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१६६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतसंघवण कस्तुरकुमारी । हे पुन्यकी खुवी न्यारी। चमके सकल नरनारी ॥ श्री० ॥ए। नेरी नंना वजमावे । तब संघ सकल मिल आवे।गौरी मंगल गवरावे । सब जन चमते जावे ॥ श्री० ॥ १० ॥
ओगणिसें त्रेसह जाणो | मगसर शुदि नवमी वखाणो । शनिवारने सिद्धी जोगे । संघ निकसे सुख संजोगे ॥ श्री० ॥११॥ सपादशत शकटानी। हस्ति घोमे गुलतानी । शेठ साहुकारने पाला । संघ लोक घणा मसराला ॥ श्री० ॥ १५ ॥ सूरि विजयकमल गुण दरिया। एकादस मुनि परिवरिया । उपदेस करे गुणरागी । जाके धरम वासना जागी ॥ श्री० ॥ १३ ॥ है चैत्य प्रजुका संगे। संघ दरिसण करे मनरंगे । ऐसी विधि संघकी जाणो । फेर नहीं मिले एहवो टाणो ॥ श्री० ॥१४॥ अनुक्रमे चंपामें आया। ओगणिसें त्रेसठ जाया । पोसवदि एकादशी लीधी। बुधवारे यात्रा कीधी ॥ श्री० ॥ १५ ॥ यात्रा करी आनंद लीया । नरनव बहु सफला कीया। आतम आनंद रस लीया। कहे वीर विजय जर पीया ॥ श्री० ॥ १६ ॥
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