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सिरिचंदप्पहजिणचरियं
निस्सद्दं रुयमाणि, वामकवोले निलीणपाणि च । पुच्छइ पुणो पुणो संभमेण संकंततद्दुक्खो ॥ २२४ ॥ पुन्निमससिबिंबं पिव, दिणयरकिरणप्पहावपहयपहं । उव्वहसि मुहं मह कहसु देवि ! सहस च्चिय किमेवं ॥ २२५ चंडासिदंडखंडियअरिमुंडपयंडबाहुदंडे वि । मइ सन्निहिए को तुह, पराभवं सामिणि ! करेइही || २२६ ।। सत्तंगमिणं रज्जं तुह चेव इओ वि परिभवो जइ ते । तत्थ न दोसो बहुसत्तिखंडओ खंडणीओ मे ॥ २२७ ॥ चित्तं तुह सहियणमाणसेसु संकंतमेव सुद्धेसु । तत्तो वि देवि ! कह पणयभंगसंभावणं कुणिमो ॥ २२८ ॥ दासीपयम्मि जाओ सवत्तिओ ताओ तुज्झ आणाए । चिट्ठति सयाकालं, ता भण किं कारणो सोओ ? || २२९ परिपुच्छिया वि एवं जाव न सा उत्तरं नरवइस्स । लज्जाइ ओणयमुही, करेइ तो से सही भणइ || २३० || देव ! तए जं भणियं, तहेव तं सव्वमेत्थ किंतु इमा । दइवाइत्ते कज्जम्मि सामिणी कुणइ अणुबंधं ॥ २३१ || तं पुण तुज्झेव परं, जइ सज्झं पउरविक्कमधणस्स । पुण्णोदयनियइसहावभावसंजोगसब्भावे ॥ २३२ ॥ अज्ज मए सह पच्छिमदिणम्मि देवी पुरस्स वरलच्छीं । अवलोइउमारूढा, नियपासायग्गसिहरम्मि || २३३ || नाणाविहपुरवइयरमवलोयंतीए कस्सइ वणिस्स । दट्ठूण बालए नियगिहम्मि कीलंतए झत्ति ।। २३४ || अद्धव्वयाए नियमाउयाए विविहाहिं चारुभणिईहिं । ण्हावण - भोयण - मंडणमाई कज्जे निजुज्जति ॥ २३५ ॥ मं भणिउ पारद्धा, हला हला पेच्छ पुन्नवंतीए । एईए इभे बाले, कीलते विविहकीलाहिं ॥ २३६ || तह एसा वि इमाणं, जणणी परमं पमोयमावन्ना । पेच्छसु जह परिकम्माई नियसुयाणं करावेइ ॥ २३७ ॥ ता सहि ! मन्ने हं मह, अहण्णियाए समान अवरित्थी । भूया भविस्सइ वा, अत्थि व इह जीवलोयम्मि || २३८ जा नहसिरि व्व रवि- इंदुरस्सिसंसग्गनिहयतमनियरा । तणयप्पवाहउवहणियनिययनीसेसदुहभारा ।। २३९ ।। तक्कीलणेण ललिएण मुद्धहासेण मम्मणगिराए । न लहामि सुहं कइय वि, पभोयभरनिब्भरमणा हं ॥ २४० ॥ रज्जं जरो व ता मे, विभवो वि पराभवो व्व पडिहाइ । सोहग्गं दोहग्गं व पुत्तपरिवज्जियाइ सहि ! || २४१ || सव्वसुहमूलभूयं, एक्कं मोत्तूण अज्जउत्तस्स । सपसायदंसणं मह, अवरं सुहहेउ नो किंचि ॥ २४२ ॥ एवं निवेइऊणं, पासाओवरितलाओ ओयरिडं । सोयहरं आगंतुं, सेज्जाइ दुहद्दिया पडिया ॥ २४३ ॥
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या य म सामिण ! पसीय मह सुणसु एक्क विण्णत्तिं । मुंचसु सोयं भणिउं निवं उवायं विचिंतेमो ॥ २४४ एवं पडियाण पुणो, न होइ थेवा वि कज्जसंसिद्धी । इय भणिया वि न बुद्धा, मुद्धा ता किं करेमि ति ॥ २४५ इय तं सहीमुहाओ, सुणिउं देवीए संतियं दुक्खं । अद्दाए पडिबिंबं व झत्ति निवइम्मि संकतं ॥ २४६ ।। ता सोय-भयावूरिज्जमाणहियओ निरुद्धगलसरणी । खलिरक्खरेहिं राया, देविं भणिउं समादत्तो || २४७ ।। मा मा मयंकमुहि ! होहि दुक्खवसवत्तिणी हढेण जओ । जिणिऊण दइवमेयं, कज्जं साहेमि तुह झत्ति ॥ २४८ जओ
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ताव च्चिय दइवं कज्जसिद्धिविग्घं जणेइ नो जाव । सप्पुरिसा तुलियसदेहजीविया आरुहंति तयं ॥ २४९ ॥ जेसिं इला वि किल गोपयं व तियसा वि हुति दास व्व । अंजलिजलं व जलही, गंडोवलओ व्व सुरसेलो || २५०
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