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स्तवनावली।
सोना रूपाके फुले वधाइ, जनमको लाहो लीध॥ बधाइ॥३॥ जन्म महोच्छव हाह करीने, जननी पासे लाय । सुरपति सघला महोच्छव करवा, छीप नंदीसर जाय ॥ वधाइ ॥४॥ प्रात समय नये अति आनंदसे, विजयराय दरबार । धवल मंगल सब गीतनादसे, पुत्र वधाश् थाय ॥ वधाश्च ।। ५ ।। सुतक कुल मरजाद करीने, नोजन वहुविध कीध । वीर विजय कहे नात जमावी, नमिकुमार नाम दीध ॥ वधाइ ॥६॥ ॥श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन ।
॥राग ठुमरी पंजाबी ।। मेरे प्रजुसें एही अरज हे नेक नजर करो दया करी ॥ मे ॥ आंकणी ॥ समुन विजय शिवादेवीना जाया । उपन दिगकुमरी हुलराया। अनुक्रमें प्रजु जोवन पाया । परणि नहीं एक नार, थवा अनगार के तृष्णा दूर करी ॥ मेरे ॥१॥ तुमे तो सघली माया तोमी । राजेमती स्त्रीने ठोमी। सहसावनपे रथमो जोमी । गये प्रजु गिरनार, लिये व्रत लार के ऊगमा दूर करी ॥मेरे ॥२॥ तप जप संजम कीरिया धारी। प्रजुजी वसीया