________________
चोविशी ।
२४५ त्रीश लाख पूव धरेंजी, आउखुं नव रवि वन्न । धनुष अढीसें उच्चताजी, मोहे जगजन मन्न ॥ प० ॥ २ ॥ एक सहसश्युं व्रत लियेजी, समेतशिखर शिव गम।त्रण लाख त्रीस सहस नलाजी, प्रजुना मुनि गुणधाम ॥ प० ॥३॥ शीलधारिणी संयतीजी, चार लाख वीश हजार । कुसुम यद श्यामा सुरीजी, प्रतु शासन हितकार ॥प०॥४॥ ए प्रनु कामित सुरतरुजी, नवजल तरण जिहाज। कवि जश विजय कहे शहांजी, सेवो ए जिनराज ॥ १० ॥५॥
श्रीसुपासनाथ जिन स्तवन ।
( नंदनकुं त्रिशला हुलरावे, ए देशी ) तात प्रतिष्ठ ने पृथिवी माता, नयर वाराणसी जायोरे । स्वस्तिक लंबन कंचन वरणो, प्रत्यद सुरतरु पायोरे । श्रीसुपास जिन सेवा कीजे ॥ १॥ एक सहसयुं दीक्षा लीधी, वे सय धनुष प्रजु कायारे । वीश लाख पूरवनुं जीवित, समेतशिखर शिव पायारे ॥ श्री० ॥२॥ त्रण लाख प्रजुना मुनि गिरा, चार लाख त्रीश हजाररे । गुण मणि मंमित शील अखंमित,