________________
१४ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृतअमर पूरण पद पामी प्रगटे केवलज्ञान, नविजन महानंद काजे ॥प्र०॥२॥प्रनु तुम दरशन हितकारी, तरे नववनसें नरनारी, जिनों ने चरण सरण धारी के खिझग निजगुण वन वारी, तीन पांच अरु एक नवंतर करत मुक्ति में वास। जिन गणधर मुनि कथन रसीला, बातम अनुन्नव रास, निहारो नाथ जगत राजे ॥ प्रण ॥३॥
स्तवन बारमुं।
॥ राग ठुमरी ।। महावीर तोरे समवसरणकी रे ॥ चाल ॥ जिनंदा तोरे चरण कमलकी रे ॥ हुं चाहुँ सेवा प्यारी, तो नासे कर्म कटारी, जव ब्रांति मिट गए सारी ॥ जिनंदा ॥ विमल गिरि राजे रे, महिमा अति गाजे रे, वाजे जग मंका तेरा, तूं सच्चा साहेब मेरा, हुँ बालक चेरा तेरा ॥ जिनंदा ॥१॥ करुणा कर स्वामी रे, तूं अंतर जामी रे, नामी जग पुनम चंदा, तूं अजर अमर सुखकंदा, तूं नानिराय कुल नंदा ॥ जि० ॥२॥ण गिरि सिकारे, मुनि अनंत प्रसिका रे, प्रजु पुंमरीक गण धारी, पुंगरगिरी नाम कहारी, ए सहु महीमा है थारी ॥ जि॥३॥ तारक जग दीगरे, पाप पंक सहु नीगरे,