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१० श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतअरे कांश् कोइ न रहे उदास ॥ तुम ॥ ४ ॥ अरे कांश मोटा पुण्य अंकूर, अरे कांश चिंता गए सब पूर, अरे कांश कुमत कदाग्रह चूर, अरे कांश आव्या नाथ हजूर ॥ तुम० ॥५॥ अरे कांश आपणो वंश उकार, अरे कांश दीन अनाथ आधार। अरे कांश मुझने तूं अब तार, अरे कांश अवर न सरण आधार ॥ तुम ॥६॥ अरे कांश मुझने मत तूं विसार, अरे कांश करम नरम सब बार। अरे कां आतम आनंदकार, अरे कांश नवसागर पाम्यो पार ॥ तुम ॥ ७॥
स्तवन आउनु।
॥ राग विहाग ॥ तारक हे जिन नानिके नंदन विमलाचल सुखदारी। जरम मिथ्यामत यूर नस्यो हे, मिथ्या लोह कुराश् सखीरी ॥ तारक ॥ १ ॥ कुमती कुटल विटल सव नासी, सुमती सखी हरखारी । तूं वैरण मुक आदि अनादि, देख गिरिंद नसाइ सखीरी॥ ताण ॥ ॥ राग वेप मद नरम अझाना, अंधकार तिन गरी । श्री जिनचंद गिरिंद जो निरखी, निकमें पाप पलाश ॥ सण ॥३॥ पावन नावन मुक मन हुलसी, फुलसी कुमति घवरारी । अब कहां