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स्तवनावली।
श्रीमति जिन स्तवन ।
॥ राग ठुमरी दक्षणी ॥ आज जिनंदजीका दीग में तो मुखमां, मबि जिनंद प्रजु हम पर तुठमां ।। आ ॥१॥ चज गति फिरत में पायो बहु मुखमां, तुम प्रजु चरण ग्रहुं तो थाय सुखमां ॥ आप ॥ २ ॥ तुब जे विषय सुख लागे मुने मीउडां, नरग तिर्यगमांही तेना फल दीठमां ॥आ॥ ३ ॥ ताहारे जरोसें प्रजु लाग्युं माझं मनहुँ, कृपा करी तारवाने करो एक तनहुँ॥ आ॥ ४ ॥ आनंद विजयनो सेवक मागे एटटुं, वारवार प्रजुजीने कहुं हवे केटर्बु ॥ आ ॥ ५॥ श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन ।
॥रास धारी की देशी ॥ जिनंदजी एह संसारथी तार । मुनिसुव्रत जिनराज आज मोहे एह संसारथी तार ॥ आंकणी ॥ पद्मावती जिको नंदन निरखी, हरषित तन मन थाय ॥ जि ॥ कडप लंबन प्रजु पद थारे, शामल वरण सोहाय ॥ शा० ॥ मु० ॥१॥ लोकांतिक सुर अवसर देखीप्रतिबोधनकुंआय ।।