Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
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श्रीआत्मवीरग्रन्थमाला ग्रंथांक चोथो
आत्मानन्दस्तवनावली
संशोधक-- न्यायास्मोनिधि-श्रीमद्विजयानन्दसूरीश्वर
प्रशिप्यमुनि श्रीकपूरविजयजी महाराज ।
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सुधारा वधारा साथे बीजी आवृत्ति ।
महोपाध्याय श्रीमद्वीरविजयजी महाराज सदुपदेशात्
प्रकाशक
बाबू सुमेरमल सुराणा
कलकत्ता ।
चीरसवत २४४३ ] अमृत्य । [विक्रमसंवत् १९७३
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ATMANAND STAVANAVALI
MUNI SHRI KARPURVIJAYAJI MAHARAJ भी० र पारख - पारख-निवास averवेटरीनरी होस्पीटल रोड, बीकानेर (राज.) Second edition.
(Thoroughly Revised and Enlarged)
PUBLISHED BY BABU SUMERMAL SURANA,
OF
CALCUTTA.
1000 Copies]
Free Distribution
[
1917
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SPRINTED BY
PANDIT ATMARAM SHARMA
at the George Printing Works, Kalbhairo, Benares City
PUBLISHED BY
BABOO SUMERMAL SURANA,
CALCUTTA
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"न्यायांनोनिधि श्रीमद्विजयानंद सूरि
(आत्मारामैनी ) महाराज" , जन्म संवत १७७३-स्वर्गवास संवत १९५३
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'जैनाचार्य न्यायांभोनिधि श्रीमद्विजयानंदसूरि
(आत्मारामजी ) महाराज"
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॥ उपाध्यायजी ॥ " श्रीमद् वीरविजयजी महाराज”
phy
पर पारख
पारख - निवास वेटरीनरी होस्पीटल रोड,
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प्रस्तावना
INDI
वंदन ! कोटिशः वंदन !! ते जगवंद्य श्रीविजयानंद सरीश्वरना पाद पंकजमां कालनो अनंत महासागर तेमना उज्ज्वल अस्तित्व उपर फरीवल्योछे, ए महासागरनुं प्रत्येक मोनुं सूरीश्वरनी मधुर स्मृतीओ भुसाडवा अहोनिश गर्जारव करी रघुछे । छतां आजे एक पण एवो जैन बतावशो के जेनुं हृदय श्रीमान् आत्मारामजीना स्मरण मात्रथी उल्लसित न थतुं होय ? एवो कोइ हीनभागी जैन बतावशो के जे आत्मारामजी महाराजना देवचरित्रमाथी पुरुषार्थना, साहसिकताना, भूतदयाना अने अशेष मनुष्य प्रेमना पाठोन शीखतो होय ? जेमणे एक काले जगतनुं अज्ञान-तिमिर टालवा अद्भुत ज्ञान नास्कर प्रकटाव्यो हतो । भास्करना प्रचंड छतां स्वास्थ्यकर किरणोए जगत्ने सत्यनुं स्वरूप समजाव्युं हतुं, विश्वमा उत्तेजना अने कर्तव्य प्ररेणानुं मधुर संगीत छेड्युं हतुं । , आजे विश्ववंद्य श्रीविजयानंद सूरिजी सशरीरे
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( २ )
जो के विद्यमान नथी, तो पण तेमनो अक्षय कीर्तिदेह अने अक्षर देह अमारां मानस चक्षुओ पासे नित्य नवारूपे दृष्टिगोचर थायछे । तेमनो जलद गंभीर स्वर आजे संभलातो बंध पड्योछे, तो पण तेमनी जे वीर गर्जनाए अमेरिकानी सर्वधर्मपरिषद् पर्यंत प्रतिध्वनि पाड्यो हतो, ते वीरहाक हजी पण अमारा कर्णोमां गुंजारव करी रह्योछे । कालनी शताबदीओ पण ए पुण्यश्लोक गुरुवरनां मधुरां स्मरणो लुसकरी शके तेम नथी । जगतना अनंत नाम भंडारमांथी जैन समाजे "आत्मारामजी किंवा श्रीविजयानंदसूरीश्वर" नुं जे नाम हृदय मंदिरमां संग्रही राख्छे, जे नाम जैनमात्रनी उपासना अने पूजाने पात्र छे, जे नाम भक्तिना सुवर्ण सिंहासने विराजित छे, ते नामनो क्षुद्र कालबल केवी रीते लोप करी शकशे ? श्रीमान् आत्मारामजीना अशेष उपकारोथी दबायेली जैनप्रजा ज्यांसुधी पोताना भूतकालने हृदयथी चाहती रहेशे, त्यां सुधी ते भूली शकशे नहीं। अमारी वाणी के लेखिनीमां एवं ते शुं सामर्थ्य छे के अमे तेमनी गुणावलीनुं गान निःशेष करी शकीए ? पंजाब - अनेक संत महंतोनी पवित्र जन्म भूमि पंजाब - धर्मवीर योद्धाओनी चरण रजथी अंकित थली वीरभूमि - पंजाब, ए श्रीविजयानंद सूरीश्वरनुं कीर्तिनिकेतन छे, सहस्रनर-नारीओ -- आबाल
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वृद्ध वनिताओ तेमनी भव्य वाणीनुं अमृतपान करी । नवु जीवन पामेछे-नवं चैतन्य स्फुरावेछ । पंजाबना ए धर्मवीर योहानुं शौर्य-वीर्य पंजाबनी जैन प्रजानी नसे नसे व्याप्त थह राछे। गुजरातीओ पण कंइतेथी वंचित नथी। दयानंद सरस्वती जेवा सबल शत्रुओनी सामे जेमनी सुयुक्ति पूर्ण वाणी अमोघ सुदर्शन स्वरूप गणाती हती, स्थानकवासीओना पुष्पास्त्र साम जेमनुं वज्रास्त्र निरंतर झझुमतुं हतुं, जेमनी तेजोमय मूर्ति निरवपणे यथार्थ मनुष्यतानुं ज्वलंत चित्र प्रकटावती हती, ते युग प्रभावक मुनिवरनी कीर्तिगाथा सहस्रकंठे गाइए, तो पण अधुरीने अधुरीज भासेछे । व्याख्यान--वाचस्पति पण जेमनी सवल वक्तृत्वशैली पासे लजित थाय, एक "मार्टीपर" पण जेभनी धर्मार्थप्राणाहुति पासे निस्तेज थाय, जेमनी मुखमुद्रा सागरनी गंभीरतानुं सूचन करती हती, जेमनां शांत, उज्ज्वल अने वीरत्वभर्या नेत्रोमांथी विश्व प्रेम, अखड मैत्री अने जगदुद्धारना दीप्तिमय किरणो वर्षतां हतां, ते श्री आत्मारामजी अमारा आत्मरूपी आरामने आजे पण अमूल्य रमणीयता अी रह्याछे।अमारी पासे एवी तेकह संपत्ति छे, एवी ते शी सामग्री छे, के अमे ते प्रातःस्मरणीय मुनीश्वरना चरण युग
लमां ढाली दइए ? नथी धन संपत्ति, नथी बुद्धि-2) Ge
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( ४ )
संपत्ति, के नथी आत्म संपत्ति । आपनीज संपत्ति आपने अर्पिए तो? आपनांज स्तवनो, आपनांज पद्यो अने आपनीज भावनाओनो स्वर्गीय पुष्पहार आपना कंठमां आरोपीए तो? आपना अवतरणथी अमारो समाज सौभाग्यशाली बन्यो छे, आपनी निर्मल बुद्धि शक्तिना विद्युत चमकाराओए भूतलना सर्वश्रेष्ठ पंडितोने आश्चर्य चकित बनाव्याछे । अत्यारे कई देवभूमि आपना अस्तित्वथी अहोभाग्य बनी छे ते अमे नथी जाणता । मात्र एटलं जाणीए छीए के आपना जन्मोत्सव समये जे अमरोए स्वर्गमां विजयी जैन शासननी विजयध्वजा फरकावी हती, जे देवोए अलक्षमां रहो अदृश्यपणे पुष्पवृष्टि करी हती, ते देवो आपनो सहवास पामी कृतार्थ
थयाछे । जैन समाज आपना देह विलयथी चोधार 1 आंसु वरसावेळे । जे समाजमां आपे एक काले सदुपेदशनो प्रवाह वहेवडाव्यो हतो, अने जे शासन उद्यानने फल फुल कुसुमित कर्तुं हतुं, ते उद्यान आजे शुष्कवत् बनी गयोछे । पुनः मेघ मल्हार गाइ नवा मेघ कोण आणशे ? अमारा खाली खोखाओमां आत्मतेज कोण पूरशे ? आ हिंदभूमि पुनः आत्मारामजी समा केशरी सिंहोथी क्यारे गर्जित थशे ? एटलं सद्भाग्य छे के आपनां पदचिन्हो हजी लुप्त नधी थयां, आपे प्रबोधेलो मार्ग हजी धुलीधुसरित नथी
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में थयो, परंपरामा उत्तरेलो आपनो पुण्यप्रभाव हजी
क्षीण नथी थयो । आपना शिष्यो, आपना अनुयायिओ, आपना प्रशंसको, आपना पमले चाली यथाशक्ति अज्ञान तिमिर अजवालेछ, जगतनुं कल्याण साधेछ । विशेष शुं कहीए?आपना जवाथी जैन शासननी एक उपयोगी स्तंभ टुटी पड्योछे, अमार प्रतापी दिनकर आथम्यो छ। गुरुदेव : पुनः आपनी आत्मविभूतिनी प्रोज्ज्वल चिणगारीओ आ मर्त्यभूमि उपर प्रेरो, जैन शासनने जयवंतु करो।।
कोइ कहेशो के जैन भारतीना भुवनमां आईं तिमिर क्यारथी प्रसयु? कोइ कहेशो के जैन साहित्य अने न्यायनो कल्पतरु क्यारथी करमावा लाग्यो ? इतिहास साक्षी पूरेछ, अभ्यासीओ समर्थन करेछे के श्रीयशोविजयरूपी.न्यायनो दिवाकर अने साहित्यनी विविध शाखाओने हृदयनो रस पाई उछेरनार माली सीधावतांशासनमा शून्यताछवाइ छ। जेमणे विद्याप्राप्ति अर्थे देशत्याग करी,बेशपरिवर्तन करी, दुश्मनाना चरणमांबेसी अध्ययन कर्यु हतु,जे. मणे चार वर्ष पर्यंत काशीवास सेवी कठोर संयम. नियमनो प्रत्येक पगले परिचय आप्यो हतो, जैनविरोधी ब्राह्मण पंडितो पण जेमनी अलौकिक गुणा 7. वली उपर मुग्ध थया हता, ते श्रीयशोविजय अने ( विनयविजय क्या? जैन शासननी दाझ जेमनी
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। प्रत्येक नमोमां, प्रत्येक धमनीमां अने प्रत्येक हृदय : स्पंदनमा अभिव्यक्त थती हती, ते बे महारथीओर्नु कीर्तन अमारे माटे क्यारे सफल थशे ? अमारामां एवी महाप्राणताअन साधना शक्ति क्यारे आवश? शास्त्रोदधि मंथन करी सुधर्मना सुंदर रत्नो श्रीयशोविजय सिवाय अन्य कोण शोधीने अर्की शकत? महाअभिमानीओना अंतःकरणने पीगलाववा प्रसंगोपात प्रखर किरणो कोण प्रसारी शकत ? भारतवर्षना मध्यकालना जैन धर्मोद्धारकोनी संख्या नजीवी छे, श्रीयशोविजय अने विनयविजय, ए सं. ख्यामां अग्रस्थान लइ शकेछ । अगणित कष्ट परंपराओने आलिंगन आपी, क्षण भंगुर मिथ्या अपवादोनी सामे अट्टहास्य करीजेमणे शासननोप्रभाव देश विदेशमा विस्तार्यो, जेमनी अगाध बुद्धि, शक्ति अने आत्म संपत्तिनुं विरोधीयो पण गुणगान करेछे, ते श्रीयशोविजय तथा विनयविजय जेवा धुरंधर उपाध्यायो माटे कोण मगरूर न थाय ? जैन समाज एवा महा पुरुषसिंहो माटे यथार्थ गर्व लइ शकेछ, मात्र तमना पगले प्रवर्तवानुं बल कोइ दर्शावी शकतुं नथी । दर्शावछे तो तेथी सिद्धि कोई मेलवी शकतुं नथी। जैन समाजनुं एज दुर्दैव छ।जैन इति
हासरूपी आकाश श्रीयशोविजय अने विनयविज2) य जेवा तेजस्वी नक्षत्रोथी परिव्याप्त छ, जैन प्रजा ते 2
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प्रकाशनो सदुपयोग करी शकती नथी । गीर्वाण र भाषाना समर्थ विद्वान् होवा छतांजेमणे लोकोपकार करवानी धर्मबुद्धिने विवशथइ प्रांतिक-देशभाषामां नवू काव्य साहित्य उमेरतां लेशमात्र संकोच न अनुभव्यो, जेमणे एक बालकथी लइ एक वृद्धने पोतानी वाणीनो लाभ आपवा स्तवनोअने पद्योनी रचनाथी लइ न्यायना कठिनमां कठिन गणाता ग्रंथो साहित्य भंडारमा आमेज कर्या, ते श्रीमान् न्यायविशारद न्यायाचार्य महामहोपाध्याय श्रीयशोविजय उपाध्यायनुं स्तवन अमे अमारी पामर लेखिनीथी करी शकता नथी, मात्र तेमना रचेलां थोडांक स्तवनोज आ ग्रंथमां प्रकट करी समाजना करकमलमां अपीए छीए।जैन संघ पुनः श्रीयशोविजय जेवा शास्त्राभ्यासीओ, कष्टसहिष्णुओ, शासनप्रभावको, लोकोपकारको, निरभिमानिओ, संयमशीलो अने मनुष्यना रूपमां देवो क्यारे उत्पन्न करशे ? एम थशे त्यारेज शासननी प्रभावनानो चंद्रमा सोले कलाए खीलशे । जगत् ए प्रकाशमां स्नान करी कृतार्थ थशे । किं पहुना ?
विद्यमान श्रीमान् उपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजी अने स्वर्गस्थ प्रातःस्मरणीय देवोपम
श्रीमान् देवविजयजीनीप्रासादिक रसभरित वाणी(नासौभाग्यथी पण वाचकोने वंचित नथी राख्या।ए
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* रसमूर्ति मुनिओनी सरल, सुंदर अने भाववाही
संगीतमयी वाणी सांभलवी कोने न गमे १ भधिकजनोना हृद्य-कमलने प्रफुल्लित करनारी पुरातन छतां चिर नवीन लागती वाणी सुधा आ ग्रन्थमां शब्दांकित करी ए पूज्य साहित्य महारथीओना चरणमा शिर नमावीए छीए। ___ एक विशेष उल्लेख लिपिबद्ध करवानुं प्रलोभन संयममांराखी शकता नथी। आ उपकारक ग्रंथ प्रकट करवामां बाबू सुमेरमलजीनो असाधारण उत्साह हतो । ए महाशयनेज आग्रंथप्रकाशननुं सर्वमान आपीए तो अयोग्य नथी । तेमनी धर्मकरणी, इतिवृत्त छापाना देदीप्यमान अक्षरे हजी बहार आव्यु नथी । एवा सहृदय पुरुषो एवी इच्छा पण राखतानथी । परंतु जगतने एवा निर्मानी सहायको अने उत्तेजकोनी जेटली जरुर छे. तेटली आडंबर प्रिय मिथ्याकीर्तिनी सेवकोनी नथी, एम कहीए तो शुं खोटुं छे ? ___ संवत् १८६६ मा आचार्य महाराज श्रीविजयकमल सूरिजी तथा उपाध्यायजी श्रीवीरविजयजी महाराजने साथेलइजेमणेजेसलमेरनो संघकहाड्यो हतो। ए निमित्त जेमणे लगभग पांच सहस्र रुपीयानो सद्व्यय करी हृदयनी उदारतानो परिचय र 2 आप्यो हेतो, जेमनी तीर्थयात्राओना प्रसंगो पण ।
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ॐ उदारता अने धर्मबुद्धिना समुज्ज्वल दृष्टांतो पुरा पाडेछे अने ते उपरांत, जेओ चतुर्थव्रत धारी रही, संयम-नियमनी सुंदरताना पाठो परिचयीओने पुरा पाडेछे, तेमने धन्यवाद आप्या विना केम रही शकाय ? शासनदेव एवा धर्मप्रेमी सहायको, वाचको अने उत्तेजको श्रेयः करो।।
द्वितीयावृत्तिमां भूल के भ्रांन्तिने स्थल न होय, छतां अमारावाचकोनी उदारता उपर विश्वास राखी कहीए छीए के
"करजो माफ अमारी पामर भ्रांतिओ, दिनचर्यामां प्रतिपगले जे थाय जो, मेहेमानो ओ स्नेहे आ स्वीकारनो।"
वनारस द्वितीय भाद्रपद शुक्ल प्रतिपत् ।
कर्पूरविजय।
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"
जैनाचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिजी महाराज कृत स्तवनो
द्वादश भावना
पदो
39
"
विषयानुक्रमणिका |
"
؟
""
बीजो भाग ।
उपाध्याय श्रीवीरविजयजी कृत स्तवनो
प्रथम भाग ।
95
"
99
"
श्रीउदयरत्नजी कृत चोविशी
पदो
सज्झायो
गुहलीओ
श्रीयशोविजयोपाध्यायजी कृत ऋण चोविशीओ
श्रीदेवविजयजी कृत अष्ट प्रकारी पूजा
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అతజలజ
या पुस्तक मलवानुं ठेकापुं___ बाबू सुमेरमलजी सुराणा, ठि. बड़ा बाजार, मनोहरदासका कटरामें
मु. कलकत्ता। Mess- BSPEGESSPESASSSS
అతాతతాతల
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ओम् न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्री श्री श्री १००८ विजयानन्द सूरिजी (आत्मारामजी) महाराज
विरचित सवनावती ।
मंगलाचरणम् ।
(इन्द्रवज्रा) श्रीवीरनाथाय नमः प्रकाममनन्तवीर्यातिशयाय तस्मै । अन्तःस्थमेकागपरिग्रहो यः कामादिचक्रं युगपज्जिगाय ॥१॥
___ ( आर्यावृत्तम् ) जयति भुवनैकभानुः सर्वत्राविहतकेवलालोकः । नित्योदितः स्थिरस्तापवर्जितो वर्धमानजिनः ॥२॥
॥श्री ऋषभ जिन स्तवनानि ॥
स्तवन पहेढुं।
॥ आसणरा जोगी, ए देशी ॥ प्रथम जिनेसर मरुदेवी नंदा । नानि गगन कुल चंदा रे। मन मोहन खामी । समवसरण त्रण कोट सोहंदा । रजत कनक रतनंदा रे ॥ मन ॥ १॥ तरु असोग तले चिहुं पासे । कनक
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतसिंहासन कासे रे॥ मन ॥ पूर्व दिसि सुर बंदे नासे । बिंब तिहुं दिसि जासे रे ॥ मन ॥२॥ मुनि सुर नारी साधवी सारी । अग्नि कोण सुखकारी रे॥ मन ॥ ज्योति नवन वन देवी निरते। श्नपति वायव्य थिरते रे ॥ मन ॥३॥ सुर नर नारी कूण ईशाने । प्रनु निरखी सुख माने रे ॥ मन ॥ तुल्य निमित्त चिहुं वर थाने । सम्यग् दरसी जाने रे॥ मन ॥४॥ आदि निखेपा तिग उपगारी । वंदक नाव विचारी रे । मन । वाग जोग सुन मेघ समानो । जव्य शिखी हरखानो रे॥ मन ॥५॥ कारण निमित्त उजागर मेरो। सरण ग्रह्यो अब तेरो रे। मन । नगत वछल प्रजु जगत उजेरो । मोह तिमिर हरो मेरो रे । मन ॥ ६ ॥ नगति तिहारी मुक मन जागी। कुमति पंथ दियो त्यागी रे।मन। आतम ज्ञान नान मति जागी। मुझ तुफ अंतर नागी रे । मन ॥७॥
स्तवन वीमुं।
॥ राग मराठीमें ॥ रिखव जिनंद विमल गिरि ममन, ममन धर्मधुरा कहीये। तुं अकल स्वरूपी, जारके करम
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स्तवनावली |
नरम निज गुण लहीये ॥ रिखव० ॥ १ ॥ अजर अमर प्रभु अलख निरंजन, जंजन समर समर कहीये | तूं अदभुत योद्धा, मारके करम धार जग जस लहीये ॥ रिखवण् ॥ २ ॥ अव्यय विजु ईश जग रंजन, रूप रेख बिन तु कहीये । शिव अचर नंगी, तारके जग जन निज सत्ता नहीये ॥ रिखव० ॥ ३ ॥ शत सूत माता सुता सुहंकर, जगत जयंकर तुं कहीये । निज जन सब तायें । हमोसें अंतर रखना ना चश्ये ॥ रिखव० ॥ ४ ॥ मुखमा जींचके बेशी रहना, दीनदयालको ना चश्ये । हम तन मन वारो, वचनसें सेवक - पना कह दये ॥ रिखवण् ॥५॥ त्रिभुवन ईश सुदंकर स्वामी, अंतरजामी तुं कहीये । जब हमकुं तारो, प्रभुसें मनकी वात सकल कही ये ॥ रिखव० ॥६॥ कल्पतरु चिंतामणी जाच्यो, आज निरासें ना रहीये । तुं चिंतित दायक, दासकी अरजी चितमें दृढ गहिये ॥ रिखव० ॥ ७ ॥ दीन हीन परगुण रस राची, सरण रहित जगमें रही ये । तुं करुणासिंधु, दासकी करुणा क्युं नहि चित्त गहिये ॥ रिखव० ||८|| तुम विन तारक कोई न दिसे, होवे तुमकुं क्युं कहीये । इह दिलमें ठानी, तारके
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__ श्रीमद्विजययानंदसूरि कृतसेवक जगमें जस लहीये ॥ रिखव०॥ ए॥ सात वार तुम चरणे आयो, दायक शरण जगत कहीये। अब धरणे बेशी, नाथसे मन वंडित सब कुछ लहीये ॥ रिखव० ॥१०॥ अवगुण मानी परिहरस्यो तो, आदि गुणी अगको कहीये । जो गुणीजन तारे तो, तेरी अधिकता क्या कहीये ॥ रिखव० ॥११॥ आतम घटमें खोज प्यारे, बाह्य जटकते ना रहीये । तुम अजय अविनाशी, धार निज रूप आनंद घनरस लहीये ॥ रिखवण ॥१॥
आतमनंदी प्रथम जिनेश्वर, तेरे चरण शरण रहीये । सिकाचल राजा, सरे सब काज आनंद रस पी रहीये ॥ रिखव ॥ १३ ॥
स्तवन त्रीजुं।
॥ राग माढ ॥ ___मनरी बातां दाखाजी म्हारा राज हो रिखवजी
थाने ॥ मनरी० ॥ आंकणी ॥ कुमतिना नरमाया जी म्हारा राजरे कांश, व्यवहारि कुलमें, काल अनंत गमायाजी म्हारा राज हो रिखवजी०॥१॥ कर्म विवर कुछ पायाजी, म्हारा राजरे कां । मनुष्य जनमें, आरज देशे आयाजी। म्हारा राज
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स्तवनावली । हो रिखवजी० ॥ ॥ मिथ्या जन नरमायाजी, म्हारा राजरे कांश, कुगुरु वेशे अधिको नाच नचायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी०॥३॥ पुन्य उदय फीर आयाजी म्हारा राजरे कांश, जिनवर नाषित तत्त्व पदारथ पायाजी। म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ ४ ॥ कुगुरु संग बटकायाजी म्हारा राजरे कांश, राजनगरमें सुगुरु वेष धरायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ ५॥ सघला काज सरायाजी म्हारा राजरे कांश, मनमो मर्कट माने नहीं समजायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी० ॥६॥ कुविषयां संग ध्यावेजी म्हारा राजरे कांश, ममता माया साथ नाच नचावजी, म्हारा राज हो रिखवजी०॥७॥ महिमा पूजा देखी मान जरावेजी म्हारा राजरे कांश, निरगुणीयाने गुणीजन जगमें कहावेजी । म्हारा राज हो रिखवजी०॥॥ बही वारे तुमरे द्वारे आयाजी म्हारा राजरे कांश, करुणासिंधु जगमें नाम धरायाजी । म्हारा राज हो रिखवजी०॥ए॥ मन मर्कटकुं शिखो निज घर आवेजी म्हारा राजरे कांश, सघली वाते समता रंग रंगावेजी। म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ १० ॥ अनुत्नव रंग रंगीला समता संगीजी म्हारा राजरे
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__ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतकांश, तम ताजा अनुभव राजा संगीजी। म्हारा राज हो रिखवजी० ॥ ११ ॥
स्तवन चोथु।
॥ राग माढ ॥ थारी लरे सरण जगनाथ आज मुज तारो तो सही ॥ आंचली॥ क्रोध मानकी तप्त मिटावो, गरो तो सही । मेरे प्रजुजी गरो तो सही । ए दिव्य ज्ञान जग नाण, हृदयमें धारो तो सही ॥ थारी० ॥१॥ मिथ्या रान कपट जमता संग तारो तो सही। ए सम्यग दर्शन सरल, आनंदरस कारो तो सही॥थारी० ॥॥ तृषणा रांग लांमकी जा वारो तो सही। ए चरण शरण जय हरण, आनंदसे उगारो तो सही ॥ थारी० ॥३॥ अष्ट करम दल उदनट वैरी मारो तो सही । ए
छादश विध तव अघम गजार उधारो तो सही ॥ । थारी० ॥४॥ युगलक धर्म निवारण तारण हारो - तो सही । ए जगत उधारण रिखव जिनेश्वर · प्यारो तो सही ॥ थारी० ॥५॥ विमलाचल मंगन
अघ खमन सारो तो सही। ए आतमराम आनंदरस चाख उगारो तो सही ॥ थारी० ॥६॥
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MNANAVAN
स्तवनावली। स्तवन पांचमुं।
॥ राग वसंत होरी ।। साचा साहिब मेरा सिझाचल स्वामी ॥ टेक॥ चेतन करमको जाल फस्यो हे, वेगाही करहु निवेरा ॥ सिझा ॥ १॥ दरस करत जो शिव फल ताको, वेग मिटे नव फेरा ॥ सिझा ॥२॥ कलि काले एक तुमरे दरसका, आसरा नविको घनेरा ॥ सि ॥३॥ अषम कुगुरु नरम सब नागे, अजहु नाग नोरा ॥ सि ॥४॥ आतमराम आनंदघन राच्यो, तुमचो मानहु चेरा ॥ सि ॥५॥
स्तवन बहु।
॥राग वढंस ॥ ॥ हमको छोड चले बन माधो, यह चाल ॥ ___ अब तो पार नए हम साधो, श्री सिद्धाचल दरस करी रे ॥ अवतो पार ॥ टेक ॥ आदीश्वर जिन महेर करी अब, पाप पटल सब पूर नयो रे ॥ तन मन पावन लविजन केरो, निरखी जिनंद चंद सुख थयो रे ॥ अ॥ १॥ पुमरीक पमुहा मुनि बहु सिध्या, सिझक्षेत्र हम जाच लह्यो रे । पशु पंखी जिहां उिनकमें तरीया, तो हम दृढ विसवास गह्यो रे । अण् ॥ २॥ जिन
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ሪ
श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत
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गणधर अवधि मुनी नाही, किस आगे हुं प्रकार करूं रे । जिम तिम करी विमलाचल नेट्यो, नवसागरथी नाही करूं रे ॥ ० ॥ ३ ॥ नूर देशांतर में हम ऊपने, कुगुरु कुपंथको जाल पर्यो रे || श्री जिन आगम हम मन मान्यो, तब ही कुपंथको जाल जर्यो रे ॥ ० ॥ ४ ॥ तो तुम शरण विचारी यो, दीननाथको सरण दियो रे । जयो विमलाचल पूरण स्वामी, जनम जनमको पाप गयो रे ॥ ० ॥ ५ ॥ नूरजवी अजव्य न देखे, सूरि धनेसर एम कह्यो रे ॥ विमलाचल फरसे जो प्राणी, मोद महेल तिए वेग लह्यो रे ॥ ० ॥ ६ ॥ जयो जगदीसर तूं परमेसर, पूर्व नवानुं वार थयो रे । समवसरण रायण तले तेरो, नीरखी मम घ डूर गयो रे ॥ ० ॥ ७ ॥ श्री विमलाचल मुऊ मन वसीयो, मानुं संसारनो अंत थयो रे ॥ यात्रा करी मन तोष यो अब, जनम मरण दुख दूर गयो रे ॥ ० ॥ ८ ॥ निर्मल मुनिजन जो तें तार्या, ते तो प्रसिद्ध सिद्धांत कह्यो रे । मुज ससा निंदक जो तारो, तारक बिरुद ये साच लह्यो रे ॥ ० ॥ ९ ॥ ज्ञानहीन गुणरहित विरोधी,
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स्तवनावली।
लंपट ढीठ कषाय खरो रे । तुं बिन तारक कोइ न दीसे, जयो जगदीसर सिझगिरो रे ॥ अ ॥ १० ॥ तिर्यग नरक गति दूर निवारी, नवसागरकी पीर हरो रे । आतम रामअनघ पद पामी, मोद वधू तिन वेग वरो रे॥ अ० ॥११॥
- स्तवन सातमुं।
॥ चाल गुजराती गरबाकी ॥ वहेला नवि जश्यो विमल गिरी नेटवा । अरे कांइ नेटीयां नवऽख जाय, अरे कांश सेवीयां शिवसुख थाय, तुम वहेला नवि० ॥ टेक॥ अरे कांश जनम सफल तुम थाय, अरे कांश नरक तिर्यंच मिट जाय, अरे कांश तन मन पावन थाय, अरे कांश सकल करम दय जाय ॥ तुम बहेला ॥ १॥ अरे कां पंचमे नव शिव जाय, अरे कांश श्नमें शंका नही काय, अरे कांश विमलाचल फरसाय, अरे कांश नविनो निश्चय थाय ॥ तुम ॥२॥ अरे कांश नाजिनंदन चंद, अरे कांश ठरी पाल जिन वंद, अरे काश् शूर होय अघ बूंद, और कां प्रगटे नयनानंद ।। तुम ।। ३ ।। यर कांड चउमुख चढे सुखरास. अरे कांश मोद महल कीनो वास, अरे कांश नववन सदु श्रयो नास,
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१० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतअरे कांश् कोइ न रहे उदास ॥ तुम ॥ ४ ॥ अरे कांश मोटा पुण्य अंकूर, अरे कांश चिंता गए सब पूर, अरे कांश कुमत कदाग्रह चूर, अरे कांश आव्या नाथ हजूर ॥ तुम० ॥५॥ अरे कांश आपणो वंश उकार, अरे कांश दीन अनाथ आधार। अरे कांश मुझने तूं अब तार, अरे कांश अवर न सरण आधार ॥ तुम ॥६॥ अरे कांश मुझने मत तूं विसार, अरे कांश करम नरम सब बार। अरे कां आतम आनंदकार, अरे कांश नवसागर पाम्यो पार ॥ तुम ॥ ७॥
स्तवन आउनु।
॥ राग विहाग ॥ तारक हे जिन नानिके नंदन विमलाचल सुखदारी। जरम मिथ्यामत यूर नस्यो हे, मिथ्या लोह कुराश् सखीरी ॥ तारक ॥ १ ॥ कुमती कुटल विटल सव नासी, सुमती सखी हरखारी । तूं वैरण मुक आदि अनादि, देख गिरिंद नसाइ सखीरी॥ ताण ॥ ॥ राग वेप मद नरम अझाना, अंधकार तिन गरी । श्री जिनचंद गिरिंद जो निरखी, निकमें पाप पलाश ॥ सण ॥३॥ पावन नावन मुक मन हुलसी, फुलसी कुमति घवरारी । अब कहां
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स्तवनावली । जातहे वैरण नैकी, रिखन जिनंद उहाइ ॥स॥ नावत विमलाचल जो फरसे, पंच नवे शिवरा।। अव हम तुमरो नातो टूटो, अब हम केम ठरा॥ स॥५॥ आदि जिनंद गिरीद जो लेट्यो, पाप घूक अंधरा । जयो जगदीसर श्री विमलेसर, चरण सरण तुम आश् ॥ स ॥६॥ आगे अनंत मुनि तें तार्या, वेर न कीनी कांरी।हुं तुम बालक सरण पर्यो हुँ, नेक नजर करो सां॥ स ॥७॥ आतमराम नाम अविनासी, मुक्ति रमणी वरवाश्री । सुमति हिंमोले सब सखीयनसें, आनंद मंगल गार ॥ स ॥ ७॥
स्तवन नवमुं।
॥ राग--तराना॥ राजत आनंद कंदरी विमल गिरी राजत आनंद कंदरी, रिखव जिनंद चंद सेवे सुर नर वृंद राजत ॥ टेक ॥ पुंमरीक गणाधिप पण कोमी मुनिवर, साग्र शिवनार वर करमको कंद हर । इत्यादिक अनंत मुनि सिश्नको थान तूं, रिखवदेव जगदीश मुक आस नर ॥ राण ॥१॥
रत्नवी जे अन्नवी नीरखे न गिरि उवि, पाप तम पटल विनाशक सद रवि । दायक जिनंद दियो
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श्रीमद्विजययानंदसूरि कृतछिनमें अनघ पद, विमल गिरीस ईस बेद गति चार गद ॥ रा ॥२॥ सुर गण इंद चंद नाचत पठत बंद, रचत संगीत गीत धपमप धुधु वंद। प्रागमदि अनट किट ध्रों ध्रों धोंक ध्रोट, त्रों त्रों सुखमदि अनंग नट नाश कर॥रा॥३॥ तलालों तलालों धिट निट किकम धंग, चमरि फिरत सुर अंगना सूरंग । धंद जय जय नाजिनंद नवि चकोर चंद, सिझगिरि ईस मम शिव वधूवर कर ॥ रा० ॥ ४ ॥ अजर अमर अज अलख
आनंद घन, चिदानंद जगानंद राजत अन्यून घन । सेवक आनंद करो निजरूप रूप करो, आदिहीमें दान दीयो, पाप सब नाशकर ॥
रा॥५॥ एक नव तीन नव पंचही जनम धर, __ मुगती रमणी वर नरक तिर्यग हर । महानंद कंद __तूं विमल गिरि ईश वर, अनुचव रंग राज काज । मेरो आज कर ॥ राण ॥६॥ रोग सोग मान नंग
जनम मरण संग, राग दोष मोह कोह विकट ' अनंग रंग। इत्यादि अनंत रिपु बीनमें विमार कर, आतम आनंद चंद सुधानंद वास कर ॥ रा० ॥७॥
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स्तवनावली।
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स्तवन दशहूं।
॥ राग-केरवो ॥ ॥ मगर बतादे पाहामीयां, ए देशी ॥ मगर बतादे पियारीया में तो पूजुंजी रिपन जिनंद मगर ॥टेक॥रायण तरु तले चरण बिराजे, बीच बिराजे जिनराज ॥०॥ १॥ चउमुख दरस करूं ने सुख पाऊं, जिम सुधरे सब काज ॥ म॥२॥ विमलाचल मंझन सब सोहे, मंमन धर्म समाज ॥ म० ॥३॥ आतम चंद जिनंदजी नेटी, वेग मिले शिवराज ॥ म ॥४॥
स्तवन अग्यारहूं।
॥ राग लावणी ॥ सखीरी चल गढ गिरनारी ॥ यह चाल ॥ प्रजी विमलाचल राजे, जिहां प्रजु रिखन्न देव गाजे, जायके पूजन करना जेके, सब ही कर्म सुन्नट नाजे ॥ नविजन तुम क्यों आलस करते, तज दो अघ जेरा कर्म कंद हर बंधन टूटे; मिथ्या मत घेरा न तेरा शत्रु जग गजे॥॥१॥ प्रजुजी नान्निराय नंदा, काट सव कर्मनका फंदा, नये जगमें सुरतरु कंदा, सिमरो धर्म के आनंदा, निजगुण सत्ता चिद्घन प्रगटी पुण्यरास श्क तान. अजर
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१४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतअमर पूरण पद पामी प्रगटे केवलज्ञान, नविजन महानंद काजे ॥प्र०॥२॥प्रनु तुम दरशन हितकारी, तरे नववनसें नरनारी, जिनों ने चरण सरण धारी के खिझग निजगुण वन वारी, तीन पांच अरु एक नवंतर करत मुक्ति में वास। जिन गणधर मुनि कथन रसीला, बातम अनुन्नव रास, निहारो नाथ जगत राजे ॥ प्रण ॥३॥
स्तवन बारमुं।
॥ राग ठुमरी ।। महावीर तोरे समवसरणकी रे ॥ चाल ॥ जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे ॥ हुं चाहुँ सेवा प्यारी, तो नासे कर्म कटारी, जव ब्रांति मिट गए सारी ॥ जिनंदा ॥ विमल गिरि राजे रे, महिमा अति गाजे रे, वाजे जग मंका तेरा, तूं सच्चा साहेब मेरा, हुँ बालक चेरा तेरा ॥ जिनंदा ॥१॥ करुणा कर स्वामी रे, तूं अंतर जामी रे, नामी जग पुनम चंदा, तूं अजर अमर सुखकंदा, तूं नानिराय कुल नंदा ॥ जि० ॥२॥ण गिरि सिकारे, मुनि अनंत प्रसिका रे, प्रजु पुंमरीक गण धारी, पुंगरगिरी नाम कहारी, ए सहु महीमा है थारी ॥ जि॥३॥ तारक जग दीगरे, पाप पंक सहु नीगरे,
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___ १६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
सुरपति अवर देव सब, मधुकर पर ऊंकारे रे ॥ रि० ॥ ६ ॥ जयो जगदीस सुहंकर स्वामी, सेवक सब उख टारे रे ॥ रिण || ७॥ विमलाचल मंगन मुझ प्यारो, आतम आनंद लारे रे ॥ रि० ॥७॥
॥ स्तवन चौदमुं।
॥ राग रामकली ॥ आंगण कल्प फल्यो री ॥ यह चाल ॥ आनंद अंग नोरी, हमारे आनंद ॥ टेक ॥ गणधर पुंमरीक इण गिरि सोहे, देखी अघ सहु जोरी ॥ ह ॥ १॥ इस अवसर्पिणी तृतीय कालमें, इण गिरि मोद वोरी ॥ ह ॥२॥ पुंमरीक गिरी श्ण कारण प्रगट्यो, नामें पाप होरी॥ ह ॥३॥ नंदनको गणाधिप इण गिरि, कर्म सुजटथी लॉरी ॥ ह ॥ ४ ॥ जय पामी तुम मुक्ति बिराजे, सेवक हेज जोरी ॥हा॥५॥अरज करं निज पद मुज आपो, तो सहु काज सर्योरी ह० ॥६॥ दशा तुमारी आतमानंदी, मुज प्रगटे तो सोरी ॥ ह ॥॥
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स्तवनावली।
स्तवन पंदरमुं।
॥ राग आइ वसंत ॥ आदि जिनंद दयाल हो, मेरी लागी बगनवा ॥ टेक ॥ विमलाचल मंमन उख खान, मंगन धर्म विसाल हो ॥ मे ॥ १॥ विषधर मोर चोर कामिजन, दरीसन कर निहाल हो । मे ॥२॥ हुं अनाथ तूं त्रिजुवन नाथा, कर मेरी संजाल हो ॥ मे ॥ ३॥ आतम आनंदकंदके दाता, त्राता परम कृपाल हो ॥ मे ॥४॥
स्तवन सोलमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ चलो सजनी जिन वंदन को, विमलाचल पाप निकंदनको ॥ टेक ॥ दरस करत सव पातक जावे. तिर्यग् नरक गति बिंदन को ॥ च ॥ १॥ पूरनवी अन्नव्य न देखे, चूर करण सव धंदनको ॥ च०॥॥ आतम रसन्नर आदि जिनंदा, मूरनसे नव वंधनको ॥ च ॥३॥
॥ इति श्री ऋपभ जिन स्तवनानि संपूर्णानि ।।
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
सुरपति अवर देव सब, मधुकर पर ऊकारे रे ॥ रिण ॥ ६ ॥ जयो जगदीस सुहंकर स्वामी, सेवक सब सुख टारे रे ॥ रिण || ७॥ विमलाचल मंकन मुझ प्यारो, आतम आनंद लारे रे ॥ रिण ॥७॥
॥ स्तवन चौदमुं।
॥ राग रामकली ॥ आंगण कल्प फल्यो री ॥ यह चाल ॥ आनंद अंग जोरी, हमारे आनंद० ॥ टेक ॥ गणधर पुंगरीक श्ण गिरि सोहे, देखी अघ सहु जोरी ॥ ह० ॥ १॥ इस अवसर्पिणी तृतीय कालमें, इण गिरि मोद वोरी ॥ हा ॥५॥ पुमरीक गिरी इण कारण प्रगट्यो, नामें पाप होरी ॥ हण ॥३॥ नंदनको गणाधिप श्ण गिरि, कर्म सुजटथी लोरी ॥ ह० ॥ ४ ॥ जय पामी तुम मुक्ति बिराजे, सेवक हेज चोरी ॥हा॥५॥अरज करं निज पद मुज आपो, तो सहु काज सर्योरी ह० ॥६॥ दशा तुमारी आतमानंदी, मुक प्रगटे तो सर्योरी ॥६० ॥७॥
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१७
स्तवनावली |
स्तवन पंदरमुं ।
॥ राग आइ बसंत ॥
आदि जिनंद दयाल हो, मेरी लागी लगनवा ॥ टेक ॥ विमलाचल मंगन दुख खंगन, मंगन धर्म विसाल हो ॥ मे० ॥ १ ॥ विषधर मोर चोर कामिजन, दरीसन कर निहाल हो ॥ मे० ॥ २ ॥ हुं अनाथ तूं त्रिभुवन नाथा, कर मेरी संजाल हो || मे० ॥ ३ ॥ तम आनंदकंद के दाता, त्राता परम कृपाल हो ॥ मे० ॥ ४ ॥
स्तवन सोलमं ।
॥ राग ठुमरी ॥
चलो सजनी जिन वंदन को, विमलाचल पाप निकंदनको ॥ टेक ॥ दरस करत सब पातक जावे, तिर्यग् नरक गति बिंदन को ॥ च० ॥ १ ॥ पूरनवी नव्य न देखे, चूर करण सब धंदनको ॥ च० ॥ २ ॥ आतम रसनर आदि जिनंदा, मूरनसे जव बंधनको ॥ च० ॥ ३ ॥
॥ इति श्री ऋषभ जिन स्तवनानि संपूर्णानि ॥
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१८ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतश्री अजितनाथ जिनस्तवन ।
स्तवन पहेढुं। सुणीयो जी करुणा नाथ भवधि पार कीजो जी,
ए देशी ॥ तुम सुणीयो जी अजित जिनेस नवोदधि पार कीजो जी। तु ॥ आंकणी ॥ जन्म मरण जल फिरत अपारा । आदि अंत नही घोर अंधारा । हुँ अनाथ उरमयो मऊधारा । टुक मुऊ. पीर कीजो जी। तुम ॥१॥ कर्म पहार कठन उखदा । नाव फसी अब कौन सहाई । पूर्ण दयासिंधु जगस्वामी। फटती उधार कीजो जी। तुम० ॥॥ चार कषाय के रस अतिजारे, वरवा अनंग जगत सब जारे । जारे त्रिदेव इंश फुन देवा। मोह उवार लीजो जी॥ तुम॥३॥ करण पांच अति तस्कर नारे । धरम जहाज प्रीति कर फारे । राग फांस मारे गर मारे । अब प्रनु फिरक दीजो जी ॥ तुम॥ ४ ॥ तृष्णा तरंग चरी अति नारी । बहे जात सब जन तन धारी। मान फेन अति उमंग चढ्यो है । अब प्रनु शांत कीजो जी ॥ तुम ॥ ५ ॥ लाख चउरासी जमर अतिजारी। मांहि फस्यो हुं सुझ बुझ हारी। काल
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स्तवनावली।
अनंत अंत नहीं आयो । अब प्रनु काढ लीजो जी ॥ तुम० ॥६॥ आतम रूप दब्यो सब मेरो। अजित जिनेसर सेवक तेरो । अबतो फंद हरो प्रज्जु मेरो। निरनय थान दीजो जी॥ तुम०॥७॥
स्तवन बीजु ।
॥ राग कमाच ॥ जिन दर्शन मन नावरे चेतन ॥ टेक ॥ जितशत्रु नृप नंदन नीको, विजया अंकज थावरे ॥ चे ॥ १ ॥ तारंगे रंगरस जरी निरखी, हर्षित तनु मन थावरे ॥ चे ॥२॥ श्री जरतेश्वर चैत्य करावे, अजित बिंब तिहां गवेरे॥चे॥३॥ संख्यातीत उझार नये तब, संप्रति राज सुनावेरे ॥ चे ॥४॥करी उझार जिन चैत्य बिंबका, संमृति मूल खपावरे ॥ चे॥ ५॥ विक्रम सन शत उनतालीसें, नानावटी गोविंद कहावेरे ॥चे॥ ६॥ अजित बिंब अंगुल बारांका, थापि कर्म जरावेरे ॥ चे ॥ ७ ॥ चौबूक्य वंश विनूषण नरपति, कुमार नरीद करावेरे ॥ ॥चे ॥ तुंग चैत्य नविजन मन मोहे, यात्रा करो शुन्न नावरे ॥चे॥ ए॥ अष्टादश दूषण नही उनमें, चार अनंत
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श्रीमद्विजययानंदसूरि कृत
धरावेरे ॥ ० ॥ १० ॥ आत्मानंदी जिनवर पूजे, विजयानंद पद पावेरे ॥ ० ॥ ११ ॥
॥ इति श्री अजित जिन स्तवने संपूर्णे ||
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|| श्री संभवनाथ स्तवन ॥ ॥ हिरणी यव चरे, ए देशी ॥ संजव जिन सुख कारीया ललना । पूरण हो तुम गुण जंमार । पूजा प्रभु जावसे ललना, दुख दुर्गति दूर हरे ललना । काटे हो जन्म मरण संसार । पद कज जो मन लावसे । ललना ॥१॥ प्रथम विरह प्रभु तुम तणो ॥ ल० ॥ दूजो हो पूर्वधर बेद | देखो गति करमनी । ल० । पंचमकाल कुगुरु बहु । ल० । पारथो हो जिनमत बहुद | बात को तरकी ॥ ल० ॥ २ ॥ राग द्वेष बहु मन बसै । ल० । लरे हो जिम सौकण रांग । मूले अति रममें || ल० ॥ अमृत बोर जहर पिये । ल० । लीये हो दुख जिन मत बांग । बांध अति करममें ॥ ल० ॥ ३ ॥ करुणा रस नरे थोरले । ल० । संत हो पर दुख जाननहार । फूले सुख हरममें । ल० । मनकी पीर न को सुने । कैसे हो करिये निरधार । प्रभु तुम
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स्तवनावली।
धरममें ॥ ल० ॥ ४ ॥ एक आधार बै मोह जणी । ल । तुमरे हो आगम प्रतीत । मन मुज मोहिया ॥ ल० ॥ अवर नरम सब बोरियो ।ल धारी हो तुम आण पुनीत । एही जग जोहीया ॥ ल ॥ ५॥ जुग प्रधान पुरुष तणी । ल । रीति हो मुझ मन सुखदाय । देखी सुन कारिणी ॥ ल । एही जिनमत रीत बै । ल । मीत हो ओर सब ही विहाय । जव सिंधु तारणी॥ ल० ॥६॥ धन्य जनम तिस पुरुषका ॥ ल ॥ धारी हो तुम आण अखंग । मन वच कायसुं ॥ल ॥ आतम अनुनव रस पीया ॥ल०॥ दीया हो तुम चरणमें मंग। चित्त हुलसायसुं॥ल ॥७॥
॥श्रीअनिनंदन जिन स्तवन ।
॥होरी की चाल ॥ परम आनंद सुख दीजोजी । अभिनंदन यारा । अक्षय अनेद अद सरूपी। ज्ञान नान उजवारा । चिदानंद घन अंतरजामी । धामी रामी ५ त्रिजुवन सारा जी ॥ अण् ॥ १॥ चार प्रकारना बंध निवारी । अजर अमर पद धारा । करम नरम सव बोर दीये हैं । पामी सामी ५
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२२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतपरम करतारा जी ॥ अ० ॥ ॥ अनंत ज्ञान दर्शन सुख लीना । मेट मिथ्यात अंधारा । अमर अटल फुन अगुरुलघुको । धारा सारा २ अनंत बल नाराजी ॥ अ० ॥ ३ ॥ बंध उदय बिन निमैल जोति । सत्ता करी सब बारा । निज स्वरूप त्रय रन बिराजे । बाजे राजे २ आनंद अपाराजी ॥ अ०॥ ४ ॥ज्ञान वीर्य सुख जीवत धारी। मदन चूत जिन गारा । त्रिजुवनमें जश गावत तेरा । जगस्वामी ५ प्राण प्याराजी ॥ अ० ॥५॥ निज आतम गुण धारी प्रजुजी । सकल जगत सुखकारा । आनंद चंद जिनेसर मेरा । तेरा चेरा ५ हुँ सुखकारा जी ॥ अ० ॥ ६ ॥
॥श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ नाथ कैसे गज के बंद छुडायो, ए देशी ॥
सुमति जिन तुम चरण चित्त दीनो ।ए तो जनम जनम मुख बीनो ॥ सु० ॥ आंकणी ॥ कुमति कुलट संग दूर निवारी सुमति सुगुण रस जीनो । सुमतिनाथ जिन मंत्र सुएयो है । मोह नींद नश् खीनो ॥ सु॥१॥ करम परजंक बंक अति सिज्या । मोह मूढता दीनो। निज गुण नूल
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२४
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
बेर करी मुक स्वामी । जव दधि पार उतारा जी ॥ म० ॥ ३ ॥ पंच विघन जय रति तुम जीती। अरति काम विकारा जी || || || हास सोग मिथ्या सब बारी | नींद अत्याग उखारा जी ॥ म० ॥२॥ राग द्वेष घीन मोह अज्ञाना । अष्टादश रोग जारा जी ॥ म० ||६|| तुम ही निरंजन नये अविनाशी | अव सेवककी वारा जी || म० || ७ || हुं अनाथ तुम त्रिभुवननाथा । वेग करो मुऊ साराजी || म०॥ ॥ तुम पूरण गुण प्रभुता बाजे । तमराम आधारा जी ॥ म० ॥ एए ॥
॥ श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ मंदिर पधारो मारा पूज जो, ए देशी ॥ श्री सुपास मुऊ बीनती । अब मानो दिनदयाल जी । तरण तारण बिरुद बै जगत बच्बल किरपाल जी | श्री सु०॥१॥ अक्षर जाग अनंत में । चेतनता मुऊ बोर जी । करम नरम बाया महा जिम । कीनो तम महा घोरजी | श्रीसु० ॥२॥ घन घटा बादीत रवि जिसो । तिसो रह्यो ज्ञान उजास जी । किरपा करो जो मुऊ जणी । थाये पूरण ब्रह्म प्रकास जी | श्रीसु || ३ || बिन ही निमित्त न
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स्तवनावली। नीपजे । माटी तनो घट जेम जी । तिम ही निमित्त जिनजी विना । ऊजल था हूं केम जी। श्रीसुधा त्रिकरण शुद्ध थावे यदा । तदा सम्यग दर्शण पाम जी । पूजे त्रिक ब्रह्म ज्ञान है। त्रिक मिटे शिवपुर गम जी । श्रीसु ॥५॥ एही त्रिण त्रिक मुफ दीजीए । लीजिये जस अपार जी। कीजीए नक्त सहायता । दीजीए अजर अमार जी ॥ श्री सु॥६॥ अब जिनवर मुफ दीजीए, आतम गुण नरपूर जी। कर्म तिमिर के हरण कों, निर्मल गगन जूं सूरजी ॥ श्री सु० ॥ ७॥
॥श्री चंप्रन जिन स्तवन ॥ ॥ चाहत थी प्रभु सेवा वा करूगी उलटी कम बनाईरी,
एदशी ॥ चाह लगी जिनचं प्रनु की। मुक मन सुमति ज्यूं आरी। जरम मिथ्या मत दूर नस्यो है। जिन चरणां चित्त ला सखी री ॥चा॥ सम संवेग निरवेद लस्यो है। करुणारस सुखदारी जैन बैन अति नीके सगरे, ए नावना मननाई सा चा०॥२॥ संका कंखा फल प्रति संसा कुगुरु संग बिटका री। परसंसा धर्महीन पुरुषकी इन नवमांही न कांस॥चा ॥३॥ कुग्ध सिंधु रस
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२६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतअमृत चाखी, स्यादवाद सुखदारी । जहर पान अब कौन करत है, पुरनय पंथ नसाइ सम्॥चाणामा जब लग पूरण तत्त्व न जाएयो, तब लग कुगुरु जुलारी । सप्तनंगी गर्जित तुम वाणी, नव्यजीव सुखदाइ स ॥ चाणाया नाम रसायण सहु जग नाणे, मर्म न जाने कांशी। जिन वाणी रस कनक करण को, मिथ्या लोह गमा सण ॥ चा० ॥६।। चंद किरण जस उज्वल तेरो, निर्मल जोत सवारी। जिन सेव्यो निज आतम रूपी, अवर न कोश सहा स० ॥ चा ॥७॥
॥श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन ॥
सुविधि जिन बंदना, पाप निकंदना, जगत आनंदना, मुक्ति दाता। करम दल खेमना, मदन विहंमना, धरम धुर मंमना, जगत त्राता॥ अवर सहु वासना, बोर मनासना, तेरी उपासना, रंग राता । करो मुफ पालना, मान मद गालना, जगत उजालना, देह साता ॥ सु० ॥१॥ विविध किरिया करी, मूढता मन धरी एक पके बरी, जगत नूट्यो । मान मद मन धरी, सुमति सब परहरी, जैन मुनि नेष धर मूढ फूल्यो। एही एकंतता, अति ही पुरदंतता, नास कर संतता, दुःख फूटयो।
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स्तवनावली |
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संग सिद्धि कही, ज्ञान किरया वही, दूध साकर मिली रस घोल्यो ॥ सु० ॥ २ ॥ बिना सरधान के ज्ञान नहीं होत है, ज्ञान बिन त्याग नहीं होत साचो | त्याग बिन करम को नास नहीं होत है, करम नासे बिना धरम काचो ॥ तत्त्व सरधान पंचंगी संमत कह्यो, स्यादवादे करी बैन साचो ॥ मूल निर्युक्ति अति जाष्य चूरण जलो, वृत्ति मानो जिन धर्म राच ॥ सु० ॥ ३ ॥ उत्सर्ग अपवाद, अपवाद उत्सर्ग, उत्सर्ग अपवाद मन धारलीजो | अति उत्सर्ग उत्सर्ग है जैन में, अति अपवाद अपवाद की जो । एक जंग है जैन बाणी तने, सुगुरु प्रसाद रस घुंट पीजो | जब लग बोध नहीं, तत्त्व सरधान का, तब लग ज्ञान तुमको न लीजो ॥ सु० ॥ ४ ॥ समय सिद्धांतना अंग साचा सवी सुगुरु प्रसादथी पार पावे । दर्शन ज्ञान चारित करी संयुता, दाह कर कर्म को मोख जावे । जैन पंचगी की रीति जांजी सबी, कुगुरु तरंग मन रंग लावे । ते नरा ज्ञान को अंस नहीं ऊपनो, हार नर देह संसार धावे ॥ सु० ॥ ॥ तत्व सरधान बिन सर्व करणी करी, वार अनंत तुं रह्यो रीतो । पुण्य फल स्वर्ग में जोग उधो गिर्यो, तिर्यग्
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२८ . श्रीमद्विजययानंदसूरि कृत
औतार बहु वार कीतो । ऊंट का मेगणा खांम लागी जिसो, अंत में स्वादसे नयो फीको । चार गत वास बहु मुख नाना जरे, नयो महा मूढ सिर मौर टीको ॥ सु०॥६॥ सुविधि जिनंद की
आन अवधार ले, कुमत कुपंथ सब दूर टारो। पद कदाग्रह मूल नहीं तानियो, जानियो जैन मत सुध सारो । महा संसार सागर थकी नीकली, करत आनंद निज रूप धारो । सुकल अरु धरम दोउ ध्यान को साध ले, आतमा रूप अकलंक प्यारो॥ सुण ॥ ७॥ ॥ श्री शीतलनाथ जिन स्तवन ।
॥ बणजारे की देशी ।। शीतल जिनराया रे, विजुवन पूरण चंद शीतल चंदन सारीसो जिनराया रे । जिन । मुज 'मन कमल दिनंद ज्यों लोहने पारसो॥ जि०॥ १॥ जि और न दाता कोय अजय अखेद अन्जेद नो॥ जि । जिण सगरे देव निहार कौन हरे मुजकेदनो ॥ जिण ॥ जिण् गर्जवास दुःख पूर कलमल संयुत थानमें जि। जिण पित्त सलेषम पूर कुःखनरे बहु जानमें॥जिणा३॥जिण्जन मत मुख अपार मोह दशा महा फंदमें ॥ जि०॥ जि० अब
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स्तवनावली। मन मांहि विकार कीट फस्यो जैसे गंदमें ॥जिण ॥४॥ जि० परवश दीन अनाथ मुफ करुणा वित्त आनिये जिए । जिए तारो जिनवर देव वीनतमी चित्त वानिये॥जि॥५॥ जिण् करुणासिंधु तुम नाम अब मोहि पार उतारिये॥जिणा जिप अपणा बिरुद निबाह अवगुण गुण न विचारिये ॥जि ॥६॥ जि० शीतल जिनवर नाम शीतल सेवक कीजिये । जि० ॥ जि शीतल आतम रूप शीतल नाव धरीजिये ॥ जि० ॥ ७॥
॥श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ पीले रे प्याला होय मतवाला, ए देशी ॥
श्री श्रेयांस जिन अंतर जामी । जग विसरामी त्रिजुवन चंदा । श्री श्रेण । कल्पतरु मन बांडित दाता ।चित्रा वेल चिंतामणि जाता। मन बांडित पूरे सब आसा । संत जधारण त्रिजुवन त्राता । श्री श्रेणार॥ को विरंचि ईस मन ध्यावे । गोविंद विष्णु उमापति गावे । कार्तिक साम मदन जस लीना । कमला जवानी जगति रस जीना। श्री श्रेण॥२॥ एही त्रीदेव देव अरू देवी । श्री श्रेयांस जिन नाम रटंदा । एक ही सूरज जग । ‘परगासे । तारप्रना तिहां कौन गणंदा। श्रीश्रेण।
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतऐरावण सरिसो गज बांभी। लंवकरण मन चाह करंदा । जिन बांमी मन अवर देवता। मूढमति मन नाव धरंदा।श्री श्रेण ॥४॥ को त्रिशूली चक्री फुन कोश् । जामनी के संग नाच करंदा । शांत रूप तुम मूरति नीकी । देखत मुऊ तन मन हुलसंदा । श्री श्रेण॥५॥ चार अवस्था तुम तन सोने । वाल तरुण मुनि मोह सोहंदा । मोद हर्ष तन ध्यान प्रदाता। मूढमति नहीं द लहंदा।श्री श्रेण ॥ ६॥ बातम ज्ञान राज जिन पायो । पूर जयो निरधन दुख धंदा । समता सागर के विसरामी। पायो अनुभव ज्ञान अमंदा ॥श्रीश्रेण्॥ ॥ श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन ॥
॥ अडल की चाल ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मुज तारीये। करम कठण मुख देत के बेग निवारीये । वीतराग जगदीश नाथ त्रिजुवन तिलो। महा गोप निर्याम धाम सब गुण निलो॥१॥ काल सुनाव मिलान करम अति तीसरो । होनहार जिय सक्ति पंच मिली धीसरो। एक अंस मिथ्यात वात ए सांजली। कीये मदिरा आंख न धामली ॥॥ पंचम काल विहाल नाथ ढुं आश्यो । मिथ्या मत बहु जोर
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स्तवनावली।
घोर अति गश्यो । कलह कदाग्रह सोर कुगुरु वहु गश्यो। जिन वाणी रस स्वाद के विरले पाश्यो। तऊ किरपा नश्नाथ एक मऊनावना। जिन आज्ञा परमाण और नहीं गावना । पक्षपात नहीं लेस द्वेष किन सू करूं । एही स्वन्नाव जिनंद सदा मन में धरूं ॥ ४॥ किंचित पुन्य प्रनाव प्रगट मुफ देखीये । जिन आणायुत नक्ति सदा मन लेखीये । होन हार सुन पाय मिथ्या मत गंमीये । सार सिद्धांत प्रमाण करण मन मांमीये ॥५॥ एक अरज मुऊ धार दयाल जिनेसरू । उद्यम प्रबल अपार दीयो जग ईसरू। तुक विन कौन आधार नवोदधी तारणे । बिरुद निवाहो राज करम दल वारणे ॥६॥ आतम रूप जुलाय रम्यो पर रूप में | पर्यो हुँ काल अनादि नवोदधि कूप में । अब काढो गही हाथ नाथ मुफ वारीया । पालं परमानंद करम जर कारीया ॥७॥
॥ श्रीविमलनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ सुंदर चेत बहार सार पाल सरफूले, ए देशी ॥
विमल सुहंकर नाथ आस अब हमरी पूरो। रोग सोग जय त्रास आस ममता सव चूरो। दीजो .
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३२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतनिरजय थान खान अजरामर चंगी । जनम जनम जिनराज ताज बहु जगत सुरंगी ॥१॥ मात तात सुत जात जान बहु सजन सुहाये । कनक रतन बहु नूर कूर मन फेद लगाये । रंना रमण अनंग बहु केल कराये । संध्या रंग विरंग देख बिनमें विरलाये ॥२॥ पदम राग सम चरण करण अतिसोहे नीके । तरुण अरुण सित नयन वयण अमृत रस नीके । वदन चंद ज्यूं सोम मदन सुख माने जी के । तुऊ नक्ति बिन नाथ रंग पतंग जूं फीके ॥ ३ ॥ गज वर तरल तुरंग रंग बहु नेद विराजे । कंकण हार किरीट करण कुंमल अति साजे । राग रंग सुख चंग जोग मन नीके नायो | तुऊ नक्ति बिन नाथ जान तिन जनम गमायो॥४॥ रतन जरत विमान जान जूं नये सनूरे । रंजा रमण आनंद कंद सुख पाये पूरे । षोमस नित्य सिंगार नाच स्थिति सागर पूरे । जिन नक्ति फल पाये मोद तिन नाही रे ।। ५॥ धन धन तिन अवतार धार जिन नक्ति सुहानी । दया दान तप नेम सील गुण मनसा गनी जिन वर जसमें लीन पीन प्रजु अर्च करानी । तुऊ किरपा जई नाथ
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स्तवनावली।
आज हुँ नक्ति पिडानी ॥ ६॥ जग तारक जगदीस काज अव कीजो मेरो । अवर न सरण याधार नाथ ढुंचेरो तेरो । दीन हीन अब देख करो प्रजु वेग सहाश् । चातक ज्यूं घनघोर सोर निज बातम लाश ।। ७॥
श्री अनन्तनाथ जिन स्तवन। ॥ नीदलडी वैरन होरही, ए देशी॥
अनंत जिनंदसुं प्रीतमी । नीकी लागी हो अमृतरस जेम । अवर सरागी देवनी । विष सरखी हो सेवा करूं केम ॥ अ॥१॥ जिम पदमनी मन पिऊ वसे । निर्धनीया हो मन धन की प्रीत । मधूकर केतकी मन बसै । जिम साजन हो विरही जन चीत ॥ अ॥२॥ करसण मेघ आषाम ज्यूं । निज बाडम हो सुरली जिम प्रेम साहिव अनंत जिनंदसुं । मुऊ लागी हो भक्ति मन तेम ॥ अ० ॥३॥ प्रीति अनादिनी दुख नरी। में कीधी हो पर पुदगल संग । जगत जम्यो तिन प्रीतसू । संग धारी हो नाच्यो नव नव रंग ॥ अ॥४॥ जिस कापणा जानीयो तिन दीधा हो बिनमें अतिनेह । परजन केरी
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३४
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
प्रीतमी । में देखी हो ते निसनेह ॥ ० ॥ ५ ॥ मेरो कोई न जगतमें। तुम बोगी हो जग में जगदीस । प्रीत करूं व कोनसू । तूं त्राता हो मोने विसवावी ॥ अ० ॥६॥ आतमराम तूं माहरो । सिर सेहरो हो हियमेनो हार । दीन दयाल किरपा करो | मुऊ वेगाहो अब पार उतारो
॥ अ० ॥ ७ ॥
ae
|| श्री धरमनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ माला किहां छैरे, ए देशी ॥
जविक जन वंदोरे धरम जिनेसर धरम स्वरूपी | जिनंद मोरा । परम धरम परगासै रे । परमुख अंजन जवि मन रंजन ॥ जि० ॥ द्वादस परषदा पासे रे । जविक जन वंदो रे । धरम जिनेसर वंदो परमसुख कंदो रे ॥ ज० ॥ १ ॥ धरम धरम सहु जन मुख जाषै ॥ जि० ॥ मरम न जाने कोई रे । धरम जिनंद सरण जिन लीना जि० ॥ धरम पिठाणे सोई रे ॥ ज० ॥ २ ॥ दख जाव स्वढ्या मन आणो ॥ जि० ॥ पर सरूप अनुबंध रे । व्यवहारी निहचे गिन लीजो | जिणा पालो करम न बंधारे ॥ ज० ॥ ३ ॥ जयना सर्व
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स्तवनावली । ।
काममें करणी ॥ जि ॥ धरमदेसना दीजे रे । जिन पूजा यात्रा जगतरणी ॥ जि ॥ अंतःकरण शुद्ध लीजेरे ॥ न ॥४॥ षट काया रहा दिल पानी ।। जिण ॥ निज आतम समकानी रे । पुदगलीक सुख कारज करणी ॥ जि॥ सरूप दया कही ज्ञानी रे ॥ न ॥ ५॥ करि आमंबर जिन मुनि वंदे ॥ जि ॥ करी प्रजावना मंमेरे । बिन करुणा करुणा फलनागी। जन्म मरण मुख बंमे रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ विधि मारग जयणा करी पाले ॥जि॥ अधिक हीन नही कीजे रे । आतमराम आनंद घन पायो ॥ जि० ॥ केवल ज्ञान लहीजे रे ॥ न ॥७॥
॥ शांतिनाथ जिन स्तवन ।
__ स्तवन पहेलै । भविक जन नित्य ये गिरि वंदो, ए देशी ॥
नविक जन शांति हे जिन वंदो । नव जवनां पाप निकंदो । नविक जन शांति हे जिन वंदो ॥ १॥ पूव लव शांति करीनो । कापोत पाल सुख लीनो करुणा रस सुध मन नीनो । ते तो अजयदान बंदु दीनो ॥ न ॥२॥
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श्रीमद्विजययानंदसूरि कृत
अचिरानंदन सुखदाई। जिन गर्ने शांति कराई। सुरनर मिल मंगल गाई । कुरु मंमन २ मारि नसाई॥ ज०॥३॥ जग त्याग दान बहु दीना। पामर कमला पति कीना । सुफ पंच महाव्रत लीना । पाया केवल ज्ञान अश्ना ॥ ४ ॥ जग शां. तिके धरम प्रगासे । नव नवनां अघ सहु नासे। सरूडान कला घट नासे। तुम नाम अरे २ परम सुख पासे ॥ ज० ॥ ५ ॥ तुम नाम शांति सुख दाता । तुं मात तात मुफ जाता । मुऊ तप्त हरो गुण झाता । तुम शांतिक अरे २ जगत विधाता ॥ न ॥ ६ ॥ तुम नामे नवनिध लहिये। तुम चरण शरण गहि रहिये । तुम अर्चन तन मन वहिये । एही शांतिक अरे २ नावना कहिये ॥ नविण ॥ ७ ॥ हुँ तो जनम मरण दुःख दहियो । अब शांति सुधारस लहियो । एक आतम कमल ऊमहियो । जिन शांति अरे ५ चरण कज गहियो ॥ नविण ॥ ७॥
स्तवन बीजूं।
॥ राग कमाच ॥ जिन दरशन आनंद खानी ॥ टेक ॥ राग द्वेष घिन काम अज्ञाना, हास्य नींद
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ला
जय हन : : : देवरे नाती. इ.इन ः ६. मिथ्या से लेने - जरानी .. - ३३ करे ना के सोहे, इ. इ. ३ : 5 तरून न .. हर प रेड
जिः २ : केन कई .. शांति शांतिने इन : ... ३ . लम मुफ प्रमुख निय. देश कई
ज : कनन कद का दाई.. र जिन बन्नु पानी : जि. .. _नि श्री शांतिनाय जिन तकने न.
श्री कुंथुनाथ जिन लवन ॥
- मामाकी देशी , ___ कुंथु जिनेनर नावि तुं धीरे । जगजीन जगदव । जगत धारण शिवसुख कारले । निस दिन जागे नव ॥ कुंछ ॥ १ ॥ ९ करची काल अनादिना रे । कुटल कुबोध वनीत न क्रोध मद मात्र माचीयो रे । नडर नगद त ॥ कु० ॥२॥ लंपट कंटक निंदक दंग ,
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श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत
यो रे । परवंचक गुण चोर । अपथापक पर निंदक मानीयो रे । कलह कदाग्रह घोर ॥ कुं० ॥ ३॥ इत्यादिक अवगुण कहुं केतला रे । तुम सब जानन हार । जो मुऊ वीतक वीत्यो वीतसे रे । तुं जाने करतार || कुं० ॥ ४ ॥ जो जगपूरण वैद्य कहाइयो रे । रोग करे सब दूर । तिनही अपणा रोग दिखाइये रे । तो होवे चिंता चूर || कु० ॥ ५ ॥ तुं मुऊ साहिब वैद्य धनंतरी रे । कर्म रोग मोह काट । रतनत्रयी पथ मुऊ मन मानी यो रे । दीजो सुखनो थाट || कुंo || ६ || निर्गुण लोह कनक पारस करे रे | मांगे नही कुछ तेह । जो मुऊ आतम संपद निर्मली रे । दास जी अब देह
॥ कुं० ॥ ७ ॥
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|| श्री अरनाथ जिन स्तवन ॥
|| चंद्रप्रभु मुखचंद्र सखी मोने देखणदे, ए देशी || अरे जिनेश्वर चंद सखी मोने देखा दे । गत कलिमल दुख धंद | स० । त्रिभुवन नयना - नंद | स० । मोह तिमर जयो मंद ॥ स० ॥ १ ॥ उदर त्रिलोक असंख में । स० । महरिद नीर निवास | स० । कठन सिवाल अादियो । स० ।
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स्तवनावली |
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करम परुल अठ तास ॥ स० ॥ २ ॥ आदि अंत नही कुंमनी । स० । अतिही अज्ञान अंधेर । स० । स्वजन कुटुंबे मोहियो । स० । वीत्यो सांऊ सवेर ॥ स० ॥ ३ ॥ खय उपसम संयोगथी । स० । करम पलट जयो डूर । स० । उरधमुखी पुन्ये करयो । स० । स्वजन संग करयो चूर ॥ स०॥१४॥ पहुतो जिनवर आसना | स० । दीठो आनंद पूर दीनदयाल कृपा करी । स० । राखो चरण हजूर ॥ स० ॥ ५ ॥ जिन कष्टे हूं आवीयो । स० । जाणे तूं करतार | स० । बिरुद सुयो जिन ताहरो । स० । त्रिभुवन तारणहार ॥ स० ॥ ६ ॥ सुमति सखी सुण वारता । स० । ए सब तुऊ उपगार । स० । तमराम दिखालीयो । स० । वंबित फल दातार || स० ॥ ७ ॥
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॥ श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन ॥ स्तवन पहेलुं ।
॥ रामचंद्र के बाग चंपा मोहर रह्यो, ए देशी ॥ म ब्लि जिनेसर देव जवदधि पार करोजी । तूं प्रभु दीन दयाल | तारक विरुद धरोजी ॥१॥ तुम सम वैद न कोय । जानो मर्म खरो री ।
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
जावे जिस विध रोग। तैसो ही ज्ञान धरोरी ॥२॥ अम कर्म चार कषाय । रोग असाध्य कह्योरी। मदन महा मुख देन । सब जग व्याप रह्योरी ॥३॥ तूं प्रनु पूरण बैद । त्रिजुवन जाच लह्योरी किरपा करो जगनाथ । अब अवकास थयोरी॥ ४॥ बचन पीयूष अनूप । मुफ मन माहि धरोरी दीजो पथ्य प्रदान । मन तन दाह होरी ॥५॥ सम्यग दर्शन ज्ञान । खमा मृदु सरल जलोरी ॥ तोष अवेद अनंग तो सहु रोग दल्यो री ॥६॥ पथ्योदन जिननक्ति । आतमराम रम्यो री तूगे मसि जिनसर । अरि दल दूर दम्यो री ॥७॥
॥ स्तवन बीजुं ॥
॥ श्रीराग ॥ मल्लिजिन दरसन नयनानंद ॥ टेक ॥
नील वरण तनु नविजन मोहे, वदन कमल निरमल सुखकंद । निर विकार दृग दयारस पूरे, चूरे नविजनक अघबंद ॥ म ॥ १॥ शुचि तनु कांति टरी अघ ब्रांति, मदन गर्यो तुम करम निकंद । जय जय निर्मल अघहर ज्योति, द्योति त्रिजुवन निर्मल चंद ॥ म ॥२॥
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स्तवनावली |
केवल दरस ज्ञान युत स्वामी, नामी अमदस दोस जरंद | लोकालोक प्रकाशित जिनजी, वानी मृतकरी बरसंद ॥ ० ॥ ३ ॥ पीके न विजन मर जये है, फिर नहीं जवसागर ही फिरंद ॥ नित्यानंद प्रकाश जयो है, करम नरमको जार्यो फंद ॥ ० ॥ ४ ॥ अवर देव वामारस राचे, नासे निज गुन सहजानद । तूं निर्मद विजु ईश शिवंकर, टारे जनम मरन दुख धंद ॥ ० ॥ ५ ॥ तेरह | चरण सरण हुं त्र्यायो, कर करूणा अर्हन् जगद | अंतर्गत मुकसह तूं जाने, सरणागतकी लाज रखंद ॥ ० ॥ ६ ॥ गुरजर देश में आतमानंदी,
यी नजवर उग्यो चंद ॥ वियत शिखि निधि इंदु शुभ वरसे, मास वैशाख पूनिम चंद ॥० ॥ ७॥
४?
॥ स्तवन तीजुं ॥
जिन राजा ताजा, मल्लि विराजे जोयणी गाममे ॥ टेक ॥
देश देशके जात्रु यावे, पूजा सरस रचावे, मल्लि जिनेसर नाम सिमरके, मनवंठित फल प|वेजी ॥ जि० ॥ १ ॥ चतुर वरणके नर नारी मिल मंगल गीत करावे, जय जयकार पंचध्वनि
६
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anwr-n.
४२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतवाजे, शिरपर बत्र फिरावेजी ॥ जि० ॥२॥ हिंसक जन हिंसा तजी पूजे, चरणे सीस नमावे, तूं ब्रह्मातूं हरि शिवंकर, अवर देव नही जावेजी ॥ जि० ॥ ३॥ करुणारस नरे नयन कचोरे, अमृतरस वरसावे, वदन चंद चकोर ज्यु निरखी, तन मन
अति उलसावेजी ॥ जि ॥ ४ ॥ आतम राजा त्रिभुवन ताजा चिदानंद मन नावे, मलि जिनेसर मनहर स्वामी, तेरा दरस सुहावेजी ॥जि॥५॥
॥ स्तवन चोथु ॥
॥राग परज ॥ ॥ निशदिन जोउं थारी वातडी घर आवो मारा ढोला, ए देशी ॥ __मदिल जिनेश्वर साहिब तुं तो अंतरजामी ॥ आंचली ॥ करम सुनट रण अंगणे एक बिनकमें दामी, षट् मित्त प्रतिबोधक कीने जगत निकामी ॥ मक्षिण ॥१॥ पर उपकारी तुं प्रजु करुणा कर स्वामी । तेरो मुख दीठे मीटे मेरे मनकी खामी ॥ मक्षिण ॥२॥ करम रोगके हरनकुं प्रनु तुं जगनामी, वैद्य धनंतरी मो मीले विजुवन विसरामी ॥ मदिल०॥३॥ वरण प्रियंगु तनु धरे नवीजन सुख कामी, अष्टादस मल
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स्तवनावली ।
टालके नये निजगुण गामी॥ मल्लि॥४॥गुर्जर देश सुहंकर जोयणी शुन नामी, जिहां विराजे तुंप्रनु करे जगको निरामी॥ मल्लि०॥५॥ करम रोगयुत हुं फीरं शिव पद सुख धामी, जग जश त्यो मुज तारके करो आतमरामी ॥ महिल॥६॥ ॥ इति श्री मल्लिनाथ-जिनस्तवनानि संपूर्णानि ।।
॥ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ॥
॥ प्रेमला परणी, ए देशी ॥ श्री मुनिसुव्रत हरिकुल चंदा । उरनय पंथ नसायो । स्याहाद रस गर्जित वानी । तत्त्व स्वरूप जनायो। सुन ग्यानी जिन वाणी रस पीजो अति सन्मानी ॥ १ ॥ बंध मोद एकांते मानी, मोद जगत उठेदे । उन्नय नयात्म नेद गहीने, तत्व पदार्थ वेदे।सुन ग्या॥२॥नित्य अनित्य एकान्त गहीने । अर्थ क्रिया सव नासै । उन्नय स्वरूपे वस्तु विराजे । स्याहाद श्म नासै । सुन ग्या॥३ करता जगता वाहिज दृष्टे । एकांते नहिं थावे । निश्चय सुछ नयात्म रूपे । कुण करता जुगतावे | सु० ॥ ४॥ रूप विना नयो रूप सरूपी । एक नयात्म संगी। तम व्यापी विनु एक अनेका ।
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४२
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
वाजे, शिरपर बत्र फिरावेजी ॥ जि० ॥ २ ॥ हिंसक जन हिंसा तजी पूजे, चरणे सीस नमावे, तूं ब्रह्मा तूं हरि शिवंकर, वर देव नही जावेजी || जि० ॥ ३ ॥ करुणारस जरे नयन कचोरे, अमृतरस वरसावे, वदन चंद चकोर ज्यु निरखी, तन मन अति जलसावेजी ॥ जि० ॥ ४ ॥ तम राजा त्रिभुवन ताजा चिदानंद मन जावे, मल्लि जिनेसर मनहर स्वामी, तेरा दरस सुहावेजी ॥ जि॥२॥
॥ स्तवन चोयुं ॥
॥ राग परज ॥
॥ निशदिन जोउं थारी वातडी घर आवो मारा ढोला, ए देशी ॥ मब्लि जिनेश्वर साहिब तुं तो अंतरजामी ॥ चली ॥ करम सुनट रण अंगणे एक निकमें दामी, षटू मित्त प्रतिबोधक कीने जगत निकामी ॥ मलि० ॥ १ ॥ पर उपकारी तुं प्रभु करुणा कर स्वामी । तेरो मुख दीठे मीठे मेरे मनकी खामी ॥ मलि ॥ २ ॥ करम रोगके हरनकुं प्रभु तुं जगनामी, वैद्य धनंतरी मो मीले त्रिभुवन विरामी || मल्लि० ॥ ३ ॥ वरण प्रियंगु तनु धरे जवीजन सुख कामी, अष्टादस मल
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स्तवनावली |
४३
टाके नये निजगुण गामी ॥ मल्लि० ॥ ४ ॥ गुर्जर देश सुकरु जोयणी शुभ नामी जिहां विराजे तुं प्रभु करे जगको निरामी ॥ मब्लि० ॥ ५ ॥ करम रोगयुत हुं फीरुं शिव पद सुख धामी, जग जश ल्यो मुज तारके करो तमरामी ॥ मल्लि० ॥६॥ ॥ इति श्री मल्लिनाथ - जिनस्तवनानि संपूर्णानि ॥
॥ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ॥
|| प्रेमला परणी, ए देशी ।
श्री मुनिसुव्रत हरिकुल चंदा । पुरनय पंथ नसायो । स्याद्वाद रस गर्जित वानी । तत्त्व स्वरूप जनायो । सुन ग्यानी जिन बाणी रस पीजो अति सन्मानी ॥ १ ॥ बंध मोक एकांते मानी, मोद जगत उबेदे | उजय नयात्म नेद गहीने, तत्त्व पदार्थ वेदे | सुन ग्या० ॥ २ ॥ नित्य नित्य एकान्त गहीने । अर्थ क्रिया सब नासै । उन्नय स्वरूपे वस्तु विराजे । स्याद्वाद इम जासै । सुन ग्या० ॥ ३ करता जुगता बाहिज दृष्टे । एकांते नहिं थावे । निश्चय सुद्ध नयात्म रूपे । कुण करता भुगतावे | सु० ॥ ४ ॥ रूप विना नयो रूप सरूपी । एक नयात्म संगी । तम व्यापी विजु एक अनेका ।
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४४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतआनंदघन सुख रंगी। सु ॥ ५ ॥ शुद्ध अशुद्ध नास अविनासी निरंजन निराकारो । स्यादवाद मत सगरो नीको कुरनय पंथ निवारो। सु॥६॥ सप्तनंगी मत दायक जिनजी । एक अनुग्रह कीजो आत्मरूप जिसो तुम लाधो । सो सेवक को दीजो ॥ सु० ॥ ७ ॥
॥ श्री नमिनाथजिन स्तवन ।। ॥ आ मिलवे बंसी वाला-कान्हा, ए देशी ॥
तारोजी मेरे जिनवर सां बांह पकम कर मोरी । कुगुरु कुपंथ फंदथी निकसी। सरण गही अब तोरी ॥ ता ॥ १ ॥ नित्य अनादि निगोद में रुलतां । फूलतां नवोदधि मांही ॥ पृथ्वी अप तेज वात स्वरूपी । हरित काय मुख पाइ। ता॥२॥ बिति चरिंडी जात जयानक, संख्या दुखकी न कां । हीन दीन जयो परवस परके, ऐसे जनम गमाश् । ता० ॥ ३ ॥ मनुज अनारज कुल में उपनो, तोरी खबर न कां । ज्यूं त्यूं कर प्रज्जु मग अब परख्यो । अब क्यों बेर लगाई। ता ॥ ४ ॥ तुम गुण कमल ब्रमर मन मेरो । नमत नहीं है उमाश् । तृषत मनुज अमृत रस
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स्तवनावली।
चाखी, रुच से तप्त बुझाई । ताण ॥ ५ ॥ नवसागर की पीर हो सब । मेहर करो जिनरा। दृग करुणा की मोह पर कीजो । लीजो चरण बुहाई। ता ॥६॥ विप्रानंदन जग दुख कंदन । जगत वबल सुखदाई । आतमराम रमण जगस्वामी कामत फल वरदाश् । ता ॥ ७॥
॥श्री नेमिनाथ जिन स्तवन ॥
॥ स्तवन पहिलं ॥ चैतमें सोहाग सहियां फूलीयो सब रूपमें। झान फुल चारित फल जर । लागीयो चिद रूप में । पुन्य यौवन चरयो नीको । करण पंचस नूरीयां । अब देख नेम वियोग सेती। नये बिनक में पूरीयां ॥१॥ वैसाख तामस ऊठीयो सब फुल फल मुरकाश्या । चित दाह नस्मीनूत कीनो, शांतिरस सुसाश्या । मन सैल राज कपन कीनो दंन नागन धाश्यां । अब प्यास शांत न होत किम ही त्रिजुवन धन जल पाश्यां ॥२॥ जेठ जागी कुगुरु वायु अंधीयां बहु आश्यां । तन मन सवी मलीन कीने नयन रज वहु नाश्यां । कतु आप पर की सूफ नाहीं परो घोर अधेरमें।
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
सब रूप सुन्दर बार कीने । मोह महातम घेर में ॥ ३ ॥ षाम कुगुरू प्रदान कीनो तप्त वात चउरासीयां । मानसी तन रोग पीरा घरम गरमी फासीयां । अधोभूमी नरक ताती बातीयां बहु दुख नरे । अब नेम समरण कीजिये तन तपत टारे दुख हरे ॥ ४ ॥ सावन घटा घनघोर गरजी नेम बानी रस जरी । पबंद निंदक संघ के तिन जान सिर विजरी परी । सत्ता सुनूमी नव्य जन की सांसे सब वरी । अब आस पुन्य अंकुर की मनमोद सहियां फिर खरी ॥ ५ ॥ जादो जए फुन पुन्य पूरे धरम वारी लह लही । सहस अष्टादसदले सीलांग संज्ञा जूम रही। सरधान जल सुध सींचता अतिज्ञान तरुवर फुल रहे । लागेंगे अजरा अमर फल मधु नेम आणा सिर वहे || ६ || आसु पुकारे कुगुरु पितराहमरी गत तुम कीजिये । व्य ब्राह्मण खीर जिन वच चाखीये रस पीजिये । कुगुरु खाली हाथ बैठे पाये नर जव खोय के । पूजो दसहरा धरम दस विध ज्ञान दरसन जोय के ॥ ७ ॥ कार्तिक दीवाली ज्ञान दीपक नरम तिमर उमाश्या । अब ज्ञान पंचम निकट आई करण त्रिक सुद्ध पाश्या ।
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स्तवनावली |
अष्ट दृष्टि जोग साधी जावना त्रिक माइया । कुमति तप्त दूरी सीत जिन बच पाश्या ॥ ८ ॥ मगसर नये सब बार ममता जान महा दुख रासीया । सुत त्रात जाता मित्र जननी जान महा दुख फासिया । कोई न तेरा मीत दुरजन सजन संगी हित करो । इक नेम चरण आधार शिव मग यस मन मांही धरो ॥ ए ॥ पोषे तनु परिवार पर जन मित्त तेरे है नहीं । तमित दमक जू कान करिवर राग संध्या बिन रही । चक्री हलधर शंख तृत जन देख जन देख सुपना रैनका । कोई न थिरता जान अब मन आसरा जिन बैन का ॥ १० ॥ माह मह की वासना मन ज्ञान दरसन में लिया । याम सुमति तप कुठारे करम बिल्लक बेलीया । जारके सब मदन वन घन मोख मार्ग फैलीया । अब देख चंग अखंग राजुल नेम होरी खेलीया ॥ ११ ॥ सील सज तनु केसरी पिचकारीयां सुन जावना । ज्ञान मादल ताल सम रस राग सुध गुण गावना । धूर कमी करम की सब सांग सगरे त्यागीया | नेम आतमराम का धरि ध्यान शिव मग लागिया ॥ १२ ॥
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४८ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
॥स्तवन बीजुं ॥ क्यां करूं माता मेरी, पंमित के जाकेरी, ए देशी॥
नव नव केरी प्रीत सजन तुम तोमी न जावोरे ॥ नव० ॥ आंकणी ॥ मुगती रमणीस्युं लागी लगन, मनमें अति वैराग धरना । बोम चले निज साथ सजन, मुख फेर देखावोरे ॥ नव० ॥१॥ तुम बोठी अब जात कहुं, में नही बोमत घर न रहुं । जोगन बनी तुम संग चलुं, नीज ज्योती जगावोरे ॥ नव ॥२॥ आतम वेर न कुमती ब्लुं, राग द्वेष मदमोह दबुं । मुगती नगर तम संग चटुं, नीज जोर जनावोरे ॥ नव० ॥३॥
॥ स्तवन तीजुं ॥ आवो नेम सुख चेन करो, उख काही देखावोरे ॥ आंकणी ॥ विरह तुमारो अतीही कठन, सही न शकुं पल एक बीन। जगत लाग्यो सब हांसी करन, मत बगैमीने जावोरे॥आवो॥१॥ करुणासिंधु नाम धरन, सुण अनाथके नाथ जीन। रुदन करूं तुम चरन परन, टुंक दया दील लावोरे ॥ आवो ॥ ५ ॥ अमनव सुंदर प्रीत
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स्तवनावली |
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करी, व क्युं उलटी रीत धरी । तम हित जग लाज टरी, निज जुवन सी धावोरे । आवो० ॥ ३ ॥
स्तवन चोथुं ।
॥ राग बिहाग ॥
वारक है शिवादेवी के नंदन करम कठिन डुख दाइ, मार धारा दूर करी हे स्याम रूप दरसाइ सखीरी ॥ वा० ॥ १ ॥ मदन कदन शिव सदन के दाता, हरण करन दुखदाइ ॥ करम नरम जग तिमिर हरनको अजर अमर पद पाइ सखीरी ॥ वा० ॥ २ ॥ जडुपति वदन करत अनंदन, स्मत्र चार बितराइरी ॥ अमम
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मम जिन रूप सरीसो, जिनवर पद उजपाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ३ ॥ राजिमती निज वनीता तारी, नवनव प्रीति निजाइरी ॥ हलधर रथकर मृग तुम नामे, ब्रह्मलोक सुर थाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ४ ॥ गजसुकुमाल लाल तुम तार्यो, नववन सगरे जराइरी ॥ ए उपगार गिनु जग केता, करुणा सिंधु सहाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ५ ॥ पिए निज कुटुंब उद्धार नाथजी, तारक विरूद धराइरी ॥ ए गुण वर नरनमें राजे, इनमें कां
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतबमा सखीरी ॥ वा० ॥ ६ ॥ रेवताचल मेमन मुख खंगन, महेर करो जिनरारी ॥ मुझ घट आनद मंगल करतो, हुं पिण आतमरा सखीरी ॥ वा ॥७॥
स्वतन पांचमुं।
॥ राग केरबा ॥ मगर बतादे पूजारीया, में तो नेटुं नेमि
जिनंद, मगर ॥ टेक ॥ प्रथम टुक प्रजु जिनजी विराजे, राजे सुरतरुकंद ॥ म॥१॥ सहस्त्रावन प्रजु चरण विराजे, नेटीये परम आनंद ॥ ॥२॥ ऊंची विखमी पंचमी ढूंके, काटे कमका फंद ॥ म० ॥३॥ अवर ढूंक पर चरण सुहंकर, पूजो आतमचंद ॥ म० ॥४॥
स्तवन बटुं।
॥ राग ठुमरी ॥ • चलो सजनी जिन वंदनको, गिरनारी नेमि
सामरीया टेक ॥ उंचेरे गढपर प्रजुजी बिराजे, दरस करत चवजल तरीया ॥ च ॥ १॥ स्याम वरण तनु
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स्तवनावली। जविजन मोहे, शांति रूप तन मन ठरीया ॥०॥
॥ आतम आनंद मंगल मूरती, सूरति जिन हिरदे धरीया ॥ च ॥३॥
स्तवन सातमुं।
॥ राग ध्रुपद ।। आई इंश नार कर कर शृंगार ॥ चाल ॥
तुम मदन जार, निजरूप धार, गिरवर सधार, मन काम बार, सुन पशु पूकार, जग सब तज दीनो ॥ तुम ॥१॥ तुम दयावान, सब गुण निधान, मैं धरूं ध्यान, तुम चरन आन, सब गत निधान, तुम नाम नगीनो ॥ तुम ॥२॥ सुर इंद चंद नर इंद वंद, तुम दरस नयन मुक सुख आनंद,आतम आनंद, चरनन चित्त दीनो॥ तुम ॥३॥
स्तवन आठमुं।
॥ राग मराठी ॥ नेमि निरंजन नाथ हमारे मंजन मदन रदन कहीये ॥ जिन राजुल त्यागी रूपमें रंना जगमें ना लहिये ॥ ने ॥ १॥ अवर देव वामा वस कीने जीने कामरसे गहीये ॥ तूं अदनुत
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__ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतजोझा नामसें मार करमका जर दहीये ॥ ने ॥ २॥ वताचल मंझन मुख खंमन मंमन धर्म धुरा कहीये ।। तुम दरशन करके पापके कोट बिनकमें सब ढहीये ॥ने॥३॥ आतम रंग रंगीला जिनवर तुमरी चरन सरन लहीये ॥ तो अलख निरंजन ज्योतिमें ज्योति मिलीने संग रहीये ॥ ने ॥४॥
स्तवन नवमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ मन मगन नेमि जिन दरसनमें ॥ टेक ॥ आवो सखी मिल गिरवर चलिये, नेमि चरन युग फरसनमें ॥ मनः ॥ १ ॥ रेवताचल नये तीन कल्यानक, मुगति दैत सेवक जनने॥मन॥२॥ आतम रूप गहु मन मोहे न बोहुँ रूप रस तन धनने ॥ मन ॥३॥ ॥ इति श्री नेम नाथ जिन स्तवनानि संपूर्णानि ॥ ॥श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥
स्तवन पहेलु।
॥राग बढंस ॥ मूरति पास जिनंदकी सोहनी । मोहनी जगत उधारण हारी। मू । आंकणी। नील कमल
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स्तवनावली।
५३ दल तनप्रजु राजै साजे विजुवन जन सुखकारी। मोह अज्ञान मान सब दलनी। मिथ्या मदन महा अध जारी । मूण् ॥ १॥ हुँ अति हीन दीन जगवासी । माया मगन जयो सुद्ध बुद्ध हारी । तो विन कौन करे मुझ करुणा । वेगालो अब खबर हमारी । मू०॥॥ तुम दरसन बिन वहु मुख पायो। खाये कनक जैसे चरी मतवारी। कुगुरू कुसंग रंगवस उरफयो । जानी नही तुम नगती प्यारी । मू॥३॥ आदि अंत बिन जग नरमायो । गायो कुदेव कुपंथ निहारी । जिन रस और अन्य रस गायो। पायो अनंत महामुख जारी । मू० ॥ ४ ॥ कौन उधार करे मुक केरो। श्री जिन विन सहु लोक मझारी । करम कलंक पंक सब जारे। जोजन गावत नगति तिहारी। मू० ॥ ५ ॥ जैसे चंद चकोरन नेहा मधुकर केत की दल मन प्यारी । जनम जनम प्रजु पास जिनेसर । वसो मन मेरे नगति तिहारी। मू॥ ६॥ अश्वसेन वामा के नंदन । चंदन सम प्रजु तप्त बुझारी। निज आतम अनुन्नव रस दीजो। कीजो पलक में तनु संसारी । मू० ॥ ७॥
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
स्तवन बीजुं ।
॥ राग ठुमरी ॥ चलो सजनी जिन बंदनको मधुवनमें पास निरंजनको ॥ च० ॥ टेक ॥
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समेत शिखर पर प्रभुजी विराजे, दरशन पाप निकंदनको ॥ च० ॥ १ ॥ अश्वसेन नरपति के नंदा, दुर करो दुख बंधनको ॥ च० ॥ २ ॥ तमराम आनंद के दाता, बामा मात आनंदन को ॥ च० ॥ ३ ॥
स्तवन त्रीजुं ।
पारस नाथ जपत है जो जन, ए देशी ॥ पास जिनंद यानंदके दाता, तीन जवनमें मोह लियो || पा० ॥ टेक ॥
वामानंदन पाप निकंदन, तीन जवनमें नाम गयोरे ॥ पा० ॥ १ ॥ कमासूरको मंद हर लींनो, सात जनममें जयकार लियोरे पा० ॥ २ ॥ श्रतम समेत शिखर चल जाऊं, जनम मरन दुख दूर थोरे ॥ पा० ॥ ३ ॥
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स्तवनावली। स्तवन चोथु।
॥ राग केरबा ॥ मगर वतादे पहानीया, मैं तो पूजें परम __ आनंद ॥ मगर ॥ टेक ॥
पास चरन नेटनकी मनमें, लागी बहुत उमंग ॥ म० ॥१॥धन्य दिवस वो सकल गिनूंगा, जाऊं समेत जन्तंग ॥ म० ॥ चातक घन जिम दरशन चाडं, मनमें नाव अजंग ।। म ॥आतम रस नरी जिनवर निरखं फले मनोरथ चंग ॥ म ॥३॥
स्तवन पांचमुं।
।। राग ठुमरी ॥ मैं देखा पारसनाथ निरंजन सफल फली मन
__ आसजी ॥ में ॥ टेक ॥
गिरि समेत प्रजु सोहे मोहे, मोहे जवि जन रासजी ॥ मेंण्॥१॥ देश देशके जातरु आवे कोई न थावे निरासजी ॥में ॥२॥ संघ सुहावन मधुवन सुंदर, जिहां प्रजुलीना वासजी ॥ में ॥ ३॥ आतम आनंद मंगल मूरत, आनंद घन सुख रासजी ॥ में॥४॥
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५६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत- .
स्तवन हुं। पारसनाथ जपत है जो जन, ॥ ए देशी ॥ पास जिनंद रटत है जो जन, पूर टले नव सागर फेरे ॥ पाण् टेक ॥
तीन जवनमें तिलक विराजे अष्टादश दोष सब मेरे॥ पा ॥१॥ अवर देव वामा वस कीने, नीने मदन मदंध घनेरे ॥ पा ॥२॥ शांतिरूप तुम दरसन कीने, नाम लेत सब बंधन फेरे॥ पाण ॥३॥ गिरि समेत प्रनु अटल बिराजे, आतम आनंद रसको लेरे ॥ पा॥४॥
स्तवन सातमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ प्रनु पास निरंजन जयकारी ॥ टेक ॥ बालपने प्रजु अदभुत ज्ञानी, राख्यो नाग लकर फारी ॥ प्र॥१॥ दे नवकार फाणी दर कीनो, एक दया दिलमें धारी ॥ प्र ॥२॥ वाणीरस अमृत वरसायो, नविजनके कारज सारी ॥ प्र॥३॥ समेतशिखर प्रजु मुक्ति विराजे, निज आतमगुण ले लारी ॥ प्र॥४॥
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स्तवनावली।
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स्तवन आग्मुं।
॥ राग ठुमरी ॥ जिन पास दरस कर मगन नये ॥ टेक ॥ चरन सरन प्रजु तुम रस राचे काटे करम कलंक गये ॥ जि० ॥१॥ तेरे नजनसें पाप पखारे, जनम मरन मुख पूर बये ॥ जि० ॥ ५॥ गिरि समेत प्रजु विजुवन मोहे, आतम रसमें मगन थये ॥ जि० ॥३॥
स्तवन नवमुं।
॥ राग भैरवी ॥ - लागी लगन कहो केसे बुटे।
प्राणजीवन प्रनु प्यारेसें, ए देशी ॥ श्री शंखेश्वर निज गुनरंगी, प्राणजीवन प्रलु तारेरे श्री शंखेश्वर ॥ आंचली॥अश्वसेन वामाजीको नंदन, चंदन रस सम सारेरे ॥ अनीयाली तोरी अंबुज अखीयां, करुणा रसगरे तारेरे ॥ श्री शंखेश्वर॥१॥ नयन कचोले अमृत रोले, नविजन काज सुधारेरे ॥ नवि चकोर चित्त हरखे निरखी, चंद किरण समप्यारेरे ॥ श्री शंखेश्वर ॥२॥ तेरो ही नाम रटत हूं निशदिन, अन्य आलंवन गरेरे॥ शरण पड्ये को पार उतारे, ऐसो विरुद तिहारेरे ॥
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५८
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
श्री शंखेश्वर ||३|| मत जमत शंखेश्वर स्वामी, पामी चम सब मारेरे ॥ जनम मरणकी नीति, निवारी, वेग करो जब पारेरे ॥ श्री शंखेश्वर० ॥ ४ ॥ यतमराम आनंद रस पूरण, तुं मुज काज सुधारेरे ॥ अनहद नाद बजे घट अंदर, तुंही तुंही तान उच्चारेरे || श्री शंखेश्वर० ||२||
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स्तवनं दशमं ।
॥ राग खमाच ॥
श्री शंखेश्वर दरस देख, कुमति मोरी मिट गरे याज || चली ॥ ज्ञान वचन पूजा रस बायो, नाश कष्ट जविजन मन जायो ॥ युं जिन मुरति रंग देख, दुरगति मेरी खुट गरे || श्री
खेश्वर० ॥ १ ॥ निरविकार वामासंग त्यागी, जप माला नहीं नाथ निरागी । शस्त्र नहीं कर द्वेष मिटे, चमता सब बुट गरे || श्री शंखेश्वर० ॥२॥ निज विभूति लीनी लार, लोकालोक करी उजवार । नाम जपे सब पाप कटे, दुर्मति सब लुट गरे || श्री शंखेश्वर० ||३|| आनंद मंगल जगमें चार, मंगल प्रथम जगत करतार । श्रीवामा सुत पास तुंही, अघ चांति मिट गईरे ॥ श्री शंखे
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स्तवनावली |
श्वर० ॥ ४ ॥ श्याम मेघ सम पासजी निरखी, तम आनंद शिखी जिम हरखी । करतं शब्द मुख पास तुंही, यही रटना रट लइरे || श्री शंखेश्वर० ॥ ५ ॥ इति ॥
५०
स्तवन
यार ।
॥ राग पंजाबी ठेकानी ठुमरी ॥ मोरी वैयां तो पकर शंखेश स्याम, करुणा reat तोरे नैन स्याम || मोरी० ॥ चली ॥ तुम तो तार फणींद जग साचे, हमकुं वीसार न करुणा धाम || मोरी० ॥ १ ॥ जादवपति यरति तुम कापी, धारित जगत शंखेश नाम ॥ मोरी ० ॥ २ ॥ हम तो काल पंचम वस आये, तुमारो शरण जिनेश नाम || मोरी० ॥ ३ ॥ संयम तप करने शुद्ध शक्ति, न धरुं कर्म ऊकोर पाम ॥ मोरी ० ॥ ४ ॥ आनंद रसपूरण सुख देखी आनंद पूरण तमराम || मोरी० ॥ ५ ॥
स्तवन बारमुं । ॥ राग कालींगडो ॥
पास प्रभुरे तुम हम शिरके मोर || पास० ॥ टेक ॥ जो कोइ सिमरे शंखेश्वर प्रजुरे, मारेगा
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६० श्रीमद्विजययानंदसूरि कृतपाप निचोर ॥ पास प्रजु० ॥१॥ तुं मनमोहन चिदघन स्वामीरे, साहेब चंद चकोरं ॥ पास प्रनु० ॥२॥ त्यूं मन विकसे नविजन केरारे, फारेगा कर्म हीमोर ॥ पास प्रनु ॥३॥ तुं मुज सुनेगा दिलकी बातारे, तारोगे नाथ खरोर
॥ पास प्रजु ॥४॥ तुं मुज आतम आनंद दा· तारे, ध्याता हुं तुमेरा किशोर ॥ पास प्रजु० ॥५॥ इति ॥
__ स्तवन तेरमुं।
॥ राग पंजाबी ठेकानी ठुमरी ॥ तोरी बबी मनोहारी; शंखेश स्याम; नीलांबुजवत तोरे नैन स्याम । तोरी ॥ आंचली ॥ चंड ज्यूं वदन जगत तम नासे, चरण कमल पंक पखारे नाम ॥ तोरी० ॥१॥ नीलवरण तनु जवि मन मोहे, सोहे विजुवन करुणा धाम ॥ तोरी ॥२॥पारस पारस सम करे जनको, हाटक करन तुमरो काम ॥ तोरी० ॥ ३ ॥ अजर अखंमित मंमित निज गुन, ईश निजीत पूरे काम ॥ तोरी० ॥ ४ ॥ अनघ अमल अज चिद घन रासी, आनंद घन प्रजु श्रातमराम ॥ तोरी० ॥५॥
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स्तवनावली।
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स्तवन चौदमुं।
॥ राग भैरवी में गजल ॥ मुख वोल जरा यह कहदे खरा, तुं ओर नहीं में ओर नहीं ॥ मुख०॥आंचली ॥ तुं नाथ मेरा में दुं जान तेरी, मुजे क्युं विसराइ जान मेरी ॥ जव करम कटा और नरम फटा ॥ तुं
और नहीं ॥ १ ॥ तुं हे ईश जरा में हुं दास तेरा ॥ मुजे क्युं न करो अब नाथ खरा ॥ जव कुमति टरे ओर सुमति वरे ॥ तुं ओर नहीं ॥ २ ॥ तुं हे पास जरा में हुं पास परा ॥ मुजे क्युं न गेमावो पास टरा ॥ जव राग कटे ओर केप मिटे ॥ तुं ओर नहीं ॥ ३ ॥ तुं हे अचर वरा में हुं चलने चरा, मुजे क्युं न बनावो आपसरा ॥ जव होश जरे ओर सांग टरे ॥ तुं ओर नहीं ॥ ४ ॥ तुं हे नूप वरा शंखेश खरा, में तो आतमराम आनंद जरा ॥ तुम दरस करी सब ब्रांति हरी ॥ तुं ओर नही० ॥ ५ ॥
स्तवन पंदरमुं।
॥ राग सोरठ॥ लगीलो वामानंदन स्युं । नरम नंजन तुं ।।
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श्रामदावजयानदसूार कृत-- लगीलो आंकणी । जाय सब धन जाय वामा प्राण जाय न क्युं ॥ एक जिनजी की आण मेरे रहोने ज्युकी त्यूं ॥ लगीलो ॥ १ ॥ नांहि तप बल नांहि जप बल शुद्ध समय त्यूं । एक प्रजुजीके चरण शरणां ब्रांति लांजी कल्पुलगीलो ॥२॥ घट अंदरकी जाने तुं जिन कथन करनेशं। देख दीन दयाल ॥ मुजको तार जगसें तुं ॥ लगीलो ॥ ३ ॥ इंच चंद्र सुरीश पदवी कोन वांदुं हुं । एक तुम दृग करुणा नीने सदा निरखं ज्यूं ॥ लगीलो ॥४॥ तार आतमराम राजा मुक्ति रमणि वरं । श्री शंखेश्वर नाथ जिनवर शुद्धानंद जरुं ॥ लगीलो ॥५॥
स्तवन सोलमुं।
॥राग माढ ॥ पूजो तो सही मेरा चेतन पूजो तो सही, थे तो फलवर्धी पारसनाथ प्रजुको पूजो तो
सही ।। टेक ॥ अष्टादश षण करी वरजित देवो तो सही, टुक स्याम सलूनो रूप आनंद जर जोवो तो सही ॥१॥ परमानंद कंद प्रनु पारस पारस तो सही,
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स्तनावली।
तुम निज आतमको कनक करन टुक फरसो तो सही ॥५॥ अजर अमर प्रजु ईश निरंजन नं. जन कर्म कही, एतो सेवक मन वंडित सब पूरण अद्भुत कल्प सही ॥ ३ ॥ चंद्र अंक वेद दिव संवत् षष्ठी मैत्र लही, मन हर्ष हर्ष प्रजुके गुण गावत परमानंद लही ॥४॥
स्तवन सत्तरमुं।
॥ राग विहाग | दायक है प्रनु पास निरंजन अंजन तिमिर मिटारी । अनुभूति निज प्रगट जश् है परमानंद नराश् सखीरी॥ दायक ॥॥ सप्तनंगषमंजग अनंग रंगे गुण परजारी ॥ चार जंग अम पद सुज्ञाता ध्याता शिवसुख ताश्सखीरी।दा०॥२॥ चार निखेपा नय घन सातो ज्ञान क्रिया समुदारी। तिमिर एकांत मिथ्या मत टारी अंतज्योति लगाइ सखीरी ।। दाम् ॥३॥ तुम जाने विन नाथ निरंजन काल अनंत गमाशी । पर गुण राच रच्यो नट नाटक नयना मैल नराश सखीरी ॥ दा० ॥ ४ ॥ तुम अंजनने तिमिर नसायो उर्जन पिंथर मिटाशी ॥ निज स्वरूपके
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६४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- जान जये हम जिन मिलने मन लाइ सखीरी दा० ॥ ५ ॥ ढुढत ढुंढत बंदर गोघे विजु तुम दरसन पारी । निर्यामक तुं कांग्रे मिलियो अब हम क्या परवाश् सखीरी ॥ दा ॥६॥ श्ण कारण तुम नवोदधि कांठे बैठे ध्यान लगारी । करुणासिंधु नव पार करो मुझ चरण सरण तुम आश् सखीरी ।। दा॥७॥ तुम सम तारक को न दीसे त्रिजुवन सगरे मांरी ॥ कौन बैठे नव सायर तीरे पास प्रजु विना सांझ सखीरी ॥ दाण ।। जयो जिन चंद आनंद के दाता सगरे काज सरारी ॥ श्रातम चंद उद्योत कियो है नवोदधि वेग तराइ सखीरी ॥ दा० ॥॥
स्तवन अढारमुं।
॥ राग सोरठ ॥ कुबजाने जादु मारा ॥ यह चाल ॥ शिव रमणी जाऊ मारा, जब पास जिनंद जुहारा ।। शिव ॥ टेक ॥
तिर्यग अमर नर नारक रूपें, सांग धरे अति नारा ॥ मोहकी दोर बंधी गले तोरे, घटमें घोर अंधारा ॥ शिव० ॥ १॥ कुमता रमण नरम
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स्तवनावली । रस राच्यो, नाच्यो अनादि अपारा ॥ माता उदर कूप रस कसमल, मनुष जनम मैं निकसे, पुन्य उदय रखवारा ॥ कुमता वास आस मत कीजो, जिम ललितांग कुमारा ॥ शि ॥३॥ अतर अवीर जैन वच नीके, फुनी निज अंग सुधारा ॥ सुमता रंग करो निज तनु, नेटो पास कुमारा ॥ शि०॥ ४ ॥ किहां होसी वो नाथ निरंजन, श्म ढूंढत जग सारा ॥ गोघा मंगण सब दुख खंमप, मिलीयो प्रेम प्यारा ॥ शिण ॥ ५॥ दुकम प्रनुके शिवपद माग्यो, अव क्यों ढील उदारा ॥ संवत शशि निधि अग्नि नेत्र ज्यू, तूगे पास कुमारा ॥ शि० ॥ ६ ॥ संतोष मुनिने हर्ष संघको, मास रह्या जिहां चारा ॥ शिव वधू निश्चे हुकम पास के, आनंद मंगल चारा ॥ शि० ॥ ७॥
॥ स्तवन वीसमुं॥
॥ चाल सरवणकी ॥ यव मोहे पार उतार, चिंतामणि अव मोहे ॥ रामनगर मंगण मुख खमण, अवर न कोश् याधार ॥ चिं० ॥ १ ॥ आस पास प्रनु
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
अजित जिनेसर, मुनि सुव्रत चित धार | चंद्र प्रभु श्रीवीर जिनेसर, शासनके सिरदार | चिं० ॥ २ ॥ एक छक प्रभु लोह कंकण लइ, नूपति अंग संग कार ॥ वचन युक्तिसें हैम हुआ है, येह शक्ति संसार || चिं० ॥ ३ ॥ चिंतामणि तुम नाम धरावो, चिंतत किम नही कार || सेवकने विलविलता देखी, अपना नाम संचार || चिं० ॥४॥ चमत चमत चिंतामणि पायो, रामनगरमें सार ॥ पांच सेवक प्रभु पांच जिनेसर, पंचमी गति द्यो सार ॥ चिं० ॥ ५ ॥ संवत जुवन जुर्वेन निधिं दधिसुंत, आश्विन मास अतिसार ॥ कर्मवाटी प्रतिपदि गुण गाया, कर आतम उद्धार | चिं० ॥ ६ ॥
स्तवन एकवी शभुं ।
॥ राग प्रभाति ॥
पारस नाथ दया कर मोपर, नवसागरथी पार उतारो || पा० ॥ १ ॥ अवर देव सव त्याग करीने, सरण लियो प्रभु व में थारो || पा० ॥ २ ॥ काशी देश वनारसी नगरी, जिहां लियो है प्रभु अवतारो || पा० || ३ || अश्वसेन वामा
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स्तवनावली।
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जीके नंदन, नव वन काटनको प्रनु आरो ॥ पा ॥ ४॥ येह संसार पलाल पुंजको, दह करनको अग्नि कारो ॥ पा ॥ ५ ॥ येह संसार विकट अटवीमें, काम क्रोध दुख देते हैं नारो ॥ ६ ॥ सरण लियो सुत अश्वसेनको, कर प्रनु बातम अव उकारो ॥ पा० ॥७॥
~~~racter--- स्तवन वावीशमुं।
॥ राग भैरवी ॥ नीलवरण प्रनु पासजी विराजे, दरसनथी
दख जाजरे । नील ॥ टेक ॥
जो जात्री प्रल दरसन पावे, फिर मनसें नहीं जावरे || दरस अपूरव कर कर प्राणी, पाप नाश कर जावेरे ॥ नी० ॥ १॥ चार खूट फिर सब जग जोया, दरस ऐसा नहीं होयारे ॥ दाशरथीपुर नीलवपु जिन, मल मेरा सव धोयारे ॥ नी० ॥ २ ॥ जो प्रजुजीका दरस करे नित, नूतन रूप दिखावेरे ॥ नूतन रूपको फल है येही, रूप नवीन फुरावेरे ॥ नी० ॥ ३॥ चित्त एकागर कर कर कोड, दरस प्रनु तन पावरे । ते रजनी सुप
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नामा
सूर
नामें देखे, फेर जनम नही आवेरे ॥ नी० ॥ ४ ॥ कर उपर कर प्रभुजी बिराजे, सूचन ध्यान पतावेरे ॥ तीन बत्र प्रभु कंपर कहकर, त्रिभुवन स्वामी जनावेरे ॥ नी० ॥ ५ ॥ चामर कहत है नीचे जूक कर, ऊर्ध्वगति तुम जावेरे ॥ नामंगल पूठे प्रभु दरसन, तम मिथ्यात गमावेरे ॥ नी० ॥ ६ ॥ अयुत जोजन ध्वज आगल प्रभु के, तिस उपर कर साखारे ॥ जिष्णु बदमथी एम कहत है, स्वामी इक जग ताजारे ॥ नी० ॥ ७ ॥ जिनवरकी सेवामें नित, गंगु श्रावक राच्यारे ॥ आतम लिप्सा पूरण कीजो, मोह मारग एक जाच्यारे ॥ नी० ॥ ८ ॥
स्तवन त्रेव शमं ।
पास जिनंद निहार हो, तुं त्रिभुवन त्राता ॥ टेक ॥
तुम दरसनसें अजर अमर हो, निरंजन निराकार हो ॥ तुं ॥ १ ॥ अवर देव नीके कर देखे, पेखे सर्व विकार हो || तु ॥ २ ॥ अब मोहे तारो ढील न कीजो, आतम आनंद कार हो ॥ तुं ॥ ३ ॥
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स्तवनावली ।
स्तवन चोवीशमुं।
___॥ राग दादरो॥ वढ्योजी मम नाग बढ्योजी मम नाग । निरखी जिन विवको बढ्योजी ॥ टेक ॥
मिट गइ फिकरी करम अघ आज, जिनँद जस अखीयां जगत सिर ताज ॥ ब० ॥ १ ॥ सटक गश् ममता कुगुरु नश् लाज, पाखंम गढ खमनी जिनंद किरपाज ।। व॥२॥ नटक मरी जमता आनंद खिम्यो आज, जिनंद वामानंदको थातम जग राज ॥ ३० ॥३॥
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स्तवन पच्चीशमुं।
॥ राग दादरो॥ करोजी नरपूर करोजी जरपूर, आनंद सुख
कंदको करोजी ॥ टेक ॥ वामाजीके नंदा करम दल चूर, दया दिल रखीया कुगति करो दूर ॥०॥१॥ सरण तुम सीनो काटोजी नव मूर, खूलेजी मोरी अखीयां जगत जैसे सूर ॥क० ॥२॥ सजल नई चिंता . नयोजी सुख पूर, आनंद दिल रखीया तिमिर हरो पूर ॥ क० ॥३॥
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७० श्रीमद्विजयानंदमूरि कृत--
स्तवन बव्वीशमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ में देखा चिदघन पारसको, मेरे काज सरे
सब आजजी ॥ में ॥ टेक ॥ नीलवरण तनु सुर नर मोहे, शांति वदन सुख साजजी ॥ में ॥ १॥ अष्टादश षण गए घरे, सारे नक्त सब काजजी ॥ में ॥ २॥ चंद वदन नवि जन मन मोहे, तूं त्रिजुवन सिर ताजजी ॥ में ॥ ३॥ जनम जनममें तुम पद सेवं, एही आतमराजजी ॥ में ॥४॥
स्तवन सत्तावीशमुं। ॥ राग अंग्रेजी बाजेकी चाल ॥
आनंद तेरे दर्शका जिनराज मार्नु हुँ ॥ श्रा० ॥ टेक ॥ तुंही आनंद कंदका है तार जानुं हुं, अवर देव देखीये विशेषीयेजी तुं॥ आ ॥ १॥ मुळे करो अमार तार मार जार तुं, तुंही जो आज नेटीयो चमेटीयोजी तुं ॥ आ॥ २॥ आत्मा आनंद चंद फंद फार तुं, मुफ एक रूप कीजीए दातार पास तुं ॥ आ ॥ ३॥
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स्तवनावली।
७१
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स्तवन अहावीशमुं।
|| राग ध्रुपद ॥ आई इंड नार ॥ देशी॥ सव करम जार, जिन सरन धार, तुम नाम सार, नवी सरत कार, अनुन्नव आधार, समयतरस नीनो ॥ स० ॥१॥ नवोदधि अपार, करतार तार, जग सत्थवाह, सब जग आधार, तूंही पास नाथ अजरामर कीनो॥ स॥ २॥ सब मेट सोग, सब विषय नोग, कर आज योग, मिटे मनका रोग, तुम नाम लेत मोह जट जय कोना ॥ स० ॥३॥ मम सयाँ काम, तुम चरन पाम, तुम धर्यो ध्यान, गयो पाप नाम, यातम आनंद दरसन कर लीनो ॥ स ॥ ४ ॥
- स्तवन ओगणत्रीशमुं।
॥राग प्रभाति ॥ थोमीसी जिंदगी सुपनसी माया, इनमें क्यों
मुरकायाहे रे ॥ यो ॥ टेक ॥ तन धन जोवन उिनकमें विनसे, जिस पर मन रिफायाहे रे ॥ थो॥ १॥ गरव चार जगमें न समाते, बादर जिम बिरलायाहे रे ॥ थो० ॥
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-
स्तवन बव्वीशमं ।
॥ राग ठुमरी ॥ में देखा चिदघन पारसको, मेरे काज सरे सब जी ॥ में० ॥ टेक ॥ नीलवरण तनु सुर नर मोहे, शांति वदन सुख साजजी ॥ ० ॥ १ ॥ अष्टादश डूषण गए डूरे, सारे जक्त सब काजजी ॥ में० ॥ २ ॥ चंद वदन जवि जन मन मोहे, तूं त्रिभुवन सिर ताजजी ॥ ० ॥ ३ ॥ जनम जनममें तुम पद सेवुं, एही आतमराजजी ॥ में० ॥ ४ ॥
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स्तवन सत्तावीशभुं ।
॥ राग अंग्रेजी बाजेकी चाल ॥
आनंद तेरे दर्शका जिनराज मानुं हुं ॥ ० ॥ टेक ॥ तुही आनंद कंदका है तार जानुं हुं, वर देव देखीये विशेषीयेजी तुं ॥
० ॥ १ ॥ मुळे करो मार तार मार जार तुं, तुंही जो आज जेटीयो चमेटीयोजी तुं ॥ ० ॥ २ ॥ यत्मायानंद चंद फेद फार तुं, मुफ एक रूप कीजीए दातार पास तुं ॥ या० ॥ ३ ॥
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स्तवनावली |
स्तवन हावी शभुं ।
|| राग धुपद || आई इंद्र नार || देशी ॥ सब करम जार, जिन सरन धार, तुम नाम सार, नवी सरत कार, अनुभव आधार, समयतरस जीनो ॥ स० ॥ १ ॥ नवोदधि अपार,
करतार तार, जग सत्यवाह, सब जग आधार, तूही पास नाथ अजरामर कीनो ॥ स० ॥ २ ॥ सब मेट सोग, सब विषय जोग, कर आज योग, मिटे मनका रोग, तुम नाम लेत मोह नट जय कीनो ॥ स० ॥ ३ ॥ मम सर्यो काम, तुम चरन पाम, तुम धर्यो ध्यान गयो पाप नाम, तम आनंद दरसन कर लीनो ॥ स० ॥ ४ ॥
स्तवन
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त्रीभुं ।
॥ राग प्रभाति ॥
थोमीसी जिंदगी सुपनसी माया, इनमें क्यों मुरकाया रे || थो० ॥ टेक ॥
तन धन जोबन निकमें बिनसे, जिस पर मन रिकाया रे || थो० ॥ १ ॥ गरव जार जगमें न समाते, बादर जिम विरलायाहे रे ॥ थो० ॥
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- ५॥ जज प्रतु पास देवनके देवा, आतम अविचल मायाहे रे ॥ थो ॥३॥
स्तवन त्रीशमुं।
॥ राग ।। पालना गडब्यारे वढश्या, ए देशी ॥
पालने जिन पास पोढश्या ॥ टेक ॥ , सुरपति मिल सब देत हलोरी, हरषी वामादेवी मश्या ॥ पा० ॥१॥ इंशाणी मिल मंगल गावे, नाच करे तात अश्या ॥ पा ॥२॥ तुं मेरा लाला जग सब व्हाला, फिर फिर मुख मटकश्या ॥ पा० ॥ ॥ आतम कल्पतरु जग प्रगट्यो, दीग आनंद लश्या । पा ॥४॥
स्तवन एकत्रीशमुं।
॥राग मराठी ॥ अहन पदको लजके चेतन, निज स्वरूपमें रम रहीये, तुम अकल सरूपी, डोमके परगुन निज सत्ता लहीये ॥ अ॥१॥ दानेद अजर अविनाशी, रूप रंग विना तुम कहीये, निज रंग रंगीला, डोमके लीला निज गुनमें रहीये ॥
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स्तवनावली ।
७३
अ० ॥ २ ॥ संध्या रंग अनंग संग त्यूं, जोवन धन क्यों गहीये । क्यों जरम मूलाने, सुपनसीमाया इसमें ना वहीये ॥ ० ॥ ३ ॥ आतम में खोज पियारे, बाहिर नटकते ना रहिये । Than सब त्यागी, पासके चरण कमलमें जा [हीये ॥ ० ॥ ४ ॥
स्तवन बत्री शभुं ।
॥ राग बिहाग ||
सिमर सिमररे सुज्ञानी जिनंद पद० ॥ टेक ॥ अजर अमर सब अलख निरंजन, जंजन कर्म कठानी ॥ जि० ॥ १ ॥ चिदानंद घन अजर अमूरत, सुरत त्रिभुवन मानी ॥ जि० ॥ २ ॥ शांति सुधारस जिनवर पारस, आरस लोक निशानी ॥ जि० ॥ ३ ॥ कोटले नगरे बिंब बिराजे, यातम अनुभव दानी ॥ जि० ॥ ४ ॥
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स्तवन तेत्रीशभुं ।
॥ राग इमन अथवा पीलु ||
तोरी सूरतिकी जाउं बलिहारी, मानुं बबि समता मतवारी || तो० ॥ टेक ॥
१०
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
समतारस जरे नयन कचोले, अमृत रस वरसे दृग तारी | शांत वदन जविजन मन मोहे, सोहे आनंदरस करतारी ॥ तो० ॥ १ ॥ काम मदन जामिनी संग नाही, शस्त्र रहित नहीं द्वेष विकारी । समरस मगन मगन निजरूपे, सब देवनकी बबि मदहारी ॥ तो० ॥ २ ॥ ध्यान मगन कर उपर कररी, पद्मासन विपदा सब गरी । पूरण ब्रह्म आनंद घन स्वामी, नामी नाम रटे घटारी ॥ तो० ३ || शांतरसमय मूरति राजे, निरविकार समतारस जारी ॥ तीन जुवनके देवनकी बबि, तनकही तैसो रूप न धारी ॥ तो० ॥ ४ ॥ तीनोंही देव अनंग सुनटनें, वश कीने शक्ति सब जारी || आतम आनंद निज रस राची, पारसनाथकी हुं बलिहारी ॥ तो० ॥ ५ ॥ इति ॥
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अथ श्री महावीर जिन स्तवनानि । स्तवन पहें ।
॥ राग ॥ आइ वसंत ॥ वीर जिनंद कृपाल हो, तुं मुऊ मन जाया ॥ टेक ॥
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स्तवनावली |
† तेरे बिन कौन ाधम उद्धारण, वारण
मिथ्या जाल हो ॥ तुं सुऊ० ॥ १ ॥ बचन सुधारस तुम जग प्रगटे, गटके जविजन लाल हो ॥ तुं मुक० || २ || आतम आनंदरस नर लीनो, अजर अमर अकाल हो ॥ तुं मु० ॥ ३ ॥
७५
स्तवन बीजुं ।
चलो जाई चलके देखावे, आज प्रभु वीर दरस पावे || टेक !!
कुंदनपुर महाराज विराजे, महिमा जस गावे ॥ चलो० ॥ १ ॥ त्रिशलानंदन सुरतरु जगमें, वांबित फल पावे || चलो० ॥ २ ॥ मन वच तनुसें नक्ति करत जो, अमरापुर जावे ॥ चलो० ॥ ३ ॥ जन्म कल्याणक प्रभुको प्रगढ्यो, यातम जम गावे ॥ चलो० ॥ ४ ॥
स्तवन त्रीजुं ॥
चलो नाई तुमको ले जावे, जिन्हां प्रभु वीर दरस पावे ॥ टेक ॥ पावापुर महावीर विराजे, सुर नर इन गावे || चला० ॥ १ ॥ पासून कनकी इस
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चंबा चुन लावे | चलो ॥२॥ मदन ताप सब दूर करनको, पूजी सुख पावे || चलो ॥३॥ आतम आनंद मुक्ति कल्याणक, जय जयकार थावे ॥ चलो ॥४॥
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स्तवन चो)। अथ श्री महावीर पालना ॥ चाल होरी ॥
त्रिशलादे गोद खिलावे ॥ टेक ॥
वीर जिनंद जगत किरपाल, तेरांही दरस सुहावे ॥ त्रि० ॥१॥ आ मेरे वाला त्रिजुवन लाला, तुमक ठुमक चल आवे ॥ त्रि० ॥५॥ पालने पोढ्यो त्रिजुवन नायक, फिर फिर कंठ लगावे ॥ त्रि० ॥ ३ ॥ आवो सखी मुफ नंदन देखो, जगत उद्योत करावे जे ॥ त्रि० ॥ ४ ॥ आतम अनुन्नव रसके दाता, चरण सरण तुम नावे ॥ त्रि ॥५॥
स्तवन पांचमुं।
॥ राग ठुमरी ॥ चलो लविजन जिन वंदनको, जिहां वीर
जिनंद मुगति वरीयारे ॥ टेक ॥
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७७
स्तवनावली। ___ पावापुरी में जिनजी बिराजे, नाथ निरंजन सुख करीयारे ॥ च ॥ १॥ चरम चौमासा करी जिनवरने, गौतम केवलपद वरीयारे॥ च ॥२॥ आनंद मंगल प्रजुजीके नामे, आतम अनुभव जव तरीयारे ॥ च ॥ ३॥
स्तवन बटुं।
॥ राग अंग्रेजी वाजेकी चाल || जिनंद चंद देखके आनंद नयो हुँ ।। टेक॥
तुंही कलंक पंकको निपंक कार तुं, बंध कर्म धंधको विमार मार तुं । जि० ॥ १ ॥ दास को निहार तार वीर नाथ तुं, रंग जंग मोहको विरंग जार तुं ॥ जिण ॥ ५ ॥ निरख तात रैन रैन नाथ साथ तुं, तेरेही दर्श परसको आनंद मानुं हुं ॥ जि० ॥ ३ ॥ सूर नूर रंगको अनंग कार तुं, आतम आनंद रंग राज आज हुँ जि ॥४॥
स्तवन सातमुं।
॥ राग बिहाग ॥ युं सिमरोरे सुझानी, जिनंद पद ॥ टेक ॥
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७८ श्रीमदावजयानदार कृत--
वदन चंद ज्युं शीतल सोहे, अमृत रस मयी वानी ॥ जि ॥ १ ॥ चिदानंद घन अजर अमर तुं, ज्योतिमें ज्योति समानी ॥ जि ॥ ॥५॥ श्रेणिक नरपति पदकज सेवी, जिनवर पद उपजानी ॥ जि० ॥ ३ ॥ आतम आनंद मंगल माला, अजर अमर पद खानी॥जि० ॥४॥
स्तवन आग्मुं।
॥राग माढ ॥ प्रीत लागी रे जिनंदगुं प्रीत लागी
रे || यांचली। जैसे धेनु वन फिरेरे, मन वढरे केरे मांह। चरण कमल त्यूं वीर केरे, बिन कही विसरत नाह ॥ जिनंद ॥ १ ॥ विंध्याचल रेवा नदी रे, गज वर नूलत नाह॥ मनमोहन तुम मूरति रे, सिमिरत मिटे फुःख दाह ॥ जिनंद ॥२॥ तें तार्यो प्रनु मोहको रे, हरि जवसागर पीर ॥ झान नयन मुजे तें दीये रे, करुणा रस मय वीर ॥ जिनंद ॥ ३ ॥ कोमि वदन कोमि जीनसें रे, कोमी सागर पर्यंत ॥ गुन गाउं तेरे
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स्तवनावली। नक्तिशुं रे, तो तुम रिणको न अंत ॥ जिनंद ॥४॥ कदि एक दिन मुज आवशे रे, निरखं तेरो रे रूप । मो मन आशा तो फलेरे, फिर न परं नव कूप ।। जिनंद ॥ ५ ॥ चरण कमल की रेणुमें रे, हुं लोटूं जगदीश ॥ अंहि न बोर् तब लगेरे, न करे निज सम ईश ॥ जिनंद॥ ॥ ६॥ आतमराम तुं माहरो रे, त्रिसला नंदन वीर ॥ ज्ञान दिवाकर जग जयो रे, नंजन पर पुःख नीर ॥ जिनंद ॥७॥
स्तवन नवमुं।
॥ राग रामकली ॥ तेरो दरस मन नायो चरम जिन तेरो ॥ आंचली ॥ तुं प्रजु करुणा रसमय स्वामी, गर्नमें सोग मिटायो ॥ त्रिसला माताको आनंद दीनो, ज्ञात नंदन जग गायो॥ चरम ॥ १ ॥ वरसी दान दे रोरता वारी, संयम राज्य उपायो। दीन हीनता कबुय न तेरे, सतचिद् आनंद रायो । चरम ॥२॥ करुणा मंथर नयने निरखी, चंग कौशिक सुख दायो, आनंदरस जर सुरग पहुँतो, एसा कौन करायो । चरम ॥ ३ ॥ रतन कंबल
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८०
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत--
द्विजवरको दीनो, गोशालक उधरायो॥ जमाली पन्नर जव अंते, महानंद पद गयो ॥ चरमण ॥ ४ ॥ मत्सरी गौतमको गणधारी, शासन नायक गयो। तेरे अवदात गिनुं जग केते, करुणासिंधु सुहायो ॥ चरम ॥ ५ ॥ हुं बालक शरणागत तेरो, मुजको क्युं विसरायो ॥ तेरे विरहसे हुं फुःख पामुं, कर मुज आतम रायो । चरम०॥६॥
स्तवन दशमुं।
॥ राग वसंत सिंध काफी ॥ वीर प्रजु मन जायोरे मेरे जव फुःख टारे॥ वीर ॥ आंचली ॥ देशना अमृत रस जरी नीकी, नवनव ताप मिटायो । शोल पहोर लग दे जिनवरजी, करुणासिंधु सुहायोरे ॥ मे ॥१॥ पचपन सुन फल पचपन इतरे, यही अध्ययन सुनायो । बत्रीस बिन पूजे प्रश्नोंका, उत्तर कथन करायोरे ॥ मे ॥ २ ॥ एक अध्ययनही नाम प्रधाने, कथन करत महारायो । महानंद पद जग गुरु पायो, जय जयकार करायोरे ॥ मे ॥ ३॥ कल्याणक निर्वाण महोच्छव, कार्तिक मांवास
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६१
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स्तवनावली। गयो । चनसठ सुरपति सोग करतहे, नरते तरणि डिपायो रे ॥ मे ॥ ४ ॥ गौतम देवशरम प्रतिबोधी, सुन मनमें गनरायो । वर्धमान मुजे बोम जगतमें, एको ही मोद सिधायो रे ॥ मे ॥५॥ कोण आगल हुं प्रश्न करशु, उत्तर कोन सुनायो । कुमति उल्लुक बोलेंगे अधुना, अंधकार जग बायो रे ॥ मे॥६॥ तुं नहीं किसका को नहीं तेरा, तुं निज आतमरायो ॥ श्म चिंतत ही केवल पायो, जय जय मंगल गायो रे । मे ॥ ७॥
स्तवन अग्यारमुं।
॥राग सोरठ ॥ वीर जिने दीनी माने एक जरी, एक जंग पंचविश नागन,सुंघत तुरत मरी॥आंचली॥कुमति कुटल अनादिकी वैरन, देखत तुंरत मरी, चारो ही दासी पूत जयंकर, हूए जसम जरी ॥ वीर ॥१॥ बावीस कुमति पूत इग्लेि, नाठे मदसें गरी। दोउ सुन्नट जर मूरसें नासे, बुट्यो मदन मरी ॥ वीर ॥२ ॥ महानंद रस चाखत पायो, तन मन दाह ठरी। अजरामर पद संग सुहायो, नव लव ताप हरी ॥ वीर ॥३॥ सिव .
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
वधु वसीकरणको नीकी, तीनो रत्न धरी । आतम आनंद रसकी दाता, वीर प्रभु दान करी वीर० ॥ ४ ॥
स्तवन बारमुं । ॥ राग श्री ॥
वीर जिन दर्शन नयनानंद, वीर जिन० ॥ चंद्र वदन मुख तिमिर हरे जग, करुणा रस दृग जरै मकरंद | नीलांबुज देखी मन मधुकर, गूंजे तूंही तूंही नाद करंद ॥ वीर जिन० ॥ १ ॥ कनक वरण तनु नवि मन मोहे, सोहे जीते सुरगन वृंद | मुखथी मृत रस कस पीके, शिखीबत जवि जन नाच करंद | वीर जिन० ॥ २ ॥ तपत मिटी तुम बचनामृतसे, नासे जनम मरण दुःख फंद । अक परे तुम दरस करीने, प्रतक्ष मानुं हुं जिन चंद ॥ वीर जिन० ॥ ३ ॥ अरज करतहुं सुन जयनंजन, रंजन निज गुन कर सुखकंद | त्रिशला नंदन जगत जयंकर, कृपा करो मुज आतम चंद ॥ वीर जिन० ॥४॥
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स्तवनावली।
स्तवन तेरमुं। ॥राग बसंत सिंध काफी ॥ रे सुन वीर जिनंदा चरण शरण व्युं तेरा ॥ सुन ॥ काम क्रोध मद राग अज्ञाना, लोन वेष मोह चेरा । माया कुरांमी मदयुत सांमी, इन दिनों मुजे घेरारे ॥ सुन ॥१॥ मन वचन तनुसें करत आकर्षन, वाम रस नेरा । सब धन दाहे अकर रोगको, रंजित पर गुण केरारे ॥ सुन ॥२॥ संका कंखा ब्रांति बढावे, ममता आश घनेरा। अप्रीति करे बिनकमें जनको, दीयो गति चार वसेरा रे ॥ सुन ॥३॥ चारित्र राजको त्रास दीये नितु, निज गुन दावे मेरा ॥ सद आगम संतोष सुरंगा, सम्यग दरसन मेरा रे ॥ सुन ॥४॥ हुकम करो करें सांनिध मेरी, नासे नरम अंधेरा । आत्म आनंद मंगल दीजे, हुँ जिन बालक तेरा रे ॥ सुन ॥५॥
स्तवन चौदमुं।
॥ राग गोडी॥ वीर जिनेश्वर स्वामी आनंद कर । वीर ॥
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रा
मो मन तुम बिन कित हीन लागे । ज्युं नामनी वश कामी || आ || १ || पतत उधारण बिरुद तिहारो । करुणारस मय नामी ॥ य० ॥ २ ॥ अन्य देव बहु विधि कर सेवे । कय नहीं हुं पामी ॥ ० ॥ ३ ॥ चिंतामणि सुरतरु तुम सेवी । मिथ्या कुमतकुं वामी ॥ ० ॥ ५ ॥ जन्म जन्म तुम पद कज सेवा विसरामी ॥ ० ॥ ५ ॥ रंजा रमण सुरिंद पद
। चाहुं मन
चकि । वांतुं हुं नहीं निकामी ॥ आत्माराम आनंद रस पूरण । दे धामी ॥ ० ॥ ७ ॥
० ॥ ६॥ दरसण सुख
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स्तवन पंदरमुं । ॥ राग पंजाबी ठेकानी ठुमरी ॥ मैरी सैयां तुं नजर कर वर्धमान | तुं साचो
वीर करुणानिधान । मैरी सैयां ॥ कणी ॥ तेरे हि चरण कमलको मधुकर । वीर वीर मुख रति नाम ॥ मैरी सैयां० ॥ १ ॥ तुम विरहो दुःखम पुन रो । मन बल दुर्बल तनु कताम
॥ मैरी सैयां ॥ २ ॥ उत्तराध्ययनमें तुम वच
|
राजे | तेही आलंबन चितमें गम ॥ मैरी
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स्तवनावली।
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सैयां ॥३॥ तुम बिन कौन करे मुज करुणा विनती सीकारो करुणाधाम ॥ मैरी सैयां ॥४॥ करुणादृग नरी तनु कज निरखो । पामुं पद जीम आतमराम॥ मेरी सैयां ॥ ५ ॥
स्तवन सोळमुं। ॥ राग भोपाली ताल दीपचंदी ॥ इतनुं मागुरे देवा इतनुं मागंरे, नव नव चरण शरण तुम केरो ॥ इतनुं । आंचली ॥ सिधारथ नृप नंदन केरो, त्रिशला माता आनंद वधेरो । ज्ञातनंदन प्रजु त्रिजुवन मोहे, सोहे हरित लव फेरोरे ॥ इतनुं० ॥ १॥ दीनदयाल करुणानिधि स्वामी, वर्धमान महावीर जलेरो ॥ श्रमण सुहंकर दुःख हरनामी । आर्यपुत्र चम भूत दलेरो ॥ इतनु० ॥॥ तेरेहि नामसे हुँ मदमातो, स्मरण करत आनंद नरेरो । तेरे नरोसें ही जीति नीवारी, आनंद मंगल तुमही खरेरो ॥ इतनं ॥३॥ पूरण पुण्य उदय करी पामी, शासन तुमरो नाश अंधेरो । जयो जगदीश्वर वीर जिनेश्वर । तुं मुज ईश्वर हुं तुम चेरो ॥इतनुं ॥४॥आतमराम आणंद रस पूरण,
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८६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- मूरण करम कलंक ठगेरो । शासन तेरो जग जयवंतो, सेवक वंदित निशदिन तेरो ॥ . तनुं ॥५॥
स्तवन सत्तरमुं । ॥ राग भोपाली ताल जलद एक ताल ॥ . . नाचत सुर पठित बंद मंगल गुनगारी।नाचत ॥ आंचली। सुर सुंदरी कर संकेत, पिकधुनी मील उमरी देत, रमक उमक मधुरी तान, धुंघरु धुनिकारी ॥ नाचतम् ॥१॥ जय जिनंद, शिशिर चंद, नवि चकोर मोद कंद, काम वाम ब्रमनिकंद, सेवक तम तारी॥ नाचत॥२॥ धूंधूं धप तार चंग, खुखुम घुटट जलतरंग, वेणु वीणा तार रंग, जय जय अघटारी ॥ नाचत ॥३॥ सिरि सिझारथ नूप नंद, वर्धमान जिन दिनंद, मध्यमा नगरी सुरीद, करे उबव मनहारी ॥ नाचत ॥४॥ गौतम मुख मुनिवरिंद, तार बम काट फंद, आतम आनंद चंद, जय जय शिव चारी ॥ नाचत ॥५॥
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८७
. स्तवनावली ।
८७ स्तवन अढारमुं।
॥ गीत की देशी॥ जवदधि पार उतारणी जिनवरकी वाणी। प्यारी हे अमृत रस केल । नीकी है जिनवर की वाणी । नरम मिथ्यात निवारियो ॥ जि० ॥ दीधो हे अनुभव रस मेल । प्यारी है जिस ॥१॥ हम सरिखा अति दीन ने ॥ जि ॥ सूखम हे अतिघोर अंधार ॥ प्या जि० ॥ झान प्रदीप जगावीयो ॥ जि० ॥ पाम्या है अतिमारग सार ॥ प्या ॥ जि० ॥ २ ॥ अंग उपांग स्वरूप सुं॥ जि० ॥ पश्ने हे उ बेद गरंथ ॥ प्या। जि० ॥ चूर्णि नाष्य नियुक्तिसुं॥ जि ॥ वृत्ति हे नीकी मोद को पंथ ॥ प्या। जि ॥ ३ ॥ सदगुरुकी ए तालिका ॥ जि० ॥ जासु हे खुले ज्ञान नंडार !! प्या ॥ जि० ॥ श्न बिन सूत्र वखाणीयो ॥ जि ॥ तस्कर हे तिण लोपि कार ॥ प्याण् ॥ जि ॥ ॥४॥ सोहम गणधर गुण निलो ॥ जि ॥ कीधो हे जिन ज्ञान प्रकाश ॥ प्या॥ जि० ॥ तुक पाटोधर दीपता ॥ जिण ॥ टार्यों हे जिन
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-
पुरनय पास ॥ प्या० ॥ जि० ॥ ९ ॥ हम सरिखा अनाथ || जि० ॥ फिरता हे वत्यो काल अनंत ॥ प्या० ॥ जि० ॥ इन जव वीतक जे थया ॥ जि० ॥ तुं जाणे हे तौसु कौन कहत || प्या० । जि० ॥ ६ ॥ जिन बाणी विन कौन था ॥ जि० ॥ मुऊनै हे देता मारग सार ॥ प्या० ॥ जि० ॥ जयो जिन वाणी जारता || जि० ॥ जार्या हे मिथ्यामत जार || प्या० । जि० ॥ ७ ॥ हुं अपराधी देवो ॥ ज० ॥ करीये हे मुऊने बगसीस || प्या० ॥ जि० ॥ निंदक पार उतारणा ॥ जि० ॥ तुंही हे जग निर्मल ईस || प्या० ॥ जि० ॥ ८ ॥ बालक मूर्ख करो ॥ जि० ॥ धीगे हे वलि अति विनीत || प्या० ॥ जि० ॥ तो पिए जन के पालिये ॥ ज० ॥ उत्तम हे जननी ए रीत ॥ प्या० ॥ जि० ॥ ए ॥ ज्ञान हीन अविवेकीया ॥ जि० ॥ हवी हे निंदक गुण चोर || प्या० ॥ जि० ॥ तो पिए मुऊने तारीये ॥ जि० ॥ मेरी हो तोरो मोहनी दोर || प्या० ॥ जि० ॥ १० ॥ त्रिशला नंदन वीरजी ॥ जि० ॥ तुं तो है आसा विसराम | प्या० ॥ जि० ॥ अजर अमर पद दीजिये ॥ जि०॥ थानं हे जिम तमराम || प्या० ॥ जि० ॥ १२ ॥
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स्तवनावली।
॥ अथ श्री हस्तिनापुर स्तवनम् ॥
॥ देशी, रास धारीकी ॥ कान्हा में नहीं रेहनारे, तुम चेरे संग चलूँ ॥ यह चाल ॥
प्रनु अविचल ज्योति रे, निज गुण रंग रली ॥ टेक ॥ प्रजु त्रिजुवन चंदा रे, तामस दूर टली ॥ प्र० ॥ १ ॥ जग शांतिके दाता रे, अघ सब दूर दली॥ ॥॥प्रजु दीनदयाला रे, अब मुफ आश फली ॥ प्र॥ ३ ॥ प्रनु चार कल्यानक रे, विपदा पूर टली ॥ ॥४॥ जिन गर्न कल्यानक रे, जनम जिन दीदा थली ॥ प्र॥ ५ ॥ शांति कुंथु जिनंदा रे, अर जिननाथ वली ॥ प्र०॥ ६ ॥ एह तीरथ नूमि रे, पूरण पुण्ये मिली ॥ ॥ ७ ॥ हस्तिनापुर - या रे, दिल्लीसे संघ चली ॥प्र॥ ७॥ प्रनु संमेतशिखरे रे, ज्योतिमें ज्योति मिली ॥ प्र॥ ॥ए ॥ अंक गुण निधि छु रे (१९३ए), अमावस पोष फली ॥ ॥१०॥ प्रनु आतमानंदी रे, विकसित चंप कली ॥ प्र ॥ ११॥
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-
श्री राधनपुरे बिराजमान चनवीस जिन
साधारण स्तवन । ॥ राग ठुमरी ॥ जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे । हुं नक्ति करुं मन रंगे, ज्युं कर्म सुजट सब जंगे, हुं बेसुं शिवपुर इंगे || जिनंदा ० ॥ आदि जिन स्वामी रे, तुं अंतरजामी रे, प्रभु शांतिनाथ जिनचंदा, तुं अजर अमर सुखकंदा, तुं नाजिराय कुल नंदा ॥ जिनंदा० ॥ १ ॥ चिंतामणि नामेरे, बंबित पामे रे, जिन शांति शांति करतारा, पाम्यो जव जलधि पारा, तुं धर्मनाथ सुखकारा ॥ जिनंदा० ॥ २ ॥ शांति जिन तारो रे, बिरुद तीहारो रे, चिंतामणि जगमें जाचो, कल्याण पास जग साचो, तुम पास सामले राचो ॥ जिनंदा० ॥ ३॥ सहस्र फण सोहे रे, मोहन मन मोहे रे, गोमी जिन शरण तुमारी, तुं धर्मनाथ जयकारी, तुं अजित र सुखकारी ॥ जिनंदा० ॥ ४ ॥ कुंथु जिनराजारे, वासुपूज्य ताजा रे, बागे जग मंका तेरा, तुं महावीर गुरु मेरा, हुं बालक चेरा तेरा ॥ जिनंदा ॥ ५ ॥ कुंथु जिनचंदा रे, विमल
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स्तवनावली। सुख कंदा रे, शीतलकी हुँ बलिहारी, नेमीश्वर राजुल तारी, श्रीमंदिर आनंदकारी ॥ जिनंदा ॥६॥ वीरजिन दाता रे, करो मुज शाता रे, प्रनु तुं तारक मुज केरा, करुणानिधि स्वामी मेरा, हुं शासन मानुं तेरा ॥ जिनंदा० ॥७॥ शरणागत तोरी रे, नहीं अन्य गति मोरी रे, तुम नाम तणा आधारा, तुम सिमर सिमर सिरिकारा, तुम वीरहो उखम आरा ॥ जिनंदा ॥ ॥ संघ मन हरना रे, श्रदय निधि नरना रे, नायक श्री मूल जिनंदा, राधणपुर नगर सुहंदा, सहु संघने मोद करंदा। जिनदा॥ ए॥ राधणपुर वासो रे, मास चार रही खासो रे, सहु संघ मने आनंदी, लव ब्रांती सब ही नीकंदी, चवीसें जिनवर वंदी। जिनंदा ॥ १० ॥ अंबुनिधि वेदा रे, अंक इं निखेदा रे, संवत आयो सुखकारी, द्वाविंशती मुनि मनोहारी, सहु निज आतम हितकारी ॥ जिनंदा ॥ ११ ॥
॥अथ तीर्थ वंदनम् ॥ बिहरमान जिनंदवंडु उदित केवल नास्कर, असंख लोक निवास प्रजुना शाश्वता अघ ना
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९२
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
स्करं ॥ अष्टापदे सम्मेत चंपा नेम गढ गिरि मंगना, श्री वीर पावा विमल गिरिवर केसरा दुख मना ॥ १ ॥ आबु तरंगा दरस चंगा शिवगंगा कारणा, श्री अंतरिक्ष जिनंद पारस थंजणा दुख वारणा || संखेसरा अलवेसरा जग पावना जीरावला, चिंतामणि फलवद्धि पारस मल्लि जवदधि नावला || २ || वरकाण राण नमौल नगरे वीर घाणे गोमीए, श्री नामुलाइसु वीर राता वंदीए जव तोमीए ॥ श्री पाली पाट राजनगरे घनौघ मंगन पासजी, इम जेह थानक चैत्य जिनवर जविक पूरे सजी ॥ ३ ॥ सहु साधु गणधर केवली फुन संघ जव जल तारणा, सुध ज्ञान दरसन चरण साचा महानंदे कारणा । यह तीर्थ वंदन जब निकंदन जविक शुध मन कीजीए, निज रूप धारो नरम फारो अनघ आतम लीजीए ॥ ४ ॥
॥ इति स्तवनानि समाप्तानि ॥
तीन एक
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अथ
द्वादश भावना ।
तत्र प्रथम अनित्य नावना ।
योवन धन थीर नही रेहना रे॥आंचली॥ प्रात समय जो नजरे आवे, मध्य दीने नहीं दीसे । जो मध्याने सो नहीं रात्रे, क्यों विरथा मन हींसे ॥ योवन ॥१॥ पवन ऊकोरे बादर बिनसे, त्युं शरीर तुम नासे । लच्छी जल तरंगवत चपला, क्यों बांधे मन आसे ॥ योवन ॥ ॥२॥ वदलन संग सुपनसी माया, श्नमें राग हि कैसा । बिनमें उमे अर्क तूल ज्यु, योवन जगमें ऐसा ।। योवन ॥३॥ चक्री हरि पुरंदर राजे, मद माते रस मोहे । कौन देशमें मरी पहुंते । तिनकी खबर न कोहे ॥ योवन ॥४॥ जग मायामें नहीं लोनावे, आतमराम सयाने । अजर अमर तुं सदा नित्य हे, जिन धुनि यह सुनी काने ॥ योवन ॥५॥
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत--
अथ दूसरी अशरण नावना।
॥ राग मराठी ॥ अपने पदको तज कर चेतन, परमें फसना
ना चाश्ये ॥ ए देशी॥ निज स्वरूप जाने बिन चेतन, जगमें नहीं को है सरना । क्यों नरम नूलाना, जान निज रूप आनंद रस घट जरना ॥ निज ॥ १ ॥ इंड उपेंड आदि सब राने, बिना सरन यम मुख परना । अति रोग नराये, जीव की कौन करे जगमें करुणा ॥ निज ॥ ५ ॥ मात पिता स्वसु जात पुत्रके, देखत ही यम ले चलना । मुख वाय रहेंगे, सरणा नहीं तिननें को करना ॥ निज ॥ ३॥ मृतक देखी सोच करे मन, अपना सोच नहीं करना । दृढ मूरख तुं रे, करम की गतिसे सहु जगमें फीरना ॥ निज ॥४ ॥ जगवन मुख दावानल दहके, हिरन पोतको को सरना । तिम सरण विना तुं, मोह से पाप पिंकों क्यों जरना ॥ निज ॥ ५ ॥ हरि विरंचि ईश नहीं जाते, आपही तिनको क्यों मरना । जिन वचन हि साचे, जीवना जितना ही आयु धरना ॥ निजण ॥ ६॥ आत
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मराम तुं समज सयाने, ले जिनवर वचका सरना। ममता मत कीजे, नहीं तेरी मेरी में तें परना ॥ निज ॥७॥ अथ तृतीय संसार नावना ।
॥राग मोर ठ॥ ॥ कुबजाने जाउ मारा, ए देशी ॥
उरकायो आतम ज्ञानी, संसार दुखांकी खानी ॥ उरकायो । आंचली ॥ वेद पाठी मरी पाणज होवे, स्वामी सेवक पामी । ब्रह्मा कीट द्विजवर रासन, नृप वर नरक ही गामी ॥ उरण ॥ १ ॥ सुरवर खर खर जगपति होवे, रंक राज विसरामी । जग नाटकमें नटवत नाच्यो, कर नानाविध तानी ॥ उरण ॥२॥ कौन गतिमें जीव न जावे, डोमे नहीं कुण थानी । संसारी कर्म संगथी पूर्यो, कचवर कुटी जगनामी ॥ उरण ॥ ३ ॥ एक प्रदेश नहीं जग खाली, जनम मरण नहीं गनी । पवन ऊकोरे पत्र गगन ज्युं, उमत फिर जम कामी ॥ उरण ॥ ४ ॥ सतचिद आनंद रूप संजारो, बारो कुमत कुरानी । जिनवर नाषित मग चले चेतन, तो तुम आतमज्ञानी ।। उर० ॥ ५ ॥
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
अथ चतुर्थ एकत्व नावना।
॥ राग वढंस ॥ तुम क्यों नूल परे ममतामें, या जगमें कहो कोन हे तेरा ॥ तुम ॥ आंचली ॥ आया एक ही एक ही जावे, साथी नहीं जग सुपन वसेरो । एक ही सुख दुःख जोगवे प्राणी, संचित जो जन्मांतर केरो ॥ तुम ॥ १॥ धन संच्यो करी पाप नयंकर, नोगते स्वजन आनंद जरेरो । आप मरी गयो नरकही थाने, सहे कलेश अनंत खरेरो ॥ तुम ॥२॥ जिस बनितासे मद नहि मातो, दिये आचरण हि वसन जलेरो । सो तनु सजी पर पुरुषके संगे, लोग करे मन हर्ष घनेरो ॥ तुम ॥ ३॥ जीवित रूप विद्युत सम चंचल, मान अनी उद बिंदु लगेरो। श्नमें क्यों मुरुकायो चेतन, सत चिद आनंद रूप अकेरो ॥ तम ॥ ४ ॥ एक ही आतमराम सुहंकर, सर्व जयंकर दूर टरेरो । सम्यग दरसन झान स्वरूपी, जेष संयोग हि बाह्य धरेरो ॥ तुम ॥ ५॥
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द्वादश भावना।
॥ अथ पंचमी अन्यत्व नावना ॥
| राग भैरवी ॥ ब्रह्मज्ञान रस रंगी रे चेतन ॥ ब्रह्म ॥ आंचली॥तन धन स्वजन सहायक जे ते, इनसे अन्य निरंगी रे । जीवसे एही विलक्षण दीसे, अन्यपणा दृग संगी रे ॥ ब्रह्म ॥१॥ जो नवी देह बंधु धन जनसे, आतम निन्नहि मंगी रे॥तिनकों सोग शंकुसे पीमा, व्यापे नहीं उख नंगी रे ॥ ब्रह्म ॥२॥ जैसे कुधातुसे कंचन बिगरयो, दीसे स्वरूप विरंगी रे। गये कुधातु के निजगुण सोहे, चमके निजगुन चंगी रे ॥ ब्रह्म ॥ ३ ॥ करम कुधातुसें चेतन बिगर्यो, मान सबहि एकंगीरे । सम्यग दरसन चरण तापसे, दाहे करम सरंगी रे ॥ ब्रह्म ॥४॥ आतम निन्न सदा जमतासें, सत चिद रूप धरंगी रे। आनंद ब्रह्म सुहंकर सोहे, अजर अमर अनंगी रे ॥ ब्रह्म ॥५॥
अथ बछी अशुचि नावना।
॥ राग सिंध काफी ॥ तनु शुची नहीं होवे काहेकुं नरम जुला
१३
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९८ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- नारे ॥ तनु" ॥ आंचली ॥ रस लोही पल मेद हामसे, मजा रेत गुहाना रे । आंत मूत पित्त सिंन ही कसमल, अति ही उर्गंध जराना रे ॥ तनु० ॥ १॥ नवहि ज श्रोत करे मलगंधि, रस कर्दम असुहाना रे । तनुमें शुचि संकल्प हि करना, एही ज नाम अज्ञाना रे ॥ तनु ॥२॥ नव वरननी मुख चंड ज्यू, निरखी मनमें अति हरषाना रे । रुधिर पूय मल मूत्र पेटमें, नस नस मेल नराना रे ॥ तनु ॥ ३ ॥ रुधिर मंसकी कुच ग्रंथी है, मुखसे लाल बहाना रे । गूथ मूत्रके द्वार घनीले, तिनसे लोग कराना रे ॥ तनु ॥४॥ अशुचितर खान देह शुचि नाही, जो सत स्नान कराना रे । आतम आनंद शुचितर सोहे, देह ममता तजराना रे । तनु ॥५॥
अथ सातमी आश्रव नावना ।
॥राग ठुमरी भेरवी ॥ आश्रव अतिकुःख दाना रे चेतन, आश्रवण ॥ आंचली ॥ मन वच काया के व्यापारे, योग यही मुख माना रे । कर्म शुन्नाशुन जीवकों
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द्वादश भावना।
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यावे, आश्रव जिनमत गाना रे ॥ आश्रव० ॥१॥ मैत्र्यादि जावना वासित मन, पुन्याश्रव सुखदाना रे । विषय कषाये पीडित चेतन, पापे पीक जराना रे ॥ आश्रव० ॥ ५ ॥ जिन आगम अनुसारि वचने, पुन्यानुबंधी पुनाना रे। मिथ्यामत वचनें करी आवे, पापाश्रव दुःख थाना रे ॥ आश्रवण ॥३॥ गुप्त शरीरसे पुन्य सुहंफर, करे जगवासी सियानारे । हिंसक षट्काया
जंतु, जगमें पाप कराना रे ॥ श्रव० ॥३॥
। कषाय विषय परमादा, विरति रहित हि । अज्ञाना रे । मिथ्या दरसनी आरत रोधी,
पाप कर सुखहाना रे ॥ आश्रव० ॥ ५ ॥बातम सदा सुहंकर निर्मल, जिन वच अमृत पाना रे। करके जीव सदा निरंगी, पाम पद निरवाना रे॥ आश्रव० ॥६॥
अथ आठमी संवर जावना।
॥ राग बिहाग ॥ जिनंद वच संवर सुनरे सुझानी ॥ आंचली ॥ सब आश्रवको आवत रोके, संवर जिन
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९८ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- नारे ॥ तनु ॥ आंचली ॥ रस लोही पल मेद हामसे, मझा रेत गुहाना रे । प्रांत मूत पित्त सिंन ही कसमल, अति ही उन्ध नराना रे॥ तनु० ॥१॥ नवहि ज श्रोत फरे मलगंधि, रस कर्दम असुहाना रे । तनुमें शुचि संकल्प हि करना, एही ज नाम अज्ञाना रे ॥ तनु० ॥२॥ नव वरननी मुख चंड ज्यू, निरखी मनमें अति हरषाना रे । रुधिर पूय मल मूत्र पेटमें, नस नस मेल नराना रे ॥ तनु० ॥ ३ ॥ रुधिर मंसकी कुच ग्रंथी है, मुखसे लाल बहाना रे । गूथ मूत्रके छार घनीले, तिनसे लोग कराना रे ।। तनु" ॥ ४ ॥ अशुचितर खान देह शुचि नाही, जो सत स्नान कराना रे । आतम आनंद शुचितर सोहे, देह ममता तजराना रे । तनु ॥५॥
अथ सातमी आश्रव नावना ।
॥ राग ठुमरी भेरवी ॥ आश्रव अतिकुःख दाना रे चेतन, आश्रवण ॥ आंचली ॥ मन वच काया के व्यापारे, योग यही मुख माना रे । कर्म शुनाशुन जीवकों
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द्वादश भावना।
आवे, आश्रव जिनमत गाना रे ॥ आश्रव०॥१॥ मैत्र्यादि नावना वासित मन, पुन्याश्रव सुखदाना रे । विषय कषाय पीडित चेतन, पापे पीम जराना रे ॥ आश्रवः ॥ ५ ॥ जिन आगम अनुसारि वचने, पुन्यानुबंधी पुनाना रे। मिथ्यामत वचनें करी आवे, पापाश्रव कुःख थाना रे ॥ आश्रवण ॥ ३ ॥ गुप्त शरीरसे पुन्य सुहंफर, करे जगवासी सियानारे । हिंसक षट्काया
जंतु, जगमें पाप कराना रे ॥ आश्रवण ॥४॥ " कषाय विषय परमादा, विरति रहित हि अज्ञाना रे । मिथ्या दरसनी आरत रौजी, पाप कर सुखहाना रे ॥ आश्रव ॥ ५॥ आतम सदा सुहंकर निर्मल, जिन वच अमृत पाना रे। करके जीव सदा निरंगी, पाम पद निरवाना रे॥ आश्रवण ॥६॥
अथ आठमी संवर नावना।
॥राग बिहाग॥ जिनंद वच संवर सुनरे सुझानी ॥ आंचली ॥ सब श्रवको आवत रोके, संवर जिन
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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत--
वर बानी । सो नी दोय लेद से वरन्यो, अव्य नाव सुखदानी ॥ जिनंद ॥ १॥ करम ग्रहण का बेद करे जो, संवर दरव विधानी । जव हेतु किरिया जो त्यागे, नाव संवर सुख खानी ॥ जिनंद ॥२॥ जिस जिस कारण सेंती रंधे, आश्रव जल पथ पानी । ते ते उपाय निरोधके तांश, जोमे पंमित शानी ॥ जिनंद ॥३॥ खम मृछ सरल अनीहा सेती, क्रोध मान बल थानी। लोन ए चारों क्रम से रुन्धे, तो कहीए सुनध्यानी ॥ जिनंद ॥४॥ करे असंयम दृढता जिनकी, ते विषयों विष मानी । इन्द्रिय संयम पूरन सेवी, करे जर मूर से हानी ॥ जिनंद ॥ ॥ ५ ॥ तीन गुप्तिसे योगको जीते, हरे परमाद कुरानी । अपरमादे पाप योगकुं, विरती से सुख जानी ॥ जिनंद ॥ ६॥ सम्यग् दरससें मिथ्या जीती, आरत रौद्ध हि धानी । थीर चित करीने जीत चिदानंद, आतमपद निर्वानी ॥ जिनंद० ॥ ॥
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द्वादश भावना |
अथ नवमी निर्जरा जावना |
॥ राग खमाच ॥
॥ दुर्मति मारदे मेरे प्राणी दुरमति ए देशी ॥
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चेतन निर्जरा जावना जावे रे | चेतन० ॥ चली ॥ जग तरु बीज नूत करम जे । खेरु कर सुख पाये । सो निर्जरा दोय जेद सुनीजे | सकामाकाम बतावे रे | चेतन० ॥ १ ॥ संयमी को सकाम निर्जरा, इतरांको इतर कहावे । कर्म पापका फल जो जोगे, खय उपाय सुनावे रे ॥ चेतन० ॥ २ ॥ मलयुत कनक तप्त वह्निसे, जैसे दोष जरावे । तप अग्नि से कर्म तपाये, तेसें जीव सुनावे रे | चेतन० ॥ ३ ॥ खाना नहिं ऊनोदरि करनी, विरती संखेप गिनावे | रस त्यागे तनु कष्ट करे जो, इन्द्रिय विषय रुंधावे रे ॥ चेतन० ॥ ४ ॥ षट् नेदे यह बाह्य कह्यो तप, षट् विध अंतर गवे । प्रायवित्त विया - वच्च सुहंकर | विनय व्युत्सर्ग धरावे रे | चेतन० ॥ ५ ॥ शुन ध्याने तपो अग्नि दीपे, बाहिर अंतर जावे । संयमी जन करे श्रदृष्ट निर्जरा,
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१०० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतदुर्जर क्षण खय जावे रे ॥ चेतन ॥ ६॥ बंधन गये तुंब ज्यू जलमें, बिनकमें ऊर्ध्व हि आवे । आतम निर्मल सुध पद पामी, जनम मरण मिटावेरे ॥ चेतन ॥ ७॥ अथ दशमी धर्म नावना।
॥राग माढ ॥ चेतनजी थाने धर्मनी नावना दाखां जी महाराराज हो चेतन जी०॥आंचली॥धर्म जिनंद बताया जी महारा राजरे कांश, जेहने आलंबी नवोदधिमेंन मुबायाजी महारा राज ॥ चेतन ॥ ॥ १॥ संयम सत्त्व सुहाया जी महारा राजरे कांश, ब्रह्म अकिंचन तप शुचि सरल गिनायाजी महारा राज ॥ चेतन ॥ ॥ खांति मार्दव मुक्तिजी महारा राजरे कांश, दशविध धर्मो वीर जिनंद सुनाया जी महारा राज ॥ चेतन ॥३॥ नरक पमंता राखेजी महारा राजरे कांश, तीर्थकर पद धर्म थकी जग पायाजी हमारा राज ॥ चेतन ॥ ४ ॥ संकटमें सुख आपेजी महारा राजरे कांश, आतमानंदी धर्म अति सुख दायाजी महारा राज ॥ चेतन० ॥५॥
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द्वादश मापना ।
॥ अथ एकादशमी लोकस्वरूप
नावना। ॥ राग जन्द काफी ॥ जवी लोक स्वरूप समरे सम॥आंचली॥ कटि धरि हाथ चरण विस्तारी । नर आकृति चित धररे । षमअव्य पूरण लोक समरले, उपजत बिनसत थिररे ॥ नवी० ॥ १ ॥ त्रिजुवन व्यापक लोक विराजे, पृथ्वी सातसु धररे । घनोदधि धन तनु वात वलि कलशे । चार ओर रही थीररे ॥ नवी ॥ ॥ वेत्रासन सम लोक अधो है, ऊटलरी निज मध्यवर रे । मुरजाकार ही ऊर्ध्वलोक है। नाषे जग जिनवर रे ॥ नवी० ॥ ३॥ रचना इसकी किन ही न कीनी, नहीं धार्यो किन कर रे ॥ स्वयं सिद्ध निराधार लोक ये, गगन रह्यो ही अचर रे ॥ नवी० ॥ ४ ॥ ईश्वर कृत्यही लोक जो माने, सो अज्ञान ही वर रे ।आत्मानंदी जिनवर जप्पो, मान मिथ्या मत हररे ॥ नवी० ॥ ५॥
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१०४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत॥ अथ छादशमी बोधिलन नावना ॥
॥ राग ठुमरी० ॥ अनंते कालसे बोधि उर्लन पानारी । सखी बोधि । आंचल।। अकाम निरजरा पुन्यसे प्रानी । थावरसें त्रस थानारी ॥ सखी० ॥१॥ बि त्रि चतु पंच इन्द्री सुहंकर । क्रम में तिरयग माना री ॥ सखी० ॥ २ ॥ नरजव आरज देश सुजाति । इन्द्रिय पटुतर गानारी ॥ सखी० ॥३॥ लंबी आयु कथक श्रवण गुन । श्रद्धा सुचितर गनारी ॥ सखी ॥४॥ तत्त्व निश्चय बोधि रतन सुहंकर । शिव सुख की खानारी ॥ सखी० ॥५॥ दुर्लज बोधि नावना नावें । तो तुं आतमराना री॥ सखी० ॥ ६॥
॥ इति श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वर कृत द्वादश भावना समाप्ता ॥
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अथ पदो।
॥ राग-भैरवी ॥ मेरी क्याही बेदरदी रही ॥ मे ॥ तोरे नाथसे घर नावसाय । मे ॥ १॥ में तो मूर हती न तो मैं रही।जग नाम कातो अब हो रही ॥ तो ॥२ ।। हुं तो ढुंढ रही न तो यार मिला ॥ अब काल अनंतो ही रोय रही ॥ तो॥ ३ ॥ न तो मीत विवेक न धर्म गुनी । अब सीस धुनी हुँ तो वेठ रही ॥ तो ॥ ४ ॥ हुँ तो नाथ ही नाथ पुकार रही। कुमता जर जारही जार रही। तो ॥५॥ तुं तो आप मिला मन रंग रला । अब आनंद रूप आराम लही ॥ तो ॥ ६ ॥
पद बीजूं।
॥राग-वसंत ॥ हमकु बम चले बन माधो, ए देशी।
तुं क्युं नोर नये शिव राधो । वाधा मोच करो मनमां रे ॥ तुं० ॥ आंकणी ॥ फूली वसंत कंत चित्त शांति, ज्रांति कुवास फूल मति दोरे। मनमोहन गुण केतकी फूली, समता रंग चर्यो
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१०६
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-
घर तोरे ॥ तुं० ॥ १ ॥ श्बा रोधन तप्त घट, जरत यो घांस जलो रे । समता सीतलता मन माली, गुण स्थानक शुद्ध श्रेणि चलो रे ॥ तुं० ॥ २ ॥ पावस भूमि चेतनकी शुद्ध, वेरत न चित्त बुधर रे । वरसत जन वन शुद्ध जरीया, जरीय चैन वनबाग वर रे || तु० ॥ कुमता ताप मीटी घट अंदर, मन बंदर सव शांत नये रे । अनुज शांतिकी बुंद परी घट, मुक्ताफल शुद्ध रूप थये रे ॥ तुं० ॥ ४ ॥ तमचंद आनंद जये तुम, जिनवर नाद अनंग सुरुयो रे ॥ सगरे संग त्याग शिव नायक, दायक जाव सुजाव थुयो रे ॥ तुं० ॥ ५ ॥
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पद त्रीजुं ।
॥ राग वरवा ॥
ऐसे तो विषम बाजी । पियाको उन्माद जागी ॥ ऐसी आवे मन मेरेकी जाय घ ध्वसरी ॥ ऐ० ॥ १ ॥ मोहको सिरोद सुन कूदत
इकारी । नादव ज वावे तो हरन लागे हंसगइरी ॥ ऐ० ॥ २ ॥ चितहूं की सार गइ मारहूंने तार
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पदा ।
दश्स करहो हंस वंस निकस आश् सरी॥ ऐ० ॥३॥ ऐसी आवे मन मेरे बदन वन बेद नाएं। प्रगटे आनंद कंत जारी वाली संसरी ॥ ऐ० ॥४॥
- - पद चोयुं।
॥ राग-वसंत ॥ ॥ हमकुं नम चले वन माधो, ए देशी ॥ ___ अब क्युं पास परों मनहंसा, तुम चेरे जिननाथ खररे । जार मार ममता दृढगन, राग स्निग्ध अन्यंग करेरे ॥ अब० ॥ १॥ नव तरु मार ताण विस्तरीया, मोह कर्म जम मूल जोरे। क्रोध मान माया ममतारे, मतवारे चहुंकु न चोरे ॥ अब० ॥२॥पास परन वामारस राच्यो, खांच्यो कर्म गति चार पर्योरे ॥ राग द्वेष जिहां नये रखवारे, जव वन सघन जंजीर जोरे ॥ अब० ॥३॥ पूरण ब्रह्म जिनेऽकी वानी, करण रंधमें शब्द पर्योरे । अनुजव रस नरी बीनकमें उड्यो, आतमराम आनंद नोरे ॥ अब० ॥४॥
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श्रीमद्विजयानंद सूरि कृत
पद पांचमुं ।
|| राग माढ |
प्रीति जांगी रे कुमतिशुं प्रीति ॥ ए यांचली ॥ ज्ञान दरस वरणी दोरे, इसके पूत कुरूप । ज्ञान दरस दोडं निज गुणोरे, बाद कीने अनूप ॥ कुमति० ॥ १ ॥ महानंद गुण सोसियोरे । वेदनी दास करुर | कुमता तात जयंकरुरे । मोहे मोह गरुर || कुमति० ॥ २ ॥ नास्यो मोह अनादिकोरे, चेतन आयोरे गम । हमि बंदन आयु नस्योरे । नाम चितारारे ताम ॥ कुमति० ॥ ३ ॥ कुंनकार गोतर गयोरे । विघ्नराज जसमंत | दरसन चरण मरणकोरे । रूप रहित विसंत ॥ कुमति० ॥ ४ ॥ गुरु लघु गुण उल्लस्योरे, आतम शक्ति अनंत । सतचिद आनंद यादि लेरे, प्रगट्यो रूप महंत || कुमति० ॥ ५ ॥
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पद बरं ।
|| राग माद ||
प्रीति लागी रे सुमतिशुं प्रीति ॥ त्र्यांचली ॥ पीर मिटी अनादिकी रे । गयो अज्ञान कुरंग । विषधर सरपणी पंचजेरे । निरविषरूप विरंग ||
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११० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-- नगरे । मुजको राह बताजारे ॥ सामरे ॥ ४ ॥ में दासी प्रचु तुमरे चरनकी। आतम ध्यान लगाजारे ॥ सामरे ॥ ५ ॥
--yaaseem ॥आत्माने शिखामण, पद आठमुं॥
॥ राग विहाग ।।। रे मन मूरख जनम गमायो । निज गुन त्याग विषयन रस बुधो । नेम शरण नहीं आयो ॥ रे मन ॥ १ ॥ यह संसार सुहा सावरजो। संबल देख बुनायो । चाखन लाग्यो रुश्सी उम गए। हाथ कलुय न आयो ॥ रे मन ॥२॥ यह संसार सुपनसीमाया। मुरख देख लोजायो। जम गई निंद खुली जब अखीयां । आगे कठ्य न पायो॥ रे मन ॥३॥ पर गुन तजकर निज गुन राचो । पुन्य उदय तुम आयो। एक अनादि चिन्मय मूरति । सुमति संग सुहायो । रे मन ॥ ४ ॥ परगुन बकरीके संग चरतो । हुँ नाम धरायो। जिनवर सिंघकी नाद सुन्यो जब। आतम सिंघ सुहायो ॥ रे मन ॥५॥
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पदो ।
पद नवभुं ।
॥ राग षट् ॥
इंद्री, पर गुन चली ॥ इनही के
समज समज वश मन संगी न होरे सयाना । समज०॥ वश सुद्ध बुद्ध नासी । महानंद रूप जुलाना || सांग धार जग नट वत नाच्यो । माच्यो पर गुन ताना || वश कर० ॥ १ ॥ चार कषायां इन संग चाले । चंचल मन हि नराना | मोह मिथ्या मद मदन हिया | साथे हि मूर अज्ञाना | वश कर० ॥२॥ तुं चाहे संयम रस राखुं । धरुं शिर वीरनी आना । उलट उलट्ये करे तुज मनकुं । नासे मनोरथ माना || वश कर० ॥ ३ ॥ चामक मन तनकों उकसावे । मारे जरमकी खाना । मृग तृसना वत दोमी फिरत है । करी कल्पना नाना ॥ वश कर० ॥ ४ ॥ तमराम तुं समज सयाने । कर इंद्रिय वसदाना ॥ पीके - नंद रस मगन रहो रे । नीको मील्यो अब टाना ॥
॥ वश कर० ॥ ५ ॥
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ANANA
११२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
आत्मोपदेश पद दशमुं। .
॥राग गुजरी ॥ तें तेरा रूप न पायारे अज्ञानी, तें तेराण ॥ आंचली ॥ देखी रे सुंदरी परकी विजूति । तुं मनमें ललचाया रे । अज्ञानी० ॥ १ ॥ एक ही ब्रह्म रटि रटनारे । पर वश रूप जूलाया रे ॥ अज्ञानी ॥ २ ॥ माया प्रपंचहि जगतकों मानी। फिर तिनमें हि नूलायारे । अज्ञानी ॥ ३ ॥ सुकवत पाठ पढी ग्रंथनको । मिथ्या मत मुरकायारे ।। अज्ञानी ॥ ४ ॥ जैसे करडी फिर व्यंजनमें । स्वाद कठ्य न पायारे । अज्ञानी ॥५॥ परगुन संगी रमणी रस राच्यो । आबगे अद्वैत सुनायारे ॥ अज्ञानी ॥ ६ ॥ आत्मघाती नाव हिंसक तुं । जगमें महंत कहायारे ॥ अझानी ॥ ७॥ आत्मोपदेश पद अग्यारमुं।
॥ राग गुजरी ॥ तें तेरा रूपकुं पायारे सुझानी, तें तेरा ॥ आंचली ॥ सुगुरु सुदेव सुधर्म रस नीनो । मिथ्या मत बिटकायारे ॥ सुझानी० ॥ १॥ धार
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श्
११३
माया
महाव्रत समरस बीन । रे ॥ सुज्ञानी० ॥ २ ॥ इंडियन चंचल श कीने । जायो मदन कुरायारे ॥ तुज्ञानी० ॥ २ ॥ स्याद्वाद अमृत रस पीनो । भूले नहीं जुलाबारे ॥ सुज्ञानी० ॥ ४ ॥ निश्चय व्यवहारे पंचाल्यो । दुर्नय पंच मिटायारे ॥ अज्ञानी० ॥ ५ ॥ अंतर निश्चय व व्यवहारे । वीर जिनंद सुनायारे ॥ सुज्ञानी ॥ ६ ॥ आत्मानंदी अजर यन तुं । सतचिदज्ञान ॥ ॥
।। इति न्यययान्तो निधितरीक
विश्ववन्द्यानि समलानि
॥ समाप्तः श्रीविजयानन्दविभागः ।
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॥ विभाग दूसरा ॥ श्रीमद् नपाध्यायजी महाराज श्रीवीरविजयजी महाराज विरचित
स्तवनावली। ॥ श्रीआदिजिन स्तवन ।
॥राग जेजेवंती ॥ आदि मंगल करूं, आदि जिन ध्यान धरूं, फेर नही पास परुं, नव वन जालमें। लागी तोरी माया जोर, देखत हुं ठगेर ठगेर, दरिसण पुरलन लीयो बहु कालमें ॥ आप ॥ १ ॥ माता मरुदेवा नंद, नाजी राय कुल चंद, शषन जिनंद प्रजु, आदि को करण है । डोमी सब राज रीछि, संजमसे प्रीति किधी । जगतकी नीति सब रीति बतलाश है ॥ आ॥२॥ उरधर तप करी, अष्टापदोपरि चमी, अणशण करी वरी, शिव पटराणी है । ऐसी गति तिहारी देव, तुही जाणे नित्यमेव, अकल अलख तेरो अगम स्वरूप है ॥ आ ॥ ३॥ अहनिश तेरे विच, कीये जिने समचित्त, नयि तिने नीरजीक,
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स्तवनावली।
सुगति सोजागी है। जक्तकी सुणी राव, चित्तमें किजे ठराव, आतम आनंद वीरविजय मांगत है ॥ आ ॥४॥
॥ श्रीअजित जिन स्तवन ॥
॥ राग भोपाल, ताल संगीत ॥ ध्या जिन अजित देव, नवी जन हितकारी ॥ आंकणी ॥ तुम प्रजु जित राग द्वेष । कर दिये सब कर्म खेद । थीर चित्त करुं तुमरी सेव । जिम थालं नवपारी ॥ ध्या०॥१॥ तुम बिन नही ज्ञान ज्ञेय, तुम बिन नहीं ध्यान ध्येय, तुम बिना कहें किनकी सेव; अंतर गत धारी ॥ ध्या० ॥२॥ अब चित्त धरी करी विचार, खट पट सब उर जार, कट पट अब मुजको तार, आनंद सुखकारी ॥ ध्याउं ॥ ३ ॥ प्रजु जई कीयो मुक्ति वास, सेवककुं एही आश, आतम आनंद कर विलास, वीर विजयकुं नारी ॥ ध्या ॥४॥
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श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृत--
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श्रीसंनव जिन स्तवन। राग महावीर चरणमें जाय, ए देशी ॥
प्रजु संचव जिन सुखदाई। चित्तमें लागी रहो ॥ प्र० ॥ चि ॥ आंकणी ॥ दुःख संजवमें पूर कीयो है। सुख संचव थयो आज ॥ चि० ॥ प्रजु ॥ १ ॥ एह संसार असार सार है। तुम शरणा महाराज ॥ चि ॥ प्रजु ॥ २ ॥ मोह सेन सब चुर लीयो है। शिवपुर केरो राज ॥ चि० ॥ प्रनु०॥ ३ ॥ दीन हिन कुखियो मुज देखी । सारो सेवकको काज ॥ चि० ॥ प्रजु०॥ ॥४॥ मोह मोह सब नाश करीने । राखो सेवककी लाज ॥ चि ॥ प्रजु०॥५॥आतम आनंद प्रनुजी दीजो । वीर विजयको आज ॥ चि० ॥ प्रजु० ॥६॥
श्रीअनिनंदन जिन स्तवन । __ ॥राग ठुमरीका भेद ॥
अनिनंदन स्वामी हमारा । प्रनु नव मुख नंजन हारा । ए बुनियां मुखकी धारा । प्रजु इनसे करो निस्तारा ॥ अ० ॥ १ ॥ हुँ कुमता
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११८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतजाने । रोग निकंदन कामी ॥ मे ॥ प्रजु ॥ ॥४॥ जग चिंतामणि सुरतरु सरिखो । नीरखी गद सब वामी ॥ मे ॥ प्रजु० ॥ ५ ॥ तारण तरण डे बिरुद तुमारो। नव जय नंजनहारी ॥ मे॥ प्रजु॥६॥आतम आनंद रसके दाता । वीरविजय हितकारी ॥ मे ।। प्र० ॥७॥
श्रीपद्मप्रन जिन स्तवन ।
॥राग रेखता ॥ । खलक एक रैनका सुपना, ए देशी ॥
पद्मप्रनु प्राणसे प्यारा । डोमावो कर्मनी धारा । करम फंद तोमवा धोरी । प्रजुजीसे अर्ज हे मोरी ॥ प० ॥१॥ लघुवय एक थे जीया । मुक्तिमें वास तुम कीया ॥ न जाणी पीर तें मोरी । प्रनु अब खेंच ले दोरी ॥ प० ॥ ५॥ विषय सुख मानी मो मनमें । गये सब काल गफलतमें ॥ नारक दुख वेदना नारी । नीकलवा ना रही बारी ॥ प० ॥ ३ ॥ पर वश दीनता कीनी । पापकी पोट शिर लीनी ॥ जक्ति नहीं जाणी तुम केरी । रह्यो निशदिन दुःख घेरी ॥ प० ॥ ४ ॥ श्नविध वीनती तोरी । करूं में दोय
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स्तवनावली। कर जोमी ॥ आतम आनंद मुज दीजो । वीरनुं काज सब कीजो ॥ प० ॥ ५ ॥
श्रीसुपासजिन स्तवन।
॥ राग सामेरी ठुमरी का भेद ॥ पूजो रे माई श्रीसुपास जिणंदा । पूजोरे ॥ आंकणी ॥ नवण विलेपन कुसुम धुपथी, दीप धरो मन रंगे ॥ पू०॥ १ ॥ अक्षत फल नैवेद्य धऱ्याथी, दुष्ट करम निकंदे ॥ पू० ॥ ५॥ विधिसुं अष्टप्रकारी पूजन, करतां नवदुख नंगे ॥ पू० ॥३॥ नाटक तान मानसें करतां, तीर्थंकर पद वंधे ॥ पू० ॥ ४॥ जिन पूजा ए सार जगतमें, जाणी करवा उमंगे ॥ पू० ॥ ५ ॥ वीरविजय कहे श्न पुरुषकुं, अविचल सुखमां संगे ॥
श्रीचंप्रनजिन स्तवन ।
|| राग माढ ॥
॥ जलानी देशी ॥ जीया रे चं प्रजुजिनी मुरती मोहन गारी रे । जयकारी महाराज चंऽप्रजुजिनी मुरती
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श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृत-
मोहनगारी रे दयाल | कणी ॥ जीयारे चंद बदन प्रभु मुखकी शोना सारीरे ॥ जय० ॥ चं० ॥ २ ॥ जीयारे राम रस नरियां नेत्र युगलकी जोमी रे ॥ जय० ॥ स० ॥ ३ ॥ जीयारे प्रभुपद लीनो कामनीको संग बोमीरे ॥ जय० ॥ प्र० ॥ ४ ॥ जीयारे अब में प्रभुजी से अरज करूं कर जोगीरे ॥ जय० ॥ ० ॥ ५ ॥ जीयारे चंचल चितकुं कीण विध राखुं काली रे ॥ जय० ॥ चं० || ६ || जीयारे फिर फिर बांधे पाप करमकी क्यारीरे ॥ जय० ॥ फिर० ॥ ७ ॥ जीयारे नेक नजर करी नाथ निहारो धारीरे ॥ जय० ॥ ने० ॥ ८ ॥ जीयारे तुम चरणांकी सेवा यो मुज प्यारीरे ॥ जय० ॥ तु ॥ ए ॥ जियारे जिम मुज मनमुं अंतर घटमें आवेरे ॥ जय० ॥ जिम० ॥ १० ॥ जियारे आनंद मंगल वीरविजयकुं थावेरे
॥ जय० ॥ ० ॥ ११ ॥
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श्री सुविधिजिन स्तवन ।
|| राग ध्रुपद || आइ इंद्र नार कर कर शृंगार, ए देशी । श्री सुविधिनाथ, प्रभु मोद साथ में जयो
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स्तवनावली।
अनाथ, मुज पका हाथ, हुं पतित नाथ, धर धर कर लीजो ॥ श्री०॥ १॥ शिर मोद राट, तिन जगमें हाक, सब जग विख्यात, जे न धरे धाक, कर छुःखनों दाट, जग वश कर लीनो ॥ श्री ॥२॥ एक अजब बात, श्न मोहराट, कीये तुमने घात, मुख मारी लात, गई इनकी लाज, थर थर कर दीनो ॥ श्री० ॥३॥ घट अंतर बात, कुण जाणे नात, मुजे मोहराट, दियो फुःख अगाध, कीयो बहु उचाट, दुरगति दुख दीनो ॥ श्री० ॥ ४ ॥ अब मेरी लाज, प्रन्नु तेरे हाथ, सब दुःख निरास, करो सुविधिनाथ, आतमके दास, वीर विजे एम कह्यो ॥ श्री० ॥५॥
श्रीशीतलजिन स्तवन।
॥ राग श्री॥ शीतल जिनपति पूर्णानंद॥शी॥आंकणी। चौमुख समोवसरणमें सोहत, निरखत नविजन नयनानंद ॥ शी ॥ १॥ बत्तिस विध ना. टककी रचना, जोमे शचीपति वहु सुखकंद ॥
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१२२ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतशी ॥ ॥ देवकुमार कुमारिका वीरची, मुखथी थे थेश्कार करंद ॥ शी० ॥३॥ धप मप धुंधुं मादल बाजें, वेणु वीणा अति कणकंत ॥ शी० ॥ ४ ॥ ताल मृदंग ढक नेरीने फेरी, माधुरी धुनी सुनाद करंद ॥ शी० ॥ ५॥ कोमल करयुग तालिका लेती, चूमीनो खलकार करत ॥ शी० ॥ ६ ॥ प्रनु गुण गावती अतिमन रंगे, अपने जनमके लाव लहंत ॥ शी० ॥ ७॥ देखण इस विध नाटक रचना, वीरविजय मन चाहे करंद ॥ शी० ॥ ॥
श्रीश्रेयांस जिन स्तवन ।
॥ राग भैरवी ॥ श्रीश्रेयांसजिन अंतरजामी, दील विसरामी मेरोरे ॥ दी० ॥ आंकणी ॥ अधम उधारण दुःख निवारण, तारण तीन जग केरोरे । चंदवदन तुम दरिसण पामी, नांग्यो नवको फेरोरे ॥ श्री० ॥ १॥ चंद चकोर मोर घन चाहत, पदमणी चाहत प्यारो रे ॥ युं चाहत प्रनु मुज मन नमरो, चरण कमल दुग तेरोरे ॥ श्री ॥ ५ ॥ काल
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स्तवनावली।
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अनंते दरिसण पायो, प्राणनाथ प्रजु तेरोरे ॥ कर्म कलंक सब पूर निवारो, ज्युं सुधरे लव मेरोरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ दरिसण करी परसन मन मेरो, में हुँ सेवक तेरोरे ॥ आतम आनंद प्रजुजी दीजो, वीर विजयने घनेरो रे ॥ श्री० ॥ ४ ॥
श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन । ॥ लगियां दिल नेमीके लार, ए देशी ॥
में गेमी औरकी आश चाहुं तुम सेवा महाराज || आंकणी ॥ वासुपूज्य पंचमी गति गामी, और देवनमें हे बहु खामी, तुमे तोमी मोहकी पास ॥ चा । मे ॥१॥ धनष तीर गदा चक्रना धारी, कामिनीने संग काम विकारी। ते देवने नहीं कांश लाज ॥ चा॥ मे ॥ ॥॥ जप माला गले रुंमनी माला, लोग लेवा अति हे विकराला । तुम बोमो ते देवनो ख्याल ॥ चा० ॥ मे ॥ ३ ॥ नोग विकार तें सघला वामी, तुम नये वासुपूज्य जगस्वामी, तुं देवनो देव कहेवाय ॥ चा ॥ मे ॥ ४ ॥ वासुपूज्य सम देव न उजो, सुरतरु बगेमी वाउल मत
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श्रीमदीरविजयोपाध्याय कृत--
पूजो । जेथी मन वंबित फल थाय | चाण॥ मेण ॥५॥ तम आनंद दीजो चोरी, इनमें शोला हे प्रनु तोरी । तुं वीरविजयने तार ॥ चा ॥ ॥ मे ॥६॥
श्रीविमल जिन स्तवन ।
॥राग करबो ॥ विमल सुहंकर मुजमन वसीया ॥ मु॥ आंकणी ॥ अष्ट करम मल दूर करीने । सतचित आनंद रूप फरसीया ॥ वि० ॥ १॥ अंतरंग करुणा करी स्वामी । देशना अमृत मेघ वरसीया ॥ वि० ॥ ॥ जम चेतनको संग अ. नादि । एक पलकमें उषार धरसीया॥विण॥३॥ वपु संग सब दूर होवाथी । अनुन्नव आनंद रसमें हरसीया ॥ वि० ॥ ४॥ प्रजुकी वाणी अमीय समाण।। पान करी परमानंद वरिया ॥ वि० ॥ ॥ ५ ॥ जब तुम वाणी करणे धारी । वीरविजयकुं आनंद दरसीया ॥ वि० ॥६॥
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स्तवनावली ।
१२५ श्रीअनंत जिन स्तवन ।
॥ राग वरवा पीलु ॥ अनंत जिणंद अनंत बलधारी । सब जी. वनकुं नये हितकारी ॥ मोह अज्ञान घन तिमिर अंधेरा । ज्ञान अनंतसे कीयारे उजेरा ॥ अण ॥१॥ नव नव नमवा लावत नांगे। अनंत जिनंदसु प्रीत जो मांमे ।। जब लग ज्ञान दशा नहीं जागी । तव लग फुःख अनंतको नागी॥अ॥ ॥ ५ ॥ जनम मरणकी आदि न पाई। इनमें कोई न नयेरे सहाई ॥ जब प्रजु तुमरो दरिसण पायो । जनम सफल सब लेखे आयो ॥ अ० ॥ ॥३॥ तारो मुजको अनंत जिन स्वामी । नही तो लागशे तुमने रे खामी ॥ आतम आनंद दिजो जोरी । वीरविजय मागे कर जोमी ॥ अ० ॥४॥
श्रीधर्मनाथ स्तवन।
॥ राग काफी ॥ धर्म जिनंदसुप्रीत लागी मुनेरे धर्म जिणंदसुं प्रीत ॥आंकणी॥ प्रीत पुराणी न तोमो जिन जी। ए सजनकी न रीत ॥ लागी० ॥ १ ॥
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१२६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतदान शील तप नावना चौविध । धर्मकी थापना कीध ॥ लागी ॥२॥ दश छादश विध साधु श्राझके । देशना धर्मकी दीध । लागी० ॥३॥ जगत जंतु उकारण खातर । मारग कीया रे प्रसिद्ध ॥ लागी ॥ ४ ॥ धर्मनाथ जिन धर्म प्रकाशी । जगमें बहु जश लीध ॥ लागी ॥५॥ वीरविजय आतम पद लेवा । धर्म सुण्यानी रे प्रीत ॥ लागी० ॥ ६॥
श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन ।
॥राग देश सोरठ॥ प्रनु शांति जिनंद सुखकारी, घट अंतर करुणाधारी ॥ प्रजु । आंकणी ॥ विश्वसेन अचिराजीको नंदन, कर्म कलंक निवारी । अलख अगोचर अकल अमर तुं, मृगलंबन पदधारी ॥प्र० ॥ १॥ कंचन वरण शोना तनु सुंदर, मूरती मोहन गारी । पंचमो चक्री सोलमो जिनवर, रोग शोग जय वारी ॥ प्रजु ॥ ॥ पारापत प्रनु शरण ग्रहीने, अजय दान लीयो जारी । हम प्रत्न शांति जिनेश्वर नामे,
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स्तवनावली।
१२७ लेशुं शिव पटराणी ॥ प्रजु ॥३ ।। शांति जिनेश्वर साहिब मेरा, शरण लीया में तेरा । कृपा करी मुज टालो साहिब, जनम मरणना फेरा ॥ ॥ प्रजु ॥४॥ तन मन धीर करे तुम ध्याने, अंतर मेल ते वामे । वीरविजय कहे तुम सेवनथी, आतम आनंद पामे ॥ प्रनु ॥ ५ ॥
श्रीकुंथु जिन स्तवन ।
॥ राग लावणी ॥ कुंथु जिनेश्वर तुं परमेश्वर, तेरी अजब गति कहिये। कुंथु कुंजरथी धारके करुणा जिन पदवी लहिये ॥ कुंण् ॥ लख चौरासी जीव जोनीमें, हमको रखना ना चश्ये । ए दिलमें धारी तारके सरणा जिनवरका दश्ये ॥ कुं० ॥ ५ ॥ शांग धारक त्रिजुवन नाचो, नरग निगोदे पुःख सहिये । ए दिलकी बातां सुखसे तुम विन किस आगे कहिये ॥ कुंग ।। ३ ।। प्रज्जु मुज तारो पार उतारो, गुण अवगुण तो ना लहिये । ए धरम काममें नाथकुं ढीलको करना ना चश्ये ॥ कुं० ॥ वीरविजयकी एही अरज है, आतम
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१२८
श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-
आनंद रस दश्ये । ए अरज सुणीने नाथको नेक नजर करना चये ॥ कुं० ॥ ५ ॥
श्रीपर जिन स्तवन ।
॥ चिंतामणि पास प्रभु अर्ज है सुनो तो सही, ए देशी ॥
र जिन देव विना औरकुं मानुं तो नहीं तुम बिन नाथ जो देव में चाहुं तो नहीं ॥ || की | काम क्रोध मद मोह मोहे करी नरियल हरिहर देवने मानुंतो नहीं | अर० ॥ २ ॥ मनबंबित चिंतामणि पामीने काच शकल हवे हाथमां कालुं तो नहीं ॥ २० ॥ ३ ॥ गले मोतियनकी माला में पेहेरीने और माला काठ की हृदयमें धारुं तो नहीं ॥ २० ॥ ४ ॥ खीर समुद्र की लहेर हुं बोमीने बिल्वर जलनी में चाहना करूं तो नहीं ॥ २० ॥ ५ ॥ शांत स्वरूप प्रभु मूरत देखीने तन मन थीर करी आतमा वारुं तो सही ॥ २० ॥ ६ ॥ वीरविजय कहे र जिन देव विना और देवनकी में वार्त्ता मानुं तो नहीं || अर० ॥ ७ ॥
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स्तवनावली।
श्रीमति जिन स्तवन ।
॥ राग ठुमरी दक्षणी ॥ आज जिनंदजीका दीग में तो मुखमां, मबि जिनंद प्रजु हम पर तुठमां ।। आ ॥१॥ चज गति फिरत में पायो बहु मुखमां, तुम प्रजु चरण ग्रहुं तो थाय सुखमां ॥ आप ॥ २ ॥ तुब जे विषय सुख लागे मुने मीउडां, नरग तिर्यगमांही तेना फल दीठमां ॥आ॥ ३ ॥ ताहारे जरोसें प्रजु लाग्युं माझं मनहुँ, कृपा करी तारवाने करो एक तनहुँ॥ आ॥ ४ ॥ आनंद विजयनो सेवक मागे एटटुं, वारवार प्रजुजीने कहुं हवे केटर्बु ॥ आ ॥ ५॥ श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन ।
॥रास धारी की देशी ॥ जिनंदजी एह संसारथी तार । मुनिसुव्रत जिनराज आज मोहे एह संसारथी तार ॥ आंकणी ॥ पद्मावती जिको नंदन निरखी, हरषित तन मन थाय ॥ जि ॥ कडप लंबन प्रजु पद थारे, शामल वरण सोहाय ॥ शा० ॥ मु० ॥१॥ लोकांतिक सुर अवसर देखीप्रतिबोधनकुंआय ।।
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१३० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतजि ॥ राज काज सब बोम दर प्रनु, संजमगुं चित्त लाय ॥ सं० ॥ मु॥२॥ तप जप संजम ध्यानानलथी, कर्म इंधन जल जाय ॥ जि० ॥ लोकालोक प्रकाशक अद्भुत, केवल ज्ञान तुं पाय॥ के० ॥ मु० ॥ ३ ॥ ज्ञानमें नाली करुणा धारी, जीव दया चित्त लाय । मित्र अश्व उपगार करणकुं, जरुअच्छ नगरमें श्राय ॥ न० ॥ मु॥४॥ अश्व जगारी बहु जन तारी, अजर अमर पद पाय ॥ वीर विजय कहे मेहेर करोतो, हमने ते सुख थाय ॥ ह० ॥ मु० ॥ ५ ॥ ॥ श्रीनमिनाथ जिन स्तवन ॥
॥ देशी बधाइनी ॥ __ आज वधाइ वाजे नगर मथुरांमांही विजय घर ॥ आज वधाइ ॥ आंकणी ॥ विप्रा राणीये बेटो जायो, शुन्न मुहूर्त शुन्न वार । सोहम सुरपति चित्त धरी आवे, विजयराय दरबार ॥ वधाश् ॥ १॥ मात नमी करी पंच रूप धरी, कर कमले प्रजु लीध। चौसठ सुरपति सुरगिरि रंगे, जन्म महोच्छव कीध ।। वधाइ ॥२॥ विधि पूजन करी अष्ट मंगल धरी, गीत गान बहु कीध ।
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स्तवनावली।
सोना रूपाके फुले वधाइ, जनमको लाहो लीध॥ बधाइ॥३॥ जन्म महोच्छव हाह करीने, जननी पासे लाय । सुरपति सघला महोच्छव करवा, छीप नंदीसर जाय ॥ वधाइ ॥४॥ प्रात समय नये अति आनंदसे, विजयराय दरबार । धवल मंगल सब गीतनादसे, पुत्र वधाश् थाय ॥ वधाश्च ।। ५ ।। सुतक कुल मरजाद करीने, नोजन वहुविध कीध । वीर विजय कहे नात जमावी, नमिकुमार नाम दीध ॥ वधाइ ॥६॥ ॥श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन ।
॥राग ठुमरी पंजाबी ।। मेरे प्रजुसें एही अरज हे नेक नजर करो दया करी ॥ मे ॥ आंकणी ॥ समुन विजय शिवादेवीना जाया । उपन दिगकुमरी हुलराया। अनुक्रमें प्रजु जोवन पाया । परणि नहीं एक नार, थवा अनगार के तृष्णा दूर करी ॥ मेरे ॥१॥ तुमे तो सघली माया तोमी । राजेमती स्त्रीने ठोमी। सहसावनपे रथमो जोमी । गये प्रजु गिरनार, लिये व्रत लार के ऊगमा दूर करी ॥मेरे ॥२॥ तप जप संजम कीरिया धारी। प्रजुजी वसीया
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१३२ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृतगढ गिरनारी । नेम प्रजुकी हुँ बलिहारी । पामी केवलज्ञान, थया शिवराण के अघ सब दूर करी॥ मेरे ॥ ३ ॥ तुमे तो हो प्रजु साहिब मेरा । हम तो है प्रनु सेवक तेरा। अपने घाले तुमसें घेरा। मुजे उतारो पार, मेरा सरदार के जेम मुख जाय टरी॥ मेरे ॥४॥ श्याम वरण तनुं शोजा सारी। मुख मटकाबुं बबी हे न्यारी । नेम प्रजुकी मुरती प्यारी । वीरविजयनी बात, सुणो एक नाथ के नवोजव तुंही धण। ।। मेरे ॥५॥
॥ श्रीपार्श्व जिन स्तवन ॥
॥राग पंजाबी टपो ॥ मोरी बश्यां तो पकम सुखकारी स्वाम तोरं पार्श्वनाथ परतद नाम ॥ मोरी० ॥ आंकणी ॥ अश्वसेन वामाजीको नंदन वणारसी नगरीमें जनम छाम ॥ मोरी० ॥ १॥ बालपणमें अनुत ज्ञानी जीवदयाका हो करुणा धाम ॥मोरी॥२॥ कष्ट करतो कम समीपे आये प्रजु तुमे धारी हाम ।। मोरी० ॥ ३॥ काष्ठमें ज्वलतो फणी निकाली मंत्रसें दिया प्रनु स्वर्ग धाम ॥ मोरी॥४॥ अवसरे दीक्षा तप जप साधी प्रजुजी लीयो तुमे
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स्तवनावली । मोद हाम || मोरी० ॥ ५ ॥ वीरविजयकी एही अरज है, हमको हे प्रनु एही काम ॥ मोरी॥६॥
॥ श्रीवीर जिन स्तवन ॥
॥ राग धन्यासरी ॥ वीरहसें नयोरे उदासी । वीर जिन वीरह सें जयोरे उदासी ॥ टेक ॥ उषम कालमें पुखियो गेमी । तुम जये शिवपुर वासीरे ॥वी०॥१॥ मनु दरिसण परतद न दी। ईणशुं नयोरेनीराशीरे ॥ वी० ॥२॥ करमराय सुनटें मुज घेर्यो । महारी कर सव हांसीरे ॥ वीर० ॥ ३॥ तुम विना एकाकी मुज देखी। मारी गले मोह फांसीरे ॥ वीर ॥ ४ ॥ प्रजु विना को न करे मुज करुणा । देखो दिलमें विमासीरे ॥ वीर ॥५॥ पीण तुज आगम ने तुज मुरति । एही शरण मुज थासीरे ॥ वीर ॥ ६ ॥ एही नरोंसो मुज मन मोटो। लांगी नवकी उदासीरे ॥ वीर ॥ ७॥ वीरविजय कहे वीर प्रजुकी । मुरती शरणज थासीरे। वीर ॥ ७॥
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श्रीमद्वीर विजयापाध्याय कृत
॥ अथ कलश ॥
॥ राग रेखता ॥
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चौवीस जिनराज में गाया, परम आनंद सुख पाया । प्रभु गुण पार ना पावे, जो सुरगुरु वर्णवा आवे || चौवी० || १ || अलपसी बुद्धि हे मोरी, करी पण वर्णना तोरी । प्रभु तुम मानजो साची, न थाये जगतमें हांसी ॥ चौवी० ॥ २ ॥ मेरी अब लाज तुम हाथे, बांहे ग्रही लिजियें साथे । कहो प्रभु जोर क्या तुमने, जरा उकारतां हमने || चौवी० ॥ ३ ॥ प्रभु चौवीस जगस्वामी, पुरवले पुन्यथी पामी । हरो सब दुखनो घेरो, नसे जरा मनो फेरो | चौवी० ॥ ४ ॥ वेद युग अंक इंडु वर्षे, आषाढ मास शुक्ल पदे । तिथौ जली पूर्णिमा पूरी । जयो सोमवार सुख नूरी ॥ चौवी० ॥ ५ ॥ विजे आनंद गुरु पायो, बहु मन वीर हरषायो । नृगुक पुर चौमासी, रही करी बिनती साची || चौ० ॥ ६ ॥
॥
१३४
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म्तवनावली।
॥ अथ परचुरण स्तवनानि ॥ श्रीनावनगर मंगण श्रीचंज
प्रन जिन स्तवन ।
॥ राग इंद्र सभा दादरो॥ चंवदन शुन्न चंद्र प्रजु ताहरा । देखी दिल शांत मन चकोर रीजे माहरा ॥ १ ॥ नयन युगल नये शांत रस ताहरा । प्रनु गुण कमल नमर मन माहरा ॥ ५ ॥ प्रतु तोही ज्ञान सोही जान सर ताहरा, उहां मनहंस खेले रातदीन माहरा ।।३।। प्रनु करुणा दृग् हमसे नई ताहरी । तव मद मोह किसी निंद खुली माहरी ॥ ४॥ अति उत्कंठसें में दर्श चाह ताहरा । करमके फंदेसें जो नाग्य खुले माहरा ॥ ५॥ नावपुरे वास नया खास प्रनु ताहरा । सिझ हुवा काज वीर विजय कहे माहरा ॥
॥ श्रीशंखेश्वरपार्श्व जिन स्तवन ॥
॥ राग दादरा ॥ चितहर मारा शंखेश्वर प्यारारे ॥ चि० ॥ आंकणी ॥ प्रन्नु मोरी विनती दिलमें धारोरे अ
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श्रीमदवीरविजयोपाध्याय कृत--
रज शीकारोरे ब्रांति निवारोरे॥ शंग॥ चि० ॥१॥ वेरण कुमति हुँ जरमायोरे करम वश आयोरे नवे जटकायोरे ॥ शं० ॥ चि ॥ २ ॥ पुरव पुन्य उदे करी पायोरे मनुष्यगति आयोरे चित्त हरखायोरे॥ शं० ॥ चि० ॥३॥ अब चरणोंकी सेवा में पामीरे दील विसरामीरे शंखेश्वर स्वामीरे॥शंाचि०॥४॥ तुम प्रनु आतम आनंद दारे वीरने सहारे कर करुणारे ॥ शं० ॥ चि ॥ ५ ॥
॥श्रीतारंगाजी मंगन स्तवन ॥ ॥ विषयों के नेमे मत जाओ, ए देशी ॥
तारंग तीरथे सोहाय तारंग तीरथे सोहाय ॥ प्रनु मेरोरे तारंग तीरथे सोहाय ॥ आंकणी ॥ मुलनायक श्री अजित जिनेश्वर, नेट्यां नव फुःख जाय ॥ अनु॥१॥ नव नव जटकत शरणे हूं आयो, अब तो रखोजी मोरी लाज ॥ प्रजु॥२॥ तारंग तीरथे नवि जन तारण, बैठे ध्यान लगाय॥ प्रजु ॥३॥ हुँ अनाथ मुजको जो तारो, जगमें बहु जश थाय ॥ प्रक्षु ॥ वीरविजयनी विनती एही, आवागमन निवार ॥ प्रनु० ॥ ५ ॥
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स्तवनावली |
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॥ श्री धुलेवा मंमन केसरियाजी स्तवन ||
॥ राग सारंग ॥
हांहांरे वाला आज केसरियाजी जेटीया धुलेवा मंगनरायरे | हांहांरे वाला जव्य करम परजालवा, वेग तुमे ध्यान लगायरे ॥ १ ॥ हांहांरे वाला वासर एटले न जाणीयो, तुमे तारण तरण जिहाजरे । हांहांरे वाला मूल अनादिनी माहरी । अव जांगी दीन दयालरे || २ || हांहांरे वाला चौगति चौटे नाचियो, सांग धारी नव नव नाथरे । हांहांरे वाला जव नाटकमें नाचतां, प्रभु काट्यो अनंत कालरे || ३ || हांहांरे वाला मोटे पुन्ये पामी यो । एह मानवनो अवताररे । हांहांरे वाला गाम नगर पुर ढुंढतां, तुं मिलियो धुलेवामांही रे || ॥ ४ ॥ हांहांरे वाला आज मनोरथ सवी फल्या, माहरो जव नाटक गयो डूररे | हांहांरे वाला उच्छव रंग वधामणां, थयां वीर विजय जरपूररे ॥ ५॥
स्तवन वीजुं ।
॥ आज वधाई वाजे ढे, ए देशी ॥ नगर धुलेवामांही जाई प्रभु याज केसरीयाजी यावे || नगर० ॥ प्रकणी ॥ वोटपणे
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१३८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतमें खेलताजी, तुम हम नवले वेस। त्रिजुवन पदवी तुमे लहीजी, हमें संसारिके वेस ॥ के० ॥१॥ अवसर लही अब विनवूजी, तुम हो दीनदयाल । जे पदवी तुमने लहीजी, ते आपो महाराज ॥ के ॥२॥ दायक दान देतां थकांजी, नवी करे ढील लगार। इडित हरिचंदन दीएजी, तो तुमरी क्या बात ॥ के ॥३॥ समरथ नहीं ते दानमें जी, हरि हरादिक देव । जोग्य जाण कर जाची. योजी, अब मिलीयो प्रनु मेल ॥ के ॥४॥सुणी अरजी सेवक तणीजी, चित्तमें चतुर सुजाण । आतम लक्ष्मी दिजीएजी, वीर विजयकुं दान ॥ के० ॥ ५॥ श्रीबुजी पनजिन स्तवन ।
|| राग काफी ॥ जेट्यो अर्बुदराजरे आज सफल घमी नई॥ जे० ॥ आंकणी ॥ नानिनंदनजीके दरस सरससें, पूर गई मिथ्यावास । अनुजव ज्योत नई निज घटमें, त्रुटी जवकी पासरे ॥ आ० ॥ १॥ दीन उकार करण तुम सरिखो, नही दीगेश्ण संसार। प्रवहण प्रेरक जिम निरजामक, बांहे ग्रही तिम
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स्तवनावली।
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ताररे ॥ आप ॥२॥ चौगति चुरण चौमुख जि. नवर, अचल गढे मनोहार । दरिसण कर कर उरित नासे, पाप गये परिहाररे ॥ आ ॥ ३ ॥ तुम गुण केरा पार न पानं, जिम जलधि हे अगाध । कल्पवृक्ष चिंतामणि डोमके, वाजल मा दियो वाथरे ।। आ० ॥ ४॥ दीण वीण पल पल नाथ, तुमारो ध्यान धरू सुलतान । तुम गुण मकरंद पानी कर कर, वीर विजय गुलतानरे॥ आ॥५॥
॥ श्रीजीराममन चंप्रनजिन स्तवन ॥ ॥ आश् छ नार कर कर शृंगार, ए देशी ॥
प्रजु अरज धार, मनमें विचार, तुम हो कृ. पाल, करो मारी सार, महसेन तात, लक्ष्मणा उर जायो ॥ प्रनु० ॥ १॥ ढुं हाथ जोम, कहुं मान मोम, महा पाप घोर, हे तेहनो जोर, हरो पुःखनी क्रोम, करो निज रूप जेसो ॥ प्रजु ॥२॥ तुम हो दयाल, धरो विरुद सार, मेरो जव संसार, काढो तेहथी वार, दीनाके नाथ, मेरी अरज सुणिज । प्रनु० ॥ ३ ॥ हुँ रह्यो निराश, वस्यो गरनावास, महामुख नीरास. जाणे नरकावास,
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१४० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- अब मिलियो नाथ, दुख हरो प्रनु मेरो ॥ प्रजु ॥ ४ ॥ आज आणंद अंग, मनमें उमंग, जाणे पुनमचंद, शीतल अजंग, हे लंबन चंद, एसो चंद्र प्रनु दिठगे । प्रनु ॥ ५ ॥ जीरानगर खास, प्रनु करे निवास, मन धरे जे आश, मीले मोद वास, लक्ष्मीके दास, वीरविजे एम कह्यो॥ ॥ प्रजु ॥६॥ ॥ श्रीजयपुर मंमन सुमति जिन स्तवन ॥
॥राग वरवा पीलु ॥ ____साहिब सुमति जिनेश्वर स्वामी, सुण हो कृपानिधि अंतर जामी । काल अनादि चिहुं गति कामी, फीरतां आयो में शरणे तिहारी ॥सा॥ ॥१॥ गरनावासमें अति दुःख नारी, जंधे मस्तक हुवोरे खुवारी । मोहकरमकी हे गति न्यारी, जनम मरण नहीं बोमत लारी ॥ सा ॥२॥ तुम विन कोण करे मुज सारी, अब तो लो प्रनु खबर हमारी । जीव अनंते संसारसें तारी, पहोंचामे प्रजु मुक्ति मोजारी ॥ सा० ॥ ३ ॥ माहारी वेला मौन व्रत धारी, शोजा नहीं प्रजु श्नमें तुमारी । तुम प्रनु तारक जग जयकारी, तुम पर वारी हुँ
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स्तवनावली ।
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जारे हजारी॥ सा ||४|| तात मेघ मात मंगला तिहारी, वंश इवागमें हुवो अवतारी । नाव सहित करे नक्ति तिहारी, ते होवे शिव रमणी अधिकारी ॥ सा ॥ ५॥ नगर जेपुरमें आनंदकारी, सुमति जिनेश्वर हे दातारी । लक्ष्मी विजय गुरुआणाकारी,वीर विजय मांगे नवपारी ॥
साक्षा - rimenter-- ॥ राणकपुर मंमन स्तवन.॥ ॥ नेमी सरवनमेने गिरनारी जातां, ए देशी॥
साजन हे राणकपुर महाराज, आज जले नेटिया हो राज, मिथ्या तिमिर अनादरो हो राज ||सागा दूर कीयोमें आज, प्रजु मुख जोवतां हो राज ॥ प्र० ॥ सा ।। १ ।। सेवकरी एक विनतीहो राज ॥ सा ॥ अवधारो महाराय, दया करी माहरी हो राज ॥ द॥ सा ॥२॥ तस्कर च्यार मरामणा हो राज । लाग्या महारी लारके, वेगे निवारजो हो राज ॥ वे ॥ सा ॥३॥ काल अनादि बुंटियो हो राज ॥ सा ॥ श्ण तस्करे मुज नाथ, वात कोण सांजले हो राज ॥ वा० ॥ सा० ॥ ४ ॥ ज्ञान खमग मुज दिजिये हो राज
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श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत
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॥ सा० ॥ कीजीये सेवक सार वार करो माहरी हो राज || वा० ॥ सा० ॥ ५ ॥ अब तुम चरणे आइने हो राज || सा० ॥ जव जव संचित पाप, करम दल काटसां हो राज ॥ क०॥ सा० ॥ ६ ॥ धन धन मरुदेवी मातने होराज ॥ सा० ॥ नाजिराय कुलहंस, वंस इक्ष्वागनो हो राज || वं० ॥ सा० || || सेवक दुःखियो देखीने हो राज ॥ सा० ॥ मनमें आणी महेर, जवोदधि तारिये हो राज ॥ ज० ॥ सा० ॥ ८ ॥ तम लक्ष्मी दिजिये हो राज ॥ ॥ सा० ॥ वीर विजयने याज, काज सरे माहरो हो राज || का० ॥ सा० ॥ ए ॥
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॥ श्रीगीरनारमण नेमनाथ जिन स्तवन ॥
में आज दरिस पाया, श्री नेमनाथ जिनराया ॥ में० ॥ त्र्यकणी || प्रभु शिवादेवीना जाया, प्रभु समुद्रविजय कुल आया, करमोके फंद ठोकाया, ब्रह्मचारी नाम धराया, जिने तोमी जगतकी माया ॥ जि० ॥ में० ॥ १ ॥ रेवतगिरि मंकण राया, कल्याणक तिन सोहाया, दिक्षा केवल शिवराया, जगतारक विरुद धराया, तुम
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स्तवनावली |
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बेठे ध्यान लगाया || तु० ॥ मे० ॥ २ ॥ अव सुषो त्रिभुवन राया, में करमोके वश आया, हुं चतुर गति जटकाया, में दुःख अनंते पाया, ते गिणती
नाही गणाया ॥ ० ॥ में० || ३ || में गरजवासमें आया, जंधे मस्तक लटकाया, आहार सरस विरस मुक्ताया, एम अशुभ करम फल पाया, इ दुखसें नाही मुकाया ॥ 50 || ० || ४ || नरजव चिंतामणि पाया, तब च्यार चोर मिल आया, मुजे चौटे में लुंट खाया, अब सार करो जिनराया, किस कारण देर लगाया || कि० || में० ॥ ५ ॥ जिने अंतरगत में लाया, प्रभु नेम निरंजन ध्याया, दुःख संकट विधन हवाया, ते परमानंद पद पाया, फेर संसार नहीं आया || फे० ॥ ० ॥ ६ ॥ दूर देश आया, प्रभु चरणे शीश नमाया, में अरज करी सुख दाया, तुम अवधारो महाराया, एम वीरविजय गुण गाया || ए० || में० || ७ ||
में
॥ अथ श्रीराधापुरसंमण ऋषन जिन स्तवन ||
॥ राग सारंग ॥
चित्त चाहे सेवा चरणकी प्रभुजी रुपन
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१४४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- जिणंदकी ॥ चि० ॥ आंकणी ॥ चेतन ममता सबही बोमी, ए प्रनु सेवो एकमति | लोकातित स्वरूप ते जेहनूं, लेई वरो पंचमी गति ॥चि०॥१॥ एक एक प्रदेशें अनंती, गुण संपतनी आवली। सुरगुरु कहेतां पार न पावे, एक अनेक मुखे करी॥ चि० ॥ ५॥ नव थकी अलगा बो प्रतु तुमही, नविजन ताहरा नामथी। पार नवोदधिनो ते पामे, ए अचरिज मन अती ॥ चि ॥३॥ तुम प्रजु तारक जग जयवंतो, नहीं जाएयो में उरमती। मन वच काया थीर करीने, नहीं सेव्यो में एक रती ॥ चि॥४॥ अवसर पामीन करुं खामी, सोर धरुं प्रजुनी चाकरी । राधणपुरमंमण दुख खंगण, सेवी वरो शिवसुंदरी ।। चि ॥ ५ ॥ वारवार विनवू प्रनु तुमथी, जो अवधारो माहरी। श्रातम आनंद प्रजुजी दीजो, वीरविजयने मया करी ॥ चि० ॥ ६॥
श्रीसिहाचलजी, स्तवन । ॥मनरी बातां दाखाजी महारा राज, ए देशी॥
प्रीतमजी सुणो दीलरी बात हमारी जी मारा राज ॥ आंकणी ॥ विमल गिरिंदकुं बेटो
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जी मारा राज । जव जवके संचित पाप करमकुं मेटो जी मारा राज || प्रीत० ॥ १ ॥ पूरव नवाणुं वारा जी मारा राज | प्रभु रुषन जिणंदा चरणे चल कर आया जी मारा राज || प्री० ॥ २ ॥ राजादनी तरु बाया जी मारा राज । तुमे दिल नर देखो रूपन जिणंढ़ के पाया जी मारा राज ॥ प्रीत० ॥ ३ ॥ पुंसरीक गणधर आदि जी मारा राज | मुनि मुक्ति सधारे टाली सर्व उपाधि जी मारा राज || प्रीत० ॥ ४ ॥ प्रीतम तीरथ मोटंजी मारा राज | कांई ढील करोबो अमने लागे खोटुं जी मारा राज || प्रीत० ॥ ५ ॥ मिथ्या निंद हावो जी मारा राज । ए तीरथ जाके कुमतिके गढ ढावो जी मारा राज || प्रीत० ॥ ६ ॥ दुरजनरा नरमाया जी महारा राज । चेतनजी थे तो चौगती में चटकाया जी मारा राज || प्रीत० ॥७॥ ए पावन तीरथ पामी जी मारा राज । सब दुःखके चूरण मत करजो तुमे खामी जी मारा राज ॥ प्रीत० ॥ ८ ॥ चितमामें नित्य ध्यावोजी मारा राज । गिरिवर के फरसी परमानंद पद पावो जी मारा राज || प्रीत० ॥ एए ॥ सुमता सखीरी वाणी मारा राज | तुम चित्तमां धरजो वरजो शिव पट
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श्रीमदार विजयोपाध्याय कृत--
राणी जी मारा राज ॥ प्रीतः ॥ १७!! गुण गावे मिली देवाजी मारा राज। वीर विजय मांगेआतम लदमी मेवा जी मारा राज ॥ प्रीत० ॥ ११ ॥
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श्रीजिराममण चिंतामणी पार्श्व स्तवन ।
॥ राग दादरी ठुमरी भेद ।। दिल विसरामी चिंतामण स्वामी रे ॥टेक॥ मोहन मुरती पाशजी तोरी रे, अवर न जोमीरे, चित्त लीयो चोरी रे ॥ चिं॥ १॥ अंतरगतकी अंतरजामी रे, कहुं शीर नामीरे, सुनो मेरे स्वामी रे ॥ चिं० ॥२॥ मोहरायने मेनुं फुःख दीया रे, सबी बुट लीयारे, जुलम ही कीयारे ॥ चिंग ॥३॥ तुम बिन कौन सुने प्रजु मोरी रे, शरण गत तोरी रे, खबर लियो मोरी रे ॥ चिं ॥४॥ दासको आश प्रन्जु पाशजी पूरो रे, करम सब चूरोरे, बजे जय तूरो रे ॥ चिं० ॥५॥ वीरविजय कहे पाशजी पायो रे, जीरे जब आयोरे, दुःख विसरायोरे ॥ चिं० ॥६॥
श्रीपट्टीममन पार्श्वजिन स्तवन । कर ले पारश संग । प्रजु हे अनंग जंग ।
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स्तवनावली |
AN AMIA
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कंचन कामनी संग | कमले क्युं यावदांजी ॥
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क० ॥ १ ॥ मनुष्य जनम यदा ॥ निंदमें क्युं सोई रेंढा । शुपनशी माया तेनु । फेर नहीं पावदांजी ॥ क० || २ || प्रभु हे पुरनचंद । त्र्यश्वसेन राय नंद | धन दिन आज सामा | प्रभु घर यावदांजी ॥ क० ॥ ३ ॥ शीफत करां में केती । जिजान तो नांही रेंदी | सुर गुरु गुण तुं सांदा । पार नहीं पावदां जी ॥ क० ॥ ४ ॥ मनके मोहन पामी, पुरतो पट्टी के स्वामी । अव तो न रखो खामी । वीरविजे गावदांजी || क० ॥ ५ ॥
श्री घोघामंकण नवखंमा पार्श्व जिन स्तवन ।
घनघटा जुवन रंग छाया, नव खंमा पाशजि पाया ॥ त्र्यांकणी ॥ प्रभु कमत हवीकुं हवाया । विषधर परजलती काया | दिल दया धरी के ठोमाया । सेवक सुख मंत्र सुणाया । क्षणमें धरऐंद्र बनाया ॥ घ० ॥ १ ॥ में और देवनकुं ध्याया । सब फोगट जनम गमाया । सुनो वामाराणीका जाया । कुछ परमारथ नहीं पाया ।
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श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-
ज्युं फुटा ढोल बजाया ॥ घ० ॥ २ ॥ सुपि चामीकर नरमाया । में पीतल हस्ते पाया । मुजे हुवा बहु दुखदाया । करमोंने नाच नचाया। इस विधधके बहु खाया ॥ घ० ॥ ३ ॥ घोघा मंगण सुख दाया | जग बहु उपकार कराया । नवखंमा नाम धराया । में सुणकर शरणे आया । उद्धार करो महाराया ॥ घ० ॥ ४ ॥ हुवा चतुरमास मुज आया । किस कारण अब बेठाया । यो मन बंबित सुख दाया । हुं प्रेमे प्रमुं पाया । सेवकका काज सराया ॥ घ० ॥ ५ ॥ शर युग निधि दंडु कहाया । जला अश्विन मास सोहाया । दीवाली दिन जब आया । में आतम आनंद पाया। एम वीर विजय गुण गाया ॥ घ० ॥ ६ ॥
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स्तवन बीजुं ।
नवखंमा स्वामी | आप बिराजो घोघा राहेरमें, हांहां रे घोघा शहरमें || नव० ॥ कणी ॥ देश देशके यात्री यावे, पूजा गी रचावे | नवखंमाजी नाम समरतां । पूरण परचा पावेजी ॥ नव० ॥ १ ॥ अश्वसेन वामा सुत केरी, मूरति मोहनगारी | चंद्र सूरज आकाशे चमिया, तुम
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म्नवनावली । र रूपसे हारीजी ॥ नव ॥ ५ ॥ सुखने मटके लोयण लटके, मोह्यां सुर नर कोमी । और देवनकुं हम नहीं ध्यावे, एम कहे कर जोमीजी ॥ नव० ॥ ३ ॥ तुं जगस्वामी अंतर जामी. यातम रामी मेरा । दिल विसरामी तुमसे मांगु, टालो नवका फेराजी ।। नव ॥ ॥ ४ ॥ कल्पवृद चिंतामणि आशा, पूरे नहीं जम नापा ॥ तीन नुवनके नायक जिनजी, पूरो हमारी श्राशाजी ॥ नव० ॥ ५ ॥ दायक नायक . तुम हो साचा, और देव सव काचा।हरि हर ब्रह्म पुरंदर केरा, जुने जुर तमासाजी ॥ नव० ॥६॥ लटक लटक घोघा बंदरमें, दर्शन मुर्लन पाया। वीर विजय कहे आतम आनंद. आपो जिनवर गयाजी ॥ नव० ॥ ॥
सणवतरा मंमन श्रीधर्मनाथ स्तवन ।
॥ राग कानडा ॥ और न ध्यावं में और न ध्याचं ॥ धरम जिणंदसें लगन लगाउं ॥ ध्यान अगन से करम जलाउं । छिनमें परमातम पद पाठं । यो ॥ १॥ लोद पाराको संगम पाई।
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श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत
हेम रूप धारत मेरे जाई ॥ जज ले धरमनाथ एक वारा । आतम हित कर ले तुं प्यारा ॥ औ० ॥ २ ॥ इन बिन और देव नहीं जो । विधिसें धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवन हारा ॥ औ० ॥ ३ ॥ नूतन मंदिर आप पधारो । एही सेवक अरजी अवधारो || घंटारव नौबत जब गाजे । तब सेवकको आनंद जागे ॥ पुरव पुन्य दरिशण पायो । जब में आयो । वीरविजयकी विनती रही । नंद मुजको देह ॥ ० ॥ ५ ॥
० ॥
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हेमनगर में तम या
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श्री हुशियारपुर मंगन वासुपूज्य जिन स्तवन ।
॥ राग खमाच ॥
|| आज दुविधा मेरी मिट गई, ए देशी ॥ वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हर ली - नोरे ॥ कणी ॥ वासव वंदित पद कज द्वंद | वसुपूज्य राजाके नंद । जविक कमल विकास चंद, तनू रक्त रंगीलोरे ॥ वा० ॥ १ ॥ कामित
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म्तवनावला।
पूरण सुरतरु कंद । कठिन करमका काटे फंद । अरज करुं अति जाग्य मंद । कुछ दया दिल ल्यावारे॥वा ॥२॥फसियो मोह दशा महा फंद। अव काढो प्रनु करुणावंत । चरण शरण माणु अमंद । क्युं देर लगावोरे ॥ वाण ॥ ३ ॥ तारक प्रजुजी जग जयवंत । तार्ये तुमने संत अनंत । मुज कीरपा कीजो जदंत । निज विरुद संजालोरे ।। वा ॥४॥ लव लव जमियो में जगवंत । तुम दरिशण विन काल अनंत । नगर हुस्यारपुरेमें चंग, प्रनु दरिशण पायोरे ॥ वा ॥ ५ ॥ संवत् नेत्र वाण निधि चंद, आसु शुक्ल द्वितीया दिन चंग । वीरविजय मांगे अनंग । आतम पद दीज्यो रे । वा ॥ ६॥ श्रीअमृतसर मंझन अरजिन स्तवन ।
श्री अरजिन अंतर जाम।। तुमसे कडे सीर नामी । करुणा दृग् मोये करना। ज्युं वेगे दुवे तरनाजी ॥ श्री० ॥ १ ॥ लेत माल खजाना । नहीं सागुं विजुवन राना । मन नमरकुं ए याशा । तुज पद, पंकजमें वासा ॥ श्री० ॥ २ ॥ ए उपम पाल फुःख दाई । तुज मुरती है सुग्य दाश् ।
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une anumanmun
man
१५० श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृतहेम रूप धारत मेरे लाई ॥ जज ले धरमनाथ एक वारा । आतम हित कर ले तुं प्यारा ॥
औ० ॥ ५ ॥ इन बिन और देव नहीं पूजो। विधिसे धरम जिणंदकुं पूजो ॥ मनमें ध्यान धरो एक धारा । कामित फलके देवन हारा ॥ औ ॥ ३ ॥ नूतन मंदिर आप पधारो । एही सेवक अरजी अवधारो ॥ घंटारव नौबत जब गाजे। तब सेवकको आनंद जागे ॥ औ॥४॥ पुरव पुन्य दरिशण पायो । जब में हेमनगरमें आयो । वीरविजयकी विनती एही आतम थानंद मुजको देही ॥ औ० ॥ ५ ॥
श्रीदुशियारपुर मंमन वासुपूज्य
जिन स्तवन ।
॥ राग खमाच ॥ ॥ज सुविधा मेरी मिट गई, ए देशी॥
वासुपूज्य जिनराज आज मेरो मन हर लीनोरे ॥ आंकणी ॥ वासव वंदित पद कज इंद। वसुपूज्य राजाके नंद । नविक कमल विकासी चंद, तनू रक्त रंगीलोरे ॥ वा ॥ १॥ कामित
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स्तवनावली ।
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पूरण सुरतरु कंद | कठिन करमका काटे फंद अरज करूं प्रति नाग्य मंद | कुछ दया दिल ल्यावोरे ॥ वा० ॥ २ ॥ फसियो मोह दशा महा फंद । अब काढो प्रभु करुणावंत । चरण शरण मागुं
मंद। क्युं देर लगावोरे ॥ वा० ॥ ३ ॥ तारक प्रभुजी जग जयवंत । तार्ये तुमने संत अनंत । मुज कीरपा कीजो जदंत । निज बिरुद संजाबोरे || वा० ॥ ४ ॥ जव जव जमियो में जगवंत । तुम दरिशण बिन काल अनंत | नगर दुस्यारपुरेमें चंग, प्रभु दरिशण पायोरे ॥ वा० ॥ ५ ॥ संवत् नेत्र बाण निधि चंद, आसु शुक्ल द्वितीया दिन चंग । वीरविजय मांगे अभंग | आतम पद दी ज्यो रे || वा० ॥ ६॥
श्री अमृतसर मंमन पर जिन स्तवन ।
श्री अर जिन अंतर जामी । तुमसे कहुं सीर नामी । करुणा दृग् मोये करना | ज्युं वेगे हुवे तरनाजी ॥ श्री० ॥ १ ॥ लेत माल खजाना । नहीं मागुं त्रिभुवन राना । मन नमरेकुं ए आशा । तुज पद पंकज में वासा ॥ श्री० ॥ २ ॥ ए डुषम काल दुःख दाई । तुज मुरती है सुख दाई ।
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१५२ श्रीमद्वार विजयोपाध्याय कृतनहीं कुमतिके मन नाई। दुवे दुरगत के सहाई ॥ श्री० ॥ ३ ॥ कुपंथ जिनोने धारे । दुरगतिमें गये बिचारे । जिने तुम आज्ञा नहीं कीनी। तिने पाप पोट सीर लीनी ॥श्री० ॥४॥ अमृतसर मंझण स्वामी । घट घटमें तुं विसरामी। तोरी आज्ञा सिर पर धारी । हुँ वेग वरं शिव नारी ॥ श्री० ॥ ५॥ निधि युग निधि छ वरसे, मास कार्तिक शुक्ल पक्ष । तिथि प्रतिपदा गुण गाया । ए वीरविजय सुख दाया ॥ श्री० ॥६॥
॥अथ अमृतसर मंमन शीतल जिन
स्तवन ॥ चलो खेलिये होरी । शीतल जिन नाथ जयोरी ॥ च० ॥ आंकणी ॥ आये वसंत फूली वनराजी । नमर गुंजार नयोरी । माकंद मंजर सुंदर चारवी । कोकिल शोर थयोरी । मेरो मन अति उलस्योरी ॥च॥१॥ मोघर चंपक केतकी फुली । और फुली चित्रवेली । चंबेली मुचकुंद ज फुली । दमनक कलियां मोरी। प्रजु की पूजा रचोरी ।। च ॥२॥ कुसुमाचरण करी प्रनु पूजो ।
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ज्युं पामो जव पारी । केसर रंग के तिलक लगावो ! धुप घटी विरचावो । जवी तुमे जावना जावो ॥ च० ॥ ३ ॥ ताल मृदंग वि मफ बाजत । जुंगल गाजत जेरी | गीत नृत्य प्रभुजी के आगे । करत मिटत जव फेरी | वसंतकी बाहार जलेरी ॥ च० ॥ ४ ॥ नंदा नंदन जव दुख कंदन | नाम से शीत जयोरी । शौच करत बिचारो चंदन | नंदन वनमें गयो । जाको मान जंग थ्योरी ॥ च० || ५ || ढुंढत ढुंढत शहेर शुधामे । शीतल नाथ मिल्यो । वीर विजय कहें तम आनंद आज हमारे थयो । दरशसें पाप गयो री
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॥ च० ॥ ६ ॥
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॥ अथ हस्तिनापुर स्तवन ॥ ॥ राग होरी ॥
चालो खेलिये होरी जिहां जिन कल्याणक जयेरी ॥ चा० ॥ टेक ॥ सुंदर हस्तिनागपुर है | पूरव देस मोका । जिहां जिन तिनके कल्याकिका | कथन हे सूत्र मोजारी । सब जीवन हितकारी ॥ चा० ॥ १ ॥ शांतिनाथ श्री कुंथुनाथजी अर जिन अंतर जामी । चवन जनम दी
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१५४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- दाने केवल | पाये प्रजु धारी । कल्याणिक जग सुखकारी ॥ चा ॥२॥ दो विध चक्री पद सुख जोगी। ते प्रजु आनंद कारी । समेत शिखर जाइ ध्यान लगाई । लीनी शिव पटराणी । करमदय से जवपारी ॥ चा ॥३॥ तीरथयात्रा करो शुन नावें । समकित निरमलकारी । जनम जनम के पाप निवारी। आतमके हितकारी । सदा सुखके दातारी ॥ च० ॥ ४ ॥ शहेर दिल्लीसें यात्रा करनकुं। संघ सकल मिल आये।श्रीश्रीहस्तिनागपुर में । धवल मंगल वरताये । पूजासें आनंद पाये । चा० ॥ ५॥ संवत् जुवन बाण निधि इंदु । फाद्गुन शुदि सुखकारी। गुरुवार प्रतिपद जयकारी। 'वीर विजय हितकारी । प्रज्जु नेव्यां नवपारी ।। चा० ॥ ६ ॥
माझवगढममन स्तवन ।
॥ पानीहारीकी देशी ॥ मांमवगढमें विराजता माहारा बालाजी ॥ मा० ।। स्वामी सुपास जिणंदा ॥ वा० ॥ तिण कारण तीरथ वहुं ॥ माहा ॥ नूमंमल प्रचंग ॥ वा ॥ १ ॥ विषम पहाग कामी घणी ॥ मा ।।
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स्तवनावली। दर्शण दुर्लन देव ॥ वा ॥ पुन्य विना पावे नहीं ॥ मा ॥ ममिव मंमन सेव ॥ वा ॥२॥ तीरथ महिमा अति घणो ॥ माण ॥ सांजली लाल अपार ॥ वा ॥ जात्री जन आवे घणा ॥ मा० ॥ करवा नवनो पार ॥ वाण ॥३॥ लान लेवा जात्रातणो ॥मा॥ रतनपुरी को संघ ॥वा॥ मांडवगढ प्रति निकले ॥ मा ॥ बहु आंमबर चंग ॥ वा ॥४॥ संघवी मुंगरसी जला ॥ मा ॥ ओसवंस नूपाल ॥ वा ॥ लुणियागोते जाणिये ॥ मा० ॥ करता पर उपगार ।। वाण ॥ ५ ॥ विजयकमल सूरि जिहां ॥ मा० ॥ दस मुनि के परिवार ॥ वा ॥ साधवी श्रावक श्रावीका ॥ मा ॥ छाउ घणो बहु लार ॥ वा ॥ ६ ॥ चनविध संघ शोना घणी ॥ मा० ॥ मुख वरणी नहीं जाय ॥ वा ॥ मोतीजी कटारिया ॥ मा० ॥ आगेवानी थाय ॥ वाण ॥ ७॥ अनुक्रमे आवि बिराजिया ॥ मा० ॥ धारा नगरीके मांय ॥वा॥ चैत्य जुहारी तिहां बहु ॥ मा॥ उलट अंग न माय ॥ वाण ॥
॥ पूव पुन्ये आविया ॥ मा०॥ मांझवपुरके मांय ॥वा॥ श्रीसुपास जिन बेटिया॥ मा॥ जेहनी शीतल गंह ॥ वा ॥ ए ॥ शशी रस निधि
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१५६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- शशी वत्सरे ॥ मा । फाल्गुन मास प्रमाण ॥ वा ॥ कर्मवाटी ए चतुर्दशी ॥ मा ॥ कृष्णपद की जाण ॥ वा० ॥१०॥ सूर्यवारे सुखिया थया ॥ मा० ॥ नेटी प्रजुका पाय ॥ वाण । वीर विजय कहे दीजिये ।। मा० ॥ आतम हित सुखदाय ॥ ॥ वा० ॥११॥
श्रीसमेतशीखरजीनुं स्तवन ।
वस गीया वस गीया वस गीयारे मेरा मनवा । मेरा मनवा शीखर पर वस गीयारे॥मे॥ आंकणी ॥ समेतशीखर गिरिवर को बेटी । आनंद हृदयमें नर गीयारे ॥ मे ॥ १॥ धन्य घमी दिन आज हमारो। तीरथ नेटी तर गियारे ॥ मे ॥२॥ वीसे टुंके वीस जिनेश्वर । अजितादि प्रजु चम गीयारे॥मे०॥३॥ अणशण करके कारज अपना । योग समाधीसे कर लीया रे ॥ मे ॥ ४ ॥ अनंतबली जिनवरको जाणी। मोहराय पिण मर गिया रे ॥ मे ॥ ५॥ करम कटण कल्याणिक नूमि। सब जिनवर जी कह गयारे ।। में ॥ ६ ॥ पुन्योदयसें पास शामला।
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स्तवनावली |
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समते शिखर पे दरश कियारे ॥ मे० ॥ ७ ॥ वीर विजय कहे तीरथ फरसी । तम आनंद ले लियारे ॥ मे० ॥ ८ ॥
॥ स्तवन बीजुं ॥
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तीरथनी शातना नवी करीये, ए देशी ॥ समेतशीखरनी जातरा नित्य करिये । नित्य करियेरे नित्य करिये । नित्य करिये तो पुरित नीहरिये । तरिये संसार ॥ समे० ॥ १ ॥ शिववधु वरवा आविया मन रंगे । विश जिनवर अति जबरंगे । गिरी चमिया चमते रंगे । करवा निज
काज ॥ समे० ॥ २ ॥
जितादि वीश जिनेश्वरा
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की रिया न चुके ।
वीश टुंके । कीधुं ध्यान शुक्ल हृदयथी न मुके । पाया पद निरवाण ॥ समे० ॥ ३ ॥ शिव सुख जोगी ते थया जिनराया । जांगे सादि अनंत कहाया । पर पुल संग बोकाया । धन धन जिनराय ॥ समे० ॥ ४ ॥ तारण तीरथ तेहथी ते कहीये । नित्य तेनी बांया रहीये । रहिये तो सुखिया थइये । बीजुं शरण न होय ॥ समे० || ५ || ओगणसे
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श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत
बासव माघनी वदी जाणो | चतुर्दशी श्रेष्ठ वखाणो | हमे भेट्यो तीरथनो राणो । रंगे गुरुवार ॥ समे० ॥ ६ ॥ उत्तम तीरथ जातरा जे करशे । वली जिन आज्ञा शिर धरशे । कहे वीरविजय ते वरशे । मंगल शिवमाल ॥ समे० ॥ ७ ॥
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॥ स्तवन तीजुं ॥
रहेने रहेने रहेने लगी रहेने, ए देशी ॥ नेटो नेटो नेटो जवियण नेटो । समेत शीखर गिरि नेटो ॥ ज० ॥ जनम मरण दुःख मेटो ॥ ज० ॥ कणी || मोहरायने विवर दियो जब | जाग्योदय थयो बलियो । पुरव पुन्ये आज हमारे । तीरथ मेलो मलियो ॥ ज० ॥ १ ॥ आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो । मनना मनोरथ फलिया । समेत शीखर गिरिवरने जेटी । जवना फेरा टलिया || ज० || २ || नवोदधि तरिये पार उतरिये । तीरथ कहिये तेह । पुन्यता तो पोठी
रिये । तेमां नहीं संदेह || ० || ३ || स्वपरिवारे वीस जिनेश्वर । समेत शिखर गिरी चकिया | काम क्रोध मद मोह निवारी | समता
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स्तवनावली |
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रसना जरिया || ज० || ४ || अजित संजव अनिनंदन सुमति | पद्मप्रभुजी जाणो । सुपास चंद्रप्रजुने सुविधि । शीतल जिनने वखाणो ॥ ज० || ५ || श्री श्रेयांस विमलने अनंत जिन । धर्म जिनेश्वर कहिये । शांति कुंथु र जिनवरनी | नक्ति करी शिव लहिये || ० || ६ || मल्लिनाथने मुनिसुव्रत जिन । नमि पार्श्व गुण जरिया । वीसे टुंके वीस जिनेश्वर । शण करी शिव वरिया ॥ ज० ॥ ७ ॥ वीस प्रभु निरवाण थयाथी, वीसं कल्याणिक जाणो । पावन तीरथ तेहथी कहिये | शंका मन नहीं आणो ॥ ज० ॥ ८ ॥ तीरथ सेवा सद्गति । कहे सिद्धांत नहीं खोटं । समकीत शुद्ध थवानुं कारण । ए तीरथ बे मोटुं ॥ ज० ॥
|| जात्रा करवा शिव सुख वरवा । संघ सकल हवे मलियो | स्वपरिवारे चमते जावें । लश्करथी निक लियो || ज० ॥ १० ॥ शेठजी नथमल वाघमलजी । लश्कर शहेरना जाणो । गोलेवा जो गोते कहिये | श्रावक श्रेष्ठ वखाणो ॥ ज० ॥ ११ ॥ शेठजी नगीनचंद कपूरचंद | सुरत शहरना कहिये | बबुनाइने दलसुखनाई । फुलचंदनाश्ने लहिये ॥ ० ॥ १२ ॥ जगवानसिंहजी जक्ती
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१६० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतकरता । संघ सकल हवे चाले । काशी आदि तीरथ करता । समेतशीखरजी आवे ॥ न । १३ ।। ओगणिसे बासठ माघ वदीनी। चतुरदशी गुरुवारे । तीरथ नेटी जे आनंद लीधो । केवलझानी ते जाणे ॥ ज० ॥ १४ ॥ संघनी सहाजे हमे नली नाते । जात्रानुं फल लीधुं । वीर विजय कहे आज हमारा । मननुं कारज सिध्यु | नणा१५॥
श्रीमहावीरजिन स्तवन। ___ महावीर महावीर नज ले तुं नाई । महा. वीर विन है न कोई सहाई ।। मा || आंकणी॥ मनुष्य जन्मकी करले कमाई । सिद्धारथ सूनुं बना ले तूं सांई ॥ मा० ॥ १॥ निष्कारण बंधु परम सुखदाई। महावीरजीकी है एही बमाई ॥ मा॥५॥ स्वारथकी तुं बोमदे मात पित नाई। इनोसे न होगी तुजे कुब नलाई ।। मा ॥ ३ ॥ देखो कुनियांकी है कैसी सगाई। सवी खुंट लेवे ओ अपनी कमाई ।। मा ॥४॥डोम सब मोह लोह फुःखदाई । शरण कर वीर विजु मेरे नाई मा ॥ ५॥
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स्तवनावली।
१६१ श्रीपावापुरी महावीर जिन स्तवन ॥ __ हर लिया हर लिया हर लियारे, मेरा मनवा महावीरजीने हर लियारे ।। आंकणी ॥ विचरता वीर जिनेश्वर आया । पावापुर पावन कीयारे ॥ मे ॥ १ ॥ सुरवर समोवसरणकी रचना । करी जक्तिमें जर गीयारे ॥ मे ॥२॥ सिंहासन प्रजुजी बिराजी। देशना अमृत वरसियारे ॥ मे ॥ ३ ॥ शोल पहोर प्रनु देशना दीनी । अवसर अणशण का लीयारे ॥ मे ॥ सर्वसमाधी अपशण पाली । मन वच काया वस कीयारे । मे ॥५॥ शिववधु वरिया, नवोदधि तरिया । पारंगतका पद लियारे ।। मे ॥ ६ ॥ मोद कल्याणिक महोच्छव जाणी । शादिक सब मिल गीयारे ॥ मे ॥७॥ बसे गठसे महोच्छव करके । नाम पावापुरी कह गियारे । मे० ॥ ७॥ तीरथ नेटी नवदुःख मेटी । आतम आनंद ले लियारे ।। मे॥ए॥ ओगणिसे बासठ माघ शुदकी । पंचमी दिन पावन थियारे ।। मे ॥ १० ॥ वीरविजय कहे वीर जिणंदका । दर्शण बिन हम रह गयारे ।। मे ॥ ११ ।।
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श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृत
करता । संघ सकल हवे चाले । काशी आदि तीरथ करता । समेतशीखरजी यावे ॥ ज० ॥ १३ || ग णिसे बासठ माघ वदीनी । चतुरदशी गुरुवारे । तीरथ नेटी जे आनंद लीधो । केवलज्ञानी ते जाणे ॥ ज० ॥ १४ ॥ संघनी सहाजे हमे जली जाते । जात्रानुं फल लीधुं । वीर विजय कहे आज हमारा । मननुं कारज सिध्युं ॥ ज० ॥ १५ ॥
श्री महावीर जिन स्तवन ।
महावीर महावीर जज ले तुं जाई । महावीर विन है न कोई सहाई ॥ मा० ॥ कणी ॥ मनुष्य जन्मकी करले कमाई | सिद्धारथ सूनुं बना ले तूं सांई ॥ मा० ॥ १ ॥ निष्कारण बंधु परम सुखदाई । महावीरजी की है एही बाई ॥ मा० || २ || स्वारथकी तुं बोगदे मात पित नाई । इनोसे न होगी तुजे कुठ जलाई || मा० ॥ ३॥ देखो दुनियांकी है कैसी सगाई । सवी लुंट लेवे
अपनी कमाई || मा० || ४ || ठोक सब मोह लोह दुःखदाई | शरण कर वीर विनु मेरे भाई
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स्तवनावली |
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श्री पावापुरी महावीर जिन स्तवन ॥
हर लिया हर लिया हर लियारे, मेरा मनवा महावीरजीने हर लियारे || कणी || विचरता वीर जिनेश्वर आया । पावापुर पावन कीयारे ॥ मे० || १ || सुरवर समोवसरणकी रचना | करी जक्तिमें नर गीयारे ॥ मे० ॥ २ ॥ सिंहासनपें प्रभुजी बिराजी | देशना अमृत वरसियारे ॥ मे० ॥ ३ ॥ शोल पहोर प्रभु देशना दीनी | अवसर णशण का लीयारे ॥ मे० ||४|| सर्वसमाधी पण पाली । मन वच काया वस कीयारे ॥ मे० || २ || शिववधु वरिया, नवोदधि तरिया | पारंगतका पद लियारे || मे० ॥ ६ ॥ मोक्ष कल्याणक महोच्छव जाणी । इंद्रादिक सब मिल गीयारे ॥ मे० ॥ ७ ॥ बने ठगवसें महोच्व करके । नाम पावापुरी कह गियारे || मे० ॥ ८ ॥ तीरथ नेटी नवदुःख मेटी । आतम आनंद ले लियारे || मे० ॥ ॥ योग पिसे वासव माघ शुदकी । पंचमी दिन पावन थियारे || Ho || १० || वीरविजय कहे वीर जिएंदका | दर्शण बिन हम रह गयारे || मे० || ११ ||
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श्रीमदवीरविजयोपाध्याय कृत-
कलकत्तामंकन महावीर जिन स्तवन ।
रानी त्रिशलादे नंदारे वीर जिणंदा । सिझारथ कुल नन चंदा रे सुखको रे कंदा ॥ रानी० ॥
कणी | जब जन्मे जिनवर राया । बप्पन कुमरि दुलराया । हरि हरष धरी तब आयारे ॥ वीर० ॥ रानी० ॥ १ ॥ हरि पंचरूप बन जावे । प्रभु मेरुशीखर पे ब्यावे । करे जनम महोच्छव जावेरे ॥ वीर॥ रानी० ॥ २ ॥ अजिषेक कलस कर धारी । करे प्रभु नवणकी त्यारी । हरि शंका दिलमें धारीरे ॥ वीर० ॥ रानी० ॥ ३ ॥ प्रभु जनमतही है नाणी । मन शंका शक्रकी जाणी । तब मेरु कंपाय ताणी रे || वीर० ॥ रानी० ॥ ४ ॥ चमके सब सुरवर राया । शंका मन दूर कराया । करी महोच्छव आनंद पायारे ॥ वीर० ॥ रानी० ॥ ५ ॥ धन्य वीर जिनेश्वर स्वामी । तुं बालपणे जये नामी । तुम गुण में को नहीं खामीरे ॥ वीर० ॥ रानी० ॥ ६ ॥ कलकत्ता मंदन राया। बैठे प्रभु ध्यान लगाया । में दर्श बगिचे पायारे ॥ वीर० ॥ रानी० ॥ ७ ॥ योग पिसें त्रेशव जाया । कार्त्तिक पुनम दिन आया। एम वीरविजय गुण गायारे ॥ वीर० ॥ रानी० ॥ ८ ॥
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स्तवनावली।
॥ आगराममन चिंतामण जिन स्तवन ॥
. ॥राग कनडा शियाना ॥ चिंतामणजी पास मोहे प्यारा । मन वंबित के पूरण हारा । नाम मंत्र जपलो एकवारा । कठिन करमके चुरनहारा | चिं० ॥ १॥ अरज एक प्रजुजीसें मोरी । सेवा चाहु में नव नव तोरी । लद चौरासी रुलता में आया । पुरव पुन्य चिंतामणि पाया ॥ चिं॥२॥ और देवन की सेवा में कीनी । पापकी गठमी में सीर लीनी । कहो रे न मान्यो कुमति वस किसको। प्यालो न पीयो अमृत रसको ॥ चिं० ॥ ३ ॥
और देवनकुं कबहुं न मानुं । सच्चा पास चिंतामणि जानुं । प्रजुके चरण शरण कर लीनी। और देवनकुं जलांजली दिनी ॥ चिं० ॥४॥ आगरा मंमन सब फुःख खमन । पास चिंतामणि शीतल चंदन । वीरविजय कहे तपत बुजावो । नाम जगतमें हे तुम चावो || चिं० ॥ ५॥ जुग रस निधि छ वत्सरमें । मास नामपद शुक्ल पक्ष में। दिन संवच्छरीका जव आया । चिंतामणि पास गुन गाया ॥ चिंग ॥ ६ ॥
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१६४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- श्रीअंबालाममन श्रीसुपास जिन स्तवन ।
क्यु नहो सुनाई स्वामी। ऐसा गुना क्या कीया ॥ आंकणी ॥ औरोंकी सुनाई जावे । मेरी वारी नाही आवे । तुम बिन कोन मेरा, मुजे क्युं जुला दिया ॥ क्युं ॥ १ ॥ नक्त जनों तार दीया, तारवेका काम कीया। बिन नक्ति वाला मोंपे । पदपात क्युं लिया ॥ क्युं ॥ ॥ राव रंक एक जानो। मेरा तेरा नहीं मानो । तरन तारन ऐसा। बिरुद धार क्युं लिया ।क्यु०॥३॥ गुना मेरा बद दिजे । मोपें एति रहेम कीजे । पक्काही जरोंसा तेरा । दिलोमें जमा लिया ॥ क्युं ॥४॥ तुही एक अंतर जामी । सुना श्री सुपास स्वामी । अब तो आशा पुरी मेरी । कहेना सो तो कह दीया ॥ क्युं ॥ ५ ॥ शहेर अंबाले जेटी । प्रजुजीका मुख देखी। मनुष्य जनमका लाहा । लेना सो तो ले लीया ॥ क्युं ॥६॥ जन्निसो बासठ बबिला। दीपमाल दिन रंगिला॥ कहे वीरविजे प्रजु । नक्तिमें जगा दिया ॥क्युंगा॥
॥श्रीचंपामंमन वासुपूज्य जिन स्तवन ।
चंपा ममन सुखदाया । श्री वासुपूज्य जिन
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राया ॥ कणी ॥ प्रजु जयादेवीके जाया । वसु रायके वंस दीपाया || मिल चौसठ इंद्रे गाया । में पुन्ये दरिस पाया ॥ श्री० ॥ १ ॥ प्रभु पंच कल्याणिक जाया । च्युति जन्म वैराग्य जराया ॥ वर नाण परमपद पाया। मंगल चंपामें गवाया ॥ श्री० ॥ २ ॥ कल्याणिक भूमि जाणी । तिरथ में चंपा गवाणी । नगरी में वन गई राणी । ए महावीरकी वाणी ॥ श्री० ॥ ३ ॥ तीरथकी महिमा जाणी । संघ यात्रा करे गुणखाणी । भूमरुल महिमा गवाणी । तीरथ नेटो जी प्राणी ॥ श्री० ॥ ४ ॥ यात्रा करनेकुं आवे | देस पूरवसे संघ ब्यावे । ताकी सोना कहुं में जावें । सुतां श्रद्धा चित्त आवे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ शहेर मुर्शिदाबाद कहाया | जिहां वसे धनपतसिंह राया । राणी मेनाकुमरी जाया । सुत महाराज बाहादुर राया ॥ श्री० ॥ ६ ॥ मंत्रि बुद्धी के बलिया । गोपीचंद बाबु मलिया | दुल्लास बाबु मति जागी। संघ नक्ति करे वरुजागी ॥ श्री० ॥ ७ ॥ यात्राकी मरजी कीनी । तव गुरुसें आज्ञा लिनी । संघपति तिलक पढ़ लीया । सूरि विजयकमलने दीया ॥ श्री० ॥ ८ ॥ संघवीकी सोना नारी ।
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१६६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतसंघवण कस्तुरकुमारी । हे पुन्यकी खुवी न्यारी। चमके सकल नरनारी ॥ श्री० ॥ए। नेरी नंना वजमावे । तब संघ सकल मिल आवे।गौरी मंगल गवरावे । सब जन चमते जावे ॥ श्री० ॥ १० ॥
ओगणिसें त्रेसह जाणो | मगसर शुदि नवमी वखाणो । शनिवारने सिद्धी जोगे । संघ निकसे सुख संजोगे ॥ श्री० ॥११॥ सपादशत शकटानी। हस्ति घोमे गुलतानी । शेठ साहुकारने पाला । संघ लोक घणा मसराला ॥ श्री० ॥ १५ ॥ सूरि विजयकमल गुण दरिया। एकादस मुनि परिवरिया । उपदेस करे गुणरागी । जाके धरम वासना जागी ॥ श्री० ॥ १३ ॥ है चैत्य प्रजुका संगे। संघ दरिसण करे मनरंगे । ऐसी विधि संघकी जाणो । फेर नहीं मिले एहवो टाणो ॥ श्री० ॥१४॥ अनुक्रमे चंपामें आया। ओगणिसें त्रेसठ जाया । पोसवदि एकादशी लीधी। बुधवारे यात्रा कीधी ॥ श्री० ॥ १५ ॥ यात्रा करी आनंद लीया । नरनव बहु सफला कीया। आतम आनंद रस लीया। कहे वीर विजय जर पीया ॥ श्री० ॥ १६ ॥
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॥श्रीदस्तिनापुर स्तवन ।
॥राग पीलु ॥ चलोरी चलो तुम चमते रंगे । तीरथ यात्रा करो मन रंगे | तीरथ जात्रा जिनवर नांखी। इन बातनमें शास्त्र हे शाखी ॥ च ॥१॥ जिनवर कल्याणिक जिहां थावे । तीर्थकर तीरथ फरमावे । जैन तीरथकी महिमा जारी । सब जीवनकुं हे हितकारी ॥ च ॥ २॥ हथिणापुर में हरष घनेरा | छादश कल्याणिक हे नलेरा । शांति कुंथु अर जिनवर केरा | दरश करनसें कटे नव फेरा ॥च० ॥३॥ तीरथ जात्रा विधिशु कीजे । मनुष्य जनमका लाहा लीजे। धरम करनमें देरी न कीजे । अमृत रस सोही ऊटपट पीजे ॥ च ॥ ४॥ ए तीरथकी महिमा जारी। सुनके संघने किनी त्यारी। शहेर अंबालासें संघ चलियो । मनमोहन मार्नु मेलो मलियो ॥०॥ ॥ ५ ॥ श्रावक जन सब संघकी सेवा | करता नक्ति शिवसुख लेवा । अनुक्रमें हथिणापुरमें आया । धवल मंगल आनंद वरताया ॥ च०॥ ॥ ६॥ षु रस निधि इंषु वत्सरमें। चैत मास के कृष्ण पक्ष में । करमवाटी पंचमी दिन आया।
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१६८ श्रीमद्वीर विज्योपाध्याय कृतजात्रा करी सब आनंद पाया ॥ च० ॥ ७॥ तीरथ सेवा नित्य नित्य कीजे । फेर संसारमें नाही नमीजे । वीरविजय कहे सुकृत कीजे । आतम आनंद मुजको दीजे ॥ च ॥ ७ ॥
+- +-- ॥ श्रीवीकानेरमंमन रुषन्न जिन स्तवन । ॥ तुम चिदघन चंद आनंद लाल, ए देशी ॥
तुम आदि जिनंद मारु देवानंद । अब शरण लही प्रजु थारी ॥आंकणी॥ प्रथम नरेश्वर प्रथम जिनेश्वर प्रथम नये उपगारी मोराण ॥ तु॥ १॥ लोक धरम मरजादाकारी । जुगलां धरम निवारी । मोराण ॥ २ ॥ संजमधारी वरस बिनआहारी । विचरया उग्र विहारी । मोरा ॥ तुप ॥३॥ परिसह फोजकुं वेग विमारी । शान खमग कर धारी ॥ मोराण ॥ तु ॥ ४ ॥ शुद्ध उपयोगी अद्लुत जोगी। विषय वासना वारी॥मोरा० ॥ तु ॥ ५॥ अष्टापदपें आसन धारी । वरिया सदा शिव नारी ॥ मोराण ॥ तुं० ॥ ६॥ प्रजुकी महीमा मुखसें कहिवा । जिजमली गई हारी ॥ मोरा ॥ तु० ॥॥ बीकानेरमें आदि जिनंदकी।
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स्तवनावली। मूरति मोहनगारी ॥ मोरा० ॥ तु० ॥ ७॥ वीरविजय कहे प्रजुजी नेटी । उरगति फुःख निचारी ॥ मोरा॥ तु ॥ ए॥
वीकानेर समोसरणका स्तवन । ॥ अपने पदको तजकर चेतन, ए देशी ॥
देखो प्रजुका अजब महोच्छव । कैसा गठ जमाया है। बीकानेर में संघ सकल मिल । समोसरण विरचाया है ॥ दे ॥॥१॥ क्या कहुँ मंम्पकी शोना । कहे विन कोउ न रहेता है । देवलोक का एक निशाना । देखन वाला कहेता है ।। देव ॥२॥ चौमुख समोसरण में सोहै। जिनवर मुज मन नाया है । दरिशण वाहाने देखो प्रजुकुं । कैसा ध्यान लगाया है। दे० ॥३॥ चामर न सिंहासन सोहै । जगमग ज्योति सवाया है । देख देखके प्रजु दरिशणकुं । नगर लोक सव आया है ।। दे० ॥ ४ ॥ अजितनाथ प्रजुकी महिमा का । चमतकार ए पाया है। बीकानेर में आज अनोपम । धवल मंगल वरताया है ॥ देव ॥ ५ ॥ गान तान सव साज मा.
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श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृत-
नसें । मेरी नाद बजमाया है । तन मन धनसें योच्छव करके। संघ सकल हरखाया है ॥ दे० ॥ ६ ॥ सपरिवारे विजय कमलसूरि । चतुरमास जब आया है । वीकानेर में प्रोच्व महोच्छव । अधिक अधिक फलकाया है ॥ दे० ॥ ७ ॥ योगणिसें समसव यशो सुदकी । पूर्णमासी दिन आया है । वीरविजय कहे प्रभु दरिशणसें ।
तम आनंद पाया है ॥ दे० ॥ ८ ॥
प्रोसिया नगरी श्रीवीर जिन स्तवन । ॥ ए अरजी मोरी सैयां, ए देशी ॥ महावीरजी मुजरो लीजे । सेवककुं शरणा दीजे ॥ माहा० ॥ कणी ॥ तुं निष्कारण उपगारी | चंदनबालाकुं तारी । ऐसी नजर प्रभु कीजे । सेवककुं शरणा दीजे ॥ १ ॥ चंमको सियो करमसें जारी । की यो स्वर्ग तो अधिकारी । युं बांह पककर लीजे ॥ सेव० ॥ २ ॥ संगमपें करुणा कीनी । उपसर्ग में दृष्टी न दीनी । प्रभु तारिफ केती कीजे ॥ सेव० ॥ ३ ॥ तुं ओसिया मंगन स्वामी । पुन्ये प्रभु दरिशण पामी । कहे वीरविजय संग लीजे | सेवककुं शरणा दीजे ॥ ४ ॥
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स्तवनावली |
अथ जेसलमेर जिन स्तवन । जिनराज वधावोरे माणक मोती
हीरा लालसुं, ए देशी ॥
जेसलमेर जावोरे जात्रा करण जवी जावसुं ॥ जिनराज जुहारोरे जाव जगती बहु मानसुं ॥ कणी ॥ जेसलमेर में जिनवर केरा, चैत्य अनेक जलेरा । चैत्य चैत्य में सुंदर शोने, अरिहंत बिंव घनेराजी ॥ जे० ॥ १ ॥ जैन तीरथ जेसलमेर जाणी । सरधा दिल में आणी । देश देशके जात्री आवे । पुन्यवंत बहु प्राणीजी ॥ जे० ॥ २ ॥ योगसेिं समस मगसर सुदकी । एकादशी सोमवारे | वीकानेरसें सघ निकलियो । सरव कुटुंब परिवारेजी ॥ जे० ॥ ३ ॥ चरुते रंगे अति जबरंगे । संघ चतुरविध चाले । सपरिवारे विजयकमल सूरि । धरम देशना आलेजी ॥ जे० ॥ ४ ॥ संघवी सिवचंद शेठ सुराणा । संघवी पद हे पुराणा । जेसलमेरकी जात्रा जातां । आनंद दरप जराणाजी || जे० ॥ ५ ॥ विकट पंथने विकट उजागी । क्या कहुं उनकी कहाणी | कांटा जाता जुरुट कांखरां । पूरण न मिले पाणी
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१७२ श्रीमवीरविजयोपाध्याय कृतजी ॥ जे० ॥ ६ ॥ गम गममें गाम न आवे । जो आवे तो ढाणी। संघ मुकाम करे जंगलमें। देरा तंबू ताणीजी ॥जे० ॥७॥ दिनरात रस्तामें पहेरा । देता चोंकीवाला । माढी मुंबाने मसराला । हाथमें बंदूक नाला जी ॥ जे ॥ ७॥ अनुक्रमे कठिण पंथ ओलंघी । विघन रहित सब जावे। पोकरण फलोधी. जात्रा करके । जेसलमेरमें आवेजी ॥ जे ॥ए । ओगणिसें समसठ पोष शुदकी। दशमी मंगलवारे | जेसलमेरमें जिनवर नेट्या | आनंद मंगला च्यारेजी॥जे ॥१॥ तन मन धनसे जात्रा कीजे। नरजव लाहो लीजे। वारवार अवसर नहीं आवे । सदगुरुसे सुणिजे जी ॥ जे ॥ ११ ॥ करमरायने विवर दीयो जब । नाग्योदय नया बलिया । वीरविजय कहे आज हमारे । मनका मनोरथ फलियाजी ॥ जे ॥ १२ ॥
॥श्रीअंतरिद पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥
मति विसरो पास जिनेश्वरकुंमति विसरो। मति विसरो अंतरिक्ष पारशकुं ॥ मति ॥ आं
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स्तवनावली ।
१७३ कणी ॥ अश्वसेन वामाजीके नंदा । चरण सेवे चौसठ यंदा ॥ मति ॥ १॥ आसन धारे अधर जिणंदा । पंचमकालमें सुखकंदा । मति ॥५॥ सोहे अंतरिद पाश जिणंदा | ज्युं गगने सूरज चंदा ॥ मतिः ॥३॥ चमतकार चौदिशमें चंमा॥ थाश पूरण सुरतरुकंदा ॥ मति ॥ ४ ॥ ज्यु कमला दिलमें गोविंदा । ज्यु चकोर मनमें चंदा ॥ मति ॥ ५ ॥ त्युं मुज मनमें पाशजिणंदा । नित्य रहो हरो मुख दंदा ॥ मति ॥६॥ जाग्यहीन प्रजु में मतिमंदा । नजर करो जिनवर इंदा ॥ मतिः ॥ ७ ॥ रतनपुरी मालवमें सोइंदा । शेठ मुंगरसी गुणकंदा || मति ॥ ७ ॥ संघ निकाला हरप आनंदा । पुन्यवान् परगट वंदा ॥ मतिः ॥ ए | ओगणिसें अमसठ वर्षे आनंदा । माघ कृष्ण द्वितीया नंदा ।। मति ॥ ॥ १० ॥ वीरविजय कहे पास जिणंदा | नेटी जया परमाणंदा ॥ मति० ।। ११ ।।
॥ श्रीअजित जिन स्तवन ॥ अखियां तम्फ रही मेरी आजके । दरि
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१७४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- शण देव दीजे । अखियां शांत कीजे ॥१॥ अखियां बिन दरिशण जिनराजके । फुर फुर पानी वरसे । दरिशण खास तरसे ॥२॥ अ. खियां काल अनंते बादके । तुम बबी आज देखे । सब जये काज लेखे ॥३॥ अखीयां सफल नयी मेरी आज । अजित जिनराज नेटे । सब ही पाप मेटे ॥४॥ अरजी वीरविजय की एह । अजित जिनराज लीजे। शिवपुर राज दीजे ॥५॥
+ he-- ॥श्रीजगमीयाममन आदिजिन स्तवन ॥
॥ श्रीराग ॥ ___ आदि जिन मूरति नयनानंद ॥ आंकणी॥ क्या तारीफ करुं प्रनु तुमरी । दरिशण दिवे परमाणंद ॥ आप ॥ १ ॥ और सबी देवनकी बबी आगे । तुम बबी प्रजुजी सुखको कंद ॥ था ॥२॥ सचित् आनंदरूप तुमारो । योगीश्वर सब ध्यान करंद ॥ आ ॥ ३ ॥ पारंगत प्रजु तुम गुणवृंदको । त्रिजुवनमें कोण पार . हंद ॥ आण ॥४॥ शांत रसमय मूरति नेटी। नविजन नव संसार तुरंत ॥ आ० ॥ ५॥ ऊगमीयाममन फुःखखंमन । काटो कठीण करम
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स्तवनावली |
१७५
फंद ॥ ० ॥ ६ ॥ वीरविजय कहे आदि जिनेश्वर । यो प्रभुजी परमाणंद ॥
० ॥ ७ ॥
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|| श्रीगंधारमंन श्री चिन्तामणिपार्श्वजिन स्तवन ॥
॥ मेरे तो चिन्तामणि प्रभु पासजी का काम है जी ॥ कणी ॥ जलधि किनारे जारा, नगर गंधार सारा । चिंतामणि पास प्रभुका, जहां वा धाम है जी || मे० ॥ १ ॥ मूरति प्रभुकी मीठी, ऐसी वी नाही दीठी । शान्त सुधारस केरा, मानुं एक गम है जी ॥ ० ॥ २ ॥ 5पम कालमें स्वामी, दुःखकी है नाही खामी ॥ श्रानंद समाधि दीजे, मुजे वमी हाम है जी ॥ मे० ॥ ३ ॥ अखूट खजाना तेरा, थोमा बहोत करदो मेरा । सुख जनकुं देना वेतो, प्रभु तोरा काम है जी ॥ मे० ॥ ४ ॥ विरूद्ध संजाल लीजे, मेरा तेरा नाहीं कीजे । तरण तारण ऐसा, प्रभु तोरा नाम है जी ॥ मे० || ५ || वीर कहे सीर नामी, सुनो हो गंधारस्वामी ॥ देना हो तो ज्ञान देदो. पुजा नही काम है जी ॥ ० ॥ ६ ॥
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१७६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतनिधि रस निधीन्दु वर्षे, पोस मासे सित पदे । चतुर्दशी दिन लेटे, एही अजीराम है जी॥ मे ॥ ७ ॥
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श्रीसीनोरममन सुमति जिन स्तवन ।
सुखकारी, सुखकारी, सुखकारी, कृपानाथ हो जाजं वारी, सुमतिजिन सुमति सेवकने दीजियेजी ॥ ए आंकणी ॥ दरिसण देव दीजे, कुमतिकुं पूर कीजे ॥ एही मागुंडं हे दातारी ॥ कृपा ॥१॥ कुमतिने कामण कीया, मुजको नरमाई दीया। श्नसें बगेमा दो हे सरदारी कृपा ॥२॥ पंचम अवतार लीया, दुनियांकुं तार दीया ॥आशा पुरो कहूं पोकारी ॥ कृपा ॥३॥ निरादर नाही कीजे, बिरूद संजाल लीजे। तरणतारण बो हे अधिकारी || कृपाण ॥ ४॥ सीनोर मंमन नामी, सुमति जिनेश्वर स्वामी ॥ बेनी उतारो प्रजुजी हमारी ॥ कृपा ॥५॥ निधि रस निधि चंदा, संवत् है सुखकंदा । वीर विजयकुं आनंदकारी ॥ कृपा ॥६॥
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पदानि ।
॥ अथ पदानि ॥ म राजुल संबंधी पढ़ | ॥ राग पंजावी ठेको ॥
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पीया कारण गढ गीरनार चली । राणी राजेमति व्रत चित्त धरी ॥ पी० ॥ १ ॥ अधिक प्रीत रस रीत जानके । नेम प्रिया कर सीर धरी ॥ पी० ॥ २ ॥ तप जप संजम ध्यानानलसें । करम इंधन परजाल चली ॥ पी० ॥ ३ ॥ नेम राजुलकी प्रीत पुराणी । अंतमें ज्योतीसें ज्योत मीली ॥ पी० ॥ ४ ॥ प्रह उगमते दंपती नामे । वीरविजय मन रंग रली ॥ पी० ॥ ५ ॥
॥ पढ़ वीजुं ॥
मोरे मंदिरवा प्रभुजी न आये । नाये ऐसा जडुपति रथ फीराये ना हाथ मिलाये || मो० ॥
कणी || पशुवन प्रभु करुणा कीनी । क्या तकसीर मेनुं बम दीनी ॥ मो० || १ || नव जव केरी प्रीत जो तोमी । सोकन शिव वधूसें दिल जोरी || मो० ॥ २ ॥ राजुल राग द्वेषको ठोकी | संयम लेइ करम बंध तोरी || मो० ॥ ३ ॥ मन
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१७८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतमान्यो मोक्ष सुख पाई। वीरविजय कहे धन्य कमाई ॥ मो० ॥४॥
पद त्रीजुं।
॥ मालकोश ॥ मेनुं बमके गिरनारी गये मेरे सांही । में जुली नहीं जब पकमती दों बांही ॥ मे ॥१॥ था दिलों में दगा तव क्युं कीनी सगाई। मालिक मैंने कीनी क्या ऐसी बुराई । मे ॥२॥ फूही है बुरी है दुनियांकी सगाई। वैराग्य लियो है गिरनारी जाई ॥ मे ॥३॥ बमा तप करके मोद पद पाई। कहे वीर विजय धन्य उनकी कमाई ॥ मे ॥४॥
॥ अथ वैराग्य पद॥
॥राग सारंग ॥ ' घट जागी ज्ञान वैराग्यरी। तुम बंमो माया जालरी ॥ घट ॥ आंकणी ॥ एक सहस्र अंतेजर जाके । रूप रूपके आगरी । मिथिला राज्य बोमके निकसे । राज झषि नमि रायरी ॥ घ॥ ॥ १ ॥ रूपकी संपद सुरपति बरनी । चक्रि
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मझाया।
१७. सनतकुमाररी । छिनमें रोग नये निज तनमें । देखो कर्मकथा वरी ॥ घ० ॥ ५ ॥ देखत देखत सवही विनसत। तन धन अथिर स्वनावरी ।
ऐसी नावना नावतही मन । ठोम लियो वैरा__ ग्यरी ॥ १० ॥३॥ सच्चा त्याग किये विन कबहु ।
पावत नहीं नव पाररी । पर परिणती त्यागो चेतन । वीर वचन चित्त धाररी ॥ घ० ॥ ४॥
{t अथ सज्झायो
मुनिगुण सज्जाय । हां देखो मुनिवर ममता मारी । नये पंच महाव्रत धारी रे ॥ हां देखो ॥ आंकणी ॥ हिंसा जुड़ चोरीने वारी । ब्रह्मचर्य व्रत धारी रे । वाह्यान्यंतर ग्रंथी निवारी । लोग तरसना ठारी र ॥ हां दे० ॥१॥ तप शोपित तनु कृशधारी । जगजन आनंद कारी रे । पूजक निंदक दो शमकारी । नजते उग्र विहारी रे ॥ हां देश ॥ २॥ राग द्वेपकी परिणती वारी । परिसह फोजकुं मारी रे । गुणश्रेणि गुण स्थानक धारी। ध्यानारुढ जय वारी रे ॥ हां दे० ॥३॥ शोक
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१७८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतमान्यो मोद सुख पाई। वीरविजय कहे धन्य कमाई ॥ मो ॥ ४ ॥
पद त्रीजुं।
॥ मालकोश ॥ मेनुं बमके गिरनारी गये मेरे सांही । में नुली नहीं जब पकमती दो बांही ॥ मे ॥१॥ था दिलों में दगा तब क्युं कीनी सगाई। मालिक मैंने कीनी क्या ऐसी बुराई । मे ॥२॥ फूही है बुरी है दुनियांकी सगाई। वैराग्य लियो है गिरनारी जाई । मे ॥३॥ बमा तप करके मोद पद पाई। कहे वीर विजय धन्य उनकी कमाई ॥ मे ॥४॥
॥ अथ वैराग्य पद ॥
॥ राग सारंग ॥ ' घट जागी ज्ञान वैराग्यरी । तुम बमो माया जालरी ॥ घट ॥ आंकणी ॥ एक सहस्र अंतेउर जाके । रूप रूपके आगरी । मिथिला राज्य बोमके निकसे । राज ऋषि नमि रायरी ॥ १० ॥ ॥ १ ॥ रूपकी संपद सुरपति बरनी । चक्रि
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सज्झायो ।
१७९ सनतकुमाररी । जिनमें रोग नये निज तनमें । देखो कर्मकथा बरी ॥ घ॥२॥ देखत देखत सबही बिनसत । तन धन अथिर स्वजावरी । ऐसी नावना नावतही मन । बोम लियो वैराग्यरी॥ ॥३॥ सच्चा त्याग किये बिन कबहु । पावत नहीं नव पाररी । पर परिणती त्यागो चेतन । वीर वचन चित्त धाररी ॥ घ० ॥ ४॥
8 अथ सज्झायो
मुनिगुण सज्जाय। हां देखो मुनिवर ममता मारी । नये पंच महाव्रत धारी रे ॥ हां देखो ॥ आंकणी ॥ हिंसा जुड़ चोरीने वारी । ब्रह्मचर्य व्रत धारी रे । वाह्यान्यंतर ग्रंथी निवारी । लोग तरसना गरी रे ॥ हां दे ॥१॥ तप शोषित तनु कृशधारी । जगजन आनंद कारी रे । पूजक निंदक दो शमकारी । जजते उग्र विहारी रे ॥ हां देख ॥२॥ राग वेषकी परिणती वारी । परिसह · फोजकुं मारी रे । गुणश्रेणि गुण स्थानक धारी। ध्यानारूढ नय वारी रे ॥ हां दे ॥३॥ शोक
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१८० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतसंतापको दूर निवारी । एकमगनता धारी रे । दिनमें निज आतमको तारी । जजते नवदधि पारी रे ॥ हां दे ॥ ४॥ ऐसें मुनिवर हे व्रतधारी । आतम आनंद कारी रे । वीर विजय कहे हुँ बलिहारी । नमुं नमुं सो सो वारी रे ॥ हां दे ॥५॥
-गज गुरुदेवकी सज्छाय।
॥रेखता ॥ विजे आनंद सूरि राया। पूरवले पुन्यसें पाया। चतुरविध संघमे धोरी । गुरुजीसें वंदना मोरी ॥ वि० ॥१॥ गुणषट्त्रिंशके धरता। अहो उपगारके करता । धरमकी टेक हे नारी । गुरु है बाल ब्रह्मचारी ॥ वि० ॥ २॥ गुरुजी ज्ञानके धरता । कुमतके मानको हरता । देखके वादी सब मरता। न सन्मुख पेर को धरता ॥ वि० ॥ ॥३॥ शीतलता चंउमा जैसी। मेरु सम धीरता ऐसी ॥ सायर गंजीर नहीं ऐसा। गुरु गंजीर है जैसा || वि० ॥ ४ ॥ कंचन और काच सम माने।नारीको नागिणी जाने || अंतरगत मोह सब बारी । गुरु उदासीनता धारी ॥ वि०॥५॥ऐसे गुरु
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सज्झायो ।
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राजजी केरा । चरणमें चित्त हे मेरा । सेवक कहे वीर कर जोडी । लंघावो पार मुज बेमी ॥ विजे० ॥ ६ ॥
कर्मविपाक सज्जाय । ॥ अडल छंद ॥
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श्रीगुरु विजयानंद चंद वंदन करी । सुनो करमकी बात कहुं गुरुसे लही । सब दुःख देवनहार करम दुष्कृत तजो । शासन के सिरदार श्री वीर चरण जजो ॥ १ ॥ तीर्थकर बल चक्री हरि नृप जे थया । कर्मणे वस तेह सवी संकट लीया । आदीसर अरिहंत संत अनंत बली । एक वरस बिन आहार मुख त रिषा सही || २ || विप्र घरे अवतार वीर विजूने लीया । करम न बोने लिगार पूरव जो मद कीया । चक्री सनतकुमार रोग बहुला नही । करमती गत जाय कहो ते किम कही ॥ ३ ॥ लक्ष्मण राजन रामचंद्र सीता सती । बार वरस वनवास दुष्ट करमगति । द्वारावती जयी दाहसें कृष्ण जादवपति । लंकाचष्ट लंकेश करमगति नहीं मिटी ॥ ४ ॥ पांशुराय के पुत्र पंच पांव जला । हारी द्रुपदी नार प्रगट खेमी जुवा । बार वरस वनवास दासपणे
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१८२ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- ते रही । करम न करशो कोई.बात प्रजुने कही ॥५॥ सती सुजना नार पूजी अंजना सती । करम तणे परजाव कलंक चमयो अति । चारों चौट बिच विकी चंदना सती । करम विना कहो कौन करे ऐसी गति॥६॥ राजा हरिचंद निच घरे नोकरी करे। राणी सुतारा निच घरे पानी नरे। सती सीरदार दोनुने दुःख लघु। करम मरम सब जाणजो सिद्धांते कां ॥७॥ ऐसें करम. विपाक देखी जवसें मरो । दुखके देवनहार करम कोई ना करो । ए उपदेश है लेश नवी जो चित्त धरे । वीरविजय कहे तेह नवी नवजल तरे ॥ ७ ॥ संवत् ओगनिसे साल तेवंजा मन रली । आसो सुदिकी त्रिज तिथी नयी निरमली। नगर स्यारपुर बिच चौमासुं रही करी। करम कथा कही एह सुनो सब दिल धरी ॥ ए॥
॥त्याग सज्काय ॥ तुम बोमो जगतके यारा | श्नसें नहीं हो निस्तारा ॥ आंकणी ॥ धन कण कंचनकी कोमी। गये वझेबमे सब ठगेमी । सुत मात तात अरु जात। जगतके छाप, अंतमें न्यारा ॥ इन ! १ ॥ ए
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सज्झायो।
१८३ दुनियां दुखकी खानी। जिहां राग द्वेष है पानी। ए महावीर की वानी। हे खुरक स्वादका स्वाद, नहीं थाबाद, बमा दुख नारा ॥ श्न ॥२॥ बम मोह पास गले मारा। प्रजु नाम पकमले प्यारा । करले गुरु ज्ञान विचारा । ए सो बातन की बात, रहेगी लाज।सवी सुख सारा॥श्न॥३॥ वैराग्यकी बातां दाखी। विषयों में म करो फांखी। कहे वीर विजय में शाखी । है सब दुखोंका मूल, नहीं अनुकूल, मो मेरे प्यारा ॥ श्न ॥४॥
॥ श्रीनेम राजुल सज्काय ॥ तूं उमदे स्वामी शिव शोकनको संग ॥ आंकणी ॥ बहोत बरातसें व्याहन आये । ते अब क्यु पावत नंगरे ॥ तु ॥ १ ॥ सतीव्रत धारी में बाल कुमारी । ते करले मुजसु रंगरे ॥ तुं ॥ ॥ शिव रमणिकी कुमी हे करणी । ते परणी सिझ अनंतरे ॥ तुं०॥ ३ ॥ कामणगारी मुख देन हारी। ते करती रंगमें नंगरे ॥तु॥४॥ मोमन मतियां तो हमरी क्या गतियां । बतियां होत हे नंगरे ॥ तुं० ॥ ५॥ विनती न धारी
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१८४. श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- चली गिरनारी । राजुल नेमी संगरे ।। तुंग ॥६॥ वीरविजय कहे नेम ने राजुल | पाये सुख अनंगरे । तुं ॥७॥
॥ अथ गुंदली ॥ ॥ सेवो नवियण जिन त्रेवीसमोरे, ए देशी ।
गुरु मारा गाम नगर पुर विचरंता रे । बहु शिष्य ने परिवार । ज्ञान अमृत जले करी सींचतारे। हिंसता नविक कमल संघात । हुं बलिहारी ए गुरुराजनीरे ॥ आंकणी ॥ १॥ अवसर क्षेत्र फरसना करीरे । पालीताणा नगर मोकार । सिझदेत्र सिकाचल नेटवारे । आव्या आतमराम अणगार ॥ हुं० ॥२॥ पंच समिति तिन गुप्ति बिराजतारे । धरता धरमतणुं एक ध्यान । हरता मोह दशा महा फंदनेरे । करता ज्ञान ध्यान एक तान ॥ हुँ ॥३॥ पंचम कालमें कुगुरु सोहलारे । दोहला सुगुरु तणा देदार । पामी नव्य जीव तुमे सजिलोरे। नगवती सूत्र तो अधिकार ।) हुँ । चातकने मन जलधर चाहनारे । कामनीने मन कंथनी चाह । तेम मारा
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गुंहलीओ। गुरुजीनी वाणी उपरेरे । श्रोता जननी प्रीति अथाह ॥ ९ ॥५॥ गुणवती सहीयर सब टोले मलीरे । आवती गुरुजीने दरबार । चजगति चूरण साथियो पुरतारे । गावता गुंहली गीत रसाल ॥ हुँ। ॥ ६ ॥ गुरुजीना चरणकमलनी उपरेरे । नमरपरे मुनिगणनो वृंद ! लेता सद्गुण समी वासनारे। देता वीरविजयने आणंद॥हुं॥७॥
॥ गुंहली बीजी॥ सुनोरे सखी एक वीनतीरे । आज आनंद अपार । चालो वंदन चलिये ॥ आंकणी ॥ गाम नगर पुर विचरंतारे।बह शिष्यने परिवार ॥चा॥ ॥१॥ अनुक्रमे आवी बिराजीयारे । राजनगरके मोकार ॥ चा ॥ आतमराम आनंद विजेजी । अनुपम नाम रसाल ॥ चा ॥२॥ पठन करावता शिष्यनेरे । झान ध्यान एकतान ॥ चा० ॥ झान क्रिया करी शोनतारे | ए गुरु गुण मणिमाल || चाण ॥३॥ मधुरी दिये गुरु देशनारे । जव जय जणहार ॥ चा ॥ सुणतां समकित उपजेरे । मिथ्या तिमिर विनाश ॥ चा० ॥ ४ ॥
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१८६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- संघ सकल आग्रह करी रे । विनती करे मनोहार ॥ चा० ॥ नव्य जीव प्रतिबोधवारे । गुरुजी करे चौमास ॥ चाण . ॥ ५॥ संघ सकल हवे आदरेरे । जिन नक्ति बहुमान ॥ चा ॥ नवनवी पूजा प्रनावनारे । अाई महोच्छव गठ॥ चा० ॥ ६ ॥ समकीत नीरमल जेहथीरे । तेह तणा बहुमान ॥ चा० ॥ ओच्छव रंग वधामणारे। वा ले जय जयकार || चा ॥७॥ सहीयर सवी टोले मलीरे । आवे गुरु दरबार ॥ चा ॥ चहुं गति चुरण साथीयोरे । करती गुरुने पाय ॥ चा ॥ ७॥ गुणवती गावे घौवलीरे । नाव नले उदार ॥ चा० ॥ राजनगरमें हुई रहारे । आनंद मंगल गठ ॥ चा ॥ए ॥ उत्तम गुरु गुण गावतारे | नांगे नवनी पास ॥ चा ॥ वीरविजय मुनि हुई रहारे । आतम समीके दास ॥ चा० ॥ १० ॥
॥ गुंदली त्रीजी ॥ ॥ जिणा करमर वरसे मेह निंजे मारी
चुंदमली, ए देशी॥
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१८७
___ मुंहलीओ। सखी अंतरगतनी वात सुण सोनागीरे । गुरु गुण गावाने आज मुने रढ लागीरे ॥ आंकण। ॥धन गुरु दाताने धन गुरु देवा। विजय आनंदसूरिरायरे। धन तेहना परिवारनेरे कांई। लली लली लागुं पाय गुरु उपगारीरे । देश शुझ धरम उपदेश उनियां तारीरे । सखी० ॥१॥ पंच महाव्रत लही करिरे । पामी गुरु आदेसरे । पंजाब देश पावन कीयो गुरु । पुरी मननी टेक पुरण प्रीते रे । कीयो ढुंढकनो उच्छेद आगम रीतेरे ॥ सखी० ॥२॥ मरुधर मालव देशमारे । मुनि मंगलनी साथरे । मधुरी वाणीये गाजतारे कांश । करता बहु उपगार आतम हेतेरे । गुरु षटकायके प्रतिपाल संजम लेखेरे ॥ सखी० ॥३॥ हानि गुरुजीना झानथीरे गुण परमतमें थायरे । राणीजीनाराजथोरे । कांश पुस्तक नेटणुं श्राय गुरुने संगेरे । थयो महीमा धरमनो जेह चमते रंगेरे ॥ सखी॥ ॥४॥ गुणवाली गुजरातमारे । ग्राम नगर पुर जेहरे । गुरुजी हमारे गुण बहु कीधो । दीधो धरम उपदेश सांजली बुझारे । केश नव्य जीवना थोक संजम लीधारे ।। सखी॥५॥ सद्गुरु सिद्धाचलजी नेटी । जनमनो लाहो लीधरे । संघ
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१८८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतचतुरविध मली करीरे । सूरि पदवी दीध गुरुजी ने रंगेरे । ओगणिसें बेतालीस अधिक उमंगेरे॥ सखी ॥ ६॥ एम अनेक गुण गुरुजी केरा कहेतां नावे पाररे । पंचमे आरे परगट करता । गुरुजी बहु उपगार एहने सेवोरे । ए गुरुजीनो संयोग मोदनो मेवोरे । स० ॥ ७॥ दरजावतीमें रही चौमासुं ओगणिसें बेतालीसरे । वीरविजय कहे सेविये रे काई । ए गुरु विसवावीस मनने जावेरे। कांश ए संसारनुं मुख फेर नहीं आवेरे ॥ सखी० ॥ ७॥
॥ गुंहली चोथी॥ लघुवय जोग लीयोरे, ए देशी ॥ विजयानंद सूरिरायनारे । केतां करूंरे वखाण । गुरुजीये ज्ञान दियोरे । नव्य जीव प्रतिबोधवारे । मार्नु जग्यो नाण अघ तम दूर कीयोरे ॥ गुण ॥१॥ पंच महाव्रत पालतारे मालता निजगुण मांहि ॥ गु०॥ पर पदारथ जालमारे । गुरुजी पेसता नांहि ॥ गुण ॥२॥ अध्यातम रस जीलतारे । पीलता पाप करंग ॥ गुण ॥ अनुभव ज्ञानथी जाणतारे।
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१८९.
गुंहलीओ । मोह दशा महाकंद || गु० ॥ ३ ॥ अशुभ योग निवारतारे करता करम निकंद ॥ गु० ॥ स्वपर सत्ता जावतारे । चैतन्य जनो संग ॥ गु० ॥ ४ ॥ वस्तुस्वाव निहालतारे | एक अनेकनो रंग ॥ गुण ॥ नित्यानित्य विचारता रे । नेदानेदनो जंग || गुo || २ || तत्त्वतत्त्वने खोजतारे । खेचता निज सुख चंग || गु० ॥ ज्ञान क्रिया रस जीलतारे । मनमें धरिय उमंग ॥ गु० || ६ || करी उपगार भूमंगलेरे । लीधो लाज अनंग ॥ गु० ॥ आप तर्या पर तारिनेरे । स्वर्गि थया सुख कंद |||| ७ ॥ पुन्यसंयोगे पामीये रे । एहवा गुरुनो संग | गु० ॥ वीरविजय कहे गुरु तणोरे | रहेजो अविचल रंग ॥ गु० ॥ ८ ॥
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गुंदली पांचमी ।
|| कंगना खुलदानही महाराय, ए चाली ॥ विजयानंदसूर महाराय | जिनके नाम सें मंगल थाय ॥ वि० ॥ कणी ॥ समता सागरके विसरामी | कंचन कामिनिके नहीं कामी ॥ नामी सव दुनियां में थाय ॥ वि० ॥ १ ॥ संजम मारगमें बहुरागी । ठोक परिग्रह नये वैरागी ॥ त्यागी
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१९० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- जगमें नाम धराय ॥ वि० ॥ ५ ॥ सब कुपंथ त्याग कर दीया । अपना जनम सफल कर लीया । पूजो ऐसें गुरुके पाय ॥ विण ॥३॥ सत उपदेशही सबको दीया । सत मारग सो थापन कीया । ऐसे जग उपकारी थाय ॥ वि० ॥४॥ चलो सखी दरिशनको जावें । देख वदन आनंद जर पावे । ऐसे नहीं कोई राणे राय || वि ||५|| सखियां मिल आनंद नरपूरे । गुरुचरणोमें गुंहली पुरे । आनंद वीर विजयको थाय | वि० ॥ ६ ॥
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॥श्रीगौतम स्वामीकी गुंदली ॥
॥प्रथम जिनेश्वर मरुदेवी नंदा, ए देशी ॥ गौतम स्वामी शिवसुख कामी । गुण गाउं सीर नामी रे । गुरु गौतमस्वामी ॥ ए आंकणी ॥ जीव सत्ताका संशय पमिया । वीरचरण जर अमियारे ॥ गुण ॥१॥ हुवा गणधारी शंका निवारी । प्रजुजीये त्रिपदी आलीरे ॥ गुण ॥२॥ चौद पूरवकी रचना कीनी। जग जश कीरती लीनीरे ॥ गुण ॥३॥ लब्धि बलिया अष्टापद चमिया । वीरवचन रस नरियारे ॥ गुण ॥४॥
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गुंहलीओ।
१९१ गुरुजी जात्रा करके वलिया । पन्नरसें तापस मलियारे ।। गु० ॥ ५॥ संजम लेवा विनती कीनी। गुरुजीयें दिदा दीनीरे ॥ गुण ॥६॥ वीर प्रजुका दरिशण चलिया । केवल लदमी वरियारे ॥ गुण्॥ ७ ॥एम अनेक शिष्यकुं तारी॥ ए गुरुकी बलिहारीरे ॥ गुण ॥ ७॥ सखियां सघली गुंहली गावे । गौतम स्वामीकी नावे रे॥ गुण ॥ ए ॥ वीर प्रजुका राग निवारी । आतम एकता धारीरे ।। गुण ॥ १० ॥ केवल पाश् मोद . पद पाया । पृथवीमाताका जायारे ॥ गुण ॥११॥ ओगणिसें समसठ संवत् पाया। दीवाली दिन
यारे ॥ गुण ॥ १५ ॥ वीरविजय गौतम गुण गाया । बीकानेर जब आयारे ॥ गुण ॥ १३ ॥
॥ श्रीकल्पसूत्र की गुंहली ॥ ॥ सहीयर सुणियेरे, जगवती सूत्रनी वाणी,
ए देशी ॥ जवियण सुणजोरे, कल्पसूत्रनी वाणी ॥ मीठी लागेरे वाणी अमीय समाणी॥आंकणी ॥ कल्पसूत्रनी मोटी महिमा, वीर जिणंद वखाणे॥
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१९२ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतगौतम गणधर वीर वचनने हृदय कमलमां धारे ॥ नविण ॥ १ ॥ अरिहंत सम नहीं देव जगतमें, पदमें परमपद मोटुं । तीरथमें शत्रुजय जाणो, सूत्रमें कल्प वखाणो ॥जविण ॥ ॥ ॥ देवगणोमें इंड ठे मोटा, तारागण में चंड ॥ न्याय नीतिमें राम वखाणो, काम स्वरूपमें जाणो ॥ नविण || ३॥ रूपवतीमें रुमि रंना, वाजिनमें जेम नना। गजवरमें ऐरावण क.हिये, युझमें रावण लहिये ॥ नविण ॥४॥ बाणावली में अर्जुन बलियो, गुणमें विनय ज्यु जणियो । मंत्रमांहि नवकारज जाणो, बुद्धिमें अजय गवाणो || नवि० ॥५॥ सर्व वृदमें कल्प वृद जेम, अधिक बमाई धारे । सर्व सूत्रमें कल्पसूत्र तेम, पाप कलंक निवारे ॥ नविण ॥ ६॥ कल्पसूत्र जे नणशे गणशे, तिसत्त वार सांजलशे ॥ वीर कहे सांजलजो गौतम, ते नवसायर तरशे ॥ नवि० ॥ ७॥ निधि रस निधि इंछु वत्सरमें, रही सीनोर चौमासु ॥ वीरविजय कहे वीरप्रजुकी, वाणी में नहीं काचुं ॥ नवि० ॥ ॥
॥ समाप्त ॥
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॥ॐ वन्दे वीरम् ॥
श्रीउद्यरत्नजी कृत चोविशी।
ऋषन्न जिन गीत. वार वार रे वीठल वंशमुने तो न गमेरे, ए देशी।
मरुदेवीनो नंद माहरो, स्वामी साचोरे। शिव वधूनी चाह करो तो, एहने याचोरे ॥मणा ॥१॥ केवल काचना कुपा जेहवो, पिंक काचोरे। सत्य सरुपी साहिवो एहने, रंगे राचोरे॥ म॥ ॥२॥ यम राजाना मुखमा उपर, देश तमाचोरे। अमर थर उदयरत्न प्रजुगुं, मिली माचोरे ॥ सम्॥३॥
श्रीअजितनाथ जिन गीत। .
विषयने विसारी, विजयानंदन वंदोरे । आनंद पदनोएअधिकारी, सुखनो कंदोरे॥वि०॥९॥ नाम लेतां जे निश्चय फेमे, नवनो फंदोरे । जनम मरण जराने टाली, मुखनो दंदोरे ॥ विण ॥२॥ जगजीवन जे जग जयकारी, जगती चंदोरे। उद
१ फक्त । २ टाले।
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१९४
श्रीमदुदयरत्नजी कृत-
यरत्न प्रभु पर उपगारी, परमानंदोरे ॥वि० ॥३॥
श्री संजवनाथ जिन गीत |
दीन दयाकर देव, संजवनाथ दीगेरे | साकरने सुधा थंकी पण, लागे मीठगेरे ॥ दी० ॥ १ ॥ क्रोध रह्यो चंगालनी परे, डूर धीठोरे । अज्ञान रूप अंधकारनो हवे, वेग नी ठगेरे ॥ दी० ॥ २ ॥ जली परे जगवंत मुने, जगते तूठगेरे । उदय कहे माहरे आज डू, मेह वूठोरे ॥ दी० ॥ ३ ॥
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श्री अभिनंदन जिन गीत |
सिद्धार्थाना सुतना प्रेमे, पाय पूजोरे । दुनिया मांहि एह सरिखो, देव न डूजोरे ॥ सि० ॥ १ ॥ मोहरायनी फोज देखी, कां तूमे धूजोरे । अनिनंदनने आ रहीने, जोरे जोरे ॥ सि० ॥ २ ॥ शरणागतनो ए अधिकारी, बूको बूजोरे । उदय प्रभुशुं मली मननी, करीये गुंजोरे ॥ सि० ॥ ३ ॥
श्री सुमति जिन गीत | सुमतिकारी सुमतिवारु, सुमति सेवोरे । कु
१ खुट्यो । २ गुझ=झानी वातो ।
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चोविशी।
१९५ मतिनुं जे मूल कापे, देव देवोरे ॥ सु० ॥ १॥ नव जंजीरना बंध दे नागी, देखतां खवारे । दरशन तेहy देखवा मुहने, लागी टेवोरे ॥॥२॥ कोमि सुमंगलकारी सुमंगला, सुत एहवोरे। उदय प्रजु ए मुजरो माहरो, मानी लेवोरे ॥ सु०॥३॥
श्रीपद्मप्रन्नु जिन गीत। लाल जासूना फूलसो वारु, वान देहनारे । नुवन मोहन पद्म प्रनु, नाम जेहनारे ॥ला ॥१॥ वोध बीज वधारवा जेम, गुण मेहनोरे। मन वचन काया करी हुं, दास तेहनोरे । ला॥२॥ चंद चकोर परे तुजने चाहुँ, बांध्यो नेहनारे। उदय कहे प्रनु तुं विण नहीं, आधीन केहनोरेला॥३॥
श्रीसुपार्श्व जिन गीत । - सुपासजी ताहरूं मुखj जोतां, रंग नीनोरे। जाणे पंकजनी पांखमी उपर, चमर लीनोरे॥सुं॥१॥ हेत धरी में ताहरे हाथे, दिल दीनोरे। मनमा मांहि आव तुंमोहन, मेहेली कीनोरे ॥सु०॥२॥ देव वीजो हुँ कोश् न देखुं, तुज समीनारे । उदय रत्न कहे मुज प्रनु ए, डे नगीनोरे ॥ सु० ॥३॥
१ अंटस।
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श्रीमदुदयरत्नजी कृतश्रीचंप्रनु जिन गीत। चंतप्रजुना मुखनी सोहे, कान्ति सारीरे । कोमि चन्द्रमा नाखुंवारी, हुबलिहारीरे॥चं॥१॥ श्वेत रजतसी ज्योति बिराजे, तननी ताहरीरे । आशक थ ते उपर नमे, आंखमी माहरीरे ॥ चं० ॥ २ ॥ नाव धरी तुजने नेटे जे, नर ने नारीरे । उदयरत्न प्रनु पार उतारे, नवजल तारीरे ॥ चं ॥३॥
श्रीसुविधि जिन गीत। सुविधिसाहिबशुं मन्न माहरूं, थयु मगन्नरे। जिहां जोडं तिहां तुजने देखुं, लागी लगन्नरे ॥ सु० ॥ १॥ मनमामां जिम मोर श्च्छे, गाजें गगन्नरे। चितमामां जिम कोयल चाहे, मास फगन्नरे ॥ सु० ॥२॥ एहवी तुजणुं आसकी मुने, नरं डग नरे । जोर जस फोजनो तुं, एक उगनरे ॥ सु ॥ ३॥ पंच इन्धि रूप चून्नोजे, करीय नगनरे । उदयरत्न प्रनु मिली तेशें, खाय सोगनरे ॥ सु ॥४॥
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१९७
चोविशी। श्रीशीतल जिन गीत। शीतल शीतलनाथ सेवो, गर्व गाली रे। नव दावानल नंजवाने, मेघमालीरे ॥ शी० ॥ १ ॥ आश्रव रुंधी एक बुद्धि, आसन वाली रे । ध्यान एहनुं मनमा धरो, लेश तालीरे ॥शी ॥२॥ कामने वाली क्रोधने टाली, रागने राली रे । उदय प्रजुनुं ध्यान धरंतां, नित दीवाली रे ॥ शी० ॥३॥
श्रीश्रेयांस जिन गीत। मूरति जोतां श्रेयांसनी महारूं, मनहुँ मो. धुरे । नावे नेटतां नवना दुखनु, खांपण खोयुरे॥ मू० ॥ १ ॥ नाथजी माहरी नेहनी नजरे, सामुं जोयुरे।महिर लहि माहाराजनी में तो, पाप धोयु रे ॥ मू॥२॥ शुभ समकित रूप शिवमुं, बीज बोयुरे। उदयरत्न प्रजु पामतां नाग्य, अधिक सोयुरे ॥ मू ॥३॥
श्रीवासुपूज्य जिन गीत । जूओ जूओरे जयानंद जोतां, हर्ष थयोरे। सुर गुरु पण पार न पामे, न जाय कटोरे ॥जू ॥ १ ॥ नव अटवीमां नमतां वहु, काल गयोरे।
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१९८ श्रीमदुदयरत्नजी कृत-- को पुण्य कलोलथी अवसर में, आज लह्योरे । ॥ जूण् ॥५॥ श्रीवासुपूज्यने वंदतां सघलो, उख दह्योरे । उदयरत्न प्रजु अंगीकरीने, बांहि ग्रह्यो रे ॥ जू० ॥३॥
श्रीविमल जिन गीत ॥ विमल ताहरं रूप जोतां, रढ लागीरे । मुखमां गयां विसरीने, नूखमी नागीरे॥विण॥९॥ कुमतिये माहरी केम तजी, सुमति जागीरे । क्रोध मान माया लोने, शीख मागीरे ॥ वि०॥ ॥२॥ पंच विषय विकारनो हवे, थयो त्यागीरे। उदयरत्न कहे आजयी हुँ तो, ताहरो रागीरे ॥ विण ॥३॥
श्रीअनंत जिन गीत ॥ अनंत ताहरा मुखमा उपर, वारी जाउरे । मुगतनी मुने मोज दीजे, गुण गाजरे ॥अ० ॥१॥ एक रसो हुँ तलसु तुने, ध्यान ध्याउरे । तुज मिलवाने कारण ताहरो, दास थारे ॥ अ॥२॥ जजन ताहरो नवो जव, चित्तमां चाहुरे । उदय रत्न प्रजु जो मिले तो, डेमो साहुरे ॥ ॥३॥
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चोविशी ।
श्री धर्मनाथ जिन गीत ॥ वारुरे वाहला वारु तुं तो, मे दिलवाही रे । मुजने मोह लगायो पोते, बेपरवाही रे ॥ वा०॥१॥ हवे हुं हर लेइ वेगे, चरण साही रे । केइ पेरे मेलावशो कहोने, घो बताईरे ॥ वा० || २ || कोम गमे जो तुज्जशुं, करूं गहिलांईरे । तोपण तुं प्रभु धर्म धारी, ल्यो निवादी रे || वा० ॥ ३ ॥ तु ताहरा अधिकार साहमुं, जोने चाहिरे । उदय प्रभु गुणहीननें तारतां, बे वारे || वा० ॥ ४ ॥
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१९९
श्री शान्तिनाथ जिन गीत |
पोसहमां पारेको राख्यो, शरण लेइरे । तन साटे जीवामयो अजय, दान देइरे ॥ पो० ॥ १ ॥ अनाथ जीवना नाथ कहावे, गुणनो गेहीरे । तो मुजने प्रभु तारतां कहो, ए वात केहीरे ॥ पो० ॥ २ ॥ गरीवनिवाज तुं गरुप्रो साहिब, शान्ति सनेही रे । उदयरत्न प्रभु तुजशुं वांधी, प्रीत अहीरे ॥ पो० ॥ ३ ॥
१ गांडाइ | २ कबुतर ।
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श्रीमदुदयरत्नजी कृत -
श्री कुंथु जिन गीत |
वाइ वारे अमरी वीण वाजे, मृदंग रणकेरे । ठमक पाय बिठुवा ठमके, नेरी नाकेरे ॥ वा० ॥ | १ || घम घम घम घुघरी घमके, जांजरी ऊमकेरे । नृत्य करती देवंगना जाणे, दामनी दमकेरे || वा० ॥२॥ दौ दौ किंदौ पुंडुनि बाजे, चूडी खलकेरे । फूदमी लेतां फूमती फरके, काल ऊबूकेरे || वा० ॥३॥ कुंथु आगे इम नाच नाचे, चालने चमकेरे । उदय प्रभु बोध बीज आपो, ढोल ढमकेरे ॥ वा० ॥ ४ ॥
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२००
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|| श्री रजिन गीत ॥ अरनाथ ताहरी आंखमीये मुज, कामण की - धुंरे । एक व्हेजामां मनमुं माहरु, हरि लीधुंरे ॥ ० ॥ १ ॥ तुज नयणे वय माहरे, अमृत पीधुंरे । जन्म जरानुं जोर जाग्युं, काज सीध्युंरे ॥ ० ॥ २ ॥ रगतिनां सरखे दुःखनुं हवे, द्वार दीधुंरे । उदयरत्न प्रभु शिव पंथनुं में, सबल लीधुंरे
॥ अ० ॥ ३ ॥
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चोविशी ।
श्री मल्लिनाथ जिन गीत | तुज सरीखो प्रभु तुंज दीसे, जातां घरमांरे । अवर देव कु एहवो वलियो, हरि हरमारे ॥ तु ॥ १ ॥ ताहरो अंगनो लटको मटको, नारी नरमारे । मही मंगलमां कोइ नावे, माहरा हरमांरे || तु ॥ २ ॥ मल्लि जिन श्रवीने माहरा, मन मंदिरमांरे । उदयरत्न प्रभु आवी वसो, तुं निजरमांरे || तु ॥ ३॥
२०१
श्री मुनिसुव्रत जिन गीत |
मुनिसुव्रत माहराज माहरा, मननो वासी रे । आशा दासी करीने थयो, तुं उदासीरे ॥ ॥ मु० ॥ १ ॥ मुगति विलासी तुं अविनाशी, जवनी फांसी रे | जंजीने जगवंत थयो तुं, सहज विलासीरे ॥ मु० ॥ २ ॥ चौद राज प्रमाण लोका - लोक प्रकासीरे । उदयरत्न प्रभु अंतरजामी, ज्योति विकासीरे ॥ मु० ॥ ३ ॥
श्रीनमिनाथ जिन गीत |
नमि निरंजन नाथ निर्मल, धरूं ध्यानेरे ।
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२०२ श्रीमदुदयरत्नजी कृतसुंदर जेहनो रूप सोहे, सोवन वानेरे ॥ न॥१॥ वेण ताहरा हुं सुणवा रसीओ, एक तानेरे । नेण माहरा रह्यांडे तरसी, निरखवानरे । न॥२॥ एक पलक जो रहस्य पामुं, कोश्क थानेरे। हुं तुं अंतरमें हली मद्रु, अनेद ज्ञानेरे॥न॥३॥आठ पहोर हूं तुज आराधुं, गावं गानेरे । उदयरत्न प्रनु निहाल कीजे, बोधि दानेरे ॥ न ॥४॥
श्रीनेमिनाथ जिन गीत। बोल बोलरे प्रीतम मुजणुं बोल, मेल आंटोरे । पगले पगले पीके मुजने, प्रेमनो कांटोरे ॥ वो ॥ १ ॥ राजेमती कहे बोम बबीला, मननो गांगरे । जिहां गांगे तिहां रस नही जिम, शेलमी सांगेरे॥ बो॥२॥ नव नवनो मुने आपने नेमजी, नेहनो आंटोरे । धोयो किम धोवाय जादवजी, प्रीतनो गंटोरे॥वो ॥३॥ नेम राजुल वे मुगति पोहतां, विरह नागरे । उदयरत्न कहे आपने स्वामी, नवनो कांगेरे ॥ वो ॥ ४ ॥
• श्रीपार्श्व जिन गीत । चाल चालरे कुमर चाल ताहरी, चाल गमेरे।
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चोविशी।
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तुज दीठमा विना मीठमा माहरा, प्राण नमेरे ॥ चा ॥ १ ॥ खोला मांहि पमतुं मेहले, रीसे दमेरे । मावमी विना आवहुं खुंथु, कुण खमेरे ॥ ॥ चाण ॥॥ माता वामा कहे मुखj जोतां, उःखमां शमेरे, लळी लळी उदयरत्न प्रनु, तुजने नमेरे ॥ चा ॥३॥
श्रीमहावीर जिन गीत।।
आव आवरे माहरा मनमा मांहे, तुं डे प्यारोरे। हरि हरादिक देव ढुंती, हुं बुं न्यारोरे ॥
आ ॥१॥ अहो महावीर गंजीर तुं तो, नाथ माहोरे । हुँ नमुं तुने गमे मुने, साथ ताहोरे । ॥ आप ॥२॥ साही साहीरे यीठमा हाथ माहरा, वैरी वारोरे । ये ये रे दर्शन देवमुने, येने लारोरे ॥आप ॥३॥ तुं विना त्रिलोक में केहनो, नथी चारोरे । संसार पारावारनो स्वामी, आपने आरोरे ।। आ॥४॥ उदयरत्न प्रजु जगमें जोतां, तुं ठे तारोरे । तार ताररे मुने तार तुं, संसार सारोरे ॥ आ० ।॥
इति श्रीउदयरत्नजीकृता चोविशी संपूर्णा ।।
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अथ श्रीयशोविजयोपाध्यायकृत चोविशी।
श्रीऋषनजिन स्तवन। ( महाविदेह क्षेत्र सोहाम', ए देशी ) जगजीवन जगवालहो, मरुदेवीनो नंद लालरे । मुख दीठे सुख उपजे, दरिशण अतिहि आणंद लालरे ॥ ज० ॥ १ ॥ आंखमी 'अंबुज पांखमी, अष्टमीशशिसम लाल लालरे । वदन ते शारद चंदलो, वाणी अतिहि रसाल लालरे ॥ ॥ ज० ॥॥ लक्षण अंगे विराजतां, अमहिय सहस उदार लालरे । रेखा कर चरणादिके, अन्यंतर नहि पार लालरे ॥ ज० ॥३॥इंड चंड रवि गिरी तणा, गुण लेश धमीजं अंग लालरे । नाग्य किहां थकी आवी, अचरिज एह उत्तंग लालरे ।। जण ॥ ४ ॥ गुण सघला अंगे कर्या, पूर कर्या सवि दोष लालरे । वाचक जशविजये शुण्यो, देजो सुखनो पोष लालरे ।।जण ॥५॥
१ कमलनी पांखडी जेवी । २ अरधा चंद्रमा जेवू कपाल । ३ म्हो. ढं पासो मासना चंद्रमा जेबुं तेजदार । ४ एक हजार आठ ।
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चाविणी ।
श्री अजितनाथ जिन स्तवन ।
( निदरडी वैरण होइ रही, ए देशी ) अजित जिणंदश्युं प्रीतमी, मुज न गमे हो वीजानो संग के । मालती फूले मोहियो, किम वेसे हो बावलतरु 'भृंग के ॥ ० ॥ ९ ॥ गंगाजल मां जे रम्या, किम छिल्लर हो रेति पामे मॅराल के । सरोवर जल जैलधर विना, नवि याचे हो जग चतकबाल के ॥ ० ॥ २ ॥ को किल कँलकूजित करे, पामी 'मंजरी हो पंजरि संहकार के । ओटा तरुवर नवि गमे, गिरुशुं हो होये गुणनो प्यार के || अ ॥ ३ ॥ कैमलिनी दिनकर कर ग्रहे, वली कुमुपरे चन्दशुं प्रीतके । 'गौरी गिरीश गिरीनवि चाहे हो कमैला निज चित्त के
Ր
२०५
तम प्रभुश्युं मुज मन रम्युं, वीजाशुं व दायें के। श्रीनय विजय सुगुरू तणो, वाचक जश हो नित नित गुण गाय के ॥ ० ॥ ५॥
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१६
१ भमरो । २ न्हाना तलावमां । ३ यानन्द । ४ हंस । ५ वरसाद । वपैयाँ । ७ मीटुं बोले । ८ आंवानो मोर । श्रवानुं झाड । १० सूर्यविकासी कमलिनी सूर्यना किरण उपर अने पांयणी चन्द्र तरफ प्रीति धरे । ११ पार्वती । १२ महादेव । १३ कृष्ण । १४ लक्ष्मी । १५ पसन्द | ६६ उपाध्याय ।
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२०६
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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- श्रीसंनवनाथ जिन स्तवन ।
( मन मधुकर मोही रह्यो, ए देशी) संचव जिनवर विनती, अवधारो गुणज्ञाता रे। खामी नहिं मुज खिजमते। कहिंय होश्यो फल दातारे । सं०॥१॥ कर जोमी उनो रहुं,राति दिवस तुम ध्यानेरे । जो मनमा आणो नहि, तो शुं कहिये गनेरे ॥ सं॥२॥ खोट खजाने को नहि, दीजे वंबित दानोरे । करुणानजरे प्रजुतणी, वाधे सेवक वानोरे । सं० ॥३॥ काल लब्धि नही मति गणो, नाव लब्धि तुज हाथेरे । लमयमतुं पण गज बच्चु, गाजे गजवर साथेरे॥सं॥ ॥४॥ देश्यो तो तुमही नला,बीजा तो नवि याचुरे । वाचक जश कहे सांश्शु, फलशे ए मन साचुरे ।। सं० ॥२॥ श्रीअनिनन्दन जिन स्तवन ।
(सुणयो प्रभु, ए देशी ) दीठी हो प्रजु दिठी जगगुरु तुज, मूरती हो प्रजु मूरत मोहन वेलमीजी।मीठी हो प्रनुमीठी ताहरी वाणि, लागे हो प्रजु लागे जेसी शेलमीजी ॥१॥जाणुं होप्रनु जाणुंजनम कयथ्थ,जो हो प्रजु १ कृतार्थ ।
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चाविशी।
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जो तुम साथै मिल्योजी । सुरमणि होप्रजु सुरमणि पाम्यो हथ्थ, अगण हो प्रनु अंगण मुज सुरतरु फल्योजी। जाग्या होप्रनु जाग्या पुण्य अंकुर, माग्या हो प्रनु महों माग्या पासा ढव्याजी । वूगे हो प्रनु वूठगे अमीये मेह, नाग हो प्रजु नाग अशुज शुज दिन वदयाजी ॥३॥ नूख्यां हो प्रनु नूख्यां मख्यां घृतपूर, तरस्यां हो प्रजु तरस्यां दिव्य उदक मिट्यांजी । थाक्यां हो प्रजु थाक्यां मिट्यां सुखपाल, चाहतां हो प्रजु चाहतां सज्जन हेजे हव्याजी ॥४॥ दीवो हो प्रजु दीवो निशा वनगेह, शाखी हो प्रजु शाखी थलें जलनो मिलिजी। कलियुगे हो प्रनु कलियुगे फुटलहो मुज, दारिशण हो प्रनु दरिशण लघु आशा फलीजी॥५॥ वाचक हो प्रजु वाचक जश तुम दास, विनवे हो प्रजु विनवे अभिनन्दन सुणोजी। कहीयें हो प्रनु कहीये म देश्यो ठेह, देजो हो प्रजु देजो सुख दरिशण तणोजी ॥६॥
श्रीसुमति जिन स्तवन ।
( झांझरीया मुनीवर नी देशी ) सुमतिनाथ गुणशुं मिलीजी, बाधे मुज मन
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२०८ श्रीयशाविजयोपाध्याय कृतप्रीत। तेल बिंद जिम विस्तरेजी, जलमांहि नली रीत ॥ सोनागी जिनशं लाग्यो अविहरू रंग ॥ ॥१॥ सज्जनशुं जे प्रीतमीजी, गनी ते न रखाय । परिमल कस्तूरीतणोजी, महिमांहि महकाय ॥ सो० ॥ २॥ अंगुलीये नवि मेरु ढंकाये, बावमीये रवि तेज । अंजलीमां जिम गंग न साये, मुज मन तिम प्रजु हेज॥सो ॥ ३॥ हुओ बीपे नही अंधर अरुण जिम, खातां पान सुरंग। पिवत नरनर प्रनु गुण प्याले, तिम मुज प्रेम अजंग ॥ सो ॥४॥ ढांकी इनु परालगुंजी, न रहे लही विस्तार । वाचक जश कहे प्रजु गुणेजी, तिम मुज प्रेम प्रकार ॥ ॥ सो० ॥५॥
श्रीपदमप्रन जिन स्तवन । ( सहज सलुणा हो साधुजी, ए देशी ) पदमप्रनु जिन जई अलगा रह्या, जिहांश्री नावे लेखोजी। कागलने मसि तिहां न वि संपजे, न चले वाट विशेखोजी ॥ सुगुण सनेहारे कदिये न
१ कोई वखत झांखो न पड़े एवो । २ पृथिवीमां । ३ सूर्यनुं तेज। ४ राता थयेला होठ । ५ परालथी ढांकेली शेलडी।
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चोविशी ।
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वीसरे || १ || हांथी तिहां जइ कोई आवे नहि, जेह कहे संदेशोजी। जेहनुं मिलतुं तेहशुं दो हितुं, नेह ते आप किलेशोजी ॥ सु० ॥ २ ॥ वीतरागशुरे राग ते एकपखो, की जे कवण प्रकारोजी । घोमो दोमेरे साहिव काजमां, मननाणे असवारोजी ॥ सु०॥ ॥३॥साची जगतिरे जावनरस कह्यो, रस होये तिहां दोएरीजी । होमा होमेरे वेदु रसरीऊथी, मनना मनोरथ सीकेजी ॥ सु० ॥ ४ ॥ पण गुणवन्तारे गोठे गाजिए, मोटा ते विश्रामोजी । वाचक जश कहे एहज आसरे, सुख लहुं गमो गमोजी ॥ सु०॥५॥
श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
( लावलदे मात मलार, ए देशी ) श्री सुपास जिनराज, तुं त्रिभुवन शिरताज, आज हो बाजेरे ठकुराई, प्रभु तुज पदतणीजी । ॥ १ ॥ दिव्यध्वनी सुर फूल, चामर छत्र अमूल, आज हो राजेरे नामंगल गाजे कुंडुजी जी ॥ २ ॥ अतिशय सहजना च्यार, कर्म खप्याथी अग्यार, आज हो कीधारे ओगणी से सुरगण जासुरजी ॥ ३ ॥ बाणी गुण पांत्रीश, प्रातिहारज
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२१० श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- जगदीश। आज हो राजे रे दीवाजे गजे आपशुंजी ॥ ४ ॥ सिंहासन अशोक, बेग मोहे लोक । आज हो स्वामी रे शिवगामी, वाचक जश थुएयोजी ॥५॥
श्रीचन्प्रन जिन स्तवन ।
(धणरा ढोलानी देशी) चन्प्रन जिन साहिबारे, तुमे जो चतुर सुजाण । मनना मान्या।सेवा जाणो दासनी रे,देशा फल 'निरवाण ॥ म ॥१॥ आवो आवोरे चतुर सुख जोगी। कीजे बात एकान्ते अनोगी । गुण गोठे प्रगटे प्रेम ॥ म० ॥ ओळ अधिकुंपण कहेरे,
आसंगायत जेह ॥म॥आपे फल जे अणकह्यारे, गिरुओ साहिब तेह ॥ म ॥ ५ ॥ दीन कह्या, विण दानथी रे, दातानी वाधे माम ।। म॥ जल दीये चातक खीजवी रे। मेघ हुवा तेणे श्याम ॥म॥ ॥३॥ पिऊ पिऊ करि तुमने जपुरे, हुं चातक तुमे मेह ॥म॥ एक लहेरमां दुख हरोरे । वाधे
१ मोक्ष । २प्रेम भावे श्राश्रय लेनारा सेवक । ३ लाज, मोभो । ४ वपैयाने चीडावी वरसादे पाणी पीवा प्राप्यु, तेथी वरसादनो रंग कालो थयो छे, अर्थात् माग्यो वगर-ककलान्या वगर दान आपे तो उज्ज्वलता छ।
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चाविशी।
२११ विमणो नेह ॥ म ॥ ४ ॥ मोठं वेहबुं आपवुरे, तो शी ढील कराय || म । वाचक जश कह जग धणी रे, तुम तूठे सुख थाय ।। म ॥५॥
श्रीसुविधिनाथ जिन स्तवन । ( मुणो मेरी सुजनी रजनी न जावे रे, ए देशी )
लघु पण हुँ तुम मन नवि मारे । जगगुरू तुमने दिलमां लावुरे। कुणने दीये ए शाबाशी रे। कहो श्रीसुविधि जिणंद विमासी रे। लण्॥१॥मुज मन अणुमांहि नगति के काजी रे। तेह दरीनो तुं माजीरे। योगी पण जे वात न जाणे रे। ते अचरिज कुणथी हुओ टाणे रे ॥ ल॥॥ अथवा थिरमांहि अथिर न मावे रे । मोटो गज दरपणमां आवेरे। जेहने तेजे बुद्धि प्रकाशी रे । तेहने दीजे ए शावाशीरे ॥ल ॥३॥ ऊर्ध्व मूल तरुअर अध शाखारे । उन्द पुराणे एहवीठे नाखारे।अचरिज वाले अचरिज की रे। नगते सेवक कारज सीधुंरे ।। ल०॥॥
प्राप जगतना गुर छो छतां प्राप जेवा मोटाने हुं न्हानो मेवक हृदयमां धारण करी कुटुं, पण आप मोटा छतां मारा जेवा न्हाना मेवफने हदयमां लावता नधी, तो विचारी जत्रो के आपण बन्नेमां कोण गादानीने पार ?
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२१२ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- लाम करीजे बालक बोलेरे।मात पिता मन अमीय न तोले रे । श्रीनय विजय विबुधनो शीशरे । जश कहे एम जाणो जगदीशरे ॥ ल ॥ ५॥
श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन ।
( अलि अलि कदि आवेगो, ए देशी)
श्री शीतल जिन बेटीयें, करी चोखु जगते चित्त हो । तेहश्युं कहो बार्नु किश्युं, जेहने सुप्यां तन मन वित्त हो ॥ श्री० ॥ १॥ दायक नामे डे घणां, पण तुं सायर ते कूप हो । ते बहु खेजुआ तगतगे, तुं दिनकर तेज स्वरूप हो ॥ श्री० ॥ ॥ मोटो जाणी आदर्यो, दालिज नांगो जगतात हो । तुं करुणावंत शिरोमणि, हुं करुणापात्र विख्यात हो ॥ श्री० ॥ ३॥ अंतरयामी सवी लहो, अम मननी जे डे बात हो । मा आगल मोसालनां, श्यां वरणववां अवदात हो ॥ श्री० ॥ ४॥ जाणो तो ताणो किशु, सेवाफल दीजे देव हो । वाचक जश कहे ढीलनी, ए न गमे मुजने टेव हो ॥ श्री० ॥५॥
१ दातारीपणानुं नाम धरावनारा घणा छे, पण तुं दरिया जेवो अने ते वधा कूवा जेवा छ। २ भागीया । ३ सूर्यना तेज जेवो ।
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चोविगी।
२१३
श्री श्रेयांसप्रन्नुजिन स्तवन । ___ ( करम न छूटेरे प्राणीया, ए देशी )
तुमे वहुमित्री रे साहिवा, माहरे तो मन एक | तुम विण वीजोरे नवि गमे, ए मुज मोटी रे टेक ॥ श्री श्रेयांस कृपा करो ॥ १ ॥ मन राखो तुमे सवि तणां, पण किहां ए मली जाओ । ललचावो लख लोकने, साथी सहज न थाओ ॥ श्री० ॥ २ ॥ राग नरे जन मन रह्यो, पण बिहु काले वैराग। चित्त तुमारो रे समुनो, कोय न पामेरे तागं ॥ श्री० ॥३॥ एहवाशुं चित्त मेलवो, केलव्यु पहेलां न कांई। सेवक निपट अबूऊ , निरवदेशो तुमे सांई श्री ॥४॥ निरागीशुं रागी किम मिले, पण मलवानो एकांत । वाचक जश कहे मुज मिल्यो, जगति ते कामण तंत ।। श्री० ॥ ५ ॥
ge... श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन ।
(मोतीड़ानी देशी) स्वामी तुमे कांश कामण कीg, चीतहुं अ
तमारे मारा जेवा बहुए दोस्तदार हे, पण मारे तो तमो एकज दोस्नदार हो।२ पार । ३ तदन । ४ मृव । ५ निभावो। कामण तंत्र।
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२१४
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
मारुं चोरी सीधुं ॥ साहिबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य | अमे पण तुमशुं काम करशुं, जगति ग्रही मन घरमा धरशुं ॥ सा० ॥ १ ॥ मन घरमां घरीया घर शोना, देखता नित रहे थिर थोना । मन वैकुंठ कुंठित जगते, योगी नावे व युगते ॥ सा० ॥ २ ॥ केलेश वासित मन संसार, कलेश रहित मन ते नवपार | जो विशुद्ध मन धरि तुभे आव्या । प्रभु तो मे नव निधि रिधि पाव्या ॥ सा० ॥ ३ ॥ सात राज - लगा जर बेठा । पण जगते म मनमां पेठा । लगाने वलग्या जे रहेनुं, ते जाणा खम खम दुःख सहेतुं ॥ सा० ॥ ४ ॥ ध्यायक ध्येय ध्यान गुण एके, नेद बेद करशुं हवे टेके । खीर नीर परे तुमशुं मिलसुं, वाचक जरा कहे हेजे हलशुं
॥ सा० ॥ ५ ॥
श्री विमलनाथ जिन स्तवन । सेवो जवियां विमल जिणेसर, डुलहा स
१ क्लेशथी भरेलां मन होय त्यां सूधीज संसारमां भमवुं रहे पण क्लेशने छोडी देनारुं मन थाय त्यारे भवनो पार पामेछे ।
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चाविगी।
ज्जन संगाजी। एहवा प्रजनुं दरशण लहेवू, ते बालशमां गंगाजी ॥ १॥ अवसर पामी आलस करशे, ते मुरखमां पहेलोजी ॥ नूख्यान जिम घेवर देतां । हांथ न मांझे घहेलोजी ॥ ॥ नव अनन्तमां दरशण दीकुं, प्रनु एहवा देखामेजी। विकट ग्रंथ जे पोळि पोलियो, कर्म विवर ऊघामे जी ॥३॥ तत्व प्रीत करी पाणी पाए, विमलालोके आजिजी । लोयण गुरु परमान्न दिए तव, ज्रम नाखे सवि लांजिजी ॥४॥ ब्रम नाग्यो तव प्रशु प्रेमे, वात करूं मन खोलीजी। सरव तणे जे हीयडे श्रावे, तेह जणावे वोलीजी ॥५॥ श्री नय विजय विवुध पय सेवक, वाचक जश कहे साचुं जी । कोम कपम जो कोश् देखावे, तोही प्रतु विण नवि राचं जी ॥ ६ ॥
श्रीअनंतनाथ जिन स्तवन ।
श्री अनतजिनगुं करो । साहेलमियां । चोल मजीउनो रंग रे । गुण वेल मियां । साचो रंग ते धर्मनो॥ सा॥ वीजो रंग पतंगरे॥गु०॥ १॥ धरम रंगजीरण नहि।सा ॥ देह ने जीरण थायरे ॥गुणा
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२१६ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतसोनु ते विणशे नहि।।सा ॥ घाट घमामण जायरे गुण ॥२॥त्रांबुजे रस वेधीजं ॥साते होये जाचूं हेमरे॥ गुण ॥ फरी त्रांबु ते नवि होवे॥सा ॥ एहवो जगगुरु प्रेमरे ॥ गुण ॥३॥ उत्तम गुण, अनुरागथी॥सा॥लहिये उत्तम गमरे॥ गुण ॥ उत्तम निज महिमा वध ॥ सादीपे उत्तमधामरे॥गुण॥ ॥४॥ उदक बिन्छ सायर नट्यो ॥सा जिम होय अखय अनंगरे ॥ गुण ॥ वाचक जश कहे प्रजुगुणे ॥सा ॥ तिम मुज प्रेम प्रसंगरे । गुण ॥ ॥ ५ ॥
OG श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन । (बेडले भार घणो छे राज वातो केम करो छो, ए देशी )
थाशुं प्रेम बन्यो डे राज, निरवहेश्यो तो लेखे । में रागी प्रजु थे जो निरागी, अणजुमते होए हासी। एकपखो जे नेह निरवहीश्यो, तेमां ही कीसी शाबाशी ॥था॥१॥ निरागी सेवे काई होवे,श्म मनमें नविश्राएं। फले अचेतन पण जिम सुरमणी, तिम तुम नगति प्रमाणु ॥ था॥२॥ चन्दन शीतलता उपजावे,अगनि ते शीत मिटावे।
१ पाणीनु टीपुं। २ एकना मनमां बहु स्नेह होय अने वीजाना मनमां कशुं पण न होय तेवो । ३ टाढ ।
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चोविगी ।
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सेवकनां तिम दुःख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वजावे ॥ था० ॥ ३ ॥ व्यसन उदय जलधी अणुहारे, शशिनो तेज संबंधे। संबंधे कुमुद - गुहारे, शुद्ध स्वभाव प्रबंधे ॥ था० ॥ ४ ॥ देव अनेरा तुमर्थी ठोटा, थे जगमां अधिकेरा । जश कहे धर्म जिणेसर याशुं दिल मान्या हे मेरा
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400
श्री शान्तिनाथ जिन स्तवन ।
( घोडलियो मुक्यो सरोवरियारी पाल, ए देशी ) धन दिन वेला धन वली तेह, अचिरारो नंदन जिन जंदी नेटशुं जी | लहेशुंरे सुख देखी मुखचन्द, विरह व्यथानां दुख सवि मेटगुंजी ॥१॥ जाप्योरे जेणे तुज गुण लेश, वीजारे रस तेहने मन नवि गमेजी । चाख्योरे जेणे मी लवलेश, वाकस बुकस तस न रुचे किमेजी ॥२॥ तुज समकित रस स्वादनो जाए, पाप कुमतने बहु दिन सेवितं जी । सेवे जो करमने योगे तो हि वांठे ते समकित अमृत धुरे लिख्युं जी ||३|| ताहरु ध्यान ते समकित रूप,
६ भरती आयो । २ पोयं । ३ ज्या | ४ अमृत ।
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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
तेहज ज्ञान ने चारित्र तेह बे जी । तेहथी रे जाए सघलां पाप, ध्यातारे ध्येय स्वरूप होयें पबेजी ॥ ४ ॥ देखीरे अदभुत ताहरुं रूप प्रचरिज नविकरूपी पद वरेजी । ताहरी गत तुं जाणे हो देव, समरण जजन ते वाचकजश करेजी ॥५॥
श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन ।
साहेबांहे कुंथु जिणेसर देव, रतन दीपक अति दीपतो हो लाल । साहेबांहे मुज मन मंदिर मांहे, वे जो रिबल जी पतो हो लाल ॥ १॥ सा० मिटे तो मोह अंधकार, अनुभव तेजे कलहले हो लाल । सा० धूम कखाय न रख, चरण चित्रामण नवि चले हो लाल ॥ २ ॥ सा० पात्र कर्ये नहि देव, सूरज तेजे नवि तुपे हो लाल । सा० सर्व तेजनुं तेज, पहेली वा पछे हो लाल ॥ ३ ॥ सा० जेह न मरुतने गम्य, चंचलता जे नवि लहे हो लाल । सा० जेह सदा वे रम्य, पुष्टगुणे नवि कुंश रहे हो लाल ॥ ४ ॥ सा० पुदगल तेल न खेप, तेह न शुद्ध दशा दहे हो लाल । सा० श्रीनय विजय सुशीश, वाचक जश एपि परे कहे हो लाल ॥ ५ ॥
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१ टीवी । २ शत्रु बल । ३ पवन | ४ मनोहर | दुर्बल |
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चाविशी ।
श्री अरनाथ जिन स्तवन । ( आसरा योगी, ए देशी ) श्री यर जिन जेवजलनो तारु । मुज मन लागे वीरुरे । मन मोहन स्वामी ॥ बांहे ग्रही ए जवि - जन तारे । आणे शिवपुर आरेरे ॥ म० ||१|| तप जप मोह महा तोफाने, नाव न चाले मानेरे ॥ म० ॥ पण नवी जय मुज हाथो हाथे, तारे ते वे साथेरे ॥ म० ॥ २ ॥ जगतने स्वर्ग स्वर्गथी अधीकुं, ज्ञानीने फल देई रे ॥ ० ॥ कायाकष्ट विना फल लहीए, मनमां ध्यानज धरीये रे ॥ म ० ॥ ३ ॥ जे उपाय वहुविधनी रचना, योगमाया ते जाणोरे ॥ म० ॥ शुद्ध द्रव्य गुण पर्याय ध्याने, शिवदे प्रभु सपराणोरे || म० ॥ ४ ॥ प्रभु पाय वलग्या ते रह्या ताजा, अलगा अंग न साजारे ॥ म० ॥ वाचक जश कहे अवर न ध्यानं, ए प्रभुना गुण गाउँरे || म० ॥ ५ ॥
श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन । ( नाभीरायके वार. ए देशी )
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तुजमुज रीफ नीरीऊ, अटपट एढ खरीरी । लटपट नावे काम, खटपट जांज परीरी ॥ १ ॥
६भव समुद्र पार उतारनार । साग ।
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२१८ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- तेहज ज्ञान ने चारित्र तेह बे जी । तेहथी रे जाए सघला पाप, ध्यातारे ध्येय स्वरूप होयें पडेजी ॥४॥ देखीरे अदजुत ताहरं रूप, अचरिज नविक अरूपी पद वरेजी । ताहरी गत तुं जाणे हो देव, समरण नजन ते वाचक जश करेजी ॥५॥
.श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन । __साहेलांह कुंथु जिणेसर देव, रतन दीपक अति दीपतो हो लाल। साहलाहे मुज मन मंदिर मांहे, आवे जो अरिबल जीपतो हो लाल ॥१॥सा मिटे तो मोह अंधकार, अनुजव तेजे फलहले हो लाल। सा धूम कखाय न रेख, चरण चित्रामण नवि चले हो लाल ॥२॥ सा पात्र कर्ये नहि हेठ, सूरज तेजे नवि. बुपे हो लाल । सा सर्व तेजनुं तेज, पहेलाथी वाधे पडे हो लाल ॥३॥ सा जेहन मैरुतने गम्य, चंचलता जे नवि लहे हो लाल। सा जेह सदा ने रैम्य, पुष्टगुणे नवि कॅश रहे हो लाल ॥४॥सा पुदगल तेल न खेप, तेह न शुद्ध दशा दहे हो लाल । सा श्रीनय विजय सु. शीश, वाचक जश एणि परे कहे हो लाल ॥ ५ ॥ १ दीवो । २ शत्रु बल । ३ पवन । ४ मनोहर । ५ दुर्वल ।
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चाविशी। श्रीअरनाथ जिन स्तवन ।
(आसगरा योगी, ए देशी ) श्रीअरजिन नवजलनो तारु । मुज मन लागे वारुरे ।मन मोहन स्वामी ॥ वांहे ग्रही ए नविजन तारे।आणे शिवपुर आरेरे ॥म||१|| तप जप मोह महा तोफाने, नाव न चाले मानेरे ॥ म ॥ पण नवी नय मुज हाथो हाथे, तारे ते बे साथेरे ॥म॥२॥ नगतने स्वर्ग स्वर्गथी अधीकुं, ज्ञानीने फल देई रे ॥ म०॥ कायाकष्ट विना फल लहीए, मनमां ध्यानज धरीये रे॥म॥३॥ जे उपाय वहुविधनी रचना, योगमाया ते जाणोरे ॥मः॥ शुद्ध अव्य गुण पर्याय ध्याने, शिव दे प्रनु सपराणोरे ॥ म ॥४॥ प्रनु पाय वलग्या ते रह्या ताजा, अलगा अंग न साजारे ॥म॥ वाचक जश कहे अवर न ध्याउं, ए अनुना गुण गाउंरे ॥ म ।। ५ ।।
श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन ।
( नाभीरायके बार. ए देशी ) तुज मुजरीऊ नीरीज, अटपट एह खरीरी । लटपट नावे काम, खटपट लांज परीरी ॥१॥
भर नमुद्रमांधी पार उतारनार। २ सागं ।
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२२० श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- मल्लीनाथ तुज रीऊ, जनरी नहुये री।दो एरीऊणनो उपाय, साहमुं कां न जुयेरी ॥ २ ॥ कुराराध्य जे लोक, सहुने सम न सरीरी । एक दुहवाए गाढ, एक जो बोले हसीरी॥३॥ लोक लोकोत्तर वात, रीजवे दाई शरी। तात चक्रधर पूज, चिन्ता एह हुरी ॥४॥ रीजववो एक सांई, लोक ते वात करीरी।श्रीनय विजयसु शीश, एहज चित्त धरीरी० ॥ ५॥
श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन ।
(पांडव पांचे वंदतां, ए देशी) । मुनिसुव्रत जिन वंदतां, अति उलसित तन मन थाय रे ।वदन अनोपम निरखतां,महारां जवजवनां दुःख जायरे॥जगत गुरु जागतो सुखकंदरे, सुखकंद अमंद आनंद ॥ज॥१॥ निशदिन सूतां जागतां, हीयमाथी न रहे पूररे। जैब उपगार संजारियें, तब उपजे आणंद पूरे ॥ ज०॥ ॥ ॥ प्रजु उपगार गुणें जर्या, मन अवगुण एक न समायरे। गुण गुण अनुबंधी हुथा, ते तो अ. १ दुःखे करीने आराधवा योग्य । २ प्रभु । ३ मुख । ४ जेनी बरोवरी फरी शके एवी कोई वस्तु न होय एबुं । ५ ज्यारे । ६ त्यारे ।
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चाविशी ।
२२१
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कल
क्ष्य नाव कहायरे ॥ ज० ॥ ३ ॥ श्रय पढ़ दीये प्रेम जे, प्रजुनो ते अनुभवरूपरे । अर स्वर गोचर नहि एतो, माय रूपरे ॥ ज० ॥ ४ ॥ अर थोमा गुण धणा, सज्जनना ते न लखायरे । वाचक जश कहे प्रेमथी पण, मन मांहे परखायरे ॥ ज० ॥ ५ ॥
श्री नमिनाथ जिन स्तवन । श्रीनमि जिननी सेवा करतां, लिय विघन सवि पूरे नासे जी । अष्ट महासिद्धि नवनिधि लीला, आवे बहु महमूर पासे जी ॥ श्री० ॥ १ ॥ मँयमत्ता अंगण गज गाजे, राजे तेजी तुखार चंगा जी । वेटा बेटी वंधव जोगी, लहीये बहु अधिकार रंगा जी || श्री० ॥२॥ वेंब्लज सगम रंग नही जे, अणवाहला होय दूर सहजे जी । वांठातणो विलंब न दूजो. कारज सीजें नूरि सहजेजी ॥श्री० || ३ || चंद्रकिरण यश उज्ज्वल उल्लसे, सूर्य तुल्य प्रताप दीपे जी । जे प्रभु जगति करे नित
{ जेनो फोर दिवस नाम नधो ते । २ जागवामां जीवामां । ३ कजाय नहि । ४ माया रहित । ४ रूप रहित । ६ अप्रिय । ७ मदमस्त हाथी । ८ पाणीदार सुंदर घोडा। भारनी जोड | १० महादानी मेला |
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२२२
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
विनये, ते अरीया बहु ताप जीपे जी ॥ श्री० ॥ ||४|| मंगल माला लच्छि विशाला, बाला बहुले प्रेम रंगेजी | श्रीनयविजय विबुध पय सेवक, कहे लहिये प्रेम सुख अंगे जी ॥ श्री० ॥ ५ ॥
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श्री नेमिनाथ जिन स्तवन । तोरणथी रथ फेरी गयारे हां। पशुओं शिरदेश दोष मेरे वालिमा । नव जव नेह निवारीयोरे हां। श्यो जो आव्या जोष ॥ मे॥ १ ॥ चंद्र कलंकी जेहथी रे हां। राम ने सीता वियोग ॥ मे० ॥ तेह कुरंगने वयणमेरे हां। पति आवे कुण लोक ॥ ॥मे०॥२॥ उतारी हुं चित्तथी रे हां, मुगतिधूतारी हेत ॥ ० ॥ सिद्ध अनंते जोगवीरे हां । तेहश्युं कवण संकेत || मे || ३ || प्रीत करतां सोहलीरे हां, निरवदतां जंजाल ॥ मे० ॥ जेहवो व्याल खेलाववोरे हां, जेहवी अगननी काल || मे | ॥ ४ ॥ जो विवाह अवसर दियोरे हां, हाथ उपर नवि हाथ - || मे० ॥ दीक्षा अवसर दीजीये
१ जे हरिणना लीघे चंद्रने लांछन लाग्धुं छे, अने राम सितानो वियोग थयो, ते हरिणना कहवा ऊपर कोण भगेसो राखे । २ साप । 3 परगावा वखने हाथ ऊपर हाथ न प्राप्या, पण हवे दीक्षा वखते
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चाविशी।
२२३ रे हां। शिर उपर जगनाथ ॥मे॥५॥श्म विलवती राजुल गरे हां । नेम कने व्रत लीध ।। मेण ॥ वाचकयश कहें प्रणमीयरे हां, ए दंपति दोश सिक ॥ मे ॥ ६ ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
( राग मल्हार ) वामानंदन जिनवर मुनिवरमां वमोरे॥1॥ ।मु०॥ जिम सुरमांहि सोहे, सुरपति परवमोरे ॥ ॥ केा सु०॥जिम गिरिमांहि सुराचल, मृगमांहे केसरिरे ।। के ॥ मृ॥ जिम चंदन तरुमांहे, सुनटमांही सुरथरिर ॥ के० ॥ सु॥१॥ नदीयामांहि जिम गंग,अनंग सरूपमारे।। के या फूलमाहि अरविंद, जरतपती नूपमारे ॥ के० ॥ ॥ ज०॥ ऐरौवण गजमांहि, गरुम खंगमां यथारे ॥ के ॥ ग० ॥ तेजवंत मांहि लोण, वखाणमां जिनकथारे ।। केा व ॥ ५ ॥ मंत्रमांहि नवकार, रतनमांहि हुँरमणीरे ॥ के ॥ २०॥ सागरमांहि माग माधा पर तो हाथ गयो । । पास। २ धी धणियाणी । ३ देवता । सन्द। भ्रष्ट । ६ मेग पर्वत । ७ झाटमा । ८ देत्य-गवण पंगेरे।। फामदेव । १० फामल । ऐरावत हाथी 1 १२ पक्षीनामा ।
सूर।।४ चिन्तामणि ।
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२२४
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतस्वयं-रमण शिरोमणी रे॥ के॥रा शुक्ल ध्यान जिम ध्यानमां, अति निर्मलपणेरे । के। अ० ॥ श्रीनय विजय विबुध पय, सेवक श्म नरे।। के०॥ ॥ से० ॥३॥
श्रीमहावीर जिन स्तवन ।' गिरुआर गुण तुम तणा, श्रीवर्धमान जिनरायारे । सुणतां श्रवणे अमी करे, माहरी निर्मल थाए कायारे॥ गि० ॥ १॥ तुम गुणगण गंगाजले, हुं जीली निरमल थाऊरे । अवर न धंधो श्रादरं, निशदिन तोरा गुण गाऊरे ॥ गि॥२॥ जील्या जे गंगाजले,ते टिलर जल नवी पेसरे।मालती फूले मोहिया, ते बावले जश् नवी बेसेरे ॥ गि० ॥३।। शम अमे तुज गुण गोग्गुं, रंगे राच्याने वली माच्यारे । ते किम परसुर आदलं, जे परनारी वश राव्यारे ॥ गि० ॥ ४ ॥ तूं गति तूं मती आशरो, तूं आलंवन मुज प्यारोरे। वाचक जस कहे माहरे, तूं जीव जीवन आधारोरे ॥ गिण |॥ ५ ॥
॥ इति श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत चोवीशी १ समाप्त ।
१स्वयंभृरमण समुद्र । २ न्हाया। ३ न्हाना तलावडामां। बीजा देवोने।
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चाविशी।
२२५ श्रीयशोविजयोपाध्यायकृत चोवीशी जी।
श्रीऋषन जिन स्तवन। ( मेरो प्रभुनीको मेरो प्रभुनीको, ए देशी)
ऋषन जिनंदाऋपन जिनंदा, तुंसाहिव हुँ ढं तुज वंदा । तुजश्युं प्रीति वनी मुज साची, मुज मन तुज गुणश्यु रह्यो माची ॥३०॥१॥ दीग देव रुचे न अनेरा, तुज पाखली चितहुं दिये फेरा। स्वामीश्युं कामणहुं कीg, चित्तहुं अमारं चोरी लीधुं ॥ ऋण ॥ २ ॥ प्रेम बंधाणो ते तो जाणो, निरवहश्यो तो होशे वखाणो । वाचक जश विनवे जिनराज, बाह्य ग्रह्यानी तुजने लाज ॥ऋ०॥३॥
श्रीअजित जिन स्तवन ।
(कपुर होइ अति ऊजलुरे, ए देशी) विजयानंद गुणनीलोजी,जीवन जगदाधार। तेहश्युं मुज मन गोठमीजी, गजे वारोवार । सोजागीजिन तुज गुणनो नहीं पार, तुं तो दोलतनो दातार ।। सो ॥२॥ जेहवी कूवा गहमीजी, जेहवू वननुं फूल । तुजगुंजे मन नवि मिट्युंजी, तेह, तेहनुं शूल ॥ सो० ॥२॥ माहारुं तो मन धुरिध
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२२६ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- कीजी, हलिलं तुज गुण संग । वाचक जश कहे राखजोजी, दिन दिन चढतो रंग ॥ ३ ॥
___-mareerश्रीसंनवनाथ जिन स्तवन ।
सेनानंदन साहिबो साचोरे, परि परि परख्यो हीरोजाचोरे। प्रीति मुछिका तेहश्युं जोमीरे, जाणुं में लही कंचन कोमीरे ॥ १॥ जेणे चतुरशुं गोठी न बांधिरे, तिणे तो जाण्युं फोकट वाधीरे।सुगुण मेलावे जेह बाहोरे, मणुष जनमनो तेहज लाहोरे ॥२॥ सुगुण शिरोमणि संनवस्वामीरे, नेह निवाह धुरंधर पामीरे । वाचक जश कहे मुज दिन वलियोरे, मनह मनोरथ सघलो फलीयोरे ॥३॥ श्रीअनिनन्दन जिन स्तवन ।
(गोडी गाजरे, ए देशी) . शेठ सेवोरे अनिनन्दन देव, जेहनी सारेरे सुर किंनर सेव । एहवो साहिब सेवे तेह हजूर, जेहनां प्रगटेरे कीधां पुन्य पंगूर ॥ शे॥१॥ जेह सुगुण सनेही साहिब हेज, दृगलीलाथी लहीयें सुखसेज । तृण सरखं लागे सघले साच, ते आ
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चोविगी ।
२२७ गणि आव्यु धरणीराज ॥ शेण ॥ २ ॥ अलवे में पाम्यो तेहवो नाथ, तेहथी हूं निश्चय हुयोरे सनाथ। वाचक जश कहे पामी रंग रेली, मानुं फलिय अंगणमे सुरतरु वेली ॥ शे० ॥३॥ श्रीसुमतिनाथ जिन स्तवन ।
(धरीआलो घाट, ए देशी) सुमतिनाथ दातार, कीजे अोलग तुम तणीरे । दीजे शिवसुख सार, जाणी ओलग जग धणीरे ॥ १॥ अखय खजानो तुज, देतां खोमी लागे नहीरे । किसि विमासण गुज्ज, जाचक थाके उन्ना रहीरे ॥२॥ रयण कोम तें दीध, ऊरण विश्व तदा कियोरे । वाचक जश सुप्रसिझ, मागे तीन रतन दियोरे ॥३॥
श्रीपदमप्रन्न जिन स्तवन ।
( आज अधिक भावे करी, ए देशी ) । पदमप्रन जिन सांजलो, करे सेवक ए अरदास हो। पांति वेसारियो जो तुम्हें, तो सफल करयो श्राश हो ॥ प० ॥ १ ॥ जिन शासन पांति तें ठवी, मुज थाप्युं समकित बाल हो। हवे नाणा खमि खमि कुण खमे. शिव मोदक
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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
पीरसे रसाल हो ॥ प० ॥ २ ॥ गज ग्रासन गलित
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सी थिंकरी, जीवे की मीना वंश हो । वाचक जश कहे इम चित्त धरी, दीजे निज सुख एक प्रश हो ॥ प० ॥ ३ ॥
'श्री सुपास जिन स्तवन । (ए गुरु वाल्होरे, ए देशी ) श्री सुपास जिनराजनोरे, मुख दीठे सुख होईरे । मानु सकल पद में लह्यांरे, जोतो नेह नजरि नरि जोई ॥ ए प्रभु प्यारोरे, माहारा चित्तनो ठारणहार मोहन गारोरे ॥ १ ॥ सिंचे विश्व सुधारसेंरे, चन्द रह्यो पण डूररे । तिम प्रभु करुणा दृष्टिथी रे, लहिये सुख महमूर ॥ ए० ॥ २ ॥ वाचक जश कहे तिम करोरे, रहिये जेम हजूररे । पीजे वाणी मीठमीरे, जेहवो सरस खजूर ॥३॥
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श्री चन्द्रप्रत्र जिन स्तवन । ( भोला शंभु, ए दशी ) मोरा स्वामी चन्द्रप्रन जिनराय, विनती अवधारीयें जीरेजी । मोरा स्वामी तुम्हे बो दीनदयाल, जवजलथी मुज तारीयें जी० ॥ १ ॥
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चोविगी।
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मोरा स्वामी हुँ याव्यो तुज पास, तारक जाणी गढ्गही जी० । मोरा स्वामी जोतां जगमां दीठ, तारक को वीजो नहि जी ॥ २ ॥ मोरा स्वामी अरज करतां श्राज, लाज वधे कहो केणि परी जी० ॥ मोरा स्वामी जश कहे गोपयतुट्य, जवजलधी करुणा धरी जी० ॥३॥
श्रीसुविधिजिन स्तवन ।
( राग मल्हार ) जिम प्रीति चन्द चकोरने, जिम मोरने मन मेहरे । अम्हने ते तुम्हशुं उन्लशे, तिम नाह नवलो नेह ॥ सुविधि जिणेसरु, सांगलो चतुर सुजाण । अति अलवेसरु ॥१॥ अणदी अलजो घणो, दीवे ते तृप्ति न होरे । मन तोहि सुख मानी लियें.वाहलातणुं मुख जो॥सु० ॥२॥ जिम विरह कहिये नवि हुये, किजिये तेहवो संचरे । कर जोमी वाचक जश कहे, नांजो ते नंद प्रपंच ॥ सु० ॥ ३॥
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२२८
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत--
पीरसे रसाल.हो ॥ प० ॥ ॥ गज ग्रासन गलित सीथिं करी, जीवे कीमीना वंश हो। वाचक जश कहे श्म चित्त धरी, दीजे निज सुख एक अंश हो ॥ प० ॥ ३ ॥
श्रीसुपास जिन स्तवन ।
( ए गुरु वाल्होरे, ए देशी) श्रीसुपास जिनराजनोरे, मुख दी सुख होरे । मानु सकल पद में लगारे, जोतो नेह नजरि जरि जोई ॥ एप्रनु प्यारोरे, माहारा चित्तनो गरणहार मोहन गारोरे॥१॥ सिंचे विश्व सुधारसेंरे, चन्द रह्यो पण पूररे।तिम प्रजु करुणा दृष्टिथीरे, लहिये सुख महमूर ।। ए ॥ २ ॥ वाचक जश कहे तिम करोरे, रहिये जेम हजूररे। पीजे वाणी मीठमीरे, जेहवो सरस खजूर ॥३॥
.. श्रीचन्प्रन जिन स्तवन । . . . . . ( भोला शंभु, ए दशी) ।। : मोरा स्वामी चन्द्रप्रन जिनराय, विनतमी अवधारीयें जीरेजी । मोरा स्वामी तुम्हे बो दी. नदयाल, जवजलथी मुज तारीयें जी ॥१॥
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चोविशी।
२२९ मोरा स्वामी हुं आव्यो तुज पास, तारक जाणी गहगही जी। मोरा स्वामी जोतां जगमां दीठ, तारक को बीजो नहि जी ॥२॥ मोरा स्वामी अरज करतां आज, लाज वधे कहो केणि परी जी॥ मोरा स्वामी जश कहे गोपयतुल्य, जवजलधी करुणा धरी जी ॥३॥ ।'
. श्रीसुविधिजिन स्तवन । ..
( राग मल्हार ) . जिम प्रीति चन्द चकोरने, जिम मोरने मन मेहरे । अम्हने ते तुम्हशुं जलशे, तिम नाह नवलो नेह ॥ सुविधि जिणेसरु, सांजलो चतुर सुजाण । अति अलवेसरु ॥१॥ अणदी अलजो घणो, दीठे ते तृप्ति न होरे । मन तोहि सुख मानी लिये,वाहलातणुं मुख जोश॥सु०॥२॥ जिम. विरह कहिये नवि हुये, किजिये तेहवो संचरे । कर जोमी वाचक जश कहे, लांजो ते नेद प्रपंच ॥ सु० ॥३॥
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२३० श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतश्रीशीतलनाथ जिन स्तवन ।
(भोलुडारे हंसा, ए दशी) शीतल जिन तुज मुज विचि आंतरं, निश्चयथी नहि कोय । दसण नाण चरण गुण जीवने, सहुने पूरण होय ॥ अंतरयामीरे स्वामी सांनलो ॥ १ ॥ पण मुज मायारे नेदि गोलवे, बाह्य देखामीरे वेष । हियके जूठीरे मुख अति मीठमी, जेहवी धूरत वेष ॥ अं ॥२॥ एहनि स्वामीरे मुजथी वेगली, कीजे दीनदयाल । वाचक जश कहे जिम तुम्हस्युं मिली, लहियें सुख सुविशाल ॥ अं ॥३॥
श्रीश्रेयांस जिन स्तवन ।
(मुखने मरकलडे, ए देशी) श्रेयांस जिणेसर दाताजी, साहिब सांजलो। तुम्हे जगमां अति विख्याताजी, साहिब सांजलो। माग्युं देतां ते किशुं विमासोजी, साहिब सांजलो । मुज मनमां एह तमासोजी, साहिब सांजलो॥१॥तुम्ह देतां सवि देवार्थेजी, साहिब सांनलो।तो अरज कर्ये श्युं थायेजी, साहिब सांजलो। यश पूरण केम लहिजेजी, साहिब सांजलो ।
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चोविशी।
२३१ जे अरज करिने दीजेजी, साहिब सजिलो ॥२॥ जो अधिकुं द्यो तो देजोजी, साहिब सांनलो। सेवक करि चित्त धरज्याजी, साहिब सांजलो । जश कहे तुम्ह पद सेवाजी, साहिब सांनलो। ते मुज सुरतरु फल मेवाजी,साहिब सांजलो ॥३॥
श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन ।
(विषय न गंजीये, ए देशी) वासुपूज्य जिन वालहारे, संजाशे जिन दास । साहिबश्यु हठ नवि होयरे, पण कीजे अरदासोरे ॥ चतुर विचारिये ॥१॥ सास पहिला सांजरेरे, मुख दीठे सुख होय । विसारया नवि विसरेरे, तेहश्युं हठ किम होयरे ॥ च० ॥२॥ आमण उमण नवि टलेरे, खण विण पूरिरे आश। सेवक जश कहे दीजियेरे, निजपद कमलनो वासोरे ॥ च ॥३॥
- - श्रीविमलनाथ जिन स्तवन ।
(ललनानी ढाल) विलनाथ मुज मन वसे, जिम सीता मन राम ललना । पिक वैठे सहकारने, पंथी मन
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२३२
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
जिम धाम ललना || वि० ॥ १ ॥ कुंजर चित्त रेवा वसे, कमला मन गोविंद ल० । गौरी मन शंकर वसे, कुमुदिनी मन जिम चंद ल० || वि० ॥ २ ॥ अलि मन विकसित मालती, कमलिनी चित्त दिद ल० | वाचक जशने वालहो, तिम श्री - विमल जिणंद ल० || वि० ॥ ३ ॥
श्री अनंत जिन स्तवन । ( ढाल रायादानी )
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श्री अनंत जिन सेवियेंरे लाल, मोहनवल्ली कंद | मन मोहनां । जे सेव्यो शिव सुख दियेरे लाल, टाले जव जय फंद ॥ श्री० ॥ म० ॥ १ ॥ मुख मटके जग मोहिरे लाल, रूप रंग प्रति चंग || म० ॥ लोचन अति णीयालमांरे लाल, वाणी गंग तरंग ॥ श्री० ॥ म० ॥ २ ॥ गुण संघला गे वस्यारे लाल, दोष गया सवि दूर ॥ म० ॥ वाचक जरा कहे सुख लहरे लाल, देखी प्रभु मुख नूर || श्री० ॥ म० ॥ ३ ॥
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श्री धर्मनाथ जिन स्तवन ।
( राग मल्हार ) धरमनाथ तुज सरखो, साहिब शिर थकेरे
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___ चोविशी। २३३ के साहिब शिर थकेरे । चोर जोर जे फोरवें, मुजश्युं श्क मनेरे के मु।गज निमीलिका करवी, तुजनें नवि घटेरे के तु। जे तुज सन्मुख जोतां, अरिनुं बल मिटेरे के अ॥रणारवि उगे गयणंगणि, तिमिर ते नवि रहेरे के ति । कामकुंन घर आवें, दारिज किम लहेरे के दा । वन विचरे जो सिंह तो, बीह न गजतणी रे के बी० । कर्म करे श्युं जोर, प्रसन्न जो जगधणी रे के प्र० ॥॥ सुगुण निर्गुणनो अंतर, प्रजु नवि चित्तें धरेरे के प्र । निर्गुण पण शरणागत, जाणी हित करे रे के जा । चंद त्यजें नवि लंडन, मृग अति सामलो रे के मृण् । जश कहे तिम तुम्ह जाणी, मुज अरि बल दलोरे के मु० ॥३॥
श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन ।
जग जन मन रंजे रे, मनमथ बल नंजेरे। नवि राग न दोस तूं, अंजे चित्तश्युं रे ॥१॥ शिर बत्र विराजे रे, देव कुंकुनि वाजेरे । उकुराश् श्म गजे, तोहिं अकिंचनोरे ॥२॥ थिरता धृति सारी रे, वरी समता नारी रे। ब्रह्मचारी शि रोमणि, तो पण तुं सुण्यो रे ॥३॥ न धरे नवरं
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२३४ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- गोरे, नवि दोषासंगोरे। मृगलंबन चंगो, तो पण तूं सही रे॥४॥तुज गुण कुण आखरे, जग केवली पाखे रे । सेवक जश नाखे, अचिरासुत जयो रे ॥५॥ श्रीकुंथुनाथ जिन स्तवन ।
(ढाल वीछियानी) .. सुखदायक साहिब सजिलो, मुजने तुमश्यु अति रंगरे । तुम्हे तो निरागी हुश रह्या, ए श्यो एकंगो टंगरे ॥ सु॥१॥ तुम्ह चित्तमां वसवू मुज घj, ते तो उंबर फूल समानरे। मुज चित्तमां वसहो जो तुम्हे, तो पाम्या नवे निधानरे ॥ सु ॥ ॥ श्रीकुंथुनाथ अम्ह निरवहुँ, श्म एकंगो पण नेहरे । इणि आकीने फल पामशें, वली होशे मुखनो बेहरे ॥सु॥३॥ आराध्यो कामित पूरवे, चिंतामणि पाषाणरे । वाचक जश कहे मुज दीजिये, श्मं जाणी कोमि कल्याणरे ॥ सु० ॥४॥
श्रीअरनाथ जिन स्तवन ।
( प्रथम गोवालनी, ए ढाल ) अरजिन दरिशन दीजियेंजी, नविक कमल
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चोविशी।
२३५ वन सूर । मन तरसे मलवा घणुंजी, तुम्हे तो जश् रह्या दूर । सोजागी तुम्हश्युं मुज मन नेह, तुमश्युं मुज मन नेहलोजी, जिम बपश्यां मेह ॥सो॥१॥ आवागमन पथिक तणुंजी, नहि शिव नगर निवेश । कागल कुण हाथे लिखूजी, कोण कहे संदेश ॥ सो ॥२॥ जो सेवक संज्ञारस्यो जी, अंतरयामीरे आप । जश कहे तो मुज मन तणोजी, टलशे सघलो संताप || सो ॥३॥
- श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन ।
(ढाल रसियानी) मबि जिणेसर मुजने तुम्हे मित्या, जेह मांहिं सुखकंद वाल्हेसर । ते कलियुग अम्हे गिरुओ लेखवू, नवि बीजा युगवृंद, वाल्हेसर ॥म ॥१॥ आरो सारो रे मुज पांचमो, जिहां तुम दरिशण दीठ वा । मरुभूमि पण थिति सुरतरु तणी, मेरु थकी हुश्श्व ॥ वा॥॥ पंचम आरेरे तुम्ह मेलावमे, रुमो राख्योरे रंग वा । चोथो आरोरे फिरि आव्यो गणुं, वाचक जश कहे चंग ॥ वाण ॥३॥
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२३६ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत--
श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन।
( वीरमाता प्रीतिकारिणी, ए देशी )
आज सफल दिन मुज तणो, मुनिसुव्रत दीग | नागी ते नाववि नवतणी, दिवस छरितना नीठा ॥ आ ॥ १ ॥ आंगणे कल्पवेली फली, घन अमियना वूग। आप माग्या ते पासा ढल्या, सुर समकित तूग ॥ आ ॥ ॥२॥ नियति हित दान सनमुख हुयें, स्वपुण्योदय साथे । जश कहे साहिब मुगतिर्नु, करिलं तिलक निज हाथे ॥ आ० ॥३॥
श्रीनमिनाथ जिन स्तवन ।
(ऋषभनो वंश रयणायरु, ए देशी ) मुज मन पंकज नमरले, श्रीनमिजिन जगदीशोरे । ध्यान करुं नित तुम्ह तणुं, नाम जपुं निशदिसोरे ॥ मु० ॥१॥ चित्तथकी कदियें न विसरे, देखीयें आगलि ध्यानिरे । अंतर तापथी जाणियें, दूर रह्यां अनुमानिरे ॥ मुण् ॥ ॥ तुं गति तुं मति आसरो, तुहिज बंधव मोटोरे । वाचक जश कहे तुज विना, अवर प्रपंच ते खोटोरे ॥ मुण् ॥ ३॥
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२३७
चोविशी। श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन ।
( राजा जो मिले, ए देशी) क्या कियो तुम्हे कहो मेरे सांई, फेरी चलें रथ तारण आई। दिल जानि अरे मेरा नाह, न त्यजिये नेह कलु अजानि ॥ दि० ॥१॥ अटपटाश् चले धरि कुब रोष, पसुअनके शिर दे करि दोष ।। दि० ॥५॥ रंग बिच लयो याथि नंग, सो तो साचो जानो कुरंग ॥ दि० ॥ ॥३॥ प्रीति तनकर्मि तोरत आज, किचं नावे मनमें तुम्ह लाज || दि०॥४॥ तुम्ह बहु नायक जानो न पीर, विरह लागि जिलं वैरीको तीर ॥ दि० ॥ ५॥ हार गर शिंगार अंगार, अशन वसन न सुहाई लगार ॥ दि०॥६॥ तुज विन लागे शूनि सेज, नही तनु तेज न हारद हेज ॥ दि० ॥७॥ आओने मंदिर विलसोनोग, बूढापनमें लीजे योग ।। दि०॥७॥ोरुगी में नहि तेरो संग, गलि चर्चा जिजं गया अंग॥ दिए॥ श्म विलवति गइ गढ गिरनार, देखे प्रीतम राजुल नार ॥ दि० ॥१॥ कंते दीनुं केवलज्ञान, कीधी प्यारी आप समान ॥ दि॥११॥ मुगति
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२३८
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
महलमें खेले दोश्, प्रणमें जश उदलसित तन हो ॥ दि० ॥ १५ ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
(ढाल फागनी ) चन कषाय पाताल कलश जिहां, तिसना पवन प्रचंम । बहु विकल्प कल्लोल चढतुहे, आरति फेन उदंग ॥ नव सायर नीषण तारीयें हो, अहो मेरे ललना पासजी । त्रिजुवन नाथ दिलमें ए विनती धारीयें हो ॥ १ ॥ जरत उदाम काम वरवानल, परत शीलगिरि शृंग । फिरत व्यसन बहु मघर तिमिंगल, करत हे निगम उमंग ॥ न ॥२॥ नमरीयाके बीचिं जयंकर, उलटी गुलटी वाच । करत प्रमाद पिशाचन सहित जिहां, अविरति व्यंतरी नाच ॥ न० ॥ ३ ॥ गरजत अरति फुरति रति बिजुरी, होत बहुत तोफान । लागत चोर कुगुरुमलवारी, धरम जिहाज निदान ॥ न० ॥ ४ ॥ जुरे पाटियें जिलं अति जोरि, सहस अढार शीलंग । धर्म जिहाज तिचं सज करि चलवो, जश कहे शिवपुरी चंग ॥ ज० ॥५॥
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NANNNNNN
चोविशी।
२३९ श्रीमहावीर जिन स्तवन । मुख टलियां मुख दी। मुज सुख उपनारे, नेट्या लेट्या वीर जिणंदरे । हवे मुज मन मंदिरमां प्रनु आवी वसोरे, पा, पा, परमानद रे ॥ दु ॥ १॥ पीठबंध शहां कीधो समकित वज्रनारे, काढ्यो काढ्यो कचरो ने ब्रांतिरे । इहां अति उंचा सोहे चारित्र चंपुआरे, रुमी रुमी संवर नातिरे ॥ ॥२॥ कर्म विवर गोपी हां मोतीडूंबणारे, फूल फूलश् धीगुण आठरे । बार नावना पंचाली अंचरय करेरे,कोरि कोरि कोरणि काग्रे ॥ कु० ॥३॥ श्हां आवी समता राणीश्युं प्रजु रमोरे, सारी सारी थिरता सेज रे । किम जश् शकश्यो एक वार जो आवशोरे, रंज्या रंज्या हियमानि हेजरे ॥ दु॥४॥ वयण अरज सुणी प्रजु मनमंदिर आवियारे, आ तूग तूग त्रिजुवन जाणरे । श्रीनयविजय विबुध पय सेवक श्म नणेरे, तेणि पाम्या पाम्या कोमि कल्याणरे ॥ दु० ॥५॥ ।। इति श्रीमद्यशोविजयोपाध्याय कृत २ जी चोवीशी संपूर्णा ।।
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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतचौद बोल्तनी चोवीशी।
P श्रीऋषनदेव जिन स्तवन ।
( आज सखी संखेसरो, ए देशी ) ऋषनदेव नितु वंदिये, शिवसुखनो दाता। नानि नृपति जेहनो पिता, मरुदेवी माता । नयरी विनीता उपनो, वृषन लांबन सोहें । सोवन्न वन्न सुहामणो, दीपके मन मोहें । हारे दीमे मन मोहें ॥ १॥ धनुष पांचसें जेहनु, कायार्नु मान । चार सहसश्युं व्रत लीये, गुण रयण विधान । लाख चोराशी पूर्वY, आज पाले | अमिय समी दीयें देशना, जग पातिक टाले ॥ हारे ज० ॥२॥ सहस चोराशी मुनिवरा, प्रजुनो परिवार । त्रण लद साध्वी कही, शुन्न मति सुविचार । अष्टापद गिरि चढी, टाली सवि कर्म । चमी गुणगणे चउदमें, पाम्या शिव शर्म ॥ हारे पा० ॥ ३ ॥ गोमुख यद चक्रेश्वरी, प्रनु सेवा सारे । जे प्रजुनी सेवा करे, तस विघन
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चोविशी ।
२४१
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निवारे | प्रभु पूजायें प्रण में सदा, नव निधितस हाथे । देव सहस सेवा परा, चालें तस साथे ॥ हारे चा० ॥ ४ ॥ युगला धर्म निवारणो, शिव मारग जाखे । जवजल पकता जंतुने, ए साहिब राखे । श्रीनयविजय विबुध जयो, तपगबमां दीव | तास शीश जावें जणे, ए प्रभु चिरं जीवो ॥ हांरे ए प्रभु ॥ ५ ॥
श्री अजितनाथ जिन स्तवन । अजित जिणंद जुहारियेंरे लो, जितशत्रु विजया जातरे सुगुण नर । नयरी अयोध्या उपनोरे लो, गजलंबन विख्यातरे सु० ॥ ० ॥ १॥ उंचपणुं प्रभुजीतपुरे लो, धनुष साढा सें च्याररे सु० । एक सहसयुं व्रत लियेरे लो, करुणारस नंगाररे सु०॥ ० ॥ २ ॥ वोहोतेर लाख पूरव धरेरे लो, आउखुं सोवन वानरे सु० । लाख एक प्रभुजीतणारे लो, मुनि परिवारनुं मानरे सु० ॥ अ० ॥ ३ ॥ लाख त्रण जली संयतीरे लो, ऊपर त्रीश हजाररे सु० । समेत शिखर शिवपद लही रे लो, पाम्या जवनो पाररे सु० ॥ ० ॥४॥ अजित
३१
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२४२
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
बला शासनसुरीरे लो, महायक्ष करे सेवरे सु० । कवि जश विजय कहे सदारे लो, ध्यानं ए जिनदेवरे सु० ॥ श्र० ५ ॥
श्री संजवनाथ जिन स्तवन ।
( महाविदेह क्षेत्र सोहामं, ए देशी )
माता सेना जेहनी, तात जितारी उदार लालरे | हेम वरण हय लंबनो, सावत्थी शिणगार लालरे | संभव नवजय जंजणो ॥ १ ॥ सहस पुरुषशुं व्रत लिये, च्यारसें धनुष तनु मान लालरे । साठ लाख पूरव धरें, आउखं सुगुण निधान लालरे ॥ सं० ॥ २ ॥ दोइ लाख मुनिवर जला प्रजुजीनो परिवार लालरे । त्रण लाख वर संयती, ऊपर बत्रीश हजार लालरे ॥ सं० ॥ ३ ॥ समेतशिखर शिव पद लघु, तिहां करे महोच्छव देव लालरे । दुरितारी शासनसुरी, त्रिमुख यद करे सेव लालरे || सं० ॥ ४ ॥ तुं माता तुं मुज पिता, तुं बंधव त्रण काल लालरे । श्रीनय विजय विबुध तो, शिष्य कहे दुख टाल लालरे || सं० ॥ ५ ॥
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चोविशी।
२४३
श्रीअनिनंदन जिन स्तवन ।
अभिनंदन चंदन, शीतल वचन विलास । संवर सिद्धारथा, नंदन गुणमणि वास ॥ त्रणसें धनु प्रनु तनु, ऊपर अधिक पंचास । एक सहसश्युं दीदा, लिये बांकी नवपास ॥१॥कंचनवान सोहें, वानर लंबन स्वामी । पंचास लाख प्रव, आयु धरे शिवगामी ॥ वर नयरी अयोध्या, अनुजीनो अवतार | समेतशिखर गिरि, पाम्या जवनो पार ॥२॥त्रण लाख मुनीश्वर, तप जप संजम सार । षट लद बत्रीश, साध्वीनो परिवार । शासनसुर ईश्वर, संघनां विघन निवारें । काली दुख टाली, प्रजुसेवकने तारें ॥३॥ तुं नवनय नंजन, जन मन रंजन रूप । मनमथ गद गंजन, अंजन रति हित सरूप ॥ तुं भुवनें विरोचन, गतशोचन जग दीसे । तुज लोचन लीला, लहि सुख नित दीसे ॥ ४॥ तुं दोलतदायक, जगनायक जगबंधु । जिनवाणी साची, ते तरिया जवसिंधु ॥ तुं मुनि मन पंकज, चमर अमर नर राय । उन्ना तुज सेवें, बुध जन तुज जश गाय ॥५॥
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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( भोलुडारे हंसा, ए देशी )
नयरी अयोध्यारे माता मंगला, मेघ पिता जस धीर । लंबन क्रौंच करें पद सेवना, सोवन वान शरीर ॥ १ ॥ मुज मन मोरे सुमति जिणेसरे, न रुचे को पर देव । खि खिए समरुरे गुण प्रभुजी तणा, ए मुज लागीरे देव ॥ मु०॥२॥
सें धनु तनु आयु धरें प्रभु, पूरव लाख चालीश । एक सहसशुं दीक्षा आदरी, विचरे श्री जगदीश ॥ मु० || ३ || समेत शिखर गिरि शिव पदवी लही, त्रण लाख वीस हजार। मुनिवर पण लख प्रजुनी संयती, त्रीश सहस वली सार ॥ मु० ॥ ४ ॥ शासनदेवी महाकाली जली, सेवें तुंबरु यद । श्रीनयविजय बुध सेवक जणें, होजो मुज तुज पद ॥ मु० ॥ ५ ॥
२४४
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श्री पद्मन जिन स्तवन । ( ढाल - झांझरी आनी )
कोसंवी नयरी नलीजी, धर राजा जस तात । मात सुसीमा जेहनीजी, लंकून कमल विख्यात । पद्मप्रश्युं लाग्यो मुज मन रंग ॥ १ ॥
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चोविशी ।
२४५ त्रीश लाख पूव धरेंजी, आउखुं नव रवि वन्न । धनुष अढीसें उच्चताजी, मोहे जगजन मन्न ॥ प० ॥ २ ॥ एक सहसश्युं व्रत लियेजी, समेतशिखर शिव गम।त्रण लाख त्रीस सहस नलाजी, प्रजुना मुनि गुणधाम ॥ प० ॥३॥ शीलधारिणी संयतीजी, चार लाख वीश हजार । कुसुम यद श्यामा सुरीजी, प्रतु शासन हितकार ॥प०॥४॥ ए प्रनु कामित सुरतरुजी, नवजल तरण जिहाज। कवि जश विजय कहे शहांजी, सेवो ए जिनराज ॥ १० ॥५॥
श्रीसुपासनाथ जिन स्तवन ।
( नंदनकुं त्रिशला हुलरावे, ए देशी ) तात प्रतिष्ठ ने पृथिवी माता, नयर वाराणसी जायोरे । स्वस्तिक लंबन कंचन वरणो, प्रत्यद सुरतरु पायोरे । श्रीसुपास जिन सेवा कीजे ॥ १॥ एक सहसयुं दीक्षा लीधी, वे सय धनुष प्रजु कायारे । वीश लाख पूरवनुं जीवित, समेतशिखर शिव पायारे ॥ श्री० ॥२॥ त्रण लाख प्रजुना मुनि गिरा, चार लाख त्रीश हजाररे । गुण मणि मंमित शील अखंमित,
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-
The
२४६ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-- साध्वीनो परिवाररे ॥ श्री० ॥ ३॥ सुर मातंग ने देवी शांता, प्रज्जु शासन अधिकारीरे । ए प्रजुनी जेणे सेवा कीधी, तेणे निज दुरगति वारीरे ॥ श्री० ॥४॥ मंगल कमला मंदिर सुंदर, मोहनवटली कंदोरे । श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, कहे ए प्रजु चिर नंदोरे ॥ श्री० ॥५॥
श्रीचंपन्न जिन स्तवन । ( वादल दह दिशि उनह्यो सखि, ए देशी )
श्रीचं प्रन जिनराजीओ, मुह सोहें पुनिमचंद । लंडन जस दीपे चर्नु,जग जन नयनानंदरे, प्रजु टाले नवनय फंदरे, केवल कमला अरविंदरे, ए साहिब मेरे मन वस्यो॥ १ ॥ महसेन पिता माता लक्ष्मणा, प्रनु चंद्रपुरी शिणगार।दोढसें धनु तनु जच्चता, शुचिवरणे शशीअनु. काररे, उतारे जवजल पाररे, करे जनने बहुउपगाररे, दुख दावानल जलधाररे॥ए॥॥ दश लाख पूरव आउखु, व्रत एक सहस परिवार । समेत शिखर शिवपद लघु, ध्यायी शुज ध्यान उदाररे, टाली पातिक विस्ताररे, हुआ जगजनना आधाररे, मुनिजन मन पिक सहकाररे ॥ ए॥३॥ मुनि लाख
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चोविशी।
२४७
अढी प्रजुजी तणा, तेम संयम गुणह निधान । त्रण लाख वर साहुणी वली, असीअ सहसनुं मानरे, कहे कवियण जस गुणगानरे, जिणे जित्या क्रोधने मानरे, जेणे दीधुं बरसीदानरे, वरषाजलधर अनुमानरे ॥ ए॥४॥ सुर विजय नाम नृकुटी सुरी, अनु शासन रखवाल । कवि जशविजय कहे सदा, ए प्रणमो प्रनु त्रिहु कालरे, जस पद प्रणमे नूपालरे, जस अष्टमी शशि सम नालरे, जे टाले जवजंजालरे ॥ ए० ॥ ५ ॥
श्रीसुविधिनाथ जिन स्तवन ।
( भावना मालती चुसीए, ए देशी ) सुविधि जिनराज मुज मन रमो, सवि गमो नवतणो तापरे । पाप प्रभु ध्यानथी उपशमो, वीशमो चित्त शुन्न जापरे ॥ सु० ॥ १॥ राय सुग्रीव रामा सुतो, नयरी काकंदी अवताररे । मच्छ लंबन धरे आउखु, लाख दोश् पूर्व निरधाररे ॥ सुण ॥२॥ एक शत धनुप तनु उच्चता, व्रत लिए सहस परिवाररे । समेतशिखर शिवपद लहें, फटिक सम कांति विस्ताररे ॥ सु० ॥ ३॥ लाख दोश् साधु प्रजुजीतणा, लाख एक सहस
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२४८
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत
वली वीशरे । साहुणी चरणगुण धारिणी, एह परिवार जगदीशरे ॥ सु० ॥ ४ ॥ अजित सुर वर सुतारा सुरी, नित करे प्रभुतणी सेवरे । श्रीनयविजय बुध शिष्यनें, चरण ए स्वामि चित्त जेवरे ॥ सु० ॥ ५ ॥
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श्री शीतलनाथ जिन स्तवन । ( कपूर होइ अति ऊजलं रे, ए देशी ) शीतल जिन नद्दिलपुरीरे, दृढरथ नंदा जात । नेनुं धनुष तनु उच्चताजी, सोवन वान विख्यातरे । निजी तुजश्युं मुज मन नेह, जिम चातकने मेहरे, तुंबे गुणमपि गेहरे ॥ जि० तु ॥ १ ॥ श्रीवत्स लंबन सोहतोजी, आयु पूरव लख एक । एक सहसश्युं व्रत लीयेंजी, आणी हृदय विवेकरे || जि० तु० ॥ २ ॥ समेत शिखर शुभ ध्यानथीजी, पाम्या परमानंद । एक लख षट साहुणीजी, एक लाख मुनि वृंदरे ॥ जि० तु० ॥ ३ ॥ सावधान ब्रह्मा सदाजी, शासन विधन हरे | देवी अशोका प्रभुतणीजी, अह निशि जगति करेइरे ॥ जि० ॥ तु० ॥ ४ ॥ परम पुरुष पुरुषोत्तमोजी, तूं नरसिंह निरीह | कवियण
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चोविशी।
२४९ तुज जश गावतांजी, पवित्र करे निज जीहरे ॥ जि तु० ॥ ५ ॥
श्रीश्रेयांसनाथ जिन स्तवन । ___ (नयरी अयोध्या जयवतीरे, ए देशी)
सिंहपुरी नयरी जलीरे, विष्णु नृपति जस तात । माता विष्णु महासतीरे, लीजे नाम प्रजातोरे । जिन गुण गाए ॥ १।। श्रीश्रेयांस जिनेसरुरे, कनक वरण शुचि काय । लाख चोराशी वरपनुरे, पाले प्रज्जु निज आयोरे ॥ जि ॥२॥ एक सहसश्युं व्रत लीयरे, असिय धनुष तनु मान । खम्गी लंबन शिव लहेंरे, समेतशिखर शुन्न ध्यानरे ॥ जि० ॥ ३॥ सहस चोराशी मुनिवरारे, त्रण सहस लख एक । प्रजुजीनी वर साहुजीरे, अदजुत विनय विवेकरे॥जि० ॥४॥ सुर मनुजेश्वर मानवीरे, सेवे पय अरविंद । श्रीनय विजय सुशीशनेरे, ए पजु सुरतरु कंदरे । जि० ॥ ५॥
श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन ।
(ऋपभना वंग रयणायरु, ए देशी ) श्रीवसुपूज्य नरेसरु, तात जया जस मातारे।
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२५० श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतलंबन महिष सोहामणो, वरणे प्रजु अति रातारे॥ गायें जिन गुण गहगही ॥१॥ श्रीवासुपूज्य जिणेसरु, चंपापुरी अवताररे । वरष बोतेर लाख आउ, सत्तरि धनु तनु साररे । गा ॥२॥ षट शत साथे संजम लियें, चंपापुरी शिवगामीरे। सहस बहोत्तर प्रजुतणा, नमियें मुनि शिर नामीरे॥गा॥३॥ तप जप संयम गुण नरी, साहुणी लाख वखाणीरे । यद कुमार सेवा करे, चमा देवीमां जाणीरे ॥ गा ॥ ४ ॥ जनमन कामित सुरमणी, नवदव मेह समानरे । कवी जश विजय कहे सदा, हृदय कमल धरो ध्यानरे ।। गा॥५॥
श्रीविमलनाथ जिन स्तवन । - सजनी विमल जिनेसर पूजीये, लेश केसर घोलाघोल | सजनी नगति नावना नावियें, जिम होश घरे रंग रोल । सजनी विमल जिनेसर पूजीयें ॥ १ ॥ स ॥ कंपिलपुर कृतवर्मनो, नंदन श्यामाजात । स० अंक वराह विराजतो, जेहना शुचि अवदात ॥ स० वि० ॥२॥ सण साठ धनुष तनु उच्चता, वरस साठ लाख आय । एक सहसश्युं व्रत लिये, कंचनवरणी काय ॥सण विण
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चोविशी।
२५१
॥३॥सण समेतशिखर शिवपद लघु, मुनीअमसठ हजार । स एक लाख प्रनु साहुणी, वली अह शत निरधार ॥ स० वि०॥४॥ स षण्मुख दिता प्रन्नु तणे, शासनधर अधिकार । सन् श्रीनयविजय विबुधतणा, सेवकने जयकार ॥ स० वि० ॥५॥
श्रीअनंतनाथ जिन स्तवन ।
(इडर आंवा आंवलीरे, ए देशी) नयरी अयोध्या ऊपनारे, सिंहसेन कुलचंद । सींचाणो लंबन नलारे, सुयसा मातानो नंद । नविक जन सेवो देव अनंत ॥ १॥ वरप त्रीश लाख पाउरे, उंचा धनुषपंचाश | कनक वरण तनु सोहतोरे, पूरे जगजन आश ॥ १० ॥ ॥५॥ एक सहसश्युं व्रत ग्रहीरे, समेत शिखर निरवाण । गसठ सहस मुनीश्वरुरे, प्रजुना श्रुत गुण जाण ।। न० ॥ ३॥ वासठ सहस सुसाहुणीरे, प्रजुजीनो परिवार । शासनदेवी अंकुशीरे, सुर पाताल उदार ॥ न० ॥ ४ ॥ जाणे निज मन दासतुंरे, तूं जिन जग हितकार । बुध जश प्रेमें विनवरे, दीजे मुज दीदार ॥ न ॥ ५ ॥
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२५२
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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
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लंबन वज्र
श्री धर्मनाथ जिन स्तवन । रतनपुरी नयरी हुरे लाल, उदार मेरे प्यारेरे । जानु नृपति कुल केसरीरे | लाल, सुव्रता मात मल्हार || मेरे प्यारेरे धर्म जिनेसर ध्याइयेरे लाल ॥ १ ॥ आयु वरष दश लाखनुंरे लाल, धनु पणयाल प्रसिद्ध | मे० । कंचन वरण विराजतोरे लाल, सहस साथै व्रत लीध ॥ ० ० ॥ २ ॥ सिद्धिकामिनी करग्रहेरे लाल, समेत शिखर प्रतिरंग | मे० । सहस चोसव सोहामणारे लाल, प्रभुना साधु अनंग ॥ ॥ मे० ध० ॥ ३ ॥ बासठ सहस सुसादुणी रे लाल, वली उपरि सत चार । मे० | कंदर्पा शासनसुरीरे लाल, किन्नर सुर सुविचार ॥ मे० ध० ॥ ४ ॥ लटकाले तुज लोणेरे लाल, मोह्या जगजन चित्त । मे० । श्रीनयविजय विबुधतणोरे लाल, सेवक समरे नित्त ॥ मे० ध० ॥ ५ ॥
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श्री शांतिनाथ जिन स्तवन ।
( त्रिभुवन तारण तीरथ, ए देशी ) गजपुर नयर विभूषण, डूषण टालतोरे के
चालतोरे के
डूषण | विश्वसेन नरनाहनुं कुल
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चोविशी।
२५३ कुल अचिरानंदन वंदन, कीजे नेहश्युरे के कीजे। शांतिनाथ मुख पूनिम, शशि परि जवश्युरे के । श॥१॥ कंचन वरणी काया, माया परिहरेरे के। माया। लाख वरष-बाउ, मृग लंबन धरेरे के। मृग। एक सहसश्युं व्रत ग्रहे,पातिक वन दहेरे के। पा । समेत शिखर शुज ध्यान थी, शिवपदवी लहेरे के । शिव ॥२॥ चालीश धनु तनु राजें, नाजे नय घणारे के। ना।बासठ सहस मुनीसर, विलसें प्रजुतणारे के । वि एकसठ सहस उसे वली, अधिकी साहुणीरे के । अ०। प्रनु परिवारनी संख्या, ए साची मुणीरे के ॥ ए० ॥३॥ गरुम यद निरवाणी,प्रनु सेवा करेरे के ॥०॥ ते जन बहु सुख पावशे, जे प्रजु चित्त धेरेरे के। जे । मद करता गाजे. तस घरि आंगणेरे के । त | तस जगहिमकर सम, जश कवियण मणेरे के ॥ ज० ॥ ४॥ देव गुणाकर चाकर, हुं हुं ताहरोरे के । हुं । नेह नजर नरि मुजरो, मानो माहोरे के । मा। तिहुश्रण नासन शासन, चित्त करुणा करोरे के । चि० | कवि जश विजय पयंपे, मुज नव दुख होरे के ॥ मु० ॥ ५ ॥
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२५४ ___ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत--
श्रीकुंथुनाथ जिन स्तवन ।
( ढाल मरकलडानी ) गजपुर नयरी सोहियेंजी साहिब गुणनिलो। श्रीकुंथुनाथ मुख मोहियेंजी साहिब गुणनिलो ॥ सूर नृपति कुल चंदोजी सा । श्रीनदन नावे वंदोजी ॥ सा ॥१॥ अजलंबन वंबित पूरेजी सा । प्रजु समरिओ सकट चूरजी सापांत्रीश धनुष तनु मानेजी सा। व्रत एक सहस अनुमानेजी॥सा ॥२॥आयु वरष सहस पंचागुंजी सा । तनु सोवन वान वखापुंजी सा ॥ समेत शिखर शिवपायाजी सा । साठ सहस मुनीश्वर रायाजी ॥ सा ॥ ३ ॥ षटशत वली साठ हजारजी सा । प्रजु साध्वीनो परिवारजी सा ॥ गंधर्व बला अधिकारीजी सा । प्रज्जु शासन सांनिधकारीजी ॥ सा ॥ ४ ॥ सुख दायक मुखने मटकेजी सा । लाखेणे लोयण लटकेजी सा ॥ बुध श्रीनय विजय मुर्णिदोजी सा । सेवकने दियो आणंदोजी ॥ सा॥५॥
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चोविगी।
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श्रीअरनाथ जिन स्तवन ।
( समारे साद दिइरे देव, ए देशी ) अरजिन गजपुर वर शिणगार, तात सुदर्शन देवी मदहार । साहिव से वियें, मेरे मनको प्यारो से वियें । त्रीश धनुष प्रजु उंची काय, वरष सहस चोराशी आय ॥ सा ॥ १ ॥ नंदावर्त विराजे अंक, टालें प्रनु नव नावना आतंक सा० ॥ एक सहसश्युं संयम लीध, कनक वरण तनु जगत प्रसिझ॥सा॥२॥ समेत शिखर गिरि सवल उगह, सिकिवधूनो करेरे विवाह । सा । प्रजुना मुनि पंचास हजार, साठ सहस साध्वी परिवार ॥ सा ॥ ३॥ यद इंश प्रजु सेवाकार, धारिणी शासननी करे सार। सा । रवि उगे नासे जिम चोर, तिम प्रजुना ध्याने करम कगेर ॥ सा ॥ ४ ॥ तुं सुरतरु चिंतामणि सार, तुं प्रनु जगति मुगति दातार । सा। वुध जशविजय करे अरदास, दी- परमानंद विलास ॥ सा ॥५॥
श्रीमतिनाथ जिन स्तवन ।
(प्रथम गोवालातणे भवेजी, ए देशी) मिथिला नयरी अवतयोंजी, कुंन नृपति
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२५६ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतकुलजाण | राणी प्रजावती उर धर्योजी, पचवीश धनुष प्रमाण । नविक जन वंदो मदिल जिणंद, जिम होयें परम आनंद नविक जन ॥१॥ लंडन कलश विराजतोजी, नील वरण तनु कांति । संयम लीये शत त्रणश्युंजी, लाजे नवनी ब्रांति न वं० ॥२॥ वरष पंचावन सहसमुंजी, पालीए पूरण आय । समेतशिखर शिवपद लघुजी, सुर किन्नर गुण गाय ॥ ज० वं० ॥३॥ सहस पंचावन साहुणीजी, मुनि चालीश हजार । वैरोट्या सेवा करेजी, यद कुबेर उदार ॥ न वं० ॥४॥ मूरति मोहनवेलमीजी, मोहे जग जन जाण । श्रीनयविजय सुशीशनेजी, दिये प्रनु कोटि कल्याण ॥ न वं० ॥५॥
-- - श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन ।
(ढाल रसियानी) पद्मादेवी नंदन गुणनिलो, राय सुमित्र कुल चंद, कृपानिधि । नयरी राजगृही प्रजुजी अवतर्यो, प्रणमें सुरनर वृंद, कृपानिधि, मुनिसुव्रत जिन नावे वंदिये ॥ १ ॥ कच्छप लंबन
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चाविशी ।
२५७
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साहिव शामलो, वीश धनुष तनुमान कृ० । त्रीश सहस संवत्सर आउखुं, वहु गुण रयण निधान । कृ० मु० ॥ २ ॥ एक सहसश्युं प्रभुजी व्रत ग्रहि, समेत शिखर लहि सिद्धि कृ० । सहस पंचास विराजे साहुणी, त्रीश सहस मुनि प्रसिद्धि || ॥ कृ० मु० ॥ ३ ॥ नरदत्ता प्रभु शासनदेवता, वरुण यक्ष करे सेव कृ० । जे प्रभु जगति राता तेहना, विघन हरे नितमेव ॥ कृ० मु० ॥ ४ ॥ जावट जंजन जन मन रंजनो, मूरति मोहनगार कृ० । कवि जशविजय पयंपे जवनवे, ए मुज एक आधार || कु० मु० ॥ ५ ॥
श्रीनमिनाथ जिन स्तवन ।
( काज सिध्यां सकल हवे सार, ए देशी ) मिथिलापुर विजय नरिंद, वप्रासुत नमि जिनचंद | नीलुप्पल लंबन राजे, प्रभु सेव्यो नाव जाजे ॥ १ ॥ धनुष पन्नर उंच शरीर, सोवन वान साहस धीर । एक सहसयुं लिये निरमाय, व्रत वरप सहस दश आय ॥ २ ॥ समेत शिखर आरोही, पुहता शिवपुर निरमोही | मुनि वीश सहस शुभ नाणी, प्रभुना उत्तम गुण
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२५८ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतखाणी ॥ ३ ॥ वली साध्वीनो परिवार, एक तालीश सहस उदार । सुर नृकुटि देवी गंधारी, प्रभु शासन सांनिधकारी ॥ ४ ॥ तुज कीरति जगमां व्यापी, तप तपे प्रबल प्रतापी। बुध श्रीनयविजय सुसीस, श्म दियें नित नित आसीस ॥५॥ श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन ।
(ढाल फागनी ) समुख विजय शिवादेवी, नंदन नेमिकुमार। शोरियपुर दश धनुषनु, लंबन शंख सफार ॥ एक दिन रमतो आवियो, अतुलीबल अरिहंत । जिहां हरी आयुधशाला, पूरे शंख महंत ॥ १ ॥ हरी जय नरि तिहां आवे, पेखे नेमि जिणंद। सरिखें सम बल परखें, तिहां जिते जिनचंद ॥ आज राज ए हरशे, करशे अपयश नूरि । हरी मन जाणी आणी, तव थश् गगने अपूरि ॥२॥ अणपरण्ये व्रत लेशे, देशे जग सुख एह । हरी मत बीहे ईहे, प्रजुश्यं धर्म सनेह ॥ हरी सनकारी नारी, तव जन मज्जन जति । मान्युं मान्युं परणवू, श्म सवि नारी कहंति ॥३॥ गुणमणि पेटी खेटी, उग्रसेन नृप पास । तव हरी
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चाविशी ।
२५९ जाचें मा, माथे प्रेमविलास ॥ तूर दिवाजे गाजें, गजे चामर कंति । हरे प्रक्षु आव्या परणवा, नवनवा उत्सव हंति ॥ ४ ॥ गोखे चढी मुख देखे, राजीमती नर प्रेम । राग अमीरस वर, हर पेखी नेम ॥ मन जाणे ए टाणे, जो मुज परणे एह । संनारे तो रंना, सवल अचंना तेह ।। ५ ।। पशुअ पुकार सुणी करी, इणि अवसरे जिनराय । तस दुख टाली वाली, रथ व्रत लेवा जाय ॥ तव वाला दुख काला, परवशि करेंरे विलाप, कहिये जो हवे हुँ मी, तो देश्यो व्रत आप ॥ ६ ॥ सहस पुरुषश्युं संयम, लिये शामल तनु कंति । ज्ञान लही व्रत आपे, राजीमती शुन्ज शंति ॥ वरप सहस आउखु, पाली गढ गिरनार । परण्या पूर्व महोत्सव जव गंमी शिवनार ॥ ७ ॥ सहस अढार मुनीसर, प्रजुजीना गुणवंत । चालीश सहस सुसाहुणी, पामी नवनो अंत ॥ त्रिजुवन अंवा अंवा, देवी सुर गोमेध । प्रनु सेवामां निरता, करता पाप निषेध ॥ ७॥ अमल कमल दल लोचन, शोचन रहित निरीह । सिंह मदन गज नेदवा, ए जिन अकल अबीह ॥ शृंगारी गुणधारी, ब्रह्मचारी शिर लीह । कवि
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२६०
श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
जशविजय निपुण गुण गावे तुज निशदीद |||| श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
नयरी वाराणसी अवतर्यो हो, अश्वसेन कुलचंद | वामानंदन गुण निलो हो, पासजी शिव तरु कंद ॥ परमेसर गुण नितु गाइयें हो ॥ १ ॥ फणिलंबन नव कर तनु जिनजी, सजल घनाघन वन्न । संयम लियें शत तीनश्युं हो, सवि कहे ज्युं धन धन्न ॥ प० ॥ २ ॥ वरष एक शत - उखुं हो, सिद्धी समेत गिरीश | सोल सहस मुनि प्रभुता हो, साहुणी सहस अमतीस ॥ प० ॥३॥ धरणराज पद्मावती हो, प्रभु शासन रखवाल । रोग शोग संकट टले हो, नाम जपत जपमाल ॥ प०॥ ॥ ४ ॥ पास आशपूरण अब मेरी, अरज एक धार | श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, जश कहे जवजल तार ॥ प० ॥ ५ ॥
श्री महावीर जिन स्तवन ।
( राग धन्याश्री )
आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपाकुंन जो मुज्ज तू । कल्पतरु कामघट कामधेनु मिल्यो, गणे अमियरस मेह वूठो ॥
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चाविशी ।
२६१
आ
आ० ||१|| वीर तुं कुंमपुर नयर नूपण हुआ, राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो । सिंह लंबन कनक वर्ण कर सप्त धनु, तुज समो जगतमां को न दुजो ॥ ० || २ || सिंह परे एकलो धीर संयम यहें, आयु वोहोत्तर वरप पूर्ण पाली । पुरी पापायें निष्पाप शिवबहू वर्यो, तिहां थकी सर्व प्रगटी दीवाली ॥ ० ॥ ३ ॥ सहस तुज चउद सुनिवर महा संयमी, साहुणी सहस वत्रीश राजे । यक्ष मातंग सिद्धायिका वर सुरी, सकल तुज न विकनी जीति जाजे ॥ ० ॥ ४ ॥ तुज वचन राग सुखसागरे कीलतो, पील तो मोह मिथ्यात्व वेली । वीओ नावि धरमपथ हुं हवे, दीजियें परमपद होइ वेली ॥ ० ॥ ५ ॥ सिंह निशि दीह जो हृदय गिरि मुज रमें, तुं सुगुणलीह श्रविचल निरीहो | तो कुमतरंग मातंगना यूथथी, मुज नही कोई लवलेश वीहो || आ || ६ || शरण तुज चरण में चरणगुणनिधि ग्रह्मा, जब तरप करण दम शरम राखो । हाथ जोगी कहें जशविजय बुध इश्युं, देव निज जवनमां दास राखो ॥ ॥ ७ ॥ ॥ इति श्रीयगो विजयोपाध्याय कृत चौढ योनी चविशी संपूणी ॥
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अथ । ॥ श्रीदेवविजयजी कृत अष्ट प्रकारी पूजा ॥
तत्र। ॥प्रथम न्हवण पूजा ।।
॥दोहा॥ अजर अमर निकलंक जे, अगम्य रूप अनंत । अलख अगोचर नित्य नमुं, परम प्रजुतावंत ॥१॥ श्रीसंनव जिन गुणनिधि, त्रिजुवन जन हितकार। तेहना पद प्रणमी करी, कहिशुं अष्ट प्रकार ॥२॥ प्रथम न्हवण पूजा करो, बीजी चंदन सार । त्रीजी कुसुम वली धूपनी,पंचमी दीपमनोहार॥३॥ अदत फल नैवेद्यनी, पूजा अतिहि उदार । जे नवियण नित नित करे, ते पामें नवपार ॥४॥ रतन जमित कलशे करी, न्हवण करो जिन नूप । पातक पंख पखालतां, प्रगटे आत्म स्वरूप ॥५॥ अव्य नाव दोय पूजना, कारण कार्य संबंध । लावस्तव पुष्टि जणी, रचना अव्य प्रबंध ॥६॥
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अमकारी पूजा |
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शुभ सिंहासन मांगीने, प्रभु पधरावो जक्त । पंच शब्द वात्रिशुं, पूजा करियें व्यक्त ||७||
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॥ ढाल पहेली ॥
( अनेहारे जिन मंदिर रलियाम रे, ए देगी ) नेहारे न्हवण करो जिनराजने रे, ए तो शुद्धावन देव । परमातम परमेसरू रे, जसु सुरनर सारे सेव ॥ न्ह० ॥ १ ॥ अ० मागध तीर्थ प्रजासनां रे, सुरनदी सिंधुनां लेव । वरदाम क्षीर समुद्रनां रे, नीरे न्हवे जेम देव || न्ह० ॥ २ ॥
० तेमज विजावे तीर्थोदके रे. वासोवास सुवास ।
ओषधी पण नेली करी रे, अनेक सुगंधित खास ॥ न्ह० ॥ ३ ॥ अ० काल अनादि मल टालवा रे, जालवा आतम रूप । जलपूजा युक्त करी रे, पूजो श्री जिन भूप ॥ न्ह० || ४ || अ० विप्रवधू जलपूजथी रे, जेम पामी सुख सार । तेम तमे देवाधिदेवने रे, अची लहां नवपार ॥ FEO || 4 ||
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( काव्यम् )
विमल केवलदर्शनसंगुनं सकलजन्तु महोदयकारणम् । स्वियाम्यहं जिनपरं नवजारमा ॥२॥
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२६४
श्रीदेवविजयजी कृत
॥ अथ द्वितीय चन्दनपूजा ॥
(दोहा) हवे बीजी चंदन तणी, पूजा करो मनोहार । मिथ्या ताप अनादिनो, टालो सर्व प्रकार ॥१॥ पुद्गल परिचय करी घणो, प्राणी थयो दुर्वास | सुगंध अव्ये जिन पूजीने, करो निज शुद्ध सुवास ॥
॥ ढाल बीजी॥ ( मनथी डरणां परनारी संग न करणां, ए देशी )
नवि जिन पूजो दुनियामां देव न दूजो। जे अरिहा पूजे, तस नवनां पातक भ्रूजे ॥ ज० ॥१॥ प्रनु पूजा बहु गुण जरीरे, कीजे मनने रंग । मन वच काया थिर करीरे, अरचो अरिहा अंग ॥ न० ॥॥ केसर चंदन घसी घणुं रे, मांहे नेली घनसार । रत्न कचोलीमांहि धरी रे, प्रनु पद चरचो सार ॥ ज० ॥३॥ नव दव ताप शमाववा रे, तरवा नव जल तीर । आतम सरूप निहालवा रे, रूमो जगगुरु धीर ॥ ज० ॥४॥ पद जानु कर अंस शिरे रे, नाल गले वली सार । हृदय उदर प्रजुने सदा रे, तिलक करो मन प्यार ॥ न ॥ ५॥ एणि विध जिनपद
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अष्टप्रकारी पूजा।
२६५ पूजना रे, करतां पाप पलाय । जेम जयसुरने शुजमति रे, पाम्या अविचल गय ॥ ज०॥ ६ ॥
(काव्यम्) जगदुपाधिचयाद रहितं हितं, सहजतत्त्वकृते गुणमन्दिरम् । विनयदर्शनकेसरचन्दनरमलहन्मलहन्जिनमर्चये ॥ १ ॥
॥ इति द्वितीय चन्दनपूजा समासा ।।
अथ तृतीय कुसुमपूजा।
॥दोहा॥ त्रीजी कुसुमतणी हवे, पूजा करो सदनाव । जेम दुप्कृत पूरे टले, प्रगटे आत्म स्वनाव ॥ १ ॥ जे जन पद ऋतु फूलशें, जिन पूजे त्रण काल | सुर नर शिव सुख संपदा, पामे ते सुरसाल ॥२॥
ढाल त्रीजी।
( साहेलडीयांनी देशी) कुसुम पूजा नवि तुमे करो, साहेलडीयां । श्राणी विविध प्रकार, गुण वेलमीयां ॥ जाई जुई केतकी सा० । ममरो मरुयो सार गु० ॥ १ ॥ मोघरो चंपक मालती सा । पामल पद्म ने वेल गु० ॥ वोल सिरी जासूलशुं सा० । पूजो मनने गेल
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२६६
श्रीदेवविजयजी कृतगु० ॥ २॥ नाग गुलाब सेवंतरी सा। चंपेली मचकुंद गु० ॥ सदा सोहागण दाउदी सा० । प्रियंगु पुनागना बंद गुण ॥ ३ ॥ बकुल कोरंट अंकोलथी सा । केवमो ने सहकार गुण ॥ कुंदादिक पमुहा घणे सा० । पुष्पतणे विस्तार ॥ गु० ॥४॥ पूजे जे नवि नावशुं सा० । श्रीजिन केरा पाय गु० ॥ वणिक सुता लीलावती सा। जिम लहे शिवपुर गय गु० ॥ ५॥
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(काव्यम्) सुकरुणासुनृतार्जवमार्दवैः प्रशमशौचशमादिसुमैर्जनाः !। परमपूज्यपदस्थितमर्चत परमुदारमुदारगुण जिनम् ॥ ६ ॥
॥ इति तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥
अथ चतुर्थ धूप पूजा।
॥दोहा ॥ अर्चा धूपतणी करो, चोथी हर्ष अमंद । कर्मेधन दाहन जणी, पूजो श्रीजिनचंद ॥१॥ सुविधि धूप सुगंधगुं, जे पूजे जिनराय । सुर नर किन्नर ते सवि, पूजे तेहना पाय ॥२॥
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अष्टप्रकारी पूजा ।
॥ ढाल चोथी ॥
( सामरी सुरन पर मेरो दिल अटक्यो, ए देशी ) रिहा आगे धूप करीने, नर नव लाहो लीजेरी | अगर चंदन कस्तूरी संयुत, कुंदरुमांहि धरीजेरी || रि० ॥ १ ॥ चूरण शुद्धि दशांग अनोपम, तुरुक अंबर नावीजेरी । रत्न जमित धूपधारणामांहे, शुन घनसार वीजेरी || अरि० ॥ २ ॥ पवित्र थई जिन मंदिर जईने, प्राशय शुद्ध करीजेरी | धूप प्रगट वामांगे धरतां, जव जव पाप हरीजेरी ॥ यरि० ॥ ३ ॥ समता रस सागर गुण आगर, परमातम जिन पूरारी । चिदानंद घन चिन्मय मूरति, जगमग ज्योति सनूरारी ॥ अरि० ॥ ४ ॥ एहवा प्रजुने धूप करंतां, अविचल सुखमां लहिये। । इहजव परजव संपत्ति पामे, जेम विनयंधर कहियेरी ॥ अरि० ॥ ५ ॥
२६७
( काव्यम् )
अशुभपुगलसंचयवारगां शमसुगन्धकरं तपधूपनम | भगवना सुपुरोहितकर्मणा जयवती यतोऽक्षयसंपदा ॥ १ ॥ ॥ इति चतुर्थ धृपपूजा समाप्ता ॥
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श्रीदेवविजयजी कृत-- अथ पंचम दीपकपूजा।
॥दोहा॥ निश्चय धन जे निजतएं, तिरोनाव ले तेह । प्रमुख अव्य दीपक धरी,आविरजाव करेह ॥१॥ अनिनव दीपक ए प्रजु, पूजी मांगो हेव । अझान तिमिर जे अनादिनु, टालो देवाधिदेव ॥
ढाल पांचमी।
( झुमखडानी देशी) जाव दीपक प्रनु आगले, अव्य दीपक उत्साहे। जिनेसर पूजीए।प्रगट करी परमातमा, रूप जावो मन माहे ॥ जि ॥ १॥ धूम कषाय न जेहमां, न लिपे पतंगने तेज । जिण् । चरण चित्रामण नवि चले, सर्व तेजनुं तेजरे॥जि०॥२॥ अध न करे जे आधारने, समीर तणे नहीं गम्य । जि | चंचल नाव जे नवि लहे, नित्य रहे वली रम्य ॥ जि॥३॥ तैल प्रक्षेप जिहां नहीं, शुभ दशा नहि दाह । जि० । अपर दीपक ए अरचतां, प्रगटे प्रशम प्रवाह ॥ जिण ॥४॥ जेम जिनमति ने धनसिरि, दीप पूजनथी दोय । जि० ।
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अष्टप्रकारी पूजा |
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अमर गति सुख अनुभवी, शिवपुर पोहोती सोय || जि० ॥ ५ ॥
( काव्यम् )
बहुलमोहनमिस्त्र निवारकं स्वपरवस्तुविकासनमात्मनः । बिमलबोधसुदीपकमादधे भुवनपावन पारंगताग्रतः ॥ १ ॥ ॥ इति पंचम दीपकपूजा समाप्ता ॥
अथ षष्ट प्रतपूजा । || दोहा || सम कितने अजुवालवा, उत्तम एह उपाय । पूजाथी तमे प्रीठजो, मनवंठित सुख थाय ॥ | १ || अक्षत शुद्ध अखंमशुं, जे पूजे जिनचंद | लहे खंमित तेह नर, अक्षय सुख यानंद ॥ २ ॥
ढाल वही ।
( धर्म जिणंद दयालजी धर्मतणां दाता, ए देशी ) अक्षत पूजा जवि कीजेजी, अत फल दाता | शालि गोधूम पण लीजेजी ० । प्रभु सन्मुख स्वस्तिक कीजेजी ० | मुक्ताफल वीच में दीजेजी ० ॥ १ ॥ एवा उज्वल यक्षत
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२७०
श्रीदेवविजयजी कृत-- वासीजी अण् । शुन्न तंदुल वासे उदलासीजी अ । चूरक चजगति चित्त चोखेंजी अण् । पूरी अक्षय सुख लहो जोखेजी अ० ॥ ५॥ पुनरावर्त हरवा हाथेजी अ । नंदावर्त करो रंग साथेजी अ । कर जोमी जिनमुख रहीनेजी अण् । एम आखो शिव दीयो वहीनेजी अ० ॥ ३ ॥ जगनायक जगगुरु जेताजी अण। जगबंधु अमल विनु नेताजी अ । ब्रह्माईश्वर वमनागीजी अ॥ योगीश्वर विदित वैरागीजी अ० ॥४॥ एहवा देवाधिदेवने पूजेजी अ० । जव जवनां पातक धूजेजी अजेम कीर युगल नव पारजी अ०। लहे अदत पूजा प्रकारजी अ० ॥५॥
(काव्यम्) सकलमङ्गलसंभवकारणं, परममततभावकृते जिनम् । सुपरिणाममयैरहमक्षतैः परमया रमया युतमर्चये ॥१॥
॥ इति षष्ठ अक्षतपूजा समाप्ता ॥
अथ सप्तम फलपूजा।
॥ दोहा ॥ श्रीकार उत्तम वृदनां, फल लेई नर नार । जिनवर आगे जे धरे, सफलो तस अवतार ॥१॥
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अप्रकारी पूजा।
२७?
फलपूजाना फलथकी, कोमि होय कल्याण । अमर वधू उलट धरी, तस धरे चित्तमां ध्यान ॥२॥
ढाल सातमी।
(विढलीनी देशी) फल पूजा करो फलकामी. अभिनव प्रन्तु पुण्ये पामी हो । प्राणी जिन पूजो । श्रीफल अखोम बदाम, सीताफल दामिम नाम हो प्राण ॥ १ ॥ जमरूख तरवुज केलां, निमजां कोहलां करों नेलां हो प्रा० ॥ पीस्तां फनस नारंग, पूगी चूयफल घणुं चंग हो प्रा० ॥ २ ॥ खरवृज जाख अंजीर, अन्नास रायण जंबीर हो प्राण ॥ मिष्ट लिंबु ने अंगुर, शिंगोमा टेटी बीजपूर हो प्राण ॥ ३ ॥ एम जे जे विषय लहंत, ते ते जिन नवने ढोयंत हो प्रा० ॥ अनुपम थाल विशाल, तेहमां नरीने सुरसाल हो प्राण ॥ ४॥ फलपूजा करे जे जावे, ते शिव रमणी सुख पावे हो प्रा॥ दुर्गता नारी जेम लहे. कीर युगल वली तेम हो प्रा० ॥ ५॥
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श्रीदेवविजयजी कृत
( काव्यम्) अमलशान्तरसैकनिधिं शुचिं, गुणफलैर्मलदोषहरैर्हरम् । परमशुद्धिफलाय भजे जिनं, परहित रहितं परभावतः ॥ १॥
॥ इति सप्तम फलपूजा समाप्ता ।।
॥ अथ अष्टम नैवेद्यपूजा ॥
॥दोहा॥ नव दव दहन निवारवा, जलद घटा समजेह। जिनपूजा युगते करी, त्रिविधे कीजे तेह ॥१॥ पूजा कुगतिनी अर्गला, पुण्य सरोवर पाल । शिवगतिनी साहेलमी, आपे मंगल माल ॥ २ ॥ शुन नैवेद्य शुन नावशं, जिन आगे धरे जेह । सुरनर शिवपद सुख लहे, हलिय पुरुष परे तेह ॥३॥
॥ ढाल आग्मी ॥ ( श्रावण मासे स्वामी मेली चाल्या रे, ए देशी )
हवे नैवेद्य रसाल प्रजुजी आगेरे । धरतां नवि सुखकार, प्रजुता जागरे । कंचन जमित उदार, थालमां लावो रे । तार तार मुज तार, नावना नावारे ॥ १ ॥ लापसी सेव कंसार, लागु ताजारे । मनोहर मोतिचूर, खुरमा खाजा रे । वरफी पेंमा खीर, घेवर घारीरे । साटा सांकली
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अष्टप्रकारी पूजा |
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सार, पूरी खारी रे ॥ २ ॥ कसमसीया कूलेर, सक्करपारा रे । लाखसाइ रसाल, धरो मनोहारा रे । मोतैया कलिसार, आगे धरीयेरे । जव जव संचित पाप, क्षणमां हरियेरे ॥ ३ ॥ मरकी मेसुर दहींथरां, वरसोलांरे । पापम पूरी खास, दोगं धोलां रे । गुदवमां ने रेवमी, मन जावेरे । फेणी जलेवी मांहे, सरस सोहावे रे ॥ ४ ॥
शालि दालने सालणां, मन रंगेरे । विविध जाति
पकवान, ढोवो चंगेरे । ताल कंसाल मृदंग, Il वीणा वाजेरे । नेरी नफेरी चंग, मधुरध्वनि
गाजरे ॥ ५ ॥ शोल सजी शणगार, गोरी गावेरे । देतां अढलक दान, जिन घर आवेरे । एि परे अष्ट प्रकार, पूजा करशे रे । नृप हरिचंद्र परे तेह, जव जल तरशेरे ॥ ६ ॥
( काव्यम् )
सफलचेतनजीवितदायिनी, विमलभक्तिविशुद्धिसमन्विता । भगवत. स्तुतिसारसुखासिका, श्रमहरामहरास्तु विभो. पुरः ॥ १ ॥ ॥ इत्यष्टमी नैवेद्य पूजा समाप्ता ॥
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श्रीदेवविजयजी कृत--
ढाल नवमी। ( नमो भवि भावशुं ए, ए देशी) अष्टप्रकारी चित्त नाविये ए, आणी हर्ष अपार।जविक जन सेविये ए। अष्ट महासिद्धि संपजे ए, अम बुद्धि दातार ॥ नविः ॥ १॥ अम दिट्टि पण पामिये ए, पूजाथी नवि श्रीकार । न । अनुक्रमे अष्ट करम हणी ए, पंचमी गति लहो सार ॥ न ॥२॥ शा न्हाना सुत सुंदरूए, विनयादिक गुणवंत । न । शाह जीवणना कहेणथी ए, कीयो अन्यास ए संत ॥ न० ॥३॥ सकल पंमित शिर सेहरो ए, श्रीविनीतविजय गुरुराय । न | तास चरण सेवा थकी ए, देवनां वंबित थाय ॥ न ॥४॥ शशि नयन गर्ज विधु वरू ए, नाम संवत्सर जाण । न । तृतीया सित आसो तणीए, शुकरवार प्रमाण ॥ ज०॥५॥ पादरा नगर विराजता ए, श्रीसंजव सुखकार । न । तास पसायथी ए रची ए, पूजा अष्ट प्रकार ॥ नम्॥६॥
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________________ अष्टप्रकार्ग पूजा। 275 / कलग // श्ह जगत स्वामी, मोह वामी, मोगामी, सुखकरू / प्रनु अकल, अमल, अखंम निर्मल, नव्य मिथ्या तम हरू // देवाधिदेवा. चरण सेवा, नित्य मेवा, आपीये / निज दास जाणी, दया थाणी, आप समोवन यापीये // 1 // ॥श्लोक // प्रति जिनवग्वृन्दं गुद्धभायेन फीनि विमलमिह जगत्यां पूजयन्न्यएधा ये। निजकलिमलहतो. फर्मणोऽन्तं विधाय परमगुणमयं ने यान्ति मोतं दिघीगः॥१॥ / / इति श्रीदेवविजयजी कृत अष्टमकारी पूजा संपूर्णा / /