SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादश भावना | अथ नवमी निर्जरा जावना | ॥ राग खमाच ॥ ॥ दुर्मति मारदे मेरे प्राणी दुरमति ए देशी ॥ १०१ चेतन निर्जरा जावना जावे रे | चेतन० ॥ चली ॥ जग तरु बीज नूत करम जे । खेरु कर सुख पाये । सो निर्जरा दोय जेद सुनीजे | सकामाकाम बतावे रे | चेतन० ॥ १ ॥ संयमी को सकाम निर्जरा, इतरांको इतर कहावे । कर्म पापका फल जो जोगे, खय उपाय सुनावे रे ॥ चेतन० ॥ २ ॥ मलयुत कनक तप्त वह्निसे, जैसे दोष जरावे । तप अग्नि से कर्म तपाये, तेसें जीव सुनावे रे | चेतन० ॥ ३ ॥ खाना नहिं ऊनोदरि करनी, विरती संखेप गिनावे | रस त्यागे तनु कष्ट करे जो, इन्द्रिय विषय रुंधावे रे ॥ चेतन० ॥ ४ ॥ षट् नेदे यह बाह्य कह्यो तप, षट् विध अंतर गवे । प्रायवित्त विया - वच्च सुहंकर | विनय व्युत्सर्ग धरावे रे | चेतन० ॥ ५ ॥ शुन ध्याने तपो अग्नि दीपे, बाहिर अंतर जावे । संयमी जन करे श्रदृष्ट निर्जरा,
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy