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गर्वे
ता किं पि सासयत्तं न एत्थ वलिओ वि परिभवं लहइ । परिहवणिज्जो वि बली ना गव्वं को वि मा कुणउ ।। २८७५ बहुसत्ता अविलंघा थिरा सया जइ वि हुंति ते दो वि । हरयस्स हरयवइणो तहा वि गुरु अंतरं दिळं ।। २९५८ ॥ पियजंपिरपरिवारो सुहिए च्चिय मा हु वीससेज्ज तुमं । तारयगणपरियरिओ वि राहुणा जं ससी गसिओ ।। २९५९ ।। बहुतरुवरपरिवारियमवि धरणिधरं समं पि रुक्खेहिं । अन्नं च किं न पारइ पलाविउं जलनिही खुहिओ ।। २९६० ।। दंडं चिय बिंति सूरिगव्विए पक्खमाणणा पवणे । किमुवेइ कत्थ वि वसं अनत्थनासो बलीवद्दो ।। २९९५ ।। अभिमाणियं खु सोक्खं निवाण परमत्थओ न जओ ॥ ५१९७ गुणवत्सले गुणवंतगुणे को वा, न सरइ गुणवच्छलो हुँतो ।। २६४४ ॥ गुप्त्याम् तुच्छं पि अणुचियं खलु, जिणधम्मे सव्वसंजमविघायं । कुणइ अओ च्चिय भणियं गुत्ती सव्वत्थ कायव्वा ।। २२९७ गुरुत्वे गरुयाण वि कुमुयाण व किरणा ससिणो जयप्पयडा ।। २९११ ।। चंचलत्वे अहह कह पेच्छ जीवाण जीवियव्वस्स चंचलत्तमिणं । तडिविलसियं पि जेणं, विणिज्जियं नियसरूवेण ।। २५५५ ॥ एगावयाओ कहमवि जइ रक्खिज्जइ तहा वि अवराए । निज्जइ विणासमेयं, वाउ यजलयवंदं व ॥ २५५६ ।। जह जीयं तह धणजोव्वणाइ जीवाण नो थिरं किं पि । तह वि हु मोहोवहयाण सासयं सव्वमाभाइ ।। २५६३ ।। एयं करेमि संपइ कज्जं अन्नं च परुकरिस्सामि । अवरं पि परारि पुणो, थिरस्स सव्वं पि सिज्झेज्जा ॥ २५६४ ॥ ऊसुगयाइ न सिज्झइ कज्जं सिद्धं पि सुंदरं न भवे । अहिणववओ हु अहयं, अत्थि य मह दव्वमइबहुयं ॥ २५६५ चंचलस्वभावे खणमीसीसि कडक्खइ, खणं विलक्खइ परूढपणयं पि । संहडइ खणं विहडइ खणं व कुलड व्व चलभावा ।। ३३७० संपत्तीए विपत्ती, लग्गइ जग्गइ जरा य तारुन्ने । मच्चू जग्गइ जीए, पियजोगे जग्गइ विओगो ॥ ३३७१ ।। न हि अविओगो सुहिसयणसंगमो न य अमच्चुयं जम्मं । अजरं न जोव्वणं नावयाइ अकडक्खिया लच्छी ।। ३३७२ चाटुत्वे चइऊण निययपोरुसमणुगच्छइ चाडुएहिं जो वइरिं। पयडइ असारयं सो अवुट्ठिजलओव अत्तणो गज्जन्तो॥ ३००३ (संकिन्नयं) जिनधर्मे जिणधम्मफलं मोक्खो, सासयसोक्खो जिणेहिं पन्नत्तो । नरसुरसुहाई अणुसंगियाइं इह किसिपलालं व ॥ १३५० नाणी उ नाणदाणेण निब्भओ होइ अभयदाणेण । आहारोवहिदाणेण भोगपरिभोगयं होइ ॥ १३५२ ।।
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