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१९० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- जगमें नाम धराय ॥ वि० ॥ ५ ॥ सब कुपंथ त्याग कर दीया । अपना जनम सफल कर लीया । पूजो ऐसें गुरुके पाय ॥ विण ॥३॥ सत उपदेशही सबको दीया । सत मारग सो थापन कीया । ऐसे जग उपकारी थाय ॥ वि० ॥४॥ चलो सखी दरिशनको जावें । देख वदन आनंद जर पावे । ऐसे नहीं कोई राणे राय || वि ||५|| सखियां मिल आनंद नरपूरे । गुरुचरणोमें गुंहली पुरे । आनंद वीर विजयको थाय | वि० ॥ ६ ॥
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॥श्रीगौतम स्वामीकी गुंदली ॥
॥प्रथम जिनेश्वर मरुदेवी नंदा, ए देशी ॥ गौतम स्वामी शिवसुख कामी । गुण गाउं सीर नामी रे । गुरु गौतमस्वामी ॥ ए आंकणी ॥ जीव सत्ताका संशय पमिया । वीरचरण जर अमियारे ॥ गुण ॥१॥ हुवा गणधारी शंका निवारी । प्रजुजीये त्रिपदी आलीरे ॥ गुण ॥२॥ चौद पूरवकी रचना कीनी। जग जश कीरती लीनीरे ॥ गुण ॥३॥ लब्धि बलिया अष्टापद चमिया । वीरवचन रस नरियारे ॥ गुण ॥४॥