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स्तवनावली।
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॥श्रीदस्तिनापुर स्तवन ।
॥राग पीलु ॥ चलोरी चलो तुम चमते रंगे । तीरथ यात्रा करो मन रंगे | तीरथ जात्रा जिनवर नांखी। इन बातनमें शास्त्र हे शाखी ॥ च ॥१॥ जिनवर कल्याणिक जिहां थावे । तीर्थकर तीरथ फरमावे । जैन तीरथकी महिमा जारी । सब जीवनकुं हे हितकारी ॥ च ॥ २॥ हथिणापुर में हरष घनेरा | छादश कल्याणिक हे नलेरा । शांति कुंथु अर जिनवर केरा | दरश करनसें कटे नव फेरा ॥च० ॥३॥ तीरथ जात्रा विधिशु कीजे । मनुष्य जनमका लाहा लीजे। धरम करनमें देरी न कीजे । अमृत रस सोही ऊटपट पीजे ॥ च ॥ ४॥ ए तीरथकी महिमा जारी। सुनके संघने किनी त्यारी। शहेर अंबालासें संघ चलियो । मनमोहन मार्नु मेलो मलियो ॥०॥ ॥ ५ ॥ श्रावक जन सब संघकी सेवा | करता नक्ति शिवसुख लेवा । अनुक्रमें हथिणापुरमें आया । धवल मंगल आनंद वरताया ॥ च०॥ ॥ ६॥ षु रस निधि इंषु वत्सरमें। चैत मास के कृष्ण पक्ष में । करमवाटी पंचमी दिन आया।