SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० महावत को देखा । कुछ समय वहां ठहरकर वह दूसरे स्थानों का निरीक्षण करता हुआ एक शिवालय में पहुंचा । वहां कपालसिंह नामक अवधूत को शिवजी की पूजा करते हुए देखा । शिवजी की पूजा समाप्ति के बाद जब वह शिवालय से निकला तो मूलदेव भी उसके पीछे पीछे चल दिया । अवधूत एक कुंभकार के घर गया । कुंभकार ने पहले से ही सुरा मांस की व्यवस्था कर रखी थी । अवधूत ने सुरा मांस का सेवन कर मंत्र शक्ति से अपनी भुजा से एक सुन्दर युवति को निकाली । उसके साथ यथेच्छ भोग भोगकर उसे अपने भुजा में समाविष्ट कर दी। अवधूत अपनी झोली दण्ड कमण्डल ले कर वहां से निकल गया । मूलदेव ने छुपकर अवधूत की लीला देखी । वहां से वह घर आया । दूसरे दिन वह राजा के पास पहुंचा और विनय पूर्वक बोला - राजन् ! आपने मेरे पर बड़ी कृपा कर के एक सुन्दर स्त्री के साथ मेरा विवाह करवाया, लेकिन एक दिन भी मेरे घर आप नहीं आये। कृपा करके भोजन के लिए मेरे घर पधार कर मेरे घर को पवित्र करें | राजा ने उसका आमंत्रण स्वीकार किया । वह वहां से निकला और अवधूत के पास पहुंचा । अवधूत से घर पधार ने का आग्रह किया । अवधूत ने उसकी बात मान ली । इसके पश्चात् वह महावत के पास पहुंचा और उसे भी भोजन समारम्भ में आने का आग्रह किया। महावत ने मूलदेव का आमंत्रण स्वीकार किया। मूलदेव ने घर आकर भोजन की सुन्दर व्यवस्था की। उसने दो आसन और तीन थाल तैयार किये। एक राजा के लिए दूसरा जोगी के लिए और तीसरा महावत के लिए । राजा निर्धारित समय पर भोजन के लिए उपस्थित हुआ। मूलदेव ने राजा का सत्कार कर उसे योग्य आसन पर बिठाया ! इतने में कपालसिंह योगी और महावत दोनों आये । मूलदेव ने उन्हें भी उचित सन्मान के साथ निर्धारित आसन पर बिठाया । मूलदेव के कहने पर प्रत्येक आसन के सामने दो दो थाल रख दिये। उस में विविध प्रकार के भोजन परोसे गये । राजा ने मूलदेव से पूछा - मूलदेव ! हम तीन है किन्तु आपने छ थालों में भोजन क्यों परोसा ? मूलदेव ने कहा - राजन् ! यदि अपनी प्रेमिका के साथ भोजन किया जाय तो बड़ा आनंद होगा । आप भी अपनी प्राणप्रिया को बुलाएं । राजा ने चिल्लाना देवी को बुलाया और अपने बगल में उसे बिठाया । मूलदेव ने भी अपनी पत्नी जन्मान्धी को बुलाकर उसे भी अपने पास बिठाया । सिंहकापालिक से कहा - योगीराज ! आप भी अपनी प्रियतमा को बुलाएं । मूलदेव के आग्रह पर उसने भी अपने भुजदण्ड से एक युवा स्त्री को निकाली और उसे अपने पास बिठाई। राजा बडा आश्चर्यचकित था। उसने मलदेव से कहा - राजन ! यदि अपराध की क्षमा करें तो मैं अन्य भी आश्चर्य आपको बताऊंगा । राजा ने उसके अपराध की क्षमा की और अन्य आश्चर्य बताने को कहा । मूलदेव ने चिल्लाना देवी से प्रार्थना की कि देवी ! आप अपने प्रियतम के साथ ही भोजन करें । चिल्लना ने अपने प्रियतम महावत को बुलाया और उसे अपने पास बिठाया । उसके पश्चात् अपनी पत्नी जन्मान्धी को कहा - प्रिये ! तुम भी अपने प्रियतम को बुलाओ। उस ने दत्तश्रेष्ठी को बुलाया और अपने पास बिठाया । राजा यह सब देख विचार में पड़ गया । मूलदेव ने कहा – राजन् ! यह सब रागान्ध का प्रभाव है । रागान्ध व्यक्ति कर्तव्याकर्तव्य को भूल जाता है । राग ही पाप का मूल है और संसार को बढाने वाला है। आपका चिल्लना पर राग है और चिल्लना का महावत पर । मेरा जन्मान्धी पर राग है तो जन्मान्धी को दत्त पर । राजा को रागासक्ति के दुष्परिणाम दृष्टि गोचर हुए । उसने महावत, योगी और दत्त श्रेष्ठी को उचित दण्ड दे कर उन्हें देश से निष्कासित किया । ___ आचार्य के मुख से राग के दुष्पपरिणाम सुनकर अजितसेन को भी वैराग्य हो गया । उसने आचार्यश्री से दीक्षा लेने की इच्छा प्रगट की । आचार्यश्रीने कहा - राजन् ! अभी तुम्हारे भोगावली कर्म उदय में है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001587
Book TitleChandappahasami Chariyam
Original Sutra AuthorJasadevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages246
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy