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MNANAVAN
स्तवनावली। स्तवन पांचमुं।
॥ राग वसंत होरी ।। साचा साहिब मेरा सिझाचल स्वामी ॥ टेक॥ चेतन करमको जाल फस्यो हे, वेगाही करहु निवेरा ॥ सिझा ॥ १॥ दरस करत जो शिव फल ताको, वेग मिटे नव फेरा ॥ सिझा ॥२॥ कलि काले एक तुमरे दरसका, आसरा नविको घनेरा ॥ सि ॥३॥ अषम कुगुरु नरम सब नागे, अजहु नाग नोरा ॥ सि ॥४॥ आतमराम आनंदघन राच्यो, तुमचो मानहु चेरा ॥ सि ॥५॥
स्तवन बहु।
॥राग वढंस ॥ ॥ हमको छोड चले बन माधो, यह चाल ॥ ___ अब तो पार नए हम साधो, श्री सिद्धाचल दरस करी रे ॥ अवतो पार ॥ टेक ॥ आदीश्वर जिन महेर करी अब, पाप पटल सब पूर नयो रे ॥ तन मन पावन लविजन केरो, निरखी जिनंद चंद सुख थयो रे ॥ अ॥ १॥ पुमरीक पमुहा मुनि बहु सिध्या, सिझक्षेत्र हम जाच लह्यो रे । पशु पंखी जिहां उिनकमें तरीया, तो हम दृढ विसवास गह्यो रे । अण् ॥ २॥ जिन