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________________ ८७ . स्तवनावली । ८७ स्तवन अढारमुं। ॥ गीत की देशी॥ जवदधि पार उतारणी जिनवरकी वाणी। प्यारी हे अमृत रस केल । नीकी है जिनवर की वाणी । नरम मिथ्यात निवारियो ॥ जि० ॥ दीधो हे अनुभव रस मेल । प्यारी है जिस ॥१॥ हम सरिखा अति दीन ने ॥ जि ॥ सूखम हे अतिघोर अंधार ॥ प्या जि० ॥ झान प्रदीप जगावीयो ॥ जि० ॥ पाम्या है अतिमारग सार ॥ प्या ॥ जि० ॥ २ ॥ अंग उपांग स्वरूप सुं॥ जि० ॥ पश्ने हे उ बेद गरंथ ॥ प्या। जि० ॥ चूर्णि नाष्य नियुक्तिसुं॥ जि ॥ वृत्ति हे नीकी मोद को पंथ ॥ प्या। जि ॥ ३ ॥ सदगुरुकी ए तालिका ॥ जि० ॥ जासु हे खुले ज्ञान नंडार !! प्या ॥ जि० ॥ श्न बिन सूत्र वखाणीयो ॥ जि ॥ तस्कर हे तिण लोपि कार ॥ प्याण् ॥ जि ॥ ॥४॥ सोहम गणधर गुण निलो ॥ जि ॥ कीधो हे जिन ज्ञान प्रकाश ॥ प्या॥ जि० ॥ तुक पाटोधर दीपता ॥ जिण ॥ टार्यों हे जिन
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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