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पउमनाहनिवो
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ताहे अकामओ च्चिय मन्नइ सो जणसंतियं वयणं । सुकुलग्गयाण अहवा पयइ च्चिय गुरुयणे भत्ती ॥ ३३९८ ॥ पिउणो संतोसत्थं नाऊण विहारमह निउत्तेहिं । सिरिहरमुणिस्स ताहे तयभिमुहं दावइ पयाणं ॥ ३३९९ ॥ किज्जंतएसु मंगलसएसु दाणेसु दिज्जमाणेसु । ढोयणिएसु य विविहेसु तह य ढोइज्जमाणेसु ।। ३४०० ॥ ठाणे ठाणे लोएण तम्मि पत्तो य थोवदियहेहिं । जत्थच्छइ सो भयवं महामुणी भवियकमलरवी ॥ ३४०१ ।। तत्थ ठियं तं साहइ सुवन्ननाहो पिउस्स सो वि तओ । गंतूण पायमूले मुणिस्स तं नमइ भत्तीए ॥ ३४०२ ।। भणइ य भयवं तुमए जं दिठें तं न चलइ कइयावि । अन्नह कहमहमेरिसरणे पयट्टेति जाणंतो ।। ३४०३ ।। संलत्तं जं च तए वणकेलिनिमित्तओ वि ते भविही । वेरग्गमइमहंत, संजायं तं पि तह चेव ॥ ३४०४ ॥ ता देसु मज्झ दिक्खं, निययं काउं पसायमइगरुयं । न विलंबं सहइ मणो, मह इण्हि नरयभयभीयं ।। ३४०५ ।। एवं भणमाणो च्चिय सयमेव करेइ जाव सो लोयं । किर पंचहिं मुट्ठीहिं ता पुत्तो पडइ पाएसु ॥ ३४०६ ।। भणइ य ताय ! पडिक्खसु वच्चामी जाव निययनयरम्मी । तत्थ गओ महई तुह दिक्खामहिमं करिस्सामि ॥ ३४०७ सामंताई वि तहा पायविलग्गा भणंति एमेव । को वि न गणिओ तेणं, समीहियत्थम्मि उज्जमिणा ।। ३४०८ ।। तो सिरिहरमुणिपासे समणसिरिं संपवज्जिउं धीरो । सव्वत्थ निरासंसो, चरइ वयं मेरुथिरचित्तो ॥ ३४०९ ।। गिण्हइ दुहा वि सिक्खं अचिरेण वि आगमेइ अंगाई । आयाराईयाई, विसुद्धचित्तो दुवालस वि ।। ३४१० ।। उग्गं दुवालसविहं तवं चरंतो व तस्स तेएण । जाओ दुवालसरवीहिंतो अब्भहियदित्तिल्लो ।। ३४११ ।। विविहेहिं सीहविक्कीलियाइभेएहिं पुणरवि तवेहिं । तह सोसेइ सरीरं समयं कम्मं पि जह सुसइ ।। ३४१२ ।। एवं च उत्तरोत्तरसंजमठाणेहिं वड्ढमाणस्स । तित्थयरनामहेऊ वीस वि से उवचिया जाया ।। ३४१३ ॥ तहा हि - वच्छल्लं तह कह वि हु तेण कयं ताव तित्थनाहेसु । जह तक्कालियसंजयजणस्स जणिओ चमक्कारो ॥ ३४१४ ॥ भावारिहंतदंसणवंदणसेवागुणत्थुइकहासु । निच्चं चिय वट्टतेण जेण न कओ मणे खेओ ॥ ३४१५ ।। नियसंजमोवघायं रक्खंतेणं तहा जिणिंदाणं । बिंबाई सुविचिंताइ उज्जमो सव्वहा विहिओ ।। ३४१६ ।। एवं सिद्धाणं परूवणाइ तह सिद्धगुणथुईए य । सिद्धावासकहाए य पवरतोसं वहंतेण ॥ ३४१७ ॥ तह केवलिप्पणीयम्मि पवयणे बारसंगरूवम्मि । अहवा वि संघरूवे भवजलहितरंडसंठाणे ॥ ३४१८ ॥ जेसि समीवे धम्मो, पडिवन्नो सुयचरित्तभेयजुओ । तेसिं धम्मगुरुणं च सिवपुरीसत्थवाहाणं ॥ ३४१९ ॥ कज्जम्मि वावडताण तह य थेराण ताण अणवरयं । धम्मम्मि सीयमाणे, करेंति जे थिरयरे जीवे ॥ ३४२० ।। जाईसु य परियाए , पडुच्च थेरा तिहा हवे कमसो । सट्ठी वरिसा समवायधारया वीस वरिसा य ॥ ३४२१ ।। एवं बहुस्सुयाण वि सुहसज्झायप्पमत्तचित्ताणं । बारसविहतवचरणे, रयाण तह सत्तवस्सीणं ॥ ३४२२ ॥ वच्छल्लं कुणमाणेण जइ ण सिद्धंतसिद्धमग्गेण । सत्तण्ह पयाण इमा कया उ आराहणा सत्त ॥ ३४२३ ।। अविसन्नचेयसा तह , अभिक्खणं सयलकिरियकालेसु । नाणोवओगकरणेण अट्टमट्टाणमब्भसियं ॥ ३४२४ ।।
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