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२१६ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृतसोनु ते विणशे नहि।।सा ॥ घाट घमामण जायरे गुण ॥२॥त्रांबुजे रस वेधीजं ॥साते होये जाचूं हेमरे॥ गुण ॥ फरी त्रांबु ते नवि होवे॥सा ॥ एहवो जगगुरु प्रेमरे ॥ गुण ॥३॥ उत्तम गुण, अनुरागथी॥सा॥लहिये उत्तम गमरे॥ गुण ॥ उत्तम निज महिमा वध ॥ सादीपे उत्तमधामरे॥गुण॥ ॥४॥ उदक बिन्छ सायर नट्यो ॥सा जिम होय अखय अनंगरे ॥ गुण ॥ वाचक जश कहे प्रजुगुणे ॥सा ॥ तिम मुज प्रेम प्रसंगरे । गुण ॥ ॥ ५ ॥
OG श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन । (बेडले भार घणो छे राज वातो केम करो छो, ए देशी )
थाशुं प्रेम बन्यो डे राज, निरवहेश्यो तो लेखे । में रागी प्रजु थे जो निरागी, अणजुमते होए हासी। एकपखो जे नेह निरवहीश्यो, तेमां ही कीसी शाबाशी ॥था॥१॥ निरागी सेवे काई होवे,श्म मनमें नविश्राएं। फले अचेतन पण जिम सुरमणी, तिम तुम नगति प्रमाणु ॥ था॥२॥ चन्दन शीतलता उपजावे,अगनि ते शीत मिटावे।
१ पाणीनु टीपुं। २ एकना मनमां बहु स्नेह होय अने वीजाना मनमां कशुं पण न होय तेवो । ३ टाढ ।