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स्तवनावली।
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स्तवन दशहूं।
॥ राग-केरवो ॥ ॥ मगर बतादे पाहामीयां, ए देशी ॥ मगर बतादे पियारीया में तो पूजुंजी रिपन जिनंद मगर ॥टेक॥रायण तरु तले चरण बिराजे, बीच बिराजे जिनराज ॥०॥ १॥ चउमुख दरस करूं ने सुख पाऊं, जिम सुधरे सब काज ॥ म॥२॥ विमलाचल मंझन सब सोहे, मंमन धर्म समाज ॥ म० ॥३॥ आतम चंद जिनंदजी नेटी, वेग मिले शिवराज ॥ म ॥४॥
स्तवन अग्यारहूं।
॥ राग लावणी ॥ सखीरी चल गढ गिरनारी ॥ यह चाल ॥ प्रजी विमलाचल राजे, जिहां प्रजु रिखन्न देव गाजे, जायके पूजन करना जेके, सब ही कर्म सुन्नट नाजे ॥ नविजन तुम क्यों आलस करते, तज दो अघ जेरा कर्म कंद हर बंधन टूटे; मिथ्या मत घेरा न तेरा शत्रु जग गजे॥॥१॥ प्रजुजी नान्निराय नंदा, काट सव कर्मनका फंदा, नये जगमें सुरतरु कंदा, सिमरो धर्म के आनंदा, निजगुण सत्ता चिद्घन प्रगटी पुण्यरास श्क तान. अजर