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१३० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतजि ॥ राज काज सब बोम दर प्रनु, संजमगुं चित्त लाय ॥ सं० ॥ मु॥२॥ तप जप संजम ध्यानानलथी, कर्म इंधन जल जाय ॥ जि० ॥ लोकालोक प्रकाशक अद्भुत, केवल ज्ञान तुं पाय॥ के० ॥ मु० ॥ ३ ॥ ज्ञानमें नाली करुणा धारी, जीव दया चित्त लाय । मित्र अश्व उपगार करणकुं, जरुअच्छ नगरमें श्राय ॥ न० ॥ मु॥४॥ अश्व जगारी बहु जन तारी, अजर अमर पद पाय ॥ वीर विजय कहे मेहेर करोतो, हमने ते सुख थाय ॥ ह० ॥ मु० ॥ ५ ॥ ॥ श्रीनमिनाथ जिन स्तवन ॥
॥ देशी बधाइनी ॥ __ आज वधाइ वाजे नगर मथुरांमांही विजय घर ॥ आज वधाइ ॥ आंकणी ॥ विप्रा राणीये बेटो जायो, शुन्न मुहूर्त शुन्न वार । सोहम सुरपति चित्त धरी आवे, विजयराय दरबार ॥ वधाश् ॥ १॥ मात नमी करी पंच रूप धरी, कर कमले प्रजु लीध। चौसठ सुरपति सुरगिरि रंगे, जन्म महोच्छव कीध ।। वधाइ ॥२॥ विधि पूजन करी अष्ट मंगल धरी, गीत गान बहु कीध ।