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१७४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- शण देव दीजे । अखियां शांत कीजे ॥१॥ अखियां बिन दरिशण जिनराजके । फुर फुर पानी वरसे । दरिशण खास तरसे ॥२॥ अ. खियां काल अनंते बादके । तुम बबी आज देखे । सब जये काज लेखे ॥३॥ अखीयां सफल नयी मेरी आज । अजित जिनराज नेटे । सब ही पाप मेटे ॥४॥ अरजी वीरविजय की एह । अजित जिनराज लीजे। शिवपुर राज दीजे ॥५॥
+ he-- ॥श्रीजगमीयाममन आदिजिन स्तवन ॥
॥ श्रीराग ॥ ___ आदि जिन मूरति नयनानंद ॥ आंकणी॥ क्या तारीफ करुं प्रनु तुमरी । दरिशण दिवे परमाणंद ॥ आप ॥ १ ॥ और सबी देवनकी बबी आगे । तुम बबी प्रजुजी सुखको कंद ॥ था ॥२॥ सचित् आनंदरूप तुमारो । योगीश्वर सब ध्यान करंद ॥ आ ॥ ३ ॥ पारंगत प्रजु तुम गुणवृंदको । त्रिजुवनमें कोण पार . हंद ॥ आण ॥४॥ शांत रसमय मूरति नेटी। नविजन नव संसार तुरंत ॥ आ० ॥ ५॥ ऊगमीयाममन फुःखखंमन । काटो कठीण करम