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को केवलज्ञान और मोक्ष प्राप्ति , अजितसेन मुनि की संयम आराधना, मृत्यु के बाद अच्युतकल्प नामक देव विमान में उत्पत्ति । षष्ठ पर्व (पृ. १०१)
अच्युतकल्प से चवकर अजितसेन का जीव रत्नसंचयपुर में कनकप्रभ राजा की रानी सुवर्णमाला के उदर से हे राजन् ! तुम्हारा पद्मनाभ के नाम से जन्म हुआ, इस कथन को प्रमाण से सिद्ध करने का पद्मनाभ का श्रीधर मुनि से अनुरोध, मुनिराज ने कहा - आज से दसवें दिन एक उन्मत्त हाथी तुम्हारे नगर में प्रवेश करेगा
और तुम उसे अपने वश में करोगे। श्रीधर मुनि की भविष्यवाणी के अनुसार यूथ प्रष्ट हाथी का नगर प्रवेश, पद्मनाभ द्वारा उसका दमन, हाथी का नाम वणकेली, वनकेली पर आरूढ होकर राजा का श्रीधर आचार्य के दर्शनार्थगमन । आचार्य द्वारा हाथी का पूर्व जन्म धरणकेतु का वृत्तान्त (२६९८-२८७०) धरणकेतु की नरक में उत्पत्ति, नारकी और नरक के दुःख वर्णन, पद्मनाभ द्वारा श्रावक व्रत ग्रहण, पृथ्विपाल राजा का दूत द्वारा सन्देश, हाथी पर अपने अधिकार का दावा करने वाले पृथ्विपाल राजा का तिरस्कार, तिरस्कृत पृथ्विपाल का पद्मनाभ के साथ युद्ध के लिए प्रयाण, पद्मनाभ का अपने मंत्रि मण्डल के साथ विचार विमर्श के पश्चात् युद्ध के लिए प्रयाण, मार्ग में आनेवाले जिनमन्दिर के निर्माता का इतिहास श्रवण, राजा का मार्ग में आनेवाले जिनमन्दिर की पूजा भक्ति, पृथ्विपाल राजा के साथ पद्मनाभ का मार्ग में ही भयानक युद्ध, पद्मनाभ के एक सेवक द्वारा पृथ्विपाल का रणांगण में ही सिर काटना। कटे हुए पृथ्विपाल के सिर को देखकर पद्मनाभ को वैराग्य, स्वर्णनाभ को राज्य गद्दी पर अधिष्ठित कर श्रीधर मुनि के समीप दीक्षा ग्रहण, कठोरतप एवं वीस स्थानकों की आराधना कर तीर्थंकर गोत्र की प्राप्ति, अन्त में संलेखना पूर्वक मर कर वैजयन्त नामक अनुत्तर विमान में उत्पत्ति । सप्तम पर्व (पृ. १३६) __ भरत क्षेत्र, चन्द्रानना नगरी, महासेन राजा, लक्ष्मणा देवी, वैजयन्त विमान से पद्मनाभ देव का चवन, महाराणी लक्ष्मणा के उदर में अवतरण, रानी का चौदह स्वप्न दर्शन, माता का दोहद, ५६ दिग्कुमारियों का आगमन, दिग्कमारियों की परिचर्या, ६४ इन्द्रों द्वारा मेरु पर्वत पर जन्मोत्सव, पत्र जन्म के बाद महासेन राजा द्वारा जन्मोत्सव, चन्द्रप्रभ नामकरण, बाल्यक्रीडा युवावस्था, अष्टमपर्व पृ. १५१
चन्द्रप्रभ का विवाह, राज्यारोहन चन्द्र नामक पुत्र प्राप्ति, जरा जीर्ण वृद्ध के रूप में धर्मरुचि नामक देव का आगमन और उसके द्वारा उद्बोधन, वृद्ध के उद्बोधन से चन्द्रप्रभ को वैराग्य, नौ लोकान्तिक देवों द्वारा उद्बोधन, दीक्षा की तैयारी, वार्षिक दान, इन्द्रों मनुष्यों द्वारा दीक्षा महोत्सव, एक हजार राजाओं के साथ मनोरमा शिबिका में बैठकर दो उपवास के साथ भगवान का सहस्त्रांब उद्यान में आगमन, दीक्षा ग्रहण, मनःपर्यव ज्ञानोप्तत्ति, दीक्षा के पश्चात् इन्द्रों देवों का नन्दीश्वर में अष्टान्हिक महोत्सव, नवम पर्व (पृ. १६६)
नलिनीपुर (पद्मसंड) की और भगवान का विहार, सोमदत्त के घर क्षीरान्न से पारणा, पांच दिव्य का प्रगटीकरण, तीन महिने की छद्मस्थ अवस्था में कठोर संयम की साधना के बाद भ. का सहस्त्राम्ब उद्यान
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