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स्तवनावली |
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समते शिखर पे दरश कियारे ॥ मे० ॥ ७ ॥ वीर विजय कहे तीरथ फरसी । तम आनंद ले लियारे ॥ मे० ॥ ८ ॥
॥ स्तवन बीजुं ॥
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तीरथनी शातना नवी करीये, ए देशी ॥ समेतशीखरनी जातरा नित्य करिये । नित्य करियेरे नित्य करिये । नित्य करिये तो पुरित नीहरिये । तरिये संसार ॥ समे० ॥ १ ॥ शिववधु वरवा आविया मन रंगे । विश जिनवर अति जबरंगे । गिरी चमिया चमते रंगे । करवा निज
काज ॥ समे० ॥ २ ॥
जितादि वीश जिनेश्वरा
श
की रिया न चुके ।
वीश टुंके । कीधुं ध्यान शुक्ल हृदयथी न मुके । पाया पद निरवाण ॥ समे० ॥ ३ ॥ शिव सुख जोगी ते थया जिनराया । जांगे सादि अनंत कहाया । पर पुल संग बोकाया । धन धन जिनराय ॥ समे० ॥ ४ ॥ तारण तीरथ तेहथी ते कहीये । नित्य तेनी बांया रहीये । रहिये तो सुखिया थइये । बीजुं शरण न होय ॥ समे० || ५ || ओगणसे