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३२ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतनिरजय थान खान अजरामर चंगी । जनम जनम जिनराज ताज बहु जगत सुरंगी ॥१॥ मात तात सुत जात जान बहु सजन सुहाये । कनक रतन बहु नूर कूर मन फेद लगाये । रंना रमण अनंग बहु केल कराये । संध्या रंग विरंग देख बिनमें विरलाये ॥२॥ पदम राग सम चरण करण अतिसोहे नीके । तरुण अरुण सित नयन वयण अमृत रस नीके । वदन चंद ज्यूं सोम मदन सुख माने जी के । तुऊ नक्ति बिन नाथ रंग पतंग जूं फीके ॥ ३ ॥ गज वर तरल तुरंग रंग बहु नेद विराजे । कंकण हार किरीट करण कुंमल अति साजे । राग रंग सुख चंग जोग मन नीके नायो | तुऊ नक्ति बिन नाथ जान तिन जनम गमायो॥४॥ रतन जरत विमान जान जूं नये सनूरे । रंजा रमण आनंद कंद सुख पाये पूरे । षोमस नित्य सिंगार नाच स्थिति सागर पूरे । जिन नक्ति फल पाये मोद तिन नाही रे ।। ५॥ धन धन तिन अवतार धार जिन नक्ति सुहानी । दया दान तप नेम सील गुण मनसा गनी जिन वर जसमें लीन पीन प्रजु अर्च करानी । तुऊ किरपा जई नाथ