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________________ २२२ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत विनये, ते अरीया बहु ताप जीपे जी ॥ श्री० ॥ ||४|| मंगल माला लच्छि विशाला, बाला बहुले प्रेम रंगेजी | श्रीनयविजय विबुध पय सेवक, कहे लहिये प्रेम सुख अंगे जी ॥ श्री० ॥ ५ ॥ | www श्री नेमिनाथ जिन स्तवन । तोरणथी रथ फेरी गयारे हां। पशुओं शिरदेश दोष मेरे वालिमा । नव जव नेह निवारीयोरे हां। श्यो जो आव्या जोष ॥ मे॥ १ ॥ चंद्र कलंकी जेहथी रे हां। राम ने सीता वियोग ॥ मे० ॥ तेह कुरंगने वयणमेरे हां। पति आवे कुण लोक ॥ ॥मे०॥२॥ उतारी हुं चित्तथी रे हां, मुगतिधूतारी हेत ॥ ० ॥ सिद्ध अनंते जोगवीरे हां । तेहश्युं कवण संकेत || मे || ३ || प्रीत करतां सोहलीरे हां, निरवदतां जंजाल ॥ मे० ॥ जेहवो व्याल खेलाववोरे हां, जेहवी अगननी काल || मे | ॥ ४ ॥ जो विवाह अवसर दियोरे हां, हाथ उपर नवि हाथ - || मे० ॥ दीक्षा अवसर दीजीये १ जे हरिणना लीघे चंद्रने लांछन लाग्धुं छे, अने राम सितानो वियोग थयो, ते हरिणना कहवा ऊपर कोण भगेसो राखे । २ साप । 3 परगावा वखने हाथ ऊपर हाथ न प्राप्या, पण हवे दीक्षा वखते
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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