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________________ mmmmmm चोविशी। २३५ वन सूर । मन तरसे मलवा घणुंजी, तुम्हे तो जश् रह्या दूर । सोजागी तुम्हश्युं मुज मन नेह, तुमश्युं मुज मन नेहलोजी, जिम बपश्यां मेह ॥सो॥१॥ आवागमन पथिक तणुंजी, नहि शिव नगर निवेश । कागल कुण हाथे लिखूजी, कोण कहे संदेश ॥ सो ॥२॥ जो सेवक संज्ञारस्यो जी, अंतरयामीरे आप । जश कहे तो मुज मन तणोजी, टलशे सघलो संताप || सो ॥३॥ - श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन । (ढाल रसियानी) मबि जिणेसर मुजने तुम्हे मित्या, जेह मांहिं सुखकंद वाल्हेसर । ते कलियुग अम्हे गिरुओ लेखवू, नवि बीजा युगवृंद, वाल्हेसर ॥म ॥१॥ आरो सारो रे मुज पांचमो, जिहां तुम दरिशण दीठ वा । मरुभूमि पण थिति सुरतरु तणी, मेरु थकी हुश्श्व ॥ वा॥॥ पंचम आरेरे तुम्ह मेलावमे, रुमो राख्योरे रंग वा । चोथो आरोरे फिरि आव्यो गणुं, वाचक जश कहे चंग ॥ वाण ॥३॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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