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स्वानुभवे जीहाए विणा जम्हा जाणिज्जइ न हु रसविसेसा ।। २९६१ ।। स्थिरीकरणे धम्मम्मि थिरीकरणत्थमेव वयणम्मि तस्स मसिकुच्चं । जो देइ तेण वि इमं, पयट्टियं होइ सुयदाणं ॥ १३१४ ॥ स्त्रियाम् सोक्खस्स य आययणं, कितीए कारणं च पवराए । तह वंससंतईए, एयाओ मूलभूयाओ ।। ८५७ ।। किंच गिहत्थत्तमिमं, सयलासमबीयभूयमुवइठें । एयाओ विणा एवं, न होइ गिहिणी गिहं जम्हा ॥ ८५८ ॥ हितकामे हियकामो न हु कोइ वि निवडइ कूवम्मि जाणतो ॥ ३१६२ ॥ ज्ञानप्रकारे एवं एयं नाणं, पंचवियप्पं पि बिंति दुविगप्पं । संखेवभणिइ कुसला, पच्चक्ख-परोक्खभेएहिं ॥ १२९८ ॥ क्षमायाम् सिवहेऊ होइ खमा जईण न उणो नरिंदचंदाण । बहुणा दूरंतरिओ मोक्खस्स भवस्स जं मग्गो ।। २९९९ ।।
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