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दत्त-मूलदेवकहाणयं पाणप्पियाए रहियं, केरिसयं भोयणं भवइ तम्हा । जा का वि वल्लहा तुह, आहविय तमित्थ ठावेसु ॥ १००० ।। अह सो वि चिल्लदेविं, हक्कारित्ता निवेसई तत्थ । जच्चंधं नियआसणसविहम्मि य मूलदेवो वि ॥ १००१ ॥ कावालियं च तत्तो, होऊण कयंजली भणइ एसो । भयवं ! तुज्झ वि एक्कल्लयस्स न हु भोयणं जुत्तं ।। १००२ ता निय हियया ओकड्ढियाए नियडे नियासणस्सेव । उववेसियाए उवभुंज निययदइयाए सह तुट्ठो ॥ १००३ ॥ तो मह एस रहस्सं, जाणइ इय चिंतिऊण तं भणइ । तं भणसि तं करेमी, हसिऊण तहेव कुणइ तयं ।। १००४ तो कावालियभज्ज पि भणइ सीसे कयंजली एसो । भयवइ ! तुम पि नियहिययवल्लह इह निवेसेसु || १००५ तेण समं तो भुंजसु, पियमाणुसविरहियाण अमणाण । सुरसं पि भोयणं जेण देइ सायं न परिभुत्तं ॥ १००६ ॥ तो तीय वि मज्झ रहस्समेस मुणइ त्ति कलियहिययाओ। उग्गिलिओ सो पुरिसो, ठविओ नियआसणासत्तो ।। १००७ अवलोइऊण तं सव्वमेव राया उ विम्हयक्खित्तो । परिभणइ मूलदेवं, किमेवमच्चब्भुयं कहसु ॥ १००८ ॥ विन्नवइ मूलदेवो, तओ निवं देव ! देसि जइ अभयं । तो विन्नवेमि देवेण एत्थ नो रूसियव्वं ति ।। १००९ ।। तो रन्नाणुन्नाओ, चेल्लादेवि पि जंपए एवं । देवि ! तए वि हु नियदइयविरहियाए न भोत्तव्वं ॥ १०१० ।। हक्कारिज्जउ ता निययवल्लहो बटरओ त्ति नामेण । हत्थिवओ नरनाहस्स हत्थिणो निव्विसंकाए ॥ १०११ ॥ भणइ तओ नरनाहो, एयं किं मूलदेव ! सो आह । उग्घाडिऊण अंगं, देवो अवलोयउ इमीए ।। १०१२ ।। तो तव्वयणं जा कुणइ नरवई ताव तीए पुट्ठीए । पासइ बिउणियकरनाडियाए घाए फुडसरूवे ॥ १०१३ ।। तो जच्चंधं आलवइ सुयणु ! आहविय दत्तयं वणियं । तेण समं पाणपिएण भोयणं कुण सइच्छाए ॥ १०१४ ॥ पुणरवि पासे होऊण मूलदेवो पयंपइ नरिंदं । देव ! पसाओ एसो, तुम्ह च्चिय जेण निसुणेह ।। १०१५ ॥ एयारिसाइं एयाण चेट्ठियाई वियाणमाणो वि । अहयं परिणयणपरम्मुहो वि परिणाविओ तुमए ॥ १०१६ ॥ अंगीकया मए सा, देवादेसेण चेव जच्चंधा । एवंविहं परिण, तीय वि देवो पलोएउ ॥ १०१७ ॥ ता एवंविहपावाण देव ! को वा करेउ वीसासं । दुग्गिज्झाणमणायारवासवलहीण जाणतो ॥ १०१८ ।। न हु देवस्स समाणो, अन्नो राया न यावि मह तुल्लो ! अवरो धुत्तो न परो, जई य तुल्लो कवालिस्स ।। १०१९ एए वि वंचयंती, ण एत्थ एयाण दुट्ठसीलाण । का गणणा इयरनरे, सुहीण दीणेसु किर होज्ज ॥ १०२० ।। एवं सोउं राया, हत्थिवयं ताव निग्गहावेइ । सव्वस्स दंडियं दत्तयं पि कारवइ अइरुट्ठो ।। १०२१ ।। जओ - नियदेसाओ कावालियं च निव्विसयमेव आणवइ । इय ते विडंबणं मूलदेवओ रायसंपत्ता ॥ १०२२ ।। ता जो जच्चंधाए, उवरिं दत्तस्स सो हु सुइराओ । जच्चंधाइ वि एवं, दिट्ठीराओ उ पवरस्स ।। १०२३ ॥ जम्हा स रायमहिलं, पलोइउं तयणु तीए अणुरत्तो । एवं निवजुवईय वि, तस्सोवरि रागपडिबंधो ।। १०२४ ।। कावालियस्स पुण हिययवत्तिणीए कयाइ नारीए । जो रागो सो संभोगमेत्तओ होइ नायव्वो ।। १०२५ ॥ दिव्ववहूय वि एवं, सहिययधिरियम्मि दिव्वपुरिसम्मि । अहवा तिहावि एक्केक्कए विरागोऽवगंतव्वो ।। १०२६ ॥
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