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१४० श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- अब मिलियो नाथ, दुख हरो प्रनु मेरो ॥ प्रजु ॥ ४ ॥ आज आणंद अंग, मनमें उमंग, जाणे पुनमचंद, शीतल अजंग, हे लंबन चंद, एसो चंद्र प्रनु दिठगे । प्रनु ॥ ५ ॥ जीरानगर खास, प्रनु करे निवास, मन धरे जे आश, मीले मोद वास, लक्ष्मीके दास, वीरविजे एम कह्यो॥ ॥ प्रजु ॥६॥ ॥ श्रीजयपुर मंमन सुमति जिन स्तवन ॥
॥राग वरवा पीलु ॥ ____साहिब सुमति जिनेश्वर स्वामी, सुण हो कृपानिधि अंतर जामी । काल अनादि चिहुं गति कामी, फीरतां आयो में शरणे तिहारी ॥सा॥ ॥१॥ गरनावासमें अति दुःख नारी, जंधे मस्तक हुवोरे खुवारी । मोहकरमकी हे गति न्यारी, जनम मरण नहीं बोमत लारी ॥ सा ॥२॥ तुम विन कोण करे मुज सारी, अब तो लो प्रनु खबर हमारी । जीव अनंते संसारसें तारी, पहोंचामे प्रजु मुक्ति मोजारी ॥ सा० ॥ ३ ॥ माहारी वेला मौन व्रत धारी, शोजा नहीं प्रजु श्नमें तुमारी । तुम प्रनु तारक जग जयकारी, तुम पर वारी हुँ