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को सुनो । (गा.-२०४-)
इस अवसर्पिणी काल के चतुर्थ आरे में आगामी भव में सुप्रसिद्ध आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के नाम से तुम्हारा जन्म होगा । अब मैं तुम्हारे पूर्वभवों का वर्णन करता हूँ। __पश्चिम विदेह की सौगन्धिका विजय में श्रीपुर नामका रमणीय नगर था। वहां श्रीषेण नामका राजा राज्य करता था। उसकी रूप शील गुण सम्पन्ना श्रीकंता नामकी रानी थी। रानी के साथ सुखपूर्वक निवास करते हुए राजा का बहुतसा काल व्यतीत हुआ । ___ एक दिन रानी गवाक्ष में बैठी हुई नगर निरीक्षण कर रही थी । सहसा उसकी दृष्टि अपने पुत्र के साथ आनन्दपूर्वक खेलती हुई एक सेठानी पर पड़ी । बालक की विविध प्रकार की बालक्रीडा देख वह अपने आप को धिक्कारने लगी । मैं इतने बड़े साम्राज्य की साम्राज्ञी होते हुए भी मेरी गोद पुत्र से शून्य है । पुत्रविहीन स्त्री का जीवन निरर्थक है। इस प्रकार पश्चाताप करती हुई महारानी महल से नीचे उतरी और शयनकक्ष में अन्यमनस्क हो विलाप करने लगी । महाराजा को जब इस बात का पता चला तो वह रानी के पास पहुंचा और रानी को आश्वासन देते हुए पत्र प्राप्ति का उपाय सोचने लगा। उपाय सोचते सोचते उसे विचार आया - हमें किसी तत्त्वज्ञानी मुनि से पूछना चाहिए कि हमारे भाग्य में पुत्र है या नहीं?
एक दिन अपनी रानी के साथ उद्यान में क्रीडा करते हुए राजा ने सहसा आकाश से नीचे उतरते हुए एक चारण मुनि को देखा । राजा और रानी मुनि को देख बड़े हर्षित हुए । वे मुनि के पास गये और वन्दन कर मुनि की उपासना करने लगे । उपदेश के अन्त में राजा ने मुनि से पूछा - भगवन् ! हमें पुत्र की प्राप्ति होगी ? मनिवर ने कहा - नरेन्द्र ! तम्हारे भाग्य में वर्तमान में पत्र की प्राप्ति नहीं है किन्त कालान्तर में अवश्य होगी । इसका कारण मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम ध्यान से सुनो।
तुम्हारी यह जो अग्रमहिषी है वह पूर्वभव में इसी नगर के श्रेष्ठी देवांगद की पत्नी श्रीदेवी की कुक्षी से सुनन्दा नामकी कन्या के रूप में जन्मी थी । युवावस्था में वह अत्यन्त रूपवती थी। उसे अपने रूप और यौवन का बड़ा अभिमान था । एक दिन उसने रूप सम्पन्न गर्भवती तरुणी को देखा । गर्भ के कारण देदीप्यमान मुख फीका पड गया था । निरोग होते हुए भी दीर्घकालीन रुग्णा सी लगती थी । गर्भभार के कारण गति में मन्दता थी और शरीर शीथिल था । उसकी यह अवस्था देख उसे विचार आया - गर्भ के धारण करने से स्त्री का यौवन नष्ट हो जाता है । सौंदर्य फीका पड़ जाता है । बालक के जन्म लेने पर उसके लालन पालन में वह अपने सुखोपभोग को भी पूरा नहीं भोग सकती । अतः मैं कभी भी गर्भवती नहीं बनूंगी । उसने यह निदान किया। श्रावक धर्म का पालन करती हुई और निदान का प्रायश्चित किये बिना ही वह मरी और सौधर्म देवलोक में जन्मी ! वहाँ देवभव को पूर्ण कर उसने दुर्योधन राजा के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया । युवावस्था में इसका तुम्हारे साथ विवाह हुआ । पूर्व जन्म के निदान के कारण इसे वर्तमान में पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही है । किन्तु पूर्वजन्मकृत निदान कर्म के क्षीण होने पर यह एक सुन्दर पुत्र को जन्म देगी । ___गुरु के ये वचन सुनकर राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुए वे घर आकर जिनभक्ति करने लगे । एक दिन राजा श्रीकान्ता रानी के साथ नन्दीश्वरद्वीप के भव्य जिनालय में पहुँचा । वहाँ विधिपूर्वक भगवान को स्नान कराया और उनकी भक्तिपूर्वक पूजा की । श्रद्धा से जिनपूजन करने के कारण रानी गर्भवती हुई । इसने एक सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । राजा ने पुत्र का जन्मोत्सव किया । बालक का नाम श्रीधर्म रखा । जब श्रीधर्म
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