________________
श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत-
पुरनय पास ॥ प्या० ॥ जि० ॥ ९ ॥ हम सरिखा अनाथ || जि० ॥ फिरता हे वत्यो काल अनंत ॥ प्या० ॥ जि० ॥ इन जव वीतक जे थया ॥ जि० ॥ तुं जाणे हे तौसु कौन कहत || प्या० । जि० ॥ ६ ॥ जिन बाणी विन कौन था ॥ जि० ॥ मुऊनै हे देता मारग सार ॥ प्या० ॥ जि० ॥ जयो जिन वाणी जारता || जि० ॥ जार्या हे मिथ्यामत जार || प्या० । जि० ॥ ७ ॥ हुं अपराधी देवो ॥ ज० ॥ करीये हे मुऊने बगसीस || प्या० ॥ जि० ॥ निंदक पार उतारणा ॥ जि० ॥ तुंही हे जग निर्मल ईस || प्या० ॥ जि० ॥ ८ ॥ बालक मूर्ख करो ॥ जि० ॥ धीगे हे वलि अति विनीत || प्या० ॥ जि० ॥ तो पिए जन के पालिये ॥ ज० ॥ उत्तम हे जननी ए रीत ॥ प्या० ॥ जि० ॥ ए ॥ ज्ञान हीन अविवेकीया ॥ जि० ॥ हवी हे निंदक गुण चोर || प्या० ॥ जि० ॥ तो पिए मुऊने तारीये ॥ जि० ॥ मेरी हो तोरो मोहनी दोर || प्या० ॥ जि० ॥ १० ॥ त्रिशला नंदन वीरजी ॥ जि० ॥ तुं तो है आसा विसराम | प्या० ॥ जि० ॥ अजर अमर पद दीजिये ॥ जि०॥ थानं हे जिम तमराम || प्या० ॥ जि० ॥ १२ ॥
८८
wwwww