________________
गुंहलीओ।
१९१ गुरुजी जात्रा करके वलिया । पन्नरसें तापस मलियारे ।। गु० ॥ ५॥ संजम लेवा विनती कीनी। गुरुजीयें दिदा दीनीरे ॥ गुण ॥६॥ वीर प्रजुका दरिशण चलिया । केवल लदमी वरियारे ॥ गुण्॥ ७ ॥एम अनेक शिष्यकुं तारी॥ ए गुरुकी बलिहारीरे ॥ गुण ॥ ७॥ सखियां सघली गुंहली गावे । गौतम स्वामीकी नावे रे॥ गुण ॥ ए ॥ वीर प्रजुका राग निवारी । आतम एकता धारीरे ।। गुण ॥ १० ॥ केवल पाश् मोद . पद पाया । पृथवीमाताका जायारे ॥ गुण ॥११॥ ओगणिसें समसठ संवत् पाया। दीवाली दिन
यारे ॥ गुण ॥ १५ ॥ वीरविजय गौतम गुण गाया । बीकानेर जब आयारे ॥ गुण ॥ १३ ॥
॥ श्रीकल्पसूत्र की गुंहली ॥ ॥ सहीयर सुणियेरे, जगवती सूत्रनी वाणी,
ए देशी ॥ जवियण सुणजोरे, कल्पसूत्रनी वाणी ॥ मीठी लागेरे वाणी अमीय समाणी॥आंकणी ॥ कल्पसूत्रनी मोटी महिमा, वीर जिणंद वखाणे॥