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________________ के दिव्य तेज से राजा का आश्चर्य चकित होना, राजा का अपने पुत्र विषयक प्रत्युत्तर में मुनि का कथन... राजन् ! चण्डरूचि असुर द्वारा अपहृत तुम्हारा पुत्र चक्रवर्ती बनकर तुम्हारे पास लौट आयेगा, राजा को आश्वस्थ कर मुनि का आकाश मार्ग से प्रस्थान, अपहृत अजितसेन का पूर्व वैरी चण्डरुचि के साथ भयानक युद्ध, पराजित चण्डरुचि के साथ अजितसेन की प्रगाढ मित्रता, अकारण अपहरण का कारण पूछने पर चण्डरुचि द्वारा अपने पूर्वजन्म के शशि और शूर के भव में घटी हुई घटना का कथन, (शशि-शूर कथा गा. ६०४-६०९) अजितसेन का अरिंजय नगरी में प्रवेश, अजितसेन का महेन्द्र राजा के साथ युद्ध, युद्ध में महेन्द्र राजा की मृत्यु, अरिंजय नगर के राजा जयधर्म द्वारा अजितसेन का सम्मान, जयधर्म की पुत्री शशिप्रभा की अजितसेन के प्रति आसक्ति, शशिप्रभा के साथ अजितसेन का विवाह, रविपुर के खेचर राजा धरणिध्वज का शशीप्रभा के अद्वितीय रूप से आकर्षित हो अरिंजय नगरी पर आक्रमण, अजित सेन का हिरण्यनाभ देव की सहायता से धरणिध्वज के साथ युद्ध, पराजित धरणिध्वज का रणक्षेत्र से पलायन, अजितसेन का अपनी नगरी की ओर प्रयाण, ऋतुकुल नामक उद्यान में उतरना और वहां विराजित आचार्य श्री से उपदेश श्रवण, उपदेश में मनुष्य जन्म की दुर्लभता और क्रोधादि चार कषाय एवं राग द्वेष के दुष्परिणाम, विषयक विवेचन में दत्त और मूलदेव की कथा का कहना, (दत्त और मूलदेव गा. ८३४ -- १०२७) उपदेश श्रवण से अजितसेन को वैराग्य और दीक्षा ग्रहण की प्रार्थना । चक्रवर्ती पद की प्राप्ति के पश्चात् ही तुम दीक्षा ग्रहण करोगे ऐसी आचार्य की भविष्यवाणी । अजितसेन का सम्यक्त्व ग्रहण, माता पिता का मिलन, चतुर्थ पर्व पृ. ४०-- ___अजितसेन का आनन्दमय जीवन, आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति, चौदह रत्न, नैसर्प आदि नौ निधियों की प्राप्ति, छ खण्ड पर विजय, स्वयंप्रभ तीर्थंकर का आगमन, समोवसरण, अजितसेन का तीर्थंकर दर्शन, चक्रवर्ती द्वारा जिनस्तुति, उपदेश श्रवण, जीवस्वरूप, कर्मबन्ध के हेतु विषयक भगवान से चक्रवर्ती के प्रश्न, भगवान का विस्तार से उत्तर, धर्म विवेक पर सोमा की कथा (गा. ११४८ से ) सोमा कथान्तर्गत धर्मपरीक्षा पर झुटनवणिक की कथा ११६७ - १२०८) अपनी कार्य सिद्धि में लोकनिंदा की उपेक्षा करने वाले गोब्बरवणिक की कथा (१२१२१२६८) के कथन के पश्चात् दया धर्म, दान के ४ प्रकार, पांच ज्ञान और उनके भेद प्रभेद, शील धर्म, साधु सावकाचार, रात्री भोजन परिहार . तप के बारह भेद , बारह भावनाएं आदि का विषद विवेचन, सोमा का जैन धर्म ग्रहण, प्राणातिपात आदि पंचानुव्रत एवं रात्री भोजन पर एक एक लघु दृष्टान्त (१२८६-१४९१) इन दृष्टान्तों से सोमा की धर्मश्रद्धा में अभिवृद्धि, निरतिचार व्रताराधना से सोमा की स्वर्ग प्राप्ति, धर्मोपदेश से प्रभावित अजितंजय राजा का सम्यक्त्व ग्रहण और दीक्षा । पांचवां पर्व (पृ. ५९) ___ चक्रवर्ती अजितसेन की ऋद्धि और उसका विलास, वसन्त ऋतु, उद्यान श्री, वसन्तोत्सव, राजा का उद्यान विहार, रास, नृत्य, नाटक, मल्ल युद्ध, कथक, मंख आदि द्वारा जनमन रंजन, उद्यान में -हीमती देवी का मिलन, -हीमती से अजितसेन का विवाह, उद्यान स्थित एक मुनिवर से धर्मश्रवण, अनासक्ति पर भरत चक्रवर्ती का उदाहरण (गा. १७९१-२२५६) - हीमती देवी का पूर्वजन्म वृतान्त श्रवण (२२५८-२३००) -हीमती की मूर्छा, जाति स्मरण और वैराग्य, -हीमती का अजितसेन चक्री को उपदेश, बीज नामक उद्यान में गुणप्रभ सूरि का आगमन, - हीमती और अजितसेन चक्री का उपदेश श्रवण, उत्सव पूर्वक -हीमती और अजितसेन की दीक्षा, -हीमती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001587
Book TitleChandappahasami Chariyam
Original Sutra AuthorJasadevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages246
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size17 MB
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