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___ १६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
सुरपति अवर देव सब, मधुकर पर ऊंकारे रे ॥ रि० ॥ ६ ॥ जयो जगदीस सुहंकर स्वामी, सेवक सब उख टारे रे ॥ रिण || ७॥ विमलाचल मंगन मुझ प्यारो, आतम आनंद लारे रे ॥ रि० ॥७॥
॥ स्तवन चौदमुं।
॥ राग रामकली ॥ आंगण कल्प फल्यो री ॥ यह चाल ॥ आनंद अंग नोरी, हमारे आनंद ॥ टेक ॥ गणधर पुंमरीक इण गिरि सोहे, देखी अघ सहु जोरी ॥ ह ॥ १॥ इस अवसर्पिणी तृतीय कालमें, इण गिरि मोद वोरी ॥ ह ॥२॥ पुंमरीक गिरी श्ण कारण प्रगट्यो, नामें पाप होरी॥ ह ॥३॥ नंदनको गणाधिप इण गिरि, कर्म सुजटथी लॉरी ॥ ह ॥ ४ ॥ जय पामी तुम मुक्ति बिराजे, सेवक हेज जोरी ॥हा॥५॥अरज करं निज पद मुज आपो, तो सहु काज सर्योरी ह० ॥६॥ दशा तुमारी आतमानंदी, मुज प्रगटे तो सोरी ॥ ह ॥॥