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१५६ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- शशी वत्सरे ॥ मा । फाल्गुन मास प्रमाण ॥ वा ॥ कर्मवाटी ए चतुर्दशी ॥ मा ॥ कृष्णपद की जाण ॥ वा० ॥१०॥ सूर्यवारे सुखिया थया ॥ मा० ॥ नेटी प्रजुका पाय ॥ वाण । वीर विजय कहे दीजिये ।। मा० ॥ आतम हित सुखदाय ॥ ॥ वा० ॥११॥
श्रीसमेतशीखरजीनुं स्तवन ।
वस गीया वस गीया वस गीयारे मेरा मनवा । मेरा मनवा शीखर पर वस गीयारे॥मे॥ आंकणी ॥ समेतशीखर गिरिवर को बेटी । आनंद हृदयमें नर गीयारे ॥ मे ॥ १॥ धन्य घमी दिन आज हमारो। तीरथ नेटी तर गियारे ॥ मे ॥२॥ वीसे टुंके वीस जिनेश्वर । अजितादि प्रजु चम गीयारे॥मे०॥३॥ अणशण करके कारज अपना । योग समाधीसे कर लीया रे ॥ मे ॥ ४ ॥ अनंतबली जिनवरको जाणी। मोहराय पिण मर गिया रे ॥ मे ॥ ५॥ करम कटण कल्याणिक नूमि। सब जिनवर जी कह गयारे ।। में ॥ ६ ॥ पुन्योदयसें पास शामला।