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अजियसेननिवो
विरइयपवरुल्लोए, विचित्तवरचित्तकम्मरमणिज्जे । बहुभूमिगाहिं कलिए, कालागुरुधूवधूवियए ॥ ६७८ ॥ मणिकोट्टिमविरइयविविहरयणरयणाइसारसत्थियए । वरपासायम्मि गओ, समग्गसुहहेउभूयम्मि ॥ ६७९ ॥ चिट्ठतेणं तत्थ य, बुद्धीए परक्कमेण य कमेण । बहुए वसीकरेऊण, राइणो गाहिया सेवं ।। ६८० ।। तप्पभिई सिरिजयधम्मराइणो रज्जमुवगयं वुड्ढि । सामंतमंतिकोट्ठारकोसरट्ठाइलच्छीए ॥ ६८१ ॥ सह जयसिरीए नियपिययमाइ अन्नम्म वासरे राया । सुहसेज्जाए निसण्णो, वीसंभकहाहिं एगंते ॥ ६८२ ।। जावच्छइ ता तुरियं, ससिप्पहाए सही समागंतुं । नमिऊण दोण्ह वि पए, रविप्पभा कुणइ विन्नत्तिं ॥ ६८३ ॥ तणयाइ तुज्झ नरवर !, महिंदरायक्खयंकरो कुमरो । जप्पभिई सच्चविओ, तप्पभिई तम्मि अणुरत्ता ॥ ६८४ ॥ तं अलहंती निसुणसु, जं सावत्थंतरं समणुपत्ता । देहट्ठिई पि न कुणइ, न मुणइ पासट्ठिय सहीओ ॥ ६८५ परिसुन्नखिन्नचित्तत्तणेण जइ भाइ को वि किं पि तयं । नो देइ उत्तरं तह वि केवलं मुयइ हुंकारं ॥ ६८६ ॥ परिवारसमणीयम्मि अन्नपाणम्मि पऊरविहिणा वि । न कुणइ अभिलासं नेय गंधमल्लाइ अभिलसइ ॥ ६८७ हिमदड्ढसरोरुहपरिमिलाणदेहाए तीए वच्छयले । किं च पडंत च्चिय अंसुबिंदुया जं उवेंति खयं ॥ ६८८ ॥ तेणुवमिज्जइ अच्चंतदारुणो अंतरंगपरितावो । न हु पयइत्थसुवन्नेसु संति जलबिंदुणा लग्गा ॥ ६८९ ॥ अवि य
अंतो जलंतविरहग्गिधूमसरिसुण्हदीहसासेहिं । वयणम्मि पउमसंकावडिया अलिणो वि दज्झति ।। ६९० ॥ रयणीसु ससी वि ससन्निहिं किरणेहिं जणइ से मुच्छं । हरिया मुहेण एयाइ मह सिरी जायरोसो व्व ॥ ६९९ ॥ संतावहरा नवपल्लवेहिं जा तीए कीरइ सहीहिं । सेज्जा सा दवजालावलि व्व अहियं दहइ अंगं ।। ६९२ || कुणउ व चंदणपंको, भुयंगसंसंगदूसिओ दाहं । अच्छेरमिणं जं दक्खिणो वि पवणो न तीए सुहो ।। ६९३ ।। अइकोविओ व्व मन्ने, मयणो रइरूवहरणवेरेण । एयाए अन्नहा कहणु कुणइ वामत्तणं एवं ॥ ६९४ ॥ तहा हि
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धरइ धिरं हसइ वि लज्जए य हिययम्मि पिययमे धरिए । अलियवियप्पविणडिया, उट्ठित्ता सम्मुही जाइ ॥ ६९५ मुणमुणइ किंपि अव्वत्तमक्खरं जोइणि व्व झाणगया । इय कुणइ विविहचेट्ठा, कामपिसाएण आविद्धा ॥ ६९६ ता जावज्जवि पावइ, दसममवत्थं न कामदेवस्स । ता चिंतसु पडियारं, किंचि वि दुहियाए दुहियाए || ६९७ इय तीए जंपिउं निसुणिऊण गुरुहरिसनिब्भरो राया । भणइ पियं देवि कओ, सुयाइ ठाणम्मि अणुराओ ॥ ६९८ अन्नं च
मन्ने कयग्घयादोसमेव निन्नासिउं सुया मज्झ । कुमरे कयाणुराया, जाया परकज्जकुसलम्मि ॥ ६९९ ॥ रूवं विजियजगत्तयमुज्जलगुणमालिया कलासीलं । अणुरूववरेणिमिणा, कयत्थमेयं मह सुयाए । ७०० ॥ वच्च तुमं निययसहिं, गंतूण रविप्पहे ! भणसु एवं । तुज्झ पिया सिग्धं चिय, तं दाही अजियसेणस्स || ७०१ मा होसु ऊसुया तं, सिज्झइ कज्जं समत्थमवि एत्थ । जं परिवाडीए थिरत्तरत्तणेण न उ दूरमाणाण ॥ ७०२ ॥
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