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श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-
जशविजय निपुण गुण गावे तुज निशदीद |||| श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ।
नयरी वाराणसी अवतर्यो हो, अश्वसेन कुलचंद | वामानंदन गुण निलो हो, पासजी शिव तरु कंद ॥ परमेसर गुण नितु गाइयें हो ॥ १ ॥ फणिलंबन नव कर तनु जिनजी, सजल घनाघन वन्न । संयम लियें शत तीनश्युं हो, सवि कहे ज्युं धन धन्न ॥ प० ॥ २ ॥ वरष एक शत - उखुं हो, सिद्धी समेत गिरीश | सोल सहस मुनि प्रभुता हो, साहुणी सहस अमतीस ॥ प० ॥३॥ धरणराज पद्मावती हो, प्रभु शासन रखवाल । रोग शोग संकट टले हो, नाम जपत जपमाल ॥ प०॥ ॥ ४ ॥ पास आशपूरण अब मेरी, अरज एक धार | श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, जश कहे जवजल तार ॥ प० ॥ ५ ॥
श्री महावीर जिन स्तवन ।
( राग धन्याश्री )
आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपाकुंन जो मुज्ज तू । कल्पतरु कामघट कामधेनु मिल्यो, गणे अमियरस मेह वूठो ॥