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श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत
सुरपति अवर देव सब, मधुकर पर ऊकारे रे ॥ रिण ॥ ६ ॥ जयो जगदीस सुहंकर स्वामी, सेवक सब सुख टारे रे ॥ रिण || ७॥ विमलाचल मंकन मुझ प्यारो, आतम आनंद लारे रे ॥ रिण ॥७॥
॥ स्तवन चौदमुं।
॥ राग रामकली ॥ आंगण कल्प फल्यो री ॥ यह चाल ॥ आनंद अंग जोरी, हमारे आनंद० ॥ टेक ॥ गणधर पुंगरीक श्ण गिरि सोहे, देखी अघ सहु जोरी ॥ ह० ॥ १॥ इस अवसर्पिणी तृतीय कालमें, इण गिरि मोद वोरी ॥ हा ॥५॥ पुमरीक गिरी इण कारण प्रगट्यो, नामें पाप होरी ॥ हण ॥३॥ नंदनको गणाधिप श्ण गिरि, कर्म सुजटथी लोरी ॥ ह० ॥ ४ ॥ जय पामी तुम मुक्ति बिराजे, सेवक हेज चोरी ॥हा॥५॥अरज करं निज पद मुज आपो, तो सहु काज सर्योरी ह० ॥६॥ दशा तुमारी आतमानंदी, मुक प्रगटे तो सर्योरी ॥६० ॥७॥