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________________ १७ (दसवां पर्व पृ. १८२) वहां के लोग मांस मछली का आहार करते थे। भगवान कई दिनों तक वहां रुक कर उन्होंने अपनी देशना से उन्हें अहिंसक बना दिया। बाद में चन्द्रप्रभ भगवान की देदीप्यमान प्रभा से प्रकाशित वह स्थल चन्द्रहास तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । देवों ने वहां विशाल जिनालय बनाया और उसमें भगवान की रत्नजडित श्रेष्ठ प्रतिमा की स्थापना की । वहां के लोग तीनों समय भगवान की भक्ति पूर्वक पूजा करने लगे और भगवान के दर्शन कर अपने आप को कृतार्थ समझने लगे । वहां से विहारकर भगवान शत्रुजय पर्वत पर पधारे । वहां अनेक जिन प्रतिमाओं से युक्त भगवान ऋषभ का उच्च शिखर युक्त अत्यन्त सुन्दर एवं गरुड मण्डप से सुशोभित विशाल मन्दिर था। वहां लोगों के मन में आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली पुण्डरीक गणधर की प्रतिमा थी। उनकी निरन्तर सेवा करनेवाला कवडी जक्ष का पास ही में अलग मन्दिर था। भगवान के आगमन पर वहां देवों ने समवसरण की रचना की । देव और मनुष्यों की सभा में भगवान ने धर्मोपदेश दिया । देशना के अन्त में गणधर ने भगवान से पूछा - भगवन् । ऋषभ भगवान के समीप पुण्डरीक गणधर की दिव्य प्रतिमा है । भगवन् ! ये पुण्डरीक गणधर कौन थे ? भगवान ने कहा - दत्त ! दत्तचित्त से सुनो ! भगवान ऋषभ के पुत्र भरत थे ! उनका पुत्र ऋषभसेन जिसका दूसरा नाम पुण्डरीक भी था। ये भगवान ऋषभदेव के प्रथम गणधर थे । भगवान ऋषभ ने पुण्डरीक गणधर को लोगों को प्रतिबोधित करने के लिए उन्हें शत्रुजय पर्वत पर भेजा । यही पर केवलज्ञान प्राप्त कर पांच करोड मुनियों के साथ मोक्ष में गये । भरतचक्रवर्ती ने इस स्थल पर उनकी स्मृति में उनकी प्रतिमा बनाकर उनकी स्थापना की थी। इसी कारण शत्रुजय पर्वत पुण्डरिकगिरि के नाम से प्रसिद्ध हुआ । पवित्रपर्वत होने से विमलगिरि के नाम से भी यह प्रसिद्ध हुआ । कुछ समय तक वहां रुक कर भगवान अपना निर्वाण काल समीप जान सम्मेद शैल शिखर पर्वत पर पधारे । वहाँ भाद्रपद कृष्णा सप्तमी के दिन एक हजार मुनियों के साथ मासिक संलेखना पूर्वक शैलेशी अवस्था को प्राप्त करते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए । देवों इन्द्रों और मनुष्यों ने भगवान का निर्वाण महोत्सव किया । चन्द्रप्रभ स्वामी का परिवार गणधर केवलज्ञानी १०००० मनःपर्यवज्ञानी ८००० अवधिज्ञानी ८००० वैक्रियलब्धिधारी १४००० चतुर्दश पूर्वी २००० चर्चावादी ७६०० साधु २५०००० साध्वी ३८०००० श्रावक २५०००० श्राविका ४९१००० प्रथम शिष्य दत्त प्रथम शिष्या सुमना ९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001587
Book TitleChandappahasami Chariyam
Original Sutra AuthorJasadevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages246
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size17 MB
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