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________________ ? नामा सूर नामें देखे, फेर जनम नही आवेरे ॥ नी० ॥ ४ ॥ कर उपर कर प्रभुजी बिराजे, सूचन ध्यान पतावेरे ॥ तीन बत्र प्रभु कंपर कहकर, त्रिभुवन स्वामी जनावेरे ॥ नी० ॥ ५ ॥ चामर कहत है नीचे जूक कर, ऊर्ध्वगति तुम जावेरे ॥ नामंगल पूठे प्रभु दरसन, तम मिथ्यात गमावेरे ॥ नी० ॥ ६ ॥ अयुत जोजन ध्वज आगल प्रभु के, तिस उपर कर साखारे ॥ जिष्णु बदमथी एम कहत है, स्वामी इक जग ताजारे ॥ नी० ॥ ७ ॥ जिनवरकी सेवामें नित, गंगु श्रावक राच्यारे ॥ आतम लिप्सा पूरण कीजो, मोह मारग एक जाच्यारे ॥ नी० ॥ ८ ॥ स्तवन त्रेव शमं । पास जिनंद निहार हो, तुं त्रिभुवन त्राता ॥ टेक ॥ तुम दरसनसें अजर अमर हो, निरंजन निराकार हो ॥ तुं ॥ १ ॥ अवर देव नीके कर देखे, पेखे सर्व विकार हो || तु ॥ २ ॥ अब मोहे तारो ढील न कीजो, आतम आनंद कार हो ॥ तुं ॥ ३ ॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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