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मराम तुं समज सयाने, ले जिनवर वचका सरना। ममता मत कीजे, नहीं तेरी मेरी में तें परना ॥ निज ॥७॥ अथ तृतीय संसार नावना ।
॥राग मोर ठ॥ ॥ कुबजाने जाउ मारा, ए देशी ॥
उरकायो आतम ज्ञानी, संसार दुखांकी खानी ॥ उरकायो । आंचली ॥ वेद पाठी मरी पाणज होवे, स्वामी सेवक पामी । ब्रह्मा कीट द्विजवर रासन, नृप वर नरक ही गामी ॥ उरण ॥ १ ॥ सुरवर खर खर जगपति होवे, रंक राज विसरामी । जग नाटकमें नटवत नाच्यो, कर नानाविध तानी ॥ उरण ॥२॥ कौन गतिमें जीव न जावे, डोमे नहीं कुण थानी । संसारी कर्म संगथी पूर्यो, कचवर कुटी जगनामी ॥ उरण ॥ ३ ॥ एक प्रदेश नहीं जग खाली, जनम मरण नहीं गनी । पवन ऊकोरे पत्र गगन ज्युं, उमत फिर जम कामी ॥ उरण ॥ ४ ॥ सतचिद आनंद रूप संजारो, बारो कुमत कुरानी । जिनवर नाषित मग चले चेतन, तो तुम आतमज्ञानी ।। उर० ॥ ५ ॥