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________________ १६० श्रीमद्वीर विजयोपाध्याय कृत करता । संघ सकल हवे चाले । काशी आदि तीरथ करता । समेतशीखरजी यावे ॥ ज० ॥ १३ || ग णिसे बासठ माघ वदीनी । चतुरदशी गुरुवारे । तीरथ नेटी जे आनंद लीधो । केवलज्ञानी ते जाणे ॥ ज० ॥ १४ ॥ संघनी सहाजे हमे जली जाते । जात्रानुं फल लीधुं । वीर विजय कहे आज हमारा । मननुं कारज सिध्युं ॥ ज० ॥ १५ ॥ श्री महावीर जिन स्तवन । महावीर महावीर जज ले तुं जाई । महावीर विन है न कोई सहाई ॥ मा० ॥ कणी ॥ मनुष्य जन्मकी करले कमाई | सिद्धारथ सूनुं बना ले तूं सांई ॥ मा० ॥ १ ॥ निष्कारण बंधु परम सुखदाई । महावीरजी की है एही बाई ॥ मा० || २ || स्वारथकी तुं बोगदे मात पित नाई । इनोसे न होगी तुजे कुठ जलाई || मा० ॥ ३॥ देखो दुनियांकी है कैसी सगाई । सवी लुंट लेवे अपनी कमाई || मा० || ४ || ठोक सब मोह लोह दुःखदाई | शरण कर वीर विनु मेरे भाई FITO || 4 ||
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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