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स्तवनावली।
चाखी, रुच से तप्त बुझाई । ताण ॥ ५ ॥ नवसागर की पीर हो सब । मेहर करो जिनरा। दृग करुणा की मोह पर कीजो । लीजो चरण बुहाई। ता ॥६॥ विप्रानंदन जग दुख कंदन । जगत वबल सुखदाई । आतमराम रमण जगस्वामी कामत फल वरदाश् । ता ॥ ७॥
॥श्री नेमिनाथ जिन स्तवन ॥
॥ स्तवन पहिलं ॥ चैतमें सोहाग सहियां फूलीयो सब रूपमें। झान फुल चारित फल जर । लागीयो चिद रूप में । पुन्य यौवन चरयो नीको । करण पंचस नूरीयां । अब देख नेम वियोग सेती। नये बिनक में पूरीयां ॥१॥ वैसाख तामस ऊठीयो सब फुल फल मुरकाश्या । चित दाह नस्मीनूत कीनो, शांतिरस सुसाश्या । मन सैल राज कपन कीनो दंन नागन धाश्यां । अब प्यास शांत न होत किम ही त्रिजुवन धन जल पाश्यां ॥२॥ जेठ जागी कुगुरु वायु अंधीयां बहु आश्यां । तन मन सवी मलीन कीने नयन रज वहु नाश्यां । कतु आप पर की सूफ नाहीं परो घोर अधेरमें।