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स्तवनावली।
लंपट ढीठ कषाय खरो रे । तुं बिन तारक कोइ न दीसे, जयो जगदीसर सिझगिरो रे ॥ अ ॥ १० ॥ तिर्यग नरक गति दूर निवारी, नवसागरकी पीर हरो रे । आतम रामअनघ पद पामी, मोद वधू तिन वेग वरो रे॥ अ० ॥११॥
- स्तवन सातमुं।
॥ चाल गुजराती गरबाकी ॥ वहेला नवि जश्यो विमल गिरी नेटवा । अरे कांइ नेटीयां नवऽख जाय, अरे कांश सेवीयां शिवसुख थाय, तुम वहेला नवि० ॥ टेक॥ अरे कांश जनम सफल तुम थाय, अरे कांश नरक तिर्यंच मिट जाय, अरे कांश तन मन पावन थाय, अरे कांश सकल करम दय जाय ॥ तुम बहेला ॥ १॥ अरे कां पंचमे नव शिव जाय, अरे कांश श्नमें शंका नही काय, अरे कांश विमलाचल फरसाय, अरे कांश नविनो निश्चय थाय ॥ तुम ॥२॥ अरे कांश नाजिनंदन चंद, अरे कांश ठरी पाल जिन वंद, अरे काश् शूर होय अघ बूंद, और कां प्रगटे नयनानंद ।। तुम ।। ३ ।। यर कांड चउमुख चढे सुखरास. अरे कांश मोद महल कीनो वास, अरे कांश नववन सदु श्रयो नास,