SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतचतुरविध मली करीरे । सूरि पदवी दीध गुरुजी ने रंगेरे । ओगणिसें बेतालीस अधिक उमंगेरे॥ सखी ॥ ६॥ एम अनेक गुण गुरुजी केरा कहेतां नावे पाररे । पंचमे आरे परगट करता । गुरुजी बहु उपगार एहने सेवोरे । ए गुरुजीनो संयोग मोदनो मेवोरे । स० ॥ ७॥ दरजावतीमें रही चौमासुं ओगणिसें बेतालीसरे । वीरविजय कहे सेविये रे काई । ए गुरु विसवावीस मनने जावेरे। कांश ए संसारनुं मुख फेर नहीं आवेरे ॥ सखी० ॥ ७॥ ॥ गुंहली चोथी॥ लघुवय जोग लीयोरे, ए देशी ॥ विजयानंद सूरिरायनारे । केतां करूंरे वखाण । गुरुजीये ज्ञान दियोरे । नव्य जीव प्रतिबोधवारे । मार्नु जग्यो नाण अघ तम दूर कीयोरे ॥ गुण ॥१॥ पंच महाव्रत पालतारे मालता निजगुण मांहि ॥ गु०॥ पर पदारथ जालमारे । गुरुजी पेसता नांहि ॥ गुण ॥२॥ अध्यातम रस जीलतारे । पीलता पाप करंग ॥ गुण ॥ अनुभव ज्ञानथी जाणतारे।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy