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१९२ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृतगौतम गणधर वीर वचनने हृदय कमलमां धारे ॥ नविण ॥ १ ॥ अरिहंत सम नहीं देव जगतमें, पदमें परमपद मोटुं । तीरथमें शत्रुजय जाणो, सूत्रमें कल्प वखाणो ॥जविण ॥ ॥ ॥ देवगणोमें इंड ठे मोटा, तारागण में चंड ॥ न्याय नीतिमें राम वखाणो, काम स्वरूपमें जाणो ॥ नविण || ३॥ रूपवतीमें रुमि रंना, वाजिनमें जेम नना। गजवरमें ऐरावण क.हिये, युझमें रावण लहिये ॥ नविण ॥४॥ बाणावली में अर्जुन बलियो, गुणमें विनय ज्यु जणियो । मंत्रमांहि नवकारज जाणो, बुद्धिमें अजय गवाणो || नवि० ॥५॥ सर्व वृदमें कल्प वृद जेम, अधिक बमाई धारे । सर्व सूत्रमें कल्पसूत्र तेम, पाप कलंक निवारे ॥ नविण ॥ ६॥ कल्पसूत्र जे नणशे गणशे, तिसत्त वार सांजलशे ॥ वीर कहे सांजलजो गौतम, ते नवसायर तरशे ॥ नवि० ॥ ७॥ निधि रस निधि इंछु वत्सरमें, रही सीनोर चौमासु ॥ वीरविजय कहे वीरप्रजुकी, वाणी में नहीं काचुं ॥ नवि० ॥ ॥
॥ समाप्त ॥
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