत्तीण पुणो, कह णु गुणा कह णु गरुयत्तं ॥ २१४७ ॥ भणियं च - विणओ सासणे मूलं, विणओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो को तवो ॥ २१४८ ॥ विणओ आहवइ सिरिं, लहइ विणीओ जसं च कित्तिं च । न कयाइ दुव्विणीओ सकज्जसिद्धिं समाणेइ ।। २१४९ ॥ विणओ मूलं गरुयत्तणस्स मूलं सिरीए ववसाओ। धम्मो सुहाण मूलं, दप्पो मूलं विणासस्स ।। २१५० ।। तो जामि सामिपासम्मि भाउणो पणिवयामि गंतूण । अहयं मद्दवअंकुसनासियगुरुमाणकंदप्पो ॥ २१५१ ।। इय चिंतिऊण चलणं, उप्पाडइ जाव तत्थ गमणत्थं । ता निक्कस्सायचित्तस्स तस्स सियझाणमुल्लसियं ॥ २१५२ ।। तेण पलयानलेण व निद्दड्ढे घाइकम्मवणगहणे । सासयमउलमणंतं, उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ २१५३ ।। सामिसयासं पत्तो, ताहे तिपयाहिणाओ दाऊणं । तित्थस्स नमो भणिउं केवलिपरिसाए उवविट्ठो ॥ २१५४ ।। तप्पभिई भरहो वि हु अप्पडिहयसासणो भरहवासे । अणुहवइ देवराओ व्व पमुइओ चक्कवट्टिसिरिं ॥ २१५५ ।। तहा हि - अच्छेरयभूयाई चोद्दसरयणाई दिव्वरूवाई । एगिंदियाई सत्त उ, सत्त उ पंचिंदियाइं से ॥ २१५६ ॥ जक्खसहस्साहिट्ठियमेक्केक्कं तेसु आसि वररयणं । अन्ने दोन्नि सहस्सा, जक्खाणं अंगरक्खकरा ।। २१५७ ॥ सोलसजक्खसहस्सा. एवं सन्नेज्झकारिणो निच्चं । तद्दगणा तस्स वसे, रायाणो मउडबद्धा य ।। २१५८ ।। जणवयकल्लाणीणं अणुकल्लाणीण तह य पत्तेयं । बत्तीसई सहस्सा, सप्पडिहेरा य नव निहिणो ॥ २१५९ ।। करडयडगलियअणवरयमयजलासारसित्तभूमीण । पाउसजलवाहसमप्पहाणगिरितुंगदेहाण ।। २१६० ।। जियसजलजलयगंभीरगज्जिगुरुरावबहिरियदिसाण । चउरासीईलक्खा, गयाण वरलक्खणजुयाण ॥ २१६१ ।। मुहमंडलेसु निम्मंसयाण पच्छिमपएसु पीणाणं । उच्चत्तेणं संजणियगरुयगिरिटंकसंकाण ॥ २१६२ ।। एवं एत्तियलक्खा, तुरगाणं विजियपवणवेगाणं । वग्गंतवग्गुवग्गा तियम्मि कोसल्लवंताण ॥ २१६३ ।। पवणपहल्लिरऊसियसेयपडायापडंचलमिसेण । तज्जंति सूररहमंगुलीहिं जे दूरवत्थमिमं ॥ २१६४ ॥ चुलसीइसयसहस्सा, ताण रहाणं तुरंगवोज्झाण । तह सत्थसुप्पसत्थाण सुपडिउत्ताण अणवरयं ।। २१६५ ॥ गुणवियअसेसपहरणगणाण तुरयाइसिक्खदुक्खाण । पडिभयपयट्टगव्वावहारकरणेक्करसियाण ॥ २१६६ ॥ साहसवसतोसियसामिसययसम्माणपत्तकित्तीण । छन्नउईकोडीओ, भडाण अइभत्तिमंताण ॥ २१६७ ॥ तिन्नि सया तेसट्ठा, सूयाराणं स सिप्पकुसलाणं । छप्पन्नअंतरजला, अउणापन्ना कुरज्जाण ।। २१६८ ।। बावत्तरि सहस्सा, नगराणं करविवज्जियाणं च । छन्नउईकोडीओ, सुहगुणगामाण गामाणं ।। २१६९ ।। बत्तीस पत्तबद्धाण तह य वरतरुणिनाडयाणं च । बत्तीसई सहस्सा, सेणिपसेणीओ अट्ठारा ॥ २१७० ।। बत्तीसं च सहस्सा, पहट्ठलोयाण पवरदेसाण । खेडयसयाई सोलस, संवाहसहस्स चोद्दसगं ।। २१७१ ।। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं ८४ चउवीसइं सहस्सा, कप्पडगाणं तहा मडंबाणं । विविहरयणागराई, तहेव वीसइसहस्साई ॥ २१७२ ।। दोणमुहाण सहस्सा, नवनउई इब्भजणसमिद्धाणं । तह पवरपट्टणाणं, अडयालीसं सहस्साई ।। २१७३ ।। इय पुव्वभवोवज्जियविसिट्ठपुन्नाणुभावसंजणियं । भरहाहिवस्स लच्छि, को वन्नेउं किर समत्थो ॥ २१७४ ।। तस्स य सुहंसुहेणं, सत्तत्तरिपुव्वसयसहस्साई । आजम्माओ गयाइं, कुमारभावम्मि पुन्नाई ।। २१७५ ॥ एगं वाससहस्सं, पयंडमंडलियनरवइत्तम्मि । निज्जियरिउणो जायं, कमेण तो चक्कवट्टित्तं ॥ २१७६ ।। तम्मि य वाससहस्सेणूणा छ च्चेव पुव्वलक्खाओ। वोलीणा अन्नदिणे, आयंसघरम्मि स पविट्ठो ।। २१७७ ।। जं विरइयं पि दप्पणनिम्मलफलिहमणिसिलसमूहेहिं । सोहइ सुसंधिबंधप्पभावओ एगखंडं च ।। २१७८ ॥ जं च मणिभित्तिसंकंतमणुयमाईण रूवयालीहिं । संचरमाणीहिं विहाइ पयडजीवंतचित्तं व ॥ २१७९ ॥ दीसइ सव्वत्तो च्चिय जम्मि पविढेहिं अत्तणो रूवं । संपुन्नंगोवंग, उड्ढमहोतिरियभागेसु ॥ २६८० ॥ फासो वि जस्स नीसेसदेहपल्लत्थिजणणसुसमत्थो । अइसीयलो वि निज्जिय, नवणियाँलाइ संफासो ॥ २१८१ ॥ पणवन्नकुसुमपयरम्मि जत्थ रुंटतमहुयरग्घाओ। रेहइ पडिबिंबगओ, दावितो बहुगुणं व अप्पाणं ॥ २१८२ ।। (गीइया) कसिणागुरुकप्पूराइदव्वसुसमिद्धधूवघडियाण । घाणिदियमणसंतोसकारओ जत्थ गंधो वि ।। २१८३ ।। इय एवमाइगुणगणपहाणसंजणियसोक्खसंभारं । आयंसघरसरूवं केत्तियमेत्तं पवंचेमो ।। २१८४ ।। सीहासणे नीसन्नो, इत्थीरयणेण संजुओ तत्थ । सेसाओ वि पत्ता से, रमणीओ रम्मरूवाओ ॥ २१८५ ॥ ताण च - काओ वि हंसति काओ वि रमंति काओ वि जयजय भणंति । गायंति तारमहुरं अन्नाओ किन्नरीओ व्व ॥ २१८६ ।। काओ वि वल्लई सारविंति वायंति वेणुमन्नाओ । तालं धरंति अन्नाओ भरहभावेसु कुसलाओ ॥ २१८७ ।। सुललियपयविन्नासं, वियड्ढजणजणियतोससंवासं । कव्वं व दिव्वनट्ट, काओ वि दंसंति हेलाए ॥ २१८८ ।। अन्नाओ लडहलहरीभंगुरभूभंगसंगचंगाओ । दावितिं नियसरूवं, वम्महसरपसरविद्दवियं ।। २१८९ ।। उत्तुंगकढिणचक्कलपीणपओहरजुएण नोल्लन्ती । पइपेम्मपरव्वसयाइ काइ अद्धासणे ठाइ ।। २१९० ।। कीय वि केसकलावो, मुक्को पत्तो नियंबसंबंधं । बद्धो पुणो वि जं निवपियाओ न खमंति अवराहं ।। २१९१ ।। अन्नाओ गुत्तकिरियाकारयबिंदुच्चुयाइभणिएहिं । नियनयणेहिं व हिययं, हरंति सवणंतपत्तेहिं ।। २१९२ ॥ । अवराओ पुप्फतंबोलरुद्धकरपल्लवाओ से पुरओ । मयणवियारे विवहे, पयासमाणीओ चिट्ठति ।। २१९३ ॥ वीयंति चामरेहिं, काओ वि छत्तं धरंति काओ वि । अवराओ तस्स अंगे, विभूसणाई निवेसंति ॥ २१९४ ।। विन्नाणनाणकोउयकलाविलासेहिं हावभावेहिं । अक्खेवं जणयंतीहि ताहिं परिवारिओ राया ॥ २१९५ ।। इंदो व्व देवलोए, वियारए सुरवहूहिं परियरिओ। पुन्नोदयसंभारेण सयललोयस्स अब्भहिओ ॥ २१९६ ।। अवि य - विविहमणिरयणमंडियकिरिडसंजणियसीसगुरुसोहो । तिलगुज्जोइयभालयलसयलमुहलद्धपरभागो ।। २१९७ ।। Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरहराया पणवन्नरयणभूसियकुंडलविलिहिज्जमाणगंडयलो । गीवापिणद्धगेविज्जसोहिओ चारुसिरिवच्छो ।। २१९८ ॥ हारड्ढहारतिसरयपलंबपालंबरुइरकयमज्झो । केऊरतुडियकडयालिकलियरमणिज्जभुयजुयलो ॥ २१९९ ।। पसरंतकंतिसंपसरमुद्दियापिंगलंगुलीनिवहो । ललियकडिसुत्तमंडियवरलक्खणकडियडाभोगो ।। २२०० ।।। नाणाविहमणिमंडियमहरिहआविद्धवीरवरवलओ। किं बहुणा विवहाभरणभूसिओ कप्परुक्खो व्व ॥ २२०१ ॥ दिप्पंतअहियसोहो, आयंसघरम्मि नियपियाहिं समं । रममाणो च्चिय लग्गो, सरीरसोहं पलोएउं ।। २२०२ ।। एत्थंतरम्मि पडियं मुद्दारयणं करंगुलीहितो । भवियव्वयानिओएण कह वि अवियाणयंतस्स ।। २२०३ ।। तत्तो कमेण राया, देहावयवाण उत्तमं सोहं ! साभरणाण नियंतो, तमंगुलिं नियइ गयमुई ।। २२०४ ।। चिंतइ तओ न सोहइ, निरलंकारा करगुंली एसा । साभरणंगुलियाणं, मज्झे कागि व्व हंसीण ॥ २२०५ ॥ ता एस च्चिय एवं, सोहाइ विवज्जिया उ अन्ना वि । इय चिंतिय ओसारइ, बीयाओ वि मुद्दियारयणं ।। २२०६ ।। सा वि तहेव विसोहा, दिट्ठा सव्वं पि तो अलंकारं । परिवाडिए मुयंतो, चडिओ संवेगरंगम्मि ॥ २२०७ ।। चिंतइ जहा न देहं, विरायए किं पि मुक्कलंकारं । कव्वं पिव कुकइकयं वन्नयहीणं व चित्तं वा ।। २२०८ ।। अहह अहो देहमिणं, सहावसोहाविवज्जियं चेव । ता को इमस्स उवरिं, कारिमरूवस्स पडिबंधो ।। २२०९ ।। सव्वं चिय असुइगिहं, देहं जं एत्थ सुप्पसत्था वि । कप्पूराइपयत्था, उवउत्ता जंति असुइत्तं ।। २२१० ।। अन्नं च असुइसंभयमेयमसुइम्मि पावियं वुड्ढि । असुइस्स भरियमसुई, नवहिं दुवारेहिं पज्झरइ ॥ २२११ ।। किंच - जं अस्थि किं पि मज्झे, इमस्स बहिचम्मवेढियसरूवं । जइ तं न होज्ज छुट्टिज्ज कह णु तो वायसाईण ।। २२१२ ।। विट्ठाकुंभसरिच्छो, ता देहो एस नत्थि संदेहो । भूसिज्जइ बाहिं पवरवत्थलंकारमल्लेहिं ।। २२१३ ॥ रोगजरास्रोगनिवासवासभवणे असासयसरूवे । रसरुहिरमंसमेयट्ठिमज्जसुक्काण ठाणम्मि ॥ २२१४ ॥ मलमुत्तपुरीसानिलसिंभानलपित्तकलमलनिहाणे । एत्तो च्चिय न सरीरे, होइ विवेईण पडिबंधो ।। २२१५ ।। (जुयल) जइ ता ससरीरे वि हु ममत्तभावो न जुत्तिजुत्तो त्ति । तो कह जुत्तो होही, पियपत्तिसरीरसंबंधो ॥ २२१६ ॥ नियदेहसोक्खहेऊ, इच्छिज्जइ सव्वमेव संसारे । तस्स असारत्ते किं, हवेज्ज अन्नं भवे सारं ।। २२१७ ॥ सद्दाईया विसया वि तुच्छरूवा असासया चेव । एएहितो सोक्खं, पामाकंडूयणसुहं व ॥ २२१८ ।। परिणामदारुणं चिय, विवेयबुद्धीए चिंतियं भाइ । अहव न निम्मलदिट्ठी, पासइ विवरीयमिह अत्थं ॥ २२१९ ॥ जे बहलकामलोवहयलोयणा तेसि धवलकमलम्मि । जच्चसुवन्नसमप्पभमिमं ति जंजायए बुद्धी ॥ २२२० ॥ (विसेसयं) ता किं इमिणा रज्जेण रिद्धिसंभारजणियचोज्जेण । किं वा रमणीहिं विलासलासजणचित्तरमणीहि ॥ २२२१ ।। परिहरिय सव्वमेयं, ता पडिवज्जामि तायअणुचरियं । सासयसुहेक्कहेडं असेससावज्जपरिहारं ।। २२२२ ।। धन्ना हु भायरो मे सव्वे जे पुव्वमेव रज्जाई । परिहरिउं पडिवन्ना, जिणंतिए उत्तमं धम्मं ।। २२२३ ।। ते सकयत्था ते पुन्नभायणं ते विढत्तजम्मफला । अणवज्जकज्जनिरया, चयंति जे सव्वसावज्ज ।। २२२४ ।। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं ते सूरा ते धीरा, ते च्चिय नियकुलनहंगणमियंका । अणवज्जकज्जनिरया, चयंति जे सव्वसावज ॥ २२२५ ।। ते दिन्नसव्वदाणा ते सुइणो ते सुरासुरप्पणया । अणवज्जकज्जनिरया, वयंति जे सव्वसावज्जं ॥ २२२६ ।। ते गुणिणो ते गुरुणो, ते सुहिणो ते सुचित्ततवचरणा । अणवज्जकज्जनिरया, चयंति जे सव्वसावज्जं ।। २२२७ ।। ते भुवणाणंदकरा, ते निम्मलकित्तिभरियदिसविवरा । अणवज्जकज्जनिरया, चयंति जे सव्वसावज्जं ॥ २२२८ ।। ता जं एत्तियकालं, विसयासत्तेण अज्जियं पावं । तं तिविहं तिविहेणं, अहं पि मुच्चामि जा जीवं ।। २२२९ ।। इय चिंतितस्स विसुद्धनाणदंसणचरित्तपत्तस । अप्पुव्वकरणपुव्वं, उल्लसियअउव्वविरियस्स ।। २२३० ।। चडियस्स खवगसेढिं, विसुद्धसियझाणझवियकम्मस्स । लोयालोयपयासं, संजायं केवलं नाणं ।। २२३१ ।। तओ य -- वोलीणाणागयवट्टमाणनीसेसभावघडिएण । तं नत्थि जं न पासइ, भरहनिवो दिव्वनाणेण ॥ २२३२ ।। एवं सुविसुद्धमणो गिहत्थभावे वि वट्टमाणो सो । पत्तो केवलनाणं निन्नासिय घाइकम्मबलो ।। २२३३ ।। भणियं च - पासम्मि इत्थिरयणं, करिहरिरहजोहसंगयं रज्जं । भोगा सुरिंदसरिसा रमणीओ सुरसमो वेसो ॥ २२३४ ।। सीहासणे निसन्नो संपत्तो तह वि केवलं भरहो । जम्हा न बज्झवत्थू, विसुद्धभावस्स पडिबंधो ।। २२३५ ॥ ता जं पुढं तुमए, हिरिमइ ! सुस्साविए ! जहा भरहो । को एस जेण पत्तं, गिहिणा वि हु केवलन्नाणं ।। २२३६ ।। सो एस तुज्झ कहिओ, पत्थुयवत्थुम्मि जोयणाउ इमा । पत्तं केवलनाणं, विणा वि भरहेण तवचरणं ।। २२३७ ।। भरहस्स जो उ भाया, बाहुबली सो तहुग्गतवचरणा । संवच्छरं ठिओ वि हु केवललच्छि न संपत्तो ।। २२३८ ॥ मणसुद्धिअभावाओ, सो वि हु, लहुभाइअनमणवियप्पा । संजाओ से सुविसुद्धनाणविग्घो जओ भणियं ॥ २२३९ ॥ धम्मो मएण हुँतो, जं न वि सीउण्हवायविज्झडिओ। संवच्छरं अणसिओ बाहुबली तह किलिस्संतो त्ति ॥ २२४० ॥ मणसुद्धी अकलंका, जस्स पुणो बीयचंदलेह व्व । होउ तवो से मा वा, तह वि हु अहिलसियसंपत्ती ।। २२४१ ।। तो भणइ हिरिमई पुण, वि मत्थए अंजलिं करेऊण । मुणिनाह ! एवमेयं, किंतु इमं कहसु मह ताव ।। २२४२ ।। पत्तो केवलनाणं, जो भरहो सो तहेव गिहिलिंगो। किं पत्तो सिवठाणं, उयाहु समणत्तणं पत्तो ।। २२४३ ॥ तो कहइ मुणिवरो से, जइया सो केवलं समणुपत्तो । तइया आसणकंपो, जाओ सोहम्मसुरवइणो ।। २२४४ ॥ तो सो पउत्तओही, वियाणिउं तस्स केवलुप्पत्तिं । केवलिमहिमनिमित्तं, समागओ मणुयलोगम्मि ॥ २२४५ ।। भणइ य भरहं भयवं ! पडिच्छ तं दव्वलिंगमेत्ताहे । वंदित्ता जेण अहं, केवलिमहिमं तुह करेमि ॥ २२४६ ।। तो ववहारपवित्तीए कारणं दव्वलिंगमवगम्म । कयकिच्चो वि हु गिण्हइ, लिंगं सो देवयादिन्नं ॥ २२४७ ।। सयमेव पंचमुट्ठियलोयं काऊण साहुलिंगेण । नीहरिओ निरवेक्खो, सीहो व्व गुहाओ गेहाओ ॥ २२४८ ॥ दसहिं सहस्सेहिं समं, नरनाहाणं विमुक्कगेहाणं । पडिवन्नसमणलिंगाण तस्स पासम्मि भावेण ।। २२४९ ।। केवलमहिमा विहिया, सक्केणं तयणु वंदणापुव्वं । भरहस्स महामुणिणो, सेसा वि हु वंदिया सव्वे ।। २२५० ॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिरिमइदेवी ८७ तो पत्तो सट्ठाणं सक्को भरहस्स पुत्तमह रज्जे । ठविऊणाइच्चजसं जसधवलियसयलभुवणयलं ॥ २२५१ ।। भरहो वि मुणिवरिंदो, दसहिं सहस्सेहिं मुणिवराण समं । विहरित्तु निरुवसग्गं, सग्गम्मि व मज्झदेसम्मि ।। २२५२ केवलिपरियाएणं, पुव्वसयसहस्सकालमाणेण । अट्ठावयमणुपत्तो, कुणमाणो भवियजणबोहं ॥ २२५३ ॥ तं गिरिवरमारुहिउं, पुढविसिलापट्टमेगमइगरुयं । पडिलेहिऊण भयवं पाओवगमणेण तत्थ ठिओ ॥ २२५४ ।। संपुन्नमासमेगं, कालगओ तयणु खीणकम्मंसो । सव्वाउयमणुपालिय, चउरासीपुव्वलक्खाणि ॥ २२५५ ॥ सासयपयमणुपत्तो जाइजरामरणदुक्खपरिहीणो । निरुवमअणंतअक्खयसोक्खस्स स भायणं जाओ ॥ २२५६ ॥ इय कहियं तुह भद्दे ! पसंगओ भरहरायरिसिचरियं । संखेवेणं एत्तो पत्थुयमेत्थं निसामेसु ॥ २२५७ ॥ आसि पुरा तुह जीवो महामुणी मुणियसत्थपरमत्थो । परमत्थेहिं मयणस्स नारिनयणेहिं अव्वहिओ ॥ २२५८ ॥ अवि य - हियजणए सयलजियाण जम्मि नीसेसगुणगणावासे । दोसाण नत्थि ठाणं गुणेहिं निव्वासियाणं च ॥ २२५९ ॥ तहा हि - रहिओ एगविहअसंजमेण बंधणदुगेण न य बद्धो । रागद्दोससरूवेण मोहरायापउत्तेण ।। २२६० ।। मणवयणकायदंडेहिं दंडिओ नेय तिहिं पयंडेहिं । सल्लेहिं गारवेहिं य, न सल्लियो न वि य गारविओ ।। २२६१ ।। नाणाईण तिण्हं, पयट्टए न य विराहणट्ठाए । न य चउहिं कसाएहिं, कसाइओ कत्थ वि महप्पा ।। २२६२ ।। आहाराई सन्नाचउक्कए न य निविट्ठचित्तो य । विगहास न य पसत्तो, न पंचकिरियास आसत्तो ।। २२६३ ॥ पंचसु कामगुणेसुं, न य रत्तो न य पणिंदियपमत्तो । छज्जीवघायनिरओ न होइ सयसत्तभयभीओ ॥ २२६४ ।। मत्तो न अट्ठमयठाणएहिं न पमायअट्ठयपमत्तो । नवबंभचेरगुत्तीविवक्खसेवासु न पयट्टो ॥ २२६५ ।। न य दसविहधम्मल्लंघणाइ कत्थ वि स उज्जम कुणइ । इय तस्स सुट्ठियस्स वि देववसा सुणसु जं जायं ।। २२६६ एक्कल्लविहारेणं तस्स भमंतस्स सुद्धचित्तस्स । अह अन्नया कयाई, वोलीणा गिम्हसमयम्मि ।। २२६७ ॥ आयड्ढियकोयंडो धाराबाणावलीओ अणवरयं । मुंचतो जो पसरइ, गिम्हस्सुच्चासणत्थं व ।। २२६८ ।। संतवियधरणिमंडलगिम्होवरि कोवकसिणमेहमुहो । विज्जुच्छलेण जो रोसजलणजालाओ उवमेइ ॥ २२६९ ॥ कलुसजलभरियमग्गम्मि जम्मि निन्नुन्नए अयाणंता । लोया गिहाओ गेहं पि कह व किच्छेण गच्छंति ।। २२७० ॥ भूजलसंगुप्पन्नाण जत्थ जीवाण रक्खणत्थं च । दुस्संचारा जाया, चिक्खल्लचिलिप्पिया धरणी ।। २२७१ ।। धारानिवायसंसित्तधरणिउग्गयतणंकुरमिसेण । पुलइज्जइ जत्थ जयं, पाउससिरिसंगमपहलै ।। २२७२ ।। फुल्लंति जत्थ धाराकयंबनिवहा रडंति मंडुक्का । नच्चंति सिहंडिगणा, वच्चंति न पहियसंघाया ।। २२७३ ।। तम्मेरिसम्मि वासारत्ते, पढमम्मि सो मुणी पत्तो । पुरमेक्कं विहरंतो, संजमरक्खाइ अभिउत्तो ।। २२७४ ।। तस्स य बहिप्पएसे वंतरदेवीए जिन्नमुज्जाणं । तम्मज्झे तीए च्चिय, चिरंतणं अत्थि आययणं ।। २२७५ ।। तं देविं अणजाणाविऊण तस्सेव एक्क कोणम्मि । पाउसनिगमणहेउं ठिओ महप्पा तवे निरओ ॥ २२७६ ।। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं सा वि हु वंतरदेवी अक्खित्ता तस्स निम्मलगुणेहिं । उवसंतमणा जाया, भत्तिब्भरनिब्भरा तम्मि ॥ २२७७ ।। अन्नम्मि दिणे साहुस्स तस्स सज्झायझाणनिरयस्स । निक्कारणकरुणारसवसेण एयारिसं जायं ॥ २२७८ ।। तहा हि - एगो दियस्स पुत्तो, वंठकलत्तम्मि गाढमणुरत्तो। तम्मि च्चिय देवउले संपत्तो तं गहेऊण || २२७९ ।। तेण समं, एगंते खणमेत्तं जाव अच्छई एसो। निब्भरकीलासत्तो, तत्तो भवियव्वयावसओ ॥ २२८० ।। तत्थेव समायाओ, तब्भत्ता पेसणाओ कत्तो वि । वलिओ दळूण पियं, तेण समं कोवरत्तच्छो ॥ २२८१ ॥ तं बंधिऊण बंभणपुत्तं भज्जं च धरिय बाहाहि । नीहरिओ देवउलाओ दो वि काऊण ते पुरओ ॥ २२८२ ॥ सिरिचंडसेणरन्नो, गओ सगासं निवेइओ सव्वो । वुत्तंतो तो रुट्ठो राया दुन्हं पि ताणुवरिं ॥ २२८३ ।। भणियं दिएण नाहं, नरिंद ! कारी इमस्स कम्मस्स । एमेव देविदंसणकएण देवउलमणुपत्तो ॥ २२८४ ।। एत्थं च जइ न पत्तियह अत्थि ता तत्थ मुणिवरो एगो । तं पुच्छह स महप्पा, जहट्ठियं साहिही तुम्ह ॥ २२८५ ।। एवं च वइयरं से, तप्पिउणा जाणिऊण कत्तो वि । गंतूण मुणिसमीवं. भणियं पाएसु पडिऊण ।। २२८६ ।। मुणिनाह ! जीवरक्खं, करेसु मह पुत्तयस्स एत्ताहे । वियरेसु पाणभिक्खं अच्चंतदयालुओ होउं ॥ २२८७ ॥ पयईए चेव मुणिणो हवंति करुणापवाहसुहचित्ता । न हु ससहरस्स किरणा सिसिरत्ते कारणावेक्खा ॥ २२८८ ।। तुम्हारिसा वि मुणिवर ! जइ पुण काहिंति नेय दुक्खियणे । अणुकंपं ता दीणाण होज्ज सरणं किमेत्थ जए ।। २२८९ एत्थंतरम्मि रन्ना आगंतूणं स पुच्छिओ साहू । को वइयरो इमाणं मुणिनाह ! कहेसु सब्भावं ॥ २२९० ।। तो निक्कारिमकरुणापहाणचित्तेण जंपियं मुणिणा । निद्दोसाइं वि नरनाह ! कह णु पीडेसि एयाई ॥ २२९१ ।। मुक्काई सदोसाई वि तो नरनाहेण ताई तुट्टेण । मुणिवयणाओ दोन्नि वि निद्दोसाइं ति कलिऊण ॥ २२९२ ।। वंठो विलक्खवयणो, संजाओ तयणु सो वि तो मुणिणा। तह कह वि हु पन्नविओ, निरणुसओ जह मणे जाओ। २२९३ निक्कारिमकारुन्नं मुणिणो दठूण दियवरस्स सुओ। सह पिउणा पडिबुद्धो, पडिवज्जइ उत्तमं धम्मं ॥ २२९४ ।। वंठस्स य जा महिला, सा वि य सुस्साविया तया जाया । परपुरिसाओ निवित्तिं, जावज्जीवं पवज्जेइ ॥ २२९५ ॥ मुणिणा पुण तेणेव य, दयाइ भणिएण अलियवयणेण । निम्मायत्तं हणियं, विसलेसेणेव परमन्नं ॥ २२९६ ।। तुच्छं पि अणुचियं खलु, जिणधम्मे सव्वसंजमविघायं । कुणइ अओ च्चिय भणियं गुत्ती सव्वत्थ कायव्वा ॥ २२९७ तप्पच्चयं च कम्मं, बद्धं थीभाववेयणिज्जं जं । चरिऊण पुणो चरणं, वरं च विहिमरणमणुपत्तो ॥ २२९८ ॥ तत्तो य महासुक्के, उप्पन्नो सुरवरो महिड्ढीओ। सत्तरससागराऊ, समुवज्जियसुकयसंभारो ।। २२९९ ।। देवभवउचियसोक्खं, अणुभविऊणं तओ चुओ संतो । थीवेयणिज्जकम्माणुभावओ सो तुमं जाया ।। २३०० ।। सो य तुमं पुव्वब्भासजोगओ पयणुरागदोसुदया । जीवेसु दयाजुत्ता जुत्ताजुत्तत्थसविवेया ॥ २३०१ ।। बहुखवियदुट्ठकम्मा, कम्मखओवसमपत्तसम्मत्ता । भवजलहितीरपत्ता, दुक्कडलेसस्स मा भाहि ।। २३०२ ।। नियपिययमगुणउ च्चिय, जेण तुमं पाविऊण सुजइत्तं । एयस्स काहिसी खयं, दुक्कडलेसस्स धम्मरए ! ।। २३०३ ।। Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिरिमइदेवी इय मुणिवयणाई निसामिऊण मुच्छानिमीलियच्छिजुया । पेच्छंताण वि अम्हाण झ त्ति पडिया महीवढे ।। २३०४ ।। मुच्छावसवियलतणुं, पलोइऊणं तओ इहम्हेहिं । नियजणसयासमेसा आणीया ताओ ठाणाओ ॥ २३०५ ॥ एत्तो परं अवत्था पच्चक्ख च्चिय इमीए तुम्हाण । इय भणिऊण ठिओ सो तुण्हिक्को सोविदल्लो त्ति ॥ २३०६ ।। तो रन्ना नियहत्थेण चेव संवाहिऊण से अंगं । चिहुरकलावो बद्धो, मुहाओ फुसिया य सेयकणा ॥ २३०७ ।। जाओ वि ससिप्पहापमुहपवरदेवीओ चक्कवट्टिस्स । ताओ वि तग्गुणपउणीकयाओ उवयरिउमाढत्ता ॥ २३०८ ।। तहा हि - का विउ करेड वायं सीयलजलसित्तकेलिपत्तेहिं । का वि अइसिसिरगोसीसचंदणरसेण सिंचेइ ॥ २३०९ ।। नवनलिणगब्भसोमालकरयलेहिं परा उ से अंगं । संवाहेति पयत्तेण का वि सिचयाई ठावेइ ।। २३१० ।। हिरिमइदेवी वि पलोइऊण पासम्मि सामियं निययं । लज्जासज्झससंखुद्धमाणसा ठवइ अप्पाणं ॥ २३११ ॥ उवविट्ठो से पुरओ, तओ य आभासिया नरिंदेण । कीस पिए ! विमलविवेयरुद्धहियया वि मोहगया ॥ २३१२ ॥ तो भणइ इमा पिययमा, जाईसरणं महं समुप्पन्नं । तेण मए सव्वं पि हु, विन्नायं मुणिवराइटें ।। २३१३ ॥ तहा हि - जं विहियं मुणिभावे, जस्स विवागेण इत्थिया जाया । कप्पम्मि महासुक्के, देवत्ते जं च अणुभवियं ॥ २३१४ ।। करयलगयामलं पिव तं मह पच्चक्खमिव समग्गं पि । संजायं जाईसरणविसयभावेण नरनाह ! ।। २३१५ ।। तेण य संखोहेणं, मुच्छा जाय त्ति भणिय जाव ठिया । नरवइणा ताव इमा, पणएण पुणो इमं भणिया ।। २३१६ ।। सुंदरि ! धन्नो अहयं कयपुन्नतमाण तह य सीमा हं । भवकद्दमम्मि खुत्तो उद्धरिओ जो तए अहयं ।। २३१७ ।। जम्हा पुराकयाणं पुन्नाणं पयरिसं अवगमेइ । निम्मलकारणवग्गस्स एत्थ लाभो महाभाए ॥ २३१८ ॥ कारणअणुरूव च्चिय कज्जुप्पत्ती जणे वि पयडमिणं । न हु कलमसालिबीयाओ जायए कोद्दवंकूरो ।। २३१९ ।। तुमए समं कलत्तं, अओ मए पावियं जमेत्थ भवे । इहपरलोए य सुहेक्ककारणं धम्मुवुड्ढिकरं ॥ २३२० ।। तत्तो च्चिय जाणिज्जइ, पुव्वभवे पुन्नपयरिसो गरुओ। आवज्जिओ मए खलु,, पुणो वि पुन्नाणुबंधकरो ।। २३२१ ।। अन्नं च देवि ! जह तुह मुच्छा न हवेज्ज तो कहं तुज्झ । चरियं अइसच्चरियं, सवणपहमुवेज्ज अम्हाण ।। २३२२ ।। जं निसुणिज्जंतं पि हु, रागीण वि जणइ गरुयवेरग्गं । विज्झवइ कसायदवं, निन्नासइ मोहतिमिरोहं ।! २३२३ ।। जं गुरुयणप्पसाएण होज्ज कम्माण खयउवसमेण । सुविसुद्धसिद्धसिद्धंतसारबोहाओ विबुहाण ॥ २३२४ ।। तं पयईसिद्ध चिय तुज्झ सरूवं उवाहिनिरवेक्खं । सयलस्स जीवरासिस्स देवि ! एगंतसुहजणयं ।। २३२५ ।। अज्ज अउ च्चिय अहयं भवनिवहोवज्जियस्स कम्मस्स । मन्नेमि खयं असुहस्स असुहपावाणुबंधिस्स ।। २३२६ ।। जं मज्झ मई एवं, फुरिया जह रज्जमिणमसारयरं । रविकिरणतत्तमरुभूमिसलिलकल्लोलवंदं व ॥ २३२७ ॥ तहा हि - को हं इह किं रज्जं, के निहिणो काओ एत्थ रमणीओ। के रायाणो काणि व इमाणि रयणाणि चोद्दस वि ।। २३२८ ।। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं चिंतिज्जतं सव्वं पि एयमाभाइ तत्तबुद्धीए । सुमिणिंदयालसरिसं, खणमेत्तमुवाहिरमणीयं ।। २३२९ ।। अन्नं च चक्कवट्टित्तमेत्थ अइबहुयपुन्नरूवं ति । भणइ जणो मह पुण अज्ज देवि ! विवरीयमाभाइ ।। २३३० ॥ कह नाम ताई पुन्नाई जाइं पावस्स कारणं इंति । रज्जं च पावरूवं रागद्दोसाइजणणाओ ।। २३३१ ।। इच्छाअणिवित्तीए, आरंभपरिग्गहा जहिं गया। जायंति जियाण सया, तं पावं कह न चक्कित्तं ॥ २३३२ ।। एगिदियाइपंचिंदियंतजीवाण जत्थ वाघाओ । जायइ अणवरयं चिय तं पावं कह न चक्कित्तं ॥ २३३३ ।। हाससयकोहलोहेहिं जत्थ जीवोवघाय अलियं च । जंपिज्जइ अणवरयं, तं पावं कह न चक्कित्तं ।। २३३४ ।। सच्चित्ताचित्तोभयदव्वाइं जणस्स जत्थ घेप्पंति । इच्छं विणा हढेण वि तं पावं कह न चक्कित्तं ।। २३३५ ।। जत्थ न मेहुणविरई., जत्थ न इंदियजओ न दंडाणं । निग्गहणं थेवं पि हु तं पावं कह न चक्कित्तं ।। २३३६ ।। ता पावसरूवं पि हु एयं पुन्नोदयस्स एवं ति । भणइ जणो उण तं खलु विवक्खनामस्स तुल्लं ति ॥ २३३७ ।। तहा हि - अंगारओ वि भन्नइ जह लोए मंगलो त्ति नामेण । विट्ठी भद्दा विसमवि महुरं लोणं च मिट्ठति ।। २३३८ ॥ तह चेव पावकरणं पावसरूवं पि एयमिह पयर्ड । भन्नइ जणम्मि पुन्न, बुद्धिविवज्जासभावेण ।। २३३९ ॥ जे खलु विमूढचित्ता, रज्जं कप्पंति सुहसरूवं ति । ते रइहरं ति मण्णंति सप्पबिलसंकुलं पि गिहं ।। २३४० ॥ जे उण तिहुयणपुज्जा हवंति रज्जम्मि वट्टमाणा वि । ते पुव्वविहियसुकयाणुभावसंभूयमाहप्पा ।। २३४१ ।। पुन्नाणुबंधिपुन्नं अहवा वि हु पुनपावखयहेऊ । तो जेसिं तेसिं चिय, रज्जं पुन्नं ति सिद्धमिणं ।। २३४२ ।। पावाणुबंधिपुन्नोदएण जं पुण हविज्ज रज्जं पि । तं पावं चिय सिद्धं निरयाइनिंबधणत्तेण ॥ २३४३ ॥ किंच - पुनं वा पावं वा, हवेउ रज्जं तहा वि जइ होज्ज । निरुवद्दवं सरीरं, ता जुत्तो तम्मि पडिबंधो ।। २३४४ ॥ अह पुण इमं जराए रोगेहिं व अहव सव्वनासेण । पीडिज्जई अयंडे, कयलीखंभो व्व पवणेण ॥ २३४५ ।। ता किं इमाए लच्छीए चित्तरूवाइ अहव रज्जेण । तयभावे निव्विसयं सयलं गयणयलकुसुमं व ।। २३४६ ॥ तहा - विसयामिसलोभाओ मच्छ व्व विणासमिति इह जीवा । बीहंति न पावाणं, जाणंति न नारयाइदुहं ॥ २३४७ ॥ अवरं च किं पि पडिहाइ जमिह रमणीजणाए रमणिज्जं । रविकिरणतवियपालेयपिंडमिव तं पि पलयहयं ॥ २३४८ ॥ मणभवणे पज्जलिए न किंचि सुविवेयदीवतेएण । पेच्छामि नियडमाणं मोहतमे सयलमविभुयणं ॥ २३४९ ।। ता लोयवत्तिणीए, संचरिऊं कह णु जुत्तमेत्ताहे । सद्दीट्ठीण वि अम्हाण अंधमग्गे व्व सावाए ।। २३५० ।। अवि यअविवेयवाउणा जो, कसायविसइंधणोवचयपत्तो । उल्लासिओ भवग्मी, तं झाणजलेण विज्झविमो ॥ २३५१ ।। जीवो चिणेइ कम्मं, सरागहियओ विमुच्चइ विरागो । ता रागहेउरज्जं, चइडं मोक्खत्थमुज्जमिमो ।। २३५२ ॥ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिरिमइदेवी पहवइ न रागतिमिरं, विवेयदीवम्मि पज्जलंतम्मि । न हु जलणजलियपासट्ठियाण परिभवइ सीयदुहं ॥ २३५३ ।। पामारोगेसु व जो, करेइ कंडूयणं व भोगेसु । सुहलवलुद्धो रागं, आरोग्गं सो कहं लहिही ।। २३५४ || भवसयसहस्सदुलहं, मणुयत्तं पाविऊण जे जीवा । पारतहियं चिंतंति नेय ते वंचिया वरया ।। २३५५ ।। मोहदढमूलबद्धाओ ताण कह जम्ममरणवेल्लीओ । तुट्टंति मणुयजम्मे वि जेण छिंदंति तवअसिणा || २३५६ || उग्गतवखग्गसंसग्गनिहयविसइंदियारिवग्गोहं । ता वर नेव्वुइ नारिं वरेमि को मज्झपरिपंथी || २३५७ ।। इय भणिऊणं हिरिमइदेविं पुणरवि नरिंदसद्दूलो । नियचित्तं संबोहइ, पडिहयअविवेयमाहप्पो || २३५८ ।। हे चित्त ! विरम रमणिज्जरमणिसंगाओ मंच अणुबंधं । रिद्धीसु होसु मह चिंतियत्थसिद्धीए अणुकूलं ।। २३५९ ।। परिहर भवपडिबंधं तुज्झं मज्झं च जेण संबंधो। जाव न केवललाभो ताव च्चिय एत्थ जियलोए || २३६० || इय जाव निययचित्तस्स नरवई देइ तत्थ अणुसट्ठि । ताव गुणप्पहसूरी, समोसढो बीयउज्जाणे || २३६१ || फासुयभूमिपएसे, असेससत्तोवरोहरहियम्मि । हियकरणरओ रयतमविवज्जिओ जियकसायरिऊ || २३६२ || तं जाणिऊण उज्जाणपालओ (वर) महामुणिं पत्तं । बहुसाहुसंघसंहियं, उग्गतवच्चरणसुसियंगं || २३६३ || हिरिमइदेवीसम्मुहमह भणइ निवो मयच्छि ! अणुकूलं । सव्वस्स वि कल्लाणं करेइ दइवं ति सच्चमिणं ।। २३६४ ॥ तुझं मज्झं च जओ, दोण्ह वि संजायएगचित्ताणं । सूरीण इहागमणं, जं तं खु अणब्भवुट्ठिसमं ॥ २३६५ || ता देवि ! भणसु संपइ किं कायव्वं ति पुच्छिए रन्ना । पभणइ हिरिमइदेवी हरिसवसुब्भिन्नरोमंचा || २३६६ || देव ! अकम्हा अम्हं, गुरूआगमणं जमेत्थ संपन्नं । अवलंबमिट्ठसुविसिट्ठसिद्धिचिंधं तयं मन्नं ॥ २३६७ || पडिपुन्ना सामग्गी, जओ न पुच्छइ अपुन्नवंताणं । न हु रयणरासिवुट्ठी संजायइ मंदपुन्नगिहे || २३६८ ॥ ता झत्ति उज्जमं कुणसु देव ! गम्मउ गुरुस्स पामूले । न हु इच्छियत्थलाभे कुणइ विलंब अयाणो वि ॥ २३६९ ॥ इय तव्वयणं आयन्निऊण गुरुआयरेण चक्कहरो । तीय च्चिय करयलठावियग्गपाणी विणयसारं ।। २३७० ॥ उट्ठेऊण पहट्ठो सत्तट्ठपयाई सम्मुहो गंतुं । तिक्खुत्तो कुणइ निवो, गुरूणो पंचगपणिवायं ।। २३७१ ।। नियविट्ठरउवविट्ठो पुणो वि आइसइ तयणु पडिहारं । जाणावसु जह तुरियं, सव्वस्स वि सूरिआगमणं ।। २३७२ ता हट्ठमणो एसो रन्नो आणं पडिच्छिय सिरेण । संपाडिऊण य पुणो, नरवइणो कहइ विणण || २३७३ || तो राया जयवारणमारूढो पउरपुरजणाणुगओ । गयतुरयरहभडुक्कडचउरंगबलेण परिकलिओ || २३७४ ॥ परमाए रिद्धिए पत्तो सूरिस्स अंतिए तत्थ । अवयरिऊणं गयवरखंधाओ विहीए नमइ गुरुं || २३७५ || सेसं पि तवस्सिजणं नाणाविहरिद्धिलद्धिसुपसिद्धं । निच्चतवतेयवंतं, गहसुक्कमउ व्व जोइसगणं व || २३७६ (गीइया) दट्ठूण विविहसज्झायझाणतवचरणसोसियसरीरं । विणओ णओ नरिंदो, पणमइ मइमंतसिरितिलओ || २३७७ || भत्तिभरनिब्भरमणो पुणो वि नमिउं गुणप्पभं सूरिं । लग्गो अणलियगुणसंथवेण तं थोउमह राया || २३७८ ॥ तुम्ह नमो समुज्जलगुणगणमणिनियरसायरमुणिंद ! नियवयणामयअवहरियभव्वमिच्छत्तविसपसर ! ।। २३७९ ।। जे तुह मुणिंद ! कमकमलजुयलममलं सरंति सयकालं । दोगच्चहराइ हवंति धम्मलच्छीए ते ठाणं ।। २३८० ॥ 1 ९१ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं संजमिओ त्ति पसिद्धिं, पत्तो वि कहं नु बंधणविहीणो । कह वा निक्कामो वि हु, कामे पूरेसि पणयाण ।। २३८१ ।। दारियमोहो वि कहं अप्पडिबद्धो मुणिंद ! महिलासु । अगहियसुवन्नसिद्धी वि कह णु निक्किचणवरिट्ठो ।। २३८२ कह निम्ममो वि भुवणत्तयस्स सामित्तणं पयासेसि । कह वा नरिंदसम्माणिओ वि तं रायपरिचत्तो ॥ २३८३ ।। मयरद्धयढयरेणं, विणडिज्जतं कसायचोरेहिं । लुटिज्जतं मं नाह ! रक्ख तुह सरणमल्लीणं ॥ २३८४ ।। जं पायजुयलदंसणउक्कंठियमाणसस्स मह नाह !। तुम्हागमणं तं मुच्छियस्स पीऊसवुट्ठिसमं ॥ २३८५ ।। तुरयगयपत्तिरहवरनरिंदनिहिरयणइत्थिवग्गूहिं । संसाररक्खसाओ नत्थि परित्तागमं नाह ! ।। २३८६ ॥ मोत्तुं तुम्ह पसायं अचिंतचिंतामणिं व अइदुलहं । सासयसुहेक्कमूलं निद्दलणं पावपडलस्स ।। २३८७ ।। जेहिं तुमं सामि ! विचिंतिओ सि तेसु वि कयत्थया जाया । जे पुण तुट्ठा पेच्छंति ताण भण किं न पज्जत्तं ॥ २३८८ तं चिय निवडताणं अवलंबो नरयअंधकवम्मि । तं चेव मोक्खधवलहरसिहरचडणम्मि सोवाणं ।। २३८९ ।। उवसमदमाइएहिं वियसियकुंदुज्जलेहिं तुह नाह ! । पायडियं भुवणमिमं गुणेहिं चंदस्स व करेहिं ।। २३९० ।। देसणपभायसमए नाणपहापयडिए वि पइमग्गे । जाण न दिट्ठी विमला मुणिरवि ! ते घूयसारिच्छा ।। २३९१ ॥ हिययगयं भिंदंतस्स विविहभवसंभवं पि तुज्झ तमो। नवरवि ! जेहिं न दिळं वयणं ते अहलजम्माणो ।। २३९२ ॥ जं न चिराओ वि सक्का सिवपयविं लंभिउं परे पउणं । सिग्घं तं पावितो न कुणसि मणविम्हयं कस्स ।। २३९३ ।। सासयसुहसिरिपडिबंधणा य विजए कसायसत्तूण । भावुल्लासो जो नाह ! तुम्ह सो तुम्ह जइ विसओ ।। २३९४ ॥ एवं काऊण थुई मुणिणो पुण पत्थणं कुणइ राया। देहि मह नाह ! निययं दिक्खं सह दुविह सिक्खाए ।। २३९५ ॥ जओ - नीसेसदुक्खतरुकंदकप्पणी तियसमोक्खसुहजणणी । घणमोहपडलनिन्नासणी य दिक्खा तुह मुणिंद ! || २३९६ ।। इय भणिऊण निसन्नो, पुरओ सो मुणिवरस्स विणएणं । वसुहायलम्मि सुद्धे, जोडियकरकमलवरजुयलो ।। २३९७ ॥ एत्थंतरम्मि समयं, सव्वतवस्सीण तम्मि दिट्ठीओ । पडियाओ सविग्गहविणयरासिसंकं वहताणं ॥ २३९८ ॥ मुणिणा वि धम्मलाभप्पयाणपुव्वं इमस्स संलत्तं । नरवर ! उचियाचरणं, कायव्वं चेव विउसेहिं ॥ २३९९ ।। उचियाचरणम्मि जओ, न पवित्ती अणुचिए वि न निवित्ती । कल्लाणहेउभूया भवाभिनंदीण होइ भवे ।। २४०० ॥ सयमेवब्भुवगमिउं तं तुमए जं मए य भणियव्वं । सविवेया उ च्चिय अहव होज्ज गरुयाण सुपिवत्ति ।। २४०१ ।। इय एवमाइवयणेहिं नरवई नट्ठदुट्ठ विसयतिसं । अणुसासिऊण सूरी, अणुमन्नइ दिक्खगहणत्थं ।। २४०२ ।। एवं पयट्टसंभासणाण दोण्हं पि ताण अन्नोन्नं । तक्कालसमुग्गयदसणकिरणउज्जोवियदिसाण ।। २४०३ ।। धरिएक्कचंदगयणयलजिणणवंछाइ महियलं सहइ । जणमणहरपयडियइंदुजुयलजुत्तं व तव्वेलं ॥ २४०४ ।। (जुयल) दिक्खाणुन्नालद्धीए नरवई जायबहलरोमंचो। तो सामयदिट्ठीय व तक्खणकोरइयदेहलओ ।। २४०५ ।। एत्थंतरम्मि पुणरवि नमिऊण गुणप्पहस्स पायजुयं । सूरिस्स भणइ जा कुणइ रज्जसुत्थं मुणिपहाण ! ।। २४०६ ।। ता तुम्ह चरणमूले, दिक्खागहणेण माणुसत्तमिणं । सहलीकरेमि जलनिहिपडियं रयणं व अइदुलहं ।। २४०७ ।। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिरिमइदेवी इय भणिउं उठ्ठित्तु ताओ ठाणाओ नरवरो तुरियं । पत्तो निययावासं देहट्टिइयाइ तो कुणइ ।। २४०८ ॥ कालनिवेयणकज्जे विणिउत्तो पढइ एत्थ पत्थावे । रन्नो पत्थुयकज्जम्मि उज्जमं संजणेमाणो ॥ २४०९ ।। उदयावत्थो होउं असमपयावं पयासिउं भुवणे । एसत्थमेइ सूरो, वेरग्गं व पोसेउं ॥ २४१० ।। अवि य - किं भणिमो इयरजणाण ताव देवा वि अत्थिरपयावा । इय कहिउं व सरीराण अत्थुमुवयाइ एस रवी ॥ २४११ ।। दिवसे च्चिय पुरिसाणं फुरइ पयावो सिरी परुवयारो । तव्विलए जं रविणो पेच्छ गलियं समग्गमिणं ॥ २४१२ ।। अन्नं च - पियसंगमूसुयाणं रमणीणं नयणबाणपहरेहिं । रुहिरविलत्तं व रवी तणुमरुणं वहइ नरनाह ! ॥ २४१३ ॥ पुव्वदिसं र(......)खलंतपाए रविम्मि समुविते । मुणियावराहकुवियप्पवारुणी धरइ सुहमरुणं ।। २४१४ ।। रविरमणकरग्गहणे, निवसियकोसुंभवत्थजुयल व्व । पच्छिमदिसा विरायइ, संझाराए वियंभंते ।। २४१५ ।। दिणयरवल्लहसंगे वरुणदिसा सहइ पयडमुहराया। संझासहीए सयमेव नाइ कयघुसिणमुहलेवा ॥ २४१६ ।। परकज्जुज्जयचित्तो पुरिसो किच्छं गओ वि संपुज्जो । अत्थगिरी अत्थमणे वि तेण सीसम्मि धरइ रवी ।। २४१७ ।। मइ पेच्छंते वि तमेण मा जगं अभिभवेज्ज उ इमं ति । कलिऊण विनिब्बुड्डो, पच्छिमजलहिम्मि दिणनाहो ।। २४१८ पडिवन्ने निव्वहणं छज्जइ दिवसस्स चेव एक्कस्स । नियसामिस्सत्थमणे अत्थमिओ जो समं चेव ।। २४१९ ॥ वलिओ विहि च्चिय परं, देहीण न पोरुसं न य सहाया । स तहा पयाववंदणवई वि जं गंजिओ तमसा ।। २४२० ।। गुणवज्जियम्मि देसे, गुणहीणा वि हु महत्तणमुर्विति । अत्थमिए दिणनाहे तमं पि कह पिच्छ वित्थरियं ॥ २४२१ ।। फुरियपयावो तरणि व्व होउ एक्को वि अप्पयावेहिं । बहुएहिं वि किं कीरउ, तारेहिं व हीणपुरिसेहिं ।। २४२२ ।। इय कहइ व उत्थरिओ तमनियरो सव्वओ वि भुवणम्मि । रयणियर घूयचिप्पिरियमाइपक्खीण सद्देहिं ।। २४२३ ॥ (जुयलं) नीडाभिमुहविहंगमविविहारावेहिं रविविओयम्मि । सोयधारमुहीओ दूरं विलवंति व दिसाओ ॥ २४२४ ॥ अत्थमिए दिणनाहे संझाराओ वरत्तवत्थेहिं । पिहिउं कालनरेणं पक्खित्ते पच्छिमसमुद्दे ।। २४२५ ।। तारयघणं सुबिंदूहिं उयह रोयंति दिसपुरंधीओ । निस्सई गुरुदुक्खेण मुक्कतमदीहकेसाओ ॥ २४२६ ।। (जुयल) मलिणसहावेण तमेण गंजियं पेच्छऊण भुवणमिणं । रविविरहम्मि भएण व दिसाओ दूरं पणट्ठाओ ।। २४२७ ।। पयडित्तु भुवणगेहं करेहिओ उवयरम्मि रविदीवे । दीसइ जणेहिं तं कज्जलं व पसरंतमंधतमं ।। २४२८ ॥ विरहग्गिधूमधूसरदेहेहिं व तिमिरमइलियतणूहिं । कंदंतेहिं सकरुणं विहडिज्जइ चक्कमिहुणेहिं ॥ २४२९ ।। जं आसि चक्कमिहुणं सुहियं दियहम्मि तं पि रयणीए । ओ पिच्छ विरहविहुरं हद्धी विहिविलसियं अहवा ।। २४३० रयणिवहूए दिन्नाओ दीवियाओ व्व ससिपियागमणे । रेहति पज्जलंतो सहिओ सेलग्गसिहरेसु ।। २४३१ ॥ कुनरिंदेण वि रविणा चंडकरुत्तावियं जयं दटुं । सीयलकरहिं निव्वाविउं व अह उग्गओ चंदो ॥ २४३२ ॥ उदयायलगहणनिवासिसपरसरपहरविहुरहरिणस्स । रुहिराविलं व रेहइ, मंडलमुदयारुणं मियंकस्स ।। २४३३ ।। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं खणमुग्गमारुणं बिंबमंबरे भाइ रयणिनाहस्स । संझासहीए पुव्वंगणाइ जा सुयणसिहरो व्व कओ ॥ २४३४ (गीतिका द्वयं) अवरोवरुद्धरयणी नियवहुमोयावणिद्धसंरद्धे । सारंगधणुहसंलग्गकिरणबाणे मुयंतम्मि ।। २४३५ ।। उदयायलमारूढे रहं व लद्धोदए निसानाहे । उय मोत्तुं भुवणयलं पलाइ भीओ व्व तिमिरभरो ॥ २४३६ ।। (जुयलं) हरिणो भएण लीणं गुहासु गिरिणो अवंति तिमिरकरिं । सरणागयवच्छलया पयइ च्चिय अहव तुंगाण ॥ २४३७ ।। करदंडताडणेहिं, नहाओ निव्वासियं निसावइणा । विरहिणिमणेसु मुच्छच्छलेसु सभयं तमो विसइ ।। २४३८ ॥ तमचंडाले निसाओ य छिक्का गयणवीहिमोइन्ना । वि हु महमहद्दहे कुणइ अत्तसुद्धिं व मज्जंती ॥ २४३९ ।। ल्हसिरतिमिरुत्तरीया तारयगणसेयबिंदुदंतुरिया । मयणाउर व्व रेहइ नहलच्छी पेच्छिउं तरुणरायं ।। २४४० ॥ (गीतिका) सयलं पि दिणं खरतरणितावतवियन्ति संपयं नलिणी । अमयकरकिरणलंभियसुहव्वओ निब्भरं सुयइ ।। २४४१ ।। सिसिरंसुकरामरिसम्मि पयडकेसरमिसेण कइरविणी । वियसंतकुमुयवयणा बहलं पुलयं समुव्वहइ ।। २४४२ ॥ नियतेयवुड्ढिहेऊ, जह खलु ससिणा पयासिया रयणी । तह कुमुइणी वि अहवा, निरवेक्खा सुयणउवयारा ॥ २४४३ कमलाण किं व हरियं, किं वा कमयाण दिन्नमेएण । मउलिंति हसंति य ताई पेच्छ जं ससहरस्सदए ।। २४४४ ।। गुणहीणा उ विरज्जइ सव्वो गुणवंतमब्भुवेइ जओ। कमलं मउलियमुज्झिय, गया सिरी वियसियं कुमुयं ॥ २४४५ सीयलकरे वि जणमणहरे वि चंदेण सम्मुहानलिणी । सकलंकेणं लज्जइ, अहवा सउणासओ सव्वो ॥ २४४६ ।। निम्मलगुणेहिं संगो, मलिणाण वि मलिणयं समुप्फुसइ । चंदस्स जेण संगे, जायं गयणं पि विमलयरं ।। २४४७ ।। वियसंतकुमुयनियरं, सरं च गयणं च पयडतारगणं । अन्नोन्नं उवमेयं, जायं ससिकिरणपसरम्मि ॥ २४४८ ॥ ससहरकरावहरिए, तिमिरे नीले पडे व्व सोहंति । सियकुमुयप्पयरा इव, गहा नहे कुट्टिमतले व्व ।। २४४९ ।। रोहिणिपियस्स वुड्ढीए जलनिही पेच्छ वुड्ढिमावन्नो। अहवा परुन्नइ फलाओ चेव गरुयाण रिद्धीओ ।। २४५० ।। पेच्छह ससिस्स उदए, वुड्ढी जह होइ सलिलरासिस्स । अहवा जडबुद्धीए बुद्धी जडहीण किमजुत्तं ।। २४५१ ॥ उग्गमणे जह बिंबं, महंतमाभाइ रयणिनाहस्स । न तहुत्तरकालम्मि वि, गरिमा सव्वस्स वा उदए ॥ २४५२ ।। उज्झियरागस्स जहा ससिस्स तेओ तहा न पुव्वं पि । कत्तो व्व पहापसरो, उक्कडरागाण जंतण ॥ २४५३ ।। वज्जियराओ कहइ व्व ससहरो चत्तपुव्ववहुसंगो। विमलेहिं रच्चियव्वं, संगि च्चिय नूण रमणीसु ।। २४५४ ॥ रमणीण पणयकोवेण माणगंठी मणम्मि जो आसि । ससिणा सो नियकरताडणेण उय किह णु विद्दविओ ॥ २४५५ चंदस्स मंडलं पासिऊण उक्कंठियाण पियसंगे । रमणीण रागजलही, सविलासमुवेइ संवुड्ढि ॥ २४५६ ॥ जह जह आरुहइ ससी, सणियं सणियं नहम्मि उवरुवरि । तह तह विलासिदिट्ठीओ वासभवणेसु निवडंति ।। २४५७ कयकुंकुमंगरागाओ रइयरमणीयचारुवेसाओ । रणझणिरनेउराओ, मणिमेहलमंडियकडीओ ॥ २४५८ ।। नियवल्लहघरगमणूसुयाओ तुरियं पि गंतुकामाओ। सणियं सरंति अहिसारियाओ थणरमणभारेण ॥ २४५९ ।। सज्जियसेज्जं सेज्जंतसज्जसज्जुक्कफुल्लतंबोलं । कुणमाणिं नियदेहस्स मंडणं विविहभंगीहिं ।। २४६० ।। पविसंतो च्चिय दइओ मयणवियारे निए वि पयडंति । पियमुक्कंठाइ खिवेइ तीए कंठम्मि भुयपासं ।। २४६१ ।। Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिरिमइदेवी अंगाणं परिरंभो अहरस्स य खंडणम्मि संवरणं । मुद्धाहिं जं विहिज्जइ, पिएसु लज्जालुयत्तेण ।। २४६२ ।। तेणं चिय ताओ मणोहराओ तेसिं हवंति अहिययरं । विवरीयसहावो च्चिय, कामो अहवा पसिद्धमिणं ।। २४६३ (जुयल) करचरणताडणेहिं, दंतग्गहनहविलेहणेहिं च । दुक्खाई जाइं ताई वि, सुहाई कामीण ही मोहो ।। २४६४ ।। पणएण माणिणी पणमिऊण पाएसु तोसिया संती । गाढं आलिंगइ मयणविहुरमह पिययमं का वि ।। २४६५ ।। भालयलरइयतिलयं कवोलथणलिहियचित्तपत्तलयं । चाडुसए कुणमाणं तरुणजुवाणं नियपियाए । २४६६ ।। दटुं व रयणिनाहो आरूढो गयणमंडलुद्देसे । भणइ व पसारियकरो, पेच्छइ रागीण ललियाई ।। २४६७ ॥ कीय वि कयसंकेओ, रविअत्थमणे पिओ न संपत्तो । जामे वि जामिणीए, गयम्मि अन्नाए आसत्तो ॥ २४६८ ॥ तो तीए विरहदवदहणदज्झमाणाए गरुयदुक्खेण । जाया सहस्सजाम व्व विस्सुया जा तिजामा वि ।। २४६९ ।। सच्चं अमयकरो च्चिय सन्निहियपियाण एस केसि पि । विरहीण पुणो सच्चेण (विसं ?) रयणीयरो एस ॥ २४७० जेसि न वल्लहा न य विओयदुक्खं खणं पि वसइ मणे । तेसि कलहोयमउ व्व दप्पणो अणुभयसहावो ।। २४७१ ।। इय एगसहावो च्चिय अणेगरूवत्तणं पयासिंतो। कहइ व्व सयलवत्थूण णेगधम्मत्तमणिपयर्ड ।। २४७२ ।। अह बहुलीलाहिं विलासिणीहिं सह विलसिरं जणं दटुं। ईसाइ व उत्थरिया निद्दा पियपणइणिसरिच्छा ।। २४७३ ॥ तीए निरुद्धदिट्ठीविवससरीरो तहा कओ एसो । वेएइ जह न सोक्खं, न दुहं न परं न यत्ताणं ।। २४७४ ।। राया वि विहियतवेल्लउचियकायव्ववित्थरो पच्छा । मंतीण अभिप्पायं निययं सव्वं कहेऊण ॥ २४७५ ।। वासहरमणुप्पत्तो सह देवीए ससिप्पहाए तहिं । इट्ठविणोएण खणं ठाऊणं सेवए निदं ।। २४७६ ॥ अह रयणीअवसाणे, उच्छलिए मंगलिक्कहेउम्मि । पाहाउयतूररवे खणमेत्ताओ य उवसंते ॥ २४७७ ।। रयणी गलियप्पाय त्ति चिंतिउं पविसिऊण अत्थाणे । मागहजणो पयट्टो पढिउं गंभीरसद्देण ।। २४७८ ।। निम्मलदिट्ठिप्पसरावहारकरणेण सावराहं व । रयणिच्छलेण अन्नाणतिमिरमोसरइ तुह देव ! ।। २४७९ ।। अन्नं च - सुपसत्थहत्थसुस्सवणभूसियं सोहियं पुणव्वसुणा । चित्ताभरणधणिट्ठाहि माणजेठंकियं दद्धं ॥ २४८० ॥ लुद्धो हरिउ मणो पासिऊण सुत्तं जणं इमं सयलं । घेत्तूण निसं रमणि व्व जाइ निव ! एस रयणियरो ॥ २४८१ ।। (जुयल) अवि य - संपुन्नं अकलंक सया वि उदिओदयं तुह मुहिंदुं । दठूण व लज्जंतो चंदो उय जाइ अवरदिसं ॥ २४८२ ।। तहा - नीलमिव कुट्टिमम्मि व गयणयले तारए रयकण व्व । पयडियबहुयरवाया, पमज्जिउं जाइ रयणिवहू ।। २४८३ ।। अपरं च - पडिचंदस्स व पडिबोहउदयलच्छि निए वि तुह राय !! सह निसपियाइ पविसइ, ससी ससंको व्व अवरुदहिं ।। २४८४ सिंदूरछुरियसीमंतय व्व संझाए सहइ पुव्ववहू । ता पसिय पसिय सामिय ! मुंचसु सयणीयमेत्ताहे ।। २४८५ ।। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं विहसंतवयणपंकयपयडियईसीसिदसणकिरणेहिं । कुण पाहाउय दीवे वि बहलतेए नरवरिंद ! || २४८६ ॥ तुह निम्मलजसपब्भारधवलिमा निज्जियं व लज्जंतं । ओ कुमुयवणं कुमुयायरेसु संकोयमुवयाइ || २४८७ ॥ मित्तोदयम्म वियसंति जाई पंकयवणाई ताइं पुणो । सयलजयपायडगुणं, तुह हिययं अणुसरंति व्व ॥ २४८८ ॥ अइदूरविहडियाइं वि घडंति जह पेच्छ चक्कमिहुणाई । मित्तोदयम्मि कस्स व, न होज्ज भण इट्ठसंजोगो || २४८९ वावारिंतो कमलागरेसु दिवसाहिवो करे उचिए । सोहइ तुमं व अणुरत्तमंडलो उदयमणुपत्तो ।। २४९० ।। उदयाचलमारोहइ, मित्तो तुह एस विविहकज्जेसु । किं किं सिद्धं किं वा न सिद्धमिइ पेच्छणत्थं व || २४९१ ।। मागहजणगीयमिणं, गाहाकुलयं निसम्म नरनाहो । सयणीयाओ समुट्ठइ नमो जिणाणं ति भणमाणो ।। २४९२ ।। काउं देहावस्सयमाई हाओ विलित्तगत्तो य । देवालयं पविट्ठो वरहत्थाहरणसोहधरो ।। २४९३ ।। अट्ठप्पयारपूयं काउं तत्थ य जिणिदपडिमाण । संथुणइ भावसारं सयत्थथुइथोत्तमाईहिं ।। २४९४ ।। दारग्गलग्गनिम्मलरत्तमणिज्जोइभासुरसरीरो । चिइवंदणं करित्ता, नीहरमाणो तओ राया ।। २४९५ ।। उदयाचलसिहराओ समुग्गमंतस्स दिवसनाहस्स । लच्छिमतुच्छं उव्वहइ तक्खणं जणक्याणंदो ।। २४९६ ।। (जुयलं ) तत्तो अत्थाणभुवं पत्तो तत्थ य विचित्तरयणेहिं । किम्मीरियम्मि कलहोयमइयसिंहासणे पवरे ।। २४९७ । उवरिट्ठियमिउमसूरे, दिव्वंसुयपावुए स पावीढे । पिट्ठीसुहमत्तवारणविरायमाणो समुवविट्ठो ॥ २४९८ ॥ एत्थंतरम्मि सामंतमंतिमंडलियमाइलोएहिं । नमिओ धरणियलमिलंतमउलिमणिमउडकोडीहिं ॥ २४९९ ॥ अह तत्थेव निवासी, पडिहारनिवेइओ समणुपत्तो । जोइसविज्जाकुसलो, सिद्धाएसो त्ति जोइसिओ || २५०० ।। नरवइनि उत्तपुरिसेण वियरिए आसणम्मि उवविट्ठो । आसीवायपुरस्सरमेवं भणिउं च आढत्तो ।। २५०१ ।। अज्ज तिही सुपसत्था, वारो सारो वरं च नक्खत्तं । जोगो उ सिद्धिजोगो, नरिंद ! करणं व सुहकरणं ॥ २५०२ ।। जं पुण समग्गगहबलसमन्नियं अज्ज होहिई लग्गं । रयणीए पढमजामे, तस्सम्हे वन्निमो किंच ॥ २५०३ ।। ता तुज्झमणाभिमयं एत्थ पसत्थं जमित्थ करणिज्जं । तं कुणसु निव्वियप्पं अपमत्तो अज्ज नरनाह ! ।। २५०४ ।। इय सुणिउं नरनाहो, पमायभरमंथराए दिट्ठीए । वयणाई पसन्नाई पलोयए मंतिमाईण || २५०५ ।। विहुहियगय से भावं नाऊण बिंति वयणमिणं । देव ! विही अणूकूलो अणुकूलं कुणइ सव्वं पि ।। २५०६ || | ९६ जओ कत्थ व तुह चित्तमिणं, सिद्धाएसस्स कत्थ वा गमणं । सव्वोवाहिविसुद्धं, कत्थ व अज्जेव दिणमेवं ॥ २५०७ ॥ तामा देव ! विलंबो कीरउ मणवंछियत्थसिद्धीए । जम्हा अउन्नवंताण मिलइ एवं न सामग्गी ॥ २५०८ ॥ अंगविलग्गाभरणं राया तो देइ तुट्ठचित्तो से । अन्नं च बहुपसायं, करेइ वित्ताइदाणेण ।। २५०९ ।। भाइ य जोइसिय! तए रयणीए अज्ज जं समाइट्ठे । लग्गं तम्मि वि लग्गे रज्जं कुमरस्स वियरिस्सं ॥ २५१० ॥ इय जंपिऊण तं पेसिऊण रज्जाहिसेयसामग्गिं । काराविऊण सामंतमंतिमाई उ पुण भणइ ॥ २५११ ।। जो एस कुमरजेट्ठो जियसत्तू नाम अत्थि मह पुत्तो । सो तुम्ह होउ सामी, अहं खु दिक्खं पवज्जिस्सं ॥ २५९२ ॥ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ हिरिमइदेवी तो बिंति ते वि नरवर ! जियसत्तू ताव नियगुणगणेण । इण्हि पि सामिओ च्चिय अम्हं ता तत्थ किं भणिमो॥ २५१३ जओपडिवन्नवच्छलत्तं जणाणुराओ पियं वयत्तं च । पुव्वाभिभासियत्तं तहेव नयविणयसारत्तं ॥ २५१४ ॥ सूरत्तोदारत्तं गंभीरत्तं जिइंदियत्तं च । सोहग्गं आणासारया य अइसाइ रूवित्तं ॥ २५१५ ॥ एमाइ गुणगणो जह दीसइ अच्चब्भुओ कुमारस्स । तह सामित्तं इमिणा, सयमेव जणस्स पडिवन्नं ।। २५१६ ।। रज्जाभिसेयकरणं, ता कुमरे कस्स नाणुमयमेत्थ । कस्स व घयउन्ना सक्कराइ पडिया न रुच्चंति ।। २५१७ ।। किंतु तुह उवरि जो खलु इमस्स लोयस्स कोइ पडिबंधो । तेणेस तुह विओयं, खणं पि सहिउं न सक्किहइ ॥ २५१८ इय भणिए तेहिं तओ, नरनाहो भणइ जइ इमं एवं । ता मइ पडिबद्धाणं, मए समं चेव होउ वयं ॥ २५१९ ।। एवं चिय अविओगो, वि दीहरो इहरहा अवत्थाणं । रयणीए एगरुक्खे सउणगणनिवासतुल्लमिह ॥ २५२० ॥ जे खलु करेंति कम्म, एगं गुणठाणयं समारूढा। एगट्ठा मिलिऊणं आरुहिउं खवगसेढिन्ते ।। २५२१ ।। घाइचउक्कं खविऊण उत्तरोत्तरगुणिड्ढिमणुपत्तो । साइमणतं कालं, अविउत्ता ठंति सिवनयरे ।। २५२२ ॥ अविजोगमभिलसंता वि जे उ धम्मं करेंति नो मूढा । अन्नन्नासु गईसु ते कम्मगलत्थिया जंति ।। २५२३ ।। अन्नन्नगइगयाणं विभिन्नफलभिन्नकम्मकारीण । कत्तो संजोगो ताण होज्ज अणवट्ठियम्मि भवे ॥ २५२४ ॥ होज्ज व जइ संबंधो कह वि हु सो तह वि नो चिरं होइ । संसारियसंजोगा, सव्वे वि जओ विओगंता ॥ २५२५ ।। ता समुदाएणं चिय भो भो मोक्खत्थमुज्जम करिमो । समुदायकडा कम्मा, समुदायफल त्ति जेण फुडं ।। २५२६ ।। जे वि हु न तब्भवे च्चिय वच्चंति सिवं सुदेवमणुएसु । ते वि हु गंतूण परंपराइ गच्छंति निच्चपयं ॥ २५२७ ।। इय ते नरिंदवयणं, सुणिऊणं जायतिव्वसंवेगा। पडिवज्जति तह च्चिय सव्वे सवन्नुवयणं व ॥ २५२९ ॥ एत्थंतरम्मि पढियं कालनिवेएण - दिक्खाकयाहिलासं ! एस रवी जाणिऊण तं देव !! चिंताविम्हरियगमो व्व मंदं मंदं समुवयाति ॥ २५३० ।। अवि य - आखंचियरहतुरओ, मज्झत्थो होइऊण दिणनाहो । जाओ थिरो व्व तुह धम्मवयणसवणाभिलासेण ॥ २५३१ ।। एवं निसामिऊणं, दिणमज्झं जाणिऊण णरनाहो । उट्ठइ विसज्जिऊणं, सभाइ सेवागयं लोयं ॥ २५३२ ।। कुणइ य तक्कालोच्चियदेवच्चणभोयणाइवावारं । सद्दावइ जोइसियं तओ य सामंतमाई य ।। २५३३ ।। उच्चट्ठाणठिएसुं गहेसु छव्वग्गसुद्धलग्गम्मि । सिद्धाएसु व इठे इठं से नरवई हट्ठो ॥ २५३४ ॥ नियचक्कवट्टिलच्छीए समुचियाए महाविभूईए । रज्जाभिसेयमउलं, करेइ जियसत्तुकुमरस्स ॥ २५३५ ॥ पडुपाडपवज्जिरबहलतूररवभरियभूरिभूविवरं । पहरिसवसनच्चिरतरुणरमणितुटुंतहारलयं ।। २५३६ ।। लयतालमणोहरगिज्जमाणवरगेयखित्तजणनिवहं । आढत्तं तत्थ खणे वद्धावणयं सुहावणयं ।। २५३७ ॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तओपहरिसमय व्व लीलामय व्व आणंदसोक्खमइय व्व । साराई वोलीणा, निवेण सह सयललोयस्स ॥ २५३८ ॥ जाए पभायसमए कयपाभाउयसमग्गकायव्वो । सिरिअजियसेणचक्की, अत्थाणसहाए उवविट्ठो ॥ २५३९ ॥ जियसत्तुनरवरिंदस्स तयणु सामंतमंतिपमुहेण । लोएण कीरमाणेसु विविहमंगल्लनिवहेसु ।। २५४० ।। करिवरतुरंगमणिरयणवत्थआभरणाइदव्वेसु । ढोइज्जतेसु बहुप्पयारढोयणियलक्खेसु ।। २५४१ ।। दिज्जतेसु य नाणाविहेसु दाणेसु मग्गणगणस्स । नच्चंतेसु विलासिणिजणेसु करणंगहारेहिं ॥ २५४२ ।। आलाणखंभमुम्मूलिऊण मयवसपरवसत्तेण । पत्तो कत्तो वि निवंगणग्ग' मीए रायकरी ॥ २५४३ ।। तं गरुयसत्तजुत्तं, वरवंसुप्पत्तिसालिणमतुच्छं । सुपसत्थहत्थमवलोइऊण बीयं व अप्पाणं ॥ २५४४ ॥ राया तो वीरनरे, वावारइ हत्थिसिक्खअइदक्खे । तरलियचित्ते कोऊहलेण कोलावणत्थं से ॥ २५४५ ॥ तो एक्को वीरनरो, गाढं मुट्ठीए कुलिसकढिणाए । तं पविसिऊण पहणइ, थोरकरे करिवरं मत्तं ॥ २५४६ ।। तो तस्सुवरि पसारियगुरुहत्थो जाव धावई एसो। अवरेण आरियाए पच्छिमगत्तम्मि ता विद्धो । २५४७ ।। गरुययरमच्छरेणं गहणत्थं वलिय पच्छिमनरस्स । वेगेण जाव पिट्ठीए एइ तावऽन्नपुरिसेहिं ।। २५४८ ॥ पहओ पासे घणलेठ्ठएहिं तो सव्वओ वि रुंभंतो। निवआणाए सट्ठाणसम्मुहं नेउमाढत्तो ॥ २५४९ ।। एत्थंतरम्मि एक्को को वि नरो धावणम्मि असमत्थो । तं ठाणं संपत्तो, कालेण वि चोइओ कह वि ॥ २५५० ।। सो रोसपरवसेणं सुंडाडंडस्स गोयरे पडिओ । उल्लालिऊण खित्तो नहंगणे हत्थिणा तेण ।। २५५१ ॥ तो निवडतो गयणंगणाओ भयवसपणट्ठमणसन्नो । उड्ढमुहेणं पुणरवि पडिच्छिओ दंतमुसलेहिं ।। २५५२ ॥ हाहारवं करितो जणम्मि घेत्तुं करेण धरणीए । अप्फालिओ य तह कह वि जह गओ खंडखंडिं सो ॥ २५५३ ।। सारयमेहं पिव तं खणेण खीणं पलोइऊण निवो। अंगेण जीविएण य, तो चिंतइ जायनिव्वेओ ॥ २५५४ ।। अहह कह पेच्छ जीवाण जीवियव्वस्स चंचलत्तमिणं । तडिविलसियं पि जेणं, विणिज्जियं नियसरूवेण ।। २५५५ ।। एगावयाओ कहमवि जइ रक्खिज्जइ तहा वि अवराए । निज्जइ विणासमेयं, वाउद्धृयजलयवंदं व ॥ २५५६ ॥ तहा हि - रोगेरितो रक्खा जइ कीरइ कह वि वेज्जकिरियाहिं । तह वि हु इमस्स नासो हवेज्ज सत्थाइएहिं पि ॥ २५५७ ।। जम्हा हणेज्ज कोई, असिछुरियासेल्लसव्वलाईहिं । अहवा सयं पि घायं, करेज्ज रोसाइकारणओ ॥ २५५८ ।। पविसिज्ज जलणमज्झे, अहवा सलिले खिविज्ज अप्पाणं । देज्ज विसं वा कोई, पोएज्ज व सूलमाईहिं ।। २५५९ ॥ एएहिंतो कह वि हु अप्पाणं जइ वि को वि रक्खिज्ज । सीहाइगोयरगओ, तहा वि खयमासु वच्चिज्जा ॥ २५६० ।। तेहितो वि हु चुक्को, पडिज्ज विसयम्मि मत्तहत्थिस्स । अहवा वि दुट्ठभुयगाइयाण तत्तो वि जाइ खयं ॥ २५६१ ।। इय विविहावयसयकारणस्स मरणस्स कारणे पडियं । केच्चिरकालं जीयं, हवेज्ज भवगत्तवत्तीण ॥ २५६२ ।। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजियसेन अवि य - जह जीयं तह धणजोव्वणाइ जीवाण नो थिरं किं पि । तह वि हु मोहोवहयाण सासयं सव्वमाभाइ ।। २५६३ ।। तहा हि - एयं करेमि संपइ कज्जं अन्नं च परुकरिस्सामि । अवरं पि परारि पुणो, थिरस्स सव्वं पि सिज्झेज्जा ॥ २५६४ ॥ ऊसुगयाइ न सिज्झइ कज्जं सिद्धं पि सुंदरं न भवे । अहिणववओ हु अहयं, अत्थि य मह दव्वमइबहुयं ॥ २५६५ इय चिन्तितो बहुविहकज्जक्खणिओ खणा खणा जीवो। न मुणइ आसन्नं पि हु मरणं तो जाइ रंको व्व ॥ २५६६ ।। किंच विसयासाविणडिज्जंतमाणसो कुणइ तह अकज्जाई । न गणइ दुक्खइदुक्खं, न य संकइ पावबंधाओ || २५६७ ।। न य चिंतइ भयसंभंतहरिणिलोयणकडक्खतरलत्तं । लच्छीए अतुच्छाइ वि, पयत्तरक्खिज्जमाणाए || २५६८ ॥ न य तिणचटुलीचटुलत्तणंगणामाणसस्स मुणइ मणे । करिकन्नतालचवलत्तणं च जाणइ न आउस्स ।। २५६९ ।। न य परिभावइ अथिरत्तणं च जोव्वणधणस्स रुइरस्स । आसन्नजराजलमाणजलणजालावलीहिंतो || २५७० ।। एमेव अहिलसंतो नरो पगामं मणोरमे कामे । पावइ मरणमकामो, दुग्गइगमणं च अणुहवइ || २५७१ ॥ (कुलयं) अन्नं च - ९९ पुरिसं गुरुइड्ढयं पि कह वि खीणम्मि हवइ पब्भारे । बंधू निद्धा वि मुयंति रुक्खरुक्खं व पक्खिगणा ।। २५७२ पिक्कं सडतबिंटं फलं व एवं जियाण देहं पि । अन्नायपडणसमयं विद्धंसणधम्मयं चेव ॥ २५७३ ।। अन्ने वि अथिररूवा भावा संसारिया असेसा वि । जीवो वज्जियमेक्कं, मोत्तूण सुहासुहं कम्मं ॥ २५७४ ।। जम्हा तं चेव भवंतरम्मि वच्चइ समं जिएणेत्थ । अन्नस्स पुणो जोगो, सव्वस्स विओगपेरंतो ।। २५७५ ।। ता सुकयअज्जणे च्चिय, जुज्जइ सव्वुज्जमो विवेईण । जस्स पसाएण भवंतरे वि दुक्खाई न हु हु॑ति ।। २५७६ ॥ सुकयं च सव्वविरई, जीए पावासवाण पडिसेहो । सो य न जिणवरदिक्खं मोत्तूणऽन्नत्थ संभवइ ।। २५७७ ॥ दिक्खोवरिं च हिरिमइ जाईसरणम्मि मुणिवरं दतुं । तद्देसणं च सोउं, जो जाओ मज्झ अहिलासो ॥ २५७८ ॥ सो हत्थिहत्थपावियपुरिसविणासावलोयणमिसेण । तोरवणत्थं मज्झं, विहिणा पउणीकओ इन्हि ।। २५७९ ॥ तो तूण गुणप्पभसूरिसयासे वयं पवज्जामि । वज्जासणिं व गुरुगिरिसमाण पावाण कम्माण ।। २५८० ।। इय चिंतिऊण पभणइ, जियसत्तुनराहिवं भवविरत्तो । सिरिअजियसेणचक्की, पुत्तं सामंतमंतिजुयं ॥ २५८१ ॥ वच्छ ! तुमं संठविओ, रज्जम्मि पए पयाइ रक्खट्ठा। ता एसा नीईए पालेयव्वा तहा तुमए ।। २५८२ ।। जह न सरइ पुव्वनराहिवाण पयपालणिक्कचित्ताण । अवगणियसकज्जाणं नियकुलगयणुज्जलससीणं ।। २५८३ ।। अयं तु गुणप्पहरिचरणसेवापरायणो होउं । पडिवन्नसाहुधम्मो करेमि तवसंजमुज्जोयं ॥ २५८४ ॥ सामंताई य इमे तुह आणाकारिणो मए विहिया। एए य मए दिट्ठा जह तह तुमए वि दट्ठव्वा ॥ २५८५ ॥ सामंताई तओ भणिया भो भो इमस्स आणाए । तुब्भेहिं वट्टियव्वं सम्मं अइभत्तिमंतेहिं ।। २५८६ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० सिरिचंदप्पहजिणचरियं जम्हा अहिणवपहुणो, जोव्वणरूविड्ढिमाइमयमत्ता । हुति दुराराहा सेवयाण थेवं पि खलिराणं ।। २५८७ ।। अप्पाहिऊण एवं, दोन्नि वि वग्गे नरेसरो जाव । उठेऊण पहट्ठो, चलिओ दिक्खाइ गहणत्थं ।। २५८८ ॥ पाएसु निवडिऊणं, सोयाउलमाणसेण विन्नत्तो । पुत्तेण ताव चक्की, सगग्गयं खलियवायाए ।। २५८९ ।। जाव उवट्ठावेमी दिक्खामहिमं तुहेत्थ ताय ! अहं । ता केत्तियं पि कालं, विलंब मा ऊसूगो होहि ।। २५९० ।। तो उवरोहेण सुयस्स जाव कालं विलंबए कं पि । नरनाहो ताव सुओ वि तस्स कारवइ वरसिबियं ।। २५९१ ।। दिव्वमणिरयणकंचणटिव्विक्कियममलकिरणराहिल्लं । सिंहासणोववेयं, पुरिससहस्सेण वहणिज्जं ॥ २५९२ ।। अट्ठाहियामहूसवमणहं जिणमंदिरेसु सव्वेसु । तह य पयट्टावइ नट्टगेयवाइत्तरमणिज्ज !| २५९३ ।। दावेइ अभयदाणं घोसावेई आमारिघोसं च । एमाइविभूईए विमुंचई तयणु रायाणं ॥ २५९४ ।। न्हायविलित्तालंकियगत्तो सिबियाए तो समारूढो । सीहासणे निविट्ठो धरिएणं धवलछत्तेणं ॥ २५९५ ॥ तह सेयचामरेहि, वीइज्जंतो य उभयपासेसु । रह-हत्थि-तुरय-पाइक्क-चक्क-अणुगम्ममाणपहो ।। २५९६ ।। आभासितो आभासणिज्जमवलोयणिज्जमिक्खंतो । मग्गट्ठियजिणभवणेसु विविहपूयं करावितो ॥ २५९७ ।। दाविंतो दाणमपरिमियं च मग्गणगणस्स विविहस्स । दाविज्जतो अंगुलिसएहिं दूरट्ठियजणेण ॥ २५९८ ।। थुव्वंतो अणलियसंथुईहिं पुरओ पढंतभट्टगणो । वज्जिरचउव्विहाउज्जवज्जसंसद्दरुद्धनहो । २५९९ ॥ नीहरिओ गरुयविभूइभारविम्हइयदेवमणुयमणो । सो अजियसेणचक्की, पव्वज्जागहणतुरियमणो ॥ २६०० ।। नियनियविभूइविरइयनिक्खमणूसवपवड्ढियसुसोहो । तिसहस्ससंखनरवइगणो य लग्गो तयणुमग्गे ।। २६०१ ।। तह हिरिमइपमुहाहिं, देवीहिं समन्निओ य काहिं पि । उज्जाणं संपत्तो सिबियारयणाओ ओयरिउं ।। २६०२ ।। पंचविहाभिगमेणं पविसिय पासे गुणप्पहगुरुस्स । अभिवंदिऊण भत्तीए कुणइ विन्नत्तियं राया ॥ २६०३ ।। भयवं ! भववत्तावत्तनिवडियं उद्धरेसु मं इन्हिं । जिणवरदिक्खाहत्थावलंबदाणेण पसिऊण ॥ २६०४ ॥ तो धम्मलाभपुव्वं, गुरुणा भणियं नरिंद ! जुत्तमिणं । जं कीरइ जिणधम्मम्मि उज्जमो मोहरहिएहि ॥ २६०५ ।। एवं उववूहेडं, विहिणा दिक्खं इमस्स देइ गुरू । नरवइसहस्सतिगपरिगयस्स देवीहि य जुयस्स ।। २६०६ ॥ दिक्खादाणाणंतरमह सूरी देसणं कुणइ तेसिं । संवेयसुद्धिजणणिं भववासुव्वेयजणणिं च ॥ २६०७ ।। सीलगिरीगणिणीए, हिरिमइपमुहाओ साहुणीओ य । तयणु समप्पेइ गुरू, साहू य ठिया गुरुसमीवे ॥ २६०८ ।। तत्तो य अजियसेणो, सिक्खइ दुविहं पि सिक्खमइरेण । भविलक्खदुक्खपविमोक्खणत्थमब्भुज्जओ होउं ।। २६०९ चरइ तवं च विचित्तं, संजमपरिपालणापउणचित्तो । विविहाभिग्गहसंगहजणियजणमणचमक्कारो ।। २६१० ।। इहपरलोयासंसाविमुक्कचित्तो इमं सरेमाणो । सुत्तत्थमचलसत्तो जिणगणहरसम्मयं निउणं ।। २६११ ।। 'नो इहलोगट्ठाए तवमहिछेज्जा । नो परलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा । नो कित्तिवन्नसिलोगट्ठाए तवमहिछेज्जा । नन्नत्थ निज्जरट्ठाए तवमहिट्ठिज्जा । तहा - नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिद्वैज्जा । नो परलोगट्ठयाए आयारमहिछेज्जा। नो कित्तिवन्नसद्दसिलोगट्टयाए आयारमहिढेज्जा । नन्नत्थ आरहंतिएहिं हेऊहिं आयारमहिठेज्ज" त्ति ।। Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो किंच घोरं तवं चरंतो अघोरचित्तो पहट्ठिओ चेव । तुहिणकणपवणपीडियगत्तो वि अपरिहरियसत्तो ॥ २६१२ ।। काउस्सग्गपवन्नो, नेइ निसाओ वि मुक्कपावरणो । हेमंते मुक्कपरिग्गहग्गहो मुत्तिकयचित्तो || २६१३ ॥ गिम्हे सूराभिमुो होउं पडिवन्नपडिमसब्भावो । तत्तो य सूइसमलग्गमाणकिरणेहिं दज्झंतो || २६१४ || निम्मलधम्मज्झाणाओ नेय मणयं पि चलइ स महप्पा । सप्पुरिसा नियकरणिज्जवत्थुविसए थिरा अहवा || २६१५ || वासारत्ते संलीणकायजट्ठी ठिओ तरुतलेसु । रयणीसु बहुलजलयंधयारजणजणियतासासु ।। २६१६ ।। विसहर दुव्विसहाओ मुसलायाराओ वारिधाराओ। अइनिबिडखडहडरवे, निवडते विज्जुदंडे य ।। २६१७ ॥ भाविंतो य अणिच्चाइ भावणाओ दुवालसाओ वि । अव्वहिओ अहियासइ, उवसग्गपरीसहे विविहे || २६१८ || एवं सीहत्ताए, पडिवज्जिय दिक्खमेस अभिउत्तो । सीहत्ताए विहरइ पभूयकालं महासत्तो || २६१९ || समयंतरे य नाउं सरीरबलहाणिमुत्तमधिईओ । आगमविहिणा संलेहणं च काउं अणासंसी || २६२० ।। झायंतो पंचगुरू सद्धम्मज्झाणनिच्चलमईओ | अंते समाहिमरणं, आराहित्ता समियपावो || २६२१ || जाओ अच्चुयकप्पे, देविंदो फुरियदिव्वदेहजुई । अच्छरजणमणहरणि अच्चब्भुयदेवइड्ढीओ || २६२२ || निम्मलसम्मत्तधरी, अणुहवइ सुहं अणोवमं तत्थ । रइसागरावगाढो, बावीसं सागरोवमे जाव || २६२३ || (गीतिका ) जे अन्ने वि नरिंदलच्छिविमुहा रज्जाइं सुद्धासया । मोत्तूणुत्तमदिक्खमब्भुवगया तेणेव सद्धिं पुरा || रायाणो नियवंसमोत्तियमणी संपालिऊणं वयं । संपत्ता सुगईसु ते वि मरणं कालेण आराहिउं ॥ २६२४ ॥ जाओ वि देवीओ समं निवेणं, वयं पवन्नाओ समेक्कसारं । ताओ वि घोरं तवमायरित्ता, गईओ पत्ताओ सुहावहाओ || २६२५ हिरीमइदेवी पुण तब्भवे वि उपन्नकेवलन्नाणा । नीसेसकम्ममुक्का सासयसोक्खं गया मोक्खं ॥ २६२६ || एवं जहा अजियसेणनरिंदचंदो, मोत्तूण चक्कहरलच्छिमतुच्छसारं । घेत्तू संजमसिरिं अह अच्चुयम्मि, कप्पे विसालजसदेवगुणम्मि पत्तो || २६२७ ॥ पव्वम्मि एयम्मि तहा समग्गं, पवन्नियं वित्थरसप्पसंगं । मुति कुव्वंतिय जे इमो व्व, भवंति ते अच्चुयलच्छिठाणं ॥ २६२८ ॥ इइ चंदप्पहचरिए, जसदेवंकम्मि पंचमं पव्वं । भणियं एत्तो छट्ठ, उद्दिट्ठ संपवक्खामि ॥ २६२९ ।। (छट्टो पव्वो) चंदुज्जलाओ चंदप्पहस्स देहप्पहाओ दिंतु सुहं । अज्ज वि मज्जणखिवियाओ खीरधाराओ व सुरेहिं ।। २६३० ।। अह अच्चुयकप्पाओ चविओ आउक्खयम्मि कइया वि । अच्चुयकप्पाहिवई, भवम्मि को सासओ अहवा ।। २६३१ सिरिरयणसंचयपुरे, उप्पन्नो पउमनाहनामो तं । कणगप्पहस्स पुत्तो, देवीए सुवन्नमालाए ।। २६३२ || इय सिरिहरमुणिनाहो, केवलनाणी भवावलिं रन्नो । पुव्विल्लं कहिऊणं, खणं ठिओ जाव मोणेण || २६३३ ॥ पुव्वभवायन्नणजायहरिसरोमंचकंचुओ ताव । बद्धंजली मुणिदं पुणो वि राया भणइ एवं ।। २६३४ ॥ -- १०१ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं भयवं ! इमं तह च्चिय जह तुमए साहियं पर किंतु । अबुहजणप्पडिवत्ती, जह होइ तहा भणसु किंच ।। २६३५ ।। जओ - अवि चलइ मेरुचूला मज्जायं अवि मुएज्ज जलही वि । अवि पच्छिमाए उदयं, पाविज्जा दिवसनाहो वि ।। २६३६ केवलनाणुवलद्धस्स न उण अत्थस्स अन्नहा भावो । तह वि हु दूराईयम्मि दुक्कुहो संदिहिज्जा वि ।। २६३७ ।। ता भाविकालविसयं, थोवदिणं कमवि पच्चयं कहसु । अबुहजणाण वि चित्ते चमक्कयं जो लहु करेज्जा ।। २६३८ ।। इय भणमाणं सिरिहरमुणिवसभो भणइ पउमनाहनिवं । जह एवं तो निसुणसु, नरिंद ! आगामियत्थं पि ।। २६३९ ।। जूहं परिच्चइत्ता, तुज्झ पुरे करिवरो अइमहंतो । एही दसमम्मि दिणे, मयजलसंसित्तभूमिजलो ॥ २६४० ।। तप्पच्चयाओ सव्वं, तुम पि सयमेव थोवकालेण । मम भणियमवितहं चिय जाणिहसि असंसओ राय ! ।। २६४१ ।। एएणं वयणेणं, मुणिस्स आणंदनिब्भरो राया । अवणीयसंसओऽणुव्वयाइं सम्मत्तमूलाई ॥ २६४२ ॥ पडिवज्जिऊण सम्मं, पुणो वि पाए सिरेण नमिऊण । मुणिनाहस्स सहरिसं, नियपुरहुत्तं गओ राया ॥ २६४३ ।। नियआवासं पत्तो, अणवरयं मुणिगुणे सरेमाणो । गुणवंतगुणे को वा, न सरइ गुणवच्छलो हुंतो ।। २६४४ ।। अह दसमदिणे मुणिनाहसाहिए नरवरस्स अत्थाणे । उवविट्ठस्स अकम्हा विम्हियअत्थाणजणनिवहो ।। २६४५ ॥ उक्कन्नंतो तुरए, रएण व सहाइएण तासिंतो । आहोडतो जणसवणविवरमासाओ पूरितो ।। २६४६ ।। पयडिंतो नीसेसं भुवणं, सद्देक्करूवनिम्माणं । उच्छलिओ तुमुलरवो, जणस्स जलहिस्स व जुगते ॥ २६४७ ॥ (विसेसयं) तं सोऊण नरिंदो, हाहारवगब्भमह महारोलं । पासट्ठिए पवत्तइ, पुरिसे तज्जाणणट्ठाए ॥ २६४८ ।। रे रे वच्चह तुरियं, किमेस परचक्कपेल्लिओ लोओ । एवं तुमुलारावे करेइ जलणेण व जलंतो ।। २६४९ ।। तो ते तव्वयणाओ, गंतूणं जाणिउं च से हेउं । पच्चागया नरिंदस्स, बिंति विणयावणयसीसा ।। २६५० ।। कत्तो वि देवदेविंदहत्थितुल्लो महाकरी एक्को । पुरबाहिं संपत्तो गंडयलझरंतदाणजलो ।। २६५१ ॥ निहणइ सयलं पि जणं पुरबाहिं गोयरागयं देव ! । तुज्झ भुयजुयलरक्खियमवि करुणसरेण रसमाणं ।। २६५२ ।। अवि य - नीहरइ पविसई वा जो पयडो को वि वंससव्वं पि । करदंतपहारहयं, करेइ दिसपालबलियरणं ।। २६५३ ।। उट्टखरवसहमाई चउप्पए रुक्खमाइ अपए य । सव्वं पि वि विहडतो, नज्जइ संहारकीलो व्व ।। २६५४ ।। इय आगमणं मुणिसूइयस्स हत्थिस्स नरवई सोच्चा । हरिसभरनिब्भरमणो जाओ सुणिऊण मुणिवयणं ॥ २६५५ ॥ परिभावितो य गयस्स दुक्करत्तं दुयं वसाणयणे । किंचि विसायं पि गओ विन्नेउमिमं समाढत्तो ।। २६५६ ।। जइ ताओ करिवरोद्दवाओ रक्खेमि पुरजणं न इमं । नरनाहो त्ति पसिद्धी तो मज्झ निरत्थया चेव ॥ २६५७ ।। किंच खयाओ जो किर रक्खइ तं खत्तियं ति बिंति विऊ । खत्तियजाई वि कहं, खयाओ ताएमि ता न जणं ॥ २६५८ इय चिंतिऊण नीहरइ, जाव सामंतमाइलोओ वि । पट्ठिए ताव लग्गो नियनियपरिवारपरियरिओ ॥ २६५९ ।। पत्तो य तमुद्देसं जत्थ करी तं च पासिउं राया । नियभुयगव्वमउव्वं, समुव्वहंतो भणइ लोयं ।। २६६० ।। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १०३ भो भो लोया दूरम्मि ताव तुब्भेत्थ होह जाव अहं ! वसमाणिऊण तुम्हं वालं वालं च अप्पेमि ।। २६६१ ।। सामंताई वि इमे, सव्वे वि नियंतु कोउयं ताव । जाव गइंदेण समं करेमि कीलाविणोयमहं ।। २६६२ ।। इय भणिउं दढमाबद्धपरियरो वारिऊण परिवारं । आहवइ गयाहिवई, नरनाहो साहससहाओ ।। २६६३ ।। रे रे मायंगो च्चिय, सव्वं मारेसि जो जणं दीणं । जइ अत्थि किं पि सत्तं, तुह ता मह सम्मुहो एहिं ।। २६६४ ।। एवमहिक्खिविओ सो, पहाविओ सम्मुहं नरवइस्स । उइंडसुंडडंडं उन्नमिउं गरुयरोसेण ॥ २६६५ ।। इंतस्स तस्स रन्ना, करिणीपस्सवणसित्तमहवत्थं । पुव्वाणीयं पक्खित्तमभिमुहं सो तयक्खित्तो ।। २६६६ ।। जा संजाओ ताव य, निवो वि वेगेण आवहेऊणं । तं हणइ लउडघाएण पासदेसम्मि अभिउत्तो ॥ २६६७ ।। तो वलिओ तयभिमुहं जाव इमो ताव दक्खयावसओ । राया वि बीयपासे, रएण सो झ त्ति संजाओ ॥ २६६८ ।। तत्थ वि वलिऊण करं, जा वाहइ नरवइस्स गहणत्थं । पेक्खंतस्स वि हेठेण निग्गओ ताविमो तस्स ।। २६६९ ।। एवं पच्छापुरओ य उभयओ करिवरस्स तह कह वि । परिभमइ सो नरिंदो नियएणं लाघवगुणेणं ।। २६७० ।। पासपरिट्ठियपासायसिहरचडिएहिं जह जणोहेहिं । समकालं चिय दीसइ मायागोलो व्व सयलदिसो ।। २६७१ ।। अह चम्मपुत्तलेणं, पुरओ होउं भमंतओ चेव । कुंभयडे हणइ करि, राया इट्टालसहिएण ॥ २६७२ ।। अच्चारुट्ठो तो करिवरो वि दळूण तं पुरो पडियं । परिणमिउमुज्जओ जाव ताव राया वि अइदक्खो ॥ २६७३ ।। दाउं पायं दंतम्मि तस्स कुंभम्मि चडइ उल्ललिउं । तत्तो य गले पट्ठिय पुच्छइ देसे य अवयरइ ॥ २६७४ ।। पुणरवि पुरओ होउं, गयमाहविउं पहावई एसो । न य सक्कइ तं गहिउं तप्पिद्रु धाविओ वि करी ॥ २६७५ ।। किं बहुणा पुव्वक्कयपावेहिं व नियफलं समुवणीयं । दुरइक्कम न सक्कइ विलंघिउं दुहयरं तं सो ॥ २६७६ ।। एवं च हत्थिसिक्खाकुसलो कीलाविऊण विविहाहिं । कीलाहिं हत्थिरायं, राया तं कुणइ निप्फंदं ।। २६७७ ।। वसमागयं वियाणिय, करेण गहिऊण अंकुसं तत्तो । आरुहिओ तस्सुवरिं, सहइ सुरिंदो व्व सुरगयारूढो ।। २६७८ ।। एत्यंतरम्मि तुट्टेण अमरनिवहेण नहयलगएण । सीसम्मि कुसुमवुट्ठी मुक्का से रुणरुणंतभमरउला ॥ २६७९ (गीतिका द्वयम्) तयणंतरं च अणुवमभुयबलगव्वं समुव्वहंतेहिं । जो मिलियबहुनरेहिं वि, न पारिओ वसमुवाणेउं ॥ २६८० ।। एगागिणा वि रन्ना, लीलाए सो वसीकओ हत्थी । पुन्नुक्कडाण अहवा, किमसज्झं होज्ज पुरिसाण ॥ २६८१ ।। एमाइ पयंपतो, जीव चिरं नंद भुंज रज्जसुहं । निक्कंटयं असेसं, पालसु पुहई च कामदुहं ।। २६८२ ॥ इय आसीओ पउंजइ, गुणाणुरत्तो जणो नरवरस्स । गायइ य विमलकित्ति, पहट्ठचित्तो सुवित्तस्स ।। २६८३ (च तं च सुणतो राया आरूढो तम्मि चेव करिनाहे । चलिओ सुगंधिपवणुज्जाणाभिमुहो पहट्ठमणो ।। २६८४ ॥ सामंताइसमेओ, गयवरपरिरक्खएण य जणेण । कोऊहलागएण य समन्निओ धावमाणेण ॥ २६८५ ।। पत्तो तं उज्जाणं, दढयरमवलोइऊण तरुमेक्कं । आलाणिऊण तं तत्थ निययहत्थेण करिनाहं ।। २६८६ ।। ओयरिऊण य तत्तो, भत्तिब्भरनिब्भरो गओ पच्छा । सिरिहरमुणिंदपासे, विणएणं पणमिउं तं च ।। २६८७ ॥ भणइ मुणिं सामि ! तए नणु जो मम चेव पच्चयनिमित्तं । आइट्ठो पुव्वुद्दिट्ठवत्थुविसयम्मि गयमोह ! ।। २६८८ ।। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं दसमदिणे अज्ज स एस वारणो नियवणं पमोत्तूण । पत्तो जणोवघायं कुणमाणो माणमयमत्तो ॥ २६८९ ।। एवंविहं च दट्ठं जणाणुकंपाए वसमिमं काउं । साहिम्मि बंधिऊणं धरियं मुणिनाह ! पेच्छ तुमं ॥ २६९० ॥ पच्चक्खं चिय तुह सव्वमेयमिह जइ वि केवलबलेण । चवलत्तणेण तह वि हु कहेमि पहु ! सव्वमेवमहं ।। २६९१ अन्नं च जहिच्छाए रम्मेसु वणेसु एस विहरंतो । अणुरायनिब्भरेणं समयं नियकरणिजूहेण ।। २६९२ ।। विउलजलासयसलिलावगाहकीलाविलासदुल्ललिओ । सोमालसरससल्लइदुमपल्लवकवलणक्खणिओ || २६९३ ।। ते सव्वं परिचइऊण अत्तणो बंधजणणकज्जेण । केण निमित्तेण इहं कालेण व चोइओ पत्तो ।। २६९४ || (विसेसयं) देहीण जओ दुक्खं, समं पराहीणयाए न हु अन्नं । न य सोक्खमपरतंतत्तणाओ लोयम्मि परमत्थि || २६९५ ।। ता किं दुरप्पणा णेण निययसीसम्मि सिंहनहविसमो । चिरकालमंकुसो भण उवणीओ दुक्खसहणत्थं । २६९६ ।। इय नरवरस्स गंभीरवयणमायन्निऊण मुणिनाहो । तप्पसिणाणुगयं चिय पडिभणइ विरागजणणत्थं ।। २६९७ ॥ पुव्वभवे एस करी नयरम्मि महापुराभिहाणम्मि । नामेण धरणिकेऊ, नरनाहो आसि विक्खाओ || २६९८ ।। उप्पाइऊण कारिममवराहं जो सया वि लोयाण । लेइ बलामोडीए, धणाइ परिपीलिउं बहुसो || २६९९ ॥ पारद्धिरमणसीलो हणइ य मियससयसूयराइजिए । भयभीयनिरवराहे, रन्नंबुतणाइवित्तिपरे || २७०० || निठुरभासणसीलो, असम्मओ तह य सयललोयस्स । अवराहाभासम्मि वि विहिए अच्चंतकोवपरो || २७०१ ।। अवि य - १०४ सोच्चि से पाणपिओ जो परपेसुन्नतप्परो निच्चं । वंचणरओ असच्चो, परोवयावी सहावेण ॥ २७०२ ।। परगंठिच्छेयकरो, परदारपरायणो महालुद्धो । निद्धम्मो ठगवित्ती, बहुकवडकुहेडयपहाणो ॥ २७०३ ।। आसी य तस्स रज्जे, महंतओ तारिस च्चिय गुणेहिं । रन्नो अईव इट्ठो वसुंधरो नाम सुपसिद्धो || २७०४ ॥ अन्ने वि जे निउत्ता, निओगिणो संति तेण नियरज्जे । ते वि हु तत्तुल्लगुणा जह राया तह पया जम्हा || २७०५ ॥ वच्चतेसु दिणेसु य केणावि वसुंधरस्सुवरि काउं । पेसुन्नमलीयं पि हु रन्नो उत्तारियं चित्तं ॥ २७०६ ।। सो निययभडेहिं तओ नरवइणा गाहिओ परुट्ठेण । बंधाविओ य सेहाविओ य अत्थस्स लोभेण ॥ २७०७ ॥ आणाविऊण सव्वं घरसारं तस्स अप्पर तओ सो। तह वि न मुंचइ राया अवि सेहावेइ अहिययरं ॥ २७०८ ॥ तो जं निहाणगाइसु पच्छन्नं किं पि आसि किर धरियं । तं पि समप्पइ सव्वं, आणावेउं नरिंदस्स ।। २७०९ ।। एवं हढेण निप्पीलिऊण सव्वस्सहरणदंडेण । काऊण जहा जायं, निव्विसयं आणवेइ तओ ।। २७१० ।। एवं च कए एसो, कालुसिओ चिंतई नियमणम्मि । अहिमाणधणो हा हा विडंबिओ कहमिहं इमिणा ॥ २७११ || ता निक्कारणवइरिस्स थोवदिवसाण चेव मज्झम्मि । दुव्विलसियफलमेयस्स किं पि दंसेमि कडुययरं ।। २७१२ ।। इय चिंतितो नीहरइ जाव गेहाओ सह नियपियाए । तावेस झत्ति दिट्ठो रन्ना ओलोयणगएण || २७१३ ।। तो भणिया नियपुरिसा, रे रे गंतूणिमस्स सचिवस्स । सज्जाई चीवराई गिण्हह उद्दालिऊण बला ।। २७१४ ।। जिन्नं कंबलखंड खिवेह खंधम्मि बंधह कडीए । नागफणं कच्छोट्टं सव्वं रच्छं च गिण्हेह ॥ २७१५ ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १०५ अप्पह करम्मि घडखप्परं च खंडं भणेह वयणं च । वच्चसु सुहेण भिक्खं भमडंतो णेण मह विसया ।। २७१६ ।। आणाइ तस्स अह लहु, तेहिं तह चेव से कयं सव्वं । तेण य अहिययरं सो, पउट्ठचित्तो निवे जाओ ।। २७१७ ।। अह तस्सेव नरिंदस्स पुव्वसत्तू महाबलो राया। धरणो त्ति सुप्पसिद्धो, आसि तया सयलभूमिवई ।। २७१८ ।। चित्तम्मि संपहारिय तं सो चलिओ कलत्तसंजुत्तो। तव्विसयाभिमुहं चिय, कइवय दियहेहिं पत्तो य ॥ २७१९ ।। भवियव्वयावसेणं रणुद्धरं धरणनरवई तं सो । जयवल्लहाभिहाणे पुरम्मि गंतूण पेक्खेइ ।। २७२० ।। कहइ य नियपहुचरियं लोगविरागं च तम्मि अइगरुयं । अवमाणणं च निययं, दंसेइ य तस्स बहुलोभं ।। २७२१ ।। भणइ य अन्नत्थ कए वि विग्गहे नत्थि तारिसो लाभो । जारिसओ तुह होही तम्मि कए विग्गहे देव ! ॥ २७२२ ॥ जओअच्चंतसमिद्धो सो देसो बहुओ य तव्विरत्तो य । सो वि य थद्धो लुद्धो जणस्स अवगारनिरओ य ।। २७२३ ॥ जे वि हु सामंताई आणाए तस्स राय ! वट्टति । ते वि हु विरत्तचित्ता जाणंति कया इमो मरिही ।। २७२४ ॥ एवं च संगरे वि हु उवट्ठिए तस्स को वि सो नत्थि । जस्स बलेण व राओ जयलच्छिनिकेयणं होही ॥ २७२५ ।। वच्चंति देवपाया, ता जइ कहमवि हु तत्तियं भूमिं । सव्वं पि वसीकाउं, तं रज्जं तं समप्पेमि ॥ २७२६ ।। एमाइविविहभणिईहिं कह वि तह सो पलोभिओ राया। जह तद्देसाभिमुहो देइ पयाणं लहुं चेव ॥ २७२७ ।। अणवरयपयाणेहिं थोवदिणेहिं पि से पुरं पत्तो । सो वि वसुंधरसचिवो तस्स जणं भेयए बहुयं ।। २७२८ ।। राया वि महापुरपुरवरस्स आसन्नदेसमभिगिज्झ । आवासिऊण सेणाइ नयरवेढं करावेइ ।। २७२९ ।। इयरो वि धरणिकेऊ, निरवेक्खो ताव चिट्ठइ पमाया । जावासन्नं जायं, परचक्कं चउसु वि दिसासु ।। २७३० ।। तत्तो भयसंभंतो पुरस्स दाराई दाविउं झ त्ति । किं कायव्वविमूढो धवलहरे चिट्ठए गंतुं ॥ २७३१ ।। नयरजणेणं तत्तो, विन्नत्तो देव ! केत्तियं कालं । चिट्ठसि एवं लुक्को, जओ सुणऽम्हाण वयणमिणं ॥ २७३२ ।। एसो महंतयवसुंधरेण इह आणिउमिहासन्ने । धरणो नामेण महाराया तुह निग्गहनिमित्तं ।। २७३३ ।। परिभविओ जेण तए, सो अच्चंतं तहा जह महंतं । अनिवत्तयं नरेसर ! तुह उवरि पओसमावन्नो ॥ २७३४ ।। तुमए य पमायवसा, न चिंतियं पडिविहाणमेयस्स । तो नढेहिं वि संपइ, न हु छुट्टिज्जइ इमाओ जओ।। २७३५ (जुयल) काऊण वइरमसरिसभरियम्मि रिउम्मि जे पमायति । कच्छे किविऊण सिहं, जलंतयं तेसु यंति अभिपवणं ।। २७३६ (गीतिका) अन्नं च इमो लहुओ, मह किं काहि त्ति चिंतिऊण इमो। उप्पाइऊण वइरं, तेण समं जो उवेक्खेइ ॥ २७३७ ।। अच्चंतगव्वभरिओ, सो तत्तो च्चिय पराभवं लहइ । टिट्टिहडाओ समुद्दो व्व दारुणं सुव्वइ कहाणं ।। २७३८ । (जुयलं) एगो किर टिट्टिहडो, समुद्दतीरम्मि आसि अइमुहरो । भज्जा य तस्स तहियं, चडई वेलासमुदस्स ॥ २७३९ ।। तीए य चडंतीए, उड्डित्ता ताई जंति दूरम्मि । वलियाए पुणो सट्ठाणमिति एवं दिणा जंति ।। २७४० ।। अवरदिणे टिट्टिहरो, भणिओ भज्जाइ जह ममं नाह ! । वट्टइ पसवावसरो, ता नीडं कुणसु लहु किं पि ॥ २७४१ ।। जत्थ न पसरइ वेला, जलनिहिणो सो वि आह किं भीया। जइ मज्झ सुए हरिही, तो सोसिस्सामि अहमेयं ॥ २७४२ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एवं पभणतो सो, निच्चं चिय जाव न कुणए नीडं । ता तत्थेव पसूया, एसा जायाइं अंडाई || २७४३ || अमरिसिएण समुद्देण ताई हरियाई अन्नदियहम्मि । वेलाए पसरियाए, तीए पिओ तो उवालद्धो || २७४४ || तुह कडुयवयणतविएण जलहिणा नाह ! मह सुया हरिया । गरुया विराहिया हुंति सुंदरा नेय कइया वि || २७४५ || रोसभरभरियचित्तेण तेण तो भणियमेरिसं वयणं । उयराओ तस्स कड्ढेमि नियसुए जेण ते हरिया || २७४६ || भणिऊण इमं नियपक्खजुयलमह बोलिऊण जलहिजले । झाडइ पंक्खम्मि पुणो पुणो वि गयणट्ठिओ चेव || २७४७ एवं च पंक्खझाडणबोलणमणवरयमेव कुणमाणं । तं दठ्ठे चडयाई वि पक्खिणो तत्थ सम्मिलिया || २७४८ ॥ पुच्छंति पयत्तेणं, सो वि य तेसिं कहेइ सब्भावं । नियजाइपक्खवाएण ते वि तह काउमाढत्ता ॥। २७४९ ।। एत्थंतरम्मि कत्तो वि पक्खिराओ समागओ गरुडो । तं पक्खिगणं तह पासिऊण पुच्छेइ संभंतो ।। २७५० ।। ते वि य सोवालंभं कहंति संते वि अम्ह तइ नाहे । एवं पराभवं कुणइ एस जलही अमज्जाओ ।। २७५१ ।। तो सो गंतुं साहेइ वासुदेवस्स निययसामिस्स । अग्गियबाणं निसिणित्तु सो वि तत्थागओ खिप्पं ।। २७५२ ।। तं दट्ठूण समुद्दो वि पायवडिओ हु विन्नवइ एवं । खमसु ममेक्कऽवराहं पुणो वि नेवं करिस्सामि ॥। २७५३ ।। एवं च - नियअंडयहरणामरिसएण चडएण टिट्टिणावि । संजणियसोससंकस्स जलहिणो किं न पडिविहियं ॥। २७५४ ॥ १०६ उक्तं च शत्रोर्बलमविज्ञाय, वैरमारभते तु यः । स पराभवमाप्नोति समुद्र इव टिट्टिभात् ।। २७५५ ।। इय सुणिऊण जणाओ गलगज्जि काउमेस आढत्तो । को सो वसुंधरो किं, च तेण निप्फज्जइ कहेह || २७५६ || जो वि महोवरि धरणो, आणीओ णेण तेण वि न किंचि । गंजियपुव्वो एसो वि जेण मह मुणइ सामत्थं ।। २७५७ ।। ता अच्छह वीसत्था, तुब्भे कत्तो वि मा भयं कुणह। स वसुंधरस्स सीसं घेत्तूणाणेमि धरणस्स ॥। २७५८ ॥ इय भणिऊण विसज्जिय, जणं च संजत्तियं करावेउं । संगरजोग्गं नीहरइ अन्नदियहम्मि नयराओ ।। २७५९ ।। उक्खंदेणं पडिओ, गंतूणं धणयरायकडयम्मि । परिवारो वि य से पुव्वभेइओ जुज्झइ न जाव || २७६० ।। ताव इमो सयमेव य, नियपुत्ताईहिं सह समोत्थरिओ । पारद्धो जुद्धेउं, अग्गाणीएण सह किंचि ॥। २७६१ ॥ एत्थंतरम्मि नाउं जुज्झतं तं वसुंधरो भणइ | धरणनिवं देव ! इमो नीहरिओ अज्ज नयराओ || २७६२ || अग्गाणीएण समं, संलग्गो जुज्झिउं च एत्ताहे । परिवारेणं चत्तो, परिमियपुत्ताइसंजुत्तो || २७६३ ॥ भाया य इमस्स मए, जो लहुओ समरकेउनामेण । सो तुम्ह चरणसेवापरायणो चेव एस कओ ॥। २७६४ ।। संगामंगणवट्टिस्स तस्स नामेण चेव भडनिवहो । मुंचति सुहडवायं अन्नो य न तारिसो कोइ ।। २७६५ ॥ ताजइ वि तुज्झ कडए, जलहिसमे एस सत्तुमुट्ठिसमो । पडिओ इह आगंतूण तह वि लहुओ न गणियव्वो ।। २७६६ मारइ मारिज्जतो सुव्वइ एसा वि जं किर पसिद्धी । एगागी य न एसो पुत्ताईया जओ बीया ।। २७६७ ॥ नोवद्दवेइ ता जाव देवपायाण एस कडयजणं । सुहडेहिंतो पाडाविऊण ता निग्गहावेह || २७६८ ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १०७ तो तव्वयणाणंतरमेवुट्ठविऊण भमुहसन्नाए । संपेसइ पवरभडे लद्धजसे संगरसएसु ।। २७६९ ।। गंतूण तओ तेहिं वि तेण समं तं रणं समाढत्तं । निम्मायपोरुसो जेण एस रणरहसमारूढो ।। २७७० ।। तह जुज्झिउमाढत्तो पहारविहुरीकओ वि जह गाढं । नच्चिरकबंधसेसो वि हणइ तं सुहडसंघायं ॥ २७७१ ।। जे वि हु पुत्ताईया संगामे ते वि तस्स आवट्टा । केइ वि केइ वि गहिया पाडेऊणं जियंता वि ॥ २७७२ ॥ तत्तो वि समरकेउं अमच्चवयणेण धरणिकेउस्स । ठविउं रज्जे धरणो सयं पुणो जाइ सट्ठाणं ।। २७७३ ।। अह सो वि धरणिकेऊ रोद्दज्झाणोवगयपरीणामो । मरिऊण तच्चपुढवीए नारयत्तेण उप्पन्नो ॥ २७७४ ।। तहा हि - वसहो व्व सो वराओ नरयाणुपुब्विनामकम्मेण । रज्जुसमेऽणुबद्धो नीओ नरयम्मि पावेण ॥ २७७५ ।। तत्थ य जहाणुरूवं जत्तियकालं च जाण पासाओ। दुक्खं तेण तहा हं संखेवेणं तुह कहेमि ।। २७७६ ।। पढम चिय सो पावो संकुडघडियालयम्मि उप्पन्नो । दुव्विसहफासदुग्गंधभरियनिच्चंधयारम्मि || २७७७ ।। हुंडविहुंडो अन्तोमुहुत्तसंजायसयलगत्तसरो । अच्चंतुव्वेयकरो पच्चक्खो पावपुंजो व्व ॥ २७७८ ।। घडियालयसंकडयाइ सव्वओ देहगरुययाए य । उव्वेल्लं अलहंतो पीडाए रडइ गाढयरं ।। २७७९ ।। अक्कंदरवायन्नणसंतोसुप्पत्तिकिलिकिलायंता । परमाहम्मियदेवा, तो मिलिया झ त्ति कत्तो वि ।। २७८० ॥ पभणंति य अन्नोन्नं, रे रे गेन्हह इमं विकड्ढेह । घडियालयाओ अइसंकडाओ संडासएहिं लहुं ।। २७८१ ।। अहवा मज्झे च्चिय कप्पणीहि काऊण खंडखंडाई । खिवह दुवारे मोक्कलभूमीए इमं महापावं ।। २७८२ ।। एवंविहमल्लावं सणिऊण इमो बिभीड संभंतो। संकयणमणो चिटठड खणमेत्तं जाव मोणेण || २७८३ ॥ एक्केण कप्पिओ कप्पणीए भल्लेण केण वि विभिन्नो । छिन्नो छुरियाइ परेण ताव खंडीकओ एवं ॥ २७८४ ॥ खित्तो दुवारदेसे दिसवालाणं बलि व्व भिन्नदिसं । मिलिओ सो पुणरवि पारओ व्व दुक्कम्मपरतंतो ॥ २७८५ ॥ एत्थंतरम्मि पुण दिठिगोयरं ताण जाव सो पत्तो । दूसहवयणेहिं पुणो वि ताव ते बिंति ते मिलिया ॥ २७८६ ॥ रे रे अकज्जकारय ! जाई तए संचियाइं पावाई । ताण फलं कडुयरसं अणुहव इन्हिं इहं पत्तो ।। २७८७ ॥ हा हा हयास ! किं किं पावाइं पहुत्तणाभिमाणेण । विहियाइं तए किं नासि कोइ तुह वारओ तइया ।। २७८८ ॥ किं वा वि सवणविवरं कत्थ वि कइया वि कस्स वि सयासा । पत्ता न तुज्झ नरया जेणेवमुवज्जियं पावं ।। २७८९ रे रे पयाउ निप्पीलिऊण अलियावराहओ तुमए । जं पोढत्तं नीयं तं कत्थ गयं धणमियाणिं ।। २७९० ॥ किं व पयादंडनिवाडणुत्थपावाओ एस गरुयाओ। सीसम्मि तुह पडतो न रक्खिओ तेण दुहदंडो ।। २७९१ ।। एमाइ भणंतेहिं सवज्जदंडेण तह हओ कह वि । सयसो विभिन्नदेहो जह जाओ सहसदेहधरो ।। २७९२ ।। तो ते विचित्तरूवे विउव्विउं सीहवग्घमाईणं । खाविन्ति तेहिं विरसं रसंतयं तं पुणो बिंति ।। २७९३ ।। पारद्धिं रममाणेण जं तए ससयसूयराईया । पहया पलायमाणा कंतारे निरवराहा वि ।। २७९४ ।। तप्फलमुवणयमेयं सहेसु किं रससि करुणसद्देण । किं वा विउव्विरूवे विरयसि बहुपयरदुहहेऊ ।। २७९५ ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं किं व ससहरिणसूयरा य पमुहे पभूयजीवसए । हणिऊण पेयलोयस्स भोयणट्ठा कराविंसु ॥। २७९६ || तप्पावपरिणइफलं जं पुण तं तुज्झ चेव एक्कस्स । आवडियमिहं इण्हि ता विसहसु निठुरो होउं ॥ २७९७ ।। जीवाण निरवराहाण जं पि अंगस्स छेयणमकासि । तं पि इयाणि विसहसु रे पाव ! किमारससि करुणं ।। २७९८ ।। इय भणिऊणं सरसेल्लभल्लकुंताइतिक्खसत्थेहिं । पोयंति सव्वगत्तेसु तिव्वपीडं उवजणंता ।। २७९९ ।। सरियासरेसु सरसीसु सागरेसु य वसंतमिच्छाए । दट्ठूणं मीणउलं निराउलं जं पुरा पाव ! ॥ २८०० || गुरुपडिसदंडहत्थो निग्गहणनिमित्तमुज्जममकासि । उवभुंजसु तप्फलमवि संपइ कीसाउलो होसि ॥ २८०१ ।। एवं भणमाण च्चिय खिवंति वसरुहिरपूइपुन्नाए । वेयरणीए नईए अगाहजंबालपुन्नाए || २८०२ ।। लउडेहिं पिट्टिऊणं तारंति हढेण तं तहिं सो य । तरमाणे छिज्जइ वेगवाहिगुरुतरतरंगेहिं ॥ २८०३ || तहा हि १०८ 1 करवत्तकुंतकुंटीकप्पणकरवालकुलिसफासेहिं । अब्भाहओ वराओ कल्लोलसएहिं उवरुवरि ।। २८०४ || पाडिज्जइ लुयकरचरणजाणुजंघो अईववियणंतो। कह कह वि उट्ठिओ नीहरित्तु अह नासई तत्तो || २८०५ ।। अच्चततत्तवेयरणिपुलिणवालुयपुलुट्ठपायजुओ । नासेउमपारितो पुणो वि सो तेहिं सच्चविओ || २८०६ ।। तो गिद्धघूयसिंचाणसउलियामाइविविहविहगाण । विउरुव्विऊण रूवे पडंति तस्सुवरि भक्खट्ठा ॥ २८०७ || तोडंति चंचुसंडासएहिं फालंति तिक्खनहरेहिं । कक्खडपक्खोयाएहिं तह य दूमिति अच्छी || २८०८ | पुरओ होऊण तहा भांति एयारिसं इमे वयणं । किं नाससि सयमेव अज्जिऊण रे पाव ! फलमज्ज || २८०९ ॥ अवरं च विविहविहगे हणिसु सिंचाणए खिवेऊण । जं सि पुरा तं सुमरसु इन्हिं विहगेहिं खज्जंतो ।। २८१० ।। जओ - जं चिय भवंतरे संचिणंति सयमेव पाव ! असुहफलं । जीवा तं चिय भुंजंति एत्थ अकयागमो न उण ॥ २८११ ॥ जो खलु एक्कं वारं निहओ जीवो तहिं पि जं पावं । अइकूरज्झवसाएण पाणिणा अज्जियं होज्ज ।। २८१२ ।। तस्स वि अणुभावेणं परमाहम्मियसुरेहिं नरयम्मि । हम्मइ अणेगवेला किं पुण जो हणइ जियलक्खे || २८१३ ।। तो अप्पवहाए च्चिय हयास ! जे निहणिया पुरा जीवा । अणुहव तप्पावफलं मणं पि मा दुम्मणो हो । २८१४ || एवं सुणमाणो च्चिय खज्जतो वज्जतुंडपक्खीहिं । तद्दुक्खसहणभीरू असिपत्तवणंतरं लीणो ।। २८१५ ।। तहा हि वायसपारद्धो घूयडो व चुंटिज्जमाणसयलतणू । खद्धं खद्धं विहगेहिं तहिं तह पीडिओ गाढं || २८१६ || जह अवरपरत्ताणं अलहंतो पासिऊण अइगहणं । असिपत्तवणं असिपत्तनामएहिं सुरेहिं कयं ॥ २८१७ ॥ उल्ललिऊण य तस्संतरालविवरम्मि पविसइ वराओ। जाव इमो ताव पडंति ताओ तस्सुवरि पत्ता || २८१८ ।। काई वि सेल्लसरिच्छाई बाणवुट्ठीसमाई काई पि । सव्वलसमाई काई वि काई वि असिधारसरिसाई ।। २८१९ ।। एमाइ विविहसत्थोवमाई निवडंतयाणि छिंदंति । भिंदति लुणंति हणंति अंगुवंगाई तस्स पुणो ॥ २८२० ॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १०९ इय जत्थ जत्थ वच्चइ पावोवहओ तहिं तहिं चेव । दुक्खाई चिय पाउणइ न उण सोक्खं निमेसं पि ॥ २८२१ ।। अवि य - फालिज्जइ सो करवत्तएहिं पीलिज्जई य जंतेहिं । संडासयधरियमुहो पाइज्जइ तत्ततउयाई ॥ २८२२ ।। कुंभीहिं तह पइज्जइ सहस्ससो तेहिं पावअसुरेहिं । तच्छिज्जइ वासीहिं कट्टिज्जइ तह कुहाडेहिं ।। २८२३ ॥ विलिहिज्जइ विविहुल्लेहणीहिं विधिज्जई य वियणत्तो। विज्झणियसहस्सेहिं कहें लट्ठ व कट्ठहओ ॥ २८२४ ।। किंच - हण छिंद भिंद गिण्हह वच्चइ कत्थेस नासिऊणऽम्ह । एमाइ सवणदुसहे निसुणइ सद्दे महारुद्दे ।। २८२५ ॥ स्वे वि के वि ते सो पासइ दिट्ठीए दुहयरे गाढं । विगरालरक्खसाईण जाई दलृ पि असमत्थो ।। २८२६ ।। अच्चंतविरसकडुए रसे वि रसणाइ साडसंजणए । दूसहछुहाए नडियस्स गोयरं इंति से कह वि ॥ २८२७ ।। परिसडियसुणयमडयस्स जो हु गंधो तओ अणंतगुणो । नासाए सन्निहिओ सया वि से पावउदएण ।। २८२८ ॥ सिंबलीअवरुंडणतत्तवालुयालोलणाइ दुक्खं च । अणुहवमाणस्स सया फासेण वि से सुहं कत्तो ? ।। २८२९ ।। इय किं पि ठाण जणियं परमाहम्मियकयं च किं पि सया। अणुहवमाणस्स दुहं गयाइं से सत्त अयराइं ॥ २८३० ॥ एत्थंतरम्मि पुठं रन्ना मुणिनाह ! केण कम्मेण । नरयम्मि जंति जीवा केत्तियमेत्ता उ इह नरया ॥ २८३१ ।। तो भणइ मुणिवरिंदो सुण नरवर ! जं तए इमं पुढें । नरयनिबंधणकम्मं सामन्नविसेसहेउकयं ।। २८३२ ।। मिच्छत्ताविरइकसायजोगजणियं जमित्थ किर कम्मं । असुहज्झवसायगएण तं खु सामन्नहेउकयं ।। २८३३ ।। महया आरंभेणं महईए परिग्गहाभिरइए य । कुणिमाहारेण तहा पंचेंदियमारणेणं च ।। २८३४ ॥ एएहिं तं पुणो वि हु विसेसहेऊहिं पोसियं गाढं । सामोदिन्नजरो इव सक्करखीराइपाणेणं ॥ २८३५ ।। तस्स फलं नरयगई तत्थ य दुक्खं महादुरवसाणं । तं वन्निउं न तीरइ बहुएहिं वि सागरसएहिं ॥ २८३६ ।। तह रयणाभासक्करवालुयपंकप्पहाओ धूमाभा । तमतमतमप्पहाओ पुढवीओ हुंति सत्तेव ॥ २८३७ ।। धम्मा वंसा सेला अंजणरिट्ठा मघा य माघवई । एयाणं नामाइं रयणाईयाइं गोत्ताई ॥ २८३८ ॥ एयासु तीस पणुविस पणरस दस तिन्नि एक्कसंखाओ। पंचूणनरयलक्खा पंच पुणो सत्तम महीए ।। २८३९ ।। एए य केइ अव्वत्ततिव्वतावा परे य अइसीया । दुव्विसहरूवरसगंधफाससद्देहिं दुहहेऊ ।। २८४० ॥ परमाहम्मियअसुरा तह आइल्लासु तीसु पुढवीसु । नारयजियाण दुक्खं उदीरयंती महाघोरं ।। २८४१ ।। तत्तो य परिल्लासुं नत्थि गमो ताण नरयपालाण । अन्नोन्नं चिय दुक्खं जणंति तिसु तेण नेरइया ।। २८४२ ।। तहा हि - आउप्पत्तीउ च्चिय अच्चंतुप्पन्नवइरसब्भावा । तिव्वाओ वेयणाओ परोप्परं ते उदीरंति ।। २८४३ ।। परमाहम्मियरइयं तं दुक्खं पुव्ववन्नियं किं पि । तं एत्थ वि नाणत्तं तु केवलं जमिह अन्नोन्नं ।। २८४४ ।। सत्तममहीए जे पुण नारयभावेण के वि जायंति । ते वज्जकंटयाउलघडियालयलद्धजम्माणो । २८४५ ।। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० सिरिचंदप्पहजिणचरियं तेत्तीससागराई उक्कोसेणं सहति गुरुदुक्खं । उड्ढमहो तिरिय चिय भिज्जंता कंटएहिं सया ॥ २८४६ ।। इय केत्तियं व भन्नउ नरगगईवन्नणं महाराय ! | पत्थुयवत्थु सुणिज्जउ जं जायं धरणिकेउस्स ।। २८४७ ।। तइयाओ पुढवीओ उव्वट्टो निययआउयखएण । सो धरणिकेउराया समागओ तिरियजाईए ॥ २८४८ ॥ रम्मम्मि वणे एगम्मि विविहवणराइसहसरमणीए । पउरजलासयकलिए उप्पन्नो हत्थिभावेण ॥ २८४९ ।। कालक्कमेण जोव्वणपत्तो जाओ महंत जूहवई । करिणीजूहेण समं अभिरमइ विचित्तकीलाहिं ।। २८५० ।। तं दठूण सहरिसं वणयरनिवहा कुणंति से नामं । वणकेलि त्ति जहत्थं वणलीलावल्लहत्तेण ।। २८५१ ।। एवं च ताव एवं इओ य जो सो वसुंधरो नाम । पुट्विं महंतओ से पच्छा वि महंतओ होउं ।। २८५२ ॥ सिरिधरणरायसेवापसायओ धरणिकेउरायस्स । तम्मारणेण तट्ठाणठाविए समरकेउम्मि ।। २८५३ ।। सव्वाहिगारियत्तं केत्तियकालं पि पालिऊणं से । मरणावसाणयाए संसारियजीववग्गस्स ।। २८५४ ।। अह अन्नया कयाई मरिऊण इमो वि कइ वि भवगहणे । संसारे परियडिउं उप्पन्नो हत्थिरूवेण ।। २८५५ ॥ सत्थोवइट्ठसुपसत्थलक्खणो मयजलोल्लगंडयलो । नीसेसकरिवराणं सिरोमणी नियगुणोहेण ।। २८५६ ।। भवियव्वयानिओएण तस्स वणकेलिकरिवरस्सेव । रन्नवणासन्नम्मी वणंतराओ समायाओ ।। २८५७ ।। भमडंतो नियइच्छाए तत्थ कत्थ वि य पव्वहत्थिस्स । अग्घाडऊण गंधं पहाविओ झ त्ति त भंजतो गरुययरे रुक्खे तम्मयजलेण आलीढे । जोयणतिगप्पमाणं पत्तो भूमिं सवेगेण ।। २८५९ ॥ दिट्ठो य नाइदूरे वणकेली विविहकेलिदुल्ललिओ। नियजूहेण समाणं आसन्नजलासयं जंतो ।। २८६० ।। तम्मयजलस्स गंधं नियडे अग्घाइऊण अहिययरं । रुट्ठो पिट्ठीए पहाविऊण तं हणइ सुंडाए । २८६१ ।। दप्पुटुरेण तेण वि वलिऊण इमो वि वियडकुंभयडे । पहओ तो अन्नोन्नं लग्गा ते संगरे दोन्नि ।। २८६२ ।। आलविऊण परोप्परसुंडाओ दंडमुसलपहरेहिं । तह पहरिउं पयट्टा अह भग्गो झ त्ति वणकेली ।। २८६३ ॥ तस्समएऽणुप्पिच्छो समागओ तुह पुरं इमं राय ! । अहवा भयभीयाणं देसच्चाओ किमच्छरियं ।। २८६४ ।। इय निसुणिऊण राया तच्चरियं भणइ भवविरत्तमणो । अहह महामोहवसेण पाणिणो हुंति जह दुक्खी ॥ २८६५ ॥ तहा हि - उवहयविवेयनयणप्पसरा मोहंधयारतिमिरेण । विज्जुलयाचवलेसु धणजोवणरज्जमाईसु ।। २८६६ ॥ विवरीयजणियबोहो थिरत्तणासाए विणडिया दूरं । तं किं पि कुणंति जिया जयम्मि जत्तो दुही होति ।। २८६७ ॥ जीवे हणंति पभणंति अलियमविदिन्नयं च गेण्हति । सेवंति परकलत्ते आरंभपरिग्गहासत्ता ।। २८६८ ॥ अन्नं पि किं पि तं तं कुणंति जं होइ नरयगइमूलं । तिरियत्तहेउभूयं कुदेवकुनरत्तजणगं च ।। २८६९ ।। (चक्कलयं) तो भणइ मुणिवरिंदो राय ! अओ चेव एयमन्नाणं । कोहाइकसायाण वि दारुणतरयं विणिदिळें ॥ २८७० ।। भणियं च - अज्ञानं खलु कष्टं क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । अर्थं हितमहितं वा न वेत्ति येनावृतो लोकः ॥ २८७१ ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १११ एसो वि धरणिकेऊ एत्तो च्चिय विविहमावयं पत्तो । थेवस्स वि दुक्कडविलसियस्स सामत्थममुणंतो ।। २८७२ ।। जो वि वसुंधरनामो मंती एयस्स सो वि संसारे । भमिओ बहुदुक्खयरे कसायसामत्थओ राय ! ।। २८७३ ।। पत्तो य करिवरत्तं इन्हिं इमिणा य निययसत्तीए । निद्धाडिओ वणाओ वणकेलीधरणिकेउजिओ ॥ २८७४ ।। ता किं पि सासयत्तं न एत्थ वलिओ वि परिभवं लहइ । परिहवणिज्जो वि बली ना गव्वं को वि मा कुणउ ।। २८७५ किंच - सामन्नं चिय एयं भन्नइ वयणं भवम्मि जीवाण । मरणम्मि समीवत्थे थिरत्तणं कस्स अन्नस्स ।। २८७६ ।। धण्णे धणे व रज्जे व जोव्वणे सुंदरे य रमणियणे । जा का वि थिरत्तासा सा सव्वा मोहनडियाण ।। २८७७ ।। इय मुणिवयणं सोउं सिढिलिकयमोहबंधणो राया। भणइ जहट्ठियमेवं मुणिनाह ! तए समाइटें ।। २८७८ ।। मज्झ वि पविट्ठमेयं हियए अन्नं च एस करिनाहो । मज्झुवगारनिमित्तं च आगओ नियवणं चइउं ।। २८७९ ।। जओ - जइ वि समागंतूणं इमिणा लोओ उवद्दुओ मज्झ । पुव्वभवं तह वि इमस्स मुणियमह चित्तमुवसंतं ॥ २८८० ।। इंतो न एत्थ जइ पुण एसो तो कह तुमं मह कहतो । एयस्स चरियमुवजणियगरुयसंसारवेरग्गं ।। २८८१ ।। संसारस्स सरूवं निययाणुभवेण अणुहवंतो वि । तह वि न बुज्झइ लोओ अणाइमोहोवहयबुद्धी ।। २८८२ ।। तुम्हारिसाण पुण मुणिवरिंद ! वयणाण निहयमोहेण । तह पडिबुज्झइ मुज्झइ जह न पुणो निययतत्तम्मि ॥ २८८३ ।। एसा पणंगणा इव मणाणरागं भवदिठई जणइ । मोहबहलाण न उणोवलद्धसविसद्धबोहाण || २८८४ ।। ता अज्ज नाह ! तुह वयणवट्टिसत्तबोहनिवहेहिं । मह मणभवणे सुविवेयदीवओ तह समुज्जलिओ ।। २८८५ ॥ जह मोहमहातिमिरस्स नत्थि मणयं पि तत्थ अवयासो।अहवा विरुद्धसविहम्मि कह विरोहिस्स होज्ज ठिई ।। २८८६ (जुयलं) देस अओ नियदिक्खं महापसायं महोवरि विहेउं । अपसन्नेस गरूसं इमीए लाभो न जं होइ ।। २८८७ ।। चिंतामणिमाईया अज्ज वि लब्भंति कह वि संसारे । तुह दिक्खा उण मुणिनाह ! भावओ लब्भए नेय ।। २८८८ ।। तो केवलिणा भणियं कायव्वमिमं खु भव्वसत्ताण । सुलहा न हु सामग्गी जं होइ इमीए लाभम्मि ॥ २८८९ ।। तथा चोक्तम् - चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो । माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ॥ २८९० ॥ कालाणुरूवकिरिया कीरंती किंतु बहुफला होइ । कालाविक्खा वि अओ कायव्वा बुद्धिमंतेहिं । २८९१ ।। भणियं च - कालम्मि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ । इय सव्व च्चिय किरिया नियनियकालम्मि विन्नेया ।। २८९२ ।। कालो उ सो इमीए उत्तमफलसाहगो भवे राय ! । चारित्तावरणीयस्स कम्मुणो जत्थ खउवसमो ।। २८९३ ॥ तुह उण चारित्तावरणकम्मउदयम्मि वट्टमाणस्स । अज्ज वि के वि हु दियहा अविक्खणिज्जा भविस्संति ॥ २८९४ वेरग्गं पि हु पोढं होही तुह तम्मि चेव कालम्मि । एयस्स चेव नरवर ! निमित्तओ हत्थिरायस्स ।। २८९५ ।। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय भणिऊण मुणिंदे मोणेण ठियम्मि भणइ नरनाहो । विणओणयसिरिपंकयविरइयपवरंजलीबंधो ॥ २८९६ ।। मुणिनाह ! जं पयंपसि, तहेव तं नत्थि एत्थ संदेहो । संसारभउव्विग्गो करेमि विन्नत्तियं तह वि ॥ २८९७ ।। जइ वि हु न अस्थि मह एत्थ अवसरे जोग्गया वयग्गहणे । तह वि दुवालसभेयं सावयधम्मं पवज्जामि ।। २८९८ ।। पंचाणुव्वयमेत्तो पुट्विं पडिवज्जिओ मए धम्मो । गिण्हामि इयाणिं नाह ! सत्त सिक्खावयाई पि ॥ २८९९ ॥ तो अतिहिसंविभागंतदिसिवयाई वयाई सव्वाइं । दिन्नाई उचियभंगेहिं मुणिवरिदेण नरवइणो । २९०० ।। एवं च पुव्वपडिवन्नऽणुव्वएहिं समं एमेहिं च । बारसविहगिहिधम्म पडिवज्जेऊण नरनाहो ।। २९०१ ।। भत्तिभरोणयसीसो नमिऊण महामुणिं गओ सगिहं । बारसविहं पि धम्मं अणुसमयं अणुसरेमाणो ॥ २९०२ ।। रज्जेण समं धम्मं परिवालंतस्स तस्स वच्चंति । जा तत्थ केत्तियाई वि दिणाई तावऽन्नदियहम्मि ॥ २९०३ ।। अत्थाणगयस्स पुरो आगंतूणं सहाइ मज्झम्मि । पडीहारो विणयणओ विन्नत्तिं कुणइ अभिउत्तो ।। २९०४ ।। देव ! दुवारे दूओ चिट्ठइ देवस्स दंसणाकंखी । जइ जायइ आएसो ता पविसावेमि तं मज्झे ॥ २९०५ ॥ तो भणइ नरवरिंदो सिग्घं पेसेसु तयणु सीसेण । आणं पडिच्छिऊणं नीहरिओ तं पवेसेइ ।। २९०६ ।। दिन्नासणोवविट्ठो दठूण सभागयं नरवरिंदं । दूओ कुसग्गबुद्धी सावट्ठभो भणइ एवं ॥ २९०७ ।। रविण व्व निययतेएण जेण हिममहिहरो व्व रिउनियरो । तावितेणं विहिओ महावयानिवहआलीढो ॥ २९०८ ।। बहुसत्तिसंपयाए पालितो जो महीयलं सयलं । पुहईपालो त्ति नियं नामं च जहट्ठियं कुणइ ॥ २९०९ ।। आलिंगिऊण गाढं सो मज्झ पहू तुमं सिणेहेण । इय भणइ मह मुहेणं दूयमुहा जेण रायाणो ॥ २९१० ॥ आणंदं तुज्झ गुणा जणंति दूरट्ठियस्स वि महंतं । गरुयाण वि कुमुयाण व किरणा ससिणो जयप्पयडा ।। २९११ ।। तुह सयलदिसापयडा कित्ति च्चिय कहइ विणयसंपत्तिं । पुप्फसिरी इव फललच्छिमसरिसिं गरुयरुक्खस्स ॥ २९१२ पयडइ मणोगयं तुह सुसीलयं नीइसारसुपवित्ती । जम्हा कुसीलयाणं न हणइ न य पक्खवाओ वि ॥ २९१३ ॥ इय कित्तियं व भन्नउ गुणेक्कनिलयस्स तुज्झ नरनाह ! । केवलमेत्थावसरे दप्पेण विणासियं किं पि ॥ २९१४ ॥ अहवा गुरुगुणभूसिए वि को वि हु हवेज्ज खलु दोसो। चंदस्स व सकलंकत्तदूसणं बहु गुणत्ते वि ॥ २९१५ ॥ दप्पाओ च्चिय तुमए पुब्विल्लठिई विलंघिया इन्हिं । जम्हा तुह पुव्विल्ला सया नया अम्ह पुव्विल्ले ॥ २९१६ ।। दठूण बंधणं करिवराण नरवइ गिहेसु मयवसओ । को नाम अत्तणो हियमिच्छंतो तो करेज्ज विऊ ।। २९१७ ।। जच्चंधो व्व न पेच्छइ मयमूढो अत्तणो हियं अहियं । सो अहव दिट्ठिए च्चिय न नियइ इयरो वि मणसा वि ॥ २९१८ किंच सरीरसमुत्था मयाइणो सत्तुणो समाइट्ठा । नीईए तज्जएणं एत्थ सुही होइ नरनाहो ॥ २९१९ ॥ जो पुण निययं पि मणं अरिछक्काओ न रक्खिउं सक्को । सो परिभूइभयाओ व अत्तणो मुच्चइ सिरीए ।। २९२० ।। अंकुसकिरिय व्व गएण तुज्झ सढया मए चिरं सहिया । इण्हि तु अविणओ जो तए कओ दुस्सहो स पुणो ॥ २९२१ वणकेलीगयराओ जो तुह सयमेव आगओ नयरं । सो तुमए च्चिय गहिओ त्ति साहियं मह चरेहिं इमं ।। २९२२ ।। किर नट्ठि वत्थुसामी अहं ति तोऽलं तुमं सयं चेव । पेसेसि मज्झ इइ चिंतिऊण दियहे ठिओ कह वि ॥ २९२३ ।। Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो ११३ जाव अहं ताव तुमं सयमेवुवगिन्हिऊण तं हत्थिं । मज्झावेक्खारहिओ ठिओ सि न हु जुत्तमेयं ति ॥ २९२४ ।। इय तुज्झ मए कहियं जं जाणसि तं करेसु अत्तहियं । नीइरयणागरो तं न होसि जं सिक्खणिज्जो त्ति ॥ २९२५ ।। एवं च जइ वि एवं तह वि हु गुणपक्खवायओ तुज्झ । पभणामि किं पि तमहं परिहवणिज्जो न होसि जओ ॥ २९२६ इय बहुवयणं अवगम्म होसु नमिरो समप्पसु गयं तं । मोत्तुं उयहिं रयणाण ठाणमिह जं न हुति दहा ।। २९२७ ।। दाही अवरे वि गए एक्केणिमिणा पसाइओ सामी । रुट्ठम्मि तम्मि पुण तुह न एस होहिंति न हु अन्ने ॥ २९२८ ।। मोत्तूण ताऽभिमाणं गंतुं पहुपायवच्छलो होसु । करिलाभे पुण लुद्धो इमेण मूलं पि हारिहिसि ।। २९२९ ॥ अहयं पि तहा भणिहामि तं जहा तुज्झ अविणयं खमिही । मह वयणेणं जम्हा जलं पि दुद्धं तहिं होइ ।। २९३० ॥ तो जइ हियमिच्छसि अत्तणो तुम ता करेसु मह भणियं । अह न वि तो नियरमणीण रहसि चाडूणि कुण गंतुं ॥ २९३१ तो वयणमक्खिवंतो सगव्वमिइ तस्स वइरिदूयस्स । नरनाहदिह्रिसन्नाए सन्निओ भणइ जुवराओ ।। २९३२ ।। रे दूय ! पसमविणयप्पहाणवरनीइजुत्तिसंजुत्तं । को अन्नो तुमं मोत्तुं भणेज्ज एयारिसं वयणं ।। २९३३ ॥ कह तस्स तुज्झ पहुणो घरम्मि लच्छी न होज्ज पउरयरा । जस्स सया सन्निहिया तए सरिच्छा पवरपुरिसा ।। २९३४ जइ पुन्नवसेण करी गिहमम्ह समागओ कह वि एक्को । ता कीस एत्तिएण वि तुह पहुणो अक्खमा जाया ॥ २९३५ सप्पुरिसाणं छज्जइ न मच्छरो एरिसो कह वि काउं । पररिद्धिं पेच्छंताण ताण जं सोक्खमहिययरं ॥ २९३६ ।। अम्ह किर अक्कमो ताव एस निययं अदाउकामाणं । परवत्थुजिगीसंताण तुम्ह किं भन्नउ कमस्स ।। २९३७ ।। उवउज्जइ कत्थ इमं वयणं जमहं कमेण एत्थ पहू । खग्गबलेण जओ खलु भुज्जइ पुहई न उ कमेण ॥ २९३८ ॥ न य एस कमो वि इहं जं घेप्पइ दुब्बलाओ बलिएणं । पुन्नोवलद्धहयगयरहाइ काउं बलक्कारं ॥ २९३९ ।। अह न बलामोडीए मग्गइ सो किंतु पणयभणिईए । तो किं भयोवदंसीणि भणइ वयणाणि णे एवं ।। २९४० ॥ अवि य परवारणा किं न वारणा संति तस्स के वि घरे। किंतु मिसेण स इमिणा अम्हे अभिभविउमभिलसइ ॥ २९४१ बलवं जो अहमेवं दप्पो सो वि हु न तस्स खेमकरो । अहियक्कमो वि अहिओ हरिस्स घणघणो जेण ।। २९४२ बलगव्वेण य गरुयाण लंघणं निप्फलं विहेउमणो । सयमेव खलो मुणिही दुब्बलबलियाण सविसेसं ।। २९४३ ॥ अवि य उवेच्चकुणं तुज्झ पहुं सुत्तसीहपडिबोहं । किं न हणइ मह ताओ निवारणी होज्ज जइ न खमा ।। २९४४ ।। जओजो हणइ अरिं अभिउंजिऊण सविसेसओ उ अभिउत्तो। सयमेव दहइ दहणो किं पुण पवणेण परियरिओ।। २९४५ ।। अन्नं च - विजिगीसिज्जइ सत्तू खयवं वसणी व दिव्वहयगो वा । के गणिया तुह पहुणा जिगीसुणा तेसु भण अम्हे ।। २९४६ ।। गरुए रिउम्मि पियमिच्च साहगं होइ न उण हढकिरिया । तुह पहु इमं पि न मुणइ कुओ मयंधाण सन्नाणं ।। २९४७ अवरं च तुज्झ नाहो भुंजइ रज्जं अकंटयं तस्स । सामत्थेणं जइ मह न होज्ज सामी सयणुकूलो ।। २९४८ ।। मह पहुसंकाए च्चिय सत्तूहिं न परिभविज्जई एसो । काविलपुरिस्स व किं इमस्स न हु मुणसि निग्गुणयं ॥ २९४९ ।। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय तस्स सुणिय वयणं उद्दीवियमच्छरो भणइ दूओ । गुरुगव्वक्खलिरगिरो पुरओ पुरओऽभिसप्पंतो ॥ २९५० ॥ अकुसलकम्मोदइणो बुझंति सयं न न य परुवएसा । समई च्चिय पुन्नग्गलाओ जाणंति करणिज्ज ॥ २९५१ ॥ न निमित्तमेत्थ सत्थं न सुयणभणिई न गुरुयणुवएसो । कुसलाकुसला हि मई दिव्ववसा जायइ नराण ॥ २९५२ ॥ निय पोरुसं कहतो सो सोहइ जो तहेव निव्वडइ । विक्कममयमत्ता उण हासट्ठाणं रणे हुंति ।। २९५३ ॥ जो अत्तणो परस्स य पढम चिय अंतरं न चिंतेइ । परिणामदारुणो से सरहस्स व विक्कमो मेहो ॥ २९५४ ।। इच्छंतो अहियसिरिं मइमंतो अत्तणो कुणउ वेरं । सह अहमेण समेण व बलवंतेणं तु तमजुत्तं ॥ २९५५ ॥ पेच्छंतो बहुपरिवारमप्पणो हयमई जियं चेव । सव्वं मन्नइ न मुणइ कज्जे विरलो च्चिय सहाओ ॥ २९५६ ।। नइवेगाओ पडणं दळु थड्ढाण सालविडवीण । वेयसतरु व्व नमिरो न होज्ज को नाम अहियबले ॥ २९५७ ॥ बहुसत्ता अविलंघा थिरा सया जइ वि हुंति ते दो वि । हरयस्स हरयवइणो तहा वि गुरु अंतरं दिळें ॥ २९५८ ॥ पियजंपिरपरिवारो सुहिए च्चिय मा हु वीससेज्ज तुमं । तारयगणपरियरिओ वि राहुणा जं ससी गसिओ ॥ २९५९ ॥ बहुतरुवरपरिवारियमवि धरणिधरं समं पि रुक्खेहिं । अन्नं च किं न पारइ पलाविउं जलनिही खुहिओ ॥ २९६० ।। सयमेव तए भणियं रणम्मि पयडं भविस्सइ परं च । जीहाए विणा जम्हा जाणिज्जइ न हु रसविसेसा ।। २९६१ ।। अहिए हिओवएसेण किं व मझं करेसु अभिरुइयं । पडिकले जमुवेक्खा हियसिक्खा होइ अणुकूले ।। २९६२ ।। ससुओ समागमित्ता तस्स सहं मुक्कमच्छरो होउं । पूयसु नियसिरकमलेहिं रणमहिं वा गलचुएहिं ।। २९६३ ।। इय तस्स गिरं सोउं खुहिया जुवरायपमुहसयलसहा । संपइ धरिया रन्ना अणुवायकरो त्ति कलिऊण ॥ २९६४ ।। वच्च तुम उचियगिहासणाइ ववहारमेयस्स कारेह । इय भणिऊण निउत्तं समुट्ठिओ नरवई तत्तो ।। २९६५ ।। सेसो वि सहालोओ विसज्जिओ तेण उठ्ठिऊण गओ। नियनियगिहाई रन्नो पायपणामं करेऊण ॥ २९६६ ।। जुवराएणं सद्धिं राया वि समं च मंतिवग्गेण । मंतणघरं पविट्ठो मंतीणं सम्मुहं भणइ ।। २९६७ ।। अम्हे वि नीइमग्गे कोसल्लं जं गया स तुम्ह गुणा । सो रविकराण महिमा जगं पयासेइ जं दिवसो ॥ २९६८ ।। अवि मेरुसमे वि ममं का चिंता आगयम्मि कज्जम्मि । सव्वत्तो वि हु जग्गंति तस्स तुम्हारिसा गुरुणो ।। २९६९ ।। को नाम नियट्टेज्जा अपहाओ पए पए परिखलंतो। अम्हे गए व्व मत्ते जइ होज्ज न अंकुसा तुन्भे ।। २९७० ॥ तुब्भं चेव मईए पुरक्कओ विक्कमो फुरइ अम्हं । न हि सत्तेओ वि रवी असारही जाइ नहपारं ॥ २९७१ ॥ जं तेण दूयवयणेण भासियं अम्ह निठुरं वयणं । तं तुब्भेहिं वि निसुयं सभागएहिं किमु भणामो ॥ २९७२ ।। तं तह सुणिउं सहसा जं मह कोवेण तरलियं न मणं । तममंति तस्स गेहं ति भाविलोयाववायभया ॥ २९७३ ॥ उदयंतो च्चिय वइरी निग्गहिओ नेय पयडइ वियारं । रोगो व्व इइ मईए सो अम्हे हणिउमभिलसइ ।। २९७४ ।। एत्तो च्चिय दंडाओ न परो तन्निग्गहे उवाओ त्ति । जइ अत्थि भणह सव्वन्नुणाहिआराओ धीविविहा ॥ २९७५ ।। इय भणिऊण नरिंदे मोणेण ठिए पयंपए मंती । पुरभूई नामेणं नयविणयविसिट्ठमिह वयणं ।। २९७६ ॥ तुम्ह पसाएणम्हे मईए रिद्धीए भायणं जाया । तम्हा तं चिय अम्हं गुरू सुही सामिओ बंधू ॥ २९७७ ॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ पउमनाहनिवो तुह पुरओ दिट्ठपरंपरस्स कज्जण्णुणो य मह सरिसो । लज्जइ कह न भणंतो न य सत्थलविक्कलित्तमई ॥ २९७८ न हि कज्जपंडियाणं सत्थविऊ सुंदरो वि सहइ पुरो । जंपतो जं लक्खणमलक्खवेइस्स केरिसयं ।। २९७९ ॥ अहियारपयठिएहिं तह वि पहू निययबुद्धिअणुसरिसं । सिक्खवियव्वो जम्हा कस्स वि किंचि वि परिप्फुरइ ।। २९८० विजिगीसुणा नरेणं निच्चं नयविक्कमा न मोत्तव्वा । फलसिद्धीए न हेऊ अन्नो जमिमे परिच्चज्ज ।। २९८१ ॥ नयविक्कमाण वलिओ नओ य अमओ परक्कमो विहलो । सपरेण वि जं हम्मइ सीहो हयमत्तगयनिवहो ॥ २९८२ बलवंतो वि अरी खलु सुहसज्झो होइ नीइवंतस्स । जमुवायविऊ बंधंति वणयरा मत्तहत्थि पि ॥ २९८३ ॥ नयमग्गममुंचंतस्स जइ वि विहडेज्ज कह वि कज्जगई । पुरिसस्स नावराहो विहिणो च्चिय दूसणे तत्थ ॥ २९८४ ।। नयसत्थदंसिएणं मग्गेण न संचरेज्ज जो सययं । सो बालो व्व अलायं आयड्ढइ अत्तदहणत्थं ॥ २९८५ ।। इइ तं विवेइपढमो अरिम्मि सहसा पउंज मा दंडं । जं सामेणं वि समिही अहिमाणधणो पुहइपालो ।। २९८६ ॥ माणधणो जं अहियं पच्चुयदंडेणं दंसइ वियारं । उवसमइ न कइया वि हु निव्वाइ किमग्गिणा अग्गी ।। २९८७ ।। पढमं रिउम्मि सामं जुजेज्जा तयणु भेयमाईए । दंडो उण अंते च्चिय रिउस्स भणिओ विवेईहिं ।। २९८८ ॥ दोससयं फुसिउमलं नरस्स एक्कं पि होइ पियवयणं । अवि जलियविज्जुपुंजो जलेण जंवल्लहोजणे जलओ॥ २९८९ (गीतिका) दंडेण बलस्स खओ उवप्पयाणेण अत्थहाणीओ। कवडंतिजसविणासो भेएण अओ सिवं साम ! ।। २९९० ।। इय नयसारं वयणं भणिउं पुरुभूइणा कए मोणे । सासूयं जुवराओ पोरुससारं भणइ वाणिं ।। २९९१ ॥ पढियव्वमन्नहा ठियगिहकरणिज्जं तु अन्नह च्चेय । न हि पुट्ठिभार जुज्जइ जयभावियजोग्गओ वसहो ॥ २९९२ ।। पररिद्धिबद्धमच्छरनिक्कज्जपरूसणे पियमरिम्मि । विहलं चिय होइ कयं विसमसहावो हु जेणखलो ।। २९९३ ।। विसयम्मि खलु निउत्तो बलवंतो सुंदरो वि उववाओ । न हि वज्जघायजोग्गम्मि कमइ लोहाउहं उवलो ॥ २९९४ ।। अन्नं च - दंडं चिय बिंति सूरिगव्विए पक्खमाणणा पवणे । किमुवेइ कत्थ वि वसं अनत्थनासो बलीवद्दो ।। २९९५ ॥ जो गुणनमिरो होउं सयं पि परपरिभवं सहेइ नरो । दिट्ठपहेहिं भरिज्जइ जलेहिं जलहि व्व सो तेहिं ॥ २९९६ ।। वट्टसहावम्मि जणे अइनमिरो पावए न हु पमाणं । पयडो च्चिय दिळेंतो एत्थऽथवा कुवलयच्छीण ॥ २९९७ ॥ कणयं व ताव पुरिसो गरुओ जाव न परिहरेहिं कयतुलणो । तोलिज्जतो उण तक्खणं पि गुंजाहलाइ समो ॥ २९९८ सिवहेऊ होइ खमा जईण न उणो नरिंदचंदाण । बहुणा दूरंतरिओ मोक्खस्स भवस्स जं मग्गो ॥ २९९९ ।। अफुरियतेयाण सया पराभवो चेव होइ पुरिसाण । रिट्ठो वि सिरे पायं देउलसीहाण जं कुणइ ॥ ३००० ॥ अवि य - सरिसे वि वइरिभावे सया वि जं ससहरं गसइ राहू । दिणनाहं पुण कइया वि किं पि तं तेयमाहप्पं ।। ३००१ ।। सययं पराणुवत्तणपरस्स किविणस्स जीवियं धिद्धी । अणुणित्तु परं सुणहो व्व जियइ जोऽणुचियललणेहिं ।। ३००२ चइऊण निययपोरुसमणुगच्छइ चाडुएहिं जो वइरिं। पयडइ असारयं सो अवुट्ठिजलओव अत्तणो गज्जन्तो॥ ३००३ (संकिन्नयं) १० Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं वरमप्पत्तभवो च्चिय गब्भविलीणो व सो लहु मओ वा। परिभूयजीविओ जो सहिज्ज अवमाणणं पुरिसो॥ ३००४ ।। रहिओ नियतेएणं केण न वाहिज्जए पसु व्व बला । एत्तो च्चिय सप्पुरिसाण वल्लहा एत्थ हरिवित्ती ॥ ३००५ ।। चुयनीइवयणमेयं एगंतेणं ति मा य अवगणह । कालबलाविक्खाए भणामि जं सव्वमहमीसं ॥ ३००६ ।। सयमेव जाणइ पहू खीणबलो सो रणम्मि बलरन्नो । मित्तव्वसणी य तहा महाबले कुलजविग्गहिए ॥ ३००७ ।। जुज्जइ अभिगंतुमओ वुड्ढिमओ तुज्झ सो खयाभिमुहो। पुन्नग्गलओ ठाणट्ठिओ व्व पभवेज्ज सत्तूसु ।। ३००८ ।। जुवरायगिरं करणिज्जपेसलं भाविऊण तो भणइ । भवभूई नियपहुणा पलोइओ निद्धदिट्ठीए ।। ३००९ ।। नयसारे सयलम्मि वि जुवराएणं विवेइए कज्जे । अवरो जं इह जंपइ सो नूणं कीरपडिसद्दो ॥ ३०१० ।। विमलसमुज्झियन्नयममुक्कपोरुसमहीणनयवायं । गिरमेरिसमेसो च्चिय, पभणइ अहवा सुराण गुरू ।। ३०११ ।। तह वि अणुयत्तणं अहमिमस्स काउं न उच्छहे सहसा । विहिणो वि दुरव सज्झे कज्जे सुज्झेज्ज कह न जणो ।। ३०१२ जओसुवियारिऊण कज्जं मइमं तो कुणइ अहव न करेइ । एमेव कज्जकरणं पसूणधम्मो न पुरिसाण ।। ३०१३ ।। अह एवमेव दोन्ह वि चेट्ठा अविवेयपुव्विया चेव । माणुसपसूण ता भण किमंतरमसिंगिसिंगिकयं ॥ ३०१४ ।। भणियं च - सगुणमपगुणं वा कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्नतः पण्डितेन । अतिरभसताना, कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्यतल्यो विपाकः ॥ ३०१५ ॥ अन्नं च एत्थ अत्थे, सुव्वउ लोयप्पसिद्धमक्खाणं ! एगम्मि सन्निवेसे आसि पुरा मरुइणी एगा ।। ३०१६ ॥ तीसे गेहपुरोहडवाडीए, वसइ एगिया नउली । सा एइ खंडणं पीसणं च तीए कुणंतीए ।। ३०१७ ।। तत्थाणनिवडिएणं कणे चुणितं पलोइडं एसा । तीए अणुकंपाए, अहिए वि कणे तहिं खिवइ ।। ३०१८ ।। सा वि तओ लोभेणं लहुं लहुं एइ तयणु दोन्हं पि । अन्नोन्नं पडिबंधो, जाओ अणवरयदंसणओ ॥ ३०१९ ॥ अन्नम्मि दिणे जायाई, नउलरूवाइं तीए नउलीए । इयरीए उण पुत्तो, समकालं दिव्वजोएण । ३०२० ॥ सा पेल्लिरेहिं सहिया, आगच्छइ बंभणीए पासम्मि । सा ते खेल्लावेई पायइ दुद्धं च तुट्ठमणा ॥ ३०२१ ।। चिंतइ य मज्झ पुत्तस्स कीलणाई इमाई होहिंति । एवं च अन्नदियहे, गेहस्स दुवारपंगणए ।। ३०२२ ।। खंडतीए तीसे, सा नउली आगया पविट्ठा य । गेहस्स मज्झ देसे पेच्छइ तं सुत्तयं बालं ।। ३०२३ ॥ अन्नं च सप्पमेगं, चडतयं तस्स चेव बालस्स । लहुमंचियाइ तत्तो, चिंतइ एसा इमं हियए ।। ३०२४ ।। एस मह सामिणीए चडिओ मंचीइ खाइही पुत्तं । ता विणिवाएमि इमं, इय चिंतिय तीए सो गहिओ ।। ३०२५ ॥ खंडाखंडिं काउं, सरुहिरखरंटिएण वयणेण । संपत्ता तीए पुरो, पयडंती चाटुए नियए ।। ३०२६ ।। एत्थंतरम्मि दटुं रुहिरेण खरंटियं मुहं तीसे । आ पावे ! मह पुत्तं, खइउं पत्ता सि एत्थ तुमं ।। ३०२७ ।। इय भणिऊणं मुसलेण ताडिया तह मुहम्मि सा वरई । दसविहपाणेहितो, जह झ त्ति पुढो इमा जाया ।। ३०२८ ।। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो ११७ हा पुत्तय ! पावाए किं विलसियमेरिसं ति इय भणिरी । जा पविसइ सा मज्झे, ता पेच्छइ सुत्तयं बालं ॥ ३०२९ ।। खंडाई बहूयाई, विहियं सप्पं च पासिउं तत्थ । पच्छायावपरद्धा, चिंतइ हा ! सुंदरं न कयं ॥ ३०३० ॥ पढम चिय रोसवसे, जा बुद्धी होइ सा न कायव्वा । अह कीरइ कह व तओ, न सुंदरो तीए परिणामो ।। ३०३१ ।। इय जं भणंति विउसा तं सच्चं चिय न एत्थ संदेहो। अवियारियकयकोवाइ जं मए घाइया नउली ।। ३०३२ ।। ता जह साडोड्डणिया, पच्छायावस्स भायणं जाया। अवियारियकयकज्जो अन्नो वि तह च्चिय हवेज्ज ॥ ३०३३ ।। तम्हा एत्थ य कज्जे नरिंद ! ता मह मई फुरइ एवं । जं पभणइ जुवराओ, तं कीरउ किंतु सविलंबं ॥ ३०३४ ।। जं परिमुणियारिबला पोढमई छग्गुणे पउंजेह । रिउसव्वस्सं सव्वं, चरेहिं अवगाहह समंता ।। ३०३५ ॥ सपरविभागावगमे, सयं पि तुब्भे वि उज्जया होह । तुरियमुभयाणुजाई भिच्चा य वसीकरिज्जंतु ।। ३०३६ ।। अरिसामवाइया वि हु, तह भेइज्जंतु निउणबुद्धीए । अलिओवनिबंधपरेहि, सासणेहिं असारेहिं ।। ३०३७ ।। अन्नं च तुम्ह मित्तं भीमरहो अत्थि तस्स सच्चमिणं ! जाणाविज्जउ कज्ज, आणाविज्जउ य सो एत्थ । ३०३८ ॥ जम्हा सो खलु तुम्हच्चएण लेहेण तुरियमागमिही । समसुहदुक्खो जं तारीसो हु अन्नो न अस्थि सुही ॥ ३०३९ ।। जओ - सो राया जो पालइ पयाओ नीईए नियपयाउ व्व । सो सुकई जस्स रसग्गलाई वयणाई सव्वत्थ ।। ३०४० ॥ सो पुत्तो जो नियवंसउन्नई कुणइ गुरुयणे भत्तो । तं मित्तं सुपवित्तं, जं खलु वसणाणुयत्तेइ ॥ ३०४१ ।। तं असमतेयकलियं, पावेऊणं सहायमइबलियं । घणविगमं व रवी तुममच्चग्गलतेयवं होही ॥ ३०४२ ॥ जो वि इमो रिवुदूओ, सो वि पहिज्जउ इमं भणेऊण । मासावहीए करिणं, समरं वा तुज्झ दाहामि ॥ ३०४३ ।। इय हियमियवयणमिमस्स सुणिय अणलसमई महीवालो । सयलाभिमयं मंतिस्स सव्वमणुमन्नइ पहिट्ठो।। ३०४४ ।। उट्ठइय मंतणाओ, काऊणावस्साई कज्जाई । मंतिस्स कुणइ वयणं, गुरू न लंघति जयकामा ॥ ३०४५ ॥ अह अन्नदिणे गणएण दंसिए, दोसवज्जिए सगुणे । मिलिएसु भीमरहमाइएसु सयलेसु राईसु ।। ३०४६ ॥ अणुकलसउणपवणुच्छलंतअहिययरचित्तउच्छाहो । पडिवक्खजिगीसाए, नयराओ विणिग्गओ राया ।। ३०४७ ।। पसमियतममाहप्पो, जणनयणाणंदणो सुतेइल्लो । संकिन्नगुणत्तेणं, जो भाइ ससि व तरणि व्व ।। ३०४८ ॥ अवि य - जस्सुवरिधरियधवलायवत्तमाभाइ नियजससरिच्छं । आणंदियसयलजणं निरुद्धतेयस्सिमाहप्पं ॥ ३०४९ ।। जलहरमग्गविसाले उरत्थले जस्स तह य हारो वि । तारयगणो व्व सुहससिसेवाए समागओ सहइ ॥ ३०५० ॥ वरकुंडलग्गसंलग्गपोमरायज्जुईए विच्छुरिया । जस्स भुया गेरुयरेणुरुइरकरिसुंडसारिच्छा ॥ ३०५१ ॥ जो वित्थारइ गयणे मेघाभावे वि इंदधणुलच्छि । पंचविहमउडमणिविप्फुरंतघणकिरणजालेण ।। ३०५२ ।। परिभविही मंडलिए रिउविजयविणिग्गओ इमो त्ति भया । ससिरविणो रयणंगयछलेण सेवंति जस्स भए ।। ३०५३ वरहारतरलमरगयमणिकिरणचएण पूरियं जस्स । जमुणा दहस्स लच्छि, विलुंटए नाहिकुहरं च ।। ३०५४ ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं दिव्वसरीरपरिग्गहविरायमाणो सुरेहिं व सुरेसो । बहुमयगुरूचलंतो अणुगम्मइ सो नरिंदेहिं ॥ ३०५५ ।। (कुलय) तहा - हयवारकरायड्ढियकढिणकुसापिंडियग्गगीवेहिं । दुक्खं गम्मइ पहि पहियसंकुले खलिरतुरएहिं ॥ ३०५६ ।। तुरगिनिरुद्धरएहिं हरीहिं नहसमुहमुप्पयंतेहिं । जाओ तरलतरंगाउलो व्व बलसायरो तइया ।। ३०५७ ।। अच्चग्गलपसरियनिवबलाण पेच्छिय महत्तणं च लहुं । तुरयखुरक्खयरगपसियमंबरं लज्जियं नळं । ३०५८ ।। गयणे सविज्जुपुंजा पाउसजलया धरंति जं लच्छि । रयणत्थरणधरेहिं धरिया धरणीए सा चलकरीहिं ।। ३०५९ (गीतिका) एक्को वि हु खविउमलं, रिउकुलमेसो किमेत्थ तुब्भेहिं । इय गयसमुहं रुणरुणिरभमिरभमरं भणंति व्व ।। ३०६० ।। नरनाहविजयजत्ताइ जयकारी जं मएण सिंचंति । हरिखरखुरक्खयरयं तेण जणा संचरंति सुहं ।। ३०६१ ।। खरखुरुनिवायदारियभूमीण तुरंगमाण विसमपहे । खलणुच्छलंतचक्कं संचलियं रहसमूहेण ।। ३०६२ ।। न सहइ करमेस निवो, जयवं अन्नस्स महियलम्मि रवी । इय चिंतिउं व जाओ, अविरलरहधयवडंतरिओ ॥ ३०६३ जं निवविक्कमबीयं रविउमणेहिं रहवरेहिं भूमियलं । कसियंत पूरिज्जइ, गयमयसलिलप्पवाहेहिं ।। ३०६४ ।। चलियसिलोच्चयगुरुणा, करिभारेणं निपीडियसरीरा । नित्थणइ व रहचक्कारवेण भूमी बहिरियासं ॥ ३०६५ ॥ रहवरचिक्कारमिसेण बलभरत्तं पलोइऊण धरं । कंदंति पंडिसद्देण तमणु रोयंति व दिसाओ ॥ ३०६६ ॥ जा जंति केत्तियाई वि, पयाइं अइरहसनिग्गयनरिंदा । सह परिमियपरिवारेण सामिसेवा समुज्जुत्ता ।। ३०६७ ।। कत्तो वि ताव पत्तेहिं झ त्ति पुरओ पयाइनिवहेहिं । परिवारिया विरायंति ते वि नियसामिणो अहियं ।। ३०६८ (जुयल) परिहियकालायसवारबाणकसिणं पयाइविंदं च । लक्खिज्जइ निवपुरओ, रविभयसरणागयतमं व ॥ ३०६९ ।। उन्नयवंसपरिग्गहगुणभूसियविग्गहा कुलवहु क ! मट्ठिगया जोहाणं, धणुल्लया जणइ आणंदं ।। ३०७० ।। मेहसरिच्छासु करेणुयासु आरुहियवारतरुणीओ । रयणाहरणधराओ, तडिलयसोहं विडंबंति ॥ ३०७१ ॥ सयलं पि पुरं उब्भडकुऊहलाउलियतरुणिदिट्ठीहिं । नीलुप्पलमालाहिं व, निवस्स अग्धं समुक्खिवइ ॥ ३०७२ ।। बहुपरिचियम्मि वि निवे, अरविंदेहिं व रविम्मि रमणीण । नयणेहिं वियसियमलं, कुऊहलं कस्स व न रम्मे ।। ३०७३ ओरोहवहूओ पडंतियाओ जणरावतसियवेगसरा । ल्हसियंसुयाओ तरुणे कुणंति कोऊहलाउलिए ॥ ३०७४ ।। कडयम्मि करिभयाओ कयकडुयरवं पलाइरोकरहो। चइऊण वोज्झ भंडं नडोव्व पोसइ जणस्स घणहासरसं ।। ३०७५ (संकिन्नय) एवं चिय सेरिभवसह मिंढमाईण विविहचेट्ठाहिं । कइकित्तणिज्जकडयम्मि वन्नणं कित्तियं कुणिमो ॥ ३०७६ ।। एमाइ विविहवइयरबहुले कडयम्मि नीहरंतम्मि । खुहियम्मि वि मयरहरे, पसरियहलबोलबहलम्मि ।। ३०७७ ।। गंतूण नाइदूरे पुरस्स काऊण सव्वसामग्गि। अणवरयपयाणेहिं, पयाइ राया सउच्छाहो || ३०७८ ।। आरामगामगोलपट्टणवरनयरनिगमपमुहाणि । लंघतो य कमेणं संपत्तो वाहिणिं सरियं ॥ ३०७९ ॥ जा य - बहुभंगतरंगसिरट्ठिएहिं हिमधवलफेणनिवहेहिं । सोहइ सायरजलओवरुद्धगिरिमंडिय व्व धरा ।। ३०८०।। Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो ११९ अवि य - मज्जंतमत्तवणकरिकरयडडोयलियमयजलालीढं । मयणाहिमंडणं पिव, विहाइ परिवेसि जीए भमरउलं। ३०८१ ।। (गीतिका) नाणाविहविहगेहिं उभओ पासट्ठिएहिं जा सहइ । निययविणोयकरहिं व, बहुविहकीलाइरमिरेहिं ॥ ३०८२ ।। गुरुमच्छमयरसुंकार दूरउच्छलियसलिलबिंदूहिं । जा य विरायइ तारयकुलाउला गयणवीहि व्व ॥ ३०८३ ।। जीए तडतरुवरंतरियतरणिकिरणासु पुलीणभूमीसु । सुरयसमसेयहारी, खेयरमिहुणाई रमइ सुहपवणो॥ ३०८४ (गीतिका) दिव्वंगरायघणपरिमलेहिं उवरंजियंबुपसरेहिं । नहदिट्ठाण वि जा खेयरीण पयडेइ जलकीलं ॥ ३०८५ ।। किंच - मत्तमयंगयजलहयवयणुव्वमियफेणपडलेहिं । जा पोसिज्जइ णं वाहिणीए समनामनेहेण ॥ ३०८६ ॥ से रम्मपरिसरेसुं, दिणाइं दो तिन्नि वीसमेइ निवो । हयगयरहपत्तिपहाणवाहिणीं वाहिणिनईए || ३०८७ ।। (कुलय) परिसक्किरकक्कडमीणमयररासिं समीरपयविं व । तं लंघिय अन्नदिणे, मणिकूडगिरिं समणुपत्तो ।। ३०८८ ।। उन्नयवंसो सिरिवच्छभूसिओ तुंगिमाइ लद्धजसो । गंभीरगुहाहियओ, उत्तिमपुरिसो व्व जो सहइ ।। ३०८९ ।। उल्लसिरकडयसोहो, जणमणहररम्मसीससंठाणो । दीसंतरुइरपाओ, रायकुमारो व्व जो य फुडं ॥ ३०९० ॥ अन्नोन्नघट्टणागयणपडियविज्जुज्जलब्भवंदं व । तं दतॄण नरिंदो, कसिणं मणिकिरणदित्तं च ॥ ३०९१ ।। चिंतइ निसासु सीसे, इमस्स चूडामणि व्व सहइ ससी । रयणुक्कडनियकडएहिं चेव कय असमसोहस्स ॥ ३०९२ ।। उव्वयरमेहलाणं, इमस्स कुण उज्जलाण ताराओ। अंतेसु फुरतीओ, कुणंति मणिकिंकिणीकिच्चं ॥ ३०९३ ।। पडवासकए अमरीहिं दड्ढकसिणगुरुधूमजलएहिं । वित्थारिज्जइ पाउससिरि व्व सीसे इमस्स सया ॥ ३०९४ ।। किन्नरगेयक्खित्तं, हरिणउलं निच्चलं निएऊण । गयणवरा सिप्पकुरंगविब्भमं एत्थ य कुणंति ॥ ३०९५ ॥ वारिता वि हु रवियरपवेसमोच्छइयगुहमुहा जलया। विज्जुज्जोयपयासियपिया पिया एत्थ खयराण ।। ३०९६ ।। निज्झरभरिज्जमाणाओ सिहरवावीओ एत्थ खयरीण । छिंदंति न जलकेलिं, अहो वि जलयम्मि वरिसंते ॥ ३०९७ ॥ एत्थ य मयंकसंगमझरंतससिकंतअमयपाणेहिं । जंति जरं न हु तरुणो निच्चुग्गयनवनवपवाला ॥ ३०९८ ।। रविकिरणतत्तमणिभूमियासु एत्थ य तुरंगममुहीओ । गंतुमपारंतीओ, गरुसेणिथणेसु रूसंति ।। ३०९९ ।। इय विविहच्छेरयसन्निहाणसंजणियचित्तहरणस्स ! मह एएण नगेणं, हरिया अन्नत्थगमणमई ।। ३१०० ।। इय चिंतिऊण राया सेणाहिवइस्स सम्मुहं भणइ । एत्थेव गिरिसमीवे चिंतसु सेणाइ विणिवेसं ॥ ३१०१ ॥ पुव्वं चिय पुरिसेहिं, मह भणिओ आसि एस मणिकूडो । रमणीययानिहाणं, बहुविहअच्छेरयावासो ॥ ३१०२ ॥ तो विणओणयसीसो, सेणाणी भणइ देव ! जो तुम्ह । आएसो सो कीरइ, इय भणिय पलोयए ठाणं ॥ ३१०३ ।। सुलहिंधणजलजवसं, दतॄणं तं च तक्खण च्चेव । कडयनिवेसं कारविय तयणु संपाडई रन्नो ॥ ३१०४ ।। तो पेच्छंतो घणकुसुमपरिमलुप्पीलवासियदिसाओ। गिरिपडपरूढबहुविहतरुवरवीहीओ नरनाहो ॥ ३१०५ ।। संचलिओ निययावाससम्मुहमहुन्हकिरणतावेण । मज्झन्हवत्तिणा जणियसेयबिंदूविसच्छाओ ।। ३१०६ ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० सिरिचंदप्पहजिणचरियं अन्नं च तस्स रन्नो, वीयकवोलेसु मोत्तियायारे । समबिंदू पासंतस्स रविकरोहो खरो वि सुहो ॥ ३१०७ ।। तो पेच्छइ वणिएहिं अग्गगएहिं कयाओ हट्टाण । पंतीओ पडमयाओ, कइगजणाउलियदाराओ ।। ३१०८ ॥ तत्तो पुरओ उत्तुंगतोरणं नियनिवासविणिवेसं । दठूण विविहभूमियमिमस्स आरुहइ उवरि खणं ।। ३१०९ ।। दठूणं सेणाए विणिवेसं सव्वओ वि अइरम्मं । कयआवस्सयकिच्चो, गच्छइ सेलं समारुहिउं ।। ३११० ।। पेच्छइ य तत्थ कत्थ वि तमालहिंतालतालतरुनियरं । कत्थ वि सज्जज्जुणसरलसल्लईसालसंघट्ट ।। ३१११ ।। कत्थ वि अंबंबाडयअंबलियामलियदाडिमीनियरं । कत्थ वि बिज्जउरियबोरिवीययासोयसाहिगणं ।। ३११२ ।। कत्थ वि चंपयकुरुबयकेसरनारंगनागसंघायं । कत्थ वि खज्जूरीनालिएरिफोफलिणिकेलिवणं ॥ ३११३ ।। कत्थ वि सयवत्तियजाइजूहियापारियायमंदारे । कत्थ वि सुसाउसीयलजलाओ निज्झरणमालाओ ।। ३११४ ॥ अन्नत्थ य कणयसिलानिबद्धदेवउलदिव्वपंतीओ । नाणाविहरयणविरायमाणपडिमोववेयाओ ।। ३११५ ॥ कत्थ वि नीलमहानीलपउमरायाइमणिविहाणे य । कत्थ वि महतरुप्पयसुवन्नफलिहामलसिलाओ ॥ ३११६ ।। दह्णेमाइपयत्थवित्थरं तयणु खित्तमणनयणो । जा वयइ उवरिहुत्तं, ता गरुयं नियइ जिणभवणं ॥ ३११७ ।। पवणमहल्लिरधयअंगुलीहिं तज्जेइ जं समग्गं च । रणझणिरकिंकिणीरवमिसेण आभासइ व्व जणं ।। ३११८ ।। दंसइ जणस्स हत्थयकवोयवालीनिलीणपक्खिउलं । जणरावेणुड्ढमुहं, उड्डीणं सग्गमग्गं व ।। ३११९ ॥ रमणीयमंजरीरयमाणग्गुवयरियसउणसंघायं । महुसहयारवणं पिव, विहाइ जं जणमणाणदं ।। ३१२० ।। वरसिप्पिकरोडयथालपट्टसंघट्टपत्तपरभायं । भोयणठाणं पिव जं, समिद्धसजिगीससामिस्स ।। ३१२१ ।। ओलंबियसुस्सरसारगरुयघंटाहिं जणियवरसोहं । मत्तकरिरायरूवं व जं च बहुलक्खणोवेयं ।। ३१२२ ।। तं दठूण पहट्ठो पविसइ पंचविहअभिगमेण निवो । जय जय जय त्ते भणिरो पासित्तु जिणिंदपडिमाओ ॥ ३१२३ सामंतमंतिमाईपहाणपरियणसमन्निओ तत्थ । अंतेउरेण सह गहियपवरपूओवगरणेण ।। ३१२४ ।। पंचंग पणिवायं, काऊणं पूइऊण य जिणिंदे । तिपयाहिणिऊण तओ, विहिणा चिइवंदणं कुणइ ।। ३१२५ ॥ पच्छा तो पुरुभूई पुच्छइ केणेयमेरिसं रुइरं । कारिवियं जिणभवणं भवियाणं मोक्खमग्गं व ॥ ३१२६ ।। तो पुरुभूई मंती, पयंपई देव ! सुव्वइ कहेसा । आसि पुरा अस्सेव य, नगस्स नियडे पुरं रम्मं ।। ३१२७ ।। नामेण लच्छिनिलयं, तत्थासी सीहसेणनामेण । नरनाहो विक्खाओ, दइया गंधारदेवी से ।। ३१२८ ।। तीए समं विसयसुहं, अणुहवमाणस्स को वि से कालो । वोलीणो अन्नदिणे, नीहरिओ नियपुराहिंतो ।। ३१२९ ।। महया आसबलेणं, पत्तो एयस्स चेव सेलस्स । रम्मेसु पुरसरेसुं, पारद्धीरमणकज्जेण ।। ३१३० ।। भवियव्वयानिओएण तम्मि ठाणम्मि तस्सहम्मि दिणे । एक्को वि हरिणगाई, पडिओ सरगोयरे न जिओ ॥ ३१३१ ।। ताहे चिंतइ किं कारणं तु मह अज्ज सपरिवारस्स । एक्को वि जिओ सत्थस्स गोयरं नागओ एत्थ ।। ३१३२ ।। इय चिंतंतेण तहिं खेत्ता सेलस्स सम्मुहा दिट्ठी । दिट्ठो य तन्नियंबे, महामुणी काउसग्गठिओ ।। ३१३३ ॥ पासट्ठियसूयरहरिणरोज्झससयाइजीवसत्थेण । उवसंतमणेणं मुणिमुहम्मि निक्खित्तनयणेणं ।। ३१३४ ।। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ पउमनाहनिवो भत्तिभरनिब्भरेणं पुणो पुगो नामि उत्तमंगेण । सेविज्जतो उद्धसियरोमकूवेण सव्वत्तो ।। ३१३५ ।।। तो चिंतियमेएणं, हुं नामिमस्स मुणिवरस्सेव । माहप्पेण न जाया पावस्स वि पावरिद्धी मे ।। ३१३६ ।। जत्तियमेत्ते खेत्ते, पसरइ दिट्ठी महातवस्सीण । तत्तियमेत्ते कस्स वि उवघाओ होइ न हु जेण ॥ ३१३७ ।। ता धन्नो अहमवि एत्तिएण जं सयलपावविद्दवणो । दिट्ठो मुणी महप्पा, मए वि पारद्धिपत्तेणं ॥ ३१३८ ।। संपइ पुण जइ पाए, इमरस गंतूण पणिवयामि अहं । ता जम्म पि कयत्थं करेमि न हु एत्थ संदेहो ॥ ३१३९ ॥ अन्नं च रन्नपसुया वि पज्जुवासंति जइ इमं साहुं । एवं उवसंतमणा, संपावियइट्ठलाभ व्व ॥ ३१४० ।। तो कह अम्हारिसया, सविवेया वि हु महामुणिं एयं । पत्तं महानिहिं पिव, अपुन्नवंता परिहरंति ।। ३१४१ ।। इय चिंतिऊण गंतूण सहरिसं नमइ मुणिवरं राया । हेयादेयविऊ को, व कुणइ न हु साहुसंबंधं ।। ३१४२ ।। तक्खणझाणसमत्तीए काउसग्गं मुणी वि पारेउं । अभिनंदइ तं खलु धम्मलाभआसीसदाणेण ॥ ३१४३ ।। भणइ य नरिंद ! जुत्तं, न तुम्ह काउं इमं महापावं । पारद्धी कीरंता, जं पोसइ पावरिद्धिमिमा ॥ ३१४४ ।। तुम्हे च्चिय पावपरद्धयाण सत्ताण सत्तहीणाण । सरणं नरनाह ! पराभविज्जमाणाण अन्नेहिं ।। ३१४५ ।। भणियं च - दुर्बलानामनाथानां बालवृद्धतपस्विनाम् । अनार्यैः परिभूतानां, सर्वेषां पार्थिवो गतिः ।। ३१४६ ।। अन्नंच तुम्ह हत्था, दप्पुटुरवइरिरंभणसमत्था । भयतरलविलक्खजियाण पहरमाणा कहं न लज्जति ॥ ३१४७ ।। (गीतिका) अह पोरुसयपयडणकारणाण तुम्हाण एस ववहारो । धिद्धी इमं पि असरणजियाण किं पोरुसं हणणे ।। ३१४८ ।। भणियं च - रसातलं यातु यदत्र पौरुषं क्व नीतिरेषा शरणो हादोषान् । विहन्यते यद् बलिनात्र दुर्बलो हहा महाकष्टमराजकं जगत् ॥ ३१४९ अहह पहारदढत्तं पहुस्स वलिवलिअमूढलक्खत्तं । एमाई जं पि जपंति चाडुयारा जणा के वि ।। ३१५० ।। तं पि हु परपावपरायणाण अमुणियसुतत्तमग्गाण । तुट्ठीए होज्ज वयणं, परलोयपरम्मुहमईण ।। ३१५१ ॥ भणियं च - पसुपेरंडविहरिसियउ निसुणवि साहुक्कारु । न मुणइ जं नारयदुहह दिन्नउ संचक्कारु ॥ ३१५२ ।। नयरपालजायणह, घणहं जो देइ उरु । जा उड्डइ निवडुंतिहि नरयासणिहि सिरु ।। ३१५३ ।। जो नियमसइ राय न रइ असणह मणइ । मंसरसिहि सो गिद्ध मुद्धमयउल हणइ ।। ३१५४ ।। हरियंकुरजलभोयणई, हरिणई हणइ हयास । अप्पु न चेयहिं नीसुइय, वलि कियविसयपिवास ।। ३१५५ ।। ता जीवदयापवरो, होसु महाराय ! मुयसु पारद्धिं । कारुन्नपहाण च्चिय, सुयणा जं हुंति सव्वत्थ ।। ३१५६ ।। किंच - परउवयारपसत्ता चयंति नियजीवियं पि सप्पुरिसा । किं पुण अभयपयाणं, न दिति जं वयणमणसझं ।। ३१५७ ॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं अन्नेहिं पुण भणियं - परपरिओससुहासाइ दिति दुक्खज्जियं धणं धीरा । किं पुण अभयपयाणं तवोवरिठं च इठं च ॥ ३१५८ ॥ इय सुणिऊण नरिंदो, मुणिवयणं भणइ विणयपणयसिरो। मुणिनाह ! एवमेयं, सव्वं आइससि जं सि तुमं ।। ३१५९ ।। अन्नाणमोहमूढा, किंतु न याणंति किं पि इह जीवा । धत्तूरिया किमहवा, न हुंति विवरीयमइविहवा ।। ३१६० ।। एवं च जइ वि एवं, तुम्हं वयणेण तह वि मज्झ मणं । कययफलेण व नीरं, हयकालुस्सं कयं अज्ज ।। ३१६१ ।। अज्जप्पभिइ निवित्तिं, ता मन्झ पयच्छ जीवहणणम्मि । हियकामो न हु कोइ वि निवडइ कूवम्मि जाणतो ॥ ३१६२ ।। मुणिणा तो संलत्तं, भो भो नरनाह ! जीवहणणाओ। किं सव्वहा निवित्तिं, करेसि किं वा वि देसेण ।। ३१६३ ।। जंपइ नरनाहो तयणु नाह ! साहेसु केरिसी होइ । तह सव्वहानिवित्ती, देसेण व केरिसी एसा ॥ ३१६४ ।। तो मुणिणा वित्थरओ, जइधम्मो तस्स साहिओ सव्वो । बज्झन्भंतरसावज्जजोगपरिवज्जणारूवो ॥ ३१६५ ।। भणियं च इमा नरवर ! नायव्वा सव्वहा वि हु निवित्ती। सावगधम्मो जो पुण, देसनिवित्ती हु सा नेया ॥ ३१६६ ॥ पंचाणुव्वयपरिवालणाइरूवो इमो जओ भणिओ । तत्थ य थूलाणं चिय रक्खा नो सुहुमजीवाणं ॥ ३१६७ ।। जीवा दुविहा वि पुणो रक्खेयव्वा जिणिंदधम्मम्मि । ताणं चिय, रक्खट्ठा जं सेसवयाई भणियाई ।। ३१६८ ॥ संसारे जीवाण य दुक्खनिविन्नाण सोक्खतिसियाण । सासयसोक्खो मोक्खो, अक्खेवेणं इओ चेव ॥ ३१६९ ॥ इय देसियम्मि मुणिणा, राया बाहजलभरियनयणजुओ । कंपंतसव्वगत्तो, भणइ सउव्वेयमिइ वयणं ।। ३१७० ।। हा हा हओ म्हि मुणिवर ! एएणं चेव पावकम्मेण । अन्नह तइ पत्ते वि हु, कह धम्ममई न उल्लसइ ।। ३१७१ ।। तहा हि - पज्जलइ कसायदवो अज्ज वि बाहइ य गाढ विसयतिसा। समयंते वि हु तइ धम्मनीरए मज्झ मुणिवसभ ! ॥ ३१७२ ।। भणइ तओ मुणिवसभो मा झूरसु किं पि एत्थ नरनाह ! धन्नो सि तुमं पत्तो, मज्झसमीवे जमिहि पि ॥ ३१७३ ॥ चारित्तावरणिज्जं, जइ वि न कम्मं खओवसममेइ । तुह तह वि देसविरई न तेण आवारियव्व त्ति ॥ ३१७४ ।। तइयकसायाणुदए पच्चखाणावरणनामधेज्जाणं । देसेक्कदेसविरई चरित्तलंभं न उ लहंति ।। ३१७५ ।। मूलिल्लकसायाणं तुज्झ वि उदओ न होइ अट्ठण्ह । सम्मदंसणमूलं, ता गिण्हसु देसविरई ति ।। ३१७६ ।। विसयतिसाबाहा वि हु भणिया जा सा वि देसविरईए । न कुणइ नरिंद ! नासं तहिं पि एवं भणंति विऊ ॥ ३१७७ ।। विसयसुहपिवासाए, अहवा बंधवजणाणुराएण । अचयंतो बावीसं, परीसहे दुस्सहे सहिउं ।। ३१७८ ॥ जइ न करेज्ज विसुद्धं सम्मं अइदुक्करं समणधम्मं । तो कुज्जा गिहिधम्मं मा बज्झो होज्ज धम्माओ ॥ त्ति ॥ ३१७९ ।। एमाइ देसणाए आसासेऊण तं मुणिवरिंदो । सम्मत्तमूलपंचाणुव्वयगहणं करावेइ ।। ३१८० ॥ सम्मत्ताइसरूवाइ मुणिसयासम्मि पुच्छइ पुणो वि । कहइ मुणी अविसन्नो जा चित्ते परिणयमिमस्स ॥ ३१८१ ।। तयणंतरं च राया, नमिऊणं मुणिवरस्स पायजुयं । निययपुरं पइ गच्छइ, मुणी वि अन्नत्थ विहरेइ ।। ३१८२ ॥ सम्मत्तथिरीकरणत्थमेव तेण य इमं जिणाययणं । कारवियं अइरम्म, वंसस्स वि भवतरंडसमं ॥ ३१८३ ।। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ पउमनाहनिवो एत्थ य पूयासक्कारमाइ जह निव्वहेइ निच्चं पि । तह चिंतिऊण सव्वं, गिहिधम्मं पालिऊणं च ॥ ३१८४ ।। वोलीणे बहुकाले, सीहरहो नाम जो सुओ जाओ । गंधारदेविकुच्छीसमुन्भवो सयलगुणकलिओ ।। ३१८५ ॥ तस्स समप्पिय रज्जं, पच्छिमकाले समाहिमरणेण । संपत्तो सुरलोयं, सो राया सीहेसेणो त्ति ।। ३१८६ ।। एयं च कहावत्थु पयडं चिय देव ! जेण भीमरहो । जो तुह कडयम्मि निवो, सो राया तस्स वंसम्मि ॥ ३१८७ ॥ जं सीहरहंगरुहो महारहो तस्स दढरहो तणओ। तस्स य पुत्तपपुत्तो भीमरहो एस नरनाहो ॥ ३९८८ ।। सीहरहाई य इमे, सरज्जयं पालिऊण गिहिधम्मं । पच्छिमवयगहियवया, जाया सव्वे वि संजमिणो ॥ ३१८९ ।। लच्छिनिहेलयनाम, जं च पुरं आसि देव ! एयाण । तं दढरहस्स रज्जे उद्धट्ठं पंसबद्धीए ॥ ३१९० ॥ एवं हि कहा सुव्वइ, दढरहरज्जम्मि किर पुरा एगो । अटुंगनिमित्तविऊ, पत्तो नेमित्तिओ सिद्धो ॥ ३१९१ ।। अत्थाणगयस्स निवस्स तेण भणियं जहेत्थ जो राया। तस्स सिरे अज्जदिणाओ, सत्तमे निवडिही विज्जू ॥ ३१९२ ।। अह तं विसज्जिऊणं, रन्ना मइसायराभिहो मंती । भणिओ किं कायव्वं उवट्ठिओ एरिसो वसणो ॥ ३१९३ ।। भणियं तेण नरेसर ! अन्नो राया ठविज्जए रज्जे । तम्मि दिणे तस्सेव य, जेण सिरे निवडई विज्जू । ३१९४ ।। तम्मि पुरे तो रन्ना, दवाविओ पडहओ जहा रज्जं । सत्तदिणे काऊणं, जो गेण्हइ तस्स देमि अहं ॥ ३१९५ ॥ न य को वि लेइ रज्जं, सोउं नेमित्तियस्स तं वयणं । न हु को वि जीवियत्थी, कवलइ हालाहलं अहवा ॥ ३१९६ ।। एवं च भणइ लोओ, विउलाइ वि किमिह रज्जलच्छीए । जीए जीवियनासो होज्जम्हं सत्तमे दिवसे ॥ ३१९७ ॥ एवं दियहे दियहे, घोसिज्जंते वि पडहएण तहिं । जाव न कोवि पडिच्छइ तं रज्जं ताव छट्ठदिणे ।। ३१९८ ।। भणिओ रन्ना मंती, पुणो वि कह नाम नित्थरेयव्वं । एयं तो भणइ इमो, अत्थेगो नरवर ! उवाओ ।। ३१९९ ॥ अत्थि इह खेत्तवालो, नगरदुवारम्मि चंडसेणो त्ति । सो ठाविज्जउ राया, आणेउं एत्थ धवलहरे ॥ ३२०० ।। आणाविय तयणु तयं, रयणीए ठावए नियपयम्मि । सयमवि दढरहराया, नीहरिओ ताओ नयराओ ॥ ३२०१ ।। उइयम्मि दिवसनाहे, गयाए वेलाए केत्तियाए वि । बीयदिणे गयणयलं छइयं मेहेहिं सव्वत्तो ॥ ३२०२ ।। अवि य - गंभीरगज्जिगुंजारवेण बहिरियसमग्गदिसियक्को । भासुरतडिच्छडाडोवकेसरुक्कंपभयजणओ ।। ३२०३ ।। निवडतबहलधारानिवायनहनिवहभिन्नसयलधरो । दीसंतुइंडसुरिंद चंडकोदंडगुरुदाढो ।। ३२०४ ॥ आऊरियगयणमुहो, मेहोहो विलसिऊण सीहो व्व । गयणाओ खडहडंति, पावइ वज्जासणिचवेडं ॥ ३२०५ ।। पडिया य सा महारायसंतियं भिंदिऊण पासायं । सीसम्मि तस्स अहिणवनिवस्स किर खेत्तवालस्स ।। ३२०६ ॥ तो सो अकालमेहो उवसंतो निम्मलं नहं जायं । रन्नो वसणखएण व, दिसा सपसन्नाओ जायाओ ॥ ३२०७ ।। मेहविमुक्को मित्तो वि तक्खणं अहिय तेयवं जाओ । आवइविगमं दटुं व राइणो गरुय तोसेण ॥ ३२०८ ।। एत्थंतरम्मि रन्ना, सिद्धं नेमित्तियं समाहवियं । अब्भहियजायहरिसेण दावियं से महादाणं ।। ३२०९ ।। मइसायरमंतिस्सवि गरुयं सम्माणमायरेऊण । नियपासाए गम्मइ, महाविभूईए तुट्टेण ।। ३२१० ।। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं अह चंडसेण खेत्ताहिवई दठूण निययपडिमाए । जायं तहा विणासं, कुविओ मइसायरस्सुवरि ॥ ३२११ ।। चिंतइ य मह पमत्तस्स कह णु पावेण एत्थ पडिमेसा । आणाविऊण वज्जासणीए मुहगोयरे खित्ता ।। ३२१२ ।। फेडेमि बुद्धिदप्पं इमस्स ता दंसिऊण कडुयफलं । इय चिंतिऊण मारी, विउव्विया तस्स गेहम्मि ॥ ३२१३ ।। दिवसेहिं पंचसंखेहि, कुटुंबमेयस्स सव्वमुरववियं । सो वि हु समकालं चिय, गहिओ रोगेहिं बहुएहिं ।। ३२१४ ।। चिंतासायरवडियस्स तस्स तो सुमिणयम्मि आगम्म । सो भणइ एत्तिएण वि, उव्विग्गो पाव ! किं जाओ ।। ३२१५ ।। तं तुह किं विम्हरियं खित्तो वज्जासणीए जं वयणं । अहयं तुमए नियमइकोसल्लं पयडयंतेण ।। ३२१६ ।। ता दुव्विलसियतरुणो भुंजसु संपइ फलाइ एयाई । सह पुरलोएण ससामिणा तुमं कमसमायाई ।। ३२१७ ।। इय भणिऊण गओ सो इयरो निद्दाखयम्मि पडिबुद्धो । सद्दाविऊण रायं आइक्खइ सुमिणवुत्तत्तं ॥ ३२१८ ।। भणइ य कुविओ एसो, खेत्ताहिवई पुरस्स सव्वस्स । ता जाव न सो पहवइ, ता मुंचह ठाणमेयं ति ॥ ३२१९ ॥ तो राया तप्पडिमं, काराविय देउले तहिं धरिउं । संपूइऊण खामिय, नीहरिओ ताओ नयराओ ।। ३२२० ।। सो तत्तिएण ताहे, रन्नो उवरिं पसन्नओ जाओ। मंति पओसेण पुरं, सो डहई पंचबुद्धीए ॥ ३२२१ ।। दुरे गंतृण नराहिवेण सह परजणेण नियएण। आराहिय सरमेगं. निवेसियं सिरिपरं नयरं ।। ३२२२ ।। जत्थच्छइ भीमरहो इय मुणिउं सो वि भणइ निवसमुहं । देव ! जहा पुरुभूइ भणइ तहा सव्वमेयं ति ।। ३२२३ ।। अम्ह पि पयडं एयं, सवंसचरियं जओ महमहल्ला । एवंविहं कहाणं, कहं तया आसि बालत्ते ।। ३२२४ ।। तो भणइ नरवरिंदो, पेच्छह पडिकलदेव्ववसगाण । जायइ गणो वि दोसो, बद्धिजयाणं पि परिसाणं ।। ३२२५ ।। एवंविहावयाओ अन्नह कह रक्खिऊण नियसामिं । एवंविहजुत्ताए, मरणं पत्तो महामंती ॥ ३२२६ ।। एवं भणमाणो च्चिय, जिणभवणाओ विणिग्गओ राया । अन्नन्नकोउयाई, पेक्खंतो हिंडिऊण नगे । ३२२७ ।। पत्तो निययावास, पुणो वि एवं च कइय वि दिणाई । जावच्छइ विविहविणोयवावडो तत्थ नरनाहो ॥ ३२२८ ।। तो पुहइपालरन्नो, चरणे गंतूण साहियं एवं । देव ! किर पउमनाहो, मणिकूडनगम्मि संपत्तो ।। ३२२९ ।। निस्संको सो तहियं, कयाइ जलकेलिवरविणोएण । कइया वि विविहकोउयपलोयणत्थं गिरिभमेण ।। ३२३० ।। कइया वि दिव्वपरिमलमिलंतभमरउलमंडियमुहाण । कुसुमाणुच्चिणणत्थं जणचेट्ठादसणसुहेण ।। ३२३१ ।। जिणवंदणच्चणाई, कुणमाणो दिवसगमणियं कुणइ । इय मुणिऊण जमुचियं, तं कीरउ देवपाएहिं ।। ३२३२ ।। इय चरवयणं सोच्चा, कोवेण परव्वसो भणइ राया । दावह पयाणभेरिं जाणावह सयलसामंते ।। ३२३३ ।। एत्थ ठियस्स वि मज्झं, सो वइरी आगओ समीवम्मि । ता गंतूणं दप्पं, पणासिमो तस्स इय भणिउं ।। ३२३४ ।। नियबलसहिओ चलिओ मम्गम्मि मिलंतपउरसामंतो। सिरिपउमनाहरन्नो, कडयासन्नम्मि पत्तो य ।। ३२३५ ।। एत्थंतरम्मि दोण्ह वि निवाणमवलोइउं पयावभरं । तणुतेयलज्जिरो इव, अत्थवणमुवेइ दिणनाहो !! ३२३६ ।। अह मंडलेसराणं, पयावमंताण संगमं दोण्हं । अच्छरियं ति मुणंती, दऔं व समागया रयणी ।। ३२३७ ।। सोहंतचंदवयणा, वियसंतसुतारतारनयणिल्ला । सुपसत्थहत्थकलिया, सोहइ जा दिव्वरयणि व्व ॥ ३२३८ ।। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ पउमनाहनिवो राया वि पउमनाहो, चराओ अह जाणिउं तयागमणं । नियकडयरक्खणकए, निमुंजए सुहडसंदोहं ।। ३२३९ ॥ काऊण कंचि वेलं, समं च मंतीहिं मंतणावसरं । बिउणियउच्छाहरसो, तो सुहसेज्जं समारुहइ ।। ३२४० ।। खणमेत्तं तत्थ सकामरमणिआलिंगणाइजणियसुहो । देवगुरुसरणपुव्वं, सेवइ निद्दासुहं सत्थो ।। ३२४१ ।। एत्थंतरम्मि संभविसंगामासंकिओ व्व रयणिवई । ल्हसियंसुओ भएणं चलिओ दीवंतरं सहसा ।। ३२४२ ॥ तव्विरहदूमिया इव, मउलियतणुतारलोयणा सिग्घं । जाइ तिजामा वि खयं जुत्तं व्व पइव्वयाण इमं ।। ३२४३ ।। दोण्ह वि बलाण मज्झे, कस्स व अहियं बलं ति दळु च । उदयगिरिसिहरमुच्चं चडिओ अह दियहनाहो वि ॥ ३२४४ तयणंतरं च दोण्ह वि थावरजंगममहीहराण तहिं । कडयक्खोभी सन्नाह पडहसद्दो समुच्छलिओ ॥ ३२४५ ॥ बहिरियनीसेसदियंतरेण जलवाहगज्जिगहिरेण । तेण य सयलावि धरा, पयंपिया किमुय रिउसेणा ।। ३२४६ ।। अवि य दिसकुंजरेहिं वि दप्पो दप्पुद्धरेहिं दूरयरं । मुक्को विमुक्कसत्तेहि का कहा सत्तुकीडाण ।। ३२४७ ।। सुहडाण भाविसंगामहुंतउच्छाहबिउणसोहाण । रुद्धाइं सरीराई, पुलएण मणाई हरिसेण ॥ ३२४८ ॥ रणरहसुद्धसियंगत्तणाण सज्जो फुडंतपुव्ववणा । धीरा धीररसेण व विद्धा सन्नद्धमह लग्गा ॥ ३२४९ ।। देहंतद्धिनिमित्तं कोइ भडो कंकडं अमायंतं । उद्धसियंगो परिहरइ नेह न य परिहइ सरीरे ॥ ३२५० ।। सामिय तुह सन्नाहो, लहु व्व परिहसि कहं ति भणिरीए । अवरो रहसुद्धसिओ, करेण दइयाइ परिमुसिओ ॥ ३२५१ ।। अन्नो पियाइ करकमलफंससंजायबहलरोमंचो । भन्नइ तं चेव जए, सन्नाहो किमवरं कुणसि ॥ ३२५२ ।। सिंगारबिउणिएहिं, पुलएहिं अमंतयम्मि सन्नाहे । कस्स वि वीरस्स पिया, उचियन्नू चयइ दिट्ठिपहं ।। ३२५३ ।। जयलच्छिसमालिंगणपरस्स किं मह इमेण विग्घेण । इय चिंतिय जुवराओ, कवए मंदायरो जाओ ।। ३२५४ ॥ सुत्तं पिव नियतेयं, धारिंतो वइरिएहिं दुब्भेयं । कवयं वियसियवयणा भीमरहो सहइ अहिययरं ॥ ३२५५ ।। एमाइसयलकडयम्मि सन्नहंतम्मि पउमनाहो वि । उचियं सामंताणं, सम्माणं काउमाढत्तो ॥ ३२५६ ।। अविय - जयलच्छिवरणऊसुयमणाण रणदिक्खमहिलसंताणं । सामीसामंताणं, पसायमग्घं व वियरेइ ।। ३२५७ ।। तहा हि - भीमं भासुरवत्थेहिं कंकणेहिं सुभीमनरनाहं । मउडेण महासेणं, मोत्तियहारेण सेणनिवं ॥ ३२५८ ।। चूडामणिणा चित्तंगयं च कंठं च रयणकंठीए । कुंडलनिवं च वरकुंडलेहिं कडएहिं कडयवई ।। ३२५९ ॥ हारेण तारमणिणा भीमरहं महिरहं महग्घेण । हीरयमंडियदाडिमयतिसरएणं पलावेणं ।। ३२६० ।। एमाइ विविहवत्थूहिं पूइऊणं असेससामंते । अन्नस्स वि जस्स जमुचियमप्पए तस्स तं सव्वं ।। ३२६१ ।। कस्स वि तुरयं कस्स वि य वारणं रहवरं च कस्स वि य । कस्स वि सन्नाहं पहरणाई कस्स वि य विविहाई ।। ३२६२ ।। दीणाणाहाईण वि देंतो दाणं जहिच्छियं पच्छा । संपूइय देवगुरू, आणावइ तयणु वणकेलिं ।। ३२६३ ।। तो आएसाणंतरमाणिज्जइ सज्जिऊण वणकेली । मिंठेहिं पुरोहियविहियरक्खआरोवियच्छभरो ॥ ३२६४ ।। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं दट्ठूण तं सहत्थेण हत्थिरागं पहाणकुसुमेहिं । संपूइऊण राया चडिऊण विणिग्गओ कडए || ३२६५ ॥ जाव अरिसेन्नसमुहो वच्चइ ता पिट्ठओ समणुसरिओ । रहवरमारूढेणं जुवराएणं महाराओ || ३२६६ ॥ जइ रहगएण रविणा अणुगम्मइ सुरवहू सुरगयत्थो । तइया तयणाणुगओ, निवो वि ता लहइ तस्सुवमं ॥ ३२६७ ॥ भीमरो विहु तुंगं, नगं व आरुहिय पवरनागिंदं । तं अणुगच्छइ सत्तूण भयकरो तस्स व पयावो ॥ ३२६८ ॥ विलसंतत्थसमूहं, मणोरहं पिव रहं समारूढो । नीहरिओ तयणु महीरहो वि राया सउच्छाहो || ३२६९ ।। एवं अन्ने विनिवा नियनियचउरंगसेन्नपरियरिया । परिवारिंति नरिंदं, चउसायरतीरविक्खाया ।। ३२७० ।। तयणु समुच्छलियपयाण तूरसद्देण मंगलं तेहिं । सेणाजणेहिं सेणाइ लब्भए केण वि न माणं || ३२७१ || तहा १२६ 1 चलियस्स तस्स वामासि वायसं सइ सिवाई रसमाणा । कुरुलंतो वामो वायसो य तह खीररुक्खम्मि || ३२७२ || गंभीरमहुरनायं से मुंचइ रासभो वि वामठिओ । कत्तो विइ व्व भारद्दाओ य पयाहिणं कुणइ || ३२७३ || तक्कालं तह करिणो, गिण्हंति मयं झरंतगंडयला । मयगंधलुद्धपरिभमिरभमरसंघायरुद्धमुहा ।। ३२७४ ।। सुहाण व तक्कालम्मि तह य जाओ स कोवि उच्छाहो । अभिलसियकज्जसिद्धी जेणं बद्धा सउणगंठी || ३२७५ एमाइबहुविहेहिं, परिचिंतियकज्जसिद्धिपिसुणेहिं । सउणेहिं बिउणिउच्छाहतोसिओ जाइ जाव निवो || ३२७६ || ता पुहइपालराया वि पउमनाहं सुणित्तु समुवितं । सन्नहिऊण ससेणो अमरिसओ सम्मुहो एइ || ३२७७ ।। असिवं सिवारवं सो, न दक्खिणं गणइ माणइ न छीयं । अच्चंतविरुद्धं पि हु पए पए जायमाणं पि ।। ३२७८ ।। कन्हाहिखंडियं न य मग्गं मुंचइ न कंटइ तरुत्थं । मन्नइ फरुसं करयररवं पि कार्य करेमाणं || ३२७९ ।। न य परिभावइ पुच्छाई पज्जलंताइं पवरतुरयाणं । घोरं अक्कंदरवं पि मन्नए नेय अमरिसिओ || ३२८६ ॥ पडिलोमया वि मणपवणगोयरा जा य सयलसेन्नस्स । तं पि न चिंतइ न य रुहिरवुट्ठिमवहारइ नहाओ || ३२८१ ॥ अह पलयपवणपेल्लियपुव्वावरजलहिपाणियाणं व । दोन्ह वि बलाण जायं, पढमरहं सुहडसंघडणं ॥ ३२८२ ॥ अन्नन्नलोयणसमरभिडणसद्धालुया वि भडनिवहा । धरिया तुरयखुरक्खयरेणूहिं खणं दयाए व्व || ३२८३ || वग्गंता रणरंगगणम्मि अन्नोन्नसम्मुहासुहडा | सोहंति नड व्व करेणुदाणजलसमियरेणुम्मि || ३२८४ ।। संतहए गज्जंतगयवरे वज्जमाणआउज्जे । सद्दमयं पिव समयम्मि तम्मि जायं बलजुगं पि ॥। ३२८५ ॥ हत्थारोहण रहीण आसवाराण पत्तिनिवहाण । जस्सिच्छा जेण समं, रणम्मि सो तं समाहवइ ।। ३२८६ | संगाममग्गकुसला आढत्ता जुज्झिउं महासुहडा । अथिरेहिं वि पाणेहिं थिरं जसो अहिलसेमाणा || ३२८७ ॥ जो च्चिय सामिपसायं पडिच्छमाणाण आसि मुहराओ । सो च्चिय रिउसरजालं पडिच्छमाणाण जाओ सिं || ३२८८ नियधणुविमुक्कबाणोहमंडवारुद्धतरणिकरनियरा । जोहा जुज्झता वि हु, संतावं तत्थ न मुणंति ॥ ३२८९ ॥ अवि य कस्स वि अस्सगयस्स वि करिकुंभविभेयकारिणो असिणो । सहइ तओ निवडतो, मुत्तोहो पुप्फनियरो व्व ।। ३२९० ।। Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२७ पउमनाहनिवो भग्गे धणुम्मि तुट्टे गुणग्मि रित्ते य भत्थए जाए । अन्नोनं केसि पि हु छुरियाजुझं तओ जायं ।। ३२९१ ।। आमूलनिमग्गेहिं, पच्चंग पूरिओ सरेहिं रिऊ । पारोहजुओ व्व तरू निक्कंपो सहइ अरिसमुहो ।। ३२९२ ।। मंसोवचयं सरुहिरासवेण मत्ताण डाइणीण तहिं । नच्चंतीण कबंधा, संजाया नट्टसूरि व्व ।। ३२९३ ।। निवडंतनिरंतरपाणजालसंछइयमुत्तिणा तत्थ । रणभीएण व रविणा, कत्थ वि य पलाइऊण गयं ।। ३२९४ ॥ एमाइभीमरूवे संगामे तत्थ वट्टमाणम्मि । सिरिपउमनाहरन्नो, बलेण भग्गं इयरसेन्नं ॥ ३२९५ ॥ एत्थंतरम्मि सिरिपुहइपालरन्नो रएण सेणाणी । उट्ठइ आसासिंतो, निययफलं बलमउम्मत्तो ॥ ३२९६ ।। नामेण चंदसेहरराया भणइ य किमेस तुम्हाण । उचिओ मग्गो भो भो पलायणं कुणह जं भीया ।। ३२९७ ।। जइ दिव्ववसा जायइ, कह वि हु सूराण रणमुहे वसणं । तह वि हु न ताण मोत्तूण विक्कम कमइ अन्नकमो ।। ३२९८ ता मा अत्थाणे च्चिय कणह भयं रणधुरं मइ धरते । तुम्ह वि न दिपव्वं, नण पिट्ठं कइय वि रिवहिं ।। ३२९९ अथिरेहिं तओ पाणेहिं थिरयरो जइ जसो अहिगमेज्जा । किज्जेज्ज व बहुकिच्चं, ता मरणे किं अकल्लाणं ।। ३३०० संधीरंतो एवं रणविमुहं एस नियबलं पत्तो । चंडभुयदंडकड्ढियकोयंडविमुक्कसरनियरो ॥ ३३०१ ।। तयणु सरपहरजज्जरमवहत्थियपोरुसं व नियसेन्नं । कलिऊण तेण विहियं, सेणाणी पउमनाहस्स ॥ ३३०२ ।। पत्तो रहाहिरूढो तस्स रहत्थस्स सिंहिकेउ व्व । तरणिस्स गरुयरणरसदुप्पेच्छो सम्मुहो भीमो ॥ ३३०३ ।। (जुयल) अन्नोन्नब्भाहयसत्थजालउल्लसियसिहिफुलिंगोहं । तिक्खसरविसरखंडियपरोप्पराबद्धधयनिवहं ।। ३३०४ ॥ तो दोण्ह वि ताण तहिं, जायं तमलं रणं सधीराण । छाइयगयणंगणमक्कबाणगणनटसरनियरं । ३३०५ लहिऊण अंतरं कह वि तस्स भीमस्स भासुरं मउडं । ससिसेहरो निवाडइ, सचिंधमवि अद्धयंदेण ।। ३३०६ ।। तो मोत्तूणं ससरं, सरासणं कोवपरिगओ भीमो । तह झ त्ति परियणेणं तं हणइ उरत्थले वइरिं । ३३०७ ।। सह सामिजयासाए, जह ल्हसिओ तक्खणं रहाहिंतो । रुहिरुप्पीलं वयणेण उव्वमंतो महाघोरं ।। ३३०८ ।। (जुयलं) पुरओ ल्हसियं तं पेच्छिऊण पहुणो पयावमिव गरुयं । केऊ केउ व्व जणं, तासिंतो पविसई सहसा ।। ३३०९ ।। आसीविसो व्व गरुडेण सो वि भीमेण हरियदप्पविसो । निन्नासिओ रहेणं, तो रुट्ठो धावइ सुकेऊ ।। ३३१० ।। सो वि महासेणेणं, खंडाखंडिं कओ महत्थेण । दुद्धरवज्जासणिणा, जहा गिरी पलयमेहेण ॥ ३३११ ।। तं छिन्नपक्खमह पक्खियं व पडियं महीए दठूण । पत्तो विरोयणो जो, विरोयणो वइरिकुमुयाण ॥ ३३१२ ।। सो वि गयत्थो हत्थिट्ठिएण सेणाए सह सुसेणेण । विमुहो सम्मुहखित्तेहिं विरइओ बाणनिवहेहिं ॥ ३३१३ ॥ कत्थच्छइ भीमरहो सो जस्स बलेण पउमनाहनिवो । किर जणिही वइरिबलं, इय भणमाणो सगव्वगिरं ॥ ३३१४ ।। बाणासणिं मुयंतो, महारहो तयणु धाविओ सहसा । नियपक्खवसणदंसणउद्दीवियमच्छरो अहियं ।। ३३१५ ।। तो भीमरहो वि सगव्ववयणमायन्निऊण से कुविओ। एसो अहं ति भणिरो सरवरिसं काउमाढत्तो ।। ३३१६ ।। दो वि धणुव्वेयवेऊ, अवरोप्परखलियसरगणा दो वि । दो वि रणकम्मकुसला, दो वि जए लद्धमाहप्पा ॥ ३३१७ ॥ तह जुज्झिउं पयट्टा, जह ताण रणं पलोइय सुरा वि । विम्ह विम्हरियनिमेस व्व जाया अणिमिसच्छा ॥ ३३१८ ॥ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तहा हि - मन्ने सयलदियंतरविसप्पि दठूण ताण बाणगणं । गयणममुत्तं जायं, तप्पभिई चेव भीयं वा ॥ ३३१९ ॥ वीररसतोसिया जयसिरि वि न गणइ गयागयकिलेसं । दोण्ह वि ताण समीवे, वारं वारं परिब्भमइ ॥ ३३२० ।। एत्थंतरम्मि रिउणा, मंतेण व छलियसंकुणा सीसे । तह पहओ भीमरहो जह मुच्छाभिंभलो जाओ ।। ३३२१ ।। तो खत्तधम्ममणुयत्तंतेण महारहेण खणमेत्तं । वीसमियं इयरेण वि मुच्छं तो उठ्ठियं ताव ।। ३३२२ ।। पुरओ दठूण रिउं, रोसवसा दसणदट्ठनियओट्ठो । वीसमसि कीस गिण्हाहि आउहं जेण पहरामि ।। ३३२३ ।। इय भणमाणो च्चिय निययहत्थिणा पाडिऊण से हत्थिं । जीवग्गाहं गेण्हइ, तं सह सुरमुक्ककुसुमेहिं ॥ ३३२४ ॥ तो पिउगहणामरिसा, उत्तेइयसारही रही तत्थ । सूररहो संपत्तो, धणुहं धीर व्व णिधुणंतो ।। ३३२५ ।। इंतं तं दळूणं पिउणा खित्तस्स सम्मुहं झ त्ति । अंतरनियदिन्तरहो महीरुहो अह पडिच्छेइ ।। ३३२६ ।। सो तेण तया सद्धिं, जुज्झंतो चिरयरेण तस्सउरे । पक्खिवइ सरं तह जह सो पडइ रहम्मि तव्विवसो ॥ ३३२७ ॥ तो सारहीरहं से वालइ घेत्तूण तं तहा विहुरं । एत्तो महीरहरहे, सुरेहिं खित्ता कुसुमवुट्ठी ।। ३३२८ ।। अवयरइ तओ सिरिपुहइवालरन्नो सुओ बलुम्मत्तो । नामेण धम्मपालो, दारुणकोवारुणसरीरो ॥ ३३२९ ।। वरिसंतो सरधाराहि जो य सझाघणो व्व वित्थरइ । लग्गो तस्स समग्गो, महीरहाईनिवइवग्गो ॥ ३३३० ।। तो इमिणा एक्केण वि, सीहेण व मत्तमयगलसमूहो । पच्छाहुत्तो विहिओ, विमुक्कलज्जो असेसो वि ।। ३३३१ ।। तं भज्जतं दतॄण रायचक्कं सुवन्ननाभो य । आसासिंतो ढुक्को, रहेण सिरिधम्मपालस्स ।। ३३३२ ।। तो भणइ धम्मपालो, रे रे अवसरसु मज्झ दिट्ठिपहा । मह हत्था काउरिसे पहरंता जेण लज्जंति ।। ३३३३ ।। बालो बालमई तह, जुज्झसमत्थो न होसि कत्थ वि य । ता वच्च पिउसमीवं पेससु तं चेव मह पासे ।। ३३३४ ।। अवि य - को सि तुमं भीमरहो य को व को वा स तुज्झ जणओ वि । ता सव्वे मिलिऊणं आगच्छह जेण पहरामि ।। ३३३५ इय पभणंतो भणिओ जुवराएणं न उत्तमनराण । सोहइ अप्पपसंसाकरणं परनिंदणं वा वि ।। ३३३६ ॥ जओजे अप्पणो पसंसं करंति निंदं परस्स गरुया वि । ते रायमग्गवडियाओ हुंति लहुया तणाओ वि ॥ ३३३७ ॥ ता पहरसु वीसत्थो, एएहिं किमालजालभणिएहिं । नियमाउयाइ चवलत्तसूयगेहिं असारेहिं ।। ३३३८ ॥ इय तव्वयणायन्नणअहिययरुप्पन्नकोवविहुरो सो । दुल्लक्खमोक्खसंधाणधणुगुणो मुयइ सरविरई ॥ ३३३९ ।। जुवराओ वि हु से अद्धमग्गमब्भागए वि बाणगणे । छिंदइ नियरोवेहिं आरोवियधणुविमुक्केहिं ।। ३३४० ।। जाए सिलीमुहखए सेल्ले मेल्लेइ धम्मपालो वि । ताण खयम्मि य कुंतेहिं, पहरई तक्खए असिणा ।। ३३४१ ।। इयरो वि निययसेल्लाइएहिं तप्पहरणाई कुणइ तहा । अद्धपहे च्चिय जह अक्खमाई जायंति नियकज्जे ॥ ३३४२ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १२९ एवं च - दो वि हु वीरजुवाणा दो वि असामन्नसत्थसामत्था। दो वि परक्कमसारा, परिस्समअगंजिया दो वि ।। ३३४३ ॥ ते जुज्झंता लोएण नेव संलक्खिया जह इमेसि । दोण्ह वि मज्झे को वि हु जयस्सिरीभायणं होही ॥ ३३४४ ।। खणमेत्तेणं च तओ जुवाएणं सुवन्ननामेण । चिरजुज्झपरिस्संतो गहिओ सो पहरिऊणसिणा ।। ३३४५ ।। तं वंदीकाऊणं, सुहज्जयं बंदिनिवहथुव्वंतो । तो जुवराओ नेऊण नियय पिउणो समप्पेइ ॥ ३३४६ ।। कंठसुकुंडलमाई सामन्ता जे य पउमनाहस्स । तेहिं पि वरुणसिरिचंदकित्तिमाई निवा विजिया ।। ३३४७ ।। एवं च निययसेन्नं हयविप्पहयीकयं पलोएत्ता । तो पुहइपालराया, कोवारुणलोयणो ढुक्को ।। ३३४८ ।। तमसाहारणचिंधेहिं जाणिऊणं समुट्ठियं मंती । कन्नासन्ने होउं, भणंति सिरिपउमनाहनिवं ।। ३३४९ ।। देव ! इमो अच्चंतं खलस्सहावो अमाणुसबलो य । सुव्वइ पुहईपालो, आवासो कूडकवडाण ।। ३३५० ॥ सयमागयम्मि एयम्मि अप्पमत्तेण ता पहरियव्वं । लहुओ वि रिऊ गरुओ दट्ठव्वो नीइनिउणेहिं ।। ३३५१ ।। दइयं पिव मंतिगिरं, हियए काऊण तो नरवरिंदो । सज्जियसरासणो सत्तुसम्मुहो धाविओ तुरियं ।। ३३५२ ।। पयरुक्खसमूहेणं परिवारिय कुंजरा तओ दो वि । अन्नोन्नं जुज्झेउं, अनन्नसमविक्कमा लग्गा ॥ ३३५३ ।। निययं बलं च दोहिं वि जुज्झतं वारिऊण दप्पेण । एक्कंगसरेहिं चिय तह सरखेवो समाढत्तो !! ३३५४ ॥ अन्नोन्नाघायसमुट्ठियरिंगणा जह सहति बाणगणा । तिरिय निवडता दिसिमुहेसु उक्कासमूह व्व ।। ३३५५ ।। तं सत्थकोसलं पासिऊण दोन्ह वि नहम्मि सरविसरा । न परं अणमिसनयणा नरा वि भूमीए तह जाया ।। ३३५६ ।। जे जे अणिट्ठियसरोसरे विमुंचइ निवो पुहइपालो। ते ते निययसरेहिं दुहंडई पउमनाहो वि ॥ ३३५७ ।। तो नाऊण अजेयं धणुवेयविसारयं सरेहिं तयं । मुयइ सरोसो सेल्ले सिरिपुहईपालनरनाहो ॥ ३३५८ ।। ते वि हु सुवन्नमहिहरनिच्चलचित्तो सुवन्ननाभगुरू । अपडंत च्चिय नियअड्ढयंदबाणेहिं खंडेइ ॥ ३३५९ ।। अह मुंचइ चक्काई, रएण सो पउमनाहहणणट्ठा । ताई पि पउमनाहो, मोग्गरघाएहिं चूरेइ ॥ ३३६० ।। तो मुंचइ सो सत्तिं, सत्तित्तयविजियविट्ठवो कुविओ । तं पि हु रयणपुरेसो गयाभिघाएण ढालेइ ।। ३३६१ ।। रयचोइयनियहत्थी, तो फरुसं वाहए रिऊ तस्स । वणकेलिधरे णासो कणीकओ वज्जमुट्ठीए ।। ३३६२ ।। सोमप्पहापिएणं तो संकुं तस्स मोत्तुकामस्स । कयलीकरहाडं पिव चक्केण दुहाडियं सीसं ॥ ३३६३ ॥ एत्थंतरम्मि कडयम्मि वेरिणो पुहइपालनरवइणो। अप्पपरंपरयाए जायाए पहुस्स मरणम्मि ।। ३३६४ ॥ वणकेलिवियडकुंभयडमामुसंतो स पउमनाहनिवो । सोहावइ रणभूमिं वणीण बंधावए पट्टो ॥ ३३६५ ।। (जुयल) सबलस्स परबलस्स य जो को वि तहिं विणासमावन्नो । सक्कारं से सक्कारपुव्वयं तह करावेइ ।। ३३६६ ।। एत्थंतरम्मि एगेण सेवगेण सम्माणिऊण तहिं । सिरिपुहइपालसीसं, पुरोकयं पउमनाहस्स ।। ३३६७ ।। तं दतॄणं निव्वेयमुवगओ नियमणे मुणइ एवं । धिद्धी कहमेस जणो लच्छीए कए खयं जाइ ॥ ३३६८ ॥ खणमालिंगइ सव्वंगमेव अइनेहनिब्भर व्व इमा । खणमपरिचिय व्व पुणो दूरेणं नरं परिच्चयइ ।। ३३६. . ।। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० सिरिचंदप्पहजिणचरियं खणमीसीसि कडक्खइ, खणं विलक्खइ परूढपणयं पि । संहडइ खणं विहडइ खणं व कुलड व्व चलभावा ।। ३३७० संपत्तीए विपत्ती, लग्गइ जग्गइ जरा य तारुन्ने । मच्चू जग्गइ जीए, पियजोगे जग्गइ विओगो ॥ ३३७१ ॥ न हि अविओगो सुहिसयणसंगमो न य अमच्चुयं जम्मं । अजरं न जोव्वणं नावयाइ अकडक्खिया लच्छी ।। ३३७२ रक्खणकए छठंसं, जं देइ पया इमस्स मोल्लं व । तं गिण्हंतो भियगु व्व मुणइ मूढो अहं राया ॥ ३३७३ ।। तं किं पि एस जीवो, कोहाइकसायकलुसिओ कुणइ । कम्मं जमत्तणो वि हु भयावहं होइ इहई पि ।। ३३७४ ।। निहणइ पियरं निहणइ य भायरं निहणई य बंधुयणं । अत्ताणं अत्ताणं पि निहणई कोहवसवत्ती ।। ३३७५ ।। धिद्धी कोहविलसियं जत्तो जं हणइ एत्थ तेण इमो । परलोगम्मि हणिज्जइ बला वि परिणामि जं जीवो ।। ३३७६ ।। धिद्धी भोए धिद्धी धणं व धिद्धी सुहं च संसारे । धिद्धी परोवघाएण होज्ज अन् पि जं किं पि ॥ ३३७७ ॥ हा हा कहमिंदियगोयरेहिं पावेहिं वंचिओ पावो । जाणतो अहमवि कडुयविरससंसाररूवमिणं ॥ ३३७८ ॥ वणकेलिपुव्वभवसुणणजायवेरग्गभावियमई वि । अहह गुरुपावकारणरणे अहं दारुणे चडिओ ।। ३३७९ ॥ तो कोवाओ नरो सत्तू पेमाओ बंधणं न परं । न विसं विसएहितो, अन्नं न दुहं च जम्माओ ॥ ३३८० ।। तम्हा करेमि तं किं पि नरभवे पावियम्मि अइदुलहे । जत्तो छिंदामि लहुं गयागइपरिस्समं गरुयं ॥ ३३८१ ।। चतिऊण रज्जं, सयस्स दाऊण तक्खणा सयलं । तो पहइवालपत्तं, आभासइ कोमलगिराहिं ।। ३३८२ ।। वच्छ ! तुमं मह पुत्तो व्व संपयं ता सुवन्ननाभस्स । आणाइ गिण्ह नियपियरज्जं पालेसु य नएण ॥३३८३ ।। इय पभणिऊण रज्जं दावेऊणं सुयस्स पासाओ । तयणु विसज्जावेई नियनयरीसम्मुहं एयं ।। ३३८४ ।। सो वि हु अहिणवरन्नो, काऊणं मंगलिज्जकिच्चाई । आणं पडिच्छिऊणं, नियनयरिसमागओ सणियं ।। ३३८५ ।। राया वि पउमनाहो निययं सामंतमंतिपमुहजणं । भणइ अहो तुम्हाणं सुवन्ननाहो पहू इण्हि ।।३३८६ ।। अहयं तु भवविरत्तो सिरिहरमुणिनाहपायमूलम्मि । पावाण कडाणिम्हि पायच्छित्तं पवज्जामि ।। ३३८७ ।। अवगयजीवाजीवेण पुन्नपावाणुबंधिविउणा वि । संगाममिमं घोरं कराविउं अज्जियं पावं ॥ ३३८८ ॥ तं किं पि दारुणयरं जत्तो नरयम्मि चेव गंतव्वं । तम्हा तस्सुच्छेयत्थमासु गिण्हामि पवज्जं ॥ ३३८९ ।। जंपइ सुवन्ननाहो ताय ! न जुत्तं इमं तुह करेउं । भवचारयम्मि खिविउं मं गिण्हसि जं तुमं दिक्खं ॥ ३३९० ।। अहयं पिता तए चिय. समं पवज्जामि ताय ! पव्वज्जं । रज्जेण नत्थि कज्जं. कगडगमे सरलमग्गेण || ३३९१ तो भणइ नरवरिंदो सच्चमिणं किंतु जइ समं चेव । गिण्हामो पव्वज्ज तुमं च अहयं च निरवेक्खा ।। ३३९२ ॥ तो एस जणो सव्वो वि आउलीहोज्ज सामिपरिहीणो । तं च न जुज्जइ असरणजणपरिताणे वि जं धम्मो ।। ३३९३ ।। नीईए जणो वट्टइ, किं च नरिंदस्स चेव रक्खाए । तव्विरहे उण असमंजसत्तणं जं जणो कुणइ ।। ३३९४ ॥ तं पावमओ पुत्तय परमत्थिणं हवेज्ज नरवइणो । धम्मत्थिओ वि होउं, पयाइ चिंतं न जो कुणइ ।। ३३९५ ।। ता परिवालसु रज्जं, ताव तुमं जाव नंदणो तुज्झ । रज्जधुराधोरेओ, संजायइ जायगुणनिलओ ।। ३३९६ ॥ तन्निहियरज्जभारो तुमं पि गेण्हेज्ज तयणु पव्वज्जं । मह वंछियत्थविग्धं संपइ पुण वच्छ ! मा कुणसु ॥ ३३९७ ।। Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहनिवो १३१ ताहे अकामओ च्चिय मन्नइ सो जणसंतियं वयणं । सुकुलग्गयाण अहवा पयइ च्चिय गुरुयणे भत्ती ॥ ३३९८ ॥ पिउणो संतोसत्थं नाऊण विहारमह निउत्तेहिं । सिरिहरमुणिस्स ताहे तयभिमुहं दावइ पयाणं ॥ ३३९९ ॥ किज्जंतएसु मंगलसएसु दाणेसु दिज्जमाणेसु । ढोयणिएसु य विविहेसु तह य ढोइज्जमाणेसु ।। ३४०० ॥ ठाणे ठाणे लोएण तम्मि पत्तो य थोवदियहेहिं । जत्थच्छइ सो भयवं महामुणी भवियकमलरवी ॥ ३४०१ ।। तत्थ ठियं तं साहइ सुवन्ननाहो पिउस्स सो वि तओ । गंतूण पायमूले मुणिस्स तं नमइ भत्तीए ॥ ३४०२ ।। भणइ य भयवं तुमए जं दिठें तं न चलइ कइयावि । अन्नह कहमहमेरिसरणे पयट्टेति जाणंतो ।। ३४०३ ।। संलत्तं जं च तए वणकेलिनिमित्तओ वि ते भविही । वेरग्गमइमहंत, संजायं तं पि तह चेव ॥ ३४०४ ॥ ता देसु मज्झ दिक्खं, निययं काउं पसायमइगरुयं । न विलंबं सहइ मणो, मह इण्हि नरयभयभीयं ।। ३४०५ ।। एवं भणमाणो च्चिय सयमेव करेइ जाव सो लोयं । किर पंचहिं मुट्ठीहिं ता पुत्तो पडइ पाएसु ॥ ३४०६ ।। भणइ य ताय ! पडिक्खसु वच्चामी जाव निययनयरम्मी । तत्थ गओ महई तुह दिक्खामहिमं करिस्सामि ॥ ३४०७ सामंताई वि तहा पायविलग्गा भणंति एमेव । को वि न गणिओ तेणं, समीहियत्थम्मि उज्जमिणा ।। ३४०८ ।। तो सिरिहरमुणिपासे समणसिरिं संपवज्जिउं धीरो । सव्वत्थ निरासंसो, चरइ वयं मेरुथिरचित्तो ॥ ३४०९ ।। गिण्हइ दुहा वि सिक्खं अचिरेण वि आगमेइ अंगाई । आयाराईयाई, विसुद्धचित्तो दुवालस वि ।। ३४१० ।। उग्गं दुवालसविहं तवं चरंतो व तस्स तेएण । जाओ दुवालसरवीहिंतो अब्भहियदित्तिल्लो ।। ३४११ ।। विविहेहिं सीहविक्कीलियाइभेएहिं पुणरवि तवेहिं । तह सोसेइ सरीरं समयं कम्मं पि जह सुसइ ।। ३४१२ ।। एवं च उत्तरोत्तरसंजमठाणेहिं वड्ढमाणस्स । तित्थयरनामहेऊ वीस वि से उवचिया जाया ।। ३४१३ ॥ तहा हि - वच्छल्लं तह कह वि हु तेण कयं ताव तित्थनाहेसु । जह तक्कालियसंजयजणस्स जणिओ चमक्कारो ॥ ३४१४ ॥ भावारिहंतदंसणवंदणसेवागुणत्थुइकहासु । निच्चं चिय वट्टतेण जेण न कओ मणे खेओ ॥ ३४१५ ।। नियसंजमोवघायं रक्खंतेणं तहा जिणिंदाणं । बिंबाई सुविचिंताइ उज्जमो सव्वहा विहिओ ।। ३४१६ ।। एवं सिद्धाणं परूवणाइ तह सिद्धगुणथुईए य । सिद्धावासकहाए य पवरतोसं वहंतेण ॥ ३४१७ ॥ तह केवलिप्पणीयम्मि पवयणे बारसंगरूवम्मि । अहवा वि संघरूवे भवजलहितरंडसंठाणे ॥ ३४१८ ॥ जेसि समीवे धम्मो, पडिवन्नो सुयचरित्तभेयजुओ । तेसिं धम्मगुरुणं च सिवपुरीसत्थवाहाणं ॥ ३४१९ ॥ कज्जम्मि वावडताण तह य थेराण ताण अणवरयं । धम्मम्मि सीयमाणे, करेंति जे थिरयरे जीवे ॥ ३४२० ।। जाईसु य परियाए , पडुच्च थेरा तिहा हवे कमसो । सट्ठी वरिसा समवायधारया वीस वरिसा य ॥ ३४२१ ।। एवं बहुस्सुयाण वि सुहसज्झायप्पमत्तचित्ताणं । बारसविहतवचरणे, रयाण तह सत्तवस्सीणं ॥ ३४२२ ॥ वच्छल्लं कुणमाणेण जइ ण सिद्धंतसिद्धमग्गेण । सत्तण्ह पयाण इमा कया उ आराहणा सत्त ॥ ३४२३ ।। अविसन्नचेयसा तह , अभिक्खणं सयलकिरियकालेसु । नाणोवओगकरणेण अट्टमट्टाणमब्भसियं ॥ ३४२४ ।। Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं दंसणमिह समत्तं परिहरमाणेण तम्मि संकाई । अनवट्ठाणं पि इमं नवमट्ठाणं नियं वुढि || ३४२५ ।। एवं चिय विणयम्मी आसंसाईहिं विरहियमणेण । आवस्सए य सामाइयाइछब्भेयभिन्नम्मि || ३४२६ || अइयाररहियणुट्ठाणकरणनिच्चलसमग्गकरणेण । अट्ठारसविहबंभव्वयरूवे सुद्धसीले य || ३४२७ ।। पाणाइवायविरमणरूवेसु वएसु निरइयारेण । आराहिया इमेणं चउरो ठाणा इमे अन्ने || ३४२८ ॥ खणलवमुहत्तमाइसु तवम्मि चायम्मि उज्जमविहीए । अणवरयं दो ठाणा, इमे य आराहिया तेण ।। ३४२९ ।। आयरियाईण तहा, वेयावच्चं दसाहसयकालं । अविसन्नं कुणमाणेण मणसमाहिट्ठिएणं च ।। ३४३० || अप्पुव्वनाणगहणे निच्चं चिय उज्जमं तरंतेण । सुयभत्तिं च असरिसं दिणे दिणे पयडयंतेण || ३४३१ || कइय वि वायन्तेणं कइयावि निमित्तियत्तकरणेणं । कइय वि तवचरणेणं धम्मकहाए य कइया वि || ३४३२ ॥ कवि सुत्तत्थोभयपयासणेणं दुवालसंगस्स । कइय विपन्नत्तीमाइविज्जसंजणियचोज्जेण || ३४३३ ॥ कवि अंजणगुडियासिद्धत्तुप्पन्नविविहरूवेण । लहुगुरुदिस्सादिस्साइएण कालम्मि रइएण || ३४३४ || छंदाणुवित्तिसारं, सालंकारं सलक्खणमुयारं । मित्तं पिव चित्तहरं, कइय वि कव्वं करंतेण ।। ३४३५ ।। जिणसासणस्स एवं कज्जुप्पत्तीए अट्ठट्ठाणेहिं । कुणमाणेण पभावणमइगरुयं सत्तिमंतेण ॥। ३४३६ ।। सिरिपोमनाहमुणिणा पंच य ठाणा पयासिया एए। सव्वेसि मीलणेणं, वीसट्ठाणाइं जायाई ॥। ३४३७ || नव चत्तारि य तह दोन्नि पंच मिलिया हवंति वीस जओ । एए हेऊ तित्थयरनामबंधम्मि भणियं च || ३४३८ || अरहंत सिद्धपवयणगुरुथेरबहुस्सुए तवस्सीसु । वच्छल्लयाइ एसिं अभिक्खनाणोवओगे य ।। ३४३९ ॥ दंसणविणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो । खणलवतवच्चियाए, वेयावच्चे समाही य || ३४४० ।। अप्पुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयणे पभावणया । एएहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ जीवो || ३४४१ | पुरिमेण पच्छिमेण य एए सव्वे वि फासिया ठाणा । मज्झिमगेहिं जिणेहिं एगं दो तिन्नि सव्वे वा ॥ ३४४२ ।। इय चिरकालं चरिऊण चरणमइउत्तमं महासत्तो । अन्नदिणे उवलक्खिय बलहाणिं निययदेहस्स || ३४४३ ॥ उल्लसियजीवविरिओ, चिंतइ धीरो महामई एसो । विद्धंसणधम्मं चिय सरीरमेयं मणुस्साणं ॥ ३४४४ || ता जाव न पडइ इमं परिपक्कफलं व कत्थ वि अनायं । ताविमिणा जुत्तं मे विहिमरणाराहणं काउं ।। ३४४५ ।। इय चिंतिऊण वच्चइ केवलिणो सिरिहरस्स पासम्मि । विणएण तयं वंदिय, साहइ से नियअभिप्पायं || ३४४६ || तो केवलिणाणुमओ विहिणा संलेहणं दुहा काउं । तस्सेव पायमूले, पडिवज्जइ वियडणाईयं ॥ ३४४७ || तहा हि १३२ , पंचवि आयारे नाणायाराइभेयभिन्नम्मि । जा का वि विसयसेवा कया मए तं अहं निंदे || ३४४८ ।। जो जस्स कोइ कालो, अंगाइसुयस्स सुत्तअत्थेसु । तस्साइक्कमणं जं तं निंदे तं च गरिहामि || ३४४९ ।। जो विविणओ न कओ गुरुसु सुत्तत्थदायगेसु मए । आसायणा य विहिया, सुयस्स निंदामि तं सव्वं ।। ३४५० ।। भवजलहिपोयभूयं चिंतामणिकप्पपायवऽब्भहियं । सुयमेयं तम्मि कओ बहुमाणो जो न तं निंदे || ३४५१ || Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहमुणि भवभेयमंतरेण वि सुयस्स जं पढणपाढणाइ कयं । अहवा अविहीए कयं तं निंदे तिविहजोएण ॥ ३४५२ ॥ तित्थयरएस जो विहु अवन्नवो को वि किर मए रइओ । जाणतेण अयाणंतेण व निंदामि तं इन्हिं ।। ३४५३ ।। वंजण अत्थु भएसुं विवज्जओ जो कओ विणासो वा । जिणसासणसुत्तगएसु तं पि निंदामि भावेण || ३४५४ ।। संकाकंखाविइगिच्छिदिठ्ठिमोहो य अणुववूहा य । उववूहणिज्जविसया, समाणधम्मे अवच्छल्लं ।। ३४५५ ।। धम्मम्मिय सीयंतं दठ्ठे सत्तीए विज्जमाणाए । जं न कयं च थिरत्तं आलस्साईहिं हेऊहिं ।। ३४५६ ।। ओहावणाइ कत्थ वि, उवट्ठियाए वि जइ ण तित्थस्स । न कया पहावणा जा, सामत्थे विज्जमाणे वि ।। ३४५७ ।। तं सव्वं पहु अहयं अट्ठवियप्पं पि दंसणायारं । साहेमि निव्वियप्पं तिगरणसुद्धेण भावेण ॥ ३४५८ ॥ चारित्तायारम्मि विचाउज्जामपरिवालणारूवे । जो अइआरो विहिओ, तं पि हु निंदामि भावेण ॥ ३४५९ ।। पाणाइवायविसए, सुहुमो वा बायरो य जो कोइ । विहिओ मइयारो तमहं विहडेमि सिल्लो ॥ ३४६० ॥ कोहेण व मोहेण व हासेण भएण वा मुसावाओ । भणिओ भणाविओ वा भणंतए वा अणुन्नाओ ।। ३४६१ ॥ तिविहं तिविहेण अहं, मायामयमुक्कमाणसो होउं । तं पि हु आलोएमी, समभावमुवागओ संतो || ३४६२ ।। दव्वम्मि गहणधारणजोग्गे खेत्तम्मि गाममाईए। कालम्मि दिवा राओ व भावओ रागदोसेहिं ॥ ३४६३ || करणकरावण अणुमोयणेहिं कालेसु तिसु वि रइएहिं । तइयव्वयाइयारे वि तह य सुद्धिं पवज्जामि ॥ ३४६४ ॥ अप्पे वा बहुए वा सच्चित्ताचित्ततदुभयसरूवे । विरईपरिग्गहे वि हु विराहिया जा तयं निंदे || ३४६५ ॥ असणाइभेयभिन्ने चउव्त्रियप्पे वि राइकालम्मि । जा पत्थणा मणेण वि विहिया निंदामि तमियाणिं || ३४६६ ॥ पंचसु समिईसुतहा तिसु गुत्तीसु य विराहणा जा मे । संजाया तीसे वि हु पायच्छित्तं पवज्जामि || ३४६७ || सुमो य बायरो वा एवं अन्नो वि चरणविसयम्मि । जो को वि अईयारो आलोए तं समग्गं पि ॥ ३४६८ ॥ बारसविहे तवे वि हु सब्भितरबाहिरे जिणुद्दिट्ठे । जोऽणाभोगाईहिं दोसो सोहामि तं सव्वं ॥ ३४६९ || आलस्साईहिं तहा, संजमतवचरणविणयमाईसु । विरियस्स जा निगूहा कया मए तं पि पयडेमि ॥ ३४७० || एवं निस्सल्लो हं अणन्तनाणीण तुम्ह पच्चक्खं । इहपरभवियं अन्नं वि दुक्कडं भावओ निंदे || ३४७१ || जाणंति सिवगया जे केवलनाणी भवत्थया वा वि । मह अवराहे ताणं पि देसु पच्छित्तमेत्ताहे ॥ ३४७२ ।। छउमत्थो हं मूढो, केत्तियमित्तं सरामि नियचरियं । ता सव्वस्स विमिच्छामि दुक्कडं तस्स ओघेणं ।। ३४७३ ।। एवं आलोएत्ता, महव्वए तह य उच्चरावेत्ता । सत्ताण खामणाए, उवट्ठिओ ते वि य खमंतु ।। ३४७४ || चुलसीइजोणिलक्खेसु देवनरतिरियनारयगईसु । एगिंदियाइपंचेंदियंतजीवेसु वट्टंता || ३४७५ ॥ जे के वि हया नियकायसत्थपरकायसत्थजोगेण । अहवा हणाविया जे हणंतया णं वऽणुन्नाया || ३४७६ ॥ तेसु सुविसुद्धमाई खामणमेत्तो करेमि अपमत्तो । ते वि य खमंतु मज्झं, पसत्तरागा दढं होउं ॥ ३४७७ ।। जे वि य हु अलियवयणेहिं वंचिया जाण दव्वमवहरियं । अवहरियं च पयारंतरेण तिविहेण करणेण ॥ ३४७८ ॥ विहु खाम अहं, मायामोसाइवज्जिओ होउं । पंचमगइगमणमणेण अहव मायाविणा कत्तो ।। ३४७९ ।। १३३ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं मित्तस्स अमित्तस्स व सयणस्स व परजणस्स व इयाणि । समभावो च्चिय मझं ता मं खामेउ सव्वो वि ॥ ३४८० ॥ खामेमि जीवरासिं सव्वमहं सो वि खमउ मह इण्हि । सव्वत्थ वि मह मेत्ती अमित्तभावो न कत्थ वि य ।। ३४८१ इय सत्तखामणासुं चित्तं विणिवेसिऊण सुहभावो । गिण्हइ पच्चक्खाणं, चउविहाहारविसयं पि ।। ३४८२ ।। इहपरलोगासंसाइदोसपरिचत्तमाणसो धीरो । निम्ममनिरहंकारो निराकारसाकारसमचित्तो ।। ३४८३ ।। उवओगसुद्धिसारे सब्भावुब्भावणानिहयदोसे । अणसणपच्चक्खाणे, बद्भुच्छाहो अणागारे ।। ३४८४ ।। अरहंतसिद्धसाहूसु तह य धम्मे जिणप्पणीयम्मि । आबद्धसरणबुद्धी पंच नमोक्कारमह कुणइ ।। ३४८५ ॥ अट्ठमहासुरकयपाडिहेरपूयाइ जे सया अरहा । अरहंताणं ताणं भत्तीए अहं पणिवयामि ॥ ३४८६ ।। अट्ठविहकम्मबीयक्खएण न रुहंति जे भवमहीए । अरुहंताणं ताणं भत्तीए अहं पणिवयामि ।। ३४८७ ॥ रागद्दोसकसायाइदुज्जयारी विणिज्जिया जेहिं । अरिहंताणं ताणं भत्तीए अहं पणिवयामि ।। ३४८८ ॥ जेसिमिह पत्थणाए , पावंति जिया समाहिमरणाई । अरहंताणं ताणं भत्तीए अहं पणिवयामि ।। ३४८९ ।। चिंतामणि व्व जे विगयरागदोसा वि चिंतियप्फलया । हुंति जियाणं तेसिं अरहंताणं पणिवयामि ॥ ३४९० ॥ अट्ठविहं पि य कम्मं अणाइभवसंतईसियं जेहिं । झाणजलणेण धंतं सिद्धाणं ताण पणमामि ।। ३४९१ ।। सयलं पि जाण कज्जं सिद्धं नियएण जीवविरिएण । सिद्धिगइमुवगयाणं सिद्धाणं ताण पणमामि ॥ ३४९२ ।। जे शंतनाणदंसणवीरियसुहसिद्धिमुत्तमं पत्ता । नट्ठट्ठारसदोसाण ताण सिद्धाण पणमामि ।। ३४९३ ।। सारीरमाणसाणं पत्ता दुक्खाण जे परं पारं । असरीराणं अमणाण ताण सिद्धाण पणमामि ।। ३४९४ ।। सिवमयलमरुयमक्खयमाबाहविवज्जियं अणागमणं । ठाणं जे संपत्ता सिद्धाणं ताण पणमामि ॥ ३४९५ ॥ देसकुलजाइरूवेहिं जे जुया सपरसमयकुसला य । पंचविहायारधराण ताण पणमामि भत्तीए ॥ ३४९६ ।। संघयणधिइबलड्ढाणासंसी देसकालभावन्नू । सुत्तत्थोभयनिउणा, जे ताण नमामि भत्तीए ॥ ३४९७ ॥ गंभीरा सिवसोमा दित्तिजुया विविहदेसभावविऊ । जे विजियनिद्दपरिसा ताणं पणमामि भत्तीए । ३४९८ ॥ थिरपरिवाडीआदेयवक्कआसन्नलद्धपइभा जे । आहरणहेउकारणनियनिउणाणं नमो तेसिं ॥ ३४९९ ।। अविकंथणा अमाई गाहणदक्खा पभूयगुणजुत्ता । जे आयरिया तेसिं भत्तीए नमामि कमकमलं ।। ३५०० ।। जे सीसाणुवयारं कुणंति सुत्तप्पयाणओ निच्चं । अगणियनियस्समाणं ताणुज्झायाण पणमामि ॥ ३५०१ ॥ जे खलु दुवालसंगं पढिऊण सयं पढाविऊणऽन्ने । साहिति मोक्खसोक्खं ताणुज्झायाण पणमामि ।। ३५०२ ।। साहिज्जइ नाणायारं अट्ठप्पयारमाराहिऊण जे धीरा । लोगोवयारनिरया, ताणुज्झायाण पणमामि ॥ ३५०३ ।। दंसणनाणचरित्तेसु तह तवे संजमे य उज्जुत्ता । जे जावज्जीवं पि हु ताणुज्झायाण पणमामि ॥ ३५०४ ॥ मोक्खोवायपरूवणपरायणा पंचभेयसज्झाए । निरया जे निच्चं पि हु ताणुज्झायाण पणमामि ।। ३५०५ ।। पंचमहव्वयसारा, समतणमणिलेठुकंचणा जे य । पत्तपउमाइउवमा, साहूणं ताण पणमामि ॥ ३५०६ ॥ सावज्जजोगविरई, जावज्जीवं पि जेहिं काऊण । साहिज्जइ परलोओ, साहूणं ताण पणमामि ॥ ३५०७ ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमनाहमुणि १३५ पंचविहायारविऊ, पसन्नगंभीरथिरपवन्नमणा । जे चरणकरणनिरया, साहूणं ताण पणमामि ॥ ३५०८ ।। झाणज्झयणपसत्ता जे अट्ठविहप्पमायपरिचत्ता । सुविसुज्झमाणभावाण ताण साहूण पणमामि ॥ ३५०९ ।। निच्चं परोवारम्मि उज्जया कज्जकालनिरवेक्खं । इहलोयनिप्पिवासा, जे ताण नमामि साहूणं ।। ३५१० ॥ परमेट्ठिपंचयस्स वि, एवं भत्तीए कयनमोक्कारो । पुणरवि परमेट्ठीणं उवट्ठिओ खामणट्ठाए ॥ ३५११ ॥ पयडा पच्छन्ना वा जा का वि कया मएऽरहंताण । आसायणा तमेत्तो, खामेमी सव्वभावेण || ३५१२ ।। मिच्छापरूवणाए अहवा तग्गुणपओसभावेण । सिद्धाण वि जा एसा, कया मए तं पि खामेमि ।। ३५१३ ।। विणए वेयावच्चे, मए पयट्टेण अविहिकरणेहिं । अहवा तयकरणेहिं, आयरियाणं च सव्वेसिं !! ३५१४ ॥ उज्झायाणं च जहा, साहूण य गुणसहस्सकलियाणं । आसायणा कया जा उवट्ठिओ तं पि खामेमि ।। ३५१५ ।। एवं चउव्विहस्स वि संघस्स कहं पि जा मए विहिया । आसायणा अयाणेण अहव कोहाइघत्थेण ॥ ३५१६ ।। खामेमि तं पि सव्वं समभावमुवागओ विसुद्धमणो । मणवयणकायगुत्तो निस्सल्लो निम्ममो अहयं ॥ ३५१७ ।। निप्पडिकम्मसरीरो, एवं आराहिऊण पंचविहं । आराहणं महप्पा, कालगओ सो समाहीए ।। ३५१८ ।। उप्पन्नो अमरेसुं पंचाणुत्तरविमाणमज्झम्मि । सिरिवेजयंतनामम्मि वरविमाणम्मि रम्मम्मि || ३५१९ ॥ सव्वुक्कट्ठगसुइसुहमणाभिरमणिज्जसद्दयारम्मि । सुसिणिद्धचक्खुपल्हायणिज्जकमणिज्जरूवगुणे ॥ ३५२० ।। अच्चंतसुपेसलसयलदेहपल्हायणिज्जरसजुत्ते । वियसंतसरससुरतरुकुसुमुक्करसुरहिगंधड्ढे ॥ ३५२१ ।। कोमलमुणालदलनियरविजियसोमालिमाणतूलीसु । सुहफासासासियअंगिअंगसंजणियनिच्चसुहे ॥ ३५२२ ॥ रयणिप्पमाणदेहो सदेहसोहाए विजियतइलोक्को । अंतोमुहुत्तमेत्तेण सव्वपज्जत्तिपज्जत्तो ॥ ३५२३ ।। (आदि कुलक) संभिन्नलोगनालिं पासिंतो तत्थ ओहिनाणेण । चिंतइ जीवसरूवं कइया वि विचित्तपज्जायं ॥ ३५२४ ।। देहत्थंतरभूयं कहिंचि कारिं सयस्स कम्मस्स । भोइं च तप्फलाणं, सरुवसत्थेण य अमुत्तं ।। ३५२५ ।। धम्माधम्मागासत्थिकायपोग्गलसरूवभेयाइ । परिभावइ कइयावि ह कया वि पण पन्नपावफलं ॥ ३५२६ ॥ तह पुन्नपावआसवसंवरहेऊसनिज्जरे सम्मं । अवहारइ सो चित्तेण बंधमोक्खे य कइया वि ।। ३५२७ ।। एवंविहचिंताए सुहसेज्जाए ठियस्स अणवरया । पयणुकयरागदोसप्परिणामविसुद्धचित्तस्स ॥ ३५२८ ॥ अच्चंतदिव्वसोक्ख अणहवमाणस्स मोक्खसारिच्छं। तेत्तीससागराइं समइक्कंताई से तत्थ ॥ ३५२९ ।। एवं केवेत्थ सत्ता भवमणसमुविग्गचित्ता पसत्ता । सन्नाणे सच्चरित्ते दरिसणकलिए मोक्खमग्गेक्करूवे ॥ रागद्दोसाण दप्पं नरयगइपयाणुब्भडाणं भडाणं । भंजित्ता जंति सिग्घं विमलजसगुणे सोक्खसारे पयम्मि ॥ ३५३० ।। पोमनाहनरनाहसेवियं ता सुमग्गमचलं बहुत्तमं । जेण सा जसदेवसंपयाभायणं लहु हवेह माणवा ॥ ३५३१ ।। इइ चंदप्पहचरिए जसदेवंकम्मि छट्ठपव्वमिणं । उद्दिट्ठत्थं भणियं पसंगवित्थरियकहबंधे ।। ३५३२ ।। संपइ सत्तमपव्वं भणामि सत्तमभवाणुगं किं पि । चंदप्पहस्स सत्तमजिणस्स अट्ठमपसिद्धस्स ।। ३५३३ ।। (षष्ठ पर्वं समाप्तम्) Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ । सिरिचंदप्पहजिणचरियं (सत्तमो पव्वो) मज्जंतं मोहमए महंधकूवम्मि जगमिणं सयलं । उद्धरिउं जे धरिया अवलंबणरज्जुदंड व्व ॥ ३५३४ ॥ सिरिचंदप्पहतित्थयरदेहउल्लसियकिरणसंघाया। भवियकुमुयागराणं सिरीए ते हंति निच्चं पि ।। ३५३५ ।। नवकोडिसएसु गएसु सागराणं सुपासनाहाओ । उप्पन्नो जो भवयं भरहे दसपुव्वलक्खाऊ ॥ ३५३६ ।। देहुस्सेहपमाणं च जस्स सड्ढं धणुस्सयं जायं । तस्सुज्जलपुन्नपरंपराइ सम्मत्तलाभभवं ॥ ३५३७ ॥ छब्भवगहणाई इमाई अप्पमइणा वि निययसत्तीए । भणियाई संपयं से तित्थयरभवं भणीहामि ।। ३५३८ ।। (चंदप्पहजिणचरियं) अस्थि नवसेयपक्खो व्व पइदिणोवचियरायसब्भावो । निच्चं मित्तुदयकरो राइ पव्वविरायमाणो य ।। ३५३९ ।। विहियमहातिहिपूओ, अलद्धदोसावयासकालो य । नामेण पुव्वदेसो देसो, इह भरहखेत्तम्मि ।। ३५४० ॥ (जुयल) अवि य - थणसोणिभरेण जहिं उट्ठिमसहाओ कलमगोवीओ । गीएणं चिय थंभंति सालिकणटुपए हरिणे ॥ ३५४१ ।। जत्थ य चिक्काररवच्छेलेण पहियाणमिक्खुजंतेहिं । आहवणं व करितेहि वाडभूमीओ रायंति ॥ ३५४२ ।। इक्खुरसामयपाणेण जत्थ सुहिया पए पए पहिया । मग्गपरिस्सममप्पं पि नेय जाणंति हिंडंता ॥ ३५४३ ।। सइतुंगत्ते फलसंपयाइ ओणयसिरा तरू जत्थ । सच्छाया सप्पुरिस व्व तावमवणिंति लीणाण ॥ ३५४४ ॥ विउलफलग्गलिएहिं नीरंधेहिं अकिट्ठपव्वेहिं । संपन्नं जं च पसस्ससस्सनिवहेहिं सव्वेहिं ॥ ३५४५ ।। दुन्भिक्खाई दोसा, कुग्गहसंचारमाइसंजणिया । दुज्जणजणाववाया निदोसनरं व न फुसंति ॥ ३५४६ ।। (जुयलं) दव्वगुणजाइसमवायसुप्पइट्ठो विसिट्ठ सिवकलिओ। कम्मविसेसपहाणो सोहइ वइसेसिउ व्व जो य फुडं ॥ ३५४७ (गीतिका) तियसपुरि व्व विरायंतसुमणनिवहेहिं अहियकयसोहा । तत्थत्थि रायहाणी चंदउरी नाम विक्खाया ॥ ३५४८ ॥ चंदाणणाहिं जा किर तरुणीहिं विराइया पइगिहं पि । चंदाणण त्ति पत्ता पसिद्धमइमुत्तमं लोए ॥ ३५४९ ।। ससिबिंबचुंबणूसुयमुहीहिं वायासलग्गसिहराहिं । जायसुहपंकधवलाहिं सहइ पासायमालाहिं ।। ३५५० ।। जीसे पायारो वि हु उन्नयसिहरावलीकरग्गेहिं । उत्तंभइ व गयणं निरासयं जायकारुण्णो ॥ ३५५१ ।। पवणपहल्लिरवीइच्छलेण उव्वेल्लमाणबाहुलया। नच्चइ व नयररिद्धीए रंजिया खाइया जत्थ ।। ३५५२ ।। किंच - गंभीरखायवलएण परिगया सव्वओ वि जा सहई । सेवागएण जलरासिण व्व रयणाण इच्छाए ।। ३५५३ ।। जत्थ य तरुसु विओगो मूसयमाईण जइ परविलावो । अइपीलिएक्खुदंडे व्व विरसया न उण अन्नत्थ ।। ३५५४ ।। जत्थ य नागसहस्सोवसेवियं नागलोयठाणं व । हिययं व सज्जणाणं वित्थिनं जणियजणतोसं ॥ ३५५५ ।। सुगयमयं पिव बहुभूमियाहिमामाइ परिगयं रन्नो। भवणं भुवणस्स वि जणियविम्हयं निययसोहाए ॥ ३५५६ ॥ (जुयलं) तत्थ य राया निययप्पयाववसवत्तिविहियसयलनिवो । महसेणो नामेणं न परं अत्थेण वि तहेव ।। ३५५७ ।। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं जो गुरुपयावपरितवियवइरिचक्को वि पसमगुणकलिओ । रमणीयचारुवेसो, वि न उण वेसो वि गयमुत्ती ||३५५८|| कल्ल|णपयइयाए न केवलं जो सुरायलिंदस्स । अणुहरइ थिरत्तेण वि लोयपसिद्धेण गुणगुरुणो ॥ ३५५९ ।। किंच सत्ती विणा न खमा, दाणं न पियंवयत्तपरिहीणं । नाणं न गव्वकलियं नो चायविवज्जियं वित्तं ॥ ३५६० ॥ विणयविहीणा विज्जा न जस्स रूवं विणा न सोहग्गं । न पहुत्तणं पि नीईए वज्जियं सयलगुणनिहिणो ||३५६१|| (जुयलं) जस्स महीवलयविसेसयस्स रन्नो गुणोहवन्नणयं । पज्जत्तमेत्तिएण वि जं होही जयगुरुगुरुत्तं ।। ३५६२ ।। सयलंतेउरसारा, सलक्खणा लक्खण त्ति से जाया । सच्छाया विउलमहातरुस्स घणपल्लवलय व्व ।। ३५६३ ।। सुललियपओवसोहियजणमणहरविहियभूरिसंबंधा । सुकइकह व्व विराय वरवन्नगुणालया जाया ॥ ३५६४ ॥ वरवंसलद्धजम्मा विसालपव्वा चडंतविमलगुणा । सुहमुट्ठिगेज्झमज्झा जा सोहइ चावलट्ठि व्व ॥ ३५६५ ।। अवि य - नयणजुए च्चिय जीसे, लोलत्तं न उण चित्तवित्तीए । मंदत्तं च गईए नो विहिलियजणुवयारम्मि || ३५६६ || कक्कसया थणजुयले आणा निद्देसए वि णो वयणे । भंगो अलएसु परं, न सीलसच्चाइसु गुणेसु || ३५६७ || Satara गुणगणगणम्मि खमो हवेज्ज सुमईवि । अट्ठमजिणस्स जणणी जा होज्ज जयम्मि सुहजणणी ||३५६८|| चउजलहिमेहलंतं महिं व संपत्तमित्थिरूवेण । लहिऊण धरानाहो, मन्नइ संस व्व भोमं व ॥ ३५६९ ॥ विसयहमणुहवंतस्स तस्स तीए समं मणभिरामं । दोगुंदुगदेवस्स व सुरलोए जाइ बहुकालो || ३५७० ।। इओ य - जो पउमनाहसाहू, उप्पन्नो वेजयंतदेवेसु । सो जावज्ज वि न चलइ, तत्तो छम्माससेसाऊ ।। ३५७१ ।। सोहम्मसुराहिवई, नाउं गब्भावतारमह तस्स । महसेणनरिंदगिहे लक्खणदेवीए कुच्छिसि || ३५७२ || छम्मासेहिं अणागयमेव तहिं ताव धणयपासाओ । कारविडं आरद्धो पइदियहं रयणपक्खेवं ।। ३५७३ ।। तहा हि - इंदाएसा धणओ, पइदिणमाहुट्ठरयणकोडीओ । पक्खिवइ पहट्ठमणो, महसेणनरिंदगेहम्मि ॥ ३५७४ ।। तहा इंदा सेणं चिय दिसाकुमारीओ अट्ठ आगम्म । देवीए लक्खणाए काऊण पणाममभिउत्ता || ३५७५ ।। अप्पाणं च निवेश्य, विणयनया गब्भसोहणाईयं । कुव्वंति से सरीरं च अहियतेयस्सिरीरुइरं ॥ ३५७६ || ताहे सा नियदेहं नीरोयं निम्मलं निराबाहं । नियकंतिविजियउदयंतचंदबिंबं पलोइत्ता ॥ ३५७७ ।। अच्चतविम्हियमणा चिंतइ किं मज्झ मणुयजम्मे वि । देवभवस्सावयारो जाओ समुइन्नपुण्णाओ ।। ३५७८ ।। भूवं अच्चब्भुयं सदेहे वि ! । पासेमि किंच देवीओ मज्झ किर किंकरीओ व ॥ ३५७९ || सव्वं सरीरकज्जं, करिंति विणएण पज्जुवासंति । पुरओ ठियाओ रमयंति तह य बहुविहविणोएहिं ॥ ३५८० ॥ १३७ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एवं चिंतंतीए तीए आणंदनिब्भरमणाए । जा जंति कइ वि दियहा, तावण्णदिणम्मि रयणीए ॥ ३५८१ ।। पेच्छइ पच्छिमजामे धवलहरुच्छंगसंगए रुइरे । सुत्ता सुहसयणिज्जे कमेणिमे चोद्दस वि सुमिणे ।। ३५८२ ।। (कुलयं) सुरसेलतुंगदेहं, सरयब्भसमापहं महाहत्थिं । पासइ सुररायगयं व सजलजलवाहगज्जिरवं ।। ३५८३ ।। पायसुसोहं पि हु पुट्ठिवंसय सेयवन्नमुत्तुंगं । पेच्छइ वसहं सुविभत्तसिंगरुइरं हिमगिरिं व ।। ३५८४ ।। पंचाणणं व पंचमिचंदकलारुइरदाढमुहसोहं । लीलायंतं पप्फुल्लकेसरं नियइ सियकतिं ।। ३५८५ ।। करजुयलकलियकोमलकमलजुयं कमलवासिणिं देविं । पेच्छइ दोपासट्ठियकरिकरकुंभेहिं सिच्चंतिं ॥ ३५८६ ॥ देवदुमकुसुमदामं परिमलमिलियालिबहलझंकारं । अवलोयइ नहदेसत्थमाहवंतं व भुवणगुरुं ॥ ३५८७ ॥ जोन्हाजलविमलीकयभवणयलं चंदमंडलमुयारं । निज्झाइ चंदवयणा, निहयतमं पुन्नमकलंक ।। ३५८८॥ दोसंधयारदारणपरायणो जस्स फुरइ किरणोहो । उदयंतं तं पासइ, सहस्सरस्सि जयप्पयडं ॥ ३५८९ ॥ पडुपवणुप्पाडियधयवडग्गहत्थेण वेजयंताओ । अवयरणत्थं एत्थं जिणस्स चिंधं च जो कुणइ ।। ३५९० ।। मणुयभवमवयरंते जणम्मि लोयस्स मोक्खकामस्स । तं अवलंबणदंडं, व पासइ सा महंतझयं ।। ३५९१ ।। (जुयल) कंकेल्लिपल्लवुच्छइयवयणमुप्फुल्लपंकयनिहाणं । निम्मलसलिलनिहाणं पलोयए कलसजुयलं च ॥ ३५९२ ॥ पप्फुल्लपउमवयणं नीलुप्पललोयणं सरं नियइ । लायन्नामयभरियं अप्पं पिव कंबुगलदेसं ॥ ३५९३ ॥ जो पुरिसोत्तमवासो, जत्थ य लच्छी पकाममभिरमइ । तं सव्वरयणठाणं, पेच्छइ जलहिं नियपियं व ॥ ३५९४ ।। पणवन्नरुइररयणोहकंतिविच्छुरियनहयलाभोयं । अंबरयलाओ नियगिहमुविंतमह पासइ विमाणं ॥ ३५९५ ।। घणकिरणबाणनियरं किरतयं अप्पणो व्व रक्खट्ठा । देवी पहट्ठचित्ता पलोयए रयणरासिं च ।। ३५९६ ॥ धूमविमुक्कं जालाकलावलियं महंधयारं च । संजणियपहरिसुक्करिसमह सिहिं नियइ सा देवी ।। ३५९७ ।। एवं चोद्दससुमिणे अदिट्ठपव्वे पलोइऊणेसा । पडिबुद्धा घणरोमंचमुव्वहंती सरीरम्मि ।। ३५९८ ।। नीसेससत्थपरमत्थनाणिणो नियपइस्स पामूलं । गंतूण तओ साहइ, जहदिढे सव्व सुमिणे सा ।। ३५९९ ।। सोऊण तो नरिंदो हरिसवसुल्लसियबहलरोमंचो । पप्फुल्लवयणकमलो, आभासइ पिययम एवं ॥ ३६०० ॥ सुयणु ! तुम चिय धन्ना, जीए एवंविहा महासुमिणा । दिट्ठा समग्गकल्लाणहेउणो सयललोयस्स ।। ३६०१ ॥ एएहिं सूइओ देवि ! तुज्झ पुत्तो स को वि संभविही । न परं तुज्झ व मज्झ व तिजयस्स व जो सुहेक्ककरो ॥३६०२।। एत्तो च्चिय फलमउलं, सुंदरि ! सुमिणावलीए एयाए । पत्तेयं कीरतं मए तुमं सुणसु उवउत्ता ।। ३६०३ ।। जो करिराओ दिट्ठो, तत्तो तुह पुत्तओ तिहुयणस्स । होही उत्तमसत्तो वसहाओ धम्मधुरधवलो ।। ३६०४ ।। तिजगुत्तमविक्कमसारभायणं सिंहदरिसणाओ य । सिरिअभिसेया देविंदनिवहजोग्गाभिसेयपयं ।। ३६०५ ॥ सुरकुसुमदामओ पुण, सयलदिसापयडसुरहिजसपसरो । पडिपुन्नरयणिनाहाओ सयलभुयणस्स सुहहेऊ ॥ ३६०६ ।। दोसंधयारमहणो, अहवा भव्वारविंदबोहयरो। आइच्चाओ धयाओ, गुणेहिं तेलोक्कविक्खाओ ।। ३६०७ ॥ पुन्नेक्कभायणं पुन्नकलसदिट्ठीओ लक्खणनिही वा । तन्हावोच्छेयकरो सरोवराओ विसालच्छि ! ॥ ३६०८ ।। Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३९ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं जलनिहिपलोयणाओ, गंभीरो णंतनाणनिलओ य । एही विमाणवासाओ एत्थ स विमाणदंसणओ ।। ३६०९ ।। रयणुच्चयदंसणओ, निम्भलगुणरयणरासिआवासो । वासवपुज्जो दहिही, सिहिणा उण सयलकम्मवणं ।। ३६१० ।। एए चोद्दस सुमिणे, जइ वि हु किर चक्कवट्टिजणणी वि । पासइ तहा वि होही, तुह पुत्तो धम्मवरचक्की ॥ ३६११ ।। पुव्वं पि तए सिढें, मह पुरओ जेण मह सयासम्मि । देवीओ इंति बहुहा, दंसंति य किंकरित्तं च ।। ३६१२ ।। जच्चो य रयणरासीहिं पूरियं सव्वओ वि नियगेहं । पासामि अहं सुंदरि ! छम्मासा आरओ चेव ॥ ३६१३ ।। अच्चंतपुन्नपयरिसमाहप्पं एरिसं न अन्नस्स । संभवइ सुमुहि ! मोत्तुं तित्थयरं तिजगविक्खायं ।। ३६१४ ।। मा काहिसि संदेह, ता तुममेत्थं मयच्छि ! मह वयणे । अन्नं च मए निसुयं, पुव्वं पि हु केवलिसयासे ।। ३६१५ ।। जह लक्खणाए देवीए तुज्झ पुत्तो जिणेसरो होही । नीसेसतिहुयणस्स वि नमणिज्जो अट्ठमो भरहे ।। ३६१६ ॥ ता चलइ मेरुचूला वि कह वि न उणो ममं इमं वयणं । सुमिणावलीए विवरणमेयं ता अवितहं मुणसु ।। ३६१७ ॥ तं सव्वमंगलनिही नवरं जाया इमेहिं सुमिणेहिं । कल्लाणि ! जे सयं चिय तुमए दिट्ठा सुहसरूवा ।। ३६१७(अ) । अन्नो वि जो सुणिस्सइ पढिस्सए वा इमं सुमिणमालं। हियइच्छियाई लहिहि सो वि हु उवहणियविग्घभरो।।३६१८।। (जुयल) फलममलमिमं सुमिणावलीए सुणिऊण पियसमीवम्मि । हरिसभरनिब्भरंगी अह भणइ पुणो वि पइमेवं ।। ३६१९ ।। इच्छियपडिच्छियं मे, तुह वयणं सव्वमेव नाह ! इमं । एवं चिय संजायउ अइरा तुम्ह प्पसाएण ॥ ३६२० ।। इय भणिरी रहसुग्गयरोमंचं कंचुयं व देहम्मि । धरमाणा परमपमोयभायणं कह वि तह जाया ॥ ३६२१ ॥ ' जह गोयरं न पत्ता वाणीण महाकईण वि तया सा । अहव अहिलसियलाभासाइ वि भण कस्स न पमाओ।।३६२२ ।। (जुयल) बहुमन्नियपइवयणा एवं खणमच्छिऊण तप्पासे । काऊणं च पणामं वच्चइ सा निययमावासं ।। ३६२३ ॥ एत्थंतरम्मि आउक्खयम्मि चविऊण वेजयंताओ । चेत्तस्सबहुलपंचमिनिसाए अणुराहनक्खत्ते ।। ३६२४ ॥ देवीए लक्खणाए कुच्छीए सयललक्खणोवेओ। सिरिपउमनाहदेवो अवयरिओ सुहमुहुत्तम्मि ।। ३६२५ ॥ अवयरिए गब्भम्मि य तम्मि महापुन्नजोगओ तस्स । तह कह वि तिहयणम्मि वि संजाओ झ त्ति संखोहो ॥३६२६ ॥ जह सयलसुरवरिंदा सममसुरिंदेहिं नरवइगिहम्मि । आगंतूणं विरयंति चवणकल्लाणमहमहिमं ।। ३६२७ ।। तहा हि - पहयपडुपडहमद्दलरवसमतालं पणच्चमाणेहिं । मणहारि वेणुवीणासरं च तह गायमाणेहिं ॥ ३६२८ ।। खणमेत्तं पेक्खणयं काऊणं जणमणोहरं तत्थ । जिणजणणीए गुणसंथुई य पच्छा कया एवं ॥ ३६२९ ।। भुवणत्तयस्स तिलयं निलयं नीसेसनिम्मलगुणाणं । कुच्छीए धरतीए नमो नमो देवि तुह होउ ॥ ३६३० ।। तुह चेव सलहणिज्जो, इत्थीभावो जयम्मि सयलम्मि । मणुयत्तं पि सुलद्धं मन्नामो देवि ! तुह चेव ॥ ३६३१ ।। जीसे तुह कुच्छीए , सिप्पीए मेहवारिबिंदु व्व । अवयरिओ किर भयवं विसिट्ठमुत्तामयसरीरो ।। ३६३२ ।। ता तुज्झ चेव छज्जइ, असेसमहिलाण मज्झयारम्मि । महसेणनरिंदकओ, पट्टमहादेविसद्दो त्ति ।। ३६३३ ॥ एवं थुणिऊण तओ मुयंति पणवन्नकुसुमवरवुदिछ । सहिरन्नरयणवुट्ठीए संजुयं जायमणतोसा ।। ३६३४ ।। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० सिरिचंदप्पहजिणचरियं काऊण गब्भरक्खं सिरिहिरिमाईण देवयाणं च । दाउं तत्थ निओगं, सट्ठाणं सुरवरा पत्ता ।। ३६३५ ।। सिरि-हिरि-धिइमाईओ, देवीओ तयणु तीए गेहम्मि । विरयंति कंतिलायन्नमाइअच्चब्भुयगुणोहं ।। ३६३६ ।। देवीए गब्भस्स य कुणंति रक्खं तहा पयत्तेण । आराहिति य सययं अपमत्ता भत्तिविणएहिं ।। ३६३७ ॥ अन्ने वि देविदेवा जिणवरपुन्नाणुभावओ इंति । जे तत्थ केइ ते वि हु कुणंति रयणाइवुट्ठीओ ।। ३६३८ ।। दठूण इमं महसेणनरवरिंदो वि कारवइ सव्वं । मंगलकिच्चं देवीए गब्भसुहहेउभूयं ति ।। ३६३९ ।। सा पोमिणि व्व वररायहंसगब्भा विरायए अहियं । सुररायदंतिमज्झा, अहवा आयासगंग व्व ।। ३६४० ।। गिरिवरगुह व्व जइ वा पंचाणणपोयभूसियसुमज्झा । पुव्वदिसा वा जह उदयसेलअंतरियरविबिंबा ॥ ३६४१ ॥ तिजगुत्तमम्मि वरवेजयंतणुत्तरविमाणवासाओ। अच्चब्भुयपुन्ननिहिं गब्भावासं समोइण्णे ॥ ३६४२ ।। (विशेषकम्) तीसे सुहंसुहेणं गएसु मासेसु दोसु अन्नदिणे । तइए मासे जाओ दोहलओ चंदपियणम्मि || ३६४३ ।। तम्मि य अपुज्जमाणा झिज्जतं पासिऊण तं राया। आउच्छइ अन्नदिणे देवि किं दीससे विमणा ? ।। ३६४४ ।। एवं च पुच्छिया वि हु लज्जासंभारमंथरमुही सा । जाव न साहइ किंचि वि तेण निवो आउलीहूओ ।। ३६४५ ।। भणइ य पासगयाओ, से सिरिहिरिमाइयाओ देवीओ। साहेइ भयवईओ एवं किं दीसए देवी ।। ३६४६ ।। रक्खाकज्जम्मि समुज्जुयाओ देवीओ जेण इह तुब्भे । ता तुम्हं पच्चक्खं, विच्छायमुही किमेवमिमा ।। ३६४७ ॥ इय निववयणं सोउं, ताओ अह दिन्नओहिउवओगा । नाऊण देविदोहलसरूवमह बिंति रायाणं ॥ ३६४८ ।। चंदपियणम्मि जाओ, दोहलओ राय ! तेण देवीए । अस्सत्थया मणायं, दीसइ सोमालदेहाए । ३६४९ ।। एयम्मि य अत्थम्मी, उव्वेयं मा करेह मणयं पि । अम्हे च्चिय देवीए , एयं अत्थं घडिस्सामो ॥ ३६५० ।। इय भणिउं तीए च्चिय रयणीए दिव्वदेवसत्तीए । अवयारिऊण पेयाइ गयणओ सीयकरबिंबं ॥ ३६५१ ॥ तो पाइया सुहेणं देवी जाया पहलहियया य । गयणम्मि अंधयारं च दंसियं पच्चयनिमित्तं ।। ३६५२ ।। देवीए गब्भस्स य जं जं अन्नं पि किं पि सुहजणयं । तं तं कुणंति देवीओ सव्वमभिओगजुत्ताओ ।। ३६५३ ।। महसेणनरिंदस्स वि जिणावयाराणुभावओ रज्जं । सयलं पि वद्धमाणं जायं जणजणियगुरुहरिसं ।। ३६५४ ॥ तो मंगलेक्कनिलयं, तिजयस्स वि जिणवरं धरतीए । गब्भम्मि लक्खणाए देवीए जंति नव मासा ॥ ३६५५ ।। अट्ठमदिवसेहिं समग्गलासयलसुहविणोएहिं । ऊसवमय व्व सम्मयमय व्व सुहपयरिसमय व्व ॥ ३६५६ ॥ (जुयलं) पत्ते य पोसमासस्स पढमपक्खम्मि बारसतिहीए । पुव्वावररत्तंतरकालम्मि सुहे मुहुत्तम्मि ॥ ३६५७ ।। अणुराहानक्खत्तेण संजुए ससहरम्मि सुरपुज्जे । मुत्तिगए उच्चट्ठाणवत्तिएसुं सुहगहेसु ।। ३६५८ ॥ लागे सुपसत्थगुणुज्जलम्मि सयलस्स तिहुयणस्सावि। परमाणंदनिमित्तं अह देवी जणइ वरपुत्तं ॥ ३६५९ ॥(विशेषकम्) तित्थयरमाउयाओ उ हुंति सव्वाओ छन्नगब्भाओ। न य तासि पसवकाले, थेवा वि हु वेयणा होइ ।। ३६६० ।। जररुहिरकलमलाणि य पडंति जम्मम्मि नो जिणिंदाणं । जायइ य सयललोए, उज्जोओ जणियजणचोज्जो ॥ ३६६१ ।। जाए सुहंसुहेणं अओ जिणिंदम्मि तक्खणा चेव । आसणकंपो जाओ, अट्ठण्ह दिसाकुमारीण ।। ३६६२ ।। Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं १४१ अहलोए वत्थव्वाण पढममह ताओ ओहिणा नाउं । अट्ठमजिणमुप्पन्नं दिव्वविमाणेण पत्ताओ ।। ३६६३ ।। भोगंकरा भोगवई, सुभोगा भोगमालिणी । सुवच्छा वच्छमित्ता य, पुप्फमाला अणिंदिया ।। ३६६४ ।। एयाओ वेगेणं आगंतूणं जिणिंदजणणीए । पासम्मि जिणं जिणमायरं च वंदित्तु भत्तीए ॥ ३६६५ ।। एवं भणंति हट्ठाओ देवि ! तुब्भं नमो महाभाए ! । तिजगुत्तमतिजगपईवदाइए ! तिजगसोक्खकरे ! ।। ३६६६ ।। अम्हे देवाणुपिए ! अट्ठ अहोलोयदिसकुमारीओ । जम्मणमहिमं काउं तुह वरपुत्तस्स पत्ताओ ।। ३६६७ ॥ न हु तम्हा तसियव्वं तुमए इय पणमिऊण तट्ठाणे । खंभसएहिं निविठं जम्मणभवणं विउव्विति ।। ३६६८ ॥ तो संवट्टगपवणं, विउव्विउं तेण कट्ठतणमाई । आजोयणं समंता जम्मणभवणाओ फेडंति ॥ ३६६९ ।। तयणंतरं जिणस्स य जिणजणणीए य भत्तिविणयणया । चिठेति गायमाणीओ नाइदूरे निविट्ठाओ ।। ३६७० ॥ एएणेव कमेणं अद्वैव उवेंति उड्ढलोयाओ। जायासणकंपाओ नाऊण जिणं समुववन्नं ॥ ३६७१ ।। मेहंकरा मेहवई सुमेहा मेहमालिणी । तोयधारा विचित्ता य वारिसेणा बलाहया ।। ३६७२ ।। आगंतूण इमाओ वि विहिणा तेणेव तो विउव्वन्ति । आजोयणं भगवओ जम्मणभवणस्स वद्दलयं ।। ३६७३ ।। तो गंधोदयवासं वासंति तहा जहा न बहुयजलं । न य चिक्खल्लं रयरेणुनासणं केवलं सुरभिं ॥ ३६७४ ॥ तह पुप्फवद्दलं पि हु विउव्वियं जलयथलयकुसुमाण । बिंटट्ठाईणं सुरहिगंधसंलग्गभमराण ।। ३६७५ ।। जाणुस्सेहपमाणं कुणंति वुट्ठि दसद्धवन्नाण । चिट्ठति गायमाणीओ तयणु जिणजणणिपासम्मि ॥ ३६७६ ।। (जुयल) एवं पुरत्थिमाओ, रुयगाओ दाहिणाओ अवराओ। अट्ठट्ठ उत्तराओ वि, आगम्म दिसाकुमारीओ ॥ ३६७७ ॥ नंदुत्तरा य नंदा आणंदा नंदवद्धणा चेव । विजया य वेजयंती जयंति अवराजिया चेव ॥ ३६७८ ।। आयंसगहत्थाओ, एयाओ दंसिऊण आयरिसं । पुव्वदिसाइ ठियाओ चिटुंती गायमाणीओ ॥ ३६७९ ।। समाहारा सुप्पदिन्ना सुप्पबुद्धा जसोहरा । लच्छिमई भोगवई चित्तगुत्ता वसुंधरा ।। ३६८० ।। भिंगाररयणहत्था एयाओ जिणस्स जणणिसहियस्स । दाहिणदिसट्ठियाओ चिटुंती गायमाणीओ ॥ ३६८१ ॥ एलादेवी सुरादेवी पुहवी पउमावई । एगाणसा णवमिया सीया भद्दा य अट्ठमा ॥ ३६८२ ।। एयाओ वि तित्थयरस्स जणणिसहियस्स पच्छिमदिसाए । वरटालियंटहत्था चिटुंती गायमाणीओ ॥ ३६८३ ।। अलंबुसा मिस्सकेसी वारूणी पुंडरीगिणी । आसा सव्वप्पभा चेव उत्तराओ सिरी हिरी ॥ ३६८४ ।। आगंतूण इमाओ वि, तहेव नाहस्स जणणिसहियस्स । चामरहत्था गायंतियाओ चिट्ठति उत्तरओ ।। ३६८५ ।। विदिसासु रुयगवत्थव्वगाओ पच्छा उवेंति तह चेव । चत्तारि विज्जुकुमारीण, सामिणीओ विवेगेण ।। ३६८६ ।। चित्ता य चित्तकणगा, सतेय सोमणि त्ति नामाओ । दीवियहत्था चउसु वि विदिसासु ठियाओ गायंति ॥ ३६८७ ।। तो मज्झ रुयगवत्थव्वयाओ चत्तारिदिसकुमारीओ । सव्वुत्तविंती इमेहिं नामेहिं सुपसिद्धा । ३६८८ ॥ रूया रूयंसा तह सुरूय रुइया वइ त्ति तह चेव । आगंतूणं पणमंति जिणवरं तस्स जणणिं च ।। ३६८९ ।। पभणंति य विणएणं अम्हे जिणजम्मकज्जकरणत्थं । पत्ताओ एत्थ मज्झिमरुयगाओ दिसाकुमारीओ ॥ ३६९० ॥ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं ता नेय भाइयव्वं तुमए सामिणि ! न या वि उवरोहो । मन्नेयव्वो को वि हु, इय भणिउं भत्तिपणयाओ ॥ ३६९१ ।। भवियजणकुमुयवणससहरस्स तो भगवओ जिणिदस्स । चउरंगुलं विवज्जित्तु नाभिनालं पकप्पिन्ति ।। ३६९२ ॥ ताहे खणंति विवरं, तहिं च निहणंति तं तओ सिग्धं । रयणाणं वइराण य पूरंति समंतओ चेव ॥ ३६९३ ।। हरियालियाए पीढं, बंधंति तहिं तओ पहट्ठमणा । तित्थयरजम्मभवणाओ तयणु कुव्वंति कयलिहरे ।। ३६९४ ।। पुव्वेण दाहिणेण य उत्तरओ वि य तओ उ तम्मज्झे । पत्तेयं रमणिज्जे चाउस्साले विउव्वंति ।। ३६९५ ॥ ताणं च मज्झ देसे रयंति सीहासणं च एक्केक्कं । तो भयवंतं घेत्तूण हत्थकमलेहिं नियएहिं ॥ ३६९६ ॥ जिणवरजणणिं च तहा, बाहाए गिहिउं निराबाहं । दाहिणकयलीहरचाउसालसीहासणवरम्मि ।। ३६९७ ।। उववेसिऊण सयपागसहसपागाइएहिं तेल्लेहिं । सव्वंगं अब्भंगिय अच्चंतसुहेक्कहेऊहिं ॥ ३६९८ ॥ सुविसिट्ठसुरहिगंधड्ढएण उव्वट्टणेण पच्छा य । उव्वद॒ति जिणिदं, जणणिं च सुमउयफासेण ॥ ३६९९ ।। तयणंतरं च पुणरवि घेत्तूण जिणं सपाणिकमलेहिं । जिणजणणिं च भुयाहिं वयंति पुव्विल्लकयलिहरे ॥ ३७०० ।। नच्चंति चाउसालयसीहासणयम्मि सन्निसावेंति । मज्जणविहीए तत्तो, मज्जणयं कारविंता य ।। ३७०१ ।। सोमालपल्हलाए सुगंधिगंधुन्भडाए लूहति । गंधकसायाए तओ, अंगेसुं मउयहत्थेहिं ॥ ३७०२ ।। तयणंतरं च गोसीसचंदणेणं विलेवणं काउं । परिहावंति सतोसं दिव्वाइं देवदूसाइं ।। ३७०३ ।। सव्वालंकारविभूसियाई काऊण तयणु उत्तरओ । आणिति चाउसाले तहेव सीहासणे ठविउं ॥ ३७०४ ।। तो आभिओगिएहिं आणावेऊण चुल्लहिमवंता । गोसीससरसचंदणकट्ठाइं तक्खणाचेव ।। ३७०५ ।। अरणीए हव्ववाहं उप्पाएऊण तेहिं कठेहिं । उज्जालिंती संतीए अग्गिहोमं च कुव्वंति ॥ ३७०६ ।। तब्भूइणा य रक्खा पोट्टलियाओ करित्तु बंधति । पच्छा पहाणपाहाणवट्टए दो गहेऊण ॥ ३७०७ ।। होऊण कन्नमूलम्मि टिंटिया चिंतियत्थनाहस्स । पभणंती य होहि तुम होहि तुम पव्वयाउ त्ति ॥ ३७०८ ॥ इय आसीसं दाउं जिणस्स करयलपुडेण गहिऊण । पुणरवि जिणं जिणिंदस्स मायरं तह य बाहाहिं ।। ३७०९ ।। मलिल्लजम्मभवणम्मि निययसेज्जाए सन्निवासित्ता । चिट्ठति गायमाणीओ नाइदरम्मि ताण ठिया ॥ ३७१० ।। एत्थंतरि सोहम्माहिवस्स, आसणु संचल्लिउ सुहट्ठियस्स । ता ओहिनाणि उवओगु देइ अट्ठम जिणिंदु जायउ मुणेइ ।। ३७११ ।। आणवइ तयणु हरिणेगमेसि पायत्ताणीयह जो महेसि । आएसिं सो हु हरिसंतिएण, ताडणु करेइ घंटहिं खणेण ॥ ३७१२ ।। अह तग्गुरुपडिरवलग्गछंट रणरणिरअसेसवि सग्गघंट । तिं सदि सव्वु वि तियसलोउ सम्मिलिउ तत्थ परिचत्तखेउ ।। ३७१३ ।। तो पालयसुरु सोहम्मराई, आइट्ठ गुरुहरिसाणुराई । निम्मवहि पहाण विमाणु झ त्ति, जिं गम्मइ मेरुहिं गुरुयभत्ति ॥ ३७१४ ।। ता सिग्घु लक्खजोयणपमाणु, तिं विरयवि पवरविमाण जाणु । विणओणयसिरिण सुराहिवस्स, साहिउ अप्पडिहयसासणस्स ।। ३७१५ ।। परिवारसमन्निउ सुरहं राउ, आरुहिवि तित्थु हुय गरुयभाउ । जिणजम्मगेहि तक्खणिण पत्तु, अवहियविमाणवित्थरु पवित्तु ।। ३७१६ ॥ पविसेविण जिणवरजम्मभवणि भत्तीए संथुणवि जिणिंद जणणि । पडिबिंबु निवेसइ सुयह ठाणि, अवसोयणि देविणु महुरवाणि ।। ३७१७ ।। तो चल्लिउ जिणु उच्छंगि लेवि, सुरराउ पंचरूवई धरेवि । दुहिं रूविहिं ढालइ चारुचमर इगि वज्जपाणि आणवइ अमर ॥ ३७१८ ।। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं १४३ अन्नेक्कि दिव्वु धरेइ छत्तु, जिणु अवरि लेवि सुरगिरिहिं पत्तु । तत्थाइपंडुकंबलसिलाए, सीहासणि बइसइ निम्मलाए ॥ ३७१९ ॥ पच्छा वि एत्थु सवि देविराय, संपत्ततेत्थु गरुयाणुराय । अणुवमविभूइलंकरियदेह, संपावियसोहाइसयरेह ॥ ३७२० ।। तयणंतरि अच्चुयसुरवरिंदु, आणवइ अमरपरिवारविंदु । भो भो जिणमज्जणकज्जि होह, उज्जमिय सव्वि तुम्हि अमरजोह ।। ३७२१ ।। अह तस्स आण सिरि धरिवि देव, परिचत्तसयलविक्खेव सेव । कयविविहकलसभिंगारसार, रमणीयगरुयबहुरच्छभार ।। ३७२२ ।। आणेविणु खीरोयाइठाण, जल कुसुमकमलकुवलयपहाण । अन्नि वि जिणन्हवणोचियपयत्थ, कयअच्चुयसुरवरअंतियत्थ ।। ३७२३ ।। तो अच्चुयनाहुखिविय धूवू, आरंभइ जिणमज्जणु सुरूवु । सुरतरुवरपुप्फंजलिपवित्त, पणवन्न लेवि जिणचलणि खित्त ।। ३७२४ ।। अठ्ठत्तरसहसि सुवन्नमयह, अठुत्तरसहसिं रुप्पमयहं । अठुत्तरसहसिं मणिमयाहं, अठ्ठत्तरसहसिं मिम्मयाहं ॥ ३७२५ ।। अट्ठहियसहसि मणिसुवन्नियाहं, अट्ठहियसहसि मणिरुप्पियाहं । अट्ठहियकणयमणिरुप्पियाहं अट्ठहियसहसि चंदणघडाहं ।। ३७२६ ।। इय अच्चुइंदि कलसहं भरेण, न्हावियउ जिणिंदु बहुवित्थरेण । परिवारजुत्ति अइगरुयभत्ति, अप्फालियविविहाउज्ज झ त्ति ॥ ३७२७ ॥ तो कमि कमु सेससुरिंदवग्गि, किउ ण्हवणु विसेसिं पुलइअंगि । तो उट्ठिउ सोहम्मउ सुरिंदु ईसाणपहुहु अप्पिवि जिणिंदु ॥ ३७२८ ॥ तो हरिसिण अप्पं पंचवियप्पर, सो सोहम्मउ जिंव करिवि () । सक्कासणि उवविट्ठउ भत्तिविसिट्ठउ नियउच्छंगिं जिणु धरिवि ॥ ३७२९ ।। तयणु सोहम्मसामी वि वेउव्विए, करिवि चत्तारि महवसहरूवाहिए। धवलगुणजिणियहिमकिरणकरदंडए, नाइ जिणवरह अइविमलजसपिंडए ॥ ३७३० ।। तेसि सिंगग्गओ खीरधारट्ठयं, उवरिमुहमुट्ठवित्ताण कसु विसिट्ठयं । गयणदेसम्मि मेलवि य तं एगओ, जिणह सीसम्मि पयडेइ लहुवेगओ ।। ३७३१ एवमच्चब्भुयं पढमजिणन्हवणयं, करिवि सेसिंदमग्गेण पच्छा तयं । सुरहिसोमालकासायवत्थेण तो, लूहिउं जिणवस्संगमभिउत्तओ ॥ ३७३२ ।। अगरुकप्पूरसम्मिस्ससच्चंदणं, लेवि गोसीसनामं सुराणंदणं । कुणइ तो जिणवरंगस्स सुविलेवणं देइ हारड्ढहाराइ अह भूसणं ।। ३७३३ ।। पारियायाइ कुसुमेहिं पुण पूइउं, देवदूसं च पवरं नियंसाविउं । धूवमुक्खिवियघणसारगंधुक्कडं, अट्ठमंगलयमालिहइ रूवुब्भडं ॥ ३७३४ ॥ मल्लियामालईमाइकुसुमुक्कर, मुयइ आजाणुमेत्तं च बहुवित्थरं । कुणइ तो लोणपाणीयउत्तारणं, रयणमणिघडियमारत्तियं सोहणं ।। ३७३५ ।। मंगलीयं च मंगलपईवाइयं, सयलसुरवग्गसंजुइण सव्वं कयं । हरिसभरनिब्भरा देवदेवीगणा, झ त्ति नच्चंति तोरइयविविहस्सणा ॥ ३७३६ ।। पुण वि भत्तीए पणमित्तु जिणचलणए, दिव्वझुणि कुणवि बहुविविहसंथवणए । हरिसरोमंचकंचुइयमत्ताणयं संधरता सुरा जंति सट्ठाणयं ।। ३७३७ ॥ इय जन्मभिसेयह कयजयसेयह, अंतिं सुरिदिं जिणिंदु लहु । अप्पिउ नियजणणिहि हरि ओसवणिहि सई गउ सग्गह सुरहं पहु ।। ३७३८ ।। एवं संखेवेणं सोहम्माईसुरिदसंबद्धा । जम्मभिसेयविहाणे, कहिया वत्तव्वया का वि ॥ ३७३९ ॥ संपइ पुण वित्थरओ भणामि एवं पि कक्कसूरीण । नियगुरुगुरूण गाहाहिं सारसिद्धंतरइयाहिं ।। ३७४० ।। निव्वत्तिए समाणे, दिसाकुमारीहिं जायकम्मम्मि । सव्वम्मि जिणवराणं सव्विड्ढीए ससत्तीए ।। ३७४१ ॥ एत्थंतरम्मि तेसिं सुहाणुभावाहि जिणवरिंदाणं । अन्नोन्नकरकरंबियकेरंतरछुरियमणिनियरं ॥ ३७४२ ।। सोहम्मदेवलोए, सीहासणमुत्तमं सुरवइस्स । सक्कस्स चलइ सासयभावापन्नं पि सयराहं ॥ ३७४३ ।। अह तम्मि चलियमित्ते, ओहिम्मि पउंजियम्मि सक्केणं । नाए जिणिंदजम्मे, जं कीरइ तं निसामेह ॥ ३७४४ ॥ ओयरिय सपीढाओ, हिमगिरिसिहरा व आसणाओ तओ। आगंतुमभिमुहं सो सत्तट्ठपयाइं भरहस्स ॥ ३७४५ ।। नसिऊण दाहिणिल्लं जाणुं भूमीए कोमलसुहाए । आउंटिऊण वामं, रंभार्थभं व भत्तीए ।। ३७४६ ॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं तिक्खुत्तो मुद्धाणं भूमीए निहोडिऊण सुहभावो । सिरि निमियकरयलंजलिसक्कत्थयपुव्वयं थुणइ ॥ ३७४७ ॥ थुणिऊण भत्तिपुव्वं पुणरवि सीहासणम्मि उवविसइ । जिणवरजम्मणमहिमं काउमणो मेरुसिहरम्मि ॥ ३७४८ ॥ भणइ हरिणेगमेसिं, जलहरगंभीरमहुरनिग्घोसो । सुरअसुरइंदमहिओ, जाओ भरहम्मि जिणयंदो ।। ३७४९ ।। जम्मणमहिमं काउं गंतव्वं तस्स जंबुदीवम्मि । इंदेहि सुरवरेहि य, सव्वेहि य नूण सयराहं ।। ३७५० ॥ ता आवाहणहेडं, सोहम्मनिवासिसयलदेवाणं । वायसु सुघोसघंट, कुणसु य उग्घोसणं तत्तो ॥ ३७५१ ।। सिरि कयकयंजलिपुडो तत्तो हरिणेगमेसि सो देवो । आमं ति सक्कवयणं, पडिच्छिउं भत्तिसंजुत्तो ।। ३७५२ ।। गंतु सोहम्मसहं, जोयणपरिमंडलं मणभिरामं । वायइ सुघोसघंट, टंकारापूरियदियंतं ॥ ३७५३ ॥ सोहम्मदेवलोए जोयणपरिमंडलाण घंटाणं । तीए टंकारेणं, समाहयाणं समाणीणं ॥ ३७५४ ॥ बत्तीसं लक्खाई, तीए एक्काइं जाइं ऊणाइं । बहिरियदियंतरालं, पडिटंकारं विमुचंति ॥ ३७५५ ॥ रइसागरावगाढा, एगंतेणं सुराइकप्पम्मि । सोऊण ताण सद्द अवहियहियया विचिंतंति ।। ३७५६ ।। किं अम्ह चवणसमओ, जेणमकम्हा रणति घंटाओ। अन्नं वा वि अरिठें, विचिंतयंताण तो ताण ।। ३७५७ ॥ एत्थंतरम्मि देवो, जलहरगंभीरमहुरसद्देणं । उग्घोसेइ समंता, उवसंते तम्मि टंकारे ॥ ३७५८ ॥ सक्को सहस्सनयणो, एरावणवाहणो सुरवरिंदो । दाहिणलोगाहिवई, सोहम्मवई सयमहो य ।। ३७५९ ॥ एवं सो तिक्खुत्तो काउं गंतूण सुरवरिंदस्स । अंतियमिममाणत्तिं पच्चप्पिणिऊण विहरेइ ॥ ३७६० ।। एत्थंतरम्मि सक्को, सद्दाविय पालयं भणइ देवं । निम्मवसु विमाणवरं, वच्चामो जेण भरहम्मि ।। ३७६१ ।। जं तत्थ तित्थनाहो, तेलोक्कदिवायरो समुप्पन्नो । गंतूण तस्स महिमा, कायव्वा जं च अम्हेहिं ॥ ३७६२ ।। सोऊण इमं वयणं. एगन्ते गंत सो विउव्वेइ । खंभसयसन्निविट्ठ, पालयनाम वरविमाण ॥ ३७६३ ॥ जोयणलक्खपमाणं, विक्खंभायामओ विणिद्दिढें । जोयणसयाई पंच उ उच्चत्तेणं तयं होइ ॥ ३७६४ ॥ दिप्पंतकिरिणनियरं, मज्झे तस्सट्ठजोयणा यामं । चउजोयणबाहल्लं रम्मं मणिपेढियं कुणइ ।। ३७६५ ।। तीए उवरि विउव्वइ फुरंतमणिनियरकंतकंतिल्लं । सीहासणं महरिहं, सुराहिवो जत्थ उवविसइ ॥ ३७६६ ।। तस्सावरुत्तेणं उत्तरईसाणओ सहस्साई । निम्मवइ चउरसीइं, सामाणियदेवजोग्गाई ॥ ३७६७ ॥ अग्गमहिसीण जोगे, अट्ठण्हं अट्ठ पुव्वओ तस्स । सत्तेव पच्छिमेणं, सत्तण्हमणीयनाहाणं ।। ३७६८ ।। अभंतरपरिसाए, दाहिणपव्वेण बारस सहस्सा । मज्झिमपरिसाहेउं. दाहिणओ चोद्दस सहस्सा ॥ ३७६९ ॥ अह दक्खिणावरेणं, बाहिरपरिसाए सोलस सहस्सा । तो आयरक्खयाणं, देवाणं कुणइ जोग्गाई ॥ ३७७० ।। चउरासीइसहस्सा, पुव्वेणं उत्तरेणं एवइया । एवइयदाहिणेणं, अवरेणं चेव एवइया ।। ३७७१ ।। अन्नेसि पि बहूणं, काउं भद्दासणाई रम्माइं । उप्पिं च धयवडाया सयाणि णेगाणि निम्मवइ ॥ ३७७२ ।। जोयणसहस्समाणं, महामहिंदज्झयं च निम्मविउं । गंतूण तक्खणं चिय, सुराहिवइणो निवेएइ ।। ३७७३ ॥ सोऊण तस्स वयणं, पुव्वद्दारेणं पविसिउं सक्को । उवविसइ तम्मि सीहासणम्मि पुव्वामुहो मुइओ ॥ ३७७४ ।। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं १४५ एमेव सपरिवारा अट्ठ उ सक्कस्स अग्गमहिसीओ। सीहासणस्स पुरओ, सएसु ठाणेसु ठायंति ॥ ३७७५ ॥ उत्तरदारेसुं पविसिऊण सामाणियाण देवाणं । चउरासीइसहस्सा, निविसंति सएसु ठाणेसु ।। ३७७६ ।। दाहिणदारेणं पविसिऊण भद्दासणेसु ठायति । परिसागयदेवाणं, बायालीसं सहस्साई ।। ३७७७ ।। अवरदिसाए सत्त उ अणीयनाहा तहा अणीयाई । पविसित्तु ठंति नियनियसुहासणेसुं पहट्ठमणा ।। ३७७८ ।। चउरासीइसहस्सा, पुव्वेणं दाहिणेण एवइया । एवइय उत्तरेणं, अवरेणं चेव एवइया ।। ३७७९ ॥ पविसित्त आयरक्खगदेवा. भद्दासणेस नियएस । सन्नद्धबद्धकवया गहियाओ पहरणा ठंति ।। ३७८० ॥ अन्ने वि बहू देवा, देवीओ नियनिएसु ठाणेसु । पविसित्तु ठंति भद्दासणेसु सव्वासु वि दिसासु ॥ ३७८१ ।। . आरुहिएसं तेसं, पणच्चमाणं व पालयविमाणं । मिउपवणपहयनिम्मलधयवडसंदोहबाहहिं ।। ३७८२ ॥ तक्खणमेत्तेणं चिय, बत्तीस विमाणसयसहस्साणं । अहिवइणो संपत्ता, सपरियणा सक्कभवणम्मि ॥ ३७८३ ।। सोऊण तहा पत्ता, घंटाटंकारघोसणासई । कप्पसुरसेलसागरदीवंतरभवणदेवा वि ॥ ३७८४ ।। वज्जंततूरनिवहं, नच्चंतविलासिणीसमूहं तं । गायंतगायणोहं चलियं सहसा वरविमाणं ।। ३७८५ ॥ अह तम्मि चलियमेत्ते, चलंति सव्वे वि सुरगणा मुइया । अन्नोन्नपेल्लणेणं, समंतओ वरविमाणस्स ॥ ३७८६ ॥ कोऊहलेण एगे अवरे भत्तीए केइ वि भएण । अन्ने अन्नावेक्खा, अन्ने सक्कस्स आणाए ।। ३७८७ ।। केई हएण केई गएण केई मिगेण वसहेण । सीहेण केइ गंडेण, केई विमाणेणं ।। ३७८८ ।। अवरे वरालएणं, चलंतजीहेण केइ उरगेण । जाणेण केइ गरुडेण केइ अवरे मऊरेण ।। ३७८९ ।। इय एवमाइबहुविहसुहाणुभावावरुद्धसुहभोया । जाणेहिं वाहणेहि य चलंति सग्गाओ देवगणा ॥ ३७९० ।। तट्ठाणाओ चलिया असंखदीवोदही अइक्कमिउं । नंदीसरम्मि पत्ता, रइकरसेलस्स सिहरम्मि ।। ३७९१ ॥ काउं जोयणमाणं, पालयनामं तयं वरविमाणं । निययग्गमहिसिसहिओ, सपरियणो नवरि सो सक्को ।। ३७९२ ॥ आरुहइ तुरियतुरियं, चलंतदिप्पंतकुंडलपहाहिं । दीवसीहाहिं व मग्गं, पयासमाणा उ देवाणं ।। ३७९३ ।। चंचंतचारुचूडामणिप्पहादुगुणियंगगुरुतेओ। पमुइयपसंतचित्तो भरहे तं गेहमागम्म ।। ३७९४ ।। जणणिं जिणं च रहसुग्गमंतरोमंचकंचुइयगत्तो । आयाहिणाओ तिउणं, पयक्खणीकरिय भत्तीए ।। ३७९५ ॥ धरणियलनिहियकरयलदिप्तवरुत्तमंगजाणुजुओ। अभिवंदिऊण सक्को, जिणजणणिं थुणइ महुरगिरो ॥ ३७९६ ॥ नमिमो कमकमलजुयं, नरचिंतामणिधरीए तुह देवि ! । परितुलियकप्पपायवपभावनरधारिणी तं सि ।। ३७९७ ॥ सव्वाओ वि दिसाओ, गहगणतारागणाणि पसवंति । न कयाइ चंदबिंबं, पुव्वदिसाओ जणइ अन्ना ।। ३७९८ ॥ तं कामदुधा घेणू, तं विज्जा दिन्नसयलफलसारा । सयलजणाणंदयरी, सामिणि ! सामाए चंदरूई ।। ३७९९ ।। किं ते थुणामि सामिणि ! किं वा न थुणामि किं न पणमामि । जा सयलजगपियामहमाया तं संपयं जाया ।। ३८०० ।। धन्ना सि तुमं सामिणि ! जा जिणनाहं धरेसि कुच्छीए । को तेयसा जलंतं, सूरं किर धारिउं तरइ ।। ३८०१ !! इयविहगुणविभूसियसुवन्नमणहारिणीहिं वायाहिं । हारलयाहिं व सोहं, माऊए थुई कुणइ सक्को ॥ ३८०२ ।। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं थुणिऊण हरिसियंगो, सोहम्भवई इमं भणइ जणणि । सक्को देविंदो हं, सहस्सनयणो सयमहो य || ३८०३ || ताहं करेमि महिमं, जिणस्स जीयं ति सव्वसक्काणं । उवरुज्झिय व्व महुणा तुम्हेहिं न एत्थ इय भणिउं ॥ ३८०४ ओसोवणि समीवे, दलयइ उवइ य जिणस्स पडिरूवं । हरियंदणधवलेणं तो करजुवलेण धरिय जिणं ॥ ३८०५ ।। घेत्तूण पोग्गले तो, मणनयणाणंदणो विउव्वेइ । एगं च पंचरूवे, अप्पाणं तक्खणं सक्को || ३८०६ || गयिजिणंदो एक्को, दोन्नि य पासेहिं चामराहत्था । गहियधवलायवत्तो एक्को एक्कोत्थ वज्जधरो ॥ ३८०७ ।। नियइड्ढि पेच्छंतो आरोढुं पालयं वरविमाणं । सुरसेलं पइ चलिओ सुराण नाहो सपरिवारो ।। ३८०८ ।। सक्केण समं सव्वे, हंसा विव माणसस्स सरमाणा । गयणयलमुप्पयंते, उत्तरओणुत्तरा देवा || ३८०९ ।। सव्वेऽमिलाणमल्ला सव्वे वि न संफुसंति धरणियलं । सव्वे अणिमिसनयणा, सव्वे वि पहाणनेवच्छा || ३८१० ॥ सव्वे वि महिड्ढीया, सव्वे वि सयच्छराहिं परियरिया । सव्वे लसंतदेहा, सव्वे वुज्जोइयदसासा ।। ३८११ ।। गायंति के वि नच्चंति केवि वायंति के वि पहरिसिया । अवरे थुणंति अन्ने नमंति अन्ने वि य हसति ।। ३८१२ ।। ariति के विकुति के वि केइ वि पढंति बंदि व्व । उप्पिति के वि अवयंति के वि केई वि धावंति ॥ ३८१३ ।। एवमणेगच्छेरयकोऊहलवावडेहिं गयणयलं । अइलंघिऊण पत्तो मेरुगिरी अमरनिवहेहिं ॥ ३८१४ ॥ तिहिं मेहलाहिं रेहइ, जो वरनारीसरीरमज्झं व । जो वणमालाकलिओ, छज्जइ गोविंददेहो व्व ।। ३८१५ ।। निच्चं झरंतसलिलो, निच्चं मणिनियरकंतिकंतिल्लो । अइसुइयसुद्धकिन्नरविज्जाहरजुयलपरियरिओ ॥ ३८१६ ॥ जोयणलक्खपमाणो, पमाणमाणेण सो वि निद्दिट्ठो । वन्नुक्करिसोहावियसयलसुवन्नाइवन्नो सो ॥ ३८१७ || वज्र्ज्जततूरनिवहं, काऊण पयाहिणं तओ तस्स । सव्वे वि समं पत्ता, पंडगपडिमंडियं सिहरं ॥ ३८१८ ।। तुंगस्स तस्स अइसुंदरस्स चूलातलम्मि पासेसु । चउसुं पि सिला चउरो, जोयणसयपंच आयामा || ३८१९ ॥ गोखीरहारवन्ना, अद्धमियंकेण सरिससंठाणा । अड्ढाइज्जसयाई, रुंदा चउजोयणुस्सेहा ।। ३८२० ॥ पुव्वावरासु दो दो, एक्केक्कं दाहिणुत्तरसिलासु । सीहासणाई रासहरकरनियरालोयधवलाणि ।। ३८२१ ।। दाहिणसिलाए जं तं, फालियसीहासणं मणभिरामं । उवविसइ तत्थ सक्को, घेत्तूण जिणं जिणाहिवई || ३८२२ ॥ चंद व सोमवयणं, सूरं पिव तेयसा जगजगिंतं । जलनिहिमिव गंभीरं, सुरगिरिसिहरं व निप्पंकं ॥ ३८२३ ।। भवणवइवाणमंतरजोइसवासी विमाणवासी य । एत्थंतरम्मि देवा, संपत्ता मेरुमेरुसिहरम्मि || ३८२४ || अभिओगियदेवेहिं ण्हाणट्ठा निम्मयम्मि उवगरणे । आणीएसुं च तहा पुप्फजलाईसु सव्वेसु ॥ ३८२५ ॥ तो अच्चुयामरिंदो, सामाणियदेवदससहस्सेहिं । सिरि विरइयनाणामणिदिप्पंतसुरूवमउडेहिं ॥ ३८२६ || सत्तहि अणीयनाहेहिं, चउहिं पवरेहिं लोगपालेहिं । अह आयरक्खियाणं चालीसाए सहस्सेहिं ॥ ३८२७ ।। नियदेहाहि विणिग्गयभासाभासिंतदसदिसाएहिं । तेत्तीससंखपरिमियतायत्तीसामरेहिं पि ॥ ३८२८ ॥ सत्ताणीयवरेहिं य सममन्नेहि य बहूहि देवेहिं । मउडाइवरविभूसणविभूसियाइसयसव्वंगो || ३८२९ ॥ आभिओगदेवनिम्मियसुवन्नमणिरुप्पचित्तगत्तेहिं । अट्ठट्ठकलससमहियकलससहस्सेहिं अट्ठहिउ || ३८३० ।। १४६ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं १४७ सीया सीओयाणं, नरनारीकंतगंगसिंधूण । रत्तारत्तोयाणं, रोहिय तह रोहियंसाणं ॥ ३८३१ ।। हरियाहरिकंताणं, सरियाणं कणयरुप्पकूलाणं । पउमाईण दहाणं, अन्नेसिं वा वि सरियाणं ।। ३८३२ ।। सव्वोसहीहि वरचंदणेण गंधेहिं सुरहिवासेहिं । मीसीकएणमइमहुरमघमघायंतगंधेणं ॥ ३८३३ ।। महुरेण मणहरणेणं, सच्छेण सुनिम्मलेण धवलेण । नासापेएण व निम्मलेण सलिलेण भरिएहिं ।। ३८३४ ।। पढममइएहिं मइसुंदरेहिं पउमपिहाणेहिं कणयकलसेहिं । मालइमालुम्मालियसयलपएसेहिं सव्वेहिं ।। ३८३५ ।। पच्छा रुप्पमएहि, मणिमयकलसेहिं रुप्पकणगेहिं । कणगमणिनिम्मिएहिं, मणिरुप्पमएहिं रइएहिं ।। ३८३६ ।। मणिरुप्पसुवन्नेहिं, पुढविविणिम्मवियदिव्वकलसेहिं । तत्तो भिंगाराणं अट्ठसहस्सेण पवरेण ॥ ३८३७ ।। न्हवइ सुरिंदुच्छंगे, नरिंदचंदिंदनमियपयकमलं । (................... ..........) । ३८३८ ॥ एत्थंतरम्मि देवावुजं वायंति चउपयारं पि । गायंति चउविहं पि य नच्चंति चउप्पयारं पि ।। ३८३९ ।। बत्तीसइ बद्धाई समयं दंसंति नाडयाई पि । अन्नं पि एवमाई, मणोहरं कोउगाईयं ।। ३८४० ॥ एगे सुवन्नवास, हिरन्नवासं च रयणवासं च । अन्ने उ वइरवासं अन्ने आभरणवासं च ॥ ३८४१ ।। केइ वि पुप्फप्पयरं, पत्तप्पयरं च फलनिवायं च । अवरे उ बीयवासं, अवरे गंधाणि वासं च ॥ ३८४२ ।। वग्गति तत्थ एगे, अवरे हयहेसियाई कुव्वंति । अवरे हु सीहनाय, अवरे तिवई पि छिंदति ॥ ३८४३ ।। अप्फोडंति य एगे, अवरे वासंति के वि गज्जंति । अवरे उ पायदद्दरमवरे रहघणघणाइययं ।। ३८४४ ।। हक्कारं पोक्कारं, भूमिचवेडं च के वि दलयंति । देवि कहक्कहमन्ने. हेवक्कलियाइमन्ने उ ॥ ३८४५ ॥ एवं सुंदररूवे रूवक्खित्तामरिंदसंदोहे । देहदुहामयमुक्के मुक्काहारे वि समणुन्ने ॥ ३८४६ ।। वट्टते पवरमहूसवम्मि तित्थाहिवस्स जम्मम्मि । नयणमणाणंदयरं, कुणंति सव्वं पि देवगणा ।। ३८४७ ॥ ण्हवियम्मि जिणवरिंदे, मिउणा वत्थेण लूहियसरीरे । गोसीसचंदणेणं, विलित्तगत्तं पि सव्वत्तो ।। ३८४८ ॥ पउममहापउमाणं, तेगिच्छीकेसरीण हरयाणं । सीयासीओया, दह पुंडरिमहपुंडरीयाणं ।। ३८४९ ।। सव्वेसिं विजयाणं, कुलगिरिवासहरपव्वयाणं च । नंदीसरवावीणं, वेयड्ढाणं पि सव्वेसिं ॥ ३८५० ।। पाडलमल्लियचंपयअसोगपुन्नागनागबउलेहिं । सयवत्तकुंदमालइवेइलनेवालियाईहिं ।। ३८५१ ॥ कुसुमेहिं य पउमेहि य सयवत्तेहिं सहस्सवत्तेहिं । विरएइ पवरपूयं, विचित्तकुसुमेहिं देविंदो ।। ३८५२ ।। धूवकडच्छयहत्थो, धूवं दाऊण मघमघायंतं । आयाहिणाओ तत्तो पदक्खिणीकरिय तिक्खुत्तो ॥ ३८५३ ।। दप्पणभद्दासणवद्धमाणवरकलसमच्छसिरिवच्छे । सत्थियनंदावत्ते काऊणं अट्ठ मंगलए ॥ ३८५४ ॥ भत्तिभरनिब्भरंगो धरणियलनिहित्तजाणुकरसीसो । अभिवंदिऊण पाए, चक्कंकुसलक्खणे थुणइ ।। ३८५५ ।। जय सयलमंगलालयमालइमाल व्व विमलवरसील! | जय पुन्नविडविनिम्मियसउणगणाणंगतावहर ! ॥ ३८५६ ।। हरिसियभवियविलोइय, लोइयलोउत्तरेस जयनाह ! । जय सिवकारण कारणकारुणिय जिणिंद इंदनय ! ।। ३८५७ ।। जय संचारमहोयहिनिमज्जमाणंगितारणसमत्थ । अत्थत्थिजणमणोहरमणोरहापूरणेक्करस ! ।। ३८५८ ॥ १२ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जय कोहजलणजलहरमायातरुगहणभंजणगइंद ! । लोहसरसोससूरिय ! रयणियरपहंजणाभोय ! ।। ३८५९ ।। जय माणसेलदारण ! वेज्जमहावायपावियसुसोह ! । सारीरमाणसासुहसरोयसंकोयसीयकर ! ॥ ३८६० ।। जय जय पसन्नलोयण ! देविंदविलासिणीविहियसेव ! । जय देवदेवपूइय, पूयारुहपयसरोयजुय ! ॥ ३८६१ ।। जय सयलभावभावुग, भाविमहाभोयकेवलालोय ! । भवणवइवाणमंतर, जोइसवासीस नमियकम ! ।। ३८६२ ।। जयकमलदलविलोयण ! पडिपुन्नमियंकसरिसमुहसोह ! । जय भवभावुत्तावियभवियजणाकालनीरहर ! ॥ ३८६३ ॥ जय मुत्तिमग्गमग्गय ! वरमुणिविरइयथुईहिं थुयचलण! । जय रोगसोगविरहिय ! विरहिजणाणं कयाणंद ! ।। ३८६४ ।। जय भवियकप्पपायवसूरयवरकुमुयकोसियसयाणं । नियकुलनहयलससहर, जय जयहि जिणिंद देववर ! ॥ ३८६५ ॥ थुणिऊण जिणं एवं हरिसवसुच्छलियबहलरोमंचो। अभिवंदिऊण पुणरवि, एगंतो ठाइ देविंदो ॥ ३८६६ ॥ निव्वत्तिएऽभिसेए अच्चुयदेवाहिवेण निस्सेसे । एवामेव सुरिंदा, सेसा वि कुणंति मज्जणयं ॥ ३८६७ ।। पाणयकप्पाहिवई, वीसइ सामाणिया सहस्सेहिं । तीसाइ सहस्सारो, चत्तालीसाए सुक्किदो ॥ ३८६८ ॥ पन्नास लंतगिंदो सट्ठीए बंभलोगसामी वि । माहिंदो सयरीए, सणंकुमारो वि सयरीए । ३८६९ ।। ईसाणसुरवरिंदो, असीइ सामाणिया सहस्सेहिं । एएसि चउगुणेहिं, सुरेहिं तह आयरक्खेहि ॥ ३८७० ।। तह नीयलोगपालयतावत्तीसगसुराइएहिं पि । पुव्वभणियसंखेहिं परिव्वुडा निययसत्तीए ।। ३८७१ ॥ वीसं पि भवणनाहा, चंदाइच्चा य वंतरसुरा य । नियपरिवारसमेया, कुणंति न्हवणं जिणिंदस्स ॥ ३८७२ ।। अह चंदणकलसाणं, पत्तीणं सासयाण थालाणं । रयणकरंडगसुपइट्ठपुप्फचंगेरिपडलाणं ।। ३८७३ ।। भद्दासणाण तह चामराण छन्ताण टालियंटाण । धूवकडच्छुयसरिसवतेल्लसमुग्गाइयाणं पि ।। ३८७४ ।। पत्तेयं पत्तेयं, अट्ठसहस्सं विणिम्मियं जं तं । तं पि जहोइयविहिणा, जहोइयं ते निउंजंति ।। ३८७५ ।। तयणंतरमीसाणो, अप्पाणं पंचहा विउव्वेइ । सक्को वि जिणं घेत्तुं, सक्कट्ठाणम्मि उवविसइ ।। ३८७६ ।। सक्को वि धवलवसहे चउरो लंबंतकिंकिणीदामे । उन्नयकउयसुसोहे, लंबोयरसंगए सुयणू ।। ३८७७ ॥ गुरुचारुचमरपुच्छे, उन्नयखंधे सिलिट्ठखुरचरणे । चउसु वि दिसासु दिव्वे, दिसागइंदे व्व निम्मवइ ॥ ३८७८ ॥ तेसिं सिंगेहितो, उड्ढं गंतूण खीरधाराओ । एगीभवंति तत्तो सिरम्मि निवडंति नाहस्स ॥ ३८७९ ॥ एवं सव्वजलेहिं, सव्वोसहिमाइएहिं दिव्वेहिं । नियपरिवारसमेओ, करेइ महिमं जिणिंदस्स ॥ ३८८० ।। ण्हवियम्मि जिणवरिंदे, मिउणा वत्थेण लूहियसरीरे । गोसीसचंदणेण, विलित्तगत्तम्मि सव्वत्तो ॥ ३८८१ ॥ विरएइ पवरपूयं, धूयं दाऊण मघमघायंतं । रयणमयतंदुलेहि, काऊणं अट्ठमंगलए ॥ ३८८२ ।। तत्तो दसद्धवन्नाण भमिरभमरावलीण कुसुमाण । जाणुस्सेहपमाणं, वुटिंठ पयरेइ सव्वत्थ ।। ३८८३ ।। पंचगं पणिवायं, काउं सक्कत्थएण थुणिऊणं । अछुत्तरसइएणं, थुणइ थुएणं तओ पच्छा ।। ३८८४ ।। संपाइयम्मि किच्चे, सव्वसुरिंदेहिं जिणवरिंदस्स । सहइ सरीरं नावइ, उदयट्ठियपुन्निमायंदो ।। ३८८५ ॥ तो तं मणहररूवं विरायमाणं विभूसणवरेहिं । पेच्छंता वि न तित्तिं, वयंति कुमुयाइं जह चंदं ॥ ३८८६ ।। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४९ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं एवं जिणवरजम्ममहामहि का तहिं मूढहं होइ कहा कहि । अहवा एक्कमाणुसमेत्तिं, तं परिभाविउ जइ परिवित्तिं ॥ ३८८७ ॥ विच्चइ जं तहिं असुइमणोहरु, नावइ जिणतणु वरसुमणोहरु । जं तं पेक्खेवि सुहउं न संचहिं, ते नरदेव वि अप्पउ वंचहिं ।। ३८८८ ॥ भवणवइवाममंतरजोइसवासी विमाणवासी य । काउं जम्मणमहिमं समागया भरहखेत्तम्मि || ३८८९ ॥ साहरिउं पडिरूवं अवणीयो सवणिं समीवम्मि । ठविय जिणिंदं सक्को, जणणीए जणमणामंदं ॥ ३८९० ।। घणमसिणखोमजुयलं कुंडलजुयलं च मणिविरायंतं । उसीसयम्मि ठविउं, सिरिदामाई पि दाऊण ।। ३८९१ ।। बत्तीसं बत्तीसं हिरन्नकणयाण खिवइ कोडीओ। बत्तीसं भद्दाई मंदाइं तत्तियाइं च ॥ ३८९२ ।। नीलिंदनीलमरगयकक्केयणपोमरायरायंतं । चंदद्धचंदहारड्ढहारनियरेहिं रेहतं ॥ ३८९३ ।। रुप्पमयकणयनिम्मियविचित्तरूवेहिं तं परिक्खित्तं । उवरि ठवेइ सुरिंदो, उल्लोयं जिणवरिंदस्स ।। ३८९४ ।। जं भगवओ वि दिट्ठी दीसंतं हरइ मणहरसुरूवं । तं चेव अणिमिसाए दिट्ठीए पासए अरहा ।। ३८९५ ।। तत्तो उग्घोसिज्जइ सक्काइडेहिं जंभगसुरेहिं । असुहं मणसंकप्पं, जणणीए जिणस्स जो काही ॥ ३८९६ ॥ सत्तद्धा मुद्धाणं तस्सज्जजगमंजरी विव नरस्स । देवस्स दाणवस्स व फुट्टउ मा होउ संदेहो ॥ ३८९७ ॥ इय कयकिच्चा सव्वे गंतुं नंदीसरम्मि दीवम्मि । अट्ठाहियाइमहिमं काउं गच्छंति सट्ठाणं ॥ ३८९८ ॥ सिरिकक्कसूरिविरइयजिणजम्ममहूसवप्पयरणाओ। नियगुरुबहुमाणाओ, लिहियाओ इमाओ गाहाओ ।। ३८९९ ।। सोहम्माई बत्तीसइंदकजिणवरिंदजम्ममहे । वित्थरवइयरपयडणकज्जेणिगसट्ठसयमेत्थ ।। ३९०० ।। एयं च दिव्वसत्तिप्पभावओ सव्वमेव देवेहिं । विहियं जिणस्स रयणीए अद्धरत्तम्मि कय चोज्जं ॥ ३९०१ ॥ जणणीए अप्पिऊणं जिणनाहं देवदेविनिवहेसु । नीहरिएसुं तत्तो, गमइ सुहं सा उ निसिसेसं ॥ ३९०२ ।। एत्यंतरम्मि दऔं जिणं व उदयायलम्मि दिवसयरो । आरूढो अच्चब्भुयरूवेऽहव कस्स न दिदिक्खा ॥ ३९०३ ।। दूरं पसारियकरो दिवसयरो सहइ तीए वेलाए । जिणदेहसुहप्फरिसाणुहवुप्पन्नाहिलासो व्व ॥ ३९०४ ।। जायम्मि जिणवरिंदे दिसाओ सव्वाओ सुप्पसन्नाओ । जायाओ तक्खणेणं, जगनाहे केत्तियं च इमं ॥ ३९०५ ॥ गयणं पि तया रयतमविवज्जियं जंपइ व्व लोयस्स | जाए इमम्मि भुवणत्तयं पि सत्तुत्तमं होही ॥ ३९०६ ॥ सुरहिसुसीयलमंदो पवणो वि तहा पवाउमाढत्तो । जह अणणुभूयपुव्वं सोक्खं अणुहवइ तिजयं पि ॥ ३९०७ ॥ अइहट्ठहिययसुरवंदमुक्कनंदणवणाइकुसुमेहिं । भूमंडलं पि जायं, परिमलमिलियालिरोलमुहं ।। ३९०८ ॥ पयलंतसुरासुरमणिकिरीडकररंजिया दिसाओ वि । गिण्हंति मंडणं पिव कस्स व वुड्ढी न जिणजम्मे ।। ३९०९ ।। जिणजम्मं नाऊणं, महसेणनराहिवो वि परितुट्ठो। तणयमुहदंसणत्थं समागओ देविपासम्मि ।। ३९१० ।। तं अच्चब्भुयरूवं नियदेहपहापहावदिप्पंतं । पुन्निमससि व दटुं दिट्ठीए अमयबुट्ठिसमं ॥ ३९११ ।। सुरवइसहत्थविरइयपवरालंकारभूसियसरीरं । अहिययरविरायंतं सव्वत्तो कप्परुक्खं व ॥ ३९१२ ।। देविंददिव्वरूवं गिहं च तं देवविहियसिरिसोहं । पुलयच्छलेण अंतो, अमंतहरिसं बहि धरंतो ॥ ३९१३ ॥ आएसं दाऊणं, पासट्ठियपरियणस्स तक्कालं । कारवइ सयलरज्जे, वद्धावणयं अइमहंतं ॥ ३९१४ ।। (कलावयं) Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० सिरिचंदप्पहजिणचरियं ठिइपडियं पढमदिणे, तइयम्मि य चंदसूरदसणयं । छट्ठम्मी जागरियं, एमाइ तहा करावेइ ।। ३९१५ ॥ पत्ते य बारसाहे, जं चिय निव्वत्तियम्मि जम्ममहे । चंदप्पहो त्ति नामं पइट्ठियं देवराएण ॥ ३९१६ ॥ तं चिय महाविभूईए निययसुहिसयणबंधुपच्चक्खं । अम्मापिऊहिं दिन्नं से नाम पभणिउं एवं ॥ ३९१७ ।। चंदपियणम्मि जणणीए दोहलो जं च चंदसमदित्ती । ता होउ अम्ह पुत्तो, एसो चंदप्पहो नाम ॥ ३९१८ ॥ (विसेसयं) हरिखित्ते पवरपिऊसपोग्गलं निययहत्थअंगुठें । आसायंतो भयवं, अहिलसइ न माउथणपाणं ।। ३९१९ ।। वज्जरिसभनाराए वर्सेतो पढमसारसंघयणे । संठाणे समचउरंसनामए असमबलविरिओ ॥ ३९२० ।। निम्मलफलिहुज्जलकंतिमावहतो समग्गदेहस्स । चंदो व्व सोमलेसो, देइ दिट्ठि लोयनयणाण ।। ३९२१ ।। अवि य - अस्सेयमरयगरुयं सुगंधिगंधं सहावओ चेव । देहं पलोयमाणा, जस्स न तित्तिं लहंति जणा ॥ ३९२२ ।। गोखीरहारसरिसं, रुहिरं मंसं च जस्स निव्विस्सं । आहारा नीहारा दीसंति न मंसचक्खुहिं ।। ३९२३ ।। वियसियसोगंधियगंधपसरवि जई य जस्स नीसासो । अट्ठहियसहसलक्खणधरस्स किं वन्निमो तस्स ॥ ३९२४ ।। (विसेसयं) सो धवलपक्खपडिवयससि व्व अणुवासरं पवड्ढंतो । वित्थारइ जणनयणाण ऊसवं अहियमहिययरं ॥ ३९२५ ।। रामिति सुरकुमारा समेच्च तं सुंदराहिं कीलाहिं । वारजणहिययपल्हायणीहिं वरकंडुयाईण ॥ ३९२६ ।। पयइ च्चिय इह जइ गहगणस्स गयणंगणम्मि संचरणं । तह बालस्स वि कीलाकरणम्मि सणेह चवलत्तं ॥ ३९२७ ॥ तिन्नाणोवगओ वि हु, अन्नह पागयजणो व्व कह भयवं । तम्मज्झठिओ कीलइ, बालविणोएहिं तक्कालं || ३९२८ ॥ (विसेसयं) वियरंतो सो कुट्टिममहीसु परियणकरंगुलिविलग्गो। रुइररुई मंदगमो सरसीसुं सहइ हंसो व्व ।। ३९२९ ॥ बंधण कराओ करं कतिल्लो सहइ संचरतो य। अवियाणियमोल्लो वाणियाण रयणायरमणि व्व ॥ ३९३० ॥ सक्कगिराए धणओ, से परिहइ सव्वमाभरणगाई । मणिमुद्दाकडगाई, बालत्तणसमुचियं जमिहं ॥ ३९३१ ॥ पुत्तसमीवं देवे, इंते जंते तहा पणिवयंते । दटुं महसेणनिवो, अह चिंतइ विम्हयाउलिओ ॥ ३९३२ ।। धन्नो हं जस्स महं. महंतदिप्पंतकिरणवित्थारो । पन्निमससि व्व जाओ जाओ भूवणत्तयाणंदो ॥ ३९३३ ॥ जाए इमम्मि मज्झ वि देविंदा बंदिणो व्व संजाया । देवा य किंकरा इव देवीओ चेडियाओ व्व ॥ ३९३४ ॥ ता अच्चब्भुयमेवं एत्थ जए निययकालपरिणामो । तं किं पि वत्थु जायइ मणवायागोयरो जं न ॥ ३९३५ ॥ जओ के अम्हे ताव इहं, को वा अम्हाण जोग्गया जीए । एरिस पुत्तुप्पत्ती, मरुकप्पलओवमा जाया ।। ३९३६ ॥ अहवा किमेत्थ चित्तं, किं कद्दमओ न होइ उप्पत्ती । तामरसस्स पवित्तुत्तमंगसंगे समुचियस्स ॥ ३९३७ ।। किं वा वि असुइमलमुत्तमाइजंबालकइयदेहाओ । लोयालोयपयासं, पावइ नो केवलं जीवो ।। ३९३८ ।। तिसिओ व ता सरवरं रंको ञ्च अणिड्ढियं निहिं लद्धं । चंदप्पहपुत्तमिमं सुहेक्कठाणं अहं जाओ ॥ ३९३९ ॥ एमाइ पहरिसुक्कलियसंकुलो पाविउं निवो पुत्तं । पुन्निदं पिव जलही न माइ नियए वि अंगम्मि ॥ ३९४० ।। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५१ चंदप्पहजिणजम्मवण्णणं जह जणओ तह जणणी जह जणणी तह य सग्गलोओ वि । हरिसभरनिब्भरंगो जाओ जिणनाहजम्मम्मि ॥ ३९४१ ॥ एवं भो पुन्नसेसा कलियसुहभवा के वि जायंति सब्भावा । माणुस्सत्ते वि पत्ते तिहुयणजणियच्छेरयम्भूयभावा । नाणासोक्खेक्कभागी नवरिमिह सयं किंतु सव्वो वि लोओ। होज्जा जाणं पसाया सयलसुहनिही किन्न पुन्नाण सज्झं ।। ३९४२ ।। एवंविहत्थस्स व सिद्धिहेऊ, जिणो चवित्ता वरवेजयंता । जाओ महासेणनरिंदगेहे, उयाहु संतो परकज्जसज्जा ॥ ३९४३ ॥ जे कारुन्नमही पसन्नहियया चेच्चा सकज्ज सया । कुव्वंती परकज्जमुत्तममई लोओवयारे रया । ते चंदाभजिणो व्व सारजसदेवुद्दामठाणच्चुया । एत्थं हुति समग्गसोक्खनिहिणो सन्नाणलच्छीहरा ॥ ३९४४ ॥ इइ चंदप्पहचरिए जसदेवंकम्मि सत्तमं पव्वं । उद्दिद्रुत्थं भणियं वोच्छं अह अट्ठमं एत्तो ॥ ३९४५ ।। (छ) (अट्ठमो पव्वो -) दोसुदयं थेवं पि हु न कुणइ पावग्गहं न अणुसरइ । चंदो त्ति तह वि वुच्चइ जयम्मि जो जयउ सो भयवं ।। ३९४६ ।। अह सो तिलोयनाहो मणोहराहारपोसियसरीरो । वड्ढइ निरुवमसुहकित्तिकंतिमइपयरिसगुणेहिं ॥ ३९४७ ॥ तत्तो य सुसमसुसमासमाणुभावम्मि कप्परुक्खो व्व । देवुज्जाणपहाणट्ठाणे वा पारियाओ व्व ॥ ३९४८ ॥ सुमणससंजणियसुहो विसिट्ठसउणगणसेविओ सययं । सुपसत्थखंधदेसो संजाओ जोव्वणाभिमुहो ।। ३९४९ ।। (जुयल) जलकेलिगयहयारोहणाइकम्मेहिं विविहरूवेहिं । अइसइयसयललोओ वट्टतो वरकुमारत्ते ।। ३९५० ।। वियसंतवयणकमलो विपसंतविसालनयणसयवत्तो । सयलंगोवंगसमुल्लसंतसोहाइ रायंतो ।। ३९५१ ।। सरयससिसरिसवन्नो मुहसोहा हरियपुन्निममियंको । मयलंछणंकिओ रूववरलक्खणलक्खियसरीरो ।। ३९५२ ।। सूरो व्व तेयवंतो, सोमत्तेण ससि व्व दिप्पंतो । गंभीरत्तेणं जलनिहि व्व थिरयाए मेरु व्व ।। ३९५३ ।। उद्धरिउं पिव नीसेसतिहुयणस्सावि पंकसंघायं । सरयरिउ व्व जिणिंदो कमेण पोढत्तमावन्नो ॥ ३९५४ ॥ (कुलय) अह महसेणनरिंदो कमरं नवजोव्वणम्मि वस॒तं । दटठणं अन्नदिणे चिंतइ हरिसद्धसियचित्तो ॥ ३९५५ ॥ जइ कारिज्जइ कह वि हु काण वि अणुरूवरायकन्नाण । पाणिग्गहणं कुमरो तो सव्वं लट्ठमिह होइ ।। ३९५६ ॥ स्वसिरि मह पुत्तस्स जेण निज्जियसमग्गतेलोक्का । सुरमणुयसुंदरी चित्तरयणचोरं व सोहागं ।। ३९५७ ।। जणजणियचमक्कारं च अणुवमं किंपि देहलायन्नं । गुणसमुदओ य एसो सोहइ न विणा कलत्तेण ॥ ३९५८ ॥ एत्थंतरम्मि हरिणा कओवओगेण ओहिनाणेण । नाऊण तयभिसंधिं आगंतूणं च भणियमिणं ।। ३९५९ ॥ भो भो महासेण महानरिंद ! जो एस तुह मणवियप्पो। सो उचिओ च्चिय तेलोक्कनायगे किं व नो जुत्तं ॥ ३९६० ॥ अणुरूवकन्नयंऽन्नेसणम्मि ता भयवओ अहं चेव । काहामि उज्जमं मा तमेत्थ पुण ऊसुओ होहि ।। ३९६१ ।। इय जंपिऊण नाहो सुराण सहसा अदंसणी हूओ । धरड् य महसेणनिवो पहिरिसिओ एरिसं हियए । ३९६२ ।। पयरिसपत्ताण न किं पि एत्थ पुन्नाण होइ हु असज्झं । अन्नह कह मह पुत्तो सेविज्जइ सुरवरेहिं पि ।। ३९६३ ॥ इय चिंतितस्सेव य सुहे मुहुत्तम्मि देवराएण । अणुरूवरायकन्नाण गाहिओ पाणिमह भयवं ।। ३९६४ ॥ नच्चंतसुरविलासिणिसमूहकरणंगहाररमणिज्जं । गायंतदेवगायणतालाणुगगाममुच्छणयं ।। ३९६५ ॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं वज्जंतविविहआउज्जवज्जपडुपाडसद्दसंवलियं । जणजणियगरुयचोज्जं दीसंतविचित्तपेक्खणयं ॥ ३९६६ ॥ वरदाणतुट्ठअत्थियणघुट्ठबहुविहविसिट्ठआसीसं । सुरमागहजयजयरावभरियनीसेसदिसविवरं ।। ३९६७ ।। सुरवइआएसेण य आढत्तं तयणु देवनिवहेण । दिज्जंतपउरदाणं वद्धावणयं अइमहंतं ॥ ३९६८ ।। (कलापकम्) महसेणनरिंदो वि हु दळु तं तारिसं विवाहमहं । नियपुत्तस्स विसिटुं न माइ हरिसेण नियदेहे ।। ३९६९ ।। तह लक्खणा वि देवी पमोयभरनिब्भरा मणे जाया । नियसुयरिद्धीए न कस्स अहव जायइ मणे तोसो ।। ३९७० ।। चंदप्पहनाहस्स उ जइ वि न विसएसु तारिसी तन्हा । तह वि हु भोगे भुंजइ अणीहचित्तो वि सो भयवं ।। ३९७१ ।। परमेसरो हु गब्भप्पभिईओ चेव मइसुओ ओहिं । तिहिनाणेहिं समग्गो अप्परिवडिएहिं सयकालं ।। ३९७२ ।। जाणइ जीवाजीवे, जाणइ जीवाण बहुविहगईओ । जाणइ बहुविहगइहेउकम्ममिहपुन्नपावफलं ।। ३९७३ ।। जाणइ बंधं मोक्खं च तं च सव्वं वियाणमाणो सो। विसएसु वि तह वट्टइ छलिज्जए जह गतेहिं इमे ॥ ३९७४ ।। विसभोगं पि करंतो नावायं लहइ जं उवायन्नू । अणुवायपवित्तीयउ अमयं पि विसाउ अब्भहियं ॥ ३९७५ ॥ भणियं च - सा का वि कला ज्झायंति जोइणो जाणिऊण परमत्थं । पहायंति घडसएण व छिप्पंति न बिंदुणा चेव ॥ ३९७६ ॥ एवं अड्ढाइयपुव्वलक्खमाणम्मि अइगए काले । जम्मा उ जिणवरिंदस्स अन्नदियहम्मि महसेणो ।। ३९७७ ॥ सुरराएण समेओ, महाविभूईए सोहणे लग्गे । रज्जाभिसेयमहिमं करेइ, से अप्पए रज्जं ।। ३९७८ ।। (जुयल) जिणरज्जभिसेयजलप्पवाहसे उग्गअंकुरछलेण । हरिसुद्धसिया अवहरियदोससार त्ति सहइ धरा ।। ३९७९ ।। पिउणो उवरोहेणं रज्जं परमेसरो पडिच्छेइ । आणाभंगं गरुया कइया वि कुणंति न गुरूण ।। ३९८० ।। मुत्तिवहूसंगसमूसुओ वि अणूणेइ सो महीमहिलं । जणपायडं भवेज्जा कहन्नहा तस्स दक्खिन्नं ।। ३९८१ ।। पालंते तम्मि महिं चउसायरमेहलं महासत्ते । नंदइ लोओ जणवुड्ढिहेउउदओ गुरूण हया ॥ ३९८२ ।। एत्तो च्चिय दुब्भिक्खं डमरं ईईड वइरमारीओ । रज्जे न तस्स न हु अक्कमंति हरिणा हरिं अहवा ।। ३९८३ ॥ देवकया देसकया कालकया ओववाइया वा वि । जाया न तम्मि भूवे उवद्दवा दिव्वमंति व्व ।। ३९८४ ॥ वायंति सुरहिवाया सुहफरिसा दिणयरो न य तवेइ । पंकयवणसंडाणं विबोहकरणाउ अहिययरं ।। ३९८५ ॥ वट्टति न य कसाया लद्धं सामियं समेक्कनिहिं । अविरोहेण पयट्टइ जणो, समग्गो वि सव्वत्थ ।। ३९८६ ॥ इंदाइदिसावाला वि जस्स पालंति सासणं मुइया । तेण समं इयरनराहिवाण होही कह विरोहो ?॥ ३९८७ ।। अइवुट्ठी अणावुट्ठी कहं तु रज्जम्मि तस्स संभवइ । इच्छावरिसा निच्चं पि सेवया जस्स मेहपहू ॥ ३९८८ ॥ लभ्रूणं तं पहुं विजियदेवरायड्ढिवित्थरं रज्ज । अहियं सोहइ दिवसं व तरणिबिंब निहयतिमिरं !॥ ३९८९ ।। पयइ च्चिय पविरा इ गुणगामो से उवाहिनिरवेक्खो । केण व दिणयरकिरणा कीरंति पयावहारिल्ला ॥ ३९९० ।। कज्जाई तप्पभावेण चेव सिझंति हिययइट्ठाई । मंतिअमच्चाइपरिग्गहो य रज्जस्स सोहत्थं ॥ ३९९१ ।। तं सामि गुणिणो पाविऊण जाया पगामसोहिल्ला । गंभीरगयणवित्थरमुवलभिऊणं व जोइगणा ॥ ३९९२ ।। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणसासणव तमुवायणीय हत्था सहाए आगम्म देसियनरिंदा । कहिय नियनामगोत्ता नमंति सिरसा दुवारे वि ॥ ३९९३ || सो अट्ठा विहंजियरमणिं दिवसं च विबुहनयबुद्धी । नयमग्गदंसणपरो गमेइ उचिएहिं कम्मेहेिं ।। ३९९४ ।। नरवइसहस्समज्झे तमिंदवयणेण अमरनारीओ । सेवंति पइदिणं ललियगीयनट्टाइ करणेण ।। ३९९५ ।। कमलप्पहाइ नियदिव्वरभणिवंद्रेण परिगओ सुइरं । अणुहवइ जएक्कपहू भोगसुहं विउसतोसयरं ।। ३९९६ ।। पुत्तोय तस्स जाओ चंदी नामेण सयलगुणजेट्ठो । सव्वकलापत्तट्ठो आनंदियसव्वजगसिट्ठी ।। ३९९७ || कह तस्स रज्जलच्छि वन्नउ अम्हारिसो मइविहीणो । सुरराओ वि हु जं पेच्छिऊण विम्हियमणो जाओ ।। ३९९८ ।। अन्नं च - विलसिरकिरीड भासुरसिरेहिं सुरनायगा समग्गावि । पयकमलजुयं पवहंति जस्स किं वन्निमो तस्स ।। ३९९९ ।। तह कह वि रज्जलच्छी पहुम्मि पयरिसपयं समारूढा । देविंदा वि हु सलहंति जमिह सुमहिड्डिसंपन्ना || ४००० || अह अन्नदिणे रायमणिमयसिंहासणे समुवविट्ठो। अत्थाणगओ रेहइ ससि व्व उदयायलसिरम्मि || ४००१ || आभरणसोणमणिकिरणजालमंगप्पहाए विकिरंतो । सुविसुद्धप्पा रागं बहिक्खिवंतो व्व सो सहइ || ४००२ || हेममयदंडकलियं सियछत्तं सहइ नरवरस्सुवरि । हिट्ठा दिप्पंततडिल्लयाइ सरयब्भविद्रं व ॥ ४००३ || सुरचमरहारिणीकरनिक्खित्तुक्खित्तचामरेहिं पहू । सोहइ घडंतविघडंतसरयमेहो हिमगिरि व्व || ४००४ ।। पणमंतसुरासुरविसररुद्ध अत्थाणमंडवे तस्स । दुक्खं लहंति सेवा समागया नरवरासन्नं || ४००५ || सुरअसुरखयरनरनायगाण सिरिरइय अंजलिपबंधे । पेच्छइ राया नियदेहकिरणमउलंतकमले व्व ॥ ४००६ || नमिरामरदाणवखेयरिंदसिरमउडमणिसु संकंता । जस्स चलणंगुलिनहा सहति चूडामणि व्व फुडं ॥ ४००७ || तह तस्स त्थाणं नरवरिंददेविंदसंकडं जायं । जह तेसि मोलिमाला उ इंतिखसियाओ वि न भूमिं ॥ ४००८ || जइ पहुअत्थाणपहावरिद्धिभणणम्मि को भवे सक्को । सुरगुरुमाईण वि जत्थ किं पि मंदायए बुद्धी || ४००९ || तहा हि - १५३ नरवइसंघट्टतुट्टंतहारतरलाइ मणिगणो कोइ । जइ कह वि मणेण विहरिउमीहए तत्थ अत्थाणे || ४०१० || अदिट्ठबंधओ बंधणेण रहिओ तहावि बद्धो व्व । दीसइ स आरडंतो अस मेणं तप्पभावेणं ॥ ४०११ || (जुयलं ) जई चित्तेण वि देवो वि कोइ अहिलसइ अन्नसुररमणि । निद्वारिज्जइ केणावि सो वि तत्तो अणिट्ठेण ॥। ४०१२ ।। विज्जाहरो वि जो किर परनारि को वि दूरमवहरइ । सो एइ छिन्नविज्जो उपयनिवए करेमाणो || ४०१३ || जत्थ य पयंडभुयदंडदंडिहक्काहिं भीइसंतंता । हुंति अयंडे चलचकियलोयणा सुरनराइगणा || ४०१४ || हेममयदंडपाणी निजोजयंतो जहट्ठिईए जहिं । दंडी आभासइ लोयमेवमच्च भुयगिराहिं । ४०१५ ।। अक्कमपच्छिममहिं दूरे होऊण नमह जयसामिं । मा संफुसह सुरिंदे अयाणुया मउडकोडीहिं ॥ ४०१६ || भो भो देवा संकुइय ताव देवीण देह मग्गमिमं । आरत्तिय पत्थावे तिलोयसामिस्स पत्ताण || ४०१७ || भो भो सुरासुरगणा समहत्थं देह किं विलंबेह । गंधव्वकिन्नराई कुणन्ति जेणेत्थ वरगीयं । ४०१८ ।। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं नारय ! गेण्हसु ताले तुंबुरु कुण जं च मंगलावसरे । उचियं रभे आरंभ रम्मनदृ सुराणंदं ।। ४०१९ ।। पुव्वाइ दिसावाला भो सव्वे धरह नियनियगइंदे । आरत्तिओत्थबहुतूरकोडिसहो जओ दुसहो ॥ ४०२० ।। नियनियदिसासु कयरक्खणुज्जमा मुयह अन्नविक्खेवं । भो अंगरक्खदेवा ! देवोऽवे होह जत्तपरा ।। ४०२१ ।। जस्स पहावा भुवणत्तयं पि एक्खिज्ज एस देविंदं । रक्खिज्जइ सो अन्नेहिं किंतु नीई परं एसा ।। ४०२२ ।। विन्नत्तिं कुण देविंददेवदूसंतपिहियमुहकमलो । रकं करेइ सक्कं पि सामिआसायणा जम्हा ।। ४०२३ ।। सक्कम्मि विन्नवंते सुरकज्जं कीस आउला होह । तुम्हेत्थ लोगपाला खणं पडिक्खेह भुवणगुरुं ॥ ४०२४ ॥ एए य दिसापाला नमंति सव्वे नमंतमणिमउडा । तुम्हाणाए जयपहुवयंतनियनियदिसासु इमे ॥ ४०२५ ।। भवणवईण वि इंदा एए चरमबलिमाइया सव्वे । पणमंति तुम्ह चलणे सेवावसरम्मि संपत्ता ।। ४०२६ ।। अट्ठासीइ गहेहिं समन्निओ अट्ठवीस रिक्खेहिं । तारागणकोडाकोडिसंजुओ एस चंदो य ।। ४०२७ ।। वंदइ चक्कुंकुसकमलकलससुपसत्थलक्खणंकिययं । तुह पायपंकयं पहु न नमइ को तिहुयणनयं वा ॥ ४०२८ ।। एसो य तुज्झ सेवं करेइ सूरो महापहुपहट्ठो ! निव्वाविय सयलतणू ण्हविओ तुह देहजोन्हाए ।। ४०२९ ॥ इय जो तिलोयनाहो सेविज्जतो तिलोयलोएण । चिट्ठइ खणमत्थाणे ता जं जायं तयं सुणह ।। ४०३० ।। को वि जराजिन्नतणू उत्तिणो जोव्वणन्नवं मणुओ। सव्वंगसिढिलबंधो अत्थाणमहिं समणुपत्तो ॥ ४०३१ ।। जोव्वणवणम्मि जो इंदियत्थचोरेहिं ताडिओ पुट्विं । वेगेण धावमाणो खेयाओवसासवाउलिओ ।। ४०३२ ।। तह पक्खलंत पाओ बहुहा जं निवडिओ कुठाणेसु । तेणेव भग्गदसणोहसुन्नदीसंतमुहविवरो ।। ४०३३ ।। सव्वत्तो वलिरेहाहिं जो य सोहइ अखव्व गहिराहिं । नेहालिंगियजरपिययमाइ नहराहिं व कयाहिं ।। ४०३४ ।। अंगेसु जस्स सियरोममालिया सहइ अंकुरालि व्व । जरवल्लीए अणवरयनयणजलसेयसित्ताए ।। ४०३५ ।। जोव्वणमएण परिचिंतियाइं पावाई जाई चित्तेण । तेहिं व जोऽणुभवई इहेव जम्मम्मि वेगल्लं ॥ ४०३६ ।। कह पेच्छस्सइ कह वा सुणिस्सए परपराभवे वुड्ढो । दिट्ठिसुईओ इय चिंतिउं व नट्ठाउ जत्तो य ।। ४०३७ ॥ आजम्मं चिय पावं काऊणं मुणियनरयवियणाओ। निधम्मो भीओ इव मणम्मि जो कंपए गाढं ॥ ४०३८ ॥ जो गरुयमरणपासायपढमभूमि व विस्ससारूवं । आरूढो हारवि भवविसविडविफलं पिव जो पत्तो वुड्ढभावमइविरसं । परिपागेण व अंगस्स जो सिढिलत्तमणुपत्तो ।। ४०४० ॥ वेरग्गकरो विउसाण सोयभूमी विमूढहिययाण । पयडमुदाहरणमणिच्चयाइ जो सयललोयस्स ।। ४०४१ ।। दिट्ठो य भगवया सो पोक्कारिंतो महंतसद्देण । हा रक्ख रक्ख सामिय ! तुह सरणमहं समल्लीणो ।। ४०४२ ।। एक्कं ता निहओ च्चिय जराइ अहयं परं च मह नाह !। भयकारणमइगरुयं जं जायं तं निसामेसु ।। ४०४३ ।। नेमित्तियपुरिसेणं कहिओ मह अज्ज रयणिसमयम्मि । अविहयगइप्पसारो मच्चू सव्वस्स अंतयरो ।। ४०४४ ।। सो तिहुयणेक्कसामिय तुह पेच्छंतस्स अज्ज मह होही । ता जइ ताओ न रक्खसि विहलं ते तिजयसामित्तं ।। ४०४५ ॥ जइ वि हु अंधो बहिरो वियलो निक्कल्लजीविओ य अहं । तह वि हु अज्ज वि इच्छामि जीविउं तुह पसाएण ।। ४०४६ ।। Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणसासणवण्णणं १५५ एसो य जमो तुह चेव सेवगो ता इमाओ मं रक्ख । आणाए तुम्ह जम्हा न पहरिही एस मह देव ! ॥ ४०४७ ।। जइ वि हु न पत्तकालं, परिहरइ जमो जणं जए किं पि । पत्थिज्जसि तह वि तुमं जेण असज्झं न ते किं पि ।। ४०४८ ।। विन्नायवत्थुरूवो जयप्पभू एवमाइ वयणाई । सुणिऊण तस्स पफुल्लवयणकमलो पयंपेइ ।। ४०४९ ।। किं वुड्ढपुरिस ! अम्हारिसाण कारुन्नकारणिं एवं । उल्लवसि गिरं अइदीणभावमेवं वहतोवं ।। ४०५० ।। जम्हा सप्पुरिसाणं वाणी एवंविहा तवेइ मणं । जइ वि किर कप्पियत्था भन्नइ तुमए महाभाय ! ॥ ४०५१ ।। सो को वि जओ न जयम्मि अत्थि होही हुओ व जो मच्चु । रक्खइ रक्खिस्सइ वा रक्खियवं वा समत्थो वि ।। ४०५२ ।। देवो वा दाणवो वा नरो व विज्जाहरो व अन्नो वा । अप्पणओ य परस्स व मच्चं टालेउमसमत्थो ।। ४०५३ ।। आउक्खओ उ मच्चू जंतूण जमो न एत्थ अन्नोत्थि । जीवेज्ज व मारेज्ज व जो एस भमो इमो सयलो ।। ४०५४ ।। दक्खिणदिसाए सामी जमो वि देवो जओ नियाउस्स । संपत्तम्मि खयम्मी मारिज्जइ किंतु अन्नेण ।। ४०५५ ।। पुन्ने व अपुन्ने वा नियाउए ता मरंति कम्मवसा । अत्तकयं कम्मं चिय जं मारइ जीवए वा वि ।। ४०५६ ।। भयवंतवयणमेवं निसुणतो चिय कहिं पि सो वुड्ढो । तत्तो गओ न नाओ लोएण सकोउगेणावि ॥ ४०५७ ।। तो पुच्छिउं पवत्तो सव्वो वि जणो क एस जगनाह !! खणदिट्ठनट्ठभवविलसियं व पयडीकयं जेण ॥ ४०५८ ।। तो भणइ भुवणबंधू आभोएऊण ओहिणा सयलं । तव्वइयरं हसंतो ईसीसि अहो जणे सुणह ॥ ४०५९ ॥ जो एस जन्निमित्तं समागओ जत्थ वा गओ खिप्पं । तुम्हं चिय पच्चक्खं करुणगिरं भासिऊणेवं ॥ ४०६० ॥ धम्मरुई नामेणं एस सुरो मज्झ पुव्वसंगइओ । एत्तो हु पंचमभवे जओ हमास सिरिअजियजयपुत्तो तइया अहं कुमारभावम्मि । वट्टतो अवहरिओ अत्थाणसहाइ मज्झाओ ।। ४०६२ ।। चंडरुईनामेणं असुरेणं किं पि अणुसरंतेण । पुव्विल्लवइरभावं, तब्भवओ तइय भवहेउं ।। ४०६३ ।। खित्तो य महारन्ने भीमम्मि तओ भमंतओ अहयं । एगागी संपत्तो रमणिज्जमहागिरि एक्कं ।। ४०६४ ।। मह सत्तपरिक्खकए हिरण्णदेवो तहिं च मं दहुँ । विगरालरूवधारी आढत्तो भेसिउं बाढं ॥ ४०६५ ।। न य भीओ हं तुट्ठो तओ य कहिऊण वइयरं निययं । इयरस्सवहारे कारणं च मित्तत्तमुवगम्म ।। ४०६६ ।। जाओ अदंसणपहं नीओ य अहं च वसिम देसम्मि । सुमिणं व मन्नमाणो अचिंतदेवाणुभावेण ।। ४०६७ ॥ संसारे भवगहणाई कइ वि हिंडित्तु संपयं जाओ। सोहम्मदेवलोए धम्मरुई एस तियसवरो ॥ ४०६८ ॥ इंदेण कीरमाणं सुणित्तु एसो य मज्झ गुणगहणं । पुव्वभवप्पडिबंधाउ आगओ झ त्ति पासम्मि || ४०६९ ।। पुव्विल्लभवे नियए आभोएऊण ओहिणा य तओ। चिंतइ य अजियसेणस्स एस जीवो न अन्नो त्ति ।। ४०७० ॥ तस्सेवत्थस्स विणिच्छयत्थमेसो महाविदेहम्मि । गंतूण पणमिऊण य पुच्छइ सिरिउदयजिणवसभं ।। ४०७१ ।। सो अजियसेणजीवो भयवं किं होइ भरहवासम्मि । चंदाणणापुरीए अप्पडिहयसासणो राया ॥ ४०७२ ॥ चंदप्पहनामेणं सच्चविओ जो समं सुरिंदेणं । अम्हेहिं तओ पभणइ तित्थयरो मेवमिइ वयणं ॥ ४०७३ ।। कहइ य पुव्विल्लभवे तस्स पुरो जिणवरो पुणो पुट्ठो । जो व अहं इह जाओ चविऊणं वेजयंताओ ॥ ४०७४ ॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं ता एस वुड्ढरूवं विउव्विर मह सया समणुपत्तो । दुहसयवासे भववासे वेरग्गुप्पायणनिमित्तं ।। ४०७५ ॥ अप्पडियारत्तं मह मुहेण मरणस्स भाणिऊणेसो । कयकिच्चो संपन्नो सुरालयं अत्तणो झ त्ति ॥ ४०७६ ।। इय सोउं तच्चरिउं लोओ अच्चंतकोउयक्खित्तो । अत्थाणगओ सव्वो वि भणिउमेवं समाढत्तो ॥ ४०७७ ॥ काऊण तिहुयणेक्कल्लनाह ! अम्हाण गुरुयरपसायं । साहेसु निययचरियं जं जायं अजियसेणभवे ॥ ४०७८ ।। तत्तो य जम्मि जाओ तओ व जा वेजयंतनामाओ । चविऊण विमाणाओ उप्पन्नो एत्थ भरहम्मि ॥ ४०७९ ॥ जाओ महसेणनराहिवस्स नंदणो लक्खणाइ देवीए । तं कहसु सयलमम्हं कुऊहलुत्ताण चित्ताण ॥ ४०८० ।। इय भणिओ तो तिजएक्कबंधवो परहियम्मि बद्धरई । सव्वं पि हु नियचरियं निवेयई तस्स लोयस्स ।। ४०८१ ।। तस्सवसाणे य पुणो, जंपइ जयनायगो जणा एवं । परमत्थेणेसभवो चिंतिज्जंतो असारो त्ति ॥ ४०८२ ।। जिवियजोव्वणधणदेहमाइसयलं पि जं सरीरीण । न खणं पि थिरं जायइ पुव्वक्कयसुकयविलयम्मि ।। ४०८३ ।। जे वि हु विसया सुररायकामिया हुंति मणहरा ते वि । बाढं विमूढहियणाण न उण सुविसुद्धबुद्धीण ॥ ४०८४ ॥ देविंदसंपयातुल्लरिद्धिसंपाइया वि जं विसया । विविहपरियावजणया हवंति परिणामविरसा य ।। ४०८५ ॥ बहुविहजोणीसु सरीरगाई विविहाई पाणिणो धरिउं । पत्तो नड व्व कन्नो विडंबणं विसयसुहलुद्धा ॥ ४०८६ ।। अन्नायसरूवेहिं विवायविरसेहिं कट्ठमेएहिं । वंचिज्जइ धुत्तेहिं व विसएहिं कहन्नु मुद्धजणो ।। ४०८७ ॥ जं पि हु रज्जं पडिहाइ पवरसोक्खं ति पागयजणस्स । तं पि असारं आभाइ जोइयं सम्मदिट्ठीए ॥ ४०८८ ॥ तहा हि - रोगाणाम जिन्नं पि व मूलमकल्लाणसंपयाण इमं । रज्जं जज्जरपोयं व नरयजलहिम्मि पडणकए ।। ४०८९ ।। तहा - मोहिंति मुहा मोहा हरंति हरणे व्व हरिणिदिट्ठीओ । मायन्हिया समासु रज्जह इत्थीसु मा तण्हा ।। ४०९० ।। तो भो नरिंदलोया किमेत्थ आसानिबंधणं अस्थि । संसारो वि बुहाणं जम्मि रई होज्ज काउं जे ॥ ४०९१ ।। एत्तो च्चिय एएणं अम्हाणं पुव्वसंगयसुरेण । विउरूविऊण वुड्ढत्तमेवमाभासियं करुणं ।। ४०९२ ॥ जम्हा जरा य मरणं च दो वि अच्चंतदारुणदुहाई । अप्पडियाराई हवंति नूण पाणीण संसारे ॥ ४०९३ ।। असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते किं नु विहिंसा अजया गहिति ।। ४०९४ उवदंसंतेण इमाई दो वि ता जं इमेण मे रइयं । अच्चंत वेरग्गं तेण मणे मह इमं भाइ ।। ४०९५ ।। गिण्हंतो मुंचंतो विविहसरीराइं जेहिं एस जिओ । नाणाविडंबणाहिं विडंबिओ एत्थ संसारे ॥ ४०९६ ।। मूलाओ च्चिय उम्मूलएमि कम्माइं ताई तवसा हं । तिक्खेण कुहाडेणं वणगहणाई व इयरजणो ।। ४०९७ ॥ न हि कम्माणुच्छेओ विडंबणाहिं विमुच्चए जीवो । कारणखएण जइ वा कज्जखओ पयडमेव इमं ॥ ४०९८ ॥ एत्यंतरम्मि पंचमकप्पम्मी बंभलोयनामम्मि । सारस्सयमाईया जे देवा संति नवभेया ।। ४०९९ ।। अच्चंतपरमसुहिणो, सव्वट्ठविमाणवासिदेव व्व । एक्कावयाररूवा निम्मलसम्मत्तओहिधरा ।। ५००० । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणदिक्खावण्णणं एएसिं च विमाणाई किण्हराईण अंतरालेसु । ईसाणाइदिसासुं अट्ठसु वि इमेहिं नामेहिं ।। ५००१ || अच्ची य अच्चिमाली वइरोयणए पभंकरे चेव । चंदाभसूरियाभा सुरियाभो सुप्पइट्ठाभो ।। ५००२ ।। नवमं तु जं विमाणं रिट्ठाभं तं तु किण्हमाईण । सव्वाण वि बहु मज्झे अक्खाडगसंठिया ताओ || ५००३ || भणियं च - पुव्वावरा छलंसा तसा उण दाहिणुत्तरा बज्झा । अब्भंतरचउरंसा सव्वा वि य किण्हराईओ || ५००४ ॥ अट्ठेव य एयाओ रिट्ठविमाणस्स चउदिसिं दो दो । आगारो य इमासिं दंसिज्जइ ठावणा एउ || ५००५ ।। याओ विक्खंभेण हुंति संखेज्जजोयणसहस्सा। आयामपरिक्खेवेहिं ते उ तासिं असंखेज्जा ।। ५००६ || एए नवविमाणे जे य सारस्सयाइया देवा । पुव्विं इह उद्दिट्ठा तेसिं नामाइं एयाई || ५००७ || सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ।। ५००८ || एएसि देवाणं ठिईओ अट्ठेव सागरुवमाई । संखा य सुत्तभणिया इमाण दंसिज्जई एवं ।। ५००९ ।। पढमजुयलम्मि सत्तठ सयाइं बीयम्मि चोद्दस सहस्सा । तइए सत्त सहस्सा नव चेव सयाइं सेसेसु ॥ ५०१० ।। आसणकंपो जाओ इमाण तइया तओ पउत्तोही । दिक्खासमयं अट्ठमजिणस्स नाऊण इह पत्ता ।। ५०११ ।। आलोए च्चिय तेहिं मुक्का पणवन्नकुसुमवरवुट्ठी। गंधार्याड्ढयरणरणिरमहुयरुग्घायरमणीया ।। ५०१२ ।। विविहसुररुक्खकुसुमच्छलेण पडिहाइ जा य गंग व्व । गयणाओ ओयरंती कुमुउप्पलपंकयाउलिया || ५०१३ || तयणंतरं च पाएसु पणमिऊणं तिलोयनाहस्स । पणमंति सुठु सामिय हिययम्मि निवेसियं तुमए ॥ ५०१४ || विवहासु आवयासु व दुस्संचारासु पंकबहुलासु । खिप्पंति आवयासुं जइ वि जिया पावकम्मेहिं ॥ ५०१५ ।। उच्छेयणत्थमेयाण तह वि चिंतं न को वि हु करेइ । विसयासुइपंकपसत्तमाणसो गड्डुकोलो व्व ॥ ५०१६ || १५७ अन्नं च - सप्पुरिसा तं किंचि वि चिंतंति करेंति वा सुहेक्ककरं । जं अत्तणो च्चिय परं न किं तु सयलस्स वि जणस्स ॥ ५०१७ कम्मुच्छे जत्तो ता कीरउ नाह ! सपरसुहहेऊ । एयारिसकज्जे वा आलस्सं अत्तवेरीण | ५०१८ || अवरं च नाह ! तं चिय असरणसरणो जयस्स सव्वस्स । निक्कारिमकरुणाए होसि निवासो तुमं चेव ।। ५०९९ ॥ तं चि परपीडाए घेप्पसि दक्खिन्नसायरसयावि । तं चिय निक्कारणवच्छलत्तपरिमंडिओ निच्चं । ५०२० ।। तातिहुक्कबंधव ! कसायदवदहणतवियदेहाण । रागद्दोसमहासीहवग्घपेल्लिज्जमाणाण || ५०२१ ।। वसणसयसावएहिं विलुत्तगत्ताण भयवसत्ताण । वियडभवाडइपडियाण कुणसु सत्ताण सत्ताणं ।। ५०२२ ।। (कलापकं ) खुत्ताण पावपंके विसयपिवासाइ सोसियतणूण । कोहाइदाहतरलियमणाण जीवाण संसारे ॥। ५०२३ ॥ जं हरइ पावपंकं विसयपिवासं पणोल्लए दूरं । नासइ कसायदाहं तं तित्थं नाह ! पयडेसु || ५०२४ || तेणं चेव तरिज्जइ जम्हा संसारसागरो गहिरो । ता तं चिय सत्तित्थं तित्थं सद्धम्मजणगं ति ।। ५०२५ ॥ एवं चिय जीवाणं हियमेगंतेण तेण जयसामि ! सव्वजगज्जीवहियं सिग्धं तित्थं पवत्तेहि ॥ ५०२६ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ सिरिचंदप्पहजिणचरियं इय एवमाइ संथुइगिराहिं विन्नत्तियं करेऊण । ते लोगंतियदेवा सट्ठाणं पणमिऊण गया ।। ५०२७ ॥ अत्थाणसहाओ समुट्ठिऊण भयवं पि तिहुयणेक्कपहू । आवस्सयकज्जाई काऊणं बीयदियहम्मि ॥ ५०२८ ॥ गोसे च्चिय आएसं सामी जा देइ नियनिओगीणं । ताव सुरिंदाएसेण आगया विन्नविंति सुरा ॥ ५०२९ ॥ तेलोक्कसामि ! अम्हे समागया देवरायआएसा । संवच्छरावहिंते दाणावसरं मुणेऊण ।। ५०३० ।। ता देसु जहिच्छाए रयणसुवन्नाइअघडियं घडियं । पूरिस्सामो अम्हे सव्वं मणि चिंतियं तुम्ह ।। ५०३१ ॥ जो जं मग्गइ किंचि वि तुज्झ सयासम्मि सामि आगंतुं । अणिवारियसंपसरं तस्स तुमं देसु तुट्ठमणो ।। ५०३२ ।। तो भणइ तिलोयपहू भो भो देवा ! न सुंदरं भणियं । जम्हा केत्तियमेत्तं दाणमिणं तुम्ह पडिहाइ ।। ५०३३ ।। एयं खु पभूयं पि हु दिन्नं जम्मंतरं न अणुगम्मइ । न य एत्थ वि जम्मम्मी तो सकए होज्ज सव्वस्स ।। ५०३४ ।। जलजलणचोरदाइयमाईण उवद्दवे जओ एवं । अप्परितोसकए च्चिय कस्सइ पुन्नस्स पुन्नेहिं ॥ ५०३५ ।। तम्हा तुच्छस्स इमस्स ता ण मित्तस्स कारणे देवा । लहुयत्तणेण जो गोजण व्व नणु कित्तिओ कज्जो ।। ५०३६ ।। ता तुब्भे च्चिय आणाए मज्झ तियचउक्कचच्चराईसु । काऊण रयणकणगाइ विविहरासीउ गरुयाओ ॥ ५०३७ ।। वरवरियं उग्घोसह भणह य भो जस्स जेण इह कज्ज । सो तं गिण्हउ अणिवारणिज्जपसरो भयविमुक्को ।। ५०३८ एए रयणुक्केरा एए कणयस्स रुप्पयस्सेए । एए आभरणाणं एए मणिमोत्तियाईण ॥ ५०३९ ।। एए य थालकच्चोलसिप्पिमाईण पवरवत्थाण । थोवं बहुयं च इमं अचिंतियंता इमे लेह ॥ ५०४० ।। निट्ठिस्संति न एए लिंताण वि तुम्ह निययइच्छाए । जम्हा अचिंतसत्ती सुरा पुणो पुरइस्संति ।। ५०४१ ।। इय भयवया पभणिया तह त्ति आणं पडिच्छिय पहट्ठा । पहुपयविहियपणामा तहेव सव्वं पकुव्वंति ।। ५०४२ ।। एवं दियहे दियहे पभायसमयाओ जाव लोयाण । भोयणवेला जायइ ता दाणमहिच्छियं होइ ॥ ५०४३ ।। भणियं च - संवच्छरेण होही अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदाण । तो अत्थसंपयाणं पवत्तए पुव्वसूरम्मि ॥ ५०४४ ।। एगा हिरन्नकोडी अद्वैव अणूणगा सयसहस्सा । सूरोदयमाईयं दिज्जइ जा पायरासाओ ।। ५०४५ ।। सिंघाडगतियचउक्कचउम्मुहमहापहपहेसु । दारेसु पुरवराणं रच्छामुहमज्झयारेसु ।। ५०४६ ।। वरवरिया घोसिज्जइ किमिच्छियं दिज्जइ बहुविहीयं । सुरअसुरदेवदाणवनरिंदमहियाण निक्खमणे ।। ५०४७ ।। तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीइं च हुंति कोडीओ। असिइं च सयसहस्सा एयं संवच्छरे दिन्नं ॥ ५०४८ ॥ नणु वरवरिया घोसणपुव्वं जइ दाणमिह जिणिंदाणं । तो कीस निययसंखा असंखयं चेव तं जुत्तं ॥ ५०४९ ।। वरवरियाए जम्हा बहुए अत्यी मिलंति तेसिं च । एक्केक्कस्स वि महई इच्छा तो विहडए संखा ।। ५०५० ।। सच्चं अचिंतमाहप्पसत्तिसंपन्नया जिणिंदाण । तीए संतोसपरा पाएणं हुति पाणिगणा ।। ५०५१ ।। तह सद्धम्मो वज्जणमुहा य एत्तो उ अत्थिणो थोवा । तेणत्थि अवेक्खाए दाणं पइनिययसंखाए ।। ५०५२ ।। देयस्स अभावाओ उदरे एयाइ अभावओ वा वि । दाणस्स निययसंखा न उणो तित्थंकराण भवे ॥ ५०५३ ।। Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणदिक्खावण्णणं I न य सव्वा वि दाणाभावो एवं भणिज्जमाणम्मि । तम्हा विचित्तचित्तत्तणेण सव्वे न तुल्ल त्ति ॥ ५०५४ ॥ एत्तो च्चिय पाएणं भणियं केसि पि जेण वरवरियं । सोऊण होज्ज इच्छा गहणे कस्स वि पयत्थस्स ।। ५०५५ ।। सेसा मत्तं केइ विगिण्हंति परे य किं पि नो लिंति । निययं पिछड्डिउमणा दट्ठूण जिणस्स सुपवित्तिं ॥ ५०५६ ॥ संखेज्जदाणमेवं न विहडए जमिह वच्छरे भणियं । तिन्नेव य कोडिसया इच्चाई जिणवरिंदाण || ५०५७ || देवसियदाणमाणं संवच्छरियं च जं इह पमाणं । तं खलुहिरन्नदाणं पडुच्च नेयं सुरकयं ति || ५०५८ । अन्नं पि खेत्तधणधन्नवत्थमाई वि को वि जं इच्छे। तं पि हु संभाविज्जइ वरवरिउग्घोसणाए फुडं || ५०५९ ।। एवं दिते परमेसरम्मि हियइच्छियं महादाणं । कप्पतरुमाइयाणं माहप्पं दूरमुप्फुसियं ॥ ५०६० || मणसंकप्पियमाई जम्हा ते देंति किं पि लोयाण । भयवं अकप्पियं पि हु पयच्छइ पगामभावेण ॥ ५०६१ || एत्तो च्चिय असरिसतप्पभावदंसणपयट्टलज्ज व्व । चइऊण भरहखेत्तं कप्पतरू कत्थइ पउत्था ।। ५०६२ ।। दुव्वायया गज्जि करतया मइलिऊण अत्ताण । जलहिजलं वियरंता तप्फुरओ कह सहति घणा ।। ५०६३ ।। तह कह विकयत्थीकय असेसमुवयणो जयप्पहू देइ । धणकणयरयणरुप्पयपवालसिलमोत्तियाईणि ॥ ५०६४ || जह अइपरिचयलहुईकयाण दिट्ठि पि ताण रासीसु । न खिवंति जणा अच्छउ दूरे च्चिय ताव तग्गहणं ।। ५०६५ ।। संवच्छरम्मि पुन्ने एवं जा नत्थि को वि से अत्थी । ता दाणं संवरिडं ठावइ तणयं निए रज्जे || ५०६६ ।। कमलप्पहाए देवीए कुच्छिकुहरम्मि जो समुप्पन्नो । मइनिज्जियदेवगुरू गुरुयणसुस्सूसणा सत्तो ॥ ५०६७ || सत्तोवयारनिरओ रओहपरिवज्जिओ जियारिगणो । नामेण चंदनामो आनंदियसयलजियलोओ || ५०६८ || रज्जनिविट्ठे तम्मिय सयं तिलोयप्पहू निययबुद्धिं । संजमरज्जे सज्जं करेइ जा चत्तरज्जभरो ॥ ५०६९ ।। चविहदेवनिकाए नायगाणं झड त्ति चलियाई । ता आसणाई सुरसुंदरीसु आसत्तचित्ताण ॥ ५०७० ॥ एत्थंतरम्मि सोहम्मदेवराओ फुडोहिनाणेण । दिक्खागहणावसरं नाउं चंदप्पहपहुस्स || ५०७१ || सीहासणाउ उट्ठिय सत्तट्ठपयाइं अणुसरेऊण । होऊण जिणाभिमुहो पणमित्ता गरुयभत्तीए ॥ ५०७२ ।। हरिणगवेसं देवं आणावर सुघोसनामघंटाए । सद्देणं जाणावसु झत्ति समग्गे वि सुरनाहो || ५०७३ || दिक्खावसरं चंदप्पहस्स अट्ठमजिणस्स भरहम्मि । तो तेण तहेव कयं पहुआणं को व खंडेइ || ५०७४ || ताहे पढमं चलिया रयणमयविमाणदिव्वकंतीओ। गयणं वि भूसयंतीओ सक्कधणुहावलीओ व्व ॥ ५०७५ ।। अहवा नहलच्छीए विभूसणाणं वरस्सिरासीओ । पच्छा विमाणमज्झट्ठिया य देवा सदेविंदा || ५०७६ || कसि पि नहं बहुविहविमाणदित्तीहिं भासुरं जायं । मलिणस्स वि विमलत्तं हविज्ज तेयस्सिसंगम्मि || ५०७७ || सोहम्मसूराहिवई स च्चिय मइरावणं समारूढो । सारयघणं व उवकंठलक्खनक्खत्तवरमालं ॥ ५०७८ ।। चलिओ रएण लीलाढलंतचलचारुचमरचिंचइओ । सहिओ सुरासुरेहिं कोउगभत्तारपत्तेहिं ॥ ५०७९ ।। गरुडेण वाहणेणं को वि सुरो नहयलम्मि संचलिओ । बहुविहविमाणकोडीहिं संकडे जाव कइवि पए ॥ ५०८० ॥ ता भुयंगमकडण को वि तत्थेव आगओ अमरो । गरुलभुयगाण अयंडविड्डरंतो सुरा दट्ठं ।। ५०८१ ।। १५९ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० सिरिचंदप्पहजिणचरियं कह कह वि मोइऊणं हढेण वच्चंति अन्नमग्गेण । अइवेगसमुप्पाइयसुरंगणा चित्तसंखोहा ।। ५०८२ ।। कस्स व सुरस्स सीहो कंठे कयरणझणंतमणिमालो । गयणयलमक्कमंतो विसालफालेहिं दठूण ।। ५०८३ ।। गयसेन्नमन्नदेवस्स गहिरगुंजारवेण तासेइ । दीसंतं खेयरसुंदरीहिं भयतरलदिट्ठीहिं ।। ५०८४ ॥ दतॄण झ त्ति फलिहच्छभित्तिसंकंतमच्छभल्लस्स । पडिबिंबमवरसुरवाहणस्स सुरसुंदरी का वि ।। ५०८५ ।। दिव्वविमाणठिया वि हु नियपियमालिंगिऊण भयभीया। न मुणइ भणइ य वारसु पिययम ! इंतं मह विमाणे ॥ ५०८६ आयासिंतो नियहरिणमंबरे पवणवच्चमातुरियं । एसोऽहमेत्थ अग्गी समागओ तुज्झ वरमित्तं ॥ ५०८७ ।। जम ! खमसु तुम वि महिसम्मि तुज्झ रइओ रएण जो इमिणा । वसहेण मज्झ दारुणविसाणघडिओ त्ति भणइ हरो॥ ५०८८ जावेस तुज्झ मयरो नियसुंडाए सदेहसंतावं । अवहरइ अवकिरंतो सलिलतुसारे नवघणो व्व ॥ ५०८९ ।। ता होसु मह समीवे वरुण ! तुम जासि कीस दूरयरं । उत्तरदिसाए सामी वेसमणो तुह समीवगओ ।। ५०९० ।। किं न मुणसि वइरो देवि तुह पासमागयं नेहा । चक्केसरि ! जमुवेक्खसि संगामं नागगरुडाणं ॥ ५०९१ ॥ अच्चुत्ते खलसु रयं तुरयस्स नियस्स संकडनहम्मि । वेगो विसालमग्गे परिक्खियव्वो किमेत्थं ति ।। ५०९२ ।। जालामालिणिदेवी अहिट्ठिओ जेण वच्चए पुरओ । एसो महाबलो पुरगयाण मलणो महामहिसो । ५०९३ ।। विउलऽवयासे वि नहो सुरासुराणं अपरिमियबलेहिं । कयसंकडम्मि जाया अन्नोन्नं एव माला वा ।। ५०९४ ।। तहा - बहुविहवाइत्तसमूहसंभवो गहिरगाढनिग्घोसो । अंबरमापूरितो समुट्ठिओ कह वि तह बाढं ।। ५०९५ ।। नीसेस दिग्गयाण वि आहोडतो व्व वसणविवराई । जह जणइ अयंडे च्चिय संखोहं तिहुयणस्सावि ।। ५०९६ ।। (जुयल) एक्कं पि अणंतगुणं जं जायं घणपयत्थभेएण । तं गयणंगणमवगहिऊण पत्ता सुरा नयरिं ।। ५०९७ ।। सुरअसुरखयरनरवरमणे सुकयगरुयपहरिसुक्करिसे । किंनरकलगेयरवो उच्छलिओ तत्थ रमणिज्जो ।। ५०९८ ।। अवि य - अच्चब्भुयभुवणत्तयसंपाइयगरुयविम्हउक्करिसा । पयडप्पभावनिम्मलसंभावियसयलसिद्धितरा ।। ५०९९ ।। ते धम्मचक्कवट्टी जयंतु जाणं गुणोहरज्जूहिं । आयड्ढिया सुरिंदा वि किंकरत्तं करतेवं ।। ५१०० ॥ एवं पभणंतेहिं नयरीलोएहिं वरविमाणाई । देवाण दिवाउ पलोइयाइं अह ओवरंताई ॥ ५१०१ ।। (विसेसयं) सा चंदउरी एत्थंतरम्मि देवासुराइसंचलिया । तिहुयणसंवासधरा संजाया माणुसपुरी वि ।। ५१०२ ॥ अहवा केत्तियमेत्तं एवं जं जिणवराणुभावाओ । अब्भहियसिरीओ संभवंति सयलस्स वि जयस्स ।। ५१०३ ।। एयम्मि अंतरम्मी पाउसमेहो व्व कासयजणेहिं । पडिबोहकरो अहवा संपुन्नससि व्व कुसुमेहिं ।। ५१०४ ।। रयणाई संपुन्नो निहाणकलसो व्व अधणपुरिसेहिं । सीयलसुसाउसलिलो दहो व्व मरुतिसियपहिएहिं ।। ५१०५ ।। कप्पियफलओ कप्पडुमो व्व अच्चंतदुत्थियनरेहिं । इच्छिय पसायदाया सामि व्व सुसेवयजणेहिं ।। ५१०६ ॥ दिट्ठो तिहुयणसामी सक्केहिं सुरासुरोह कलिएहिं । तिजयब्भुक्खणकलसो व्व संति जणणम्मि चंदाभो ।। ५१०७ (कलापक) Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणदिक्खावण्णणं तो तं अतरूवे माहप्पपए पइट्ठियं दट्ठं । मणवयणा वि सयविसिट्ठरूवसंपत्तिसुहजणयं ॥ ५१०८ ।। जाया मम्मि चिंता ससुरासुरलोयदेवरायाण । एयस्स पुरो अम्हे न किंपि उयहिस्स व वहोला || ५१०९ ॥ (जुयलं ) तो चियमम्हाणं संथुणणिज्जो य सेविणिज्जो य । नमणिज्जो य महप्पा सव्वावत्थासु संजाओ || ५११० ।। इय चिंतिऊण पप्फुरियभत्तिविणमंतमोलिमालिल्ला । नमिऊण जिणवरिंदं संधुणणे तस्स संलग्गा ।। ५१११ ॥ होउ नमो तुह जिणवर ! भयमुक्कविसुद्धबुद्धिलाभगुण । मोहंधयारविद्धंसणम्मि दिणनायगसरिच्छ ।। ५११२ ।। अप्पाणमप्पण च्चिय मुणसि तुमं नाह ! सयलतत्तविऊ । भवविमुहाओ पवित्ती कहन्नहा तुज्झ एत्ताहे ॥ ५११३ ॥ तुह पहु हे निवसंतयस्स नज्जइ विरागया गरुई । रज्जाइ समिद्धीसुं कहन्नहा अपडिबद्धत्तं ॥ ५११४ ॥ विजणम्मि जणाइने गयतन्हो जत्थ तत्थ वा वसओ । लिप्पइ निराउलप्पा मलेण नो जेण कत्थ वि य ।। ५११५ ।। एसा सहस च्चिय रज्जसंपया पइसमुज्झिया जइ वि । तह वि हु गुणाणुरागा तुमम्मि परिखिज्जई अहियं ॥ ५११६ ॥ दक्खिन्न जलनिहिस्स वि पयईए अदक्खिणत्तमेवं ते । तदुवरि कहं तु अहवा अप्पडिबद्धाण एस गुणो ॥ ५११७ || भुवणेक्कसरन्नतुमं सरणमसरणाण होसु एत्ताहे । तुज्झ विओए दुक्खं चिट्ठामि अहं जओ एत्थ ॥ ५११८ ॥ तं चैव सुहय ! मह वल्लहो सि इय भाणिउं च तुह पासे । विरत्ता दूई तवसिरीए संपेसिया एत्ता ।। ५११९ ।। अहं थुइच्छणं भइ य एहेहि तुरियतुरिययरं । परिपंथिणो हरंती सज्जणसंगूसवे जम्हा || ५१२० ।। एवं सुविग्गे थूई कुतम्मि भणइ भुवणपहू । समओचियं खु भणियं कालविलंबो न ता जुत्तो ॥ ५१२१ ।। खमह नरिंदा ! इह जं एत्तिय कालं कराविया आणं । एसा वि हु परिहरिया जेण मए इयररमणि व्व ॥ ५१२२ ।। इय भणमाणो च्चिय भुवणबंधवे सयलतिहुयणस्सा वि । देवासुरनरकिंकरकराहया तूरसंघाया ।। ५१२३ ।। तह वहुउं पयत्ता तेसि रवेण बहिरिए भुवणे । कस्स वि न किं पि सुव्वइ वयणं कन्नागयं पि तया ॥ ५१२४ ।। (जुयलं) अवि य - पमोयभरनिब्भराणं देवाणं जयजयारवविमिस्सो । गायंति सुरविलासिणिमंगलरवजणियहलबोलो ।। ५१२५ ।। वज्र्ज्जतचडविहाउज्जवज्जसद्दो स को वि उच्छलिओ । जेण जयं संजायं सयलं पि हु सदबंभमयं । ५१२६ ।। (जुयलं ) तो देवा मणिमयविट्ठरम्मि विणिवेसिऊण तिजयपहुं । लग्गा न्हविडं सुपवित्तगंधजलकुंभकोडीहिं ॥ ५१२७ ॥ सुसुगंधगंधकासाइयाए न्हाणावसाणसमयम्मि । लूहित्तु विलेवणयं कुणंति हरिचंदणाईहिं ॥ ५१२८ ॥ पच्छा किरीडकुंडलहारंगयमाइ भूसणगणेहिं । कप्पतरुं पिव कुव्वंति भूसिउं दिव्वरयणेहिं ।। ५१२९ ।। तलिणसरयब्भधवले नासानीसासवायवहणिज्जे । तो दिव्वदेवदूसे परिहावंती य अइसहुमे || ५१३० || रविइंदुरिक्खसोहंत अंतरो सहइ सारयनहो व्व । संभूसिओ य वरभूसणेहिं तिजयप्पहू तइया ।। ५१३१ ।। गयरागो वि सुदूरे भूसणेहिं भूसंतए न वारेइ । उचिएसु अदक्खिन्नं जओ विरत्ताण वि अजुत्तं ॥ ५१३२ ।। अह न्हायविलित्तालंकिओ य भयवं सईए रइयाइं । कोउयसयाइं सह मंगलेहिं समं पडिच्छित्ता ।। ५१३३ ।। हरिस भरनिब्भरो उत्तरामुहो उट्ठिऊण कइवि पए । दाउं अक्खलियमणो आरूढो सुरकयं सिबियं ॥ ५१३४ ॥ १६१ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं देविंदनरिंदाणं ससुरासुरमणुयखेयरिंदाण । न परं मणोरमा जा मणोरमा नामओ वि जणे || ५१३५ ।। विंझगिरिवसुम इव विराइया मत्तवारणसएहिं । रयणायरवेलाभूमिय व्व सुविसिट्ठरयणा य ।। ५१३६ ।। गंभीरसलिल गुरुदहसमीवभूमि व्व सोहइ समंता । दीसंतमयर अहिगासहत्थिनरमाइरूवेहिं ॥ ५१३७ ।। कत्थ महाडई इव ईहामिगसरहरुरुवरलाहिं । संजणिय अहियसोहा सविहंगमबालचमरेहिं । ५१३८ ।। कत्थइ वणलयचित्ता कत्थइ पउमलयभत्तिचित्ता य । कत्थइ रणंतघंटावलिमणहरमहुरसररम्मा ।। ५१३९ ।। पणवन्नरयणउच्छलियकिरणआबद्धइंदचावसया । सुहकंतदरिसणिज्जा निउणो वि य कणयमयभूमी ॥ ५१४० ॥ रूवगसहस्सकलिया अणेगखंभसयसहसरमणिज्जा । सोमालसुहप्फासा लंबतविचित्तहारलया ।। ५१४१ ।। अप्पडिमरूवसोहियसीलट्ठियसालिभंजिया सहिया । पुरिससहस्सपवोज्झा दीसंतविचित्तफुल्लहरा ॥ ५१४२ ।। (कुलयं) तीइ बहुमज्झदेसे मणिमयसीहासणं सपावीढं । तत्थ पुरत्थाभिमुहो उवविट्ठो तिहुयणस्स पहू ।। ५१४३ ।। तस्सुवरिपुंडरीयं कोटियमल्लदामरमणीयं । कुंदिंदुसप्पगासं धरेइ बारसमकप्पिंदो || ५१४४ ॥ अच्चंत सुहुमदीहरसुरेहिं डिंडीरपिंडसियकेसे । सक्खिज्जंते बहुभवसमज्जिए पुन्नतंतु व्व ॥ ५१४५ ।। सक्कीसाणा दोन्नि य उभओ पासट्ठिया जिणिंदस्स । ढालिंति दिव्वचमरे नाणामणिकणयमयदंडे || ५१४६ ॥ (जुगलं ) पुरओ य जिणवदिस्स सम्भुहा तत्थ ट्ठाइ इंदाणी । गहिऊण तालियंटं वेरुलियालिद्धमणिदंडं ॥ ५१४७ ॥ एगा य पुव्वदक्खिणभागे होऊण जिणवरिंदस्स । सुसिलिट्ठसंधिसंगयमयरमुहाबद्धगुरुसोहं ॥ ५१४८ ।। निम्मलजलपडिपुन्नं बहुविहरयणोहखचियकणयमयं । इंदस्स अग्गमहिसी चिट्ठइ गहिऊण भिंगारं ।। ५१४९ || (जुयलं ) एमाइ विभूईए सिबियाइ ठियस्स तिजगनाहस्स । छट्ठेणं भत्तेणं लेसाहिं विसुज्झमाणस्स || ५१५० ।। समवत्थालंकारा समतारुन्ना समाणवरवन्ना । समकंतिदेहसोहा जे मणुया तुल्लगुणरासी || ५१५१ ॥ सा ताण सहस्सेणं पढमं उप्पाडिया महासिबिया । देविंददाणविंदेहिं तयणु सयलेहिं समकालं ॥ ५१५२ ।। भणियं च १६२ - पुव्वि उक्खित्ता माणुसेहिं सो हट्ठरोमकूवेहिं । पच्छा वहंति सिबियं असुरिंदसुरिंदनागिंदा || ५१५३ ।। चलचवलभूसणधरा सच्छंदविउव्वियाभरणधारी । देविंददाणविंदा वहंति सीबीयं जिणिदस्स ।। ५१५४ ।। पणवन्नकुसुमवुट्ठि मुंचंता दुंदुभीओ वायंता । तो देवगणा हट्ठा च्छायंति समंतओ गयणं ।। ५१५५ ।। अवि य - जह पउमसरं सरए सोहइ पम्फुल्लकमलमाईहिं । तह सोहइ गयणयलं सुरेहिं आऊरियं तइया ।। ५१५६ ॥ नाणालंकारधरा नाणानेवच्छभूसिया अमरा । नाणाविहकुसुमपवालकप्परुक्खे विडंबंति || ५१५७ ॥ तिलिया मउंदपडुपडहझल्लरीसंखमाइपूराण । धरणियले गयणम्मि य उच्छलिओ बहलनिग्घोसो ॥ ५१५८ ॥ सिबिआ पुरओ संपट्टिया य तस्सट्ठ मंगला एए । देवाण करयलेहिं संधरिया आणुपुव्वीए ॥ ५१५९ ॥ सत्थियए सिरिवच्छे नंदावत्ते य वद्धमाणे य । भद्दासणा य कलसे मच्छजुए दप्पणे चेव || ५१६० ।। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६३ चंदप्पहजिणदिक्खावण्णणं ताणं च पुरो मागहदेवा वाणीहिं हिययइट्ठाहिं । उक्किट्ठाहिं थुणंता संचलिया मणुयगणसहिया ॥ ५१६१ ॥ तहा हि - धिइबलनिबद्धकच्छो हंतूण परीसहाभिहं सेन्नं । सोहित्ता अप्पाणं तवग्गिणा जच्चकणगं व ॥ ५१६२ ।। ज्झाणाण उत्तमेणं निरासवो होइऊण अपमत्तो । वितिमिरमणुत्तरं दिव्वकेवलनाणमुवलभिउं ।। ५१६३ ।। भवजलहिपोयभूयं अचिंतचिंतामणिं व अइदुलहं । तित्थं पवत्तिऊणं समत्थजणजणियउवयारं ॥ ५१६४ ॥ तवखग्गेणं लुणिऊण दुट्ठकम्मट्ठवइरिसेन्नं च । पावसु तं परमपयं सासयमउलं सिवमबाहं ।। ५१६५ ।। जयजयनंदा जयजयभद्दा जयजयजिणिंदभदं ते । अजियं जिणेहिं तं इंदियाइदुइंतसत्तुगणं ।। ५१६६ ॥ सम्मदंसणमाईजियं च पालेहि वसहि य असंको । सिद्धिवसहीए हणिउं रागद्दोसे महामल्ले ।। ५१६७ ।। धम्मो होउ अविग्धं भवओ आसीसवयणमिच्चाइ । पुणरवि पयंपमाणा जजयजयसदं पउंजंति ।। ५१६८ ॥ (कुलयं) एवं देवुक्कलिया देवुज्जोओ य देवकहकहओ। देवावायनिवाओ जाओ देवट्टहासो य ॥ ५१६९ ।। तहा - केई देवा मंचाइमंचरम्मं करंति चंदउरिं । सन्भिंतरबाहिरियं सोहंती केइ भत्तिपरा ।। ५१७० ।। केई हिरण्णवासं वासंति तहिं परे य गंधुदयं । अन्ने य रयणआभरणमल्लचुन्नाइ वासंति ।। ५१७१ ।। जह देवा तह मणुया विविहालंकारभूसियसरीरा । परहियविचित्तवत्था कुणमाणा विविहचेट्ठाओ ।। ५१७२ ।। संचलिया सह रमणीहिं गायमाणीहिं नच्चमाणीहिं । जिणसंथवं करेंती जयजयजयरावहलबोलं ॥ ५१७३ ।। जिणसिबियाए पच्छा सहस्समहनरवईण संलग्गं । नियनियविभूइअणुसरि सरइ य नेवच्छलंकारं ।। ५१७४ ।। नियनिय पहठ्ठपरिवारविहियसिबियाइ वाहणारूढं । नियसत्तिसरिसदाणाणंदियनीसेसअस्थियणं ।। ५१७५ ।। धम्मरुइदेवआगमणकालजिणदेसणाए पडिबुद्धं । (..........) उवट्ठियं सामिमग्गेण ।। ५१७६ ॥ (विसेसयं) चंदो राया य जिणस्स नंदणे सयलपरियणसमेओ । सुहिसयणमंतिसामंतमंडलीयाइ परियरिओ ॥ ५१७७ ॥ अंतेउरं च सयलं बंधववग्गो य जिणवरिंदस्स । सह सयलपुरजणेणं जाणवएणं च संचलिओ ॥ ५१७८ ॥ तिहुयणजणेण एवं अणुगम्मतो जिणो सहइ तत्थ । परिचत्तेण भवेण व तोसवणत्थं विलग्गेण ।। ५१७९ ।। पेच्छंतो कत्थ वि पेक्खणाइ देवाण माणुसाणं च । जयजयरवसम्मिस्सो निसुणतो विविहसंथवणे ।। ५१८० ॥ आयन्नंतो कत्थ वि य दिव्ववाणी उ देवमंतिस्स ! कत्थइ कविस्स कव्वाइं सव्वदिव्वाई भव्वाई ।। ५१८१ ।। कत्थ वि सत्त रिसीणं सुमंतिगईओ मंडमहुराओ । कत्थ वि देवित्थीणं मंगलगीईओ रम्माओ ॥ ५१८२ ।। एमाइ विभूईए सदेवमणुयासुराए परिसाए । अणुगम्मतो भयवं नीहरिओ नयरिमज्झेणं ।। ५१८३ ।। सहसंबवणुज्जाणे सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धम्मि । पत्तो य पोसमासस्स किन्हतेरसिए अवरन्हे ।। ५१८४ ॥ निरवज्जभूमिदेसे य तत्थ सिबियाओ ओयरेऊण । सुरवइबाहुविलग्गो अतुलबलपरक्कमो भयवं ॥ ५१८५ ।। दठूण चंदरायं नियतणयं सोयपूरियप्पाणं । भणइ जिणो मज्झ कलेवरम्मि तुह फुरइ जणय ! मई ।। ५१८६ ।। Jain Educatia 3ternational Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं मह पुण न लिप्पइ च्चिय अप्पा एयाहिं सपरबुद्धीहिं । मिच्छा अणाइभववासणाए संपाइयाहिं मणे ।। ५१८७ ।। कारिमपुत्तलया जं हरंति बालेन बुद्धिसंपन्ने । किं पोढमंजरो कं जिएण वेयारिओ कहिं वि ।। ५१८८ ॥ एस पिया इय मंबा इमो सुओ पिययमा मह इमा य । एसा वियप्पबुद्धी निव्विसय च्चेय तत्तेण ।। ५१८९ ।। एगतेण पिओ च्चिय न को वि परमत्थओ जणो दिट्ठो। अहवा विअप्पिओ च्चिय भवम्मि अणवट्ठियसरूवे ॥ ५१९० कज्जं अहिगिच्चेगस्स जो पिओ सो वि तव्विणासम्मि । जायइ पेसो अन्नस्स तह वि इट्ठो उदासो वा ।। ५१९१ ।। तहा - जो च्चिय मित्तं एगस्स सो वि अन्नस्स वइरिओ होइ । ता को कस्स हविज्जा मित्तममित्तो व निच्छयओ ॥ ५१९२ एयं च सव्वमेवं अन्नह कह मज्झ हिययदइयाओ । जायाओ जायाओ विरायविसयाओ एत्ताहे ।। ५१९३ ।। जं चिय रागावत्थाइ सुंदरं तं पि मंगुलं भाइ । रागविमुक्के चित्ते अणुहवगम्मं च तत्तमिणं ॥ ५१९४ ।। ता कुण मा उव्वेयं राय तुम होसु तत्तदढदिट्ठी । न छलइ मोहपिसाओ जओ नरं तत्तमंतदढं ।। ५१९५ ।। एवं अणुसासेउं निययसुयं सेसए य भणइ निवे । भो भो ममं खमेज्जह जं भणिया कक्कसं तुब्भे ।। ५१९६ ।। कज्जवसेणं किंचि वि कइया वि पहुत्तणाभिमाणाओ। अभिमाणियं खु सोक्खं निवाण परमत्थओ न जओ ॥ ५१९७ असुरो सुरो व इत्थी नरो व नियओ परो व जो कोइ । दिट्ठो सुओ व असुओ अहिट्ठओ खमउ मह सव्वो ।। ५१९८ मज्झ वि तेसु खम च्चिय एवं सव्वासु जीवजोणीसु । पविलुत्तरागदोसस्स होउ सामाइयं सुद्धं ॥ ५१९९ ॥ एवं पभणंतो च्चिय कयप्पणामो मणाणुसंधीए । सिद्धाण सदेहाओ अवणेई आभरणगाई ।। ५२०० ।। लुंचइ य पंचमुट्ठीहिं निययकेसेऽणुराहनक्खत्ते । तं च पडिच्छइ सव्वं सक्को निय उत्तरीएण ॥ ५२०१ ।। आभरणाई समप्पइ तप्पुत्तस्सेव चंदरायस्स । अणुजाणावित्तु जिणं केसे उण खिवइ खीरोए ।। ५२०२ ।। एत्थंतरम्मि देवाण माणुसाणं च सक्कवयणेण । उवसंतो निग्घोसो खिप्पं सह तूरसद्देण ।। ५२०३ ।। पडिवज्जइ व चरित्तं तो भयवं सयलपावचाएण । काऊण नमोक्कारं सिद्धाणं लोयपच्चक्खं ॥ ५२०४ ॥ भणियं च - काऊण नमोक्कारं सिद्धाणं अभिग्गहं तु सो गिण्हे । सव्वं मे अकरणिज्जं पावं ति चरित्तमारूढो ।। ५२०५ ।। एवं पुव्वंगाणं चउवीसाए अहियाइं पुव्वाइं । च्छप्पुव्वद्धहियाइं परिवालेऊण किर रज्जं ।। ५२०६ ॥ निम्ममचित्तो सामी पडग्गलग्गं तणं व चइऊण । लोगुवयारनिमित्तं पडिवन्नो उत्तमचरित्तं ॥ ५२०७ ।। (जुयल) तप्पडिवत्ति समं चिय मणपवज्जवनाणमुत्तमं तस्स । उल्लसइ जं भणिज्जइ समए रिउविउलमइभेयं ।। ५२०८ ॥ भणियं च - तिहिं नाणेहिं समग्गा तित्थयरा जाव हुंति गिहवासे । पडिवन्नम्मि चरित्ते चउनाणी जाव छउमत्था ॥ ५२०९ ।। पुट्ठीए जं विलग्गं सहस्समहनरवराण तं पि जिणो । पव्वावइ सामाइयपडिवत्तिं कारवेऊण ।। ५२१० ।। चंदो वि जिणवरिंद दद्दु परिमुक्कवत्थलंकारं । खंधम्मि देवदूसं से खिवई लक्खमोल्लं जं ॥ ५२११ ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणवण्णणं १६५ निस्संगो वि हु भयवं तं न निवारेइ देवराएण । पक्खिप्पंतं खंधे काउं तित्थयरकप्पो त्ति ॥ ५२१२ ।। भणियं च - सव्वे वि एगदूसेण निग्गया जिणवरा चउव्वीसं । नो नाम अन्नलिंगे नो गिहिलिंगे कुलिंगे वा ।। ५२१३ ॥ ईसा इव रज्जसिरीए सोहहरणत्थमह विमुक्को वि । सो तवसिरीए विहिओ सव्वंगपकामराहिल्लो ॥ ५२१४ ।। अहिययरपत्तसोहं तं दर्छ सुरवरो पहट्ठमणो । संथुणइ दिव्ववाणीए सयलजणजणियहरिसाए ॥ ५२१५ ।। परमाहप्पेण गुणा केत्तियमेत्त त्ति कहिउमंगाई । आभरणविमुक्काई वि अहियं तुह नाह ! सोहंति ।। ५२१६ ।। मह वालसंगमे तुत्तमं गया केरिस त्ति तव विरहे । पयडुन्हीसमिसेणं समुन्नयं सहइ तुज्झ सिरो ॥ ५२१७ ।। तुह मुहयंदो कंतीए पूरयंतो दिसाओ अहिययरं । सोहइ परोवयारेण कस्स अहिया न सोहंति ॥ ५२१८ ।। तुह सामि ! भालवट्टो मोत्तुं तिलयाइचत्तभिउडीओ । रागद्दोसविमुक्को तुमं व पसमं समुव्वहइ ॥ ५२१९ ॥ करुणट्ठाणजिएसुं विरत्तयाणं असेसवत्थूसु । वलिवलि तुह नयणाणं अप्पियपियनिव्विसेसाणं ।। ५२२० । नासावंसं अणुरूवमेव मन्नामि तुज्झ जेण तए । सुद्धज्झाणमिसेणं तत्थेव निवेसिया दिट्ठी ।। ५२२१ ।। तुह जिणवरवंजियसद्दवित्थरं सवणजुयलमइरम्मं । वायरणं पिव सोहइ विरइयविबुहयणमणतोसं ॥ ५२२२ ।। निययाहरो वि तुमए नियग्गरागं न मोइओ जमिह । मन्ने तेण जिणो वि न सहावदोसं खमो हरिउं ॥ ५२२३ ॥ तुह कंठो सहजसिरीए संजुओ सहइ जणतिरेहिल्लो। निवलच्छिमुक्कपरिरंभकहणवायातिर्थक्को व्व ।। ५२२४ ॥ सिरिवच्छो वच्छयलम्मि लक्खणं होइ उत्तमनरा । सिरिवच्छंकियवच्छो त्ति तेणं तं भणइ एस जणो ॥ ५२२५ ।। मह पुण बुद्धी जिणलक्खणेसु सव्वेसु एस चेव धरो । तेण न उत्तारिज्जइ तुमए हिययाउ कइया वि ।। ५२२६ ॥ तुह जिण ! पलंबबाहू काउस्सग्गठियस्स सोहंति । भवजलहिकद्दमक्खुत्तजंतुउद्धरणदंड व्व ॥ ५२२७ ।। कह सुकुमारसरीरो धरेहि दुद्धरधयं ति चिंताए । खामो मज्झो जाओ न मुणइ तुह अतुलबलरिद्धिं ।। ५२२८ ।। गंभीरनाहिविवरं तुह रेहइ नाह ! वयनिरुद्धाओ। हिययाओ ओसरंतस्स दाररूवं अणंगस्स ।। ५२२९ ।। तुह नाह ! रोमराई वियडे वच्छम्मि रेहइ सुरेहा । अंतो फुरंतझाणग्गिनिग्गया धूमरेह व्व ।। ५२३० ॥ लहिही तुहोवओगं विसालया जिणनियंबबिंबस्स । ज्झाणनिवेसत्थमकंपमासणे संनिविट्ठस्स ॥ ५२३१ ।। तुह चेव सलहणिज्जे उरूसु पसत्थलक्खणे नाह ! सचराचरजगधरणं तुह देहं जेहिं धरियमिणं ॥ ५२३२ ।। उवभवरि उत्तरोत्तरवुड्ढिकरी जं सुवित्तया तेणं । तुह जंघाहिं धरिज्जइ कहिउं व जणस्स जिणनाह !।। ५२३३ ।। अरुणंगुलीओ जिणवरसिरिकुलगेहम्मि तुज्झ पयकमले । चंदणमालाइ सहति नाइनवपल्लवालीओ ॥ ५२३४ ॥ तुह नाह ! पायजुयलं जुगवं उज्जोइउं दसदिसाओ । नहमणिमिसेण दिप्पंतदीवए दिसपयासेइ ।। ५२३५ ।।। पडिपुन्नचरित्तनिमित्तमेव तुह सामि ! चलणजुयलं पि । निम्मलजसदेविंदेहिं संथुयं होउ मज्झ सया ॥ ५२३६ ।। अम्हारिसो जिणेसर ! न खमो तुह रूववन्नणं काउं । को वा सामन्ननरो वइज्ज खीरोयहिस्स तडं ।। ५२३७ ॥ तं नत्थि तुज्झ अंगं पगामरमणिज्जयाइ जं मुक्कं । जं च न विरागलच्छीए अहियसोहं कयं तुज्झ ।। ५२३८ ।। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं वयणे तूसइ दिट्ठी सुलसइ भालम्मि लहइ परभागं । कंठे उक्कंठिज्जइ सवणेसुं अहियमूससइ ।। ५२३९ ।। हिययम्मि संपसीयइ मज्झ पएसम्मि पावइ पमोयं । नाभीए निब्भरत्तं उवेइ पडिबिंबइ नियंबे ॥ ५२४० ।। जंघाओ न उल्लंघइ पाए विणयाउ मुयइ नो तुज्झ । वारंवारं जिणनाह ! मज्झ दिट्ठी तइ पसत्ता ।। ५२४१ ।। थोऊणेवं सुरगणपहू सव्व देवेहिं सद्धिं । वारंवारं नमिय चलणो सामिचंदप्पहस्स । तत्तो नंदीसरवरसयाभाविसच्चेइएसुं । काउं अट्ठाहियगुरुमहं जाइ सग्गं पहट्ठो ।। ५२४२ ।। अन्ने विजे खेयरमाणविंदा जिणस्स दिक्खाइ समागया हु । तीएऽवसाणे पणमित्तु सव्वे नियं नियं ठाणमुवागया ते ।। ५२४३ चंदप्पहसामी वि हु सीससहस्सेण परिवुडो भयवं । अप्पडिबद्धो कम्मक्खयट्ठमब्भुट्ठिओ संतो ।। ५२४४ ॥ दिक्खाए गहियाए गामागरनगरसंकुलं पुहई । विहरइ सासयससिकरनिम्मलजसदेवनमियपओ ।। ५२४५ ॥ इइ चंदप्पहचरिए जसदेवंकम्मि अट्ठमं पव्वं । भणियं जह उद्दिळं एत्तो नवमं समारंभे ॥ ५२४६ ।। अट्ठमं पव्वं समत्तं । (नवमो पव्वो) निन्नासिय मोहमहंधयारमालंबणं च जीवाण । अवलंबणरहियाणं भवकूवे निवडमाणाणं ।। ५२४७ ।। भीमभवरुद्दवणदवविज्झवणे जलयकालजलवाहं । सरयमियंकसमप्पह चंदप्पहसामियं नमिमो ॥ ५२४८ ॥ जुयलं अह पच्छिमे वयम्मी निक्खंतो दिवसपच्छिमे भाए । चंदप्पहजिणनाहो काउसग्गेण तत्थेव ॥ ५२४९ ।। रयणिं गमिऊण तयं अयभेरवाइसद्देहिं । जाए पभायसमए संचलिओ नलिणपुरहुत्तं । । ५२५० ।। जं पउमसंडनामं भन्नइ लोएण बीयनामेण । पुरवरगुणोववेयं वेयाइसुसत्थसत्तजणं ॥ ५२५१ ।। पत्तो य कमेण तहिं राया तत्थत्थि सोमदत्तो य । सगिहागयस्स तेण य वयदिवसा बीय दिवसम्मि ॥ ५२५२ ॥ च्छटुंते परमण्णेण पारणं तस्स कारियं तत्तो । अच्छेरयभूयाइं जायाइं पंचदिव्वाइं ॥ ५२५३ ॥ गयणंगणम्मि देवेहिं दिव्वदुंदुहिरवो समुट्ठविओ। .................... वसुहारा वरिसणं तह य ।। ५२५४ । घुळं च अहो दाणं गंधोदयपुप्फवरिसणं चेव । अद्धतेरसकोडी वसुहाराए पमाणं च ।। ५२५५ ॥ पाराविओ य भयवं जेण य तुट्टेण सोमदत्तेण । सो पयणुपेज्जदोसो अइरा पत्तो सिवट्ठाणं ।। ५२५६ ।। भयवं पि तओ पभिई विहरतो गामनगरमाईसु । उग्गतवच्चरणरओ रइअरइपएसु समचित्तो ।। ५२५७ ।। उवसममाइगुणेहिं कोहाईणं विवक्खभूएहिं । भावितो अप्पाणं कसायदप्पं पणोल्लितो ।। ५२५८ ॥ धिइबलनिबद्धकवओ पराजिओ न य परीसहभडेहिं । ठाणे ठाणे उदिएहिं छुहपिवासाइनामेहिं ।। ५२५९ ।। एक्कारसंगसुयसंपयाइ सहिओ पमायपरिचत्तो । चउनाणी साहूणं छिंदतो संसए बहुए ।। ५२६० ।। मासे तिन्नि जिणिंदो छउमत्थो विहरिओ निरासंसो। तत्थेवागच्छइ पुण सहसंबवणम्मि उज्जाणे ।। ५२६१ ।। जे वि हु सीसा सामिस्स ते वि अक्खलियनाणचारित्ता । उग्गतवच्चरणरया विहरंति समं जिणिदेण ।। ५२६२ ॥ सहसंबवणुज्जाणे य नागरुक्खो महालओ अत्थि । फलपुप्फपत्तसोहियसाहपसाहासयविसिट्ठो ।। ५२६३ ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ चंदप्पहजिणस्स केवलनाणोपत्तिवण्णणं तस्स तले उवविट्ठो सामी पुव्वन्हकालसमयम्मि । फग्गुणबहुले सत्तमि तिहीए अणुराहनक्खत्ते ।। ५२६४ ।। छठेणं भत्तेणं विसुज्झमाणो विसुद्धलेसाहिं । पत्तो अउव्वकरणं जीवेण अपत्तपुव्वं जं ॥ ५२६५ ।। ठाउं अंतमुहुत्तं तहियं अनियट्टिकरणमणुपत्तो । आरुहइ खवगसेढिं नियजीवुल्लसियवरविरिओ ।। ५२६६ ।। सुक्कज्झाणहुयासणपलीवियासेसघाइकम्मवणो । अक्खयमउलमणंतं तो पावइ केवलन्नाणं ॥ ५२६७ ।। तस्स य रिद्धीए वन्नणम्मि को होज्ज एत्थ ससमत्थो । तेएण जस्स सव्वे विणिज्जिया भाणुमाई वि ।। ५२६८ ॥ जओ भणियं - चंदाइच्चगहाणं पहा पयासेइ परिमियं खेत्तं । केवलियनाणलंभो लोयालोयं पयासेइ ।। ५२६९ ॥ तत्तो नहम्मि अकराहयाओ सुरदुंदुहीओ वज्जति । निवडइ य पुप्फवुट्ठी अणब्भवुट्ठि व्व गयणाओ ॥ ५२७० ।। वत्तारमंतरेण वि गयणे जयजयरवो य उच्छलिओ । पूरिन्तो दिसविवरं जणमणसवणाण सुहजणणो ॥ ५२७१ ॥ गज्जइ तह आयासं जलहरपरिवज्जियं पि दीसंतं । हेउं विणा वि जायं तह तेयमयं जगं सव्वं ॥ ५२७२ ।। निच्चंधयारतमसा नरयावासा जिणेहिं जे दिट्ठा । तेसु वि खणमुज्जोओ जाओ णं उग्गए सूरे ।। ५२७३ ।। सीहासणाई चलियाई चरणकिंकिणिरवेण बिंति व्व । इंदाण जाह तुरियं चंदप्पहनाणमहिमत्थं ॥ ५२७४ ॥ नाऊण केवलं जिणवरस्स सक्को सुघोसघंटाए । पुव्वं व मेलिऊणं सुरासुराई जणं सव्वं ॥ ५२७५ ।। संपत्तो जिणपासं तेण समं तयणु सव्व देवा वि । दूराओ च्चिय पणमंति जयजयारावभरियजया ।। ५२७६ ।। तो मंदारमणोरमनमेरुमणहरममंदसंताणं । घणपारियायपरिमलआयड्ढियभमिरभमरउलं ।। ५२७७ ।। सिरिचंदप्पहसामियपयपंकयजुयलसम्मुहा होउं । मुंचंति कुसुमवुट्ठि मुट्ठिं च विचित्तरयणाण ॥ ५२७८ ॥ (जुयल) तत्तो थुणंति जयजय चंदप्पहतित्थनाह ! कहणु तए । तरिओ भवोयही जत्थ तिहुयणं सयलमवि बुडं ।। ५२७९ ॥ भंजंति जत्थ नियमं सीलं सिढिलंति तवमवि मुयंति । अन्नेसि पि गुणाणं कुणंति हाणिं सुजइणो वि ॥ ५२८० ।। अप्पडिमल्लो भुवणेक्कमल्लविजिओ तए च्चिय समोहो। मोत्तूण केसरि को हरेज्ज माणं गयाणऽहवा ।। ५२८१ ।। (जुयलं) सरनरतिरियाणं पि ह जे तल्ला जे य अंतविरसा य । मच्छं च विसतरू इव जणंति जे रागजुत्ताण ।। ५२८२ ॥ दुग्गइमहंधकूवम्मि जे य पाडिंति कुवियसत्तु व्व । ते वीयराय विसया निव्विसया इह कया तुमए ॥ ५२८३ ॥ (जुयल) उस्सुत्तंति जणं जाइ अत्थकज्जेण तह हरंति सया । सा निव्वुई च लोयाण ताई वेसामयाइं व ॥ ५२८४ ॥ कुमयाइं इंदियाणि य नाणंकुसवसगयाइं काऊण । तुमए च्चिय सुपहे ठावियाई मयगलकुलाई व ॥ ५२८५ ॥ जुयलं कलुसंति मणं कायं कसंति सेओमयं सिवं च सया। चोरिन्ति तेण तुमए तिहुयणवेरि त्ति काऊण ।। ५२८६ ।। निक्कारणजयबंधव खंतिप्पभिई पहाणसत्थेहिं । एए हया कसाया जाण सया सा भवुप्पत्ती ॥ ५२८७ ॥ (जुयल) तुज्झ अकिंचिकर च्चिय संजाया जिणवरिंद उवसग्गो । जं च परीसहतिमिरं तं चंदं कह परिभवेज्जा ।। ५२८८ ॥ आसवसिंधुपवाहो न प्पविसइ तुज्झ जिय तलायम्मि । संवरपालीबंधे दढम्मि निव्वत्तिए तुमए ।। ५२८९ ।। पत्तो च्चिय तुह जिणवर ! न कम्मबंधो अहेउओ होइ । संसारे एस जओ जायइ जम्माइदुक्खफलो ।। ५२९० ॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं निज्जम्म निरामय निक्कलंक निक्कलनिरंजणामरण । निल्लेव निज्जराममनीरय निद्दोस निक्कलुस || ५२९१ || निम्मलगुणरयणमहासमुद्द मुद्दियवियार संपसर । सरणागयाण अम्हाण देव चंदप्पह ! पसीय ।। ५२९२ ।। ता जत्थ कत्थ वि ठिओ अणंतसंसारमोहतिमिरभरं । दुक्खद्दुयाण जिणवर ! तरसा अवहरसु गरुयपरं ।। ५२९३ ।। एवं णित्थुईए अंते देवाइ सम्मुहो होउं । सक्को इमं पयंपइ सनिओगं भो अणुट्ठेह ॥ ५२९४ ॥ केवणनाणुप्पत्तीए जेण तित्थंकराण सव्वाण । देवासुरा पहट्ठा कुणंति महिमं समोसरणे ।। ५२९५ ।। सक्कस्साणाए तुट्ठा देवासुरा विहाणेणं । उचियविही सुपयट्टा पहु आणं कोऽवलंघेज्जा ।। ५२९६ ।। वेडव्विय पवणेणं वाउकुमारेहिं दिव्वसत्तीए । हरियम्मि कट्ठतणसक्करो रयमाइवत्थुम्मि ॥ ५२९७ ।। तत्थाभिओगियसुरा धरायलं समतलं पकुव्वंति । चित्तमणिकिरणआबद्धइंदधणुविसररमणिज्जं ॥ ५२९८ ॥ तो काउ मज्झ वद्दलमाया से जोयणप्पमं भूमिं । गंधोदयसेएणं मेहकुमारा उ सिंचंति ।। ५२९९ ॥ तणु उउदेवयाओ सव्वोउयसुरहिपंचवन्नाण । वुट्ठि कुणंति कुसुमाण विंटवाईणमाजाणु ।। ५३०० । अन् उ आभिओगियविमाणवासी सुरा पकुव्वंति । दिप्पंतरयणमणहरपायारं रुइरकविसीसं ॥ ५३०१ || कविसीसे पुण पंचप्पयारमणिकिरणजालराहिल्ले । विरयंति तत्थ तह सव्वरयणमइए य चउदारे ।। ५३०२ ।। बीयं पायारवरं करंति सोवन्नियं तु जोइसिया । सोहंतं नाणारयणमइयपायारसिहरेहिं || ५३०३ || तइयं पुण रूप्पमयं सालं विरयंति भवणवासीओ। कंचणमयकविसीसा विराइयं सव्वओ सम्मं || ५३०४ || चउचउ दाराइं पुणो एएसु वि सव्वरयणमइयाई । पुव्विल्ले इव कुव्वंति निययपायारसमकालं ।। ५३०५ ।। वरतोरणाइ तेसु य पडायझयसुंदराइं कुव्वंति । रयणमयाई वरकणयचंदयाईहिं चित्ताई || ५३०६ || उभओ पासेसु तहा पउमपहाणफलिहमए । तोरणअहे य कलसे ठवंति वरवारिपडिपुन्ने || ५३०७ ॥ वररुवसालिहंजियसयकलिए मयरमुहविराइल्ले । तोरणखंभे य कुणंति विविहरयणोह दिप्पंते ॥ ५३०८ ॥ सरयब्भखंडपंडुरहारावलिमंडीओरुच्छत्ते य । दारोवरि विरयंती रणंतमणिकिंकिणी जुत्ते ॥ ५३०९ ॥ तयणंतरं समंता कालागुरुकुंदुरुक्कमाईण । कप्पूरमीसियाणं दज्झत सुगंधिदव्वाणं ॥ ५३१० || गंधेण मणहरेण जुत्ताओ कुणंति धूवघडियाओ । ते च्चिय देवा अन्ने भांति पुण अग्गिकुमर त्ति ।। ५३११ ।। भिन्निंदनीलमणिबद्धभूमियाओ सुवाणपंतीओ । लहरीओ व्व विरायंति जासु पविभत्तरूवाओ || ५३१२ ।। विमलजलाउन्नाओ पइ गोउरपासमुत्तरंगाओ। वियसियकमलवणाओ वावीओ कुणंति ताओ सुरा ।। ५३१३ ।। (जुयलं) वावीण परिसरेसु य कुसुमोहसमिद्धसुरतरुवणाणि । गंधं व लुद्धविलसिर महुयरकुलसेवणिज्जाणि ।। ५३१४ ।। मयमत्तकोइलाकुलकलरवजणजणियसवणसोक्खाणि । नंदणवणारं विरयंति नाइ उउलच्छिभवणाई ।। ५३१५ ।। (जुयलं) पायारतुंगसिंगेसु गोउरेसुं च तोरणसिरेसु । वावीण बलाणेसु य रम्मत्तण हरियहियएसु || ५३१६ ।। मंदानिलचलियंचलचूलाओ सहंति वेजयंतीओ। नच्चंत भुयलयाउ व्व सुरसिरीणं पमोएण ॥ ५३१७ || (जुयलं ) भत्तपुन्ना अंतरिय विग्गहा सोणपाणिनिवहेहिं । छायं पि व कुव्वंता जिणस्स नज्जंति जेहिं सुरा ।। ५३१८ ।। १६८ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणवण्णणं १६९ तेहिं नवपल्लवेहिं विरायमाणं असोयतरुभमरा । जिणपारसगुणमंतो रयंति पढमम्मि पायारे ॥ ५३१९ ।। (जुयलं) मूलम्मि तस्स विलसंतहरिणगयसिंहवग्घसंघायं । सिंहासणं च विरयंति मणिमऊहेहि रायंतं ।। ५३२० ।। हेट्ठा य तस्स पीढं विचित्तरयणोहनिम्मियं रम्मं । जस्सुवरितणं सोहइ चउदिसदीसंतवररूवं ॥ ५३२१ ।। पुव्विल्ल बीयसालंतरम्मि पुव्वुत्तरे दिसाभाए । देवच्छंदं च कुणंति सामिवीसमणकज्जेण ॥ ५३२२ ।। चिइरुक्खदेवच्छंदयसीहासणचमरच्छत्तपीढाई । एयं च सव्वमेत्थं वंतरदेवा पकुव्वंति ॥ ५३२३ ।। भणियं च - चीइदुमपीढछंदगआसणछत्तं च चामराओ य । जं चऽन्नं करणिज्जं करंति तं वाणमंतरिया ।। ५३२४ ।। इय कित्तियं च कीरउ वन्नणयं तस्स समवसरणस्स । जं नमिऊणं देवा वि विम्हयं कं पि पावंति ।। ५३२५ ।। विहियम्मि समोसरणे एवं देवेहिं एइ तत्थ जिणो । पाए निवेसयंतो नवनवसोवन्नकमलेसु ।। ५३२६ ।। नवणीयकोमलाई कमलाई कुणंति ताई किर देवा । नवसोक्खाइं नवाई कणयमयाई सुरम्माइं ।। ५३२७ ।। तेसु य दोसु निवेसइ चलणा किर जिणवरो व सेसाई । सत्त उउविति जिणपच्छिमम्मि भाए सुकायाइं ॥ ५३२८ ।। वच्चंतो य जिणिंदो जं जं मुंचइ तयं तयं पडइ । पच्छिल्लेसुं पच्छिल्लयंतु अग्गे कुणंति सुरा ।। ५३२९ ।। अच्चब्भुयचरिओ एवमेइ चंदप्पहो जिणो तत्थ । पविसइ पुव्वदुवारेण समवसरणम्मि सुरपणओ ॥ ५३३० ।। काउं पयाहिण तियं सपीढचेइयतरुस्स जिणवसभो । पुव्वाभिमुहो निसियइ नमोत्थु तित्थस्स भणमाणो ।। ५३३१ ।। सीहासणोवविढे भयवंते सेसयासु विदिसासु । अमरा तिन्नि कुणंती जिणपडिरूवाई रूवाई ।। ५३३२ ॥ तेसिं च जिणपभावाओ चेव रूवं हवेज्ज अणुरूवं । अन्नह सव्व सुरा जइ रूवं इच्चाइ विहडेज्जा ॥ ५३३३ ।। भणियं च - सव्व सुरा जइ रूवं अंगुट्ठपमाणयं विउव्विज्जा । जिणपायंगुंठें पइ न सोहए तं जहिंगालो ॥ ५३३४ ।। तिन्नि य पडिरूवाइं जाइं सुरा निम्मवंति ताई पि । जम्मावरगाईण वि णे कहइ जिणो त्ति बोहित्थं ॥ ५३३५ ।। उवविट्ठस्स जिणस्स य तहियं रायंति पाडिहेराइं । पिसुणंति जाइं तिहुयणपहुत्तणं तिजगनाहस्स ॥ ५३३६ ।। तहाहि - तुंगो वट्टो मसिणक्खंधो वरपोमरायबहलदलो । घणसमविसालसालोहरुद्धपसरंतनहविवरो ॥ ५३३७ ।। मयरंदलोलभमरालिगिज्जमाणप्पसूणगुणविसरो । चंदप्पहजिणनाहस्स उवरिरविकिरणतावहरो ॥ ५३३८ ।। रेहइ असोयरुक्खो पवणपहल्लंतपल्लवसएहिं । उव्विल्लंतकरहिं व नच्चंतो पहरिसभरेण ॥ ५३३९ । विशेषकम् ।। जलथलयतरुवरुत्थाण सुरविमुक्काण सुरहिगंधाण । पणवन्न विंटवाईण जाणुसेहप्पमाणाण ।। ५३४० ।। सहइ जिणस्स समंता वियसियकुसुमाण सन्तिया वुट्ठी । पहुदंसणफुल्लमुही हरिसमुविन्ती उडुसिरि व्व ।। ५३४१ ।। हरिसुल्लासपवंचिय रोमं चंचियसमग्गदेहेहिं । हरिणेहिं वि जा सुव्वइ अइरसतड्डवियकन्नेहिं ॥ ५३४२ ॥ मोहंधयारनियरावहारकरणम्मि तरणिमुत्ति व्व । जा य पभासइ भवअंधकूवपडियाण भवियाण ।। ५३४३ ।। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० सिरिचंदप्पहजिणचरियं सा पसरइ दिव्व झुणी जिणस्स जिय सजलजलयगज्जिरवा। गरुययरमोहनिद्दानिवडियजणबोहणत्थं व ॥ ५३४४ ॥ विशेषकम् ॥ सरयससिकिरणनिम्मलजसजं पिव विहाइ जं जं च । वुड्ढाइ तवसिरीए केसंतसिरिं समुव्वहइ ।। ५३४५ ।। जमसेसजगत्तयपुन्नतंतुसंताणसरिसमाभाइ । रंजियपुरंदरं रुइररयणखचियं कुणइ दंडं ॥ ५३४६ ।। तं देवरायकरकमलचलियचामरजुगं जगपहुस्स । सहइ ढलंतं पुण पुण नमिरं च गुणाणुरागेण ।। ५३४७ ॥ विशेषकम् ।। जच्चतवणिज्जमइयं विचित्तमणिनियरचित्तयं तुंगं । वित्थिन्नं विमलसमुल्लसंतकिरिणोहदिप्पंतं ।। ५३४८ ।। सीहासणं विरायइ भत्तीए नियपए समुज्झित्ता । जिणवरआसणहेउं समागयं मेरुसिंग व ॥ ५३४९ ॥ जुयलं ॥ नीरयनिरब्भगयणे जह सोहइ तरणिकिरणपब्भारो । डिंडीरपिंडपंडुरखीरोयहिसविहदेसो वा ।। ५३५० ॥ जलहिस्स महणसमए अमयपवाहोऽहवा पवित्थरिओ। तह रेहइ जिणतणुकिरिणबद्धभामंडलं रुइरं ।। ५३५१ ।। अवि य -- देहाणुमग्गलग्गं दीसइ भामंडलं ससिपहस्स । सेवाइ रयणिनाहेण पेसियं किरणजालं व ॥ ५३५२ ॥ गुरुपडिरवभरियनहंगणो य बहिरियजणोह सुइविवरो । पठुक्कंठसिहंडीहि जोइओ घणरवभमेण ॥ ५३.३ ।। विबुहो बोहणत्थपहओ वज्जतो देवदुंदुही सहइ । आहवणं च कुणंतो जिणपासे दूर चारीण ॥ ५३५४ ॥ जुयलं ॥ च्छाया न जस्स सुलहा नीसेससुरासुरेहिं वि जयम्मि । भवदवगिम्हुम्हाए गाढं परितावियतणूहिं ।। ५३५५ ॥ तस्स वि छायं अहयं जणेमि सीसोवरिट्ठियं संतं । तिजयप्पहुस्स एवं किंकणिरावेण जं कहइ ।। ५३५६ ।। तं सहइ थूलनित्तुलनिम्मलमुत्ताहलोह हसिरं व । च्छत्तत्तयं जिणिंदस्स कुमुयसरयब्भसमवन्नं ॥ ५३५७ ॥ विशेषकम्॥ अन्नं च - आबद्धनीलमणिकिरणजालनवहरियजणियसद्धाए । पासं न जस्स कइय वि विमुंचई मुद्धहरिणउलं ॥ ५३५८ ।। पवियसियकणयकमलट्ठियं तयं धम्मचक्कमइरम्मं । सोहइ जिणिंदपुरओ सुरकयनीलिंदनीलमयं ।। ५३५९ ।। (जुयलं) माणिक्कखंडमंडियचामीयरचारुदंडकयसोहो । पवणपहल्लिरआबद्धकिंकिणीरावरमणिज्जो ॥ ५३६० ॥ तिहुयणगुरुस्स पुरओ सहइ महिंदज्झओ महातुंगो। उड्ढमुहमुल्लसंतो सिवगइमग्गं व दंसंतो ।। ५३६१ ॥ देवा य पहरिसेणं कलयलसद्देण सव्वओ चेव । उक्किठि सीहनायं करिति तित्थयरपामले ॥ ५३६२ ।। एत्थंतरम्मि परिसाओ इंति ताओ पयाहिणं दाउं । वाराओ तिन्नि तित्थेसरस्स तो ठंति सट्ठाणे ।। ५३६३ ।। तासिं च कमो एवं भयवं पि पयप्पयासणा पुव्वं । पढम चिय पडिबोहइ अट्ठासी गणहरे जे उ ॥ ५३६४ ।। उत्तमकलजाइगणा अच्चब्भयरूवसंपयाकलिया। नीसेसलक्खणधरा तिवई सणिऊण जिणपासे ।। ५३६५ ।। उप्पत्तिविगमधुवपयडरूवनियबुद्धिपयरिसगुणेण । उवलहियसयलतत्ता दुवालसंग पकुव्वंति ।। ५३६६ ॥ आयारो सूयगडो ठाणं समवाय भगवईओ य । नायाधम्मकहाओ सत्तमयमुवासगदसाओ ॥ ५३६७ ।। अंतगडाणुत्तरओ उवाइयाणं दसाओ तह दुण्णि । तह पण्हावागरणं एक्कारसं विवागसुयं ।। ५३६८ ॥ एयाणं पढमंगं अट्ठारसपयसहस्सपरिमाणं । सेसाई हुंति दस पुण दुगुणा दुगुणाइ माणेण ।। ५३६९ ।। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणवण्णणं बारसमंगं जं पुण तं चोद्दस पुव्वबद्धमिह होइ । तेसिं नामाई इमाई हुति सिद्धंतभणियाई ।। ५३७० ॥ उप्पायपुव्वमग्गेणियं तह वीरियं तइय पुव्वं । अत्थिन्नत्थिपवायं तत्तो णाणप्पवायं च ॥ ५३७१ ।। सच्चप्पवायमायप्पवायकम्मप्पवायपुव्वाणि । पच्चक्खाणं नवमं दसमं विज्जाअणुपवायं ॥ ५३७२ ।। कल्लाणनाममेक्कारसं तु पाणाउ बारसं पुव्वं । तत्तो किरियविसालं चोद्दसमं बिंदुसारं च ।। ५३७३ || एसा दुवालसंगी जइ वि हु दव्वट्ठयाए किर निच्चा । पज्जायाविक्खाए जिणे जिणे होइ तह वि नवा ।। ५३७४ ।। अंतमुहुत्ते चिय तो समणुन्नाय सुत्तअत्थुभया । सयलगणाणुन्नाए समयं चंदप्पहजिणेणं ॥ ५३७५ ॥ पत्ता गहरा सदेवमणुयासुराए परिसाए । पढमाए पोरुसीए मज्झे पाएण ऊणाए || ५३७६ ।। ते तिपयाहिणपुव्वं दाहिणपुव्वेण जिणवरिंदस्स । विणयरइयंजलिउडा कयप्पणामा उवविसंति ।। ५३७७ || अन्ने वि साहुणो जे आसि जिणिंदस्स चेव वरसीसा । केवलनाणं पत्ता मणपज्जवमोहिनाणं वा ॥ ५३७८ ।। समवसरणोवविट्ठे जिणम्मि ते वि हु तहिं समागम्म । पुव्वाए पोलीए पविसित्तु जिणस्स पासम्मि ।। ५३७९ ।। काउं पयाहिणतियं दाहिणपुव्वेण होइऊण तओ । गणहरदेवाणं चिय पिट्ठपएसम्मि उवविट्ठा ॥ ५३८० ॥ जे विहु सुपासतित्थस्स संजयाई समागया तत्थ । सिरिचंदप्पहनाहस्स ते वि उवसंपयं लिंति || ५३८१ ।। पुव्वाइ पविसिऊणं तहेव काउं पणामकिच्चाई । अइसइयसंजयाणं पच्छा गंतूणुवविसंति || ५३८२ ।। जे जग्गुणेहिं जुत्ता ते तप्पंतीए चेव निविसंति । ताणं च पिट्ठओ पुण चिट्ठती विमाणिदेवीओ ।। ५३८३ ॥ ताणं पि पिट्ठओ संजईओ उद्घट्ठियाओ चिट्ठती । तह चेव पविसिऊणं पयाहिणाई य काऊण ॥। ५३८४ ॥ केवलणो न पणामं कुणंति दिंति य पयाहिणा तियगं । तित्थस्स नमो भणिउं गणहरपिट्ठे उवविसंति || ५३८५ ॥ जे मणपज्जवनाणी ओहिन्नाणी दुवालसंगधरा । ते उण पयाहिणाओ कुव्वंति तहा पणामं च ।। ५३८६ ॥ केवलिणो ति उण जिणं तित्थपणामं च मग्गओ तस्स । मणमाइओ नमंता वयंति सट्ठाणसट्ठाणं ।। ५३८७ ।। भवणवण देवीओ जोइसाणं च वंतराणं च । दक्खिणदारेणं पविसिऊण पणमित्तु जिणनाहं ॥। ५३८८ ॥ दाडं पयाहिणाओ गणहरमाईण पणमिउं सव्वे । चिट्ठति दाहिणावरदिसाइ गंतुं कमेणेव || ५३८९ ॥ एवं भवणाहिवई जोइसिया वंतरा य अवराए। पविसित्ता अवरुत्तरकोणे निविसंति तह चेव ॥ ५३९० ॥ वेमाणिया य मणुया मणुइत्थीओ य उत्तरदिसाए । तह चेव पविसिऊणं उत्तरपुव्वे उवविसंति ।। ५३९१ ।। इय एक्केक्कदिसाए तियं तियं होइ संनिविट्ठतु । सव्वाओ बारसेव य परिसाओ पढमपायारे ॥ ५३९२ ।। अवि य - पढमचरिमेसु दोसु वि कोणेसु पुमित्थिमीसिया परिसा । फ्त्तेय च्चिय सेसेसु होइ एसो य ताण विही ॥ ५३९३ ॥ ts हिड्डी को तत्थ अप्पिड्ढिइया तयं दतुं । पुव्वुवविट्ठा वि नमंति जंति नमिरा व पुव्व ठियं ।। ५३९४ ॥ नय तत्थ कोइ कस्स वि कुणइ भयं न य नियंतणं कुणइ । नो वि गहाओ न य मच्छरं व नो हासखेडाइ || ५३९५ जो जं निस्साए समागओ य देवो व माणुसो वा वि । सो तस्स चेव पासे उवविसइ जिणं पणमिऊणं ॥ ५३९६ ॥ १७१ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जे वि हु विरोहिसत्ता ते वि पविट्ठा तहिं समोसरणे । न धरति वइरभावं पयइपसन्ना उ जायंति ।। ५३९७ ।। जिणमुहकमलनिवेसियदिट्ठी जिणभासियम्मि उवउत्ता। चिट्ठति पंजलिउडा विणओणयमत्थया सव्वे ।। ५३९८ बियम्मि य पायारे तिरिया तइए हवंति जाणाई । पायारबहिं व पुणो सुरनरतिरिइंत जंताई ॥ ५३९९ ।। नियनियठाणत्थेसु य एवं सुरमणुयतिरियलोएसु । जिणनाहसमोसरणे सुहपयरिसमणुहवंतेसु ॥ ५४०० ।। नीसेसमंगलनिही भयवं तेलोक्कबंधवो देवो । मोहंधयारसूरो सरणागयवच्छलो धणियं ।। ५४०१ ॥ कम्मवणगहणदहणो उल्लसियाणंतनाणसब्भावो । सिरिचंदप्पहसामी तित्थस्स नमो त्ति भणिऊण ॥ ५४०२ ।। अणुवकयपरहियरओ सव्वेसिं अमरनरतिरिक्खाण । साहारणवाणीए जोयणनिहारिणीए य ।। ५४०३ ॥ धम्मावबोहयाए जुगवं पि असेससंसयहराए । अच्चंतहिययपल्हायणीए सयलाण जंतूण ।। ५४०४ ॥ कयकिच्चो वि हु तित्थयरनामकम्मोदएण सो धम्मं । आइक्खिउमाढत्तो घणगज्जिरजलहिगहिरसरो ॥ ५४०५ ॥ तहा हि - भो भो सुरासुरनरा ! संसारे संसरंत जंतूण । कत्थ वि न अत्थि सोक्खं निच्चं दुक्खोहतवियाणं ।। ५४०६ ॥ ता जइ दुहनिव्विन्ना सुहमिच्छह तो सुहं समायरह । न हु सालिमभिलसंता वविति किर कोद्दवे केइ ।। ५४०७ ।। संसारे जह य सुहं तुच्छं दुक्खं अणोरपारं च । तह निसुणह भो भव्वा कहाछलेणं कहिज्जतं ।। ५४०८ । (अखलियपयावपसरनिवकहा -) अत्थि अलोयक्खेत्तस्स मज्झदेसम्मि पुरवरं रम्मं । भवचक्कं नामेणं सुपसिद्धं सासयावासं ।। ५४०९ ।। अखलियपयावपसरो राया नामेण कम्मपरिणामो । तं पालइ सयलजयत्तयं पि काऊण वसवत्तिं ।। ५४१० ।। तस्स य पहाणभज्जा अणाइभवसंतइ त्ति नामेण । तीसे य अट्ठ पुत्ता नाणावरणाइया पयडा ।। ५४११ ॥ बीया अकामनिज्जरनामा सा वि हु पसायठाणं से । अन्नदिणे नियपुत्ते एसो हक्कारिउं भणइ ।। ५४१२ ।। सुसमत्था सव्वपयोयणेसु तुब्भे महल्लयं च इमं । मह रज्जं ता पुत्ता कुणह जहा थिरं होइ ।। ५४१३ ।। एयस्स थिरत्तं पुण लोयथिरत्तेण होइ ता एसो। रज्जंतरेसु जंतो निज्जतो रक्खियव्वो त्ति ॥ ५४१४ ॥ ते बिंति ताय ! एवं काहामो किं तु नायगो अम्ह । किज्जउ कोवि तयाणाइ जेण सव्वत्थ वियरामो ।। ५४१५ ॥ तो भणइ पिया तेसिं तुब्भे च्चिय भणह जं करेमि पहुं । नियइच्छाए कए पुण विचित्तया तुम्ह संभविही ।। ५४१६ ।। तो नाणदंसणावरणअंतराया भणंति अम्हाण । पडिहाइ मोहराओ सव्वेसि इमो जओ बलिओ ॥ ५४१७ ।। तहा हि - ठिइबलमेयस्स च्चिय सहायबलमुत्तमं इमस्सेव । एयं चिय अम्हे वि हु अणुयत्तेमो सया चेव ।। ५४१८ ।। एत्थंतरम्मि वेयणियनामगोया भणंति जह तुब्भे । अणुयत्तह मोहं तह आउं अणुवत्तिमो अम्हे ।। ५४१९ ॥ मोहेव गए वि जओ अम्हे आउम्मि विज्जमाणम्मि । न हु फिट्टेमो क्खीणाउयम्मि होमो निराधारा ।। ५४२० ।। ताणमभिप्पायं तो लहिऊणं भणइ कम्मपरिणामो । मा विवयह भो तुब्भे सुणेह मह वयणमुवउत्ता ।। ५४२१ ।। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखलियपयावपसरनिवकहा १७३ नाणावरणाईणं मोहो च्चिय होउ सामिओ ताव । वेयणिनामगोयाण नरवई होउ पुण आऊ ।। ५४२२ ॥ भवचक्कपुरस्स जओ सामी अहमेय संगयपुराइं । अन्नाई वि अत्थि बहूणि पाडया तह गिहा गामा ।। ५४२३ ।। नरयगइमाइयाण तो नयरीणं ठवेमि रायाणं । आउयपालं चिय जो हु बहुमओ नाममाईण ॥ ५४२४ ।। एसो य मोहराओ नाणावरणाइ बहुमओ जो य । सोउमसंववहाराइ नयरसामी ठवेयव्वो ॥ ५४२५ ॥ किं तु न कायव्वो च्चिय भेओ अन्नोन्नमेव नियगेहे । अन्नोन्नं साहिज्जं सव्वेहिं चेव कायव्वं ॥ ५४२६ ॥ तो सव्वे च्चिय तुट्ठा भणंति ताएण सुंदरो मंतो। दिट्ठो अम्हाण वि बहुमओ य ता कीरऊ एवं ॥ ५४२७ ॥ महईए विभूईए समकालं ठाविया तओ दो वि । मोहो जुवरायपए मंडलियपयम्मि आऊ य ॥ ५४२८ ।। सिक्खविया दो वि तओ कमेण भो महाराय ! ताव तए । असंववहारमहापुरस्स चिंता विहेयव्वा ॥ ५४२९ ।। चोइस भूयग्गामाणेगिंदियमाइपाडयाणं च । मह रज्जे अन्नस्स वि चिंता सयलस्स तुह चेव ॥ ५४३० ।। आउयराएण समं च चित्तभेओ महापयत्तेण ! रक्खेयव्वो रज्जं जेण इमं वुड्ढिमुवयाइ ।। ५४३१ ।। तुमए वि आउपुत्तय ! नरयगईमाइयासु नयरीसु । रयणप्पहाइयासु य तप्पडिबद्धासु सव्वासु ॥ ५४३२ ।। नारयतिरियनरामरलोयाण ठिई जहा सया होइ । तह कायव्वं तुह चेव नायगत्तं जओ एत्थ ॥ ५४३३ ।। मोहनरिदेण समं चित्तविभेओ न चेव कायव्वो । इय दो वि सिक्खवित्ता नियनियठाणेसु पट्ठविया ॥ ५४३४ ॥ भज्जा य मोहरायस्स मूढया तीए दो वि वरपुत्ता । दंसणचरित्तमोहा पढमपिया दिट्ठिमोहणिया ॥ ५४३५ ।। मिच्छाइंसणसम्मत्तमीसनामा य से सुया तिन्नि । इयरस्स वि अविरइभारियाइ जाया सुया तिन्नि ।। ५४३६ ।। वइसानरसेलक्खंभसागरा चउमुहायते सव्वे । तक्का य तेसिं भइणी बहुली नामेण चउ वयणा ॥ ५४३७ ।। अप्पाहिऊण दंसणमोहं अह भणइ मोहराओ वि । वच्छ ! तुह दिट्ठिमोहेण सत्ती अच्चब्भुया अस्थि ॥ ५४३८ ॥ ता असंववहारपुराइ पिंडिओ जो इमो मए लोगो। सो दिट्ठिमोहणेणं मोहित्तु सया वि धरियव्वो ॥ ५४३९ ।। जेणऽन्नत्थ न कत्थइ वच्चइ सुणइ न अन्नवयणं पि । न पलोयइ अन्नमुहं वसवत्ती तुह ठिओ निच्चं ॥ ५४४० ।। बज्झ च्चिय वच्छ ! मए बहुत्तणं अप्पियं निरवसेसं । ता अपमायपरेणं सया वि होयव्वमेत्थत्थे ।। ५४४१ ।। अन्नं च तुज्झ पुत्तो जो मिच्छादसणो इमो जेट्ठो । संसयविवज्जयाई उवायजणणम्मि कुसलो त्ति ॥ ५४४२ ।। सो वि मए परिठविओ महत्तमत्तम्मि जेण तुझेव । साहिज्जे सयकालं पयट्टई सयलकज्जेसु ॥ ५४४३ ॥ जे वि पिउभाउणो तुह नाणावरणाइणो महासुहडा । ते वि सामंतपएसु ठाविया गरुयगरुएसु ।। ५४४४ ।। एएसिं च कुबोहाबोहाइभडा भमंति सव्वत्थ । अखलियपसरा ते वि हु तुज्झ सहाया भविस्संति ॥ ५४४५ ॥ नाणावरणाईणं जेणाणुन्नाइ पेरिया एए । तं नत्थि किंपि कज्जं गरुयं पि न जं करिस्संति ।। ५४४६ ।। किंतु तए वि हु मिच्छादसणमापुच्छिऊण एयाण । आएसो दायव्वो सव्वत्थ वि मउसइच्छाए ॥ ५४४७ ॥ सम्मदंसणनामो जो तुह पुत्तो न सो उ अम्हाण । पहिडाइ भद्दओ जं पुराई उव्वासिउं मणइ ॥ ५४४८ ।। निसुयं च मए जह अत्थि एत्थ दुग्गे विवेयसेलम्मि । जइण पुरं तत्थ निवो सुबोहनामो महाबाहू ।। ५४४९ ।। Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं सद्दिट्ठी तब्भज्जा तेहिं समं संगओ चुओ तुज्झ । ता इहई दु पुत्ते वीसासो नेय कायव्वो ।। ५४५० ।। एत्तो च्चेय पवेसो रक्खेयव्वो इमस्स जत्तेण । अस्संववहारपुराइएसु ठाणेसु नियएसु ।। ५४५१ ।। एगिदियाइपाडयमज्झे पविसेज्ज कह वि जइ एसो। दिज्ज चिरावत्थाणं तत्थ वि मा कह वि एयस्स ।। ५४५२ ।। जो वि तुह मिस्सनामो पुत्तो एसो वि मिच्छसम्माणं । अणुयत्तिं कुव्वंतो न मज्झ पडिहाइ सुद्धप्पा ।। ५४५३ ।। मज्झत्थं तेण इमो दंसेइ न किंपि जइ वि हु पयारं । तह वि हु सपक्खपुट्ठि न कुणइ जो तम्मि का आसा ॥ ५४५४ केवलमुदओ एयस्स थेवकालो त्ति तेण संकेमो । न भओ इमाओ तह वि हु सपुरपवेसो न देओ से ॥ ५४५५ ॥ चारित्तमोहनामो सहोयरो जो उ वल्लहो तुज्झ । एयस्स किं व भन्नउ पोढत्तं पत्थुए कज्जे ॥ ५४५६ ।। अविरइभज्जाइ जओ पुत्ता एयस्स तिन्नि चउवयणा । जलणगिरिथंभसागरनामाणो बहुलिया धूया ।। ५४५७ ॥ पयईए च्चिय ते अम्ह लोयवसवत्तिकारिणो बाढं । नियपिउणो तुह तुमए पुरक्कडा किं न काहिति ॥ ५४५८ ॥ तहा हि - जलणुद्दीवियचित्तो न गणइ पियरं न मन्नए जणणिं । लंघइ सहोयरं गुरुयणं च अवगणइ निरवेक्खो ।। ५४५९ ॥ उब्वियइ पावाओ धम्मम्मि मणं मणं पि न केरइ । किं वा पणट्ठसन्नो न कुणइ पाणी परायत्तो ॥ ५४६० ।। गिरिथंभेण थड्ढीकओ य अप्पाणमेव मन्नंतो। भुवणं पि गणइ तणमिव कुणइ अवन्नं गुरूणं पि ।। ५४६१ ।। भणइ य मज्झ वि अन्नो को वि गुरू अत्थि जेण अहमेव । जाइकुलरूवपंडिच्चपमुहगुणगणमणिकरंडो ॥ ५४६२ ।। सागरओ सागरमिव दुप्पूरयरं जणाइ लोयस्स । आसं आयासयरं अणंतयं पावसंजणयं ।। ५४६३ ।। परिवज्जतो एयाइ कुणइ परवंचणं तओ विविहं । नावेक्खइ परलोयं धम्मस्स न सम्मुहो होइ ।। ५४६४ ॥ उविजायगाईहिंतो अन्नं च होइ जइ निस्सो । तो अहिलसइ धणं चिय धणलाभे इच्छई रज्जं ॥ ५४६५ ॥ रज्जप्पत्तीए पुणो इंदत्तं तस्स संपयाए य । उवरुवरि कप्पसामित्तमेवमासा न तुट्टेइ ।। ५४६६ ।। जा वि इमाणं भइणी वढुत्तरकूडकवडमाईणि । सिक्खावंती सययं गुरुत्तणं पयडइ जणस्स ।। ५४६७ ।। तीए वि हु वसवत्ती अन्नं हिययम्मी किं पि धारेइ । अन्नं भासइ वायाए कुणइ अन्नं च काएण ।। ५४६८ ॥ एवं च माइपिइभाइसामिगुरुमित्तपमुहसयलजणं । निरवेक्खं वंचंतो बीहेइ न कुगइपडणाओ ।। ५४६९ ।। ता तुह समीहियत्थस्स साहगाई इमाइ सव्वाइं । इय मुणिऊण सकज्जे तुमए वावारियव्वाई ।। ५४७० ॥ किं च इमाणं नवहा समाइणो सहयरा महासुहडा । अण्णे वि संति निद्दा लोयवसीयरणसत्तिजुया ॥ ५४७१ ।। ते य इमेहिं वावारिएहिं वावरिय च्चिय हवंति । ता सव्वे च्चिय एए गुरुयसमाणेण दट्ठव्वा ॥ ५४७२ ॥ जो वि महामंडलिओ आउयराओ कओम्ह जणएण । अस्संववहारपुरे सो दलूं अम्ह बहुलोयं ॥ ५४७३ ॥ नियपुरिनयणिच्छाए जइ वि न आउट्ठिई बहु देइ । अंतमुहत्ताउ च्चिय संहारं कुणइ तस्स सया ॥ ५४७४ ।। तह वि मए नियउदएण चेव अन्नत्थ निज्जमाणो सो । धरिओ तत्थेव पुणो पुणो वि कारविय उप्पत्तिं ॥ ५४७५ ॥ न य एवं किज्जंते मए समुव्वहइ वइरभावं सो । केवलमणंतलोयं इच्छइ काउं सनयरीसु ।। ५४७६ ।। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखलियपयावपसरनिवकहा १७५ न य एत्तिएण अम्ह वि तस्सुवरि समत्थि का वि वइरमई । तन्नयरीसु वि लोओ आणाकारी जओ अम्ह ॥ ५४७७ अन्नं च - पावमइ महामाया मज्झिमगुणजोग्गयासुहपवित्ती । चत्तारिकलत्ताई इमस्स तेसिं सुया चउरो ॥ ५४७८ ।। नरयाऊ तिरियाऊ मणुयाऊ तह य चेव देवाऊ । एए य कया सव्वे रायाणो निययनयरीसु ॥ ५४७९ ।। एएसु य नरयाऊ मिच्छादसणअमच्चवसवत्ती । निच्चं चिय तव्विरहे कत्थ वि बंधइ ठिई नेय ॥ ५४८० ॥ पुत्ता चरित्तमोहस्स जे वि जलणाइणो महासुहडा । तेहिं पि समं पीई इमस्स गरुई अओ एसो ।। ५४८१ ।। तुम्हं चेव सहाओ जो उण तिरियाउ नरवई एसो । बहुमिच्छत्तणुजाई कयाइ सासायणरूईए वि ॥ ५४८२ ।। मणुयाउ य देवाउ य रायाणो कुणइ कयाइ मिच्छस्स । कइया वि हु सम्मस्स वि दुण्हं पि करंति अणुयत्तिं ।। ५४८३ जे वि हु आउयरायस्स रागरायाइणो पहाणभडा । तेसु वि थेव च्चिय सम्मदंसणे विहियअणुरागा ।। ५४८४ ।। बहवे मिच्छादसणं महत्तमस्सेव मंतणाण सया । कज्जेसु संपयट्टति तेण ते वि हु तुहायत्ता ।। ५४८५ ॥ ता कस्स वि आसंका कायव्वा वच्छ ! न हु तए अहवा । सुसहायबुद्धिवीरियजुयाण कत्तो भवे संका । ५४८६ ।। इय सिक्खविऊण इमो पिउणा कुमरत्तणम्मि ठविऊण । महईए सामग्गीए पेसिओ तयणुबलकलिओ ।। ५४८७ ।। अखलियपसरो सव्वत्थ कह वि तह विलसिउं समाढत्तो। जह तस्स को वि आणं न लंघई कत्थ वि कहिं पि ।। ५४८८ एवं च पसरमाणो अस्संववहारपुरजणं ताव । सव्वं पि कुणइ तहं कह वि मोहिउं दिट्ठिमोहेण ॥ ५४८९ ।। गयचयणो व्व मुच्छागओ व्व अवहरियजीविओ व्व जहा। न मुणइ सुहं न दुक्खं एसो य न चलइ फंदइ वा ।। ५४९० किंतु समजीयमरणो समेक्कदेहप्पवेसनिक्कासो । समनीसासूसासो समसमयाहारनीहारो ।। ५४९१ ।। चिट्ठइ सया वि एवं अच्चन्तसिणेहसारयाइ व्व । पडिबद्धो नियजाईए अन्तरं कस्स वि न देइ ॥ ५४९२ ।। तिरियगईनयरीए जइ वि पहू आउराइणा ठविओ। तिरियाऊ सामंतो तप्पडिबद्धं च नयरमिणं ।। ५४९३ ।। तह वि हु तस्स समक्खं पि तिरियगइनयरिसंतिओ लोओ। निज्जइ विवक्खचरडेहि को वि कइया वि कत्तो वि॥५४९४ अस्संववहारपुरे दंसणमोहेण पुण तहा विहियं । पडिवक्खनाममेत्तं तत्थ जहा फुरइ न हु कह वि ।। ५४९५ ॥ जे वि हु आउयरायस्स नाम रायाइणो सुहविवाया । अणुयत्तेती सम्मइंसणमेसि पि तत्थ गमो ।। ५४९६ ।। रुट्ठो दंसणमोहेण जे उ मिच्छत्तयवयणपडिबद्धा । असुहविवागा तेसिं कओ विसेसेण संपसरो ।। ५४९७ ।। जे वि य चोद्दसभूयग्गामेसु वसंति पाडया केइ । एगिदियाइयाणं तेसु वि साहारणसरीरा ।। ५४९८ ।। अप्पज्जत्ता पज्जत्तगा य सव्वे तहा कया तेण । अस्संववहारपुरम्मि जारिसा केवलं तत्तो ।। ५४९९ ॥ अन्नत्थ वि जंत कयावि कम्मपरिणामरायदइयाए । के वि हु अकामनिज्जरदेवीए पेसिया संता ।। ५५०० ॥ जे उण पत्तेयतणू अप्पज्जत्तगगिहेसु वटुंति । ते वि हु दंसणमोहेण अत्तवसवत्तिणो विहिया ।। ५५०१ ।। जह एए तह बेइंदियाइ पाडयगया वि जे केइ । ते वि अपज्जत्तगगेहवत्तिणो एवमेव कया । ५५०२ ।। जे उण पज्जत्तगगेहवत्तियो तेसि केसु वि कया वि । सम्मत्तस्स वि होज्जा अणुप्पवेसो परं किंतु ॥ ५५०३ ।। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ सिरिचंदप्पहजिणचरियं अचिरट्ठाई एसो एगिदिय पाडगाइ एहितो । जम्हा दंसणमोहो निस्सारइ तं लहुं चेव ॥ ५५०४ ।। तहा हि - तह कह वि इमाण इमो दिदठी मोहं तमुवजणइ । सयमेव जह इमे हुति तस्स निव्वासगा सिग्धं ।। ५५०५ ।। पज्जत्तसन्निगामे पंचेंदियपाडयम्मि जे उ जणा । तम्मज्झे उण केई सम्मत्तेणं वसीकाउं ।। ५५०६ ॥ पेक्खंतस्स वि दंसणमोहस्स विवेगसेलदुग्गम्मि । निजंति जइ ण नयरं सुबोहरायस्स आणाए ॥ ५५०७ ।। तत्तो पुणो वि केई मिच्छईसणअमच्चबुद्धीए । वेलविया पुव्विल्लाई चेव ठाणाई समुवेति ।। ५५०८ ॥ अन्ने सुबोहराएण थिरयरा तत्थ चेव संविहिया । चारित्तधम्मरायस्स किं पि आणाए धरिऊण ।। ५५०९ ।। केइ वि सम्मइंसणअमच्चवसवत्तिणो कया तत्थ । देवगइपुरवरीए जंति तओ तप्पभावेण ॥ ५५१० ।। सम्मत्तमंतिबहुमयठिईए वसिऊण तत्थ चिरकालं । माणुसनयरिं पत्ता वच्चंति पुणो वि जइण पुरं ।। ५५११ ॥ तत्थ य सुबोहरायाणाए चारित्तधम्मरायस्स । निम्भिच्चावरमिच्चा होउं पाविंति सिवनियरिं ॥ ५५१२ ।। सा य अगम्मा सव्वस्स चेव सिरिमोहरायसेन्नस्स । चिंतइ दंसणमोहो तओ अहो विसममावडियं ॥ ५५१३ ।। मह पुत्तेणं एए पक्खित्ता सिवपुरीए नेऊण । न य तत्थम्ह पवेसो अवालणिज्जा अओ एए ॥ ५५१४ ॥ ता एयाणं ठाणं अस्संववहारपुरवराहिंतो । अण्णे वि आणिऊणं पूरेमि पउस्स आणाए ॥ ५५१५ ।। मह रूसइ चुल्लपिया न जेण इय चिंतिउं तहा कुणइ । तं वुत्तंतं नाउं आउयपालो वि चिंतेइ ॥ ५५१६ ।। मह भाउसुओ सोहणमणुट्ठए जं इमाइं ठाणाई । नरवइसुन्नाई इमो अन्नत्थ गएसु वि जणेसु ॥ ५५१७ ।। एत्थंतरम्मि दंसणमोहो वि हु आउरायपासम्मि । आगंतूण सपणयं जंपइ विणओणओ एवं ।। ५५१८ ॥ जो एस तायपुत्तो जाओ सम्मत्तनामगो मज्झ । अच्चंतं पडिणीओ न अम्ह सो मण्णए आणं ।। ५५१९ ।। न गणइ पियामहस्स वि वयणं अम्हं विवक्खलोएण । संघरिऊण व्वासइ ठाणाई एस खुद्दमणो ।। ५५२० ।। तुम्ह वि नावेक्खमिमो करेइ बलिए सुबोहरायम्मि । अइ आसत्तो अम्हे सव्वे वि तणं व मन्नेइ ।। ५५२१ ।। एवं च किं करेमो पभणह दुप्पुत्तयस्स तस्सऽम्हे । निययकुलधूमकेउस्स सत्तुसंसंगनट्ठस्स ।। ५५२२ ॥ केवलमम्हजणं सो नेउं जं कुणइ सुन्नयं ठाणं । अस्संववहारपुरओ तत्थ अन्नं निवेसामो ॥ ५५२३ ।। तम्मि असंभारजणो वसइ जओ तेण थेवजणगहणे । न हु मोयरायपायाण किं पि अवरज्झिमो अम्हे ।। ५५२४ ॥ नियपहु पारेमो जं आणेउं तयन्न वालेमो । अन्नं च तुम्ह सीसइ पत्थावसमागयं वयणं ।। ५५२५ ॥ नरयगइमाइयासुं नयरीसु नराहिवा तए ठविया । नरयाउपालमाई पयंडदंडा महा सुहडा ॥ ५५२६ ।। ते वि न नियनगरीसुं पारिति निवारिउं तयं कह वि । पेच्छंताणं ताणं तव्वासिजणं जओ किंचि ॥ ५५२७ ।। कारइ सो नियआणं मणुयगाई एउ सव्वहा गहिउं । जइण पुरं पविसेई सुबोहरायस्स कुणइ वसे ।। ५५२८ ।। चारित्तधम्मरायस्स सो वि अप्पइ तओ सिवपुरं च । निज्जइ तेणं तत्तो अवालणिज्जो हवइ सो वि ॥ ५५२९ ।। तो तह तेसिं देया सिक्खा तह तारिसा सहाया वि । एएसिमप्पियव्वा जह दिति न तस्स अवयासं ।। ५५३० ।। Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखलियपयावपसरनिवकहा अन्नं च तुम्ह कडए सुहडा साओदयाइया के वि । जे सुहपयडिसरूवा चिट्ठेति न ते वि तुम्ह वसे || ५५३१ ।। जहा सम्मत्तस्सेवते व अणुयत्तणं बहुं कुणंति । ता भिन्नभेय कडयम्मि केरिसी कीरउ जयासा ।। ५५३२ ।। जे उण नाणावरणाइरायलोया न तेसिं वभिचारो। दीसइ मणं पि मिच्छत्तवसगया जेण ते सव्वे ॥ ५५३३ ।। तहा हि नाणंतरायदसगं दंसणनवगं च मोहच्छव्वीसा । नामस्स चउत्तीसा नरयाउ असाय नीया य ॥ ५५३४ ॥ एए पोया सीय विमिच्छत्ता सव्ववसगया पायं । तुम्हम्ह पक्खमेए पासंति सया वि एक्कमणो ॥ ५५३५ ।। ता किं बहुणा भणिएण एत्थ लोयं विपक्खचरडेहिं । निज्जंतं रक्खावेह जह तहा कुणह जत्त त्ति ॥ ५५३६ ॥ इ भाउतणयवयणं सुणिऊणं मुनिउणं समग्गेवि । नरयाउपालमाई आहविऊणं भणइ एवं ॥ ५५३७ ॥ भो भो निययपुरेसुं सम्मत्तपवेसरक्खणं कुणह । सम्मत्तस्स पवेसे फिट्टिहइ जओ जणो अहं ॥ ५५३८ ।। ते बिंति देव ! अम्हा किं करिमो तेण अम्ह कडयाइं । सव्वाणि व बद्धाई तंबेण व लोहभंडाई || ५५३९ ।। परिकम्मं नो तेसिं वहइ तओ भाइ अओ बालो वि । दंसणमोहेणं चिय सव्वमिणं साहियं मज्झ || ५५४० || ताजारिया वाया वायंती ओलवा वि तारिसया । दिज्जंति जेण पयडं न सुयं तुब्भेहिं किं वयणं ॥ ५५४१ ॥ नरयाउयपालाईण तो सहाया भवित्तु सव्वे वि । भो भो अस्सायाई सुहडा नरयाइ नयरीसु ।। ५५४२ ।। जेसिंति केइ लोया ते केइ भएण केइ लोभेण । केई सम्माणेणं गहिऊणं कुणह तह तुब्भे || ५५४३ || जह अन्नत्थ न वच्चंति तेहिं भणियं जहम्ह आएसं । तुम्हे देह तह च्चिय काहामो तयणु तिगिलिओ ।। ५५४४ ।। काउं चरणपणामं विणणं आउपालदेवस्स । अह तस्स समुदएणं नियनिय नयरीसु वच्चति ।। ५५४५ ।। अस्सायपमुहसुहडा य आउरायस्स चेव भाउसुया । वेयणियमाइयाणं जेण इमे हुंति अंगरुहा || ५५४६ || तहा हि - I वेणुभूई भज्जा तीए य साय- अस्साय । दो पुत्ता संजाया नामस्स य परिपालइ कलत्तं ॥ ५५४७ ॥ तस्स वि सुभासुभा वन्नगंधरसफासमाइणो तणया । उप्पत्ती भज्जाए गोयस्स य उच्चनीयसुया ।। ५५४८ ।। वेणियाsहिं इमे य अप्पिया आउपालदेवस्स । तेण य नियपुत्ताणं कया सहाया इमे सव्वे ॥ ५५४९ ॥ अस्सायनीयगोयासुहनामप्पमुहकडजुओ तत्थ । नरयाउपालदेवो रयणाइसु निययनयरीसु ।। ५५५० ॥ तव्वासिजणस्साउट्ठिईए, चिंतं करेइ ताव जओ । हडिपक्खेवसरिच्छा एसा अच्चंतदुल्लंघा ॥ ५५५१ ।। रयणा जहन्नेण वि वाससहस्साइं दसठिई विहिया । उक्कोसओ उ सागरमेगं तो चिंतइ पुणो वि ।। ५५५२ ।। एसा पढमपुरीए थोव च्चिय ताव सेस नयरीसु । अहिययरिं विरएमो एयंतो सक्करपहाए ।। ५५५३ ।। तिन्नेव सागराई उक्कोसेणं जहन्नओ एगं । उयहिसरिनामयं होउ जो उ वालुयपहानयरी ।। ५५५४ ॥ तइयाए तीए तिन्नेव सागराई जहन्नओ हुतु । उक्कोसेणं सत्तउ जाइ चउत्थीउ पंकपहा ।। ५५५५ ॥ दससागराई तीए उक्कोसेणं जहन्नओ सत्त । धूमप्पहाउ जा पंचमी तहिं दस जहन्नेणं ॥ ५५५६ ॥ १७७ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं उक्कोसेणं सत्तर हुंति सागरसमाणनामाई । छट्ठीए तमपहाए सत्तरस जहन्नओ चेव ।। ५५५७ ।। बावीसं उक्कोसेण जाओ तमतमपहाओ सत्तमिया । बावीसई जहन्नेण तत्थ तेत्तीस उक्कोसा ।। ५५५८ ।। तत्तो वि उवरि न तरइ समयं पि समग्गलं विहेउं तो । एत्तियमेवाउ ठिझं काऊण ठिओ इमो तत्थ ।। ५५५९ ।। एयासु य नयरीसुं सत्तमनयरीए नामराएण। दो चेव पओलीओ कयाउ निग्गमपवेसत्थं ।। ५५६० ।। नरयतिरियाणुपुव्वी उ ताण नामाई तत्थ प्रढमाए । होइ पवेसो च्चिय निग्गमो य बीयाइ सयकालं ॥ ५५६१ ॥ एक्केक्क पओलीए दुगं पि नो लब्भए तहिं काउं । सिरिनामरायसुहडेहिं तो अच्चतरुद्देहिं ॥ ५५६२ ।। आयरिऊणं जम्हा तिरिमणुयगई महापुरीहिंतो । नरयाणुपुव्वियाए लोया खिप्पंति ते इहइं || ५५६३ ॥ तिरियाणुपुव्वियाए बीयपओलीए जे य एहिंति । निक्कालिज्जंति इओ ते तिरियगईए खिप्पंति ।। ५५६४ ॥ रयणप्पहाइयाओ च्छन्नयरीओ उ जाओ तासु पुणो । नरयतिरिमणुयअणुपुव्विनामियाओ पओलीओ ।। ५५६५ ।। पत्तेयं तिन्नि च्चिय तासु वि नरयाणुपुव्विनामाए । पुव्विं व पवेसो च्चिय दोहि य इयराहिं निक्कासो || ५५६६ || तत्थ वि जो जन्नयरीं निज्जिहीइ तस्स तयणुपुव्वीए । निक्कासो नयरीए कीरइ नामस्स सुहडेहिं ।। ५५६७ ।। रयणपहानयरीए, अन्नाइं वि संति अंतरपुराई । भवणवइवंतराणं देवगइपुरी अणुगाई || ५५६८ || तीए जओ बाहल्लं जोयणलक्खं असीइ अहिययरं । तत्थ य हेट्ठोवरि सहस्समेक्कमेक्कं च मोत्तूण ।। ५५६९ ।। भवणवईणं भवणाई संति वंतरसुराण पुण पढमे । उवरिल्ल च्चिय सहसे जोयणसयमुवरि हेट्ठा य ।। ५५७० ।। एक्केक्कं मोत्तूणं अट्ठसु मज्झिल्ल जोयणसएसु । भोमाई नगराई चिट्ठती महंति रम्माई || ५५७१ | एएसु य सव्वेसु वि हुंति पओलीओ तिन्नि तिन्नेव । नवरं तइया देवाणुपुव्विनाम त्ति नायव्वा ॥ ५५७२ ।। ती य पवेसो च्चिय मणुस्सतिरियाणुपुव्वियाहिं पुणो । नियनियगईसु वच्चंतयाण निक्कासणं चेव || ५५७३ || भवणवइवंतराणं आउयचिंता सुराउ पालाण | दोन्ह वि जहन्नओ दसवाससहस्साई विहियाई ।। ५५७४ ।। उक्कोसेणं भवणाहिवाण उत्तरदिसाइ मेरुस्स । जो बलिनामो सामी सागरमहियं ठिई तस्स || ५५७५ ।। दाहिणदिसा चमरो जो तस्स उ सागरोवमं एक्कं । सामन्नेणं दाहिणदिसाइ पलिओवमं सड्ढं ॥ ५५७६ ॥ उत्तरदिसिट्ठियाण उ दो देसूणाई हुति पलियाई । भवणवईणं एवं वंतरदेवाण पुण पलियं ॥ ५५७७ ॥ रयणपहाए जइ वि हु इमाई अंतरपुराई निवसंती । तह वि हु सुराउरायस्स आउ दाणा इह पहुत्तं ॥ ५५७८ ।। जेवि असायप्पमुहा साहेज्ज कए समागया तत्थ । नरयाउपालदेवस्स निययजणयाइ वयणेहिं ॥ ५५७९ ।। ते वि नियसत्तिसरिसं नरयगईलोयभेसणट्ठाए । पवियंभिउमाढत्ता निक्करुणं जह तहा सुणह ।। ५५८० ॥ परमाहम्मिय असुरा मिच्छादंसण अमच्च परिगहिया । चारित्तमोहपुत्तयकसाय तस्स हयराणुगया ।। ५५८१ ।। देवगइवरपुरीए पडिबद्धेसुं पुरेसु जे संति । भवणवइ भवणनामेसु रयणनयरीए मज्झे वि || ५५८२ ॥ वावारिऊण ते खलु असायउदओ महाभडो ताव । रयणाई नयरीसुं आइल्लासुं तिसु जणस्स || ५५८३ || च्छेयणभेयणकरवत्तफालणाई तहा करावेइ । जह तद्दुक्खेण अइदुत्थियस्स न सुहं खणद्धं पि ॥ ५५८४ | १७८ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखलियपयावपसरनिवकहा १७९ न य एत्तिएण वि ठिओ पुणो वि अन्नोन्नमवसरं जणियं । दुक्खुद्दीरणमन्नोन्नमेव तं चिय करावेइ ।। ५५८५ ॥ तह ठाण सहावकयं पि उवदंसियं दुहं तस्स । अग्गेयणीसु तिसु पुण दोन्नि वि गरुयाई दुक्खाई ॥ ५५८६ ॥ परमाहम्मियअसुराण जेण परओ न अत्थि खलु गमणं । सत्तमपुरीए जं पुण तं ठाणकयं पि अइघोरं ।। ५५८७ ॥ जं वज्जकंटयाणं मज्झम्मि समंतओ महाविसमे । कीरइ तत्थुप्पाओ जणस्स अस्सायसुहडेण ।। ५५८८ ॥ एवं च तस्स तारिस असायपरिपीडियस्स लोयस्स । सुहवन्ता वि न वट्टइ किं पुण अन्नत्थ गमणकहा ।। ५५८९ ।। नरयाउवालविरइयआउक्खए होज्ज अन्नहिं गमणं । तस्स जणस्स तहा वि हु असायमाई तमणु जंति ॥ ५५९० ॥ नरतिरिगइनयरीसुं दोसु च्चिय जेण निज्जई एसो । सिरिनामरायसुहडेहिं तेण तत्थ वि असायाई ।। ५५९१ ।। जे असुहवन्नरसगंधफासनामा य नामरायस्स । पुत्ता समागया नरयआउराजस्स साहेज्जे ।। ५५९२ ।। वन्नरसगंधफासा तेहिं वि अहातहा कया तस्स । वीभच्छयाए जह तेसिमप्पणो वि हु महातासो ॥ ५५९३ ।। नीयागोओ उदएणं नीयागोयं पि तह कयं ताण । आउप्पत्तीउ च्चिय धिक्कारहया सया वि जहा ।। ५५९४ ।। तिरियाउपालदेवो एवं तिरियगइनिययनयरीए । पडिबद्धेसुं चोद्दससु भूयगामेसु गंतूण ।। ५५९५ ॥ सहिओ असायनीयागोयासहनामपमहसहडेहिं । एगिदियाइपाडयपुढवीकायाइगेहेस ।। ५५९६ ॥ जे केइ संति लोया तेसिं चिंतइ भवट्ठिई कालं । कायट्ठिइकालं सह तट्ठाणासुन्नकरणत्थं ॥ ५५९७ ।। पुढवीकायगिहत्थाण तत्थ बावीसई सहस्साई । वासाणं उक्कोसेण होइ कालो भवट्ठिईए ॥ ५५९८ ॥ आउक्काए सत्त उ तिन्नि सहस्साउ वाउकायम्मि । दसवाससहस्साउण पत्तेयतरूण उक्कोसो।। ५५९९ ।। तेउक्काए राइंदियाणि तिन्नेव एवमेसाओ। भवट्ठीइ एगिदियपाडयम्मि बेइंदियाण पुणो ॥ ५६०० ।। वासाई दुवालस तिदियाण एगूणवन्नदियहाई । चउरिदियाण छ च्चिय मासा पंचेंदियाण पुणो ॥ ५६०१ ।। संमच्छिमाण कोडीपव्वाणं गब्भयाण पण तिन्नि । पलियाई जहन्नेणं अंतमहत्तं तु सव्वेसिं ॥ ५६०२ ।। जे उ अणंतवणस्सइकाए तेसिं जहन्नमुक्कोसं । अंतोमुहुत्तमेव य एवं एसा भवट्ठिईओ ॥ ५६०३ ।। कायठिई कालो जो य मोहरायाओ कारिओ ताण । तं साहेमो एत्तो उवउत्ता भो निसामेह ॥ ५६०४ ॥ अस्संखोसप्पिणिसप्पिणिओ काएसु चउसु वि कमेण । ताओ चेव वणस्सइकाए णंताओ नायव्वा ।। ५६०५ ॥ वाससहस्सा संखेज्जया उ बेइंदियाइसु हवंति । अद्वैव भवग्गहणाई हुंति पंचिंदिएसु पुणो ॥ ५६०६ ।। एवं भवट्ठिईए कायठिईए य ते निरंभेउं । दुक्खुडुयाए रूवे कारवइ असायमाईहिं ।। ५६०७ ॥ अइमुच्छियचेयन्ना जइ वि हु एगिदिया न वेयंति । दुक्खं सुहं अओ च्चिय भणिया ते अप्पवेयणिया ॥ ५६०८ ।। तह वि हु बायरकाए च्छेयणभेयणविलुंचणाईहिं । गम्मइ असायउदओ वि सोसपडणाइदंसणओ ॥ ५६०९ ॥ बेइंदियाइयाणं पुण अमणाणं पि किंचि सो अहिओ । बहुबहुयरभावाओ चेयन्नगुणस्स विन्नेओ ॥ ५६१० ।। एवं असुहा वन्नाइया वि पाएण बायरे काए । कत्थ वि सुहा वि दीसंति अगरुकप्पूरमाईसु ॥ ५६११ ॥ नीयगोयस्सुदओ सव्वाए चेव तिरियजाईए । नीयागोएण कओ अप्पबहुत्तेण य विसेसो ॥ ५६१२ ।। १४ Jain Education international Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं (८० मणुयगई नयरीए एवं मणुयाउपालदेवो वि । सायासायाइ पभूयसुहडसंपत्तसाहेज्जो ॥ ५६१३ ।। गब्भुप्पन्नमणूसाण कुणइ आउट्ठिई जहन्नेण । अंतोमुहुत्तमुक्कोसओ उ पलिओवमे तिन्नि ।। ५६१४ ।। कायठिई पुण एत्थ वि अट्ठभवग्गहणपरिमियं चेव । तत्तो असायउदयाओ विविहपीडा उ कारवई ।। ५६१५ ॥ इट्ठविओगाणिट्ठप्पओगजणियाइ जेण दुक्खाई । सारीरमाणसाई मणुयाण असायउदएण ॥ ५६१६ ।। साओदयाइहिंतो केइ वि सोक्खाई अणुहवावेई । नीयागोयाईहिं उ नीयागोयत्तणाइ पुणो ॥ ५६१७ ।। साओदयाइणो नवरमेत्थ सुकयाहियाण केसि पि । इयरुदया पुण इयराण हुंति पाएण निच्चं पि ॥ ५६१८ ।। जे वि हु सम्मुच्छिमया मणुधा तेसिं सया वि असुहुदया। आउं जहन्नमुक्कोसगं च अंतोमुहुत्तं ति ।। ५६१९ ॥ एएसिं उभएसि पि जाउ नयरी तहिं पओलीओ। पंचनरयाणुपुव्वीमाईओ सिवपओलीए ॥ ५६२० ॥ मणुयाणुपुब्वियाए तासु पवेसो विणिग्गमो दो वि । लब्भंती इयराहि उ विणिग्गमो चेव न पवेसो ॥ ५६२१ ।। जा उण सिवप्पओली पिहियं चिय तीए दाणमणवरयं । न हु को वि सो वि तीए लहेइ निक्कासमवि काउं ॥ ५६२२ जे च्चिय सबोहनरवइबलेण सम्मत्तमंतिसंजत्तो । पाविय मणस्सगइपरिनिविटठपज्जत्तगिहिवासो ॥ ५६२३ ।। जइणपुरमज्झवत्ती होऊणुल्लसियजीवनियविरिओ। चारित्तधम्मसामंतदिन्नअइगरुयसाहेज्जो ।। ५६२४ ।। सिवनयरिं गंतुमणो निद्धाडियसयलमोहरायबलो । होउं केवललच्छीए भायणं जणियजणचोज्जो ॥ ५६२५ ॥ सो च्चिय आउनरिंदं पिहणियनामाइ सुहडग्णसहियं । उग्घाडिऊण वच्चइ सिवप्पओलीए सिवनयरिं ।। ५६२६ ॥ एत्तो चिय एसा संतिया विमग्गं पि लहइ जं न लहुं । (..........) इमीए अन्नो जणो कोइ ।। ५६२७ ।। रयणप्पहाए उवरिल्ल पयरभूमीए रज्जुमाणाए । एसा मणुस्सगइपुरवरी य संचिट्ठइ निविट्ठा ।। ५६२८ ॥ पणयालीसं जोयणलक्खमाणं इमीए नायव्वं । आयामवित्थरेहिं पायारो माणुसनगो य ॥ ५६२९ ।। तिरिगईनयरी उण रज्जुपमाणा तहिं पओलीओ। तासु य तिरियाणुपुव्वीए (..........) ।। ५६३० ।। निक्कासो य पवेसो य होइ इयराहि निग्गमो चेव । लहु पारियाओ नयरीसु संति अवराओ वि बहूओ ।। ५६३१ ॥ देवगईनयरीए राया देवाउपालनामो वि । देवाणं तह चेव य आउठिईए कुणइ चिंतं ।। ५६३२ ।। भवणाहिववंतरजोइसाण वेमाणियाण तह चेव । चउरो तत्थ निकाया वसंति पाएण सुहकलिया ॥ ५६३३ ॥ असुरा नागा विज्जू सुवन्नअग्गीयवाउथणिया य । उदहीदीवदिसा वि य आइल्ला दसविहा ताव ॥ ५६३४ ।। भूयपिसाया जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा । मह उरगा गंधव्वा वंतरदेवा य अट्ठविहा ।। ५६३५ ।। उभएसिं पि इमेसिं आउट्ठिइ चिंतणं कयं चेव । उक्कोसजहन्नगयं रयणप्पहनयरिपत्थावे ॥ ५६३६ ।। चंदाइच्चा गहरिक्खतारया जोइसा उ पंचविहा । चंदाण तत्थ पलियं अब्भहियं वासलक्खेण ।। ५६३७ ।। आइच्चाणं तं चिय वाससहस्साहियं गहाणं तु । संपुन्नमेव पलियं नक्खत्ताणं च तस्सद्धं ।। ५६३८ ।। ताराण चउन्भागो पलियस्स जहन्नओ उ विन्नेओ । तस्सेव अट्ठ भाओ आउयचिंताइ कुसलेहिं ।। ५६३९ ।। तेसिं पुरा वासाणं हेट्ठिल्लतलो नहम्मि रयणाए । समभागाओ सत्तहि नउएहिं जोयणसएहिं ।। ५६४० ।। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अखलियपयावपसरनिवकहा १८१ अट्ठहि सएहिं सूरो चंदो असिएहिं अट्ठहिं सएहिं । उवरिमतलं च जोयणसएहिं नवहिं भवे ताण ॥ ५६४१ ॥ सड्ढाए रज्जूए तदुवरि वेमाणिया सुरा हुंति । सोहम्माइदुवालस कप्पेसुं कप्पसंपन्ना ॥ ५६४२ ॥ कप्पाईया नवसु य गेवेज्जेसुं अणुत्तरेसुं च । पंचसु पवरविमाणेसु हुंति सययं सुहेक्कनिहा ।। ५६४३ ।। तेसु य जहन्नमाउं सोहम्मे पलियमेक्कमुवरइयं । दो सागरोवमाई उक्कोसेणं तु तत्थ ट्ठिई ।। ५६४४ ।। ईसाणे वि हु एवं दोसु वि ठाणेसु नवरमहियत्तं । कप्पे सणंकुमारे जहन्नओ दोन्नि अयराई ॥ ५६४५ ॥ उक्कोसेणं सत्तउ माहिन्दे ताई दो वि अहियाई । सत्तेव बंभलोए जहन्नमियरं च दस ताई ।। ५६४६ ।। दस चेव जहन्नेणं लंतयकप्पम्मि चउदसुक्कोसा । सुक्के जहन्नओ चोद्दसेव सत्तरस उक्कोसा ।। ५६४७ ।। सत्तरस सहस्सारे जहन्नओ अट्ठदस उ उक्कोसा । अट्ठारसेव आणयकप्पम्मि जहन्नओ इंति ॥ ५६४८ ॥ उक्कोसेणं पुण तत्थ चेव एकूणविंसई होइ । पाणयकप्पे स च्चिय जहन्नओ विसई अयरा ।। ५६४९ ॥ एवं विंस जहन्ना उक्कोसा आरणम्मि इगवीसा । स च्चिय जहन्नमच्चुयकप्पे बावीस उक्कोसा ।। ५६५० ।। हेट्ठिल्लुक्कोसठिई एवं उवरुवरि होइ हु जहन्ना । उक्कोसेणेगुत्तरवुड्ढी नव जाव गेवेज्जा ॥ ५६५१ ॥ विजयाइसु चउसु पुणो इगतीस जहन्नओ वि अयराई । उक्कोसेण उ तेत्तीस हंति सव्वट्ठसिद्धे उ ॥ ५६५२ ॥ अजहन्नाणुक्कोसा तेत्तीसं सागरोवमाई सया। एत्तो उड्ढं अहियं पि व ट्ठिउं सक्कइ न को वि ।। ५६५३ ।। देवाउपालराएण एवमेसा ठिई कया ताव । अस्सायोदयपुमुहा वि तत्थ पयडंति नियसत्तिं ॥ ५६५४ ॥ चउसु वि देव निकाएसु जेण इंदाणणो सुरादसहा ।। जं संति केइ सुरजम्मपत्तसोक्खाहिमाणधणा ।। ५६५५ ॥ ईसाविसायमयकोहलोभपमुहेण मोहकडएण । तेसु वि जगडिज्जंतेसु जणइ दुक्खं असायभडो ॥ ५६५६ ।। तहा हि - परआणा करणेणं कस्स वि कस्स वि य परिभवभरेण । कस्स वि नियपरियणआणखंडणेणं च दुसहेण ।। ५६५७ ।। कस्स वि भवणं दठूण अत्तणो गब्भवासपडणं च । उप्पायइ गुरुदुक्खं लद्धवयासो असायभडो ।। ५६५८ ॥ जे उण नव गेवेज्जेसु संति पाएण तेसिमणवरयं । अहमिंदत्तेणं चिय जणेइ साओदओ सोक्खं ॥ ५६५९ ।। चारित्तधम्मरायस्स चेव आणाइ एत्थ य पवेसो । देवाणुपुब्विनामाइ नवरि लब्भइ पओलीए ।। ५६६० ।। मणुयाणुपुव्विनामा बीयपओली वि अत्थि एत्थ परं । तीए विणिग्गमो च्चिय न पवेसो होइ कस्सा वि ॥ ५६६१ ।। एवं च जइ वि मिच्छत्तमंतिवसवत्तिणो वि इह संति । जइणपुरवासरहियाण तह वि ताणं न हु पवेसो ॥ ५६६२ ।। जं जइणपुरे वसिउं भावविहीणा वि तह पवज्जेउं । चारित्तधम्मरायस्स आणमिह इंति न हु इहरा ॥ ५६६३ ।। जे पुण सुबोहरायस्स चेव वसवत्तिणो कया पुट्विं । सम्मत्तअमच्चेणं जइणपुरे वासिऊण चिरं ।। ५६६४ ॥ चारित्तधम्मराएण संगया तयणु हुंति भावेण । तेसिं सम्मत्तजुयाण तत्थ को वारइ पवेसं ॥ ५६६५ ॥ साओदओ वि तेसिं जणइ सुहं केवलं ठिइखएणं । तत्तो निव्वासेउं ते नरनयरीए खिप्पंति ॥ ५६६६ ।। पंचोत्तरपवरविमाणवासिणो जे य संति ताणं पुणो। मिच्छत्तअमच्चेणं संगो न हु होइ कइया वि ॥ ५६६७ ।। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं एत्तो च्चिय ते सम्मत्तमंतिसंजोइएहिं भावेहिं । एगंतेण सुहोदयरूवेहिं जहिं सया सुहिणो ।। ५६६८ ॥ केवलमेएसिं पि हु चिरकालाओ वि ठिइखओ होइ । तेण य खिप्पंति इमे वि माणुसी गब्भवासम्मि ।। ५६६९ ॥ तत्थ य असायसुहडो पुव्वमलद्धावयासमरिसेण । लद्धंतरो वियंभिउमाढत्तो किं पि अच्चन्तं ।। ५६७० ।। एत्थंतरम्मि सम्मत्तमंतिसु पउत्तसुद्धभावेहिं । तेसिमसायप्पसरो पायं पडिहम्मइ पभूओ ।। ५६७१ ।। विजयाईएहितो जओ चुया हुति के वि तित्थयरा । के वि पुण चक्कवट्टी अच्चंतमुइन्न पुन्नभरा ॥ ५६७२ ।। जे वि हु सामन्ननरा तओ चुया के वि हुंति ते वि दढं । अच्चग्गलसुहकलिया पायं एक्कावयाराई ॥ ५६७३ ॥ सव्वट्ठसिद्धिनामाओ जे पुणो इंति वरविमाणाओ। एगावयारभावे तेसिमिह निच्छओ चेव ॥ ५६७४ ।। सोक्खं चिय तेसिमओ दुहं तु सक्कररसालुदुद्धजुए । थालम्मि सूइमुहखित्तनिंबरसबिंदुसायसमं ॥ ५६७५ ।। कडयम्मि मोहरायस्स किं च जे संति के वि वरसुहडा । थेवो च्चिय अवयासो तेसि पि अणुत्तरसुरेसु ॥ ५६७६ ॥ जे उण सुबोहनरवइवसंगयाचरणधम्मरायस्स । आणाए वट्टित्ता संपत्ता सिवगइपुरीए ।। ५६७७ ।। तेसिं न दुक्खलेसो वि होइ कइया वि कह वि कत्तो वि । न य तत्तो वि णियत्ती वि ताण केणावि कीरइ य ।। ५६७८ जम्हा य कम्मपरिणामरायसेन्नस्स तत्थ अवयासो । थेवो वि अत्थि दड्ढे बीए इव अंकुरुप्पाओ ॥ ५६७९ ।। चउसु वि गइनयरीसुं एवं च सुहं न अत्थि संसारे । मोत्तूण सिवगइपुरिं जीवाणं सोक्खकामाणं ॥ ५६८० ॥ भो भो भव्वा ! ता जइ इच्छह तुब्भे वि सोक्खमणवरयं । सम्मत्तमहामंती ता जं कारवइ तं कुणह ।। ५६८१ ।। सो च्चिय सुबोहरायस्स कुणइ वसवत्तिणं जओ जीवं । चारित्तधम्मरायस्स तह य अप्पेइ सो चेव ।। ५६८२ ।। चारित्तधम्मराओ वि तं ससेन्नस्स नायगं काउं । कम्मपरिणामनरवइकडयं गंजावई तत्तो ।। ५६८३ ॥ देइ य निम्मलकेवलजयप्पडायं इमस्स सो तुट्ठो। सिवनयरिं च पवेसइ तम्मि समग्गे वि निहयम्मि ।। ५६८४ ॥ एगंतसोक्खट्ठाणं एवं सो होइ तत्थ संपत्तो । सारीरमाणसेहिं विवज्जिओ सयलदुक्खेहिं ।। ५६८५ ॥ एवं जे केइ सत्ता मह वयणमिणं भावओ भाविऊणं । उच्छिदिस्संति गाढामरिसवसगया कम्मरायस्स सेन्नं । सम्मत्तामच्चसेवा उवचिणिय सुबोहाइ रायप्पसाया। होहिति ते हु एत्थं अमलिणजसदेविंदपुज्जा जयम्मि ।। ५६८६ ॥ इइ चंदप्पहचरिए जसदेवंकम्मि नवम पव्वम्मि । उद्दिट्ठवत्थुभणियं दसमं पभणामि एत्ताहे ।। ५६८७ ।। नवमं पव्वं सम्मत्तं (दसमो पव्वो) संगसमूसुयचित्ताइ मुत्तिलच्छीए पेसिया जस्स । दूइ व्व केवलसिरी तीए सरूवं पयासेइ ।। ५६८८ ॥ तं देहपहापसरंतवारिधाराहिं ताव हरणीहिं । पक्खालियपावमलं जणस्स चंदप्पहं वंदे ॥ ५६८९ ।। इय वयणं जयपहुणो पाउं सवणंजलीहिं अमयं व । पावविसवेयमुक्का जाया सयला वि सा परिसा ॥ ५६९० ॥ अह तम्मि खणे संसारसायरं भाविऊण दुहकुहरं । नित्थरिउमणा नावं व केइ गिण्हंति जिणदिक्खं ।। ५६९१ ।। अवरे जिणप्पउत्तम्मि रज्जुदंडे व्व पारसगुणम्मि । भवअंधकूवपडिया सावगधम्मम्मि लग्गति ।। ५६९२ ।। Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३ चंदप्पहजिणवण्णणं मिच्छत्ततिमिरमेवं पणासयं तेण भव्वकुमुयाण । पडिबोहो जिणचंदेण तेण उप्पाइओ झ त्ति ॥ ५६९३ ।। जइ वि न रुद्दसहावो तह वि सिवालिंगियस्स से तइया । विणयधणा संजाया वरगणवइणो गणे बहवे ॥ ५६९४ ।। एवं चउगइदारप्पवेसपरिहेण भव्वजीवाण । चउभेयमहव्वयरयणदायगेणं मुणिगणाण ।। ५६९५ ॥ चउविहकसायवणसंडदावजलणेण सयललोयस्स । चउविहधम्मकहा सुहमयंकेण परिसाए ।। ५६९६ ।। चउविहसुरगणलोयणभसलोलिनिवासचरणकमलेण । चउदिसविसालपंजरनिवासिजसरायहंसेण ॥ ५६९७ ।। चउमुहसीहासणसंठिएण चउदेहधारिणो तेण । चउरूवसमणसंघो संघडिओ पढमओसरणे ॥ ५६९८ ॥ एत्थंतरम्मि चंदाणणाइ नयरीए राउलाहिंतो । वज्जिरबहलाउज्जो गिज्जतो मंगलसएहिं ।। ५६९९ ।। एइ बली दुप्पलिखंडियाण बलवंततरुणिछडियाण । आढयपमाणकालोवमाण छक्खंडफुरियाण ॥ ५७०० ।। वरकमलतंडुलाणं निक्खित्ताणं सुवन्नथालम्मि । नच्चंतवरविलासिणिसत्थेणऽणुगम्ममाणाण ।। ५७०१ ।। पविसइ स पुव्वदारेण जाव एसो बली समोसरणे । भयवं पि धम्मदेसणकरणाओ ताव उवरमइ ॥ ५७०२ ।। देवा वि तत्थ गंधे खिवंति अच्चंतमणहरे तत्तो । सह पंचवण्णकुसुमेहिं गंधलुब्भंतभसलेहिं ।। ५७०३ ।। दावेऊण पयाहिणतिगं च तं जिणवरस्स तो पुरओ। विक्खिरइ तिन्नि वाराओ चंदराया सहत्थेण ।। ५७०४ ।। समुचियठाणनिवासं इच्छइ सव्वो वि एत्थ तेणेव । अक्खयठाणजिगीसाइ अक्खया गयणमुप्पइया ।। ५७०५ ।। जिणसेवागयसुरगणविसेससंकिण्णमच्चलोयाओ। जिणजसरासी अक्खयरासिमिसा जाइ सुरलोयं ।। ५७०६ ।। भूमीए अपत्तं चिय देवा गिण्हंति तस्स अद्धं च । भूमिगयद्धद्धं पुण रोया सेसं जणो लेइ ।। ५७०७ ।। एक्केक्कमवयवं जो पावइ सेस त्ति तं कलेऊण । सीसम्मि खिवइ से जेण सो हु सव्वामए हरइ ।। ५७०८ ॥ छम्मासब्भंतरओ अन्नो वाही य तप्पभावेण । कुप्पइ न कोवि नागो व्व नागदमणीप्पहयदप्पो ।। ५७०९ ।। सुरवइबाहुनिवेसियकरो य तो उठ्ठिऊण जिणनाहो । चलणो विनिवेसंतो सुरकयनवकणयकमलेसु ॥ ५७१० ।। रमणीयबीयपायारंतररइयम्मि देवछंदम्मि । संपत्तो वीसमिओ य तत्थ खेयावणयणत्थं ॥ ५७११ ।। एत्थंतरम्मि जेट्ठो गणहारी बीयपोरिसीए तहिं । सिरिचंदरायदावियमहरिहसीहासणनिविट्ठो ॥ ५७१२ ।। जह चेव जिणवरिंदो तहेव लोयाण देसणं कुणइ । संसयतिमिरविणासं वियरंतो दिवसनाहो व्व ॥ ५७१३ ।। केवलनाणुप्पत्तिं विणा वि साहइ असंखभवगहणे । न य अणइसओ जाणइ छउमत्थो एस भयवं ति ॥ ५७१४ ।। सव्वुक्कुसा सुयसंपयाओ जं गणहराण एत्तो उ । चोद्दसपुव्वी वि परे हवंति छट्ठाणवट्ठियाओ ।। ५७१५ ॥ अन्नं च अन्नलोएहितो एयाणणुत्तरा सव्वे । संघयणधिइबलाईगुणा पमोत्तूण तित्थयरं ।। ५७१६ ।। खीरासव महुआसवलद्धिजुया कोट्ठबुद्धिणो य इमे । संभिन्नसोयलद्धी पयाणुसारी य भयवंतो ।। ५७१७ ।। अन्नाहिं वि लद्धीहिं समन्निया किं च वन्निमो ताण । विहिणा जे सव्वगुणाण निम्मिया वासभवणं व ।। ५७१८ ।। जे जस्स जत्तिया खलु गणहारी हुंति तित्थनाहस्स । सव्वेसि ताणमेयं रूवं साहारणं नेयं ।। ५७१९ ।। आसन्नभव्वलोयाण एवमेसो वि देइ जिणदिक्खं । पडिबोहिऊण केसि पि सावगत्तं परेसिं च ।। ५७२० ।। Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ सिरिचंदप्पहजिणचरियं सम्मत्तमेत्तजोग्गाणन्नेसिं तत्तियं पयच्छेइ । तित्थयरवयणअणुवायगो त्ति संजायसद्धाण ॥ ५७२१ ।। गणहरकहणावि अओ सफल च्चिय भव्वभूमिगुणवसओ। वरतरुनिप्फत्ती इव अविहयफलजणणसामत्था ।। ५७२२ ।। एत्तो य सिद्धंतो खेयविणोयाइणो गुणा बहुया । गणहरकहणे भणिया तहा हि आवस्सए गाहा ।। ५७२३ ।। खेयविणोओ सीसगुणदीवणा पव्वओ उभयओ वि । सीसायरियकमो वि य गणहरकहणे गुणा हुंति ।। ५७२४ ॥ धम्मकहा अवसाणे गणहारी वि हु तओ समुढेइ । एवं तित्थपवत्ती जिणस्स पढमल्लुया जाया ॥ ५७२५ ।। तत्तो य सपरिवारो चउतीसाइसयसंजुओ भयवं । भवियारविंदपडिबोहदिणयरो विहरइ महीए ॥ ५७२६ ।। चउत्तीसअइसया जे तेसिं चउरो हवंति नायव्वा । जम्मसहभाविणो च्चिय जिणस्स ते वन्निमो ताव ॥ ५७२७ ।। रोगरयसेयवज्जियमच्चंतसुगंधिनिम्मलसुरुवं । देहं जिणस्स सग्गाउ नाइ अइवन्नमाभाइ ।। ५७२८ ।। उच्छिदिस्सइ पच्छा वि एस रागं ति चिंतिऊणं च । गोखीरनिभं जायं से रुहिर न विस्समंसं च ॥ ५७२९ ॥ आहारा नीहारा सामन्ना जइ वि सयललोयस्स । तह वि विसेसं से दंसिउं व अद्दिस्सयं पत्ता ।। ५७३० ।। फल्लुप्पलमालइमल्लियाइनीसेससुरहिकुसुमाण । जिणिउं व परिमलं से पसरइ सासो वि सुसुगंधो ।। ५७३१ ।। कम्मक्खइया जे पुण एक्कारस अइसया जिणिंदस्स । तेसिं पि किं पि पत्थावमागयं वन्नणं कुणमि ॥ ५७३२ ।। भयमच्छरअन्नोन्ना बाहा विवज्जिया जीवा । कोडिसयसहसमाणा वि जंति जं समवसरणम्मि ।। ५७३३ ।। खेत्ते जोयणमेत्ते वि तं पयासइ व तित्थनाहस्स । अणिमाइ महारिद्धीण संभवे केत्तियमिम त्ति ।। ५७३४ ।। (जुयलं) सुरमाणुसतिरियसभाणुजाइधम्मोवबोहयं वयणं । निक्कारिमोवयारित्तणं व साहेइ सामिस्स ॥ ५७३५ ।। पणुवीसजोयणाई चउद्दिसासु वि जिणिंददेहाओ । पुव्वुप्पन्ना वि जणस्स जंति रोगा जमुवसामं ।। ५७३६ ।। तं मन्ने अमयकरप्पहो त्ति नामस्स चेव भुवणम्मि । सव्ववणत्थं विलसिउमारद्धं से पभावेण ।। ५७३७ ।। (जुयल) जइ वि हु अनीइसंगो जणस्स हरिओ जिणेण थेवो वि । सो तह वि अणीइजुओ कओ अउव्वो हु पहुमहिमा ।। ५७३८ वइररिसहनाराए ठियमेयं जाणिऊण संघयणं । वइरं पहारभीयं च दूरमोसरइ भुवणाओ ।। ५७३९ ।। जायइ जयम्मि जं न वि जणस्स मारी जिणम्मि विहरंते । साहइ तं अमरणपयपयाणसत्तिं व जयपहुणो ।। ५७४० ।। अइवुट्ठि अणावुट्ठीओ हुंति नो जिणवरप्पभावाओ। तब्भत्तीए जलदेवयाहिं नावइ निसिद्धाओ ।। ५७४१ ।। जिणदसणबुद्धीए सोऊण वन्नवबहुगुणुप्पत्ति । दुब्भिक्खं पि पलायं भीयं समसद्दछलियं च ।। ५७४२ ।। भयवंतं भयवंतं दठूण व हयरुजाइसामत्थं । भयभीओ डमराडंबरो वि दूरं गओ झ त्ति ।। ५७४३ ।। भामंडलच्छलेणं पिट्ठि विलग्गो रवी परिब्भमइ ! तित्थेसरस्स केवलपहाए विजिओ व्व लज्जाए ।। ५७४४ ।। अन्ने वि इगुणवीसं देवकया अइसया जिणिंदस्स । कमपत्ताणं तेसि पि वन्नणं कुणमि एत्ताहे ।। ५७४५ ।। आगासगयं चक्कं विहरंतं जिणवरेण सह कहइ ! चउरंतकारिसद्धम्मचक्कवट्टित्तमेयस्स ।। ५७४६ ।। उवरि जिणस्स चरंतं आयासे सहइ पंडरं छत्तं । भरिऊण मच्चलोयं जसं व गयणम्मि उप्पइयं ॥ ५७४७ ।। जिणकित्तिगयणगंगाइ सहइ तरलो तरंगनिवहो व्व । पडुपवणहल्लिरो नहयलम्मि सेओ महिंदझओ ।। ५७४८ ॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ चंदप्पहजिणवण्णणं आयासम्मि ढलंत उभओ पासेसु सहइ सामिस्स । सियचमरजुयं भत्तीए नमिर हं सउलमिव अलियं ॥ ५७४९ ।। सीहासणम्मि पणवन्नरुइररयणोहकिरणचिंचइयं । जं चलइ गयणमग्गेण संगयं पायपीढेण ।। ५७५० ॥ विहरते तिहुयणबंधवम्मि नासियअसेसदुरियम्मि । तं मन्ने तस्सेव य अउव्वमाहप्पकहणत्थं ।। ५७५१ ।। (जुयल) जिणमुहगुणोहविजियाइं पायसेवाए आगयाइं च । सुरविरइयकमलाई नवनवाई विरायंति ॥ ५७५२ ।। एक्केण मुहेण कहं अणेगविहरूवउवगइसरूवं । वन्निस्समहं इय चिंतिउं व चउमुहयमेइ जिणो ।। ५७५३ ।। जं नहरोममवट्ठियमुवरइयं जिणवरस्स देवेहिं । तं साहाविय जिणरूवदंसणत्थं व सयकालं ।। ५७५४ ।। हेट्ठा हुत्ता जायंति कंटया जमिह जिणवरिंदम्मि । परिहयअसेससिग्घम्मि विहरमाणम्मि नरलोए ।। ५७५५ ॥ तं अन्नाण वि परमम्मभेयकारीण तित्थयरवयणेण । होही अहोमुहं चिय सरणं इय साहयंति व्व ।। ५७५६ ।। (जुयलं) विडवसहिओ न एसो जडजुत्तो नेय न य असन्नाणो। तह वि हु वंछियफलओ अम्हे न तह त्ति कलिउं व ॥ ५७५७ पणमंति जिणवरिंदस्स तरुगणा वि हु फलाइ रिद्धिजुया । संपत्तपत्तसंगो को वा न गुणुत्तमे नमइ ॥ ५७५८ ॥ (जुयलं) पंचेव इंदियत्था मणोरमा जं च जिणवरिंदस्स । संजाया सव्वत्थ वि सुरभत्तिविणिम्मियसरूवा ।। ५७५९ ॥ तप्परिहयदप्पे पासिऊण इंदियभडे अइपयंडे । तव्विसया जिणचित्ताणलोमणत्थं व अणपत्ता ।। ५७६०।। (जयल पयडियनियनियअणुभाववित्थरा जं च सुरपभावेण । अवयरिया समकालं उउणो सयला वि नरलोए ॥ ५७६१ ॥ मन्ने ते वि जिणिंदस्स सुमणसंपत्तिमणुवमं दटुं। सेवं कुणंति तइया नियनियलच्छी अलंकरिया ॥ ५७६२ ।। (जुयलं) वाउकुमारायत्तो अहयं ते वि हु जिणम्मि अइभत्ता । तो कह पडिकूलो होमि तम्मि इय चिंतिऊणं च ॥ ५७६३ ।। अणुकूलो वहइ सया तइया पवणो वि जिणवरिंदस्स । अच्चब्भुयचरियाणं जयम्मि को वा न अणुकूलो ।। ५७६४ ।। (जुयल) मंगलनिहिणो कइय वि अमंगलं होउ मा जिणिंदस्स । इय चिंतिउं व सउणा पयाहिणा चेव जंति सया ।। ५७६५ ।। गंधोदयवुट्ठीए वुट्ठीए पंचवन्नकुसुमाण । विहरंतम्मि जिणिंदे अलंकिया जं सुरेहिं मही ॥ ५७६६ ।। तं मन्ने उत्तमसंगेमण इयरा वि निरुवमसिरीए । जायंति भायणं पयडणत्थमेवं वि हत्थस्स ।। ५७६७ ।। (जुयलं) भवणाहिववंतरजोइसाण वेमाणियाण य जिणस्स । कोडीजहन्नओ वि हु पाविज्जइ समवसरणम्मि ॥ ५७६८ ।। तित्थयरनामकम्माणुभावओ जं जिणस्स पामूलं । सुन्नं न होइ कइय वि सुरेहिं इंतेहिं जंतेहिं ।। ५७६९ ।। पायारतियमसोओ य दुंदुही पुव्ववन्निया चेव । इय चउत्तीसाइसएहिं संजुओ विहरइ भयवं ।। ५७७० ॥ केवलिमहिमं काउं एत्तो उ जिणस्स सुरवरिंदा वि । नियनियपरिवारजुया दीवे नंदीसरम्मि गया ।। ५७७१ ।। सव्वेसु वि जिणकल्लाणएसु जत्तो कुणंति देवगणा । अट्ठाहियाओ तहियं सासयपरिमाणभत्तीए ॥ ५७७२ ।। नंदीसरो य दीवो अट्ठमओ सो असंखदीवेसु । जंबुद्दीवाईएसु जलहिछिन्नेसु पत्तेयं ।। ५७७३ ।। दुगुणा दुगुणपमाणा दीवसमुद्दा हवंति सव्वे वि । तेसु य पढमो जोयणलक्खं तत्तो दुगुणवुड्ढी ।। ५७७४ ।। एवं जोयणलक्खा बत्तीससहस्ससत्तयसयाइं । अडसट्ठि जुयाइं उभयओ वि नंदीसरे दीवे ।। ५७७५ ।। सुरविज्जाहरकीलानिवासरमणीयविविहठाणम्मि । बहुमंदिरुक्खवणसंडमंडिए सिरिनिहाणम्मि ।। ५७७६ ।। Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं चउसुं पि दिसासु तहिं नीलुप्पलमणिमया महातुंगा । वित्थिन्नोवरिमतला विचित्तवणराइ राइल्ला ।। ५७७७ ।। अंजणगिरिणो चत्तारिवट्टुला पवरसासयसरूवा | अंबरवियाणउत्तंभणम्मि थंभ व्व रेहंति ॥ ५७७८ ।। तेसिं च चउसु पासेसु विमलजलपूरीयाओ पत्तेयं । गहिरपरिमंडलाओ जंबुद्दीवप्पमाणाओ || ५७७९ ।। चउरो पुक्खरणीओ नावइ देवेहिं देवलोयाओ । अवयारियाओ मज्जणवावीओ कीलणनिमित्तं ॥ ५७८० ॥ धवलुज्जलरयणसया तुंगा परिवडला सुरम्मतला । ताण बहुमज्झभाए दहिमुहगिरिणो दहिसवन्ना ॥ ५७८१ ॥ अन्ने य उभयपासेस ताण रइकरगपव्वया रम्मा । दो दो सुवन्नमइया हवंति सव्वे वि बत्तीसं ॥ ५७८२ ॥ एएस य सव्वेसु विचउ अंजणपव्वएसु रम्मेसु । सोलसमुदहिमुहेसु य बत्तीसइ रइकरेसुं च ॥ ५७८३ || उवरितले वित्थिण्णेसु चउ दुवाराई रुइररूवाई । उत्तुंगतोरणाइं सुवन्नमणिरयणमइयाइं || ५७८४ ॥ पडुपवणनच्चिरवरपडायपरिलग्गकिंकिणिरवेहिं । नियरम्मया गुणेणं अहिक्खिवंताई सग्गं व ॥ ५७८५ ।। सत्थसुपसत्थसाहियवरलक्खणलक्खि ओरुसिहराई । नरमगरवरालगहत्थिसीहरूवोहकलियाई ॥ ५७८६ ।। सव्वंगमणोहरसालिभंजियाहिं च निच्चकालं पि । कीलणनिमित्तमवयरियदेवरमणी सयाई व ।। ५७८७ ॥ सासयजिणभवणाइं वणराइमणोहराई पासेसु । बावन्नजिणालयसुपसिद्धनामाई लोयम्मि || ५७८८ ॥ केवलमिमेसु वीसं हवंति गरुयप्पमाणवंताई । रइकरवत्तीणि पुणो तत्तो लहुययरमाणाइं ।। ५७८९ ।। जोयणसयदीहाइं वित्थिन्नाइं च जोयणसयद्धं । बावत्तरि जोयणऊसियाई वीसं पि ताई च ।। ५७९० ।। जओ १८६ एत्तो च्चिय वीस जिणालयाइ नंदीसरम्मि दीवम्मि । वन्निज्जंतेगपमाणभावओ लहु उवेक्खाए || ५७९१ ।। तेसिं पि गब्भहरमज्झदेसभागम्मि पीढिया पवरा । एगेगा रयणमई नियकिरणा बद्धसुरचावा ।। ५७९२ ।। तासु य चिट्ठइ पणवन्न मणिमयाणं विसिट्ठरुवाणं । अट्ठमहा महपाडिहेरपरिगरियपासाणं ।। ५७९३ ।। वरलोमहत्थभिंगारघंटिया धूवदहणमाईहिं । उवगरणाहिं पुरओ रयणमएहिं समेयाण ।। ५७९४ ।। पंचधणुस्सयमाणाणुक्कोसेणं जिणिदपरिमाणं । एगेगं अट्ठसयं जहण्णओ सत्त हत्थाणं ।। ५७९५ ।। जिणमंदिरदाराण य पुरओ मह मंडला चउण्हं पि । सुविसिट्ठथंभपंतीहिं परिगया चारुचित्तजुया || ५७९६ ।। आबद्धपवरउल्लोयलंबलंबूसियाहिं सोहंता । अच्चब्भुयरूवविरायमाण ति दुवाररमणीया || ५७९७ ।। सिपि पुरो पेक्खणयमंडवा दिव्वपेच्छणय जोग्गा । सुहमंडवाण मन्ने पडिबिंबा चेव रूवेण ॥ ५७९८ ।। नाणाविहरयणमया ताणं पुरओ य हुंति वरथूभा । दट्ठूण जाव रूवं सुरा वि गुरु विम्हयं पत्ता ।। ५७९९ ।। मणिपेढियासु परिसंठियाओ चउरो जिणिदपडिमाओ । चउसुं पि दिसासु हवंति ताण थूभाण समुहाओ || ५८०० || सिरिउसभवद्धमाणयचंदाणणवारिसेणनामेहिं । अच्चंतपसिद्धाओवसंतवरवयणनयणाओ || ५८०१ || सासयसरूवफलफुल्लपल्लवेहिं विरायमाणाओ । चेइयरुक्खा अन्ने य ताण थूभाण हुंति पुरो || ५८०२ || मणिपीढियाओ तेसिं पि अग्गओ ता सोहंति इंदज्झया । वाउयंचलेहिं जे सद्दति व्व सुरखयरे || ५८०३ || Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणवण्णणं १८७ पप्फुल्लकमलकुवलयसयवत्तसहस्सपत्तकलियाओ। पुक्खरिणीओ तेसिं पि हुंति पुरओ सुरम्माओ ।। ५८०४ ॥ इय केत्तियं व कीरउ सिद्धाययणाण वन्नणं ताण । सुरखेयरे पमोत्तूण जेसु अन्नस्स नत्थि गमो ।। ५८०५ ।। संपत्ता नंदीसरवरम्मि दीवम्मि तेसु ते सव्वे । सुरवसभा पयमिते खेत्ते व्व निमेसमेत्तेण ।। ५८०६ ।। रयणावलिकणगावलिमुत्तावलिदेव्वदेववत्थेहिं । सयलेसु वि जिणभवणेसु कारिन्ति उल्लोए ।। ५८०७ ।। विहिएसु तेसु तेसिं जा सोहा तं च जइ परं सक्का । देव च्चिय वन्नेउं सा नियसत्तीए जेहिं कया ॥ ५८०८ ॥ कारिति तयणु सुरतरुविकासकुसुमेहिं फुल्लहरयाई । नाणाविहविच्छत्तीहिं दिव्वसत्तीए सयराहं ।। ५८०९ ।। खीरोयाइसमुद्दाण सिंधुगंगाइगुरुनईणं च । मागहतित्थाईण य जलाइं घेत्तूण तो झ त्ति ॥ ५८१० ।। सुसुयंधगंधजुत्तेहिं तत्तो करेंति न्हवणाई । सव्वजिणपडिमाणं जम्मे मेरुम्मि व जिणाण ॥ ५८११ ।। जलथलयदिव्वकुसुमेहिं तयणु विरयंति पवरपूयं च । नाणाविहभंगीहिं चारणसुरखयरकयतोसा ।। ५८१२ ।। विविहाउज्जे वायंतएसु देवेसु देवरमणीसु । करणंगहाररुइरं च दिव्वनट्ट कुणंतीसु ॥ ५८१३ ।। सरगाममुच्छणा ताण काललयमणहरं च वरगेयं । गायंतीसुं विज्जाहरीसु गंधव्वकुसलासु ।। ५८१४ ।। अट्ठाहिया महूसवमेवं अइमणहरं विहेऊण । नियनियठाणाई गया देविंदा पमुइया तत्तो ।। ५८१५ ॥ सिरिचंदप्पहजिणनायगो विहरइ कयाइ गामेसु । कइया वि मंडवेसु य कइय वि वररायहाणीसु ॥ ५८१६ ।। कइया वि विविहरयणागरेसु वरपट्टणेसु कइया वि । कइया वि कप्पडेसुं दोणमुहेसुं च कइया वि ॥ ५८१७ ॥ कइया वि हु नगरेसुं कइय वि खेडेसु कइय वि नगेसु । संवाहेसु य कइय वि कयावि वरगोउलाईसु ॥ ५८१८ ॥ कत्थ वि सुरनिम्मियसमवसरणसीहासणे समुवविट्ठो । कत्थ वि विज्जाहरभत्तिरइयसोवन्नकमलठिओ ॥ ५८१९ ॥ कत्थ वि वक्खाणेणं कत्थ वि पन्हत्तरप्पयाणेण | कत्थ वि हिययगयस्स वि संदेहस्सावणयणेण ।। ५८२० ।। कत्थ वि सामंताणं कत्थ वि गरुयाण नरवरिंदाण । कत्थ वि तयणुचराणं कत्थ वि वररायपुत्ताणं ॥ ५८२१ ॥ कत्थ वि महल्लयाणं कत्थ वि मंतीण गरुयबुद्धीण । कत्थ वि सत्थाहाणं कत्थ वि गुरुसेट्ठिमाईण ॥ ५८२२ ॥ कत्थ वि जरकलियाणं कत्थ वि तरुणाण कत्थ वि सिसूण । पडिबोहमुवजणंतो नासंतो गरुयमिच्छत्तं ।। ५८२३ ।। कस्स वि असेससावज्जविरइदाणेण पावदलणेण । कस्स वि सावगधम्मप्पयाणविहिणा विसिडेण ।। ५८२४ ।। कस्स वि सम्मत्तासेवणेण कस्स वि य भद्दगत्तेण । विरयंतो गरुयमणुग्गहं च सयलस्स वि जयस्स ।। ५८२५ ।। पत्तो सुरट्ठविसयं ठाणट्ठाणेसु जत्थ दीसंति । वणराइमणहराओ नईओ सुहरावलीओ य ।। ५८२६ ।। रत्तुप्पलपायाओ कुवलयनयणाओ कमलवयणाओ। वररायहंसगमणाओ चक्कवायत्थणीओ य ॥ ५८२७ ।। निम्मलकंतिजलाओ तिवलितरंगुल्लसंतसोहाओ। तरुणीओ व्व विरायंति जत्थ सरपंतियाओ य ॥ ५८२८ ।। ठाणे ठाणे दीसंति जत्थ नयराइं सरवराइं च । सवणाई सकमलाई कुवलयआणंदजणगाई ।। ५८२९ ॥ हिययं च पवरनगरोवमा हु गामा विसालरिद्धीए । नगराई देवलोओवमाइं इंद व्व रायाणो । ५८३० ।। वेसमणसमा तह सेट्ठिणो य सुरगुरुसमो य मंतियणो । कामोवमा य तरुणा सुरच्छराओ व्व रामाओ॥ ५८३१ ।। Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जो य उवरुवरि निवसंतगामपट्टणमडंबसंकिन्नो । किन्नरनरविज्जाहरपरियरियपरसरमणीओ ॥ ५८३२ || रमणीयणमुहउवमिज्जमाणतामरसरुइरसरनियरो । सरनियरतीररेहिरकारंडवहंसचक्कोहो || ५८३३ || कोहाइदोसवज्जिय विहरंताणेयमुणिगणपवित्तो । वित्तोवहसियवेसमणनयररिद्धीगुणो दोसो || ५८३४ ॥ विहरतो तत्थ जिणो पच्छिमजलहिस्स तीरभूमिए । देवेहिं समवसरणे विहिए सीहासणनिविट्ठो ॥ ५८३५ ॥ धम्मका भयवं पभूयलोयस्स कुणइ पडिबोहं । लोया य तत्थ आसी पायं महुमज्जमंसरया ।। ५८३६ ।। जलहितडवासिणो जेण मीणमंसासिणो हवंति सया । निक्कारिमतक्करुणाइ तेण भयवं तहिं चेव || ५८३७ || तप्पडिबोहनिमित्तं अच्छइ बहुए दिणे तओ निच्चं । तप्पासे सुरविसरं इन्तं जंतं च दट्ठूण || ५८३८ ।। चंदप्पहजिणदेहप्पहा पयासं च तत्थ लोएहिं । चंदप्पहासतित्थं पकप्पियं भत्तिजुत्तेहिं ॥ ५८३९ ।। अन्नत्थ विहरियम्मिय जिणम्मि तो जलहिदेवयाए तहिं । रयणमई वरपडिमा रइया चंदप्पहजिणस्स || ५८४० ॥ विहियं च जिणाययणं अइरम्मं तत्थ तयणुलोओ वि । तप्पूयाइ निमित्तं तिक्कालमुवेइ निच्चं पि ॥ ५८४१ ।। चंदप्पासतित्थं एवं जायं जणम्मि विक्खायं । भयवं पि तओ वच्चइ सेत्तुंजनगे विसालम्मि ॥ ५८४२ ।। उल्लसिरसिहरनहराघणपायपइट्ठिया तरुवराली । जत्थ विरायइ सक्खंधकेसरासिंहपंतीया । ५८४३ ।। जो य वरकडयमंडियपायपयासंतकमलचक्कंको । जणजणियमणोहरगरुयचोज्जसिरिवच्छसच्छाओ || ५८४४ ।। विलसंतविविहसिरिफलसमूहपयडियपभूयउद्देसो | गरुयसिलायलवच्छो उत्तमपुरिसो व्व सहइ सया ।। ५८४५ ।। गयणयलमुल्लिहंताई जस्स सिहराई अमरखयराण । वारिंति संचरंताण उवरिगमणं व ईसाए || ५८४६ ।। वित्थिन्नयाइ पुहवि व्व जो य तुंगत्तणेण मेरु व्व । सग्गो व्व रम्मयाए पवित्तयाए मुणिवरो व्व ॥ ५८४७ ।। जस्स य कीलंतयाण सुरसिद्धखयरमिहुणाण । मणियरवो च्चिय पडिसद्दबिउणिओ कहइ ताण रसं ॥ ५८४८ ॥ जत्थ य गिरिकुहरपडंतविविहनिज्झरजलाण निग्घोसो । दुक्खं सुव्वइ आसन्नजलयगज्जि व्व पहिएहिं ।। ५८४९ ।। छाइयनियंबदेसा घणनिवहा जणियगिरियडा संका । वा सामं पि व कुव्वंति जत्थ जंता जलनिहिम्मि ॥ ५८५० ।। जम्मि य पयंडपवणुल्लसंत उड्ढमुहधयवडछलेण । सिवपयपहं व दावइ जिणसासणभत्तिमंताण || ५८५१ ।। उत्तुंगसिहरमच्चतमणहरं गरुयमंडवसुसोहं । सिरि रिसहजिणाययणं अणेयजिणपडिमआवासं ॥ ५८५२ || जणजणियमच्छेरयरूवा पडिमा य पुंडरीयस्स । दीसइ अपाडिहेरा वि जत्थ सुरपाडिहेरजुया ।। ५८५३ ।। जत् य कवडिजक्खस्स पेक्खए मंदिरं पिहं चेव । नीसेससंघदुरियावहारिणो संपयं पि जणो ।। ५८५४ ।। सिरिचंदप्पहसामी समोसढो तत्थ सुरनरसहाए । सधम्मदेसणं कुणइ जाव ता तत्थ गणहारी || ५८५५ ॥ पत्थावं लहिऊणं उवयारट्ठा सहाइ सयलाए । विणओणउउत्तमंगो पुच्छइ जिणपुंगवं एवं ॥ ५८५६ ।। परमेसर ! केण इमं मणोरमुत्तुंगसिहरराहिल्लं । कारवियं जिणभवणं विसालचामीयरसिलाहिं ॥ ५८५७ ।। पासट्ठियपउरजिणालएहिं नाणाविहेहिं परियरियं । पणवन्न रयणमइयाहिं विवहपडिमाहिं पडिपुन्नं ॥ ५८५८ ॥ कोवेस पुडंरीओ जस्सेसापरमरूवसंपुन्ना । सिरिरिसनाहबिबस्स सन्निहाणम्मि वरपडिमा ।। ५८५९ ।। १८८ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदप्पहजिणवण्णणं कोय इमो पवरगिरि दूरं जो रम्मयाइ अणुहरइ । चूलामंडियमेरुस्स सिहररायंतजिणभवणो || ५८६० ॥ तो भइ जिणवरिंदो गणहर ! जं पुच्छियं तए सुणसु । तं एक्कमणा होउं आसि पुरा एत्थ भरहम्मि || ५८६१ || तित्थयराणं पढमो उसभसिरी तस्स भरहनामो य । आसी जेट्ठो पुत्तो पढमिल्लो चक्कवट्टीण ॥ ५८६२ ॥ तस्स य पहाणतणओ उम्पन्नो उसभसेणनामो त्ति । बीयं च तस्स नामं विक्खायं पुंडरीओ त्ति ॥ ५८६३ || केवलनाणुप्पत्ती सोय निययस्स जणयजणयस्स । पढमम्मि समोसरणे पढमो च्चिय गणहरो जाओ || ५८६४ || केवलनाणेण जिणो अहन्नया जाणिऊण सिवगमणं । सेत्तुंज्जे निय सीसस्स पुंडरीयस्स महरिसिणो ॥ ५८६५ ।। लोयाणं वारं तस्स सयासाओ तह पभूयाणं । तत्तत्थहेउभूयं तं पेसइ एत्थ पवरनगे || ५८६६ || चोदसपुव्वी चउनाणसंजुओ वज्जरिसभसंघयणो । समचउरंससरीरो कुणमाणो भवियपडिबोहं ॥ ५८६७ || संसयघणतिमिरभरं नासंतो दिणयरो व्व लोयाण । भावसयसहस्सलक्खे भूयभविस्से वि भणमाणो ॥ ५८६८ ।। बहुपरिवारसमेओ सो इह पत्तो जिणिंद आणाए । उग्गतवचरणरुई उज्जुत्तो चरणकरणेसु ॥ ५८६९ ।। चउघाइकम्मवणगहणदहणपज्जलियवणदवसमाणो । एत्थेव सुरिंदनओ संपत्तो केवलं नाणं ।। ५८७० ।। पंचहि मुणिवरकोडीहिं संजुओ तयणु एत्थ चेव नगे । पडिवन्नो सेलेसिं खविऊणं सेसकम्माई ।। ५८७१ ।। सिवमय लमरुयमणुवममक्खयसोक्खेण संगयं निच्चं । सिद्धिगइनामधेयं पयं पवित्तं समणुपत्तो ॥ ५८७२ ।। एयं च वइयरं से नाऊण भरहरायवरचक्की । निव्वाणगमणमहिमं आगंतूणं करावेइ || ५८७३ || तयणंतरं च वरकणयरयणसोवाणपन्तिरमणीयं । ऊसियथंभसहस्सं कणयसिलाबद्धभूमियलं ॥ ५८७४ ॥ कारवियमइमणोहरमाइमदेवस्स एयमाययणं । समयं तेवीसाए जिणिदइंदाण भवणेहिं ॥ ५८७५ ।। एसा य पुंडरीयस्स निययतणयस्स सिवगइगयस्स । तेणेव रायपडिमा कारविया जिणसमीवम्मि || ५८७६ || वरपव्वओ वि एसो विमलगिरी नाम आसि विक्खाओ । सिद्धगए पुंडरिए पुंडरियनगो त्ति तो जाओ ।। ५८७७ ।। एवं च जं तए किर पुट्ठं तं सव्वमेव परिकहियं । अन्नं पि पसंगगयं कहिज्जमाणं निसामेसु ॥ ५८७८ ॥ जया पुंडरियरिसी सिद्धिपुरिं पाविओ तया चेव । भयवं पि उसभसामी अन्नदिणे इह समोसरिओ ।। ५८७९ ।। सधम्मदेसणाए तत्तो तेणवि पभूयलोयाण । मिच्छत्ततमं हरिऊण दंसिओ सिवपुरीमग्गो ।। ५८८० ॥ तेण य संचरिऊणं एत्थेव नगम्मि खवियकम्मचया । ते वि गया तं ठाणं जत्थ गओ पुंडरीयरिसी ।। ५८८१ ॥ नमिविणमी विज्जाहरचक्कवई आसि जे य वेयड्ढे । ते वि जिणस्स समीवे दिक्खं गहिऊण इह सिद्धा ॥ ५८८२ ॥ एवं जहेव एत्थं सिरि रिसहजिणो समोसढो पुव्विं । अजियजिणिदाई वि हु चेव सुपासपज्जंता ।। ५८८३ || एवं च कोडिलक्खा बहवे मोक्खं गया इह नगम्मि । एवइया कालेणं एस नगो तो महातित्थं ॥ ५८८४ ॥ अहयं पि समोसरिओ जहेह तह वीरनाहपेरंता । सव्वे समोसरिस्संति मोत्तुमेक्कं जिणं नेमिं ॥ ५८८५ ।। तापि हु तित्थेसुं जिणंतरेसुं च तित्थवोच्छेए । जे इह जाहिंति सिवं तेसिं पि पभूयकोडिंगणा ।। ५८८६ ।। अन्ने विजयपसिद्धा होहिंती रामपंडवाई जे । ते वि हु एत्थेव नगे सिद्धिगई पाउणिस्संति ॥ ५८८७ ॥ १८९ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९० सिरिचंदप्पहजिणचरियं एवं च एत्थ पत्ता तह पाविस्संति जे य सिववसहिं । पत्तेयं ताण अहं पि चरियमक्खाउमसमत्थो ।। ५८८८ ।। परिमियआउत्तणओ कमभावित्तेण तह य वाणीए । अच्चंतबहुत्ताओ एएसिं महरिसीणं च ॥ ५८८९ ।। एत्तो च्चिय एस नगो सुपसिद्धो मन्नए महातित्थं । सत्तुंजओ य नामं इमस्स जायं अओ चेव ।। ५८९० ।। जम्हा जहित्थ जाओ होही य जणस्स भावसत्तुंजओ । न तहा अन्नत्थ अओ सच्चं सत्तुंजओ एस ।। ५८९१ ।। तित्थं च तं भणिज्जइ सुसमत्थं जं खु पंकहरणम्मि । कुणइ य दाहोवसमं तिसं च नासेइ नीसेसं । ५८९२ ॥ पंको य एत्थ पावं कलुसिज्जइ जेण एस जीवगणो । दाहो य कसाया कलयलेइ जरियं च जेहिं जगं ॥ ५८९३ ॥ विसयपिवासा उ तिसा जीए आवाहिया न याणंति । जीवा किच्चमकिच्चं पेयमपेयं च संसारे ॥ ५८९४ ।। एएसिं तिण्हं पि ह पवित्तखेत्तत्तणेण एस नगो । अवहरणम्मि समत्थो पसत्थतित्थं अओ एस ॥ ५८९५ ॥ नइमाईणं जो पुण समो विभागो दसव्वओ तित्थं । पंकाईणं वज्झाण चेव जं कुणइ खयमेसो ।। ५८९६ ॥ सिद्धो य एस अत्थो दव्वाईणं पि कारणं ताओ । कम्मोदयाइभावे पडुच्च जं भन्नए एवं ।। ५८९७ ।। ओवसमोवसमा जं एत्थ कम्मुणो भणिया । दव्वं खेत्तं कालं भयं च भावं च संपप्प ।। ५८९८ ॥ इय कहियम्मि जिणिदेण तयणु जाया सहा समग्गा वि । हरिसभरनिब्भरंगी इमं च भणिउं समाढत्ता ।। ५८९९ ।। हिययाउ व अम्हाणं आयड्ढेऊण गणहरिंदेण । जं पुढें तस्सुत्तरमिह कहियं नाह तुब्भेहिं ।। ५९०० ।। ण य तिजगुत्तमविहिओ गरुओ अणुग्गहो अम्ह । तित्थे जं पडिवत्ती जाया अइ निच्चला इम्हि ।। ५९०१ ।। धम्मं पडुच्च गरुओ विरिउल्लासो य अम्ह संजाओ। ता धम्मप्पडिवत्तिं उचियं कारवसु जिणनाह ! ।। ५९०२ ।। तीए तो परिसाए मज्झे चउजामधम्मपडिवत्तिं । कारवइ केसि पि जिणो सावगधम्मं च केसि पि ।। ५९०३ ।। केवलनाणुप्पत्तीए केइ तत्थेव मोक्खमणुपत्ता । सव्वट्ठसिद्धिमाइसु अन्ने पत्ता य तयभावे ।। ५९०४ ॥ भयवं पि भवियजणविमलपुन्नआगरिसिओ व्व अन्नत्थ । विहरइ तट्ठाणाओ नीसेसगुणेहिं लंकरिओ ॥ ५९०५ ।। चंदो व्व सोमलेसो तेएणं दिणयरो व्व दिप्पंतो । भुवणुब्भासिसरीरो जं जं भूमिं अलंकरइ ॥ ५९०६ ॥ जायइ तहिं तहिं चिय सुभिक्खमसमं जणस्स सोक्खं च । सयलोवद्दवविगमेण जणियजणनिवहचोज्जेण ।। ५९०७ ॥ अन्नं च दिणयरस्स व सव्वत्तो विप्फुरंतदित्तीहिं । जायं जिणस्स देहं छायारहियं पि सच्छायं ।। ५९०८ ।। सव्वोउयफलपुप्फेहिं रेहिरा विमलदप्पणतलं व । जाया मही वि रयरेणुवज्जिया जिणपभावेण ।। ५९०९ ।। सोहइ य पायजुयलं जणस्स नवविद्दुमारुणच्छायं । सरणपवन्नेण जिएण रागमल्लेण वा लीढं ।। ५९१० ॥ अट्ठासीइगणाणं अहिवइणो गणहरा वि से जाया । तत्तियमेत्ता तस्सेव नाइपडिबिंबरूवा ते ।। ५९११ ।। चोद्दसपुव्विसहस्सा दो च्चिय निम्मलगुणोह परिकलिया । अड्ढाइयलक्खा से सामन्नजईण परिमाणं ।। ५९१२ ।। ओहिन्नाणीणं पुण अट्ठसहस्सा विसिट्ठलद्धीणं । मणपज्जवनाणीण वि एत्तियमेत्त च्चिय सहस्सा ।। ५९१३ ।। तीयाणागयपरिवड्ढमाणअप्पडिहयप्पयासाण । केवलनाणीण पुणो वियाणियव्वा दससहस्सा ।। ५९१४ ॥ चोद्दस चेव सहस्सा वेउव्वियलद्धिमंतसाहूण । सत्तसहस्सा वाईण समहिया छहिं सएहिं च ।। ५९१५ ।। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९१ चंदप्पहजिणवण्णणं अहिया असिइ सहस्सेहिं तिन्नि लक्खा हवंति अज्जाणं । वरुणाईणं सुविसुद्धचरणसंपत्तिजुत्ताण ।। ५९१६ ।। पन्नास सहस्सेहिं अहिया लक्खा य दोन्नि सड्ढाण । निम्मलसम्मत्तअणुव्वयाइवयनिरइयाराण ॥ ५९१७ ।। एक्काणवइ सहस्सा लक्खा चउरो य सावियाणं तु । तवनियमवयविसिट्ठाण विमलसम्मत्तजुत्ताण ।। ५९१८ ॥ परिवारसंपयाए एसा संखा य जा इहं भणिया । दट्ठव्वा सा परबोहियाइ जिणनायगेण सयं ॥ ५९१९ ।। जे पुण गणहरमाईहिं दिक्खिया साहुणो य अज्जा य । सावयमाई वि कया तेसिं संखा जिणो मुणइ ॥ ५९२० ।। एवं पुव्वंगाणं चउवीसाए तिमास अहियाए । अप्पडिपुण्णं लक्खं पुव्वाणं विहरिओ सामी ।। ५९२१ ।। केवलिपरियाएणं गामागरनगरमंडिय महीए । जुत्तो गणहरमाईण मुणिवराणं सहस्सेण ॥ ५९२२ ॥ अविरहियं जालामालिणीए तह वि जयदेवजक्खेण । सेविज्जंतो सेवय व्व पासेसु भत्तीए ॥ ५९२३ ॥ धम्मोवएसअमयप्पवाहसेएण भव्वसस्साई । वुड्ढि निंतो सम्मेयसेलसिहरम्मि संपत्तो ।। ५९२४ ।। जत्थ अईयजिणाणं परिवारसमन्नियाण सिद्धिगमे । देवेहिं थूलनिवहा विहिया रयणोहसोहिल्ला ।। ५९२५ ।। चेइयघराई जहियं च तुंगसिहराई ताई सिहराई । समसीसीए वुड्ढि गयाइं तस्सेव सेलस्स ॥ ५९२६ ।। ससहरकरसंगमसंगलंतचंदमणिनिज्झरजलाई । नच्चावंति मऊरे विणा वि जलयागमं जत्थ ।। ५९२७ ।। सूरमणिसूरकरजोगउग्गयग्गीविलग्गवणदावो। उल्लाविज्जइ निज्झरजलेहिं जहियं च पबलो वि ॥ ५९२८ ॥ देवा वि एक्करूवेण जस्स नाऊण वन्नण असत्तिं । निम्मलपडिबिंबच्छलेण जत्थ विरयंति बहुरूवे ।। ५९२९ ।। दळूण य जम्मि मणोरमत्तमिव मुणिवरा वि मोक्खकए । ठाणंतराइं चइउं कुणंति कालं समाहीए ।। ५९३० ।। सेलस्स तस्स को वन्नणम्मि सुरगुरुसमो वि होज्ज खमो। न मुयंति सिलाओ सुरा वि जस्स पियपणइणीओ व्व ॥ ५९३१ मासियतवेण तम्मि य भद्दवए किण्हसत्तमी दियहे । पडिमाइ ठिओ भयवं समन्निओ मुणिसहस्सेण ॥ ५९३२ ।। दसपुव्वलक्खपरिमाणजुत्तसव्वाउयक्खए धीरो । जोगनिरोहं पत्तो सेलेसी दिव्वकरणेण ।। ५९३३ ।। उवरयकिरियज्झाणग्गिदड्ढनीसेसकम्मवणगहणो । देहत्तयपरिचत्तो एक्केणं चेव समएणं ॥ ५९३४ ।। गंतुं अविग्गहेणं लोगंतं उड्ढमेव अक्खलिओ। सव्वजगुत्तमनिरुवमसासयसुहभायणं जाओ ॥ ५९३५ ॥ सड्ढसयधणुहमाणस्स पुव्वदेहस्स जो खलु तिभागो । तेत्तियमेत्तेणूणावगाहणो मुत्तिपरिहीणो ॥ ५९३६ ॥ सोऽणतनाणदंसणसुहवीरियसंजुओ विसुद्धप्पा । जम्मजरमरणरोगाइएहिं दुक्खेहिं परिहरिओ ॥ ५९३७ ।। साइअणतं कालं अप्पुणरावत्तिभावसंजुत्तो । सागारुवओगेणं निव्वाणमणुत्तरं पत्तो ।। ५९३८ ।। निव्वाणमुवगयम्मि य जिणम्मि चउरूवदेवसंघाया। चउविहसंघसमेया सोयभरावूरिया जाया ।। ५९३९ ।। देविंदाण विमाणमंदिरेसु तह कह वि सोयतमनियरो। पसरं पत्तो जह ते वि मोहिया तेण तक्कालं ॥ ५९४० ॥ अन्नं च राहुघत्थे रविम्मि दिवसं व रयणिनाहम्मि । अत्थमिए गयणयलं च रयणिकाले तमंतरियं ।। ५९४१ ॥ विज्झायपईवं मंदिरं व बहले तमंधयारम्मि । निद्दड्ढकमलसंडं व सरवरं सिसिरकालम्मि ॥ ५९४२ ॥ उम्मूलिय कप्पतरूं वइयरतरुकाणणं सुमूभीए । उव्वियणिज्जं जायं जयं पि जयनाहविहरम्मि ।। ५९४३ ।। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ सिरिचंदप्पहजिणचरियं जइ वि न तित्थुच्छेओ केवलनाणीण जइ वि नाभावो । जइ वि हु चउनाणीण वि बाहुल्लं संसयहराणं ।। ५९४४ ।। तित्थप्पभावगाणं ठाणट्ठाणम्मि संभवो जइ वि । अपरिक्खलिओ जइ वि हु जायइ लोयस्स उवयारो ॥ ५९४५ ॥ तह वि हु अच्चब्भुय तग्गुणेहिं तह भावियं जयं सयलं । जह तम्मि अईए तक्खणे वि सुन्नं व संजायं ॥ ५९४६ ॥ बत्तीसं पि हु इंदा सोयभरा पूरिया वि तव्वेलं । जिणनाहतणुं होविंति सुरहिखीरोयनीरेण ॥ ५९४७ ॥ कप्पूरचुन्नसंमिस्सपवरगोसीसचंदणविलित्तं । पच्छा परिहाविंती पवरयरे देवदूसे य ।। ५९४८ ॥ सिवियारयणं च तओ रयणोहविणिम्मियं विउव्वित्ता । तत्थारोवंति तयं निन्नासिय दुरियसंघायं ।। ५९४९ ।। वरपारियायसंताणयाइ सुरतरुविसिट्ठकुसुमेहिं । दिव्वंसुयाइएहिं तत्तो विरयंति उल्लोयं ॥ ५९५० ।। ओमालिंति समंता पुणो विविहाहिं कुसुममालेहिं । उप्पाडिंति ससोया सुरपहुणो तयणु तं सिबियं ॥ ५९५१ ।। कालागुरुहरियंदणमाईहि य सारदारुनियरेहिं । रम्मं ति भूमिभाए कारिति चियंसु संठाणं ॥ ५९५२ ॥ संचलिया तयभिमुहं उच्छलिए दिव्वतूरनिग्घोसे । आहवणं च करितम्मि दूरवत्तीण लोयाण ॥ ५९५३ ।। रंभा तिलोत्तिमाई सुरवहुसंघम्मि विविहभंगीहिं । करणंगहाररुइरं च दिव्वनदृ कुणंतम्मि ।। ५९५४ ।। हाहाहूहू तुंबरुसुरेसु सरगाममुच्छणाणुगयं । जिणगुणथुइपडिबद्धं च गायमाणेसु करुणसरं ॥ ५९५५ ॥ मन्नुवसविवसविगलंतनयणजलसित्तवच्छवत्थम्मि । नरनारीलोयम्मि य उव्वहमाणम्मि गुरुदुक्खं ।। ५९५६ ।। ठाणे ठाणे निवडंतयम्मि गंधुक्कडे कुसुमवरिसे । पयरिज्जंते देवेहिं सारमणिमोत्तियगणम्मि ।। ५९५७ ।। संपत्ता तं ठाणं काऊण महूसवं तहिं रम्मं । आरोवंति चियाए देहं चंदप्पहपहुस्स ॥ ५९५८ ॥ अग्गिकुमारेहिं तओ खित्तो जलणो तहिं नियमुहेहिं । वाउकुमारेहिं विउव्विऊण वायंकओ पबलो ।। ५९५९ ॥ कुंभग्गसोयखेत्तं घयं महुं तत्थ तियसनिवहेहिं । दड्ढे सोणियमंसट्ठिएसु अट्ठीसु सेसेसु ।। ५९६० ।। गंधोदयवासेणं मेहकुमारेहिं तयणु झ त्ति चिया । विज्झविया देवगणा ताहे गिण्हंति अट्ठीणि ।। ५९६१ ।। दाहिणहणुयमुवरिमं लेइ हरी हेट्ठिमं च चमरिंदो । ईसाणो वामहणुं उवरिल्लमहोगयं तु बली ॥ ५९६२ ।। दंतहीणि उ सेसा सुरा सुरिंदासुरा य सव्वे वि । गिण्हंति चियारक्खं सिवसंतिकरिं च मणुयगणा ॥ ५९६३ ॥ सिवगमणमहामहिमं एवं काऊण जिणवरिंदस्स । सव्वे वि सुरिंदाई नंदीसरदीवमणुपत्ता ॥ ५९६४ ॥ पुव्वुत्तकमेण तहिं काऊणट्ठाहिया पवरमहिमं । सासयजिणभवणेसुं नियनियठाणाई तयणुगया ॥ ५९६५ ।। इय सत्त भवाणुगयं चरियं चंदप्पहस्स परिकहियं । जह विजयसिंहसूरीहिं भासियं नियमई एवं ।। ५९६६ ।। इत्थं च नियमईए वि किं पि जं वित्थरत्थमुवरईयं । परिकप्पिऊण तं मह खमियव्वं विउसवग्गेण ।। ५९६७ ॥ चंदणकंथादोसे जइ वि हु एवं पसज्जई को वि । सुयणपरिगाहणाए तहा वि सो पम्हुसेयव्वो ।। ५९६८ ॥ एत्तो च्चिय सुयणे विन्नवेमि कयउत्तमंगकरबंधो । उस्सुत्तं जमिह कयं तं सव्वं सोहियव्वं ति ॥ ५९६९ ॥ धम्मो जाव जिणिंदचंदभणिओ खेत्ते विदेहे सया । जा नंदीसरदीवसुंदरमही चेईहराहिट्ठिया । मेरूपंच वि दिव्वचूलकलिया माणुस्स खेत्तम्मि जा । ता चंदप्पहसामिचारुचरियं होज्जा महीए इमं ॥ ५९७० ॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंथपसत्थि १९३ जे पाढंति पढंति भत्तिवसओ तित्थेसचंदप्पहे । वक्खाणंति सुणंति सुद्धमइणो वायंति एवं तहा ॥ ते लभ्रूण विसालसुद्धजसदेवच्चंतसोक्खट्ठिई । संपत्ता जिणधम्ममुत्तमनरा होउं वयंती सिवं ।। ५९७१ ।। इइ चंदप्पहचरिए (..........) जसदेवसारबिंबम्मि । सपसंगुद्दिद्रुत्थं दसमं पव्वं परिसमत्तं ।। ५९७२ ।। (गंथपसत्थि) इय चउवीसमतित्थंकरस्स तित्थम्मि अत्थि सुपसिद्धो । चंदकुले वरगच्छो ऊएसपुराओ नीहरिओ ।। ५९७३ ।। जो साहुरयणनिलओ गुरुसत्ताहिट्ठिओ समज्जाओ । जलहि व्व नदीण वई गंभीरो विबुहजणमहिओ ।। ५९७४ ।। उव्वहियखमो नरयंतकारओ तत्थ आसि विण्हु व्व । सिरिदेवगुत्तसूरी अवहत्थियदाणवारी वि ॥ ५९७५ ॥ सिद्धंतमहोयहिपारगेण पुरिसोत्तमत्तणं पहुणा । अखलियपयरणकरणेण अत्तणो जेण सच्चवियं ।। ५९७६ ।। सिद्धंतकम्मगंथाण जेण नाणाविहाणुओगपडा । सीसजणस्स हियट्ठा उद्धरिया जिणमयाहिंतो ॥ ५९७७ ।। जस्स य नवपयनवतत्तपयरणत्थस्स किं पि अवगम्म | अइधिट्ठिमाए अहमवि पत्तो तव्वित्तिगारपयं ।। ५९७८ ॥ सिद्धंततक्कलक्खणसाहिच्चविसारओ महाबुद्धी । तस्सासि पवरसीसो विक्खाओ कक्कसूरि त्ति ॥ ५९७९ ॥ चिइवंदणमीमंसा पंचपमाणी य दो विवत्तिजुए । भवियावबोहणत्थं विणिम्मिए जेण जिणमयओ ॥ ५९८० ।। तस्स वि अंतेवासी सुपसिद्धो सिद्धसूरिनामो त्ति । जाओ असावओ वि हु जो जुत्तो सावयसएहिं ।। ५९८१ ।। गग्गयचंदप्पहमाइसावए किंच जेण भणिऊण । रिद्धिसमिद्धा चउवीसजिणवराययणपरिगरियं ।। ५९८२ ।। अणहिल्लवाडवरपट्टणम्मि सिरिवीरनाहजिणभवणं । कारवियं विबुहमणो रमंत जिय सुरवइविमाणं ॥ ५९८३ ।। सिरिदेवगुत्तसूरी तस्स वि सीओ अहेसि सच्चरणो । तस्स विणेएण इमं आइमधणदेवनामेणं ॥ ५९८४ ।। उज्झायपए पत्तम्मि जायजसएव नामधेज्जेण । सिरिचंदप्पहजिणचरियमह कयं मंदमइणा वि ॥ ५९८५ ।। सिरिधवलभंडसालियकारविए पाससामिजिणभवणे । आसावल्लिपुरीए ठिएण एयं च आढत्तं ।। ५९८६ ॥ अणहिल्लवाडपत्तेण तयणुजिणवीरमंदिरे रम्मे । सिरिसिद्धरायजयसिंहदेवरज्जे विजयमाणे ।। ५९८७ ।। एक्कारसवाससएसु अइगएसुं च विक्कमनिवाओ । अडसत्तरीए अहिएसु किन्हतेरसिए पोसस्स ॥ ५९८८ ।। निप्फत्तिं उवणीयं च एयमिह देवगुत्तसूरिस्स । अंतेवासिम्मि गणं पालिते सिद्धसूरिम्मि ॥ ५९८९ ।। सुकवित्तपत्तनिम्मलकित्तीहिं असेससत्थकुसलेहिं । सोहियमिमं च गुणिगणजुएहिं सिरिवीरसूरीहिं ।। ५९९० ।। जीए पसाएण अविग्घमस्स पारंगओम्हि चरियस्स । सयलजणसलहणिज्जा सा जयउ सयावि सुयदेवी ।। ५९९१ ।। काऊण चरियमेयं च जं मए सुकयमज्जियं किं पि । तत्तो जिणचरियरओ होउ जणो सुणणकरणेहिं ।। ५९९२ ।। गंथग्गमिमस्स पुणो छ सहस्सा समहिया चउसएहिं । नायव्वा विउसेहिं गाहाइ सवायमाणेण ।। मंगलं महाश्री मंगलमस्तु । संवत् १२१७ चैत्र वदि ९ बुधौ ।।छ।। Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ चन्द्रप्रभस्वामिचरितान्तर्गतानां सुभाषितपद्यानामनुक्रम : अकार्ये विसयासाविणडिज्जंतमाणसो कुणइ तह अकज्जाई । न गणइ दुक्खइदुक्खं, न य संकइ पावबंधाओ ।। २५६७ ॥ अकुशलकर्मोदये अकुसलकम्मोदइणो बुझंति सयं न न य परुवएसा । समई च्चिय पुन्नग्गलाओ जाणंति करणिज्जं ॥ २९५१ ॥ अतुलनीये कणयं व ताव पुरिसो गरुओ जाव न परिहरेहिं कयतुलणो । तोलिज्जतो उण तक्खणं पि गुंजाहलाइ समो ॥ २९९८ अनवस्थितस्वस्पे एगतेण पिओ च्चिय न को वि परमत्थओ जणो दिट्ठो। अहवा विअप्पिओ च्चिय भवम्मि अणवट्ठियसरूवे॥५१९० कज्ज अहिगिच्चेगस्स जो पिओ सो वि तव्विणासम्मि । जायइ पेसो अन्नस्स तह वि इट्ठो उदासो वा ॥ ५१९१ ।। जो च्चिय मित्तं एगस्स सो वि अन्नस्स वइरिओ होइ । ता को कस्स हविज्जा मित्तममित्तो व निच्छयओ ॥ ५१९२ जं चिय रागावत्थाइ सुंदरं तं पि मंगुलं भाइ । रागविमुक्के चित्ते अणुहवगम्मं च तत्तमिणं ॥ ५१९४ ।। अन्धत्वे जच्चंधो व्व न पेच्छइ मयमूढो अत्तणो हियं अहियं । सो अहव दिट्ठिए च्चिय न नियइ इयरो वि मणसा वि ।। २९१८ अनिग्रहे जो इंदियाइं न तरइ, निग्गहिउँ न य मणं निवारेउं । तस्स तवे अहिगारो, दिट्ठो तन्निग्गहट्ठाए ॥ १७७८ ।। जिभिंदियस्स वसगा जम्हा सेसिंदिया पयडमेयं । तन्निग्गहेण तम्हा, सेसाण वि निग्गहो होइ ॥ १७७९ ।। जिब्भिंदिउ नायगु वसि करहु, जसु आयत्तई अन्नई । जं मूलि विणट्ठइ तरुवरह, अवसई सुक्कहिं पन्नई ।। १७८० अनित्यत्वे पडुपवणपहयदेवउलसिहरसंठियधयं चलचलाइं । जीवाण जीयजोव्वणबलाई तह संपयाओ य ॥ ७० ॥ तिव्वज्झवसाणेण वि, हियए संघट्टहेउणा जस्स । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७१ ।। जल-जलण-सत्थ-विस-भयवालाइनिमित्तमेत्तओ जस्स । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७२ जस्स बलं आहाराओ चेव तत्तो वि कह वि गहियाओ। जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। दाह-जर-सास-सूलाइवेयणाहिं च जस्स तिव्वाहिं । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७४ ।। तेउल्लेसाइपराघायाओ जस्स विविहरूवाओ । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा || ७५ ॥ तयविसभुयंगमाई, फासेण वि जस्स विसमरूवेण । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७६ ।। आणा-पाणनिरोहे, सकए अहवा परक्कए जस्स । जीयस्स झ त्ति विगमो, थिरत्तणे तस्स का आसा ।। ७७ ।। इय विविहोवक्कम-मज्झवत्तिणो जीवियस्स न थिरत्तं । अइभुक्खियनरमुहगयसरसफलस्सेव संसारे ॥ ७८ ।। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपमाने जो गुणनमिरो होउं सयं पि परपरिभवं सहेइ नरो । दिट्ठपहेहिं भरिज्जइ जलेहिं जलहि व्व सो तेहिं ।। २९९६ ।। अपात्रे पडिक जमुवेक्खा हियसिक्खा होइ अणुकूले || २९६२ ॥ अप्रमादे १९५ या कज्जाई जओ हवंति, पाएण विग्घेहिं उवद्दुयाइं । सामग्गियं तो मणुयत्तमाई, खणं पि लद्धं न पमाइयव्वं ॥ १०४ सेयं च कज्जं तमिहप्पसिद्धं, जं देवलच्छीए हवेज्ज हेऊ । जुत्ताइ सुद्धाए जसस्सिरीए, सुमाणुसत्तस्स य मोक्खमूलं ।। १०५ नहु इच्छित्थलाभे कुणइ विलंब अयाणो वि ॥ २३६९ ॥ असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं । एवं वियाणाहि जणे पमत्ते किं नु विहिंसा अजया गहिंति ।। ४०९४ अभयदाने भव्वत्ते परिपाकं, पत्ते लद्धे य कह वि सम्मत्ते । जायम्मि सुद्धबोहे, होइ मई अभयदाणम्मि ।। १३२१ ।। संपन्नाइ मईए, एवं धम्मत्थि एहिं सत्तेहिं । सुपसत्थमभयदाणं दिज्जइ जसत्ति जीवाणं ॥ १३२२ ।। जो पुच्छेज्जेकेक्कं किं इच्छसि जीवियं च पुहई वा । जीवियमिच्छेज्ज नरो, मयस्स पुहईए किं कज्जं ॥ १३२३ तो मरणभीरुयाणं, जीवाणं जीयमिच्छमाणाणं । जो देइ अभयदाणं, एयं भणियं महादाणं ।। १३२४ ।। दुक्कालोवहयाणं, दारिद्दोवद्दुयाण दीणाण । रोगेहिं विहुरियाणं, पक्खित्ताणं च गोत्तीसु || १३२५ ॥ अच्चुग्गदुक्खजणणीहिं विविहकरुणप्पलावहेऊहिं । घत्थाण तह य बहुयावयाहिं महुकंडराहिं च ॥ १३२६ ॥ म भीसिदाणपुव्वं, जं कीरइ किं पि इह परित्ताणं । अनुकंपाभरनिब्भरमणेहिं उवयारनिरवेक्खं ।। १३२७ ।। धम्मे य जिणुदिट्ठे, जणिज्जए जो य ताण परिणामो । तेणावि अभयदाणं, पयट्टियं होइ सुमहत्थं || १३२८ || तस - थावराण जीवाण जो य रक्खाइउज्जओ संतो। करइ करावेइ वयं, जिणप्पणीयं महासत्तो ।। १३२९ ।। समभावभावियप्पा, पडिहइ मणमाइदंडमाहप्पो । तेणा वि अभयदाणं, पयट्टियं होइ सुमहत्थं ॥ १३३० ॥ इय भणियमभयदाणं एत्तो आहार- उवहिदाणाई । वोच्छं कमपत्ताइं, दिज्जंति जहा य जेसिं च ॥ १३३१ ।। परउवयारपसत्ता चयंति नियजीवियं पि सप्पुरिसा । किं पुण अभयपयाणं, न दिंति जं वयणमणसज्झं || ३१५७ || परपरिओससुहासाइ दिति दुक्खज्जियं धणं धीरा । किं पुण अभयपयाणं तंवोवरिठ्ठे च इट्ठं च ॥ ३१५८ ॥ अरिबले जं परिमुणियारिबला पोढमई छग्गुणे पउंजेह । रिउसव्वस्सं सव्वं, चरेहिं अवगाहह समंता ॥। ३०३५ ।। अर्थस्य नान्यथाभावे केवलनाणुवलद्धस्स न उण अत्थस्स अन्नहा भावो । तह वि हु दूराईयम्मि दुक्कुहो संदिहिज्जा वि ॥ २६३७ ॥ Jain Education international ૧૫ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ अवधिज्ञाने ओहिन्नाणं पि दुहा, भवपच्चइयं खओवसमियं च । पढमं सुरनेरइयाणमवरमिह मणुय-तिरियाणं ॥ १२९१ ।। मणुयाणं तिरियाणं च जं तयावरणखयउवसमेण । तं गुणपगरिसपत्तस्स लद्धिरूवं वियाणाहि ॥ १२९२ ॥ मिच्छत्तकलुसियमिणं, नाणत्तिययं पि होइ अन्नाणं । जह मज्जदूसियं, पंचगव्वमवि होइ अपवित्तं ।। १२९३ ॥ अविरत्याम् पाणाइवायमाईण सव्वदोसाण कुगइमूलाण । जं जीवो न नियत्तिं, करेइ एसा अविरईओ ॥ ११२२ ॥ एईए मज्जमहुमंसऽणंतपंचुंबराइपरिभोगे । अनिवारियनियइच्छा, चिणिति अइतिव्वकम्माई ॥ ११२३ ॥ अविवेके जो अत्तणो परस्स य पढमं चिय अंतरं न चिंतेइ । परिणामदारुणो से सरहस्स व विक्कमो मेहो ॥ २९५४ ।। अशुभअध्यवसाये मिच्छत्ताविरइकसायजोगजणियं जमित्थ किर कम्मं । असुहज्झवसायगएण तं खु सामन्नहेउकयं ।। २८३३ ।। असमर्थत्वे न हि सत्तेओ वि रवी असारही जाइ नहपारं ।। २९७१ ।। असंशये जो उण सम्मत्तधरो, असंसओ अविवरीयसद्दहणो । सो उण कम्मपबंध, विच्छिदइ थेवकालेण || ११२१ ॥ अस्थिरत्वे अन्नं पि किंपि तं नत्थि वत्थु जं किर हवेज्ज संसारे । थिरयाइ जुयं एगंतसुहयरं मोत्तुमिह धम्मं ॥ ९९ ॥ ता धम्माराहणमेव जुत्तमेत्थं विवेगकलियाण । अम्हारिसाण न उणो, विसयामिसलंपडत्तं ति ॥ १०० ।। किं भणिमो इयरजणाण ताव देवा वि अत्थिरपयावा । इय कहिउं व सरीराण अत्थुमुवयाइ एस रवी ॥ २४११ ।। सामन्नं चिय एयं भन्नइ वयणं भवम्मि जीवाण । मरणम्मि समीवत्थे थिरत्तणं कस्स अन्नस्स || २८७६ ।। धण्णे धणे व रज्जे व जोव्वणे सुंदरे य रमणियणे । जा का वि थिरत्तासा सा सव्वा मोहनडियाण ॥ २८७७ ॥ जिवियजोव्वणधणदेहमाइसयलं पि जं सरीरीण । न खणं पि थिरं जायइ पव्वक्कयसकयविलयम्मि ।। ४०८३ ।। अज्ञाने अज्ञानं खलु कष्टं क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । अर्थ हितमहितं वा न वेत्ति येनावृतो लोकः ।। २८७१ ।। अहिंसायाम् जो खलु एक्कं वारं निहओ जीवो तहिं पि जं पावं । अइकूरज्झवसाएण पाणिणा अज्जियं होज्ज ।। २८१२ ।। तस्स वि अणुभावेणं परमाहम्मियसुरेहिं नरयम्मि । हम्मइ अणेगवेला किं पुण जो हणइ जियलक्खे ॥ २८१३ ।। तो अप्पवहाए च्चिय हयास ! जे निहणिया पुरा जीवा । अणुहव तप्पावफलं मणं पि मा दुम्मणो होसु ॥ २८१४ ।। Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९७ आत्मप्रशंसायाम् जे अप्पणो पसंसं करंति निंदं परस्स गरुया वि । ते रायमग्गवडियाओ हुंति लहुया तणाओ वि ॥ ३३३७ ।। आस्तिके जीवत्थित्तमईए, अणुकंपाभावओ दुहियसत्ते । भवनिव्वेयाओ तहा, संवेयाओ उवसमाओ ॥ १३१९ ॥ एएहिं निमित्तेहिं, चरिमे खलु पोग्गलाण परियट्टे । भव्वाणं जीवाणं, खउवसमो मोहणिज्जस्स || १३२० । आहारदाने तत्थाहारो असणाइभेयओ चउविहो विनिद्दिट्ठो । धम्मोवग्गहहेऊ, उवही उण वत्थमाईओ ॥ १३३२ ॥ असणं ओयणमाई, पाणं सोवीरगाइ आहारो । खाइमस्वो दक्खाइ साइमो सुंठिमाईओ ॥ १३३३ ।। उद्यमे जीवो चिणेइ कम्मं, सरागहियओ विमुच्चइ विरागो । ता रागहेउरज्जं, चइउं मोक्खत्थमुज्जमिमो ॥ २३५२ ।। उपकरणदाने वत्थं पत्तं कंबलपाउंछणयाइचित्तरूवो य । ओहियओवग्गहिओ, उवही उ दुहा मुणेयव्वो ॥ १३३४ ॥ एसो उ धम्मकज्जुज्जयाण सज्झायझाणनिरयाण । उवयारमुवजणितो, फासुयएसणियरूवो उ ॥ १३३५ ॥ आहारो उवही वा, मन्नतेहिं कयत्थमप्पाणं । देओ भत्तिभरनिब्भरेहिं सक्कारकमसहिओ ।। १३३६ ।। एका गत्याम् दुर्बलानामनाथानां बालवृद्धतपस्विनाम् । अनार्यैः परिभूतानां, सर्वेषां पार्थिवो गतिः ।। ३१४६ ॥ कन्याप्रदाने अपरिक्खियजाइ-कुलस्स जं तु कण्णाइ वियरणं लोए । तं गरुयं चिय मन्ने, कलंकठाणं सुपुरिसाण ।। ७५१ ॥ न हि जोग्गा हंसवढू बयस्स न य कोइला वि कायस्स । न य कंठीरवरमणी होइ सियालस्स कइयावि ॥ ७५३ कर्मजीवसम्बन्थे जीवस्स य कम्मस्स य, संबंधो कंचणोवलाणं व । तह चेव विओगो वि हु, अणाइजोगे वि सिद्धो त्ति ॥ १९६ अग्गिए धमिज्जंते, धाउबले सिद्ध-तंत-जुत्तीए । होइ सुवन्न भिन्नं, जहेह भिन्नो य तक्किट्टो ॥ १९७ ॥ तह चेव नाणदंसण-चरित्तसुद्धीए जीवकणयस्स । भिन्नो च्चिय कम्ममलो, जायइ सिद्धत्तसिद्धाए ।। १९८ ।। कर्मफले समुदायकडा कम्मा, समुदायफल त्ति जेण फुडं ।। २५२६ ।। जं चिय भवंतरे संचिणंति सयमेव पाव ! असुहफलं । जीवा तं चिय भुंजंति एत्थ अकयागमो न उण ॥ २८११ ।। कषाये कोहाई उ कसाया, जे इह मणसुद्धिहरणगरुयबला । ते पंचमगा हेऊ, गुरुकम्मोवज्जणम्मि जओ ॥ ११३७ ।। Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ वल्लि व चित्तसुद्धिं, कोहो अग्गि व्व दहइ जीवाण । माणो विसद्दुमो इव, विवागकडुयप्फलो बाढं ।। ११३८ अइकूरकम्मसि सुसंजणणी जणणि व्व होइ माया वि । लोहो सव्वगुणाणं, विणासओ दोसजणगो य ।। १९३९ ।। तो च्चिय को हाई भावमला चित्तसंकिलेसस्स । हेऊ हुंति जियाणं, अणंतसंसारसंजणगा ।। ११४० ।। उवसममद्दव अज्जवसंतोसपरायणा कसायरिऊ । जे निग्गिण्हंति पुणो, तेसिं विहडंति कम्मचया ।। ११४१ ।। कामे I सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसी विसोवमा । कामे य पत्थेमाणा अकामा जंति दोग्गई । २०२७ ॥ केयारिसं च सोक्खं, कामेहिंतो हविज्ज जीवाण । चवलत्तणेण जे विज्जुविलसियाई विसेसंति ॥ २०२८ ॥ अन्नं च सद्दरसरूवगंधफासाण संगमे सोक्खं । जं जायइ जीवाणं, परव्वसं तं समग्गं पि ।। २०२९ ।। जइ य च्चिय संबंधो, तेसिं सव्वाण होज्ज अणुकूलो । तइया वि देहविहुरत्तणाइणा होज्ज दुहऊ || २०३० || दुक्खं चिय रज्जाओ, जं पत्ता पाणिणो न कस्सावि । निययस्स वि वीसासं, उवेंति जं भोयणाईसुं || २०३२ || न सुहं सुयंति न सुहं भमंति न सुहं रमंति कइया वि । न सुहं पिबंति न सुहं जेमंति परेसु कयसंका || २०३३ || कालानुरूपक्रियायाम् कालम्मि कीरमाणं किसिकम्मं बहुफलं जहा होइ । इय सव्व च्चिय किरिया नियनियकालम्भि विन्नेया ।। २८९२ ।। कुनार्याम् देव ! दुराराहाओ एत्थ दुट्ठासयाओ नारीओ । चवलसहावा खणरागिणीओ नीयाणुगाओ य ॥ ८५१ ॥ परपुरिसमणुसरंतीण को व एयाण रक्खणं काउं । सक्कइ सुबुद्धिमंतो वि सव्व सामत्थकलिओ वि ॥ ८५२ ॥ केवलज्ञाने तीयाणागयसंपइ असेसपरिणामपरिणए दव्वे । लोयालोयगए वि हु, अणंतगुणपज्जवे जत्तो ॥ १२९६ ॥ सा मइमुवओगेणं, मुणंति सययं पि सम्मरूवेणं । तमणंतमपडिवायं, केवलनाणं अणन्नसमं ॥ १२९७ ॥ क्रोधे तं किं पि एस जीवो, कोहाइकसायकलुसिओ कुणइ । कम्मं जमत्तणो वि हु भयावहं होइ इहई पि ।। ३३७४ ॥ निहणइ पियरं निहणइ य भायरं निहणई य बंधुयणं । अत्ताणं अत्ताणं पि निहाई कोहवसवत्ती ॥ ३३७५ || धिद्धी कोहविलसियं जत्तो जं हणइ एत्थ तेण इमो । परलोगम्मि हणिज्जइ बला वि परिणामि जं जीवो ॥ ३३७६ ।। कृपणे सययं पराणुवत्तणपरस्स किविणस्स जीवियं धिद्धी । अणुणित्तु परं सुणहो व्व जियइ जोऽणुचियललणेहिं ॥ ३००२ खले पररिद्धिबद्धमच्छरनिक्कज्जपरूसणे पियमरिम्मि । विहलं चिय होइ कयं विसमसहावो हु जेणखलो || २९९३ ।। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ गर्वे ता किं पि सासयत्तं न एत्थ वलिओ वि परिभवं लहइ । परिहवणिज्जो वि बली ना गव्वं को वि मा कुणउ ।। २८७५ बहुसत्ता अविलंघा थिरा सया जइ वि हुंति ते दो वि । हरयस्स हरयवइणो तहा वि गुरु अंतरं दिळं ।। २९५८ ॥ पियजंपिरपरिवारो सुहिए च्चिय मा हु वीससेज्ज तुमं । तारयगणपरियरिओ वि राहुणा जं ससी गसिओ ।। २९५९ ।। बहुतरुवरपरिवारियमवि धरणिधरं समं पि रुक्खेहिं । अन्नं च किं न पारइ पलाविउं जलनिही खुहिओ ।। २९६० ।। दंडं चिय बिंति सूरिगव्विए पक्खमाणणा पवणे । किमुवेइ कत्थ वि वसं अनत्थनासो बलीवद्दो ।। २९९५ ।। अभिमाणियं खु सोक्खं निवाण परमत्थओ न जओ ॥ ५१९७ गुणवत्सले गुणवंतगुणे को वा, न सरइ गुणवच्छलो हुँतो ।। २६४४ ॥ गुप्त्याम् तुच्छं पि अणुचियं खलु, जिणधम्मे सव्वसंजमविघायं । कुणइ अओ च्चिय भणियं गुत्ती सव्वत्थ कायव्वा ।। २२९७ गुरुत्वे गरुयाण वि कुमुयाण व किरणा ससिणो जयप्पयडा ।। २९११ ।। चंचलत्वे अहह कह पेच्छ जीवाण जीवियव्वस्स चंचलत्तमिणं । तडिविलसियं पि जेणं, विणिज्जियं नियसरूवेण ।। २५५५ ॥ एगावयाओ कहमवि जइ रक्खिज्जइ तहा वि अवराए । निज्जइ विणासमेयं, वाउ यजलयवंदं व ॥ २५५६ ।। जह जीयं तह धणजोव्वणाइ जीवाण नो थिरं किं पि । तह वि हु मोहोवहयाण सासयं सव्वमाभाइ ।। २५६३ ।। एयं करेमि संपइ कज्जं अन्नं च परुकरिस्सामि । अवरं पि परारि पुणो, थिरस्स सव्वं पि सिज्झेज्जा ॥ २५६४ ॥ ऊसुगयाइ न सिज्झइ कज्जं सिद्धं पि सुंदरं न भवे । अहिणववओ हु अहयं, अत्थि य मह दव्वमइबहुयं ॥ २५६५ चंचलस्वभावे खणमीसीसि कडक्खइ, खणं विलक्खइ परूढपणयं पि । संहडइ खणं विहडइ खणं व कुलड व्व चलभावा ।। ३३७० संपत्तीए विपत्ती, लग्गइ जग्गइ जरा य तारुन्ने । मच्चू जग्गइ जीए, पियजोगे जग्गइ विओगो ॥ ३३७१ ।। न हि अविओगो सुहिसयणसंगमो न य अमच्चुयं जम्मं । अजरं न जोव्वणं नावयाइ अकडक्खिया लच्छी ।। ३३७२ चाटुत्वे चइऊण निययपोरुसमणुगच्छइ चाडुएहिं जो वइरिं। पयडइ असारयं सो अवुट्ठिजलओव अत्तणो गज्जन्तो॥ ३००३ (संकिन्नयं) जिनधर्मे जिणधम्मफलं मोक्खो, सासयसोक्खो जिणेहिं पन्नत्तो । नरसुरसुहाई अणुसंगियाइं इह किसिपलालं व ॥ १३५० नाणी उ नाणदाणेण निब्भओ होइ अभयदाणेण । आहारोवहिदाणेण भोगपरिभोगयं होइ ॥ १३५२ ।। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० जीवअवस्थायाम् एवं च जहेव रवी, उदयावत्थाए दीसए बालो । मज्झण्हे मज्झत्थो, वि चंडरस्सी दुरालोओ ।। १९० ॥ तह परिगलियपयावो, वियालवेलाए अत्थमणुपत्तो । विविहावत्थो दीसइ, पुणो वि बीयाइदिवसेसु ॥ १९१ ॥ तह चेव इमो जीवो, चउगइगमणस्सरूवसंसारे । कइया वि होइ देवो, कया वि मणुयत्तणं लहइ ॥ १९२ ।। कइया वि होइ तिरिओ, कइया वि पुणो वि नारओ होइ । सुहिओ दुहिओ उत्तिममज्झिमहीणत्तमणुपत्तो ॥ १९३ अह व जह रंगमज्झे, नडो परावत्तए विविहरूवे । दव्वाकंखाणुगओ, अवगणियसदुक्खसंताणो ॥ १९४ ।। संसाररंगवत्ती, तहेव जीवो वि कम्मसंबद्धो । चुलसीइजोणिलक्खेसु कुणइ नाणापरावत्ते ॥ १९५ ॥ जीवपरिणामे एत्तो च्चिय परिणामी, जीवो दिट्ठो जिणिंदचंदेहिं । जुज्जति जओ वत्थाउ नेगरूवम्मि वत्थुम्मि ॥ १७६९ ।। जो किरपहुत्तगत्तेण कढिणभणिईहिं परियणं भणिउं । करावइ निययआणं, आणाईसरियमयमत्तो ।। १७७० ।। सो आभिओगियत्तं, मलिणप्पा चिक्कणं चिणेऊण । सव्वस्स पेसभावेण हीणयं लहइ परजम्मे ॥ १७७१ ॥ समसीलयाइ जम्हा, पाएण जणस्स नायइ जणम्मि । बहुमाणो न हु विउसाण मुक्खलोयम्मि पडिबंधो । १७७५ ॥ जीवरक्षायाम् जीवा दुविहा वि पुणो रक्खेयव्वा जिणिंदधम्मम्मि । ताणं चिय, रक्खट्ठा जं सेसवयाई भणियाई ।। ३१६८ ।। संसारे जीवाण य दुक्खनिविन्नाण सोक्खतिसियाण । सासयसोक्खो मोक्खो, अक्खेवेणं इओ चेव ॥ ३१६९ ।। तत्वे जह इह जीवाजीवा, भणिया बंधो य पुन्नपावं च । आसवसंवरनिज्जरमोक्खा तह नत्थि अन्नत्थ ॥ ११५६ ॥ तपधर्मे बज्झब्भंतरभेयं, तवं च दुविहं जिणेहिं पन्नत्तं । एक्केक्कं छब्भेयं, वियाणियव्वं कमेणेवं ॥ १३६७ ॥ अणसणमूणोयरिया, वित्तिसंखेवणं रसच्चाओ । कायकिलसो संलीणया व बज्झो तवो होइ ॥ १३६८ ।। पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य, अभितरओ तवो नेयो ॥ १३६९ ॥ जस्स उ वढुति वसे, नियकरणाई न उप्पहे जंति । तस्स तणुरागदोसस्स होज्ज कज्जं किमु तवेण ? ।। १७८१ ।। रागद्वेषौ यदि स्यातां, तपसा किं प्रयोजनम् । तावेव यदि न स्यातां, तपसा किं प्रयोजनम् ॥ १७८२ ॥ तारुण्ये जणलोयणूसवकरं, धम्माइनरत्थसाहणसमत्थं । जं तारुण्णं तं पि हु, पहिपहियसमागमसमाणं ॥ ७९ ॥ तीर्थकरत्वप्राप्तिस्थाने अरहंतसिद्धपवयणगुरुथेरबहुस्सुए तवस्सीसु । वच्छल्लयाइ एसिं अभिक्खनाणोवओगे य ॥ ३४३९ ॥ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ दंसणविणए आवस्सए य सीलव्वए निरइयारो । खणलवतवच्चियाए , वेयावच्चे समाही य ।। ३४४० ।। अप्पुव्वनाणगहणे, सुयभत्ती पवयणे पभावणया । एएहिं कारणेहिं , तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥ ३४४१ ।। पुरिमेण पच्छिमेण य एए सव्वे वि फासिया ठाणा । मज्झिमगेहिं जिणेहिं, एगं दो तिन्नि सव्वे वा ॥ ३४४२ ।। दाने दाणं च चउवियप्पं, संवेणं भणंति मुणिवसभा । नाणाऽभयआहारोवहीण दाणप्पभेयाओ ॥ १२८० ।। दारुणदुःखे जम्हा जरा य मरणं च दो वि अच्चंतदारुणदुहाई । अप्पडियाराइं हवंति नूण पाणीण संसारे ॥ ४०९३ ।। दिग्मुढे भक्खमभक्खं पेयमपेयं किच्चं अकिच्चमेवेह । मन्नतो दिसमूढो व्व जाइ अन्नत्थ अन्नमणो || १११९ ।। दुःखे अह पुण इमं जराए रोगेहिं व अहव सव्वनासेण । पीडिज्जई अयंडे, कयलीखंभो व्व पवणेण ॥ २३४५ ।। देहीण जओ दुक्खं, समं पराहीणयाए न हु अन्नं । न य सोक्खमपरतंतत्तणाओ लोयम्मि परमत्थि ॥ २६९५ ।। दुर्जननिन्दायाम् दुज्जणजणो य पायं, पसंसिओ वि हु न मुंचए पयई । निद्दोसे वि हु कव्वे, जो कहवुप्पायए दोसं ॥ १८ ॥ दुर्बले रसातलं यातु यदत्र पौरुषं क्व नीतिरेषा शरणो हादोषान् । विहन्यते यद् बलिनात्र दुर्बलो हहा महाकष्टमराजकं जगत् ॥ ३१४९ दूषणे अहवा गुरुगुणभूसिए वि को वि हु हवेज्ज खलु दोसो । चंदस्स व सकलंकत्तदूसणं बहु गुणत्ते वि ॥ २९१५ ।। देशत्यागे अहवा भयभीयाणं देसच्चाओ किमच्छरियं ॥ २८६४ ।। दैवे ताव च्चिय दइवं कज्जासद्धिविग्घं जणेइ नो जाव । सप्पुरिसा तुलियसदेहजीविया आरुहंति तयं ॥ २४९ ॥ जेसिं इला वि किल गोपयं व तियसा वि हुंति दास व्व । अंजलिजलं व जलही, गंडोवलओ व्व सुरसेलो ॥ २५० न निमित्तमेत्थ सत्थं न सुयणभणिई न गुरुयणुवएसो । कुसलाकुसला हि मई दिव्ववसा जायइ नराण ॥ २९५२ ।। दोषे रागो दोसो मोहो, एए अलियत्तकारणं दोसा । जस्स उ न इमे को तस्स अलियभणणम्मि भण हेऊ ॥ ११६० ।। जियरागदोसमोहा, जिणिंदयंदा अओ उ तब्भणिओ । धम्मो कारणसुद्धो, विन्नेओ सुद्धबुद्धीहिं ।। ११६१ ।। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ दृष्टयाम् जाण न दिट्ठी विमला मुणिरवि ! ते घूयसारिच्छा ।। २३९१ ॥ धर्माचरणे जइ न करेज्ज विसुद्धं सम्मं अइदुक्करं समणधम्मं । तो कुज्जा गिहिधम्मं मा बज्झो होज्ज धम्माओ || ति ॥ ३१७९ ।। धर्मे न तहा अन्नत्थ अओ धम्मो जिणदेसिओ च्चिय मओ मे । कारण सुद्धीओ वि हु, तं पि हु निसुणेसु उवउत्ता ॥ ११५९ ध्याने अविवेयवाउणा जो, कसायविसइंधणोवचयपत्तो । उल्लासिओ भवग्गी, तं झाणजलेण विज्झविमो || २३५१ || नम्रतायाम् नइवेगाओ पडणं दद्धं थड्ढाण सालविडवीण । वेयसतरु व्व नमिरो न होज्ज को नाम अहियबले || २९५७ ॥ नार्याम् जं पि इमं जंपिज्जइ, पुरिसविसेसा सईओ असईओ । नारीओ हुंति तं पि हु, न होइ एगंतियं किंचि ।। ९२९ ।। निर्गुणे गुणवज्जियम्मि देसे, गुणहीणा वि हु महत्तणमुविंति । अत्थमिए दिणनाहे तमं पि कह पिच्छ वित्थरियं ।। २४२१ || फुरियपयावो तरणि व्व होउ एक्को वि अप्पयावेहिं । बहुएहिं वि किं कीरउ, तारेहिं व हीणपुरिसेहिं ॥ २४२२ ॥ निमित्ते अवितहनिमित्तदिट्ठ, वयणं किं अन्नहा होइ ॥ ६५० || निरर्थके सत्तीए विणा न खमा, दाणं न पियंवयत्तपरिहीणं । नाणं न गव्वकलियं नो चायविवज्जियं वित्तं ॥ ३५६० ॥ विणयविहीणा विज्जा न जस्स रूवं विणा न सोहग्गं । न पहुत्तणं पि नीईए वज्जियं सयलगुणनिहिणो || ३५६१ || (जुयलं ) निर्वेदे न य चिंतइ भयसंभंतहरिणि लोयणकडक्खतरलत्तं । लच्छीए अतुच्छाइ वि, पयत्तरक्खिज्जमाणाए ।। २५६८ ।। न यतिणचटुलीचटुलत्तणंगणामाणसस्स मुणइ मणे । करिकन्नतालचवलत्तणं च जाणइ न आउ ।। २५६९ ।। न य परिभावइ अथिरत्तणं च जोव्वणधणस्स रुइरस्स । आसन्नजराजलमाणजलणजालावलीहिंतो ।। २५७० ।। एमेव अहिलसंतो नरो पगामं मणोरमे कामे । पावइ मरणमकामो, दुग्गइगमणं च अणुहवइ || २५७१ ।। (कुलयं) पुरिसं गुरुड्ढयं पि कह वि खीणम्मि हवइ पब्भारे । बंधू निद्धा वि मुयंति रुक्खरुक्खं व पक्खिगणा ।। २५७२ पिक्कं सड़ंतबिंटं फलं व एवं जियाण देहं पि । अन्नायपडणसमयं विद्धंसणधम्मयं चेव || २५७३ ।। अन्ने वि अथिररूवा भावा संसारिया असेसा वि । जीवो वज्जियमेक्कं, मोत्तूण सुहासुहं कम्मं ॥ २५७४ || Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ जम्हा तं चेव भवंतरम्मि वच्चइ समं जिएणेत्थ । अन्नस्स पुणो जोगो, सव्वस्स विओगपेरंतो ॥ २५७५ ॥ ता सुकयअज्जणे च्चिय, जुज्जइ सव्वुज्जमो विवेईण । जस्स पसाएण भवंतरे वि दुक्खाई न हु हुति ॥ २५७६ ।। सुकयं च सव्वविरई, जीए पावासवाण पडिसेहो । सो य न जिणवरदिक्खं मोत्तूणऽन्नत्थ संभवइ ।। २५७७ ।। अवि चलइ मेरुचूला मज्जायं अवि मुएज्ज जलही वि । अवि पच्छिमाए उदयं, पाविज्जा दिवसनाहो वि ॥ २६३६ नीतिनिपुणे लहुओ वि रिऊ गरुओ दट्ठव्वो नीइनिउणेहिं ।। ३३५१ ।। नीत्याम् पढमं रिउम्मि सामं जुजेज्जा तयणु भेयमाईए । दंडो उण अंते च्चिय रिउस्स भणिओ विवेईहिं ॥ २९८८ ॥ नृपे सो राया जो पालइ पयाओ नीईए नियपयाउ व्व । सो सुकई जस्स रसग्गलाई वयणाई सव्वत्थ ।। ३०४० ।। पराभवे अफुरियतेयाण सया पराभवो चेव होइ पुरिसाण । रिट्ठो वि सिरे पायं देउलसीहाण जं कुणइ ॥ ३००० ॥ वरमप्पत्तभवो च्चिय गब्भविलीणो व सो लहु मओवा। परिभूयजीविओ जो सहिज्ज अवमाणणं पुरिसो॥ ३००४ ॥ परोपकारे दिवसे च्चिय पुरिसाणं फुरइ पयावो सिरी परुवयारो । तव्विलए जं रविणो पेच्छ गलियं समग्गमिणं ।। २४१२ ।। परोपघाते धिद्धी भोए धिद्धी धणं व धिद्धी सुहं च संसारे । धिद्धी परोवधाएण होज्ज अन्नं पि जं किं पि ॥ ३३७७ ।। हा हा कहमिंदियगोयरेहिं पावेहिं वंचिओ पावो । जाणतो अहमवि कडुयविरससंसाररूवमिणं ॥ ३३७८ ॥ पात्रे मोत्तुं उयहिं रयणाण ठाणमिह जं न हुति दहा ॥ २९२७ ।। पापे पावाणुबंधिपुन्नोदएण जं पुण हविज्ज रज्जं पि । तं पावं चिय सिद्धं निरयाइनिंबधणत्तेण ॥ २३४३ ॥ पुण्ये पुन्नाणुबंधिपुन्नं अहवा वि हु पुन्नपावखयहेऊ । तो जेसिंतेसिं चिय, रज्जं पुन्नं ति सिद्धमिणं ॥ २३४२ ।। पुत्रे पुत्तविहीणो पुरिसो, पियराण रिणाओ मुच्चए नेय । पुन्नामाओ नरगाओ तायए तह य किर पुत्तो ।। ८५९ ।। Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ पुरुषार्थे विजिगीसुणा नरेणं निच्चं नयविक्कमा न मोत्तव्वा । फलसिद्धीए न हेऊ अन्नो जमिमे परिच्चज्ज ॥ २९८१ ।। नयविक्कमाण वलिओ नओ य अमओ परक्कमो विहलो । सपरेण वि जं हम्मइ सीहो हयमत्तगयनिवहो ॥ २९८२ प्रतिबन्धे पुन्नं वा पावं वा, हवेउ रज्ज तहा वि जइ होज्ज । निरुवद्दवं सरीरं, ता जुत्तो तम्मि पडिबंधो ॥ २३४४ ॥ प्रत्यक्ष-परोक्षयोः तत्थोहिन्नाणाई, तियगं पच्चक्खमेव परिकहियं । मइ-सुयनाणे य पुणो, परोक्खमिह जीववेक्खाए ॥ १२९९ ॥ ओहिन्नाणेण जओ, अइंदियाई पि रूविदव्वाइं । जाणंति ओहिनाणी, पच्चक्खं तेसु उवउत्ता ॥ १३०० ॥ मणपरिणामपरिणए, दव्वे मणपज्जवं पि एमेव । घाइचउक्कखउत्थं, केवलनाणं पि नियविसए ॥ १३०१ ।। प्रमादे सद्धम्मकम्मसिढिलो, जीवो सो उण भणिज्जइ पमाओ । एयस्स वि आयत्तो, बंधइ घणचिक्कणं कम्मं ।। ११३१ निहणइ मई पसन्नं, अकुसलमुद्दीवए मणपवित्तिं । उल्लासइ मोहतमं, अहह पमाओ महापावो ॥ ११३२ ।। जो उण पमायपसरं, भंजित्ता विरियजोगओ जीवो । सद्दिट्ठिनाण-चरणो, न तस्स तक्कारणो बंधो ।। ११३३ ।। प्रश्नोत्तर्याम् किं विसमं कज्जगई, किं लटुं जं जणो गुणग्गाही । किं सुहगेझं सुयणो, किं दुग्गेज्झं खलो लोओ ॥ १५१३ किं दुक्खं परतंतत्तमेव, किं पीइछेयणं कोहो । किं विणयहाणिजणणं, थड्ढत्तं सेलथंभो व्व ॥ १५१४ ।। को मित्तयाइ सत्तू, माया किं सव्वनासणं लोभो । किं मरणं सोक्खंतं किं दारिदं असंतोसो ॥ १५१५ ॥ तो कोवाओ नरो सत्तू पेमाओ बंधणं न परं । न विसं विसएहितो, अन्नं न दुहं च जम्माओ ॥ ३३८० ।। प्रीयजीवने न हु को वि जीवियत्थी, कवलइ हालाहलं अहवा ।। ३१९६ ॥ प्रीयवचने दोससयं फुसिउमलं नरस्स एक्कं पि होइ पियवयणं । अवि जलियविज्जुपुंजोजलेण जं वल्लहोजणे जलओ॥ २९८९ (गीतिका) फ्रासुकआहारदाने आगंतुजंतुरहिओ, तज्जोणियसत्तविप्पमुक्को य । सयमेव उ निज्जीवो, आहारो फासुओ एस ॥ १३३७ ।। उग्गमउप्पायणएसणाण दोसेहिं वज्जिओ जो य । सो एसनियाहारो, उवही चेवंविहो नेओ ॥ १३३८ ।। अकओ अकारिओ अणणुमोइओ एस उग्गमे सुद्धो । आहाकम्माईहिं, सोलसदोसेहिं परिचत्तो ॥ १३३९ ॥ मंत-निमित्त-तिगिच्छा दूयत्तणवयणपेसणाईहिं । जो होइ विणा लद्धो, एसो उप्पायणासुद्धो ॥ १३४० ॥ संकिय-मक्खियमाई दोसेहिं दसहिं वज्जिओ जो य । सो एसणाविसुद्धो, निद्दिट्ठो मुणिवरिंदेहिं ।। १३४१ ॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ पाणाइवायमाईवएसु निरयाण सुद्धदिट्ठीणं । सज्झायझाणतवसंजमेसु निच्चं सुलग्गाण ॥ १३४२ ॥ माऊसुपडिबद्धाण पंचसमिईसु तिसु य गुत्तीसु । समभावभावियाणं, संसारविरत्तचित्ताण ।। १३४३ । धम्मोवटुंभकए, आयाणुग्गहपराए बुद्धीए । साहूण निज्जरट्ठा, दायव्वं सव्वमेयं ति ।। १३४४ ।। कालोवयोगि संतं,सुविसुद्धं सावएण साहूण । आहारोवहिदाणं, जह देयं भत्तिसत्तीहिं ॥ १३४५ ।। तह साहू वि हु साहूण दिज्ज परओ य गिण्हिउं सुद्धं । धम्मत्थी आहाराइ निन्निया णेण चित्तेण ॥ १३४६ ।। एगारसियं पडिमं, पडिवन्नो जो गिही वि साहु व्व । परियडइ निरीहप्पा, भिक्खं अविसन्नसुहचित्तो ।। १३४७ ।। तस्स वि जो देइ घरागयस्स आहारमाइ गेहत्थो । सुविसुद्धं तेणावि हु, पयट्टियं होइ दाणमिणं || १३४८ ॥ एवं चउव्विहमिणं, दाणं संखेवओ समक्खायं । एयस्स फलं मोक्खो, पुप्फ पुण सुरनरवरत्ते ॥ १३४९ ॥ बुद्धिमत्वे कालाणुरूवकिरिया कीरंती किंतु बहुफला होइ । कालाविक्खा वि अओ कायव्वा बुद्धिमंतेहिं । २८९१ ॥ बुद्धिविपर्यासे अंगारओ वि भन्नइ जह लोए मंगलो त्ति नामेण । विट्ठी भद्दा विसमवि महुरं लोणं च मिट्ठति ॥ २३३८ ॥ तह चेव पावकरणं पावसरूवं पि एयमिह पयडं । भन्नइ जणम्मि पुन्न, बुद्धिविवज्जासभावेण ॥ २३३९ ॥ जे खलु विमूढचित्ता, रज्जं कप्पंति सुहसरूवं ति । ते रइहरं ति मण्णंति सप्पबिलसंकुलं पि गिहं ।। २३४० ।। जे उण तिहुयणपुज्जा हवंति रज्जम्मि वट्टमाणा वि । ते पुव्वविहियसुकयाणुभावसंभूयमाहप्पा ।। २३४१ ।। पडिकूलदेव्ववसगाण । जायइ गुणो वि दोसो, बुद्धिजुयाणं पि पुरिसाणं ।। ३२२५ ।। भवभ्रमणे जम्हा एसो जीवो, नडो व्व नियकम्मसुत्तहारेण । विविहावत्थाणुगओ, भामिज्जइ भवमहारंगे ॥ १७६२ ।। भावनाधर्मे एत्तो भावणधम्मं, भणामि ताओ दुवालस च्चेय । कम्मखयट्ठा जाओ, हवंति भाविज्जमाणाओ ॥ १३७० ।। पढमा अणिच्चरूवा, बीया अस्सरणभावणा तइया । संसारभावणा वि य, होइ चउत्थी उ एगत्तं ॥ १३७१ ।। अन्नत्तभावणा पंचमी उ छट्ठी उ होइ असुइत्तं । सत्तमियासवचिंता, संवरचिंता य अट्ठमिया ॥ १३७२ ॥ निस्सरणभावणा उण, नवमी लोगस्स भावचिंता य । दसमी एक्कारसमी, बोहीए दुल्लहत्तं तु ॥ १३७३ ॥ जिणवरभणियत्थाणं, जा पुण सुपरूविय त्ति चिंता य । एसा दुवालसी मुणिवरेहिं सुहभावणा भणिया ।। १३७४ सा आह जीवरक्खा, का सा ? ते बिंति भणइ गणिणी वि । मण-वयण-कायजोगेहिं वज्जणं जीवघायस्स ।। १५१० किं सोक्खं आरोग्गं, को नेहो जो मणस्स सब्भावो । किं भन्नइ पंडिच्चं, सव्वत्थ वि जं परिच्छेओ ॥ १५१२ भेदनीत्याम् अरिसामवाइया वि हु, तह भेइज्जंतु निउणबुद्धीए । अलिओवनिबंधपरेहिं, सासणेहि असारेहिं ॥ ३०३७ ॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ भेदविवेके अह एवमेव दोन्ह वि चेट्ठा अविवेयपुव्विया चेव । माणुसपसूण ता भण किमंतरमसिंगिसिंगिकयं ॥ ३०१४ || भाग्ये पढियव्वमन्नहा ठियगिहकरणिज्जं तु अन्नह च्चेय । न हि पुट्ठिभार जुज्जइ जयभावियजोग्गओ वसहो ।। २९९२ ।। मतिज्ञाने नाणं पंचपयारं, तत्थ उ मइनाणमाइमं भणियं । सुय-ओही-मणपज्जव - केवलनाणाई सेसाई ॥ १२८१ ॥ अत्थुग्गह-ईहावाय-धारणाभेयओ मई चउहा । अत्थोग्गह- वंजण ओग्गहो य इह उग्गहो दुविहो । १२८२ ॥ मण छट्ठाणं पंचिंदियाण अत्युग्गहो य छब्भेओ । मण-नयणे वज्जित्ता, बीओ उण चउविहो होइ ॥ १२८३ || ईहाइयाणि तिन्नि उ, पत्तेयं हुंति छव्वियप्पाणि । सुयनिस्सियमइनाणं, अट्ठावीसइविहं एवं ॥ १२८४ ॥ बत्तीसविहं तु इमं, उप्पत्तियमाइबुद्धिपरियरियं । तव्विह खओवसमजा, जमणिस्समई चउब्भेया ।। १२८५ ।। बहुबहुविहाइभेएहिं सेयरे हुंति गुणियमखिलमिणं । तिन्नि सया चुलसीया, भेयाणं एत्थ परिमाणं ।। १२८६ ॥ मदान्धे कुओ मiधाण सन्नाणं ।। २९४७ मद्ये मज्जासत्तो विससु मुच्छिओ जं कसायवसवत्ती । निद्दाविगहाभिरओ, अकुसलकम्मेसु अभिरमइ | ११३० || मनः पर्यवज्ञाने मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं । माणुसखेत्तनिबद्धं, गुणपच्चइयं चरित्तवओ ।। १२९४ ॥ रिजुमइविउलमईभेयभिन्नमेयं पि भन्नई दुविहं । नवरं इमम्मि संभवइ नेय मिच्छत्तपरिणामो || १२९५ ।। मरणे इ चिन्तितो बहुविहकज्जक्खणिओ खणा खणा जीवो। न मुणइ आसन्नं पि हु मरणं तो जाइ रंको व्व ॥ २५६६ ॥ महारम्भे महया आरंभेणं महईए परिग्गहाभिरइए य । कुणिमाहारेण तहा पंचेंदियमारणेणं च ।। २८३४ || एहिं तं पुणो विहु विसेसहेऊहिं पोसियं गाढं । सामोदिन्नजरो इव सक्करखीराइपाणेणं || २८३५ ।। तस्स फलं नरयगई तत्थ य दुक्खं महादुरवसाणं । तं वन्निरं न तीरइ बहुएहिं वि सागरसएहिं ॥ २८३६ || माने माणधो जं अहियं पच्चुयदंडेणं दंसइ वियारं । उवसमइ न कइया वि हु निव्वाइ किमग्गिणा अग्गी ॥ २९८७ ॥ मांसगृद्धयाम् पसुपेरंडविहरिसियउ निसुणवि साहुक्कारु । न मुणइ जं नारयदुहह दिन्नउ संचक्कारु || ३१५२ ।। Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०७ नयरपालजायणह, घणहं जो देइ उरु । जा उड्डइ निवड्र्युतिहि नरयासणिहि सिरु ॥ ३१५३ ।। जो नियमसइ राय न रइ असणह मणइ । मंसरसिहि सो गिद्ध मुद्धमयउल हणइ ॥ ३१५४ ।। हरियंकुरजलभोयणइं, हरिणई हणइ हयास । अप्पु न चेयहिं नीसुइय, वलि कियविसयपिवास ॥ ३१५५ ।। मुग्धजने रोगाणाम जिन्नं पि व मूलमकल्लाणसंपयाण इमं । रज्जं जज्जरपोयं व नरयजलहिम्मि पडणकए ॥ ४०८९ ।। मोहिंति मुहा मोहा हरंति हरणे व्व हरिणिदिट्ठीओ। मायन्हिया समासुं रज्जह इत्थीसु मा तण्हा ॥ ४०९० ॥ मूर्खे पावित्तु मिसं किंचि वि, बला वि गिण्हंति गोत्तिया लिंति । अन्ने य विसइणो जूय-मज्ज-वेसासु फेडंति ॥ ९६ एगेसिं पुण पावोदएण दज्झंति जलियजलणेण । पेच्छंताण वि अहवा, सलिलेण बला वि निज्जंति ॥ ९७ ॥ एवं परमत्थेणं, चिंतिज्जंताओ संपयाओ वि । एयमावयाण पायं, विज्जुलया चंचलाओ य ।। ९८ ।। रक्खणकए छठेंसं, जं देइ पया इमस्स मोल्लं व । तं गिण्हतो भियगु व्व मुणइ मूढो अहं राया ॥ ३३७३ ।। मृत्यौ सो को वि जओ न जयम्गि अत्थि होही हुओ व जो मच्छं । रक्खइ रक्खिस्सइ वा रक्खियवं वा समत्थो वि ॥ ४०५२ ।। देवो वा दाणवो वा नरो व विज्जाहरो व अन्नो वा । अप्पणओ य परस्स व मच्चुं टालेउमसमत्थो ।। ४०५३ ।। आउक्खओ उ मच्चू जंतूण जमो न एत्थ अन्नोत्थि । जीवेज्ज व मारेज्ज व जो एस भमो इमो सयलो ।। ४०५४ ॥ दक्खिणदिसाए सामी जमो वि देवो जओ नियाउस्स । संपत्तम्मि खयम्मी मारिज्जइ किंतु अन्नेण ।। ४०५५ ।। पुन्ने व अपुन्ने वा नियाउए ता मरंति कम्मवसा । अत्तकयं कम्मं चिय जं मारइ जीवए वा वि ॥ ४०५६ ॥ मोक्षहेतौ दसणनाणचरित्ताई जेण मोक्खस्स हेउणो हुंति । ताई पुण सम्मसद्देण लंछियाई इहेव जओ ॥ ११५५ ॥ मोहे मोत्तूण मोहरायस्स विलसियं सव्वजणपयडं ॥ ७३२ ॥ मोहरागे पामारोगेसु व जो, करेइ कंडूयणं व भोगेसु । सुहलवलुद्धो रागं, आरोग्गं सो कहं लहिही ।। २३५४ ॥ भवसयसहस्सदुलहं, मणुयत्तं पाविऊण जे जीवा । पारत्तहियं चिंतंति नेय ते वंचिया वरया ।। २३५५ ।। मोहदढमूलबद्धाओ ताण कह जम्ममरणवेल्लीओ। तुटुंति मणुयजम्मे वि जे ण छिंदंति तवअसिणा ।। २३५६ ।। संसारस्स सरूवं निययाणुभवेण अणुहवंतो वि । तह वि न बुज्झइ लोओ अणाइमोहोवहयबुद्धी ।। २८८२ ।। एसा पणंगणा इव मणाणुरागं भवट्ठिई जणइ । मोहबहुलाण न उणोवलद्धसुविसुद्धबोहाण ॥ २८८४ ।। जह मोहमहातिमिरस्स नत्थि मणयं पि तत्थ अवयासो। अहवा विरुद्धसविहम्मि कह विरोहिस्स होज्ज ठिई ॥ २८८६ (जुयलं) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ मोहपिशाचे न छलइ मोहपिसाओ जओ नरं तत्तमंतद ।। ५१९५ ।। यत्याम् मोत्तूणं जिणसासणं न य तिगस्सऽन्नत्थ मेलावओ । सामग्गी सयलत्थसाहणकरी सव्वत्थ जं दुल्लहा ॥ मिच्छत्ताइ निवारणम्मि सययं एयम्मि वीरा तिगे । एत्तो चेव कसायसत्तुजइणो हुंतऽप्पम्मत्ता जई ॥ १५३३ ।। यशसि अथिरेहिं तओ पाणेहिं थिरयरो जइ जसो अहिगमेज्जा। किज्जेज्ज व बहुकिच्चं, ता मरणे किं अकल्लाणं ॥ ३३०० वीररसतोसिया जयसिरि वि न गणइ गयागयकिलेसं । दोण्ह वि ताण समीवे, वारं वारं परिब्भमइ ।। ३३२० ॥ योगे जोगा य तिन्नि दुप्पणिहियाओ मणवयणकायरूवाओ। कमस्सासवहेऊ, हवंति अइसंकिलिट्ठस्स ।। ११३४ ।। जो चिंतेइ मणेणं, जंपइ वायाए कुणइ कायेण । पावट्ठाणपवित्तिं, तस्स हु दुप्पणिहिया जोगा ।। ११३५ ॥ एए चउत्थगा कम्मबंधहेऊ हवंति नायव्वा । एए वि जो निरंभइ, सो मुच्चइ कम्मबंधेण ॥ ११३६ ।। रत्नत्रये सब्भूयत्थगणाण सद्दहणओ सम्मत्तमावेइयं । हेयादेयपयत्थसत्थविसए नाणं पयासावहं ॥ चारित्तं च समग्गपावपडलोवग्घायसंपायगं । कम्माभावकरं तिगं पि मिलियं एव न एक्केक्कयं ॥ १५३२ ।। रागे अभिसंगलक्खणो खलु, रागो सो य पुण इत्थिमाईसु । सुइदिट्ठिभोगजम्मन्भेएण तिहा वि अइविसमो ।। ८३१ पढम चिय रोसवसे, जा बुद्धो होइ सा न कायव्वा । अह कीरइ कह व तओ, न सुंदरो तीए परिणामो ।। ३०३१ ।। लक्ष्म्याम् चंचलवित्ती एह वढमई परियाणिय लच्छि । कोथुहकिरणकरंवियइ थिरकण्ह वि न वच्छि ॥ १२१५ ॥ खीरोयजलविणिग्गमसमए च्चिय सिक्खियं हयासाए । चवलत्तणं सिरीए, तरलतरंगुग्गमाओ व्व ॥ १२१६ ॥ कमलवणभमरसंलग्गनालकंटयपविद्धचरण व्व । अखलियपयविन्नासं, कत्थइ न हु कुणइ पेच्छ सिरी ॥ १२१७ एत्तो च्चिय अच्चब्भुयलच्छिभरालंकिया वि सप्फारा । न कुणंति कह वि गव्वं, जाणंता तीए चवलत्तं ॥ १२१८ ता किं इमाए लच्छीए चित्तरूवाइ अहव रज्जेण । तयभावे निव्विसयं सयलं गयणयलकुसुमं व ।। २३४६ ।। वस्तुस्वस्पे खणदिट्ठनट्ठरूवे वत्थुसहावम्मि अवगए तह य । संसारकारणम्मी, कत्थ वि तुह नत्थि पडिबंधो॥ १७८४ (जुयलं) दव्वे खेत्ते काले भावे भवहेउयम्मि पडिबंधो । जेसिं जियाण तेसिं गरुओ खलु पावपडिबंधो ।। १७८५ ।। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ विक्रमे जइ दिव्ववसा जायइ, कह वि हु सूराण रणमुहे वसणं । तह वि हु न ताण मोत्तूण विक्कम कमइ अन्नकमो । ३२९८ विद्यायाम् का दाणसत्ती परतक्कुयाणं, दुजाय कायस्थकिराडयाणं । विज्जा वि दाही भण किं व एत्थं, जो मच्चुकामाओ वि घेत्तुकामो ।। १२२९ ।। विध्यां नयमग्गममुंचंतस्स जइ वि विहडेज्ज कह वि कज्जगई । पुरिसस्स नावराहो विहिणो च्चिय दूसणे तत्थ ।। २९८४ ॥ विहिणो वि दुरव सज्झे कज्जे सुज्झेज्ज कह न जणो ।। ३०१२ विनये विणओ गुणाण मूलं, विगओ गरुयत्तणं पयासेइ । मयवसवत्तीण पुणो, कह णु गुणा कह णु गरुयत्तं ॥ २१४७ ।। विणओ सासणे मूलं, विणओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कओ तवो ॥ २१४८ ॥ विणओ आहवइ सिरिं, लहइ विणीओ जसं च कित्तिं च । न कयाइ दुव्विणीओ सकज्जसिद्धिं समाणेइ ॥ २१४९ ।। विणओ मूलं गरुयत्तणस्स मूलं सिरीए ववसाओ । धम्मो सुहाण मूलं, दप्पो मूलं विणासस्स ।। २१५० ।। विपर्यासे कस्स व घयउन्ना सक्कराइ पडिया न रुच्चंति ।। २५१७ ॥ विपाके सगुणमपगुणं वा कुर्वता कार्यजातं, परिणतिरवधार्या यत्नतः पण्डितेन । अतिरभसकृतानां, कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः ॥ ३०१५ ॥ विरत्याम् जो पुण करेइ विरई, पावट्ठाणाण सव्वओ चेव । विसएसु अगिद्धप्पा, तस्स न तप्पच्चओ बंधो ॥ ११२९ ।। विवेके एवं विवेयकलिया, विचिंतिऊणं करेंति जे धम्मं ! निम्मलजसदेवनरिंदवंदियं ते पयमुवेंति ॥ १०६ ।। रागो दोसो मोहो, एए एत्थाय दूसणा दोसा । एयाण अइप्पसरो, विवेइणा रक्खियव्वो त्ति ॥ ८२० ॥ वसवत्तिणो य तेसिं, जे किर कत्तो सुहं भवे तेसिं । इह परभवम्मि य तहा, दूरे च्चिय मोक्खसंपत्ती ।। ८२१ ।। पहवइ न रागतिमिरं, विवेयदीवम्मि पज्जलंतम्मि । न हु जलणजलियपासट्ठियाण परिभवइ सीयदुहं ।। २३५३ ।। विशुद्धभावे जे बहलकाममलोवहयलोयणा तेसि धवलकमलम्मि । जच्चसुवन्नसमप्पभमिमं ति जं जायए बुद्धी ।। २२२० ।। (विसेसयं) ते सकयत्था ते पुन्नभायणं ते विढत्तजम्मफला । अणवज्जकज्जनिरया, चयंति जे सव्वसावज्ज ।। २२२४ ।। Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० सीहासणे निसन्नो संपत्तो तह वि केवलं भरहो । जम्हा न बज्झवत्थू, विसुद्धभावस्स पडिबंधो || २२३५ || धम्मो मण हुतो, जं न वि सीउण्हवायविज्झडिओ । संवच्छरं अणसिओ बाहुबली तह किलिस्संतो त्ति ॥ २२४० || विषयतृष्णायाम् यारिसे वि इमेसु तह वि तित्ती न अस्थि जीवाणं ! । एत्थ वि निसुणह इंगालदाहगस्सेव दिट्ठतं ।। २०३७ ।। बुझ बुज्झहा, संबीही खलु पेच्छ दुल्लहा । नो हु वणमंति राइओ, नो सुलहं पुणरावि जीवियं ॥। २०७१ ॥ वित्तं पसवो य नायओ, तं बाले सरणं ति मन्नई। एए मम एसु वी अहं, नो ताणं सरणं ति विज्जई || २०७२ || विसयामिसलोभाओ मच्छ व्व विणासमिति इह जीवा । बीहंति न पावाणं जाणंति न नारयाइदुहं ।। २३४७ || विषये संसयकरणो वेवन्ननिययवित्ती अओ इओ विसया । जीवस्स कम्मबंधो, जायइ घणदुक्खसंजणणो ।। ११२० ।। विषयानुरागे विसयम्मि खलु निउत्तो बलवंतो सुंदरी वि उववाओ। न हि वज्जघायजोग्गम्मि कमइ लोहाउहं उवलो ॥ २९९४ ।। विषयविडम्बनायाम् I विहु विसया सुररायकामिया हुंति मणहरा ते वि । बाढं विमूढहियणाण न उण सुविसुद्धबुद्धीण ॥ ४०८४ ॥ देविंदसंपयातुल्लरिद्धिसंपाइया वि जं विसया । विविहपरियावजणया हवंति परिणामविरसा य ।। ४०८५ || बहुविहजोणीस सरीरगाई विविहारं पाणिणो धरिउं । पत्तो नड व्व कन्नो विडंबणं विसयसुहलुद्धा ॥ ४०८६ ॥ अन्नायसरूवेहिं विवायविरसेहिं कट्ठमेएहिं । वंचिज्जइ धुत्तेहिं व विसएहिं कहन्नु मुद्धजणो ॥ ४०८७ ॥ वैराग्ये उग्गतवखग्गसंसग्गनिहयविसइंदियारिवग्गोहं । ता वर नेव्वुइ नारिं वरेमि को मज्झपरिपंथी || २३५७ ।। चित्त ! विरमरमणिज्जरमणिसंगाओ मुंच अणुबंधं । रिद्धीसु होसु मह चिंतियत्थसिद्धीए अणुकूलं ।। २३५९ ।। परिहर भवपडिबंधं तुझं मज्झं च जेण संबंधो। जाव न केवललाभो ताव च्चिय एत्थ जियलोए ।। २३६० ।। पडिपुन्ना सामग्गी, जओ न पुच्छइ अपुन्नवंताणं । न हु रयणरासिवुट्ठी संजाय मंदपुन्नगिहे || २३६८ || वैरे शत्रोर्बलमविज्ञाय, वैरमारभते तु यः । स पराभवमाप्नोति समुद्र इव टिट्टिभात् ॥ २७५५ ।। जो अरिं अभिउंजिऊण सविसेसओ उ अभिउत्तो। सयमेव दह दहणो किं पुण पवणेण परियरिओ ।। २९४५ ।। वैरभावे सरिसेवि वइरिभावे सया वि जं ससहरं गसइ राहू । दिणनाहं पुण कइया वि किं पि तं तेयमाहप्पं । ३००१ || शत्रौ काऊण वइरमसरिसभरियम्मि रिउम्मि जे पमायंति । कच्छे किविऊण सिहिं, जलंतयं तेसु यंति अभिपवणं ।। २७३६ (गीतिका) 1 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरुया विराहिया हुंति सुंदरा नेय कइया वि || २७४५ ।। बलवंतो वि अरी खलु सुहसज्झो होइ नीइवंतस्स । जमुवायविऊ बंधंति वणयरा मत्तहत्थि पि ।। २९८३ ।। शीलधर्मे तो उसी धम्मं भणामि सो विय दुहा विनिद्दिट्ठो । सव्वे देसे य तहा, अहवाऽगिहिधम्मगिहिधम्मा || १३५३ जो सव्वसीलधम्मो, सो हु जईणं वियाणियव्वो त्ति । पंचमहव्वयमाई, सतरसविहसंजमसरूवो ॥ १३५४ ।। पाणाइवायविरमणमाईणि वयाणि पंच जाणाहि । पंचेंदियनिग्गहणाई तह य चउहा कसाय जओ ॥ १३५५ ।। दंडत्तयविणिवित्तीओ तिन्नि एवं जईण संवरणं । सत्तरस पावदाराण होइ सीलं जिणाभिहियं ॥ १३५६ ॥ अहवा पुढवाईणं, पंचण्डं थावराण परिरक्खा । बेइंदियाइपंचिंदियंततसकायरक्खा य ।। १३५७ ।। अज्जीवसंजमो तह, बहुपडिपेहापमज्जपरिठवणे । मणवयणकायरक्खा, य संजमो सीलरूवो त्ति ॥ १३५८ ॥ इमिणा पालिज्जतेण पावबंधो निवारिओ होइ । दुविहेण वि ता एत्थं, जइयव्वं सुद्धबुद्धीहिं ॥ १३५९ ।। अहिणवबंधनिरोहे, तवेण सोसइ चिरंतणं कम्मं । सासयसोक्खो मोक्खो, तओ णु से खीणकम्मस्स || १३६० || जं पुण देसे सीलं, तं गिहिधम्मो तओ य नायव्वो । पंचाणुव्वयमाई, बारसविहवयपालणा रूवो ॥ १३६१ ॥ पंच य अणुव्वयाई, गुणव्वयाई च हुंति तिन्नेव । सिक्खावयाई चउरो, गिहिधम्मो बारसविहो उ ।। १३६२ ।। थूलगपाणइवायस्स विरमणं थूलअलियवयणस्स । थूलादिन्नादाणस्स तह य परदारपरिहरणं ।। १३६३ ।। थूलपरिग्गहविरई, एयाई अणुव्वयाइं पंचेव । दिसिवयमाईणि गुणव्वयाणि पुण हुंति तिन्नेव ॥ १३६४ ॥ भवभोगवयवमेव राईए भत्तपरिहरणं । सामाइयाइयाई, चउरो सिक्खावयाई तु ।। १३६५ ।। इय सव्वदेसभेयं, सीलं संखेवओ दुहा वृत्तं । इण्हि पुण तवधम्मं, वोच्छमहं नाममेत्तेण ॥ १३६६ || शुभध्याने I जे पुण असंगहियया, तेसिं तम्मज्झगाण वि न होइ । थेवो वि कम्मबंधो, जलसंसग्गो व्व पउमाण || १७८६ ॥ एत्तो च्चिय भरहनरेसरेण गिहिणा वि केवलं पत्तं । न य तेण तवं पि कयं, तइया मोत्तूण सुहझाणं ॥ १७८७ || ता सुझाणपबंधस्स साहगे मणनिरुंभणे चेव । जइयव्वं मोक्खभिकंखुएण तइ तं च अत्थि त्ति ॥ १७८८ ॥ श्रीइच्छुके इच्छंतो अहियसिरिं मइमंतो अत्तणो कुणउ वेरं । सह अहमेण समेण व बलवंतेणं तु तमजुत्तं ॥ २९५५ ॥ पेच्छतो बहुपरिवारमप्पणो हयमई जियं चेव । सव्वं मन्नइ न मुणइ कज्जे विरलो च्चिय सहाओ || २९५६ || श्रुतज्ञाने २११ सुयनाणं पुण दुविहं, अंगाणंगप्पविट्ठएण । अंगपविट्टं बारस, आयाराईणि अंगाणि ॥ १२८७ ।। जमणंगपविट्ठ तं तु दुविहमावस्सयं च इयरं च । आवस्सयं च भेयं, सामाइयमाइ नायव्वं ॥ १२८८ ॥ आवस्यवइरित्तं, इयरं तं पि य वियाण दुविहं ति । उक्कालियकालियभेयकलियमुक्कालियं तत्थ ।। १२८९ ॥ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ दसवेयालियमाई, कालियमवि उत्तरज्झयणमाइ । दुविहं पि य बहुभेयं, नंदीसुत्ताइओ नेयं ॥ १२९० ।। श्रुतज्ञानदाने सयनाणं वज्जित्ता, अण्णतरं दाणमत्थि न इमाण । सव्वाण वि नाणाणं, वन्नेमो तेण तं तस्स ।। १३०३ ।। सिद्धंत-तक्कलक्खण-साहिच्चाईपहाणगंथाण । पढणाइउज्जुयाणं, जो अप्पइ पोत्थयाईणि ॥ १३०४ ॥ आलावगमाई वा, वियरइ वक्खाणमहव पभणेइ । सुयनाणदाणमणहं, पयट्टियं तेण इह होइ ॥ १३०५ ॥ रागोरगविसगारुडमंतो दोसानलस्स सलिलोहो । अन्नाणतमपईवो, सन्नाणुल्लाससंजणओ ॥ १३०६ ॥ आहारमाइणा तह, कुणइ उबटुंभमेत्थ निरयाण । सुयनाणदाणमणहं, तेणावि पयट्टियं होइ ।। १३११ ।। जो वा नाहियवाइयमाई एयस्स कुणइ उवहासं । एयप्परूवगाणं, च जिणवराईण निण्हवणं ॥ १३१२ ॥ सइ सामत्थे तित्थप्पभावणाकज्जउज्जओ होउं । अब्भसियतक्कमाहप्पदलियपरवाइगुरुगव्वो ।। १३१३ ।। श्रेये भणइ इमो वि हु सेयाई पुर किर हुंति विग्घबहुलाई । ता पत्थुयम्मि कज्जे, मा कालविलंबमायरसु ॥ १५३७ ।। संयोगे होज्ज व जइ संबंधो कह वि हु सो तह वि नो चिरं होइ । संसारियसंजोगा, सव्वे वि जओ विओगंता ।। २५२५ ।। संशयात्मनि आसंकिज्जिहि मोहा उ वाहगं जो अजायमवि नियमा । सो सव्वव्ववहारेसु संसयप्पा खयं जाइ ॥ ८६१ ।। संसारविडम्बनायाम् गिण्हंतो मुंचंतो विविहसरीराई जेहिं एस जिओ । नाणाविडंबणाहिं विडंबिओ एत्थ संसारे ॥ ४०९६ ॥ न हि कम्माणुच्छेओ विडंबणाहिं विमुच्चए जीवो। कारणखएण जइ वा कज्जखओ पयडमेव इमं ।। ४०९८ ॥ सप्पुरिसा तं किंचि वि चिंतंति करेंति वा सुहेक्ककरं । जं अत्तणो च्चिय परं न किं तु सयलस्स वि जणस्स ।। ५०१७ दुव्वायहया गज्जि करंतया मइलिऊण अत्ताण । जलहिजलं वियरंता तप्फुरओ कह सहति घणा ।। ५०६३ ॥ सकृत् सकृज्जल्पन्ति राजानः, सकृज्जल्पन्ति धार्मिकाः । सकृत् कन्याः प्रदीयन्ते, त्रिण्येतानि सकृत् सकृत् ।। ७५९ ।। सज्जनप्रशंसायाम् एत्थ य सुयणपसंसा, निक्कज्ज च्चिय जओ सपयईए । अपसंसिओ वि गुणगहणवावडो दोसविमुहो वा ॥ १७ सत्पुरुषे सप्पुरिसाणं छज्जइ न मच्छरो एरिसो कह वि काउं । पररिद्धिं पेच्छंताण ताण जं सोक्खमहिययरं ।। २९३६ ।। रहिओ नियतेएणं केण न वाहिज्जए पसु व्व बला । एत्तो च्चिय सप्पुरिसाण वल्लहा एत्थ हरिवित्ती ।। ३००५ ।। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्मार्गे नयसत्थदंसिएणं मग्गेण न संचरेज्ज जो सययं । सो बालो व्व अलायं आयड्ढइ अत्तदहणत्थं ।। २९८५ ।। समयज्ञे ताजारिया वाया वायंती ओलवा वि तारिसया । दिज्जंति जेण पयडं न सुयं तुब्भेहिं किं वयणं ॥ ५५४१ ॥ सम्यक्त्वे जह वा सम्मद्दंसणबलेण सद्दहियसयलसत्तत्थ । सण्णाणनायसच्चरणवित्थरा चरियचारित्ता ॥ ११५७ ॥ मिच्छत्ताविरइकसायजोगभाईण भग्गसंपसरा । गुरुकम्मबंधहेऊ ण जंति मोक्खं सया सोक्खं ॥ ११५८ ॥ सम्यग्दृष्ट्याम् जंपि हु रज्जं पडिहाइ पवरसोक्खं ति पागयजणस्स । तं पि असारं आभाइ जोइयं सम्मदिट्ठीए ॥ ४०८८ ॥ साधु-सुखे वत्थि चक्कवट्टीण तं सुहं नेव देवराईण । जं सुहमिहेव साहूण लोयवावाररहियाण || ३२५ ।। सामे दंडेण बलस्स खओ उवप्पयाणेण अत्थहाणीओ। कवडंतिजसविणासो भेएण अओ सिवं साम ! ।। २९९० ।। सुजने अभणत च्चिय सुयणा, परोवयारे पयट्टंति ॥ ६१५ सुविचारितकार्ये सुवियारिऊण कज्जं मइमं तो कुणइ अहव न करेइ । एमेव कज्जकरणं पसूणधम्मो न पुरिसाण || ३०१३ || सौख्ये जं चिय अपरायत्तं, जं चिय साहावियं सयाभावि । ता तम्मि चेव सोक्खे, जइयव्वं इह बुहेहिं सया || २०३४ || मोत्तूण मुत्तिसुहं, जं पुण अन्नं न अत्थि एरिसयं । ता एय साहण च्चिय अपमाओ होइ कायव्वो । २०३५ ।। संसारियाई सोक्खाई जाई ताइं खु तत्तचिंताए । दुक्खसरूवाई दुहफलाई दुक्खाणुबंधी || २०३६ || स्वप्रकशे रविकराण महिमा जगं पथासेइ जं दिवसो ।। २९६८ ।। २१३ स्वप्रशंसायाम् निय पोरुसं कहंतो सो सोहइ जो तहेव निव्वडइ । विक्कममयमत्ता उण हासट्ठाणं रणे हुंति || २९५३ || स्वभावे वट्टसहावम्मि जणे अइन मेरो पावए न हु पमाणं । पयडो च्चिय दिट्ठतो एत्थऽथवा कुवलयच्छीण ॥ २९९७ || Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ स्वानुभवे जीहाए विणा जम्हा जाणिज्जइ न हु रसविसेसा ।। २९६१ ।। स्थिरीकरणे धम्मम्मि थिरीकरणत्थमेव वयणम्मि तस्स मसिकुच्चं । जो देइ तेण वि इमं, पयट्टियं होइ सुयदाणं ॥ १३१४ ॥ स्त्रियाम् सोक्खस्स य आययणं, कितीए कारणं च पवराए । तह वंससंतईए, एयाओ मूलभूयाओ ।। ८५७ ।। किंच गिहत्थत्तमिमं, सयलासमबीयभूयमुवइठें । एयाओ विणा एवं, न होइ गिहिणी गिहं जम्हा ॥ ८५८ ॥ हितकामे हियकामो न हु कोइ वि निवडइ कूवम्मि जाणतो ॥ ३१६२ ॥ ज्ञानप्रकारे एवं एयं नाणं, पंचवियप्पं पि बिंति दुविगप्पं । संखेवभणिइ कुसला, पच्चक्ख-परोक्खभेएहिं ॥ १२९८ ॥ क्षमायाम् सिवहेऊ होइ खमा जईण न उणो नरिंदचंदाण । बहुणा दूरंतरिओ मोक्खस्स भवस्स जं मग्गो ।। २९९९ ।। Page #246 -------------------------------------------------------------------------- _