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चाविशी।
२२३ रे हां। शिर उपर जगनाथ ॥मे॥५॥श्म विलवती राजुल गरे हां । नेम कने व्रत लीध ।। मेण ॥ वाचकयश कहें प्रणमीयरे हां, ए दंपति दोश सिक ॥ मे ॥ ६ ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
( राग मल्हार ) वामानंदन जिनवर मुनिवरमां वमोरे॥1॥ ।मु०॥ जिम सुरमांहि सोहे, सुरपति परवमोरे ॥ ॥ केा सु०॥जिम गिरिमांहि सुराचल, मृगमांहे केसरिरे ।। के ॥ मृ॥ जिम चंदन तरुमांहे, सुनटमांही सुरथरिर ॥ के० ॥ सु॥१॥ नदीयामांहि जिम गंग,अनंग सरूपमारे।। के या फूलमाहि अरविंद, जरतपती नूपमारे ॥ के० ॥ ॥ ज०॥ ऐरौवण गजमांहि, गरुम खंगमां यथारे ॥ के ॥ ग० ॥ तेजवंत मांहि लोण, वखाणमां जिनकथारे ।। केा व ॥ ५ ॥ मंत्रमांहि नवकार, रतनमांहि हुँरमणीरे ॥ के ॥ २०॥ सागरमांहि माग माधा पर तो हाथ गयो । । पास। २ धी धणियाणी । ३ देवता । सन्द। भ्रष्ट । ६ मेग पर्वत । ७ झाटमा । ८ देत्य-गवण पंगेरे।। फामदेव । १० फामल । ऐरावत हाथी 1 १२ पक्षीनामा ।
सूर।।४ चिन्तामणि ।