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गुंहलीओ । मोह दशा महाकंद || गु० ॥ ३ ॥ अशुभ योग निवारतारे करता करम निकंद ॥ गु० ॥ स्वपर सत्ता जावतारे । चैतन्य जनो संग ॥ गु० ॥ ४ ॥ वस्तुस्वाव निहालतारे | एक अनेकनो रंग ॥ गुण ॥ नित्यानित्य विचारता रे । नेदानेदनो जंग || गुo || २ || तत्त्वतत्त्वने खोजतारे । खेचता निज सुख चंग || गु० ॥ ज्ञान क्रिया रस जीलतारे । मनमें धरिय उमंग ॥ गु० || ६ || करी उपगार भूमंगलेरे । लीधो लाज अनंग ॥ गु० ॥ आप तर्या पर तारिनेरे । स्वर्गि थया सुख कंद |||| ७ ॥ पुन्यसंयोगे पामीये रे । एहवा गुरुनो संग | गु० ॥ वीरविजय कहे गुरु तणोरे | रहेजो अविचल रंग ॥ गु० ॥ ८ ॥
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गुंदली पांचमी ।
|| कंगना खुलदानही महाराय, ए चाली ॥ विजयानंदसूर महाराय | जिनके नाम सें मंगल थाय ॥ वि० ॥ कणी ॥ समता सागरके विसरामी | कंचन कामिनिके नहीं कामी ॥ नामी सव दुनियां में थाय ॥ वि० ॥ १ ॥ संजम मारगमें बहुरागी । ठोक परिग्रह नये वैरागी ॥ त्यागी